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Friday, October 28, 2011

73. मगही विकास को ले परिचर्चा



28 Oct 2011, 11:29 pm

हिसुआ (नवादा), निज प्रतिनिधि : मगही भाषा का व्यापक प्रचार प्रसार करने के लिए परिचर्चा का आयोजन किया गया। गुरुवार को नगर के आर्य समाज मंदिर में शब्द साधक मंच के तत्वावधान में आयोजित कवि सम्मेलन में उपस्थित कवियों व साहित्यकारों ने मगही भाषा के विकास के लिए कई सुझाव दिये। कवि दीनबंधु की अध्यक्षता में आयोजित सम्मेलन में मगही अकादमी के अध्यक्ष व मुख्य अतिथि उदय शंकर शर्मा, विशिष्ट अतिथि रामरतन सिंह रत्‍‌नाकरकवि परमेश्वरी को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उपस्थित कवियों ने एक से बढ़कर एक मगही गीत गाकर लोगों को ओतप्रोत कर दिया। मगही अकादमी के सदस्य उदय कुमार भारती ने अपने व्यंग्य वाण से सबको हँसाया।

Thursday, October 27, 2011

72. मगही साहित्य संगोष्ठी का आयोजन

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8408122.html
27 Oct 2011, 09:36 pm

वारिसलीगंज (नवादा) निज प्रतिनिधि : दीपावली के अवसर पर वारिसलीगंज प्रखंड के मकनपुर गाँव में साहित्यकार एवं पत्रकार राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में मगही में बाल साहित्य पर विचार किया गया और भाषा की समृद्धि के लिये लेखकीय क्षमता के विस्तार पर बल दिया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि उदय शंकर शर्मा अध्यक्ष बिहार मगही अकादमी के अलावे कवि परमेश्वरी, डा. संजय कुमार, कृष्ण कुमार भट्टा, बहादुरपुरी भी उपस्थित थे।


Sunday, October 23, 2011

71. कवि योगेश ने दी मगही भाषा को ऊँचाईः योगी आदित्यनाथ

जयंती समारोह


योगी आदित्यनाथ ने कहा, दिलों को छू लेने वाली भाषा है मगही, इसका इतिहास काफी समृद्ध

महाकवि योगेश की स्मृति में पुस्तकालय का शिलान्यास, कैलेंडर व पत्रिका का विमोचन

अथमलगोला | संवाद सूत्र

मगही हिन्दी भाषा का प्राण है । मगही सरल एवं दिलों को छू लेने वाली भाषा है । इसका इतिहास काफी समृद्ध है । महाकवि योगेश्वर प्रसाद सिंह ‘योगेश’ ने मगही भाषा को नई ऊंचाई प्रदान की। मगही को आठवीं अनसूची में शामिल करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ये बातें गोरखपुर के सांसद और गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने कहीं। मौका था नीरपुर गांव में आयोजित महाकवि योगेश जयंती और मगही दिवस समारोह का। सांसद ने लोक भाषाओं को आठवीं अनसूची में शामिल कराने की वकालत की। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं । यदि हम इन्हें पूरी तरह अपनाकर चलते तो भारत फिर विश्वगुरु होता। उन्होंने कहा कि कवि योगेश ने अपनी रचनाओं में समाज एवं राष्ट्र का बेहतर चित्रण किया है । उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में मगही को शामिल करने की मांग की। इस अवसर पर महाकवि योगेश की स्मृति में स्थापित होने वाले पुस्तकालय का शिलान्यास किया गया। साथ ही समारोह में कवि योगेश पर विशेष कैलेंडर और मगही पत्रिका ‘बंग मागधी’ का विमोचन भी किया गया। प्रदेश के सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह ने कहा कि मगही भाषा मगध का धरोहर है । इसे जन-जन तक पहुंचाना हम सबकी की नैतिक जिम्मेदारी है । उन्होंने मगही को आठवीं अनसूची में शामिल कराने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से हर संभव कोशिश करने का भरोसा दिया। पूर्व सांसद विजयकृष्ण ने दलीय भावना से ऊपर उठकर मगही भाषा के विकास में राजनीतिक दलों को मिल-जुल कर आवाज बुलंद करने का आह्वान कि या। उन्होंने कहा कि कवि योगेश की रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की क्षमता है । वह जीवनभर मगही के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित रहे । समारोह को स्वामी हरिनारायणानंद, विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, मगही अकादमी के अध्यक्ष उदयशंकर शर्मा, योगेश फाउंडे शन के सचिव एवं ब्लाक प्रमुख अनिल सिंह आदि ने भी संबोधित किया। कवि योगेश के पुत्र वरिष्ठ पत्रकार मृत्युंजय ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि समारोह का संचालन प्रो. साधुशरण सिंह ‘सुमन’ ने किया। लोक गायक राकेश उपाध्याय ने अपने गीतों से लोगों की वाहवाही लूटी। योगेश फाउंडे शन के सुबोध सिंह राणा, उदय सिंह , पैक्स अध्यक्ष संतोष सिंह भी मौजूद रहे ।

मनोज तिवारी के गीतों पर झूमे

भोजपुरी फिल्म स्टार मनोज तिवारी ने जब ‘सुखवा दु:खवा पहाड़ वाली मइया पर छोड़ दिहली, अप्पन किस्मत के कनेक्शन उनसे जोड़ लिहली’ गीत की प्रस्तुति की, तो माहौल भक्तिमय हो उठा। मनोज तिवारी के गीतों पर लोग झूम उठे । उन्होंने दो नवंबर को रिलीज होने वाली अपनी फिल्म ‘इंसाफ’ का भी एक गीत सुनाया। श्री तिवारी ने कहा कि योगेशजी मगही भाषा के विकास के प्रति जीवन भर समर्पित थे। उन्होंने कहा कि बिहार के मगध क्षेत्र की पहचान मगही ही है ।

भोजपुरी एवं मगही भाषा सगी बहन

बाढ़ । भोजपुरी और मगही सगी बहनें हैं । दोनों को आठवीं अनुसूची में शामिल करना वर्तमान परिवेश में जरूरी है । ये बातें गायक और नायक मनोज तिवारी ने रविवार को हिन्दुस्तान के साथ निरपुर गांव में आयोजित समारोह में कही । भोजपुरी गायक मनोज तिवारी ने कहा कि मगध क्षेत्र का इतिहास गवाह है कि गया में मोक्ष की प्राप्ति होती है । उन्होंने बताया के भोजपुरी के बाद श्रोताओं के लिये वह मगही में गाना गाने की तैयारी कर रहे हैं । जल्द ही एक दो गाने या एलबम मगही भाषा में होगा। अभिनेता मनोज तिवारी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है । सरकार प्रदेश में मगही, अंगिका सहित अन्य भाषाओं के विकास में तेजी लाकर संस्कृति को बचाने का काम करें । निसं

राजनीति ऐसी कि छूटती नही

बाढ़ । राजनीति ऐसा मर्ज है कि छुटता ही नहीं । यह नजारा निरपुर गांव मे आयोजित जयंती समारोह के दौरान नेताओं ने दिखा दिया । कवि योगेश की जयंती पर पूर्व सांसद विजय कृष्ण ने गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ की सराहना करते हुए कहा कि वे आध्यात्मिक गुरु के साथ जानकार सांसद है । विजय कृष्ण ने मगही को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिये मंत्री रामाधार सिंह को पहल करने की नसीहत दी । मगही क्षेत्र से आने वाले विधायक मंत्री रामाधार सिंह ने 'हम मगहिया ही मगहिये बोलिये में बोलब' की कविता गाकर मगही भाषा में समारोह को संबोधित किया । पूर्व सांसद विजय कृष्ण ने भी मगही भाषा में समारोह को संबोधित किया । मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा सहित कई वक्ताओं ने समारोह को संबोधित किया। निसं





Saturday, October 15, 2011

1.03 जासूसी उपन्यास - "फैसला"


जासूसी उपन्यास - "फैसला"

मूल तमिल - पीकेप्रभाकर          कन्नड अनुवाद - बीआरशंकर       
कन्नड से मगही अनुवाद -  नारायण प्रसाद

उद्योगपति के लड़की से शादी करे के मनसूबा में अविनाश के अप्पन रस्ता में रोड़ा बन्नल प्रेयसी नन्दिनी से छुटकारा पावे ल निश्चय करे बखत मदद लगि सामने आल ओक्कर दोस्त के एक ठो एकान्त घर । ई एकान्त घर के पिछला हिस्सा में एक ठो कुआँ के अन्दर एगो लाश । समुद्री किनारे पर एक आउ लाश । ई दूनहूँ युवती के कतल के पुलिस आखिर पता लगइलक त कइसे ?

