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Wednesday, May 19, 2010

16.2 मगही उपन्यास "अलगंठवा" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

अल॰ = "अलगंठवा" (मगही उपन्यास) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 2001; सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य: लाइब्रेरी संस्करण - 150/- रुपये; सामान्य संस्करण - 125/- रुपये; कुल x+158 पृष्ठ ।


देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

(पृष्ठ 1 से 50 तक कुल संगृहीत ठेठ मगही शब्द = 760)


1 अँटियाना (दे॰ अटियाना, अंटियाना) (ओकरा में का हइ, कल्हे सितिया बराय के बाद अँटिया लेवहू अउर का । हम दूनो माय-बेटी ढो लेवो ।; चलते चलऽ, अँटियावल धनमा ढो लऽ ।) (अल॰9:28.5, 7, 8, 29.18)
2 अँय (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.20; 6:17.30)
3 अंचरा (अलगंठवा के माय गंगा नेहा के कई गो पत्थर के मूरति पर पानी छिट-छिट के अप्पन अंचरा पकड़ के गोड़ लगलक हल ।) (अल॰6:16.8)
4 अंटियाना (दे॰ अँटियाना, अटियाना) (ठीके हे, हम कल्हे धान अंटिया लेवो ।) (अल॰9:28.14)
5 अइरवी-पइरवी (अलगंठवा के नाम किसान-मजदूर दूनों के कबूल हो जइतो । काहे कि उ दिन रात समाज के हर तवका के लोग के सेवा करइत रहऽ हे । देखऽ, हम्मर गाँव में ओकरे अइरवी-पइरवी आउर मेहनत से लोअर इस्कूल से हाई इस्कूल तक हो गेल हे ।) (अल॰15.44.29)
6 अउकात (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.23)
7 अकचकाना (अप्पन मरद के बात सुन के सुमितरी के माय अकचका के बोलल हल -"हाय राम, हमरो कोय बात के इयादे न रहऽ हे, तुरते सुरते से भूला जाही ।") (अल॰9:27.13)
8 अकवार गहन (अगे बेटी, चिट्ठिया में हमरो ओर से अलगंठवा के असीरवाद आउर ओकर माय के अकवार गहन भी लिख देहु ।) (अल॰9:29.14, 16)
9 अकास (= आकाश) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19)
10 अखड़ना (चन्दर दुलार-पिआर के चलते मिडिल पास करके ही घर में अखड़ते रहऽ हल ।) (अल॰12.35.29)
11 अगम-अपार (उहें एगो बंगाली नट से मन्तर सिख के अगम-अपार बंगाल के सिध कलकत्ता से गाँव तक चेला-चुटरी के भरमार ।) (अल॰1:1.13)
12 अगराना (सुमितरी .... पातर कमर से नीचे लटकइत झुमइत केस के साथ खड़ी होके अगराइत बोलल हल -"का कहऽ हऽ, गाँव में आयल हमरा चार-पांच दिन बीत गेलो, मुदा हमरा ओर तनी झांके न अइलऽ । लगऽ हे कि इद के चान हो गेलऽ हे ।") (अल॰13.39.3)
13 अगलउनी (सुमितरी अप्पन घर जाय से पहिले अलगंठवा के कह देलक हल कि तूँ पटना जाय से पहिले हमरा एगो पाती जरूर भेज दीहऽ। अलगंठवा लापरवाही के साथ कहलक हल कि चिट्ठी आउर डा... अगलउनी होबऽ हे । तूँ घर जाके अप्पन परीच्छा के तइयारी करिहऽ । चिट्ठी तोहर चित के चितचोर बन जइतो, जेकरा से पढ़े-लिखे में मन उचट-उचट जइतो ।) (अल॰14.41.26)
14 अगहनी (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।; आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल ।) (अल॰7:20.25; 8:23.6)
15 अगिया बैताल (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।; बाप रे बाप, उ छउड़ा अगिया बैताल हइ । कुंआरी लड़की के मांग में सिनूर दे दे हइ ।) (अल॰1:2.2; 2:5.2; 10.30.2)
16 अगे (अगे मइया, दीदी आउर नाना आ रहलथुन हे ।) (अल॰3:8.8; 5:12.18)
17 अचाना (= अँचाना, आचमन करना) (ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰9:27.31)
18 अचार (= अँचार) (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
19 अच्छत-चन्नन (अल॰16:49.29)
20 अछरंग (जितने लोग उतने बात के अछरंग अलगंठवा पर लगऽ हल ।) (अल॰2:5.6)
21 अजलती (बाप रे बाप, कुआरी छौंड़ी के मांग में सिनूर घिस देलकइ । अइसन अजलती तऽ कोय न कर सकऽ हे ।) (अल॰1:3.23)
22 अजीज (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
23 अटान (गाड़ी में चढ़े के अटान न हल ।; अमदी के बैठे के अटान न रहऽ हल चिट्ठी लिखवे आउर पढ़वे ला ।) (अल॰7:21.16; 15:45.1)
24 अटियाना (दे॰ अँटियाना, अंटियाना) (हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही । मुदा दू कट्ठा में धान के पतौरी लगा देली हे । ओकरा अटियाना जरुरी हे । न तऽ कोय रात-विरात के उठा के ले भागतइ । गोपाली महरा के चार कट्ठा के पतौरी उठा के ले भागलइ । आउ उत्तर भरु खंधवा में ले जा के मैंज लेलकइ ।) (अल॰9:28.1)
25 अठन्नी (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.9)
26 अदमी (= आदमी; दे॰ अमदी) (अलगंठवा अप्पन माय के साथ भीड़ में माय के हाथ पकड़ के अदमी से भरल भीड़ में गंगा दने जाय लगल हल ।) (अल॰6:15.27)
27 अदहन (जब घर में चाउर-दाल आ जाय तऽ अलगंठवा के भोजाय गोइठा-अमारी से चूल्हा फूंक-फूंक के सुलगावऽ हलन । बड़ी देर में मेहुदल गोइठा सुलगऽ हल तऽ कहीं जाके अदहन सुनसुना हल ।) (अल॰12.36.30; 16:47.1, 11)
28 अदी-बदी (जय संकर, दुसमन के तंग कर । जे हमरा देख के जरे, उ गांड़ फट के मरे । जेकरा हमरा से अदी-बदी, उ चल जाय फलगु नदी ॥) (अल॰8:26.7)
29 अधपेटे (रोज-रोज अलगंठवा के दूरा-दलान पर आवल-गेल पहिले के ही तरह ही खइते-पीते रहऽ हल । चाहे अलगंठवा के परिवार अपने छूछे-रूखे, अधपेटे खा के काहे न रह जाय ।) (अल॰12.37.11; 15:44.19)
30 अधवइस (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।; येगो अधवइस अउरत जरांठी से अप्पन तरजनी अंगुरी से दाँत रगड़ रहल हल ।) (अल॰3:6.9, 13; 6:15.16)
31 अनकर (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.4)
32 अनन्द (कहनी में भी हे कि घर अनन्द तऽ बाहरो आनन्द ।) (अल॰16.47.16)
33 अनुनिया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
34 अनेसा (अप्पन अउरत पर नजर पड़ते ही बटेसर तमतमाइत बोल पड़ल हल - "तूँ गंगा नेहाय गेलऽ हल कि पहुनइ खाय, तोरा कल ही लौटे के हलउ, फिन रात कहाँ बितउलऽ ? हमनी अनेसा में रात भर न सो सकली ।") (अल॰7:21.14)
35 अनोर (हल्ला-गुदाल सुन के गाँव के कुत्ता भी भुक-भुक के अनोर करे लगल हल ।) (अल॰7:22.27)
36 अबहिए (सब परसादी तऽ बँटिए जा हे । इ गुने हम अप्पन हिस्सा अबहिए काहे न खा लूँ ।) (अल॰4:11.15; 16:46.29)
37 अमदी (=अदमी, आदमी) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.26, 12.7; 6:19.17)
38 अमनिया (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
39 अरउआ (सुमितरी के माय हाथ में अरउआ लेके बैल आउर भैंसा के हाँक के घर ले आवल हल ।) (अल॰7:21.25)
40 अलमुनिया (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल ।) (अल॰12.37.3)
41 अलागम (लावऽ, गांजा हो तऽ मइजऽ हिओ, न तऽ तोहनी रहऽ, हम जा हियो । डेढ़ पहर दिन से कम न वित रहल हे, माथा पर तऽ सूरज आ रहलन हे । गाड़ मारी हम गांजा पीए के । तोहनी अइसन अलागम न न ही ।) (अल॰8:24.25)
42 अलाह (धूप-दीप जला के मंदिल से वाहर निकल के पहाड़ पर ही अलाह जोड़ के लिट्टी लगावे के उपाय करे लगलन हल ।) (अल॰16:50.1)
43 अल्हा (= आल्हा) (एकर अलावे दलान में तीन गो चौंकी, ताखा पर रमाइन-महाभारत, अल्हा-उदल, विहुला-विरजेभान के किताब लाल रंग के कपड़ा के बस्ता में बंधल रखल रहऽ हल ।) (अल॰12.37.15)
44 अवलदार (=तैयार) (येक रोज गाँव के बीच गली में येगो कुत्ता मर गेल हल । ओकरा फेके ला कोय अवलदार न हल ।; अप्पन गाँव में भी लइकी सब के पढ़े खातिर इस्कूल खुल गेलइ हे । जेकरा में मास्टरनी भी पढ़ावऽ हइ । मुदा तोर बाप पढ़वे ला अवलदार होथुन त नऽ ।; किसान सब मजदूर सब के मांग माने ला अवलदार न हो रहलन हल ।) (अल॰2:5.20; 5:13.22; 15:43.28, 44.7; 16:46.10)
45 अवाद (= आबाद) (बटेसर अप्पन गाँव के गोवरधन गोप से हरसज करके खेत अवाद कर रहलन हल ।) (अल॰7:21.5)
46 असंका (= आशंका) (असंका ओकर माय के मन में बनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.5)
47 असनान (= स्नान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।) (अल॰6:14.11, 26)
48 असान (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.23)
49 असीरवाद (अगे बेटी, चिट्ठिया में हमरो ओर से अलगंठवा के असीरवाद आउर ओकर माय के अकवार गहन भी लिख देहु ।) (अल॰9:29.14)
50 अहरा (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
51 अहिल-दहिल (कभी-कभी असाढ़ के वादर गरज-बरज के बरस जा हल । जेकरा से खेत में पानी अहिल-दहिल हो रहल हल । मुदा खेत में फरनी न हो रहल हल, चास न लग रहल हल, दोखाड़ल न जा रहल हल ।) (अल॰15.43.21)
52 अहे (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.16)
53 आँटी (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
54 आँय (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6, 22)
55 आउर (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.14)
56 आज्झ (= आज) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29; 6:16:10)
57 आन्हर (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
58 आम-नेमु-कटहर (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
59 आवल-गेल (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन । आवल-गेल आउ टोला-टाटी के भी खिलाबऽ हलथिन । मुदा आज्झ कोठी-कोहा-कंटर खाली भमाह रह गेल ।) (अल॰12.36.26, 37.10, 12)
60 आवा (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3; 6:18.11)
61 इ (= ई, यह, ये) ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?") (अल॰6:17.21, 22)
62 इंगोरा (~ धराना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
63 इंजोरिया (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल ।) (अल॰5:12.29)
64 इका (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।) (अल॰8:24.3)
65 इजारा (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.10)
66 इतमिनान (अगे बेटी, जरा इतमिनान से पढ़ के सुनाबऽ तऽ।) (अल॰9:27.19)
67 इतमिनान (हाँ बेटी, सब लोग ठीक हल । नन्हकू इतमिनान से चौकी पर बइठइत कहलक हल ।) (अल॰3:8.15; 14:42.29)
68 इन्टरभिउ (दू-तीन जगह नउकरी ला दरखास्त भी देलक हल । इन्टरभिउ में चुना भी जा हल ।) (अल॰16.46.11)
69 इया (= या) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11, 12)
70 इया (= हे!) (ई बड़ी बुधगर होतो भउजी । इया गंगा माय, हम्मर बाबू के निरोग रखिहऽ, नेहइते धोते एको केस न भंग होवे हम्मर पुतवा के ।) (अल॰6:16.27)
71 इस्कूल (= स्कूल) (अल॰2:5.20; 4:9.13, 14, 15)
72 उ (= ऊ, वह, वे) (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13, 3.2, 3)
73 उँऽऽहं (सुमितरी तभी सले-सले चाल से कि पत्ता भी न खड़के, आके अलगंठवा के गरदन पर अप्पन दूनो हाथ धरइत दूनो ठोर सिकुड़ावइत आउर नाक से उँऽऽहं कहलक हल ।) (अल॰13.38.28)
74 उकि (अगे मइया, सुमितरी के मइया भी गंगा नेहाय अइलथिन हे । उकि देखहीं न, नेहा के कपड़ा बदल रहलथिन हे ।) (अल॰6:16.14)
75 उगना (उगल रहना) (अलगंठवा के माय केला के छिलका फेंकइत असीरवाद देइत कहलक हल - 'दूधे-पुते उगल रहऽ ।') (अल॰6:16.21)
76 उघार (सुमितरी काली मट्टी से अप्पन माथा रगड़-रगड़ के धोवे लगल हल । काहे कि ओकर लमहर-लमहर केस लट्टियाल हल । जेकरा कठौती में पानी लेके साफ कर रहऽ हल । ओकर पीठ येकदम उघारे हल ।) (अल॰5:12.17)
77 उघारना (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.28)
78 उच्चगर (= उँचगर, ऊँचा) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
79 उज्जर (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
80 उतरी (थानू हजाम से हजामत बनवा के गंगा में अस्नान करके आउर उतरी पहन के माय के मुँह में आग देवे से पहिले घाट के डोम से हुजत होल हल ।) (अल॰11.34.1)
81 उनखा (= उनका, उनको) (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6)
82 उपजना (बुढ़ल वंस कबीर के उपजल पूत कमाल ।) (अल॰4:12.13)
83 उपहना (= गायब होना) (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.9)
84 उपाहना (चितरलेखा, उस्सा के बात सुन के मन्तर के जरए दुआरका में सुतल अनिरुध के खटिया सहित उपाह के, उड़ा के उस्सा के राजमहल में ला देलक हल ।) (अल॰16:50.23)
85 उरेहना (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
86 उसकाना (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..; बटेसर के बात सुन के सुमितरी के माय ढिवरी के बत्ती उसकावइत कहलक; नानी घर के इयाद रह-रह के ओकर मन के उसका रहल हल) (अल॰6:16.13; 9:28.4, 18; 13:39.14)
87 उहरा (अलगंठवा के तरफ मुंह फेरइत सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, मत पूछऽ, कल ही न बुलाकी बहु वचा निछड़वइलके हे । संउसे लूगा-फटा खून से बोथ हो गेलइ हल । हँड़िया के हँड़िया खून गिरलइ हल । संउसे टोला हउड़ा कर देलकइ कि कच्चा उहरा हो गेलइ हे । मुदा सच बात छिपऽ हे ?") (अल॰13.40.22)
88 उहाँ (= वहाँ) (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.14)
89 ऊपरदम (अप्पन अउरत के बात सुन के ऊपरदम होइत बटेसर बोलल हल -"आज्झ सुरेन्दरा के नानीघर भेजवा के बोलवा लऽ ।)" (अल॰14.42.7)
90 एकक (= एक-एक) (फिन का हल, अलगंठवा डगर में आके, एगो पेड़ पर चढ़ के थोड़ा गड़ी, छुहाड़ा थोड़ा किसमिस आउर एकक गो केला-नारंगी, अमरुद लेके खाय लगल ।; खेत में धान के मोरी बढ़ के एकक हाथ के हो गेल हल ।) (अल॰4:11.17; 15:44.13; 16:49.13)
91 एकबाघट (भइया गुस्सा में अलगंठवा के दू तमाचा जड़इत कहलक हल - "ले रे भठियारा, सब परसादी तोंही खा जो । बाप रे बाप, सब एकबाघट कर देलकइ, बेहूदा-हरमजादा ।") (अल॰4:11.29)
92 एने (= एन्ने, इधर) (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.20)
93 एने-ओने (सुमितरी माय-बेटी घर से चौखट पर आके एने-ओने ताके लगल हल । हल्ला-गुदाल सुन के गाँव के कुत्ता भी भुक-भुक के अनोर करे लगल हल ।) (अल॰7:22.26; 8:25.5)
