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Wednesday, February 19, 2014

2.02 स्टेशन मास्टर



स्टेशन मास्टर

मूल रूसी - अलिक्सान्द्र पुश्किन (1799-1837)             मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद


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"अब करीब तीन साल गुजर चुकलो ह", अन्त में ऊ स्टेशन मास्टर बोलल, "हमरा दुन्या बेटी के वगैर जीते, ओकर बिना कोय खबर के । ऊ जिन्दा हको कि मर गेलो, ई तो भगमाने जानऽ हका । कुच्छो हो सकऽ हइ । ऊ पहिली लड़की नयँ हइ आउ न अन्तिम, जेकरा कोय चलता-फिरता निठल्ला युवक फुसला के ले जा हइ आउ कुछ दिन रखके छोड़ दे हइ । अइसनकी पितिरबुर्ग में ढेर हइ । अइसन मूरख लड़कियन, जे आझ रेशमी आउ मखमल पोशाक में हइ, कल देखऽ त, भिखमंगा आउ शराबी के साथे गली-कूची में मारल फिरऽ हइ ।"
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                             सिविल रेजिस्ट्रार
                                पोस्ट-स्टेशन के तानाशाह
                                           --- राजकुमार व्याज़ेम्स्की

के नयँ कोसलक स्टेशन मास्टर सब के ? के नयँ फटकारलक उनकन्हीं के ? गोस्सा के समय में, के नयँ उनकन्हीं से माँग कइलक निर्णायक रजिस्टर के, ताकि ओकरा में झूठ-मूठ के उनकन्हीं के जुल्म, बदतमीजी आउ गलती के शिकायत दर्ज कर सके ? के नयँ उनकन्हीं के समझऽ हइ - मानव जाति के रूप में कलंक; मर चुकल सरकारी करमचारी, चाहे कम-से-कम मुरोम जंगल के डाकू जइसन ? लेकिन न्यायोचित ढंग से विचार कइल जाय, उनकन्हीं के जगह पे खुद के रख के देखल जाय, त हो सकऽ हइ कि हम सब उनकन्हीं के बारे बहुत बेहतर तरीका से फैसला कर सकम । स्टेशन मास्टर के कीऽ मतलब होवऽ हइ ? चौदहमा किलास (सबसे निचला दर्जा) के असली शहीद, बाहरी चोट खाय से, बस, बच्चे भर अपन ओहदा के ढाल से घिरल, आउ एकरो से हमेशे बच्चे के गारंटी नयँ (अपन पाठक सब के अन्तरात्मा के अपील करऽ ही) । ई तानाशाह के कइसन ओहदा हइ, जइसन कि राजकुमार व्याज़ेम्स्की एकरा व्यंग्यपूर्वक कहऽ हथिन ? ई की कालापानी नयँ हइ ? न दिन में चैन, न रात में । यात्री अपन उबाऊ यात्रा के बखत जमा होल सब्भे झुंझलाहट स्टेशन मास्टर पर निकासऽ हइ । मौसम असहनीय, रस्ता खराब, कोचवान जिद्दी, घोड़ा असकतियाहा - आउ ई सब लगी दोषी स्टेशन मास्टर । ओकर गरीबखाना में घुसला पर यात्री ओकरा अइसे देखऽ हइ मानूँ ऊ दुश्मन होवे; ई खुशी के बात होत अगर ओकरा अनिमंत्रित अतिथि से जल्दी छुटकारा मिल जाय । लेकिन अगर घोड़े उपलब्ध नयँ रहे तो ? बारिस आउ कादो में ओकरा दर-दर भटके पड़ऽ हइ, आँधी-तूफान में, क्रिसमस (ठंढक) के बरफ में निकस के बाहर जाय पड़ऽ हइ ड्योढ़ी में, ताकि चिढ़ल यात्री के चिल्लाहट आउ धक्का-मुक्की से कुछ पल खातिर चैन के साँस ले सके । सेनापति आवऽ हइ, त काँपते-काँपते स्टेशन मास्टर ओकरा अन्तिम दू त्रोयका (तीन घोड़ा से खिंचल जाय वला गाड़ी) दे दे हइ, हलाँकि जेकरा में एगो डाक खातिर रिजव कइल हइ । सेनापति चल जा हइ, ओकरा बिना "धन्यवाद" कहले । पाँच मिनट बाद - घंटी के अवाज ! ... आउ सरकारी संदेशवाहक फ्रेश घोड़ा के अपन ऑर्डर टेबुल पर फेंक दे हइ । ई सब परिस्थिति पर अच्छा से विचार कइल जाय, त कोप के जगह पे हम सब के दिल में हार्दिक सहानुभूति भर जात । ई विषय पर आउ कुछ शब्द - गत बीस बरिस के दौरान रूस में लगातार सगरो घुमलूँ हँ, डाक के लगभग सब्भे रस्ता से हम परिचित हकूँ; कोचवानके कुछ पीढ़ी के हम जानऽ हूँ; शायदे कोय स्टेशन मास्टर होत जेकरा हम चेहरा से नयँ पहचानऽ हूँ, आउ जेकरा साथ हमरा पाला नयँ पड़ल होत; यात्रा के दौरान रोचक प्रेक्षण के भंडार हमरा पास हके, जेकरा नजदीक भविष्य में प्रकाशित करे के आशा करऽ ही; अभी लगी हम एतने कहे ल चाहम कि स्टेशन मास्टर सब के स्थिति जनता के बीच में अभी तक बिकलुल गलत तरीका से पेश कइल गेले ह । ओतना तोहमत लगावल ई स्टेशन मास्टर साधारणतः वास्तव में शान्तिप्रिय, स्वभाव से सेवापरायण, समाजिक प्रवृत्ति के, सम्मान के दावा करे में विनयशील, आउ पइसा के मामले में बिलकुल बिना लोभ के । उनकर बातचीत (जेकरा कइएक यात्रा करेवला सज्जन उपेक्षा करे के गलती करऽ हका) से बहुत कुछ रोचक आउ शिक्षाप्रद बात प्राप्त कइल जा सकऽ हइ । जहाँ तक हम्मर बात हइ, त हम मानऽ हिअइ कि सरकारी कामकाज से यात्रा करेवला में से हम छठा किलास (दुय्यम दर्जा) के कोय ओहदा वाला अफसर के बातचीत पर जादे ध्यान देहूँ ।

