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Saturday, February 20, 2010

14. मासिक पत्रिका "अलका मागधी" (1996) में प्रयुक्त मगही शब्द

अमा॰ = मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी"; सम्पादक - डॉ॰ अभिमन्यु मौर्य, पटना
ई सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ । उदाहरण -

जुलाई 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 1;

दिसम्बर 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 6;
दिसम्बर 1996 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + 12 = 18;

दिसम्बर 2007 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2007-1995) X 12 = 6 + 12 X 12 = 150;
दिसम्बर 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2009-1995) X 12 = 6 + 14 X 12 = 174;

जनवरी 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 1 = 6 + 13 X 12 + 1 = 163.
अप्रैल 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 4 = 6 + 13 X 12 + 4 = 166.


1 अँकवारी (भर ~ धर के) (अमा॰12:11:1.29)
2 अँचरा (अमा॰18:10:2.16)
3 अंतड़ी (अमा॰17:7:2.9)
4 अंधार (अमा॰12:14:2.26)
5 अउघड़ (~ दानी सोभाव के) (अमा॰13:8:2.4)
6 अउरत (अउरतियन सब अप्पन विचार से न डिगल) (अमा॰17:10:1.7)
7 अउरदा (जे साहित्त समाज के, जन-जीवन के आउ कहऽ कि माटी से मिलल रहऽ हे ओकर ~ ओतने लमहर होवऽ हे) (अमा॰13:11:1.4)
8 अउसन (जइसे खाय-पीये, पेन्हे-ओढ़े ला दे हियो, अउसने में रह । जादे मुँह लगइमें त ई खोरनी से दाग देबउ ।) (अमा॰17:8:2.1)
9 अकचकाना, अकचका जाना (अमा॰12:15:1.25)
10 अखबार (अमा॰11:4:2.13)
11 अखाड़ा (अमा॰16:11:1.9, 2.16)
12 अगराना (बसन्त में धरती अगराइए गेल हे, बाकि बसन्त भी कम बगरल नञ हे) (अमा॰8:7:1.3)
13 अगाह (~ करना) (सचमुच में कुत्ता आगरो जानऽ हथ न ? सूँघ के चोर तो पकड़िये ले हथ, होवे ओली घटना के भी कान फड़का के आउ दुम हिला के अगाह कर दे हथ) (अमा॰11:7:1.15, 18)
14 अगुअइ (अगुअइये में) (अमा॰13:5:2.12)
15 अगोरना (घूर-घूर के ~) (अमा॰11:7:1.23)
16 अगोरी (~ करना) (अमा॰11:8:2.8)
17 अचके (सुख के सेजरिया हम सोबहूँ न पइली, अचके में हो गेल बिहान) (अमा॰15:19:1.16)
18 अच्छत (~ न छोड़ना) (हबर-दबर चाट जाहें, अच्छतो न छोड़ऽ हें) (अमा॰7:7:1.21)
19 अझुराना (सझुरावे के लाख कोशिश करला पर भी ओकर सोच आउ जादे अझुरायल नियन हो जाहे) (अमा॰12:9:1.3, 4, 8; 18:8:1.2)
20 अटकना (नरेटा के खखार नियन नरेटा में अटकल ही, न एन्ने जाइत ही न ओन्ने) (अमा॰12:10:1.7)
21 अत्ता-पत्ता (मैट्रिकुलेशन तक हम जादे कुछ न पढ़ली, अप्पन जादे समय क्रिकेट, गुल्ली-डंडा, अत्ता-पत्ता, काडी आउ हू-तू-तू जइसन खेले खेल में बिता देली हल) (अमा॰8:11:1.26)
22 अथोर (कनखी मारित बिचरइ निरदंद हिए हिड़िस अथोर) (अमा॰15:1:1.10)
23 अदरा (= आर्द्रा नक्षत्र) (लोग अदरा-कथा बाँच रहलन हे, हम तो मिरगा-कथा लिख रहल ही) (अमा॰14:1:1.11)
24 अधखुलल (~ दरवाजा) (अमा॰15:7:1.6)
25 अधबूढ़ा (सोनिया के जवानी मुसकाइत हल आउ देह सोना नियर चमकइत हल । ओकरा देख के गाँव भर के छोकड़न के अलावे जवानी के बिदाई कर चुकल अधबूढ़वन के भी आह निकल जा हल ।) (अमा॰17:14:1.17)
26 अनकर (~ जलमल कहूँ अप्पन भेल हे कि हम्मर हो जायत ?) (अमा॰10:11:2.21; 16:9:1.28)
27 अनका (~ ला ऊँचा-ऊँचा महल बनइली, हमरा ला जंगल के मसान) (अमा॰15:19:1.7, 9, 11, 13)
28 अनभल ('अलका मागधी' के भल चाहे ओला नवो ग्रह एक्के साथ हथ, तो एकर अनभल काहे होयत) (अमा॰12:19:1.14)
29 अनुकरन (= अनुकरण) (अमा॰16:6:1.8)
30 अन्देशा (कन्त का के अन्देशा होल कि ऊ हम्मर भइंस के खल्ली कम देलक हे) (अमा॰16:13:1.19)
31 अन्हार (अमा॰8:9:1.4; 18:7:1.24, 9:2.25)
32 अन्हारा (अमा॰11:14:1.29)
33 अन्हेर (अबरा-निबरा के मउगी हे भउजी, भइंस ओकरे जेकर हाथ लाठी । नगरी अन्हेर चउपट हे राजा, मोल एक्के हे हाथी कि पाठी ।) (अमा॰14:1:1.10)
34 अपनइती (= अपनउती) (~, मेल-मिलाप आउ भाईचारा के संबंध) (अमा॰13:13:1.2)
35 अपनउती (ओकरा जाति, धरम आउ सम्प्रदाय से बढ़के ~ के भाव से भरल इयारी दोस्ती देखाय पड़ऽ हे) (अमा॰13:11:2.24)
36 अफलात (इन्साफ ओहि आदमी के मिलऽ हे जेकरा पास ~ रुपइया हे) (अमा॰15:12:2.28)
37 अफसोस (अमा॰12:9:2.10, 15)
38 अबरा-निबरा (अबरा-निबरा के मउगी हे भउजी, भइंस ओकरे जेकर हाथ लाठी । नगरी अन्हेर चउपट हे राजा, मोल एक्के हे हाथी कि पाठी ।) (अमा॰14:1:1.9)
39 अबादी (सब काम छोड़ के अबदिये बढ़ावऽ ह) (अमा॰9:5:1.26)
40 अमदी (~ जब चाहे बसन्त के अप्पन मन में ला सकऽ हे; जब सब्भे ~ पढ़ जइतो, के देतो चुटकी तोहरा के) (अमा॰8:7:2.2; 14:6:1.12, 12:2.28)
41 अरमान (सुभाष के अरमान आउ भगत के इन्कलाब) (अमा॰14:14:1.9)
42 अलगण्ठ, अलगंठ (= अलग, अकेला, एक ओर, एक छोर पर) (~ फेंक देना, अलगंठे खा जाना) (अमा॰16:12:2.13)
43 अलग-थलग (~ हो जाना) (अमा॰11:8:2.19)
44 अलबत्ता (अलबत्ता डंका बजावो हल रजाक मियाँ । डंका बजावे में ऊ अप्पन जोड़ अपने हल सउँसे इलाका में ।) (कुश्ती लड़ेवला के दू दल बन जा हल - एक दल कन्त का के आउ दोसर कनेसर का के । दुन्नू बिचमान बन जा हलन ।) (अमा॰16:11:1.26)
45 अलाव (जाड़ा में अलाव जोड़ के इया गरमी के दुपहरी में गाछ भिजुन बइठ के लोग-बाग एकता, मिल्लत आउ भाईचारा के परिचय दे हथ) (अमा॰13:12:2.26)
46 अलावे (एकरा ~; के ~) (अमा॰12:18:2.26; 18:4:1.12)
47 असमसान (= श्मशान) (औरत के ~ घाट पर जाय के सवाल पर भी कम बवाल न भेल) (अमा॰10:9:1.15)
48 आखिरकार (अमा॰11:13:2.2)
49 आगरो (सचमुच में कुत्ता आगरो जानऽ हथ न ? सूँघ के चोर तो पकड़िये ले हथ, होवे ओली घटना के भी कान फड़का के आउ दुम हिला के अगाह कर दे हथ) (अमा॰11:7:1.16)
50 आपा-आपी (केकर भइंस जादे दूध करऽ हे ई खातिर ~ में दुन्नू भइंस के खूब खिलावऽ हलन) (अमा॰16:13:1.5)
51 आपाधापी (अमा॰14:14:2.9; 17:18:2.4)
52 आफिस (अमा॰12:14:1.20; 18:10:1.1)
53 आयँ (अमा॰9:10:2.1)
54 आरथिक (= आर्थिक) (~ हालत सुधारना) (अमा॰15:12:1.28; 17:5:1.18, 25)
55 आरी (अमा॰7:15:1.4)
56 आवा (कुम्हार के ~) (अमा॰12:7:2.19)
57 इनकार (~ करना) (अमा॰16:5:1.2)
58 इनखर (अमा॰8:5:1.24; 13:7:1.20)
59 इनरासन (= इन्द्रासन) (अमा॰8:6:2.20)
60 इन्टरभिउ (अमा॰18:14:1.17, 27, 31)
61 इम्तिहान (अमा॰13:7:2.18)
62 इहईं (अमा॰16:18:1.19)
63 ईर-तीर (नदिया के ~ बजऽ हे बँसुरिया) (अमा॰17:15:1.14)
64 उकसाना (लम्फ के बत्ती सच्चो मिझाय-मिझाय पर हल । राघोबाबू उठके लम्फ के बत्ती उकसयलन ।) (अमा॰13:9:1.12)
65 उगाना (तरह-तरह के अन्न ~) (अमा॰16:5:1.22)
66 उघाड़ना (~ शरीर से रूप जेतना उजागर होवऽ हे, ओतना खुलल उघाड़ल में नऽ (अमा॰12:18:2.20)
67 उचरना (ओकर छानी पर कउआ उचर रहल हल) (अमा॰8:6:1.9)
68 उछिन्नर (जउन अदमी के मगही के वड़वइया लोग ~ कर देलन, जेकरा मगही के तीन में न तेरह में मान लेलन, ओकरा तूँ इयाद कयलऽ, से अजगुत के बात हे) (अमा॰12:19:1.10)
69 उजारन (सूरज बाबू के शुभचिन्तक मित्र के नाम बसावन आउ चापलूस मित्र के नाम उजारन बड़ा सटीक हे) (अमा॰18:5:2.6)
70 उज्जर-उज्जर (~ साड़ी पेन्हले नरस सब आवऽ हे) (अमा॰9:5:1.29)
71 उठा-पटक (दुन्नू में उठा-पटक होवे लगल । मजमा जुट गेल । मल्ल-युद्ध करते-करते दुन्नू के कुर्ता-धोती चिथनी-चिथनी भे गेलन आउ दुन्नू भाय हो गेलन एकदम नंगा ।) (अमा॰16:13:1.25)
72 उड़ना (उड़ऽ मत ! उड़िया जयबऽ । पत्ता नियन सड़-गल के बिला जयबऽ ।) (अमा॰14:6:1.23)
73 उड़ियाना, उड़िया जाना (उड़ऽ मत ! उड़िया जयबऽ । पत्ता नियन सड़-गल के बिला जयबऽ ।) (अमा॰14:6:1.24)
74 उड़ेहल (हथ घरनी हम्मर गोर-गार, देखे-सुने में लाजवाब हथ । बान्हे-छान्हे में उड़ेहल हथ, कबूतर जइसन गिरहबाज हथ ।।) (अमा॰15:20:1.3)
75 उनकर (= उनखर) (अमा॰15:15:1.7; 16:5:2.2, 10:1.25)
76 उनखनी (हमरा देखहूँ ला आवे के उनखनी के मन नञ करऽ हे ?) (अमा॰13:10:1.32)
77 उनखा (जिनखर पिया पास उनखा ला बसंत; जुआनी के ढलान पर राघोबाबू हलन कि उनखा ई रोग धयलक हल) (अमा॰8:6:1.26; 13:8:1.22)
78 उपटना (जुआनी के ढलान पर राघोबाबू हलन कि उनखा ई रोग धयलक हल । कातिक-अगहन में कहियो उपटलो । दु-चारे दिन में विदो ले लेलको । मगर अब तो महिन्नो लटका देहे ।) (अमा॰13:8:1.23)
79 उपन्यासकार (अमा॰16:15:2.23)
80 उबरना (कर्ज के बोझ से उबरे के फेर में) (अमा॰17:6:1.27)
81 उबियाना (= ऊबना) (उबियाय के जरूरत न हे शोभन के माय !; उबियाय से काम न चलत शोभन के माय ! धीरज रखऽ, धीरज !; उबिया के भागना) (अमा॰8:13:1.15, 14:1:29; 12:17:2.5)
82 उम्मेद (= उम्मीद) ('भुआ' डा॰ स्वर्णकिरण के कहानी हे । ई कहानी में मिसरी लाल के कयल-धयल बुढ़ारी में बेटा से जे उम्मेद हल ऊ भुआ बन के उड़ गेल ।) (अमा॰17:7:1.12)
83 उलटा-कुलटा (केउ कहतो ~ वंश केरा हीनवाँ, मीठ बोल तोर हे सिंगार गे बहुरिया) (अमा॰14:11:1.10)
84 उलटी-पलटी (जजमान ! ई कउची ~ बकइत ह ?) (अमा॰9:10:1.12)
85 उहईं (अमा॰7:4:2.11; 16:5:1.12)
86 ऊँचगर (= उँचगर) (अमा॰17:4:1.25)
87 एँड़ी (~ के लहर कपार पर चढ़ना) (अमा॰9:18:2.11)
88 एकछत्र (= एकछत्तर) (~ राज्य) (अमा॰15:9:2.23)
89 एकदम्मे (जमुना जी अप्पन गरूर के रंग में जमील के एकदम्मे हिकारत के नजर से देखऽ हलन बाकि जमील हिम्मत हारे वला अदमी हल नञ) (अमा॰16:15:2.3)
90 एक-ब-एक (= एकबैग) (अमा॰15:7:2.14)
91 एकबग्गा (मिलावट आज हर जगह हो रहल हे, निछक्का, एकबग्गा आज कुच्छो न हे) (अमा॰10:8:1.27)
92 एकान्ती (फिर ~ के सफर सुरु हो गेल) (अमा॰13:9:1.17)
93 एखनी (= एकन्हीं) (~ से मुँह लगावे में हमनी के कोई फयदा न हउ) (अमा॰18:15:1.14)
94 एत्ता (~ सुन्नर अँगना में) (अमा॰18:12:2.24)
95 ओइजा (= वहाँ) (अमा॰17:18:1.4)
96 ओइसनका (ओइसनकन खुद अप्पन मगही भाषा से नाक सिकोड़ऽ हलन) (अमा॰18:13:1.23)
97 ओके (शोभन घर में का करइत हे ? आजे ~ बनारस जाय के चाहऽ हई ।) (अमा॰7:6:1.3)
98 ओजगुन (~ के माहौल से ढोंढ़ा के दिमाग में ई बात बइठे लगल कि ..) (अमा॰11:13:2.20)
99 ओजह (= वजह) (अमा॰13:8:2.24, 9:2.11)
100 ओसाना (काट-कूट के पूँज लगावई, मैंज-ओसा के घर पहुँचावई) (अमा॰18:11:1.19)
101 ओसौनी (खेतवा में कटनिया होतई, खरिहन्ना में दउनी। मिल-जुल के हम दुन्नो करबई दिनभर ओसौनी ।।) (अमा॰17:16:1.18)
102 ओहिजे (अमा॰12:13:2.8)
103 औंटना (करेजा औंटे हे ई सब देख के, मगर उपाय का हे !) (अमा॰12:18:2.5)
104 कउँचाना (गारी दे-दे ताल लगावई, गिरहसवन के मन कउँचावई) (अमा॰18:11:1.15)
105 कउआपाँड़ (केउ कहतो ~, मनोहरी पुकरतो केउ, केउ देतो जीया तोहर जार गे बहुरिया) (अमा॰14:11:1.12)
106 कउन (अमा॰18:10:2.27)
107 ककहरा (ऊ पहिले सावित्री के पढ़ाना जरूरी समझलन । पेड़ के पत्ता से गिनती सिखैलन । जमीन पर ~ सिखैलन) (अमा॰10:9:2.25)
108 कचउड़ी (चाह-पान, कचउड़ी-फुलउड़ी के दोकान सज जा हल) (अमा॰16:11:1.20)
109 कच्छा (ऊ अप्पन देह से धोती-कुर्ता उतार फेकलका आउ कच्छा कस के जाँघ पर ताल ठोक के बाँस बर उछल गेला) (अमा॰16:12:1.22, 24)
110 कजरहट (अमा॰7:19:2.9, 11, 17)
111 कजरी (पुनियाँ के चाँद हँसल, दूर हे कजरिया) (अमा॰17:15:1.5)
112 कटासिन (अइसन ~ पुतोह मिलल हे कि आज हमरा नौ नतीजा करत) (अमा॰7:10:1.25)
113 कट्टर (~ मुसलमान) (अमा॰17:6:2.1)
114 कठकरेज (अमा॰10:9:1.3)
115 कठपुतरी (अमा॰17:10:1.9)
116 कड़ुआ (~ तेल) (अमा॰13:8:1.16)
117 कतेक (ई जात-पात के झगड़ा अइसन हे कि अजय के कहानी 'दरकइत देवाल' के परभुआ आउ पातो चा ~ परेशानी उठावऽ हथ) (अमा॰13:11:2.7)
118 कद्दूकस (अमा॰15:9:2.27)
119 कनकन्नी (पूस के कनकन्नी आउ माघ के झिनझिन्नी खतम होवे पर वसंत रितु सोहामन लगऽ हे । न हिरदा हिलावे वला जाड़ा न देह जरावे वला गरमी ।) (अमा॰8:5:1.2)
120 कनखी (~ मारना) (कनखी मारित बिचरइ निरदंद हिए हिड़िस अथोर) (अमा॰15:1:1.9)
121 कनबाली (अमा॰17:8:2.12)
122 कनहीं (ऊ ~ जादे व्यस्त हलन; अगर तोरो ~ इतिहास के कोना में नाम लिखवावे ला हवऽ तो धरऽ महारथी लोग के गोड़) (अमा॰11:13:1.6; 18:14:1.6)
123 कपार (एँड़ी के लहर ~ पर चढ़ना, तरवा के लहर ~ पर चढ़ना) (अमा॰9:18:2.12; 13:16:2.4)
124 कफन (अमा॰17:9:1.2)
125 कबिलाँव (उत्तर कोई सुलझल न हे कि हम फाहे-फाह कह देउँ । जादे कबिलाँव में ढेरो अर्थ के अनर्थ हो जाहे ।) (अमा॰18:13:1.12)
126 कभी कभार (अमा॰11:7:2.5)
127 कम (कम्मे उमर में) (अमा॰12:12:2.11)
128 कमइनी (हम भूखे भी मरम से कबूल हे, बाकि तोहर ~ न खायम) (अमा॰12:9:2.7)
129 कमना (धीरे-धीरे हँफनी कमल जा रहल हे) (अमा॰13:8:1.11)
130 कमासुत (अमा॰14:10:1.7; 17:6:2.24)
131 कम्पटिशन (अमा॰16:13:1.6)
132 कयल-धयल (उनका दया के सब ~ इयाद आवे लगल) (अमा॰12:14:1.13)
133 कयल-धयल ('भुआ' डा॰ स्वर्णकिरण के कहानी हे । ई कहानी में मिसरी लाल के ~ बुढ़ारी में बेटा से जे उम्मेद हल ऊ भुआ बन के उड़ गेल ।) (अमा॰17:7:1.12)
134 करनी (बीतल बतिया पर हँसएत ही, अप्पन करनी पर कानएत ही) (अमा॰14:6:1.17)
135 करमात (अमा॰11:8:1.16)
136 करल (देरी करल ठीक न हे; डंका के चोट पर कोई काम करल एकरे कहल जाहे) (अमा॰13:6:1.4; 16:4:1.26)
137 करांति (= करान्ति, क्रान्ति) (औद्योगिक करांति के फलसरूप) (अमा॰17:5:1.1)
138 करान्ति (= क्रान्ति) (अमा॰16:16:2.18)
139 करिखा (= कारिख) (अमा॰16:9:1.20)
140 करुआइन (मलहोत्रा साहेब के ~ भासन) (अमा॰11:7:1.12)
141 कलछुल (कभी कलछुल, त कभी डब्बू से ओकर माय मारे भी दउड़ जा हल) (अमा॰17:8:1.25)
142 कलट-कलट के जीना (अमा॰17:5:2.15)
143 कसइला (जमुना जी के मुँह ~ हो गेल) (अमा॰16:16:2.27)
144 कसाइन (बात तो बड़ा ~ आउ तीखा हल) (अमा॰11:14:2.5)
145 कहनई (ई हे कहानी में नायक के कहनई, जेकरा से समाजिक जीवन में आयल तफड़का के झलक मिलऽ हे) (अमा॰13:13:1.11)