भाग-1
भाग-2
भाग-3

भाग-4
भाग-5
भाग-6

भाग-7
भाग-8
भाग-9

भाग-10
भाग-11
भाग-12

भाग-13
भाग-14
भाग-15

Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 15


- 15 -

दयाल के पूरे शरीर में नवचैतन्य भर गेल ।
“त्यागु की बोलल हल ? नन्दिनी ऊ दिन पेन्हलक हल नीला रंग के मिडि ! हीआँ .... नीला रंग के स्टिकर ... पहिले नन्दिनी के अप्पन प्रेयसी कहके सम्बोधित कइल अविनाश करोड़पति के एकलौती बेटी के साथ शादी ठीक हो गेला के तुरत्ते बाद नन्दिनी के खाली एगो परिचित कहऽ हके !”
अविनाश एगो वकील हइ । एकान्त घर । 14 तारीख के हीआँ आल ह । नन्दिनी के साथ । आउ ... आउ ओहे समय में भवानी के देखे ल मेनका आल ।

हुआँ की होल होत एरा बारे तर्क के सहारे अनुमान लगाना दयाल लगि सम्भव हो गेल । बइठे के जगह से उठके ऊ बेडरूम जाके सूक्षमावलोकन कइलका । बाद में बाकी जगह में घूमके देखलका । घर के पिछुत्ती में अइला । देखलका । आउ ... बोलला -
“थोड़े स अपने के फोन इस्तेमाल कर रहलिये ह, सर ।”

पहिले अप्पन स्टेशन के फोन कइलका । इन्सपेक्टर के साथ चर्चा कइलका । अप्पन जनकारी में जे कुछ आल हल ऊ सब विस्तार से बतइलका । डॉग-स्क्वैड के फोन करके बाहर अइला आउ ऑटोचालक के वापस भेज देलका । पुलिस के कुत्ता आवे तक चन्द्रु आउ भवानी के देल बयान के लिखित रूप देलका । फिर बोलला ।

“मिस्टर चन्द्रु, तोहर दोस्त महा घोर कृत्य कइलक होत अइसन हमरा लगऽ हइ । हम्मर अनुमान सही हइ कि गलत ऊ थोड़हीं समय के बाद पता चल जइतइ । तूँ अप्पन दोस्त के ऑफिस में फोन करके ओकरा हीआँ बोला ल ।”

भारत ऐण्ड भारत कम्पनी के चन्द्रु फोन कइलका त मालूम पड़लइ कि ऊ अभीये बाहर चल गेल ह । चन्द्रु ओक्कर घर पर फोन कइलका त मालूम चलल कि हुआँ अभी ऊ पहुँचल ह नयँ ।

ओहे समय में अविनाश आउ ओक्कर भावी पत्नी लता हँसते-हँसते होटल में खाना खा रहला हल । .... खाके बिल चुकाके बाहर अइतहीं लता बोलल - “हम अब चलऽ ही, लेट हो गेल ।”  फेर अप्पन कार में निकल गेल ।
अविनाश अप्पन कार में अइसहीं मीनाम्बक्कम् जाके हुआँ चन्द्रु से मिलके आउ बात करके अप्पन घर आवे के फैसला करके हुआँ से निकलल ।

आधा घंटा में भारतीनगर अइला पर ऊ दूर में चन्द्रु के घर के आगे पुलिस के तीन जीप से भरल आउ हुआँ लोग के चहल-पहल देखके अकचका गेल ।

कार के रोकके निच्चे उतरके सामने के अदमी के पूछलक - “ई की हइ, हुआँ ओतना अदमी के भीड़ ?”
“ऊ घर के कुआँ में एगो लड़की के लाश हलइ सर, कुत्ता सूँघके देखके पता लगइलकइ । लाश के बाहर निकालके रखलका ह । ऊ घर वला के दोस्त कोय अविनाश हइ । ओहे ई काम कइलक ह अइसन पुलिस वला बात कर रहला ह ।”

छूरी भोंक देवल गेल जइसे अविनाश के प्रतीत होल । पसीने-पसीने हो गेल । तुरत्ते अप्पन कार में बइठल । आवल दिशा में ही कार के मोड़के तेजी से भगइलक । ... दूर में एक ठो सार्वजनिक टेलिफोन से अहल्या के फोन कइलक ।

“अहल्या, हम वकील अविनाश बोल रहलियो ह । ऊ हत्या के केस में लगऽ हइ कि हम फँस गेलूँ हँ । हमरा साथ सहयोग करे के चलते तूँहूँ पकड़इमँ, अइसन लगऽ हउ । एक घंटे के अन्दर अप्पन घर के सब के बाहर भेज दे, तूँहूँ अप्पन सिर छिपा ले । दोसर कोय गाँव चल जो । ई केस के हम रफा-दफा कर दिहउ । बाद में हम्मर समाचार देला पर तूँ आ सकऽ हँ । ... एक आउ बात । अप्पन सेबास्टियन के जरी भेज दे । कल रात के हम्मर घर पर आके हमरा से भेंट करे ल कह दे ।”

“ठीक हइ । अपने गिरफ्तार हो गेलथिन हँ, साहब जी ?”
“अभी तक तो नयँ, लेकिन हो जाम, ई तो सच हइ । फिर भी उनकर वश में हमरा कुछ करते नयँ बनत !”
रिसीवर रखके कार भगइलक, अप्पन सीनियर के घर तरफ । ओक्कर सीनियर नामी क्रिमिनल लायर (आपराधिक वकील) बदरीनाथ ।
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वकील बदरीनाथ सिर के बाल में बीचोबीच माँग निकालले हला । अविनाश के आवे समय अप्पन घर में पियानो बजा रहला हल । भयभीत अन्दर आल अविनाश के देखलका । “कम माइ सन” - कहते मुसकइला ।
उनका अविनाश अलगे बेडरूम में बोलाके ले गेल । अप्पन अपराध के स्वीकार करके जल्दी-जल्दी पनरहे मिनट में अप्पन पूरा के पूरा कथा बिना कुछ छोड़ले उनका बता देलक ।

“अविनाश ? .... अविनाश ? .... तूँ ? .... तूँ दू-दू हत्या कइलँ ?”
“येस ! येस ! येस ! एक ठो तो प्लान करके कइलूँ । दोसर आकस्मिक । अभी अचरज करे के समय नयँ, सर । अब हम की करूँ ? हम एगो करोड़पति के दमाद बने वला हकूँ । ई केस से हमरा पार लगाथिन । अपने के फीस के रूप में पाँच लाख देवे ल तैयार हिअइ ।”
“पइसा के पहिले तुरी हमरा आकर्षण होलो ह । ई केस चैलेंजिंग हउ । हम्मर जुनियर पर वकालत करना एहे पहिला ... अच्छा, हम जे कुछ कहऽ हिअउ ओक्कर अच्छा से उत्तर दे । नन्दिनी आउ तोरा बीच प्यार के कोय मैटीरियल एविडेंस हउ ?”
“कुच्छो नयँ सर, कुछ नयँ हइ ।”
“तूँ दूनहूँ के एक साथ देखे वला खाली चन्द्रु हकउ न ?”
“हाँ ।”
“तोर मारुति कार 14 तारीख के वर्कशॉप में ही हलउ न ?”
“हाँ ।”

