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Wednesday, June 26, 2013

94. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2012: नवांक-9; पूर्णांक-21) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
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2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
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मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह । प्रस्तुत अंक : नवांक-9, पूर्णांक-21, जुलाई-अगस्त 2012

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-20 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 189

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अँउरा (= अमड़ा; आँवला) (अँउरा के आयुर्वेद में गुण से भरल फल मानल गेल हे । भले अँउरा स्वाद में कड़ुआ आउ कसैला होवे, अँउरा विटामिन के एगो बहुत अच्छा स्रोत हे ।)    (मपध॰12:21:17:1.5, 6)
2    अँफरा (पेट फूले आउ अँफरा होवे पर अमरलत्ता के बिच्चा के पानी में औंट के पीसके एकर गाढ़ा लेप पेट पर लगावे से अँफरा आउ पेटपीरी खतम हो जाहे ।)    (मपध॰12:21:13:2.1, 4)
3    अकमन (अकमन के आक आउ अकौना भी कहल जा हे । एकर वृक्ष छोट आउ छत्तेदार होवऽ हइ आउ पत्ता बर के पत्ता नियन मोटा होवऽ हइ ।; अकमन से दूध भी निकलऽ हइ जे विषैला होवऽ हइ ।; अकमन के कोमल पत्ता ठंढा तेल में जलाके पोथा के सूजन पर बाँधे से सूजन दूर हो जाहे । करुआ तेल में पत्ता के जलाके गरमी के घाव पर लगावे से घाव अच्छा हो जाहे ।)    (मपध॰12:21:16:1.5, 12, 23)
4    अकौना (अकमन के आक आउ अकौना भी कहल जा हे । एकर वृक्ष छोट आउ छत्तेदार होवऽ हइ आउ पत्ता बर के पत्ता नियन मोटा होवऽ हइ ।)    (मपध॰12:21:16:1.5)
5    अगुआना (= आगे जाना; आगे करना) (पंडीजी के इ पतरा भी अजीब हे । कभी नछत्तर अगुआ जाहे - कभी महीना । अंग्रेजी तारीख ठीक हे । ओकर अनुसार परब आगे-पीछे न होवऽ हे । दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत ।)    (मपध॰12:21:56:1.18)
6    अत्तू-अत्तू (महादे पाँड़े शिवलिंग जी के भी भोग लगावथ । हुएँ भैरव जी के भी भोग लगे । महादे पाँड़े उ भोग लेके भोरहीं से अत्तू-अत्तू करथुन । बाकि ओहू 'निकृष्ट' भोग आम जन के कहाँ नेमान होवे । के देखलक हल रहड़ी के घी छौंकल दाल, अरबा चाउर के भात आउ तलल शाक-भाजी ।)    (मपध॰12:21:55:1.32)
7    अदरा (= आर्द्रा नक्षत्र) (घाघ आउ भड्डरी कह गेला ह - "रोहन तबे मिरगिसरा तबे, कुछ-कुछ अदरा जाय ।" अभी तो अदरा आवे में देर हे । अषाढ़ आठ दिन चढ़त तब अदरा आवत ।)    (मपध॰12:21:56:1.15, 16)
8    अमदुर (= अमरूद) (अमदुर स्वाद में तो लाजवाब होवे करऽ हे, स्वास्थ्य के दृष्टि से भी ई उपयोगी फल हे । अमदुर के बारे हियाँ अपने के विशेष जानकारी देल जा रहले हे ।)    (मपध॰12:21:12:1.5, 7)
9    अमनियाँ (= सं॰ व्रतादि में उपयोग की सामग्री; साधु-संन्यासियों की रसोई; पक्की रसोई, अनसखरी; वि॰ शुद्ध, पवित्र) (तरकारी ~ करना = तरकारी काटना) (हुआँ तरकारी काटल न जाहे, तरकारी काटे के कहल जाहे - अमनियाँ करना । आउरो शब्द के अलग अर्थ हे हुआँ ।; जंगल राहे साधु बाबा के डाकू पकड़ लेलक आउ लगल भुजाली से बाबा के गियारी काटे । चेलवा बेचारा चिल्लात जात कि दौड़ऽ दौड़ऽ, हम्मर गुरुजी के डाकू अमनियाँ कर रहल ह । गाँव के लोगन के समझे में न आवे कि गुरुजी के अमनियाँ कौची कर रहल ह ।)    (मपध॰12:21:55:1.38, 2.5, 7)
10    अमला-फइला (अप्पन-अप्पन मालिक के बड़ाई के फेटा बाँधले इ अमला-फइला जमीदारी प्रथा के अलमवरदार बनल हका । जमीदारी चलऽ हे डींग-डाँग पर ।)    (मपध॰12:21:52:2.30)
11    अमूमन (= बहुधा, प्रायशः; साधारणतया) (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।)    (मपध॰12:21:55:3.13)
12    अरबा (~ चाउर) (महादे पाँड़े शिवलिंग जी के भी भोग लगावथ । हुएँ भैरव जी के भी भोग लगे । महादे पाँड़े उ भोग लेके भोरहीं से अत्तू-अत्तू करथुन । बाकि ओहू 'निकृष्ट' भोग आम जन के कहाँ नेमान होवे । के देखलक हल रहड़ी के घी छौंकल दाल, अरबा चाउर के भात आउ तलल शाक-भाजी ।)    (मपध॰12:21:55:1.34)
13    आगे-पाछे (हमर पंडीजी के पतरा से परब हाथी के गोड़ नियन आगे-पाछे होते रहऽ हे । ई प्रक्रिया में एगो महीना बढ़ जाहे । भले बढ़ जाहे, लौंद के मेला के मजा तो मिलऽ हे ।)    (मपध॰12:21:56:1.27)
14    आरी-अलंग (खेत-पथार, जात-पात, धरम-कुधरम, लोक-लाज सभे के आरी-अलंग बनल हे । न बाएँ डिगऽ न दहिने डिगऽ - चलल चलऽ टुकदम-टुकदम।)    (मपध॰12:21:52:1.2)
15    आलस (= आलस्य) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।)    (मपध॰12:21:53:2.33)
16    उगाहना (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.17)
17    उड़िस (खटिया पर पानी छीट के सुतऽ तइयो देह लहकल रहतो । खटिया के सुतरी तेलचट हो । लोग एतना तेल लगावऽ हथ कि खटिया-तकिया चिक्कन-चिक्न हे । उड़िस मारे ला चौकी तर खेर लहकावऽ, उड़िस भाग के देवाल पर जइतो । पच-पच मारऽ - हो गेलो चित्रकारी । खटिया खई में बोरल हो - का भाई । त मछली खइतो उड़िस ।)    (मपध॰12:21:55:2.42, 43, 3.3)
18    उड़ी (इतिहास लेखक के ईहे तो फयदा हे । कौन मार समीक्षक आउ आलोचक हथ मगही में जे अंगुरी उठइथन । जे एक्का-दुक्का हइयो हथ उनकर की मजाल हे कि इतिहासकार से पंगा लेथन । अगला संस्करण में उड़ी कर देवल जात उनका ।)    (मपध॰12:21:5:1.20)
19    उमख (= उमस) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।; सजना उमख के मारे अकासे के चद्दर ओढ़के बहरसी सतभइवा के देखते रहऽ हका ।)    (मपध॰12:21:56:1.30, 42)
20    उरीद (= उड़द) (उरीद एक प्रकार के दलहन होवऽ हे । एकर पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा होवऽ हे आउ बढ़ला पर नीचे जमीन पर तलरे लगऽ हे । भारत में हर जगह ज्वार, बजरा आउ रुई के खेत में उरीद के किसान सब उगावऽ हथ ।)    (मपध॰12:21:18:1.5, 9)
21    एकन्हीं (= ये सब) (मिरगिसरा चढ़लो । उमस बढ़लो । दनादन सुरसुरी सरसराय लगलो । बिछौतिया के मजा हइ - गटागट गटकले जाहे । तीन दिन में शुद्ध प्रोटीन से एकन्हीं के देह गुलफुल हो गेल ह ।)    (मपध॰12:21:56:1.33)
22    ओझई (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।)    (मपध॰12:21:54:1.13)
23    औंरा (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.18)
24    कँटहिली (माल-मवेशी के बीच से इ विचार-चिंतन के पेंड़ कइसे फरे, कँटहिली चंपा कइसे खिले, ऊसर में रेड़बो कइसे उपजे ? अंकुरबा तो बचावे पड़तो ।)    (मपध॰12:21:51:2.31)
25    कँटैला (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.18)
26    कइरा (= केला) (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह ।)    (मपध॰12:21:54:2.37)
27    कउनी (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.20)
28    कज्जो-कज्जो (= कहीं-कहीं) (कुछ-कुछ जड़ी-बूटी के सिरिफ नामे दे रहलिअइ हे । आगे के अंक में हम ओकरा पर विशेष सामग्री उपलब्ध करइबइ । कज्जो-कज्जो अपने सब के लगतइ कि हम ऊ सब फल-फल्हेरी आउ जड़ी-बूटी के बारे में बहुत सामान्य बात लिख रहलिअइ हे त अपने से कहना हइ कि नयका पीढ़ी के बउआ सब प्रकृति से अइसन कट्टल हथिन कि उनका सामान्य से सामान्य बात भी ई संबंध में मालूम नञ् हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.28)
29    कसल (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।)    (मपध॰12:21:37:1.38)
30    कहरटोली (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल । अभी हम चिट्ठी पढ़तूँ हल कइसे ? उनखर परेम पाती भला पढ़इतूँ हल केकरा से ? हम्मर कहरटोली में कोई तो पढ़ल न हे । बबुआन हीं जइतूँ हल । केतना लाज लगत हल ।")    (मपध॰12:21:56:1.4)
31    कालो (= कलउआ, कलेवा, खाना, भोजन) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।")    (मपध॰12:21:56:3.40)
32    किकुड़ाना (रोब-दाब के माजरा सब समझऽ हला । रैयत पीठ आउ माथा झुकइले रहे । लमको अदमिया किकुड़ा के नाटा हो जाय ।)    (मपध॰12:21:52:3.38)
33    किरमाला (अमलतास के राजवृक्ष भी कहल जा हइ । एकर बोटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला हइ । कहैं-कहैं एकरा किरमाला भी कहल जा हइ । एकर गाछ नञ् नटगर होवऽ हइ नञ् जादे कद के ।)    (मपध॰12:21:14:1.9)
34    कुकाठ (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।)    (मपध॰12:21:5:1.32)
35    कैता (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !)    (मपध॰12:21:56:2.34)
36    कोढ़िया (~ बैल) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।)    (मपध॰12:21:53:2.37)
37    खई (खटिया पर पानी छीट के सुतऽ तइयो देह लहकल रहतो । खटिया के सुतरी तेलचट हो । लोग एतना तेल लगावऽ हथ कि खटिया-तकिया चिक्कन-चिक्न हे । उड़िस मारे ला चौकी तर खेर लहकावऽ, उड़िस भाग के देवाल पर जइतो । पच-पच मारऽ - हो गेलो चित्रकारी । खटिया खई में बोरल हो - का भाई । त मछली खइतो उड़िस ।)    (मपध॰12:21:55:3.2)
38    खटोली (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।")    (मपध॰12:21:52:3.28)
39    खाढ़ ( जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।)    (मपध॰12:21:54:1.14)
40    खानी (दे॰ खनी) (हम रोज साँझ खानी ओकरा एक घंटा भर पढ़ा देवऽ हली ।)    (मपध॰12:21:37:1.42)
41    गदपिरोड़ा (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.12)
42    गदपोड़वा (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.12)
43    गदहपुरना (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.12)
44    गाँता (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।"; लोग-बाग जमीदार के अदब करऽ हका - का बोलथन, का कहथन । जमीदार के बात गाँता पर चलऽ हे ।)    (मपध॰12:21:52:3.34, 53:1.8)
45    गुरीच (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.18)
46    गुलफुल (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । दनादन सुरसुरी सरसराय लगलो । बिछौतिया के मजा हइ - गटागट गटकले जाहे । तीन दिन में शुद्ध प्रोटीन से एकन्हीं के देह गुलफुल हो गेल ह ।)    (मपध॰12:21:56:1.33)