146 का (= काका) (कुश्ती लड़ेवला के दू दल बन जा हल - एक दल कन्त का के आउ दोसर कनेसर का के । दुन्नू बिचमान बन जा हलन ।) (अमा॰16:11:1.23)
147 काँय-काँय (अइसन लइके हई । रात-दिन ~ करते रहऽ हई ।) (अमा॰10:11:2.25)
148 काडी (मैट्रिकुलेशन तक हम जादे कुछ न पढ़ली, अप्पन जादे समय क्रिकेट, गुल्ली-डंडा, अत्ता-पत्ता, काडी आउ हू-तू-तू जइसन खेले खेल में बिता देली हल) (अमा॰8:11:1.26)
149 कातिक (कातिक-अगहन में) (अमा॰13:8:1.23; 15:6:1.1)
150 कादो (= कातो) (सूबेदार सिंह के बेटा कादो पढ़े में नामी हल) (अमा॰16:9:1.13)
151 कादो-पाँको (~ से लेटल-पोटल कपड़ा) (अमा॰13:6:2.4)
152 कान्हा (= कन्हा, कन्धा) (अमा॰18:9:2.21)
153 काबिल (अमा॰12:9:2.27)
154 काबिलियत (अमा॰12:10:1.13)
155 कामकरनी (~ समिति) (अमा॰11:2:1.17, 23)
156 कामचलाउ (अमा॰16:15:1.26)
157 कारन (= कारण) (एकरे ~) (अमा॰17:5:1.5)
158 कारी (केउ कहतो गोरी-कारी, केउ कहतो चोन्हरी, केउ कहतो भउजी ललकार गे बहुरिया ।) (अमा॰14:11:1.4)
159 कारीगरी (= करीगरी) (अमा॰12:7:2.28)
160 काहे से कि (अमा॰11:7:2.9, 8:2.18, 9:1.1, 29; 16:17:2.8, 20)
161 किताब (किताब कौपी) (अमा॰12:17:1.20)
162 किरची (काँच के किरची में चुभ जाहे) (अमा॰18:18:1.20)
163 किरिंग (टिंकू अप्पन बाबा के घिरनी देखा रहल हे । "ई खूब नाचऽ हई, बाबा ! एकरा में सुरुज नियर किरिंग निकसऽ हई । हम एकरा छोड़म ।") (अमा॰13:7:1.17; 18:18:1.18)
164 किस्मत (अमा॰13:1:1.1)
165 किहाँ (= के यहाँ) (जब अवकाश काल लइकन किहाँ बितावल चाहऽ हथ, त बुढ़ारी के लास उठावे के बूता केकरो न होयल) (अमा॰17:7:1.18)
166 की (= क्या) (नीयत केकर की हे मन में, चेहरा देख के पहचानएत ही) (अमा॰14:6:1.1)
167 कीनना (दोकाने दोकान खोज के मन माफिक कपड़ा कीनऽ हे) (अमा॰12:16:2.6)
168 कुँआर (~ बेटी) (अमा॰16:17:2.12)
169 कुप्पा (मोटा के ~ हो जाना) (अमा॰17:8:1.14)
170 कुरसी (अमा॰12:14:1.18)
171 कुहकना (अत्याचार से पीड़ित दुःखी मन के कुहकइत माय) (अमा॰7:14:1.22)
172 कूड़ा-कबाड़ा (अमा॰18:10:1.17)
173 केकर (नीयत केकर की हे मन में, चेहरा देख के पहचानएत ही) (अमा॰14:6:1.1)
174 केतना (अमा॰12:9:2.27)
175 केतवर (= केतवड़, कितना बड़ा) (अप्पन बेटा के तोर गोदी में डाल के केतवर किरपा करलथुन हे) (अमा॰10:14:1.12)
176 केत्ता (केत्ता खाहे मइया ? पेट हे कि नाद हे ? दूधवा पियौलक हल, केकरा इयाद हे ।।) (अमा॰14:18:2.23; 18:14:1.31)
177 केनहूँ (~ गेल होतथुन) (अमा॰11:15:2.13)
178 केरो (= केकरो) (कभी बगइचा में तो कभी केरो दलान पर (अमा॰18:15:1.5)
179 केवाड़ी (अमा॰9:10:2.27; 13:6:2.1)
180 केवाला (अमा॰14:16:2.7)
181 कोंकियाना (पोसुई कुत्ता अप्पन मालिक के साथ अस्पताल के बहरी बड़ी बेसब्री से कोंकियाइत हलन) (अमा॰11:8:1.9)
182 कोंढ़िआना (कोंढ़िआयल) (अमा॰11:20:1.22)
183 कोख (चमइने से ~ छिपाना) (अमा॰13:5:2.4)
184 कोना (दुअरे पर बइठ बुढ़िया मटकी मार रहल हे । कोनमा में जमनकी भुंजा मसका रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.21)
185 खँड़ (पिछतिया के खँड़वा) (अमा॰11:20:1.3)
186 खंघारना (अमा॰7:6:2.22)
187 खखार (नरेटा के ~ नियन नरेटा में अटकल ही, न एन्ने जाइत ही न ओन्ने) (अमा॰12:10:1.7)
188 खखोरना (मकइया के दरवा ला पेटवा खखोरऽ हे) (अमा॰7:7:1.17)
189 खजर-खजर (रातोरात हिन्दी-अंग्रेजी आउ संस्कृत के हनुवाद करल, कुछ दोसर भाषा के तोड़ल-जोड़ल चीज पाठ्य-क्रम में खजर-खजर लोके लगतवऽ ।) (अमा॰18:13:2.26)
190 खटिया (अमा॰12:11:1.14)
191 खतम (काम-धाम खतम होला के बाद) (अमा॰17:9:2.6)
192 खनी (= के क्षण) (भात-दाल खाय खनी दाल में दू-तीन चम्मच घीउ उड़ेल दे हलन) (अमा॰17:8:1.13)
193 खरकना, खरक जाना (सगुन के एगो आउ चिन्हानी हे । गोइंठा पर अगर आग खरक गेल त समझऽ अवइया के आगमन के सूचना) (अमा॰8:6:1.30)
194 खरच (अमा॰12:5:1.18)
195 खरचा (अमा॰12:10:2.15)
196 खलबली (~ मच जाना) (अमा॰12:13:1.6)
197 खल्ली (कन्त का के अन्देशा होल कि ऊ हम्मर भइंस के खल्ली कम देलक हे) (अमा॰16:13:1.19)
198 खाँय-खाँय (~ खोंखना) (अमा॰7:12:1.1)
199 खामख्वाह (अमा॰15:7:1.12)
200 खियाना (= खिलाना) (अमा॰12:13:1.10)
201 खिसियाना (पंडित जी खिसिआयल हल) (अमा॰9:10:1.26)
202 खिसियाह (अमा॰12:14:1.5)
203 खिस्सा-गलबात (गाँव में साँझ के इया गरमी के दुपहरिया में अदमी एक ठइयाँ बइठ के आपसी सुख-दुख के खिस्सा-गलबात करऽ हे) (अमा॰13:12:2.25)
204 खी-खी (~ करके हँसना) (अमा॰15:10:1.9)
205 खीस (अमा॰17:6:1.24)
206 खुटखुटाना (अप्पन कुत्ता पर सवारी कैले भैरव बाबा भी सिवजी के बराती में खुटखुटावइत चलल जाइत हलन) (अमा॰11:8:1.28)
207 खुमारी (अमा॰16:17:1.11)
208 खुल्ला (= खुला) (~ अकास) (अमा॰18:4:2.1)
209 खूँटा-पगहा (अमा॰11:20:1.21)
210 खून-खराबी (मुखिया के चुनाव हिन्दू आउ मुसलमान में दंगा-फसाद के कारन हे बाकि इन्सानियत खून-खराबी रोके में कामयाब हो जाहे) (अमा॰17:6:1.31)
211 खूबिआना (बाँट लऽ पहड़वा, झरना आउ नदिया, खूबिआयल दूभिया के मत बाँटऽ भइया ।) (अमा॰11:20:1.18)
212 खेयाल (= खयाल) (भासा के खेयाल से ई नाटक में पटनिया मगही के रूप नजर आवऽ हे) (अमा॰18:5:2.8, 12)
213 खेवा (दुन्नो माउग मरद एक्के ~ गली में मिल गेलन) (अमा॰11:14:1.17)
214 खोइंछा (अमा॰16:14:1.22)
215 खोनसाना (ढोंढ़ा पूछलक - 'मुन्ना कइसन हई ? ठीक होलई ?' खोनसाइत ढोंढ़ा बहु कहलक - 'कहाँ जाके सट गेलऽ हल ? ..') (अमा॰11:14:1.19)
216 खोरना (तनि एकता के दीआ जरावऽ, नञ् केकरो खोरल चाहऽ ही) (अमा॰18:1:1.15)
217 खोरनी (जइसे खाय-पीये, पेन्हे-ओढ़े ला दे हियो, अउसने में रह । जादे मुँह लगइमें त ई खोरनी से दाग देबउ ।) (अमा॰17:8:2.1)
218 गजरा (= गजड़ा, गाजर) (~ के हलुआ) (अमा॰15:9:2.28)
219 गड़ी (गड़ी-छोहाड़ा) (अमा॰7:18:2.5)
220 गढ़ना (घास गढ़ना) (अमा॰18:15:1.9, 11)
221 गन्ह (= गन्ध) (अमा॰15:1:1.8)
222 गरिआना (सास मारतो तनवाँ, ननद गरिअएतो) (अमा॰14:11:1.2)
223 गल्लम-गारी (अमा॰16:20:1.3)
224 गह-गह (तुलसी के पत्ता के ~ पीयर बाकि कचनार नियर हरिअर रंग के एगो तेल निकलऽ हे जेकरा से हवा सुध होवऽ हे) (अमा॰12:6:2.2)
225 गाछी (गाँव के दक्खिन आम के गाछी में जब डंका सज जा हल, बड़ी दूर-दूर से पहलमान कुश्ती लड़े आवऽ हलन) (अमा॰16:11:1.17)
226 गाय-भइंस (कोई चीज के कमी हम्मर घर में नऽ हे । लगहर ~ सालो दुरा पर रहऽ हे ।) (अमा॰10:16:1.12)
227 गाहे-बगाहे (जमील उर्दू के अखबार आउ पत्रिका में गाहे-बगाहे छप ~ भी हल) (अमा॰16:15:2.7)
228 गिनवाना (अमा॰13:6:1.25)
229 गियान (अमा॰16:16:2.11)
230 गिरवी (लेकिन सुबह उठतहीं काका के सुख-चैन ~ रखा गेल) (अमा॰13:6:1.34)
231 गिरहत (= गृहस्थ) (अमा॰13:5:1.24)
232 गिरहबाज (हथ घरनी हम्मर गोर-गार, देखे-सुने में लाजवाब हथ । बान्हे-छान्हे में उड़ेहल हथ, कबूतर जइसन गिरहबाज हथ ।।) (अमा॰15:20:1.4)
233 गिरहस (= गृहस्थ) (अमा॰18:11:1.4, 15)
234 गीध (गिधियो से गेल गुजरल देसवा वो दुनियाँ में, मानुस भेलै मानुसखोर) (अमा॰14:7:1.4)
235 गुड़गुड़ा (~ पीना) (अमा॰16:7:1.10, 11, 12)
236 गुत्थम-गुत्थी (अमा॰16:12:2.14)
237 गुदानना (अब ला बड़ लोग बनल रहला, अब हम ने तोरा गुदानएत ही) (अमा॰14:6:1.13)
238 गुल्लड़ (रोते-रोते आँख ~ नियर फूल गेल हल) (अमा॰12:17:2.14)
239 गेल-गुजरल (गिधियो से गेल गुजरल देसवा वो दुनियाँ में, मानुस भेलै मानुसखोर) (अमा॰14:7:1.4)
240 गेहुँअन (= गोहमन) (~ साँप) (अमा॰16:12:1.20)
241 गोटा (तीसी के फूलवन के ~ सजा के) (अमा॰8:8:2.6)
242 गोटा (हिन्दू-मुस्लिम-सिख अउ ईसाई भाई जेतना सब, ई तो धागा एकता के गोटा सब ईमान के) (अमा॰17:15:2.6)
243 गोतना (मूड़ी ~) (अमा॰7:17:2.7)
244 गोतनी (अमा॰7:6:2.10; 12:8:2.9)
245 गोदी (= गोद) (अप्पन बेटा के तोर गोदी में डाल के केतवर किरपा करलथुन हे) (अमा॰10:14:1.12; 18:10:1.28, 2.23)
246 गोरइया बाबा (दे॰ गोरैया बाबा) (अमा॰13:5:2.21)
247 गोर-गार (हथ घरनी हम्मर गोर-गार, देखे-सुने में लाजवाब हथ । बान्हे-छान्हे में उड़ेहल हथ, कबूतर जइसन गिरहबाज हथ ।।) (अमा॰15:20:1.3)
248 गोरी (केउ कहतो गोरी-कारी, केउ कहतो चोन्हरी, केउ कहतो भउजी ललकार गे बहुरिया ।) (अमा॰14:11:1.4)
249 गोरू (खूँटा पर के बान्हल गोरू) (अमा॰12:9:2.9)
250 गोलबंद (कथानायक रामलाल सरकार से निरधारित मजूरी दिलावे ला खेतिहर मजूर के ~ करऽ हे, मगर ऊ पूँजीवादी असलियत के चीन्हे में चूक जाहे । एहि चलते क्रांति के अगुआ बने के पहिले ही सी॰आर॰पी॰ के गोली के सिकार हो जाहे ।) (अमा॰15:12:1.14)
251 गोहराना (राजा नल के गोहरौलक आउ अप्पन नौ के दाँव पाशा फेंकलक तो नौ आ गेल) (अमा॰7:18:1.9)
252 घंसगढ़ा, घंसगढ़नी (ई तीनों ऊ घंसगढ़न के भीरु गेलन) (अमा॰18:15:1.9)
253 घटोरना (दुइये घड़ी दिन उठते तीन बेर भकोसऽ हे । आउ खाय आउ खाय तिले-तिले घोसऽ हे ।। सब मिल कटोरे-कटोरे बाले बच्चे घटोरऽ हे ।) (अमा॰7:7:1.13)
254 घर-अंगना (अमा॰17:15:1.2)
255 घरे (समाचार पूछे ला उनकर ~ चल गेलन) (अमा॰18:8:1.19)
256 घिघिआना (= गिड़गिड़ाना) (अमा॰14:18:1.12)
257 घिरना (= घृणा) (अमा॰18:10:2.5)
258 घिरनी (टिंकू अप्पन बाबा के घिरनी देखा रहल हे । "ई खूब नाचऽ हई, बाबा ! एकरा में सुरुज नियर किरिंग निकसऽ हई । हम एकरा छोड़म ।") (अमा॰13:7:1.15)
259 घींचना (घींच-घाँच के) (दउड़े में तो ऊ घींच-घाँच के पास कर गेल) (अमा॰18:14:2.21)
260 घुच-घुच (~ अँधरिया) (अमा॰7:15:1.1)
261 घुप्प (~ अन्हार) (अमा॰18:18:1.12)
262 घुरमना (सावित्री के आँख तर पति के साथ जीयल जिनगी के एक-एक छन घुरमे लगल) (अमा॰10:9:2.3)
263 घूरना (घूर-घूर के अगोरना) (अमा॰11:7:1.23)
264 घेंघा (ओकर घेंची में कागज के पुड़िया बाँध देल जा हल आउ ऊ ~ उठौले नदी के पानी में पार कर जाय) (अमा॰11:7:1.21)
265 घेंची (ओकर ~ में कागज के पुड़िया बाँध देल जा हल आउ ऊ घेंघा उठौले नदी के पानी में पार कर जाय) (अमा॰11:7:1.20)
266 घेरान (जहाव परभुआ समाज के जात-पात के भेद-भाव मेटावे में हार जाहे, उहईं बटोही के कहानी के पारो ई जात के ~ तोड़ देहे) (अमा॰13:11:2.14)
267 घेराना (= घिर जाना) (घेराल) (अमा॰16:15:2.27)
268 घोंघा-सितुहा (अमा॰7:19:1.7)
269 घोंटवाना (छुतका मेटावे ला माथा घोंटवा लेलन हल) (अमा॰7:15:2.3)
270 घोरल (ई बसन्त के बयार में सराब घोरल हे) (अमा॰8:7:1.10)
271 घोसना (दुइये घड़ी दिन उठते तीन बेर भकोसऽ हे । आउ खाय आउ खाय तिले-तिले घोसऽ हे ।। सब मिल कटोरे-कटोरे बाले बच्चे घटोरऽ हे ।) (अमा॰7:7:1.11)
272 चउरा (हिन्दू के हरेक घर में एगो तुलसी के ~ होवऽ हे, जेकरा तुलसी चउरा कहल जाहे) (अमा॰12:6:1.2)
273 चकचोन्हरा (~ मुखड़ा) (अमा॰7:12:2.17)
274 चटखारा (ऊ सिनेमा देख के जब आवे हे त ~ ले-ले के, एक-एक दृश्य के बात, हाव-भाव से देखावे हे) (अमा॰12:16:2.3)
275 चटोहरी (के कहतो चोरनी, चटोहरी पुकरतो केउ, बस लीहें बतिया सम्हार गे बहुरिया ।) (अमा॰14:11:1.6)
276 चप्पा-चप्पा (अमा॰16:5:1.8)
277 चभोरना, चभोर लेना (दुन्नू गंगा जी में जाके ललकी मट्टी लगा-लगा के खूब देह चमकैलका आउ करुआ तेल अप्पन-अप्पन देह में चभोर लेलका; रोटी में घीउ चभोर के) (अमा॰16:13:1.1; 17:8:1.13)
278 चमइन (अमा॰12:8:2.27; 13:5:2.3)
279 चरचित (~ कहानी) (अमा॰13:11:2.18)
280 चातुरी (= चतुरई) (~ के चातुरी, बढ़ई के कारीगरी) (अमा॰12:7:2.28)
281 चाननी (= चान्दनी) (अमा॰11:1:1.9)
282 चाबस (= शाबास) (वाह बेटा ! वाह ! चाबस ! चाबस !) (अमा॰16:11:2.24, 12:1.14)
283 चाल पाड़ना (= पुकारना, गुहराना) (सब काम तो उनखे सँभारे पड़ऽ हे । उनखनी के चाल पाड़ के जगाना ठीक नञ हे ।) (अमा॰13:7:2.26-27)
284 चाल-ढाल (चाले ढाल बदल गेल) (अमा॰12:17:1.19)
285 चाह-पान (चाह-पान, कचउड़ी-फुलउड़ी के दोकान सज जा हल): (अमा॰16:11:1.20)
286 चिखना (= चखना) (मछली के ~ में पीलन खूब ताड़ी) (अमा॰13:19:2.11)
287 चिट्ठी-पतरी (अमा॰7:14:1.5)
288 चितान (~ गिरना) (अमा॰15:19:1.18)
289 चित्त (= चित, पीठ के बल) (अमा॰16:11:2.25)
290 चिथनी-चिथनी (दुन्नू में उठा-पटक होवे लगल । मजमा जुट गेल । मल्ल-युद्ध करते-करते दुन्नू के कुर्ता-धोती चिथनी-चिथनी भे गेलन आउ दुन्नू भाय हो गेलन एकदम नंगा ।) (अमा॰16:13:1.25)
291 चिन्हना (राघोबाबू के कहियो अप्पन गाम लउटे के मन करऽ हे । मगर ई हे सिरिफ एगो रूमानी विचार । के चिन्हत ? के उनखा ऊ गाम के निवासी के दरजा देत ?) (अमा॰13:10:1.3)
292 चिन्हानी (सगुन के एगो आउ चिन्हानी हे । गोइंठा पर अगर आग खरक गेल त समझऽ अवइया के आगमन के सूचना) (अमा॰8:6:1.29)
293 चिन्हास (उड़े जइसे जहजवा बिन पानी सजनियाँ ~ नयँ मिलल) (अमा॰11:6:1.13)
294 चिहाड़ना (अमा॰11:14:1.33)
295 चुटकी (~ देना) (जब सब्भे अमदी पढ़ जइतो, के देतो चुटकी तोहरा के) (अमा॰14:6:1.12)
296 चुनउटी (अमा॰10:5:1.4)
297 चुरचराना, चुरचरा जाना (अब तो धोती चुरचरा गेल हे । ई पेन्हे लायक नञ रहल ।) (अमा॰13:10:1.24)
298 चुल्ला-चक्की (थारी-लोटा मइस के, बानी-उनी काढ़ के, पानी-कांजी भर के, चुल्ला-चक्की नीप के) (अमा॰7:6:2.8; 13:8:1.5, 9)
299 चुल्हा-भंसार (कालेज के पढ़ाई-लिखाई ~ में जाय) (अमा॰9:16:1.9)
300 चेहाना, चेहा जाना (अमा॰14:18:1.4)
301 चोट (= दवा के लेप, मालिश अथवा प्रयोग; खुराक) (कहियो डागडर-वैद से एक-दू चोट दवाई खइलियो आउ फिन ठीक) (अमा॰13:8:1.29)
302 चोन्हरी (केउ कहतो गोरी-कारी, केउ कहतो चोन्हरी, केउ कहतो भउजी ललकार गे बहुरिया ।) (अमा॰14:11:1.4)
303 चोन्हा (मगही के विकास ला जादे चोन्हा चुआ रहलन हे, बाकि सच पूछऽ तो सब बनावटी हे । इनकर देखावा हे तो खाली मगही के पुरोधा कहावे ला ।) (अमा॰18:13:2.4)