“14 तारीख के रात के तूँ आउ कोय दोस्त के साथ दारु पार्टी में हलँ, अइसन तोरा देखावे में बनतउ ?”
“बिलकुल बनतइ ।”
“अप्पन घर के चाभी चन्द्रु के तोर हाथ में देते समय ओक्कर पत्नी के सिवा आउ कोय देखे वला नयँ हलउ न ?”
“नयँ ।”
“चाभी लेके जाके चन्द्रु के देलकउ तोर चपरासी । तूँ अप्पन चपरासी के पइसा के बल पर अप्पन वश में कर सकँ हँ ?”
“सम्भव हइ । दस रुपय्या में भी काम करे वला अदमी हकइ ।”

“ई केस खतम होवे तक अहल्या मद्रास के अन्दर तो नयँ आवे वली ? ओकरा पुलिस के हाथ में पकड़ाय के सम्भावना तो नयँ न ?”
“नयँ आवे वली । ऊ महा खिलाड़ी हइ । कइएक तुरी ऊ अइसे सिर छिपाके रहल ह ।”
“तोर दोस्त के कार के चलइते तोर दोस्त में से कोय देखलक हल तो नयँ ?”
“नयँ ।”
“तोरा कार तोर दोस्त देलको हल न । ऊ कार तोरा देवे नयँ कइलको हल, अइसन कहलवाना सम्भव हउ ?”
“सम्भव हइ ।”

“अब बहुत मुख्य प्रश्न । तोर दोस्त चन्द्रु हउ न । ऊ अप्पन पत्नी के प्रेम से ई तोर आज के योजना में कहल जइसे सुन सकऽ हइ की ?”
“कोय भी होला से सुनहीं के चाही ।”
“तूँ सेबास्टियन के बारे बतयलँ न, ऊ अप्पन काम के बिलकुल ठीक से कर सकऽ हइ कीऽ ?”
“निश्चय ।”
“तोर अंगुरी के निशान पुलिस के हाथ में तो नयँ गेलो ह न ?”
“हाथ में हमेशे दस्ताना पेन्हले हलिअइ । ओहे से निशान मिल्ले के सम्भावना बिलकुल नयँ ।”

“अविनाश, त हम ई केस जीत लेलूँ । हुआँ पुलिस तैयार खड़ी होतउ । तोरा गिरफ्तार करतउ, वारण्ट देखाके । अइसन नयँ होतउ तइयो तोरा अडयार पुलिस स्टेशन बोलाके ले जइतउ । हमरा फोन करे के हके, अइसे कहके फोन कर । अगर तोरा फोन करे के मौका नयँ देतउ त तोर माय हमरा बोलाके सूचित कर सकऽ हथुन । त बताके हम हुआँ हाजिर हो जइबउ । कल क्रमबद्ध रूप से तोरा गिरफ्तार भी कइल जइतउ त जमानत देके हम छोड़ा लेबउ । बाकी इन्तज़ाम तूँ बाद में कर सकऽ हँ ।” - बदरीनाथ अप्पन पाइप जलाते कहलका ।
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अविनाश अप्पन घर आल त अपने लगि पुलिस के इन्तज़ार करते देखलक । पहिलहीं निश्चय कइल मोताबिक खुद के निरपराध बतइलक आउ बोलल - “चन्द्रु हमरा घर के चाभी देवे नयँ कइलक हल । हम केकरो से प्यार-व्यार नयँ कइलूँ । घटना घट्टल दिन हम अप्पन दोस्त के साथ पार्टी में हलूँ ।”
ओकरा अडयार पुलिस स्टेशन लेके गेल ।
पहिलहीं सूचित कइला के मोताबिक हुआँ हाजिर होके वकील बदरीनाथ इन्सपेक्टर के सामने कानून के प्वाइंट लेके अविनाश के छोड़ाके ले गेला ।

इन्सपेक्टर के सब-इन्सपेक्टर दयाल के खुद्दे देखावल सामर्थ्य देखके एक तरफ तो अचरज होल आउ दोसर तरफ गोस्सा  ।

कोचीन से आल मेनका के पति माधव के दयाल विस्तार से बित्तल घटना बतइलका । ऊ सिर पीटके रोवे लगल ।
“अन्त में हमरा पत्नी के मुँह भी देखे ल नयँ मिल्लल सर । लावारिस लाश नियन ओकरा जला देलक न, सर ।” - रोते-रोते हलकान हो गेल माधव ।
ओकरा ढाढ़स देके मेनका के मौसी के घर पर ले जाके छोड़के दयाल बीच-बीच में ओकरो सान्त्वना के दू शब्द बोलके अइला ।

नन्दिनी के माय आउ छोटका भाय से मिलके विवरण देके कुआँ से निकालल लाश के पोस्ट-मॉर्टम के बाद उनका सौंपे के इन्तज़ाम कर देलका ।
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दोसर दिन अविनाश के गिरफ्तारी वारण्ट के मोताबिक बाकायदा गिरफ्तार करके लॉक-अप में डाल देवल गेल । दूइये घंटा में जमानत के ऑर्डर लाके बदरीनाथ ओकरा लेके गेला ।

जे कुछ घट्टल ऊ सब देखके राजाराम के घृणा पैदा हो गेल ।

“मिस्टर दयाल, हम सब आरोप लगा रहलिये ह एगो वकील के ऊपर । ओक्कर पक्ष में वकालत कर रहला ह कानून पंडित बदरीनाथ । ऊ तरफ अहल्या अप्पन बोरिया-बिस्तर के साथ भाग गेल ह । ई हत्या करे वला अविनाश हइ, ई पारिस्थितिक प्रमाण (circumstantial evidence)  के अधार पर आउ चन्द्रु के बयान के बल पर विवाद कर रहलूँ हँ । लेकिन हत्या ल इस्तेमाल कइल औजार मिल्लल नयँ । एक्कर अंगुरी के निशान कहूँ मिल्लल नयँ । एक्कर कइल दून्नूँ हत्या के कोय भी चश्मदीद गवाह नयँ । ई केस रुक जात कि ई छूट जात ?”

“देखल जाय । एक्कर विरुद्ध आउ कोय सबूत ढूँढ़े के प्रयत्न कइल जाय । अभी तो चन्द्रु मुख्य गवाह हका ।” - दयाल बोलला ।
शेषगिरि कार में अप्पन भावी दमाद के खोजते दुखी होके दौड़के अइला ।
“की अविनाश, तोहरा गिरफ्तार करके जमानत पर छोड़ देलका, ई सुनके दौड़के अइलूँ ।”
“बाबू जी, हमरा आउ ई सब-इन्सपेक्टर दयाल के बीच में पहिलहीं से नयँ पट्टऽ हलइ । ताक में रहके इन्तज़ार कर रहल ई सब-इन्सपेक्टर हमरा ई हत्या के केस में फँसा देलक । अइसन कुछ नयँ हइ । ई केस के कोय अधार नयँ । जरूरत पड़ला पर अपने देखथिन” - निश्चिन्त होके अविनाश बोलल ।
अप्पन माय के सामने भी ओहे (पुरनका गढ़ल) कहानी सुनइलक
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सुनवाई शुरू होवे के एक दिन पहिले वला दिन । दूपहर के तीन बजे के समय । अविनाश घर जाके ओकरा से मिल्लल । जेतना तरह के दुष्ट विद्या होवऽ हइ ऊ सब के पचावल ई अदमी सेबास्टियन । ओकरा अविनाश कुछ बात बतइलक । जेतना पइसा माँगलक ओतना पइसा उँड़ेल देलक । “ठीक से बतावल बात के करके खतम कर ।” - कहके अविनाश अप्पन पोलरॉइड कैमरा ओक्कर हाथ में दे देलक ।

रात के सात बजे के समय । अप्पन स्कूटर पर ऑफिस से घर पर अइला चन्द्रु । घर पर ताला लग्गल देखके चौंक गेला । “ई समय में भवानी काहाँ चल गेल ?” - उनका अचरज होल ।