47    गेन्हारी (= हरे पत्तों वाला एक साग) (छीया न पूछे ~ के साग) (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.13)
48    गोखला (~ के काँटा) (हमन्हीं बुतरू सब तार के पत्ता के गोखला के काँटा छोप के गोल बनइलूँ - हवा के ऊ ले ले बलइया- गोल कहाँ से कहाँ चल गेल ।)    (मपध॰12:21:55:3.26)
49    गोड़ाइत (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।")    (मपध॰12:21:52:3.23, 31)
50    गोबार-कुरमी (मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।)    (मपध॰12:21:53:1.42)
51    गोल (हमन्हीं बुतरू सब तार के पत्ता के गोखला के काँटा छोप के गोल बनइलूँ - हवा के ऊ ले ले बलइया- गोल कहाँ से कहाँ चल गेल ।)    (मपध॰12:21:55:3.26, 27)
52    गोहमन (= गेहुँवन साँप) (निलामी के तलवार लटकल हे त जमीदार साहब एने जोंक धर्म छोड़के गोहमन धरम अपनावऽ हका । फुँफकारते-डँसते किसनमन के गाँड़ फाड़ले रहऽ हका । मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् ।)    (मपध॰12:21:52:3.7)
53    गोहमना (दे॰ गोहमन) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।)    (मपध॰12:21:56:1.39)
54    घड़बड़ाना (खुदगर्ज इनसान अप्पन कूट बुद्धि से नाना प्रकार के जाल बुनते रहऽ हे । निहित स्वार्थी सत्ता वर्ग सबसे जादे घड़बड़ा हे ।)    (मपध॰12:21:51:3.11)
55    घनघनाना (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल ।")    (मपध॰12:21:55:3.42)
56    घबराल-घबराल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.21)
57    घर-घरनी (अजोध्याजी में वासुदेव घाट पर सरयू विहारकुंज हे । हुआँ से हम्मर गाम के डाइरेक्ट कनेक्शन बन गेल । घर-घरनी से जे रूसे ऊ हुएँ जाके ठेकाना पावे । कमाई में जेकरा फटे ऊ हुएँ जाके डंड पेले ।)    (मपध॰12:21:53:3.23)
58    घुड़मुड़ियाल (बाबा हुंकारी भरथिन आउ माला फेरथिन । ई माला के घुड़मुड़ियाल लड़ी पीयर नियन झोली में रखा जाय । रोज समय से निकले - जइसे गेंडुली मारले सँपवा सँपेरा के मउनी से निकले हे ।)    (मपध॰12:21:51:1.8)
59    चपटल (= चपटा) (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।)    (मपध॰12:21:37:1.35)
60    चीना (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.20)
61    चुनचुन्नी (इतिहासे नञ्, समीक्षा, आलोचना, उपन्यास आउ लेख-निबंध के विचारधारा भी बदले पड़तइ । टाट के कपड़ा पहिन के जदि रेशम पहिनेवला के चिढ़ावे जैवे त थुड़ी-थुड़ी तो होने हइ । सो-सैंकड़ जे मगही में गंभीर लेखक बंधु हथिन उनका से हमरा आग्रह हइ कि कविता-कहानी से आगे बढ़के दोसर सब विधा के भी अपनाहो आउ अन्तरराष्ट्रीय मानक के अनुसार । मगही अपने आप तरक्की के राह पकड़ लेतइ । हमर बात के चुनचुन्नी लगो त माफ करिहऽ ।)    (मपध॰12:21:5:1.38)
62    चुसाना (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।; जे चुसाल ओकरा कुछो न मालूम ।)    (मपध॰12:21:52:2.39, 43)
63    चौला (= चौड़ा) (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।)    (मपध॰12:21:37:1.36)
64    छटपटाल (~ चलना) (मिरगिसरा चढ़लो । उमस बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।)    (मपध॰12:21:56:1.37)
65    छलदिवारी (= चहारदिवारी) (हम सरकारी स्कूल के मास्टरनी तो ई काम करिए न सकी । हमर कर्तव्य तो विद्यालय के छलदिवारी में दम घोंट रहल हे ।)    (मपध॰12:21:38:3.12)
66    छीया (~ न पूछे गेन्हारी के साग) (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.13)
67    छुई-मुई (= एक लतरने वाला पौधा जिसे छूने पर पत्ते और डालियाँ मुरझा सी जाती हैं, लजौनी, लाजवंती) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.22)
68    छुलु-छुलु (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।)    (मपध॰12:21:5:1.32)
69    जता-तता (दे॰ जज्जा-तज्जा, जेज्जा-तेज्जा) (मगध के सांस्कृतिक इतिहास कौतुहल से भरल हे । ढेर विषय धार्मिक-सांस्कृतिक किताब में हे, तो ढेर विषय जनश्रुति में लोग याद कइले हथ मुदा सबसे महत्वपूर्ण विषय पुरावशेष के रूप में जता-तता बिखरल हे ।)    (मपध॰12:21:21:1.5)
70    जने-तने (= जन्ने-तन्ने) (छठ सबसे महत्वपूर्ण पर्व हके । अइसे तो मानव आकृति के सूर्यदेव के ढेर मूर्ति जने-तने पावल जाहे मुदा नवादा के छतिहर, नालंदा के सिरनामा आउ बड़गाँव में सूर्यदेव के मूर्ति हके ।)    (मपध॰12:21:21:1.15-16)
71    जबरा (= जबर, बलवान) (~ हारे त हूरे, जीते त थूरे) (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ? ... हियाँ तो बाते-बात मार ढबाढब । जबरा मारे भी आउ रोबे भी न दे ।)    (मपध॰12:21:56:3.13)
72    जमीदार (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.20)
73    जरको (दे॰ जरिक्को) (निलामी के तलवार लटकल हे त जमीदार साहब एने जोंक धर्म छोड़के गोहमन धरम अपनावऽ हका । फुँफकारते-डँसते किसनमन के गाँड़ फाड़ले रहऽ हका । मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् ।)    (मपध॰12:21:52:3.10)
74    जाँता (= चक्की) (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।)    (मपध॰12:21:56:3.31)
75    जो (= जौ, यव) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.20)
76    जोंकचूसन (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।)    (मपध॰12:21:52:2.38)
77    झिंगनी (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !)    (मपध॰12:21:56:2.33)
78    झुराना (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे । आज हरबख्ते भाग-दौड़ के कारण हमन्हीं के शरीर के अंग-अंग झुरा रहल हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.22)
79    टिकुली (= dragon-fly) (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । ... गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।")    (मपध॰12:21:56:2.14)
80    टोकनी (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता ।)    (मपध॰12:21:51:3.16)
81    टोटका (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।")    (मपध॰12:21:56:2.4)
82    टोला-बिगहा (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।")    (मपध॰12:21:52:3.29)
83    ठकमकाल (बैल-घुमनी आउ भैंसा-गाड़ी नियन इ श्रेणीबद्ध समाज हजार साल से अप्पन धुर्रा पर घुमत-घुमत नवयुग के दुआरी पर आके ठकमकाल हे । इ देहरी के चिन्हे में इनखा रतौंधी हो रहल हे । जे पंडीजी सतनरायन स्वामी के कथा के अलावे न कुछ सुनलका न कुछ पढ़लका उ भला 'मेघदूत' के का समझता !)    (मपध॰12:21:52:1.14)
84    डँटाना (जहाँ लस हुआँ चूतड़-घस्स । ठकुरबाड़ी में दू-चार गो कामचोर लोग जमल रहे । घरवाली से झाड़ू खाय, माई से डँटाय, धिया-पूता से दुरदुराय, बाकि अरमायन परसाद पावे ला महादे पाँड़े के फुलझरिया बनल रहे ।)    (मपध॰12:21:55:2.14)
85    डाँड़ी (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता । अँखिया चौंधिया जाय से उ आक्रामक हो जा सकऽ हका । तू तपस्यारत होलऽ, नौका डाँड़ी पर चले ला हँकइलऽ कि उनकर इन्दरासन डोलल ।)    (मपध॰12:21:51:3.21)
86    ढबाढब (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ? ... हियाँ तो बाते-बात मार ढबाढब । जबरा मारे भी आउ रोबे भी न दे ।)    (मपध॰12:21:56:3.13)
87    तसेड़ी (जेठ के दुपहरिया बड़ी परसिद्ध । सब बुतरुअन के बीतर में बंद करके दुपहरिया गँवावल जाय । जवान सब कनहूँ पेड़ तर ताश खेलथुन । गुरु-पुरोहित आउ बुजुर्ग लोग कहथुन - "इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो ।")    (मपध॰12:21:55:3.11)
88    तिलसकरात (= मकर संक्रांति का पर्व) (दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत । सुकरात मियाँ भइया से पुछते रहऽ हका - "बउआ, अबरी 14 जनवरी कहिया पड़तइ । दही-चूड़ा के पर्व खूब हे । ईद बकरीद सबेबरात, सबके हरावे तिलसकरात ।")    (मपध॰12:21:56:1.24)
89    तोंदिअल (अनार से पेट के आसपास के चर्बी कम हो जा हइ, यानी तोंदिअल ले ई बहुत फायदेमंद हइ ।)    (मपध॰12:21:11:1.12)
90    दुब्भी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.18)
91    दुसाध-बराहिल (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।)    (मपध॰12:21:51:1.2)
92    दोकनदारी (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।)    (मपध॰12:21:54:1.13)
93    धारा (= धारी, पंक्ति) (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।")    (मपध॰12:21:56:2.11)
94    नटगर (अमलतास के राजवृक्ष भी कहल जा हइ । एकर बोटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला हइ । कहैं-कहैं एकरा किरमाला भी कहल जा हइ । एकर गाछ नञ् नटगर होवऽ हइ नञ् जादे कद के ।)    (मपध॰12:21:14:1.10)
95    नैहर (= नइहर, मायका) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.17)
96    पकावल-खाल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.19)
97    पटका-पटकी (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।)    (मपध॰12:21:55:3.14)
98    पतरा (= सं॰ पंचांग, जंत्री; वि॰ पतला) (जे पंडित के ~ में, से पड़िआइन के अँचरा में) (पंडीजी के इ पतरा भी अजीब हे । कभी नछत्तर अगुआ जाहे - कभी महीना । अंग्रेजी तारीख ठीक हे । ओकर अनुसार परब आगे-पीछे न होवऽ हे । दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत ।)    (मपध॰12:21:56:1.17)
99    पन-छो (= पाँच-छह) (अब हम पन-छो बच्छर के हो गेलूँ हँ । भइयारे, कुटुंबी, नाता-गोता, घर में चलत ऊँच-नीच के भाव गमे लगलूँ हँ । धन-दौलतिया के खेल भी बुझे में आवे लगल ह ।)    (मपध॰12:21:51:1.25)
100    पनिआना (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता ।)    (मपध॰12:21:51:3.19)
101    परबाबा (= परदादा, प्रपितामह) (हम्मर परबाबा हला मातबर - दूर तक देखेवाला । साठ बिगहा देके जे जस खरीदलका ऊ जसवा बाल-बच्चा के इ तीन पीढ़ी तक सामाजिक तथा आर्थिक संबल देते रहल ।)    (मपध॰12:21:54:1.1)
102    परबाबा (हम्मर परबाबा मंदिर बनवइलका हल । जमींदारी छोटे हले मुदा मंदिर के धन-संपन्नता, भव्यता, खूबसूरती जमीदारी में चार चाँद लगइले हले ।)    (मपध॰12:21:53:1.20)