304 चोरनी (के कहतो चोरनी, चटोहरी पुकरतो केउ, बस लीहें बतिया सम्हार गे बहुरिया ।) (अमा॰14:11:1.6)
305 चोरी (~ करना) (अमा॰15:6:1.21)
306 चोरी-चकारी (अमा॰16:5:2.11, 17:2.6)
307 चौड़गर (बथान के बगले में हल लमहर-चौड़गर अखाड़ा) (अमा॰16:11:1.8)
308 चौरा (= चउरा) (अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे । जादे से जादे तुलसी चौरा पर एगो दीया बरत आउ एगो गणेश-लछमी जी भिरी ।) (अमा॰13:7:1.11)
309 छउँड़ा-छउँड़ी (अमा॰8:8:1.4)
310 छक-छक (गाड़ी ~ करइत पटना टीसन पहुँच गेल) (अमा॰16:14:1.18)
311 छछात ('अदीप' के कहानी में जथारथ घटल घटना के छछात बोध होवऽ हे) (अमा॰17:7:1.2)
312 छन (= क्षण) (अमा॰13:16:2.17)
313 छपनय (= छपाई) (ओकरा समझ में नञ आ रहल हल कि हिन्दी आउ उर्दू के ~ में आखिर की अंतर हे ?) (अमा॰16:15:2.17)
314 छवाना (सादा के चद्दर से अब गोड़ न झँपाइत हे, हाथ के कमाई से अब छप्पर न छवाइत हे ।) (अमा॰14:12:1.8)
315 छानी-छप्पड़ (अमा॰11:20:1.21)
316 छीपा (छिपवा खंघारऽ ही) (अमा॰7:6:2.22)
317 छुतका (अमा॰7:15:2.2, 13, 15, 16:4)
318 छुरछुरी (आज सोहराय के दिन हे । लड़कन सब सबेरगरहीं से छुरछुरी, पटाका छोड़ रहलन हे ।) (अमा॰13:7:1.2)
319 छेतरीय (= क्षेत्रीय) (~ भाषा) (अमा॰16:15:1.7)
320 छोकड़ा (सोनिया के जवानी मुसकाइत हल आउ देह सोना नियर चमकइत हल । ओकरा देख के गाँव भर के छोकड़न के अलावे जवानी के बिदाई कर चुकल अधबूढ़वन के भी आह निकल जा हल ।) (अमा॰17:14:1.16; 18:15:1.7)
321 छोकड़ी (दू गो ~ घास गढ़ित हे; ऊ छोकड़िया कहलक) (अमा॰18:15:1.9, 12)
322 छोटकी (अमा॰7:6:2.11)
323 छोटगर (अमा॰14:14:2.8)
324 छोटपन (अमा॰12:17:2.10)
325 छोट-बड़ (कत्ते ~ बात पक्का घर से जुड़ल हे) (अमा॰13:9:2.9)
326 छोहाड़ा (गड़ी-छोहाड़ा) (अमा॰7:18:2.5)
327 छौंड़ा (पुतोह के सवाद लेके मइया पछता रहल हे । मेहरी के संग छौंड़ा इतरा रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.17; 18:11:1.27)
328 जइसहीं (अमा॰16:14:2.9)
329 जगुन (= जगह पर) (ओही ~ बइठल हम्मर बुतरुआ के कोई न खिलावऽ हे; अब तक उनकर तीनो मेहरारू तीन ~ रहऽ हलन) (अमा॰7:7:1.1; 16:18:1.18)
330 जतकट (= जाति से कटा हुआ) (अमा॰11:9:1.7)
331 जथारथ (= यथार्थ) ('अदीप' के कहानी में जथारथ घटल घटना के छछात बोध होवऽ हे) (अमा॰17:5:2.27, 7:1:2)
332 जनमउती (अमा॰12:5:1.27)
333 जन्ने (जन्ने ... तन्ने) (अमा॰14:16:2.3)
334 जमकल (~ पानी के पोखरा) (अमा॰16:15:1.0)
335 जमनकी (= जवनकी, जुअनकी) (दुअरे पर बइठ बुढ़िया मटकी मार रहल हे । कोनमा में जमनकी भुंजा मसका रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.21, 23)
336 जर-जमीन (अमा॰14:12:1.19)
337 जरना (= जलना) (पेट जरला पर लोग का नऽ करे) (अमा॰16:5:2.11)
338 जराना (= जलाना) (पूस के कनकन्नी आउ माघ के झिनझिन्नी खतम होवे पर बसंत रितु सोहामन लगऽ हे । न हिरदा हिलावे वला जाड़ा न देह जरावे वला गरमी ।) (अमा॰8:5:1.4; 17:9:2.2)
339 जरी (= जरा, थोड़ा) (जरी तेजी से आगे बढ़लन रमेसर बाबू ओकर मुँह देखे ला) (अमा॰18:10:1.25)
340 जलेबी (अमा॰13:6:1.13, 16, 18)
341 जल्लाद (दे दऽ रुपइया त बेटी दमाद हे । ओकर अभाव में दुन्नो जल्लाद हे ।।) (अमा॰14:18:2.14)
342 जसस्वी (मगही के ~ साहित्यकार) (अमा॰15:12:1.6)
343 जहर (अमा॰12:11:1.15)
344 जहिना तहिना (पेड़ झमटार हल जहिना तहिना, अब तो ठूँठे खड़ा हे अगाड़ी) (अमा॰14:1:1.12)
345 जहिया (जहिया ... तहिये) (अमा॰11:11:2.21)
346 जाइज (जब बरदास्त के हद हो गेल, तब कहलो हम्मर जाइज हे) (अमा॰15:20:1.2)
347 जाई (= बेटी) (जेकर मइया पुआ पकावे, ओकरे जइया तरसे हे) (अमा॰7:7:1.5)
348 जात (= जाति) (अमा॰16:9:1.1)
349 जात-पात (अमा॰17:15:2.3)
350 जादे (अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे । जादे से जादे तुलसी चौरा पर एगो दीया बरत आउ एगो गणेश-लछमी जी भिरी ।) (अमा॰13:7:1.11)
351 जानी (तोहनी दुन्नो जानी बइठ जा) (अमा॰15:16:1.12)
352 जिजीविषा ('बाढ़ आउ सुखाड़' में एक दने गरीबी के कारन लहलहाइत मिचाई के खेत कोड़इत-कोड़इत पानी के जिजीविषा लेले धानुक मर जाहे आउ ओन्ने धनी आउ सामन्त के बगीचा रोज पानी से बूड़ल रहऽ हे) (अमा॰17:6:2.11)
353 जिजीविसा (= जिजीविषा) (अमा॰17:5:1.9)
354 जिद (अमा॰12:10:2.4)
355 जिनकर (= जिनखर) (अमा॰16:10:1.7)
356 जिनखर (जिनखर पिया पास उनखा ला बसंत) (अमा॰8:6:1.26)
357 जीभ-चट्टन (अब तूँ लइका हऽ कि दिन भर अँचार लेके चाटइत रहबऽ ? ढेर ~ बनल ठीक न हे ।) (अमा॰9:12:1.3)
358 जुअनकी (टोला के बुढ़ियन, जुअनकिन आउ बुतरुअन के भीड़ लग गेल) (अमा॰17:8:2.8)
359 जुआन (~ आउ सुत्थर बेटी) (अमा॰15:12:2.12)
360 जुगा (= जुआ) (अमा॰7:17:1.1, 16; 13:6:2.30)
361 जुगेड़ी (अमा॰7:17:1.18, 2.16)
362 जुवक (= युवक) (गुमराह ~) (अमा॰15:13:1.15)
363 जेकर (अमा॰14:16:1.12)
364 जेन्ने ... ओनहीं (अमा॰12:5:1.1)
365 जेन्ने-जेन्ने ... ओन्ने-ओन्ने (अमा॰18:12:1.19)
366 जो (= जा) (जब तूँ हम्मर बाते न मानबे, तब घर से निकल जो !) (अमा॰13:16:2.10)
367 जोगदान (= योगदान) (अमा॰16:6:1.27)
368 झँपाना (सादा के चद्दर से अब गोड़ न झँपाइत हे, हाथ के कमाई से अब छप्पर न छवाइत हे ।) (अमा॰14:12:1.7)
369 झंझट (हम्मर देस में तो खाली झंझटे झंझट हे) (अमा॰12:17:2.23)
370 झमटार (= झमठगर) (पेड़ झमटार हल जहिना तहिना, अब तो ठूँठे खड़ा हे अगाड़ी) (अमा॰14:1:1.12)
371 झारना (एकाएक उज्जर फह-फह कुर्त्ता झारले विजय बाबू आ गेलन) (अमा॰11:13:1.7)
372 झिनझिन्नी (= झनझन्नी) (पूस के कनकन्नी आउ माघ के झिनझिन्नी खतम होवे पर वसंत रितु सोहामन लगऽ हे । न हिरदा हिलावे वला जाड़ा न देह जरावे वला गरमी ।) (अमा॰8:5:1.2)
373 झोंड़ार (ताड़ के पेड़ के नीचे ~ में अबउ) (अमा॰7:17:2.25, 18:1.5)
374 झोल-फोलान (बाप बने के नौबत भेल तो रहबर पढ़ाई छोड़ के ~ में रहगीर के छाता-घड़ी छीने के काम सुरुम कैलन) (अमा॰16:17:1.19)
375 झोला-बोरा (अमा॰18:10:1.6)
376 टँगड़ी (= टँगरी) (अमा॰17:19:1.3)
377 टटका (~ कहानी, ~ हवा, ~ पत्रिका) (अमा॰15:12:1.8, 18:1.23; 16:15:2.5)
378 टन्न-टन्न (बिजलीवला लोहा के पोल पर पहरा देवेवाला कउनो सिपाही लाठी ठोकलक, टन्न-टन्न, दू बेर) (अमा॰13:9:1.26)
379 टमटम (रेल में, बस में, रिकसा-टमटम सब में ठेलम-ठेला) (अमा॰10:20:1.16)
380 टरक (= ट्रक) (अमा॰16:20:1.9)
381 टह-टह (~ लाल, ~ चाँदनी, ~ टहकना) (अमा॰8:7:1.25; 11:20:1.20; 166:12:1.5)
382 टहपर (~ इंजोरिया) (अमा॰17:15:1.1)
383 टाँड़ी-टिकर (टाँड़ी-टिकर आउ परती-पराती के ढाही बनल जा रहल हे) (अमा॰14:1:1.7)
384 टाही (= टहल, सेवा, सेवकाई; सेवक, नौकर) (ऊ सलख-दर-सलख फौजदारी के ~ रोपल जा रहल हे) (अमा॰14:1:1.6)
385 टुकर-टुकर (~ देखना) (अमा॰16:14:1.27)
386 टुसुर-टुसुर (~ रोना) (अमा॰7:6:2.18)
387 टूअर (बिना माय के लइका ~ हो जाहे) (अमा॰18:8:1.8)
388 टूटन (परिवार में ~) (अमा॰12:5:1.13)
389 टेढ़ी (~ बतियाना) (का मजाल कि दोसर गाँव के लोग ई गाँव के लोग से टेढ़ी बतियाय) (अमा॰16:11:1.16)
390 टेना (ऊ भी छटाँकी के टेना पकड़ के अइसन दाँव मारलन कि छटाँकी चारो खाने चित्त आउ कन्त का के चेला छुट्टन ओकर छाती पर चढ़ बइठल) (अमा॰16:12:1.11)
391 टेबुल (अमा॰12:14:1.18, 19)
392 टेम्पो (अमा॰16:20:1.9)
393 टोकना (बीचे में टोक के चंचला कह बइठल) (अमा॰12:10:1.10)
394 टोकारी (~ देना) (अप्पन अँगना में बुतरू के किलकारी सुने के लालसा सावित्री के भी हल । कभी कभार उहो उनका दोसर बिआह ला ~ दे हल) (अमा॰10:10:1.10)
395 ठइयाँ (गाँव में साँझ के इया गरमी के दुपहरिया में अदमी एक ठइयाँ बइठ के आपसी सुख-दुख के खिस्सा-गलबात करऽ हे) (अमा॰13:12:2.25)
396 ठठरी (अमा॰17:9:1.2)
397 ठठरी-कफन (अमा॰17:9:1.2)
398 ठामा (धोतिया एक ठामा फट गेल । तइयो पेन्हइत रहलन ।) (अमा॰13:10:1.18, 23)
399 ठेठ (ठेठ मगही के शब्द) (अमा॰16:19:1.19)
400 डंका (~ पिटा जाना) (सउँसे गाँव में डंका पिटा गेल आउ कहइत हें कि मालूम न हे) (अमा॰18:11:2.15)
401 डकमुंशी (अमा॰12:13:1.3, 18)
402 डगडरी (महेश डिस्पेंसरी आउ अस्पताल एक कयले रहऽ हे । ~ पेसे अइसन हे ।) (अमा॰13:7:2.21)
403 डब्बू (कभी कलछुल, त कभी डब्बू से ओकर माय मारे भी दउड़ जा हल) (अमा॰17:8:1.25)
404 डहकना (सोना तब जादे टहकऽ हे, जब अगिन ताप में डहकऽ हे) (अमा॰14:12:2.27, 13:1.3)
405 डहुगी (= डेहुड़ी) (पड़ोसी वला मरियल पेड़ फूल के ~ हे - कहीं ओकर डहुगियो न जनाइ) (अमा॰8:5:1.23)
406 डोमकच (एक प्रकार का लोकगीत जिसे नाट्य एवं नृत्य करते हुए वर्षा ऋतु में स्त्रियों के दो दलों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है; एक मगही नाट्य गीत) (गीत गेल, संगीत गेल, पनिहारिन, बखोआइन गेल, पूरबी, बिरहा, डोमकच गेल, लोरिकायन, पमरिया गेल) (अमा॰14:12:1.10)
407 डोलाना (अमा॰12:18:2.2)
408 डोली (बोली ~ पर चलना) (सूबेदार सिंह के बोली तो डोली पर चलऽ हल । एक दम से लीप के बोलऽ हलन । गाँव के कोई अदमी के लगावऽ भी न हलन । बाकि आझे उनका बुझाइत हे ।) (अमा॰18:12:1.15)
409 ढकनी (अमा॰10:9:1.1, 10, 14)
410 ढर-ढर (आँख खोलऽ ही तो देखऽ ही कि उनखर आँख में ~ लोर) (अमा॰13:9:1.23; 16:14:2.20)
411 ढह-ढहमनाना, ढह-ढनमना जाना (उनका दुन्नू के मरला पर घर ढह-ढनमना गेल) (अमा॰16:13:2.7)
412 ढाँग (लोग नरहन्नी-कथा बाँच रहलन हे, हम तो ढाँग-कथा लिख रहल ही) (अमा॰14:1:1.14)
413 ढाकल-ढुकल (~ शरीर से रूप जेतना उजागर होवऽ हे, ओतना खुलल उघाड़ल में नऽ (अमा॰12:18:2.19)
414 ढाही (टाँड़ी-टिकर आउ परती-पराती के ढाही बनल जा रहल हे) (अमा॰14:1:1.7)
415 ढीबढाब (~ बाँधना) (देखना हे कि अब का होयत । सूबेदार सिंह तो पूरा ढीबढाब बाँधइत हथ । कहइत हथ कि अब ओकरा घर में ढुके न देम ।) (अमा॰18:12:1.7)
416 ढुनढुनाना (हँड़िया ढुनढुनाना) (अमा॰11:8:1.21-22)
417 ढुलुआ (अमा॰15:1:1.5)
418 तँवसल (= तउँसल, तरासल) (भूख के गाँव सगरो बसल हे, देहे-देहे पियासल नदी हे । ऊ हकासल, तरासल, पियासल आउ तँवसल सदी-दर-सदी हे) (अमा॰14:1:1.4)
419 तनि-तनि (अमा॰18:13:1.8)
420 तन्ने (जन्ने ... तन्ने) (अमा॰14:16:2.3)
421 तफड़का (गाँव आउ शहर के संबंध में ~ देखल जाहे, जेकरा मगही कहानी स्पष्ट कयलक हे) (अमा॰13:12:1.6, 2.23, 13:1.12)
422 तबाह (अमा॰10:20:1.10)
423 तरबतर (घाम-पसीना से तरबतर, जइसे दुन्नू गंगा नहा के ऐलन हे) (अमा॰16:12:2.3)
424 तरवा (~ के लहर कपार पर चढ़ना) (अमा॰13:16:2.4; 16:9:1.4; 17:11:2.20)
425 तरहरा (~ खन के गड़वा देना) (अमा॰12:11:2.16)
426 तराऊपरी (एन्ने मुन्ना के निमोनिया जोर पकड़ले जाइत हल । दुन्नो पलो ~ फेंकइत हल ।) (अमा॰11:14:1.9)
427 तरास (अमा॰11:6:1.1)
428 तरासल (भूख के गाँव सगरो बसल हे, देहे-देहे पियासल नदी हे । ऊ हकासल, तरासल, पियासल आउ तँवसल सदी-दर-सदी हे) (अमा॰14:1:1.4)
429 तसीलना (ओकरा अनुसार एकता आउ ताकत के ~ तो खाली परब-त्योहार के चंदा तसीले घड़ी देखल जाहे) (अमा॰13:12:1.15)
430 तहस-नहस (~ करना) (अमा॰15:12:2.30)
431 ताड़ी (अमा॰13:19:2.8)
432 तातल (ततले-ततले मड़वा में भतवा मिलावऽ ही) (अमा॰7:6:2.23)
433 ताराऊपरी (= तराऊपरी) (अबकी तो कलश लेवे ला ~ अमदी टूट रहलन हल) (अमा॰11:13:2.1)
434 तिकड़म (अमा॰14:8:2.21, 17:1.11; 15:12:1.28)
435 तिरबेनी (= त्रिवेणी) (अमा॰10:1:1.11)
436 तिलक (= दहेज) (मइया कहलक कि ~ मनचाहा मिल रहल हे) (अमा॰13:16:2.5)
437 तिलक-दहेज (अमा॰13:5:1.13, 2.24, 15:1.3)
438 तीत (उनका गेला पर मन तनी हरियर भेल, न तो मलहोत्रा साहेब के करुआइन भासन घंटा भर ला मन के ~ बनौले रहइत) (अमा॰11:7:1.13)
439 तीसर (~ दफा) (अमा॰12:9:1.1)
440 तेसर (अमा॰18:12:2.25)
441 तोसक (अमा॰12:11:1.8)
442 तोहर (अमा॰14:16:1.6)
443 थक्कल-माँदल (अमा॰13:7:2.22)
444 थिर (अमा॰16:11:2.11)
445 थूक्कम-फजिहत (अमा॰16:20:1.3)
446 थोथुन (~चमकाना ) (सब खेलाड़ी चारो खाने चित्त हो गेलन । सब के पइसा हलोरा गेल । सब के ~ नीचे गिर गेल ।; हम गते बोले ला कहऽ ही त उल्टे थोथुन चमका दे हथ) (अमा॰7:18:1.15; 15:20:1.6)
447 दंगा-फसाद (मुखिया के चुनाव हिन्दू आउ मुसलमान में दंगा-फसाद के कारन हे बाकि इन्सानियत खून-खराबी रोके में कामयाब हो जाहे) (अमा॰17:6:1.30)
448 दउगना (दउगल जाना) (अमा॰16:15:2.9)
449 दउड़ा-दउड़ी (काहे ला तो लोग ~ कर रहलन हे । चलऽ, हमनियों ओनहीं चलऽ !) (अमा॰18:12:1.33)
450 दतुअन (= दतमन) (अमा॰16:14:1.1)
451 दनादन (दूध आउ पानी के मिलावट के धन्धा आज खूब ~ से चल रहल हे) (अमा॰10:8:1.29)
452 दने (लड़की ठग के बेचेवला अपराधी दने से रामनाथ बाबू एक लाख रुपइया लेवे ला गनौरी गोप पर दबाव दे हथ; ओकरा दने से निफिकिर हो गेलन) (अमा॰15:13:2.29; 16:17:2.24)
453 दफा (तीसर दफा) (अमा॰12:9:1.1)
454 दम्मा (रात भिंजइत-भिंजइत राघोबाबू पर दम्मा के लच्छन सच्चो परगट होवे लगल । उनखर दम फुले लगल ।) (अमा॰13:7:1.27)
455 दरअसल (अमा॰11:4:1.10)
456 दरकना (दरकइत देवाल) (अमा॰13:11:2.6)
457 दरसक (= दर्शक) (अमा॰16:11:1.19)
458 दरा (= दर्रा) (मकइया के दरवा ला पेटवा खखोरऽ हे) (अमा॰7:7:1.16)
459 दलिद्दर (उनखा लग~ हल कि पइसा कउड़ी के मामला में हम जिनगी भर दलिदरे रहम) (अमा॰13:8:2.3)
460 दवाई (अमा॰10:19:1.25)
461 दसखत (नीयत केकर की हे मन में, चेहरा देख के पहचानएत ही । पकड़ऽ मत हमर अँगूठा तों, दसखतो करे ला जानइत ही ।।) (अमा॰14:6:1.2)
462 दाना-पानी (अमा॰13:17:1.1)
463 दीया-बत्ती, दीयाबत्ती (बेर डूबे-डूबे पर हे । दीया-बत्ती के बेला होयल, मगर दीयाबत्ती के परथा तो अब उठल जा रहल हे । अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे ।) (अमा॰13:7:1.8, 9; 16:4:2.2, 11:2.13)
464 दुकोठरिया (~ मकान) (अमा॰13:8:2.30)