अचरज से खड़ा चन्द्रु के मुख के सामने चाभी के गुच्छा हिलइते देखाके हँस रहल हल सेबास्टियन । ‘चलथिन सर । अन्दर चलके बात कइल जाय ।’ घबराके अन्दर चलला चन्द्रु ।
“तूँ केऽ ? हम्मर घरवली काहाँ हके ?”
“बतावऽ हिअइ । कल अविनाश साहब के सुनवाई के पहिला दिन । अभियोग पक्ष के गवाह अपने हथिन । हुआँ अभी जइसे कहऽ हिअइ ओइसे कहथिन, मतलब घर में ताला लगाके चाभी अपने साथ लेके मुम्बई गेलूँ हल । एरा अविनाश के हाथ में नयँ सौंपलूँ हल । पुलिस सब-इन्सपेक्टर दयाल हमरा डरइलका हल । बाद में अविनाश साहब के चाभी देलूँ हल, अइसन हमरा से बयान लेवाके हम्मर सही करवाके चल गेला । अगर हम अइसे नयँ लिखके देतूँ हँल त ‘तोरा हम ई केस में फँसा देवउ, अइसे डरइला पर हम स्वीकृति दे देलूँ ।’ - मालूम पड़ गेलइ हम्मर कहल ?”

“ए चण्डाल, बिलकुल झूठ जइसन-तइसन जोड़के हमरा कहे ल बता रहलँ हँ कीऽ ?”
“हाँ, नयँ त तोहर घरवली के देह पर लाल-लाल निशान पड़ जात न । अभी तो ऊ हम्मर कस्टडी में हका न ... अपने के ऐक्सिडेंट हो गेले ह, अइसे कहके उनका पुकरलिअइ । डर के मारे दौड़के आ गेला । उनकर फोटो देखऽ ह ?”

सेबास्टियन भवानी के एक ठो खम्भा में बाँधके ओक्कर फोटो ले लेलक हल । ऊ फोटो चन्द्रु के देखइलक । अविनाश के देल कैमरा से सेबास्टियन ऊ फोटो खींचलक हल । फोटो वापस ले लेलक सेबास्टियन ।

“त हम अब चलऽ हिअइ । कल कोर्ट में जइसे गवाही देथिन, ओकरे मोताबिक अपने के घर वली के ऊपर अत्याचार करके ओकरा मौत देवे के चाही, कि अइसहीं मौत देवे के चाही, चाहे उनका बिना कुछ कइले अपने के सौंपे के चाही, ई हम फैसला करबइ । अच्छा तरह से सोचके निश्चय करथिन ।” - एतना कहके ऊ चल गेल ।
चन्द्रु ई तरह से खड़ा रह गेला जइसे पिशाच से मार खइलका ह ।
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दोसरे दिन न्यायालय में अपराधी स्थान में अविनाश खड़ा हल । चश्मा पेन्हले विख्यात न्यायाधीश । उनकर सामने प्लास्टिक ढक्कन से ढँक्कल लोटा में पानी ।
पब्लिक प्रोज़ेक्युटर (लोक अभियोजक) आरम्भ में ई मुकदमा के बारे परिचय देलका । बाद में डिफ़ेन्स (प्रतिपक्ष) के तरफ से बदरीनाथ उठला ।

“हम्मर मुवक्किल एक वकील हका । एम.ए.बी.एल. कइले हका । एक ठो बड़गर कम्पनी में कानूनी सलाहकार । एक भद्र व्यक्ति । उनका पर लगावल सब अभियोग के हम निराकरण कर देवइ । जइसे चाही ओइसे जोड़के ई केस में हम्मर मुवक्किल के फँसा देवल गेले हे । एक्कर पीछे सब-इन्सपेक्टर दयाल आउ हम्मर मुवक्किल के बीच रहल पुराना विरोध । एक तुरी सब-इन्सपेक्टर दयाल के बाइक के डिक्की हम्मर मुवक्किल अविनाश के कार से टूट गेल । ई आकस्मिक घटना । तब ऊ दूनहूँ के बीच में गरमागरमी हो गेल । हम्मर मुवक्किल एक वकील हका, ई कारण से थोड़े स दुरहंकार से उनका नराज़ कर देलका सब-इन्सपेक्टर । अन्त में सब-इन्सपेक्टर धमकी देले बोलला – ‘उचित समय में तोरा से बदला नयँ लेलिअउ त कहिहँ’ - एहे मन में गुर्रह रखले वास्तव में अपराधी के रूप में इनका पकड़के देखावे के चाही, अइसन प्रयत्न कइलका ह !”

बाद में बहस चालू होल ।

पहिला गवाह के रूप में चन्द्रु कटघड़ा में खड़ा होला । सामने खड़ा अविनाश के अइसे देखलका मानूँ ऊ ओकरा चबा जइता । बाद में ऊ लार घोंट लेलका ।

पब्लिक प्रोज़ेक्युटर उनका साम्प्रदायिक रूप से कुछ प्रश्न करके बाद में पूछलका - “मिस्टर चन्द्रु, मुम्बई जायके पहिले अप्पन घर के चाभी केक्कर हाथ में देके गेलथिन हँल ?”

चन्द्रु पल भर ल पीछे हट गेला ।
“केकरो हाथ में देलूँ नयँ । अप्पन घर के चाभी हमहीं साथ में लेके गेलूँ हँल ।”
दयाल चौंक गेला । अविनाश हँस पड़ल ।
“ठीक से सोचके बोलथिन सर । पुलिस के अप्पन देल बयान में अप्पन घर के चाभी कटघड़ा में खड़ा अविनाश के हाथ में देवे के बारे जनकारी देके अप्पन सही कइलथिन हल ।”
“ई तरह के बयान लिखके देलूँ नयँ, मतलब हमरो ई केस में फँसा देवे ल सब-इन्सपेक्टर धमकी देलका हल, सर । ओहे से लिखके दे देलिअइ !”
कोर्ट स्तब्ध हो गेल !
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सब-इन्सपेक्टर अप्पन घर में छत पर नज़र डालले बइठल हला ।
रिपोर्टर बालाजी उनका दिलासा देलका ।
“आज कानूनी काम करे वला के लक्षण अइसने हइ सर । ओहे हत्या कइलक ह, ई अच्छा से मालूम हइ । लेकिन आवल फैसला यथेष्ट प्रमाण के नयँ रहला से केस के रद्द कर देल गेल । अपने के सस्पेंड (निलम्बित) काहे नयँ कइल जाय, एरा बारे अपने सफाई देथिन, अइसन ‘कारण बताओ नोटिस’ देलका ह । केतना कष्ट अपने के होले ह ।  अन्त में ….”

दयाल गोस्सा से बोलला -
“बालाजी, ऊ कानून पंडित । ओहे एकरा असानी से चढ़के पार कर गेल । खुद निकल गेलूँ, अइसन सोच रहल ह । लेकिन ऊ कहूँ एक बरियार अधार से फिसलल होत । एरा हम बिना पता लगइले छोड़म नयँ ।”
“फेर एहे केस । ओकरा गिरफ्तार करके ओकरा दण्ड मिल्ले अइसन हालत बना देम कहे में हमरा तकलीफ होव हइ, सर । कल ओक्कर बियाह हइ । करोड़पति शेषगिरि के दमाद बन्ने वला हइ । ओकरा हिलावल नयँ जा सकऽ हइ !” - बालाजी के ई कहनी पर दयाल आवेश में आके बालाजी के मुँह देखलका
हो जइतइ बालाजी, हो जइतइ” - दयाल बोलला ।
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दोसरे दिन सुबह में ऊ बड़का गो मंगल कार्यालय । कार के भीड़ । अन्दर में बहुत सारा कुर्सी भरल - विवाह मण्डप में दमाद के रूप में अविनाश । साथ में लता । पुरोहित जी के  मंगलसूत्र हाथ में उठाते बखत --
आँधी नियर कहीं से दौड़ते आल ऊ अचानक अविनाश के गर्दन में पट्टी से पकड़के अप्पन कमर से बाहर निकालके दू बोतल पेट्रोल ओकरा पर उझल देलक । ओतना सब एक पल में घट गेल ।
“कोय हम्मर पास नयँ आवे” - चिल्लाके ऊ बोलल - “कुत्ते, तोरा बियाह करे के हउ ? एक्कर लायक भी हँ तूँ ? हत्यारा, कानून पढ़के तूँ जइसे मन करे ओइसे एकरा मोड़ रहलँ हँ, अनावश्यक रूप से एक स्त्री के विधवा होवे के नयँ चाही, ओहे से पहिलहीं तोरा ई दण्ड दे रहलियो ह । हम्मर पत्नी के जान मारला के साथ-साथ सुमंगली स्त्री के मंगलसूत्र तोड़के ओकरा वेश्या के रूप में देखाके लावारिस लाश नियर जलवा देलँ, चण्डाल कहीं के ! जे अग्नि के सामने तूँ विवाह करे के मनसूबा बाँध रहलँ हँ, ओहे अग्नि तोरा निंगल जाव !!”
पागल नियर चिल्लाके माधव अविनाश के विवाह मण्डप के सामने लहलहइते प्रज्वलित घी वला अग्निकुंड में ढकेल देलक । अग्नि ओकरा झट से जकड़ लेलक ।

