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Tuesday, March 31, 2009

4. मगही उपन्यास "गोदना" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

मगही उपन्यास "गोदना" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

गो॰ = "गोदना" (मगही उपन्यास) - श्रीकान्त शास्त्री (डॉ॰ रामनन्दन द्वारा पूरा कैल); प्रथम संस्करणः जून 1978; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5; मूल्य - 4 रुपया 20 पइसा; कुल 4 + 48 पृष्ठ । प्राप्ति-स्थानः बिहार मगही मंडल, V-34, विद्यापुरी, पटना-800 020.

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।




अँकुराना (गो॰ 1:10.3)
अँकुरी (गो॰ 5:27.9)
अँगुर, अँगुरी (गो॰ 1:10.17)
अँगेजना (गो॰ 11:48.28)
अँचरा (गो॰ 1:10.8; 6:28.26)
अँचरा डँसाना (गो॰ 2:15.1)
अँटकर लगाना (गो॰ 7:33.18)
अँधार (गो॰ 4:23.4)
अँधार (गो॰ 8:36.14)
अइँगी-भइँगी (गो॰ 10:45.15)
अइटा, अइँटा (गो॰ 4:21.8, 18)
अइसन (गो॰ 1:2.27, 28, 3.11, 20, 4.29)
अइसन-अइसन (गो॰ 6:32.8)
अइसहीं (गो॰ 11:46.21)
अकठकाठ (गो॰ 5:26.32)
अकवार (गो॰ 2:14.26)
अखनी (गो॰ 1:10.1, 2; 3:18.27; 9:39.31, 41.19)
अखरा (गो॰ 10:45.9)
अग-जग (गो॰ 1:5.2)
अगरचेत (गो॰ 1:6.6, 9.14; 5:26.1)
अगार-पगार (गो॰ 1:5.3)
अचक्के (गो॰ 2:11.18, 14.27)
अच्छोधार (गो॰ 1:1.17, 2.3)
अछते (गो॰ 3:18.27)
अठमा (गो॰ 3:16.30)
अठमी (गो॰ 4:20.16)
अददी (गो॰ 1:9.17, 10.20)
अद-बद (गो॰ 2:12.26)
अदमी (गो॰ 2:12.19)
अधछोछा (गो॰ 1:6.19)
अनइ (गो॰ 1:7.14)
अनझटके (गो॰ 7:35.25)
अनमखाना (गो॰ 7:34.16)
अनुभो (गो॰ 2:12.30; 9:42.1)
अनोर (गो॰ 5:23.31)
अन्हार (गो॰ 10:45.11)
अपरेसन (गो॰ 1:2.5; 2:12.4, 5)
अप्पन (गो॰ 5:26.17, 30)
अप्पन-अप्पन (गो॰ 7:33.26)
अबरी (गो॰ 1:11.15; 4:23.7; 6:29.6)
अबहियों (गो॰ 1:2.21)
अमउरी (गो॰ 3:16.18, 19)
अमदी (गो॰ 1:1.27, 9.25)
अमरलत्तर (गो॰ 4:21.2)
अरइ (गो॰ 1:8.18)
अरउ (गो॰ 1:8.18)
अरराना (गो॰ 1:6.25)
अलपजीउ (गो॰ 2:14.8)
अलोपित (गो॰ 10:44.9)
अल्ल-बल्ल (गो॰ 1:5.24)
असमान में गुम होना (गो॰ 8:39.16)
आ (= और) (गो॰ 2:13.32)
आगु, आगू (गो॰ 2:15.19, 21, 28; 3:18.30)
आगू-आगू (गो॰ 6:29.4)
आज्झ, आझ (गो॰ 1:10.32, 11.6; 3:16.3)
आन बघारना (गो॰ 7:33.26)
आन्ध-बान्ध (गो॰ 1:6.26)
आबुन-बाबुन (गो॰ 3:19.1)
आरी (गो॰ 1:8.25; 3:16.17)
आल अगहन फूलल गाल, गेल अगहन सटकल गाल (गो॰ 3:17.23-24)
इ, ई (गो॰ 1:4.19, 9.19, 11.10; 2:14.12, 15.6, 15)
इँजोर (गो॰ 4:23.4)
इकसना (गो॰ 1:11.7, 2:12.5; 4:21.31)
इनकारी (= इन्क्वायरी) (गो॰ 7:35.9)
इलोत (गो॰ 10:44.13)
इस्कोलरसिप (गो॰ 5:25.12, 18)
इहँई (गो॰ 7:35.11)
इहउँ (गो॰ 10:45.1)
इहाँ (गो॰ 1:10.29; 4:22.3)
ईंटा-खपड़ा (गो॰ 4:21.3)
उ, ऊ (गो॰ 1:3.32, 4.6, 17, 18, 20, 22, 23...)
उँचका (गो॰ 5:26.15)
उक्खड़-खावड़ (गो॰ 1:11.10)
उगला से डुबला ला (गो॰ 2:15.11-12)
उजुर (गो॰ 4:21.27)
उज्ज-बिज्ज (गो॰ 7:35.2)
उज्जर (गो॰ 5:26.23)
उठान (गो॰ 3:17.19)
उड़ेरना (गो॰ 6:28.26)
उढ़कल बुलना (गो॰ 7:34.5)
उतरबारी (गो॰ 10:45.30)
उतारन-पुतारन (गो॰ 2:15.11)
उताहुल (गो॰ 11:47.15)
उदेरा थान (गो॰ 3:17.25)
उनका, उनखा (गो॰ 1:4.14, 17)
उपदरो (गो॰ 7:34.13)
उप्पर होना (गो॰ 2:13.1)
उप्पर-उप्पर (गो॰ 4:22.12)
उभन-चुभन (गो॰ 2:14.32)
उरिन (गो॰ 3:17.15)
उरीन (गो॰ 6:30.32)
उलटे बेंगा उपटन लागे (गो॰ 7:36.10)
उहँइ (गो॰ 2:14.15)
उहईं (गो॰ 11:46.8)
उहाँ, ऊहां (गो॰ 1:2.10; 6:31.32; 11:48.13)
ऊभ-चूभ (गो॰ 2:15.13)
एकबग्गा (गो॰ 5:27.8)
एकर (गो॰ 2:13.4)
एकरा (= इसको) (गो॰ 1:2.23; 2:12.3, 4)
एकामन (गो॰ 1:9.30)
एक्कर (गो॰ 2:12.20, 14.3)
एक्के (गो॰ 2:13.27; 3:16.10; 5:26.30)
एक्को (गो॰ 1:11.7; 3:15.25; 10:43.28)
एतना (गो॰ 6:30.21, 29)
एतना-एतना (गो॰ 6:32.4-5)
एनहीं-ओनहीं (गो॰ 6:29.24)
एन्ने (गो॰ 5:24.5; 7:36.8)
एन्ने-ओन्ने (गो॰ 9:42.15)
एही (गो॰ 6:33.1; 7:36.11)
एहू (गो॰ 3:19.5)
ओइसन (गो॰ 2:12.15)
ओइसहीं (गो॰ 2:11.23)
ओइसहीं (गो॰ 2:12.4)
ओकनी (गो॰ 10:45.13)
ओकर (= उसका) (गो॰ 1:4.10, 25)
ओकरा (= उसको) (गो॰ 1:2.28, 3.20, 27, 4.3, 17, 4.30.....)
ओकरो (= उसको भी) (गो॰ 1:2.28)
ओखनी (गो॰ 10:43.15)
ओज्जे (गो॰ 8:36.16)
ओतना (गो॰ 6:32.6)
ओदा (गो॰ 4:21.13)
ओनहीं (= उधर ही) (गो॰ 1:5.4; 10:45.28)
ओन्ने (गो॰ 9:42.26)
ओसर (गो॰ 3:17.14)
ओसर (गो॰ 3:19.23; 5:23.31)
ओहँइ (गो॰ 6:32.3)
ओहनिन (गो॰ 10:45.24)
ओही (गो॰ 3:19.32; 10:44.9)
औंगारी (गो॰ 4:23.6)
औखत (गो॰ 5:25.30)
औली-चौली (गो॰ 2:12.26, 32)
औसर (गो॰ 1:4.31)
औसान (= आसान) (गो॰ 1:3.4)
औसो के (गो॰ 2:15.17)
कंझिला (गो॰ 5:24.13)
कंटोर (गो॰ 5:24.27)
कइथिन (गो॰ 1:9.16)
कइसन (गो॰ 1:3.1)
कइसन-कइसन (गो॰ 7:34.30)
कइसहुँ (गो॰ 3:17.24, 25)
कइसहुँ-कइसहुँ (गो॰ 3:17.14)
कइसहूँ (गो॰ 8:39.1; 10:43.18)
कक्कुट (गो॰ 6:28.32)
कखनियों (गो॰ 4:22.15, 27; 6:30.8)
कखनियों ... कखनियों (गो॰ 6:30.10-11)
कखनी (गो॰ 5:25.31; 6:29.1; 10:43.27, 44.15)
कखनी (कखनियों-कखनियों) (गो॰ 2:12.6, 8; 3:19.3, 8; 6:30.7)
कचराकूट (गो॰ 5:25.4)
कछार (गो॰ 2:14.31)
कटोरा-गिलास (गो॰ 5:23.30)
कट्ठे मन (गो॰ 4:21.26)
कठनाइ (गो॰ 2:14.2)
कठुआ जाना (गो॰ 3:15.26)
कढ़ुआ (गो॰ 1:11.13)
कनकट (गो॰ 1:10.17)
कनझटके (गो॰ 5:24.26)
कनाड़ (गो॰ 9:39.24)
कनी (गो॰ 6:30.28)
कपसना (कपसे के) (गो॰ 1:4.30)
कब-कब करना (गो॰ 7:33.29)
कबराइ (गो॰ 3:17.9)
कबहियों ... कबहियों (गो॰ 6:32.23; 9:39.29)
कबहियों-कबहियों (गो॰ 2:12.14)
कबहुँ-कबहुँ (= कभी-कभी) (गो॰ 1:3.4)
कबहुओं (गो॰ 1:11.6)
कबहुओं-कबहुओं (गो॰ 1:8.16-17)
कबहूँ-कदाल (गो॰ 2:13.15, 23)
कभी-कधाक, कभी-कदाक (गो॰ 8:39.10-11; 9:40.32)
कमासुत (गो॰ 6:28.24)
कमिअइ (गो॰ 3:17.8)
कर मोर के चल देना (गो॰ 5:24.23)
करजा-पइँचा (गो॰ 1:7.15; 3:18.6)
करजा-रीन (गो॰ 6:33.6)
करिया अच्छर भइँस बरोबर (गो॰ 4:22.30-31)
कल-बल (गो॰ 1:3.23)
कलमी (गो॰ 1:10.17; 6:28.13)
कल्ह (गो॰ 1:3.16)
कल्हे-परसुन (गो॰ 1:9.3)
कहलाम (गो॰ 3:18.7)
कहिना (गो॰ 6:31.15)
कहिनो (गो॰ 2:13.6; 4:23.19; 5:24.29)
कहिनो कदाक (गो॰ 7:36.2)
कहियो (= कभी) (गो॰ 1:7.14)
कहुँ-कहुँ (= कहीं-कहीं) (गो॰ 1:1.7)
कहूँ से कहूँ (गो॰ 2:15.7)
काँस-कुस (गो॰ 1:6.7)
काटना-पीटना (गो॰ 3:17.9)
काठ मारना (गो॰ 6:31.10-11)
काड़ा सुद पर पइसा देना (गो॰ 6:32.26)
कातिक (गो॰ 6:27.19)
कातो (गो॰ 3:19.7; 5:24.13; 7:35.4, 9)
कार-गोर (गो॰ 1:9.25)
काहाँ (गो॰ 8:38.6)
काहे (गो॰ 3:19.32)
किदोड़ (गो॰ 2:13.30)
किनना (गो॰ 10:44.17)
किरिंग (गो॰ 4:20.14)
किसनमाँ, किसनमा (गो॰ 6:27.22, 26)
किसमिल्ला (गो॰ 4:23.7)
किसुन (गो॰ 1:9.7)
कुअंक (गो॰ 10:43.26)
कुइयाँ (गो॰ 1:10.25; 5:24.31, 27.4; 7:33.30)
कुकुअत (गो॰ 5:27.2)
कुच-कुच अँधरिया (गो॰ 1:1.6; 2:11.30)
कुच-कुच करिया (गो॰ 4:23.3)
कुटुम (गो॰ 7:34.2)
कुट्टी-कुट्टी (गो॰ 10:45.20)
कुड़कुड़ाना (गो॰ 6:32.12)
कुन-मुन (गो॰ 6:32.11)
कुरखेत (गो॰ 1:6.6)
कुरचना (गो॰ 5:25.26)
कुलबुलाना (गो॰ 7:34.16)
कुल्लम (गो॰ 1:7.18)
के (= कौन) (गो॰ 5:26.9)
केउ (गो॰ 3:19.2)
केकर (= किसका) (गो॰ 1:6.31)
केकरो (= किसी को) (गो॰ 1:2.29, 3.6)
केकरो कुत्ता काटना (गो॰ 6:32.13)
केतवा, केतना (गो॰ 1:10.26, 31; 3:18.30; 5:26.7)
केतारी (गो॰ 1:9.28, 11.15; 3:16.10, 18.33; 7:35.15)
केराव (गो॰ 1:11.12)
केवाड़ी, केवाँड़ी (गो॰ 1:3.15, 17, 4.1, 7, 15, 17; 2:11.18, 19, 21, 29, 31; 8:37.15,....)
केहानी (गो॰ 1:6.19, 20)
कोंहड़ा (गो॰ 1:11.16)
कोइला (गो॰ 4:21.8)
कोर-घोंट (गो॰ 5:25.4)
कोरसिस (गो॰ 1:8.15; 3:15.31)
क्वाटर (गो॰ 1:1.16; 2:13.10, 14.14; 11:47.9)
खँघारना (गो॰ 1:10.24)
खटासिन (गो॰ 3:17.27)
खदना (गो॰ 1:7.20)
खनी (गो॰ 1:4.6)
खन्डा (गो॰ 4:23.17)
खरकन (गो॰ 1:3.14)
खरिहान (गो॰ 6:32.5)
खल-खल (गो॰ 1:2.31)
खाड़ा (गो॰ 1:3.14, 4.7, 19)
खात (गो॰ 9:40.1)
खिल-खिल (गो॰ 1:2.31)
खुफिया-तुफिया (गो॰ 2:14.7)
खेत-पथार (गो॰ 1:6.26-27)
खेसाड़ी (गो॰ 1:8.29; 3:18.12, 31, 19.6)
खोंटना (खोंटल) (गो॰ 1:8.7)
खोढ़रा (गो॰ 4:21.14)
खोरठा (गो॰ 1:10.6)
खोराक (गो॰ 4:22.20; 6:29.28)
खोवे से मन भारी होवऽ हे आउर रोवे से मन हल्लुक (गो॰ 1:1.18-19)
गछना (गो॰ 5:23.31)
गड़इऔल (गो॰ 1:9.29)
गब-गब (सीला के पास न हब हल न गब) (गो॰ 6:30.6)
गबड़ा (गो॰ 1:7.21)
गरजे (खाय के गरजे भी आउर प्यार के गरजे भी) (गो॰ 5:25.8, 9)
गरान (गो॰ 1:4.26)
गरियाना (गो॰ 8:38.16)
गरीब-गुरबा (गो॰ 8:36.23)
गरीबाइन (गो॰ 1:6.1)
गाँड़ी-भाँड़ी (गो॰ 1:10.2)
गाँव-जेवार (गो॰ 3:18.21)
गान्ही मैदान (गो॰ 9:41.31)
गाम (गो॰ 8:37.17)
गायडाँढ़ (गो॰ 1:7.13)
गारना (गो॰ 3:15.25)
गारी-गरपारा (गो॰ 8:36.29, 37.7)
गारी-भाँड़ी (गो॰ 1:8.19-20)
गिनना-गूथना (गिन-गूथ के) (गो॰ 4:23.12)
गियारी (गो॰ 11:46.34)
गिरहस (गो॰ 1:9.29)
गिलास (= क्लास) (गो॰ 1:10.4)
गिल्ला (=गीला) (गो॰ 1:2.29)
गिल्ला के गिल्ले (=गीला का गीला ही) (गो॰ 1:2.29)
गुंडा-लखेरा (गो॰ 7:34.20)
गुने (गो॰ 5:27.10; 7:36.11)
गुल-गुल (गो॰ 1:1.5)
गुलुर-गुलुर (गो॰ 11:47.14-15)
गूह-कादो (गो॰ 1:8.21)
गोड़ के चुटियो के भी कहना न टालना (गो॰ 3:17.6)
गोड़-मुड़ परना (गो॰ 3:16.32; 6:27.22)
गोड़िआना (गो॰ 7:35.20)
गोतिया (गो॰ 5:27.1)
गोतिया-नइया (न गोतिया न नइया) (गो॰ 6:29.19)
गोनारे (गो॰ 1:6.31; 4:20.25)
गोर बुराक (गो॰ 5:23.26-27)
गोरइया बाबा (गो॰ 1.7.4,5)
गोर-नार (गो॰ 8:37.1; 9:39.25)
गोहार (गो॰ 9:42.20)
गोहुम-चाउर (गो॰ 3:18.18)
गौंढ़ा (गो॰ 4:21.27)
घटाघट (गो॰ 10:45.5)
घनर-घनर (गो॰ 2:12.10)
घर-अँगना (गो॰ 7:33.23)
घर-दुआर (गो॰ 7:33.24)
घरी में घोर आउर नौ घड़ी भदरा (गो॰ 5:25.31)
घाट नेहा देना (गो॰ 4:22.17)
घिऔड़ा (गो॰ 5:25.5)
घीउ-तेल (गो॰ 3:18.12)
घुघनी (गो॰ 10:45.4)
घुनुर-घुनुर (गो॰ 3:16.15)
घुरना (गो॰ 11:47.30)
घुराना (गो॰ 5:25.4)
घुरियाना (घुरियायल) (गो॰ 4:21.2)
घुसुर-फुसुर (गो॰ 10:46.1)
घूर आना (गो॰ 5:25.3)
चंडलहा (गो॰ 10:43.28)
चउँका (गो॰ 1:8.6)
चख-चख (गो॰ 4:21.7)
चटकन (गो॰ 1:8.4)
चढ़ुआ (गो॰ 1:11.13)
चनका (गो॰ 1:9.19)
चनमा (गो॰ 5:24.6)
चमइन (गो॰ 3:19.3)
चमकल चलना (गो॰ 1:2.24)
चमकल बुलना (गो॰ 1:2.2-3)
चहकल (गो॰ 1:4.4)
चाँन (गो॰ 1:7.28)
चाँनी, चानी (गो॰ 1:5.22; 4:23.16)
चान (गो॰ 4:20.16)