465 दूबर (दिने दिन शरीर ओकर दूबर होल जाइत हे) (अमा॰11:18:2.7)
466 दूसना (अच्छा ! सूबेदार सिंह दूसरा के खूब दूसऽ हलन । अब उनके घर में नाटक हो रहल हे ?) (अमा॰18:12:1.7)
467 देखावा (मगही के विकास ला जादे चोन्हा चुआ रहलन हे, बाकि सच पूछऽ तो सब बनावटी हे । इनकर देखावा हे तो खाली मगही के पुरोधा कहावे ला ।) (अमा॰18:13:2.4)
468 देखाहिसकी (अरस्तू अनुकरन लागि 'मिमेसिस' सब्द के परयोग अप्पन 'पोयटिक्स' में कयलन हे जेकरा अंग्रेजी में 'इमिटेशन' कहल जाहे आउ मगही में 'देखाहिसकी') (अमा॰16:6:1.11)
469 देवीथान (= देवीथन) (अमा॰11:14:1.13)
470 दोगना (पथ खातिर कुछ चाउर दे दऽ, लीहऽ दोगना बान्ह के) (अमा॰18:12:2.2)
471 दोबारा (अमा॰7:18:1.11)
472 दोमना, दोम देना (सउँसे धरती के दोम देलऽ, अपने गरदन पर चढ़-चढ़ के) (अमा॰10:1:1.8)
473 दोस (= दोष) (अमा॰17:8:2.30)
474 दोसरकी (अमा॰16:18:2.7)
475 दोहारी (अमा॰13:6:1.15)
476 दौंड़ी (दौंड़ी-सोहनी-रोपनी-पटवन मिलजुल सभे करत हल) (अमा॰16:10:2.18)
477 धउल (चार-पाँच ~ जमा देना) (अमा॰17:8:2.18)
478 धकेला-धकेली (अमा॰16:12:2.17)
479 धक्का-धुक्की (अमा॰18:4:1.27+)
480 धधकना (तिलक दहेजवा के धधकल अगिया में, दुहिता जरऽ हे ठौरे ठौर) (अमा॰14:7:1.6)
481 धनखेती (अमा॰12:10:2.14)
482 धयले न धराना (आउ अपने के पाके हम धयले न धराइत ही) (अमा॰17:13:1.5; 18:11:1.4)
483 धायँ (~ से गिरना) (अमा॰16:12:1.3)
484 धियान (जखनी जगह जमीन पर धियान देवे के हल, तखनी देवे नञ कयलन । आउ अब का ? धियानो का देतन हल, अब तो ऊ घर में कई गोतिया के हिस्सा हल । .... मगर बुढ़ापा में सब छूटल चीज पर उनखर धियान जाहे ।) (अमा॰13:10:1.4, 5, 9)
485 धोती (अमा॰13:10:1.12, 15, 16)
486 धोधा (~ फेंकना) (रोवइत-रोवइत बुढ़िया सूखल जा रहल हे । जमनकी के धोधा फेंकले जा रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.23)
487 न जानि (अमा॰12:17:1.18, 18:1.19)
488 नइकी (अमा॰18:18:1.11)
489 नककट्टा (भला दस नककट्टा में एगो नकगर सोभतई ?) (अमा॰11:9:1.9)
490 नकगर (भला दस नककट्टा में एगो नकगर सोभतई ?) (अमा॰11:9:1.9)
491 नतनी (तीन गो बेटी, तीन गो दमाद, नाती, नतनी, आउ का चाहऽ ह ?) (अमा॰7:7:2.24)
492 नतीजा (नौ ~ करना) (अइसन कटासिन पुतोह मिलल हे कि आज हमरा नौ नतीजा करत) (अमा॰7:10:1.26)
493 नधाना (अमा॰14:10:1.7)
494 नफरत (अमा॰17:1:1.8)
495 नरहन्नी (लोग नरहन्नी-कथा बाँच रहलन हे, हम तो ढाँग-कथा लिख रहल ही) (अमा॰14:1:1.14)
496 नरेटा (= नरेटी) (~ के खखार नियन ~ में अटकल ही, न एन्ने जाइत ही न ओन्ने) (अमा॰12:10:1.7)
497 नस्ता-खाना (अमा॰13:8:1.4)
498 नाऊ (= नौआ, हजाम) (~ के चातुरी, बढ़ई के कारीगरी) (अमा॰12:7:2.28)
499 नाठा (~ गाय) (अमा॰13:5:1.2)
500 नाती-नतनी (अमा॰13:9:2.14)
501 नादी (= नाँद) (कनेसर का सोमरा पर बिगड़ उठला आउ कन्त का के भइंस के नादी से सानी उठा-उठाके अप्पन भइंस के नादी में देवो लगलन) (अमा॰16:13:1.21)
502 नापाक (~ इरादा) (अमा॰15:13:1.27)
503 नाम-गाम (~ पूछना) (अमा॰16:13:1.14)
504 निछक्का (अदमी में भी जे मिश्रित सन्तान होवऽ हथ, ऊ ~ अदमी से जादे तेज-तर्रार होवऽ हथ; मिलावट आज हर जगह हो रहल हे, ~, एकबग्गा आज कुच्छो न हे) (अमा॰10:7:2.27, 8:1.27)
505 निबरा (= निमरा, निर्बल) (अबरा-निबरा के मउगी हे भउजी, भइंस ओकरे जेकर हाथ लाठी । नगरी अन्हेर चउपट हे राजा, मोल एक्के हे हाथी कि पाठी ।) (अमा॰14:1:1.9)
506 निमन (= नीमन) (अमा॰17:18:1.29)
507 निरबंस (- निर्वंश) (अमा॰16:9:1.2)
508 निहचय (= निश्चय) (अमा॰13:11:1.17)
509 नीमर (= निर्बल) (अमा॰14:18:1.9)
510 नीयत (नीयत केकर की हे मन में, चेहरा देख के पहचानएत ही) (अमा॰14:6:1.1)
511 नुक्कड़ (~ वला चाय के दोकान में) (अमा॰16:16:1.9)
512 नून (नुनमा चलावऽ ही) (अमा॰7:6:2.26)
513 नेउर (ई साँपिन जइसन फउँकऽ हथ, फिन तुरते नेउर बन जा हथ) (अमा॰15:20:1.11)
514 नेटा (बेटा दहेज लावत, एही से बेटा हे । फयदा बिना ओहू नाक के नेटा हे ।।) (अमा॰14:18:2.16; 18:10:2.24)
515 नेयाय (= न्याय) (अमा॰17:6:1.10)
516 नेवतई (भीड़ के सब लोग के परनाम करके बड़ी ~ से मिललन) (अमा॰16:17:1.9)
517 नेवाड़ी (= नेवारी) (~ के आसन) (अमा॰9:9:2.2)
518 नोकर (नोकर-दाई) (अमा॰18:8:2.19)
519 नौबत (अमा॰16:17:1.18)
520 पँवड़िया (लोग हँड़िया-निसद बाँच रहलन हे, हम पँवड़िया-निसद लिख रहल ही) (अमा॰14:1:1.5)
521 पंडा (अमा॰11:11:2.5)
522 पकठोसल (जउन सधारण लोग के समझ में आवे वला बात न हल, ओही सब में पक्का ~ कर देहे सिनेमा) (अमा॰12:18:1.26)
523 पचउनी (गौर से जब देखली त थोथुन सुखायल हल । पेट हल पचउनी, एकदम सोन्हायल हल ।।) (अमा॰14:18:1.20)
524 पछताना (अमा॰13:1:1.14)
525 पछान (= पहचान) (ओकरा अनुसार एकता आउ ताकत के ~ तो खाली परब-त्योहार के चंदा तसीले घड़ी देखल जाहे) (अमा॰13:12:1.14)
526 पछानना, पछान जाना (अमा॰8:6:1.1)
527 पटनिया (~ मगही) (भासा के खेयाल से ई नाटक में पटनिया मगही के रूप नजर आवऽ हे) (अमा॰18:5:2.8)
528 पटाका (आज सोहराय के दिन हे । लड़कन सब सबेरगरहीं से छुरछुरी, पटाका छोड़ रहलन हे ।) (अमा॰13:7:1.2)
529 पठसाला (अमा॰16:17:1.17)
530 पढ़उनी (ओकरा ~ से फुरसत हई ?) (अमा॰7:13:1.14)
531 पढ़ल-लिखल (अमा॰15:8:1.13, 9:2:17, 11:2:3; 16:8:2.2)
532 पढ़ाई-लिखाई (~ के खरचा) (अमा॰16:7:1.22)
533 पढ़ावल-लिखावल (तोरा ~ सब बेकार हो गेल ?) (अमा॰11:16:1.34; 13:16:2.10-11)
534 पढ़ुआ (अमा॰16:14:1.15)
535 पढ़ौताहर (अमा॰13:8:2.23)
536 पढ़ौनी (अमा॰13:8:2.25)
537 पतझर (जिनखर पिया बसंत में भी परदेस... उनका ला तो बसंत में भी ~) (अमा॰8:6:1.28)
538 पत्तल (कुतवो से बदतर जूठवन पतलियन ले, अदमी करऽ हे झिकझोर) (अमा॰14:7:1.3)
539 पनाह (~ मँगा देना) (टोला-पड़ोस के साली-सरहज के तो लंगटुआ ~ मँगाहीं देलक, प्यरियो के रोवइत-रोवइत हाल बेहाल हो गेल) (अमा॰13:6:2.13)
540 पनिहारिन (गीत गेल, संगीत गेल, पनिहारिन, बखोआइन गेल, पूरबी, बिरहा, डोमकच गेल, लोरिकायन, पमरिया गेल) (अमा॰14:12:1.9)
541 पमरिआ (= पवँरिया) (मंगल अवसरों पर, विशेष कर लड़का के जन्म लेने पर मंगल गान करने वाला नर्तक-गायक, ऐसा काम करनेवाली एक जाति; पमारा या पवाँरा = पवँरिया द्वारा किया गया बढ़ा-चढ़ाकर यशोगान, बढ़ा-चढ़ाकर या विस्तार से कही गई बात; एक प्रकार का गीत या तर्ज, जिसे पँवरिआ गाते हैं) (गीत गेल, संगीत गेल, पनिहारिन, बखोआइन गेल, पूरबी, बिरहा, डोमकच गेल, लोरिकायन, पमरिया गेल) (अमा॰14:12:1.10)
542 परकी साल (अमा॰11:13:1.17)
543 परताड़ना (= प्रताड़ना) (अमा॰17:5:2.24)
544 परतिभा (= प्रतिभा) (अमा॰16:15:1.16)
545 परतीक (= प्रतीक) (अमा॰17:5:2.28)
546 परती-पराती (टाँड़ी-टिकर आउ परती-पराती के ढाही बनल जा रहल हे) (अमा॰14:1:1.7)
547 परतूक (गाँव-देहात में परतूक पड़े लगल आउ पढ़ल-लिखल बेटा के माय-बाप कहे लगलन कि एगो रघुआ हे जे चार तुरी मेट्रिक फेल भेल तइयो चाँदी काटइत हे) (अमा॰16:18:2.11)
548 परथा (= प्रथा) (बेर डूबे-डूबे पर हे । दीया-बत्ती के बेला होयल, मगर दीयाबत्ती के ~ तो अब उठल जा रहल हे । अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे ।; दहेज ~) (अमा॰13:7:1.9; 17:6:1.21)
549 परदूसन (= प्रदूषण) (अमा॰17:5:2.17)
550 परधान (= प्रधान) (अमा॰16:6:1.7)
551 परनाम (= प्रणाम) (पति के पाँव छूके अन्तिम ~ करइत चिता में आग लगा देलक) (अमा॰10:9:1.21; 16:17:1.8)
552 परफुल्लित (= प्रफुल्लित) (दरसक हरख के परफुल्लित हो गेलन) (अमा॰16:12:1.26)
553 परब-तेहवार (अमा॰13:10:1.26)
554 परयास (= प्रयास) (अमा॰17:7:1.2)
555 परयोग (= प्रयोग) (अमा॰16:6:1.9, 2.7, 11, 18)
556 परवेस (= प्रवेश) (अमा॰13:8:1.1)
557 परसिद्ध (= प्रसिद्ध) (अमा॰16:11:1.2)
558 परसुन (= परसों) (अमा॰7:5:2.15)
559 परिच्छा (= परीच्छा, परीक्षा) (अमा॰18:14:2.22, 27, 29)
560 परिनाम (= परिणाम) (अमा॰13:15:1.5; 16:7:1.20, 8:2.3)
561 परिवेस (= परिवेश) (अमा॰17:5:1.13)
562 परीच्छा (अमा॰16:15:1.5)
563 पसिंजर (~ गाड़ी) (अमा॰16:5:1.12)
564 पहचानना (अमा॰13:1:1.10)
565 पहनावा-ओढ़ावा (अमा॰12:16:2.21)
566 पहलमान (अमा॰16:11:1.1, 3, 6, 9)
567 पहिराना (ऊ पहिले अप्पन विरोधी के गला में माला पहिरौलन आउ मिनती कैलन कि हम अपनहीं के किरपा से जीतली हे) (अमा॰16:17:1.2)
568 पहुना (= दामाद) (अब छोटका पहुना भी हिएँ रहतथुन; सबके सब खिसियाह । आउ पहुना तो बाते-बात में सब कोई पर एतना खिसिया जा हलथिन कि हमहूँ डेरा जा हली) (अमा॰7:9:2.32; 12:14:1.5)
569 पहुना (= पति) (बिरहिन के मिटल त्रास, गोरी के मन हुलास, परदेसी पहुना के देख के दुअरिया ।) (अमा॰17:15:1.17)
570 पाकेटमारी (अमा॰16:5:2.12)
571 पाट (एक ~ दारू) (अमा॰13:5:2.23)
572 पाठी (अबरा-निबरा के मउगी हे भउजी, भइंस ओकरे जेकर हाथ लाठी । नगरी अन्हेर चउपट हे राजा, मोल एक्के हे हाथी कि पाठी ।) (अमा॰14:1:1.10)
573 पानी (~ पाना) (घरवाली पानी पौलक हे, छौंड़ा भी बेराम पड़ल हे) (अमा॰18:11:1.26)
574 पानी-कांजी (थारी-लोटा मइस के, बानी-उनी काढ़ के, पानी-कांजी भर के, चुल्ला-चक्की नीप के) (अमा॰7:6:2.7)
575 पाही (हम्मर दादा के एगो कुत्ता हल जे ८ मील दूर ~ पर चिट्ठी पहुँचावऽ हल) (अमा॰11:7:1.20)
576 पाहुन (बहरी ~ बइठल हथिन । चलनी ले के पिछुत्ती माहे चल जायम ।) (अमा॰7:10:1.30)
577 पिंडा (बिसुनपद में ~ देना) (अमा॰11:7:2.18)
578 पिछुआ (धोती के ~ में) (अमा॰7:18:1.4)
579 पिछुत्ती (बहरी पाहुन बइठल हथिन । चलनी ले के ~ माहे चल जायम ।) (अमा॰7:10:1.31)
580 पियासल (भूख के गाँव सगरो बसल हे, देहे-देहे पियासल नदी हे । ऊ हकासल, तरासल, पियासल आउ तँवसल सदी-दर-सदी हे) (अमा॰14:1:1.3, 4)
581 पिलिंथ (= प्लिंथ, plinth) (अब घर के ~ नीचा होल जा रहल हल) (अमा॰13:9:2.5)
582 पीढ़ा (अमा॰7:6:2.8)
583 पीयर (आँख लाल-पीयर करना) (अमा॰16:13:1.24)
584 पुतहू (ओही रात के भतू के बड़की पुतहू बऊआल । ऊ बऊआन में भतू के आत्मा बोलल कि ...) (अमा॰17:9:2.19)
585 पुतोह (अमा॰13:8:1.3; 18:9:2.23)
586 पुतोहिया (= पुतहिया) (अल्लाह से मउअत माँगऽ ही, एतना जिउआ घबरायल हे । एक्के आशा बँधल हे खाली, ओकरो पुतोहिया आयल हे ।) (अमा॰15:20:1.18)
587 पुनिया (= पूर्णिमा) (अमा॰9:9:2.10)
588 पुनियाँ (~ के चाँद) (अमा॰8:7:2.13; 17:15:1.5)
589 पूँज (काट-कूट के पूँज लगावई, मैंज-ओसा के घर पहुँचावई) (अमा॰18:11:1.18)
590 पूरबी (गीत गेल, संगीत गेल, पनिहारिन, बखोआइन गेल, पूरबी, बिरहा, डोमकच गेल, लोरिकायन, पमरिया गेल) (अमा॰14:12:1.10)
591 पेन्हना-ओढ़ना (अब का बेटी वला के बढ़िया पेन्हलो-ओढ़लो मोहाल हो जायत ?) (अमा॰13:5:1.8)
592 पेयार (= प्यार) (अमा॰18:10:1.27)
593 पेयारा (= प्यारा) (अमा॰18:10:1.24)
594 पैतरा (अमा॰16:11:2.20, 12:1.25)
595 पैना (एगो बेचारा गली-कूची के कुत्ता होवऽ हे, जे जुट्ठो पर थोथुन लगावऽ हे तो अदमी ओकरा पैना न तो ढेला से जरूरे स्वागत कर देहे) (अमा॰11:7:2.16, 21)
596 पोंछी (= पूँछ) (अमा॰11:9:1.10, 11)
597 पोखरा (जमकल पानी के ~) (अमा॰16:15:1.0)
598 पोचाड़ा (ई पोचाड़ा नऽ, तमाचा हे) (अमा॰17:6:1.11)
599 पोटरी (अमा॰16:14:2.10, 13)
600 पोरफेसर (~ हथ बाकि अप्पन संस्कार नञ भुलयलन हे) (अमा॰13:7:1.13)
601 पोल्हाना (कोई केतनो पोल्हावे रहे ई फिरंट) (अमा॰11:6:1.12)
602 पोसपुत (अमा॰10:9:1.5)
603 पोसुई (~ कुत्ता) (खुदा-न-खास्ते अइसन गलीवला कुत्ता के भेंट जदि ~ कुत्ता से भे गेल तो ऊ अप्पन गली में ओकरा लात न रखे देत) (अमा॰11:7:2.24, 25)
604 पौडर (~ लगाना) (अमा॰10:14:1.35)
605 फउँकना (ई साँपिन जइसन फउँकऽ हथ, फिन तुरते नेउर बन जा हथ) (अमा॰15:20:1.11)
606 फगुनाना (मौसम फगुनायल हे) (अमा॰9:1:1.3)
607 फरक (कथनी आउ करनी में फरक) (अमा॰18:10:2.3)
608 फरमाना (अमा॰12:16:2.8)
609 फरमूला (लच्छू भाई के बात ! न काहे जायम ? तोरे ~ से तो आज हम खुशहाल ही । ओन्ने दरोगा जी भी खुश हथ आउ एन्ने हम्मर दूधा दुगुना दाम में बिक रहल हे) (अमा॰9:8:1.13-14)
610 फरीच (= फरीछ) (बथान के बगले में हल लमहर-चौड़गर अखाड़ा जेकरा में फरीच होवइते पहलमान जी दुन्नू भाय गाँव के लड़कन के कुश्ती लड़ावो हलन) (अमा॰16:11:1.9)
611 फलसरूप (= फलस्वरूप) (औद्योगिक करांति के ~) (अमा॰17:5:1.1)
612 फलेन्दा (महुआ बसंत के बाद फूलऽ हे आउ बरसात में फूलऽ हे ~ जामुन) (अमा॰8:5:2.4)
613 फह-फह (उज्जर ~ कुर्त्ता) (अमा॰11:13:1.6)
614 फालतू (अमा॰12:12:1.24)
615 फाहे-फाह (उत्तर कोई सुलझल न हे कि हम फाहे-फाह कह देउँ । जादे कबिलाँव में ढेरो अर्थ के अनर्थ हो जाहे ।) (अमा॰18:13:1.12)
616 फिचाना (धोती फिचाइत-फिचाइत तनि पातर होल) (अमा॰13:10:1.15)
617 फिरंट (कोई केतनो पोल्हावे रहे ई फिरंट) (अमा॰11:6:1.12)
618 फिलिम (= फिल्म) (अमा॰16:16:1.13, 24)
619 फुनगना (पेड़ झमटार हल जहिना तहिना, अब तो ठूँठे खड़ा हे अगाड़ी । ई न फूजे, न फुनगे, न लहसे, अब न चूके के भइया सगाड़ी ।) (अमा॰14:1:1.13)
620 फुलउड़ी (चाह-पान, कचउड़ी-फुलउड़ी के दोकान सज जा हल) (अमा॰16:11:1.20)
621 फुसकना (अमा॰13:9:1.18)
622 फूजना (पेड़ झमटार हल जहिना तहिना, अब तो ठूँठे खड़ा हे अगाड़ी । ई न फूजे, न फुनगे, न लहसे, अब न चूके के भइया सगाड़ी ।) (अमा॰14:1:1.13)
623 फेर (= फिर) (फेर मीरा से केकरो बोले के साहस न भेल) (अमा॰17:10:2.5)
624 फोटू (ऊ कभी आदर्श के राह देखावऽ हथ तो कभी यथार्थ के ~ फोटू खींच के लोग सबके सामने रख दे हथ) (अमा॰13:11:1.10)
625 बइठका (अमा॰13:9:2.21)
626 बइयक्तिक (= वैयक्तिक) (अमा॰17:5:1.3)
627 बउल (= बल्ब) (बेर डूबे-डूबे पर हे । दीया-बत्ती के बेला होयल, मगर दीयाबत्ती के परथा तो अब उठल जा रहल हे । अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे ।) (अमा॰13:7:1.10)