94 ओखनी (ओकन्हीं) ("जाके पता लगावे में का हइ । ओखनी के मन ताड़े में का हइ ।) (अल॰9:27.29)
95 ओजे (= ओज्जे, उसी जगह) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।; नन्हकू के खैनी लगइते देख के एगो अदमी जे ओजे बैठल हल बोल पड़ल हल ...) (अल॰3:6.30, 7.2)
96 ओरियाना, ओरिया जाना (ए जजमान, हमरा हीं गांजा एकदमे ओरिया गेलो हे । सुनलियो हे कि तोहरा हीं भगलपुरिया गांजा हो । लावऽ न, येक चिलिम हो जाय ।) (अल॰8:24.27)
97 ओल (सुमितरी आज ओल के तरकारी बनउलक हल । ओल छिले से ओकर दूनों हाथ कुलकुला रहल हल ।; "वाह बेटी, ओल के तरकारी खाय ला बड़ी दिन से मन ललचा रहल हल ।" तरकारी मुँह में लेइत बटेसर कहलक हल - "अरे, इ तऽ एकदम सालन के कान काटऽ हइ । ओल के तरकारी मांस से कम न होबऽ हे ।") (अल॰9:26.22, 29, 27.1, 3)
98 औरत-मरद-बूढ़-पुरनिया (गाँव के ~ के आंख में गढ़ल अलगंठवा सबके दुलरूआ ।) (अल॰1:2.1)
99 कंटर (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.25, 27)
100 कउची (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19)
101 ककहरा (अलगंठवा जब ककहरा भी न जानऽ हल तबहिए ओकर माय हनुमान चलिसा, शिव चलिसा कंठस्थ करवा देलक हल ।) (अल॰4:10.20)
102 कचगर (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।; अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰6:18.27; 13:38.20)
103 कचूर (हरिअर ~) (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे ।; धरती के सिंगार हरिअर कचूर मोरी दुलार विना टुअर जइसन टउआ रहल हल ।) (अल॰8:22.30; 15:14.13)
104 कजरौटी (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.12)
105 कटहर (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
106 कट्ठा (रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे । अब उनखा पास एको कट्ठा खेत न बचऽ हे ।) (अल॰8:23.9)
107 कतकी (~ पुनिया, ~ धान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा-गंगा असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।; कोय-कोय किसान अप्पन कतकी धान काट रहलन हल ।) (अल॰6:14.10, 26, 18.22, 20.27)
108 कत्ती (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
109 कनकनी (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल । जेकरा से कनकनी महसूस होवइत हल ।) (अल॰6:14.21)
110 कनना (रो-कन के; रोवइत-कनइत) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15; 11:33.25)
111 कने (= कन्ने, किधर) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29)
112 कपसना (जब नन्हकू आम के पेड़ तर बैठ के खैनी लगा रहल हल तऽ कपसल जइसन होके सुमितरी नाना से कहे लगल हल - "नाना, नानी तऽ बढ़नी से मारते-मारते सउंसे देह में बाम उखाड़ देवे कइलक हे, मुदा घर पर सेनूर वाला बात सुन के मइया आउ बाबू मारते-मारते हंसीली पसली एक कर देतन ।") (अल॰3:7.22; 11:33.17)
113 कबड्डी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
114 कमाना-कजाना (कमाय के न कजाय के, खाली बैठल-बैठल खाय के ।) (अल॰12.37.29)
115 कमिअइ (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।) (अल॰8:24.4)
116 कमिया (किसान पुराना जमाना से ही दो सेर कची अनाज, इक्किस बोझा में एक बोझा, आउर पाँच कट्ठा खेत मजदूर इयानी कमिया सब के दे रहलन हल । मुदा मजदूर अब तीन सेर पक्की मजदूरी, चौदह बोझा में एक बोझा आउर तेरह कट्ठा के मांग कर रहलन हल ।) (अल॰15.43.25)
117 करकराना (लास जब पूरा जर गेल तऽ थोड़ा-सा कलेजा करकरा रहल हल तऽ ओकरा कपड़ा में बांध के कमर भर पानी में हेल के लोग परवह कर देलन हल ।) (अल॰11.34.28)
118 करमी (ठउरे गबढ़ा में करमी के लत्तड़ पर कइगो बगुला मछली के पकड़े ला धेआन मग्न हो के बइठल हल ।) (अल॰13.40.28)
119 करिखा (= कारिख) (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6)
120 करिया (= काला) (मंदिल में करिया कोयला अइसन महादे जी के लिंग इयानी सिउलिंग गड़ल हे ।) (अल॰16:48.23)
121 करुआ (~ तेल) (माय के बात सुन के सुमितरी करुआ तेल दूनों हाथ में चपोत लेलक हल । जेकरा से कुलकुलाहट ठीक हो गेल हल ।) (अल॰9:26.26)
122 करुका (~ तेल) (अगे बेटी, दूनों हथवा में करुका तेलवा रगड़ ले । ओकरे से ठीक हो जयतउ ।) (अल॰9:26.25)
123 कलकतिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
124 कल्हे (= कल) (। कल्हे इनका एक दम पिला का देलूँ कि कानोकान वियावान कर देलका ।); ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰8:25.2; 9:27.31)
125 कसइया (कभी-कभी अलगंठवा के माय-बाप में वतकुच्चन हो जा हल । तऽ माय एगो कहाउत कहऽ हल -"मइया के जिया गइया निअर आउ बपा के जिया कसइया निअर ।") (अल॰12.36.9)
126 कहनी (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.3; 16:47.15)
127 कहाउत (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।) (अल॰8:24.2)
128 काँच कुँआर (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल ।) (अल॰16.46.7)
129 काज-परोज (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.16)
130 काजिनी (= का जानी) (ओकर दवा से कोय फायदा न बुझायल । काजिनी कइसन दवा देहे ।) (अल॰14.42.17)
131 कातो (= कीतो) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
132 कादो (= कातो, कीतो) (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।; कादो बड़ावर में कोय साधु हथिन जे जड़ी-बूटी के दवा करऽ हथिन ।; तूँ कादो कोय साधु जी के वारे में जानऽ हु ?) (अल॰7:22.17; 10.31.2, 4; 14:42.14)
133 कानना (= कनना) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27)
134 कारीवांक (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
135 काहे कि (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.30; 4:9.14)
136 किनना (= खरीदना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11; 6:18.3)
137 किनाना (= खरीदवाना) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
138 किया (= कीया; सिंदूर रखने का लकड़ी का डिब्बा) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.3)
139 किरपा (वाह, भगमान के किरपा जे न हे । देउता-देवी के पुन-परताप से आउ आगे पढ़-लिख के गुनगर हो जाय कि तोहर घर से लगाइत जिला-जेवार के नाम रोसन होय ।) (अल॰10.30.25)
140 कुटुम (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल ।) (अल॰16.46.8)
141 कुबेला (खाय-पीए के बखेड़ा छोड़ऽ, न तऽ कुबेला हो जइतो । इहाँ से पांच-सात कोस से कम न बुले पड़तइ । रस्ते में ही कुछ खा-पी लेल जइतइ ।) (अल॰16.47.6)
142 कुम्हार (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3; 6:18.11)
143 कुरचना (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.25)
144 कुलकुलाना (सुमितरी आज ओल के तरकारी बनउलक हल । ओल छिले से ओकर दूनों हाथ कुलकुला रहल हल ।) (अल॰9:26.22, 27.6)
145 कुलकुलाहट (माय के बात सुन के सुमितरी करुआ तेल दूनों हाथ में चपोत लेलक हल । जेकरा से कुलकुलाहट ठीक हो गेल हल ।) (अल॰9:26.27)
146 कुवेरा (चलते चलऽ, अँटियावल धनमा ढो लऽ । फिन नानी घर जाय में कुवेरा हो जइतो ।) (अल॰9:29.18)
147 केता (= केत्ता, कितना) (सुमितरी के चिट्ठी पढ़ के हमरा बुझा हो कि ओकरा पढ़े के जेहन हो । केता सुन्नर अच्छर में चिट्ठी लिखलको हो । जरुर उ पढ़तो ।) (अल॰10.31.30)
148 कोठी (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.15)
149 कोठी-कोहा-कंटर (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन । आवल-गेल आउ टोला-टाटी के भी खिलाबऽ हलथिन । मुदा आज्झ कोठी-कोहा-कंटर खाली भमाह रह गेल ।) (अल॰12.36.27)
150 कोनिया (~ घर) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8; 9:27.18, 28.18; 12:37.22)
151 कोय (= कोई) (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
152 कोर (= कौर) (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.23)
153 कोलसार (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.25)
154 कोहा (अलगंठवा के माय कोहा में जमल छाली भरल दूध के मथानी से मह के मखन निकाल ले हल आउ कोहा के कोहा मट्ठा गाँव-घर के गरीब-गुरबा के दे दे हल ।) (अल॰12.36.18, 19, 27)
155 कौपी (तूँ खाना-खुराक जुटा देहु, किताब-कौपी-कपड़ा-लत्ता के भार हमरा ऊपर छोड़ दऽ । गाहे-बगाहे अनाज-पानी भी भेज देवो आउर का ।) (अल॰10.31.26)
156 कौलबच्चिया (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बढ़नी के बाम देखइलक हल । फिर दूनो आपस में ~ कइलक हल कि तू नानी घर जाके पढ़ऽ आउर हम भी घर पर रह के पढ़वो ।) (अल॰1:4.9)
157 खतना (= खनना, खोदना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9)
158 खन्धा (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26; 9:28.3)
159 खरचा-बरचा, खरचा-वरचा (बेटी के जादा पढ़ा लिखा के का करवइ बेटा, खरचा-बरचा कहाँ से जुटतइ ।; आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰6:18.1; 10.31.24)
160 खरहना (न गे मइया, नेवारी के विनल खटिया पर खरहने में नानी घर येक दिन सो गेलिअइल हल । ओकरे से बाम उखड़ गेल हे । नेहा के गड़ी के तेल लगा लेम, तऽ ठीक हो जायत ।) (अल॰5:12.21)
161 खाँड़, खांड़ (अलगंठवा के घर के सटले पछिम खांड़ हल । ओकरे सटले एगो तलाबनुमा गबड़ा हल । जेकरा में पानी वारहो मास रहऽ हल । अलगंठवा के खांड़ में झमेठगर बाँस, तार, सहजन-पपीता, केला, अनार के अलावे तीन गो अमरुद के गाछ भी हल । अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰13.38.16, 17, 19)
162 खिचना (= खींचना) (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23)
163 खिस्सा-कहानी (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13)
164 खूटा (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.6)
165 खेत-पथार (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.10)
166 खेलौना (= खिलौना) (अलगंठवा भीड़ भरल मेला देख के बड़ खुस हो रहल हल । .. रंग-विरंग के खेलौना देख के माय से खरीदे ला कह रहल हल ।) (अल॰6:16.1)
167 खेसाढ़ी (= खेसाड़ी) (जब पतौरी ढोवा गेलहल तऽ बटेसर नेहा-धो के खेसाढ़ी के साग आउ आलू के भात-भरता खा के कंधा पर येगो सूती के मोटगर चादर लेके वसन्तपुर जाय ला घर से निकले लगल) (अल॰9:29.21)
168 खोरना (रंथी के साथ कबीर पंथी दुखहरन दास भी अइलन हल । दुखहरन दास हाथ में बांस के फट्टा से लास के खोर-खोर के जरा रहलन हल आउ येगो निरगुन गा रहलन हल) (अल॰11.34.8)
169 गँउआ-गुदाल (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5)
170 गँउआ-गोहार (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे । सुमितरी तोहरा पर पहिले से ही दीठिअइले हलो बचपने से ही । येकर वाद रमेसर हुंकारी भरइत कहलक हल - इ भी तऽ ओकरा पर टिसना लगइले हल न । अरे इ तऽ विआह-विआह बचपने में खेल-कूद के गँउआ-गोहार करइवे कइलक हल ।) (अल॰10.32.16)
171 गंगा-गजाधर (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19)
172 गंजेड़ी (अल॰8:24.4)
173 गछना, गछ लेना (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.24)
174 गजनौटा (सूरज भी डूबे जा रहलो हे । तूँ एगो सूरज अप्पन गजनौटा में छिपा के संझा-बाती दे दऽ । अउर उ दीआ तब तक जरइहऽ जब तक एगो सूरज पूरब में उग न जाय ।) (अल॰13.41.19)
175 गड़पिछुलिया (पहाड़ पर बड़ी सावधानी से चढ़े परऽ हल । काहे कि पथल से फिसले के डर हल । लोग उ रस्ता के गड़पिछुलिया कहऽ हलन ।) (अल॰16:48.15)
176 गड़ी (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।; सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल ।) (अल॰4:11.3, 16; 5:13.10)
177 गतन्त (दूनों के बात काटइत देउकी पांडे बोल पड़न हल - छोड़ऽ उ सब बात, गतन्त के सोचन्त का । गंजवा जल्दी निकालऽ ।) (अल॰8:24.18)
178 गबड़ा (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.24)
179 गबढ़ा (= गबड़ा) (ठउरे गबढ़ा में करमी के लत्तड़ पर कइगो बगुला मछली के पकड़े ला धेआन मग्न हो के बइठल हल ।) (अल॰13.40.28)
180 गमछी (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।; बटेसर चरखानी गमछी से देह के पसीना पोछ के कमर में खोंसल खैनी-चूना निकाल के खैनी टूंग ही रहल हल कि लोटा में पानी लेके सुमितरी के माय जुम गेल हल ।) (अल॰3:6.6; 7:21.10)
181 गरीब-गुरबा (अलगंठवा के माय कोहा में जमल छाली भरल दूध के मथानी से मह के मखन निकाल ले हल आउ कोहा के कोहा मट्ठा गाँव-घर के गरीब-गुरबा के दे दे हल ।) (अल॰12.36.19)
182 गांड़ (~ फटना) (जय संकर, दुसमन के तंग कर । जे हमरा देख के जरे, उ गांड़ फट के मरे । जेकरा हमरा से अदी-बदी, उ चल जाय फलगु नदी ॥) (अल॰8:26.6)
183 गाड़ (~ मारना; ~ धोवे के अकले न होना) (लावऽ, गांजा हो तऽ मइजऽ हिओ, न तऽ तोहनी रहऽ, हम जा हियो । डेढ़ पहर दिन से कम न वित रहल हे, माथा पर तऽ सूरज आ रहलन हे । गाड़ मारी हम गांजा पीए के । तोहनी अइसन अलागम न न ही ।; ओकरा अप्पन गाड़ धोवे के अकले न हइ आउ डगडरिए करऽ हे ।) (अल॰8:24.24; 14:42.26)
184 गारजियन (ओ जी बाबू, तोहके गारजियन गाँव से अइलन हे जे वतोहके खोजइत हथ ।) (अल॰11.33.8)
185 गारना (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.17)
186 गाहे-बेगाहे (तूँ खाना-खुराक जुटा देहु, किताब-कौपी-कपड़ा-लत्ता के भार हमरा ऊपर छोड़ दऽ । गाहे-बगाहे अनाज-पानी भी भेज देवो आउर का ।) (अल॰10.31.26)
187 गियान (= ज्ञान) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
188 गुजर-वसर (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.13)
