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Sunday, October 14, 2012

75. मगही उपन्यास "फूल बहादुर" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



फूब॰ = "फूल बहादुर" (मगही उपन्यास) - जयनाथपति (1880-1940) ; प्रथम संस्करणः अप्रैल 1928;  दोसर संस्करणः अप्रैल 1974; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल,  पटना-5; मूल्य - 3 रुपइया; कुल 6 + 28 पृष्ठ । प्राप्ति-स्थानः बिहार मगही मंडल, V-34, विद्यापुरी, पटना-800 020 ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अध्या (= अध्याय), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

अकारान्त अक्षर के पूर्ण उच्चारण लगी मूल प्रति में हाइफन के प्रयोग कैल गेले ह, जइसे - "चलऽ" के बदले "च-ल" । सुविधा आउ तुलना खातिर आजकल प्रचलित अवग्रह चिह्न "ऽ" के ही प्रयोग ई सूची में देल जा रहले ह ।

कुल शब्द-संख्या : 360

ठेठ मगही शब्द ('' से '' तक) :  

182    तअजुज     (सिंघजी - ओहो बड़ा कम्मल ओढ़ के घी पिबैआ ।/ नवाब साहेब - (हंस के तअजुज से) से की ? /सिंघजी - चन्दन टीका खाली धोखा देवे के हे । ऐसे तो आझ कल के कचहरी से सरोकार रखवैआ जे चन्दन-टीका करे ओकरा में सैंकड़ा पीछू ९० के पक्का बेईमान और मोत्तफनी सम-झ ।)    (फूब॰5:19.21)
183    तखने (= उस क्षण, उस समय, तब)     (जे एकर पंच होता उ मगही भाषा जे तखने प्रचलित रहत ओकरा और और भासा के बराबर अलंकृत करे के कोसिस करता ।)    (फूब॰मुखबंध:2.26)
184    तबरी     (नवाब साहेब - तो फिर वोही तरकीब । अबरी हम ओकरा सुतले में चल आम । तबरी गलती हो गेल, हम सुतले रह गेलूं ।)    (फूब॰7:25.30)
185    तराह (= त्राहि; बचने या रक्षित रहने का भाव; परेशानी)     (सामलाल - तराह तराह करके बखत कटल । जब उ चल गेल तब निकललूं । बाकी बड़ी रात हो गेल तो ऊ नै आल ।)    (फूब॰6:22.19)
186    तरे-तरे (= अंदर-अंदर)     (बे समझे बोलला, कुछ समझलका तो नई बाकी तरे तरे मुसकला, ऊपर से एकदम गम्हीर रहला ।)    (फूब॰1:6.23)
187    तवाजा     (नवाब साहेब और सामलाल दुनुं उठ के बाहरे अइला और सबसे मिलला जुलला । सब बोलला के आझ पूरा तवाजा हमनी सब के होवे के चाही और हुजुर भी जा रहली हे, एकरे साथे रायबहादुरी के कर देवे के चाहिअन ।; सलाह होल के सहर भर में तवाजा कैल जाए और तब सामलाल बाबू सामसुन्दर प्रसाद मोखतार के, जे इ-सब में बड़ी आगू र-ह हला, दुकानदार और पान वाला के नाम से चिट्ठी देलका के जे जे चीज के जरूरत होवे द ।)    (फूब॰8:26.20, 27.3)
188    तहिना (=उस समय, उस दिन)     (बाबू हलधर सिंघ तहिना रात के जब बाबू सामलाल से एहलदे होला और डेरा दने चलला हल तो रास्ता में तरह तरह के खेआल उनका होबन ।)    (फूब॰5:18.1)
189    तु (= तूँ; तुम)     (नवाब - तु ऐसन खेयाल मत क-र । हमरा वजह से तोहरा कुछ नोकसान नै हो सको हो । बो-ल ।)    (फूब॰1:5.19; 2:7.31; 4:15.8, 16.16)
190    तुं (= तु, तूँ; तुम, आप)     (तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला ।)    (फूब॰2:7.31)
191    तूं (= तु, तुं, तूँ; तुम)     (बुढ़िया - मोखतार साहेब, तूं सब गारत कैला । तूं काहे ला हमरा हीं चोर ऐसन ऐला ।)    (फूब॰4:16.16)
192    तूं (= तुं, तु, तूँ; तुम, आप)     (तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला ।)    (फूब॰2:8.2)
193    तूल (~ खींचना)     (मामला तूल खींच गेल । सरकार से हुकुम भेल के दुनु अफसर के बारे में जांच कैल जाय औ बराडवे साहेब कमिसनर एकरा ले तैनात कैल गेला ।)    (फूब॰7:24.1)
194    तेकरा (= ओकरा; ~ से = ओकरा से; उससे)     (आवे के जहिना खबर हल सामलाल किउल स्टेसन एक रोज पहले तेकरा से पहुँच गेला और केलनर के हिआं चाय पानी के बन्दोबस्त कर देलका ।)    (फूब॰1:3.22)
195    तेकरे (~ से = ओकरे से, ओहे से; उसी कारण)     (सामलाल ऐला तो नवाब साहेब के सुस्त पैलका । कुछ समझ में न ऐलन के की बात हे । राते कामियाब नै होल तेकरे से तो सुस्त नै हथ !  बाकी इ-तो कोय काफी वजह नै हे ।)    (फूब॰6:21.5)
196    तों (= तु, तुं, तूँ; तुम)     (नसीबन - हमर कहने नै मा-न ह । ऊ कहलीओ के जरूर ऐतो । तों सामने चल जा दरवाजा से ।)    (फूब॰4:15.8)
197    तोरा (= तुम्हें, आपको)     (सामलाल - मालूम होवे-हे तोरा नवाब साहेब खुस नै क-र हथुन ।/ नसीबन - नै नै, से बात नै हे । आझ माफ क-र ।)    (फूब॰4:14.28)
198    तोहनी     (बूढ़ी - औ मोखतार ?/ सामलाल - अरे हमनी सब तो उनके गुलाम, तो तोहनी के की ?)    (फूब॰4:13.21)
199    तोहर     (नसीबन - हम तो बड़ी कोसिस क-र हिओ और उहो खुस हथुन बाकी क-ह हथुन के ऊपर वालन सब तो आएं-बाएं क-र हथ । तोहर दुसमन सब कुछ बखेड़ा लगा दे हथुन के क-ह हथुन के कौन काम कैलका, कौन जमींदार हथ, अट-पट ।; सामलाल - की कहिओ, बहुत बुरा बुरा तोहर सान में बोलल । क-ह हल कि आप बेइमान हे और दुसरा के बेइमान कहे-हे । हम देखवै अब जरूर । ऐसने-ऐसने बात ।)    (फूब॰4:14.13; 6:22.14)
200    तोहरा (= आपको)     (तु ऐसन खेयाल मत क-र । हमरा वजह से तोहरा कुछ नोकसान नै हो सको हो । बो-ल ।)    (फूब॰1:5.19)
201    थथमना     (नवाब साहेब बोलला (उर्दू में) - अपने के भी लाके द । / खानसामा - जे हुकुम । मोखतार साहेब चट से हाथ जोड़ के बोलला - (उर्दू में)  - माफ कैल जाए । खानसामा थथम गेल ।)    (फूब॰1:4.20)
202    दने (= तरफ, ओर)     (ई हमरा दने बहुत दिन से प्रचलित हे, हम एकरा लिखा रहलूं हे ।; बाबू हलधर सिंघ तहिना रात के जब बाबू सामलाल से एहलदे होला और डेरा दने चलला हल तो रास्ता में तरह तरह के खेआल उनका होबन ।; जिनखा पर हलधर बाबू के बड़ी भरोसा र-ह हल उनखा नवाब साहेब सेकरेटरीअट में अपन रिसतेमंद से कहसुन के सब-रजिस्ट्रार बहाल करा देवे के लालच देके अपना दने मिला लेलका ।; बे-कसूरी में एते भारी सजाए पावे से उनकर खेआल दिल से परमेस्वर दने होल ।)    (फूब॰मुखबंध:2.12; 5:18.2; 7:24.6, 18)
203    दबल (= दबा, दबा हुआ)     (लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे । दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.27)
204    दररना (नाक ~)     (सामलाल - अरे खोदा !  उ दिन रात के जे हुजुर नीसा में सूतल में ओकरा साथे जाके सुतला तो बिहान होके फेर हमरा तेरहो नीनान कैलक । पन्दरह दिन तक तो आना जाना बन्द कर देलक और फिर नाक दररते दररते हमरा मोसकिल हो गेल ।)    (फूब॰7:25.28)
205    दिलासा     (मोकामा में गाड़ी ठहरल और साम लाल उतरके डेवढ़ा में गेला और नसीबन के चलैलका बाकी नखड़ा करे लगल और बोले लगल के हलधर बाबू सुनता तो जान से मार देता । साम लाल बड़ी ओकरा दिलासा देलका और किरिआ खैलका बाकी उ नै उतरल ।)    (फूब॰2:8.24)
206    दुगमुगाना     (साम - (दुगमुगा के) अच्छा, तो अबरी टीसन में । बाकी कोई आदमी सेकिन अफसर के रहल तब ?)    (फूब॰2:8.13)
207    दुसे     (सामलाल - नै, सिंघजी के तो रसातल भेजल गेल हे । आझ बड़ा जा के कहलका-सुनलका हल बाकी दुसे आने चौकी कहीं पड़ल हे ?)    (फूब॰4:13.25)
208    देने (दे॰दने)     (फेर सामने बाहर के कमरा में, तो ओकरो में कोई नै मिललैन, फिर घुमला तो पैखाना देने नजर पड़लैन ।; सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत ।)    (फूब॰4:15.28, 16.10)
209    धुरताई (= धुरतई; धूर्तता)     (एकर काबिल तो उ जा-न हला के हम नै ही बाकी अपन धुरताई पर उनका भरोसा हल ।)    (फूब॰1:3.20)
210    धुरफंदी (= धुरतई; धूर्तता)     (आदमी होसियार हला और धुरफंदी । कुछ ऊंच-नीच तरीका से मोखतारकारी चला लेलका ।)    (फूब॰1:3.7)
211    नइ (= नै, नञँ, नञ्; न, नहीं)     (साम - हम नइ कह स-क ही ।)    (फूब॰1:6.7)
212    नई (= नहीं, न)     (बे समझे बोलला, कुछ समझलका तो नई बाकी तरे तरे मुसकला, ऊपर से एकदम गम्हीर रहला ।)    (फूब॰1:6.22)
213    नखड़ा     (मोकामा में गाड़ी ठहरल और साम लाल उतरके डेवढ़ा में गेला और नसीबन के चलैलका बाकी नखड़ा करे लगल और बोले लगल के हलधर बाबू सुनता तो जान से मार देता ।)    (फूब॰2:8.22)
214    नजिक (दे॰ नजीक)     (सामलाल नसीबन के नजिक जाके ओकरा हाथ पकड़ के उठैलका और बोलला - काहे बी ?)    (फूब॰4:13.15)
215    नजीक (= नजदीक)     (मोसाफिर सब दूसर पलाट-फारम पर अपन चीज वस्त ले जाए लगला । इ भी अपन नौकर के सब चीज लगे के नजीक ले जाइले कहलका ।)    (फूब॰1:6.30)
216    नजीकी (= नजदीकी)     (नवाब - नै, हम केकरो बुराई ने क-र ही । सु-न, हम बादसाही खानदान के ही । /साम - जी हाँ । /नवाब - वाजदली साह मरहूम हमर नजीकी मुरीस ।)    (फूब॰1:6.19)
217    नाखोस (= नाखुश)     (सामलाल - तो हम हुजुर के नाखोस नै कर स-क ही, बाकी अबरी हमरा पक्का खबर राय बहादुरी के मंगा देल जाए; ऐसे नसीबन तो ऐबे-जैबे करे हे ।)    (फूब॰7:25.31)
218    नासुकरा     (ऐसन जगह तो हम कहीं नै देखलूं हल । हम खुद जेकर खिलाफ, से-हे दोस हमरा पर लगे । रूसवते रोके के कोसिस में ही और अपना अखतियार भर काम कर रहलूँ हे । से एहां के आदमी के दे-ख, कैसन सब नासुकरा मालुम हो-व हथ ।)    (फूब॰6:21.11)
219    निसपिटर (= निस्पीटर; इन्सपेक्टर)     (नवाब - उ-हम ठीक नै सम-झ ही । ५० रुपया दरोगा के सुरू में मिले हे, उमीद १००) तक के हे और अच्छा काम कैला से निसपिटर, डिपटी, सोवरनडंट, भी हो सके हे ।)    (फूब॰3:11.5)
220    निसपीटर (= निसपिटर, निस्पीटर; इन्सपेक्टर)     (खेल सुरू होल तो उपर जे लिखल गेल हे ओकरे हेरफेर करके नाटक बनावल किताब के खेल होवे लगल । एक-दू सीन के बाद नवाब साहेब के सक होल के सामलाल के बात मालूम होवे हे । नवाब साहेब उ जगह निसपीटर हला और सामलाल के जगह में एक वृन्दाबन वकील ।)    (फूब॰8:27.26)
221    निस्पीटर (= इन्सपेक्टर)     (तब उनकर दोस्त पहिले एक नितनेस्वर बाबू निस्पीटर हला उनके कहलका और तब पुलिस एकरा पर दफा ६० चलौलक और कोए कोए तरह से मोकदमा उनके इजलास में गेल ।)    (फूब॰2:7.27; 3:11.5; 8:27.26)
222    नीनान (तेरहो ~ करना)     (सामलाल - अरे खोदा !  उ दिन रात के जे हुजुर नीसा में सूतल में ओकरा साथे जाके सुतला तो बिहान होके फेर हमरा तेरहो नीनान कैलक । पन्दरह दिन तक तो आना जाना बन्द कर देलक और फिर नाक दररते दररते हमरा मोसकिल हो गेल ।)    (फूब॰7:25.26)
223    नीसा (= नशा)     (सामलाल - अरे खोदा !  उ दिन रात के जे हुजुर नीसा में सूतल में ओकरा साथे जाके सुतला तो बिहान होके फेर हमरा तेरहो नीनान कैलक । पन्दरह दिन तक तो आना जाना बन्द कर देलक और फिर नाक दररते दररते हमरा मोसकिल हो गेल ।)    (फूब॰7:25.25)
224    नुकल (= नुक्कल; छिपा, छिपा हुआ)     (परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.23)
225    ने  (=नयँ, नञ्; न, नहीं)     (नवाब - तो एसडीओ गैरह एकरा नै जा-न हथ ?/ साम - जा-न होता कैसे ने ?; सामलाल - हुजुर, हमर सब दोस्त हका, उखनी पर ऐसन-ने के कोय सखती होवे ।/ नवाब - नै, हम केकरो बुराई ने क-र ही । सु-न, हम बादसाही खानदान के ही ।; नवाब - बड़ा पुलिस सब भी बदमासी करे हे । जहां कुछ उनकर बात ने मानलक और दफा ६० के रिपोट दाखिल ।; सिंघ जी - अपने इ तो खेयाल खूब नै-ने कैलूं के जहां पर एतना बड़ा अखतियार दरोगा के देल गेल हे, जे हमनी सब से कम नै हे, और सायद कहीं पर बेसिए होत, ओहां पर आदमीयत के खेयाल करके लालच उ सब के रोके के भी उपाए कैल जाय ।; साम - इ तो हमरा मालूम हल नै ओकरे, जब कभी पहिले रहतूं हल तब ने जानतूं हल ।; सिंघजी - तो होल ने । अब डर से मुदालेह अगर झूठ नै बोले तो मोसकिल ओकरा हे ।)    (फूब॰1:5.32, 6.14, 16; 2:7.13; 3:10.32; 4:16.27; 5:19.6)
226    नेआ (= नया)     (सिंघजी - खाली थोड़े बहुत के फरक । हां, नेआ रोसनी के सब अएला हे उ सब पहिलन से कहैं बेस हथ, पुरनकन के दे-ख बिरले कोई ऐसन हथ जे सराब ताड़ी नै पीअथ और दास्ता ने रखथ ।)    (फूब॰5:19.15)
227    नै (= नयँ, नञ, नञ्, नईं; नहीं)     (हम सम-झ ही कि उनकर कृपा मगही पर से घटत नै, और इहे सोंच के हम फिर दूसर पुस्तक के साथ उनकर भीरी हाजिर होलूं हे ।; उनखा से हमर अर्ज हे कि हमर हरगिज ऐसन नै ख्याल हल नै हे । बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।; ओकरा मोताबिक अपन मातृभाषा के सजे-धजे के ख्याल हमरा आज २० बरस से हे, लेकिन धन काफी नै रहला से ओकरा करके नै देखला सकलूं ।; परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे । एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल । लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.4, 10, 11, 19, 23, 26, …)