फैसला - भाग 14


- 14 -

मीनाम्बक्कम् में मेनका के जाहाँ छोड़लक हल, ऊ जगह देखा देलक ।  मेन रोड से सटले भारतीनगर के जे फुट्टल रस्ता में ऊ लड़की के जाते देखलक हल ऊ रस्ता के जनकारी दे देलक ।

भारतीनगर अइते गेला । एक ठो दूकान के सामने में बाइक रोकके दयाल पूछलका –
“भारतीनगर एक्सटेंसन काहाँ हइ, भई ?”
“एहे तो एक्सटेंसन हइ, सर । हुआँ एक्के ठो घर हइ । बाकी सब खाली प्लॉट हकइ ।” 
“तूँ रस्ता देखावऽ ।”

बतावल रस्ता में बाइक बढ़इले दयाल ऊ एक्सटेंसन के पूरा रस्ता लाल मट्टी से भरल ध्यान में आल !! मेनका के साड़ी आउ पेटीकोट के किनारे में लाल मट्टी लगल खियाल में आल । ऊ ई रस्ता में निश्चित आल हल !
ऊ रस्ता के अन्त में खाली प्लॉट के बीच में चन्द्रु के घर देखाय देलक । एक्कर कँटेदार तार के बाहर बाइक रोकलका आउ उतर गेला ।

“तूँ हीएँ रहऽ भई” - दयाल बोलला । काठ के दरवाजा के सिटकिनी खोलके अन्दर जाके अचानक रुक गेला । हुआँ तार के काँटा पर ध्यान से नज़र डललका ।

ऊ काँटा पर छोट्टे गो बस्तर के टुकड़ा फँस्सल हलइ । ओक्कर रंग हलइ क्रीम ! .... बहुत परिश्रम से अंगुरी से अलगे करके देखलका । मेनका के पेन्हल साड़ी के किनारा थोड़े स फट्टल हल, ई खियाल में आल ।
“ई घर में 14 तारीख के मेनका के अप्पन सहेली से मिल्ले ल अइला पर कोय अनहोनी हो गेल ह ।”
दरवाजा पर के घंटी दबइते भवानी दरवाजा खोललका ।
अप्पन परिचय देके दयाल बइठ गेला ।
“अपने के नाम की अम्मा ?” - अराम से पुच्छे ल शुरू कइलका ।
“भवानी ।”
“परसूँ रात मायावरम् से मेनका नाम के अपने के सहेली अपने के घर पर अइला हल ?”
“परसूँ ? .... यू मीन (अपने के कहे के मतलब हइ) 14 तारीख के ?” - बीचे में बोलला चन्द्रु ।
“हाँ ।”
“हम सब 13 तारीख के साँझ के मुम्बई चल गेलिये हल ... अभी आधा घंटा पहिले वापस अइलिये ह !” - एतना बतइला के अलावे अप्पन लन्दन के यात्रा रद्द करे के विचार के बारे भी जनकारी देके पूछलका - “ह्वाट इज़ रौंग (कीऽ बात हइ), सर ?”
“मेनका मद्रास आल ह, ई बात भी हमरा मालूम नयँ ।  मेनका के कीऽ होले ह सर ?”- भवानी पूछलका ।
“14 तारीख के मेनका अपने से भेंट करे ल अकेल्ले अइला हल । आवे वला जगह में कुछ अनहोनी हो गेल ह । दोसरे दिन सुबह में उनकर लाश बेसेंटनगर के समुद्रतट पर हमरा मिल्लल ।”

“अय्यो ! मेनका के मौत हो गेलइ ?”
“अपने कीऽ कहऽ हथिन ?”
“मिस्टर चन्द्रु, अपने के मुम्बई जाके वापस आवे के बात सच तो हइ ? ई बात में कोय झूठ-वूठ तो नयँ ? सच-सच बात कइला पर ही अच्छा होतो ।”
“ई कीऽ सर ? अभी आ रहलिये ह, ई हम कहलिअइ न .... ठहरथिन !” - बोलके चन्द्रु अन्दर जाके विमान यात्रा करके वापस आवे के साक्षी के रूप में विमान टिकट देखइलका ।

“मुम्बई में अप्पन भौजी के घर ठहरलिये हल, पता दे हिअइ । फोन नम्बर दे हिअइ । अपने उनका साथ जे मन होवइ, ऊ बात पूछ सकऽ हथिन ।”
“ठीक हइ । अपने अप्पन घर के चाभी केकरो हाथ में देके गेलथिन हल ?”
“हाँ, अप्पन दोस्त अविनाश के पास देके गेलिये हल । ऊ भारत ऐण्ड भारत कम्पनी में कानूनी सलाहकार हका । दू दिन में एक तुरी आके घर के देखभाल करते रहऽ .... अइसन उनका कहलिये हल ।”
“अविनाश के चरित्र कइसन हइ ?”
“सज्जन व्यक्ति । करोड़पति शेषगिरि के लड़की के साथ शादी ठीक होले ह ।”
“अइसन कीऽ ? चौदह तारीख के अपने के दोस्त हीआँ अइला होत न ?”
“अइला हल कि नयँ, हमरा मालूम नयँ, सर । हम विस्तार से बात नयँ कर पइलिये ह । एयरपोर्ट से उनका फोन कइलिये हल । अप्पन चपरासी के हाथ से घर के चाभी भेजवइलका हल ।”
दयाल अपने आप हिसाब लगइलका ।

मेनका ई घर तक आल जरूर ! साड़ी, पेटीकोट के किनारे लाल मट्टी, अहाता के कँटेदार तार में साड़ी के टुकड़ा अटकल ह । ऑटोचालक के बयान से ई निश्चित हो जा हइ .... लेकिन बिना कोय सम्बन्ध के बेसेंटनगर में .... समुद्रतट पर ओक्कर लाश मिलना दिमाग खा रहल ह । पोस्ट-मॉर्टम के मोताबिक ओक्कर मौत रात के नौ-दस बजे के बीच होल ह । ऊ हत्या हीएँ काहे नयँ हो सकल होत ? आभूषण वगैरह ल हत्या नयँ होल, ई निश्चित लगऽ हके .... त फिर आउ कोय कारण से हत्या कइल गेल ? .... ऊ औरत पर बलात्कार भी नयँ होल ह, ई पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट से पता चलऽ हइ .... कहीं कोय अइसन चीज तो नयँ देख लेलक जे देखे के नयँ चाही हल .... ओकरा चलते ई दण्ड मिल्लल होत ?”