189 गुदगुदी, गुदगुद्दी (~ बरना) (नन्हे के पीरितिया, आधी मिसी रतिया मचावऽ होतइ सोर । बरऽ होतइ गुगुदिया कि फड़कऽ होतइ सुगना आउ सुगनी के ठोर ॥) (अल॰10.32.25)
190 गुन (= गुण) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
191 गुने (इ गुने = इसके कारण) (अल॰3:8.16)
192 गुमसल (कल से गांजा न पीलूँ हे जेकरा से धुआँ ढेकार आ रहल हे । पेटवे गुमसल हे । येक दम लेवे से सब ठीक हो जायत ।) (अल॰8:25.15)
193 गुरुपिंडा (दे॰ गुरुपींडा) (सुमितरी भी अप्पन गाँव के गुरुपिंडा पर पढ़े ला कह रहल हल ।) (अल॰4:9.9)
194 गुरुपींडा (अलगंठवा गुरुपींडा जायके बदले बकरी चरावे आउर संघतिअन के साथ खेले-कूदे में ही बाउर रहऽ हल ।) (अल॰1:3.7, 30, 4.4, 19)
195 गुह (= गूह, मल, विष्ठा) (दोसर एगो अउरत बोलल - "पढ़ले सुगना गुह में डूबऽ हे ।") (अल॰4:12.7)
196 गुहना (= गूँथना) (जब माय सुमितरी के माथा गुह रहऽ हल तऽ सुमितरी कहलक हल - मइया, हमरा नानी घर में लोग गुरुपींडा पर पढ़े जाइ ला कहऽ हल ।) (अल॰5:13.16)
197 गूलर (= गुल्लड़) (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.1)
198 गे (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19, 20)
199 गेठरी-मोटरी (कटहिया घाट जुमला पर गाँव के सब लोग एक जगह ~ रख के गंगा जी में नेहाय लगलन ।) (अल॰6:16.5)
200 गोइठा (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.8)
201 गोइठा-अमारी (जब घर में चाउर-दाल आ जाय तऽ अलगंठवा के भोजाय गोइठा-अमारी से चूल्हा फूंक-फूंक के सुलगावऽ हलन । बड़ी देर में मेहुदल गोइठा सुलगऽ हल तऽ कहीं जाके अदहन सुनसुना हल ।) (अल॰12.36.29)
202 गोटा (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29; 16:48.13, 30)
203 गोड़ (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23; 3:7.19; 6:16.8)
204 गोरकी (~ मट्टी) (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.10)
205 गोलकी (= गोलमिर्च) (देख, जे जड़ी दे रहलिउ हे ओकरा में एगो तुलसी जी के पत्ता एगो गोलकी के दाना मिला-मिला के खाली पेट में सुबह पहर हाथ-मुँह धो-धा के खाय पड़तइ ।) (अल॰16:49.12, 13, 14)
206 गोहमन (~ साँप) (येक दिन गनौर सिंघ के नइकी बगीचा में जब गोहमन सांप ओकर पाठी के काट लेलक आउर अलगंठवा के सामने जब पाठी दम तोड़ देलक तऽ अलगंठवा जार-बेजार कई रोज तक रोते रहल, खोजते रहल ।) (अल॰1:2.24)
207 गौर-गट्ठा (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।; अलगंठवा के माय आउ सुमितरी के माय फतुहा धरमसाला में ठहर के भोरे के गाड़ी पकड़े ला सोच के गौर-गट्ठा कर लेलक हल ।) (अल॰6:14.11, 18.14)
208 घइला (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4, 5; 6:18.12)
209 घरवाली (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.5)
210 घीअउड़ा (सत्तू के साथ घीअउड़ा अलगंठवा के बड़ वेस लगऽ हल ।) (अल॰12.36.23)
211 घुकड़ी-मुकड़ी (किसान सबके दूरा-दलान पर नाद में बइल सानी खाके ताकते रहऽ हल । आउर किसान सब हाथ पर हाथ रख के घुकड़ी-मुकड़ी लगा के मन मनझान कर के आपस में गपसप करइत देखाय दे रहलन हल ।) (अल॰15.44.11)
212 घुरना (घुर-घुर के अलगंठवा सुमितरी के माय के देख ले हल ।) (अल॰6:20.20)
213 घुरियाना (बटेसर कहलक हल -"हाँ बेटी, तूँ ठीके कहऽ हऽ । बेचारा जग्गू ठाकुर के ओहे पांड़े मार देलकइ, दवा खिलइते-खिलइते ।" साड़ी में पेवन्द लगइते सुमितरी के माय कहलक हल -"तइयो तऽ तोहर वान न छूट रहलो हे । न जानी तोहरा कउन चीज पढ़ा के खिला देलको हे उ पांड़े । जब न तब घुरिया-घुरिया के ओकरे भीर जा हऽ । ओकरा अप्पन गाड़ धोवे के अकले न हइ आउ डगडरिए करऽ हे ।") (अल॰14.42.24)
214 घोसना (तू एगो सुमितरी के नाम चिट्ठी दे दऽ । हम ओकरा दे देवइ । उ तोर नाम बराबर घोसते भी रहऽ हो ।) (अल॰6:18.8)
215 चखना (तरबन्ना में एक हथौड़ा ताड़ी लेके रामखेलामन जी विना चखना के पी रहलन हे ।) (अल॰8:23.10)
216 चचा (= चाचा) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.6)
217 चच्चा (= चाचा) (उ जेवार में कोय के अइसन घर न हल जेकरा हीं अलगंठवा के घर के लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही बंधिक न होत । माय-चच्चा आउर बाबू जी के मर जाय के वाद अलगंठवा के परिवार में घनघोर अंधेरा छा गेल हल ।) (अल॰12.35.23)
218 चटकल (= जूट का कारखाना) (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल) (अल॰1:1.11)
219 चटकलिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
220 चनन (= चन्दन) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.7)
221 चमरखानी (~ जूता) (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5; 10:32.17)
222 चमार (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.6)
223 चरखानी (~ गमछी) (बटेसर चरखानी गमछी से देह के पसीना पोछ के कमर में खोंसल खैनी-चूना निकाल के खैनी टूंग ही रहल हल कि लोटा में पानी लेके सुमितरी के माय जुम गेल हल ।) (अल॰7:21.10)
224 चरन्नी (= चवन्नी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
225 चान (= चाँद) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19, 18.24, 25)
226 चान-सुरुज (तोरा तऽ हम पहिले ही असीरवाद देइए देलियो हे कि चान-सुरुज नियन संसार में चमकते रहऽ ।) (अल॰10.30.30)
227 चानी (= चाँदी) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3; 12:37.16)
228 चास (बटेसर अप्पन खेत के एक चास लगा के सिरिस के पेड़ तर सुस्ता रहलन हल ।) (अल॰7:21.8)
229 चिकन (= चिक्कन, चिकना) (सबके बकरी से चिकन मोटा-ताजा अलगंठवा के पाठी हल । परान से भी पिआरी ।) (अल॰1:2.18)
230 चिरइ-चिरगुनी (पेड़ पर चिरइ-चिरगुनी बोल रहलो हे ।) (अल॰9:28.27)
231 चिरइ-चुगुन (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे, हर तरह के चिरइ-चुगुन चह चहइते रहऽ हे ।) (अल॰8:23.1)
232 चिरई-चिरगुन (नगपाँचे नकचिया रहल हल । टाल-बधार में अमदी के जगह पर चिरई-चिरगुन, सियार-बिलार के चहल-पहल आउर सोर-गुल होबइत रहऽ हल ।) (अल॰15.44.9)
233 चुचकारना (अलगंठवा ओकर देह पर हाथ फेर के चुचकारऽ हल ।) (अल॰1:2.23)
234 चुनियाना (सत्तू खाके इतमिनान से बइठ के खैनी चुनियाबइत सुमितरी के मलारइत बटेसर कहलक हल) (अल॰14.42.29)
235 चुल्हा (= चूल्हा) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
236 चूका (= चुक्का) (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.4)
237 चूड़ा (अलगंठवा झोला में नयका धान के अरबा चूड़ा आउर नयका गुड़ कंधा में टांग के सबसे अगाड़िए जाय ला तइयार हो गेल हल ।) (अल॰6:14.22)
238 चेलवा (= चेलहा) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
239 चेलहा (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29)
240 चेला-चुटरी (उहें एगो बंगाली नट से मन्तर सिख के अगम-अपार बंगाल के सिध कलकत्ता से गाँव तक चेला-चुटरी के भरमार ।) (अल॰1:1.13)
241 चेहाना (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6)
242 चोखा (घर पहुँचे पर सुमितरी अप्पन बाबू जी के खिचड़ी चोखा आउर मट्ठा खाय ला परोसे जा ही रहल हल कि ओकर माय कहलक हल ..) (अल॰7:21.28)
243 चोराना (= चुराना) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4, 9)
244 चौंका-पानी (सुमितरी चिट्ठी लिख के चौंका-पानीकर रहल हल तऽ ओकर माय कहलक हल) (अल॰9:29.8)
245 चौकियाना (चलऽ, तूँ बैलवा-भैंसवा हाँकले चलऽ । हम हर-पालो लेके आवइत हियो । हब कल एगो चास आउर करके गेहुँ बुन के चौकिया देवइ ।) (अल॰7:21.24)
246 चौन-भौन (बाप रे, केता अछा से चिट्ठी लिखको हे । सुमितरी तोहर परेम में चौन-भौन हो रहलो हे ।) (अल॰10.32.22)
247 छइते (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । ) (अल॰3:5.29; 6:14.18)
248 छहुरा (= छाया) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.18)
249 छाली (~ भरल दही) (अलगंठवा चार बजे भोर के ही पढ़े ला रोज उठ जा हल । फिन फरिच्छ होवे पर नेहा-धो के छाली भरल दही आउर रोटी खाके इस्कूल चल जा हल ।) (अल॰4:8.34)
250 छिछियाना, छिछिअइते चलना (गांजा पिये ला एने ओने छिछिअइते चलऽ हका । मुदा आज्झ तक अप्पन ओर से कभी भी एको चिलिम गांजा पीलावे के रोजी न भेलइ ।) (अल॰8:25.5)
251 छुहाड़ा (= छोहाड़ा) (फिन का हल, अलगंठवा डगर में आके, एगो पेड़ पर चढ़ के थोड़ा गड़ी, छुहाड़ा थोड़ा किसमिस आउर एकक गो केला-नारंगी, अमरुद लेके खाय लगल ।) (अल॰4:11.16)
252 छूछी (नानी एक दिन सोनरवा से छेदा के एगो नाक में छूछी पेन्हा देलक हे ।) (अल॰13.39.22, 23)
253 छूछे (छूछे गंवार गांव के रहे वाला अलगंठवा पटना आउर पटना कौलेज के चहल-पहल देख के चौंधिया गेल हल ।) (अल॰11.32.29)
254 छूछे-रूखे (रोज-रोज अलगंठवा के दूरा-दलान पर आवल-गेल पहिले के ही तरह ही खइते-पीते रहऽ हल । चाहे अलगंठवा के परिवार अपने छूछे-रूखे, अधपेटे खा के काहे न रह जाय ।) (अल॰12.37.11)
255 छोट (= छोटा) (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19)
256 छोटका ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?" "हाँ, बड़का तऽ बाबू जी के साथ कलकत्ते में रहऽ हे ।") (अल॰6:17.23; 12:35.25)
257 छोटकी माय (हमरा तरफ चेचक के बहुत सिकाइत हइ, अपन टोला में कई लोगन के छोटकी माय देखाय देलथिन हे ।) (अल॰3:8.17)
258 छो-पांच (~ करना) (सुमितरी के लिखल चिट्ठी सुरेन्द्र के दुआरा पाके आउर पढ़के अलगंठवा छो-पांच करे लगल हल । ओकरा लगे लगल हल कि सुमितरी के आउर ओकर परिवार के मोह-जाल में फंसे के भय हो रहल हल ।) (अल॰16.46.5)
259 छोहाड़ा (= छुहाड़ा) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.3; 12:36.21)
260 जउरी-पगहा (नानी आउ भइया के अवाज सुन के सुमितरी आउर अलगंठवा जे जउरी-पगहा जइसन आपस में सटल हल, एक दूसर से हड़बड़ाइत अलग होइत धीरे-धीरे दूनो दू दने सोझिया गेल हल ।) (अल॰13.41.13)
261 जउरे-साथे (दू घंटा रात छइते ही इसलामपुर रेलगाड़ी पकड़े ला लोग जउरे-साथे निकल गेलन हल ।) (अल॰6:14.18)
262 जखनी (= जब, जिस क्षण) (जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3)
263 जजमनका (~ पूजाना) (तू तऽ बंडा हऽ, हमरा तऽ आठ गो बाल-बचा भी हे । उ लोगन हब खेते-खेत भीखे मांगत न । पढ़ल-गुनल भी न हे कि जजमनका पूजावत ।) (अल॰8:24.16)
264 जजमान (ए जजमान, हमरा हीं गांजा एकदमे ओरिया गेलो हे । सुनलियो हे कि तोहरा हीं भगलपुरिया गांजा हो । लावऽ न, येक चिलिम हो जाय ।) (अल॰8:24.27)
265 जजात (गाँव के जजात आउर घर के अनाज चोरा के अप्पन पाठी के खिलावे में दिन-रात लउलिन रहऽ हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.19)
266 जट्ठा (= जटा) (साधु बाबा अप्पन लमहर-लमहर झुलइत जट्ठा पर हाथ फेरइत कहलन हल - हरे न रे, इ सब बाबा दिगमरी भोलानाथ, सिधनाथ के किरपा तोरा पर हउ रे बेटा ।) (अल॰16:49.4)
267 जड़गर (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे ।) (अल॰10.32.13)
268 जतरा (~ बनना) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.30)
269 जमाइत (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.7, 11)
270 जमान (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे ।) (अल॰10.32.12)
271 जमान-जोग (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.7)
272 जरना (= जलना) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.19)
273 जरांठी (येगो अधवइस अउरत जरांठी से अप्पन तरजनी अंगुरी से दाँत रगड़ रहल हल ।) (अल॰3:6.13)
274 जराना (= जलाना) (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.26, 35.6)
275 जलमना (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल ।) (अल॰7:20.30)
276 जस-इज्जत-मान-मरिआदा (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
277 जिकिर (= जिक्र) (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.31)
278 जिनगी-मउअत (हाँ भउजी, जिनगी-मउअत के कउन भरोसा हे । ओकर बाबू के भी रोगे-बलाय लगल रहऽ हइ ।) (अल॰6:17.4)
279 जिन्नगी (= जिनगी, जिन्दगी) (हम्मर जिन्नगी में हम्मर कोय बेटा दूसर के गुलामी न करत ।) (अल॰12.36.1, 10)
280 जिला-जेवार (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।; इ जिला-जेवार में अलगंठवा अप्पन नाम कइले हका ।) (अल॰1:1.16; 10.30.27; 15:45.10, 17)
281 जिलेवी (= जलेबी) (फिन अलगंठवा के माय एगो तसतरी में जिलेवी देइत कहलक हल) (अल॰10.30.23, 24)
282 जीता-जिन्नगी (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल ।) (अल॰12.37.2)
283 जीते-जिन्नगी (जदि बड़का भाय के नौकरी माय-बाप के जीते-जिन्नगी लग जइतइ हल तऽ आज्झ घर के इ हालत न होतइ हल ।) (अल॰12.36.10)
284 जीभियाना (कुछ लोग कुंआ से हट के दतमन से दाँत रगड़ रहलन हल । तऽ कुछ लोग दतमन के बीच से फाड़ के जीभ के जीभिया रहलन हल ।) (अल॰3:6.13)
285 जीमन (= जीवन) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27; 6:19.20; 11:32.27)
286 जीमन-मउअत (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.26)
287 जीमन-मौत (अलगंठवा अमदी के जीमन-मौत के वारे में सोंच ही रहल हल कि होस्टल के चपरासी हबीब मियाँ गंगा घाट पर धेआन मगन अलगंठवा के भंग करइत कहलक हल) (अल॰11.33.5)
288 जीलेबी (= जलेबी) (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
289 जुठखुटार (= जुठकुठार) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.2)
290 जुठाना (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.11)
291 जुमना, जुम जाना (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल । इस्कूल निपा ही रहल हल कि साइकिल पर इस्कूल इंस्पेक्टर इस्कूल में जुम गेल हल ।) (अल॰4:9.16; 6:16.4; 7:21.12)