असानी से अन्दाज लगावल जा सकऽ हइ कि आदरणीय वर्ग के हमर कइएक गो स्टेशन मास्टर मित्र हका । वास्तव में उनकन्हीं में से एगो अइसन हका जिनकर स्मृति हमरा लगी बेशकीमती हके । कभी परिस्थिति हमन्हीं के मिलइलक, आउ उनके बारे अब हम अपन प्रिय पाठक के बतावे ल चाहऽ ही ।

सन् 1816 के मई महिन्ना में हमरा फलना प्रान्त में घुम्मे के मौका मिलल, अइसन रस्ता से जे अभी अस्तित्व में नयँ हइ । हम एगो छोटगर पद पर कार्यरत करमचारी हलूँ, पोस्ट से यात्रा कइलूँ, जबकि हम एक स्टेशन से दोसर स्टेशन के यात्रा के समय एक बार में दुइये घोड़ा के भाड़ा चुका सकऽ हलूँ । एकरा चलते स्टेशन मास्टर हमरा साथ शिष्टाचार के साथ पेश नयँ आवऽ हल, आउ अकसर हमरा झगड़ा करके ऊ सब चीज लेवे पड़ऽ हल जे हमर विचार से हमर हक हल । युवा आउ चिड़चिड़ा होवे के कारण, हम कोय स्टेशन मास्टर के कमीनापन आउ बुजदिली पर गोसा जा हलूँ, जब ऊ हमरा लगी तैयार कइल त्रोयका के कोय रईस अफसर के दे दे हल । ओतनहीं लम्मा समय तक हम अपना के अभ्यस्त नयँ कर पइलूँ ई बात पर कि तुनुकमिजाज बैरा गवर्नर के भोज में हमरा खाना परोसले बिना आगे बढ़ जा हले । आजकल ई सब ठीक-ठाक हो गेल ह । वस्तुतः हम सब के साथ की होवत, अगर सब लगी सुविधाजनक नियम "ओहदा के ओहदा इज्जत करे" के जगह पे बदल के दोसर कर देल जाय, जइसे "बुद्धि बुद्धि के सम्मान करे" ? कइसन विवाद खड़ा हो जाय ! आउ नौकर सब केकरा से खाना परसे ल शुरू करत ? लेकिन हम अपन कहानी के तरफ लौटऽ ही ।

दिन बहुत गरम हल । *** स्टेशन से तीन विर्स्ता (1 विर्स्ता = 1.067 कि.मी. = 3500 फुट) के दूरी पर हलूँ कि फूही पड़े लगल, आउ एक्के मिनट में बहुत जोर के आल बारिश हमरा भिंगा के तरबतर कर देलक । स्टेशन अइला पर सबसे पहिले हमर चिंता होल जल्दी से जल्दी कपड़ा बदले के आउ फेर चाय माँगे के । "ए दुन्या !" - स्टेशन मास्टर चिल्लइला, "समोवार गरमा दे आउ मलाय लेके आ ।" एतना सुनला पर परदा के पीछे से करीब चौदह साल के एगो लड़की बाहर होल आउ ड्योढ़ी में दौड़ के गेल । ओकर सुन्दरता हमरा अचरज में डाल देलक । "ई तोर बिटिया हको ?" - स्टेशन मास्टर के हम पुछलूँ । "हाँ, बिटिये हइ" - ऊ गौरव के साथ जवाब देलका, "हाँ, एतना बुद्धिमान, एतना फुरतीली, सब कुछ अपन स्वर्गीय माय नियन ।" ऊ तुरते हमर यात्रा के ऑर्डर के नकल करे लगला, आउ हम उनकर सीधा-सादा लेकिन साफ-सुथरा घर के सजावे वला तस्वीर के अवलोकन करे में लग गेलूँ । ई सब तस्वीर में बाइबिल में वर्णित "बदचलन बेटा" (Prodigal Son) के कहानी प्रदर्शित कइल गेल हल - पहिला तस्वीर में टोपी आउ ड्रेसिंग गाउन में आदरणीय वृद्ध अपन बेचैन युवा पुत्र के बिदा कर रहल हल, जे शीघ्रतापूर्वक ओकर आशीर्वाद आउ पैसा के थैली ले रहल हल । दुसरका में, चटकीला रंग में दर्शावल हल ई युवक के व्यभिचारी व्यवहार - टेबुल के पास बइठल, नकली दोस्त आउ निर्लज्ज औरत सब से घिरल । फेर दर्शावल हल, सब कुछ खा-पी के अँचा देवल युवक, गुदड़ी में आउ तिकोनिया टोपी में, सूअर चरइते आउ ओकरे साथे भोजन के हिस्सा बँटइते, ओकर चेहरा पर गहरा दुख आउ पछतावा । अन्तिम तस्वीर में दर्शावल हल अपन बाप के पास ओकर वापसी, ओहे टोपी आउ ड्रेसिंग गाउन में दयालु वृद्ध, जे दौड़के ओकरा से मिल्ले ल आवऽ हइ, बदचलन बेटा ओकर गोड़ पर गिरल हइ, पृष्ठभूमि में रसोइया एगो मोटगर बछड़ा के काट रहल ह, आउ बड़का भाय नौकर से ई सब जश्न के कारण पूछ रहल ह । हरेक तस्वीर के निच्चे में हम देखलूँ उत्तम जर्मन कविता । ई सब हमर स्मृति में अभी तक हके, ओइसहीं गुलमेंहदी के साथ हाँड़ी, रंग-बिरंगा परदा के साथ बिछावन, आउ ऊ बखत हमरा सामने एद्धिर-ओद्धिर घिरल दूसर-दूसर समान । ओइसहीं हमरा अभियो देखाय दे हके, ऊ घर के मालिक मानूँ हमर ठीक सामने होवे, करीब पचास बरिस के अदमी, चटकीला आउ जिंदादिल, फीका पड़ल रिबन में तीन मेडल लगल लम्मा हरियर कोट में ।