घटना जे सन्दर्भ में होल ओरा में अविनाश हल कि नयँ ई मालूम करे के चाही ।
“मिस्टर चन्द्रु, अपने के घर में रक्खल समान सब में कोय बदलाव देखाय तो नयँ दे हइ ? .... मतलब अपने के बाहर गेला के बाद अविनाश के आवे के कोय निशान के रूप में कुछ अन्तर देखाय दे हइ ? रक्खल वस्तु सब रक्खल जगह से अलग होल कुच्छो ?”
“फिर .... फिर !” - भवानी कुछ कहे के प्रयास कइलका ।
“ई कीऽ भवानी ? तोरा कुछ देखाय देलको ह त सर के बता दे !” - चन्द्रु बोलला ।

“हम्मर घर के बेडरूम में एक ठो नीला रंग के स्टिकर मिल्लल । आउ ... हम नीरार पर कुमकुम ही लगावऽ ही । हम्मर घर में हम दुन्नूँ के सिवाय आउ दोसर कोय नयँ । एरा सिवाय बिछावन पर बेडशीट थोड़े स सुक्खल हलइ । इनका ई बतावे के चाही, ई सोच रहलिये हल .... एतने में तूँ आ गेलऽ ।”

“कइसन बदमाश !” - चन्द्रु बोलला - “सर, अविनाश हम्मर दोस्त हइ, ई बात सच हइ । ई सच्चाई के छिपावे के जरूरत नयँ । ऊ थोड़े स हँसमुख टाइप के हइ । गप हाँकऽ हइ । औरत से सम्पर्क हइ । पापी !  हमरा चाभी देके गेला के नाजायज फयदा उठइलक, अइसन लगऽ हइ । ‘ई सब छोड़ दे’ अइसे ऊ दिन भी ओरा फोन पर बात करते बखत बतइलिये हल । एक दिन थियेटर में ओकरा एगो सुन्दर लड़की के साथ में देखलिये हल । ऊ केऽ हइ, ई पूछलिये हल । ओरा अप्पन प्रेयसी बतइलक हल ... ऊ दिन फोन पर बात करे बखत ‘ऊ खाली दोस्त हके’ अइसे बतइलक !”

“ऊ प्रेयसी के नाम कीऽ हइ, मालूम हको ?”
“शायद नन्दिनी नाम हइ ।”

दयाल के दिमाग में बिजली के संचार जइसन होल । ऊ दिन दूपहर के ऊ औरत आउ लड़का बतइलका हल न ? “नन्दिनी गायब हो गेल ह । अप्पन प्रेमी के साथ में शायद भाग गेल ह ।” .... ऊ भी 14 तारीख के साँझ से ही लापता होल ह ! आउ ओक्कर सुराग भी नयँ !
“मिस्टर चन्द्रु, थियेटर में देखल लड़की के फेर से देखला पर पहचान लेथिन ?”
“अवश्य ... अप्रतिम सुन्दरी ! ओतना असानी से भुलाय वला चेहरा नयँ ।”
त्यागु के देल फोटो के जेभी से बाहर निकालके दयाल पूछलका - “ई लड़की के देखके बताथिन !”
“एहे लड़की तो हइ !” - चन्द्रु उत्तेजित होके बोलला ।

फैसला - भाग 13


- 13 -

कम्पनी के काम में अविनाश लीन हल कि टेलिफोन के घंटी बज उठल ।
“हैलो, अविनाश हियर ।” - रिसीवर उठाके बोलल ।
“अविनाश, हम चन्द्रु बोल रहलियो ह ।”
“हाय, लंदन कब पहुँचलऽ ?”
“अविनाश, हम काहाँ से बात कर रहलियो ह, ई मालूम होला पर तोरा अचरज होतो !”
“काहाँ से बात कर रहलऽ ह ?”
“मद्रास एयरपोर्ट से !”
“ई कीऽ भई, बुतरखेल कर रहलऽ ह ?”
“नयँ भई, वास्तव में ! अभीये तो मुम्बई से आके विमान से उतरके अइलियो ह । उतरतहीं फोन कर रहलियो ह । लन्दन ट्रिप रद्द हो गेलइ ।”
“ई तो मालूम पड़ रहले ह न; लेकिन काहे ?”

“मुम्बई में अप्पन भौजी हीं दू दिन ठहरके आगे के यात्रा करबइ, अइसे तो बतइलियो हल न । कल लन्दन से फोन अइलइ । हम्मर दोस्त के एक ठो दुर्घटना में पैर जख्मी हो गेला से ऊ घरे पर हका । ‘एक महिन्ना के बाद अइला पर तोहरा साथ दे सकऽ हकियो ।’ - अइसन सूचना देलका । ऊ रहता त सगरो हमरा लेके जइता, ई सोचके धीरज रखके वापस चल अइलूँ । उनकर घर में अभी दुख-तकलीफ होला से हम सबके हुआँ जाके मजा उड़ाना ठीक नयँ, ओहे से ट्रिप कैंसिल कर देलिअइ ।”
“अइसन बात हइ ?” - अविनाश चिन्ताग्रस्त होके बोलल ।
“ठीक हइ । कल आ रहलियो ह । सब कुछ विस्तार से बात कइल जाय ।”

“तोर कहानी तो बहुत अच्छा हको !  ‘घर के चाभी तोरा पास छोड़के एयरपोर्ट से बात कर रहलियो ह ...’ । ओह, सॉरी ! .... एयरपोर्ट पर ही रहऽ । हम्मर ऑफिस पिऊन के हाथ में चाभी अभीये भेजवाके दे रहलियो ह । ऊ तोरा से भेंट कर लेतो । काहाँ खड़ा रहबऽ, ई ठीक-ठीक बतावऽ ।”
“हम कहूँ खड़ा रहे वला नयँ । टैक्सी से सीधे घर जाय वला । तूँ चाभी घर पर भेजावऽ । ओकरा आवे तक हम दरवाजे पर इन्तज़ार करते रहम ।”
“ओ.के. ।” - कहके अविनाश चिन्ता में डूब गेल । ‘आवे में बीस दिन लग जात’ कहके अचानक आके खड़ा हो गेल न !  ..... एरा से कीऽ ? ऊ कुआँ में उतरके बालू के खोदके देखत थोड़े ?”
घर के अन्दर कोय सुराग मिल्ले जइसन नयँ छोड़लूँ हँ ! .... फेर डर कौन बात के ?
तइयो अविनाश के दिल धड़-धड़ करे लगल ।
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दस मिनट में नटराज आ गेल ।
दयाल ओकरा पूछके मेनका के फोटो ओकरा देखइलका ।
“हाँ, एहे अम्मा सर ! कीऽ होलइ ? मौत कइसे हो गेलइ ? .... हाय बेचारी !  .... मेन रोड पर हम्मर ऑटो बिगड़के खड़ा हो गेलइ सर । ऊ अम्मा के कोय एक्सटेंसन में जायके हलइ ! ... हाँ ! ..... भारतीनगर एक्सटेंसन ! चलके जा अम्मा, ई कहके उनका उतारे पड़लइ । .... हम आउ कीऽ करतिये हल ? बताथिन ।”
“ऊ बखत केतना बजले होत ?”
“शायद आठ बज्जऽ होतइ ।”
“घर के नम्बर ऊ बतइलका हल ?”
“नयँ सर । हाथ में पता लिक्खल कागज पकड़ले हला ।”
“भारतीनगर एक्सटेंसन, ई तोरा ठीक से मालूम हको ?”
“हाँ सर । परसूँ रात चलके गेला हल न । एतने समय में कइसे भुल जइतइ ? लड़की के मौत कइसे हो गेलइ ? ई कीऽ हत्या हइ, सर ?”
ओकरा बिना उत्तर देले दयाल सोच में डूब गेला ।

ई केस छोड़के काम कर रहलऽ ह न ! ‘मीनाम्बक्कम्’ कहे वली अप्पन सहेली के नाम नयँ बता सकऽ हल ? ... साला ई भारतीनगर एक्सटेंसन कहला पर सब घर के सामने ड्योढ़ी पर जाके पुच्छे ल सम्भव हइ ?
ई जाय दे । रात में आठ बजे मीनाम्बक्कम् एक्सटेंसन में ठहरल मेनका बेसेंटनगर के समुद्रतट पर काहे ल आल ? कइसे आल ? ई ऑटोचालक तो मीनाम्बक्कम् जाय के बदले बेसेंटनगर के समुद्रतट पर ले जाके कहीं ओक्कर गला दबा देलक होत त ? अहल्या ग्रुप से जुड़ल तो कहीं नयँ ? ...
लेकिन एक्कर जवाब में झूठ नयँ देखाय दे हके । आँख में कोय कपट देखाय नयँ दे हके । अगर एहे होत हल त ऐसे ओरा ले जाय वला हमहीं हकूँ, ई मानत हल ?