103    परल (एकर जनम घड़ी हम बड़ी परल रहऽ हली । तनिको मिजाज ठीक न रहऽ हल । नौ महीना दुखे-दुख ।)    (मपध॰12:21:36:1.10)
104    परसाना (एने के बराहिल कहे - "हम्मर मालिक हीं घीये के दीया जलऽ हे । मजूरन के दाल में घी परसा हे । दूध-दही के नदी बहऽ हे ।")    (मपध॰12:21:52:2.15)
105    परोर (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !)    (मपध॰12:21:56:2.34)
106    पहर (बेरकी ~) (बेरकी पहर खेत दने भैंस-गोरू हँका गेल । लोग-बाग के अब नक्षत्र आद आवे लगल । "कहिया रोहन हेलतो ?" जे मिले, एक दोसरा से पूछे ।)    (मपध॰12:21:55:3.17)
107    पाथना (ओने के बराहिल अलगे ताना मारे - "हँसली लोढ़ा करे बड़ाई, हमहूँ हकूँ महादे के भाई । लगऽ हइ कि हम तोर मालिक के जानवे न करऽ ही । अरे ! तोर मालकिन के त हम गोबर पाथते देखलियो ह । इ कह कि छिपके कमा हथुन ।")    (मपध॰12:21:52:2.24)
108    पिंडा (= गुरुपिंडा) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।")    (मपध॰12:21:56:3.39)
109    पिपरी (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।")    (मपध॰12:21:56:2.11)
110    पिलंड (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।)    (मपध॰12:21:52:2.40)
111    पिसाना (= पिसना; पिसा जाना) (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।)    (मपध॰12:21:56:3.31)
112    पुतहू (= पुत्रवधू) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.17)
113    पोपीता (= पपीता) (नियमित रूप से पोपीता खाय से शरीर में कभी विटामिन के कमी नञ् होवऽ हे । बिमारी में सेवन कइल जायवला फल में पोपीता भी शामिल हे, काहे कि एकरा में एक नञ् अनेक फायदा के तत्व भरल हे ।; पोपीता पेप्सिन नामक पाचकतत्व के एकमात्र प्राकृतिक स्रोत हे ।; पोपीता में कैल्शियम भी खूब मिलऽ हे । ई हड्डी के मजगूत बनावऽ हे ।)    (मपध॰12:21:0:1.8, 10, 2.2, 3.5)
114    फटल (= फट्टल; फटा हुआ) (मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् । एने किसान-रैयत जीये के चतुराई रखे । मलगुजारी देवे जाय त फटल अंगा आ पेउन लगल धोती के लंगोटी लटकाके कचहरी पहुँचे । रिरियाय, गिड़गिड़ाय, गोड़ लगे, हाय-हाय करे - "इ साल मारा हो गेलइ सरकार ! कि खइबइ, कि करबइ, माल माफ कर देल जाय ।")    (मपध॰12:21:52:3.12)
115    फल-फल्हेरी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि । एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे ।; कज्जो-कज्जो अपने सब के लगतइ कि हम ऊ सब फल-फल्हेरी आउ जड़ी-बूटी के बारे में बहुत सामान्य बात लिख रहलिअइ हे त अपने से कहना हइ कि नयका पीढ़ी के बउआ सब प्रकृति से अइसन कट्टल हथिन कि उनका सामान्य से सामान्य बात भी ई संबंध में मालूम नञ् हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.18, 28)
116    फलहत (चतुर किसान होवे चाहे चतुर नारी, जदि अप्पन अंकुर बचाके न रखे त न किसान अन्न से कोठला भरत, न नारी अप्पन कोख के फलहत करत ।)    (मपध॰12:21:51:3.4)
117    फेराना (बाबा हुंकारी भरथिन आउ माला फेरथिन । ई माला के घुड़मुड़ियाल लड़ी पीयर नियन झोली में रखा जाय । रोज समय से निकले - जइसे गेंडुली मारले सँपवा सँपेरा के मउनी से निकले हे । बाबा के अंगुरी पर फेराल जाय - फेराल जाय ।)    (मपध॰12:21:51:1.11)
118    बउड़ाहा (= बौराहा) (छोटका महा अवारा हो गेल । दारू-ताड़ी, चरस, गाँजा सब तरह के नशा करऽ हे । बउड़ाहा नियन नशा में मातल चलऽ हे ।)    (मपध॰12:21:40:2.15)
119    बकड़खेदवा (~ बारिस) (इ खेल दस-पंदरह मिनट चलल कि झमाझम के छींटा पड़े लगल । चाहे बकड़खेदवे बारिस होवे - सूखल धरती, पियासल पत्ता, मुरझाल घास आउ सबसे जादे तरसल जन एक विश्वास, एक परितृप्ति से भरे लगल ।)    (मपध॰12:21:55:3.30)
120    बजरा (= बजड़ा, बाजरा) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.20)
121    बटइया-चौठइया (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।)    (मपध॰12:21:39:2.24-25)
122    बनबनाना (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !)    (मपध॰12:21:56:2.33)
123    बनिऔटी (= बनिया का-सा व्यवहार या आचरण; हर काम में नफा-नुकसान पर विचार; कंजूसी) (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।)    (मपध॰12:21:5:1.32)
124    बबुआन (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल । अभी हम चिट्ठी पढ़तूँ हल कइसे ? उनखर परेम पाती भला पढ़इतूँ हल केकरा से ? हम्मर कहरटोली में कोई तो पढ़ल न हे । बबुआन हीं जइतूँ हल । केतना लाज लगत हल ।")    (मपध॰12:21:56:1.5)
125    बबुआनी (हम तो जादेतर समय बबुआनी छाँटे में बिता देलिअइ हल । राजगीर के पहिल महोत्सव में जे असुविधा होले हल, ओकर अहसास तक नञ् होलइ हमरा पावापुरी में ।)    (मपध॰12:21:4:1.10)
126    बमबम (हियाँ ठाकुर के दरबार में सब कुछ बमबम हे । जे साधु भेष में आवे उ बमबम हे ।)    (मपध॰12:21:55:1.10, 11)
127    बर-बेहबार (सबके ईहे कहलाम रहतइ कि अपना मन के काबिल समझऽ हे । बकि कवि-लेखक के उनकर रचना धर्म या बर-बेहबार के बारे में हम जे भी लिखिअइ, मगही के विरोध में कभी नञ् लिखलिअइ हे, नञ् भविष्य में लिखे के कल्पना कर सकलिअइ हे ।)    (मपध॰12:21:5:1.6)
128    बसना (= पानी निकालने या रखने का मिट्टी या धातु का बरतन; छोटे मुँह का पात्र) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.18)
129    बाभन-रजपूत (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।)    (मपध॰12:21:51:1.5)
130    बिटनोन (= बिटनून) (आदी के टुकड़ा पर सेंधा नमक (बिटनोन) आउ लेमू डालके खाय से जीभ आउ गला साफ होवऽ हे आउ भोजन के प्रति अरुचि मिटऽ हे ।)    (मपध॰12:21:9:2.1)
131    बिर्हनी (बवासीर के मस्सा पर अकमन के दूध लगावे से मस्सा खतम हो जाहे । बिर्हनी काटे पर एकर दूध लगावे से दर्द नञ् होवऽ हे ।)    (मपध॰12:21:16:3.1)
132    बिल-तिल (= बिल-उल) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।)    (मपध॰12:21:56:1.38)
133    बिलबिलाना (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।)    (मपध॰12:21:39:2.22)
134    बीया (= बीज) (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !)    (मपध॰12:21:56:2.33)
135    बुतरखेल (< बुतरू + खेल) (दू दशक से भी जादे से संपादन आउ प्रकाशन से जुड़ल रहे आउ पढ़े-लिखे के रोग के कारण थोड़े-थाड़ जे ज्ञान होले हे, ऊ आधा पर कह रहलिअइ हे कि मगही में इतिहास लेखन के नाम पर बुतरखेल चल रहले हे । इतिहास लेखक अपन बात के बिना कोय तथ्य के बर्हमा के लकीर समझ के पेश करऽ हथिन । कोय भी संदर्भ कहीं से लेल गेल हे तब ओकर सही स्रोत के पड़ताल कइले बिना इतिहास के उद्धरण में पेश करना कहाँ तक जायज हइ ?)    (मपध॰12:21:5:1.12)
136    बेमानी (= बेईमानी) (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।)    (मपध॰12:21:55:3.13)
137    बेरकी (~ पहर) (बेरकी पहर खेत दने भैंस-गोरू हँका गेल । लोग-बाग के अब नक्षत्र आद आवे लगल । "कहिया रोहन हेलतो ?" जे मिले, एक दोसरा से पूछे ।)    (मपध॰12:21:55:3.17)
138    भंगरइया (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.17)
139    भइयारे (अब हम पन-छो बच्छर के हो गेलूँ हँ । भइयारे, कुटुंबी, नाता-गोता, घर में चलत ऊँच-नीच के भाव गमे लगलूँ हँ । धन-दौलतिया के खेल भी बुझे में आवे लगल ह ।)    (मपध॰12:21:51:1.26)
140    भकुआ (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ?)    (मपध॰12:21:56:3.9)
141    भाउलीवाला (= भावलीवाला; जमीन का मालिक और रैयत के बीच खेत की उपज बाँटनेवाला) (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।)    (मपध॰12:21:51:1.2)
142    भागा-भागी (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।)    (मपध॰12:21:55:3.14)
143    भुखमरी (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।)    (मपध॰12:21:39:2.22)
144    भोजाई (= भोजाय; भौजाई) (भोजाई बेचारी आत्मग्लानि में पड़ल रह गेला कि हमरे ओलहना से देवर जी साधु हो गेलन । "हम कि जानलूँ हल कि हम्मर छोटे-मोटे बात उनखा लग जात । अइसन रिसियाहा देवर भगमान केकरो न दे ।")    (मपध॰12:21:53:3.10)
145    मउगी (= माउग; पत्नी) (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह । घरे मिलऽ हले भाते, परंतु उसना चाउर के, दाल मसुरी-खेसाड़ी के, छौंक तीसी के तेल के । तुलने में न सवाद हे । अपन मउगी ओतना सुन्नर न लगे जेतना आन के मउगी लगे ।)    (मपध॰12:21:54:2.43, 44)
146    मकय (= मकई) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.20)
147    मजूर-मजूरनी (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।")    (मपध॰12:21:56:3.42)
148    मराल (बाबू कुँअर सिंह के सेना से निकसल बीस-पचीस गो घुड़सवार के राजगीर पहाड़ तर से जाय के खिस्सा सुने लगलूँ हँ । धान के खेत में लाठी से मराल तेंदुआ भी जेहन में हे ।)    (मपध॰12:21:51:2.7)
149    मलगुजारी (= मालगुजारी) (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।)    (मपध॰12:21:51:1.3)
150    मलफेरनी (बाबा के रामायण, मलफेरनी, लघुशंका निवारण ला पानी ले जाय के अनजान परथा, गेंदा पाँड़े के बतकही, ठकुरबाड़ी के घड़ीघंट, मिसरी के परसाद, अजोध्या जी के साधु आउ महंथ जी के असीरबादी - अनेकन चीज अब शिशु जिज्ञासु के छोटे गो कपार में धँस रहल हे ।)    (मपध॰12:21:51:2.14)
151    मसुरी-खेसाड़ी (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह ।)    (मपध॰12:21:54:2.41)
152    महनभोग (कभी-कभी महादे पाँड़े शंख फूँकथन । इ शंख अनगुते बजऽ हले । शंख बजल माने महनभोग बँटत । महनभोग में घी चुप्पड़ करऽ हो । महनभोग के माने हे जेतना आटा ओतने घी आ ओतने शक्कर । कड़ा प्रसाद में भी महनभोगे रहऽ हे ।)    (मपध॰12:21:54:2.17, 18, 20)
153    माउग-मेहरी (= पत्नी) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।)    (मपध॰12:21:53:2.35)
