Wednesday, June 03, 2009

19. ब्लॉग वार्ता : इंटरनेटवा पर मगही के जमाना

http://www.hindustandainik.com/news/2031_2259300,00830001.htm
(हिन्दुस्तान, पटना संस्करण, पृष्ठ 8; दिनांकः 27 मई 2009)

ढाई हजार साल पुरानी भाषा। बिहार के ढाई करोड़ लोगों की भाषा। पटना, औरंगाबाद, नालंदा सहित कई जिलों की भाषा है मगही। बौद्घ काल की मागधी कई सदी से अब मगही के रूप में जानी जाती है। इस भाषा को इंटरनेट जगत में लाने का काम कर रहे हैं, आईआईटी खड़गपुर से बीटेक कर पूना में काम कर रहे नारायण प्रसाद। ब्लॉग का नाम है मगही भाषा और साहित्य।

क्लिक कीजिए http://magahi-sahitya.blogspot.com ब्लॉगिंग की दुनिया में कई ब्लॉग मैथिली भाषा के भी हैं। अब मगही के आ चुके हैं। एक और ब्लॉग है मगह देस। लेकिन मगही भाषा और साहित्य पर मगही के विकास से लेकर इस भाषा में रची गई तमाम रचनाओं का जिक्र है। बेहतरीन संकलन किया है नारायण प्रसाद ने।

एकंगसराय में मगही को लेकर एक बड़ा सम्मेलन भी हुआ था। उसके बाद के हुए सम्मेलनों में मगही को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने को लेकर पास किए गए प्रस्तावों की भी चर्चा की गई है। ब्लॉगर मगही में लिखते हैं कि बिहार के मगहिया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से निहोरा है कि ई दिशा में उचित कार्रवाई करथ ताकि मगही भासा-भासी के भावना के संतुष्टि हो सके आउ धरना-प्रदर्शन में बेकार में शक्ति बरबाद न होवे। मगही के व्याकरण और उस पर दूसरी भाषाओं के प्रभाव का भी जिक्र किया गया है। कहते हैं मगही में तीनों स का झमेला नहीं है।

इसीलिए मगही पृष्ठभूमि से आने वाले लोग मुझे रवीश की जगह रभीस या रवीस बोलते हैं। मगही में संयुक्ताक्षर पूर्णाक्षर हो जाता है। संस्कृति को सनसकिरती लिखते हैं। विवाह को विआह, आंधी को आन्ही और वसूलना को असुलना बोलते हैं। गांव घर में खेला जाने वाला खेल आ ओका, बोका, तीन तलोका के शब्द भी मगही के हैं। बचपन में ये खेल हमने भी खूब खेला है। लउवा लाठी चनवां के नांव का..। और हां डॉक्टर बाबू मगही में ही डागडर बाबू कहलाते हैं।

बिहार की बोलियों में भोजपुरी और मैथिली का ज्यादा बोलबाला रहा है। लालू प्रसाद से पहले तक के बड़े नेता राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी बोलते थे। लालू ने भोजपुरी को हिंदी में घुला-मिलाकर दिल्ली तक पहुंचा दिया। अब मगध क्षेत्र से नीतीश उभरे हैं, लेकिन नीतीश मीडिया से बातचीत में नाटकबाजी नहीं करते। उनकी भाषा सयंम वाली है और मगही को लेकर खिलंदड़पन कम है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह की हिंदी में मगही का पुट खूब आता है। वो हिंदी न्यूज चैनलों पर आउ, ओकरा, जेकरा-सेकरा बोलते हुए सुने जा सकते हैं। मगही के गाने या वीडियो भोजपुरी की तरह कम मिलते हैं। मगही का एक और ब्लॉग है मगह देस। क्लिक कीजिए http://magahdes.blogspot.com । पटना जिले के खरभैया गाँव (फतुहा-ईसलामपुर रेलवे लाइन के दनियावाँ स्टेशन से 5 कि॰मी॰ दक्षिण-पश्चिम स्थित) के कौशल किशोर का ब्लॉग है। भारत सरकार के अफसर कौशल किशोर मगह देस की संस्कृति पर खूब लिखते हैं। इसी ब्लॉग पर सुजीत चौधरी का एक लेख काफी दिलचस्प है। मगध की लोक संस्कृति में ताड़ी का माहात्म्य पर फस्सिल में ताड़ी की बहार।

इस लेख में मगह के सामाजिक सांस्कृतिक जीवन में ताड़ी, पासी, पासीखाना और ताड़ी की सामाजिक मान्यता पर बहस हो रही है। कौशल किशोर 1885 में लिखी ग्रियर्सन की पुस्तक बिहार का किसानी जीवन से ताड़ी से जुड़े शब्दों को ब्लॉग पर ले आते हैं। पासी शब्द मजबूत रस्सी से आया है, जिसे मगही में पसगी कहते थे। देंता, लबनी, हंसुली ये सब ताड़ी कल्चर के सामान और शब्द हैं।

सुजीत चौधरी अपने लेख में लिखते हैं कि पूरे औरंगाबाद में हसपुरा के बाद दाऊदनगर का क्षेत्र ताड़ बहुल हैं, इसलिए यहां की जनसंख्या में पासी जाति के लोग काफी है। ताड़ी पीने के लिए लोग दस बजे तक पासीखाना पहुंच जाते हैं। सुबह की ताड़ी को बेहतर माना जाता है। दोपहर की ताड़ी में तेज नशा होता है। बिना चखने के ताड़ी का कोई मजा नहीं। सत्तू, चना, घूघनी का इस्तमाल होता है।

ताड़ी की चर्चा पूरे देश में तब हुई थी, जब लालू प्रसाद सत्ता में आए थे। पासीखाना खुलवाने की बात होती थी। सुजीत लिखते हैं कि हम दोमन चौधरी के ताड़ीखाना में जाते थे। जिसे हम लबदना यूनिवर्सिटी कहते थे। जिसके वाइस चांसलर खुद दोमन चौधरी हुआ करते थे। ताड़ मगध का बियर है और ताड़ी सामाजिक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा। बिहार की राजनीतिक संस्कृति बदल रही है। संभ्रांत नीतीश कुमार इन मुहावरों से दूर हैं। मगही का यह ब्लॉग उन लोगों के लिए काफी अच्छा होगा, जो बहुत दिनों से बिहार से बाहर रह रहे हैं और धीरे-धीरे मगही के इस्तेमाल को भूलने लगे हैं या अटकने लगे हैं।

रवीश कुमार
ravish@ ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.com

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