हमरा बूढ़ा कोचवानके भाड़ा चुकइतहीं, दुन्या समोवार के साथ वापस आल । छोटी नखरेबाज लड़की हमरा पर जे प्रभाव डाललक हल ऊ दोसरे नजर में नोटिस कर लेलक; अपन नीला आँख निच्चे कर लेलक; हम ओकरा से बात करे लगलूँ, ऊ जवाब देलक बिना कोय लज्जा के, दुनियाँ देखल लड़की जइसन । हम ओकर बाप के एक गिलास पंच (स्पिरिट में पानी, फल के रस, चीनी, मसाला आदि मिलाके बनावल पेय) पेश कइलिअइ; दुन्या के चाय, आउ हम तीनो बातचीत करे लगलिअइ, मानूँ चिर परिचित होवूँ ।

घोड़ा बहुत पहिले तैयार हलइ, लेकिन हमरा स्टेशन मास्टर आउ ओकर लड़की से अलग होवे के मन नयँ कर रहल हल । आखिर ओकन्हीं से विदा होलूँ; बाप हमर शुभ यात्रा के कामना कइलक आउ बेटी गाड़ी तक छोड़े आल । ड्योढ़ी में हम रुकलूँ आउ ओकरा चुम्मे लगी ओकरा से अनुमति माँगलूँ; दुन्या मान गेल ... ऊ समय से कइएक चुम्बन के हमरा स्मृति हके, लेकिन कोय ओतना लम्मा समय तक हमर दिमाग में नयँ रहल, न ओतना सुखमय स्मृति में जेतना दुन्या से हमरा मिलल ।

कुछ साल गुजर गेल । परिस्थिति हमरा एक तुरी आउ ले गेल ओहे रस्ता पर, ओहे जगह । वृद्ध स्टेशन मास्टर के लड़की के हमरा याद पड़ल आउ हम ई विचार से खुश होलूँ के ओकरा फेर देखे के मौका मिलत । लेकिन, फेर हम सोचलूँ, हो सकऽ हइ कि वृद्ध स्टेशन मास्टर के तबादला हो गेल होत, दुन्या अब शादीशुदा हो गेल होत । हमर दिमाग में एक या दोसर के मौतो के विचार आल, आउ हम दुखद पूर्वाभास के साथ *** स्टेशन के नजीक पहुँच रहलूँ हल ।

घोड़ा स्टेशन के छोटगर बिल्डिंग के पास रुक्कल । कोठरी में घुसतहीं बदचलन बेटा के कहानी दर्शावे वलन तस्वीर सब के हम तुरते पहचान लेलूँ; टेबुल आउ बिछावन अपन पुरनके जगह पर हलइ; लेकिन खिड़की पर कोय फूल नयँ हलइ, आउ चारो तरफ जीर्णता आउ उपेक्षा देखाय दे रहल हल । स्टेशन मास्टर मेष-त्वचा (sheepskin) कोट में सुत्तल हल; हम्मर आगमन से ऊ जग गेल; ऊ उठके बैठ गेल ... ई वास्तव में समसोन विरिन हल, लेकिन ऊ केतना बूढ़ा हो गेल हल ! जब ऊ हमर यात्रा के ऑर्डर के नकल कर रहल हल, हमर ध्यान ओकर सफेद बाल पर गेल, लम्मा समय तक के दाढ़ी नयँ बनावल चेहरा पर झुर्री पड़ल, पीठ कुबड़ाल, - आउ हमरा अचरज होले बिना नयँ रहल कि तीने-चार साल में हट्ठा-कट्ठा अदमी कइसन कमजोर बुड्ढा हो गेल हल । "हमरा पछानऽ हकहो ?" - हम ओकरा पुछलूँ, "हम दुन्नु पुरनका परिचित हिअइ ।" - "हो सकऽ हइ", - उदास होके ऊ बोलल, "ई व्यस्त रस्ता हइ; कइएक यात्री हमरा से मिल्ले ल अइला ।" - "तोहर दुन्या कइसन हको ?", - हम आगे बोललूँ । बुढ़उ के त्योरी चढ़ गेल । "भगमान जाने ।", - ऊ उत्तर देलक । - "त, लगऽ हइ कि ओकर शादी हो गेलइ ?", - हम बोललूँ । बुढ़उ अइसन अभिनय कइलक जइसे ऊ हमर सवाल ओकरा नयँ सुनाय देलक, आउ फुसफुसाहट में हमर ऑर्डर पढ़ते रहल । हम सवाल करे ल बन कर देलिअइ आउ चाय खातिर केतली चढ़ावे लगी अनुरोध कइलिअइ । उत्सुकता हमरा बेचैन करे लगल, आउ हमरा आशा हलइ कि एका गिलास पंच हमर पुरनका परिचित के जीभ अनुमति दे देतइ ।

हमर सोच गलत नयँ हल - बुढ़उ पेश कइल गिलास के अस्वीकार नयँ कर सकल । हम नोटिस कइलूँ कि रम ओकर उदासी के समाप्त कर देलक । दोसर गिलास में ऊ बातूनी हो गेल; ओकरा याद पड़ल चाहे अइसन चेहरा देखइलक, मानूँ ओकरा हमर याद आ गेल, आउ हम ओकरा से एगो कहानी सुनलूँ, जे ऊ बखत हमरा बहुत दिलचस्प लगल आउ हमर हृदय के स्पर्श कइलक ।