228    नै ... नै     (साम - इ तो नै हमरा मालूम हल नै ओकरे, जब कभी पहिले रहतूं हल तब ने जानतूं हल ।)    (फूब॰4:16.26)
229    नोकसान (= नुकसान)     (तु ऐसन खेयाल मत क-र । हमरा वजह से तोहरा कुछ नोकसान नै हो सको हो । बो-ल ।)    (फूब॰1:5.19-20)
230    नौकर-उकर     (सड़को पर एने ओने देखे ले अपन नौकर-उकर के भेजलका बाकी आखिर में अरदली सामबाबू के एक पुरजी ले-ले आल के मोसकिल से जान बचल हे, दुसमन पहुंच गेल और रगेद मारलक, अखने तबीयत परेसान हे, पीछे मिलबो ।)    (फूब॰5:18.17)
231    पढ़ल-लिखल     (साम - पढ़ल-लिखल ग्रैजुएट के तो ठेकाने नै औ इ-सब थोड़े बहुत पढ़ल सब जे बराबर जीमींदारी में दस रुपया एकरा से लेलका तो एकर ऐसन इनसाफ, पांच रुपया ओकरा से बेसी सलामी मिल गेल तो ओकरे ऐसन इनसाफ ।)    (फूब॰1:5.24)
232    पढ़ाए (= पढ़ाई)     (अंगरेजी राज रहते पूरा तौर से पढ़ाए के इन्तजाम नै हो सके हे और एकरे से उमीद हे कि अनपढ़ मगही अपन भासा के नै भूलता ।)    (फूब॰मुखबंध:2.30)
233    पत्ता-उत्ता     (सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हंथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ । जहां कहीं पत्ता-उत्ता खरखराए चौंक के एने उने देखे ल-ग हथ ।)    (फूब॰4:13.4)
234    परवीन (= प्रवीण)     (सिंघजी - इ तो खाली मुदालेह के सफाय हो; तूं तो परवीन इ सब में ह ।/ सामलाल - (सिंघ जी के गोड़ छू के) तुं ब्रह्मण ह । झूठ बोलूं तो कोढ़ी हो जाऊं ।)    (फूब॰4:16.28)
235    परसाल (= गत वर्ष)     (परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे । एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.21)
236    परिछन (= समालोचना, review)     ('सुनीता' के जैसन आदर से पाठकगन अपनैलका हे और श्रीयुत् सुनीति कुमार चटर्जी जैसन प्रेम से ओकरा अंग्रेजी के नामी मासिक पत्र में परिछन कैलका हे, ओकरा से उत्साह हमर जरूर बढ़ गेल हे ।; परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.3, 15)
237    पलाट-फारम (= प्लैटफॉर्म)     (साम लाल बोलला - नै, एकर जरूरत नै हे । ओकरा सब देल हे । ओकर बाद पलाट फारम पर टहल-टहल के बात करे लगला ।; गाड़ी आवे के वेला हो गेल । मोसाफिर सब दूसर पलाट-फारम पर अपन चीज वस्त ले जाए लगला ।)    (फूब॰1:6.11, 28)
238    पहरा (= पहर, प्रहर) (पिछली ~)     (नवाब साहेब आझ दिन भर बड़ा सोंच में रहला । पिछली पहरा सामलाल के बोला भेजलका । सामलाल ऐला तो नवाब साहेब के सुस्त पैलका ।)    (फूब॰6:21.3)
239    पहिले (= पहले)     (दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.30)
240    पिछु (दे॰पीछु)     (हमरा पिछु-पिछु पड़ल हे । ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे ।)    (फूब॰4:16.14)
241    पिछु-पिछु (= पीछु-पीछु; पीछे-पीछे)     (हमरा पिछु-पिछु पड़ल हे । ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे ।)    (फूब॰4:16.12-13)
242    पिबैआ (= पिबइया; पीनेवाला)     (नवाब साहेब - तो सामलाल तो पुरनकन में हथ, उतो बड़ा बेस आदमी, इ सब में नै बुझाथ ।/ सिंघजी - ओहो बड़ा कम्मल ओढ़ के घी पिबैआ ।)    (फूब॰5:19.20)
243    पिल्लू (~ पड़के मरना)     (बाबू हलधर सिंघ डिसमिस हो गेला । जाए घड़ी  बड़ा अफसोस में हला, राम किसुन के देख-व । सामलाल निरबंस रह-ब और पिल्लू-पड़के मर-ब और नवाब साहेब औ बुलाकी खां के भी ऐसने कुछ सराप देलका ।)    (फूब॰7:24.15)
244    पीछु (= पीछे, बाद में)     (बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन । पीछु इ बिहार में एक मोखतार के यहां रसोईगिरी करके मुखतारकारी के इमतिहान देलका और इ तीन लोघड़नियां के बाद पास कर गेला।)    (फूब॰1:3.5; 4:16.14)
245    पुरनका     (सिंघजी - खाली थोड़े बहुत के फरक । हां, नेआ रोसनी के सब अएला हे उ सब पहिलन से कहैं बेस हथ, पुरनकन के दे-ख बिरले कोई ऐसन हथ जे सराब ताड़ी नै पीअथ और दास्ता ने रखथ ।)    (फूब॰5:19.16)
246    पुरान (= पुराना)     (खैते-खैते नवाब साहेब पुछलका - क-ह बिहार कैसन जगह हे ?/ साम - बहुत पुरान जगह औ बहुत अच्छा जगह है ।)    (फूब॰1:4.31)
247    पेसा (= पेशा)     (साम - अब हुजुर कह-ह तो हम की बतलाउं । दु-तीन के छोड़ के औ सब बड़ी रुसबत ले हथ । पेसा खड़ा कर लेलका हे ।)    (फूब॰1:5.22)
248    फरल     (कब देखला तुं, के हवा के झिकोरा से बचल और धूप के गरमी से हटावल पौधा कोठरी में फूलल फरल हे ?)    (फूब॰3:11.31)
249    फरीक     (जो गरीब रहे ओकर माफ कर देल जा सके हे और लोग खोसी से देता और ऐसन समझ से अमलन के रुसबत भी उठावल जा सके हे । कोटफीस बढ़ाके मुसहारा कुछ बढ़ा देल जा सके हे । और अदालत ऐसन फौदारियो में कायदा कर देल जा सके हे के जते कुछ दरखास्त पड़े फरीक के नकल देबल जाए ।; वोकरो में जो सब हाकिम के टैप मिल जाए इया रोसनाई से लिख के तीन कारबन कोपी तैयार कैल जाए और ऐसहीं सब हुकुम के तीन-तीन कोपी तैयार करके एक-एक कोपी दुनु फरीक के देल जाए और एक-एक मिसिल में रहे तो कुल बखेड़े मेट जा सके हे ।)    (फूब॰3:12.12, 16)
250    फल-वल     (साम - नै हुजुर, बड़ा मोसकिल है । / नवाब - अच्छा, कुछ फल-वल लाके दे भाई । औ हिन्दू चाय वाले को बुला लाओ ।)    (फूब॰1:4.25)
251    फुटानी (~ छाँटना)     (सिंघ जी - साला आज हमरा से फुटानी छां-ट हल । अपने बेइमान तो दुनिया के बेइमान और रुसबतखोर कहे । अब जे होए, हम देखवै सार के ।)    (फूब॰4:15.24)
252    फूलल-फरल     (कब देखला तुं, के हवा के झिकोरा से बचल और धूप के गरमी से हटावल पौधा कोठरी में फूलल फरल हे ?)    (फूब॰3:11.31)
253    फेर (= फिर)     (महल पर एक गरीब कायथ के कुछ रुपया करजा देलका हल, सूद मूर लगाके ओकरा से मकान लिखा लेलका और थोड़े दिन में दुमहला मकान आलीसान बनैलका । ओहे कायथ सुगनलाल फेर रसोइआ के काम करे लगलैन ।; एक मरतबे गुड़ीआर साहब ऐला हल तो एकदम बंदे मोकदमा देना कर देलका हल । फेर सब बड़ा खोसामद उसामद कैलका । छोटा मोटा मोकदमा भेजल जाए लगल । उ गेला तो फेर ओही बात ।; जौन बेईमानी से वादसाहत लेल गेल हे; तुरकी के साथ बेइमानी, फेर अरब में हमनी सब कमजोर आदमी, बाकी खुदा तो जरूर देखत ।)    (फूब॰1:3.11, 6.2, 3, 25)
254    फौदारी (= मारपीट, लड़ाई-झगड़ा)   (जो गरीब रहे ओकर माफ कर देल जा सके हे और लोग खोसी से देता और ऐसन समझ से अमलन के रुसबत भी उठावल जा सके हे । कोटफीस बढ़ाके मुसहारा कुछ बढ़ा देल जा सके हे । और अदालत ऐसन फौदारियो में कायदा कर देल जा सके हे के जते कुछ दरखास्त पड़े फरीक के नकल देबल जाए ।)    (फूब॰3:12.11)
255    बकस-उकस     (सामलाल - तो ओकर एकठो अपने आदमी ओकरा हीं रहे-हे और ओकरा उ बड़ी माने हे । बकस उकस भी कखनौ खोल देहे । ओकरा थोड़ा बहुत के लालच देला से उ सब काम कर दे सके हे ।)    (फूब॰6:22.28)
256    बखत     (नवाब साहेब और भी जीरह उरह करके अपन मन के खेआल छिपाके चमेलवा के हाल जाने ले चा-ह हला बाकी एहे बखत डाक आरदली लेके आल और नवाब साहेब ओकरा देखे लगला और सिंघजी के डेरा से नौकर बोलवे आल तो आदाव करके चल गेला ।)    (फूब॰5:20.23)
257    बड़ा (= बहुत)     (तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला ।)    (फूब॰2:8.2)
258    बड़ी (= बहुत)     (परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे ।; पहिले इ बड़ी गरीब हला ।; तब ई बड़ी आरजु मिनती कैलका के कल्ह से हम हजुर एहां ऐलूं ह और इन्तजाम कैलूं ह ।; साम - अब हुजुर कह-ह तो हम की बतलाउं । दु-तीन के छोड़ के औ सब बड़ी रुसबत ले हथ । पेसा खड़ा कर लेलका हे ।; तूं बड़ी अच्छा साफ दिल आदमी ह और हम ऐसने आदमी के पसन्द क-र ही ।; साम लाल बड़ी ओकरा दिलासा देलका और किरिआ खैलका बाकी उ नै उतरल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.17; 1:3.2, 27, 5.22; 2:7.19, 8.23)
259    बन (= बन्द)     (बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह । तो फिर कोए जात के तो एकर भाव सहे होत । फूल बहादुर में दे-ख, हमर एक लाला भाई गोबर्धन उठैलका हे । और कुछ दिन बाद 'गदह नीत' में और केकरो चैनमारी के खम्भा बने होत ।)    (फूब॰मुखबंध:1.14)
260    बनाओ (= बनाव)     (नवाब - वकीलो र-ह हथ ? / साम - जी हाँ । /नवाब - वकील सब और मोखतार सब में बनाओ हे ?)    (फूब॰1:5.4)
261    बलके     (सामलाल - नै हुजुर हमरा में एक खास वसफ हे । असल के पकड़ ले ही । हम बहुत के देखलूं । हसनइमाम गैरह के साथे, बलके जादे खिलाफे, काम कैलूं बाकी सब हमर लोहा एकरा से मा-न हथ; और खाली उ-सब के नाम बढ़ल हे नै तो हमरा मोकाबला में उ-सब बात हथ ।)    (फूब॰6:22.6)
262    बलाए (= बलाय, बला)     (डाक में, एक आझ एक गुमनामी चीठी रांची से घोलटते पोलटते आल हल । कोई आदमी नवाब साहेब के बड़ी सिकायत कैलक हल और जादे सिकायत नसीबन कीहां जायके बारे में हल । ओकरा में कुछ रुसबत लेवे के भी सिकायत हल । सरकार से एकर जवाब मांगल गेल हल । नवाब साहेब तो सुख गेला और एकदम कुरसी पर पसर के सोंचे लगला के इ कौन बलाए भेल ।)    (फूब॰5:20.33)
263    बहाड़ना (= बाढ़ना; झाड़ू से साफ करना)     (अबसे पानी छींट के बहाड़वे और 'गदहनीत' में केकरो असकुस नै मालूम होत, और जेहे में हमर मातृभाषा सुसज्जित हो जाए हम नीचे लिखल किताब छपावे के कोसिस करबे ।)    (फूब॰मुखबंध:2.5)
264    बाकी (= बाकि; लेकिन)     (किताब सैंकड़ों लिखल पड़ल हे और बहुत से के लिखकर पूरा कर देवे के सामान तैयार हे, बाकी छपे कैसे ?; बिहार सरीफ में बाबू सामलाल बड़ा मोखतार हला बाकी इ बड़ा बहुत नीचता के बाद होला हल ।; ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला । बाकी ऐसन काम में बगैर चुगलखोरी के बढ़ती नै होवे हे एकरे से सहर के रईस इनका से कुछ कौंचल र-ह हला ।; एकर काबिल तो उ जा-न हला के हम नै ही बाकी अपन धुरताई पर उनका भरोसा हल ।; नवाब सहेब के ढेर खोसामदी से भेंट होल हल बाकी ऐसन खाहमखाह तो कोई नै मालूम भेल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.21; 1:3.2, 13, 15, 20, 4.10)
265    बाभन     (नवाब साहेब - अच्छा तो एकर की उपाय कैल जाए ? जवाब तो हम दे देवे बाकी हे जात के बाभन । बहुत सीधा तो हंसुआ ऐसन, पंचानवे हाथ के अंतड़ी रखवइआ ।)    (फूब॰6:22.22)
266    बिगना (= फेंकना)     (सामलाल - जी, हां । सामलाल चिट्ठी के तबतक समझ रहला हल और एस-डी-ओ एहां से लिफाफा के भी जेकरा अरदली फाड़ के बिग देलक हल, खोजके साथ रखले हला ।)    (फूब॰8:28.7)
267    बिसनो (= विष्णु, वैष्णव)     (नवाब - नै, ई तो तब किरकिरा हो जात ।/ साम - नै, हम बीसनो ही । / नवाब - ओह, बीसनो असल दिल से होवे चाही । / साम - नै हुजुर, बड़ा मोसकिल है ।)    (फूब॰1:4.22, 23)
268    बिहान     (बिहान होके बाबू हलधर सिंघ भोरे नवाब साहेब किहां पहुंचला ।)    (फूब॰5:18.20)
269    बिहार सरीफ (= बिहार शरीफ)     (बिहार सरीफ में बाबू सामलाल बड़ा मोखतार हला बाकी इ बड़ा बहुत नीचता के बाद होला हल ।)    (फूब॰1:3.2)
270    बी (= बीबी)     (नसीबन जब आल तो गम्हीरता से एखबार रख देलका और बोलला - "बै-ठ बी-जान ।" पंखा ऊपर के खोल देलका और रास्ता भर गप-सप चकल्लस करते चलला । गाड़ी अदलते बदलते जब दू-तीन टीसन बिहार पहुंचे के रहल तो नसीबन के अपन खाना में चला देलका ।; सामलाल नसीबन के नजिक जाके ओकरा हाथ पकड़ के उठैलका और बोलला - काहे बी ?)    (फूब॰2:8.32; 4:13.16)
271    बेअदवी     (नवाब साहेब - तो एक बात, अगर बेअदवी माफ क-र । / साम लाल - हमरा हुजुर बड़ी लज-ब ही ।)    (फूब॰2:8.9)
272    बेकत     (५० रुपया दरोगा के सुरू में मिले हे, उमीद १००) तक के हे और अच्छा काम कैला से निसपिटर, डिपटी, सोवरनडंट, भी हो सके हे । और भी दे-ख के ई-देस में ऐसन नै के कोई दूसर जगह ऐसन आदमी जब जाथ, तो उनखा एकरा से बेसी मिलत, और एतना में पांच बेकत अच्छा से गुजर कर सके हे ।)    (फूब॰3:11.8)
273    बेताव     (साम - नै, ताबे में की रहत, फिर तो रंडिए हे । बाकी हां, जरा परदा से कोई बात होवे हे और अभी (चपस के) एकदम नवेली हे । / नवाब साहेब - तों एकदम बेताव हो गेला । अब ढेर मोसकिल मत क-र, जल्दी जा ।)    (फूब॰2:8.18)
274    बेला (= बिना)     (नवाब - एहे तो मोसकिल । अगर उ-सब के देल जाए तो बाकी तो बड़ी दुःख मानता और एकदम उ सब के बेला सबूत के बेइज्जत करना होत ।)    (फूब॰3:9.23)