292 जुरा (= जूरा) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
293 जूठकठार (= जूठकुठार; दे॰ जुठखुटार) (भला सुनऽ तो, ओकरा भगमानों से डर-भय न लगऽ हई । बाप रे, भगमान के परसदिया जूठकठार कर देकइ, गजब के लइका हइ ई भाय ।) (अल॰4:12.9-10)
294 जेभी (रघुनाथ अप्पन जेभी से दू गो वीड़ी निकाल के फक-सन्न सलाइ जला के वीड़ी सुलगा के एगो वीड़ी रामखेलामन के ओर बढ़ावइत आउर एगो बीड़ी अप्पन मुंह में दवाबइत कहलक हल) (अल॰8:23.22)
295 जेवार (उ जेवार में कोय के अइसन घर न हल जेकरा हीं अलगंठवा के घर के लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही बंधिक न होत । माय-चच्चा आउर बाबू जी के मर जाय के वाद अलगंठवा के परिवार में घनघोर अंधेरा छा गेल हल ।) (अल॰12.35.21)
296 जोड़ (= जोर) (सुमितरी सीऽऽऽसीऽऽऽ करइत कहलक हल - "एता जोड़ से नाक अंइठ देलऽ कि लहरे लगल । छोड़ऽ, अब हम जाही ।") (अल॰13.40.27)
297 जोड़ापारी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.25)
298 जोड़ी (राम मिलावल ~) (अरे, हमनि दूनो तऽ राम मिलावल जोड़ी, येक अंधा येक कोढ़ी हइए हऽ । हम ताड़ी के चलते अट्ठारह विघा फुक देली तऽ तूँ गांजा के चलते नौ विघा । गांजा के चिलिम पर गुल बना के सोंट गेलऽ ।) (अल॰8:24.12)
299 जौरी (~ बाँटना) (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
300 जौरी (= जउरी, रज्जु) (बटेसर के बात सुन के माय-बेटी हाथ में नेवारी के जउरी लेके खेत दने सोझिया गेल हल ।) (अल॰9:29.20)
301 झकझकाना (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल । जेकरा से बाग बगीचा झकझका रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
302 झमेठगर (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल । ... नन्हकू ओही झमेठगर बेल के पेड़ पर सुमितरी के बइठा के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.16, 18; 5:12.30)
303 झांकना (= ढँकना, झाँपना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.10)
304 झारना (नजर-गुजर ~) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
305 झारना (माथा ~) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
306 झिटकी (फिन सुमितरी झिटकी से सुपती के मैल छुड़ा-छुड़ा के नेहाय लगल हल ।) (अल॰5:12.23)
307 झूठा (= जूठा) (झूठा थरिया उठावइत सुमितरी कहलक हल ।) (अल॰9:28.8)
308 टउआना (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल ।; धरती के सिंगार हरिअर कचूर मोरी दुलार विना टुअर जइसन टउआ रहल हल ।) (अल॰1:1.11; 15:44.14)
309 टभका टोय (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.21)
310 टहकना (टहकल इंजोरिया) (अल॰1:3.9; 16:49.20, 24)
311 टहटह (लाल ~) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।; कतकी पुनिया के चांद पूरबओर लाल टह-टह होके आग के इंगोरा नियन इया कुम्हार के आवा से पक के लाल भिमिर हो के बड़गो घइला नियन उग रहल हल ।) (अल॰6:14.19, 18.10)
312 टहटहाना (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19)
313 टाल-बधार (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।; अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰1:2.17; 7:20.25; 15:44.8)
314 टिकिआ (~ धराना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
315 टिसना (~ लगाना) (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे । सुमितरी तोहरा पर पहिले से ही दीठिअइले हलो बचपने से ही । येकर वाद रमेसर हुंकारी भरइत कहलक हल - इ भी तऽ ओकरा पर टिसना लगइले हल न । अरे इ तऽ विआह-विआह बचपने में खेल-कूद के गँउआ-गोहार करइवे कइलक हल ।) (अल॰10.32.15)
316 टील्हा (अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰13.38.19)
317 टीसन (इसलामपुर टीसन पहुँचे पर फतुहा के टिकट कटावे ला सब लाइन में लग गेलन हल ।) (अल॰6:14.24, 25, 15.19)
318 टुअर (अलगंठवा के बाबू इयानी कलकतिया बाबू, जे बारह बरिस के उमर में बूढ़ा बाप, चार बरिस के माय के टुअर भाय आउर अप्पन अउरत के नैहर में छोड़ के कलकत्ता चल गेलन हल ।) (अल॰1:1.9; 10.30.9; 15:44.14)
319 टुकुर-टुकुर (अलगंठवा खड़ा होके होके टुकुर-टुकुर ऊ झूंड में अप्पन चितकबरी पाठी के हिआवऽ हल / निहारऽ हल ।) (अल॰1:3.1)
320 टुह-टुह (लाल ~ सुरज) (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3)
321 टो-टा के (उ का डागडर हथिन बाबूजी ? कउन कउलेज में पढ़लथिन हे । टो-टा के तऽ एक वित्ता में अप्पन लाम लिखऽ हथिन । अप्पन गाँव के कई लोगन के मुरदघट्टी पुवचा देलथिन हे । जहाँ पेड़ न बगान, उहाँ रेड़ परधान ।) (अल॰14.42.19)
322 टोला-टाटी (अलगंठवा से ~ गाँव-घर के लोग ऊब चुकल हल) (अल॰1:3.11, 13; 3:8.30; 4:10.27)
323 ठंइया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल ।) (अल॰6:16.9)
324 ठउरे (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल ।) (अल॰3:6.16; 13:40.28)
325 ठकमुरकी (~ लग जाना) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.27)
326 ठनना (बाबू जी लगातार दू-दू-तीन-तीन बरिस के बाद कलकत्ता से गाँव आबऽ हलन । जेकरा से दूनो परानी में भीतर-भीतर ठनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.4)
327 ठाँम (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
328 ठुल (~ करना) (पहिले तऽ गाँव के लोग ठुल करऽ हल, मुदा अलगंठवा के समझावे पर बूढ़ पुरनियन के बात समझ में आवे लगऽ हल ।) (अल॰2:5.15)
329 डगर (एकर बाद नाना-नतनी खुदागंज के डगर पर सोझिआ गेल हल ।) (अल॰3:8.4; 4:11.16)
330 डमकल (अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰13.38.20)
331 डर-भय (कोय कहे कि रात-रात भर बगीचवा में डोलपत्ता खेलऽ हइ । ओकरा तनिको भूत-मूंगा से डर-भय न लगऽ हइ ।) (अल॰2:5.4; 4:12.9)
332 डाँढ़ (= डाल) (सुमितरी, देखऽ तऽ, रुखी सब कइसन इ डाँढ़ से उ डाँढ़ उछल-कूद करइत कुलेल करइत हे ।) (अल॰13.39.8)
333 डाँहट (= डाँट) (सुमितरी के नानी डाँहट पारइत पुकार उठल हल - "सु उ उ उ मि इ इ इ त ऽ ऽ ऽ री इ इ इ गे ऽ ऽ ।") (अल॰13.41.9)
334 डागडर (डागडर के बुलावे के पहिले ही दम टूट गेलइ । लास फतुहा आयल हो । माय के मुँह में आग तोहरे देवे पड़तो । काहे कि छोट बेटा ही आग दे हे ।) (अल॰11.33.19)
335 डिल्ली (= दिल्ली) (हाँ बउआ, टोला-टाटी के चिट्ठी सुमितरी ही लिखऽ हइ । ओकर लिखल चिट्ठी डिल्ली-पटना-कलकत्ता तक चल जा हइ ।) (अल॰10.32.2; 15:45.19)
336 डोरिआना (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।) (अल॰7:22.18)
337 डोलपत्ता (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23; 2:5.3)
338 ढिवरी (बटेसर के बात सुन के सुमितरी के माय ढिवरी के बत्ती उसकावइत कहलक) (अल॰9:28.4)
339 ढेकरना ("नाना-नानी तइयार होथिन तऽ न ।" ढेकरइत बटेसर हप्पन जनाना के बात सुनइत कहलक हल ।) (अल॰9:27.28)
340 तइयो (बटेसर कहलक हल -"हाँ बेटी, तूँ ठीके कहऽ हऽ । बेचारा जग्गू ठाकुर के ओहे पांड़े मार देलकइ, दवा खिलइते-खिलइते ।" साड़ी में पेवन्द लगइते सुमितरी के माय कहलक हल -"तइयो तऽ तोहर वान न छूट रहलो हे । न जानी तोहरा कउन चीज पढ़ा के खिला देलको हे उ पांड़े । जब न तब घुरिया-घुरिया के ओकरे भीर जा हऽ । ओकरा अप्पन गाड़ धोवे के अकले न हइ आउ डगडरिए करऽ हे ।") (अल॰14.42.24)
341 तखनी (= तब, उस क्षण) (जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3)
342 तनी (= जरा, थोड़ा) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.18)
343 तफरका (किसान सब मजदूर सब के मांग माने ला अवलदार न हो रहलन हल । जेकरा से किसान-मजदूर में तफरका हो गेल हल ।) (अल॰15.43.28)
344 तरन्ना (= तरबन्ना) (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.6)
345 तरबन्ना (गाँव के दखिन बगीचा आउर तरबन्ना हे । उ तरबन्ना में बिसु पासी तार छेव के ताड़ी उतारइत रहऽ हे । वसन्तपुर गाँव में ताड़ी पीए ला कइ गाँव के लोग आबऽ हथ ।; तरबन्ना में एक हथौड़ा ताड़ी लेके रामखेलामन जी विना चखना के पी रहलन हे ।) (अल॰8:23.4, 10, 24.7, 26.11)
346 तरेता (= त्रेता) (बड़ावर पर कइगो खोह हे जेकरा में कहल जाहे कि तरेता से लेके दुआपर तक रीसि-मुनि अभी तक तपसिया कर रहलन हे ।) (अल॰16:50.4)
347 तसतरी (= तश्तरी) (फिन अलगंठवा के माय एगो तसतरी में जिलेवी देइत कहलक हल) (अल॰10.30.23, 24)
348 तसला (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल। अलगंठवा अप्पन घर के अइसन धच्चर देख के कभी-कभी एकान्त में रो जा हल ।) (अल॰12.37.3)
349 तहमुल (~ करना) (गाँव के लोग ताकते रह गेल, तमासा देखते रह गेल । मुदा अलगंठवा कुत्ता के तहमुल करके, नेहा-धो के अप्पन घर आ गेल ।) (अल॰2:5.26)
350 तहिना (ए जी, तहिना तूँ जे बड़ावर के साधु बाबा के बारे में जे कह रहलु हल, उ तऽ बीचे में ही छूट गेलो हल । रामदहिन पाड़े के तहिना सँढ़वा पटक देलकइ हल । हल्ला-गुदाल सुन के ओकरे तरफ चल गेली हल । जरा निमन से समझाबऽ ।) (अल॰9:27.9, 11; 16:50.15)
351 ताड़ी (गाँव के दखिन बगीचा आउर तरबन्ना हे । उ तरबन्ना में बिसु पासी तार छेव के ताड़ी उतारइत रहऽ हे । वसन्तपुर गाँव में ताड़ी पीए ला कइ गाँव के लोग आबऽ हथ । आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल ।; ताड़ी पिए तरन भए खुस होय भगमान । जे नर ताड़ी न पिए ओकर वंस निदान ॥) (अल॰ 8:23.5, 6, 8, 10, 26.19, 20)
352 ताड़ी-दारु-गांजा-भांग (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.8)
353 तातल (अलगंठवा आउर बटेसर तातल-खिचड़ी फूंक-फूंक के खा रहलन हल ।) (अल॰16.47.17)
354 तापना, ताप जाना (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.8)
355 तामा (= ताँबा, ताम्र) (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.15)
356 तार (= ताड़) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30)
357 ताव (एक ~ कागज) (अल॰6:18.18)
358 तितइ (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल । आउर ओकर मुंह से तितइ के लार चुए लगल हल ।) (अल॰3:6.25)
359 तीन डंड़िया (भोर के पहर हम तोहरा पास पाती लिख रहलियो हे । तीन डंड़िया एकदम माथा पर हो । आउर सुकर महराज भी पछिम रुखे अकास में चमचम कर रहलो हे ।) (अल॰9:28.25; 16:46.16)
360 तुका (= तुक्का; गुलेल) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20; 13:39.1)
361 तेरुस (= विगत या आगामी तीसरा वर्ष) (अलगंठवा के इयाद आ रहल हल कि तेरुस साल ही माय के साथ कतकी पुनिया नेहाय ला कटहिया घाट आयल हल । इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल ।) (अल॰11.34.23, 35.5)
362 तेसर (= तीसरा) (तेसर अमदी बोलल कि जे बड़ तेज रहऽ हे उ तीन जगह मखऽ हे ।) (अल॰4:12.7)
363 थरिया (ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰9:27.30, 28.9)
364 थेथर (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5)
365 दखिनाहा (= दखनाहा) (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
366 दतमन (= दतवन) (कुछ लोग कुंआ से हट के दतमन से दाँत रगड़ रहलन हल । तऽ कुछ लोग दतमन के बीच से फाड़ के जीभ के जीभिया रहलन हल ।) (अल॰3:6.12, 15)
367 दतादानी (= दातादानी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.10)
368 दनादन (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल ।) (अल॰2:4.27)
369 दने (दुनों धीरे-धीरे अप्पन-अप्पन घर दने चल देलक हल) (अल॰1:4.15; 6:15.28, 29)
370 दम्मा (= दमा) (हाँ, अलगंठवा के माय तोहर दम्मा के समाचार सुन के बड़ावर में कोय साधु के बारे में कोय साधु के बारे में बतइलथिन हल कि साधु जड़ी-बुटी के दवा देके जड़ से ही रोग ठीक कर दे हथिन ।) (अल॰7:22.6)
371 दलान (जब दलान से भीड़ छँट गेल हल तऽ बटेसर धोकड़ी से चिट्ठी निकाल के अलगंठवा के माय के हाथ में देइत कहलक हल) (अल॰10.31.8)
372 दवा-विरो (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे ।) (अल॰6:17.9; 13:40.17)
373 दहाना (आज्अ फतुहा में अप्पन माय के सदा के लेल छोड़ के, जरा के, दहा के, सिसकइत माय के टुअर होके जा रहल हल ।) (अल॰11.35.7)
374 दावा (= दवा) (इतने में ओकरा जड़ी-बूटी वाला दावा के इयाद पड़ गेल हल ।) (अल॰9:27.8)
375 दिआँ (= दीमक) (किताब सब में भी दिआँ लग रहल हल ।) (अल॰12.37.20)
376 दिगमरी (= दिगम्बर) (साधु बाबा अप्पन लमहर-लमहर झुलइत जट्ठा पर हाथ फेरइत कहलन हल - हरे न रे, इ सब बाबा दिगमरी भोलानाथ, सिधनाथ के किरपा तोरा पर हउ रे बेटा ।) (अल॰16:49.5)
377 दिनगते (आज्झे आउर अबहिए बड़ावर चले ला तइयार हो जा । आज्झ दिनगते पहुँच जइते जइबइ ।) (अल॰16.46.29, 48.8)
378 दिसा (~ फिरना) (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.10)
379 दीठिआना (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे । सुमितरी तोहरा पर पहिले से ही दीठिअइले हलो बचपने से ही ।) (अल॰10.32.13)
380 दीया (इ दुनिया में अइसन लइका दीया लेके खोजे पर भी न मिलतइ ।) (अल॰4:12.11)
381 दुआपर (= द्वापर) (बड़ावर पर कइगो खोह हे जेकरा में कहल जाहे कि तरेता से लेके दुआपर तक रीसि-मुनि अभी तक तपसिया कर रहलन हे ।) (अल॰16:50.4)
382 दुआरा (= द्वारा) (बाबू जी के दुआरा चिट्ठी जरुरे भेजिहऽ ।) (अल॰9:29.4; 16:46.4)
383 दुरगा (= दुर्गा) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
384 दुरगाथान (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.8)
385 दूअन्नी (= दुअन्नी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
386 दूधायल (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.27)
387 दूनो (= दुन्नू, दोनों) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29)