"त अपने हमर दुन्या के जानऽ हलथिन ?" - ऊ शुरू कइलक, "ओकरा के नयँ जानऽ हलइ ? आह, दुन्या, दुन्या ! कइसन अच्छा लड़की हलइ ! जे कोय आवऽ हलइ, से सब्भे ओकर प्रशंसा करऽ हलइ, कोय ओकरा पर कभी आक्षेप नयँ लगइलक । ठकुराइन सब ओकरा उपहार दे हलथिन, कभी शाल-ओढ़नी, त कभी कनबाली । सज्जन लोग यात्रा के बखत जान-बूझ के ठहर जा हला, दोपहर चाहे रात के खाना खाय के बहाने, लेकिन वस्तुतः ओकरा कुछ आउ देर तक देखे लगी । अकसर अइसन होवऽ हलइ कि कोय रईसजादा केतनो काहे नयँ कुपित रहता, ओकरा सामने शान्त हो जा हला आउ हमरा से प्यार से बात करऽ हला । विश्वास करथिन महोदय - कुरियर, सरकारी अफसर ओकरा साथ आध-आध घंटा बात करऽ हला । पूरा घर ओकरा पर चल्लऽ हलइ - चाहे साफ-सफाई के बात रहे, चाहे खाना बनावे के, ऊ सब कुछ निपटावऽ हल । आउ हम तो बुड्ढा मूरख, न जी भरके देखऽ ही, चाहे न जी भरके खुश होवऽ ही । कीऽ हम अपन दुन्या के प्यार नयँ करऽ हलूँ, कीऽ अपन बुतरू के लालन-पालन नयँ कइलूँ; कीऽ ओकरा रहे लगी घर नयँ हलइ ? लेकिन नयँ, जे दुख-तकलीफ भाग्य में लिक्खल हकइ, ओकरा भगवान के प्रार्थना करके टालल नयँ जा सकऽ हइ, ओकरा से बच्चल नयँ जा सकऽ हइ ।" एतना कहके फेर ऊ विस्तार से अपना दुखड़ा सुनावे लगल ।

तीन साल पहिले एक तुरी ठंढी में साँझ के जब स्टेशन मास्टर नइका रजिस्टर में रूलर से लाइन मार रहल हल, आउ ओकर बेटी दुन्या परदा के पीछे अपन पोशाक सी रहल हल, कि एगो त्रोयका आल, आउ एगो यात्री चेर्केस (एक रूसी जिला के नाम) टोपी आउ मिलिट्री कोट में, आउ शाल लपेटले, कोठरी में घुस्सल आउ घोड़ा के माँग करे लगल । सब्भे घोड़ा के पहिलहीं दोसर यात्रा लगी भेज देल गेले हल । ई सूचना पर अभी आल यात्री अपन अवाज आउ चाबुक उँच्चा करहीं वला हल कि अइसन हालत के अभ्यस्त दुन्या परदा के बाहर निकसल आउ मिठास भरल बोली में यात्री तरफ मुड़के पुछलक - अपने कुछ खाना पसंद करथिन ? दुन्या के उपस्थिति पहिले के जइसन अपन असर देखइलक । यात्री के गोस्सा ठंढाऽ गेल । ऊ घोड़ा लगी इंतजार करे ल तैयार हो गेल आउ रात के खाना के ऑर्डर दे देलक । भिंग्गल लम्मा-लम्मा बाल वला टोपी उतारला, शाल हटइला, आउ कोट उतारला पर यात्री देखाय देलक एगो युवक रूप में, छोटगर करिया मोंछ वला एगो सुग्घड़  हुस्सार (घुड़सवार सैन्यदल के सैनिक) । ऊ स्टेशन मास्टर के घर पर ठहर गेल, खुशी-खुशी ओकरा आउ ओकर बेटी के साथ बातचीत करे लगल । रात के खाना परसल गेल । एहे बीच घोड़वन वापस आल, आउ स्टेशन मास्टर तुरते ओकरा बिना खिलइले-पिलइले यात्री के गाड़ी में जोते के हुकुम देलक; लेकिन जब ऊ घर वापस आल त देखऽ हके कि ऊ नवयुवक बेंच पर लगभग बेहोश पड़ल हइ; ऊ बेमार हइ - मूर्च्छा सन आल हइ, सिर में दरद हइ, बाहर जाना असंभव हइ ... कीऽ कइल जा सकऽ हइ ! स्टेशन मास्टर अपन खुद के बिछावन ओकरा सुत्ते ल देलक आउ ई तय कइल गेल कि रोगी के अगर हालत नयँ सुधरे त दोसर दिन सुबह स*** शहर से चिकित्सक के बोलावल जाय । रोगी स्टेशन मास्टर के उपस्थिति में कराहऽ हल आउ करी-करीब नयँ के बराबर बोलऽ हल, लेकिन दू कप कॉफी पीलक आउ, 'ओह' करते (कराहते-कुँहरते) खाना के ऑर्डर देलक । दुन्या ओकरा भिर से अलग नयँ होल ।

दोसर दिन हुस्सार के तबीयत आउ भी जादे खराब हो गेलइ । ओकर अदमी घोड़ा पर सवार होके चिकित्सक लगी शहर गेलइ । दुन्या सिरका छिड़कल एगो रूमाल ओकर सिर पर लपेट देलक आउ ओकर बिछावन के पास सिलाय के काम से बैठ गेल । मिनट-मिनट ऊ पीये ल माँगे, आउ दुन्या अपन हाथ से तैयार कइल जग में लेमू शरबत लाके दे । रोगी अपन होंठ डुबावे आउ हरेक तुरी जग लौटावे आउ सेवा खातिर कृतज्ञता प्रकट करे लगी दुन्या से हाथ मिलावे । दोपहर के खाना के बखत चिकित्सक आल । ऊ रोगी के नाड़ी के जाँच कइलक, ओकरा साथ थोड़ा देर जर्मन में बात कइलक आउ रूसी में घोषणा कइलक, कि रोगी के खाली अराम के जरूरत हकइ आउ करीब दू दिन के बाद ऊ यात्रा कर सकऽ हका । ओकर भेंट लगी हुस्सार ओकरा पचीस रूबल देलकइ आउ रात के खाना लगी निमंत्रण देलकइ; चिकित्सक मान गेलइ; दुनहूँ छक के खइलका, एक बोतल शराब पिलकइ आउ एक दोसरा से सन्तुष्टि के साथ विदा होला ।