275    बेसी (= अधिक, ज्यादा)     (साम - पढ़ल-लिखल ग्रैजुएट के तो ठेकाने नै औ इ-सब थोड़े बहुत पढ़ल सब जे बराबर जीमींदारी में दस रुपया एकरा से लेलका तो एकर ऐसन इनसाफ, पांच रुपया ओकरा से बेसी सलामी मिल गेल तो ओकरे ऐसन इनसाफ ।; और भी दे-ख के ई-देस में ऐसन नै के कोई दूसर जगह ऐसन आदमी जब जाथ, तो उनखा एकरा से बेसी मिलत, और एतना में पांच बेकत अच्छा से गुजर कर सके हे ।; नवाब - ६० करोड़ से फाजिल ? जे गोला बारूद और खेआली दुसमन के रोके में खर्च कैल चाहे ओकरो से बेसी तो नै ?)    (फूब॰1:5.26; 3:11.7, 23)
276    ब्रह्मण (= ब्राह्मण)     (सिंघजी - इ तो खाली मुदालेह के सफाय हो; तूं तो परवीन इ सब में ह ।/ सामलाल - (सिंघ जी के गोड़ छू के) तुं ब्रह्मण ह । झूठ बोलूं तो कोढ़ी हो जाऊं ।)    (फूब॰4:16.30)
277    भँड़ुअइ     (ई सब के अंग्रेजी विद्या फरोस के यहाँ से खरीद के सिआह सुर्ख मुफ्तख्वार के कुइआँ से आबे - कमिनपनई में खूब पीस के पी जाए !  कुछ दिन फायदा नै होए तो माजूने भँड़ुअइ के साथ इस्तेमाल कैला से जरूर आराम होत ।)    (फूब॰7:25.11)
278    भंड़ुआ     (हमरा पिछु-पिछु पड़ल हे । ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे ।)    (फूब॰4:16.13)
279    भांड़ी     (परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.15)
280    भासा (= भाषा)     (जे एकर पंच होता उ मगही भाषा जे तखने प्रचलित रहत ओकरा और और भासा के बराबर अलंकृत करे के कोसिस करता ।; हमरा डर एक बात के हल के हिन्दी (या खिचड़िया हिन्दुस्तानी) मगही के लोप नै कर दे । मगर अंगरेजी राज रहते पूरा तौर से पढ़ाए के इन्तजाम नै हो सके हे और एकरे से उमीद हे कि अनपढ़ मगही अपन भासा के नै भूलता ।)    (फूब॰मुखबंध:2.27, 32)
281    भीतरे-भीतर (= अंदरे-अंदर; भीतर-भीतर ही)     (नवाब साहेब भीतरे भीतर तो कुछ अजब ऐसन समझथ मगर रईस घरैना के रहला के वजह से रूख से बात नै कर सकथ ।)    (फूब॰1:4.2)
282    भीरी (= भिर; भीर; पास)     (हम सम-झ ही कि उनकर कृपा मगही पर से घटत नै, और इहे सोंच के हम फिर दूसर पुस्तक के साथ उनकर भीरी हाजिर होलूं हे ।; खानसामा तीन-चार टुकड़ा बिसकुट और चाय औ अण्डा गैरह हिसाब से ला-ला के नवाब साहेब के भीरी रखे लगल और मोखतार साहेब टेबुल के दूसर तरफ बैठला ।; सिंघजी - अगल बगल के कोई जात ओकरा भीरी नै होत जेकरा उ एक-ने एक धुन से खराब न कैलक होत ।)    (फूब॰मुखबंध:1.5; 1:4.16; 5:19.31)
283    भू-भड़क     (नवाब साहेब खखन्द से डेवढ़ा के पास उतर के टहल रहला हल । इ-सव सुनके उ तुरते दस रुपया के नोट देलका और कहलका के द जाके और नै माने तो कुछ आखिर में भू-भड़क भी देखलइ-ह ।)    (फूब॰2:8.28)
284    भेजल (= भेजा, भेजा हुआ)     (एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.25)
285    भोरे     (बिहान होके बाबू हलधर सिंघ भोरे नवाब साहेब किहां पहुंचला ।; आझ सामलाल बड़ी खोस हथ । पहिले दिन अंग्रेजी के चौथा महीना के हल । भोरे तार मिललैन के राय बहादुर हो गेला ।)    (फूब॰5:18.20; 8:26.2)
286    मरदूद     (नवाब साहेब - एकरे ले तुं नै राते ऐला ? हम तो राते बड़ी परेसान रहलूं । बाकी आझ इ दूसर आफत मरदूद बुन्दलक । तो तुं ऐला कैसे ?/ सामलाल - तराह तराह करके बखत कटल । जब उ चल गेल तब निकललूं । बाकी बड़ी रात हो गेल तो ऊ नै आल ।)    (फूब॰6:22.18)
287    मरदूद (= बहिष्कृत, तिरस्कृत, अस्वीकृत)     (हम तो सुनलूं हल के तू रंडी ऊ मरदूद के यहां पहुंचा-व ह और एहे नसीबन जाहे । बाकी दुनु कसम खा-ह, और दुनु के बात ऐसन हमरा मालूम होवे हे के झूठो नै कह स-क ह ।)    (फूब॰4:17.2)
288    महाल     (आझ काल सुराज के हल्ला से तो मोकदमा एकदम कम हो गेल हे, तइओ हमनी सब के जान परिसान रहे हे ।/ नवाब साहेब - एही जरा खास महाल के काम कुछ बढ़ल हे और तहकीकात सर जमीन के, से अब काम हो जात ।/ सिंघ जी - खास महाल के काम जे छोटा साहेब से हमरा देल गेल हे से तो उतना मोसकिल नै, बाकी सर जमीन पर हर मोकदमा में जाने बड़ा खराब हे । इ-सब तो पहिले अनेरी मजिस्टर सब क-र हला ।)    (फूब॰3:9.12, 14)
289    मातरा (= मात्रा)     (ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।)    (फूब॰1:3.14)
290    मासूक (= माशूक)     (परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.22)
291    मिनती (= विनती)     (नवाब साहेब बोलला के अभी खाहिस नै हे । तब ई बड़ी आरजु मिनती कैलका के कल्ह से हम हजुर एहां ऐलूं ह और इन्तजाम कैलूं ह ।)    (फूब॰1:3.27)
292    मिसिल     (सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे । वोकरो में जो सब हाकिम के टैप मिल जाए इया रोसनाई से लिख के तीन कारबन कोपी तैयार कैल जाए और ऐसहीं सब हुकुम के तीन-तीन कोपी तैयार करके एक-एक कोपी दुनु फरीक के देल जाए और एक-एक मिसिल में रहे तो कुल बखेड़े मेट जा सके हे ।)    (फूब॰3:12.17)
293    मुदई     (नवाब साहेब - ई कुछ बात हे ? असल ई क-ह के लड़ाई में कुछ कुछ दोस दुनु के रहे हे और अपन कसूर मुदई एकदम छिपा ले हे तो मुदालेह सोलह आना उठाके पी जाहे ।)    (फूब॰5:19.4)
294    मुदालेह     (नवाब साहेब - ई कुछ बात हे ? असल ई क-ह के लड़ाई में कुछ कुछ दोस दुनु के रहे हे और अपन कसूर मुदई एकदम छिपा ले हे तो मुदालेह सोलह आना उठाके पी जाहे ।)    (फूब॰5:19.4)
295    मुरीस     (नवाब - नै, हम केकरो बुराई ने क-र ही । सु-न, हम बादसाही खानदान के ही । /साम - जी हाँ । /नवाब - वाजदली साह मरहूम हमर नजीकी मुरीस ।)    (फूब॰1:6.19)
296    मुसाहरा (= मुसहरा, वेतन)     (नवाब - ई तो फजूल क-ह ह । एकरा में दुए बात, या तो जेकर हाथ में करे के हे से जाने हे ने और जाने हे तो रोके नै चाहे हे । डाकघर में दे-ख, कितना कम मुसाहरा सब के हे और केतना कम रुसबतखोरी । की वजह ?)    (फूब॰3:10.15)
297    मूर (= मूलधन)     (महल पर एक गरीब कायथ के कुछ रुपया करजा देलका हल, सूद मूर लगाके ओकरा से मकान लिखा लेलका और थोड़े दिन में दुमहला मकान आलीसान बनैलका ।)    (फूब॰1:3.9)
298    मोअजीज     (सामलाल - से तो ठीक हे । इ कांटा हे, एकरा जड़ मूल से उखाड़ के फेंके के चाही ।/ नवाब साहेब - तो गवाह ठीक करेला होतो और मोअजीज, मोअजीज ?/ सामलाल - एहे तो मोसकिल हे ।)    (फूब॰6:23.6)
299    मोत्तफनी     (सिंघजी - चन्दन टीका खाली धोखा देवे के हे । ऐसे तो आझ कल के कचहरी से सरोकार रखवैआ जे चन्नन-टीका करे ओकरा में सैंकड़ा पीछू ९० के पक्का बेईमान और मोत्तफनी सम-झ ।)    (फूब॰5:19.24)
300    रखवइआ (पंचानवे हाथ के अंतड़ी ~)     (नवाब साहेब - अच्छा तो एकर की उपाय कैल जाए ? जवाब तो हम दे देवे बाकी हे जात के बाभन । बहुत सीधा तो हंसुआ ऐसन, पंचानवे हाथ के अंतड़ी रखवइआ ।)    (फूब॰6:22.23)
301    रगेदना     (नवाब साहेब रात भर बड़ी परेसान रहला, नसीबन अब आवे हे, तब आवे हे । कैक मरतबे अरदली के उनकर डेरा पर भेजलका के ऐले रहथ बोला लाओ । सड़को पर एने ओने देखे ले अपन नौकर-उकर के भेजलका बाकी आखिर में अरदली सामबाबू के एक पुरजी ले-ले आल के मोसकिल से जान बचल हे, दुसमन पहुंच गेल और रगेद मारलक, अखने तबीयत परेसान हे, पीछे मिलबो ।)    (फूब॰5:18.19)
302    रसोईगिरी     (पीछु इ बिहार में एक मोखतार के यहां रसोईगिरी करके मुखतारकारी के इमतिहान देलका और इ तीन लोघड़नियां के बाद पास कर गेला।)    (फूब॰1:3.5)
303    रह-रह के (= बीच-बीच में, रुक-रुक के)     (आज भोर के सुरज उगल बाकी थोड़हीं देर में बादर घेर आल और होते होते बड़ी अंधार हो गेल और रह-रह के बिजुली कड़के लगल ।)    (फूब॰6:21.2)
304    रिपोट (= रिपोर्ट)     (नवाब - बड़ा पुलिस सब भी बदमासी करे हे । जहां कुछ उनकर बात ने मानलक और दफा ६० के रिपोट दाखिल ।)    (फूब॰2:7.13)
305    रिसतेमंद     (राम किसुन सिंघ जे हलधर सिंघ के ममेरा साला हो-व हला और जिनखा पर हलधर बाबू के बड़ी भरोसा र-ह हल उनखा नवाब साहेब सेकरेटरीअट में अपन रिसतेमंद से कहसुन के सब-रजिस्ट्रार बहाल करा देवे के लालच देके अपना दने मिला लेलका ।)    (फूब॰7:24.5)
306    रुसबत (= रिश्वत, घूस)     (साम - अब हुजुर कह-ह तो हम की बतलाउं । दु-तीन के छोड़ के औ सब बड़ी रुसबत ले हथ । पेसा खड़ा कर लेलका हे ।; सिंघ जी - तो ई कहां तक रोकल जा सके हे । तमाम तो रुसबत के बदबू होवे हे । अरे जब एकाक-ठो हाई-कोट के जज सब के अधखुलल सिकायत ई सब के हो रहल हे तो ई बेचारन के कौन ठेकाना ।; मोहब्बत के पानी जो दरखत के जिन्दा नै रखत ओकरा रौव और रुसबत के कीड़ा कब तक बचावत ?; जो गरीब रहे ओकर माफ कर देल जा सके हे और लोग खोसी से देता और ऐसन समझ से अमलन के रुसबत भी उठावल जा सके हे ।; सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे ।; कोई आदमी नवाब साहेब के बड़ी सिकायत कैलक हल और जादे सिकायत नसीबन कीहां जायके बारे में हल । ओकरा में कुछ रुसबत लेवे के भी सिकायत हल ।)    (फूब॰1:5.22; 3:10.1, 31, 12.9, 13; 5:20.30)
307    रुसबतखोरी     (नवाब - ई तो फजूल क-ह ह । एकरा में दुए बात, या तो जेकर हाथ में करे के हे से जाने हे ने और जाने हे तो रोके नै चाहे हे । डाकघर में दे-ख, कितना कम मुसाहरा सब के हे और केतना कम रुसबतखोरी । की वजह ?)    (फूब॰3:10.15)
308    रूसवत (= रुसबत; रिश्वत, घूस)     (नवाब - बहुत खराब हे न तब । पुलिस औ अमला में रूसवत जुलुम हइये हे अब हाकिमो ई बात, तो सलतनत के जड़ में दीयां समझे के चाही ।)    (फूब॰1:6.4)
309    रेह (= क्षारयुक्त मिट्टी; मिट्टी कि दीवाल में लगी नोनी; जलन, ईर्ष्या, डाह) (गदहा के मांस बे ~ के नै सीझे)     (नवाब साहेब - बाकी एकरा से काम नै चलत । गदहा के मांस बे रेह के नै सीझे । खाली अपना के बचैला से नै बनत जबतक एकरा पर वार नै कैल जात ।/ सामलाल - से तो ठीक हे । इ कांटा हे, एकरा जड़ मूल से उखाड़ के फेंके के चाही ।)    (फूब॰6:23.1-2)
310    रेहाए (= रिहाई)     (तब उनकर दोस्त पहिले एक नितनेस्वर बाबू निस्पीटर हला उनके कहलका और तब पुलिस एकरा पर दफा ६० चलौलक और कोए कोए तरह से मोकदमा उनके इजलास में गेल । हमरा इ जानके के सिकिन अफसर इनकर दोस्त हथ मोखतार रखलक और हम कोई सूरत से रेहाए करा देलिऐ ।)    (फूब॰2:7.30)
311    ल (= के लिए)     (नाटक सुरू होवे के पहिले सुतरधार आके कह गेल के बड़ी खोसी के बात हे, एहां आझ "फूल बहादुर" हम खेलवे, खास करके आज एहे वक्त ल बनौलूं ह ।)    (फूब॰8:27.15)
312    लगाना-बझाना     (कभी सोचथ के एकरा मारपीट कैलूं ह, इ आदमी बड़ा चुगलखोर हे और एसडीओ के दुलरुआ, कहीं अट-पट जाके लगा-बझा के नै कह दे और लड़ाए झगड़ा करा दे, फेर सोचथ के सरीफ आदमी कसम खैलक हे ।)    (फूब॰5:18.4)
313    लिक्खा (= लिक्खल; लिखा हुआ)     (परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.22)
314    लूं (= लोग)     (नवाब साहेब - नै, हम तो ठान लेलुं ह के जहां तक होए झगड़ाहु मामला ई लूं सब के हाथ में नै देबे । बड़ा जुलुम गरीब फरिआदी सब पर होवे हे ।)    (फूब॰3:9.18)
315    ले (= के लिए; देवे ले = देने के लिए)     (उ सब जे जरी 'ओः' क-र हथ, से उनखा सन्तोख देवे ले हम ई कहे ले चाह-ही कि अबरी भर हो गेलो ।)    (फूब॰मुखबंध:2.4)
316    लोघड़नियां     (पीछु इ बिहार में एक मोखतार के यहां रसोईगिरी करके मुखतारकारी के इमतिहान देलका और इ तीन लोघड़नियां के बाद पास कर गेला।)    (फूब॰1:3.6)
317    वकीलो (= वकील भी)     (नवाब - वकीलो र-ह हथ ? / साम - जी हाँ । /नवाब - वकील सब और मोखतार सब में बनाओ हे ?)    (फूब॰1:5.2)
318    वसफ     (नवाब साहेब - (कुछ खोस हो के) साबास मोखतार साहेब ! समझलूँ । फिर तो मोखतारकारी के तजुरबा भी एक चीज हे ।/ सामलाल - नै हुजुर हमरा में एक खास वसफ हे । असल के पकड़ ले ही । हम बहुत के देखलूं । हसनइमाम गैरह के साथे, बलके जादे खिलाफे, काम कैलूं बाकी सब हमर लोहा एकरा से मा-न हथ; और खाली उ-सब के नाम बढ़ल हे नै तो हमरा मोकाबला में उ-सब बात हथ ।)    (फूब॰6:22.5)
319    वहे (= ओहे; वही)     (उ औरत तब दबक गेल, मगर नवाब साहेब एकरा देख लेलका बाकी अनदेख ऐसन करके गाड़ी पर सवार हो गेला । सामलाल भी वहे खाना में चढ़ला ।; कम-से-कम देखल तो एकाक दू जिला में जा सके हे के दरोगा जमादार कैसन काम क-र हथ और एकरे से सिलसिला खेयाल भी बदल सके हे, बाकी दूसर जे तु बोलला वहे असल मोसकिल हे ।; सामलाल - ई तो साफ मालुम होवे हे के जेकर नुकसान इया हरज हुजुर के काम से पहुँचल हे वहे देलक हे ।; की जानु कैक ठो चिट्ठी कुछ चन्दा उन्दा वास्ते लिखलूं हल जमींदार सब के, सायद वहे जमा कैले हे ।)    (फूब॰2:7.7; 3:11.13; 6:21.24, 22.26)
320    वैसने (= ओइसने)     (नवाब साहेब - मोखतार लोग दस, बीस छोड़ के करीब-करीब सब एक दम पेसे खराब कर देलका हे और ओकर असर तेजारत में आपाधापी के खेआल से वकील बरिस्टर सब भी करीब करीब वैसने होल जा हथ ।)    (फूब॰5:19.10)