चाल-ढाल (न चाल में चमक, न ढाल में ढकोसला) (गो॰ 2:12.22-23)
चास लगाना (गो॰ 3:18.28)
चाह (= चाय) (गो॰ 1:3.33; 2:11.26; 5:25.6)
चिकना (घीउ) (गो॰ 3:18.20)
चिक्कन (गो॰ 1:1.19; 4:22.25; 6:28.26)
चिटकी (गो॰ 3:18.2)
चिड़काना (गो॰ 7:35.12)
चित्त (= चीत) (गो॰ 5:24.7)
चिन्नी (गो॰ 3:19.7)
चिरू (गो॰ 10:44.7)
चीन्हना (गो॰ 1:9.4)
चीरना-फारना (गो॰ 4:22.5)
चील्ह (गो॰ 1:11.7)
चुकिया (गो॰ 7:36.4)
चुपका कारन (गो॰ 2:12.2)
चुहियो के दमाद प्यारा होवऽ हे (गो॰ 5:25.7-8)
चूमना-चाटना (चूम-चाट के) (गो॰ 4:20.30)
चेरा (गो॰ 5:25.17)
चेहरा पर बारह बजना (गो॰ 6:28.22-23)
चौरसिया (गो॰ 4:22.13; 5:27.7-8)
चौलबाजी (गो॰ 8:38.30)
चौला (गो॰ 7:35.10)
छँउड़ी, छौंड़ी (गो॰ 7:33.23, 24)
छठी के दूध ऊपर करना (गो॰ 6:32.15)
छत्तरछाया (गो॰ 5:26.4)
छन (गो॰ 1:2.10)
छनमातर (गो॰ 10:45.22)
छहरी (गो॰ 3:16.18)
छाँक (गो॰ 3:18.31)
छाड़न (गो॰ 4:20.33)
छाती फाड़ के कमाना (गो॰ 3:17.3)
छावा-छित्त (गो॰ 1:1.10)
छिपनी (गो॰ 1:8.5)
छुअन (गो॰ 6:28.14)
छुद्दुर (गो॰ 4:21.21)
छुलच्छन (गो॰ 1:2.6)
छूँछ (गो॰ 1:4.1)
छौंड़-छपाटी (गो॰ 7:35.8)
छौंड़ा (गो॰ 1:4.10, 9.3)
छौनी (गो॰ 4:21.7)
जखनिएँ .... तखनिएँ (गो॰ 5:26.4-5)
जखनी (गो॰ 4:22.10, 23.16; 5:23.28, 25.23, 26.4)
जतकट्टी (गो॰ 7:34.1)
जतन (गो॰ 10:44.23, 45.24; 11:47.3, 33)
जन्ने (गो॰ 1:5.4)
जमदुतिया (गो॰ 2:14.12)
जमान (गो॰ 3:17.7)
जमानी (गो॰ 3:19.9)
जरना (गो॰ 5:27.10)
जरन्त (गो॰ 6:32.19)
जरलाहा (गो॰ 5:24.32)
जरी (गो॰ 5:25.32)
जलम (गो॰ 1:9.15; 5:25.24)
जलमना (गो॰ 2:15.2)
जलमौताहर (गो॰ 10:46.3)
जहर-डकरा (गो॰ 7:35.3)
जहाना (= जहानाबाद) (गो॰ 4:21.5, 22.19)
जहिना (गो॰ 9:41.25)
जहिया ... तहिया (गो॰ 10:43.28-29)
जान कोंहड़ा के बनल होना (गो॰ 7:33.30)
जारना (गो॰ 1:10.19)
जिनकर (= जिनका) (गो॰ 1:7.5)
जिनगी (गो॰ 1:5.26, 27; 2:12.20)
जीमन (गो॰ 1:6.9)
जुआनी (गो॰ 1:1.6; 3:19.4)
जुकुत, जुकुर (गो॰ 1:1.26)
जुगुत (गो॰ 6:27.20)
जुर्त्ती झारना (गो॰ 5:25.29)
जे (= जो) (गो॰ 1:2.27, 4.18; 2:15.14)
जे ... से (= जो ... सो) (गो॰ 1:5.2)
जेकरा (= जिसको) (गो॰ 1:2.29, 4.29, 30)
जेभी (गो॰ 6:30.16)
जेहलखाना (गो॰ 4:23.15)
जोग (गो॰ 1:9.18; 3:15.30)
जोड़ियाना (गो॰ 1:1.3, 4,5)
झकरा (गो॰ 6:30.9)
झझंक (गो॰ 8:37.22)
झझक (गो॰ 2:13.15)
झझर (गो॰ 1:8.10)
झारना (गो॰ 9:43.1)
झिटकी (गो॰ 3:18.4)
झीट (गो॰ 7:35.20)
झुट्टा करना (गो॰ 7:34.6)
झुट्ठा (गो॰ 1:1.7)
झुट्ठो (गो॰ 9:40.5)
झुरझुरी (गो॰ 2:11.21)
झोलंगा (गो॰ 5:24.7)
झोल-फोल (गो॰ 10:45.8)
टघरना (गो॰ 10:44.34)
टन (गो॰ 1:2.10)
टभक (गो॰ 2:12.3)
टभकन (गो॰ 9:43.9)
टभकना (गो॰ 2:12.3)
टालना-टूलना (टाल-टूल देलक) (गो॰ 3:20.4)
टिकरी (गो॰ 1:7.14; 3:18.11)
टिपनी (गो॰ 7:33.18)
टिरेनी (= ट्रेनिंग) (गो॰ 11:47.8)
टीउवेल, टिब्बुल (गो॰ 3:18.4)
टीसन (गो॰ 3:17.5)
टुघरना (गो॰ 10:44.27)
टूसा (गो॰ 3:16.14; 6:28.31)
टोका-टोकी (गो॰ 3:18.1)
टोला-पड़ोस (गो॰ 5:24.1-2)
टोला-महल्ला (गो॰ 6:29.18; 8:38.15)
ठकमका जाना (गो॰ 2:11.26-27)
ठकमुरकी (गो॰ 8:36.22; 11:48.5)
ठगना-ठुगना (ठग-ठुग के) (गो॰ 9:39.27)
ठमकना (ठमकल) (गो॰ 2:11.27)
ठह-ठुह के (गो॰ 1:9.4)
ठुनुकना (गो॰ 5:24.8)
ठोप (गो॰ 1:10.26; 3:16.24, 18.13; 6:29.23, ...)
डँहजर (गो॰ 3:20.4)
डकदरनी (गो॰ 1:2.6)
डगरिन (गो॰ 5:26.32)
डाँक (गो॰ 1:7.5)
डाकदर (गो॰ 1:2.4, 13, 18; 2:12.21)
डाबर (गो॰ 3:18.28)
डिंड़ी (गो॰ 1:11.12)
डिमडाम बाँधना (गो॰ 7:35.21-22)
डोरियाना (डोरियायल जाना) (गो॰ 7:35.28)
ढहल-फूटल (गो॰ 4:22.3)
ढुरकना (गो॰ 6:28.26)
ढुर-ढुर (गो॰ 1:1.19)
ढेर देरी (गो॰ 1:1.20)
ढेह (गो॰ 1:5.20; 2:15.6)
तइयो (गो॰ 3:17.4; 9:40.15)
तइसहीं (गो॰ 6:32.2)
तखनी (गो॰ 2:11.20; 5:25.24)
तनि (गो॰ 1:3.33)
तनिक्को (गो॰ 8:36.25)
तनुआँ भनुआँ के (गो॰ 4:20.21-22)
तबर (गो॰ 4:23.5)
तबरी (गो॰ 6:29.20)
तर (गो॰ 2:14.17)
तरसा जाना (कट जाना) (गो॰ 1:10.22)
तरेगन (गो॰ 1:1.8)
तसली (गो॰ 1:10.17)
तहिया (गो॰ 10:43.29)
ताला-कुंजी (गो॰ 8:37.9)
तितिम्मर (गो॰ 7:34.4)
तिनडिड़िया, तिनडड़िया (गो॰ 4:20.16)
तिलंगी (गो॰ 9:40.9)
तिलक (गो॰ 1:9.30; 4:21.29)
तिल-सँकरात (गो॰ 1:7.24)
तीज-तेवहार (गो॰ 3:18.10)
तीत (गो॰ 9:42.29)
तुम्मा फेरी (चोर चोरी छोड़ दे हे बाकि तुम्मा फेरी कहाँ छोड़ऽ हे (गो॰ 2:13.17)
तुरसी (गो॰ 5:25.32)
तोहनी (गो॰ 5:27.10)
थारी-लोटा (गो॰ 5:23.30)
थूकम-फजीहती (गो॰ 8:39.5)
दंद, दन (गो॰ 3:18.32)
दइब (= दैव) (गो॰ 5:25.28)
दत्ती लगना (गो॰ 3:17.30)
ददा (गो॰ 5:27.7)
दनुआँ-भनुआँ (गो॰ 1:6.23)
दन्ने (गो॰ 2:11.19)
दबकाना (गो॰ 7:35.9)
दबाई-उबाई (गो॰ 6:29.6)
दबाई-बीरो (गो॰ 1:2.4; 4:22.23)
दरिआव (गो॰ 2:14.2, 15.13)
दरोगा-सिपाही (गो॰ 8:37.30)
दहँजना (गो॰ 2:14.8; 6:30.30)
दही-भूरा (गो॰ 5:23.25)
दाँते-रसे (गो॰ 6:28.3)
दाम कउड़ी (गो॰ 6:27.31)
दाहा (गो॰ 2:13.24)
दिन दुपहरिये (गो॰ 1:8.23)
दिया (= के बारे में) (गो॰ 7:36.3)
दिरिस (गो॰ 10:44.1)
दुआर (गो॰ 3:19.28; 10:43.13)
दुआरी (गो॰ 1:10.8)
दुखम-सुखम (गो॰ 5:23.23, 24)
दुन्नू (गो॰ 1:9.11; 2:14.22, 23)
दुर (गो॰ 1:8.18)
दुर बिहुनौठी ! (गो॰ 1:6.14)
दुरदुराहट (गो॰ 1:8.17)
दुरनाम (गो॰ 7:34.1)
दुहारी (गो॰ 3:18.26)
दूध के धोवल (गो॰ 7:34.26)
देबन, देमन, देवन (नाम) (गो॰ 2:14.12, 19, 26)
देवमुन (गो॰ 1:9.31)
देवसुन (गो॰ 6:30.33)
दोकान-उकान (गो॰ 10:44.16)
दोसालो से जाड़ा कट्टऽ हे आउर गेंदरो से; जाड़ा बरोबरे गिरऽ हे (गो॰ 3:17.20-21)
धउगना (गो॰ 10:45.21)
धउड़ना (गो॰ 1:8.31; 6:27.25)
धक्कम-धक्की (गो॰ 8:36.22)
धन (= धन्य) (गो॰ 6:32.17, 18)
धनपत पोआर धुन्नऽ हे, आउर लछमी के नाम गोबर हे (गो॰ 1:2.16)
धमधमियाँ तेल (गो॰ 4:21.31)
धयल न थम्हाना (गो॰ 4:21.30-31)
धरे न थमाना (गो॰ 4:21.11-12)
धी-पुतोह (गो॰ 1:2.1)
धुमइल (गो॰ 1:1.20)
धुर्रा उड़ जाना (गो॰ 8:36.24)
धूप (धुप्पे में) (गो॰ 6:30.4)
धूर (गो॰ 5:26.17, 18)
धूर-जानवर (गो॰ 1:7.20)
नजीक (गो॰ 6:31.18)
नतिनदमाद (गो॰ 4:22.8)
नतीजा करना (गो॰ 6:31.11)
नदारथ (गो॰ 1:9.20)
नरस (गो॰ 4:22.5)
नहिरा (गो॰ 1:9.29)
नाता-पुरजा (गो॰ 3:17.5)
नान्ह (गो॰ 1:1.27; 4:21.6)
नाया (गो॰ 1:3.28)
नाया नोहर (गो॰ 3:19.20)
नारा (गो॰ 8:36.15)
निकासना (गो॰ 1:10.9)
निचिंत (गो॰ 4:20.29)
निबाह देना (गो॰ 5:23.23)
निब्बर (गो॰ 2:12.13)
नियन, नीयन, नियर, नीयर (गो॰ 1:1.7, 8, 16, 2.1, 18, 3.9, 14)
निसहारी (गो॰ 1:6.15)
निसा (= नशा) (गो॰ 2:12.12; 8:36.28, 37.2)
निस्सा (गो॰ 10:46.1)
नीन (गो॰ 1:1.11)
नीबर (गो॰ 8:36.24)
नीमक (गो॰ 1:4.2)
नीमन (गो॰ 1:1.27, 2.3, 3.1; 3:18.19; 6:27.28)
नीमन-नीमन (गो॰ 8:36.17)
नून (गो॰ 3:18.13, 19.6, 19; 7:36.1)
नून, कानून आउर पतलून नियर सस्ता (गो॰ 4:22.16-17)
नेतागिरी के तिलंगी असमान में खिलाना (गो॰ 9:40.9-10)
नेमान (गो॰ 1:7.17)
नेहाल (गो॰ 1:7.3)
नोख्सा (गो॰ 9:41.20, 21)
नोन-तेल (गो॰ 3:19.21)
नौ नतीजा करना (गो॰ 1:8.27-28)
पंचाने (एगो नदी के नाम) (गो॰ 1:6.23)
पंजा, पांजा (गो॰ 3:16.17)
पइला (गो॰ 3:19.19)
पइसना (गो॰ 1:2.1)
पइसा-कउड़ी (गो॰ 6:29.13)
पकवे-चोकवे में (गो॰ 3:19.15)
पकिया (गो॰ 5:26.19)
पचमा (गो॰ 10:45.29)
पटरी पड़ना (गो॰ 9:39.31)
पटहेरा के दोकान (गो॰ 8:36.15)
पटावन जोटावन (गो॰ 4:21.25-26)
पट्टे पड़ जाना (गो॰ 2:11.32)
पढ़ना-गुनना (पढ़े-गुने लगलन) (गो॰ 4:21.4)
पढ़ल-गुनल (गो॰ 8:37.21-22; 9:39.25)
पढ़ाना-गुनाना (गो॰ 9:40.1)
पढ़ुआ (गो॰ 1:10.5; 5:25.6)
पत्थर पर खोदल लकीर (गो॰ 9:42.22)
पत्थल (गो॰ 3:17.11)
पथिया (गो॰ 3:16.19)
पनरह (गो॰ 4:23.13)
पनरिहिया (गो॰ 6:31.27)
पनहा (गो॰ 5:26.18)
पनिगर (गो॰ 10:44.7)
पमन (= पवन) (गो॰ 1:3.20)
परकाना (गो॰ 7:34.15)
पर-पहुना (गो॰ 3:17.30)
परवह, परवाह (गो॰ 10:45.18)
परसादी (गो॰ 2:14.4)
परावेट (= प्राइवेट) (गो॰ 9:40.13)
परीछना (गो॰ 5:27.11)
परोग्राम (= प्रोग्राम) (गो॰ 9:40.18)
पवित्तरी (गो॰ 5:23.25)
पसेब (गो॰ 5:26.32)
पसेवा (गो॰ 5:24.9)
पहिलका (गो॰ 8:37.31)
पहिले-पहिल (गो॰ 1:11.14)
पहुनमा (गो॰ 5:25.3)
पहुना-पछझरिआ (गो॰ 3:18.14)
पाछे (गो॰ 6:28.30; 7:33.21; 8:37.30; 11:48.18)
पाठी (गो॰ 1:6.32)
पाठी-खस्सी (गो॰ 1:7.2)
पान-पत्ता (गो॰ 6:32.5)
पानी पर पारल लकीर (गो॰ 9:42.21)
पाही (गो॰ 3:17.32, 18.29)
पिछुलना (गो॰ 11:47.14)
पिराना (= पीड़ा देना, दर्द करना) (गो॰ 1:3.25)
पुक्का (पुक्का फाड़ के रोना) (गो॰ 2:12.1)
पुछार (एगो के पुछार जाहीं देवे के चाही) (गो॰ 5:24.16)
पुनियाँ (गो॰ 4:23.11, 12)
पुन्न (गो॰ 1:7.5)
पुरखाइन (गो॰ 4:20.23)
पुरनका (गो॰ 4:20.20; 7:35.20)
पुरवइया (गो॰ 3:16.4)
पूछना-मातना (गो॰ 1:2.3-4)
पूछ-मात (गो॰ 10:43.32)
पूल पीटना (गो॰ 6:31.1)
पेंड़-बगाद (गो॰ 1:6.28; 4:20.24)
पेट-मुँह चलना/ सुरू होना (पेटे-मुहें सुरू भे गेल) (गो॰ 6:27.24, 28.20)
पेमन (गो॰ 3:18.2)
पैदा, पयदा (गो॰ 3:17.24, 26)
पैर के धरती घूमना (गो॰ 7:33.31)
पोंछडोलवा (गो॰ 5:27.14)
पोआर (गो॰ 1:2.16)
पोखटी (गो॰ 6:30.10)
पोरना (गो॰ 3:18.5)
पोरा-पोरी (गो॰ 5:24.29-30)
पोसल-पालल (गो॰ 7:34.1)
पोहर (गो॰ 1:6.7)
फट चढ़ने न देना (गो॰ 4:23.3)
फटाक दबर (गो॰ 10:45.21)
फटाक सिन (गो॰ 2:11.31)
फनाना (डेग फनयबे न करे) (गो॰ 6:28.1)
फरना-फूलना (फरे-फूले) (गो॰ 5:27.1)
फरागत (गो॰ 1:3.13)
फस्ट (गो॰ 5:25.12; 9:39.19)
फाँफर (गो॰ 2:11.21)
फिकार (गो॰ 4:23.7)
फिन (गो॰ 8:36.28)
फिरन्टे (गो॰ 7:35.17)
फींचना (गो॰ 1:7.19)
फेंटुआँ (गो॰ 1:9.32)
फोंय-फोंय (गो॰ 4:20.29)
बकना-झकना (गो॰ 2:13.22)
बखत (गो॰ 4:23.20)
बखत-बखत (गो॰ 3:16.4)
बगलगीर (गो॰ 9:40.6)
बजड़ी (गो॰ 1:2.24; 2:14.13)
बजाप्ता (गो॰ 11:47.8)
बज्जड़ (गो॰ 1:8.28)
बज्जर (गो॰ 4:20.14)
बड़, बड़का (गो॰ 1:1.25, 29, 2.18, 3.5)
बड़का-बड़का (गो॰ 1:2.5, 9)
बड़-जेठ (गो॰ 5:24.23)
बड़ाई-अड़ाई (गो॰ 5:27.2)
बड़ी (= बहुत) (गो॰ 1:2.19; 5:25.13, 16, 21)
बतकुच्चन (गो॰ 8:39.7)
बतवनवा (गो॰ 9:41.13)
बतास (गो॰ 2:15.7)
बत्तर (गो॰ 1:8.15)
बद-बउरहिया (गो॰ 1:10.19)
बनरी (गो॰ 3:20.8)
बनल-ठनल (गो॰ 4:22.9)
बनुआ (बाहर के बनुआ) (गो॰ 6:28.24)
बप्पा (गो॰ 5:25.21, 27.6, 9)
बम बोलना (गो॰ 6:31.3)
बरतन-बासन (गो॰ 2:11.25, 15.9)
बर-बेमारी (गो॰ 1:4.12)
बर्हम (गो॰ 7:34.26)
बलुक (गो॰ 11:47.10)