388 दूरा-दलान (अलगंठवा आउर सुमितरी के हलचल गाँव भर में मचल हल । दूरा-दलान पर ओही दूनो के बात होवइत हल ।) (अल॰2:4.17; 12:37.10)
389 देउता-देवी (वाह, भगमान के किरपा जे न हे । देउता-देवी के पुन-परताप से आउ आगे पढ़-लिख के गुनगर हो जाय कि तोहर घर से लगाइत जिला-जेवार के नाम रोसन होय ।) (अल॰10.30.25)
390 देसी हिसाब (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल । आउर देसी हिसाब भी फटाफट बना दे हल ।) (अल॰2:4.27)
391 दोखाड़ना (कभी-कभी असाढ़ के वादर गरज-बरज के बरस जा हल । जेकरा से खेत में पानी अहिल-दहिल हो रहल हल । मुदा खेत में फरनी न हो रहल हल, चास न लग रहल हल, दोखाड़ल न जा रहल हल ।) (अल॰15.43.22, 23)
392 दोदर (= उखड़ल, उभरल) (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में ।) (अल॰5:12.28)
393 दोसर (= दूसरा) (दोसर एगो अउरत बोलल - "पढ़ले सुगना गुह में डूबऽ हे ।") (अल॰4:12.6)
394 धच्चर (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल। अलगंठवा अप्पन घर के अइसन धच्चर देख के कभी-कभी एकान्त में रो जा हल ।) (अल॰12.37.4)
395 धत् (धत्, तूँ लोगन के फेरा में तऽ अभी तक येक पथिया घास तक न गढ़ पइलूँ । हम्मर भैंस येक तऽ जे सेर भर दूध दे रहल हे, उ भी लेके विसूख जात ।) (अल॰8:24.20; 13:39.18)
396 धथूरा (मंदिल में करिया कोयला अइसन महादे जी के लिंग इयानी सिउलिंग गड़ल हे । )जेकरा पर धथूरा के फूल चढ़ल हल ।) (अल॰16:48.24)
397 धमधमाना (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26)
398 धरमसाला (= धर्मशाला) (अलगंठवा के माय आउ सुमितरी के माय फतुहा धरमसाला में ठहर के भोरे के गाड़ी पकड़े ला सोच के गौर-गट्ठा कर लेलक हल ।) (अल॰6:18.13, 17)
399 धुआँ ढेकार (कल से गांजा न पीलूँ हे जेकरा से धुआँ ढेकार आ रहल हे । पेटवे गुमसल हे । येक दम लेवे से सब ठीक हो जायत ।) (अल॰8:25.14)
400 धोकड़ी (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15; 6:15.15; 6:18.18; 8:24.28)
401 न जानी (पाती पढ़के न जानी सुमितरी के मन में का भाव उठत ।) (अल॰6:20.22)
402 नइका (= नयका) (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..) (अल॰6:16.12)
403 नइहर (अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।) (अल॰6:16.17; 16:48.4)
404 नकचियाना (= नजदीक आना) (नगपाँचे नकचिया रहल हल । टाल-बधार में अमदी के जगह पर चिरई-चिरगुन, सियार-बिलार के चहल-पहल आउर सोर-गुल होबइत रहऽ हल ।) (अल॰15.44.8)
405 नकवेसर (नाक के नीचे एगो छेद आउर करवा लिहऽ जेकरा में नकवेसर इयानी बुलाकी पेन्ह लेबऽ तऽ आउर वेस लगबऽ ।) (अल॰13.39.24)
406 नगपाँचे (= नागपंचमी) (नगपाँचे नकचिया रहल हल । टाल-बधार में अमदी के जगह पर चिरई-चिरगुन, सियार-बिलार के चहल-पहल आउर सोर-गुल होबइत रहऽ हल ।) (अल॰15.44.8)
407 नजर (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.15, 19)
408 नजर-गुजर (~ झारना) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
409 नदी-नाहर (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.24; 13:38.17)
410 नयका (अलगंठवा झोला में नयका धान के अरबा चूड़ा आउर नयका गुड़ कंधा में टांग के सबसे अगाड़िए जाय ला तइयार हो गेल हल ।) (अल॰6:14.22)
411 नरिअर (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13; 3:8.18, 20)
412 नाद (= नाँद) (किसान सबके दूरा-दलान पर नाद में बइल सानी खाके ताकते रहऽ हल । आउर किसान सब हाथ पर हाथ रख के घुकड़ी-मुकड़ी लगा के मन मनझान कर के आपस में गपसप करइत देखाय दे रहलन हल ।) (अल॰15.44.10)
413 नाम-जस-गुन (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.9-10)
414 निअर (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
415 निछड़वाना (बच्चा ~) (अलगंठवा के तरफ मुंह फेरइत सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, मत पूछऽ, कल ही न बुलाकी बहु वचा निछड़वइलके हे । संउसे लूगा-फटा खून से बोथ हो गेलइ हल । हँड़िया के हँड़िया खून गिरलइ हल । संउसे टोला हउड़ा कर देलकइ कि कच्चा उहरा हो गेलइ हे । मुदा सच बात छिपऽ हे ?") (अल॰13.40.20)
416 निनार (= लिलार, ललाट) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.8)
417 निपना (= लीपना) (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल ।) (अल॰4:9.14)
418 निपाना (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल । इस्कूल निपा ही रहल हल कि साइकिल पर इस्कूल इंस्पेक्टर इस्कूल में जुम गेल हल ।) (अल॰4:9.15)
419 निमन (ए जी, तहिना तूँ जे बड़ावर के साधु बाबा के बारे में जे कह रहलु हल, उ तऽ बीचे में ही छूट गेलो हल । रामदहिन पाड़े के तहिना सँढ़वा पटक देलकइ हल । हल्ला-गुदाल सुन के ओकरे तरफ चल गेली हल । जरा निमन से समझाबऽ ।) (अल॰9:27.12; 15:45.23)
420 नियन (= निअन, नियर) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
421 निरैठा (= जुट्ठा नयँ कइल, निरुच्छिष्ट, पवित्र) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.5)
422 निवाहना (= विवाह करना) ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे । अगिला साल तक हीं निवाहे के विचार हई ।" - सुमितरी के माय बोललक हल । "हाँ भाय, दिन-दुनिया खराब वित रहल हे, सेआन लइकी के निवाह देवे में ही फाइदा हे ।") (अल॰6:17.1, 3)
423 निहोरा (अलगंठवा निहोरा करइत आउर जिद करइत कहलक हल -"माय हम भी तोरा साथ गंगा-असनान करे ला फतुहा चलवो ।") (अल॰6:14.12)
424 नीन (सपना में रोज चितकबरी पाठी के देखऽ हल आउर नीन टूटला पर फफक फफक के रोवऽ हल) (अल॰1:3.5; 9:28.20)
425 नेउता (= न्योता) (सुमितरी के विआह में नेता देबऽ तऽ जरुरे अइवो अलगंठवा के लेके ।) (अल॰6:20.16)
426 नेमु (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मेना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
427 नेवारी (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22; 5:12.21; 9:29.20)
428 नेहाना (= नहाना) (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.2, 10; 6:16:5, 6, 7)
429 पइसा (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
430 पखुरा (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।) (अल॰7:22.22)
431 पटोर (सिंगार ~ करना) (सुमितरी सिंगार पटोर कर के झोला में कपड़ा-लत्ता लेके तइयार हो गेल हल ।) (अल॰16.47.26)
432 पढ़ल-गुनल (तू तऽ बंडा हऽ, हमरा तऽ आठ गो बाल-बचा भी हे । उ लोगन हब खेते-खेत भीखे मांगत न । पढ़ल-गुनल भी न हे कि जजमनका पूजावत ।) (अल॰8:24.15)
433 पढ़ाकू (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.5)
434 पतौरी (हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही । मुदा दू कट्ठा में धान के पतौरी लगा देली हे । ओकरा अटियाना जरुरी हे । न तऽ कोय रात-विरात के उठा के ले भागतइ । गोपाली महरा के चार कट्ठा के पतौरी उठा के ले भागलइ । आउ उत्तर भरु खंधवा में ले जा के मैंज लेलकइ ।) (अल॰9:28.1, 2, 29.21)
435 पथार (मार के ~ करना) (गाँव के उत्तर गुदाल होवे लगल कि अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँड़वा मार के पथार कर देलकइ ।) (अल॰7:22.17)
436 पथिया (धत्, तूँ लोगन के फेरा में तऽ अभी तक येक पथिया घास तक न गढ़ पइलूँ । हम्मर भैंस येक तऽ जे सेर भर दूध दे रहल हे, उ भी लेके विसूख जात ।) (अल॰8:24.21)
437 पनिहारिन (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
438 पनीहारिन (= पनिहारिन) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29)
439 परझोवा (अलगंठवा, सुमितरी के परझोवा आउर बात के हनसुन्नी करइत अमरूद पर चहल-पहल करइत रूखी के ओर सुमितरी के धेआन खिचइत कहलक हल) (अल॰13.39.6)
440 परतिष्ठा (= प्रतिष्ठा) (अब अलगंठवा के घर के इज्जत परतिष्ठा लेल एगो बड़गो सवाल हो गेल हल ।) (अल॰12.36.12)
441 परतेक (= प्रत्येक) (परतेक पुनिया के भगमान के कथा होवऽ हल ।) (अल॰4:10.28)
442 परधान (= प्रधान) (उ का डागडर हथिन बाबूजी ? कउन कउलेज में पढ़लथिन हे । टो-टा के तऽ एक वित्ता में अप्पन लाम लिखऽ हथिन । अप्पन गाँव के कई लोगन के मुरदघट्टी पुवचा देलथिन हे । जहाँ पेड़ न बगान, उहाँ रेड़ परधान ।) (अल॰14.42.21)
443 परनाम (= प्रणाम) (सुमितरी के माय नइहर के जमाइत मीर आके सबके परनाम-पाती कइलक हल । अलगंठवा भी सुमितरी के माय के चरन छू के परनाम कइलक हल ।) (अल॰6:16.22; 9:28.24)
444 परनाम-पाती (सुमितरी के माय नइहर के जमाइत मीर आके सबके परनाम-पाती कइलक हल । अलगंठवा भी सुमितरी के माय के चरन छू के परनाम कइलक हल ।) (अल॰6:16.22)
445 परलोभन (= प्रलोभन) (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल । दहेज के भी बड़गो-बड़गो परलोभन देल जा रहल हल । मुदा अलगंठवा सादी करे ला अवलदार न होबऽ हल ।) (अल॰16.46.9)
446 परवचन (= प्रवचन) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.8)
447 परवह (लास जब पूरा जर गेल तऽ थोड़ा-सा कलेजा करकरा रहल हल तऽ ओकरा कपड़ा में बांध के कमर भर पानी में हेल के लोग परवह कर देलन हल ।) (अल॰11.35.1)
448 परसादी (येक वेर के केहानी हे कि अलगंठवा के माय पुनिया के सतनाराइन सामी के पूजा खातिर परसादी लावे ला अलगंठवा के रुपया देलन हल ।) (अल॰4:10.31, 11.1, 2, 3)
449 परसिध (= प्रसिद्ध) (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.16, 16.12)
450 परहवा (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
451 परान (= प्राण) (सबके बकरी से चिकन मोटा-ताजा अलगंठवा के पाठी हल । परान से भी पिआरी ।) (अल॰1:2.19)
452 परानी (= प्राणी) (हम तोहर नाना जी से भी बात करवो । उनखा बेटा तऽ हइए न हइ । खाली दूगो परानी हका । तोहर नाना आउ नानी से तोहरा पढ़े ला मदद दिलवइवो ।) (अल॰6:19.21)
453 परेम (= प्रेम) (बाप रे, केता अछा से चिट्ठी लिखको हे । सुमितरी तोहर परेम में चौन-भौन हो रहलो हे ।) (अल॰10.32.22)
454 परेसान (= परेशान) (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे ।) (अल॰6:17.9)
455 पलानी (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.23)
456 पहिले पहल (अलगंठवा पहिले पहल रेलगाड़ी चढ़ल हल ।) (अल॰6:15.1)
457 पहुनइ (अप्पन अउरत पर नजर पड़ते ही बटेसर तमतमाइत बोल पड़ल हल - "तूँ गंगा नेहाय गेलऽ हल कि पहुनइ खाय, तोरा कल ही लौटे के हलउ, फिन रात कहाँ बितउलऽ ? हमनी अनेसा में रात भर न सो सकली ।") (अल॰7:21.13)
458 पाँकड़ (=पाकड़) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30, 31)
459 पाऊँ लगी (सुमितरी के माय के नजर जब अलगंठवा के माय पर पड़ल हल तऽ हँसइत आउ पुलकइत पाऊँ लगी भउजी कहलक हल ।) (अल॰6:16.20)
460 पाखा (= पाख, पाक) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.6)
461 पाघुर (= पागुर) (अन्न के भंडार आउर जोत से जादे खेत रखेवालन मालिक गाय-गोरू जइसन पाघुर कर रहलन हल ।) (अल॰15.44.16)
462 पाठी (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15, 19, 20, 21, 24, 25, 28, 29)
463 पाड़े (गाँव के उत्तर गुदाल होवे लगल कि अरे बाप रे बाप, राम दहिन पाड़े के सँड़वा मार के पथार कर देलकइ ।) (अल॰7:22.16)
464 पातर (= पतला) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
465 पाभर (= पाव भर) (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
466 पासी (गाँव के दखिन बगीचा आउर तरबन्ना हे । उ तरबन्ना में बिसु पासी तार छेव के ताड़ी उतारइत रहऽ हे ।) (अल॰8:23.4, 26.17)
467 पिआंक (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.7)
468 पिछुआनी (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.23)
469 पिराना (= दर्द करना, पीड़ा करना) (ए सहरी भइया, चलऽ हम्मर गाँव । कच्ची सड़किया पक्की अब हो गेलो, टमटम से चलिहऽ, पिरइतो न पाँव ॥) (अल॰15.45.27)
470 पीड़हा (= पीढ़ा) (फिन अलगंठवा के बाबू नन्हकू और वटेसर के बैठे ला पीड़हा देलक हल ।) (अल॰10.30.22)
471 पीतर (= पित्तर, पीतल) (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.15)
472 पीपर (=पिप्पर, पीपल) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30, 31)
473 पील पड़ना (अलगंठवा भी पढ़े में पील पड़ल हल ।) (अल॰2:4.22-23)
474 पुट-सन (सुमितरी के माय अप्पन माथा से एगो लिख पकड़ के बाँया हाथ के अंगूठा के नाखून पर दहिना हाथ के अंगूठा से पुट-सन मारइत कहलक हल) (अल॰7:22.12)
475 पुन-परताप (वाह, भगमान के किरपा जे न हे । देउता-देवी के पुन-परताप से आउ आगे पढ़-लिख के गुनगर हो जाय कि तोहर घर से लगाइत जिला-जेवार के नाम रोसन होय ।) (अल॰10.30.26)
476 पुनिया (= पूर्णिमा) (परतेक पुनिया के भगमान के कथा होवऽ हल ।) (अल॰4:10.28, 30; 6:14.10, 18.22)
477 पुरवारी (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
478 पुस्ट (=पुष्ट) (मेहिन-मेहिन चमचम दाँत, सुगिया जइसन नाक, पुस्ट-पुस्ट दूनो बाँह - ई सब के बढ़इत आकार सबके मन मोह ले हल ।) (अल॰5:13.14)
479 पूजा-पाघुर (सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.10)
480 पेंगुहा (= पेंग; झूलते हुए एक ओर से दूसरी ओर जाना; झूले का झटका) (सुमितरी अलगंठवा के अप्पन दूनों हाथ से झकझोर के झुमावइत, अप्पन दूनों हाथ छोड़ के अमरूद के एगो डाँढ़ में लटकइत, झुलूआ जइसन झुलइत कहलक हल - "चलऽ आबऽ, पेंगुहा दे दऽ तऽ जानिओ ।") (अल॰13.40.3)
481 पेन्हना (= पहनना) (नाक के नीचे एगो छेद आउर करवा लिहऽ जेकरा में नकवेसर इयानी बुलाकी पेन्ह लेबऽ तऽ आउर वेस लगबऽ ।) (अल॰13.39.24)
482 पेन्हाना (= पहनाना) (नानी एक दिन सोनरवा से छेदा के एगो नाक में छूछी पेन्हा देलक हे ।) (अल॰13.39.22)