321    वोकरो (= ओकरो)     (सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे । वोकरो में जो सब हाकिम के टैप मिल जाए इया रोसनाई से लिख के तीन कारबन कोपी तैयार कैल जाए और ऐसहीं सब हुकुम के तीन-तीन कोपी तैयार करके एक-एक कोपी दुनु फरीक के देल जाए और एक-एक मिसिल में रहे तो कुल बखेड़े मेट जा सके हे ।)    (फूब॰3:12.14)
322    वोही     (नवाब साहेब - तो फिर वोही तरकीब । अबरी हम ओकरा सुतले में चल आम । तबरी गलती हो गेल, हम सुतले रह गेलूं ।)    (फूब॰7:25.29)
323    सक (= शक)     (बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।)    (फूब॰मुखबंध:1.11)
324    सगरो (= सर्वत्र, सभी जगह)     (अखनी लाखो रुपया क-ह निकाल दिओ । बिरजी-फिरजी एतना कोसिस कैलका कुछ स्कूल कालिज में ? यहां हम उ सब के चले देलूँ ? सगरो गाँधीजी के स्कूल बनल, यहां हमर मोकाबला में कुछ कोए कर सकल ?; सामलाल - कोए हे ।/ नसीबन - तफजुला । /सामलाल - अरे बाप । उ तो कल्ह सगरो गोहार कर देत ।; ओकरा बारे जे हम सुनलूं से झूठ मालूम होवे हे; तो फेर दुलरुआ रहे के बात भी झुट्ठे खबर उड़ल बुझा हे, तो अपन ई बेइजती के बात सगरो गोदाल होवे के डर से इ सब बात के छेड़त कहों नै ।)    (फूब॰4:14.23, 15.14; 5:18.8)
325    सफाय (= सफाई)     (सिंघजी - इ तो खाली मुदालेह के सफाय हो; तूं तो परवीन इ सब में ह ।/ सामलाल - (सिंघ जी के गोड़ छू के) तुं ब्रह्मण ह । झूठ बोलूं तो कोढ़ी हो जाऊं ।)    (फूब॰4:16.28)
326    सभे (= सभी)     (ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।)    (फूब॰1:3.12)
327    समुच्चे     (सलाह होल के सहर भर में तवाजा कैल जाए और तब सामलाल बाबू सामसुन्दर प्रसाद मोखतार के, जे इ-सब में बड़ी आगू र-ह हला, दुकानदार और पान वाला के नाम से चिट्ठी देलका के जे जे चीज के जरूरत होवे द । समुच्चे सहर में रोसनी के भी इन्तजाम कैलका और सब के अपना तरफ से तेल-ढिबरी भेजवा देलका ।)    (फूब॰8:27.6)
328    सहरपतिया     (नवाब साहेब - जरी सहरपतिया के फेर हमरा से भेंट करा द तो अब कसम खाके क-ह हीओ जरूर हो जैतो ।)    (फूब॰7:25.23)
329    सहे (= म॰ सहिये; हि॰ सही ही)     (तो फिर कोए जात के तो एकर भाव सहे होत ।)    (फूब॰मुखबंध:1.12)
330    सायद (= शायद)     (परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.16)
331    सार (= साला)     (सिंघ जी - साला आज हमरा से फुटानी छां-ट हल । अपने बेइमान तो दुनिया के बेइमान और रुसबतखोर कहे । अब जे होए, हम देखवै सार के ।; हमरा पिछु-पिछु पड़ल हे । ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे ।)    (फूब॰4:15.25, 16.13)
332    सिंघ (= सिंह)     (सन् १३२९ फ॰ के चैत में मोलवी मोजफ्फर नवाब एस-डी-ओ मानभूम से बदल के ऐला और हलधर सिंघ सब-डिपटी एक बरस कवले से हला ।)    (फूब॰1:3.18)
333    सिकायत (= शिकायत)     (एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल । लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.27)
334    सिकिन (= सेकंड)     (साम - नसीवन एकर नाम हे और अभी एकर खुल्लम खुल्ली नथुनी ने उतरल हे । बाबू हलधर सिंघ वहां सिकिन अफसर हथ से एकरा कैसुं एक मरतबे देख लेलका औ केतनो बोलाथिन तो नै जाइन ।; हमरा इ जानके के सिकिन अफसर इनकर दोस्त हथ मोखतार रखलक और हम कोई सूरत से रेहाए करा देलिऐ ।)    (फूब॰2:7.25, 29, 8.14, 15)
335    सिटपिटाना     (सामलाल - (सिंघ जी के गोड़ छू के) तुं ब्रह्मण ह । झूठ बोलूं तो कोढ़ी हो जाऊं ।/ सिंघजी - (कुछ सिटपिटाल ऐसन) हम तो सुनलूं हल के तू रंडी ऊ मरदूद के यहां पहुंचा-व ह और एहे नसीबन जाहे । बाकी दुनु कसम खा-ह, और दुनु के बात ऐसन हमरा मालूम होवे हे के झूठो नै कह स-क ह ।)    (फूब॰4:17.1)
336    सिमला     (सामलाल - जी, हां । सामलाल चिट्ठी के तबतक समझ रहला हल और एस-डी-ओ एहां से लिफाफा के भी जेकरा अरदली फाड़ के बिग देलक हल, खोजके साथ रखले हला । नवाब साहेब लिफाफा के मोहर के देखलका । ठीक, सिमला "फूल्स-पैरेडाइज" के मोहर हल । "साबस" कह के उठला और हंसते चल देलका ।)    (फूब॰8:28.9)
337    सुइआ कढ़बइया     (सिंघजी फेर बुढ़िया के केवाड़ी खोले-ले कहलका और कुंजी दे देलका । बुढ़िया तब खिड़की खोल देलक । सिंघजी और सामलाल तब बाहर होला और खिड़की लग गेल । आगे चलके बोलला - दे-ख, ई अबरी जे ऐलो हे से तरे सुइआ कढ़बइया हे, एकरा से जरी बचल रहिअं ।)    (फूब॰4:17.24)
338    सुखल-साखल     (तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला ।)    (फूब॰2:8.2)
339    सुतना     (रास्ता से फेर नसीबन के यहां आवे ले चहलका हल पर ओकर माथा में दर्द के बात इआद पड़ला से चुपचाप डेरा पर आके सुत रहला ।)    (फूब॰5:18.10)
340    सुसैटी (= सोसायटी)     (सामलाल - काहे ! दे-ख असपताल में हम दू हजार रुपया देलवा देलूं और सेरम के नाम से बंक हमरे खड़ा कैल हे । पहिले रघुवर देयाल एसडीओ रट के मर गेला बाकी खाली चार ठो सुसैटी कायम भेल । हमहीं पचास ठो सुसैटी बनैलूं तो बंक चलल ।)    (फूब॰4:14.18, 19)
341    सूर्ज (= सूरज, सूर्य)     (एकरा से ई न कि स्वराज हासिल करे में हम रूक रहब, मगर हमनी के साथे-साथे ई भी कोसिस करे के होत के उदंड सूर्ज के डूबे के पहिले मगही अपन जगह पर कायम हो जाए ।)    (फूब॰मुखबंध:2.33)
342    सेकरो (= उसे भी, उसका भी)     (नवाब - हमनी सब के उ-सबसे कोई मतलब नै, उ-तो सरकार जाने और बहुत जादे अतंत हो गेला से लोग सब खुद दबाय करता । बाकी छोटा दायरा में जे हमनी के अखतियार हे सेकरो में तो कुछ करना ईमान के बात है ।)    (फूब॰3:10.6)
343    सेकिन (= सिकिन; सेकंड)     (साम - (दुगमुगा के) अच्छा, तो अबरी टीसन में । बाकी कोई आदमी सेकिन अफसर के रहल तब ? /नवाब - समझलुं (कुछ सुस्त होके) सेकिन अफसर के ताबे में हे?)    (फूब॰2: 8.14, 15)
344    सोवरनडंट (= सुपरिंटेंडेंट)     (नवाब - उ-हम ठीक नै सम-झ ही । ५० रुपया दरोगा के सुरू में मिले हे, उमीद १००) तक के हे और अच्छा काम कैला से निसपिटर, डिपटी, सोवरनडंट, भी हो सके हे ।)    (फूब॰3:11.6)
345    हंथबत्ती     (अंधारी रात हे । जरी-जरी रह-रह के बिजुली भी चमके हे । सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ ।)    (फूब॰4:13.3)
346    हंसुआ (बहुत सीधा तो ~ ऐसन)     (नवाब साहेब - अच्छा तो एकर की उपाय कैल जाए ? जवाब तो हम दे देवे बाकी हे जात के बाभन । बहुत सीधा तो हंसुआ ऐसन, पंचानवे हाथ के अंतड़ी रखवइआ ।)    (फूब॰6:22.22)
347    हमर (= मेरा; हमारा)     ('सुनीता' के जैसन आदर से पाठकगन अपनैलका हे और श्रीयुत् सुनीति कुमार चटर्जी जैसन प्रेम से ओकरा अंग्रेजी के नामी मासिक पत्र में परिछन कैलका हे, ओकरा से उत्साह हमर जरूर बढ़ गेल हे ।; उनखा से हमर अर्ज हे कि हमर हरगिज ऐसन नै ख्याल हल नै हे ।; फूल बहादुर में दे-ख, हमर एक लाला भाई गोबर्धन उठैलका हे ।; परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे ।; साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.3, 9, 13, 16; 1:5.9)
348    हमरा (= मुझे, मुझको; हमें, हमको)     (परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे । ओकरा मोताबिक अपन मातृभाषा के सजे-धजे के ख्याल हमरा आज २० बरस से हे, लेकिन धन काफी नै रहला से ओकरा करके नै देखला सकलूं ।; हमरा पर खाबिन्दी कैल जाए ।; हमरा दस पांच हजार बैंक में हे, सब चा-ह हथ कि उनको रहत हल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.15, 17, 18; 1:4.8, 5.10)
349    हमरे (= हमारा/ हमको ही; ~ से = हमसे ही)     (साम - एहे हसद ।/ नवाब - से की ?/ साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे । हमरा दस पांच हजार बैंक में हे, सब चा-ह हथ कि उनको रहत हल । हाकिम सब जैसे हमरे मा-न हथ, एहे सबसे ।; दे-ख असपताल में हम दू हजार रुपया देलवा देलूं और सेरम के नाम से बंक हमरे खड़ा कैल हे ।; दे-ख, सहर के बदमास सब अब परचा हमरे तरफ इसारा करके छपवैलका ह ।)    (फूब॰1:5.9; 4:14.17; 7:24.28)
350    हमरो     (नवाब साहेब - हमरो हीं तो चिट्ठी आल हे (और निकाल के चिट्ठी सिक्रेट्रीयट के देलका) ।)    (फूब॰8:26.10)
351    हमहूँ (= हम भी, मैं भी)     (बाकी दे-ख; ई सब बात केकरो से कहि-ह नै । हमहूँ तोहनीए के पकड़े अएलूं हल । हमरा बारे में सब हल्ला कैले हथ के नसीबन के र-ख हथ ।)    (फूब॰4:17.4)
352    हमहूं (= हम भी, मैं भी)     (बाकी हमरा से कते आदमी कह देलका और हमहूं सब सम-झ ही के बराबर हमरा बाहर एहे खेयाल से छोलकटवा भेजे हे ।)    (फूब॰4:17.8)
353    हरगिज     (कुछ भूमिहार भाई एकरा से रंज हो गेला हे कि उनकर जात भाई के नकल 'सुनीता' में बनावल गेल हे । उनखा से हमर अर्ज हे कि हमर हरगिज ऐसन नै ख्याल हल नै हे ।; सामलाल कहला - हां, हां, जरूर । हम हरगिज तोहनी से अलग नै हिओ ।)    (फूब॰ मुखबंध:1.10; 8:26.23)
354    हसद (= ईर्ष्या, डाह, जलन)     (नवाब - वकील सब और मोखतार सब में बनाओ हे ? / साम - हे, बाकी मोखतार सब के आपसे में बिगाड़ जा हे । / नवाब - काहे ? / साम - एहे हसद ।)    (फूब॰1:5.7)
355    हसबखाह     (ओ कुल कागज-उगज जे इ मामला में नवाब साहेब के खिलाफ इया बाबू हलधर सिंघ के हसबखाह हल निकलवा लेलका औ एक दू रईस के औ राम किसुन सिंघ औ सामलाल के गवाह खड़ा करके झूठझूठ रूसबत लेवे के इलजाम बाबू हलधर सिंघ पर साबित करैलका और अपने निकल गेला ।)    (फूब॰7:24.8)
356    हाई-कोट (= हाई-कोर्ट)     (सिंघ जी - तो ई कहां तक रोकल जा सके हे । तमाम तो रुसबत के बदबू होवे हे । अरे जब एकाक-ठो हाई-कोट के जज सब के अधखुलल सिकायत ई सब के हो रहल हे तो ई बेचारन के कौन ठेकाना ।)    (फूब॰3:10.2)
357    हाकिमो (= हाकिम भी)     (नवाब - बहुत खराब हे न तब । पुलिस औ अमला में रूसवत जुलुम हइये हे अब हाकिमो ई बात, तो सलतनत के जड़ में दीयां समझे के चाही ।)    (फूब॰1:6.5)
358    हीआं (= के यहाँ)     (सिंघजी - सब परमेस्वर हीआं की जवाब लगैता, कुछ पते नै लगे । बाबू कन्हाए लाल से एक मरतबे हम पुछलीअन तो ऊ हमनीए के दोस देथ ।)    (फूब॰5:18.27)
359    हुजुर     (साम - नै हुजुर, हम कौन काबिल ही ।; साम लाल - जैसन हुजुर के खाबिन्दी । हम तो हुजुर के थूक के बराबर नै ही ।)    (फूब॰2:8.3, 7)
360    है (= म॰ हइ, हकइ, हे; हि॰ है)     (साम - नै हुजुर, बड़ा मोसकिल है ।; साम - उ बिहार के कसबी है । एक मरतबे दफा ६० के मोकदमा में हम ओकर काम कैलिए हल ।)    (फूब॰1:4.24; 2:7.10)

74. मगही उपन्यास "फूल बहादुर" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



फूब॰ = "फूल बहादुर" (मगही उपन्यास) - जयनाथपति (1880-1940) ; प्रथम संस्करणः अप्रैल 1928;  दोसर संस्करणः अप्रैल 1974; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल,  पटना-5; मूल्य - 3 रुपइया; कुल 6 + 28 पृष्ठ । प्राप्ति-स्थानः बिहार मगही मंडल, V-34, विद्यापुरी, पटना-800 020 ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अध्या (= अध्याय), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

अकारान्त अक्षर के पूर्ण उच्चारण लगी मूल प्रति में हाइफन के प्रयोग कैल गेले ह, जइसे - "चलऽ" के बदले "च-ल" ।




कुल शब्द-संख्या : 360


ठेठ मगही शब्द ('' से '' तक) :
 
1    अंधार (= अन्हार; अन्धकार)     (आज भोर के सुरज उगल बाकी थोड़हीं देर में बादर घेर आल और होते होते बड़ी अंधार हो गेल और रह-रह के बिजुली कड़के लगल ।)    (फूब॰6:21.2)
2    अंधारी     (अंधारी रात हे । जरी-जरी रह-रह के बिजुली भी चमके हे । सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हंथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ ।)    (फूब॰4:13.1)
3    अकिल (~ दौड़ाना)     (सामलाल ऐला तो नवाब साहेब के सुस्त पैलका । कुछ समझ में न ऐलन के की बात हे । राते कामियाब नै होल तेकरे से तो सुस्त नै हथ !  बाकी इ-तो कोय काफी वजह नै हे । अभी अप्पन अकिल दौड़ाइये रहला हल और बैठले चहलका के नवाब साहेब बोलला के मोखतार साहेब, ऐसन जगह तो हम कहीं नै देखलूं हल ।)    (फूब॰6:21.6-7)
4    अखतिआर     (नवाब - ई तो फजूल क-ह ह । एकरा में दुए बात, या तो जेकर हाथ में करे के हे से जाने हे ने और जाने हे तो रोके नै चाहे हे । डाकघर में दे-ख, कितना कम मुसाहरा सब के हे और केतना कम रुसबतखोरी । की वजह ? तुं कह-ब के उ सब के अखतिआर कम हे । से तो एकदम ठीक नै, हरदम रुपये लेवे-देवे के काम, चीठी चपाती भेजे भेजावे के काम, एकरो में बहुत कुछ वसूल करवैया कर सके हे ।)    (फूब॰3:10.16)