बसिआना (बसिआयल) (गो॰ 1:4.2)
बहान (= बहन) (गो॰ 8:38.13)
बहिया-बयल (गो॰ 5:27.14)
बाँही (गो॰ 8:38.25)
बाकि (गो॰ 1:2.11, 26, 3.5, 16, 19, 24, ....)
बाजा बजना (गो॰ 8:37.19)
बाजी (एक्के बाजी पार अइटा) (गो॰ 4:21.8, 9; 9:41.4)
बाड़ा (गो॰ 2:12.21, 30, 14.3; 5:25.21)
बाड़ा-बड़ुआ, बड़ा-बड़ुआ (गो॰ 1:1.25; 2:13.8, 14.13; 6:33.1; 8:36.18, 37.2)
बात छीलना (गो॰ 7:34.27)
बादर (गो॰ 1:3.19; 2:11.19, 32)
बादिस (गो॰ 1:5.1, 9.10, 11; 8:36.30)
बान्ह (गो॰ 11:48.4)
बान्हना (गो॰ 1:10.29; 2:14.13)
बाप-माय (गो॰ 3:19.21; 6:31.3-4; 7:33.25)
बाभनी (गो॰ 1:9.15)
बारना (= जलाना) (गो॰ 1:9.18)
बालाबुरुद (गो॰ 1:6.27)
बाला-बुरूद (गो॰ 4:20.26)
बासल (गो॰ 2:13.17)
बिअहुती, बिहउती (गो॰ 4:23.16)
बिख (गो॰ 1:11.3)
बिगहा (= छोटा गाँव) (गो॰ 4:20.33; 5:26.29)
बिगहा (= बीघा) (गो॰ 1:11.15)
बिचार-आचार (गो॰ 2:12.19)
बिजुली बत्ती (गो॰ 4:21.25)
बिदकाही (गो॰ 4:23.1)
बिदोरना (गो॰ 5:26.31)
बिन गाँगो झूमर ! (गो॰ 8:38.23)
बियान (गो॰ 3:18.20)
बिलाई (गो॰ 1:6.15)
बिसवरिया (गो॰ 3:17.14; 5:23.30)
बिहान (बिहनऽहीं से) (गो॰ 6:29.2)
बिहुनाठी मुँहाठेठी (गो॰ 5:24.24)
बिहुनी (गो॰ 7:36.7)
बिहुनौठी (गो॰ 1:6.14)
बीरो (सभ दवाई, सभ बीरो) (गो॰ 3:16.7)
बुकनी (गो॰ 3:18.13)
बुढ़भेभसी (गो॰ 5:27.1)
बुढ़ारी (गो॰ 5:27.7)
बुताना (गो॰ 3:18.14; 5:26.7)
बुनियाँ (गो॰ 5:24.12)
बुलना (गो॰ 4:22.12; 5:24.30)
बुलना-चलना (बुल-चल के) (गो॰ 1:10.28)
बूँट-जौ (गो॰ 3:18.18)
बून (= बून्द) (गो॰ 1:2.29, 3.21, 9.19)
बेंचा (गो॰ 1:7.22)
बेअग्गर (गो॰ 8:36.26, 38.23)
बेकती (गो॰ 7:33.24)
बेकारे (गो॰ 6:30.27)
बेजाय (गो॰ 2:15.3; 6:33.5; 9:42.25)
बेतहास (गो॰ 1:1.9)
बेपढ़ुआ (गो॰ 7:34.31)
बेमार (गो॰ 1:2.19)
बेरा (गो॰ 4:20.16)
बेस (गो॰ 1:4.21; 6:32.28)
बैल-धूर (गो॰ 3:18.28)
बैले-बैल बिकना (गो॰ 3:18.18)
बोकर-बोकर के रोना (गो॰ 5:24.12)
बोकराती (गो॰ 5:26.3)
बोझा-पंजा (गो॰ 3:17.33)
बोलना-चालना (न ओकरा से बोलऽ हे, न चालऽ हे) (गो॰ 6:33.2-3)
भँजाना (नोट आदि) (गो॰ 6:29.13)
भगमान (गो॰ 1:4.20, 9.6, 7)
भगमान साले-साल पैदा देथ, कइसहुँ मरतय-धरतय दिन जयबे करत (गो॰ 3:17.24-25)
भयामन (गो॰ 5:24.1, 17)
भर दुफरिया (गो॰ 4:20.11)
भलुक (गो॰ 1:6.11)
भाँड़ के रखना (गो॰ 7:36.10)
भाओ (गो॰ 10:44.22; 11:47.11)
भाग (= भाग्य) (गो॰ 3:19.24, 25; 5:25.23, 28)
भिजुन (गो॰ 8:36.27; 11:47.16, 19)
भितरहीं-भितरे (गो॰ 10:43.26)
भिरी, भीरी (गो॰ 1:6.24; 2:11.29; 2:12:26, 27; 11:48.2)
भुँजड़ी-भुँजड़ी (गो॰ 1:5.3)
भुइयाँ (गो॰ 1:8.6; 2:13.30; 6:30.20, 31.8; 7:34.20)
भुइयाँ देख के चलना (गो॰ 7:34.20)
भुक-भाक (बिजली के) (गो॰ 1:1.7)
भुक्खल-पियासल (गो॰ 5:24.23-24)
भुखले-पियासले (गो॰ 1:8.30)
भुतही (गो॰ 1:6.31)
भुरकुस (गो॰ 1:7.3)
भुरभुर (गो॰ 1:5.23)
भुसड़ी (गो॰ 1:8.29)
भूरा (गो॰ 3:19.7)
भेंट न घाँट आउ हमहीं फुलनमा बहू (गो॰ 1:10.1)
भेंट-घाँट (भेंट न घाँट) (गो॰ 1:10.1; 9:41.1)
भोंकइया (गो॰ 6:30.24)
भोंकरना (गो॰ 8:37.2)
भोंड़ (गो॰ 1:9.14)
भोकुंदर (गो॰ 4:22.18)
भोराना (गो॰ 4:20.31)
मँगिया-जरउनी (गो॰ 1:6.18)
मइँजना (गो॰ 1:7.19)
मइया (गो॰ 6:28.24, 29.30, 30.30)
मगह (गो॰ 1:6.22)
मगही (गो॰ 3:17.2)
मचिकाना (गो॰ 6:28.18)
मचिया (गो॰ 4:22.14)
मजूर (गो॰ 1:8.15)
मजूरी (गो॰ 3:18.26)
मन मारे आउ पेट सुखावे, तब टका के भेंट करावे (गो॰ 3:18.23-24)
मनबढ़ुआ (गो॰ 3:16.25)
मनबढ़ू (गो॰ 6:32.14,)
मनमन्ता (गो॰ 7:35.17)
मनिस्टर (गो॰ 11:48.13)
मन्नित (गो॰ 2:14.4)
मयूख (गो॰ 6:28.32)
मरना-मुरझाना (मरइत-मुरझइत) (गो॰ 7:35.6-7)
मर-मुझ के रहना (गो॰ 6:32.33)
मर-मोकदमा (गो॰ 4:21.5)
मरल (गो॰ 1:1.23)
मलकिनी (गो॰ 3:20.3)
महतमाइन (एगो नदी के नाम) (गो॰ 1:6.23)
महतो जी के न दोसर गदहा आउर न मँगरा-मँगरी के दोसर धोबी (गो॰ 3:17.19-20)
महिन्ना (गो॰ 4:22.1)
महुसना (गो॰ 6:29.1)
माघ-फागुन (गो॰ 6:33.5)
मातल (गो॰ 1:1.14)
माय (गो॰ 6:28.7, 16; 7:33.21)
माय-बाप (गो॰ 1:2.25; 2:14.11; 5:24.1, 25.28, 26.3; 7:33.26)
मिट्ठा (गो॰ 3:17.16)
मिट्ठा-गोहुम (गो॰ 3:18.12)
मुँहलगुआ (गो॰ 1:2.18)
मुठान (गो॰ 11:47.32)
मुड़िया जाना (गो॰ 4:20.16)
मुन (गो॰ 6:31.20)
मुनाना (गो॰ 4:20.17)
मुन्दल (गो॰ 1:3.13)
मुरकना (गो॰ 1:8.24)
मुरझल, मुरझाल (गो॰ 1:1.23)
मूड़ी (गो॰ 10:45.26)
मूर (गो॰ 3:17.10, 12)
मेटाना (= मिटना) (गो॰ 3:16.2)
मेटाना (= मिटाना) (गो॰ 3:16.4)
मेमिन (गो॰ 4:23.4)
मेलाघुमनी (गो॰ 9:42.26)
मेहराना (गो॰ 11:48.16)
मोअस्सर (गो॰ 3:18.16)
मोट-झोंट (गो॰ 3:18.6)
मोटहन (गो॰ 6:27.23)
मोतफरकाती काम (गो॰ 4:21.20)
मोतियाबिन (गो॰ 1:9.3)
मोर बाजा (गो॰ 4:21.17)
मोरहर (एगो नदी के नाम) (गो॰ 4:20.21)
मोरी (गो॰ 3:17.9)
मोसकिल (गो॰ 1:1.15)
मोहाने (एगो नदी के नाम) (गो॰ 1:6.23)
मोहाल (गो॰ 2:12.8)
रक्खल (गो॰ 3:18.21, 20.5)
रतजग्गा (गो॰ 4:20.13)
रमाइन (गो॰ 4:21.21)
रसे-रसे (गो॰ 11:46.23)
रहनई (गो॰ 6:32.2)
राजाइन (गो॰ 1:5.32)
राड़ (गो॰ 5:26.13, 14)
राम मेरावल जोड़ी (गो॰ 5:23.27-28)
रामतोड़ई / रामतरोई के तेल (गो॰ 5:24.32; 7:35.4)
रामन (गो॰ 3:19.30)
राम-राज (गो॰ 7:36.7-8)
रावा (गो॰ 7:35.22)
रिन (गो॰ 6:27.21)
रिरिआना (गो॰ 1:3.25)
रीन (गो॰ 6:30.32)
रीनी (गो॰ 6:30.31)
रेकाड (गो॰ 1:10.12)
रेह (गो॰ 3:18.3)
रोकसद्दी (गो॰ 3:19.16; 6:32.25)
रोना-कानना (गो॰ 5:24.15)
रोलाना-धोलाना (गो॰ 5:24.2)
रोवाई (गो॰ 2:12.6)
लंठ-अवारा (गो॰ 6:30.27)
लखैरा (गो॰ 6:28.1)
लगन (गो॰ 4:21.18)
लगल-भिड़ल (गो॰ 3:17.8)
लगुआ-भगुआ (गो॰ 8:38.20)
लट्ठा चलाना (गो॰ 1:7.20)
लड़का-फड़का (लड़िकन-फड़िकन) (गो॰ 4:21.4; 6:32.22; 8:36.18)
लड़िकन-फड़िकन (का लड़िकन का फड़िकन) (गो॰ 8:38.17-18)
लपकना (गो॰ 10:45.30)
लमहर (गो॰ 11:46.25)
लम्मा (गो॰ 5:26.24)
लरी-चरी (गो॰ 1:8.8)
लहबर (गो॰ 5:25.23)
लहलह (गो॰ 6:28.31)
लहसुन आउर पेयाज के फोरन देना (गो॰ 8:38.10-11)
लहालोट (गो॰ 1:2.32)
लाई (मिठाई) (गो॰ 3:18.22)
लाई-मिठाई (गो॰ 1:10.30; 3:16.21)
लाग-फाँस (गो॰ 7:35.21)
लाज-गरान (गो॰ 1:1.27, 28; 6:27.32)
लाठी-पैना (गो॰ 8:36.17)
लात-जुत्ता (गो॰ 5:26.5)
लादना-खेदना (लाद-खेद के) (गो॰ 6:30.23)
लानत-मलामत (गो॰ 3:16.28, 20.3)
लिपले पोतले देहरी, पहिरले ओढ़ले मेहरी (गो॰ 3:18.7-8)
लिलगाय (गो॰ 6:33.1)
लुकपुक (गो॰ 1:5.23)
लुग्गा (गो॰ 1:7.19; 3:18.2)
लुर-लुर (गो॰ 10:44.7)
लूर (गो॰ 1:10.20, 21)
लेले-देले (गो॰ 8:36.19)
लोंदा (गो॰ 2:15.21)
लोग-बाग (गो॰ 6:32.12; 9:39.23)
लोट (= नोट) (गो॰ 3:18.20)
वकू (गो॰ 11:48.20)
विकसल (गो॰ 1:10.5)
विदमान (गो॰ 1:3.4)
विसमाद (गो॰ 3:20.2)
सँउसे, सउँसे, सऊँसे, सौंसे (गो॰ 1:7.10; 2:12.9; 4:21.15; 5:24.16, 21; 5:27.12; 7:33.16; 7:34.8, 13; 11:46.24)
संघी-साथी (गो॰ 9:41.2)
संझा (गो॰ 5:23.24)
संझिला (गो॰ 5:24.12)
संधाल (गो॰ 4:23.15)
सकुँचाना (सकुँचल) (गो॰ 1:3.32)
सखी-सलेहर (गो॰ 10:45.34)
सगरो (गो॰ 2:14.3; 6:32.11)
सच्चे-मुच्चे (गो॰ 1:1.3)
सट के कमाना हे, डँट के खाना हे (गो॰ 3:18.31-32)
सटकल (गो॰ 8:36.29, 37.1)
सतभतरी (गो॰ 8:37.21)
सधारन (गो॰ 2:12.22)
सन (गो॰ 3:17.10)
सनेसा (गो॰ 11:46.33)
सप-सप (हवा) (गो॰ 1:1.9)
समधियाना (गो॰ 5:27.8)
समरिआइन (गो॰ 1:5.31)
समाँग (गो॰ 3:18.27)
समाद (गो॰ 3:17.5; 8:37.19)
समुझदार (गो॰ 9:39.21)
समुझना (गो॰ 6:31.23)
सम्पुट (गो॰ 5:25.11)
सम्हरना (गो॰ 2:14.26)
सरग (गो॰ 5:23.32; 7:35.11)
सरबती आँख (गो॰ 6:28.31)
सर-सनई (गो॰ 1:9.28)
सर-समान (गो॰ 10:43.25)
सरहज (गो॰ 4:22.16)
सरियाना (गो॰ 3:18.20, 21)
सले-सले (गो॰ 1:6.10; 7:35.13; 8:39.10)
सल्ले-सल्ले (गो॰ 10:45.23)
सहकाना (गो॰ 7:34.15)
सहेबिनी (गो॰ 5:25.24; 6:31.2)
साँझबत्ती (गो॰ 3:18.14)
साँधी (गो॰ 5:24.8)
साइत (गो॰ 1:7.13; 2:13.22, 14.23, 25; 7:34.10)
सामन (गो॰ 1:4.25; 3:19.14)
सामन के मेघ आउर साँझ के पहुना बिन बरसले थोड़े जाहे (गो॰ 3:19.14)
सामन-भादों (गो॰ 1:8.21)
सामुन (= साबुन) (गो॰ 1:2.2)
सार (= साला) (गो॰ 1:8.22)
सारा (= साला) (गो॰ 5:25.8)
सारी (=साली) (गो॰ 4:22.16)
साल-माथ (गो॰ 4:21.14)
साले-साल (गो॰ 3:19.17)
साव के मूर से सूद प्यारा होवऽ हे (गो॰ 3:17.12)
सिउ जी (गो॰ 2:13.12, 14, 19)
सिन (गो॰ 10:45.9)
सिपाही-दरोगा (गो॰ 7:35.8-9; 8:36.21)
सिमटम (गो॰ 4:23.1)
सिरैतिन (गो॰ 3:18.29)
सिहुँकल (गो॰ 1:1.9)
सींकड़ (गो॰ 4:23.19)
सीमिट-गारा (गो॰ 4:21.8)
सुक्खल (गो॰ 1:1.20; 2:15.18; 6:28.28)
सुक्खा (गो॰ 6:27.19)
सुगबुगाना (सुगबुगायल) (गो॰ 8:36.13)
सुतना, सूतना (सुत्तऽ हल, सूतऽ हे) (गो॰ 1:3.13; 2:13.11)
सुत्तल (गो॰ 1:1.14, 9.18)
सुत्थर (गो॰ 1:9.26; 3:20.9)
सुद्धा (गो॰ 1:10.26)
सुन्नर (गो॰ 1:7.31, 9.15; 2:15.18; 10:44.21)
सुरसुर (गो॰ 5:27.3)
सूते बखत (गो॰ 9:40.14)
सूद-मूर (गो॰ 6:32.29)
सेकेंड के सूई नियर तेज होना (गो॰ 8:37.29)
सेनुर (गो॰ 4:23.16)
सेमाना (गो॰ 1:6.27; 4:21.1)
सेवा-बरदास (गो॰ 1:2.7; 2:12.32)
सोआती (= स्वाती) (गो॰ 5:25.27)
सोआरथ (गो॰ 5:25.24)
सोडा-सामुन (गो॰ 3:18.3)
सोनहरा (गो॰ 6:31.18, 32.4)
सोन्हई (गो॰ 1:10.32)
सोमार (गो॰ 4:23.11)
सोमारी मेला (गो॰ 4:23.7; 8:36.14)
सोहदा (गो॰ 6:31.5; 7:34.21; 11:48.16)
सोहामन (गो॰ 3:15.30)
सौदा-बारी (गो॰ 8:36.13)
सौभाग (गो॰ 2:12.9)
हँथिया, हथिया (नक्षत्र के नाम) (गो॰ 6:29.31)
हँसी के दही जमाना (गो॰ 9:41.19)
हकासल-पियासल (गो॰ 6:31.21-22)
हजार-बजार (गो॰ 5:25.2)
हड़कना (गो॰ 11:48.19)
हदबदाना (गो॰ 10:44.13; 11:47.16)
हद-हद करना (गो॰ 1:10.23)
हनना-धुनना (गो॰ 1:6.26)
हनना-धुनना (गो॰ 5:24.14)
हमन्हि (गो॰ 1:10.27; 5:25.4, 26.4)
हमहूँ (गो॰ 2:14.20, 24)
हम्मर (गो॰ 1:4.26; 5:27.4)
हर-घर (उ न हर के होवऽ हे न घर के) (गो॰ 1:10.5-6)
हरवाही (गो॰ 5:25.14)
हरहराना (गो॰ 11:48.4)
हरहोर (गो॰ 6:33.3)
हरिअर (गो॰ 1:11.8)
हलावत (गो॰ 10:44.22; 11:48.10)
हल्लुक (गो॰ 1:1.19, 3.22)
हल्लो-हरान (गो॰ 8:38.14)
हाँफे-फाँफे (गो॰ 8:37.4)
हाड़ तोड़ के मेहनत करना (गो॰ 3:17.3-4)
हाथ-गोड़ (गो॰ 6:27.25)
हारल-हहरल (गो॰ 1:1.8)
हिंजो-हिंजो (गो॰ 1:8.21)
हिया गरान (गो॰ 1:4.26)
हीं (= के यहाँ) (गो॰ 3:19.21)
हींआ (गो॰ 6:27.22)
हूँ (= भी) (गो॰ 2:14.21)
हेलना (गो॰ 10:45.33)
होवइया (गो॰ 9:41.2)