154    माट साब (= मास्टर साहब; दे॰ माटसा) (ओकरा से ओकरो नाम पुछली । - 'बुधिया' । - हँऽ । बुध के जनम होवऽ होवे ओही से मइया बुधिया नाम रख देलवऽहोवे । हम हँस के कहली । - आउ का माट साब । हमनी हीं पंडीजी आवऽ हथी नाव धरे । ओहू हँस देलक हल ।; "पइसा के चिंता न हे माट साब । मलकिनी हमरा कहलन हे कि हम सर से कहके कम करा देबुअ । तूँ मनउतिया के पढ़े ला भेजऽ ।")    (मपध॰12:21:36:1.25, 2.12)
155    मिरगिसरा (= मृगशिरा नक्षत्र) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।)    (मपध॰12:21:56:1.30)
156    मुड़ली (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.17)
157    मुसहरनी (एगो मुसहरनी बाला के प्रताड़ित करे के तो कई गो घटना लोग के याद हल बाकि सम्मानित करे के बात ई गाँव ला पहिला घटना हल । कहीं खुशी त कहीं गम हल । हमर बगले में एगो कनफुसकी होएल, "सरकार एखनी के मन सहकाऽ रहल हे ।")    (मपध॰12:21:38:1.40)
158    मुसहरा (= वेतन) (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।)    (मपध॰12:21:5:1.31)
159    मोरकबरा (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।)    (मपध॰12:21:56:3.32, 33)
160    रमतोड़ईं (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !)    (मपध॰12:21:56:2.34)
161    रिसियाहा (भोजाई बेचारी आत्मग्लानि में पड़ल रह गेला कि हमरे ओलहना से देवर जी साधु हो गेलन । "हम कि जानलूँ हल कि हम्मर छोटे-मोटे बात उनखा लग जात । अइसन रिसियाहा देवर भगमान केकरो न दे ।")    (मपध॰12:21:53:3.13)
162    रेंगनी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.18)
163    रेखेआवल (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।)    (मपध॰12:21:53:2.30)
164    रोपा (= रोपनी, रोपाई) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।")    (मपध॰12:21:56:3.42)
165    लट्ठा-कुड़ी (अभी रहटो न चलऽ हे । लट्ठे-कुड़ी से काम चल रहल ह ।)    (मपध॰12:21:52:1.9)
166    लमका (= लम्मा, लम्बा) (रोब-दाब के माजरा सब समझऽ हला । रैयत पीठ आउ माथा झुकइले रहे । लमको अदमिया किकुड़ा के नाटा हो जाय ।)    (मपध॰12:21:52:3.38)
167    लस (जहाँ ~ हुआँ चूतड़-घस्स) (जहाँ लस हुआँ चूतड़-घस्स । ठकुरबाड़ी में दू-चार गो कामचोर लोग जमल रहे । घरवाली से झाड़ू खाय, माई से डँटाय, धिया-पूता से दुरदुराय, बाकि अरमायन परसाद पावे ला महादे पाँड़े के फुलझरिया बनल रहे ।)    (मपध॰12:21:55:2.12)
168    वेवसाय (= व्यवसाय) (बड़ा भतीजा पढ़े में तेज न हल । कोय नौकरी न पौलक तब ओकरा एगो गाड़ी खरीद देलन । ऊ वेवसाय करऽ हे ।)    (मपध॰12:21:40:1.34)
169    सकरात (= मकर-संक्रांति का पर्व) (ई सुन के हमर मलकिनी खुश हो गेलन आउ सकरात के बिहानी भेला ओकरा नाम लिखावे लेल स्कूल में लेके आवे ला कहलन ।)    (मपध॰12:21:37:1.20)
170    सतनरायन (बैल-घुमनी आउ भैंसा-गाड़ी नियन इ श्रेणीबद्ध समाज हजार साल से अप्पन धुर्रा पर घुमत-घुमत नवयुग के दुआरी पर आके ठकमकाल हे । इ देहरी के चिन्हे में इनखा रतौंधी हो रहल हे । जे पंडीजी सतनरायन स्वामी के कथा के अलावे न कुछ सुनलका न कुछ पढ़लका उ भला 'मेघदूत' के का समझता !)    (मपध॰12:21:52:1.15)
171    सतुआनी (= रब्बी अन्न के नेवान का त्योहार, जो प्रतवर्ष अधिकतर संक्रांति के अवसर पर मनाते हैं; मेष संक्रांति का पर्व जिस दिन सत्तू दान और भोजन का विधान है) (दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत । सुकरात मियाँ भइया से पुछते रहऽ हका - "बउआ, अबरी 14 जनवरी कहिया पड़तइ । दही-चूड़ा के पर्व खूब हे । ईद बकरीद सबेबरात, सबके हरावे तिलसकरात ।" ओइसहीं सतुआनी जब होवे त चौदहे अप्रील के ।)    (मपध॰12:21:56:1.25)
172    समधियौरा (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।")    (मपध॰12:21:52:3.26, 32)
173    सहकाना (एगो मुसहरनी बाला के प्रताड़ित करे के तो कई गो घटना लोग के याद हल बाकि सम्मानित करे के बात ई गाँव ला पहिला घटना हल । कहीं खुशी त कहीं गम हल । हमर बगले में एगो कनफुसकी होएल, "सरकार एखनी के मन सहकाऽ रहल हे ।")    (मपध॰12:21:38:2.3)
174    सहमल-सहमल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.18)
175    सांध (= संध, संद; छेद, दरार; युक्ति, उपाय) (हम्मर बाबा उ दुनहूँ पंडा के बात सुनके दुचित्ता हो जा हला । बाकि पाँड़े-पुरोहित के अलावे उ ठहरल मगह के आउरो कोई सांध न हले जेकरा से तनीमनी भी बाहरी हवा घुस सके ।)    (मपध॰12:21:52:2.2)
176    सामा (= सावाँ) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.20)
177    सिंदुआर (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.17)
178    सिजुअन (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से  करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।)    (मपध॰12:21:7:1.17)
179    सिधियाना (= प्रस्थान करना) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला ।)    (मपध॰12:21:53:2.29)
180    सुत्तल (= सोया हुआ) (बड़कन लोग भी लोट-पोट होके कबड्डी में भिड़ल हका । धरती लगऽ हे कि सुत्तल हल जे जगके अंगड़ाई ले रहल ह ।)    (मपध॰12:21:56:2.41)
181    सेंकइया (अमरलत्ता के पानी में औंट के ओकर पानी से सूजनवला जगह के सेंकइया करे से कुछ दिन में सूजन कम हो जाहे ।)    (मपध॰12:21:13:3.3)
182    सेठई (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।)    (मपध॰12:21:54:1.12)
183    सोंठ (कच्चा आदी के अलावा एकर सुक्खल रूप 'सोंठ' के भी उपयोग में लावल जाहे । एकरा मध में मिलाके सेवन करना श्रेष्ठतम हे ।)    (मपध॰12:21:9:3.2)
184    सोखा (= एक ग्राम-देवता, सोखा; झाड़-फूँक करनेवाला; इंद्रधनुष, पनसोखा) (हम्मर गाम से आध कोस दूर पर एगो गाम हे बारा । बारा माने बड़ा गाम । हुआँ सोखा-शिवनाथ के मठ हे, मंदिर हे । नाथपंथी धारा के भगत हला सोखा-शिवनाथ । मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।)    (मपध॰12:21:53:1.40)
185    सोखा-शिवनाथ ( हम्मर गाम से आध कोस दूर पर एगो गाम हे बारा । बारा माने बड़ा गाम । हुआँ सोखा-शिवनाथ के मठ हे, मंदिर हे । नाथपंथी धारा के भगत हला सोखा-शिवनाथ । मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।)    (मपध॰12:21:53:1.38, 40)
186    हरबख्ते (= हर बखत, हमेशा) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे । आज हरबख्ते भाग-दौड़ के कारण हमन्हीं के शरीर के अंग-अंग झुरा रहल हे ।)    (मपध॰12:21:7:1.21)
187    हाँड़ी-चरूइ (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।)    (मपध॰12:21:51:1.19)
188    हुमाध (= समिधा) (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।)    (मपध॰12:21:54:1.13)
189    हेठ (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।")    (मपध॰12:21:56:2.6)

 

Wednesday, June 19, 2013

93. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2012: नवांक-8; पूर्णांक-20) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
---------------------------------------------
2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
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मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह । प्रस्तुत अंक : नवांक-8, पूर्णांक-20, मई-जून 2012

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-19 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 552

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
310    पचरा (महादे - (चिढ़ल नजर से देखइत) नाच के चरचा के बीच में तूँहीं न बतकुच्चन आ उकटा-पुरान पसारलऽ हे ! घर-गिरस्ती के ई सब पचरा तूँ कहाँ से उठा देलऽ ! घर सम्हारे के जिमेवारी खाली हमरे न हल, तोहर भी हल ।)    (मपध॰12:20:18:3.27)
311    पचल (बड़ी मैल पचल हइ एकरा में ।)    (मपध॰12:20:9:2.7)
312    पछिया (टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।)    (मपध॰12:20:47:2.1)
313    पटपटाना (आधे घंटा में सब पटपटा के मर गेलइ ।; सब के मारके पटपटा देलकइ ।)    (मपध॰12:20:10:1.21, 13.10)
314    पटाल (मोटूमल पटाल हलखुन, बोललखुन कि कपड़ा पेन्ह के आवऽ हिअउ ।)    (मपध॰12:20:11:1.3)
315    पनकी (पनकी लग के मर गेलइ गइया, कतनो दवा-दारू करवइलिअइ, फयदा नञ् होलइ ।)    (मपध॰12:20:14:1.19)
316    पन्हेतल (~ भात) (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।)    (मपध॰12:20:14:1.1)
317    परगंगिनियाँ (< परगंगिनी/ परगंगनी + 'आ' प्रत्यय) (परगंगिनियाँ काहे ले चनचना रहले ह ?)    (मपध॰12:20:11:1.22)
318    पर-पंडाल (अपने ई बात भी स्पष्ट जानऽ हथिन कि अपने जदि होता हथिन त हम यज्ञाचार्य के भूमिका में हिअइ । यज्ञ ले भिक्षाटन भी हमरे करे पड़ऽ हे आउ पर-पंडाल भी हमरे बनवावे-सजवावे पड़ऽ हे ।)    (मपध॰12:20:4:1.11)
319    परवैती (= पर्व करनेवाली स्त्री) (अभी फरीचो नञ् होले हे आउ सुरूज महराज के अरग देवहुँ लगलथिन सब भुखाल परवैती लोग ।)    (मपध॰12:20:15:1.21)
320    परसौत (हम जलमलूँ हल भूकंपे के कंपन से घनघोर विपदा पड़ल रात में । राजगीर से हाँफते-पाँफते लोग गाम अइला । जने देखऽ ओने टूटल घर हे । लोग चोट खाल हका । घाव-लहू के देखना पूरा महीना के परसौत ला केतना डरावना हे ।)    (मपध॰12:20:47:1.22)
321    परहेज ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।)    (मपध॰12:20:49:1.39)
322    पलानी (= झोपड़ी) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।)    (मपध॰12:20:21:2.8)
323    पल्लो (= पल्लव) (आम के ~) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।)    (मपध॰12:20:29:1.5)
324    पव (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।)    (मपध॰12:20:5:1.19)
325    पसेरी (सपूत कातिक ताँबा पैदा करऽ हथुन । ऊ अब तक के कै पसेरी ताँबा मा कइलन हे ?)    (मपध॰12:20:20:1.11)
326    पहरोपा ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।)    (मपध॰12:20:50:1.17, 19)
327    पाँका (= पाँको, पंक; कीचड़) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे ।)    (मपध॰12:20:46:1.3)
328    पाँड़े (पाँड़े के गाय नञ् होले हल, बलाइए होले हल ।)    (मपध॰12:20:16:1.10)