5    अखतियार     (सिंघ जी - अपने इ तो खेयाल खूब नै-ने कैलूं के जहां पर एतना बड़ा अखतियार दरोगा के देल गेल हे, जे हमनी सब से कम नै हे, और सायद कहीं पर बेसिए होत, ओहां पर आदमीयत के खेयाल करके लालच उ सब के रोके के भी उपाए कैल जाय; और दूसर बात के, सिलसिला खेयाल के भी सोच के पुलिस में ऐसन हे के जे जात से खराब हो जात ।)    (फूब॰3:10.33)
6    अखनी (= अभी)     (हमहीं पचास ठो सुसैटी बनैलूं तो बंक चलल । बाबू ऐदल सिंघ के केतना गोड़ मुड़ पड़के कालिज बनवैलूं । हमरा ऐसन कोई मोखतार क-ह कहां ? जमींदारी से की होबे-हे ? अखनी लाखो रुपया क-ह निकाल दिओ ।)    (फूब॰4:14.21)
7    अखने (= अभी, इस क्षण)     (अखने माफ क-र ।; एकरा में बड़ी दिन में बदलत और सायद कोई दूसर गड़बड़ी जे अखने नै सुझे हे आ जाए ।; अखने तबीयत परेसान हे, पीछे मिलबो ।; हां तो अखने अपन काम क-र - कहके चल गेला ।)    (फूब॰1:4.4; 3:11.14; 5:18.19, 20.26)
8    अखनो (= अभी भी)     (सामलाल अपन राय बहादुरी वास्ते बहुत गिरगिराथ के हुजुर अब तो हम सब काम कैलूं, कोए काम ऐसन नै जे हुजुर के वास्ते हम करे से इनकार कैलूं और अखनो नै क-र ही । दे-ख, सहर के बदमास सब अब परचा हमरे तरफ इसारा करके छपवैलका ह ।)    (फूब॰7:24.27)
9    अछरसह (= अक्षरशः)     (सामलाल निरबंस रह-ब और पिल्लू-पड़के मर-ब और नवाब साहेब औ बुलाकी खां के भी ऐसने कुछ सराप देलका । हलधर सिंघ अपने तो खराब चाल चलन के जरूर हला बाकी बे-कसूरी में एते भारी सजाए पावे से उनकर खेआल दिल से परमेस्वर दने होल और एहे वजह हल कि करीब करीब अछरसह उनकर सराप तीने चार बरिस में सबके हाथे हाथ पड़ल ।)    (फूब॰7:24.19)
10    अट-पट     (कभी सोचथ के एकरा मारपीट कैलूं ह, इ आदमी बड़ा चुगलखोर हे और एसडीओ के दुलरुआ, कहीं अट-पट जाके लगा-बझा के नै कह दे और लड़ाए झगड़ा करा दे, फेर सोचथ के सरीफ आदमी कसम खैलक हे ।)    (फूब॰5:18.4)
11    अतंत     (नवाब - हमनी सब के उ-सबसे कोई मतलब नै, उ-तो सरकार जाने और बहुत जादे अतंत हो गेला से लोग सब खुद दबाय करता । बाकी छोटा दायरा में जे हमनी के अखतियार हे सेकरो में तो कुछ करना ईमान के बात है ।)    (फूब॰3:10.5)
12    अदलना-बदलना     (पंखा ऊपर के खोल देलका और रास्ता भर गप-सप चकल्लस करते चलला । गाड़ी अदलते बदलते जब दू-तीन टीसन बिहार पहुंचे के रहल तो नसीबन के अपन खाना में चला देलका ।)    (फूब॰2:8.34)
13    अनठेल     (नसीबन - हां, से तो सु-न हीओ । खूब आझकल चलल हो । मारे मोअक्किल के अनठेल भीड़ रहे हे, बाकी और सब ओली बोली मारो हो ।)    (फूब॰4:14.7)
14    अनेरी मजिस्टर (= honorary magistrate)     (नवाब - अनेरी मजिस्टर सब ?/ साम - हथ ।/ नवाब - उ सब कैसन हथ ?/ साम - सब जैसन और जगह र-ह हथ ।; नबाब साहेब थोड़े दिन ऐला के बादे, अनेरी मजिस्टर के इजलास में मोकदमा भेजना कम कर देलका ।  खाली दफा "३४" या एकरारी दफा "६०" के मोकदमा कभी-कभी भेजल करथ और जेतना काम होवे अपने करथ या दुनु डिपटी के देथ ।; इ-सब तो पहिले अनेरी मजिस्टर सब क-र हला ।; सिंघजी - तो कम-से-कम ई बरसात में हमरा हैरान नै कैल जाए । अनेरी मजिस्टर जहां रहथ वहां उनके काम देल जाए ।)    (फूब॰1:5.12; 3:9.1, 16; 3:12.23)
15    अपन (= अपना)     (परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे ।; एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.17, 30)
16    अबरी (= इस बार; अगली बार, आइन्दा; ~ भर = इस बार तक)     (उ सब जे जरी 'ओः' क-र हथ, से उनखा सन्तोख देवे ले हम ई कहे ले चाह-ही कि अबरी भर हो गेलो ।; साम - (दुगमुगा के) अच्छा, तो अबरी टीसन में । बाकी कोई आदमी सेकिन अफसर के रहल तब ?; आगे चलके बोलला - दे-ख, ई अबरी जे ऐलो हे से तरे सुइआ कढ़बइया हे, एकरा से जरी बचल रहिअ ।; अबरी पहली जनवरी के चार मरतबे गजट पढ़लूँ, कहीं हमर नाम के पते नै ।; सामलाल - तो हम हुजुर के नाखोस नै कर स-क ही, बाकी अबरी हमरा पक्का खबर राय बहादुरी के मंगा देल जाए, ऐसे नसीबन तो ऐबे-जैबे करे हे ।)    (फूब॰मुखबंध:2.4; 2:8.13; 4:17.23; 7:25.21, 31)
17    अमला (= कर्मचारी, कोर्ट-कचहरी में काम करने वाले लोग, कारिंदा)     (नवाब - बहुत खराब हे न तब । पुलिस औ अमला में रूसवत जुलुम हइये हे अब हाकिमो ई बात, तो सलतनत के जड़ में दीयां समझे के चाही ।)    (फूब॰1:6.4)
18    असकुस (= असुविधाजनक, कष्टदायक)     (अबसे पानी छींट के बहाड़वे और 'गदहनीत' में केकरो असकुस नै मालूम होत, और जेहे में हमर मातृभाषा सुसज्जित हो जाए हम नीचे लिखल किताब छपावे के कोसिस करबे ।)    (फूब॰मुखबंध:2.5)
19    आएं-बाएं     (नसीबन - हम तो बड़ी कोसिस क-र हिओ और उहो खुस हथुन बाकी क-ह हथुन के ऊपर वालन सब तो आएं-बाएं क-र हथ । तोहर दुसमन सब कुछ बखेड़ा लगा दे हथुन के क-ह हथुन के कौन काम कैलका, कौन जमींदार हथ, अट-पट ।)    (फूब॰4:14.13)
20    आखिर     (नवाब साहेब खखन्द से डेवढ़ा के पास उतर के टहल रहला हल । इ-सव सुनके उ तुरते दस रुपया के नोट देलका और कहलका के द जाके और नै माने तो कुछ आखिर में भू-भड़क भी देखलइ-ह ।)    (फूब॰2:8.27)
21    आगू     (सलाह होल के सहर भर में तवाजा कैल जाए और तब सामलाल बाबू सामसुन्दर प्रसाद मोखतार के, जे इ-सब में बड़ी आगू र-ह हला, दुकानदार और पान वाला के नाम से चिट्ठी देलका के जे जे चीज के जरूरत होवे द ।)    (फूब॰8:27.4)
22    आगू-पिछू     (सिंघजी - मोखतार साहेब, तूं सच-सच बो-ल, एहां कैसे औ काहे ऐला ? नै तो जान से मार देवो, आगू पिछू जे होत ।)    (फूब॰4:16.19)
23    आझ     (सामलाल - नै, सिंघजी के तो रसातल भेजल गेल हे । आझ बड़ा जा के कहलका-सुनलका हल बाकी दुसे आने चौकी कहीं पड़ल हे ?; नसीबन - नै, खोदा के किरिआ, आझ माफ क-र ।; नसीबन - नै नै, से बात नै हे । आझ माफ क-र ।)    (फूब॰4:13.24, 14.1,32)
24    आझ काल     (आझ काल सुराज के हल्ला से तो मोकदमा एकदम कम हो गेल हे, तइओ हमनी सब के जान परिसान रहे हे ।)    (फूब॰3:9.10)
25    आझकल     (नसीबन - हां, से तो सु-न हीओ । खूब आझकल चलल हो । मारे मोअक्किल के अनठेल भीड़ रहे हे, बाकी और सब ओली बोली मारो हो ।)    (फूब॰4:14.6)
26    आने (= यानी, मतलब, अर्थात्)     (सामलाल - नै, सिंघजी के तो रसातल भेजल गेल हे । आझ बड़ा जा के कहलका-सुनलका हल बाकी दुसे आने चौकी कहीं पड़ल हे ?)    (फूब॰4:13.25)
27    आपाधापी     (नवाब साहेब - मोखतार लोग दस, बीस छोड़ के करीब-करीब सब एक दम पेसे खराब कर देलका हे और ओकर असर तेजारत में आपाधापी के खेआल से वकील बरिस्टर सब भी करीब करीब वैसने होल जा हथ ।)    (फूब॰5:19.9)
28    आरजु-मिनती (= निवेदन, प्रार्थना)     (नवाब साहेब बोलला के अभी खाहिस नै हे । तब ई बड़ी आरजु मिनती कैलका के कल्ह से हम हजुर एहां ऐलूं ह और इन्तजाम कैलूं ह ।)    (फूब॰1:3.27)
29    आरजु-मीनत     (सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उतो जखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे ।)    (फूब॰4:16.11)
30    इ (= ई; यह; ये)     (कमी और गलती जरूर इ सब में हे और यथासक्ति उ सब के हटावे के कोसिस भी कैल जात ।; बिहार सरीफ में बाबू सामलाल बड़ा मोखतार हला बाकी इ बड़ा बहुत नीचता के बाद होला हल । पहिले इ बड़ी गरीब हला । बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन । पीछ इ बिहार में एक मोखतार के यहां रसोईगिरी करके मुखतारकारी के इमतिहान देलका और इ तीन लोघड़नियां के बाद पास कर गेला।; आखिर में समझलक के इ नै मानत, एते दूर से आल हे ।; साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.6; 1:3.2, 3, 5, 6; 1:4.11, 5.10)
31    इजलास (= अदालत, कोर्ट)     (तब उनकर दोस्त पहिले एक नितनेस्वर बाबू निस्पीटर हला उनके कहलका और तब पुलिस एकरा पर दफा ६० चलौलक और कोए कोए तरह से मोकदमा उनके इजलास में गेल ।)    (फूब॰2:7.29)
32    इझार-उझार     (नवाब - … और अदालत ऐसन फौदारियो में कायदा कर देल जा सके हे के जते कुछ दरखास्त पड़े फरीक के नकल देबल जाए ।/ सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे ।)    (फूब॰3:12.13)
33    इतो (= इ तो)     (ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।)    (फूब॰1:3.13; 4:16.28)
34    इनकर (= इनखर; इनका)     (बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन ।)    (फूब॰1:3.4)
35    इनका (= इनखा; इन्हें, इनको; ~ में = इनमें)     (बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन ।; ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।)    (फूब॰1:3.4, 16)
36    इनखा     (आझ सामलाल बड़ी खोस हथ । पहिले दिन अंग्रेजी के चौथा महीना के हल । भोरे तार मिललैन के राय बहादुर हो गेला । नवाब साहेब किहाँ गेला और इनखा बोले से पहिले नवाब साहेब बोलला - मोबारक होबो ।)    (फूब॰8:26.3)
37    इलजाम     (ओ कुल कागज-उगज जे इ मामला में नवाब साहेब के खिलाफ इया बाबू हलधर सिंघ के हसबखाह हल निकलवा लेलका औ एक दू रईस के औ राम किसुन सिंघ औ सामलाल के गवाह खड़ा करके झूठझूठ रूसबत लेवे के इलजाम बाबू हलधर सिंघ पर साबित करैलका और अपने निकल गेला ।)    (फूब॰7:24.10)
38    इहे (= एही; यही)     (हम सम-झ ही कि उनकर कृपा मगही पर से घटत नै, और इहे सोंच के हम फिर दूसर पुस्तक के साथ उनकर भीरी हाजिर होलूं हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.4)
39    ई (= यह)     (हमरा ई बात से बड़ी खुसी हे कि उ अपन धर्म के पूरा तौर पालन कैलका । उ सब जे जरी 'ओः' क-र हथ, से उनखा सन्तोख देवे ले हम ई कहे ले चाह-ही कि अबरी भर हो गेलो ।; ई हमरा दने बहुत दिन से प्रचलित हे, हम एकरा लिखा रहलूं हे ।; एकरा से ई न कि स्वराज हासिल करे में हम रूक रहब, मगर हमनी के साथे-साथे ई भी कोसिस करे के होत के उदंड सूर्ज के डूबे के पहिले मगही अपन जगह पर कायम हो जाए ।; तब ई बड़ी आरजु मिनती कैलका के कल्ह से हम हजुर एहां ऐलूं ह और इन्तजाम कैलूं ह ।; नवाब - नै, ई तो तब किरकिरा हो जात ।)    (फूब॰मुखबंध:2.2, 4, 12, 32, 33; 1:3.27, 4.21)
40    उ (= ऊ; वह; वो; वे)     (कमी और गलती जरूर इ सब में हे और यथासक्ति उ सब के हटावे के कोसिस भी कैल जात ।; बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।; नवाब - उ सब कैसन हथ ?; साम - अब उ सब हाकिम हका, उ सब के बात हमरा से की पुछल जा हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.6, 11, 16; 1:5.14, 17)
41    उखनी (= ओकन्हीं, उनकन्हीं; उन सब)     (सामलाल - हुजुर, हमर सब दोस्त हका, उखनी पर ऐसन-ने के कोय सखती होवे ।)    (फूब॰1:6.14)
42    उजुर (= आपत्ति, एतराज; शंका, विरोध)     (लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे । दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.28)
43    उतो (=उ तो)     (नसीबन - हमर कहने नै मा-न ह । ऊ कहलीओ के जरूर ऐतो । तों सामने चल जा दरवाजा से ।/ सामलाल - नै नै, उतो सब दुकान खुलल हे ।; तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उतो अखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे ।)    (फूब॰4:15.10, 16.11)
44    उदंड (~ सूर्ज)     (एकरा से ई न कि स्वराज हासिल करे में हम रूक रहब, मगर हमनी के साथे-साथे ई भी कोसिस करे के होत के उदंड सूर्ज के डूबे के पहिले मगही अपन जगह पर कायम हो जाए ।)    (फूब॰मुखबंध:2.33)
45    उनकर (= उनका)     (हम सम-झ ही कि उनकर कृपा मगही पर से घटत नै, और इहे सोंच के हम फिर दूसर पुस्तक के साथ उनकर भीरी हाजिर होलूं हे ।; कुछ भूमिहार भाई एकरा से रंज हो गेला हे कि उनकर जात भाई के नकल 'सुनीता' में बनावल गेल हे ।; नवाब - हमर परनाना उनकर अपन मौसेरा छरनाती ।; नवाब - बड़ा पुलिस सब भी बदमासी करे हे । जहां कुछ उनकर बात ने मानलक और दफा ६० के रिपोट दाखिल ।; तब उनकर दोस्त पहिले एक नितनेस्वर बाबू निस्पीटर हला उनके कहलका और तब पुलिस एकरा पर दफा ६० चलौलक और कोए कोए तरह से मोकदमा उनके इजलास में गेल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.4, 8; 1:6.21; 2:7.12, 26)
46    उनके (= उन्हें ही, उनका ही)     (तब उनकर दोस्त पहिले एक नितनेस्वर बाबू निस्पीटर हला उनके कहलका और तब पुलिस एकरा पर दफा ६० चलौलक और कोए कोए तरह से मोकदमा उनके इजलास में गेल ।)    (फूब॰2:7.27)