एक आउ दिन गुजर गेल, आउ हुस्सार बिलकुल ठीक हो गेल । ऊ बहुत खुश देखाय दे हल, लगातार कभी दुन्या से, त कभी ओकर बाप से दिल्लगी करे; गाना गुनगुनावे, आय-जाय वला यात्री से गप करे, ऊ सब के ऑर्डर रजिस्टर में नोट करे, आउ नेक स्टेशन मास्टर एतना घुल-मिल गेल कि तेसर दिन सुबह ओकरा अपन दयालु मेजबान से विदा होवे में तकलीफ हो रहल हल । एतवार के दिन हल; दुन्या प्रार्थना सभा में जाय लगी तैयारी कर रहल हल । हुस्सार के गाड़ी देल गेलइ । ऊ स्टेशन मास्टर से छुट्टी लेलक, सेवा-सत्कार लगी उदारतापूर्वक ओकरा पुरस्कार देलक; दुन्यो से विदाय लेलक, आउ गिरजाघर तक ओकरा पहुँचावे के प्रस्ताव रखलक, जे गाँक के अन्तिम छोर पत हल । दुन्या घबराल खड़ी रहल ।

"तूँ डरऽ हीं काहे ल ?" - ओकर बाप कहलक, "तत्रभवान् कोय भेड़िया नयँ हथिन कि तोरा खा जइथिन - गिरजाघर तक गाड़ी में चल जो ।"

दुन्या गाड़ी में  हुस्सार के बगल में बैठ गेल, नौकर उछलके कोचवानके पास चल गेल, कोचवानसीटी बजइलक आउ घोड़ा सरपट दौड़े लगल ।

बेचारा स्टेशन मास्टर के समझ में नयँ आल, कि कैसे ऊ खुद्दे दुन्या के हुस्सार के साथ जाय देलक, कैसे ऊ अंधा हो गेल, आउ ऊ बखत ओकर बुद्धि के की हो गेल । आधो घंटा नयँ होल होत कि ओकर दिल में टीस उठे लगल, टीस आउ बेचैनी ओकरा एतना होल कि ऊ सहन नयँ कर पइलक आउ खुद्दे गिरजाघर चल पड़ल । गिरजाघर के पास अइला पर ऊ देखलक कि लोग निकल के वापस जा रहल हल, लेकिन दुन्या न तो चहारदीवारी के अन्दर हल आउ न ड्योढ़ी पर । ऊ जल्दी-जल्दी गिरजाघर के अन्दर घुस्सल; पुरोहित गर्भगृह से बाहर आ रहल हल; गिरजादार (सेक्सटन) मोमबत्ती बुता रहल हल; एगो कोना में दुगो बुढ़िया अभियो प्रार्थना कर रहल हल; लेकिन दुन्या गिरजाघर में नयँ हल । बेचारा बाप कइसूँ हिम्मत जुटाके गिरजादार के पुछलक कि कीऽ ऊ धर्मसभा में आल हल । गिरजादार उत्तर देलक कि ऊ नयँ आल हल । स्टेशन मास्टर अधमरू होल घर आल । ओकरा एक्के गो आशा हल - बचपन के चंचलता के चलते दुन्या शायद अगला स्टेशन तक गाड़ी में सवारी करके गेल होत जहाँ ओकर धर्ममाता रहऽ हल । कष्टदायक चिन्ता में ऊ त्रोयका के वापस आवे के इंतजार कइलक, जेकरा में ऊ ओकरा जाय देलक हल । लेकिन कोचवान बहुत देर तक वापस नयँ आल । आखिर ऊ आल साँझ के अकेल्ले आउ पी-पा के मत्त होके, ई जानलेवा समाचार लेके कि "दुन्या ऊ स्टेशन से आगे हुस्सार के साथ चल गेलो ।"

बुढ़उ अपन विपत्ति के सहन नयँ कर पइलक; ऊ तुरते ओहे बिछौना पकड़ लेलक जेकरा पर ऊ धोखेबाज नवयुवक राते पड़ल हल । अब स्टेशन मास्टर सब्भे परिस्थिति पर सोच-विचार के अन्दाज लगइलक कि बेमारी एगो खाली ढोंग हल । बेचारा बुढ़उ के उच्चा बोखार चढ़ गेल; ओकरा शहर स*** पहुँचावल गेल आउ ओक्कर जगह पर दोसर स्टेशन मास्टर के रक्खल गेल । ओहे चिकित्सक जे हुस्सार के पास आल हल, ओकरो इलाज कइलक । ऊ स्टेशन मास्टर के विश्वास देलइलक कि ऊ नवयुवक बिलकुल स्वस्थ हल आउ हमरा ओकर बदनीयती के ओहे बखत अन्दाज मिल गेल हल, लेकिन ओकर कोड़ा के मार के डर से हमरा चुप रहे पड़ल । ऊ जर्मन सच बोल रहल हल कि अपन दूरदृष्टि के डींग हाँक रहल हल, लेकिन ओकरा से ऊ बेचारा रोगी के कोय तसल्ली नयँ मिलल । मोश्किल से ओकर हालत सुधरल हल कि स्टेशन मास्टर शहर स*** के पोस्टमास्टर से दू महिन्ना के छुट्टी लेलक, आउ अपन इरादा के बारे केकरो एक्को शब्द बिना बतइले, अपन बेटी के खोज में पैदले निकल गेल । यात्रा के खाता-बही से ओकरा पता चलल कि कैप्टन मिन्स्की स्मोलेन्स्क से पितिरबुर्ग के यात्रा कइलक हल । जे कोचवान ओकरा लइलक हल, ऊ बतइलक कि सउँसे रस्ता दुन्या रोते गेल, हलाँकि अइसन लग रहल हल कि ऊ अपन मर्जी से जा रहल ह । "हो सकऽ हके", - स्टेशन मास्टर सोचलक, "कि हम गुमराह भेड़ के वापस घर ले आवूँ ।" ई विचार से ऊ पितिरबुर्ग पहुँचल, ऊ इज़माइलोव्स्की रेजिमेंट (सैन्यदल) के बैरक में ठहरल, पुराना सहकर्मी रहल एगो सेवानिवृत्त अनायुक्त (नन-कमिशंड) अफसर के घर पे, आउ अपन खोज शुरू कइलक । जल्दीए ओकरा पता चल गेल कि कैप्टन मिन्स्की पितिरबुर्गे में हके आउ होटल देमुतोव में रह रहल ह । स्टेशन मास्टर ओकरा हीं भेंट करे ल निश्चय कर लेलक ।

