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Sunday, February 03, 2008

5. जयनाथपति

जयनाथपति (1880-1940) (मगही के प्रथम उपन्यासकार) -- नवादा के मुख्तार जयनाथ पति का जन्म ग्राम - शादीपुर, पो० - कादरीगंज, जिला - नवादा । सर्वप्रथम मगही में 'सुनीता' (1927) नामक उपन्यास प्रकाशित । इसकी समीक्षा सुनीति कुमार चटर्जी ने Modern Review के अप्रैल 1928 अंक में की । लेखक का दूसरा उपन्यास 'फूल बहादुर' (अप्रैल 1928; द्वितीय संस्करण अप्रैल 1974) प्रकाशित हुआ जिसके मुखबंध में वर्णित तथ्य से पता चलता है कि 'सुनीता' की रचना और मुद्रण बड़ी जल्दी में किया गया है । "परसाल बंगला के उत्पत्ति और विकास में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ-पाँच करते-करते बेकाम कैले खतम हो जाय के हे । एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल और एतना जल्दी में ऊ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।" डॉ० रामनन्दन के अनुसार इसका नामकरण बंगला के विद्वान् और प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डॉ० सुनीति कुमार चटर्जी के नाम पर किया गया है क्योंकि इसकी रचना लेखक ने उनके लेख से प्रभावित होकर किया था । इसकी मूल प्रति अब अनुपलब्ध है ।

'सुनीता' एक सामाजिक उपन्यास है जिसमें अनमेल विवाह में उत्पन्न समस्या को उजागर किया गया है । उपन्यास की नायिका सुनीता उच्च वर्गीय परिवार की कन्या है जिसका व्याह एक वृद्ध से हो जाता है । सामाजिक बन्धन को तोड़कर वह निम्न कुलोत्पन्न प्रेमी के साथ भाग जाती है । सुनीता के बिरादरी वाले कचहरी में मुकदमा दायर कर उसके प्रेमी को दंडित कराना चाहते हैं किन्तु वह अपने प्रेमी के पक्ष में दलील देकर उसे निर्दोष सिद्ध करते हुए सच्चा प्रेम का परिचय देती है ।

'फूल बहादुर' में हास्य व्यंग्य की प्रधानता है । मुख्तारी के अनुभव पर आधार पर रचित इस उपन्यास में तत्कालीन कचहरी एवं सरकारी अधिकारी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया गया है । उपन्यास का नायक रामलाल बिहारशरीफ का मुख्तार है और राय बहादुर कहलाने के लिए बेचैन है । इसके लिए वह अधिकारियों की खुशामद करता है । नवागन्तुक अनुमंडलाधिकारी को सुरा-सुन्दरी उपलब्ध कराकर वह अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहता है किन्तु उसे सफलता नहीं मिलती । नगर के लोग उसकी व्यग्रता देखकर राय बहादुर बनाने का एक फर्जी आदेश उसके पास भेज कर उसे बेवकूफ बनाते हैं । रायबहादुर के बदले वह फूल बहादुर बन जाता है ।

इनका तीसरा उपन्यास 'गदहनीत' भी सामाजिक कुरूपता को उजागर करता है । इसकी प्रति अनुपलब्ध है ।

जयनाथ पति ने मगही उपन्यास का लेखन उस समय प्रारम्भ किया जब हिन्दी में प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद और उनके समकालीन अन्य लेखक उपन्यास लिख रहे थे । पाठक और प्रकाशन की समस्त सुविधाओं के कारण हिन्दी अपने वर्तमान स्वरूप तक विकसित हो सकी, किन्तु रुझान और संरक्षण के अभाव में मगही की वह परम्परा कायम नहीं रही । जयनाथ पति के पश्चात् बहुत दिनों तक मगही में उपन्यास नहीं लिखे गए । पुनः स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इस ओर लोगों का ध्यान गया ।