47    उनको (= उन्हें भी)     (साम - एहे हसद ।/ नवाब - से की ?/ साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे । हमरा दस पांच हजार बैंक में हे, सब चा-ह हथ कि उनको रहत हल । हाकिम सब जैसे हमरे मा-न हथ, एहे सबसे ।)    (फूब॰1:5.11)
48    उनखा (= म॰ उनका; हि॰ उन्हें, उनको)     (उनखा से हमर अर्ज हे कि हमर हरगिज ऐसन नै ख्याल हल नै हे ।; उ सब जे जरी 'ओः' क-र हथ, से उनखा सन्तोख देवे  ले हम ई कहे ले चाह-ही कि अबरी भर हो गेलो ।)    (फूब॰मुखबंध:1.9, 2.3)
49    उहे (= वही)     (बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन ।)    (फूब॰1:3.4)
50    उहो     (नसीबन - हम तो बड़ी कोसिस क-र हिओ और उहो खुस हथुन बाकी क-ह हथुन के ऊपर वालन सब तो आएं-बाएं क-र हथ । तोहर दुसमन सब कुछ बखेड़ा लगा दे हथुन के क-ह हथुन के कौन काम कैलका, कौन जमींदार हथ, अट-पट ।)    (फूब॰4:14.12)
51    ऊ     (हम तो सुनलूं हल के तू रंडी ऊ मरदूद के यहां पहुंचा-व ह और एहे नसीबन जाहे । बाकी दुनु कसम खा-ह, और दुनु के बात ऐसन हमरा मालूम होवे हे के झूठो नै कह स-क ह ।)    (फूब॰4:17.1)
52    एकर (= एक्कर; इसका)     (ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।; एकर काबिल तो उ जा-न हला के हम नै ही बाकी अपन धुरताई पर उनका भरोसा हल ।)    (फूब॰1:3.14, 19)
53    एकरा (= इसे, इसको)     (कुछ भूमिहार भाई एकरा से रंज हो गेला हे कि उनकर जात भाई के नकल 'सुनीता' में बनावल गेल हे ।; बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।; २. मगही रामायन - (ई हमरा दने बहुत दिन से प्रचलित हे, हम एकरा लिखा रहलूं हे); एकरा नाराज करना भी आदमियत से बाहर समझ कर बोलला (उर्दू में) - च-ल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.8, 11, 2.13; 1:4.12)
54    एकरे (= इसी को)     (अंगरेजी राज रहते पूरा तौर से पढ़ाए के इन्तजाम नै हो सके हे और एकरे से उमीद हे कि अनपढ़ मगही अपन भासा के नै भूलता ।; ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला । बाकी ऐसन काम में बगैर चुगलखोरी के बढ़ती नै होवे हे एकरे से सहर के रईस इनका से कुछ कौंचल र-ह हला ।; एकरे में एक डेवढ़ा गाड़ी में से कोई औरत सामलाल के सलाम कैलक और सामलाल बदली सलाम कैलका औ इसारे से बतला देलका के एही एसडीओ जा हथ ।)    (फूब॰मुखबंध:2.31; 1:3.15, 16; 2:7.3)
55    एकाक-ठो     (सिंघ जी - तो ई कहां तक रोकल जा सके हे । तमाम तो रुसबत के बदबू होवे हे । अरे जब एकाक-ठो हाई-कोट के जज सब के अधखुलल सिकायत ई सब के हो रहल हे तो ई बेचारन के कौन ठेकाना ।)    (फूब॰3:10.2)
56    एखबार (= अखबार)     (कोए सूरत से नसीबन के साम लाल फस्ट किलास में ले ऐला । नवाब साहेब ओकरा डेवढ़ा से उतरते देख झट से अपन खाना में चढ़ गेला और गद्दी में अड़के एखबार देखे लगला । नसीबन जब आल तो गम्हीरता से एखबार रख देलका और बोलला - "बै-ठ बी-जान ।")    (फूब॰2:8.31, 32)
57    एतना (= इतना)     (एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.25)
58    एतनै (= एतनइ, एतनइँ, एतनहीं; इतना ही)     (लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे । दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.28)
59    एते (= इतना)     (आखिर में समझलका के इ नै मानत, एते दूर से आल हे ।; हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत ।)    (फूब॰1:4.12; 2:8.1)
60    एने (= एन्ने; इधर; इस तरफ)     (एने कुछ दिन से साम लाल के जनून राय बहादुर होवे के चढ़ गेल हल ।; दुसर दिन छो-पांच करते इ तै कैलका के सामलाल के और नवाब साहेब के गटपटा देवे के चाही और नसीबन के एहां कड़ा पहरा कर देलका । एने सामलाल लात के मार भुलल नै ।)    (फूब॰1:3.18; 5:18.12)
61    एने-उने     (सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हंथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ । जहां कहीं पत्ता-उत्ता खरखराए चौंक के एने उने देखे ल-ग हथ ।)    (फूब॰4:13.4)
62    एने-ओने (= एन्ने-ओन्ने; इधर-उधर)     (साम - (एने ओने देखके औ तब जरिसे पैर छूके) हमरा पर खाबिन्दी कैल जाए ।; एहे वास्ते एक रोज मौका देख बड़ा डिपटी साहेब के यहां ऐला और बात एने ओने के करके बोलला कि आझ काल सुराज के हल्ला से तो मोकदमा एकदम कम हो गेल हे, तइओ हमनी सब के जान परिसान रहे हे ।; सड़को पर एने ओने देखे ले अपन नौकर-उकर के भेजलका बाकी आखिर में अरदली सामबाबू के एक पुरजी ले-ले आल के मोसकिल से जान बचल हे, दुसमन पहुंच गेल और रगेद मारलक, अखने तबीयत परेसान हे, पीछे मिलबो ।)    (फूब॰1:4.8; 3:9.9; 5:18:16-17)
63    एलहदे (= अलग, पृथक्)     (बाबू हलधर सिंघ तहिना रात के जब बाबू सामलाल से एहलदे होला और डेरा दने चलला हल तो रास्ता में तरह तरह के खेआल उनका होबन ।)    (फूब॰5:18.1)
64    एहां (= हियाँ; यहाँ)     (नवाब साहेब बोलला के अभी खाहिस नै हे । तब ई बड़ी आरजु मिनती कैलका के कल्ह से हम हजुर एहां ऐलूं ह और इन्तजाम कैलूं ह ।; सु-न, हमरा बड़ी दुख होल एहां के हाल सुन के ।)    (फूब॰1:4.1, 6.12)
65    एहे (= यही)     (नवाब - वकील सब और मोखतार सब में बनाओ हे ? / साम - हे, बाकी मोखतार सब के आपसे में बिगाड़ जा हे । / नवाब - काहे ? / साम - एहे हसद ।; साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे । हमरा दस पांच हजार बैंक में हे, सब चा-ह हथ कि उनको रहत हल । हाकिम सब जैसे हमरे मा-न हथ, एहे सबसे ।; बाकी हमरा से कते आदमी कह देलका और हमहूं सब सम-झ ही के बराबर हमरा बाहर एहे खेयाल से छोलकटवा भेजे हे ।)    (फूब॰1:5.7, 11; 4:17.8)
66    एहो (= यह भी)     (बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।; ३.  साढ़े तीन हजार बरस के सुगन्धित फूल - (पारसी गाथा के मगही तरजुमा ऐसन । एहो तैयार हो रहल हे ))    (फूब॰मुखबंध:1.11, 2.15)
67    ऐसन (= अइसन; ऐसा)     (उनखा से हमर अर्ज हे कि हमर हरगिज ऐसन नै ख्याल हल नै हे ।; ३.  साढ़े तीन हजार बरस के सुगन्धित फूल - (पारसी गाथा के मगही तरजुमा ऐसन । एहो तैयार हो रहल हे ); नवाब साहेब भीतरे भीतर तो कुछ अजब ऐसन समझथ मगर रईस घरैना के रहला के वजह से रूख से बात नै कर सकथ ।; नवाब सहेब के ढेर खोसामदी से भेंट होल हल बाकी ऐसन खाहमखाह तो कोई नै मालूम भेल ।; हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.9, 2.15; 1:3.15, 4.2, 10, 5.9; ….)
68    ओ (= ऊ; वह, वो, वे)     (ओ कुल कागज-उगज जे इ मामला में नवाब साहेब के खिलाफ इया बाबू हलधर सिंघ के हसबखाह हल निकलवा लेलका औ एक दू रईस के औ राम किसुन सिंघ औ सामलाल के गवाह खड़ा करके झूठझूठ रूसबत लेवे के इलजाम बाबू हलधर सिंघ पर साबित करैलका और अपने निकल गेला ।)    (फूब॰7:24.6)
69    ओकर (= ओक्कर; उसका)     (बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।; एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।; साम - उ बिहार के कसबी है । एक मरतबे दफा ६० के मोकदमा में हम ओकर काम कैलिए हल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.11, 26; 2:7.11)
70    ओकरा (= उसे, उसको)     ('सुनीता' के जैसन आदर से पाठकगन अपनैलका हे और श्रीयुत् सुनीति कुमार चटर्जी जैसन प्रेम से ओकरा अंग्रेजी के नामी मासिक पत्र में परिछन कैलका हे, ओकरा से उत्साह हमर जरूर बढ़ गेल हे ।; बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह ।; ओकरा मोताबिक अपन मातृभाषा के सजे-धजे के ख्याल हमरा आज २० बरस से हे, लेकिन धन काफी नै रहला से ओकरा करके नै देखला सकलूं ।; दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।; महल पर एक गरीब कायथ के कुछ रुपया करजा देलका हल, सूद मूर लगाके ओकरा से मकान लिखा लेलका और थोड़े दिन में दुमहला मकान आलीसान बनैलका ।)    (फूब॰मुखबंध:1.2, 3, 10, 17, 19, 29; 1:3.9)
71    ओकरे (= उसी को, उसको ही; ~ ऐसन = उसी के समान/जैसा)     (साम - पढ़ल-लिखल ग्रैजुएट के तो ठेकाने नै औ इ-सब थोड़े बहुत पढ़ल सब जे बराबर जीमींदारी में दस रुपया एकरा से लेलका तो एकर ऐसन इनसाफ, पांच रुपया ओकरा से बेसी सलामी मिल गेल तो ओकरे ऐसन इनसाफ ।; सामलाल - दहिना बगल में कैसन कोठली हे ?/ नसीबन - (हंस के) पैखाना ।/ सामलाल झट से "की होत" करते ओकरे में घुस गेला ।; खेल सुरू होल तो उपर जे लिखल गेल हे ओकरे हेरफेर करके नाटक बनावल किताब के खेल होवे लगल ।)    (फूब॰1:5.26; 4:15.18; 8:27.23)
72    ओतना (= उतना)     (सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उतो जखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे ।)    (फूब॰4:16.11)
73    ओली-बोली     (नसीबन - हां, से तो सु-न हीओ । खूब आझकल चलल हो । मारे मोअक्किल के अनठेल भीड़ रहे हे, बाकी और सब ओली बोली मारो हो ।)    (फूब॰4:14.7)
74    ओही (= वही)     (नवाब - तब काहे उ सब के मोकदमा दे हथ और रहे दे हथ ?/ साम - एक मरतबे गुड़ीआर साहब ऐला हल तो एकदम बंदे मोकदमा देना कर देलका हल । फेर सब बड़ा खोसामद उसामद कैलका । छोटा मोटा मोकदमा भेजल जाए लगल । उ गेला तो फेर ओही बात ।)    (फूब॰1:6.3)
75    ओहे (= वही)     (महल पर एक गरीब कायथ के कुछ रुपया करजा देलका हल, सूद मूर लगाके ओकरा से मकान लिखा लेलका और थोड़े दिन में दुमहला मकान आलीसान बनैलका । ओहे कायथ सुगनलाल फेर रसोइआ के काम करे लगलैन ।; उ कहे कि नसीबन किहां सिंघजी रोज जा हथ औ हम कहलूं कि नै । ओहे उ कहलक के सांझ के केवाड़ी खुले हे खिरकी में से तूं जाके देखि-ह ।)    (फूब॰1:3.10; 4:16.22)
76    औ (= आउ; और)     (साम - (एने ओने देखके औ तब जरिसे पैर छूके) हमरा पर खाबिन्दी कैल जाए ।; खानसामा तीन-चार टुकड़ा बिसकुट और चाय औ अण्डा गैरह हिसाब से ला-ला के नवाब साहेब के भीरी रखे लगल और मोखतार साहेब टेबुल के दूसर तरफ बैठला ।; नवाब - अच्छा, कुछ फल-वल लाके दे भाई । औ हिन्दू चाय वाले को बुला लाओ ।; साम - बहुत पुरान जगह औ बहुत अच्छा जगह है ।)    (फूब॰1:4.8, 16, 25, 31)
77    कखनो-कखनो (= कभी-कभी)     (नवाब - कखनो कखनो हमरो खून उबल उठे हे । जौन बेईमानी से वादसाहत लेल गेल हे; तुरकी के साथ बेइमानी, फेर अरब में हमनी सब कमजोर आदमी, बाकी खुदा तो जरूर देखत ।)    (फूब॰1:6.24)
78    कखनौ (= कखनहूँ)     (सामलाल - तो ओकर एकठो अपने आदमी ओकरा हीं रहे-हे और ओकरा उ बड़ी माने हे । बकस उकस भी कखनौ खोल देहे । ओकरा थोड़ा बहुत के लालच देला से उ सब काम कर दे सके हे ।)    (फूब॰6:22.28)
79    कमिनपनई     (ई सब के अंग्रेजी विद्या फरोस के यहाँ से खरीद के सिआह सुर्ख मुफ्तख्वार के कुइआँ से आबे - कमिनपनई में खूब पीस के पी जाए !  कुछ दिन फायदा नै होए तो माजूने भँड़ुअइ के साथ इस्तेमाल कैला से जरूर आराम होत ।)    (फूब॰7:25.10)
80    कम्मल (= कम्बल) (~ ओढ़ के घी पीना)     (नवाब साहेब - तो सामलाल तो पुरनकन में हथ, उतो बड़ा बेस आदमी, इ सब में नै बुझाथ ।/ सिंघजी - ओहो बड़ा कम्मल ओढ़ के घी पिबैआ ।)    (फूब॰5:19.20)
81    करजा (= कर्ज, ऋण)     (महल पर एक गरीब कायथ के कुछ रुपया करजा देलका हल, सूद मूर लगाके ओकरा से मकान लिखा लेलका और थोड़े दिन में दुमहला मकान आलीसान बनैलका ।)    (फूब॰1:3.9)
82    करवैया     (सिंघजी - बाकी ई बात तो होवे के नै । सरकार साठ करोड़ खर्चा चाहे अपन गरज से, चाहे अपन गलत समझ के वजह से, कम करवैया तो नै हे, और नै तोप गोला सरहद से उठा ले सके हे ।)    (फूब॰3:12.2)
83    कल्ह (= कल)     (नवाब साहेब बोलला के अभी खाहिस नै हे । तब ई बड़ी आरजु मिनती कैलका के कल्ह से हम हजुर एहां ऐलूं ह और इन्तजाम कैलूं ह ।; सामलाल - अरे बाप । उ तो कल्ह सगरो गोहार कर देत ।; कल्ह नसीबन के यहां जे हम छिपल छिपल बाबू हलधर सिंघ के बात सुनलूं तेकरा से यकीन ऐसन हो गेल ।)    (फूब॰1:4.1; 4:15.14; 6:22.11)
84    कवले (~ से)     (सन् १३२९ फ॰ के चैत में मोलवी मोजफ्फर नवाब एस-डी-ओ मानभूम से बदल के ऐला और हलधर सिंघ सब-डिपटी एक बरस कवले से हला ।)    (फूब॰1:3.18)
85    कसबी     (गाड़ी खुलल तब नवाब साहेब गदिए पर अड़ल अड़ल बोलला (उर्दू में) - तोहरा उ सलाम कौन औरत कैलको । /साम - उ बिहार के कसबी है । एक मरतबे दफा ६० के मोकदमा में हम ओकर काम कैलिए हल ।)    (फूब॰2:7.10)
86    कहल (= कहा, कहा हुआ)     (लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे । दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.27)
87    कहैं (= कहीं)     (सिंघजी - खाली थोड़े बहुत के फरक । हां, नेआ रोसनी के सब अएला हे उ सब पहिलन से कहैं बेस हथ, पुरनकन के दे-ख बिरले कोई ऐसन हथ जे सराब ताड़ी नै पीअथ और दास्ता ने रखथ ।)    (फूब॰5:19.16)