भोरगरे ओकर ड्योढ़ी पर पहुँचल आउ अर्दली के कहलक कि महामहिम के खबर कर दे कि एगो वृद्ध सैनिक उनका से भेंट करे ल चाहऽ हन । फौजी अर्दली, जे कलबूत (Last) बूट साफ कर रहल हल, कहलक कि साहब सुत्तल हका आउ एगारह बजे के पहिले केकरो से नयँ मिल्लऽ हका । स्टेशन मास्टर चल गेल आउ निर्धारित समय पर फेर आल । ड्रेसिंग गाउन आउ लाल टोपी मे मिन्स्की खुद्दे निकसके ओकरा पास आल । "की भाय, तोरा की चाही ?" - ऊ ओकरा पुछलक । ओकर दिल के धड़कन तेज हो गेल, ओकर आँख भर आल, आउ काँपते-काँपते खाली एतने कह पइलक - "महामहिम ! ... भगमान के नाम पर दया करथिन ! महामहिम ! ... " मिन्स्की तेजी से ओकरा पर नजर डाललक, ओकर चेहरा लाल हो गेल, ओकरा हाथ से पकड़के ओकरा कोठरी के अन्दर ले गेल आउ अन्दर से दरवाजा बन कर लेलक । "महामहिम !", - बुढ़उ आगे बोलल, "जे बीत गेलइ से बीत गेलइ; कम से कम हम्मर बेचारी दुन्या के वापस कर देथिन । अपने तो ओकरा साथ मन बहलाइए लेलथिन; ओकरा बेकार में बरबाद नयँ करथिन ।" - "जे हो गेलइ, ओकरा बदलल नयँ जा सकऽ हइ", - नवयुवक बहुत संकोच करके बोलल, "हम तोर सामने दोषी हकियो आउ तोरा से माफी माँगऽ हकियो; लेकिन ई नयँ सोचऽ कि हम दुन्या के त्याग देलिअइ; ऊ बहुत सुखी रहतो, ई हम वचन दे हकियो । तूँ ओकरा ले जाके की करबऽ ? ऊ हमरा प्यार करऽ हइ, ऊ स्टेशन के पहिलउका जिनगी से बहुत आगे निकल गेले ह । जे कुछ होल, ओकरा न तो तूँ भुला सकऽ ह आउ न तो ऊ ।" फेर ओकर आस्तीन के कफ में कुछ तो घुसाके ऊ दरवाजा खोललक, आउ स्टेशन मास्टर के खुद्दे समझ में नयँ आल कि ऊ कैसे गल्ली में आ पहुँचल ।

देर तक ऊ स्थिर खड़ी रहल, आखिर ऊ अपन आस्तीन के कफ में कागज के एगो पुलिंदा देखलक, ऊ ओकरा खींचके निकासलक आउ ओकरा खोललक त मचुराल-उचराल पाँच आउ दस रुबल के कुछ नोट मिल्लल । फेर एक तुरी ओकर आँख भर आल, गोस्सा के आँसू ! ऊ नोट सब के मड़ोर के एगो पुलिंदा बना देलक, फेर बजमीन पर फेंक देलक, एड़ी से ओकरा कुचल देलक आउ आगे बढ़ गेल ... कुछ कदम गेला के बाद ऊ रुक्कल, कुछ सोचलक ... आउ वापस मुड़ल ... लेकिन नोट तब तक गायब हो गेल हल । सुन्दर पोशाक पेन्हले एगो नवयुवक ओकरा वापस अइते देखके कोचवान तरफ दौड़ल, फुरती से बैठ गेल आउ चिल्लाल "चल ! ..." स्टेशन मास्टर ओकर पीछा नयँ कइलक । ऊ घर जाय के निश्चय कइलक, अपन स्टेशन, लेकिन ओकरा पहिले अपन बेचारी दुन्या के एक तुरी देखे लगी चाहलक । एकरा लगी दू दिन के बाद ऊ मिन्स्की के पास वापस आल, लेकिन फौजी अर्दली ओकरा रूखाई के साथ बोलल, कि मालिक केकरो से मिल्ले ल नयँ चाहऽ हका, छाती से ओकरा ड्योढ़ी के बहरसी ढकेल देलकइ आउ दरवाजा ओकरा सामने खट से लगा लेलकइ । स्टेशन मास्टर थोड़े देरी रुक्कल, फेर चल गेल ।

ओहे दिन साँझ के शोकग्रस्त सब खातिर गिरजाघर में सार्वजनिक पूजा कार्यक्रम में उपासना कइला के बाद लितेयनयऽ गली से गुजर रहल हल । अचानक ओकर सामने से आँधी नियन तेजी से एगो सज्जल-धज्जल द्रोश्की (टमटम) गुजर गेल, आउ स्टेशन मास्टर ओकरा में बइठल मिन्स्की के पछान लेलक । द्रोश्की एगो तिनमहला घर के सामने रुक्कल, ठीक दरवाजा के सामने, आउ हुस्सार तेजी से ड्योढ़ी के अन्दर चल गेल । स्टेशन मास्टर के एगो सुन्दर विचार दिमाग में आल । ऊ वापस मुड़ल आउ कोचवान के बिलकुल पास आके पुछलक
- "की भाय, ई घोड़ा किनखर हकइ ? कहीं मिन्स्की के तो नयँ ?"
- "बिलकुल सही", कोचवान जवाब देलक, " लेकिन तोरा की चाही ?"
- "ई बात हइ - तोर मालिक हमरा एगो चिट देलका हल आउ अपन दुन्या के पास ले जाय लगी हुकुम देलका हल । लेकिन हम भूल गेलूँ कि दुन्या कहाँ रहऽ हका ।"
- "ऊ हीएँ रहऽ हथिन, दोसरा मंजिल पर । लेकिन भाय, तूँ तो चिट लावे में देर कर देलऽ, ऊ तो अब खुद्दे उनखा पास पहुँच गेला ।"
- "खैर, कोय बात नयँ", - स्टेशन मास्टर विचित्र दिल के धड़कन के साथ कहलक, "सूचना देवे खातिर धन्यवाद, लेकिन अपन काम तो हम करम ।" एतना कहके ऊ सीढ़ी चढ़के उपरे जाय लगल ।