483 पेवन्द (साड़ी में पेवन्द लगइते सुमितरी के माय कहलक हल) (अल॰14.42.23)
484 पैखाना (~ फिरना, ~ करना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9, 10, 11)
485 पैठ (~ होना) (गंजवा के चक्कर में अभी तक मुंह में येको दाना तक न पैठ भेल हे ।) (अल॰8:24.19)
486 पैन (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23)
487 पोकहा (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.1)
488 फक-सन्न (रघुनाथ अप्पन जेभी से दू गो वीड़ी निकाल के फक-सन्न सलाइ जला के वीड़ी सुलगा के एगो वीड़ी रामखेलामन के ओर बढ़ावइत आउर एगो बीड़ी अप्पन मुंह में दवाबइत कहलक हल) (अल॰8:23.23)
489 फटाफट (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल । आउर देसी हिसाब भी फटाफट बना दे हल ।) (अल॰2:4.27)
490 फट्टा (रंथी के साथ कबीर पंथी दुखहरन दास भी अइलन हल । दुखहरन दास हाथ में बांस के फट्टा से लास के खोर-खोर के जरा रहलन हल आउ येगो निरगुन गा रहलन हल) (अल॰11.34.8)
491 फरनी (कभी-कभी असाढ़ के वादर गरज-बरज के बरस जा हल । जेकरा से खेत में पानी अहिल-दहिल हो रहल हल । मुदा खेत में फरनी न हो रहल हल, चास न लग रहल हल, दोखाड़ल न जा रहल हल ।) (अल॰15.43.21)
492 फरिआना (जदि हमनी दूनो मजदूर से हड़ताल न फरिआ हो तऽ कोय तेसर पंच के चुन लऽ । जे किसान आउर मजदूर के दरद-पीड़ा से जुड़ल होय ।) (अल॰15.44.23)
493 फरिच्छ (= फरिछ) (अलगंठवा चार बजे भोर के ही पढ़े ला रोज उठ जा हल । फिन फरिच्छ होवे पर नेहा-धो के छाली भरल दही आउर रोटी खाके इस्कूल चल जा हल ।) (अल॰4:8.33)
494 फरिछ (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.30)
495 फरीछ (= फरिछ, फरिच्छ) (अलगंठवा फरीछ होते ही खोदागंज पहुँच गेल हल ।) (अल॰16.46.21)
496 फलहार (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
497 फसट (उ लोग आपस में बातचीत कर रहलन हल कि अइसन अगिया बैताल लइका मलट्री फसट डिविजन से पास कर गेल ।) (अल॰10.30.2)
498 फाँका (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..) (अल॰6:16.12)
499 फिन (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13)
500 फुसुर-फुसुर (~ बतिआना) (अल॰1:4.13)
501 फेरा (धत्, तूँ लोगन के फेरा में तऽ अभी तक येक पथिया घास तक न गढ़ पइलूँ । हम्मर भैंस येक तऽ जे सेर भर दूध दे रहल हे, उ भी लेके विसूख जात ।) (अल॰8:24.20)
502 फोटू (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.3)
503 बँसवेड़ी (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में ।) (अल॰5:12.28)
504 बंडा (जेकरा अट्ठारह विघा खेत हे उ आज्झ दाल-भात आउ पान चवावइत हे । एगो तूँ हऽ कि तोर देह में विआह के हरदी तक न लगलो । बंडा बैल बिहारी लाल के जय ।; तू तऽ बंडा हऽ, हमरा तऽ आठ गो बाल-बचा भी हे ।) (अल॰8:23.28, 24.14)
505 बइठकी (मजदूर सब एक होके अप्पन-अप्पन किसान के काम-धाम छोड़-छाड़ के पटना-कलकत्ता जाइला बउआ रहलन हल । किसान भी दूसर-दूसर गाँव के मजदूर से खेती करावे ला आपस में बइठकी पर बइठकी कर रहलन हल । मुदा मजदूर के संगठन बड़ मजगुत हल ।) (अल॰15.43.14, 15)
506 बउआ (हाँ बउआ, टोला-टाटी के चिट्ठी सुमितरी ही लिखऽ हइ ।) (अल॰10.32.3)
507 बउआना (मजदूर सब एक होके अप्पन-अप्पन किसान के काम-धाम छोड़-छाड़ के पटना-कलकत्ता जाइला बउआ रहलन हल ।) (अल॰15.43.13)
508 बटइया (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.12)
509 बटुरी (सुमितरी के माय बटेसर के आगे केला-मिरजइ आउर मकुनदाना खजुर के पत्ता के विनल बटुरी में देइत कहलक हल -"खाय से पहिले राख-भभूत लिलार में लगा लऽ ।") (अल॰7:22.1)
510 बड़का ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?" "हाँ, बड़का तऽ बाबू जी के साथ कलकत्ते में रहऽ हे ।") (अल॰6:17.23)
511 बड़गो (= बड़गर, बड़ा) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।; अब अलगंठवा के घर के इज्जत परतिष्ठा लेल एगो बड़गो सवाल हो गेल हल ।) (अल॰1:1.22; 12:36.12)
512 बड़ावर (देखऽ, बड़ावर में एगो साधु जी हथुन, उ जड़ी-बुटी के दवा करऽ हथिन । उनखर दवा बड़ी लहऽ हई । तूँ उनखा बड़ावर जरूर लेके जा ।) (अल॰6:17.13, 14; 9:27.9)
513 बढ़नी (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बढ़नी के बाम देखइलक हल ।) (अल॰1:4.8; 5:12.25)
514 बढ़ही (= बढ़ई) (होत परात फह फाटइत बढ़ही बुलायब हो राम । जड़ से कटायब जीमिरिया कि पलंग सलायब हो राम ॥ ताहि पर परभु क सुलायब धीरे-धीरे बेनिया डोलायब हो राम । सास मोर सुतलन अंगनमा ननद घर भीतर हो राम ॥) (अल॰11.34.12)
515 बतासा (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
516 बदनाम (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4)
517 बदमासी (= बदमाशी) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
518 बद्दल (हम्मर मतिए मारल गेलो हल । भाग्ग में जे बद्दल रहऽ हे उ होके रहऽ हे भाय ।) (अल॰8:23.22)
519 बनल (असंका ओकर माय के मन में बनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.6)
520 बमकना (ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ ।) (अल॰7:22.20)
521 बरहिली (रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे । अब उनखा पास एको कट्ठा खेत न बचऽ हे । अब दूसर के इहाँ बरहिली करऽ हथन ।) (अल॰8:23.9, 24.4)
522 बराना (सीत ~) (ओकरा में का हइ, कल्हे सितिया बराय के बाद अँटिया लेवहू अउर का । हम दूनो माय-बेटी ढो लेवो ।) (अल॰9:28.5)
523 बसता (= बस्ता) (कल होके अलगंठवा मखन आउ बासी रोटी खा के गंगा गुरु के गुरुपींडा पर झोला में बसता लेके सोझिया गेल हल) (अल॰1:3.30)
524 बाँटना-कूटना (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.12)
525 बाउर (अलगंठवा गुरुपींडा जायके बदले बकरी चरावे आउर संघतिअन के साथ खेले-कूदे में ही बाउर रहऽ हल ।) (अल॰1:3.8)
526 बाछना (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल जहाँ कुछ अउरत-मरद मोथा निकाल रहलन हल। कोय-कोय घना सरसों के साग के लेल बाछ रहलन हल ।) (अल॰7:21.2)
527 बाढ़ (= बढ़न्ती, शारीरिक विकास) ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे ।") (अल॰6:16.30)
528 बानी (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.8)
529 बाम (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बढ़नी के बाम देखइलक हल ।) (अल॰1:4.6, 9; 3:7.23; 5:12.19)
530 बिड़ार (सुमितरी के बाबू बटेसर अप्पन खेत में गेहूँ लगावे ला बिड़ार जोत रहलन हल ।) (अल॰7:21.3)
531 बिरहा (पानी में मछली के उछलइत देख के अलगंठवा एगो बिरहा सुमितरी के कंधा पर हाथ धर के तनी अलापलेके गइलक हल) (अल॰13.41.4, 8)
532 बिलाय (~ के तरह सूंघना) (देउकी पांडे तऽ बिलाय के तरह सूंघले चलऽ हका घरे भाय । कल्हे इनका एक दम पिला का देलूँ कि कानोकान वियावान कर देलका ।) (अल॰8:25.1)
533 बीमार-सिमार (पहिले कोय बीमार-सिमार पड़ऽ हल तऽ इसलामपुर पटना रोगी के ले जइते रस्ते में दम तोड़ दे हलन ।) (अल॰15.45.14)
534 बुड़ाना (देखऽ खेलामन भाय, तोर खेत के बुड़ावे में तोहर संघतियन के कम हाथ न हो ।) (अल॰8:23.25)
535 बुढ़ना (= बूड़ना) (बुढ़ल वंस कबीर के उपजल पूत कमाल ।) (अल॰4:12.13)
536 बुढ़बक (= बुड़बक) (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.27)
537 बुतरु (ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ ।) (अल॰7:22.19)
538 बुधगर (ई बड़ी बुधगर होतो भउजी । इया गंगा माय, हम्मर बाबू के निरोग रखिहऽ, नेहइते धोते एको केस न भंग होवे हम्मर पुतवा के ।) (अल॰6:16.27)
539 बुधिगर (= बुधगर) (चिट्ठी तऽ बड़ बुधिगर ढंग से लिखलक हे ।) (अल॰9:27.23)
540 बुमियाना (अपन माय के कफन में लपटल देख के अलगंठवा बुमिया के छाती में मुका मार के गरज-गरज के रोबे लगल हल ।) (अल॰11.33.28)
541 बुल-सन (इतने में नारायन माली रहड़ी के खेत से बुल-सन निकलइत बोल पड़लन) (अल॰8:25.10)
542 बुलाकी (नाक के नीचे एगो छेद आउर करवा लिहऽ जेकरा में नकवेसर इयानी बुलाकी पेन्ह लेबऽ तऽ आउर वेस लगबऽ ।) (अल॰13.39.24, 40.18)
543 बेअवारा (= अवारा) (सब के माय-बाप हपन बाल-बच्चा के हिदायत कर देलक हल कि अलगंठवा के साथ कोई भी म खेले-कूदे काहे कि उ लइका बेअवारा हे, न उ अपने पढ़त आउर न केकरो पढ़े देतइ ।) (अल॰2:5.1)
544 बेआन (= बयान) (सुमितरी के माय के अप्पन पति के बेआन करइत आँख डबडबा गेल हल ।) (अल॰6:17.10)
545 बेआर (= बयार) (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
546 बेनिया (= बेना या बिन्ना का अल्पा॰) (होत परात फह फाटइत बढ़ही बुलायब हो राम । जड़ से कटायब जीमिरिया कि पलंग सलायब हो राम ॥ ताहि पर परभु क सुलायब धीरे-धीरे बेनिया डोलायब हो राम । सास मोर सुतलन अंगनमा ननद घर भीतर हो राम ॥) (अल॰11.34.13)
547 बेर लुकलुकाना (सुमितरी कहलक हल कि अब संझौती देवे के समय हो गेल हे, जा हियो । अलगंठवा कहलक हल कि हाँ, बेर लुकलुका गेलो हे । सूरज भी डूबे जा रहलो हे ।) (अल॰13.41.18)
548 बैताल (अगिया ~) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.2)
549 बोजना (चिलिम में तम्बाकू ~; अचार ~) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।; अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰1:2.12; 12:37.6, 20)
550 बोथ (= बोत) (अलगंठवा के तरफ मुंह फेरइत सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, मत पूछऽ, कल ही न बुलाकी बहु वचा निछड़वइलके हे । संउसे लूगा-फटा खून से बोथ हो गेलइ हल । हँड़िया के हँड़िया खून गिरलइ हल । संउसे टोला हउड़ा कर देलकइ कि कच्चा उहरा हो गेलइ हे । मुदा सच बात छिपऽ हे ?") (अल॰13.40.21)
551 बोरसी (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
552 बोवारी (एगो बोवारी मछली अइसन उछलल कि पानी से एक वित्ता ऊपर उठ गेल हल ।) (अल॰13.41.2)
553 भउजी (सुमितरी के माय के नजर जब अलगंठवा के माय पर पड़ल हल तऽ हँसइत आउ पुलकइत पाऊँ लगी भउजी कहलक हल ।) (अल॰6:16.20)
554 भक्सन (= भक सन) (करीब दू कोस रस्ता तय करे के बाद सुरज महराज पूरब में भक्सन लाल दिखलाई पड़लन हल ।) (अल॰3:6.2)
555 भगत-बनिया (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे । भगत बनिया के पीछे भी कम खरच न कइलियो हे । मुदा कुछ न लहऽ हो ।) (अल॰6:17.10)
556 भगमान (= भगवान) (घर में सतनाराइन भगमान के कथा भी होयल हल । अइसे तऽ परतेक पुनिया के भगमान के कथा होवऽ हल ।; भगमान के देखे खातिर अप्पन आँख से चारो ओर हिआवे लगल कि कहीं से भगमान जी जरुरे देखाय देतन ।) (अल॰4:10.28, 11.10, 11)
557 भगलपुरिया (~ गांजा) (ए जजमान, हमरा हीं गांजा एकदमे ओरिया गेलो हे । सुनलियो हे कि तोहरा हीं भगलपुरिया गांजा हो । लावऽ न, येक चिलिम हो जाय ।) (अल॰8:24.27, 30)
558 भठियारा (भइया गुस्सा में अलगंठवा के दू तमाचा जड़इत कहलक हल - "ले रे भठियारा, सब परसादी तोंही खा जो । बाप रे बाप, सब एकबाघट कर देलकइ, बेहूदा-हरमजादा ।") (अल॰4:11.28)
559 भमाह (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन । आवल-गेल आउ टोला-टाटी के भी खिलाबऽ हलथिन । मुदा आज्झ कोठी-कोहा-कंटर खाली भमाह रह गेल ।) (अल॰12.36.27)
560 भविस्स (= भविष्य) (ओकरा लगऽ हल कि अब अलगंठवा के पढ़ाय-लिखाय बंद हो जात, आउर एकर वाद न जानी अलगंठवा के भविस्स का होयत ।) (अल॰13.38.14)
561 भसम (= भस्म) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.9)
562 भाग्ग (= भाग्य) (हम्मर मतिए मारल गेलो हल । भाग्ग में जे बद्दल रहऽ हे उ होके रहऽ हे भाय ।) (अल॰8:23.21)
563 भाय (= भाई) (अलगंठवा के बाबू इयानी कलकतिया बाबू, जे बारह बरिस के उमर में बूढ़ा बाप, चार बरिस के माय के टुअर भाय आउर अप्पन अउरत के नैहर में छोड़ के कलकत्ता चल गेलन हल ।; ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰1:1.9; 4:11.26; 8:23.21)
564 भिमिर (लाल ~) (कतकी पुनिया के चांद पूरब ओर लाल टह-टह होके आग के इंगोरा नियन इया कुम्हार के आवा से पक के लाल भिमिर हो के बड़गो घइला नियन उग रहल हल ।) (अल॰6:18.11)
565 भूत-मूंगा (कोय कहे कि रात-रात भर बगीचवा में डोलपत्ता खेलऽ हइ । ओकरा तनिको भूत-मूंगा से डर-भय न लगऽ हइ ।) (अल॰2:5.4)
566 भूतही (रस्ता में भूतही नदी पड़ल हल ।) (अल॰16.48.9)
567 भूरकुंडा (= भुरकुंडा) (तूँ घर में माय के सत्तू के भूरकुंडा बनावे ला कह दे । रोटी तऽ बनले हइए होतइ ।) (अल॰3:8.29)
568 भेली (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.24, 25)
569 भोकार (~ पार के रोना) (अलगंठवा चाचा जी में लपट के भोकार पार के रोवे लगल हल ।) (अल॰11.33.23)
570 भोजाय (= भौजाई) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.26)
571 भोरउआ (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.24)
572 भोरहरिए (बाप रे, केता सकेरे चललू हल कि भोरहरिए जुम गेलहु ।) (अल॰16.46.25)
573 मंगनी (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.7)
574 मंदिल ( = मंदिर) (मंदिल में करिया कोयला अइसन महादे जी के लिंग इयानी सिउलिंग गड़ल हे ।) (अल॰16:48.23, 49.26)
575 मइजना (= मैंजना) (लावऽ, गांजा हो तऽ मइजऽ हिओ, न तऽ तोहनी रहऽ, हम जा हियो ।) (अल॰8:24.22)
576 मकुनदाना (सुमितरी के माय बटेसर के आगे केला-मिरजइ आउर मकुनदाना खजुर के पत्ता के विनल बटुरी में देइत कहलक हल -"खाय से पहिले राख-भभूत लिलार में लगा लऽ ।") (अल॰7:22.1)
577 मखना (तेसर अमदी बोलल कि जे बड़ तेज रहऽ हे उ तीन जगह मखऽ हे ।) (अल॰4:12.8; 7:22.17)
578 मजगुत (= मजबूत) (मजदूर सब एक होके अप्पन-अप्पन किसान के काम-धाम छोड़-छाड़ के पटना-कलकत्ता जाइला बउआ रहलन हल । किसान भी दूसर-दूसर गाँव के मजदूर से खेती करावे ला आपस में बइठकी पर बइठकी कर रहलन हल । मुदा मजदूर के संगठन बड़ मजगुत हल ।) (अल॰15.43.15)