88    कागज-उगज     (ओ कुल कागज-उगज जे इ मामला में नवाब साहेब के खिलाफ इया बाबू हलधर सिंघ के हसबखाह हल निकलवा लेलका औ एक दू रईस के औ राम किसुन सिंघ औ सामलाल के गवाह खड़ा करके झूठझूठ रूसबत लेवे के इलजाम बाबू हलधर सिंघ पर साबित करैलका और अपने निकल गेला ।)    (फूब॰7:24.7)
89    काठ के उल्लू     (नवाब साहेब बोलला - मोखतार सब तो मोसकिल कर दे हथ । कुछ असल बात तो हमनी के जाने नै देथ । काठ के उल्लू हमनी के बना र-क्ख हथ ।)    (फूब॰5:18.25)
90    काबिल     (नवाब - … तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला । / साम - नै हुजुर, हम कौन काबिल ही ।)    (फूब॰2:8.3)
91    कायथ (= कायस्थ)     (महल पर एक गरीब कायथ के कुछ रुपया करजा देलका हल, सूद मूर लगाके ओकरा से मकान लिखा लेलका और थोड़े दिन में दुमहला मकान आलीसान बनैलका ।)    (फूब॰1:3.8)
92    कालिज (= कॉलेज)     (हमहीं पचास ठो सुसैटी बनैलूं तो बंक चलल । बाबू ऐदल सिंघ के केतना गोड़ मुड़ पड़के कालिज बनवैलूं । हमरा ऐसन कोई मोखतार क-ह कहां ? जमींदारी से की होबे-हे ? अखनी लाखो रुपया क-ह निकाल दिओ । बिरजी-फिरजी एतना कोसिस कैलका कुछ स्कूल कालिज में ? यहां हम उ सब के चले देलूँ ?)    (फूब॰4:14.20, 22)
93    काहे (= क्यों ?)     (नवाब - वकील सब और मोखतार सब में बनाओ हे ? / साम - हे, बाकी मोखतार सब के आपसे में बिगाड़ जा हे । / नवाब - काहे ? / साम - एहे हसद ।; नवाब - तब काहे उ सब के मोकदमा दे हथ और रहे दे हथ ?)    (फूब॰1:5.6, 33)
94    किरिआ     (मोकामा में गाड़ी ठहरल और साम लाल उतरके डेवढ़ा में गेला और नसीबन के चलैलका बाकी नखड़ा करे लगल और बोले लगल के हलधर बाबू सुनता तो जान से मार देता । साम लाल बड़ी ओकरा दिलासा देलका और किरिआ खैलका बाकी उ नै उतरल ।)    (फूब॰2:8.24)
95    किलास (फस्ट ~)     (कोए सूरत से नसीबन के साम लाल फस्ट किलास में ले ऐला । नवाब साहेब ओकरा डेवढ़ा से उतरते देख झट से अपन खाना में चढ़ गेला और गद्दी में अड़के एखबार देखे लगला ।)    (फूब॰2:8.29)
96    किहाँ (= के यहाँ)     (आझ सामलाल बड़ी खोस हथ । पहिले दिन अंग्रेजी के चौथा महीना के हल । भोरे तार मिललैन के राय बहादुर हो गेला । नवाब साहेब किहाँ गेला और इनखा बोले से पहिले नवाब साहेब बोलला - मोबारक होबो ।)    (फूब॰8:26.3)
97    किहां (= के यहाँ)     (बिहान होके बाबू हलधर सिंघ भोरे नवाब साहेब किहां पहुंचला ।)    (फूब॰5:18.20)
98    की (= क्या)     (साम - एहे हसद ।/ नवाब - से की ?/ साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे । हमरा दस पांच हजार बैंक में हे, सब चा-ह हथ कि उनको रहत हल । हाकिम सब जैसे हमरे मा-न हथ, एहे सबसे ।; नवाब - से की ?/ साम - अब उ सब हाकिम हका, उ सब के बात हमरा से की पुछल जा हे ।; साम - अब हुजुर कह-ह तो हम की बतलाउं ।; सिंघ जी - हमनी केतना की कर स-क ही । सबसे भारी जुलुम तो पुलिस के घूस ।)    (फूब॰1:5.8, 16, 17, 21; 3:10.8)
99    कीहाँ (= के यहाँ)     (सिंघजी - जोरू बड़ी खुबसूरत लोग बतला-व हथ । मेम के ऐसन सफेद और बाल आंख भी कुछ ऐसने । एकरे सब बदमास सब एक मरतबे हल्ला कर देलक के ऐकली साहेब कीहाँ अपना जोरूए के पहुँचावे हे ।)    (फूब॰5:20.10)
100    कीहां (= के यहाँ)     (ओकर सौहर और मालिक बड़ा हल्ला करे ले चाहलका बाकी उ एक किसिम के धुरत औ नीच हे । झट साहेब सोबरनडंट कीहां ओकरा एक रात के दाखिल कर देलक तब तो उ सार जे भागल से बिहार आबे के नाम नै लेलक और कैक आदमी के पड़ला से ओकरा सौ-पचास रुपया देके दूसर सादी कर देल गेल ।; डाक में, एक आझ एक गुमनामी चीठी रांची से घोलटते पोलटते आल हल । कोई आदमी नवाब साहेब के बड़ी सिकायत कैलक हल और जादे सिकायत नसीबन कीहां जायके बारे में हल ।)    (फूब॰5:20.4, 30)
101    कुइआँ     (ई सब के अंग्रेजी विद्या फरोस के यहाँ से खरीद के सिआह सुर्ख मुफ्तख्वार के कुइआँ से आबे - कमिनपनई में खूब पीस के पी जाए !  कुछ दिन फायदा नै होए तो माजूने भँड़ुअइ के साथ इस्तेमाल कैला से जरूर आराम होत ।)    (फूब॰7:25.10)
102    केकर (= किसका)     (यहां हम उ सब के चले देलूँ ? सगरो गाँधीजी के स्कूल बनल, यहां हमर मोकाबला में कुछ कोए कर सकल ? खद्दर कोए नामो ने एहां ले । से केकर बदौलत ?)    (फूब॰4:14.25)
103    केकरो (= किसी को; किसको भी)     (फूल बहादुर में दे-ख, हमर एक लाला भाई गोबर्धन उठैलका हे । और कुछ दिन बाद 'गदह नीत' में और केकरो चैनमारी के खम्भा बने होत ।; ऐसन सिलसिला के खेयाल वाला के हजारों दस हजार के हैसियत वाला के इज्जत के मोकदमा फैसला करे ले मिले हे, तो सौ-पचास कभी चढ़ावा कभी नगद अगर उ सब में केकरो के आमद हो जा हे तो कौन मना ।; नवाब - नै, हम केकरो बुराई ने क-र ही । सु-न, हम बादसाही खानदान के ही ।; ई इनसाफ हे के बाहर से केकरो नै आवल देल जाए, आफत रोकल जाए, एकरा ले तोप हवाई जहाज रखल जाए और घर में रैयत के पचासों ताजी कुत्ता छोड़ देल जाए, के झोल झोल के मारो ।; सामलाल - मा-र भड़ुअन के !  हमरा कौन चीज घटे हे जे केकरो परवाह हे ।; ई सब बात केकरो से कहि-ह नै ।; नवाब साहेब सामलाल के उ गुमनामी चिठिये दे देलका और कहलका के सब बात केकरो जाहिर नै होवे पावे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.14; 1:5.29, 6.16; 3:12.24; 4:14.9, 17.4; 6:21.14)
104    केवला (= केवड़ा, संतरा)     (खानसामा तब जाके कुछ केला वो केवला ले आल और हिन्दू चाय वाला के बोला के दू प्याला चाय अलग दूसर टेबुल पर रखलक और केवाड़ी लगैते चल गेल ।)    (फूब॰1:4.27)
105    केवाड़ी (= किवाड़)     (खानसामा तब जाके कुछ केला वो केवला ले आल और हिन्दू चाय वाला के बोला के दू प्याला चाय अलग दूसर टेबुल पर रखलक और केवाड़ी लगैते चल गेल ।)    (फूब॰1:4.29; 4:13.8, 12)
106    कैक (= कई एक)     (नवाब साहेब रात भर बड़ी परेसान रहला, नसीबन अब आवे हे, तब आवे हे । कैक मरतबे अरदली के उनकर डेरा पर भेजलका के ऐले रहथ बोला लाओ ।; झट साहेब सोबरनडंट कीहां ओकरा एक रात के दाखिल कर देलक तब तो उ सार जे भागल से बिहार आबे के नाम नै लेलक और कैक आदमी के पड़ला से ओकरा सौ-पचास रुपया देके दूसर सादी कर देल गेल ।; दे-ख ने, ओकरा में लिखलक हे के तहकिकात कैल जाए तो कागजी सबूत भी दाखिल होत । की जानु कैक ठो चिट्ठी कुछ चन्दा उन्दा वास्ते लिखलूं हल जमींदार सब के, सायद वहे जमा कैले हे ।)    (फूब॰5:18.15, 20.5; 6:22.25)
107    कैसन (= कइसन; कैसा)     (खैते-खैते नवाब साहेब पुछलका - क-ह बिहार कैसन जगह हे ?; नवाब - उ सब कैसन हथ ?; साम - इ बात तो मोकदमा के हे । हमरा जरा बड़ा कैसन तो कहे में मालूम होवे हे ।; कम-से-कम देखल तो एकाक दू जिला में जा सके हे के दरोगा जमादार कैसन काम क-र हथ ।)    (फूब॰1:4.30, 5.14; 2:7.16; 3:11.11)
108    कैसुं (= कैसुँ, कइसुँ; किसी तरह)     (साम - नसीवन एकर नाम हे और अभी एकर खुल्लम खुल्ली नथुनी ने उतरल हे । बाबू हलधर सिंघ वहां सिकिन अफसर हथ से एकरा कैसुं एक मरतबे देख लेलका औ केतनो बोलाथिन तो नै जाइन ।)    (फूब॰2:7.25)
109    कोए (= कोय; कोई)     (तो फिर कोए जात के तो एकर भाव सहे होत ।; नवाब - तूं बेखोफ र-ह । हमरा चलते तोहर नोकसानी कोए नै कर सको हो ।; तब उनकर दोस्त पहिले एक नितनेस्वर बाबू निस्पीटर हला उनके कहलका और तब पुलिस एकरा पर दफा ६० चलौलक और कोए कोए तरह से मोकदमा उनके इजलास में गेल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.12; 2:7.18, 28)
110    कोठली     (सामलाल - नै नै, उतो सब दुकान खुलल हे ।/ नसीबन - तो बगल के कोठली में चल जा ।; सामलाल - दहिना बगल में कैसन कोठली हे ?/ नसीबन - (हंस के) पैखाना ।)    (फूब॰4:15.11, 16)
111    कोय (= कोई)     (सामलाल - हुजुर, हमर सब दोस्त हका, उखनी पर ऐसन-ने के कोय सखती होवे ।; राते कामियाब नै होल तेकरे से तो सुस्त नै हथ !  बाकी इ-तो कोय काफी वजह नै हे ।)    (फूब॰1:6.15; 6:21.6)
112    कोसिस (= कोरसिस; कोशिश)     (कमी और गलती जरूर इ सब में हे और यथासक्ति उ सब के हटावे के कोसिस भी कैल जात ।; बहुत से हमर जिन्दगी में खतम नै होत, एकरा ले हम कुछ धन बंक में कर देबे ले ही कि कुछ दिन के बाद जब सूद दर सूद काफी रकम हो जाए तो जे एकर पंच होता उ मगही भाषा जे तखने प्रचलित रहत ओकरा और और भासा के बराबर अलंकृत करे के कोसिस करता ।)    (फूब॰मुखबंध:1.6, 2.27)
113    कौंचल (= चिढ़ा / खीजा / रूठा हुआ)     (बाकी ऐसन काम में बगैर चुगलखोरी के बढ़ती नै होवे हे एकरे से सहर के रईस इनका से कुछ कौंचल र-ह हला ।)    (फूब॰1:3.16)
114    खखन्द (= खक्खन)     (नवाब साहेब खखन्द से डेवढ़ा के पास उतर के टहल रहला हल ।)    (फूब॰2:8.25)
115    खपत (~ हो जाना)     (सामलाल चिट्ठी के तबतक समझ रहला हल और एस-डी-ओ एहां से लिफाफा के भी जेकरा अरदली फाड़ के बिग देलक हल, खोजके साथ रखले हला । नवाब साहेब लिफाफा के मोहर के देखलका । ठीक, सिमला "फूल्स-पैरेडाइज" के मोहर हल । "साबस" कह के उठला और हंसते चल देलका । सामलाल तो खपत हो गेला, उ टिकट उखाड़ के देखलका तो साफ अंग्रेजी टाइप से नीचे में छपल हलः - 'फूल बहादुर' ।)    (फूब॰8:28.10)
116    खाबिन्दी     (साम लाल - जैसन हुजुर के खाबिन्दी । हम तो हुजुर के थूक के बराबर नै ही ।; सामलाल (पढ़ते पढ़ते बोलला) - इ-सब हुजुर के खाबिन्दी हे ।; सामलाल - नै, इ सब के जरूरत नै हे । हमरा सब जादे एहे ताना मा-र हथ के गजट निकललो मोखतार साहेब ? और हुजुर से एकर खाबिन्दी नै होबे हे । अबरी पहली जनवरी के चार मरतबे गजट पढ़लूँ, कहीं हमर नाम के पते नै ।)    (फूब॰2:8.7; 6:21.19; 7:25.21)
117    खार (~ खाना = डाह रखना)     (साम - एहे हसद ।/ नवाब - से की ?/ साम - अब जैसे हमरे से सब खार खा हथ । हमर किला ऐसन मकान हे, सब के इ अच्छा न लगे । हमरा दस पांच हजार बैंक में हे, सब चा-ह हथ कि उनको रहत हल । हाकिम सब जैसे हमरे मा-न हथ, एहे सबसे ।)    (फूब॰1:5.9)
118    खाहमखाह (= खामखाह; शुभचिंतक)     (नवाब सहेब के ढेर खोसामदी से भेंट होल हल बाकी ऐसन खाहमखाह तो कोई नै मालूम भेल ।)    (फूब॰1:4.10-11)
119    खाहिस (= ख्वाहिश, इच्छा)     (पहुंच के आदाब बन्दगी कैलका और अपन निसान पता बतैलका और बोलला के पच्छिम के गाड़ी आवे में अभी देर हे, जबतक चलके नास्ता पानी कर लेल जाए । नवाब साहेब बोलला के अभी खाहिस नै हे ।)    (फूब॰1:3.27)
120    खोदा (= ख़ुदा)     (तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला ।; नसीबन - नै, खोदा के किरिआ, आझ माफ क-र ।; बुढ़िया (झट से कोरान जे टंगल हल ओकरा पर हाथ रख के) - खोदा के कसम, रसूल पैगम्बर के कसम । हमनी कुछ नै जानी ।)    (फूब॰2:8.2; 4:14.1, 16.8)
121    खोदा-दादी (~ अकिल)     (नवाब साहेब - ठीक हे, बाकी तुं तुरते कैसे पता लगा लेला ? / सामलाल - खोदा-दादी अकिल हमरा सम-झ हे और कुछ बात याद भी पड़ गेल । कल्ह नसीबन के यहां जे हम छिपल छिपल बाबू हलधर सिंघ के बात सुनलूं तेकरा से यकीन ऐसन हो गेल ।)    (फूब॰6:22.10)
122    खोस (= खुश)     (ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।; नवाब - ओह ! (बड़ी खोस होके और उठके बैठके) तब तो तुं एकदम लाजवाब आदमी ह । हम तो समझलूं हल के एते दूर के सफर बड़ा सुखल साखल होत । तूं खोदा के देल मिल गेला ।)    (फूब॰1:3.14; 2:7.31)
123    खोसामद-उसामद     (नवाब - तब काहे उ सब के मोकदमा दे हथ और रहे दे हथ ?/ साम - एक मरतबे गुड़ीआर साहब ऐला हल तो एकदम बंदे मोकदमा देना कर देलका हल । फेर सब बड़ा खोसामद उसामद कैलका । छोटा मोटा मोकदमा भेजल जाए लगल । उ गेला तो फेर ओही बात ।)    (फूब॰1:6.2)
124    खोसामदी (= खुशामद)     (ऐसे तो करीब-करीब सभे सरकारी काम करे वाला थोड़े बहुत खोसामदी होवे क-र हथ । इतो मुसलमानी वादसाहत और हिन्दुस्तान के गुलाम के फल हे । बाकी इनका में एकर मातरा कुछ जादे हल और हाकिम वगैरह के खूब खोस एकरे से र-ख हला ।)    (फूब॰1:3.12, 4.10)
125    खोसी (= खुशी)     (जो गरीब रहे ओकर माफ कर देल जा सके हे और लोग खोसी से देता और ऐसन समझ से अमलन के रुसबत भी उठावल जा सके हे । कोटफीस बढ़ाके मुसहारा कुछ बढ़ा देल जा सके हे ।)    (फूब॰3:12.8)
126    गटपटाना     (दुसर दिन छो-पांच करते इ तै कैलका के सामलाल के और नवाब साहेब के गटपटा देवे के चाही और नसीबन के एहां कड़ा पहरा कर देलका ।)    (फूब॰5:18.11)
127    गदिए (~ पर = गद्दी पर ही)     (गाड़ी खुलल तब नवाब साहेब गदिए पर अड़ल अड़ल बोलला (उर्दू में) - तोहरा उ सलाम कौन औरत कैलको ।)    (फूब॰2:7.8)