628 बउसाव (सावित्री अप्पन बउसाव से मरद के सराब के लत छोड़ा देहे आउ अप्पन नाम सारथक करऽ हे) (अमा॰17:7:2.2)
629 बऊआन (ओही रात के भतू के बड़की पुतहू बऊआल । ऊ बऊआन में भतू के आत्मा बोलल कि ओकर बनावल ठठरी पर, जेकरा में चारो कोना पर चार गो घंटी आउ जहाँ घुँघरू के लरी लगल हल, हमरा नईं ले जाल गेल ।) (अमा॰17:9:2.19)
630 बऊआना (ओही रात के भतू के बड़की पुतहू बऊआल । ऊ बऊआन में भतू के आत्मा बोलल कि ...) (अमा॰17:9:2.19)
631 बखत (पूजा के ~) (अमा॰11:13:1.23)
632 बखान (गुन के ~ करना) (अमा॰15:8:1.5)
633 बखोआइन (अमा॰14:12:1.9)
634 बखोर (सूअर के ~) (अमा॰17:6:2.5)
635 बगइचा (एक्के बगइचा में जइसे किसिम-किसिम के फूल हे । कहूँ मंदिर, कहूँ महजिद, गीता आउ कुरान हे ।।) (अमा॰14:7:1.17; 18:15:1.5)
636 बगरल (बसन्त में धरती अगराइए गेल हे, बाकि बसन्त भी कम बगरल नञ हे) (अमा॰8:7:1.3)
637 बगलगीर (अप्पन ~ से सब तरह से ऊपर रहना उत्तम समझल जाइत हे, चाहे ओइसन बने में अधम से अधम उपाय काहे न अपनावे पड़े) (अमा॰11:4:2.4)
638 बच्चा (पता चलल हे कि अपने के बच्चा बी॰एच॰यू॰ में पढ़ रहलन हे) (अमा॰10:15:2.13)
639 बच्ची (हम अप्पन बचिया के हाथ पीयर करे ला अपने के पास अइली हे) (अमा॰10:15:2.11, 19)
640 बच्छर (बच्छरो-बच्छर पहिले) (अमा॰16:15:1.4)
641 बजना (चुड़िया सबके बज्जई झन-झन, झुमका झमकई कान के) (अमा॰18:11:1.12)
642 बटखारा (अमा॰11:14:2.10)
643 बड़की (अमा॰7:6:2.11)
644 बड़-छोट (हम ऊँच-नीच ~ मिलके रहऽ ही इया हिगरे-हिगरे - एकर झलक में समाजिक सम्बन्ध देखल जाहे) (अमा॰13:12:2.13)
645 बड़हन (एगो ~ किसान) (अमा॰18:8:1.26)
646 बढ़न्ती (हत्या, लूट, बलात्कार, अपहरण में ~; अचल सम्पत्ति में ~) (अमा॰17:4:1.9, 20)
647 बतियाना (दूसर के बतिया की बतियाऊँ ?; का मजाल कि दोसर गाँव के लोग ई गाँव के लोग से टेढ़ी बतियाय) (अमा॰14:11:2.7; 16:11:1.16)
648 बत्ती (लम्फ में अब तेल हे कि नञ ? खाली बतिये तो नञ बर रहल हे ?) (अमा॰13:7:2.12)
649 बदतर (= बत्तर) (अमा॰14:7:1.3; 16:4:2.19)
650 बदलाम (= बदनाम) (अमा॰11:9:1.15)
651 बनल-ठनल (दोसरकी आयल-गेल के स्वागत ला हरमेसे ~ रहऽ हथिन) (अमा॰16:18:2.8)
652 बनवाना (दुन्नू बेटवन एगो डोम के बोला के कच्चा बाँस के मजबूत ठठरी बनवैलक) (अमा॰17:9:1.26)
653 बरकरार (अमा॰12:5:1.12)
654 बरतन-चउका (अमा॰17:8:1.24)
655 बरना (= जलना) (बिजली के लाइनो गुल हो गेल हे । ..... कोठरी के एगो कोना में लम्फ बर रहल हे ।) (अमा॰13:7:2.9, 13)
656 बर-बेहवार (जब हम्मर आत्मा के शांति न मिलत तो बाल-बुतरू आउ परिवार के दोसर लोग के सुख शांति कइसे रहत ? बर-बेहवार सब चौपट हो जायत ।) (अमा॰17:9:2.27)
657 बराबरी (चुप रहऽ हे कि नऽ ? लइका के बराबरी करे चाहऽ हें ? तूँ लड़की जात हें ।) (अमा॰17:8:1.31)
658 बरोबर (लीपल पोतल ~) (अमा॰8:7:2.28-29)
659 बलबूता (अप्पन ~ पर) (अमा॰12:12:2.23)
660 बसावन (सूरज बाबू के शुभचिन्तक मित्र के नाम बसावन आउ चापलूस मित्र के नाम उजारन बड़ा सटीक हे) (अमा॰18:5:2.6)
661 बहसा-बहसी (जमुना जी आउ सतीश में खूबे ~ होवऽ हल) (अमा॰16:16:1.1)
662 बाते-बात में (अमा॰12:14:1.5)
663 बानी-उनी (थारी-लोटा मइस के, बानी-उनी काढ़ के, पानी-कांजी भर के, चुल्ला-चक्की नीप के) (अमा॰7:6:2.5)
664 बान्हना (खूँटा पर के बान्हल गोरू) (अमा॰12:9:2.9)
665 बान्हना-छान्हना (हथ घरनी हम्मर गोर-गार, देखे-सुने में लाजवाब हथ । बान्हे-छान्हे में उड़ेहल हथ, कबूतर जइसन गिरहबाज हथ ।।) (अमा॰15:20:1.4)
666 बाहर (बहरहीं से अवाज आयल) (अमा॰12:13:1.4)
667 बिअहलकी (पहिलकी-बिअहलकी) (अमा॰16:18:2.1)
668 बिचकाना (मुँह ~) (अमा॰16:16:1.21)
669 बिचमान (कुश्ती लड़ेवला के दू दल बन जा हल - एक दल कन्त का के आउ दोसर कनेसर का के । दुन्नू बिचमान बन जा हलन ।) (अमा॰16:11:1.23)
670 बिच्छी (मच्छड़, साँप आउ ~ नियर जहर फैलावे ओला जंतु) (अमा॰12:6:2.10)
671 बिछौना (अमा॰16:16:1.32)
672 बिजली (बिजली के बउल, बिजली के लाइन) (अमा॰13:7:1.10, 2.6)
673 बिज्जे (का न बिज्जे करयबऽ कहीं न्योत के ?) (अमा॰11:1:1.16)
674 बिध (= बिधि, विधि, रस्म, अनुष्ठान) (बिधे-बिध = प्रत्येक विधि या रस्म में) ( कोई जलम लेहे तब सोहर गवा हे । बियाह शादी में बिधे-बिध गीत आउ गारी गवा हे ।) (अमा॰16:4:1.28, 29)
675 बिन्हना (= डँसना) (कदम गाछ के बिन्हकइ तच्छक) (अमा॰15:1:1.2)
676 बियाह (अमा॰16:8:2.8)
677 बिरहा (गीत गेल, संगीत गेल, पनिहारिन, बखोआइन गेल, पूरबी, बिरहा, डोमकच गेल, लोरिकायन, पमरिया गेल) (अमा॰14:12:1.10)
678 बिरहिन (अमा॰17:15:1.15)
679 बिहइता (~ लड़की) (अमा॰13:6:1.28)
680 बिहने (~ से ऊ बनारसे (जाय) के तइयारी करइत हथ) (अमा॰7:6:1.3)
681 बीया (झगड़ा के ~ बुनना) (अमा॰14:9:2.8)
682 बुझाना (= समझ में आना, प्रतीत होना) (अमा॰11:1:1.1)
683 बुड़बक (अजब ~ के फेरा में पड़ गेली) (अमा॰9:10:1.20, 23; 12:15:1.27; 17:2:1.3)
684 बुड़ाना, बुड़ा देना (अमा॰11:16:1.37)
685 बुढ़ाठ (जहाँ जाही उहाँ दहेज के लोभी बाप अप्पन ~ लइका लेे बइठल हे) (अमा॰13:5:1.11)
686 बुढ़ाना (मइया तो रोज थुराइत हे, काहे कि ओहू बुढ़ायल हे । सिहुकल रहे हे ऊ हरदम, जबसे ई डाइन आयल हे ।) (अमा॰15:20:1.13)
687 बुतना (कहीं लम्फ बुतियो न जाय) (अमा॰13:7:2.11)
688 बुदबुदाना (अमा॰12:9:2.25)
689 बूड़ना ('बाढ़ आउ सुखाड़' में एक दने गरीबी के कारन लहलहाइत मिचाई के खेत कोड़इत-कोड़इत पानी के जिजीविषा लेले धानुक मर जाहे आउ ओन्ने धनी आउ सामन्त के बगीचा रोज पानी से बूड़ल रहऽ हे; गारो एगो कम्बल के जिजीविषा के साथे मर जाहे) (अमा॰17:6:2.13, 27)
690 बूता (अइसन प्राकृतिक विपत्ति पर रोक लगावे के बूता अदमी में तो हइए न हे) (अमा॰18:4:1.11)
691 बेअग्र (= बेअग्गर, व्यग्र) (अमा॰18:10:2.7)
692 बेआकरन (अमा॰11:9:1.17)
693 बेकती (= व्यक्ति) (अमा॰8:12:1.29, 30)
694 बेकूफ (अमा॰11:14:1.22)
695 बेग (= बैग, bag) (सब समान ~ में सरियावइत हलथिन) (अमा॰7:6:1.7, 21, 24)
696 बेग (= वेग) (हँफनी के ~) (अमा॰13:8:1.13)
697 बेटी-उटी (अमा॰13:5:1.26)
698 बेटी-रोटी (~ के संबंध) (अमा॰10:8:2.19)
699 बेफट (सास-ससुर अप्पन बेटा बलिन्दर के कुछ न कह सकलन । उल्टी पुतोहे पर ~ के आरोप लगावे लगलन ।) (अमा॰12:10:1.32)
700 बेमरिया (= बेमरियाही; दे॰ रोगियाही) (~ मतारी) (अमा॰12:14:1.9)
701 बेर (बेर डूबे-डूबे पर हे । दीया-बत्ती के बेला होयल, मगर दीयाबत्ती के परथा तो अब उठल जा रहल हे । अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे ।) (अमा॰13:7:1.8)
702 बेरा (मरे बेरा भी गंगाजल आउ तुलसी के पत्ता देवल जाहे; दुपहरिया के बेरा हल) (अमा॰12:6:1.12, 13:1.6)
703 बेराम (घरवाली पानी पौलक हे, छौंड़ा भी बेराम पड़ल हे) (अमा॰18:11:1.27)
704 बेरामी (आग से जरला पर तुलसी के उपयोग से ~ छू-मंतर हो जाहे) (अमा॰12:6:2.22)
705 बेरोजगारी (अमा॰16:5:2.13)
706 बेवसाय (= व्यवसाय) (अमा॰11:14:2.9)
707 बेहवार (जब ई नया ~ खूब चले लगल तब दुन्नू बेटा चाहे लगल कि ओकर बाप ठठरी आउ कफन न बेचे) (अमा॰17:9:1.10, 2.14)
708 बैरन (~ चिट्ठी) (अमा॰12:13:1.3, 5, 11)
709 बोआम (~ के अँचार खतम हो गेल) (अमा॰13:6:2.11)
710 बोरा (बुतरुअन पीठ पर गंदा बोरा लटकैले, कागज आउ रद्दी चुनते चलल जाइत हल) (अमा॰18:10:1.4)
711 बोलना-बतियाना (कउनो पीठ ससार देत हल ... कउनो बोलत-बतियाइत हल ...) (अमा॰13:10:2.5-6)
712 बोलाना (दुन्नू बेटवन एगो डोम के बोला के कच्चा बाँस के मजबूत ठठरी बनवैलक) (अमा॰17:9:1.25)
713 बोलाहट (अमा॰7:5:2.21)
714 बोली (~ डोली पर चलना) (सूबेदार सिंह के बोली तो डोली पर चलऽ हल । एक दम से लीप के बोलऽ हलन । गाँव के कोई अदमी के लगावऽ भी न हलन । बाकि आझे उनका बुझाइत हे ।) (अमा॰18:12:1.15)
715 बोली-ठोली (~ मारे से बाज न आना; अब ~ के परपंच में ऊ नञ पड़े चाहऽ हथ) (अमा॰12:16:2.24; 13:7:1.25)
716 भइया (अमा॰14:8:1.6)
717 भउजी (अमा॰14:8:1.5)
718 भकोसना (दुइये घड़ी दिन उठते तीन बेर भकोसऽ हे । आउ खाय आउ खाय तिले-तिले घोसऽ हे ।। सब मिल कटोरे-कटोरे बाले बच्चे घटोरऽ हे ।) (अमा॰7:7:1.9)
719 भटकना (भटकल) (अमा॰13:1:1.14)
720 भठयुग (अमा॰13:5:1.14)
721 भड़ास (अमा॰17:5:1.16)
722 भभूत (अमा॰11:14:1.14)
723 भरभराना (चंचला भरभराइत अवाज में पूछलक) (अमा॰12:9:1.19)
724 भरम भटका (भरम भटका जे हल से मेटा जाहे) (अमा॰17:6:2.4)
725 भरमाना (अमा॰13:1:1.8)
726 भरल-पूरल (अमा॰13:9:2.15; 17:15:1.7)
727 भरस्ट (= भ्रष्ट) (अमा॰17:5:1.25)
728 भल ('अलका मागधी' के भल चाहे ओला नवो ग्रह एक्के साथ हथ, तो एकर अनभल काहे होयत) (अमा॰12:19:1.13)
729 भात ('भात' प्रेम कुमार मणि के बड़ी चर्चित मगही कहानी हे । अकाल आउ उत्पीड़न के मारल हे सोमारी ! अकाल के मारल ऊ अप्पन मरद के कारज में भाई के भातो न देलक । ... एगो नऽ, तीन गो भात ।) (अमा॰17:6:1.15, 16)
730 भाय-भोजाय (अमा॰13:9:2.13)
731 भितरौली (~ दाँव मारना) (अमा॰16:12:2.10)
732 भिनुसरवे (पाँच बजे ~ ओकर बाप ओकरा जगा दे हथ) (अमा॰13:7:2.17)
733 भिरना (= भिड़ना) (अमा॰16:12:1.29, 30)
734 भिरी (अब तो घर रंग-बिरंगा बिजली के बउल से सजावल जाहे । जादे से जादे तुलसी चौरा पर एगो दीया बरत आउ एगो गणेश-लछमी जी भिरी ।) (अमा॰13:7:1.12)
735 भीरी (रंगुआ सोचलक कि ~ गेला पर भंडा फूट जायत) (अमा॰13:6:1.7)
736 भुंजा (दुअरे पर बइठ बुढ़िया मटकी मार रहल हे । कोनमा में जमनकी भुंजा मसका रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.21)
737 भुआ ('भुआ' डा॰ स्वर्णकिरण के कहानी हे । ई कहानी में मिसरी लाल के कयल-धयल बुढ़ारी में बेटा से जे उम्मेद हल ऊ भुआ बन के उड़ गेल ।) (अमा॰17:7:1.10, 12)
738 भोरहीं (अमा॰16:16:2.24)
739 मइया (अमा॰12:5:1.25; 13:16:2.2)
740 मइसना (थारी-लोटा मइस के, बानी-उनी काढ़ के, पानी-कांजी भर के, चुल्ला-चक्की नीप के) (अमा॰7:6:2.4)
741 मकरजाला (अमा॰14:8:2.17)
742 मचोड़ना (= मचोरना) (हाथ ~) (अमा॰16:13:1.25)
743 मजमा (दुन्नू में उठा-पटक होवे लगल । मजमा जुट गेल । मल्ल-युद्ध करते-करते दुन्नू के कुर्ता-धोती चिथनी-चिथनी भे गेलन आउ दुन्नू भाय हो गेलन एकदम नंगा ।) (अमा॰16:13:1.25)
744 मटकी (~ मारना) (अमा॰17:19:2.20)
745 मटाघिसी (पइस, परतिभा आउ बाकी हाव-भाव से जमुना जी के मटाघिसी चल रहल हल) (अमा॰16:15:1.17)
746 मन (मन-दू-मन मजदूरी लेके, चललइ सीना तान के) (अमा॰18:11:1.20)
747 मनवाना (अप्पन बात जबरदस्ती ~) (अमा॰11:4:2.12)
748 मनसूबा (~ बाँधना) (अमा॰10:15:2.3)
749 मनीता (= मनिता, मन्नत) (अमा॰13:5:2.21)
750 मनेर (चलऽ सखी चलऽ देखे मगह मनेरवा से जहाँ बसे बुद्ध भगवान गे बहिनियाँ) (अमा॰17:15:1.23)
751 मन्दिर (अमा॰18:1:1.1)
752 ममोसर (= मयस्सर) (न कहियो बेचारी के गड़ी-छोहाड़ा ममोसर, न घीउ) (अमा॰17:8:1.20)
753 मर धँस के (~ आन्दोलन करऽ तूँ, सभा करऽ तूँ, किताब लिखऽ तूँ आउ उद्घाटन-भाषण-विमोचन करके महान विभूति के पद ऊ लेथुन) (अमा॰18:13:2.8)
754 मरजी (अमा॰12:14:1.23)
755 मरद-मानुस (घर के ~ सब अप्पन-अप्पन काम पर शहर च गेलन हल) (अमा॰12:13:1.7)
756 मलिया (= मलवा) (~ में तेल लेके) (अमा॰9:13:2.32)
757 मसकाना (दुअरे पर बइठ बुढ़िया मटकी मार रहल हे । कोनमा में जमनकी भुंजा मसका रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.21)
758 मसुरी (~ चाले वला चलनी दे द) (अमा॰7:10:1.28)
759 मस्जिद (अमा॰18:1:1.1)
760 महजिद (एक्के बगइचा में जइसे किसिम-किसिम के फूल हे । कहूँ मंदिर, कहूँ महजिद, गीता आउ कुरान हे ।।) (अमा॰14:7:1.19)
761 महत्त (= महत्त्व) (अलका मागधी के ~) (अमा॰18:20:2.2)
762 महादे (= महादेव) (अमा॰11:8:1.23)
763 महारत (दुन्नो अप्पन-अप्पन काम में ~ हथिन) (अमा॰16:18:2.9)
764 महिन्नो (जुआनी के ढलान पर राघोबाबू हलन कि उनखा ई रोग धयलक हल । कातिक-अगहन में कहियो उपटलो । दु-चारे दिन में विदो ले लेलको । मगर अब तो महिन्नो लटका देहे ।) (अमा॰13:8:1.24)
765 महुआ (अमा॰12:5:1.16)
766 महूरत (साब ! सगुन अगुन देख के उदघाटन के ~ न का रखली हल ?) (अमा॰11:7:1.6)
767 माउग-भतार (अमा॰11:14:2.4)
768 मानुसखोर (गिधियो से गेल गुजरल देसवा वो दुनियाँ में, मानुस भेलै मानुसखोर) (अमा॰14:7:1.4)
769 माफिक (दोकाने दोकान खोज के मन माफिक कपड़ा कीनऽ हे) (अमा॰12:16:2.6)
770 माय-बाप (अमा॰12:10:2.16, 34; 13:16:2.16)
771 माय-बेटी (अमा॰17:14:1.13, 2.20)
772 मारफत (झूठ-मूठ पतरा के ~) (अमा॰11:12:2.17)
773 मारा-मारी (अमा॰10:20:1.17)
774 माहे (बहरी पाहुन बइठल हथिन । चलनी ले के पिछुत्ती ~ चल जायम ।) (अमा॰7:10:1.31; 15:16:1.32)
775 मिझाना, मिझ जाना (लम्फ के बत्ती सच्चो मिझाय-मिझाय पर हल) (अमा॰13:9:1.11)
776 मियाँ (~ के जूती ~ के सर चलाना) (अमा॰11:9:1.23, 24)
777 मिरगा (= मृगशिरा नक्षत्र) (लोग अदरा-कथा बाँच रहलन हे, हम तो मिरगा-कथा लिख रहल ही) (अमा॰14:1:1.11)
778 मिल्लत (नेह, ममता, सिनेह-परेम आउ मिल्लत) (अमा॰13:13:2.7)
779 मिसिन (= मशीन) (अमा॰13:8:1.10)
780 मीठ (अमा॰17:15:1.11)
781 मीरा (कुछ हम्मर इंसाफ करऽ अब, मिरवा तो सुनबे न करई अब) (अमा॰18:12:2.4)
782 मुँह (~ लटकाना) (अमा॰12:10:2.23)
783 मुँह-देखाई (~ के रस्म निभाना) (अमा॰15:8:1.8)
784 मुक्का-मुक्की (अमा॰13:19:2.12)
785 मुचुकना (गोड़ ~) (अमा॰9:13:2.6)
786 मुद्दा (अमा॰12:10:1.29)
787 मुरदासिंघी (अमा॰16:6:2.3, 6, 7)
788 मुसकी (= मुसकान) (अपने के होठ पर तनि सा ~ भर आ जाय खाली) (अमा॰9:4:2.12)
789 मूरुख (= मूर्ख) (अमा॰14:6:1.2)
790 मेटाना, मेटा जाना (भरम भटका जे हल से मेटा जाहे) (अमा॰17:6:2.4)