579 मटिआना (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.11)
580 मट्टी (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.11)
581 मनझान (जब अलगंठवा होस्टल आयल तऽ देखलक कि अलगंठवा के चचा मुँह मनझान कर के कुरसी पर बइठल हथ ।) (अल॰11.33.15; 12:37.23; 15:44.12)
582 मन्तर (= मन्त्र) (चितरलेखा, उस्सा के बात सुन के मन्तर के जरए दुआरका में सुतल अनिरुध के खटिया सहित उपाह के, उड़ा के उस्सा के राजमहल में ला देलक हल ।) (अल॰16:50.22)
583 मराना (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
584 मरुसी (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.8)
585 मलट्री (= मैट्रिक) ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?") (अल॰6:17.22; 10.30.2, 24, 31.19)
586 मलारना (सत्तू खाके इतमिनान से बइठ के खैनी चुनियाबइत सुमितरी के मलारइत बटेसर कहलक हल) (अल॰14.42.30)
587 मसगुल (= मशगूल) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.17)
588 माँग (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4)
589 माय (अलगंठवा के बाबू इयानी कलकतिया बाबू, जे बारह बरिस के उमर में बूढ़ा बाप, चार बरिस के माय के टुअर भाय आउर अप्पन अउरत के नैहर में छोड़ के कलकत्ता चल गेलन हल ।) (अल॰1:1.9)
590 माय-चच्चा (उ जेवार में कोय के अइसन घर न हल जेकरा हीं अलगंठवा के घर के लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही बंधिक न होत । माय-चच्चा आउर बाबू जी के मर जाय के वाद अलगंठवा के परिवार में घनघोर अंधेरा छा गेल हल ।) (अल॰12.35.23)
591 माय-बाप (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19; 2:4.29)
592 माय-बेटी (सुमितरी माय-बेटी घर से चौखट पर आके एने-ओने ताके लगल हल ।; ओकरा में का हइ, कल्हे सितिया बराय के बाद अँटिया लेवहू अउर का । हम दूनो माय-बेटी ढो लेवो ।; बटेसर के बात सुन के माय-बेटी हाथ में नेवारी के जउरी लेके खेत दने सोझिया गेल हल ।) (अल॰7:22.25; 9:28.6, 19)
593 मालिस (=मालिश) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
594 मिचाइ (= मिरचाई) (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6)
595 मिठाय (= मिठाई) (मिठाय खाय के बाद नन्हकू अलगंठवा के माय से पूछलक हल -"मेहमान तोहरे से मिले ला अइलथुन हे । कादो बड़ावर में कोय साधु हथिन जे जड़ी-बूटी के दवा करऽ हथिन । मेहमान के दमा के रोग हो गेलइ हे । तूँ कादो कोय साधु जी के वारे में जानऽ हु ?") (अल॰10.31.1)
596 मिरचाई (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.24)
597 मिरजइ (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.16, 16.12; 7:21.30, 22.9)
598 मिरतु (= मृत्यु) (छोटका भाय इयानी चचेरा भाय जेकरा लोग अलगंठवा के अप्पन सहोदर भाय ही जानऽ हलन । काहे कि चचेरा भाय चन्दर जब छो महीना के हल तवहिए चाची के मिरतु हो गेल हल ।) (अल॰12.35.27)
599 मिसतिरी (= मिस्त्री) (खेलामन के कहावत सुन के रघुनाथ मिसतिरी जे एक लमनी ताड़ी लेके अलग बैठ के पी रहलन हल, उ बोल पड़ल) (अल॰8:23.15)
600 मिसी (नन्हे के पीरितिया, आधी मिसी रतिया मचावऽ होतइ सोर । बरऽ होतइ गुगुदिया कि फड़कऽ होतइ सुगना आउ सुगनी के ठोर ॥) (अल॰10.32.24)
601 मुंह जमानी (= मुँहजबानी) (अलगंठवा से किताब के कविता-केहानी आउर हिसाब ~ पूछल गेल ।) (अल॰4:10.3)
602 मुठान (चिट्ठी पढ़ के अलगंठवा के मुठान ओकर आंख में नाच रहल हल ।) (अल॰9:28.16; 14:42.11)
603 मुदा (= लेकिन) (पहिले तऽ गाँव के लोग ठुल करऽ हल, मुदा अलगंठवा के समझावे पर बूढ़ पुरनियन के बात समझ में आवे लगऽ हल ।; अप्पन गाँव में भी लइकी सब के पढ़े खातिर इस्कूल खुल गेलइ हे । जेकरा में मास्टरनी भी पढ़ावऽ हइ । मुदा तोर बाप पढ़वे ला अवलदार होथुन त नऽ ।) (अल॰2:5.15; 5:13.21)
604 मुरझइनी (ओकर परिवार के चेहरा पर कभी मुरझइनी आउ उदासी कोय कभी न देखलक ।) (अल॰12.37.9)
605 मुरदघट्टी (उ का डागडर हथिन बाबूजी ? कउन कउलेज में पढ़लथिन हे । टो-टा के तऽ एक वित्ता में अप्पन लाम लिखऽ हथिन । अप्पन गाँव के कई लोगन के मुरदघट्टी पुवचा देलथिन हे । जहाँ पेड़ न बगान, उहाँ रेड़ परधान ।) (अल॰14.42.20-21)
606 मेराना (अदहन खदक रहलो हे । खाली चाउर-दाल मेराना बाकी हो ।) (अल॰16.47.11)
607 मेला-ठला (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.14)
608 मेहिन (= महीन) (मेहिन-मेहिन चमचम दाँत, सुगिया जइसन नाक, पुस्ट-पुस्ट दूनो बाँह - ई सब के बढ़इत आकार सबके मन मोह ले हल ।) (अल॰5:13.14, 14.6)
609 मेहुदना (जब घर में चाउर-दाल आ जाय तऽ अलगंठवा के भोजाय गोइठा-अमारी से चूल्हा फूंक-फूंक के सुलगावऽ हलन । बड़ी देर में मेहुदल गोइठा सुलगऽ हल तऽ कहीं जाके अदहन सुनसुना हल ।) (अल॰12.36.29)
610 मैंजना (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल । रगड़-रगड़ के वरतन मैंजे से उ अउरत के सँउसे देह हिल-डोल रहल हल ।) (अल॰3:6.8, 9)
611 मैंजना (हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही । मुदा दू कट्ठा में धान के पतौरी लगा देली हे । ओकरा अटियाना जरुरी हे । न तऽ कोय रात-विरात के उठा के ले भागतइ । गोपाली महरा के चार कट्ठा के पतौरी उठा के ले भागलइ । आउ उत्तर भरु खंधवा में ले जा के मैंज लेलकइ ।) (अल॰9:28.3)
612 मोटगर (जब पतौरी ढोवा गेलहल तऽ बटेसर नेहा-धो के खेसाढ़ी के साग आउ आलू के भात-भरता खा के कंधा पर येगो सूती के मोटगर चादर लेके वसन्तपुर जाय ला घर से निकले लगल) (अल॰9:29.22)
613 मोथा (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल जहाँ कुछ अउरत-मरद मोथा निकाल रहलन हल। कोय-कोय घना सरसों के साग के लेल बाछ रहलन हल ।) (अल॰7:21.1)
614 मोरी (खेत में धान के मोरी बढ़ के एकक हाथ के हो गेल हल ।) (अल॰15.44.12, 13)
615 येकन्नी (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
616 येकर (= एक्कर, इसके) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.2, 14)
617 रंथी (= अरथी) (अलगंठवा रोवइत-कनइत चाचा जी के साथ बस पर चढ़ के फतुहा इमलिया घाट पर पहुँच गेल हल । बड़ भाय के साथ-साथ गाँव के दस-बारह लोग रंथी के साथ अइलन हल । अपन माय के कफन में लपटल देख के अलगंठवा बुमिया के छाती में मुका मार के गरज-गरज के रोबे लगल हल ।) (अल॰11.33.27, 34.6)
618 रमाइन (रात के रमाइन भी पढ़ऽ हइ । जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3; 12:37.15)
619 रमुनिया (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
620 रहड़ी (इतने में नारायन माली रहड़ी के खेत से बुल-सन निकलइत बोल पड़लन) (अल॰8:25.10)
621 राख-भभूत (सुमितरी के माय बटेसर के आगे केला-मिरजइ आउर मकुनदाना खजुर के पत्ता के विनल बटुरी में देइत कहलक हल -"खाय से पहिले राख-भभूत लिलार में लगा लऽ ।") (अल॰7:22.2)
622 रात-विरात (हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही । मुदा दू कट्ठा में धान के पतौरी लगा देली हे । ओकरा अटियाना जरुरी हे । न तऽ कोय रात-विरात के उठा के ले भागतइ । गोपाली महरा के चार कट्ठा के पतौरी उठा के ले भागलइ । आउ उत्तर भरु खंधवा में ले जा के मैंज लेलकइ ।; दिन जमाना खराब बित रहल हे । रात-विरात अब चले के समय न हे ।) (अल॰9:28.2; 16:46.26)
623 रूखी (= गिलहरी) (अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰13.38.20, 39.8, 10, 11)
624 रेघाना (जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3)
625 रेड़ (उ का डागडर हथिन बाबूजी ? कउन कउलेज में पढ़लथिन हे । टो-टा के तऽ एक वित्ता में अप्पन लाम लिखऽ हथिन । अप्पन गाँव के कई लोगन के मुरदघट्टी पुवचा देलथिन हे । जहाँ पेड़ न बगान, उहाँ रेड़ परधान ।) (अल॰14.42.21)
626 रोवाना (गाड़ी खुले पर फिन अलगंठवा के दिमाग में माय के इयाद रोवावे लगल हल ।) (अल॰11.35.5)
627 लंगेसरी (धरती के सपूत धरती से अन्न उपजावे वालन मजदूर जे मजदूरी करके, झोपड़ी में का बरसात, का गरमी आउर जाड़ा, वारहो मास लंगेसरी वाना में अप्पन दिन काटऽ हथ, अधपेटे रह के दवा-दारू आउर अन्न-वसतर के लेल मरइत रहऽ हे ।) (अल॰15.44.18)
628 लंद-फंद (टिटिआय के जाय के बाद डिब्बा में बैठल लोग कहे लगलन कि टिटिआय अप्पन धोकड़ी भरे ला लंद-फंद करइत रहऽ हे ।) (अल॰6:15.15)
629 लउकना (तोहर निखरल-निखरल चेहरा चान जइसन लउक रहली हे ।) (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.28; 11:34.25)
630 लउलिन (गाँव के जजात आउर घर के अनाज चोरा के अप्पन पाठी के खिलावे में दिन-रात लउलिन रहऽ हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.20)
631 लगवान (घर में लगवान भी हइ । जतरा पर दही भी ।) (अल॰16.47.12)
632 लछमी (= लक्ष्मी) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
633 लजौनी (अलगंठवा के बात सुनके सुमितरी लजौनी घास नियर लजाइत अलगंठवा के तन-मन में सिकुड़इत कहलक हल -"धत्, तूँ तऽ तील के तार करके कोय चीज के बखान करऽ हऽ ।") (अल॰13.39.17)
634 लट्टियाना (सुमितरी काली मट्टी से अप्पन माथा रगड़-रगड़ के धोवे लगल हल । काहे कि ओकर लमहर-लमहर केस लट्टियाल हल । जेकरा कठौती में पानी लेके साफ कर रहऽ हल । ओकर पीठ येकदम उघारे हल ।) (अल॰5:12.16)
635 लथरना-पथरना (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
636 लपकल-धपकल (बटेसर भी अप्पन जनाना भीर से उठ के भीड़ दने लपकल-धपकल चल गेल हल ।) (अल॰7:22.25)
637 लफाना (सुमितरी जाय ला गोड़ बढ़इवे कइलक हल कि अलगंठवा ओकर बायाँ हाथ लफा के पकड़इत वांस के कोठी पर एगो कौआ अप्पन बचा (बच्चा) के मुंह में चारा बड़ परेम से डाल रहल हल ।) (अल॰13.40.13)
638 लमनी (= लबनी) (खेलामन के कहावत सुन के रघुनाथ मिसतिरी जे एक लमनी ताड़ी लेके अलग बैठ के पी रहलन हल, उ बोल पड़ल) (अल॰8:23.15)
639 लमहर (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.21; 5:12.16)
640 लसोढ़ा (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
641 लहकना (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12; 11:34.4, 6)
642 लहना (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे । भगत बनिया के पीछे भी कम खरच न कइलियो हे । मुदा कुछ न लहऽ हो ।) (अल॰6:17.10, 14)
643 लहरना (सुमितरी सीऽऽऽसीऽऽऽ करइत कहलक हल - "एता जोड़ से नाक अंइठ देलऽ कि लहरे लगल । छोड़ऽ, अब हम जाही ।") (अल॰13.40.27)
644 लाम (= नाम) (उ का डागडर हथिन बाबूजी ? कउन कउलेज में पढ़लथिन हे । टो-टा के तऽ एक वित्ता में अप्पन लाम लिखऽ हथिन । अप्पन गाँव के कई लोगन के मुरदघट्टी पुवचा देलथिन हे । जहाँ पेड़ न बगान, उहाँ रेड़ परधान ।) (अल॰14.42.20)
645 लास (= लाश) (डागडर के बुलावे के पहिले ही दम टूट गेलइ । लास फतुहा आयल हो । माय के मुँह में आग तोहरे देवे पड़तो । काहे कि छोट बेटा ही आग दे हे ।) (अल॰11.33.20, 34.8, 27)
646 लाहरी ("न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।" आखिर अलगंठवा माय से लाहरी करके चले ला तइयार होइए गेल ।) (अल॰6:14.16)
647 लिख (= लीख) (सुमितरी के माय अप्पन माथा से एगो लिख पकड़ के बाँया हाथ के अंगूठा के नाखून पर दहिना हाथ के अंगूठा से पुट-सन मारइत कहलक हल) (अल॰7:22.12)
648 लिट्टी (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.6)
649 लुकलुकाना (सुमितरी कहलक हल कि अब संझौती देवे के समय हो गेल हे, जा हियो । अलगंठवा कहलक हल कि हाँ, बेर लुकलुका गेलो हे । सूरज भी डूबे जा रहलो हे ।) (अल॰13.41.18)
650 लूगा-फटा (अलगंठवा के तरफ मुंह फेरइत सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, मत पूछऽ, कल ही न बुलाकी बहु वचा निछड़वइलके हे । संउसे लूगा-फटा खून से बोथ हो गेलइ हल । हँड़िया के हँड़िया खून गिरलइ हल । संउसे टोला हउड़ा कर देलकइ कि कच्चा उहरा हो गेलइ हे । मुदा सच बात छिपऽ हे ?") (अल॰13.40.20)
651 लूर (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.6)
652 लेखा (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.21)
653 लेल (= लिए; इ लेल = इसलिए) (अल॰6:19.14)
654 लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही (उ जेवार में कोय के अइसन घर न हल जेकरा हीं अलगंठवा के घर के लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही बंधिक न होत । माय-चच्चा आउर बाबू जी के मर जाय के वाद अलगंठवा के परिवार में घनघोर अंधेरा छा गेल हल ।) (अल॰12.35.22)
655 लोढ़ी-पाटी (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6, 7)
656 लोहरउनी (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.8)
657 वतकुच्चन (= बतकुच्चन) (कभी-कभी अलगंठवा के माय-बाप में वतकुच्चन हो जा हल । तऽ माय एगो कहाउत कहऽ हल -"मइया के जिया गइया निअर आउ बपा के जिया कसइया निअर ।") (अल॰12.36.7)
658 वरन (= वर्ण, रंग) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20)
659 वारना (= बारना, जलाना) (सुमितरी ढिवरी वार के चिट्ठी लिखे लगल) (अल॰9:28.21)
660 विआ (= बिआ, बीज) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.7)
661 विआना (= ब्याना, बियाना) (एक समय अइसन भी हल कि ओकर घर में सचो के दूध-दही के नदी बहऽ हल । एगो भैंस इया गाय विसखा जा हल तऽ एगो विआ जा हल ।) (अल॰12.36.16)
662 विआवान (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल । फिन कानों-कान विआवान हो जात हल ।) (अल॰3:6.1)
663 विआह-सादी (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.16)
664 विघा (= बिगहा, बीघा) (बटेसर के तीन विघा खेत हल ।; रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰7:21.4; 8:23.8)
665 विदमान (= विद्वान्) (तूँ भी पढ़-लिख के विदमान बन जा, हम येही आसीरवाद दे हियो ।) (अल॰4:9.5)