329    पाँय-पाँय (चलाके देखहो ने चाहे पाँय-पाँय बोलहो, अपने डेगा-डेगी देवे लगतो ।)    (मपध॰12:20:15:1.12)
330    पाटा (= पाट; जानवरों का एक रोग जिसमें शरीर से द्रव रिसता है) (~ फुटना) (बैलवन के पाटा फुट गेलो हे, सेसे टरेक्टर से खेत जोवावे पड़लो ।)    (मपध॰12:20:10:2.8)
331    पाठी (महरानी मइया फूस के मड़इयो में खुश । मनकामना पूर्ण होवे त देवी माय के पाठी पड़े । पालल पाठी के देना आत्म बलिदान हे । रेल चलल त बुतरुअन गावे - झझे काली झझे काली, चल कलकत्ता देबउ पाठी ।)    (मपध॰12:20:46:3.21, 24)
332    पानी-पवइया (~ नारी) (उ टैम में बाल-बुतरु जादेतर ननिहाले में पइदा होवऽ हल । एगो प्रथा हलइ कि पहिलौंठ बुतरु नानीघर में जलमे । शायत इ मातृसत्तात्मक स्मृति के पदचिह्न हल । पितृकुल मानहू अस्वाभाविक, असंगत आउर अधिकारवादी रहे पानी पवइया नारी जाति ला ।)    (मपध॰12:20:46:3.9)
333    पार-घाट (चलऽ ! पार-घाट लग गेलइ । छुच्छा के राम रखबार ।)    (मपध॰12:20:15:1.17)
334    पुरकस (भाषा कउनो रहे, गद्य लिखेवला से पद्य रचेवला के संख्या जादे होवे करऽ हइ बकि ऊ भाषा के साहित्य के दोसर विधा के रचनाकार के संख्या जब तक उटेरा नियन रहतइ तब तक ऊ भाषा के पुरकस विकास नञ् हो पइतइ ।)    (मपध॰12:20:5:1.5)
335    पुरवइया (टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।)    (मपध॰12:20:47:1.40)
336    पुलपुलाना (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।")    (मपध॰12:20:46:1.40)
337    पूजा-पाहुर (गनेस के तूँ किरनिये बुझलऽ हे ? ऊ देओता लोग के विनायक हे । ओकर भाग तो देखऽ ! जग्ग-परोजन इया नया काम में हमनी के पहिले ओकरे पूजा-पाहुर सब जगह होवऽ हे ।)    (मपध॰12:20:17:3.21)
338    पेउन (~ लगाना) (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय ।)    (मपध॰12:20:50:2.34, 35)
339    पेटकुनिएँ (एतना कहके दउड़ल तो कोहबर में पेटकुनिएँ आके तब तक सुबकइत रहल जब ले बरात लौट न गेल ।)    (मपध॰12:20:23:3.40)
340    पेटकुनियाँ (~ नाधना) (सती प्रथा बंद हो गेल । दास प्रथा इतिहास के विषय बन के रह गेल । जमींदारी पेटकुनियाँ नाधले हे । सामंती प्रथा घुनसारी में झोंकल जा रहल हे । गान्ही जी अजादी दिऔलन बाकि औरत के उद्धार अब ले न होल ।)    (मपध॰12:20:22:2.31)
341    पेटपीरी (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।)    (मपध॰12:20:49:1.37)
342    पेन्हना-ओढ़ना (तोरा तो न खाय के ठेकान रहऽ हे, न पेन्हे-ओढ़े के सहूर । चौबीसो घंटा भाँग खाय आ धथूर चिबावे से फुरसत रहऽ हवऽ ?)    (मपध॰12:20:18:1.43)
343    पेहनना (= पेन्हना; पहनना) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।)    (मपध॰12:20:49:1.3)
344    पैंचना (= मिले दानों को सूप आदि से फटककर पछोरना; अन्न के मिले दानों को छाँटना या हिगराना) (राय पैंच रहलियो हे, अभी नञ् जइबो ।)    (मपध॰12:20:9:1.13)
345    पैंतरा (~ मारना) (दहनी प्रसव पीड़ा से कराह रहल हल । दरवाजा पर सास आउ ननद निहार-निहार के एने-ओने के बात कर रहल हल । दरवाजा के बाहर ओकर ससुर अप्पन भाय के साथ ताड़ी के छाँक लगावे के पैंतरा मार रहल हल ।)    (मपध॰12:20:27:1.3)
346    पैंतराबाजी (सबेरे पैखाना जाय के राह में पारो महतो आउ ओकर परिवार के पैंतराबाजी के कारण जानके पारो महतो आउ ओकर माय सनिचरी पर बालक सिंह नराज होके बोलला - "चलनियाँ दुस्से हे बड़हनियाँ के । गजब के जमाना हो गेल । अरे ऊ दरद में परेसान हे आउ तोहनी, एकर पेट नञ् ओकर पेट, बोल रहलें हे । दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास ।")    (मपध॰12:20:27:2.39)
347    पोटना (= फुसलाना, बहलाना) (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।)    (मपध॰12:20:14:1.21)
348    प्रातकाली (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।)    (मपध॰12:20:51:1.5)
349    फटल-पुरान (धीरे-धीरे ओकर बाप कंजूस के धोकड़ी हो गेलन हल । एक-एक पैसा जोड़े लगलन हल । पर्व-त्योहार में भी साड़ी-साया मुहाल हो गेल हल । ओकर माय आउ ऊ फटल-पुरान पहने लगल हल । जउन काननप्रिया दिन में चार बार पाउडर आउ आलता से गोड़-हाँथ रंगऽ हल, ओकरा साबुन तक मुहाल हल ।)    (मपध॰12:20:31:2.32)
350    फरल (मुँह फरल हो सेसे बोलल नञ् जा रहलो हे ।)    (मपध॰12:20:8:1.3)
351    फल्हारना (जल्दी से फल्हार दे बेटा ! सब कपड़वन बोजके रख देलिअउ हे सरऽफा में ।)    (मपध॰12:20:15:1.19)
352    फसली (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय । फसली, प्लेग, शूल संघरणी, शीतल ज्वर-वेद फँकी बाँटे बाकि मौते ईश्वर के साम्राज्य रहे ।)    (मपध॰12:20:50:2.38)
353    फाजिल (= अतिरिक्त) (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"  ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में ।)    (मपध॰12:20:46:2.36)
354    फुतुंगी (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।)    (मपध॰12:20:29:1.4)
355    फुफिया-सास (= फुफसस) ("नया-नोहर हथ । हमनी का कह सकऽ ही ? तू जाके पुछहुँ न, का बात हे ?" काननप्रिया के सास कहलन हल ।/ "तूँहीं जाके पुछहुँ । सास हहूँ । बड़-जेठ हहूँ ।" फुफिया सास कहलन हल ।)    (मपध॰12:20:32:3.39)
356    फुलौड़ी-भात ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।)    (मपध॰12:20:50:1.20)
357    फुसना (बिना उद्घाटन के आज फुसनो-सा काम प्रारम्भ  न हो रहल हे । चाहे कोई काम सरकारी हो या गैर-सरकारी बाकि उद्घाटन जरूर हो रहल हे ।)    (मपध॰12:20:41:1.7)
358    फुसुकना (उनके मेहरारू महेसरी भी आ गेल । बेना डोलावित फुसुकलक - 'तू गाँव में रेंगनी के काँट लगावइत चलइत ह । गाँव के नवही बिरबिरायल हथुन सब । ऊ सब का खा-पी के जइतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अपन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का !')    (मपध॰12:20:21:2.12)
359    फूलल-अंकुड़ल (एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।)    (मपध॰12:20:49:1.25)
360    फेटा (= पगड़ी) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।)    (मपध॰12:20:49:1.5)
361    फैट (मार फैट के थूर देबउ ।)    (मपध॰12:20:11:1.26)
362    फोकराइन (फोकराइन गमक रहलो हे दीदी, हम नञ् लेबो गोदी ।)    (मपध॰12:20:14:1.16)
363    बँसेड़ी (= बसेढ़ी) (हम तो एकरा एगो मरद से बँसेड़ी तर बात करते देखलूँ हल, मुदा आझ तो साफ हो गेल कि एकर पेट हम्मर पोता के नञ् हे ।)    (मपध॰12:20:27:2.12)
364    बंड-संड (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।")    (मपध॰12:20:31:2.22)
365    बउआना-ढउआना (पिरथीवी के परिकरमा में सभे देओता बउआइत-ढउआइत रह गेलन हल । बाकि हम्मर गनेस 'राम-राम' लिखके अप्पन मूसक वाहन पर बइठ के एक चक्कर लगाके सभनिन के कान काट लेलक हल ।)    (मपध॰12:20:18:1.2)
366    बजंतरी (~ के पत्ता) (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।)    (मपध॰12:20:45:2.10)
367    बजनियाँ (आज बारात जा रहल हे । दू गो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कइल गेल हे । बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन । एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग । टरेक्टर पर बजनियाँ आउ सर-समान ।)    (मपध॰12:20:22:1.9)
368    बज्जड़ (धड़धड़ी के ~) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल । अइसन मातम हल कि लोग कहथन एही हे भगवान महेश्वर के कोप, धड़धड़ी के बज्जड़ ।)    (मपध॰12:20:45:3.8)
369    बड़-जेठ ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।; "नया-नोहर हथ । हमनी का कह सकऽ ही ? तू जाके पुछहुँ न, का बात हे ?" काननप्रिया के सास कहलन हल ।/ "तूँहीं जाके पुछहुँ । सास हहूँ । बड़-जेठ हहूँ ।" फुफिया सास कहलन हल ।)    (मपध॰12:20:21:1.30, 32:3.38)
370    बड़-बड़कोर (आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल - टीवी, पंखा, रेफरिजरेटर, सिलाई मशीन, धुलाई मशीन, अर्त्तन-बर्त्तन, बड़-बड़कोर, स्टील के संदूक, गोदरेज के अलमारी, सोफासेट, एक ओरे हीरो होंडा मोटर साइकिल खाड़ हल ।)    (मपध॰12:20:32:2.15)
371    बढ़मा (= ब्रह्मा) (बढ़मा, बिसुन आ किसन जी तो वनमाला पेन्हऽ हथ बाकि तूँ तो मुंडमाला पेन्हबऽ ! हर घड़ी तूँ उल्टे गंगा बहावऽ हऽ !)    (मपध॰12:20:18:2.3)
372    बतकही (एगो बूढ़ बोलल - 'बतकही छोड़ऽ । जयमाला के आनंद उठावऽ । लड़की पढ़ल-लिखल गुनगर हे । जयमाला के कोई नया तौर-तरीका देखावत ।')    (मपध॰12:20:23:3.9)
373    बतासा-सेनुर (बड़का गोटीवाला चेचक उठे त गामे गाम शीतला माय के प्रलयंकर नाच शुरू हो जाय । मघड़ा (शीतलामाई के मंदिर) जा आउ बतासा-सेनुर चढ़ावऽ । ज्ञान-विज्ञान से कोसों दूर खेत-पथार के जिंदगी । नानी हो आन्हर एही शीतला माय के प्रकोप से ।)    (मपध॰12:20:50:3.9)
374    बनच्चर (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।")    (मपध॰12:20:51:1.37)
375    बनौड़ी (= जैसे-तैसे बनाई वस्तु; दे॰ बनौरी) (गंगाजी के दखिन छोर मगह दने अपवित्र मानल जाहे । पंडीजी लोग के बनौड़ी अइसने हे । कारण हे मगह के बुद्ध-जैन दर्म से प्रभावित रहना ।)    (मपध॰12:20:48:2.14)
376    बर-विचार ('मगही पत्रिका' के परचार-परसार खातिर या गोष्ठी सम्मेलन में हेल-मेल के क्रम में अपने सब जे बर-विचार दे हथिन ऊ अधार पर हमरा लगऽ हइ कि 'मगही पत्रिका परिवार' के अभियान से मगही में लिखे-पढ़े के चलन थोड़े बढ़ले हे आउ हतास कवि-लेखक में थोड़े-थाड़ जागृति अयले हे ।)    (मपध॰12:20:4:1.1)
377    बराती-सराती (कोई ओन्ने से ढेला फेंक देलक तो एन्ने से ईंट-पत्थर चले लगल । देखते-देखते बराती-सराती कौरव-पांडव बन गेलन । जयमाला के जगह कुरुक्षेत्र में बदल गेल । बड़ी समझौला-बुझौला पर बराती शांत भेल ।)    (मपध॰12:20:23:2.8)
378    बरियाती (= बारात) (बर के खाय के भुस्सा नञ्, बरियाती खोजे चूड़ा ।)    (मपध॰12:20:16:1.5)
379    बरियारी (~ करना) (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?)    (मपध॰12:20:47:2.14)
380    बरियारी (= बरिअईं) (बरियारी देखा रहलहीं हे, हमर सरीरवा में पानी बहऽ हइ ?)    (मपध॰12:20:12:1.13)