791 मेटाना, मेटा देना (पारो एगो हरिजन लड़का से बियाह करके जात-पात के भेद-भाव मेटा देहे) (अमा॰13:11:2.15; 17:12:1.16)
792 मेहरी (पुतोह के सवाद लेके मइया पछता रहल हे । मेहरी के संग छौंड़ा इतरा रहल हे ।।) (अमा॰17:19:2.17)
793 मैंजना (काट-कूट के पूँज लगावई, मैंज-ओसा के घर पहुँचावई) (अमा॰18:11:1.19)
794 मोटगर (~ किताब) (अमा॰16:15:2.27, 16:1.32)
795 मौज-मस्ती (~ से जीवन बिताना) (अमा॰12:10:1.3)
796 रंगरंजन (अमा॰16:6:1.16, 17)
797 रंगलेपन (अमा॰16:6:1.16, 17)
798 रसम (बियाह के ~ चालू हो गेल) (अमा॰13:6:1.26)
799 रसरी (प्रेम के रसरी टूट चलल हे, ओकरे जोड़ल चाहऽ ही) (अमा॰18:1:1.3)
800 रहगीर (= राहगीर) (अमा॰14:16:2.24)
801 राकस (= राक्षस) (तों राकस नै, तों राम हऽ, आय तोहरे युग हो) (अमा॰10:1:1.9)
802 राच्छस (अमा॰14:12:2.14)
803 राजी (अमा॰13:6:1.22)
804 रात-बिरात (गते-गते एगो देहाती पिस्तौल खरीद लेलन जेकरा से ~ में ढेरे अमदनी होवे लगल) (अमा॰16:17:1.24)
805 रुन-झुन (~ संगीत) (अमा॰14:13:2.21)
806 रूमानी (राघोबाबू के कहियो अप्पन गाम लउटे के मन करऽ हे । मगर ई हे सिरिफ एगो रूमानी विचार ।) (अमा॰13:10:1.2)
807 रेघा (बात तब के हे जब उनका दुन्नू के अभी मोंछ के रेघे आल हल) (अमा॰16:12:2.28)
808 रेहन (अमा॰14:16:2.7)
809 रोआई (अमा॰12:13:2.2)
810 रोकसदी (अमा॰12:10:2.22)
811 रोगियाही (misprinted as रोगीयाही; दे॰ बेमरियाही) (अमा॰12:13:2.15)
812 रोजी-रोजगार (अमा॰16:5:2.7)
813 रोपाना, रोपा जाना (मंदिर में बियाह होवे ला दिन रोपा गेल) (अमा॰13:6:1.10)
814 रोवाई (अमा॰10:12:1.18; 16:14:1.6)
815 रोसकदी (दे॰ रोकसदी) (अमा॰13:6:1.28)
816 रोहा-रोहट (केकरो मरला पर तो ~ होयबे करत) (अमा॰16:4:1.30)
817 लंगर (जहाँ जहाँ गेलन बाबा लंगर चलाई देलन, छोट-बड़ दुन्नो के मिटौलन अभिमान के) (अमा॰17:15:2.11)
818 लंघी (~ मारना) (दुन्नू जवान एक-दोसर के चित्त नहिएँ कैलक । आखिर में कनेसर का से नञ रहल गेल । ऊ कान्त का के चेला के सहजे लंघी मार देलन । ऊ जवान धायँ से गिर गेल ।) (अमा॰16:12:1.2, 7, 10)
819 लइकइयाँ (~ के दिन) (अमा॰13:7:1.6, 7)
820 लइकाई (अमा॰16:17:1.16)
821 लकठी (गुड़ या चीनी में पगा आटे का लंबा लच्छा; कमजोर, दुर्बल) (टीसन के बाहरे खोमचा वाला हे । ओकरा में दु रुपइया के मिठाई के जगह पर ~ ले हे । ~ में से एगो टुकड़ियो न खाहे ऊ ।) (अमा॰16:14:2.5, 6)
822 लग्गी (ई नाव में ऐसन लग्गी दऽ, बस एक्के दाव उलट जैतो) (अमा॰10:1:1.12)
823 लछमी (= लक्ष्मी) (अमा॰14:1:1.2, 11:1.18)
824 लजकोटर (~ बालम लाज के मारे भाग न जाय) (अमा॰8:6:2.30)
825 लजौनी (~ के डाल) (अमा॰15:18:1.21, 26)
826 लटकना (तनि ई लटकलका झोलवा पकड़ऽ तो !) (अमा॰9:11:2.15)
827 लतियाना, लतिया देना (जब गिर जाही भुइयाँ में, तब ऊपर से लतिया दे हथ) (अमा॰15:20:1.10)
828 लदल-फदल (अमा॰8:5:1.22-23)
829 लन्द-फन्द (अमा॰11:20:1.9)
830 लपकल (अमा॰7:15:1.2)
831 लम्फ (बिजली के लाइनो गुल हो गेल हे । ..... कोठरी के एगो कोना में लम्फ बर रहल हे ।) (अमा॰13:7:2.9, 11, 12, 9:1.11)
832 लरी (ओही रात के भतू के बड़की पुतहू बऊआल । ऊ बऊआन में भतू के आत्मा बोलल कि ओकर बनावल ठठरी पर, जेकरा में चारो कोना पर चार गो घंटी आउ जहाँ घुँघरू के लरी लगल हल, हमरा नईं ले जाल गेल ।) (अमा॰17:9:2.22)
833 ललकी (~ मट्टी; ~ किरिनियाँ) (अमा॰16:12:2.30; 17:1:1.3)
834 लहर (एँड़ी के ~ कपार पर चढ़ना, तरवा के ~ कपार पर चढ़ना) (अमा॰9:18:2.11; 13:16:2.4)
835 लहसना (पेड़ झमटार हल जहिना तहिना, अब तो ठूँठे खड़ा हे अगाड़ी । ई न फूजे, न फुनगे, न लहसे, अब न चूके के भइया सगाड़ी ।) (अमा॰14:1:1.13)
836 लाइन (बिजली के लाइनो गुल हो गेल हे । "कत्ते गिरावट सब विभाग के काम-काज में आ गेल हे ।" - ऊ खिजला हथ ।) (अमा॰13:7:2.6)
837 लाल-पीयर (आँख ~ करना) (अमा॰16:13:1.24)
838 लास (= लाश) (जब अवकाश काल लइकन किहाँ बितावल चाहऽ हथ, त बुढ़ारी के लास उठावे के बूता केकरो न होयल) (अमा॰17:7:1.18)
839 लिखताहर ('गाँव के दरद' के लिखताहर केशव प्रसाद वर्मा हथ) (अमा॰17:7:1.4)
840 लिखनय (अमा॰16:16:2.17)
841 लियाना (एक दिन लालती के बाप रामलखन लालती के लियावे गेलन तो बलिन्दर खीस में न लावे के किरिया कसम तक खा लेलन ।) (अमा॰12:10:2.2)
842 लुँज-पुँज (अमा॰11:12:2.11)
843 लुगा (न कहियो बेचारी के गड़ी-छोहाड़ा ममोसर, न घीउ । पेन्हे ला साधारण लुगा मिलऽ हल ।; अरे सीधके गइया न सउँसे लुगा चिबा जाहे) (अमा॰17:8:1.21; 18:10:2.9, 11:2.27)
844 लेटना-पोटना (कादो-पाँको सेलेटल-पोटल कपड़ा) (अमा॰13:6:2.4)
845 लेहुआलोहान (अमा॰11:12:2.21)
846 लोढ़ना (फूल ~) (अमा॰12:11:2.4)
847 लोरिकायन (गीत गेल, संगीत गेल, पनिहारिन, बखोआइन गेल, पूरबी, बिरहा, डोमकच गेल, लोरिकायन, पमरिया गेल) (अमा॰14:12:1.10)
848 वजनी (जमुना जी हरदम्मे अप्पन ~ डिग्री से चोट करऽ हलन) (अमा॰16:16:1.6)
849 वजह (अमा॰11:12:2.19)
850 वनस्पतिक (तुलसी के ~ नाम) (अमा॰12:6:1.26)
851 विग्यापन (= विज्ञापन) (अमा॰18:14:1.19)
852 विसमता (= विषमता) (आरथिक ~) (अमा॰17:5:1.25)
853 वैद (डागडर-वैद) (कहियो डागडर-वैद से एक-दू चोट दवाई खइलियो आउ फिन ठीक) (अमा॰13:8:1.29)
854 शादी-बियाह (अमा॰12:12:1.13)
855 शुरुम (अमा॰8:6:1.15)
856 शुरूम (अमा॰11:13:1.11)
857 शौख (~ पूरा करना) (अमा॰15:10:2.17)
858 सँभारना (सब काम तो उनखे सँभारे पड़ऽ हे) (अमा॰13:7:2.26)
859 संतोख (अमा॰16:11:2.8)
860 सउतिन (= सइतिन) (अमा॰12:8:2.27)
861 सकती (= शक्ति) (उठे-बइठे के बात तो छोड़ऽ, करवटो बदले के सकती नञ रहऽ हे) (अमा॰13:7:2.4)
862 सकलगर (मलमल के कुर्ता-धोती सीट कर के आउ आँख में सुरमा लगा के सुन्नर-सकलगर बन गेलन) (अमा॰16:13:1.2)
863 सगरो (अमा॰8:16:1.12; 14:8:1.4)
864 सगाड़ी (पेड़ झमटार हल जहिना तहिना, अब तो ठूँठे खड़ा हे अगाड़ी । ई न फूजे, न फुनगे, न लहसे, अब न चूके के भइया सगाड़ी ।) (अमा॰14:1:1.13)
865 सगुन अगुन (साब ! ~ देख के उदघाटन के महूरत न का रखली हल ?) (अमा॰11:7:1.5)
866 सचकोलवा (ऊ कभी आदर्श के राह देखावऽ हथ तो कभी यथार्थ के ~ फोटू खींच के लोग सबके सामने रख दे हथ) (अमा॰13:11:1.10)
867 सच्चो (=सच्ची ) (भारत में सरकार जनता द्वारा बनावल जाहे जरूर, बाकि ~ के ऊ जनता के सरकार बनऽ हे कि न एकरा पर अक्सर सवाल उठइत रहऽ हे; रात भिंजइत-भिंजइत राघोबाबू पर दम्मा के लच्छन ~ परगट होवे लगल । उनखर दम फुले लगल ।) (अमा॰10:4:1.8; 13:7:1.27)
868 सझुराना (सझुरावे के लाख कोशिश करला पर भी ओकर सोच आउ जादे अझुरायल नियन हो जाहे) (अमा॰12:9:1.3)
869 सट्टल (अमा॰18:10:2.20)
870 सड़ल (~ मछली) (अमा॰8:14:1.1)
871 सनाना (शुद्ध घीउ से सनायल हुमाद के गंध) (अमा॰9:9:2.23)
872 सन्न (करेजा सन्न से हो जाना) (अमा॰12:15:1.11)
873 सपनाना (राते तूँ का का सपनयलऽ ?) (अमा॰18:15:2.24, 17:1.25.)
874 सपोरना (= सपोड़ना) (बूँटवा के सतुआ तूँ दिन भर सपोरऽ हें) (अमा॰7:7:1.15)
875 सबुरी (= सब्र) (न कहियो बेचारी के गड़ी-छोहाड़ा ममोसर, न घीउ । पेन्हे ला साधारण लुगा मिलऽ हल । तइयो बेचारी सबुरी करऽ हल ।) (अमा॰17:8:1.22)
876 सबेरगरहीं (आज सोहराय के दिन हे । लड़कन सब सबेरगरहीं से छुरछुरी, पटाका छोड़ रहलन हे ।) (अमा॰13:7:1.1)
877 सब्दकोस (= शब्दकोश) (मगही में भी एगो 'सब्दकोस' चाहीं - छोटहीं सही) (अमा॰18:5:1.7)
878 समाजिक (~ कुरीति; ~ जीवन) (अमा॰11:12:2.22; 12:7:1.1; 13:11:1.2)
879 समाजिकता (अमा॰16:5:1.4)
880 सरगनई (रात में भोजन के बाद राम सिंहासन सिंह विद्यार्थी के ~ में कवि सम्मेलन भेल) (अमा॰11:2:2.13)
881 सरधांजली (= श्रद्धांजली) (अमा॰18:4:2.23)
882 सरेख (लड़की ... जइसे जइसे ~ होवऽ हे, माय-बाप के नींद हेरा जाहे) (अमा॰7:13:2.10)
883 सवांग (कोई ओकरा से तो पूछे जेकर ~ दवाई के अभाव में दम तोड़ रहल हे) (अमा॰8:7:2.15)
884 ससारना (पीठ ~) (कउनो उनखर पीठ कड़ुआ तेल गरम करके तनि ससार देत हल) (अमा॰13:8:1.17, 10:2.5)
885 ससुरार (अमा॰7:15:1.10; 12:9:1.1)
886 सस्ता-सुबिस्ता (काका रंगुआ से कहलन, 'कहीं ~ लइका हे त बताव') (अमा॰13:5:2.4-5)
887 साँपिन (ई साँपिन जइसन फउँकऽ हथ, फिन तुरते नेउर बन जा हथ) (अमा॰15:20:1.11)
888 साज-समान (अमा॰12:12:1.13)
889 सारथक (सावित्री अप्पन बउसाव से मरद के सराब के लत छोड़ा देहे आउ अप्पन नाम सारथक करऽ हे) (अमा॰17:7:2.3)
890 साली-सरहज (अमा॰13:6:2.13)
891 साहित्त (= साहित्य) (अमा॰13:11:1.1, 7, 13:2.8, 9)
892 साहित्तकार (= साहित्यकार) (अमा॰13:11:1.5, 7)
893 सिक्छक (अमा॰17:6:1.8)
894 सिक्छा (सिक्छा-नीति) (अमा॰17:5:1.26, 6:1.7)
895 सिटपीन (जब माहटर आवऽ हलथिन त ऊ कुर्सी में ~ खोंस दे हल) (अमा॰12:17:1.12)
896 सिलउटी (~ पर पीस के) (अमा॰11:11:2.24)
897 सिसकना (अमा॰12:9:1.21)
898 सिसकी (अमा॰12:9:2.24)
899 सिहुकना (सिहुकल) (मइया तो रोज थुराइत हे, काहे कि ओहू बुढ़ायल हे । सिहुकल रहे हे ऊ हरदम, जबसे ई डाइन आयल हे ।) (अमा॰15:20:1.14)
900 सीटना (मलमल के कुर्ता-धोती सीट कर के आउ आँख में सुरमा लगा के सुन्नर-सकलगर बन गेलन) (अमा॰16:13:1.2)
901 सीत-लहरी (ऊ जवानी में आग के आग आउ पानी के पानी नऽ समझऽ हलन । गमछिये पर जाड़ा का, सीत-लहरी के बापो के देखऽ हलन ।) (अमा॰17:6:2.26)
902 सुख-चैन (~ छीन लेना) (अमा॰12:12:2.25)
903 सुगबुगी (अमा॰8:6:2.6)
904 सुझाना (= सूझना) (अमा॰11:1:1.2)
905 सुतल (अमा॰16:1:1.4)
906 सुन्नरता (अमा॰16:17:2.27)
907 सुन्नर-सकलगर (मलमल के कुर्ता-धोती सीट कर के आउ आँख में सुरमा लगा के सुन्नर-सकलगर बन गेलन) (अमा॰16:13:1.3)
908 सुन्ना (अमा॰7:9:2.32)
909 सुपसुपाना (माँड़-भात ~) (अमा॰7:6:2.28)
910 सूट-बूट (अमा॰17:8:1.15-16)
911 सेन्दूर (अमा॰13:6:1.26)
912 सेयान (= सयाना) (अमा॰16:7:1.14)
913 सोंध (= सोन्ह, सोन्हा) (माटी के ~ गंध) (अमा॰8:8:1.16; 18:13:1.18)
914 सोअरग (~ सिधार जाना) (अमा॰13:8:1.19)
915 सोझ (~ होना) (अमा॰11:9:1.6)
916 सोझे (~ कहीं न बाबा कि हम्मर इच्छा पूरा न होयत) (अमा॰8:18:1.1)
917 सोटल-साटल (~ लड़का) (लड़का के बरतुहार भिर बोलावल गेल । देखते के साथ बरतुहार रीझ गेलन । एतना घूमला पर भी ऐसन ~ लड़का मिलना दुरलभ हे ।) (अमा॰16:13:1.13)
918 सोड्डा (साबुन-सोड्डा) (अमा॰7:18:2.5)
919 सोध (= शोध) (अमा॰18:13:1.1)
920 सोनहुली (घुप अन्हार रात गेल, सोनहुलिया प्रात भेल) (अमा॰17:15:1.10)
921 सोन्हाना (सोन्हायल) (गौर से जब देखली त थोथुन सुखायल हल । पेट हल पचउनी, एकदम सोन्हायल हल ।।) (अमा॰14:18:1.20)
922 सोरही (ऊ सात बार ~ के कउड़ी फेंकलक आउ सातो बार बस नौ ही मिलल) (अमा॰7:18:1.12)
923 सोहबत (अमा॰16:16:1.19)
924 सोहरत (अमा॰16:16:2.2)
925 सोहराय (आज सोहराय के दिन हे । लड़कन सब सबेरगरहीं से छुरछुरी, पटाका छोड़ रहलन हे ।) (अमा॰13:7:1.1)
926 सोहाना (छोटा उमर में तो उपदेश आउ न सोहाय) (अमा॰12:17:2.7)
927 सोहामन (पूस के कनकन्नी आउ माघ के झिनझिन्नी खतम होवे पर वसंत रितु सोहामन लगऽ हे । न हिरदा हिलावे वला जाड़ा न देह जरावे वला गरमी ।) (अमा॰8:5:1.3)
928 सौखीन (= शौकीन) (अमा॰7:14:1.4)
929 सौत (अइसन लगो हल जइसे ऊ सौत के बेटी हे) (अमा॰17:8:1.26)
930 हँफनी (धीरे-धीरे ~ कमल जा रहल हे) (अमा॰13:8:1.11)
931 हक-बक (थाना के सामने सूबेदार सिंह के हक-बक न चलतइन) (अमा॰18:12:1.28)
932 हकासल (भूख के गाँव सगरो बसल हे, देहे-देहे पियासल नदी हे । ऊ हकासल, तरासल, पियासल आउ तँवसल सदी-दर-सदी हे) (अमा॰14:1:1.4)
933 हगुआना (काका के बात सुन के रंगुआ माथा हगुआवे लगल) (अमा॰13:5:2.6)
934 हद (जब बरदास्त के हद हो गेल, तब कहलो हम्मर जाइज हे) (अमा॰15:20:1.2)
935 हनहनाना (मीरा हनहनाइत गली में निकलल आउ गरज के भीड़ तर जाके बोललन) (अमा॰17:8:2.23)
936 हमजोली (अमा॰18:11:2.9)
937 हमजोली (तीनो हमजोलिये हलन) (अमा॰18:8:1.28)
938 हमनी (अमा॰12:12:2.7; 15:5:1.1, 9:2.31)
939 हरखना (दरसक हरख के परफुल्लित हो गेलन) (अमा॰16:12:1.25)
940 हरदम्मे (~ डाँटिये के बात करऽ हलन) (अमा॰16:15:1.10)
941 हरदी (अमा॰7:15:2.24)
942 हरमेसे (अमा॰16:18:2.8)
943 हरिअर (तुलसी के पत्ता के गह-गह पीयर बाकि कचनार नियर ~ रंग के एगो तेल निकलऽ हे जेकरा से हवा सुध होवऽ हे) (अमा॰12:6:2.2)
944 हलका-फुलका (अमा॰16:16:1.28)
945 हलोराना, हलोरा जाना (सब खेलाड़ी चारो खाने चित्त हो गेलन । सब के पइसा हलोरा गेल ।) (अमा॰7:18:1.14)
946 हस्ती (हिन्दी साहित्य में भारत देश के महान हस्ती ... महाकवि आरसी प्रसाद सिंह) (अमा॰18:4:2.9)
947 हाँड़ी (हँड़िया ढुनढुनाना) (अमा॰11:8:1.21; 14:1:1.5)
948 हाथ-गोड़ (अमा॰7:17:2.21; 12:10:2.34)
949 हाथा-बाही (एही सब बतकही में बात बढ़ गेल । मामला ~ पर आ गेल ।) (अमा॰9:10:1.24-25)
950 हिकारत (~ के नजर से देखना) (जमुना जी अप्पन गरूर के रंग में जमील के एकदम्मे हिकारत के नजर से देखऽ हलन बाकि जमील हिम्मत हारे वला अदमी हल नञ) (अमा॰16:15:2.3)
951 हिगरे-हिगरे (हम ऊँच-नीच बड़-छोट मिलके रहऽ ही इया हिगरे-हिगरे - एकर झलक में समाजिक सम्बन्ध देखल जाहे) (अमा॰13:12:2.13)
952 हिड़िस (कनखी मारित बिचरइ निरदंद हिए हिड़िस अथोर) (अमा॰15:1:1.10)
953 हिरदय (अमा॰16:14:1.7, 2.19)
954 हिसबिया (= गणितज्ञ) (महान हिसबिया आर्यभट के जन्मभूमि हे पाटलिपुत्र) (अमा॰16:10:1.1)
955 हुमाद (= हुमाध, समिधा)(शुद्ध घीउ से सनायल ~ के गंध; पति के अरथी के साथ हाथ में ~ के ढकनी लेले सावित्री के चलइत देख लोग दंग रह गेलन) (अमा॰9:9:2.24; 10:9:1.1, 9, 14; 17:9:2.1)
956 हेराना, हेरा जाना (लड़की ... जइसे जइसे ~ होवऽ हे, माय-बाप के नींद हेरा जाहे) (अमा॰7:13:2.10)
957 होशियार (अमा॰14:9:1.13; 15:10:2.6)