Friday, March 27, 2009

3. मगही उपन्यास "चुटकी भर सेनुर" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

मगही उपन्यास "चुटकी भर सेनुर" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

चुभसे॰ = "चुटकी भर सेनुर" (मगही उपन्यास) - सत्येन्द्र 'जमालपुरी'; प्रथम संस्करणः फरवरी 1978; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5; मूल्य - 1 रुपया 50 पैसे; कुल 2 + 16 पृष्ठ । प्राप्ति-स्थानः बिहार मगही मंडल, V-34, विद्यापुरी, पटना-800 020.

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।




अचक्के (चुभसे॰ 1:4.25)
अदमी (चुभसे॰ 3:12.30)
अनभनाना (चुभसे॰ 3:11.13)
अबहियों (= अभी भी) (चुभसे॰ 3:10.12)
अराम (चुभसे॰ 1:6.3)
अलोपित (चुभसे॰ 3:12.28)
असराफ (चुभसे॰ 1:2.4)
आ (=और) (चुभसे॰ 1:1.22, 2.14, 3.5, 12, 13 इ॰)
आई-माई (चुभसे॰ 4:16.5)
इ, ई (चुभसे॰ 4:14.17)
इन्टरेस (= इंट्रेंस) (चुभसे॰ 1:5.23)
इहाँ (चुभसे॰ 1:5.3)
उ, ऊ (चुभसे॰ 4:14.17)
उझंख (चुभसे॰ 4:13.28)
उमेद (चुभसे॰ 4:15.19)
उहऊँ (चुभसे॰ 3:9.7)
उहाँ (चुभसे॰ 1:5.4, 7.12)
एते (चुभसे॰ 3:8.23, 25)
एन्ने (चुभसे॰ 3:11.7)
ओजह (चुभसे॰ 3:11.13)
ओनहूँ (चुभसे॰ 1:5.16)
ओन्ने (चुभसे॰ 3:12.5)
कउलेजिया (चुभसे॰ 3:11.30)
कते, कत्ते (चुभसे॰ 1:6.4; 3.8.8, 9.14)
कनना, कानना (चुभसे॰ 1:2.24) - कन्ने लगलूँ
कनिआय, कनिआई (चुभसे॰ 1:4.32, 5.25, 6.9, 12; 3:10.32)
कलट्टर (चुभसे॰ 1:4.15)
का जानी (चुभसे॰ 3:9.27-28)
कितो (चुभसे॰ 1:6.13)
किहाँ (= के यहाँ) (चुभसे॰ 1:1.4, 2.28)
केतिना (चुभसे॰ 1:6.12)
कोरसिस (चुभसे॰ 1:3.9; 3:7.25, 13.13)
क्वाटर (= क्वार्टर) (चुभसे॰ 4:16.1)
खन, खनी (= क्षण) (चुभसे॰ 2:7.18)
खरच-बरच (चुभसे॰ 1:1.11)
खिसिया जाना (चुभसे॰ 2:7.17)
खीस (चुभसे॰ 1:4.12)
खोंइछा (चुभसे॰ 1:6.11)
गाड (= गार्ड) (चुभसे॰ 1:4.2)
गुने (चुभसे॰ 3:12.31)
गोहुम (चुभसे॰ 3:9.29)
चंपिया (चुभसे॰ 4:15.20)
चउँका (चुभसे॰ 4:15.16)
चचा, चच्चा (चुभसे॰ 1:4.13)
चाहे (= या) (चुभसे॰ 3:8.33)
चित्त (चुभसे॰ 4:14.28)
चीन्हना (चुभसे॰ 1:2.17)
चौर (चुभसे॰ 3:9.23, 10.7)
छन (= क्षण) (चुभसे॰ 3:7.27)
जथारथ (= यथार्थ) (चुभसे॰ 1:4.19)
जमान (चुभसे॰ 1:3.15; 3:8.12)
जलम (चुभसे॰ 1:2.3)
जहिया (चुभसे॰ 3:9.17)
जानी (= जन) (चुभसे॰ 4:15.6)
जोगता (= योग्यता) (चुभसे॰ 1:4.11)
टिकस (चुभसे॰ 3:12.18)
टीसन (चुभसे॰ 3:12.17, 21)
टोना (टो-टो के) (चुभसे॰ 3:8.27)
ठटगर (चुभसे॰ 4:14.1)
डागडर, डागदर (चुभसे॰ 3:10.15)
तइयो (चुभसे॰ 1:4.10; 4:14.10)
तहिये (चुभसे॰ 3:9.17)
तिलक, तिल्लक (चुभसे॰ 1:2.6, 5.14, 22, 30, 32 इ॰)
तों (चुभसे॰ 1:5.30)
थोड़िके, थोड़िका (चुभसे॰ 1:1.15, 4.32; 3:10.16)
दिढ़मिजाज (चुभसे॰ 3:11.18)
दुत्तोरा (चुभसे॰ 4:16.8)
दैया (= दीदी, बूआ) (चुभसे॰ 1:2.25)
दोआह, दोवाहा (चुभसे॰ 4:14.3)
धमकौआ तेल (चुभसे॰ 3:11.9, 10)
न जानी (चुभसे॰ 4:13.26)
नहिंयों (= नहीं भी) (चुभसे॰ 2:7.11)
निचिंत (चुभसे॰ 1.4.27; 3:9.17)
निफिकिर (चुभसे॰ 1:5.13)
निबाल करना (चुभसे॰ 1:2.10)
पय (चुभसे॰ 4:14.31)
परसुने (= परसों ही) (चुभसे॰ 1:4.2)
पसीन (= पसन्द) (चुभसे॰ 4:16.9)
फिसिर-फिसिर (चुभसे॰ 3:10.2)
फेर (= फिर) (चुभसे॰ 1:6.3)
बउआ (चुभसे॰ 1:6.1, 3; 3:7.29, 10.6)
बन्हवाना (चुभसे॰ 4:15.9)
बहरा (= बाहर) (चुभसे॰ 1:3.18)
बाँटल भाई पड़ोसिया दाखिल (चुभसे॰ 1:2.10-11)
बाकि (चुभसे॰ 2:7.4; 3:8.25, 9.25, 11.26; 4:14.2, 27, 30)
बान्हना (चुभसे॰ 4:15.18)
बास्तो (= वास्तव) (चुभसे॰ 2:7.10)
बिअहुती, बिहउती (चुभसे॰ 4:15.22)
बिच्चे में (चुभसे॰ 1:4.1)
बुतरु, बुतरू (चुभसे॰ 3:9.5; 4:15.29)
बेमारी (चुभसे॰ 3:10.21)
बेर-बेर (चुभसे॰ 1:2.30)
बेरी (चुभसे॰ 1:6.27)
बोखार (चुभसे॰ 3:10.15)
भिरी, भीरी (चुभसे॰ 1:2.14; 3:9.25, 11.3, 12.12)
मथबत्थी (चुभसे॰ 3:11.8)
महिन्ना (चुभसे॰ 4:15.25)
मायो (चुभसे॰ 1:3.24)
मिरतु (चुभसे॰ 3:9.9)
मोसमात (चुभसे॰ 1:2.4; 4:14.5, 24)
रूस जाना (चुभसे॰ 2:7.17)
लरमा जाना (चुभसे॰ 3:10.1)
लिख-लोढ़ा (चुभसे॰ 1:5.21)
लोढ़ा-सिलउट लोग (चुभसे॰ 1:4.21)
सँझलउका (चुभसे॰ 4:13.27)
सउँसे (चुभसे॰ 3:10.8, 31)
सनेमा (चुभसे॰ 1:6.9)
सनेसा (चुभसे॰ 1:6.11; 2:6.15; 3:9.15)
समसेआ (= समस्या) (चुभसे॰ 1:4.10, 5.19)
सले-सले (चुभसे॰ 3:10.21)
सलेहर (चुभसे॰ 4:15.9)
सवासिन (चुभसे॰ 4:14.26)
साइत (चुभसे॰ 3:11.22)
सायर (चुभसे॰ 3:8.18)
सिन्होरा (चुभसे॰ 4:15.20)
सुतना, सूतना (चुभसे॰ 3:10.16)
सुन्नर (चुभसे॰ 1:1.25)
सुन्नरता (चुभसे॰ 1:3.2)
सुन्ना (चुभसे॰ 4:15.21)
सेंगरना (चुभसे॰ 1:5.28)
सेनुर (चुभसे॰ 4:15.20)
सोभाव (चुभसे॰ 1:3.1, 7.13)
सोभाविक (चुभसे॰ 3:9.11)
हँठुआ (चुभसे॰ 3:7.30)
हकासल-पिआसल (चुभसे॰ 3:12.5-6)
हमन्नी, हमन्हीं (चुभसे॰ 3:13.11; 4:15.19)
हल्लुक (= हलका) (चुभसे॰ 1:3.15; 3:11.19, 25)
हाली-हाली (चुभसे॰ 1:1.15)


Wednesday, March 25, 2009

2. मगही उपन्यास "रमरतिया" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

मगही उपन्यास "रमरतिया" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

रम॰ = "रमरतिया" (मगही उपन्यास) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 1968; नवमा संस्करण 2008; प्रकाशकः सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य - 101/- रुपये; कुल 144 पृष्ठ ।


देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।



अँउठी-पँउठीः (रम॰ 11:84.12; 16:123.3)
अँकटी: (रम॰ 18:133.7)
अइमानी-बइमानीः (रम॰ 10:77.16)
अकाननाः (रम॰ 10:76.7)
अखरखन: (रम॰ 15:118.14)
अगर-दिगर: (रम॰ 13:105.2)
अगरानाः (रम॰ 10:74.5; 11:86.11)
अगे मइनी: (रम॰ 1:19.7)
अगेरीः (रम॰ 11:83.9)
अगोरनाः (रम॰ 10:78.2)
अगोराः (रम॰ 10:75.13)
अचम्भो: (रम॰ 13:100.21; 16:126.4)
अछरंगः (रम॰ 10:78.7)
अछार: (रम॰ 15:115.16)
अजीज: (रम॰ 2:23.3; 4:42.6)
अनचकाना: (अनचकाके - रम॰ 1:18.6)
अनचकेः (रम॰ 9:70.14)
अनोरः (रम॰ 4:42.4; 5:44.4; 10:75.1)
अन्देः (रम॰ 4:40.5)
अन्हरियाः (रम॰ 10:74.1; 12:94.20)
अन्हारः (रम॰ 12:94.20)
अपजसः (रम॰ 7:58.13)
अबरी: (रम॰ 14:113.6)
अमदी, अदमी: (अमदी - रम॰ 1::17.18; 2:23.22; 3:30.11, 31.7, 32.25; 5:46.24; 6:54.18)
अमरलताः (रम॰ 10:79.20)
अरदा-परदाः (रम॰ 4:40.1)
अलंगः (रम॰ 9:70.6)
अलंग: (रम॰ 18:134.1, 9)
अलागम: (रम॰ 3:29.21, 34.2)
अलाह: (रम॰ 3:25.16)
अवलदार: (रम॰ 13:102.22)
असमान में ढाही मारना: (रम॰ 13:104.6)
असराफ: (रम॰ 14:112.13)
अ‍ेकवा: (रम॰ 15:120.2)
अ‍ेता, अ‍ेत्ताः (रम॰ 9:72.21)
अ‍ेनहीं: (रम॰ 10:78.9)
अ‍ेने-ओने, एन्ने-ओन्नेः (रम॰ 6:51.2; 16:124.6)
अ‍ेसोः (रम॰ 6:57.9; 14:114.1)
आँख में कान: (रम॰ 13:103.25)
आरी-पगारीः (रम॰ 10:74.6)
इकाः (रम॰ 6:54.23)
इड़ोत: (रम॰ 1:20.23; 4:41.6, 42.21; 9:70.10)
इनरासनः (रम॰ 4:41.7)
इयाद पारना: (रम॰ 14:114.1)
उका, उकिः (उकि - रम॰ 3:36.9; 5:50.1; 6:52.20; उका - रम॰ 13:101.15)
उखिल-विखिल: (रम॰ 3:27.25)
उगहन: (रम॰ 2:23.12)
उगाहनाः (रम॰ 13:98.19)
उड़कना, उड़हकना: (रम॰ 13:107.22)
उतरंगाः (रम॰ 12:87.6)
उपरदमः (रम॰ 12:90.20)
उपहना: (उपह जाना - रम॰ 3:29.4, 31.8; 13:98.17)
उप्पर-ओछर, उपर-ओछलः (रम॰ 10:79.6)
उमीद रहनाः (रम॰ 10:82.3; 12:90.11)
उलारना, ओलारनाः (ओलारनाः - रम॰ 3:35.21; उलारना - रम॰ 5:44.13)
उस-बुसः (रम॰ 11:85.3)
उसाहपथिया: (रम॰ 3:33.24)
ओट: (रम॰ 13:101.23)
ओटा-दुहारीः (रम॰ 11:84.10)
ओदी-सुखीः (रम॰ 12:87.11)
ओम-टोमः (रम॰ 8:69.15)
ओरिआना, ओरियाना: (रम॰ 13:107.19; 15:120.8)
औंगारी, अउँगारी: (अउँगारी - रम॰ 2:24.5; 5:48.12)
ककहा: (रम॰ 3:36.14)
ककोड़बा, ककोकोड़बाः (रम॰ 13:95.13)
कखने: (रम॰ 16:124.8)
कटपिलसिट: (रम॰ 3:28.8)
कटर-मटरः (रम॰ 3:37.9)
कनइलः (रम॰ 5:45.3)
कनमटकीः (रम॰ 3:34.2)
कपसना: (रम॰ 13:107.11)
करनाहः (रम॰ 10:79.19)
कलाली: (रम॰ 17:129.7, 132.21)
कसल घोड़ा आउ सपरल बेटा के रूके के न चाही (रम॰ 13:105.1)
काँच-कुँआरः (रम॰ 19:138.6)
काकुटः (रम॰ 4:38.2)
काजीनी, कीजनीः (काजीनी - रम॰ 6:53.2; 15:118.8)
काडः (रम॰ 13:97.1)
कादोः (= का तो) ( रम॰ 3:36.18, 37.12; 4:42.11; 5:47.23; 8:63.7, 66.11, 68.20, 69.3, 13, 16, 21; 9:73.16; 10:80.13, 81.12; 82.12; 12:89.12, 91.18, 92.11; 14:110.7; 15:119.3)
कानाः (रम॰ 12:87.1; 14:108.4)
काना बेटा भला मुदा अँखगर बेटी नः (रम॰ 4:42.9-10)
काम किरिया: (रम॰ 13:106.1)
काहे कि: (रम॰ 3:27.23, 28.15; 12:93.15; 13:95.4, 101.1, 107.19; 14:109.12)
किरिंग: (रम॰ 14:108.9, 10)
कुट्टी, कूटीः (कूटी - रम॰ 4:38.2)
कुरचनाः (रम॰ 11:86.9; 12:94.18; 15:115.15, 118.12, 120.19)
केतारीः (रम॰ 11:83.3; 18:134.1, 9)
केराइ: (रम॰ 18:133.4, 6, 8, 136.7)
केवालः (रम॰ 11:83.3, 4)
केवालाः (रम॰ 5:46.9)
कोंचना, कोचना: (रम॰ 16:123.9)
कोंहड़ा के जान पानी करनाः (रम॰ 4:42.7)
कोचम-कोच: (रम॰ 16:123.8)
कोटाः (रम॰ 8:65.20)
कोनियाँ, कोनिया, कोनिआ: (रम॰ 6:54.2; 12:87.15, 91.20; 14:110.17; 19:143.10)
कोरईः (रम॰ 11:84.4)
कोलसारः (रम॰ 11:83.7,8)
कोल्हूः (रम॰ 11:83.11)
कोहबर: (रम॰ 11:85.2; 18:135.12)
खंधाः (रम॰ 10:75.1; 18:133.1, 5, 134.12)
खरहन, खरहना, खरहन्नाः (खरहना - रम॰ 4:43.6)
खस्सी-पठरू, खँसी-पठरू: (रम॰ 15:120.6)
खाँढ़, खाँड़ः (रम॰ 10:79.4; 12:91.11)
खिस्सा-गलबातः (रम॰ 5:44.9)
खिस्सा-गलवात: (रम॰ 19:140.12)
खुटखुट, खुटखुटी, खुटपुट, खुटपुटी, खुटबुट, खुटबुटी, खुटफुटी: (खुट-बुटी - रम॰ 4:42.17; खुटफुटी - रम॰ 14:111.5 )
खुरफातीः (रम॰ 6:54.24)
खेत-बधार: (रम॰ 15:115.14)
खोंइछाः (रम॰ 7:58.23)
खोन्हा: (रम॰ 15:118.2)
खोरनाः (रम॰ 7:60.23)
गउँआ-गुदाल, गऊँआ-गुदालः (रम॰ 10:79.7; 12:89.12; 15:118.13)
गउर-गट्टा: (रम॰ 16:122.11)
गझनउटाः (रम॰ 13:96.7)
गते: (रम॰ 14:109.2)
गदकनाः (रम॰ 4:41.17; 13:96.12)
गबड़ा-किनछारः (रम॰ 4:43.18)
गमनाः (रम॰ 9:71.13; 12:92.6)
गरद-बरद मचानाः (रम॰ 12:87.2)
गरान: (रम॰ 14:113.3)
गहँकीः (रम॰ 4:39.13, 14)
गहना-गुरिआ, गहना-गुरिया: (रम॰ 13:103.13, 104.4)
गाड़ः (गड़िओ धोवे के अकल न होना - रम॰ 8:68.17)
गाल-जिद: (रम॰ 2:23.14)
गिंजन: (रम॰ 13:106.24)
गिआरी: (रम॰ 1:18.8; 4.41.1; 12:94.2)
गुट-पुटः (रम॰ 7:59.22)
गुदगुदी बरना: (रम॰ 19:140.3)
गुदगुदी बराना: (रम॰ 18:134.13)
गुदुर-गुदुर, गुदूर-गुदूरः (रम॰ 4:41.17; 13:96.12)
गुने, गूने: (गूने - रम॰ 1:18.19; गुने - रम॰ 3.29.22; 13:100.11; 14:109.5)
गुरपींडा, गुरपिंडा: (गुरपींडा - रम॰ 3:27.7)
गेठरी: (रम॰ 16:121.13)
गेन्हाना, गेन्धाना: (रम॰ 3:32.25; 10:80.15)
गेहुँम, गेहूँम: (रम॰ 8:65.20, 19:138.1)
गोड़थारीः (रम॰ 12:92.23)
गोड़ा-टाही, गोड़ा-पाही, गोड़ाटाही, गोड़ापाही: (रम॰ 13:106.2)
गोतिया: (रम॰ 16:127.9)
गोतिया-नइया: (रम॰ 15:116.21)
गोथार चाँतना: (रम॰ 14:109.14)
गोरइया थानः (रम॰ 5:44.12)
गोल-गोल बात: (रम॰ 14:108.14)
गोलाः (रम॰ 11:84.1, 3)
गोला लाठी देना: (रम॰ 16:127.17)
गोसाना: (रम॰ 14:112.18)
घटनाः (रम॰ 13:96.12, 105.9)
घड़सिरी, घिरसिरी, घिड़सेरी: (रम॰ 14:109.11)
घररः (रम॰ 6:52.7)
घिचना, घिंचना: (घिचना - रम॰ 3:31.20)
घीअउड़ाः (रम॰ 12:88.12; 16:121.14)
घुरना: (रम॰ 19:141.1)
घूघाः (रम॰ 3:35.20; 14:110.17)
घूल-घुलउअल: (रम॰ 16:125.20)
चइतार, चइतावर: (रम॰ 18:134.2, 14)
चउली करनाः (रम॰ 7:61.5)
चकइठगरः (रम॰ 5:45.8)
चकचेहाना: (रम॰ 1:17.1; 10:80.7)
चटाकसन: (रम॰ 19:141.6)
चनन, चन्नन: (रम॰ 19:138.8)
चन्दा-बिहरीः (रम॰ 13:98.19)
चम्हलाना: (रम॰ 2:22.16; 6:54.2; 11:85.1)
चसमली, चसमल्लीः (रम॰ 10:77.5)
चहरः (रम॰ 8:65.8)
चादर तान के सुतना: (रम॰ 14:112.23)
चुकरना: (रम॰ 13:107.19)
चुकोमुके, चुकोमुको: (रम॰ 15:117.14)
चूटीः (रम॰ 11:84.16)
चेरा: (रम॰ 19:141.10)
छइते, अछते, अछइत, अछइते: (रम॰ 13:99.24; 17:131.19; 19:141.22)
छान-पगहा: (रम॰ 13:107.22)
छिआ-छिआ के गाली: (रम॰ 15:115.3)
छिनरपत: (रम॰ 18:136.14)
छिलन-पझोरः (रम॰ 4:39.15)
छुटहाः (रम॰ 10:81.10)
छूछुर-बुधिः (रम॰ 10:76.1)
छेवाठना: (रम॰ 13:107.7; 19:140.10)
छो-पाँच करना: (रम॰ 13:105.2)
जउरी: (रम॰ 1:18.8)
जनी, जन्नीः (रम॰ 11:84.11; 12:91.5, 20)
जमानः (रम॰ 3:36.23)
जमान-जोग: (रम॰ 3:36.23; 19:138.6)
जमानीः (रम॰ 13:95.1)
जरसमन: (रम॰ 13:102.23)
जरांठी, जराठी: (जराठी - रम॰ 2:22.1)
जराइनः (रम॰ 4:42.14)
जरामन: (रम॰ 14:109.4)
जरीः (रम॰ 7:58.17)
जलमउती, जलमौती: (जलमौती - रम॰ 3:30.26)
जारइन: (रम॰ 13:107.17)
जिंगूर जाना: (रम॰ 18:135.17)
जी फरिआना: (रम॰ 14:111.2)
जीतियाः (रम॰ 11:84.9, 11)
जीमन: (रम॰ 15:115.1; 18:136.19)
जुअनकाः (रम॰ 11:85.11)
जुड़जुड़ी: (रम॰ 3:25.15)
जेठान: (रम॰ 16:122.20, 23)
झँउसना, झेंउसना: (रम॰ 16:128.20)
झमठगर, झमेठगर: (झमेठगर - रम॰ 3:33.20; 9:70.2)
झिंगनी: (रम॰ 13:107.23)
झिटकी: (रम॰ 3:26.15)
टभका-टोयः (रम॰ 10:82.18)
टहकना: (रम॰ 13:104.22; 16:125.22)
टाँड़, टाँढ़: (टाँढ़ - रम॰ 3:28.21; टाँड़ - रम॰ 9:70.18, 19)
टाटीः (रम॰ 10:77.18)
टिटकारी पारनाः (टिटकारी पारना - रम॰ 7:61.11; टिटकारी देना – रम॰ 10:75.9)
टिपोरिनः (रम॰ 7:60.10)
टिप्पा: (रम॰ 13:105.22)
टुअरः (रम॰ 13:95.7)
टुसकना, टूसकना: (रम॰ 13:107.11)
टुसुर-टुसुर: (रम॰ 3:36.10)
टुह-टुहः (रम॰ 5:45.6)
टेसः (रम॰ 6:53.23; 14:110.14)
टोला-परोस: (रम॰ 19:143.5)
टोहाः (रम॰ 3:34.9; 19:140.19)
ठइआँ, ठँइआ, ठँइया: (रम॰ 13:100.3)
ठठा-ठठा के, ठेठा-ठेठा के: (रम॰ 12:87.1; 14:108.6)
ठूलः (रम॰ 12:89.11)
डगरिनः (रम॰ 8:68.21)
डाँक-दउराः (रम॰ 6:55.2; 16:126.9)
डाहटः (रम॰ 12:93.16)
डिंड़ी, डिंढ़ी, डींड़ी: (रम॰ 18:133.8, 136.7)
डिइस्वी: (रम॰ 17:132.13)
डिढ़िआनाः (रम॰ 8:67.3)
डीड़ार: (रम॰ 3:31.20)
डेग: (तीन डेग अलग रहना - रम॰ 14:112.16)
ढुकना, ढूकनाः (रम॰ 5:49.24; 10:81.17)
ढेंगरानाः (रम॰ 12:90.7)
ढेउढ़ पटी करनाः (रम॰ 7:61.5)
तकारी: (रम॰ 13:107.23)
तड़पिआक, तड़पिआँकः (तड़पिआक - रम॰ 4:38.5; तड़पिआँक - रम॰ 4:38.8, 39.17, 20)
तपाबन, तपामन: (रम॰ 17:132.24)
तलग, तलगू : (रम॰ 14:109.19)
तहिनाः (रम॰ 10:82.12; 12:90.11)
तातल: (रम॰ 13:105.8)
तिलक: (रम॰ 13:100.14, 102.19)
तीतकी: (रम॰ 13:105.5)
तीतनाः (तीतल - रम॰ 4:41.2, 15, 22; 12:88.16)
तीताईः (रम॰ 12:87.18)
तुका: (रम॰ 16:125.18)
थकल-फेदालः (रम॰ 5:50.23)
दनेः (रम॰ 4:41.4)
दरखासः (रम॰ 5:46.25; 10:81.6)
दरा, दर्राः (रम॰ 7:59.3; 13:107.17, 24)
दादर: (रम॰ 2:23.11)
दाबा-बिरो, दावा-बिरो, दावा-बीरोः (रम॰ 12:89.9)
दिना-दिसतीः (रम॰ 13:95.12; 14:113.6)
दिमगर: (रम॰ 14:113.10)
दिसाः (दिसा फिरना - रम॰ 7:58.12)
दीठिआनाः (दीठिआ जाना - रम॰ 4:41.2)
दुखछलः (रम॰ 13:97.10)
दुमचनाः (रम॰ 5:45.5)
दुसनाः (रम॰ 10:77.20)
दुसाधः (रम॰ 8:63.14)
दूभीः (रम॰ 9:70.6)
दूराः (रम॰ 5:44.1; 12:87.11)
देवी-थानः (रम॰ 5:44.11; 19:138.5)
दोस-मोहिम: (रम॰ 16:125.1)
धइल न थमाना, धइले न थमाना, धइले नञ समानाः (धइले न थमाना - रम॰ 3:34.24; धइल न थमाना - रम॰ 15:118.1)
धच्चर: (रम॰ 2:23.3)
धबर-धबरः (रम॰ 12:88.4)
धमसनाः (रम॰ 12:93.13)
धरिआना: (रम॰ 14:113.4)
धीकना: (रम॰ 13:105.8)
धोकड़ी: (रम॰ 3:26.16; 10:76.14; 15:116.4; 17:132.2)
नउवत: (रम॰ 13:106.24)
नकलाही मउगी के ओझवा भतारः (रम॰ 8:69.17-18)
नतीजा: (अ‍ेको नतीजा करे बिना बाज न आना - रम॰ 14:112.12-13)
नन्हे डंड सेआने विदिआः (रम॰ 5:45.25)
नाती-नतकुरः (रम॰ 13:95.6)
नानाः (रम॰ 10:75.2; 13:102.15)
नावा-नोहर: (रम॰ 18:133.3)
निचितः (रम॰ 13:98.21; 17:132.6)
निछकेः (रम॰ 4:39.11)
निछड़वानाः (रम॰ 8:68.21)
निमन: (रम॰ 13:99.22)
नियन, नियर: (नियन - रम॰ 3:29.21)
निहुकनाः (रम॰ 8:62.7)
नेआरः (रम॰ 7:61.22)
नेआर: (रम॰ 16:121.18)
नेवारीः (रम॰ 4:38.2, 43.4; 12:87.15)
नोमी, नोम्मी: (रम॰ 14:113.24)
पइनः (रम॰ 7:58.11; 10:75.17)
पकइटा, पकइठा: (रम॰ 16:128.9)
पठेंगाः (रम॰ 13:99.8)
पड़ीः (रम॰ 4:41.7)
पतउरी: (रम॰ 13:107.6)
पनगरः (रम॰ 8:65.5)
परकनाः (रम॰ 10:77.14)
परछोवाः (रम॰ 6:52.15)
परझोबा मारनाः (रम॰ 7:61.5)
परदाः (रम॰ 4:40.1)
परसुनः (रम॰ 4:43.18)
पाआ: (रम॰ 16:125.18)
पानः (रम॰ 3:37.5; 16:128.5)
पामलः (रम॰ 11:83.13)
पिंडा, पींडाः (रम॰ 12:88.1)
पुतहु-पारनः (रम॰ 10:82.12)
पुनः (रम॰ 10:77.16; 13:99.10)
पेट चलल जाय आउर बुट पर नजरः (रम॰ 12:89.18-19)
पेटकुनिआँ, पेटकुनिआ: (रम॰ 3:26.10; 4:43.4; 10:78.18; 17:131.12, 17)
पोरसिसिआः (रम॰ 13:97.13)
फड, फस्ट: (रम॰ 3:28.15; 15:117.24)
फन्देला, फदेला, फनेला: (फन्देला - रम॰ 3:30.16; फदेला - रम॰ 3:33.8)
फरिआनाः (रम॰ 10:75.21)
फरिछः (रम॰ 4:43.12)
फाँकाः (रम॰ 7:59.1)
फिंचनाः (रम॰ 8:62.7)
फिन, फिनु , फिनो, फेन, फेनु: (फिन - रम॰ 1:19.1; 2:24.15, 16; 4:43.7 इ॰)
फिसिर-फिसिरः (रम॰ 10:74.2)
फुटानी, फूटानी: (फूटानी छाँटना - रम॰ 3:27.7)
फेफड़ी: (रम॰ 15:115.18)
फोंय-फोंयः (रम॰ 6:52.7)
फोटूः (रम॰ 5:50.25)
फोनूगिलासः (रम॰ 10:80.20-21, 81.2)
फोहवाः (रम॰ 6:53.22; 12:92.15)
बंडोआ, बंडोवा, बन्डोवा, बिंडोवा: (बन्डोवा - रम॰ 3:30.13)
बइभिचारः (रम॰ 10:80.15)
बउआ: (रम॰ 3:26.14; 5:46.22)
बउआन: (रम॰ 15:116.14, 16)
बउआना, बहुआना: (रम॰ 15:116.15)
बउनठीः (रम॰ 13:97.13)
बउसाह: (रम॰ 14:108.7; 16:128.14; 17:132.12)
बझना: (रम॰ 14:109.12)
बढ़नीः (रम॰ 10:77.18)
बतकुचन, बतकुच्चन: (रम॰ 14:110.22)
बनाठूः (रम॰ 10:81.11)
बमछइनीः (रम॰ 7:60.14; 11:85.2; 17:132.15)
बय, बइः (=बै) (बइ - रम॰ 5:49.13)
बरजाती, बारजाती: (रम॰ 6:53.8; 11:84.24; 14:114.11)
बरदास: (रम॰ 3:36.24; 13:105.11)
बरेठाः (रम॰ 8:66.23)
बुझना: (कुछो न बुझना - रम॰ 14:112.20)
बुटः (अ‍ेक बुट के दू दाल होना - रम॰ 10:78.22-23)
बुट, बूँट: (रम॰ 19:138.7)
बुड़बक, बुड़वकः (रम॰ 10:79.13)
बुढ़ारी: (रम॰ 13:101.7)
बुतरू, बुतरु: (रम॰ 3:34.9; 12:92.15; 14:108.15; 16:121.1)
बुमुआना: (रम॰ 13:106.22)
बुलना: (रम॰ 16:126.2)
-बुलाकः (रम॰ 3:37.19)
बेकतः (रम॰ 3:35.19; 10:82.3)
बेगराना: (बेगरा जाना - रम॰ 3:31.7)
बेटी-चोदः (रम॰ 10:76.1)
बैर: (रम॰ 19:138.7)
बोइया फूटनाः (रम॰ 10:82.12)
बोकरातीः (बोकराती छाँटना - रम॰ 4:39.22)
बोरसी: (रम॰ 19:142.11)
बोरानः (रम॰ 8:63.23, 64.1)
बोहनी-बट्टा, बोहनि-बट्टाः (रम॰ 6:52.2)
भकसन: (रम॰ 14:108.12)
भगत-बनिया: (रम॰ 13:101.1)
भट-भटी: (रम॰ 14:111.8)
भठिआराः (रम॰ 8:68.24)
भाग के साँढ़: (रम॰ 13:104.24-25)
भिर, भीरः (भीर - रम॰ 3:34.18)
भुनुर-भुनुरः (रम॰ 5:45.14)
भूत: (बड़-बड़ भूत कदम तर नाँचे, बेंगवा माँगे पूजा - रम॰ 15:119.12)
भूतभउनाः (रम॰ 12:89.23)
भूरकुंड: (रम॰ 13:101.9)
भोरहरिआ: (रम॰ 1:18.19)
मइंजनाः (रम॰ 10:81.24)
मइगरः (रम॰ 11:85.3)
मइदान, मैदानः (रम॰ 10:82.22)
मइनः (रम॰ 5:49.22)
मउगी, माउग: (रम॰ 8:69.17; 10:82.12; 12:91.11; 17:131.6)
मउनीः (रम॰ 11:85.18)
मउरी: (रम॰ 19:143.1)
मकुनीः (रम॰ 4:40.15)
मजुरः (रम॰ 8:63.20, 21)
मटिआना: (रम॰ 15:116.23)
मनझानः (रम॰ 3:35.9; 15:116.25; 17:129.10)
मरखाहः (रम॰ 5:49.23)
मर-मोकदमाः (रम॰ 5:46.22)
मरी: (रम॰ 13:99.15)
मलसिकारः (रम॰ 13:97.12)
महतवाड़ाः (रम॰ 13:96.16)
महनीः (रम॰ 11:83.11, 12)
मान: (रम॰ 16:126.7)
मिंझना, मिझना: (रम॰ 17:132.25)
मुँहझपे: (रम॰ 2:22.2, 4)
मुठान: (रम॰ 2:23.17; 5:45.11; 6:53.16)
मुनेटर: (रम॰ 3:28.15)
मेहुदानाः (रम॰ 13:96.12)
रउदाः (रम॰ 6:57.8; 14:109.5; 16:127.15,17)
ररइठा, रहइठा, रहेठा,रहरेठा, रहरैठा: (ररइठा - रम॰ 3:33.24)
राँड़-मुड़लीः (रम॰ 13:97.8)
राड़: (रम॰ 14:112.13)
रावाः (रम॰ 7:58.23)
राहड़, रहड़ी: (रम॰ 3:26.9, 33.24; 5:44.4; 9:70.1, 3; 9:70.2; 18:135.11)
रेढ़: (रम॰ 3:31.1)
रोसकदी, रोसकद्दी, रोसगदीः (रम॰ 10:79.10; 13:95.5)
लंगटबोकारीः (रम॰ 5:47.7)
लँगोटी में ही पेसाब करना: (रम॰ 14:112.19)
लढ़ुआः (रम॰ 4:41.9)
लद-बूदः (रम॰ 11:85.16)
लपकल-धपकल: (रम॰ 19:140.15)
लफानाः (रम॰ 9:70.7)
लमनी, लवनीः (लवनी - रम॰ 4:38.7, 39.12)
लमहरः (रम॰ 4:41.3; 9:70.6)
लहंगा-पटोर: (रम॰ 14:108.12)
लहरा डाकः (रम॰ 5:44.12; 17:132.23)
लार-पोआरः (रम॰ 4:43.19)
लुठिआनाः (रम॰ 4:41.3)
लुतराना: (लुतरा जाना - रम॰ 3:27.23)
लुतरीः (रम॰ 7:59.13)
लूँगेड़ा: (रम॰ 16:122.4)
लेल: (रम॰ 1:19.21)
लोछियाना: (लोछिया जाना - रम॰ 13:105.5)
लोहरइनीः (रम॰ 5:44.6; 10:79.9)
लौंग, लउँगः (=मलमास) (लउँग - रम॰ 5:48.17)
वाय चमकना: (रम॰ 19:140.23)
विखिया जानाः (रम॰ 11:84.18)
सँउसेः (रम॰ 9:70.17, 75.1; 12:87.19)
सउँसेः (रम॰ 10:75.1; 12:87.19; 13:100.15, 104.3)
सकेरे: (रम॰ 1:18.19; 3.29.22; 14:109.3, 110.15)
सगरे, सगरो: (सगरे - रम॰ 1:17.11; सगरो - रम॰ 5:44.1; 13:98.18; 16:126.7)
सटक-सीताराम: (रम॰ 12:88.1)
सतभइवा: (रम॰ 15:120.17)
सन, सुन: (सुन - रम॰ 2:23.12; सन - रम॰ 4:40.23, 24; 10:80.23; 12:88.14)
सनहा: (रम॰ 19:141.15, 142.15)
सनाठी: (रम॰ 14:111.11)
सनुख, सन्नुख: (रम॰ 16:121.7)
सन्नलः (रम॰ 13:97.9)
सबाद सकनाः (रम॰ 10:77.23)
सबाधूः (रम॰ 5:49.22)
सबूर, सबुरी, सबूरी: (सबूरी - रम॰ 1:19.22; सबुरी - रम॰ 2:24.5; 3:27.25; 13:107.16)
समांग: (रम॰ 3:34.4)
समाठः (रम॰ 3:36.14)
सरिआती: (रम॰ 13:100.14)
सरिआना: (रम॰ 15:119.11, 13, 14)
सलाईः (रम॰ 10:76.14)
सले, सले-सले: (सले-सले - रम॰ 1:19.6; 12:91.21; सले से - रम॰ 3:28.2; 4:42.1; 12:92.9; 15:118.25; 19:140.1)
सलेहर, सलोहर: (रम॰ 19:139.9)
सहकल: (रम॰ 15:119.6)
सहजानाः (रम॰ 11:84.23; 14:110.13)
सामनः (रम॰ 10:74.1)
सिरा घरः (रम॰ 13:96.8)
सिहकना: (रम॰ 19:140.4)
सिहरी: (रम॰ 14:111.7)
सुढ़ुर-सुढ़ुरः (रम॰ 5:44.8)
सुतनाः (रम॰ 6:52.8; 10:75.13; 13:107.7; 14:108.14, 112.23; 15:120.12)
सुनर: (रम॰ 16:123.16)
सुनरताः (रम॰ 13:95.15)
सुपतीः (रम॰ 4:38.7)
सुराजीः (रम॰ 13:96.5)
सोझिआना, सोझियाना: (सोझिआ जाना - रम॰ 2:22.21; सोझिया जाना - रम॰ 3:29.17; 7:61.11; 10:82.10)
सोहराइ, सोहराय: (रम॰ 16:122.22)
हउआनाः (रम॰ 4:43.5)
हउड़ा, हउराः (रम॰ 10:79.19)
हउ-हउः (रम॰ 10:82.20)
हक-बक न चलना: (रम॰ 18:136.12)
हड़प-नराइनः (रम॰ 10:77.17)
हबकः (रम॰ 7:60.8)
हम्हड़-हम्हड़ के रोना: (रम॰ 18:137.22)
हवर-दवरः (रम॰ 7:59.12)
हवर-हवरः (रम॰ 13:96.19)
हहरना: (रम॰ 15:115.17)
हाड़ काँपना: (रम॰ 14:112.18-19)
हाड़ में छेद करना: (रम॰ 14:112.9-10)
हाथ जोड़ना: (रम॰ 14:111.7)
हिंछा, हिंच्छा: (रम॰ 5:46.2; 18:137.18; 19:142.8)
हुक-हुक करनाः (रम॰ 6:52.1; 16:127.19)
हुमचनाः (रम॰ 5:45.5)
हुमाद, हुमाधः (रम॰ 12:91.20)
हुरिआना: (रम॰ 16:121.15)
हुलकनाः (रम॰ 4:42.22)
हुलकी: (रम॰ 14:110.7)
हुलचुली, हुलचुल्ली, हुलजुलीः (रम॰ 11:85.9)
हेदि-दोदी: (रम॰ 16:122.24)
हेराना: (रम॰ 15:116.17)
हेलनाः (रम॰ 13:96.12; 16:123.21)
होलइया, होलैया: (होलइया - रम॰ 3:30.13)

Monday, March 16, 2009

1. सोहर - १

सोहर - १

ललना हे, कहऽमा से अइतन पाँचो पंडितऽ, अउरे नारदऽ मुनि हे ।
ललना हे, कहऽमा से अइतन भगऽवानऽ, जनकऽपुर में जय जय बोलइ हे ।।

ललना हे, गोखुला से अइतन पाँचो पंडितऽ, अउरे नारदऽ मुनि हे ।
ललना हे, अजुधा से अइतन भगऽवानऽ, जनकऽपुर में जय जय बोलइ हे ।।

ललना हे, कहऽमा उतारब पाँचो पंडितऽ, अउरे नारदऽ मुनि हे ।
ललना हे, कहऽमा उतारब भगऽवानऽ, जनकऽपुर में जय जय बोलइ हे ।।

ललना हे, मड़ऽबा उतारब पाँचो पंडितऽ, अउरे नारदऽ मुनि हे ।
ललना हे, कोहऽबर उतारब भगऽवानऽ, जनकऽपुर में जय जय बोलइ हे ।।

[नोटः अवग्रह चिह्न 'ऽ' के मतलब हइ कि पूर्व अकारान्त व्यंजन के अन्तर्निहित (inherent) अकार के पूरा-पूरा उच्चारण करे के चाही ।