दरवाजा में ताला लगल हल । ऊ घंटी बजइलक ।  इंतजार में कुछ मुश्किल पल गुजर गेल । फेर चाभी के झनकार सुनाय देलक, दरवाजा खुल्लल ।
- "की हियाँ अवदोत्या सम्सोनोवना रहऽ हथिन ?" - ऊ पुछलक ।
- "हाँ", - एगो नवयुवती नौकरानी उत्तर देलक, "उनखा से तोरा की काम हको ?"
स्टेशन मास्टर बिना कोय जवाब देले हॉल के अन्दर घुस गेल । "अन्दर नयँ जाय के, अन्दर नयँ जाय के !" - ओकर पीछे दौड़के नौकरी चिल्लाल, "अवदोत्या सम्सोनोव्ना के पास अतिथि हका ।" लेकिन स्टेशन मास्टर बिना कुछ सुनले आगे बढ़ते चल गेल । पहिला दू कोठरी में अन्हेरा हलइ, लेकिन तेसरा में रोशनी । ऊ खुल्लल दरवाजा तक गेल आउ रुक गेल । खूब खासा सज्जल-धज्जल कोठरी में मिन्स्की बइठल कुछ सोच में डुब्बल हलइ । दुन्या शानदार फैशन वला पोशाक में ओकर अराम कुरसी के बाँह पर अइसे बइठल हल, जइसे कोय महिला घुड़सवार अंग्रेजी जीन पर । ऊ मिन्स्की के तरफ स्नेह भाव से देख रहल हल, ओकर घुंघराला बाल के अपन अंगुरी से लपेटले हल । बेचारा स्टेशन मास्टर ! कभियो बेटी ओकरा ओतना सुन्दर नयँ लगल हल; ओकरा लगी प्यार उमड़े वगैर नयँ रहल । "हुआँ के हकँऽ ?" - ऊ पुछलकइ, बिना अपन सिर उपरे कइले । ऊ (स्टेशन मास्टर) चुपचाप रहल । कोय जवाब नयँ मिलला पर, दुन्या अपन सिर उपरे कइलक ... आउ चीखके फर्श पर गिर गेल । भयभीत मिन्स्की ओकरा उठावे लगी लपकल, आउ दरवजवा पर वृद्ध स्टेशन मास्टर के देखके दुन्या के छोड़के गोस्सा से काँपते ओकरा तरफ बढ़ल । "तोरा की चाही ?" - दाँत पीसते ओकरा बोलल, "डाकू नियन हमेशे हमरा पीछू काहे लग्गल रहऽ हँ ? कि तूँ हमर गला काटे ल चाहऽ हँ ? भाग हियाँ से !" आउ अप्पन मजबूत हाथ से ओकर कालर पकड़के ओकरा सिड़हिया पर ढकेल देलक ।

बुढ़उ अपन डेरा पर आ गेल । ओकर दोस्त ओकरा शिकायत दर्ज करे के सलाह देलक; लेकिन स्टेशन मास्टर थोड़े देर सोचलक, फेर हाथ उठा लेलक आउ पीछे हट गेल । दू दिन के बाद पितिरबुर्ग से ऊ रवाना हो गेल आउ अपन स्टेशन आके ड्यूटी ज्वायन कर लेलक ।

"अब करीब तीन साल गुजर चुकलो ह", अन्त में ऊ स्टेशन मास्टर बोलल, "हमरा दुन्या बेटी के वगैर जीते, ओकर बिना कोय खबर के । ऊ जिन्दा हको कि मर गेलो, ई तो भगमाने जानऽ हका । कुच्छो हो सकऽ हइ । ऊ पहिली लड़की नयँ हइ आउ न अन्तिम, जेकरा कोय चलता-फिरता निठल्ला युवक फुसला के ले जा हइ आउ कुछ दिन रखके छोड़ दे हइ । अइसनकी पितिरबुर्ग में ढेर हइ । अइसन मूरख लड़कियन, जे आझ रेशमी आउ मखमल पोशाक में हइ, कल देखऽ त, भिखमंगा आउ शराबी के साथे गली-कूची में मारल फिरऽ हइ । कभी जब सोचऽ हूँ कि दुन्यो शायद ओइसने हालत में पड़ गेल होत, त मजबूरन गोस्सा में मुँह से अइसन निकल जा हके कि अच्छा होत हल कि ऊ मर जात हल ...।"

त अइसन हलइ हमर दोस्त, वृद्ध स्टेशन मास्टर के कहानी, कइएक तुरी लोर से बाधित, जेकरा ऊ सजीवतापूर्वक कमीज के पल्लू से पोंछऽ हल, जइसे कि द्मित्रियेव के सुन्दर गाथागीत (ballad) में उत्साही तेरेन्तिच । ई लोर आंशिक रूप से दारू से पैदा होल हल, जे पाँच गिलास ऊ कहानी चालू रक्खे बखत पी गेल हल; लेकिन तइयो हमर दिल तो बहुत अधिक छू लेलक हल । ओकरा से विदा होला पर, बहुत समय तक हम ऊ वृद्ध स्टेशन मास्टर के भुला नयँ पइलूँ, बहुत समय तक बेचारी दुन्या के बारे सोचते रहलूँ ...