Thursday, February 18, 2010

14. ढेलमरवा बाबा

कहानीकार - मुनिलाल सिन्हा, ग्राम-माछिल, डाक-पाई बिगहा, जिला-जहानाबाद

ई तो जानल बात हे कि हमरा हीं तेतीस करोड़ देवी-देवता के कल्पना करल गेल हे । एकरा में सूरज देव से लेके अग्नि, जल, पवन, अन्न आउ अइसने सब चीज हथ, जे मनुष्य के कोई तरह से रच्छा आउ भलाई में लगल रहऽ हथ । भय से रच्छा के कल्पना करिए के देवी-देवता के कल्पना करल गेल हे ।

शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।

ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।

खैर, ई सब के भोजन आउ खान-पान में तो कोई विशेषता न हे कि जेकरा चलावे के जरूरत पड़े । बाकि हँ, हमरा हीं एगो देवता हथ, जिनकर भोजन एगो विचित्र चीज हे । ई देवता हथ ढेलमरवा बाबा जी । से इनकर भूख मिटऽ हे दू चार ढेला खाय पर । इनकर स्थान हे सड़क के बगल में इया अहरा-पइन के पीठ पर जहाँ रहगीर के आवे जाय के आम रास्ता हे । त जे गेलन सेहि इनका एक ढेला देइए के आगे बढ़लन । अगर न देतन आउ इनका बिना ढेला मारले आगे बढ़ गेलन, तो फिन जयबऽ कहाँ ? ई आझ इया कल्ह एकर बदला लेइए के छोड़तन, काहे कि भूखले रह गेलन । ढेले इनकर भोजन आउ नाश्ता हे आउ एही न मिलल, त ई अब खा हथ कउची ? ढेले खा हथ आउ ऊ बिना ढेले देले चल गेलन त आझ न कल्ह उनका तो कुफल मिलवे करतइन ।

ढेलमरवा बाबा छेमा भी कइसे कर सकऽ हथ ? इनकर पावने शक्ति एतना न तेज हे कि मत कहऽ ! एही से तो ऊ आम रास्ता पर अप्पन आसन जमौले हथ कि हजार-पान सौ ढेला रोज मिल जात, त चलऽ अप्पन भूखल लहालोट मिजाज एकदम शांत हो जात । स्थिर होके रात में सुत गेलन आउ तीन बजे से मोसाफिर भाई के आवे के बाट जोहे लगलन । अब अइसन भूखल-छछनइत आउ पित-पिताल हालत में इनकर भूख के नजर-अंदाज करके जे गुजरे के जुर्रत करतन त उनका इया उनकर बाल-बच्चा के दूसरे दिन परेशान कर न देतन ?

हम्मर घर से पच्छिम एक किलोमीटर के दूरी पर एगो बड़का लहरा के पिण्ड पर ई बाबा के स्थान हे, जहाँ ढेला के एगो छोटा पहाड़े खड़ा हे ।

हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला । खूब कुस्ती भी होवऽ हे आउ कीर्तन आउ होली भी होवऽ हे । सब सामान बिकऽ हे । औरत-मरद से तो मारे देह छीला हे । माने चूँटी ससरे के इया तिल रखे के भी जगह न रहे ।

एक बार के बात हे कि ओही मेला में जाइत घड़ी जब अहरा पर चढ़ली हे त नजदीक में पहुँचे पर देखली कि दूगो महिला ओजउने बाबा के एक-एक ढेला मारलन । फिन एक औरत अप्पन साल भर के लइका के हाथ में एगो ढेला धरा के गोदी में लेलहीं कहलक - 'बाबू रे ! इनका पर फेंक द ढेला ! ई ढेलमरवा बाबा जी हथिन ।'

ढेला बुतरू से उनका पर फेंकवा देलन । बाबा के भोजन हो गेल । औरत कह रहलन हे - 'इया ढेलमरवा बाबा जी ! एकरा अपने नियन अजड़-अमर कर देहूँ कि हम्मर बाबू के अंगुरी भी न पिराय ।'

एकर बाद तीन आदमी जे हमरा से आगे-आगे जा रहलन हल, ओकरा में से दू गो नवयुवक एक-एक ढेला बाबा के मारलन । एकर बाद जब न रहल गेल तब चालीस इया पैतालीस के जे हलन से एक ढेला बगल से उठा के बाबा के कचाक से मार देलन । उनका साथे वाला एगो लइका पूछ देलक - अपने भी ई सब के मानऽ ही ? हमनिए नियन अपने भी अईंटा ढेला चलावऽ ही ?'

उनकर जवाब हल - 'हँ जी, पढ़ लिख जाय से हम का अप्पन पूर्वज से भी बढ़ गेली कि उनकर चलावल प्रथा छोड़ देईं ? का जानी का समझ के हमनी के पूर्वज ई सब चला देलन हे । हम छोड़ीं काहे ?'

हमहूँ ओखनिए के पीछे-पीछे चलल जाइत हली । हमरा से न रहल गेल, से उनका से परिचय पूछ बइठली - 'अपने के कहाँ मकान हे बाबू साहेब ?'