381    बरेठा (= घड़का) (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।)    (मपध॰12:20:30:1.7)
382    बलबलाना (एतना कसके सुइया भोंक देलकइ कि खून बलबला गेलइ ।)    (मपध॰12:20:8:1.14)
383    बहरसी (कैलास पहाड़ पर महादे के निवास । घर में अकेले पारबती उदास बइठल हथ । कारतिक आ गनेस बहरसी गेल हथ ।; हमरा जनकारी हे कि अप्पन इयार-दोस के हुरपेटला पर तूँ हरमेसा बहरसी ई नाच देखावऽ हऽ ।)    (मपध॰12:20:17:1.3, 2.7)
384    बहिया (~ बैल) (दुनहुँ मामू बहिया बैल । गाम के बड़गर किसान बाभन भैया आउ पटवारी लालाजी कहथिन, "ई दुनहुँ कमइते-कमइते मर जइतइ । हमन्हीं चौपड़ खेलऽ ही, ई सब भिनसरवे हर लेके निकल जाहे । कमइला से धन होवऽ हे ? जेकरा लक्ष्मी देथिन उ अइसहीं उजिया जइतइ ।")    (मपध॰12:20:50:3.12)
385    बाघा (हागा अगुर बाघा की ।)    (मपध॰12:20:16:1.2)
386    बाबाजी (= ब्राह्मण {साधारणतः अनपढ़ ब्राह्मण के लिए प्रयुक्त}) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।)    (मपध॰12:20:49:1.13)
387    बाभनी (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।)    (मपध॰12:20:49:1.35)
388    बामन (केतनो बामन सोझा त हँसुआ नियन टेढ़ ।)    (मपध॰12:20:16:1.6)
389    बाय (= कष्ट, परेशानी) (बाय आ रहलो हे ?)    (मपध॰12:20:9:1.28)
390    बाहर (~ जाना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।)    (मपध॰12:20:51:1.10)
391    बिंदुली (बुढ़वा भतार पर तीन टिकुली, एगो कच्ची एगो पक्की, एगो लाल बिंदुली ।)    (मपध॰12:20:16:1.19)
392    बिख (= विष, जहर) (जमीन तो गोल होयवे कइल, चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारू के लुग्गा-फट्टा भी गेल । थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल । बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल ।)    (मपध॰12:20:22:2.10)
393    बिछिया (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।)    (मपध॰12:20:30:1.4)
394    बिड़ार (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।)    (मपध॰12:20:50:1.16)
395    बिदाहना (= बीज छींटकर बीज को ढँकने के लिए हलकी जुताई करना; लगी फसल की घास साफ करने अथवा बहुत घनी फसल को छिहर करने के लिए हलकी जुताई करना) (मकई बिदाहे गेलथुन हे, साँझ के अइथुन ।)    (मपध॰12:20:9:1.31)
396    बिधंस (= विध्वंस) (देओता लोग के जनम देवेवला दक्ष प्रजापति के जग्ग में तू अप्पन प्रधान गण वीरभद्र के भेज के जग्ग बिधंस करइलऽ आ ओकरे हाँथे उनकर मूड़ी छोपवा के बकरा के मूड़ी लगवइलऽ हल ।)    (मपध॰12:20:19:2.42)
397    बिधुनना (सोहाग केतना अनमोल हे, केतना टुनकी हे - सात तह के भीतर सोहाग के सेनुर लुका के रखल जाहे । अपने लोग ओकरा सात तह से भी निकाल के 'बिधुन' के छोड़ देली ।)    (मपध॰12:20:23:3.31)
398    बिनाना (छउँड़ी एतना जोड़ से काहे ल बिना रहले ह जी, एक घंटा से ?)    (मपध॰12:20:9:1.17)
399    बिरबिरायल (उनके मेहरारू महेसरी भी आ गेल । बेना डोलावित फुसुकलक - 'तू गाँव में रेंगनी के काँट लगावइत चलइत ह । गाँव के नवही बिरबिरायल हथुन सब । ऊ सब का खा-पी के जइतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अपन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का !')    (मपध॰12:20:21:2.14)
400    बिसबिसाना (= दाँत में हलका दर्द होना) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।')    (मपध॰12:20:21:1.15)
401    बिसुखाना (गइया बिसुखा गेलइ सेसे कम दूध ममोसर होवऽ हे ।)    (मपध॰12:20:8:1.17)
402    बीजे (= बिज्जे) (बराती के स्वागत-सत्कार में भी कमी रह गेल । यहाँ तक कि दुल्हा के मामू के अंगेआ भी न मंगाएल, से रात भर भूखे रह गेलन । दुल्हा के फूफा के बीजे भी न होयल से रात भर मिठाई फाँक के रह गेलन ।)    (मपध॰12:20:32:1.2)
403    बुट्टा (~ कसना) (अभी ढंग चोखइवो नञ् कइलऽ हे आउ भउजी-भउजी करके बुट्टा कसे अइलऽ हे !)    (मपध॰12:20:15:1.2)
404    बुनिया (~ झरवाना) (बुनिया झरवा रहलथुन हे, एक घंटा बाद अइथुन ।)    (मपध॰12:20:11:1.18)
405    बुर्राक (दे॰ बुराक) (गोर ~) (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।)    (मपध॰12:20:46:3.35)
406    बेआपना (= बियापना) (धीरे-धीरे बोतल के नीसा चढ़इत सूरज लेखा ढले लगल । सबके चेहरा पर ढिबरी जरइत हल । तरूआठी के आग अपने आप बुझा जाहे, ओइसहीं शराब के नीसा । सबके मन में डर बेआपल हे ।)    (मपध॰12:20:23:2.38)
407    बेकहन (दादी के बात उनखर कान में पड़ल कि ऊ खजूर के छड़ी फटकारथुन, "ओ, एने आवऽ, अइसन लप्पड़ मारबउ कि हग देमऽ सार । बिलकुल बेकहन हे । गुरुओजी अइसने अन्नस हका । सोचलूँ हल कि दुझरा पर बैठता त बाल-बुतरू के सँभाले रहता । ..")    (मपध॰12:20:51:2.8)
408    बेकहल (महादे - ... अभी तो दुन्नो बेटा भी घर में न हथुन । हमर नाच के देखनिहार अकेले तूँहीं रहबऽ ? / पारबती - {ताना मारइत}आय हाय ! चलनी दुसलक सूप के, जेकरा में बहत्तर छेद ? दुन्नो बेटा बेकहल नियर अप्पन मरजी से जहाँ-तहाँ काम करइत रहऽ हथुन ।)    (मपध॰12:20:17:2.15)
409    बेटिहा (= बेटी का पिता या अभिभावक; वधू पक्ष के लोग) (गाँव के ई पहिला बारात हे, जेकरा में खाली झार-फानुस में पच्चीस हजार रुपइया पर तितकी रख देवल गेल । बैंड-बाजा आउ नाच समियाना में जे पैसा लगावल गेल, ऊ बेटिहा के तीन कट्ठा जमीन के बंधक रखे से आयल हे ।; बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।; बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।)    (मपध॰12:20:22:1.14, 35, 2.15)
410    बेबोलहटा (~ के) (महादे - ठहरऽ, ठहरऽ । बड़की सउतिन के कहानी तू भुला गेलऽ हे । ऊ बेबोलहटा के जग्ग में गेलथुन हल । उहाँ आदर-सत्कार त दूर, सीधे मुँह से केउ बात भी न कइलन आ अपन देह में आग लगाके उनका जरे पड़ गेलइन हल ।)    (मपध॰12:20:19:3.3)
411    बोकरना (नीम ~) (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।)    (मपध॰12:20:14:1.21)
412    बोय (~ फुटना) (अब जाके बोय फुटलइ त समान सब पकड़इलइ ।)    (मपध॰12:20:14:1.13)
413    बौंख (= बौंखा, बौंखी; अत्यन्त तेज हवा का झोंका, क्षणिक आँधी; धूल भरी चक्कर काटती आँधी)  (हावा के ~) (सोझे खिड़की से हवा के एगो बौंख आएल आउ दिवार पर लगल भगवान के कैलेंडर पलट गेल ।)    (मपध॰12:20:26:3.42)
414    बौंखना (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।)    (मपध॰12:20:5:1.19)
415    बौड़म-बुड़बक (ए गेंदाजी ! तों ह भोले बाबा नियन बौड़म-बुड़बक । गंगा मइया के कोई अदना अदमी-देवता संभार सकऽ हइ । जखनी ऊ स्वर्ग से उतरलथिन तखनी हलइ केकरो दम जे कि ऊ माय के संभार सके । शिवे जी न संभरलथिन जी ।)    (मपध॰12:20:46:1.29)
416    ब्यौंत (शंकर बाबा जब तांडव करे लगऽ हथिन तब केकरो कोई ब्यौंत न लगऽ हे सिवा टुकुर-टुकुर तके के चाहे कोठी के सान्ही में लुका जायके ।)    (मपध॰12:20:45:1.21)
417    भटभटाना (काहे ल भटभटा रहलें ह, एक घंटा से ।)    (मपध॰12:20:9:1.23)
418    भद (भद से नीचे गिर गेलइ ।)    (मपध॰12:20:8:1.22)
419    भदारना (दुनहुँ भइवा के एकल्ले मार के भदार देलकइ ।)    (मपध॰12:20:10:1.17)
420    भरगर (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।")    (मपध॰12:20:46:1.40)
421    भरठना ("कलजुग में वर्णाश्रम धर्म भरठ रहलो ह न । सब वरण अप्पन क्षण बदल देतो । बाभन भीख माँगतो । क्षत्री हर जोततो । वैश्य वीख पादतो आउ शूद्रवन तोरा अइसन के टाँग उठइतो ।" इ कहके बाबा खीं-खीं हँसला आउर गेंदाजी जय जजमान कहके दोसर दुआरी झाँके चलला ।)    (मपध॰12:20:46:2.19)
422    भरता (= भुरता) (मिनट के अंदर इ हल्ला, इ तहलका कि कौन खिचड़ी खाय, कौन लुग्गा समेटे, कौन मोटरी सँभारे । गिरते-पड़ते भागल-भागल सभे जने धुनी बर दने आके ठहरला । इ तो खैर समझहु कि पहड़वा के पथलवा थोड़े-बहुत दरदरा के रह गेलइ न तो जइसन ठीक पहड़वे तले भीड़ हलइ - लोगन तो भरते हो जइता हल ।)    (मपध॰12:20:45:2.21)
423    भरौंसा (= भरोसा) (अपने से देख आवऽ, दोसर पर भरौंसा नञ् करना चाही ।)    (मपध॰12:20:11:2.6)
424    भववधी (आज बारात जा रहल हे । दू गो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कइल गेल हे । बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन । एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग ।)    (मपध॰12:20:21:2.40)
425    भागल-भागल (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।")    (मपध॰12:20:51:3.1)
426    भाट-महिन (प्रकृति हे थोड़ा अराजक । थोड़ा अराजक तो कवियन कलाकरवन के होहीं पड़ऽ हे न त उ हो जइता भाट-महिन ।)    (मपध॰12:20:49:2.15)
427    भार (~ पड़ना) (पनरह दिन से बड़ी भार पड़ रहलो हे, देह टटा रहलो हे ।)    (मपध॰12:20:11:1.5)
428    भाला-गड़ाँसा (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।)    (मपध॰12:20:49:1.14)
429    भुखले-पियासले (सरिता के आँख के लोर सुखवो न करऽ हल कि फिर आँसू के तूफान आ जा हल । भुखले-पियासले अपन जिनगी के बारे में सोचित दिन-रात उ घुटइत रहऽ हल ।)    (मपध॰12:20:29:2.18)
430    भुखाल (= भुक्खल; भूखा) (अभी फरीचो नञ् होले हे आउ सुरूज महराज के अरग देवहुँ लगलथिन सब भुखाल परवैती लोग ।)    (मपध॰12:20:15:1.21)
431    भुचुंग (= भुचंग) (करिया ~, कार ~) (हम्मर नाना काला भुचुंग खाँटी किसान, एकठौए हर जोते वाला । कमे उमर में काल-कवलित हो गेला ।)    (मपध॰12:20:50:2.31)
432    भुच्चड़ (सिकंदर महान के सिंधु नदी के तलछट में रहेवाला भुच्चड़ भुजंग कृष्णवर्णी अग्रहरवन रगेद-रगेद के मारे लगलइ ।; इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"; मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।)    (मपध॰12:20:45:1.15, 46:2.27, 3.33)
433    भुरकुंडा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।)    (मपध॰12:20:48:3.33)
434    भुरकुस (मार के भुरकुस कर देबउ, जहाँ गारी देले हें त । निम्मल-दुब्बर समझ लेलहीं हे ।)    (मपध॰12:20:13:1.25)
435    भुस्सा (= भूसा) (बर के खाय के भुस्सा नञ्, बरियाती खोजे चूड़ा ।)    (मपध॰12:20:16:1.5)