जैसे -
भगवान = "भग्वान्" (bhagvaan), भगऽवानऽ = "भगवान" (bhagavaana);

ओइसहीं,
जनकपुर = "जनक्पुर्" (janakpur), जनकऽपुर = "जनकपुर्" (janakapur)]

Sunday, March 15, 2009

10. स्मृति तर्पण

स्मृति तर्पण

[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]

लेखक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (जन्मः 1-10-1935)

मगही भासा आन्दोलन के पुरोधा डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के देन के आकलन मोसकिल काम हे । श्रीकान्त जी के बिना मगही के आउ मगही के बिना श्रीकान्त जी के अहसासो हमरा ला ओतने मोसकिल हे । हमरा जइसन हिन्दीवाला के मगही लेखन-आन्दोलन से जोड़े के अजगुत काम बस ओही कर सकलन हल, ओही कइलन ।

सन् 1955 के सितम्बर के कोई बरसाती दिन हल जब झमाझम बरसा में भींगत-भांगइत तीन मुरती हमर आशानगर (बिहारशरीफ) के घर में परगट होलन । मित्र रवीन्द्र कुमार बतउलन, एही डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री हथ आउ ऊ ठाकुर रामबालक सिंह । नालन्दा चले के हे । शास्त्री जी के कहनाम होल, मगही के दिशा-बोध आउ स्वर-बोध ला पटना से एगो मगही मासिक निकालम । समय के तकाजा हे । प्रधान सम्पादक बने ला भिक्षु जगदीश काश्यप जी के राजी करना हे । ऊ तोरा मानऽ हथू - मगही ला ई काम तोरा करे पड़तो । नालन्दा पहुँच के हम काश्यप जी से सबके मिला देली । बाकि शास्त्री जी के प्रस्ताव सुन के काश्यप जी नहकार देलन । "जवाहरलाल (भूतपूर्व प्रधान मंत्री) त्रिपिटक के छपावे के काम में लगा देलन हे । फुरसत न हे । सम्पादक छपल-छपाल अंक देखे, ई ठीक न हे । डॉ॰ शास्त्री निम्मन तरी से सम्पादन कर सकऽ हथ ।"

हमरा बोलना अब जरूरी पड़ गेल । कहली, अपने 'मगध संघ' के निर्देशक हथी । ई 'मगध संघ' के पत्रिका हे । एकरो निर्देशक अपने रहथी । निर्देशक के काम निर्देश देना भर हे, पालन करना तो हमनी के काम हे । मोहक मुसकान के साथ काश्यप जी 'मगही' ला पहला चन्दा शास्त्री जी के सौंप देलन । निर्देशक के रूप में भिक्षु जगदीश काश्यप के नाम ऊपर छपैत रहल ।

तय होल कि मासिक 'मगही' 'बिहार मगही मंडल' के तत्त्वावधान में 'मगध संघ' से प्रकाशित होत । एहू छपैत रहल । ठाकुर रामबालक सिंह हमरा से कहलन, सलाहकार मंडल में रवीन्द्र कुमार के नाम देवे ला चाहऽ ही । उनकर कहनाम हे, प्रियदर्शी के रक्खऽ । हम कहली - वाहे गुरु, जे एको लाइन मगही न लिखलक हे, ओकर नाम छापेवाला ई कइसन पत्रिका निकालबऽ । हमनी छात्र ही, हमरा छतरी न बनाबऽ । 'मगध संघ' के अध्यक्ष प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद के नाम छाप दऽ । शास्त्री जी बोललन, ऊ हिन्दीवाला हथ - मंजूर करतन ? हम बोलली - हमहूँ हिन्दीवाला ही । उनका तरफ से 'हाँ' कहे के हकदार मान के नाम छाप दऽ । एहू नाम बराबर छपैत रहल ।

मगही लेखन में निखार आउ साहित्यिक विधा के पहचान उकेरेवाला पत्र बन के 'मगही' महिन्ने-महिन्ने छपे लगल । प्रवेशांक में छपे लायक काफी मैटर (सामग्री) हम बटोर के देली (अप्पन कुछ नञ्) । प्रवेशांक के सम्पादकीय में शास्त्री जी हमरा बहुत अहसान जतयलन । मित्र रवीन्द्र कुमार आउ महेश्वर तिवारी के साथ मिल के हम नालन्दा कॉलेज आउ नालन्दा पालि प्रतिष्ठान, नालन्दा के बहुत्ते आचार्य आउ छात्र सब के ग्राहक बना लेली । हमरा हीं शास्त्री जी के आवा-जाही बढ़े लगल । हमरा कन्वर्ट करना जइसे उनकर जरूरत बन गेल । कहलन, छोड़े के बात कहाँ हे, हम तो जोड़े कहऽ ही । हिन्दी के दिमाग में रक्खऽ, मगही के दिल में रख लऽ । अधरतिया में उचटल नींद में कोय लोकधुन, मगही लोकगीत के कोय लाइन सुनाय में आवऽ हो त सब कविताई झूठा लगे लगऽ हो न ! मगही मन के ऊ गहराई में बसल हो, ओकरा झुठलावऽ नञ् ।

1957 में शास्त्री जी एकंगरसराय में पहिला मगही महासम्मेलन बोलइलन । बिहार के शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा उद्घाटन आउ भिक्षु जगदीश काश्यप ओकर अध्यक्षता कइलन । पूरा मगही समाज इकट्ठा हो गेल । मगही पर पहला शोध लेख के रूप में, जेकर उल्लेख सब जगह मिले हे, ऊ अवसर पर प्रकाशित भेल । लेखक प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री खुलल अधिवेशन में एकर पाठ कइलन । जनपद आन्दोलन के रूप में मगही के विकास ला सब मगही संस्था के दू-दू प्रतिनिधि ले के केन्द्र गठन के हम्मर प्रस्ताव खुला अधिवेशन में पास हो गेल । प्रस्ताव रख के जब हम बैठ रहली हल तो रुद्र-वाणी सुनाय पड़ल, 'हमनी सब जे जोड़ रहली हल, तूँ ओकरा ढाह के बैठ गेलऽ' । मतलब 'बिहार मगही मंडल' के केन्द्रीय संगठन न मान के हम केन्द्र गठन के नया प्रस्ताव रख देली हल ।

ई अधिवेशन के अवसर पर जब हम एकंगरसराय पहुँचली तो मित्र मंडली से हमरा फरका के शास्त्री जी मिठाई के दोकान में ले गेलन । नाश्ता-पानी करा के पुछलन, काम हो गेलई ? (हमर रचना के बारे में) हम अपन टटका गीत उठाके हाँथ में धर देली - 'कहमा पिया केर गाँव हे ?' पढ़ के खुश हो गेलन । रात कवि सम्मेलन में हम पहले पहल मगही गीत सुनउली जे 'मगही' के अधिवेशन अंक में छपल । हलाँकि छापे ला ऊ गीत हम उनका नञ् देली हल ।

मगही लेखन-आन्दोलन से हमरा जोड़े के कोरसिस शास्त्री जी लगातार करइत रहलन । एकंगरसराय उत्सव के हमर बड़गर उपलब्धि हल महमादाय रामनरेश पाठक से परिचय । उनकर आग्रह भी हमरा मगही दने खींचे लगल । ऊ दुनों के सलाह होल कि बिहारशरीफ में दोसर मगही महासम्मेलन हमरा बोलाना चाही । मगध संघ के चौदहवाँ अधिवेशन पर 5 अप्रैल 1964 के दिन दोसर मगही महासम्मेलन सम्पन्न होल । अधिवेशन के अध्यक्षता डॉ॰ बी॰पी॰ सिन्हा कइलन । पूरा मगही समाज जुटल । डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ, डॉ॰ राजाराम रस्तोगी, डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ श्यामनन्दन शास्त्री, रामगोपाल 'रुद्र', रामनरेश पाठक, गोवर्धन प्रसाद सदय, रामसिंहासन विद्यार्थी, गोपी बल्लभ सहाय, राम निरंजन, परिमलेन्दु, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', सत्यदेव शांतिप्रिय आदि के अलावे अतिथि साहित्तकार ब्रजकिशोर नारायण आउ आचार्य महेन्द्र शास्त्री भी भाग लेलन । मगही के डी॰लिट्॰ प्राप्ति पर मगही जगत के तरफ से डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी जी के सार्वजनिक सम्मान कइल गेल । मगही के विकास ला हमर पाँच सूत्री प्रस्ताव स्वीकार कइल गेल । प्रस्ताव हल -

1. मगही के अकादमिक संस्था 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना

2. मगही के पाठ्यक्रम आउ साहित्य अकादमी में स्थान

3. मगध क्षेत्र में स्थापित सब मगही संगठन के प्रतिनिधि ले के केन्द्रीय मगही संगठन के स्थापना

4. मगही में फिल्म निर्माण

5. आकाशवाणी से मगही में नियमित प्रसारण

डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के खुशी के ठेकाना नञ् हल । प्रस्ताव के कार्यान्वयन ला कमर कस के उतर गेलन ।

मगही में फिल्म निर्माण के प्रस्ताव के पूर्ति ला हम 1963 में पहल कइली । फिल्मकार गिरीश रंजन के साथ 'मगध फिल्म्स' के स्थापना कइली । ई यूनिट द्वारा 1964 से आर॰डी॰ बंसल प्रोडक्शन, कलकत्ता द्वारा मगही फिल्म 'मोरे मन मितवा' के निर्माण होल । मगही में दुइए फिल्म बन सकल हे । 'मोरे मन मितवा' के लेखक-निर्देशक गिरीश रंजन, गीतकार हम (हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी) आउ सहयोगी संगीतकार-गीतकार 'लल्लन' हलन । हमर लिखल, दत्ताराम द्वारा संगीतबद्ध तथा मुहम्मद रफी आउ आशा भोंसले द्वारा गायल 'कुसुम रंग लहँगा मँगा दे पियवा' मुकेश-सुमन कल्याणपुर के गावल 'मोरे मन मितवा, सुना दे ऊ गितवा' तथा मुबारक बेगम के गजल 'मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा' काफी लोकप्रिय होल ।

शास्त्री जी के प्रयास आउ शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा, डॉ॰ वी॰पी॰ सिन्हा, डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ के सहयोग से बुद्ध पूर्णिमा 1964 के दिन 'मगध शोध संस्थान' के उद्घाटन इतिहासवेत्ता डॉ॰ के॰के॰ दत्त कइलन । संस्था के विकास के गति अवरुद्ध देख के शास्त्री जी के बेचैनी आउ चहलकदमी बढ़े लगल । उनकर इच्छानुसार संस्थान के पुनर्गठन ला सिद्धेश्वर प्रसाद, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के नाम से एगो परिपत्र जारी होल । 1967 में संस्थान के पुनर्गठन ला नालन्दा में मगही के विद्वान सब के इकट्ठा कइल गेल । भिक्षु जगदीश काश्यप के अध्यक्षता में सम्पन्न समारोह में पुनर्गठन के प्रस्ताव साकार कइल गेल आउ संचालन समिति बनल । पदाधिकारी मंडल में अध्यक्ष भिक्षु जगदीश काश्यप, उपाध्यक्ष प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद आउ डॉ॰ वी॰पी॰ सिन्हा, मंत्री डॉ॰ सरयू प्रसाद, सहमंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी तथा निदेशक डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री बनलन ।

2-3 मार्च 1968 के दिन सुरेन्द्र प्रसाद तरुण के सौजन्य से राजगीर में संस्थान के पहला अधिवेशन समारोह सम्पन्न होल । मगही के नामचीन विद्वान सब उपस्थित हलन । अतिथि रूप में भुवनेश्वर मिश्र माधव आउ पं॰ रामदयाल पांडेय के आगमन होल । मगही के विकास यात्रा के पड़ाव पर गम्भीर शोधकार्य के उपयुक्त वातावरण बन गेल । संस्थान के मुख पत्रिका 'शोध' के प्रकाशन होल । सरकार के भाषा सर्वेक्षण के काम से आउ देश-विदेश के लोकभाषा विषयक सभे मंच से संस्थान जुड़ गेल । शास्त्री जी भर बउसाह जोर लगा के संस्थान के खड़ा कर देलन । बाकि उनकर ई उत्साह आउ ई ताकत बहुत दिन न चल सकऽ हल । संस्थान के पैड के जंपिंग पैड के रूप में उपयोग होवे लगल । शास्त्री जी के अन्त एगो हारल-टूटल अमदी के अन्त हल । एगो विपट स्वप्न के समाधि । ई प्रसंग जब-जब कौंधऽ हे, मन के कचोटे लगऽ हे ।

शास्त्री जी के अवसान 29 जुलाई 1973 के दिन होल । हमरा खबर देर से मिलल । नालन्दा जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन आउ साथ-साथ नालन्दा के पहिल जिलाधिकारी श्री विन्ध्यनाथ झा महोदय भी अप्पन शोक-श्रद्धांजलि अर्पित कइलन ।

डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ ठाकुर रामबालक सिंह द्वारा 1955-58 में सम्पादित प्रकाशित मासिक 'मगही' के सिलसिला आगे बढ़ावे के ठाकुर रामबालक सिंह के आग्रह से साहस पाके हम 1986 में मगध संघ के तिमाही पत्रिका 'मगही' के सम्पादन-प्रकाशन कइली । पहला अंक शास्त्री जी पर केन्द्रित कर के अप्पन अपराध-बोध कम करे के कोरसिस कइली । कवर पर शास्त्री जी के फोटो के तलाश उनकर अप्पन लोग से पूरा न होल त योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश' के पास दू बार विक्रम जाके फोटू मिलल । किन्तु डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री भक्ति आउ साहित्यकार के मूल्यांकन छापली, व्यक्ति के मूल्यांकन ठाकुर रामबालक सिंह के आउ साहित्यकार के योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश' के ।

बिहार मगही अकादमी, पटना द्वारा पाठ्यग्रन्थ 'इंटरमीडिएट मगही गद्य-पद्य संग्रह' (मातृभाषा) के सम्पादक नियुक्त हो के हम शास्त्री जी के याद करली कि हमरा मगही से जोड़े के उनकर आग्रह के साथ इन्साफ करे ला दोसर लोकभाषा के पाठ्यग्रन्थ के मुकाबले अच्छा ग्रन्थ निकालना जरूरी हे । परिणाम सामने हे । ई पाठ्यग्रन्थ में हम डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री जी के कृष्णदेव प्रसाद से भेंट छापली हे । मगही के ई दू महानायक के इकट्ठा करे वाला ई आलेख मगही इतिहास के बड़गो 'स्कूप' हे । हम एकरा स्कूप काहे कह रहली हे, एकरा समझे ला शास्त्री जी द्वारा एकंगरसराय से सम्पादित प्रकाशित पहिल पत्रिका 'मागधी' के अंक देखे के जरूरत हे । फिनु, मगही के विविध विधा के मानक रचना के अप्पन संकलन 'मागधी विधा विविधा' में कृष्णदेव प्रसाद के 'खर बात खरदूलह के' आउ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के 'बर, बुढ़वा वर' के एक साथ छाप के सन्तोष के अनुभव होल ।

'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास', जे पं॰ राहुल सांकृत्यायन के सम्पादन में निकलल, के लोकभाषा खंड में ऊ गीत के उद्धरण देल गेल हे जेकरा में हम हिन्दी के छे प्रतिष्ठ कवि, जे मगही के अगला पाँत के कवि हथ, के रूप में मउजूद ही ।

हम देखऽ ही आउ शास्त्री जी के याद करऽ ही । बाद में मगही में अब तक बनल दू फिल्म में से एक 'मोरे मन मितवा' लगी दिसम्बर 1964 में बम्बई में हम मुहम्मद रफी, मुकेश, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर आउ मन्ना डे से अपन मगही गीत के रेकार्डिंग करा रहली हल, फिनु जब सूर्या मैग्नेटिक्स, पटना से मगही के पहिला कैसेट जारी करैली, जेकर दसो गीत हम्मर हे त शास्त्री जी के याद करे बिन नञ् रह सकली, जिनकर प्रेरणा से हम मगही में अयली हल ।

हम गवाह ही कि मगही पर श्रीकान्त शास्त्री के अनुराग अथाह हल आउ ओकर विकास ला उनकर उद्योग अपार । विकास के नींव में उनकर पुण्य बल हे । उनकर अनुयायी आउ सहयोगी लोग के बल पर मगही आगे बढ़ल हे । मगही के कामे श्रीकान्त शास्त्री के प्रति सही श्रद्धांजलि हे ।

['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, पृ॰ 16-18; सम्पादकः धनंजय श्रोत्रिय]

Saturday, March 14, 2009

9. हाँ, हम रिश्तेदार ही श्रीकान्त शास्त्री के

हाँ, हम रिश्तेदार ही श्रीकान्त शास्त्री के

[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]

लेखक - धनंजय श्रोत्रिय

अपन बात के पुष्टि ले एगो घटना के चरचा जरूरी समझऽ ही । दिल्ली में 'वागार्थ' पत्रिका के करता-धरता एगो बड़गर कार्यक्रम कर रहलन हल, 'इंडिया इंटरनेशनल सेंटर' में । ऊ घड़ी तक 'वागार्थ' हिन्दी के साहित्यिक पत्रिका में अपन सेसर स्थान बना चुकल हल । से-से डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय लोग के चहेता बन चुकलन हल । खास करके मीडिया ले ।

ऊ घड़ी हमहूँ अखबारी संपादक हली । जन्ने-तन्ने सक्रिय रहे से थोड़े तेजी से पहचान बन रहल हल । हमर कुछ दोस-मोहिम, जे पत्रकारिता के काम से जुड़ल हलन, जाने चाहऽ हलन कि एकर मूल में की हे । एगो पत्रकार मित्र पूछ बइठल - "धनंजय, प्रभाकर श्रोत्रिय तुम्हारे रिश्तेदार हैं ?"

हम बेलाग नहकार गेली । हलाँकि ऊ माहौल में चाहती हल त थोड़े जस हमहूँ अपना दने उपछ सकली हल, अपना के प्रभाकर जी के रिश्तेदार बता के । बाकि, मुरुख जे हली । आखिर में ऊ दुपहरिया के भोजन घड़ी पूछ बइठल - "प्रभाकर जी, धनंजय श्रोत्रिय आपका रिश्तेदार है ?"

हमरा अचरज होल जब ऊ अपन उत्तर 'हाँ' में देलन ।

"लेकिन धनंजय तो कह रहा था प्रभाकर जी, कि आप उसके रिश्तेदार नहीं हैं !" पत्रकार मित्र उनकर उत्तर पर शंका व्यक्त कइलन ।

"वो जरा मुझसे नाराज चल रहा है ।" प्रभाकर जी थोड़े गंभीरता से उत्तर देलन ।

दोसर प्रश्न पूछल गेल - "कैसी रिश्तेदारी है आपसे उसकी ?"

उत्तर मिलल - "आप हमें साहित्यकार-रचनाकार मानते हो ? ... मानते हो न ? ... धनंजय को रचनाकार मानते हो ?"

सबके उत्तर 'हाँ-हाँ' में मिलल । प्रभाकर जी मुस्कइते बोललन - "तो, धनंजय से मेरी रिश्तेदारी में सन्देह कहाँ है !"