“हम्मर बाइक के पीछे बइठ जा । हमरा साथे आवऽ । ऊ लड़की के काहाँ उतारलऽ हल, ऊ जगह देखाके तूँ वापस जा सकऽ ह ।” - दयाल बोलला ।
“ठीक हइ, सर ।” - कहके तुरत्ते बइठे ल तैयार ऊ रिक्शा वाला के कहलका - “ठहरऽ भई, तूँ अभी तक खाना नयँ खइलऽ ह ... तूँ खाना खा ल, हम इन्तज़ार करऽ हियो । दस मिनट में कुछ नयँ होवे वला । खाके आवऽ ।”

फैसला - भाग 12


- 12 -

माम्बल में ऊ फ्लैट के कॉल बेल दबाके दयाल इन्तज़ार में खाड़ा हला । मोटगर लुंगी आउ गंजी पेन्हले सुब्रह्मण्य दरवाज़ा खोललका । पुलिस के देखके अकचका गेला ।
“अपनहीं सुब्रह्मण्य हथिन ?”
“जी हाँ ।”
“हम्मर नाम दयाल, सब-इन्सपेक्टर । थोड़े स बात करे के हलइ ।”

अन्दर बइठला । रसोई घर से बाहर निकलल सुब्रह्मण्य के पत्नी अचरज से हुआँ अइला ।
“श्रीमती मेनका मायावरम् से मद्रास कब अइला हल ?”
“परसूँ सुबह । कब्बन एक्सप्रेस में आल हल । अच्छा से सोके माम्बल में बिना उतरले एगमोर में उतरके हुआँ से ऑटो करके आल हल ...... काहे ल पूछ रहलथिन हँ ?”
“बतावऽ हिअइ । साँझ के ऊ काहाँ गेला हल ?”
“बैंक के परीक्षा देके आल हल । खाना खइलक । बात करते रहल । सात बजे निकलके गेल । ‘मीनाम्बक्कम्’ में अप्पन सहेली से मिलके रात में उनके घर पर ठहरके सुबह मायावरम् चल जाम’ - अइसन बतइलक हल । हीआँ से जाय घड़ी एक ठो ऑटो में गेल ।”

“ओक्कर साथ में आउ कोय नयँ गेल ?”
“ ‘जरूरत नयँ, हम चल जाम’ - अइसे बोलल हल । बहुत साहसी लड़की हइ ।”
“ऑटो स्टैंड में जाके चढ़ला हल कीऽ ?”
“मालूम नयँ सर । कौन ऑटो चढ़ल, ई हमरा मालूम नयँ ।”
“आइ सी ....  मीनाम्बक्कम् में सहेली मतलब केऽ ?”
“ई भी मालूम नयँ सर । ‘सहेली’ एतना कहलक हल । हमहूँ पूछलिअइ नयँ । कल भी एहे बात कर रहलिये हल । ‘जमाना खराब हइ । मेनका के साथ जायके चाही हल’ - ई बात । अखबार में प्रमिला नाम के वेश्या के आभूषण के चलते हत्या हो गेल, ई खबर आल हल न । एकरा देखके एहे बात कहलिये हल ।”

“ई प्रमिला नयँ हइ, सर, बल्कि अपने के लड़की मेनका । .... ई फोटो देखथिन ।”
समुद्र तट पर पड़ल लाश के मुख पर क्लोज़-अप लेल फोटो अप्पन पैंट के जेभी से निकालके देखइलका ।
“अगे मायँ ।” - चिल्लइते सुब्रह्मण्य उठके खड़ा हो गेला, “ई तो हम्मर मेनका ही हइ, सर !  ई कीऽ हइ ? आँख अइसे .... “
“हत्या हो गेले ह !” - धीरे से दयाल बोलला ।
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“बइठके बतिआव अविनाश । अप्पन गोड़ में चक्का लगाके अइसे भागते रहे से कइसे काम चलतउ ?” - माय पूछलका ।
बाहर निकलहीं वला हल अविनाश । माय के पास बइठ गेल ।
“ले, बइठ गेलिअउ । बात कीऽ हउ, बता ।”
“तोर सस्सुर तीन मुहूर्त्त के दिन देखलथुन हँ । फोन पर बतइलथुन हँ । तोरा ओकरा में से कौन दिन अनुकूल होतउ, ई पूछलथुन हँ । तोरा कौन दिन पसन्द हउ, बता दे ।”

ओक्कर माय कागज पर नोट कइल दिन के तारीख देखइलका ।
जुलाई 27; अगस्त 14; अगस्त 25 ।

“ई सब कीऽ हइ माय ? आज 16 जुलाई । आज से एगारहे दिन में दिन देखलका ह । एतने में उनकर वश में हो जइतइ ? शादी मतलब केतना सारा काम होवऽ हइ, ई कीऽ खिस्सा हइ !”
“ऊ सब विचार तोरा काहे ल ? ‘चारे दिन में करऽ’ अइसन बतइलो पर लोग मदद करे वला हका उनका । धन बल हइ । तोरा 27 तारीख चल सकऽ हउ, त बोल । उनका हम सूचित कर दे हिअइ ।”

अविनाश सोचे लगल ।
“कइल दू-दू हत्या से पार पा गेलूँ हँ । ओकरा में पकड़ाय के चान्स नयँ । ... फिर भी शेषगिरि जी के दमाद बन्ने ल जेतना जल्दी सम्भव होवे, ओतने हमरा ल अच्छा । उनका ल बहुत गौरव के बात हइ । शादी होला के बाद ई सब भूत के अइला पर भी दमाद के छुटकारा नयँ मिल्ले वला केस के रफा-दफा कर देता ।”
“ठीक हउ माय, जुलाई 27 ..... हमरा मान्य हउ ।” - अविनाश बोलल ।

मेनका के मौसी के फ्लैट से उतरके दयाल ऊ रस्ता में खड़ा होके आसपास देखलका । थोड़हीं दूर पर एक ठो ऑटो स्टैंड हलइ । दस-पनरऽ ऑटो खड़ी हलइ । चालक सब एक जौर होके गप-शप में डुब्बल हला । एक अदमी राजकीय पत्रिका लेके जोर से पढ़ रहल हल ।

दयाल ऊ समूह के पास गेला । ऊ सब इनका देखलका ।  ऊपर उठइले लुंगी के कुछ लोग नीचे उतार लेलका ।
“हुआँ फ्लैट सब देखऽ हो ? हुआँ से परसूँ रात के एगो लड़की ऑटो में गेल हल । क्रीम कलर के साड़ी पेन्हले हलइ । एक्के ठो जूड़ा बाँधले । हाथ में करिया रंग के हैंडबैग । शादीशुदा लड़की । तोहन्हीं में से कोय ऊ लड़की के लेके गेलऽ हल ? अच्छा से सोचके उत्तर द । ऊ लड़की मीनाम्बक्कम् गेल हल । मतलब एयरपोर्ट हइ न, हुआँ से एक ठो घर तरफ ।” - दयाल एक तुरी गला ठीक करके पूछलका ।
चालक सब एक दोसरा के मुँह देखे लगला आउ सोचे लगला ।
“कहीं नटराज तो लड़की के लेके नयँ गेल हल ? ‘आधे रस्ता में ऑटो खराब हो गेल हल । ऊ लड़की के बहुत दूर तक पैदल जाय पड़लइ; बेचारी ...’ - अइसन बता रहल हल न !”
“हो सकऽ हइ सर । कौन फ्लैट से ऊ लड़की आल, ई तो हम सबके मालूम नयँ । अपने के बतावल जइसन साड़ी पेन्हके एगो लड़की अइले हल । लगऽ हइ, हाथ में बैग भी हलइ । हम्मर नटराज ओरा लेके गेले हल । ओकरा पूछला पर ठीक-ठीक बतइतइ ।”
“ऊ काहाँ हका ?”
“ग्राहक लेके गेले ह । अभी केतना समय होले ह ?”
“चार बजले ह ।”
“उनकर खाना के डब्बा हीएँ हइ । ऊ अभीयो खाना नयँ खइलका ह । ओहे से ऊ जरूर अइता ।”
अप्पन बाइक के खड़ा करके दयाल एरा से ओठंग के खड़ा-खड़ा सिगरेट पीते नटराज के इन्तज़ार करे लगला ।