128    गम्हीर (= गम्भीर)     (बे समझे बोलला, कुछ समझलका तो नई बाकी तरे तरे मुसकला, ऊपर से एकदम गम्हीर रहला ।)    (फूब॰1:6.23)
129    गम्हीरता (= गम्भीरता)     (कोए सूरत से नसीबन के साम लाल फस्ट किलास में ले ऐला । नवाब साहेब ओकरा डेवढ़ा से उतरते देख झट से अपन खाना में चढ़ गेला और गद्दी में अड़के एखबार देखे लगला । नसीबन जब आल तो गम्हीरता से एखबार रख देलका और बोलला - "बै-ठ बी-जान ।")    (फूब॰2:8.32)
130    गाड़ीवानी     (बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन ।)    (फूब॰1:3.3-4)
131    गारत     (बुढ़िया - मोखतार साहेब, तूं सब गारत कैला । तूं काहे ला हमरा हीं चोर ऐसन ऐला ।)    (फूब॰4:16.16)
132    गिरगिराना (= घिघियाना; गिड़गिड़ाना)     (सामलाल अपन राय बहादुरी वास्ते बहुत गिरगिराथ के हुजुर अब तो हम सब काम कैलूं, कोए काम ऐसन नै जे हुजुर के वास्ते हम करे से इनकार कैलूं और अखनो नै क-र ही । दे-ख, सहर के बदमास सब अब परचा हमरे तरफ इसारा करके छपवैलका ह ।)    (फूब॰7:24.26)
133    गुरुऐ (= गुरुअइ; अध्यापन कार्य)     (बाबूजी गाड़ीवानी क-र हलथिन, और इनकर फुफा, गुरुऐ क-र हलथिन और उहे इनका मिडिल पास करैलथिन ।)    (फूब॰1:3.4)
134    गैरह (= वगैरह)     (आखिर केलनर के कमरा में दुनु गेला और खिदमतगार गैरह के चीजबस्त देखते रहे कह देलका । खानसामा तीन-चार टुकड़ा बिसकुट और चाय औ अण्डा गैरह हिसाब से ला-ला के नवाब साहेब के भीरी रखे लगल और मोखतार साहेब टेबुल के दूसर तरफ बैठला ।; नवाब - तो एसडीओ गैरह एकरा नै जा-न हथ ?; हसनइमाम गैरह के साथे, बलके जादे खिलाफे, काम कैलूं बाकी सब हमर लोहा एकरा से मा-न हथ ।)    (फूब॰1:4.14, 16, 5.31; 6:22.6)
135    गोड़-मुड़ (~ पड़ना)     (हमहीं पचास ठो सुसैटी बनैलूं तो बंक चलल । बाबू ऐदल सिंघ के केतना गोड़ मुड़ पड़के कालिज बनवैलूं । हमरा ऐसन कोई मोखतार क-ह कहां ? जमींदारी से की होबे-हे ? अखनी लाखो रुपया क-ह निकाल दिओ ।)    (फूब॰4:14.20)
136    गोदाल     (ओकरा बारे जे हम सुनलूं से झूठ मालूम होवे हे; तो फेर दुलरुआ रहे के बात भी झुट्ठे खबर उड़ल बुझा हे, तो अपन ई बेइजती के बात सगरो गोदाल होवे के डर से इ सब बात के छेड़त कहों नै ।)    (फूब॰5:18.8)
137    गोसाहा (= गुस्सैल, क्रोधी स्वभाव का)     (जहाँ जरी से सिकायत होल, फौरन तहकीकात और सजाए । एकरे से खाली रोजी नै लेवे के खेयाल से कोई आदमी जल्दी सिकायत नै करे हे जब तक मजबूर नै हो जाए; और जो कोए गोसाहा तनी तनी बात में सिकायत करे हे तो और सब आदमी ओकरा मदद नै करे हे ।)    (फूब॰3:10.22)
138    घरैना (= घराना)     (नवाब साहेब भीतरे भीतर तो कुछ अजब ऐसन समझथ मगर रईस घरैना के रहला के वजह से रूख से बात नै कर सकथ ।)    (फूब॰1:4.2)
139    घोलटना-पोलटना     (डाक में, एक आझ एक गुमनामी चीठी रांची से घोलटते पोलटते आल हल । कोई आदमी नवाब साहेब के बड़ी सिकायत कैलक हल और जादे सिकायत नसीबन कीहां जायके बारे में हल । ओकरा में कुछ रुसबत लेवे के भी सिकायत हल ।)    (फूब॰5:20.28)
140    चकल्लस     (पंखा ऊपर के खोल देलका और रास्ता भर गप-सप चकल्लस करते चलला । गाड़ी अदलते बदलते जब दू-तीन टीसन बिहार पहुंचे के रहल तो नसीबन के अपन खाना में चला देलका ।)    (फूब॰2:8.33)
141    चचाजी     (सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उतो जखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे ।)    (फूब॰4:16.10)
142    चन्दा-उन्दा     (बहुत सीधा तो हंसुआ ऐसन, पंचानवे हाथ के अंतड़ी रखवइआ । दे-ख ने, ओकरा में लिखलक हे के तहकिकात कैल जाए तो कागजी सबूत भी दाखिल होत । की जानु कैक ठो चिट्ठी कुछ चन्दा उन्दा वास्ते लिखलूं हल जमींदार सब के, सायद वहे जमा कैले हे ।)    (फूब॰6:22.25)
143    चन्नन-टीका     (सिंघजी - चन्दन टीका खाली धोखा देवे के हे । ऐसे तो आझ कल के कचहरी से सरोकार रखवैआ जे चन्नन-टीका करे ओकरा में सैंकड़ा पीछू ९० के पक्का बेईमान और मोत्तफनी सम-झ ।)    (फूब॰5:19.23)
144    चपसना     (साम - नै, ताबे में की रहत, फिर तो रंडिए हे । बाकी हां, जरा परदा से कोई बात होवे हे और अभी (चपस के) एकदम नवेली हे । / नवाब साहेब - तों एकदम बेताव हो गेला । अब ढेर मोसकिल मत क-र, जल्दी जा ।)    (फूब॰2:8.17)
145    चिक्कन (~ बटलोही)     (नवाब साहेब - और कायथ सभ तोहनी बाभन के क-ह हथ ।/ सिंघजी - से-हे । बाकी कोई बाभन में सामलाल के जोड़ा के देखला दे, ऊपर से एतना चिक्कन बटलोही बाकी केतना घर खराब कर देलक हे ।)    (फूब॰5:19.29)
146    चीज-बस्त (= चीज-वस्त, चीज-वस्तु; माल-असबाब)     (आखिर केलनर के कमरा में दुनु गेला और खिदमतगार गैरह के चीजबस्त देखते रहे कह देलका ।)    (फूब॰1:4.15)
147    चीज-वस्त (= चीज-बस्त, चीज-वस्तु; माल-असबाब)     (गाड़ी आवे के वेला हो गेल । मोसाफिर सब दूसर पलाट-फारम पर अपन चीज वस्त ले जाए लगला ।)    (फूब॰1:6.29)
148    चुसबैया     (सिंघ जी - हमनी केतना की कर स-क ही । सबसे भारी जुलुम तो पुलिस के घूस । जेकरा में दसे बीस इया पचासे अच्छा इमानदार हका नै तो सब रैयत के बदन में जोंक से जादे खून चुसबैया । सरकार की एकरा नै जाने हे बाकी उ भी कुछ नै कर सके ।)    (फूब॰3:10.10)
149    चैनमारी (~ के खम्भा)     (बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह । तो फिर कोए जात के तो एकर भाव सहे होत । फूल बहादुर में दे-ख, हमर एक लाला भाई गोबर्धन उठैलका हे । और कुछ दिन बाद 'गदह नीत' में और केकरो चैनमारी के खम्भा बने होत ।)    (फूब॰मुखबंध:1.14)
150    छछन्दर (~ के बच्चा)     (सिंघजी (दुसर लात उठाके) - चुप, छछन्दर के बच्चा (और जेब से तमनचा खींच के और देखलाके) खबरदार, एहैं पर सारे बहादुरी खतम हो जैतो (और हाथ पकड़ के खींच के बाहर निकाल के नसीबन से) देख, ई कहां से जनमलौ ।)    (फूब॰4:15.32)
151    छपल (= छपा, छपा हुआ)     (एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।)    (फूब॰मुखबंध:1.25)
152    छरनाती     (नवाब - हमर परनाना उनकर अपन मौसेरा छरनाती ।)    (फूब॰1:6.21)
153    छिपले-छिपले     (ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे । एकरा से अच्छा तो और खराब काम करके छिपले छिपले कमा सके हे ।)    (फूब॰4:16.15)
154    छो (~-पांच करना)     (दुसर दिन छो-पांच करते इ तै कैलका के सामलाल के और नवाब साहेब के गटपटा देवे के चाही और नसीबन के एहां कड़ा पहरा कर देलका ।)    (फूब॰5:18.11)
155    छोलकटवा     (बाकी हमरा से कते आदमी कह देलका और हमहूं सब सम-झ ही के बराबर हमरा बाहर एहे खेयाल से छोलकटवा भेजे हे ।)    (फूब॰4:17.9)
156    छौ (~ पाँच करना)     (परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.23)
157    छौंड़ी     (बुढ़िया (झट से कोरान जे टंगल हल ओकरा पर हाथ रख के) - खोदा के कसम, रसूल पैगम्बर के कसम । हमनी कुछ नै जानी । इ छौंड़ी के तो दीने से तबीयत खराब हे और ओकरे में हम परिसान हलूं ।)    (फूब॰4:16.9)
158    जखनै (= जभी)     (सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उतो जखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे ।)    (फूब॰4:16.11)
159    जरिसे (= जरि सन; जरा सा)     (साम - (एने ओने देखके औ तब जरिसे पैर छूके) हमरा पर खाबिन्दी कैल जाए ।)    (फूब॰1:4.8)
160    जरी-जरी     (अंधारी रात हे । जरी-जरी रह-रह के बिजुली भी चमके हे । सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ ।)    (फूब॰4:13.1)
161    जहिना (= जिस दिन)     (आवे के जहिना खबर हल सामलाल किउल स्टेसन एक रोज पहले तेकरा से पहुँच गेला और केलनर के हिआं चाय पानी के बन्दोबस्त कर देलका ।)    (फूब॰1:3.21)
162    जाने देना (= जानने देना)     (नवाब साहेब बोलला - मोखतार सब तो मोसकिल कर दे हथ । कुछ असल बात तो हमनी के जाने नै देथ । काठ के उल्लू हमनी के बना र-क्ख हथ ।)    (फूब॰5:18.25)
163    जिनखा (= म॰ जिनका; हि॰ जिनको; ~ पर = जिन पर)     (राम किसुन सिंघ जे हलधर सिंघ के ममेरा साला हो-व हला और जिनखा पर हलधर बाबू के बड़ी भरोसा र-ह हल उनखा नवाब साहेब सेकरेटरीअट में अपन रिसतेमंद से कहसुन के सब-रजिस्ट्रार बहाल करा देवे के लालच देके अपना दने मिला लेलका ।)    (फूब॰7:24.4)
164    जीरह-उरह     (नवाब साहेब और भी जीरह उरह करके अपन मन के खेआल छिपाके चमेलवा के हाल जाने ले चा-ह हला बाकी एहे बखत डाक आरदली लेके आल और नवाब साहेब ओकरा देखे लगला और सिंघजी के डेरा से नौकर बोलवे आल तो आदाव करके चल गेला ।)    (फूब॰5:20.22)
165    जुलुम (= जुल्म)     (नवाब - बहुत खराब हे न तब । पुलिस औ अमला में रूसवत जुलुम हइये हे अब हाकिमो ई बात, तो सलतनत के जड़ में दीयां समझे के चाही ।)    (फूब॰1:6.4)
166    जे (= जो)     (खानसामा - जे हुकुम ।; साम लाल - अब जे हुजुर क-र, हम तो हुजुर के हाथ में अपन जान देले ही । )    (फूब॰1:4.19; 2:7.21)
167    जे ... उ     (जे एकर पंच होता उ मगही भाषा जे तखने प्रचलित रहत ओकरा और और भासा के बराबर अलंकृत करे के कोसिस करता ।)    (फूब॰मुखबंध:2.26)
168    जे ... ओकरा     (जे एकर पंच होता उ मगही भाषा जे तखने प्रचलित रहत ओकरा और और भासा के बराबर अलंकृत करे के कोसिस करता ।)    (फूब॰मुखबंध:2.26-27)
169    जे ... से (= जो ... सो)     (उ सब जे जरी 'ओः' क-र हथ, से उनखा सन्तोख देवे ले हम ई कहे ले चाह-ही कि अबरी भर हो गेलो ।)    (फूब॰मुखबंध:2.3)
170    जेहे में (= जिसमें)     (अबसे पानी छींट के बहाड़वे और 'गदहनीत' में केकरो असकुस नै मालूम होत, और जेहे में हमर मातृभाषा सुसज्जित हो जाए हम नीचे लिखल किताब छपावे के कोसिस करबे ।)    (फूब॰मुखबंध:2.6)
171    जैसन (= जइसन; जैसा)     ('सुनीता' के जैसन आदर से पाठकगन अपनैलका हे और श्रीयुत् सुनीति कुमार चटर्जी जैसन प्रेम से ओकरा अंग्रेजी के नामी मासिक पत्र में परिछन कैलका हे, ओकरा से उत्साह हमर जरूर बढ़ गेल हे ।; नवाब - उ सब कैसन हथ ? / साम - सब जैसन और जगह र-ह हथ ।)    (फूब॰मुखबंध:1.1, 2; 1:5.15)
172    जोरू-उरू     (नवाब साहेब - तो उनखा जोरू उरू नै हैंन ?/ सिंघजी - जोरू बड़ी खुबसूरत लोग बतला-व हथ ।)    (फूब॰5:20.7)
173    जौन (= जो, जिस)     (नवाब - कखनो कखनो हमरो खून उबल उठे हे । जौन बेईमानी से वादसाहत लेल गेल हे; तुरकी के साथ बेइमानी, फेर अरब में हमनी सब कमजोर आदमी, बाकी खुदा तो जरूर देखत ।)    (फूब॰1:6.24)
174    जौर (= जमा; संग्रह)     (८. मगही कहावत (एक बंगाली भाई जौर कैलका हे))    (फूब॰मुखबंध:2.20)
175    झगड़ाहु     (नवाब साहेब - नै, हम तो ठान लेलुं ह के जहां तक होए झगड़ाहु मामला ई लूं सब के हाथ में नै देबे । बड़ा जुलुम गरीब फरिआदी सब पर होवे हे ।)    (फूब॰3:9.17)
176    झाड़ू-बहाड़ू     (दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे ।)    (फूब॰मुखबंध:1.30-2.1)
177    टिकस     (नवाब - तो टिकस बढ़ावे । हमर समझ हे के करीब-करीब फी मोकदमा में औसत पीछे थाना में २००) रुपया से कम देवे नै पड़े हे, और अगर खुलमखुल्ला फी-मोकदमा १०) इआ १५) कोटफीस ऐसन वसूल कैल जाए तो फी मोकदमा खर्चा डिपटी के मुसाहरावाला ऐसे निकल जात ।)    (फूब॰3:12.4)
178    टीसन (= स्टेशन)     (साम - (दुगमुगा के) अच्छा, तो अबरी टीसन में । बाकी कोई आदमी सेकिन अफसर के रहल तब ?; गाड़ी अदलते बदलते जब दू-तीन टीसन बिहार पहुंचे के रहल तो नसीबन के अपन खाना में चला देलका ।)    (फूब॰2:8.13, 34)
179    टेबुल     (खानसामा तीन-चार टुकड़ा बिसकुट और चाय औ अण्डा गैरह हिसाब से ला-ला के नवाब साहेब के भीरी रखे लगल और मोखतार साहेब टेबुल के दूसर तरफ बैठला ।; खानसामा तब जाके कुछ केला वो केवला ले आल और हिन्दू चाय वाला के बोला के दू प्याला चाय अलग दूसर टेबुल पर रखलक और केवाड़ी लगैते चल गेल ।)    (फूब॰1:4.17, 28)
180    टैप (= टाइप)     (सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे । वोकरो में जो सब हाकिम के टैप मिल जाए इया रोसनाई से लिख के तीन कारबन कोपी तैयार कैल जाए और ऐसहीं सब हुकुम के तीन-तीन कोपी तैयार करके एक-एक कोपी दुनु फरीक के देल जाए और एक-एक मिसिल में रहे तो कुल बखेड़े मेट जा सके हे ।)    (फूब॰3:12.14)
181    ढेर (= बहुत)     (नवाब सहेब के ढेर खोसामदी से भेंट होल हल बाकी ऐसन खाहमखाह तो कोई नै मालूम भेल ।; अब ढेर मोसकिल मत क-र, जल्दी जा ।; एतने में अरदली आके कहलक के राय बहादुर के खोजते ढेर से मोखतार वकील सब ऐला हे ।)    (फूब॰1:4.10; 2:8.18; 8:26.17)