666 विदुर (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.14)
667 वियावान (= बियाबान) (देउकी पांडे तऽ बिलाय के तरह सूंघले चलऽ हका घरे भाय । कल्हे इनका एक दम पिला का देलूँ कि कानोकान वियावान कर देलका ।) (अल॰8:25.3)
668 विसखाना (एक समय अइसन भी हल कि ओकर घर में सचो के दूध-दही के नदी बहऽ हल । एगो भैंस इया गाय विसखा जा हल तऽ एगो विआ जा हल ।) (अल॰12.36.17)
669 विसूखना, विसूख जाना (धत्, तूँ लोगन के फेरा में तऽ अभी तक येक पथिया घास तक न गढ़ पइलूँ । हम्मर भैंस येक तऽ जे सेर भर दूध दे रहल हे, उ भी लेके विसूख जात ।) (अल॰8:24.22)
670 वैर (= बैर) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.31)
671 सँउसे (= सउँसे) (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल । रगड़-रगड़ के वरतन मैंजे से उ अउरत के सँउसे देह हिल-डोल रहल हल ।) (अल॰3:6.9)
672 संघ (= संग) (तोहर संघे गाँव में लुका-छिपी आउर अनेकन खेल खेले के इयाद हम न भूलली हे ।) (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.29)
673 संघतिआ (= संगतिया, संगी-साथी) (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.25, 3.8)
674 संझौती (सुमितरी कहलक हल कि अब संझौती देवे के समय हो गेल हे, जा हियो । अलगंठवा कहलक हल कि हाँ, बेर लुकलुका गेलो हे । सूरज भी डूबे जा रहलो हे ।) (अल॰13.41.17)
675 सइंतना (सब के येगो झोला में सइंत के चले लगल तऽ अलगंठवा के मन में इयाद पड़ल कि ..) (अल॰4:11.6)
676 सकदम (नन्हकू ई बात सुन के सकदम हो गेल हल ।) (अल॰3:7.25)
677 सकेत (= संकीर्ण) (मंदिल में घुसे के आउ निकले के रस्ता बड़ सकेत हे । लोग के हेले-निकले में बड़ दिक्कत होबऽ हे ।) (अल॰16:48.26)
678 सकेरे (= सबेरे) (बाप रे, केता सकेरे चललू हल कि भोरहरिए जुम गेलहु ।) (अल॰16.46.25)
679 सगर (कुंआरी सुमितरी के मांग में सेनुर देवे के हउड़ा सगर मचल हल ।; अलगंठवा के तीसरा पास के सरटिफिकेट मिले के खबर सगर फैल गेल हल ।; सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰1:3.18; 4:10.25; 6:19.10)
680 सचो (एक समय अइसन भी हल कि ओकर घर में सचो के दूध-दही के नदी बहऽ हल । एगो भैंस इया गाय विसखा जा हल तऽ एगो विआ जा हल ।) (अल॰12.36.16; 15:45.29)
681 सटकना (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.21)
682 सतनाराइन (= सत्यनारायण) (घर में सतनाराइन भगमान के कथा भी होयल हल ।) (अल॰4:10.27, 30)
683 सत्तू (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.5)
684 सनिचरा (आज सनिचर के दिन हल, गुरुजी के सनिचरा देवे ला माय आधा सेर गेहूँ दे देलक हल ।) (अल॰4:8.35, 9.13)
685 सपरना (सुमितरी के माय खुस होयत कहलक हल - "हम सपर के तोहरा आउर अलगंठवा के लेके अइवो ।") (अल॰6:20.17)
686 सबुरी (मुसिवत झेले के हिम्मत भी अलगंठवा के परिवार में कुट-कुट के भरल हल । सबुरी-सन्तोस के जिन्नगी परिवार सब काट रहलन हल ।) (अल॰12.38.2)
687 समान (= सामान) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.1; 6:15.20)
688 सरधा (= श्रद्धा) (हम जरुर चाहऽ ही कि सुमितरी पढ़-लिख के समाज के लेल कुछ करे । हमरा ओकरा पर सरधा जरुर हे ।) (अल॰10.32.20)
689 सरसती (= सरस्वती) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
690 सरिआना (इंस्पेक्टर के देखइत ही गुरुजी हप्पन बही-खाता सरिआवे लगलन हल ।) (अल॰4:9.17; 6:15.20; 12:37.21)
691 सलाइ (रघुनाथ अप्पन जेभी से दू गो वीड़ी निकाल के फक-सन्न सलाइ जला के वीड़ी सुलगा के एगो वीड़ी रामखेलामन के ओर बढ़ावइत आउर एगो बीड़ी अप्पन मुंह में दवाबइत कहलक हल) (अल॰8:23.23)
692 सलाना (= सालना का प्रयो॰ रूप) (होत परात फह फाटइत बढ़ही बुलायब हो राम । जड़ से कटायब जीमिरिया कि पलंग सलायब हो राम ॥ ताहि पर परभु क सुलायब धीरे-धीरे बेनिया डोलायब हो राम । सास मोर सुतलन अंगनमा ननद घर भीतर हो राम ॥) (अल॰11.34.13)
693 सले-सले (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.5; 13:38.22, 26)
694 सहजीरवा (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26)
695 सांप-बिच्छा (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.16)
696 सादी (= शादी) (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल । दहेज के भी बड़गो-बड़गो परलोभन देल जा रहल हल । मुदा अलगंठवा सादी करे ला अवलदार न होबऽ हल ।) (अल॰16.46.9)
697 सानी (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.25; 15:44.10)
698 सामर (= साँवला, श्यामल) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20)
699 सामी (येक वेर के केहानी हे कि अलगंठवा के माय पुनिया के सतनाराइन सामी के पूजा खातिर परसादी लावे ला अलगंठवा के रुपया देलन हल ।) (अल॰4:10.30)
700 सालन ("वाह बेटी, ओल के तरकारी खाय ला बड़ी दिन से मन ललचा रहल हल ।" तरकारी मुँह में लेइत बटेसर कहलक हल - "अरे, इ तऽ एकदम सालन के कान काटऽ हइ । ओल के तरकारी मांस से कम न होबऽ हे ।") (अल॰9:27.1)
701 सावा (= सवा) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9)
702 सिकाइत (= शिकायत) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
703 सितला माय (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19)
704 सिनरी (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
705 सिनूर (= सेनूर, सेनुर) (बाप रे बाप, उ छउड़ा अगिया बैताल हइ । कुंआरी लड़की के मांग में सिनूर दे दे हइ ।) (अल॰2:5.3)
706 सिरिस (बटेसर अप्पन खेत के एक चास लगा के सिरिस के पेड़ तर सुस्ता रहलन हल ।) (अल॰7:21.8)
707 सिलाय (= सिलाई) (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल) (अल॰1:1.11)
708 सीत (ओकरा में का हइ, कल्हे सितिया बराय के बाद अँटिया लेवहू अउर का । हम दूनो माय-बेटी ढो लेवो ।) (अल॰9:28.5)
709 सी-सी (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.25)
710 सुकर (= शुक्र) (भोर के पहर हम तोहरा पास पाती लिख रहलियो हे । तीन डंड़िया एकदम माथा पर हो । आउर सुकर महराज भी पछिम रुखे अकास में चमचम कर रहलो हे ।) (अल॰9:28.26)
711 सुगबुगाना (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में । उ इयाद भी सुमितरी के सुगबुगा दे हल ।) (अल॰5:12.29)
712 सुतना (फिन चिट्ठी के अप्पन छाती तर दवा के कोनिया घर सुते ला चल गेल हल ।) (अल॰9:28.19)
713 सुथर (= सुत्थर) (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.5)
714 सुनताहर) (जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3)
715 सुनसुनाना (जब घर में चाउर-दाल आ जाय तऽ अलगंठवा के भोजाय गोइठा-अमारी से चूल्हा फूंक-फूंक के सुलगावऽ हलन । बड़ी देर में मेहुदल गोइठा सुलगऽ हल तऽ कहीं जाके अदहन सुनसुना हल ।) (अल॰12.36.30)
716 सुन्नर (= सुन्दर) (सुमितरी के चिट्ठी पढ़ के हमरा बुझा हो कि ओकरा पढ़े के जेहन हो । केता सुन्नर अच्छर में चिट्ठी लिखलको हो । जरुर उ पढ़तो ।) (अल॰10.31.30; 13:39.20)
717 सुन्नरता (देखऽ सुमितरी, इ अमरूद के भीतर छिपल सुन्नरता अप्पन दाँत से उसका-उसका के निखार देलक हे) (अल॰13.39.14; 16:50.19)
718 सुपती (फिन सुमितरी झिटकी से सुपती के मैल छुड़ा-छुड़ा के नेहाय लगल हल ।) (अल॰5:12.23)
719 सुभवगर (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.5)
720 सुभाविक (= स्वाभाविक) (जीमन में बिघन-बाधा तऽ आना सुभाविक हे ।) (अल॰6:19.20)
721 सुरत, सुरता (= स्मृति; सुध, याद) (अप्पन मरद के बात सुन के सुमितरी के माय अकचका के बोलल हल -"हाय राम, हमरो कोय बात के इयादे न रहऽ हे, तुरते सुरते से भूला जाही ।") (अल॰9:27.14)
722 सुस्ताना (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.19; 7:21.8)
723 सेआन ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे ।") (अल॰6:16.29)
724 सेआना (मुदा हाँ बेटी, फिन अइसन काम कभी मत करिहऽ । अब तूँ सेआन होते जा रहलऽ ह ।) (अल॰3:7.30)
725 सेनुर (= सेनूर, सिनूर) (कुंआरी सुमितरी के मांग में सेनुर देवे के हउड़ा सगर मचल हल) (अल॰1:3.18)
726 सेनूर (= सेनुर, सिनूर) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.3)
727 सेर (आज सनिचर के दिन हल, गुरुजी के सनिचरा देवे ला माय आधा सेर गेहूँ दे देलक हल ।) (अल॰4:8.35)
728 सेवा-सुरसा (= सेवा-शुश्रूषा) (सुमितरी पढ़वो करतो आउर तोहनी दूनो परानी के सेवा-सुरसा भी करतो ।) (अल॰10.31.21)
729 सोंटना, सोंट जाना (अरे, हमनि दूनो तऽ राम मिलावल जोड़ी, येक अंधा येक कोढ़ी हइए हऽ । हम ताड़ी के चलते अट्ठारह विघा फुक देली तऽ तूँ गांजा के चलते नौ विघा । गांजा के चिलिम पर गुल बना के सोंट गेलऽ ।) (अल॰8:24.14)
730 सोंप-जीरा (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.24)
731 सोचन्त (दूनों के बात काटइत देउकी पांडे बोल पड़न हल - छोड़ऽ उ सब बात, गतन्त के सोचन्त का । गंजवा जल्दी निकालऽ ।) (अल॰8:24.18)
732 सोझियाना, सोझिया जाना (कल होके अलगंठवा मखन आउ बासी रोटी खा के गंगा गुरु के गुरुपींडा पर झोला में बसता लेके सोझिया गेल हल) (अल॰1:3.31; 3:8.4; 9:29.20)
733 सोमारी (~ पुनिया) (अल॰16.47.1, 49.20)
734 सोहाना (= अच्छा लगना) (अलगंठवा के दूध कहियो न सोहा हल ।) (अल॰12.36.20)
735 सौख (= शौक) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
736 सौखिन (= शौकीन) (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.7)
737 सौरियल (येगो बड़ सौरियल हल गांजा के पिवइया । उ घर से परदेस चल गेल हल । तऽ उ अप्पन अउरत के पास एगो पाती लिखलन - "जल थम वैराग रस, पथक वाहन सोय । ओही चीज हमरा भेज देऽ, जे नया साल के होय ॥) (अल॰8:25.18)
738 हंसीली पसली (जब नन्हकू आम के पेड़ तर बैठ के खैनी लगा रहल हल तऽ कपसल जइसन होके सुमितरी नाना से कहे लगल हल - "नाना, नानी तऽ बढ़नी से मारते-मारते सउंसे देह में बाम उखाड़ देवे कइलक हे, मुदा घर पर सेनूर वाला बात सुन के मइया आउ बाबू मारते-मारते हंसीली पसली एक कर देतन ।") (अल॰3:7.25)
739 हउड़ा (= हौरा, हौड़ा, कोलाहल, सुनगुन, अफवाह) (कुंआरी सुमितरी के मांग में सेनुर देवे के हउड़ा सगर मचल हल) (अल॰1:3.18)
740 हउल (धम-धम-धड़ाम के अवाज से इलाका सिहर रहल हल । सबके कलेजा हउल-हउल कर रहल हल ।) (अल॰15.44.3)
741 हजामत (थानू हजाम से हजामत बनवा के गंगा में अस्नान करके आउर उतरी पहन के माय के मुँह में आग देवे से पहिले घाट के डोम से हुजत होल हल ।) (अल॰11.34.1)
742 हथौड़ा (= हथौना) (तरबन्ना में एक हथौड़ा ताड़ी लेके रामखेलामन जी विना चखना के पी रहलन हे ।) (अल॰8:23.10; 26.17)
743 हदर-बदर (गाड़ी खुले के सिटी सुन के हदर-बदर गाड़ी में घुसे लगलन हल ।) (अल॰6:14.26)
744 हदिआना (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.7)
745 हदिया देना (अलगंठवा अप्पन घर के अइसन धच्चर देख के कभी-कभी एकान्त में रो जा हल । माय-बाबू आउ चचा जी के इयाद रोबा दे हल, हदिया दे हल ।) (अल॰12.37.5)
746 हदियाना (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.26)
747 हर-पालो (चलऽ, तूँ बैलवा-भैंसवा हाँकले चलऽ । हम हर-पालो लेके आवइत हियो । हब कल एगो चास आउर करके गेहुँ बुन के चौकिया देवइ ।) (अल॰7:21.23, 26)
748 हरसज (बटेसर अप्पन गाँव के गोवरधन गोप से हरसज करके खेत अवाद कर रहलन हल ।) (अल॰7:21.5)
749 हरहोर (ई बात सुन के घर के आंगन में भरल-पूरल परिवार हरहोर करे लगऽ हलन ।) (अल॰12.37.30)
750 हरिअर (~ कचूर) (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे ।; धरती के सिंगार हरिअर कचूर मोरी दुलार विना टुअर जइसन टउआ रहल हल ।) (अल॰8:22.30; 15:44.13)
751 हवर-दवर (सुमितरी नरियर के तेल हवर-दवर माथा में चपोत रहल हल ।) (अल॰16.47.21)
752 हहियाना (हवा में गरमी लग रहल हल । ओकरा में भी पछिया हवा हहिया रहल हल ।) (अल॰3:7.16)
753 हिंछा (= इच्छा) (तोहर चिट्ठी सुन के हम्मर बाबू जी आउर माय के भी हमरा पढ़वे के हिंछा हो गेलो हे) (अल॰1:3.4; 9:29.4; 16:47.19)
754 हिआना (अलगंठवा खड़ा होके होके टुकुर-टुकुर ऊ झूंड में अप्पन चितकबरी पाठी के हिआवऽ हल / निहारऽ हल ।; भगमान के देखे खातिर अप्पन आँख से चारो ओर हिआवे लगल कि कहीं से भगमान जी जरुरे देखाय देतन ।) (अल॰1:3.2; 4:11.11)
755 हिदायत (~ करना) (सब के माय-बाप अपन बाल-बच्चा के हिदायत कर देलक हल कि अलगंठवा के साथ कोई भी म खेले-कूदे काहे कि उ लइका बेअवारा हे, न उ अपने पढ़त आउर न केकरो पढ़े देतइ ।) (अल॰2:4.30; 4:11.1)
756 हिसाब-किताब (सच बात छप्पर पर चढ़ के गुदाल करऽ हे । इ बात खाली बुलाकी वाली के साथ ही न हे, बल्कि सौ में अस्सी अउरत-मरद के एही हिसाब-किताब हे ।) (अल॰13.40.26)
757 हुजत (= हुज्जत) (थानू हजाम से हजामत बनवा के गंगा में अस्नान करके आउर उतरी पहन के माय के मुँह में आग देवे से पहिले घाट के डोम से हुजत होल हल ।) (अल॰11.34.2)
758 हुलकी (~ मारना) (खाली चुनाव के समय नेता आबऽ हे, आउर जात-पात कर-करा के, आपस में लड़ा के बोट लेके नेता बन जा हे, फिन पटना-डिल्ली विराजते रहऽ हे पाँच बरिस तक । ओकर पहिले कोय थोड़े हुलकी मारऽ हे भला ।) (अल॰15.45.20)
759 हेलना (= घुसना) (अलगंठवा अप्पन माय के हाथ पकड़ के गाड़ी के डिब्बा में हेल गेल हल ।; लास जब पूरा जर गेल तऽ थोड़ा-सा कलेजा करकरा रहल हल तऽ ओकरा कपड़ा में बांध के कमर भर पानी में हेल के लोग परवह कर देलन हल ।) (अल॰6:14.28; 11:34.28; 16:48.26, 28)
760 हेस-नेस (तोहर नाना जी से बराबर तोहर हेस-नेस पूछइत रहली हे ।) (अल॰6:18.30)

2 comments:

शिक्षामित्र said...

पढना कष्टप्रद है। कृपया फोंट साइज बढाएं।

नारायण प्रसाद said...

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