हमर खास तरह के मित्र लोग के चेहरा पर आठ बज के बीस मिनट हो गेल

हम ई बात से थोड़े लजइली जरूर बाकि ई बात के गिरह बान्ह लेली कि एक रचनाकार के सबसे करीबी रिश्तेदार दोसर रचनाकारे हो सकऽ हे, ओकर बेटा-पोता नञ् । 'मगही-पत्रिका' के परचार-परसार ले जब गामे-गाम आउ दुआरिए-दुआरिए ढनमनाय पड़ रहल हे, त ई बात के आउ जोरदार ढंग से पुष्टि हो गेल हे, हमर मन में ।

'डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री अंक' जेकर जरूरत हम महसूस कर रहली हल, निकाले के सूचना जब 'मगही पत्रिका' में छापली त दु-चार गो झमठगर मगही के विदमान पूछ बैठलन हमरा से - "श्रीकान्त शास्त्री आपके रिश्तेदार थे क्या ?" बस, प्रभाकर श्रोत्रिय के इयाद करके उनकर चेहरा पर 'आठ-बीस' बजा देली । अजगूत लगल कि आदमी के सोंच के स्तर के सिमाना केतना सिकुड़ गेल हे । खास करके तब जब हमरा से पूछल गेल - "उनकर परिवार के लोग आर्थिक सहजोग दे रहलन हे न ?" याने ऊ अपना के उनका से अलग मानऽ हथ । व्यक्तिवादी दिमाग में कभी समष्टिवादी विचार उभर नञ् सकऽ हे, जैसे बाँस के कोठी में कभियो मीठा फल नञ् लग सकऽ हे ।

खैर, लोग जिनका परिवार कहऽ हे, उनको पर चरचा जरूरी हे । सबसे पहिले खोजते-ढूँढ़ते श्री विष्णुकान्त शर्मा जी के पास गेली, जे जहानाबाद में ऊटा में रहऽ हथ, आउ उनकर बड़का दमाद हथ । पत्रिका देखलन । उनकर अनेक सवाल के जवाब देवे पड़ल, बाकि हमर जरूरत के कोय चीज प्राप्त नञ् हो सकल हुआँ । उनका पास डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री से जुड़ल जे चीज हे, ऊ हे - 'धन मधे धन, तीन लुंडा सन ।'

उनकर छोट दमाद सुरेश आनंद जी से मिले खातिर मायथन गेली बाकि हमर दुरभाग कि भेंट नञ् हो सकल । रह गेलन प्रो॰ शेषानंद बाबू आउ डॉ॰ मारुति बाबू जिनका ल हमर मन में विशेष आदर हे । अपन कोरसिस के बावजूद हम दुरभाग बस उनका पकड़ नञ् सकलूँ । अपने सबसे बादा हे कि ई तीनों विभूति के पास डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री से जुड़ल जे भी सामग्री इया संस्मरण होत, 'मगही पत्रिका' के आगू के अंक में हम जरूर परोसम । ... शास्त्री जी के अप्रकाशित मौलिक रचना तो अब मोसकिले से मिल सकत । शास्त्री जी के ... जदि कुछ रचना प्रकाश में आ सके त हम्मर धन्न भाग !

1955 में जब 'मगही' के छपे ल शुरू होल, ऊ समय शास्त्री जी के साथ ठाकुर रामबालक सिंह के अलावे नउजवान के एगो तिकड़ी हल । ऊ तिकड़ी के दू हस्ताक्षर से अपने के खूब परचे हे, ऊ हथ - मगही के सेसर कहानीकार श्री रवीन्द्र कुमार आउ मगही के सेसर गीतकार डॉ॰ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी । ई अंक में तीनों के रचना सामिल हे । स्व॰ ठाकुर रामबालक सिंह के लेख 'मगही गद्य-पद्य संग्रह' से साभार लेली हे, जे एगो वैयक्तिक लेख हे । रवीन्द्र कुमार डॉ॰ शास्त्री जी के तरासल रचनाकार हथ, ई गुने उनकर रचना संस्मरणात्मक हे, जबकि डॉ॰ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के लेख ऊ घड़ी के मगही के परिदृश्य चित्रित करे हे जेकर तथ्यात्मक पुष्टि के प्रमाण सिर्फ लेखक के पास हे ।

जब 'मगही' के प्रकाशन रुक गेल आउ 'शोध' जलमतहीं काल के कल्ला में चल गेल त शास्त्री जी लगभग फरास हो गेलन । 'श्रीकान्त सरधांजली अंक' में डॉ॰ रामनन्दन के मसुआइल फूल से लगऽ हे कि उनकर मन में कुहासा भरल 'बिहान' के भी अंदेसा छाय लगल हल । ईहे समय में ऊ एक दिन प्रो॰ वीरेन्द्र वर्मा (हिन्दी/ मगही के श्रेष्ठ गद्यकार) हीं पहुँचलन । वर्मा जी हलन तो मैथिलीभाषी आउ पढ़वऽ हलन अंग्रेजी, बाकि मगह में रहे के चलते उनका मगही से भी मोह हो गेल, जेकरा में श्रीकान्त शास्त्री जी के भी जोगदान हे । प्रो॰ वर्मा के संस्मरण में उनकर टूटन के झलक साफ मिलऽ हे ।

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हमरा जानकारी में खोरठगर से खोरठगर जेतना धातु के कुंदन बनावे के काम डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री कयलन, ओतना आज तक कोय मइया के लाल नञ् कर सकल हे , नञ् करत !

['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, के 'संपादकीय' अंश, पृ॰ 5-6]

8. पंडित जी

पंडित जी

[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]

लेखक - ठाकुर रामबालक सिंह

डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के हमनी पटनियाँ सब 'पंडित जी' के नाम से जानऽ हली । 1955 में 'मगही' मासिक पत्रिका जब छपावे के विचार होलई तब पटना यंगमेन्स एसोसिएशन के सदस्य सब के विचार होलई कि मुख्य सम्पादक पद पर भिक्खु जगदीश काश्यप इया डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के रखल जाय ।

ई काम ला हमनी 'पंडित जी' के गाँव नारायनपुर गेलूँ । हमनी समझइत हलिअइ कि 'पंडित जी' तिनफक्का चन्नन लगउले, खड़ाऊँ पेन्हले, टीकी बढ़इले, कउनो बड़गो पुजारी होथिन । मुला जा ही त का देखऽ ही कि खद्दर के मइल-कुचइल धोती आउ फटिहर गंजी पेन्हले एगो दुब्बर-पातर अदमी आठ-दस गो लइकन के पढ़ावइत हलथिन । हमनी सलाह-मसविरा कयलियइ त ऊ 'मगही' के सम्पादन करे ला तइयार हो गेलथिन ।

ओक्कर बाद 'पंडित जी' के साथे हम बिहारशरीफ गेलूँ । बिहारशरीफ में बहुत्ते व्याख्याता आउर 'मगध संघ' के नौजवान लोग हमनी के साथ देलथिन । एकरा में सर्वश्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, डॉ॰ सिद्धेश्वर प्रसाद, प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री, महेश्वर तिवारी ओगइरह के भुलावल न जा सकऽ हइ । तय होलई कि 'मगही' 'बिहार मगही मंडल' के तत्त्वावधान में 'मगध संघ' से प्रकाशित होतई । एही बिबरन मगही में बराबर छपलई ।

फिन हमनी प्रियदर्शी आउ रवीन्द्र कुमार के साथ ले के भिक्खु जगदीश काश्यप से भेंट करे नालन्दा गेलूँ । सुरू में 'मगही' के मुख्य सम्पादक काश्यपे जी के बनावे के विचार हलई । काश्यप जी जानऽ हलथिन कि मगही भाषा ला पंडित जी हड्डी गला रहलथिन हल । ई सोंच के ऊ कहलथिन कि सम्पादक श्रीकान्त शास्त्री आउ तों (ठाकुर रामबालक सिंह) रहऽ, हमरा त्रिपिटक के हिन्दी में छपावे के काम से फुरसत न हो । प्रियदर्शी जी कहलका कि अपने मगध संघ के निर्देशक हथिन, ई मगध संघ के पत्रिका हे, एकरो निर्देशक अपने रहथिन । प्रियदर्शी जी के ऊ मानऽ हलथिन, मान गेलथिन । 'मगही' के पहिला अंक छापे ला एक सौ रुपइया भी काश्यप जी देलथिन ।

'मगही' के पहिला अंक ला पंडित जी बड़कन-बड़कन साहित्यकार के लिखलथिन । बहुत्ते लोग के सन्देस मिलल । हिन्दी के दधीचि शिव जी (आचार्य शिवपूजन सहाय) के सन्देस हल - "मगही मीठी एवं मुलायम बोली है । महिलाओं के मुख से उसमें और मिठास आ जाती है; यह बात मेरे गुरु पं॰ ईश्वरी प्रसाद शर्मा कहा करते थे ।"

पहिला अंक दू हजार छापलूँ । ओकर अइसन धूम मचल कि हो रे बस ! पटना, कलकत्ता, दिल्ली के करीब सबे अखबारन में ऊ अंक के बड़ाई छपल । फिन तो मगही के जे प्रचार भेल कि लोग मगही कार्यालय में आ-आ के 'मगही' खरीदे लगलन । बड़ी मोसकिल से दस-पाँच कौंपी बचा के रखऽ हलूँ । अब तो एक्को अंक हमरा पास न बचल हे ।

पंडित जी के सम्पादन में मगही के दिन दोगना आउ रात चौगना रूप निखरइत रहल । मगही पत्रिका के चलते एक-से-एक बढ़ के लेखक आउ कवि के जनम भेल । एकरा में सर्वश्री सुरेश दुबे 'सरस', रामनरेश पाठक, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, लक्ष्मण प्रसाद दीन, योगेश, डॉ॰ रामनन्दन, डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद ओगइरह के नाम लेबे लायक हे । सुरेश दुबे 'सरस' के कविते-सेंगरन 'निहोरा' बिहार सरकार के पुस्तकालयन ला मंजूर भी भेल हल । रामनरेश पाठक अप्पन 'अगहन के भोर' कविता के जब मधुर सुर के साथ राँची कौलेज में परस्तुत कयलथिन तब कइठो बिदेसी लोग ओकरा टेप करके अप्पन-अप्पन देस ले गेलथिन । प्रियदर्शी के 'कहमा पिया केरा गाँव ?' टेक वाला गीत मगही गीत के नमूना बन गेल । रवीन्द्र कुमार के 'मन के पंछी' कहानी तो एत्ते चलल कि घरे-घर अउरत-बानी ओकरा रट गेलथिन । योगेश जी आउ डॉ॰ रामनन्दन के चुटकी सुन-सुन के तो आझो लोग लोट-पोट हो जा हथ । डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद के 'मंजर' शीर्षक निबन्ध भी बहुत चरचित भेल ।

1957 में 'पंडित जी' के गाँव नारायनपुर भिर एकंगरसराय में पहिला मगही सम्मेलन भेल । एकर सफलता लागी देस-भर से आउ बिदेस से भी, ऊ बखत के चीन के प्रधान मंत्री स्व॰ चाऊ-एन-लाइ तक के, सन्देस आयल हल । एकर उद्घाटन कयलथिन हल ऊ बखत के बिहार के शिक्षा-मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा आउ सभापतित्व कयलथिन भिक्खु जगदीश काश्यप । बड़ी धूमधाम से ई सम्मेलन भेल आउ एकर रिपोर्ट मगही के नौवाँ अंक में छपल । ई सब एतना जे लिख रहलूँ हे, ई सभ काम पंडित जी के हाँथ से होवऽ हल । तन, मन, धन, सब कुछ पंडित जी मगही आन्दोलन ला नेछावर कइले हलन । हम तो छाया नियन खाली उनखर साथे रहऽ हलियई ।

मगही सम्मेलन में पहिले 'पंडित जी' 'बिहार मगही मंडल' के गठन कयलथिन हल, जेकर सभापति हलथिन डॉ॰ बिन्देश्वरी प्रसाद सिन्हा, उपसभापति डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद (बाद में कुलपति, मगध विश्वविद्यालय), आउ मंत्री हलथिन डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद । डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद के हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, चल गेला के बाद मंत्री के काम डॉ॰ रामनन्दन (भूगोल विभाग, पटना विश्वविद्यालय) सँभारे लगलथिन । मुला जभी कोय काम होवे त 'पंडित जी' के नारायनपुर से बे अइले न होवऽ हल ।

मगही सम्मेलन के बाद हमरा राँची में नौकरी लग गेल । 'मगही' तब रुक-रुक के परकासित होवे लगल । ओकरा बाद 'पंडित जी' डॉ॰ रामनन्दन के मदद से 'बिहान' प्रकासित करे लगला । जे बखत पंडित जी 'मगही' सुरू कयलथिन हल ऊ बखत आई॰ए॰ पास हलथिन । मगही आन्दोलन, लड़िकन के विद्यालय आउ घर के पचड़ा रहे पर भी 'पंडित जी' प्रतिष्ठा के साथ बी॰ए॰ आउर एम॰ए॰ कयलथिन आउ बाद में पी-एच॰डी॰ भी । 'पंडित जी' के बेतुहार खरचा देख के पंडिताइन रंज रहऽ हलथिन । ऊ अप्पन अलगे कोठली में पूजा-पाठ, चउका-बरतन करऽ हलथिन ।

हमरा राँची अइला के बाद भी ऊ अकेले मगही के गाड़ी के खींचते रहलथिन । 1964 में 'मगध संघ' के चौदहमा अधिवेसन के अवसर पर बिहारशरीफ में दोसर मगही सम्मेलन भेल । आउ भी केतना जगह पर सम्मेलन भेल । बिहारशरीफ के सम्मेलन में 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना ला संकल्प लेल गेलई हल । ओही मगही के पहिला गैर-सरकारी अकादमी हलई । निदेसक बना के 'पंडित जी' ओकरा चलयलथिन हल । कुछ दिन तक ऊ सुभाष हाई स्कूल, इसलामपुर में शिक्षक के काम कयलथिन हल । मुला विश्वविद्यालय में तो जात-पाँत, भाई-भतीजावाद भरल हे । ईनखर पांडित्य आउ गहिरा अध्ययन के केऊ कदर न कइलकई । जूझइत-जूझइत आखिर में मगही-मगही जपइते बेचारे मगहिया अग्रदूत 1973 में 29 जुलाई के ई संसार से चल देलथिन ।

'मगही', 'बिहान' आउर बहुत्ते-मनी पत्र-पतरिका में उनखर लेख 'एगो मस्त मगहिया' के नाम से छपऽ हल । 'पंडित जी' में सबसे बड़ खूबी ई हल कि ऊ मगहिये में सोचऽ हलथिन आउ मगहिये में लिखऽ हलथिन ।

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भारतेन्दु जइसन कम्मे उमिर में 'पंडित जी' संसार छोड़ देलन । कुछ दिन आउर दुनिया में रहितन हल तऽ भाषा-विज्ञान में एगो नया मोड़ जरूरे अइतई हल । उप्पर जे लिखल गेलइ हे कि हमनी जब उनखर गाँव गेलूँ हल, ऊ बखत 'पंडित जी' लड़िकन के पढ़ावऽ हलथिन । सब्भे लड़िकन के बिना फीस के पढ़ावऽ हलथिन । भाषा-विज्ञान के विदमानन हियाँ जा-जा के भेंट करऽ हलथिन । हमरा एक बेर सुनीति कुमार चटर्जी हियाँ कलकत्ता ले गेलथिन । पंडिते जी के किरपा से राहुल जी के कताब 'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास' में हमनी के आउ मगही के जिकिर भेलई हे । आर॰आर॰ दिवाकर के किताब 'बिहार थ्रू दी एजेज' में मगध पर जे परिच्छेद लिखल हई ऊ पंडिते जी के लिखल हई । चम्पारण जिला, बंगरी गाँव के श्री गणेश चौबे, 'भोजपुरी' मासिक के सम्पादक श्री रघुवंश नारायण सिंह, श्री कामता प्रसाद सिंह 'काम', श्री कृष्णदेव प्रसाद एडवोकेट, ई सब के साथे तो हमनी के साहित-चरचा चलतहीं रहऽ हलई ।

['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, पृ॰ 7-9; सम्पादकः धनंजय श्रोत्रिय]

Friday, March 13, 2009

7. अन्तिम मुलकात एगो अजनबी से

अन्तिम मुलकात एगो अजनबी से

[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]

लेखक - प्रो॰ वीरेन्द्र कुमार वर्मा (जन्मः 10-1-1939)

हम्मर भुरुकवा दस बजे के बाद उगे हे । आउर दिन के तरह ऊहो दिन भुरुकवा उगे के इन्तजार में बिछाओन पर ओघड़ाल हली कि छोटकी बेटी हँकारलक - "कोय मिले ला अयलथुन हे ।"
"केऽ ...?"
"अरे, उठके देखहो न, हम नञ् चिन्हऽ हकिओ !"

कुनमुनाइत ठुनकैत नीन से बिदाई ले के बाहर निकललूँ ! बैठकी में मिलला मगही के मीसन । जी, मीसन, डॉ॰ श्रीकान्त ! गोर देह, मुदा समय के मार से छत-बिछत सरीर पर लेपल झाईं, कारिख, जहाँ-तहाँ झुर्री से झाँकइत हतासा के टेढ़-मेढ़ लकीर ! परनाम-पाती भेल । आउर हम भौंचके देख रहलूँ हें । बार-बार, अनेक बार निहार रहलूँ हें । ई उहे श्रीकान्त जी हथ, जिनका से पहिलुक मिलन मगही-हिन्दी के प्रसिद्ध साहितकार श्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के घर होल हल । कउनो मिटिंग हल । मगही के बिस्तार वेबहार, विकास पर बल देबे ला । विचार कैल गेल । उहे मिटिंग में डॉ॰ सरयू के एक अंकीय पतरिका 'शोध' बीज पइलक हल ! उ छोड़ऽ, श्रीकान्त जी के बात हे ! जवान-जुआन देह, परसस्त ललाट, चमकइत आँख, विसवास से भरल आवाज ! एक सपना जे मीसन में बदल गेल इया डॉ॰ श्रीकान्त के सउँसे निगल गेल । आउर आज ! टूटल काँच निअर उ सपना के कन-कन जे पूरे सरीर पर पसर के उनका अजनबी बना रहल हे ! न बाबा ! दुनु श्रीकान्त के बीच बड़गो अन्तराल हे ! बड़गो !

"अरे मौसिऔत की घुर-घुर देख रहलऽ हे ?"
"हाँ, तोहरे देख रहलूँ हँ ! कउन हाल कर लेलऽ हे ! "
"आध गो सरीर तो बिमारी खइलको आउर समपूरन सरूप मगही के उपेछा ! मगह के वासी मगही नञ् बोलतन, नञ् लिखतन, त कि मदरास आउ महाराष्ट्र के अदमी बोलत या लिखत ! पर, केकरा समझाऊँ, के सुनत ! सभे के तो गाय के दूध माय के दूध से जादे मीठ लग रहल हे ! हम त हार गेलिओ, मीसन में असफल हो गेलिओ ! "

"ई की बोल रहलऽ हे तूँ ! तोहरा निअर जोद्धा कबहिओ हार माने वाला हो सकऽ हे की ?"
"तऽ अब की करिओ ? घर-दुआर बिखर गेलो, अप्पन पराया हो गेलो । हम गाँव-गाँव घुमते रहलूँ ! लोगन के जगबइत रहलूँ, मुदा सुतल के न जगइबऽ, जागल के नीन के केऽ तोड़ सकऽ हे । ..." (एक छन ठहराव)

"ए वर्मा जी, एक बात हमरा से सीखऽ ! मगही भाई लोगन अउपचारिक सुआगत-सम्मान में कभिओ कान-कुतुर नञ् करतन, मुदा जब काम के बात करवऽ तऽ ढेंका कस के चुप्पी साध लेथुन । 'स्व' से 'पर' तक के जतरा करे के उनका गेयाने नञ् हे, आउर कुछ अमदी में अगर अइसन परेरना हे तऽ समाज में उनकर पहिचान मिटाबे ला, सभे जुट जा हथ । "तू महात्मा बनवऽ ? हम तोहरा अमदीयो से नीचे लुढ़का देबो !"