फैसला - भाग 11


- 11 -

“अपने के की चाही ?” - दयाल पूछलका ।
“सर, हम्मर नाम त्यागु । ई हम्मर माय हथिन । हम्मर दीदी नन्दिनी माउण्ट रोड में के एक ठो टायर कम्पनी में काम करऽ हला । परसूँ रात के हमर दीदी घर पर नयँ अइला ह । उनकर सहेली सब के आउ ऑफिस में हम पूछलिये हल । ऊ सब में केकरो कुछ मालूम नयँ । कामराज एवेन्यू में हम सब रहऽ हिअइ ।” - त्यागु बोलल ।
ऊ सब के दयाल बइठे  ल कहलका । अराम से पूछलका । नन्दिनी के कम्पनी में खुद पुच्छल सब बात, ऊ दिन नन्दिनी के अप्पन कम्पनी में बिदाय समारोह के बारे सूचना देल बिलकुल झूठ हलइ, ई बात;  ई सब पर सोच-विचार कइला पर ऊ अप्पन प्रेमी के साथ भाग गेल होत, ई सन्देह के बारे बतइलक ।

शिकायत लिक्खे वला के बोलाके दयाल ओरा से एक ठो शिकायत लिक्खे ल कहलका ।
“अप्पन दीदी के फोटो लइलऽ ह त्यागु ?” - दयाल पूछलका ।
“लइलिये ह सर ।”

फोटो लेके देखलका । जवानी भरल चेहरा । आकर्षक आँख । ब्लैक ऐण्ड ह्वाइट (श्वेत-श्याम) फोटो में भी मन के खींच लेवे वला सुन्दर होंठ ।

“परसूँ मतलब 14 तारीख के न ?”
“जी सर ।”
“ऊ दिन तोहर दीदी कइसन ड्रेस पेन्हलका हल, मालूम हको ?”
“नीला रंग के तीन पीस ड्रेस पेन्हलका हल ।”
“तोहर शिकायत में ई बतावऽ, ऊ जे कम्पनी में काम करऽ हला ओक्कर पता, ओकरा में देखके ….. घर में कोय चिट्ठी-पत्तर लिखके रखलका ह, ई देखलऽ ह ?”
“अच्छा से ढूँढ़के देख लेलिये ह सर । ओक्कर कम्पनी के टेलिफोन ऑपरेटर के बतावल बात के अधार पर ओक्कर रूम के पूरा छान-बीन कर लेलिअइ । ओक्कर प्रेमी के कोय चिट्ठी, चाहे ओक्कर फोटो -- कुछ तो मिलत, लेकिन कुछ नयँ मिलल ।”

दयाल शान्त हो गेला ।
नन्दिनी के माय के दुख उमड़ पड़ला से ऊ बोलल - “हमरा हीआँ आवे के मन नयँ हल, सर । भाग के गेल लड़की के ढूँढ़े के जरूरत नयँ, अइसन हम गोस्सा से कह देलूँ । ऊ अप्पन खुशी ल गेल । एतना होला पर भी मन नयँ मानऽ हके । कहीं भी रहे, ऊ ठीक-ठाक रहे, बस । लेकिन ऊ कइसन हके, ई हमरा कीऽ मालूम नयँ होवे के चाही ? ओहे से हीआँ अइलूँ हँ ।”

“हम्मर वश में जेतना हको ओतना कोशिश करवो, अम्माजी । तूँ धीरज रखके होके आवऽ ।”
विस्तार से शिकायत लिखके देके त्यागु आउ ओक्कर माय बाहर जाते बखत ही मायावरम् से फोन आल ।
“सर, अपने के देल पता वला घर में ताला लगल हलइ । पड़ोस के घर में पूछलिअइ त बतइलका - ‘ऊ मेनका मद्रास गेला ह । कल वापस आवे ल बतइलका हल । लेकिन अइला नयँ । उनकर पति माधव यूनि सेंग्यो दवा कम्पनी में मेडिकल प्रतिनिधि हका । एक्कर सम्मेलन कोचीन में चल रहले ह । ऊ ओरा में भाग लेवे ल गेला ह । गेला तीन दिन हो गेल ह ।”
“आइ सी --- कोचीन में काहाँ ठहरला ह ?”
“पूछलिये हल । उनका ई बात मालूम नयँ । मद्रास में ओक्कर एक ठो शाखा हइ । हुआँ पूछला पर मालूम पड़तइ ।”
“थैंक यू “

टेलिफोन डायरेक्टरी उठाके दयाल ऊ दवा कम्पनी के नम्बर ढूँढ़लका । मिल्लल । ऊ कम्पनी से सम्पर्क कइलका । कोचीन में सम्मेलन चल रहले ह की, ई पूछलका । स्वप्न इंटरनेशनल होटल में सम्मेलन चल रहल ह, मायावरम् एरिया प्रतिनिधि सम्मेलन हॉल में मिलता, आउ सम्मेलन के ओहे अन्तिम दिन हइ एतना जानकारी देला के बाद होटल स्वप्न के फोन नम्बर भी देलका ।

तीस मिनट में कॉल मिलल ।

“हैलो, माधव बोल रहलिये ह; अपने केऽ बोल रहलथिन हँ ?”
“हम मद्रास अडयार पुलिस स्टेशन से बोल रहलिये ह ।”
“पुलिस स्टेशन से ?”
“हाँ, घबराथिन नयँ । मेनका अपने के वाइफ़ न ?”
“ओकरा कीऽ होले ह सर ?”
“कुछ नयँ । एक ठो छोट्टे गो दुर्घटना होले ह । अस्पताल में ऐडमिट हथुन । अपने हीआँ आ जाथिन, स्टेशन । ऊ हीआँ काहाँ ठहरला हल ?”
“अप्पन मौसी के घर पर, सर । किरपा करके बताथिन सर, ओकरा कीऽ होले ह ? मेजर ऐक्सिडेंट ? अभी होश में तो हइ ? माइ गॉड, ई कइसे होलइ ?”
“बिना घबरइले आवऽ मिस्टर माधव । ऐक्सिडेंट मतलब अप्रत्याशित, हइ कि नयँ ? अप्पन मौसी के पता बतावऽ ।”

माधव के बतावल पता दयाल नोट कइलका ।
“ऊ मद्रास काहे ल अइला हल ?”
विवरण देला के बाद माधव कहलका - “कोचीन से मद्रास एक रात के उड़ान हइ सर । कइसहूँ करके हुआँ आ जइबइ ।”

फोन रिसीवर के रखके दयाल उच्छ्वास लेलका ।
“केतना घबराहट ई अदमी के ! ‘ऐक्सिडेंट’ बस एतने मालूम होल ह । हीआँ आवे के बाद असलियत मालूम होला पर केतना तकलीफ होत ! प्रिय पत्नी से वियोग आउ ऊ भी एतना कम उमर में .... अन्याय ! चण्डाल ! ... मांगल्य सहित खतम करके ऊ महिला के वेश्या के स्थान देके अनाथ लाश जइसन जलाके ... एक्कर पीछे कोय भी रहे ओरा अइसहीं छोड़े के नयँ ! .... हम तो छोड़े वला नयँ !!”