436    भोंदू (सब तो अउरते हे, पढ़ल-लिखल हे । भोंदू भाव न जाने, पेट भरे से काम । मँड़वा गड़ा गेल, माटी कोड़ा गेल, कोहबर सज गेल, हरदी हाड़ में लगावल जाइत हे । बिआह के गीत केकरो याद न, कैसेट बज रहल हे ।)    (मपध॰12:20:22:3.9)
437    भोगारना (दुलहवा लड़कीया के भोगार देलकइ ।)    (मपध॰12:20:9:2.11)
438    मंगटीका (मइया लंबी स्वाँस लेके कहऽ हल, "तोरा तो बिआह में मिलवे करतउ । पहिनिहें न ।" / ऊ चुप्पी लगा जा हल । सपना बुने लगऽ हल - पाँव में पायल, कान में झुमका, हात में कंगन, मांग में मंगटीका, नाक में नकबेसर, गला में सोना के चनरहार - सुहाग जोड़ा में लिपटल !)    (मपध॰12:20:31:1.18)
439    मइयो-दइयो (बस, हो गेलो मइयो-दइयो, अब गाड़ी में बइठऽ !)    (मपध॰12:20:12:1.22)
440    मइला (= मैला, गूह, पाखाना) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे । पीठ पर पानी छलछला के पड़लो । मुँह में कादो मइला !)    (मपध॰12:20:46:1.6)
441    मगह (= मगध) (मगह में बैकठपुर के शिव मंदिर प्रसिद्ध हे । फागुन अइते गेंदा पंडा आ गेला । जजमान हीं से धान, गेहूँ, धनियाँ, मिरचाई हर साल ले जा हका ।; बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"  ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में ।; मगह के दुआरी पर आवल कुत्तो के न भगावल जा हे ।)    (मपध॰12:20:45:3.13, 46:2.32, 36, 48:2.29)
442    मगहिया (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"; मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।)    (मपध॰12:20:46:2.30, 3.33)
443    मघड़ा (बड़का गोटीवाला चेचक उठे त गामे गाम शीतला माय के प्रलयंकर नाच शुरू हो जाय । मघड़ा (शीतलामाई के मंदिर) जा आउ बतासा-सेनुर चढ़ावऽ । ज्ञान-विज्ञान से कोसों दूर खेत-पथार के जिंदगी । नानी हो आन्हर एही शीतला माय के प्रकोप से ।)    (मपध॰12:20:50:3.8)
444    मनमनाल (बूढ़ा शादी करे ले मनमनाल हथुन ।)    (मपध॰12:20:8:1.7)
445    मनरा (= मानर) (डाड़ के देउता मनरा पर ।)    (मपध॰12:20:15:1.1)
446    ममा (= दादी; दे॰ मामा) (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।")    (मपध॰12:20:51:1.40)
447    ममोसर (= मयस्सर) (गइया बिसुखा गेलइ सेसे कम दूध ममोसर होवऽ हे ।)    (मपध॰12:20:8:1.17)
448    मर-मजाक (सभे बराती के दुआर लगावे में परेशान । केकरो दिल-दिमाग हाँथ में नञ् । बराती हे, मर-मजाक होयवे करत ।)    (मपध॰12:20:23:2.4)
449    मरहिन्ना (मरहिन्ना काटे गेलथुन हे, साँझ के अइथुन ।)    (मपध॰12:20:10:1.24)
450    मलसी (एक मलसी तेल लग गेलइ ।)    (मपध॰12:20:8:1.32)
451    महतमाइन (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !; )    (मपध॰12:20:15:1.13, 48:3.26)
452    माट (~ मारना) (माट नञ्मारे देबो, लेना हो त लऽ ।)    (मपध॰12:20:9:1.21)
453    माड़-भात (जमीन तो गोल होयवे कइल, चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारू के लुग्गा-फट्टा भी गेल । थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल । बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल ।)    (मपध॰12:20:22:2.9)
454    मातल (नीन में मातल अदमी के कउन भरोसा ।)    (मपध॰12:20:10:1.6)
455    मामू-ममानी (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।)    (मपध॰12:20:45:2.8)
456    मार (~ लाठी; ~ बढ़नी) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।)    (मपध॰12:20:21:2.4)
457    माल-मुसहर (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।; एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।")    (मपध॰12:20:49:1.11-12, 51:2.1)
458    मिठमोहना (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।)    (मपध॰12:20:14:1.21)
459    मिन्नत-मनौअल (व्यापारी वर्ग के लोग से भी भरपूर मिन्नत-मनौअल करे पड़तइ काहे कि बड़ा स्तर पर कोय आंदोलन में पैसा के भी आवश्यकता होवऽ हइ ।)    (मपध॰12:20:6:1.17)
460    मिरचाइ ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।)    (मपध॰12:20:49:1.39)
461    मिरजा (माल महराज के, मिरजा खेले होली ।)    (मपध॰12:20:16:1.12)
462    मीर घाट (ईर घाट ... ~) (कातिक तो तोर अगिनबेटा हथुन । निछत्तर लोक में छव किरितिका लोग उनकर पालन-पोसन कइलन हल । कातिक जनमलन ईर घाट, पालल-पोसल गेलन मीर घाट आउ माय कहइली हम ।)    (मपध॰12:20:17:2.40)
463    मुँहजबानी (= मुँहजमानी) (हम बराबर (वाणावर) पहाड़ी के बारे में किताब में पढ़ली हल । कुछ लोग मुँहजबानियों एक्कर जिकिर हमरा से करित रहलन हे ।)    (मपध॰12:20:43:1.2-3)
464    मुँहजूठी (अरिछन-परिछन, कोहबर के विधि-विधान के बाद दुल्हन के खीर में हाथ डाले ला आउ मुँहजूठी ला सास, ननद, जेठानी, फुफिया सास घिघिया के रह गेलन हल बाकि काननप्रिया एको कोर न खा सकल हल ।; फुफिया सास बोललन हल, "मिलतइन न, जे भाग में होतइन से मिलवे करतइन । पहिले मुँहजूठी के नेग हइ । दुल्हिन के चाही, मुँहजूठी कर लेथ । गोतिया-भाई के खिआवे में देर हो रहल हे । लोग भूखे-पिआसे हथ ।")    (मपध॰12:20:32:1.26, 40, 41)
465    मुँहझँपे (बूढ़ी महतमाइन बोलला, "परसों मुँहझँपे चललियो । पंद्रह आदमी के जमात हो । एक रात चंडी ठहरलियो मउसी के बेटी हीं । आज हिंया 'सीमा' में ठहरल हियो । दूर के रिश्तेदार हला - मुदा न चिन्हलका, बगइचे ठीक हे ।")    (मपध॰12:20:48:3.26)
466    मुँहदेखनी (मइया का जनी कउची खिया के भेज देलथिन हे कि भूखे न लगलइन हे । मुँहदेखनी का जानी खूब खोजइत होथुन हे, सीतलमनिया । करनफुलवा दे देहुन । नौकरिहा ननद हहूँ ।)    (मपध॰12:20:32:1.35)
467    मुरझाल-कुम्हलाल (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।)    (मपध॰12:20:50:1.15-16)
468    मुलुर-मुलुर (अपसड़ के खुदाई में मिलल वराह के मूर्ति आउ सौ कोसी तलाब अपने आप में ढेर इतिहास समेटले हे । ई सब विकास के परबत्ती पहाड़ मुलुर-मुलुर देखते आल हे ।)    (मपध॰12:20:6:1.2)
469    मेंही (दे॰ मेहिन) (नरेंद्र के लगइत हल कि ओही पास हएलक हे । ऊ रोहित के चाल कइलक आउ पाँच सौ रुपइया देइत कहलक कि बजार से मेंही दाना वाला निमनका लड्डू ले आवे ।)    (मपध॰12:20:24:1.17)
470    रजना (खइते-खइते मन रज गेलइ ।; बस करऽ ! अब मन रज गेलो जिलेबी खइते-खइते ।)    (मपध॰12:20:12:1.8, 15:1.25)
471    रदबुद (राते भर में रदबुद कर देलकइ एकदम से ।)    (मपध॰12:20:12:1.12)
472    रहस (= रहस्य) (पारबती - (मुँह ऐंठ के) रहे द रहे द ! सब देओता के भितरिया रहस हम नीक तरी जानऽ ही । देवलोक में केउ दूध के धोवल न हे ।)    (मपध॰12:20:19:1.28)
473    राँड़ (= विधवा) (राँड़ के बेटा साँढ़ नियन ।)    (मपध॰12:20:16:1.22)
474    राँड़-मोसमात (= राँड़-मसोमात) (आ दीनानाथ ! जइसे ई राँड़-मोसमात के दहँज रहलो हे छउँड़ी, ओइसहीं एकरा धुएँ के राँड़ कर दिहऽ ।)    (मपध॰12:20:15:1.15)
475    राड़ (= नीच; बात या सलाह न मानने वाला; निकम्मा) (~-भोड़; ~-रोहिया) (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।)    (मपध॰12:20:51:3.35)
476    राबा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।)    (मपध॰12:20:48:3.33)
477    रिक्ता (= रिक्त {तिथि}) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।)    (मपध॰12:20:16:1.24)
478    रियाह (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।)    (मपध॰12:20:49:1.37)
479    रूपौठी (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।)    (मपध॰12:20:30:1.3)
480    रोट (= मोटी मीठी रोटी; देवता-देवी को अर्पण करने का प्रसाद या पकवान) (रोट बन रहले हऽ, आधा घंटा में तैयार हो जइतो ।)    (मपध॰12:20:9:1.11)
481    लंगटीनी (जे मरद के साथ ई पेट फुलैलके हे ओकरे घर जाय । ई लंगटीनी के घर से निकाले में फयदा हके ।)    (मपध॰12:20:27:2.8)
482    लंगड़ा (= बिच्छा; बिच्छू) (देख लेलहीं हुलचुल्ली के मजा, मरलकउ ने लंगड़ा डंक ।)    (मपध॰12:20:13:1.6)
483    लंठ (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?)    (मपध॰12:20:47:2.15)
484    लगनउती (= बिहउती) (~ साड़ी) (चंद्रकांती लगनउती कपड़ा उतार के माय के सूतीवाला साड़ी पेन्ह लेलक । सिंगार-पटार खँखोर-खँखोर क चुल्हा में डाल देलक ।; का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।)    (मपध॰12:20:23:2.11, 28)
485    लगना (= क्रि॰ मवेशियों का दूध देना; हँसी-मजाक या छेड़खानी करना; सं॰ हल की मूठ, परिहथ; भेड़ आदि के झुंड का अगुआ भेड़ - स्त्री॰ लगनी) (भारी झनझन हो, ओकरा से मत लगऽ ।)    (मपध॰12:20:11:1.16)
486    लगाना-बझाना (जा, काहे ल लगा-बझा के बोल रहलऽ हे ।)    (मपध॰12:20:13:1.20)
487    लछमिनियाँ (ई गाय बड़ी लछमिनियाँ हो, जब से अइलो हे दिन बदल गेलो हे ।)    (मपध॰12:20:14:1.5)
488    लठमारी (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।)    (मपध॰12:20:51:3.33)
489    लड़कोरी (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय । फसली, प्लेग, शूल संघरणी, शीतल ज्वर-वेद फँकी बाँटे बाकि मौते ईश्वर के साम्राज्य रहे ।)    (मपध॰12:20:50:2.38)
490    लपलपाना (बकड़िया कुल्ले लतिया लपलपा गेलो ।)    (मपध॰12:20:8:1.9)
491    लाय (हमरा लाय बड़ अच्चा लगऽ हइ ।)    (मपध॰12:20:9:2.9)
492    लिट्टा (अजलत के खिस्सा, भात पर लिट्टा ।)    (मपध॰12:20:16:1.23)
493    लूर-लच्छन (न जी, कउनो खास बात न हे । हम तो तोरे लूर-लच्छन से बरमहल उदास हो जाही ।)    (मपध॰12:20:17:1.10)
494    लेखा (घर-घर देखा एके ~) (माय महेसरी लोर चुआवित घिघिआयल - 'चंद्रकांती ! बाप के पगड़ी के लाज बचा लऽ । तोरे ला नफीस दस कट्ठा के पलौट पर टिकिया रख देली । जा सबके बिआह में आझ एहे देखे के मिलइत हे । घर-घर देखा एके लेखा ।')    (मपध॰12:20:23:2.21)
495    लोढ़ी-सिलउटी (इहे तरह देखलिअइ कि कत्ते गोटा हीं दुर्लभ मूर्ति लोढ़ी-सिलउटी के रूप में उपयोग में आ रहले हल । ई तो बस एगो नमूना हलइ धरोहर के दुर्दशा के ।)    (मपध॰12:20:6:1.32)
496    लोहराइन (लोहराइन गमके के चलते मछली नञ् पसंद करऽ हियो बकि मीट-मुरगा खा हिअइ ।)    (मपध॰12:20:14:1.18)
497    लौंडा (बैंड बाजा पर सड़क के किनारे चुहो-चुटरी डांस कर रहल हे । रामटहल लौंडा के फेल कयले हथ ।)    (मपध॰12:20:23:1.39)