जवाब देलन - 'मकान हे नालन्दा के खण्डहर के बगले एगो गाँव में ।'
'अपने कहूँ बाहर रहऽ ही ?'
'हँ, रहऽ हियो कलकत्ता । उहईं एगो महाविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग में प्रोफेसर हियो । ई लइकन हमरे शिष्य आउ सम्बन्धी हथुन ।'

एतना सुनइते हम तो एकदम गुम हो गेली । बतावऽ, ई एगो प्रोफेसर हथ । कलकत्ता महानगर में रहऽ हथ आउ आधा उमर भी बीत गेलइन । न तो ई कलकत्ता के संस्कृति आउ सभ्यता से कुछ सीखलन, न नालन्दा के पुरनका इतिहास के इनका पर कोई असर भेल । न अप्पन उमर से कुछ सीखलन आउ न आझ के विज्ञान के युग से कोई सीख लेलन । संसार जब मंगल ग्रह पर जाय के तइयारी कर रहल हे, त ई नालन्दा के कोख में पैदा लेके देहात के ढेलमरवा बाबा जी पर ढेला फेंक के अप्पन अमरता के वरदान ला घिघियाइत चलइत हथन ।

अइसने एगो खगोल विद्या के प्रोफेसर हलन । वर्ग में लइकन के पढ़ावऽ हलन कि पृथ्वी आउ सूर्य के बीच में चन्द्रमा के पड़ जाय से सूर्यग्रहण लगऽ हे । आउ जब घरे आवऽ हलन त सूर्यग्रहण लगे पर जल्दी-जल्दी स्नान करके दरब आउ जौ छू के दान करऽ हलन जे में जल्दी से जल्दी सूर्य देव राहू से मुक्त हो जाथ ।

त ई तो हे विज्ञान के युग । ई केकरो प्रतीक्षा में ठहरल थोड़े रहत ? समय आउ ज्वार कोई के प्रतीक्षा कयलक हे ? ऊ तो भाटा बन के घसकिए जात, आगे सरकिए जात । छूट जायम से हमनी न ! लोग जयतन मंगल पर त हम हिअईं से गोड़ लाग लेम - 'दोहाई मंगल देव के, हमरा आउ हम्मर बाल-बच्चा के उहईं रह के मंगल करिहऽ !

एही सब सोचइते आउ छौ-पाँच करइते 'कोचामठ' पहुँच के ओकर रंगारंग प्रोग्राम में एकदम से रंग गेली ।


[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-३, अंक-४, अप्रैल १९९७, पृ॰१३-१४ से साभार]

Wednesday, February 17, 2010

13. अनपढ़ के अनुवाद

लघुकथाकार - अरुण कुमार सिन्हा

हाकिम अप्पन चपरासी से बोललन - 'भीखू, अभी बहिरसिये जाके बइठऽ ।'
भीखू पूछलक - 'की बात हे, हुजूर ?'
हाकिम बतइलका - 'राम बाबू अभिये आवे वला हथ । हुनखे से हमरा 'कनफिडेंशियल' बात करे के हे ।'
भीखू जब बहिरसी इकसल त कलुआ चपरासी टोक देलक - 'आझ जलदिये बहिरा गेलें, भीखू ! हाकिम नञ हथुन की ?'
भीखू बतइलक - 'बात ई नञ हे, कल्लू भाय ! हाकिम तो आल हथ । राम बाबू नेताजी आवे वला हथ । हाकिम के हुनखे से 'कनफुसियल' बात करे के हे ।'
भीखू के अंगरेजी बोले न अइलइ बाकि ओकर मगही अनुवाद करे से कलुआ चपरासी के ओतना बात समझ में आ गेल जेतना हाकिम समझावल चाहऽ हलथिन ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-३, अंक-३, मार्च १९९७, पृ॰१८ से साभार]

Tuesday, February 16, 2010

32. मगही मंडप की बैठक में भाषा के प्रचार-प्रसार पर जोर

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_6158263.html

04 Feb 2010, 09:59 pm

शेखपुरा: मगही भाषा के विकास की रूपरेखा तय करने के लिए स्थानीय राजो सिंह सेवा सदन में अखिल भारतीय मगही मंडप की शेखपुरा जिला शाखा ने बैठक की। बैठक की अध्यक्षता मंडप के जिलाध्यक्ष रामचन्द्र ने की। बैठक में क्षेत्र के मगही रचनाकारों डा. किरण कुमारी, जयराम देवशपुरी, परमेश्वरी, अमर सहित अन्य ने भाग लिया। बैठक की जानकारी देते हुए अध्यक्ष रामचन्द्र ने बताया कि जमीनी स्तर पर मगही भाषा को महत्व देने के लिए मगही रचनाकारों का सम्मेलन प्रखंड स्तर पर आयोजित करना जरूरी है। इसके अलावा मगही भाषा की त्रैमासिक पत्रिका सारथी का प्रसार बढ़ाने पर विचार विमर्श किया गया है। बैठक में प्रस्ताव पारित कर मगही कथाकार मिथिलेश को सजल स्मृति न्यास समिति द्वारा सम्मानित करने पर समिति के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया। रामचन्द्र ने बताया कि मगही साहित्यकारों तथा रचनाकारों को मंच उपलब्ध कराने के लिए प्रखंड तथा पंचायत स्तर पर सम्मेलन व गोष्ठी आयोजित की जायेगी।

Sunday, February 14, 2010

13. पहलमान जी के टील्हा

कहानीकार - वीर प्रकाश 'आनन्द', ग्राम-साहबेगपुर, पो॰-चिन्तामनचक, मोकामा, जिला- पटना-८०३ ३०२


गाँव के बीचोबीच जे परती जमीन हे ऊ 'पहलमान जी के टील्हा' नाम से परसिद्ध हे । जब भी हम टील्हा के पास से गुजरऽ ही, पहलमान जी के करतूत बरबस इयाद आ जाहे ।

आज से बीस बच्छर पहिले के बात हे, जब ऊ टील्हा पर पहलमान जी के पूरब मुँह के खपड़ैल मकान हल । घर के आगे गाय, भइंस आउ बैल के कतार कइसन सोभऽ हल । बथान के बगले में हल लमहर-चौड़गर अखाड़ा जेकरा में फरीच होवइते पहलमान जी दुन्नू भाय गाँव के लड़कन के कुश्ती लड़ावो हलन ।

कन्त का आउ कलेसर का दुन्नू अप्पन सहोदर भाय हलन । इलाका में दुन्नू भाय के पहलमानी के डंका बजऽ हल । अइसन कहल जाय कि दुन्नू भाइये एक-दोसर के जोड़ हलन पाँच-सात कोस तक । गाँव के बड़ी नाज हल उनका दुन्नू भाय पर । का मजाल कि दोसर गाँव के लोग ई गाँव के लोग से टेढ़ी बतियाय ।

गाँव के दक्खिन आम के गाछी में जब डंका बज जा हल, बड़ी दूर-दूर से पहलमान कुश्ती लड़े आवऽ हलन आउ दरसक तो मधुमक्खी के छत्ता नियन उड़ जा हल । चाह-पान, कचउड़ी-फुलउड़ी के दोकान सज जा हल । मेला जइसन हुजूम दिनों भर लगल रहो हल ।

कुश्ती लड़ेवला के दू दल बन जा हल - एक दल कन्त का के आउ दोसर कलेसर का के । दुन्नू बिचमान बन जा हलन । पहिले छोट-छोट नवसिखुआ लड़कन के कुश्ती सुरू होवऽ हल, तब बड़का के ।

अलबत्ता डंका बजावो हल रजाक मियाँ । डंका बजावे में ऊ अप्पन जोड़ अपने हल सउँसे इलाका में । ओकर डंका के चोट से नस फड़के लगो हल ।

आज फिन दंगल लगल हे । दिन भर कुश्ती चलइत रहल । कोय पटकऽ हल त कोय पटका हल । कोय-कोय जोड़ी बराबरे पर छूट जा हल । उमड़ल भीड़ 'वाह ! वाह !' के गोहार करो लगऽ हल । अइसे तऽ सब कुश्ती देखबे करऽ हल, मुदा जब तक कन्त का आउ कनेसर का के कुश्ती नञ जमऽ हल, दरसक के संतोख नञ होवऽ हल । जब साँझ होवे लगल तब दरसक निरास होके दुन्नू भाय के कुश्ती लड़े के उकसावे लगलन । मुदा दुन्नू भाय थिर होके मुसकाइत दोसरके दोसरके पहलमान के लड़ावइत रहलन ।

अब दीया-बत्ती के बेला होवे लगल । आखरी जोड़ी लड़े खातिर बाकी रहल । दरसक एकदम निरुत्साह हो गेलन कि अब दुन्नू भाय के कुश्ती देखे ले नञ मिलत । इहे बीच अन्तिम जोड़ी अखाड़ा में उतरल । दुन्नू उछलल-कूदल आउ अप्पन-हप्पन ओस्ताद के गोड़ छूलक । दुन्नू भाय अप्पन-अप्पन चेला के पीठ ठोक देलकन । बस ! दुन्नू पट्ठा जवान छुट्टा साँढ़ जइसन फुफकारो लगल, मुदा दुन्नू के पैतरा खाली पड़ जा हल ।

कन्त का आउ कनेसर का दुन्नू अप्पन-अप्पन चेला के साथे-साथे नाच रहला हे आउ दाँव-पेंच बता-बताको 'वाह बेटा ! वाह ! वाह ! चाबस ! चाबस !' चिल्ला रहला हे । मुदा दुन्नू जवान एक दोसर के चित्त नहिएँ कैलक ।

आखिर में कनेसर का से नञ रहल गेल । ऊ कन्त का के चेला के सहजे लंघी मार देलन । ऊ जवान धायँ से गिर गेल । दोसर जवान फौरन ओकरा धर दबोचलक आउ चित्त करे के कोसिस करे लगल । कनेसर का चिल्लैलन - 'वाह बेटा छटाँकी !'

मुदा कन्त का के आँख गोस्सा से लाल हो गेल । ऊ कनेसर का के लंघी मारते देख लेलका हल । ई बात ऊ कइसे बरदास्त करतन हल । सिंह नियर दहाड़को कनेसर का पर बिगड़ गेलन - 'सरासर बेईमानी ! तूँ हम्मर चेला के लंघी मार देलें ।'

एतना कह के ऊ भी छटाँकी के टेना पकड़ के अइसन दाँव मारलन कि छटाँकी चारो खाने चित्त आउ कन्त का के चेला छुट्टन ओकर छाती पर चढ़ बइठल । कन्त का चिंघाड़लन - 'चाबस बेटा ! चाबस !'

बस ! कनेसर का के पारा गरम भे गेल । लाल-लाल आँख करके बोललन - 'अइसनो बेईमानी !' ऊ कन्त का के ललकार के बोललन - 'अगर एतने तोरा अप्पन ताकत पर भरोसा हे तऽ एक हाथ हमरा से फरिया लऽ ।'

ललकार सुनके कन्त का भी गेहुँअन साँप जइसन फुफकार उठलन । ऊ अप्पन देह से धोती-कुर्ता उतार फेकलका आउ कच्छा कसके जाँघ पर ताल ठोक के बाँस भर उछल गेला । कनेसर का के भी जुम चढ़ गेल । ऊ भी कच्छा कसके ताल ठोकिए देलका । दुन्नू अप्पन-अप्पन पैतरा पर खड़ा हो गेलन । दरसक हरख के परफुल्लित हो गेलन आउ ताली बजा-बजा के बोले लगलन - 'अबकी असलिया कुश्ती देखे के मजा मिलत ।'

रजाक मियाँ के भी डंका बजावे के उमंग चढ़ गेल । डंका जोर-जोर से बोले लगल - 'भिर जा ... भिर जा ... भिर जा ...!' दुन्नू भाय भिर गेलन । एक दाँव मारे त दोसर झट से ओकरा काट दे । ई तरह से घंटों मल्ल-युद्ध होल, मुदा कुश्ती नहिएँ फरियाल । घाम-पसीना से तरबतर, जइसे दुन्नू गंगा नहा के अभी ऐलन हे । दुन्नू थक के चूर भे गेलन ।

अन्त में कन्त का अन्तिम दाँव काला जंग चलइलका । कनेसर का धम्म से धरती पर गिर गेला । दरसक उठ-उठ के चिल्लायल - 'अबकी कुश्ती फरिया गेल । कन्त का कनेसर का के पछाड़ देलन ।'

मुदा कनेसर का बिजुरी के फुर्ती से उठको ऐसन भितरौली दाँव मारलका कि कन्त का भी बेदाग फेंका गेलन । फिर दरसक 'वाह ! वाह !' करके चिल्लायल - 'आखिरी पेचदार हथिन कनेसर का भी । कइसे कन्त का के अलगण्ठ फेंक देलथिन ।'

दुन्नू में गुत्थम-गुत्थी होवे लगल । कभी कन्त का तर हो जाथ त कभी कनेसर का । भीड़ 'हो ! हो !' आउ 'वाह ! वाह !' करके एक-दोसर के सिर पर चढ़ो लगल आउ एक-दोसर के धकेला-धकेली करो लगल, ई देखे खातिर कि कइसे, केकरा, के चित्त करऽ हथ । पहिले हम देखूँ, त पहिले हम ।

इहे फेर में मार-पीट होवे लगल । भगदड़ मच गेल । अप्पन-अप्पन जान लेके सभे भागे लगलन । कन्त का आउ कनेसर का कुश्ती छोड़ के लाठी ले-ले के भाँजे लगलन । उनकर लाठी भाँजना तब थमल जब ऊ देखलन कि एक्को दरसक मैदान में नञ बचलन हे । आखिर में दुन्नू घरे चल अइलका ।

कन्त का आउ कनेसर का आजनम ब्रहमचारिये रहला । एकर पीछे भी एगो मजेदार कहानी हे । बात तब के हे जब उनका दुन्नू के अभी मोंछ के रेघे आल हल । एक दिन दुन्नू भाय पर बरतुहार ऐलन । दुन्नू गंगाजी में जाके ललकी मट्टी लगा-लगा के खूब देह चमकैलका आउ करुआ तेल अप्पन-अप्पन देह में चभोर लेलका । मलमल के कुर्ता-धोती सीट करके आउ आँख में सुरमा लगा के सुन्नर-सकलगर बन गेलन ।

दुन्नू के दूध पीये ले अलगे-अलगे भइंस हल । केकर भइंस जादे दूध करऽ हे ई खातिर आपा-आपी में दुन्नू भइंस के खूब खिलावऽ हलन । भइंस खिलावे के कम्पटिसन में भी एक दोसर के आगे रहइ ले नञ दे हलन । भइंस खिलावे के बेला हल । बरतुहार रहते अपने कइसे भइंस खिलैता हल । ई लेल सोमरा कहार के कह देलका कि दुन्नू भइंस के अच्छा से खिलैहा ।

लड़का के बरतुहार भिर बोलावल गेल । देखते के साथ बरतुहार रीझ गेलन । एतना घूमला पर भी ऐसन सोटल-साटल लड़का मिलना दुरलभ हे । ई सोच के ऊ दुन्नू भाय से नाम-गाम पूछे लगलन । दुन्नू लजाले-लजाल जवाब देते जाथिन ।

मुदा उनकर धियान भइंसे तरफ हल कि सोमरा बढ़िया से खिला रहल हे कि नञ ! कनेसर का के बुझाल कि सोमरा हम्मर भइंस के कम अनाज देलक हे । कन्त का के अन्देशा होल कि ऊ हम्मर भइंस के खल्ली कम देलक हे । बस की हल । कनेसर का सोमरा पर बिगड़ उठला आउ कन्त का के भइंस के नादी से सानी उठा-उठाके अप्पन भइंस के नादी में देवो लगलन ।

कन्त का के ई कइसे बरदास्त होइत हल । ऊ भी आँख लाल-पीयर कैले दउड़लन आउ कनेसर का के हाथ मचोड़े लगलन । बस की हल । दुन्नू में उठा-पटक होवे लगल । मजमा जुट गेल । मल्ल-युद्ध करते-करते दुन्नू के कुर्ता-धोती चिथनी-चिथनी भे गेलन आउ दुन्नू भाय हो गेलन एकदम नंगा ।

बरतुहार ई तमाशा देख के उठको चल देलक । गाँव के लोग पूछलक - 'आय । अपने जा रहली हे । लड़का पसन्द नञ पड़ल की ?'

बरतुहार जवाब देलखिन - 'हम बाली-सुग्रीव के बिआह के की करम ? ई तो बाते-बात में लड़कियो के मार देता ।'

ई बात के चरचा सउँसे इलाका में फैल गेल । तहिया से कोय बरतुहार उनकर दूरा पर नञ फटकल आउ दुन्नू भाय कुँआरे रह गेलन । वंश-वृक्ष सूख गेल । उनका दुन्नू के मरला पर घर ढह-ढनमना गेल । बचल-खुचल टील्हे उनकर इयाद दिलावे हे ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-२, अंक-१०, अक्टूबर १९९६, पृ॰११-१३ से साभार]

Friday, February 05, 2010

31. धन के अभाव में मगही रचनाएँ नहीं हो पातीं प्रकाशित

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_6160868.html

05 Feb 2010, 09:41 pm

बिहारशरीफ: स्थानीय रामचन्द्रपुर स्थित अप-टेक एजुकेशन के सभागार में शुक्रवार को अखिल भारतीय मगही मंडप के तत्त्वावधान में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष डा. किरण शर्मा ने कहा कि मगही साहित्यकारों के संकीर्ण दायरे में सिमट जाने के कारण मगही रचनाएँ लगभग अप्राप्य हैं। साहित्यकारों पर लक्ष्मी की कृपा नहीं होती है जिसके कारण उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ अप्रकाशित रह जाती हैं और जन सामान्य तक नहीं पहुँच पाती हैं। मंडप के सचिव उमेश प्रसाद ने कहा कि आज मगध की धरा में ही मगही उपेक्षित है। मगही बोलना-लिखना-पढ़ना हमारे लिए शर्म नहीं अपितु गौरव का विषय है। मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के वक्त मगही ही राजभाषा थी, लेकिन आज मगही बेजार हो रही है; अपने सपूतों को ढूँढ़ रही है। जननी, जन्मभूमि के साथ ही हम अपनी मातृभाषा का भी ऋण आजीवन ढोते हैं। जिस भाषा में हमारे संस्कार पल्लवित, पुष्पित हुए हैं, उसे कौन सजायेगा। इसलिए चिंतन व मनन करने की जरूरत है। इस अवसर पर जयनंदन शर्मा ने कहा कि मगही के अनमोल साहित्य (जो बख्तियार खिलजी के नापाक इरादे से राख हो चुके) की छटा आज भी यत्र-तत्र सर्वत्र बिखरी पड़ी है। उसे सहेजना है। इस धरोहर को भावी पीढ़ी को सौंपने का गुरुतर दायित्व आज की पीढ़ी पर है। उस दायित्व के निर्वाह के लिए तमाम साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और श्रद्धालुओं के सहयोग की आवश्यकता है। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के प्रबंधक एस.के. मुकेश ने किया। इस अवसर पर संस्थान के संजीव कुमार, कुमार शशि, रजनी, सुनिधि, रत्‍‌नम, सोनी, पूनम, मुन्ना सहित कई छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।