आउ अभी हाल में, बस्ती *** से गुजरते बखत, हमरा अपन दोस्त के आद पड़ल; मालुम होल कि ऊ स्टेशन जहाँ ऊ काम करऽ हल, अब रद्द कर देवल गेल हल । "वृद्ध स्टेशन मास्टर अभी जिंदा हका की ?" - हमर ई सवाल के कोय सन्तोषजनक जवाब नयँ दे पइलक । हम ऊ जानल-बुझल जगह पर फेर से भेंट करे ल निश्चय कइलूँ, प्राइवेट घोड़ा किराया पर लेलूँ आउ गाँव न*** लगी रवाना होलूँ ।

ई घटना शरद् ऋतु के हकइ । धूसर बादल अकाश में छाल हल; फसल काटल खेत सब से ठंढा बयार चल रहल हल, जेकरा से रोड के किनारे के पेड़ से लाल आउ पीयर पत्ता झड़ रहल हल । बेर डूब गेला के बाद हम गाँव पहुँचलू आउ पहिलउका स्टेशन के बिल्डिंग के पास रुकलूँ । जे ड्योढ़ी पर कभी दुन्या हमरा चुमलक हल, ऊ ड्योढ़ी से एगो मोटगर औरत निकसल आउ हमर सवाल के जवाब देलक कि वृद्ध स्टेशन मास्टर एक साल पहिलहीं गुजर गेला, आउ उनखर घर में अब एगो बियर बनावे वला रहऽ हका आउ हम उनखर घरवाली हकूँ । हमरा खेद होवे लगल बेकार के यात्रा के आउ सात रूबल खातिर जे बेकार के हम एकरा पर खरच करलूँ ।
"की कारण से ऊ मरला ?" - हम ऊ औरतिया से पुछलूँ ।
"जादे पीए से, सा'ब" - ऊ जवाब देलक ।
"आउ उनखा काहाँ पर दफन कइल गेलइ ?"
"गम्मा के अन्तिम छोर पर, उनखर स्वर्गीय पत्नी के बगल में ।"
"उनखर कब्र तक कोय हमरा पहुँचा सकऽ हइ ?"
"काहे नयँ । ए वान्का  ! छोड़ ऊ बिलइया के अकेल्ले । साहब के ऊ कब्र तक ले जो, जाहाँ स्टेशन मास्टर दफन हका ।"
एतना सुनके लाल-भूरा आउ काना लड़का फट्टल-फुट्टल कपड़ा पेन्हले हमरा तरफ दौड़ल आल आउ हमरा गाँव के अन्तिम छोर तक ले गेल ।
"तूँ स्टेशन मास्टर के जानऽ हलहीं ?" रस्तवा में हम ओकरा पुछलिअइ ।
"कइसे नयँ जनऽतिये हल, सा'ब ! हमरा बाँसुरी बनावे ल सिखइलका हल । कभी-कभी (भगमान उनखर आत्मा के शान्ति दे !), कलाली से ऊ आवऽ हला, त हमन्हीं उनखर पीछू लग जा हलूँ - "बाबा, बाबा ! बेदाम !" आउ ऊ हमन्हीं बीच बेदाम बाँट दे हला । हमन्हीं कभी-कभी उनखा साथ खेलऽ-कुद्दऽ हलिअइ ।
"आउ यात्री सब उनखा आद करऽ हका ?"
"आझकल बहुत कम यात्री आवऽ हका । हाँ, जज कभी-कभी आ जा हका, लेकिन ऊ मरल अदमी के बारे कभी बात नयँ उठावे वला । हाँ, गरमी में एगो ठकुराइन अइलथिन हल, जे जरूर ऊ स्टेशन मास्टर के बारे पुछलथिन हल आउ उनखर कब्र के भेंट देलथिन हल ।"
"कौन ठकुराइन ?" - हम उत्सुकतापूर्वक पुछलूँ ।
"बहुत सुन्दर ठकुराइन" - ऊ लड़का उत्तर देलक, "छो घोड़ा जोतल एगो गाड़ी में, तीन गो बुतरू, एगो नर्स आउ एगो कार कुत्ता के साथ में । जइसहीं उनखा लोग बतइलथिन कि स्टेशन मास्टर गुजर गेला, तइसहीं ऊ कन्ने लगलथिन आउ बुतरुअन से कहलथिन - "तोहन्हीं शान्ति से हियाँ रहिहँऽ, तब तक हम कबर तक होके आवऽ हिअउ ।" हम अपन मन से उनखा हुआँ तक पहुँचावे लगी कहलिअइ । लेकिन ठकुराइन बोललथिन - "हमरा रस्ता मालूम हके ।" आउ हमरा पाँच कोपेक के चानी के सिक्का देलका - केतना नेक ठकुराइन !

हम सब कबर तक पहुँचलिअइ, सुनसान जगह, बिलकुल खुल्ला, कोय चीज से घेरल-घारल नयँ, लकड़ी के क्रॉस से भरल, छाया खातिर केकरो एक्को गो पेड़-पौधा लगावे के बात नयँ सुज्झल । अइसन खराब हालत वला दोसर एक्को कबर हम जिनगी में नयँ देखलूँ ।

"एहे हकइ ऊ बूढ़ा स्टेशन मास्टर के कबर", - ऊ लड़का हमरा बतइलक, बालू के एगो ढेरी पर कुदक के, जेकरा पर एगो ताँबा के आइकोन (देव प्रतिमा) के साथ कार क्रॉस गड़ल हलइ ।
"आउ ठकुराइन हियाँ अइलथिन हल ?" - हम पुछलिअइ ।
"हाँ, अइलथिन हल" - वान्का जवाब देलक, "हम उनखा दूरहीं से देखलिअइ । ऊ हियाँ पड़ गेलथिन आउ बहुत देर तक पड़ल रहलथिन । फेर ठकुराइन गाँव अइलथिन आउ पुरोहित के बोलइलथिन, उनका कुछ पइसा देलथिन आउ फेर अपन रस्ता धइलथिन । हमरा चानी के पाँच कोपेक देलथिन - केतना नेकदिल ठकुराइन !

हमहूँ ऊ बुतरू के पाँच कोपेक के एगो सिक्का देलिअइ आउ हमरा अब ई कइल यात्रा, चाहे एकरा पर खरच कइल सात रूबल के मसोस नयँ लगल ।

[लिखित : 14 सितम्बर 1830; अज्ञात लेखक "स्वर्गीय बेलकिन" के रूप में प्रथम प्रकाशन :1831; पुश्किन के नाम से प्रथम प्रकाशन : 1834]

मगही अनुवाद प्रकाशितः सारथी, अंक 20, फरवरी 2014