498    लौंद (मगह के कुंभ हे लौंद ।)    (मपध॰12:20:49:1.34)
499    वीख (= बिख, विष) ("कलजुग में वर्णाश्रम धर्म भरठ रहलो ह न । सब वरण अप्पन क्षण बदल देतो । बाभन भीख माँगतो । क्षत्री हर जोततो । वैश्य वीख पादतो आउ शूद्रवन तोरा अइसन के टाँग उठइतो ।" इ कहके बाबा खीं-खीं हँसला आउर गेंदाजी जय जजमान कहके दोसर दुआरी झाँके चलला ।)    (मपध॰12:20:46:2.22)
500    शौख (= शौक) (ई घर में बेटा के बिआह करके एको शौख न पूरा होयल । समधी हमर एगो हीत-नाता के पैरपूजी में अच्छा कपड़ा न देलन । बराती के स्वागत-सत्कार में भी कमी रह गेल ।)    (मपध॰12:20:31:3.37)
501    सँभरना (परिवार के नीक तरी चलावे के सरजाम तू कभी जुटैलऽ हे ? सब्भे लोग तोर बेढंगी गिरहत्ती के खिल्ली उड़ावऽ हथ । जेकरा से दू गो बेटा न सँभरल, ऊ आउ कउन काम कर सकऽ हे ?)    (मपध॰12:20:18:1.19)
502    संघत (= संगत, संगति) (जइसन संघत में लोग बइठऽ हे, ओकर बुद्धि भी ओइसने हो जाहे । जिनगी भर तूँ एक्को लुरगर इयर-दोस रखलऽ ?)    (मपध॰12:20:18:2.15)
503    सउर (= प्रसूति-गृह) (जिज्ञासु के सउर में कि डालल गेल ह कि ऊ जिनगी भर घुमक्कड़ बनल हका - भटकत रहना उनकर शगल बन गेल ह ।; छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय ।)    (मपध॰12:20:47:1.30, 50:2.37)
504    सकलदीपी (= शाकद्वीप के निवासी ब्राह्मण; ब्राह्मणों का एक भेद जो चिकित्सा शास्त्र में निपुण होते हैं) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।)    (मपध॰12:20:49:1.8)
505    सगहा (~ जात) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।)    (मपध॰12:20:49:1.10)
506    सटना-पटना (चल सट-पट के सुत जाम । जाड़ा के तो दिन हइ ।)    (मपध॰12:20:12:1.24)
507    सटाक-सटाक (~ मारना) (काहे ल घोंड़वा के सटाक-सटाक मार रहलहो हऽ ?)    (मपध॰12:20:8:1.5)
508    सटाना (= चिपकाना, मिलाना, स्पर्श कराना; बकाया सधाना, वसूल करना) (बेटी ! मान जो ! अप्पन हठ छोड़ दे । जउन सामान हम दे चुकली ओकरा सटावे में ठीक न हे । ओकर दाम भी न मिलत ।)    (मपध॰12:20:34:1.15)
509    सतुआ (~ जात) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।)    (मपध॰12:20:49:1.9)
510    सधाना (महामार काहे कर रहलहीं हे तों सब, असल के होबइ त सधा लेबइ ।)    (मपध॰12:20:13:1.16)
511    समुच्चा (= समूचा) (महादे - जदि हम जहर न पीती हल तब समुच्चे संसर भसम हो जात हल । / पारबती - तब बचावे के जिमवारी न लेके समुच्चा संसार के नाश करे के काम तूँ अप्पन माथा पर काहे लादले फिरऽ ह ?)    (मपध॰12:20:19:1.14)
512    समुच्चे (= समूचे) (महादे - जदि हम जहर न पीती हल तब समुच्चे संसर भसम हो जात हल । / पारबती - तब बचावे के जिमवारी न लेके समुच्चा संसार के नाश करे के काम तूँ अप्पन माथा पर काहे लादले फिरऽ ह ?)    (मपध॰12:20:19:1.12)
513    समुन्नर (= समुन्दर; समुद्र) (पारबती - गाल काहे बजा रहलऽ हे ? तू तो जिनगी भर अलबलाहे रह गेलऽ । समुन्नर के मथे से जे चौदह गो रतन निकलल हल ओकरा में एक भी नीमन चीज तोरा परापित भेल ?)    (मपध॰12:20:18:3.44)
514    सम्हारना (= सँभालना) (काला राम के सम्हारल, गोरा गूह के चपोतल ।)    (मपध॰12:20:16:1.20)
515    सर-सामान (अब गौना में का होत ? ओकरो में बचल-खुचल तिलक पूरा करे पड़त । सर-सामान से लादे पड़त । गौना में भी अब कम नाज-नखरा न हे ।; हम्मर घर बसवे ला हम्मर बाबूजी के घर उजड़ गेल । ई गहना-गुड़िया, कपड़ा-लत्ता, सर-सामान सब बाबूजी के खून में सनल हे ।; काननप्रिया तब बोलल हल, "त सुन ल माय ! जब तक ई तिलक के सर-सामान हम्मर बाप-माय के लौटा न देबऽ, तब तक हम तोहर घर के अन्न-पानी ग्रहण न करबो, चाहे हम्मर जान काहे न चल जाय ।")    (मपध॰12:20:33:1.25, 40, 3.13)
516    सरोतरी (= श्रोत्रिय) (~ बर्हामन) (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।"/ बाबा के बकार फूटल - "एही तो कलजुग के परभाव हे । तूँ बर्हामन होके न पढ़लऽ । वेद के श्रुति कहल जाहे । तोहनहीं सरोतरी के माने हे जे श्रुति यानी वेद पढ़े ओही सरोतरी हे । बाकि कलजुगवा केकरो छोड़तो बाबाजी ।")    (मपध॰12:20:46:2.6, 9, 11)
517    ससारना (लावऽ, ससार दे हियो, दस मिनट में ठीक हो जइबऽ ! अपने न अपना के काम दे हे ।)    (मपध॰12:20:13:1.24)
518    ससुरइतिन (सरिता अब ससुरइतिन हो गेल हल । ससुरार में सरिता के खूब मान-मरजाद हल ।)    (मपध॰12:20:29:1.24)
519    सानी (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ठीके सानी चलावे ला श्री महतो उठथुन त हल्ला करथुन - "उठ रे ! उठ ! अरे महवा, इनरा उठ ! भुरुकवा उग गेलउ ।")    (मपध॰12:20:46:2.33)
520    सान्ही (शंकर बाबा जब तांडव करे लगऽ हथिन तब केकरो कोई ब्यौंत न लगऽ हे सिवा टुकुर-टुकुर तके के चाहे कोठी के सान्ही में लुका जायके ।)    (मपध॰12:20:45:1.23)
521    सायत (= शायद) (हम्मर बाबा हलन छोटे-मोटे जमींदार बाकि जमींदारी के ठस्सा कि होवऽ हे इ हम खूब जान गेलूँ । छोटे घर के हम्मर माई ई बड़का घर में का का भोगलक - इ बखाने में सायत बेचारी सरसती लजा जइथन ।)    (मपध॰12:20:51:1.28)
522    सासत (चंद्रकांती के का पता माय-बाप के एतना सासत भोगे पड़ित हे । देह में हरदी के उबटन तो लगल बाकि दिल-दिमाग भी पियरा गेल । तोरी फुला रहल हे सबके आँख में ।)    (मपध॰12:20:22:2.13)
523    सीटना (= डींग हाँकना) (जादे सीटे के कोरसिस नञ् कर, हम तोहनिन के बारे में सब जानऽ हिअउ ।)    (मपध॰12:20:11:2.19)
524    सुक्कुर (= शुक्र ग्रह) (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ठीके सानी चलावे ला श्री महतो उठथुन त हल्ला करथुन - "उठ रे ! उठ ! अरे महवा, इनरा उठ ! भुरुकवा उग गेलउ ।")    (मपध॰12:20:46:2.32)
525    सुखाड़ (= अनावृष्टि) (असाढ़ माह में अकास में बादर देख के किसान जतने खुश होके मोर लेखा नाचऽ हे ओतने सुखाड़ के अंदेशा से घबड़ाइत भी रहऽ हे । तिलेसरी माय के हिया हाँड़ी के अदहन लेखा खउलइत रहइत हे ।)    (मपध॰12:20:22:3.33)
526    सुटकल (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो ।)    (मपध॰12:20:45:3.23)
527    सुन्न (दिमाग ~ होना) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो ।)    (मपध॰12:20:45:3.28)
528    सुरूम (= शुरू) (तोरा तो केउ नाच सिखइबो न कइलक हे ! तूँ तो अप्पन बुद्धि से लास्य नाच सिरजलऽ आ कइलऽ हे । हम तो तंड नाम के रिसी से सीख के तांडो नाच सुरूम कइली हल ।)    (मपध॰12:20:17:2.1)
529    सूखना-पखना (अपने के ई जान के हैरानी होतइ कि जउन देश में भात खाय के चलन नञ् हइ ऊ देश में डब्बाबंद माड़ बिक रहले हे । त अमरीका माड़ बेच सकले हे आउ हमनहीं गुड़मार आउ भुइआँवला जइसन औषधीय पौधा के सूख-पख जाय दे रहलिए हे ।)    (मपध॰12:20:6:1.35)
530    सेल कबड्डी (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।)    (मपध॰12:20:50:1.15)
531    सेवायदम (= हमेशा) (सेवायदम बोकराती करते रहऽ हें, ई ठीक नञ् लगउ ।; डोमिनियाँ के लाजो-गरान नञ् लगइ, सेवायदम चकरचाल में रहऽ हइ ।)    (मपध॰12:20:12:1.2, 14.1.14)
532    सैंताना (= 'सैंतना' का अ॰ रूप) (उधर बराती के चेहरा पर काटऽ तो खून न । सबके होश-हवाश गुम । उधम मचावल बोतल में सैंताय लगल । ऊ एकरा, ई एओकरा पर कीचड़ उछाले में मशगूल ।)    (मपध॰12:20:23:2.33)
533    सोंस (= एक बड़ा जलजंतु; खर्राटा) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे ।)    (मपध॰12:20:46:1.4)
534    सोम (= सूम, कंजूस) (नड़ी सोम हो, पचासो रुपइया नञ् देतो ।)    (मपध॰12:20:14:1.12)
535    स्टील-फस्टील (कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।)    (मपध॰12:20:33:1.25)
536    हगना (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।)    (मपध॰12:20:51:1.11)
537    हगना-मूतना (हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।)    (मपध॰12:20:48:1.23)
538    हगू (= ?) (कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।)    (मपध॰12:20:33:1.23)
539    हड़हड़-धड़धड़ (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।)    (मपध॰12:20:45:2.12)
540    हड़ास-हड़ास (अब रोमा के पूर्ण विश्वास हो गेल हल कि अब रवि ई जनम में न सुधरत । यही सोच के रोमा बरमदा में आके अप्पन एगो सूती साड़ी लम्बा-लम्बा दू टुकड़ा में फाड़ देल आउ रवि के पलंग में वही साड़ी से सुतले में बाँध के ओकर सिर पर मुंगड़ी से हड़ास-हड़ास प्रहार करे लगल ।)    (मपध॰12:20:37:3.16)
541    हबहब (ठीक से देखे दे । उठान आउ मुठान से अदमी आउ जानवर के पहचान होवऽ हइ, ढेर हबहब नञ् कर ।)    (मपध॰12:20:15:1.4)
542    हर-हरमेसा (हर-हरमेसा तोरा पर दाबा आ भरोसा करके हमरा पछताय आ सरमाय पड़ल हे ।)    (मपध॰12:20:17:1.15)
543    हलकानी (= परेशानी; थकावट) (बाबूजी के हलकानी देखके, माय-बहिन के दहदही महसूस के, ऊ अब ले कोई निर्णय तक न पहुँच सकल, एकरा ला अपना के कोस रहल हे, आँसू के घूँट पी रहल हे बाकि ई जिनगी के लाश कब ले ढोयत ।)    (मपध॰12:20:22:3.19)
544    हहाना (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो ।)    (मपध॰12:20:45:3.25)
545    हाँक (~ सुनना) (कतनो धात-धात करते रहबो त हाँक सुनऽ हइ थोड़े ?)    (मपध॰12:20:15:1.6)
546    हागा (हागा अगुर बाघा की ।)    (मपध॰12:20:16:1.2)
547    हाड़ी-हड़ुला (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।)    (मपध॰12:20:48:3.35)
548    हाथ-समाँग (भारी लग रहलो हऽ त छोड़ दे, अभी हमर हाथ-समाँग गल्लल नञ् हे ।)    (मपध॰12:20:11:1.21)
549    हिआँ-हुआँ (उ जमाना में इ नगर के सामरिक सुरक्षा लगी पाषाण घेराबंदी से परिवृत हल जेकर चिन्हा आझो राजगीर के पंच पर्वतीय क्षेत्र में हिआँ-हुआँ देखल जा सकऽ हे ।)    (मपध॰12:20:38:2.17)
550    हुरपेटना (हमरा जनकारी हे कि अप्पन इयार-दोस के हुरपेटला पर तूँ हरमेसा बहरसी ई नाच देखावऽ हऽ ।)    (मपध॰12:20:17:2.7)
551    हुलचुल्ली (देख लेलहीं हुलचुल्ली के मजा, मरलकउ ने लंगड़ा डंक ।)    (मपध॰12:20:13:1.6)
552    होरी-चइता ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।)    (मपध॰12:20:21:2.1)