"ई सब नञ् हे श्रीकान्त जी ! असल में ई समइए विघटन के हे, विखराव के हे, मानव-मूल्य के गिरावट के हे ! साहित, संस्कृति, संस्कार, कला के हरासमान जुग हे ई ! अमदी-अमदी के बीच कटाव हो गेल हे । खुद अपने में भी अमदी के कटाव हे । अमदी के split personality हो गेल हे ! एहो गुनी सभे कुछ बदल गेलइ हे ।"

"ठीक हे, मुदा इहे जुग में तो बिहार के आउर लोक-बानी हे ! उठ रहल हे, लिखताहर के संख्या में दिन-दूना रात चौगुना बढ़ोतरी हे ! मुदा मगही के की हाल हे ! लिखताहर के गिनती जरूरे बढ़ल हे, मुदा पाठक । पाठके नञ् तऽ भासा के की हाल होत ! रोज-ब-रोज पत्र-पत्रिका पूरा जोश से, संकलप से, निकालल जा हे, आउर एक-दू अंक के बाद दस्तावेजी खाता में बिला जा हे । प्रश्न ई नञ् हे कि लिखताहर लिखे, प्रश्न हे समाज में मगही के मान-सम्मान होय । गाय के दूध पी के सरीर फैलावऽ, मुदा गाय के दूध से मन-आतमा के परितृप्त करऽ ! माय के दूध संजीवनी हे । मगही में तभिए निम्मन रचना आयत, जब मगहवासी भासा में प्राण-संचार करतन ! ई तू गाँठ बान्ह लऽ ।

"नञ् श्रीकान्त जी, मीसन हवा में घुल-मिल गेलो ! ई चिनगारी कभी न कभी धुँधुऐतो । आउर, उ दिन दूर नञ् हो । तोहर समरपन व्यर्थ नञ् हे, ई विसवास हे ! चलऽ, आवऽ, भोजन पर जुटऽ ।"

एगो आम अदमी, आम रूप धारन कयले, सरल, सादा याने आम खाना खा के बस एक खास बात कहलन, "मन के दरद कुछ बाँट लेलियो । कुछ हलका महसूस कर रहलियो हे ! माय के बेटन से अधिक सहज भाव से मउसी के बेटा मिललऽ ! देखऽ, फेर कब गला-गला मिलइत ही ! अच्छा, अब चलबो ! आउर सब से मिलना हे ।"

श्रीकान्त जी गेलन, चल गेलन, बिछुड़ गेलन । अब ... ???

['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, पृ॰ 19, 40; सम्पादकः धनंजय श्रोत्रिय]

1. मगध संघ

मगध संघ

लेखक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (जन्मः 1-10-1935)

मगध के साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक तथा मगध के लोकभासा, साहित्य, संस्कृति आउ कला के संरक्षण, संवर्द्धन, अनुशीलन आउ परकासन के उद्देश्य से हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, अंजनी कुमार वर्मा आउ उमेश कुमार सिन्हा २३ नवम्बर १९५० ई॰ में बिहारशरीफ में 'मगध संघ' के स्थापना कइलन हल । युवा लिखताहर के गोष्ठी से बढ़ के संघ धीरे-धीरे बिहार अनुमंडल के प्रतिनिधि साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था बनल आउ नालन्दा जिला के गतिशील मगही-मंच तथा सबसे पुरान मगही-सेवी संस्था के रूप में अपन पहिचान बना चुकल हे ।

संस्थापना के बाद पूज्यवर भदन्त भिक्षु जगदीश काश्यप जी से संघ के निर्देशक बने ला अनुरोध कइल गेल । निर्देशन में ऊ दैनंदिन बेवहार में मगही के परयोग आउ मगध के आउ सब केन्द्र में संगठन के परसार पर जोर देलन । संघ के प्रस्ताव पर पटना, राजगीर आउ नालन्दा में गठन कइल गेल, जेकरा में श्री सुरेन्द्र प्रसाद तरुण के परयास से १९५१ में स्थापित 'मगध सांस्कृतिक संघ', राजगीर बहुत्ते काम कर चुकल हे । टोकियो के दोसर विश्वबौद्ध सम्मेलन से वापसी पर २ नवम्बर १९५२ के दिन श्री बिहार हिन्दी पुस्तकालय, बिहारशरीफ में काश्यप जी के सम्मान में संघ के तरफ से बड़का आयोजन कइल गेल । ई अउसर पर संघ के तीसर अधिवेशन के अध्यक्ष पद से काश्यप जी मगही के अपनावे ला जनता से अहवान कइलन ।

१९५२ में पटना में 'बिहार मगही मंडल' के स्थापना के बाद डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ श्री ठाकुर रामबालक सिंह मंडल आउ संघ के बीच सहजोग आउ बिहार मगही मंडल के तत्त्वावधान में मगध संघ से मगही मासिक 'मगही' के परकासन के प्रस्ताव रखलन । संघ के परयास से काश्यप जी सम्पादन निर्देशक बने ला स्वीकृति देलन । नवम्बर १९५५ से १९५९ तक 'मगही' के परकासन से मगही के विकास में जे गतिशीलता आयल हल, अब ऊ इतिहास हे ।

संघ के सतमा अधिवेशन डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अध्यक्षता में २९ जनवरी १९५७ में होल । मगही लोक-साहित्य के संरक्षण आउ विकास, चिन्मय सम्पत्ति के रूप में मृण्मय सम्पत्ति से भी बढ़ के करे पर ऊ जोर देलन आउ कहलन कि लोक-साहित्य से अपन संस्कृति के समझे में सहायता मिलत आउ राष्ट्रभाषा के गउरव बढ़त ।

मंडल आउ संघ के सहजोग से डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री एकंगरसराय में ६ अक्टूबर १९५७ के अइतिहासिक पहिला मगही महासम्मेलन के आयोजन कइलन । शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा उद्घाटन आउ भिक्षु जगदीश काश्यप अध्यक्षता कइलन । मगध संघ के तरफ से 'मगही' नामक पुस्तिका के ई अवसर पर परकासन होल, लेखक प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री खुलल अधिवेशन में ओकर पाठ कइलन । मगही पर पहिला परकासित शोध-निबन्ध के रूप में मगही के सब इतिहास में ओकर उल्लेख हे । अधिवेशन में 'जनपद आन्दोलन' के रूप में मगही आन्दोलन के विकास आउ ई ला विभिन्न केन्द्र के संगठन के प्रतिनिधि ले के केन्द्रीय मगही संस्था के गठन के 'मगध संघ' के महामंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के प्रस्ताव, साहित्य मंत्री गिरीश रंजन के समर्थन के साथ सर्वसम्मति से स्वीकार कइल गेल । केन्द्रीय गठन ला संघ के तरफ से २७-२-१९६२ के बिहारशरीफ में प्रतिनिधियन के सभा बुलावल गेल जेकर अध्यक्षता डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री कइलन । परयास सफल न होल ।

संघ के चउदहवाँ अधिवेशन पर अप्रैल १९६४ के दिन बिहारशरीफ में संघ के तरफ से दोसर मगही महासम्मेलन के भव्य आयोजन होल । डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद अधिवेशन के आउ डॉ॰ बी॰पी॰ सिन्हा मगही सम्मेलन के अध्यक्षता कइलन । पूरा मगही समाज जुड़ल । डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ, डॉ॰ राजाराम रस्तोगी, डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, प्रो॰ श्यामनन्दम शास्त्री, रामगोपाल 'रुद्र', रामनरेश पाठक, सदस्य शांतिप्रिय, परिमलेन्दु, गोपी बल्लभ, विद्यार्थी, 'करुणेश' आदि के अतिरिक्त अतिथि रूप में श्री ब्रजकिशोर 'नारायण' आउ आचार्य महेन्द्र शास्त्री भी उपस्थित हलन । मगही में डी॰लिट्॰ प्राप्ति पर डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के सम्मान कइल गेल । विशेष प्रस्ताव में 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना के निश्चय होल । प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के आहवान पर, ई प्रस्ताव के कार्यान्वयन २९ जनवरी १९६७ के दिन होल । नवनालन्दा महाविहार में भिक्षु जगदीश काश्यप के अध्यक्षता में संस्थान के स्थापना होल ।

संघ द्वारा एकर केवल मगही भाषा के उद्भव, विकास आउ स्वरूप पर दू गो विचार गोष्ठी बिहारशरीफ में १९ नवम्बर १९६३ आउ सितम्बर १९६६ में आयोजित कइल गेल जेकर अध्यक्षता क्रमशः डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ भिक्षु जगदीश काश्यप कइलन ।

केन्द्रीय मगही मंच के गठन ला एगो आउ प्रयास ८ अप्रैल १९७९ के दिन कइल गेल । संघ के आहवान पर डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के राजेन्द्र नगर, पटना स्थित निवास-स्थान पर उनकर अध्यक्षता में सम्पन्न बैठकी में श्री रामनरेश पाठक, श्री सतीश कुमार मिश्र (पटना); डॉ॰ रामप्रसाद सिंह, श्री रासबिहारी पांडेय, श्री रामदेव मेहता 'मुकुल' (गया); श्री ठाकुर रामबालक सिंह (राँची); श्री जनकनन्दन सिंह 'जनक' (शेरघाटी); श्री रामविलास 'रजकण' (अतरी); डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (बिहारशरीफ) उपस्थित होलन । मगही संस्था सब के दू-दू प्रतिनिधि ले के 'केन्द्रीय मगही मंच' के गठन करे के सामान्य नीति आउ कार्यक्रम-समन्वय ओकर जिम्मे रक्खे के तथा ओकर स्थायी मुख्यालय पटना में रक्खे के हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के प्रस्ताव स्वीकार कइल गेल । प्रस्ताव के कार्यान्वयन ला संस्था सब के सहमति लगी 'मगध संघ' के प्रयास चल रहल हे ।

आकाशवाणी से मगही के अलग प्रसारण, सरकारी मगही अकादमी के स्थापना, विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में मगही के स्थान आउ केन्द्रीय साहित्य अकादमी में मगही के मान्यता के आन्दोलन में संघ के महत्त्वपूर्ण भूमिका रहल हे । अकादमी के गठन-संचालन में मगही लेखन-आन्दोलन से जुड़ल साहित्यकार-कलाकार के प्रधानता देवे लगी मगध संघ के स्मार-पत्र अध्यक्ष डॉ॰ इसरी बिहार सरकार के देलन । कार्यान्वयन के प्रतीक्षा हे ।

कला के क्षेत्र में कलकत्ता 'यूथ क्वायर' के तरफ से कलकत्ता में १९६९ में आयोजित भारतीय लोक संगीत समारोह में कला-मंत्री 'लल्लन' के अगुअइ में मगध संघ के कलाकार दल के मगही कार्यक्रम कलकत्ता के सब्भे अखबार द्वारा सबसे जादे सराहल गेल । मगही में फिल्म-निर्माण ला संघ के प्रयास से १९६३ में निर्माण-संस्था 'मगध-फिल्म्स्' के स्थापना आउ निबन्धन पटना में होल । ई यूनिट द्वारा १९६४ में आर॰डी॰ बंसल प्रोडक्शन, कलकत्ता के मगही फिल्म 'मोरे मन मितवा' के निर्माण होल, जेकर प्रदर्शन १९६५ में होल । संघ के साहित्य-मंत्री गिरीश रंजन ओकर लेखक-निर्देशक तथा मंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी आउ कला-मंत्री 'लल्लन' ओकर गीतकार हलन ।
बिहार के पहाड़ी, किला आदि सांस्कृतिक स्मारक के रक्षा ला संघ के प्रतिनिधि-मंडल १९६३ में बिहार धार्मिक-न्यास मंत्री आउ पटना के आयुक्त से मिल के आश्वासन लेलक आउ सभा, अखबार, आकाशवाणी तक से आन्दोलन चलइलक । चीनी आक्रमण पर प्रतिरोध-भावना के विचार के आधार देवे ला संघ श्रम-कल्याण केन्द्र, बिहारशरीफ में १८ नवम्बर १९६२ के दिन अपने ढंग पर देश में शायद पहिला बुद्धिजीवी-सम्मेलन के आयोजन कइलक । आपातकाल के समय नागार्जुन आदि बागी साहित्यकार के अभिनन्दन ला नालन्दा कॉलेज प्रेक्षागार में मगध संघ के आयोजन यादगार हे ।

मगध संघ मूलतः मगही-सेवी संस्था हे, बाकि नालन्दा जिला-गठन तक ऊ अपन क्षेत्र के सम्पूर्ण साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधि के प्रतिनिधि मंच के भूमिका निभइलक । पैंतीस साल में साढ़े तीन सौ आयोजन के एकर रेकार्ड हे । रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी विवेकानन्द, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द, रामचन्द्र शुक्ल आदि के शताब्दी-उत्सव, मानस चतुश्शती, सूर-पंचशती आउ हर साल हिन्दी दिवस, सरहपा जयन्ती, तुलसी जयन्ती, भारतेन्दु जयन्ती, केशवराम भट्ट जयन्ती आदि के आयोजन होल हे । मगही विद्वान सब के आउ नालन्दा क्षेत्र के हिन्दी विद्वान के भी पी-एच्॰डी॰ प्राप्ति पर सम्मान, उनकर पुस्तक के विमोचन, आउ ओकरा पर परिचर्चा बराबर होवऽ हे । मगही आउ हिन्दी के, दोसर भारतीय आउ विदेसी भाषा के भी साहित्यकार के निधन पर शोक-सभा के आयोजन होते रहल हे ।

सरकारी कामकाज में हिन्दी लागू करे के आन्दोलन में संघ सेठ गोविन्द दास, डॉ॰ लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु', पं॰ रामदयाल पांडेय, प्रो॰ केसरी कुमार आउ प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद के मार्ग-दर्शन में केन्द्र आउ हिन्दीभाषी राज्य सरकार सब से बराबर सम्पर्क में रहल । एकमात्र राजभाषा के रूप में बिहार में हिन्दी के उचित स्थान ला मगध संघ निरन्तर संघर्ष-रत रहल ।

मगध संघ के मासिक 'मूल्यांकन' गोष्ठी १९६१ से प्रारम्भ होल । कोय साहित्यिक या सामयिक विषय पर निबन्ध-परिचर्चा के विचार-गोष्ठी; प्रकाशित पुस्तक पर लिखित-मौखिक परिचर्चा के समीक्षा गोष्ठी अथवा पठित रचना पर संघ-प्रतिक्रिया के रचना-गोष्ठी हर महीना बैठऽ हे । जिला के रचनाधर्मी सरजक लोग के साहित्यिक अभिव्यक्ति के जाँच-परख लगातार चल रहल हे । 'मूल्यांकन' के मूल्यवत्ता निर्विवाद हे ।

नालन्दा जिला-गठन के समय, ३ नवम्बर १९८६ के, श्रम कल्याण-केन्द्र, बिहारशरीफ में मगध संघ द्वारा आयोजित जिला के साहित्यकारन के सभा में नालन्दा जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के स्थापना होल । हिन्दी-मंच के भूमिका सम्मेलन के सौंप के संघ मगही-मंच के अपन मूल स्वरूप में आ गेल । संघ के मासिक 'मूल्यांकन' गोष्ठी तब से सम्मेलन के साहित्य-गोष्ठी के रूप में चल रहल हे । संघ सम्मेलन से सम्बद्ध हे । 'मगध संघ प्रकाशन' के पुस्तक सम्मेलन ग्रन्थशाला में निकलऽ हे । मगही के अलावा संघ हिन्दी पुस्तक के प्रकाशन भी करऽ हे । संघ मगही आउ हिन्दी में दुराव नऽ मानऽ हे, अपनत्व मानऽ हे । एकर साहित्य-गोष्ठी में मगही आउ हिन्दी के अलावे दूसर-दूसर लोकभाभाषा तथा उर्दू, बंगला आउ अंग्रेजी रचना के भी पाठ आउ ओकरा पर परिचर्चा होते रहल हे ।

मगही में 'मगध संघ प्रकाशन' प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री के चर्चित शोध-निबन्ध के अलावे हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के शोध-निबन्ध 'मगहीः विकास के आन्दोलात्मक स्वरूप' तथा सम्पादित मगही गद्य साहित्य संकलन 'मागधी विधा विविधा' : खण्ड-१ (मगही गद्य साहित्य) के प्रकाशन कर चुकल हे । १९८६ में 'मागधी विधा विविधा' : खण्ड-२ (मगही काव्य साहित्य); प्रियदर्शी के मगही कविता-संग्रह 'रेत पर हस्ताक्षर' आउ श्री रवीन्द्र कुमार के मगही कहानी संग्रह 'अजब रंग बोले' के प्रकाशन जल्दीये होवे के हे । मगध संघ के मगही तिमाही पत्रिका 'मगही' के प्रवेशांक (जनवरी-मार्च १९८६) निकल रहल हे । संघ १९५५ में मासिक 'मगही' के प्रकाशन से जुड़ल हल । तिमाही 'मगही' ओही सिलसिला के अगला कड़ी मानल जा सकऽ हे । सहजोग के सब से अपेक्षा हे ।

हिन्दी में हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के काव्य-संग्रह 'प्रियदर्शिनी', 'सोनजुही की छाया', 'एक युग प्रतिबद्ध', आउ 'मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा' तथा गद्य में 'नवादा जिला-परिचय', 'नालन्दाः इतिहास और संस्कृति'; आउ 'पुस्तकालयः आन्दोलन का इतिहास और निर्देशिका'; डॉ॰ आर॰ इसरी 'अरशद' के काव्य-संग्रह 'जानेमन' आउ कथा-संग्रह 'बाल ईसप' तथा श्री रामचन्द्र अदीप के कहानी-संग्रह 'तीसरी नजर' के प्रकाशन संघ कइलक हे आउ प्रो॰ वीरेन्द्र कुमार वर्मा के कहानी-संग्रह 'वृत्त की भटकती त्रिज्याएँ'; हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के सम्पादन में नालन्दा के आधुनिक हिन्दी-काव्य के संकलन 'स्वर विसंवादी' तथा हिन्दी कहानी के प्रतिनिधि संकलन प्रकाशनाधीन हे ।

पिछला पैंतीस बरस में मगध संघ नालन्दा अंचल में बौद्धिक-साहित्यिक वातावरण आउ सरजनशीलता ला लगातार प्रयासशील रहल हे । जिला में जबकि शायदे कोय साहित्यकार हथ, संघ जिनका मंच, मान्यता आउ मान नऽ देलक हे, रवीन्द्र कुमार, गिरीश रंजन, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' आउ रामचन्द्र अदीप अइसन साहित्यकार भी हथ, अपना के एकर वातावरण के उपज माने में जिनका कहियो सकुचाहट न रहल हे ।

मगध संघ के वार्षिकोत्सव में विख्यात साहित्यकार भाग लेते रहलन हे । एकर पदाधिकारी आउ कार्यकर्ता के रूप में जिला के सरजनशील साहित्यकार संघ से जुड़ल रहलन हे आउ जुड़ल हथ । सब नाम के उल्लेख संभवे न हे । कुछ नाम के उल्लेख वार्षिकोत्सव, स्थायी परिषद आउ कार्यसमिति के सूची में हे । ऊ साथ छप रहल विवरण में देखल जा सकऽ हे ।

पैंतीस साल में जिनकर सहजोग-पराक्रम से संघ के गतिशीलता आउ सफलता मिलल हे, इहाँ नामोल्लेख के बिना ऊ सब के आभार स्वीकारऽ ही । मगही भाषा-साहित्य ला, चाहे नालन्दा के सरजनशीलता ला, मगध संघ से कुछ बन पड़ल हे, तो एकर सारा श्रेय उनखरे हे । मगही के साहित्यकार के सनेह हमरा पर बनल रहल हे । सब के आगे मत्था टेकऽ ही ।

["मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई रपट पृ॰ ७९-८४ पे छप्पल हकइ]