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Sunday, July 31, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-1 ; 2. माक्सीम माक्सीमिच - अध्याय-2



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
2. माक्सीम माक्सीमिच - अध्याय-2

ऊ मध्यम कद के हलइ; ओकर सुडौल, पतरगर कम्मर आउ चौड़गर कन्हा मजबूत काठी के सबूत दे हलइ, जे यायावरीय (खानाबदोश) जिनगी आउ जलवायु में परिवर्तन के सब प्रकार के दुख-तकलीफ सहन करे में सक्षम हलइ, जे न तो राजधानी के लंपट जिनगी से, आउ न आत्मिक झंझावात से प्रभावित हलइ; ओकर धूल-धूसरित मखमली कोट, जेकरा में खाली निचला दुन्नु बोताम लगल हलइ, चकाचौंध करे वला शुभ्र छालटी (linen) के साफ-साफ देखे के अनुमति दे रहले हल, जे (छालटी) एगो अभिजात व्यक्ति (gentleman) के स्वभाव के प्रकट करऽ हलइ; ओकर धूल-धूसरित दस्ताना लगऽ हलइ कि ओकर छोटगर कुलीन (aristocratic) हाथ लगी जान-बूझके बनावल गेले हल, आउ जब एक दस्ताना घींचके निकसलकइ, त हमरा ओकर उज्जर पतरगर अँगुरी देखके अचंभा होलइ । ओकर चाल बेपरवाह आउ आलसी हलइ, लेकिन हम नोटिस कइलिअइ, कि ऊ अपन हाथ नयँ झुलावऽ हलइ - जे ओकर चरित्र के एक प्रकार के रहस्यता के पक्का लक्षण हलइ । लेकिन, ई सब हमर व्यक्तिगत विचार हइ, जे हमर प्रेक्षण (observations) पर आधारित हइ, आउ हम ई बिलकुल नयँ चाहऽ हिअइ, कि अपने आँख मूनके ई सब पर विश्वास करथिन । जब ऊ बेंच पर बैठऽ हलइ, त ओकर सीधगर काठी वक्र हो जा हलइ, मानूँ ओकर रीढ़ में एक्को हड्डी नयँ हलइ; ओकर समुच्चे देह के मुद्रा (posture) स्नायविक दुर्बलता (nervous weakness) प्रकट करऽ हलइ - ऊ अइसे बैठऽ हलइ, जइसे एगो तीस साल के बलज़ाक [1] इश्कबाज (नखरेबाज) औरत थका देवे वला बॉल नृत्य के बाद अपन रोमिल (downy) आराम कुरसी पर बैठऽ हइ । ऊ तेइस साल से जादे उमर के नयँ होतइ, अइसन ओकर चेहरा पर पहिला नजर में देखके हम कह सकऽ हलिअइ, हलाँकि बाद में ओकरा तीस साल के उमर के कहे लगी तैयार हलिअइ । ओकर मुसकान में कुछ तो बचकाना हलइ । ओकर त्वचा में एक प्रकार के महिला के कोमलता हलइ; प्राकृतिक रूप से घुंघराला, सुंदर बाल, सजीवता से ओकर पीयर, उत्कृष्ट निरार के चित्रित करऽ हलइ, जेकरा पर खाली  देर तक के प्रेक्षण ही, एक दोसरा के काटते झुर्री के निशान नोटिस कइल जा सकऽ हलइ, आउ जे शायद गोस्सा चाहे मानसिक बेचैनी के क्षण में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होवऽ हलइ । ओकर केश भूरा (सुनहरा) रंग के बावजूद, ओकर मोंछ आउ भौं करिया हलइ - व्यक्ति के नसल के एगो लक्षण हइ ठीक ओइसीं, जइसे कि उज्जर रंग के घोड़ा के करिया अयाल आउ करिया पूँछ । रूपचित्र (portrait) पूरा करे खातिर, हम कहबइ, कि ओकर नाक कुछ उपरे दने उट्ठल हलइ, दाँत में चकाचौंध करे वला शुभ्रता आउ भूरा रंग के आँख; आँख के बारे हमरा आउ कुछ शब्द कहे के चाही ।

पहिला, ओकर आँख नयँ हँस्सऽ हलइ, जब ऊ हँस्सऽ हलइ ! - अपने के कुछ लोग में अइसन विचित्रता देखे के अवसर नयँ मिलले ह ? ... ई लक्षण हइ - या तो दुष्ट प्रकृति के, चाहे गहरा स्थायी उदासी के । ओकर अर्धनिमीलित पिपनी के पीछू से ओकर आँख एक प्रकार के स्फुरदीपी (phosphorescent) चमक के साथ चमकऽ हलइ, अगर ई तरह से एकरा अभिव्यक्त कइल जा सकइ । ई (चमक) आत्मिक उष्णता चाहे सहज कल्पना के प्रतिबिंब (झलक) नयँ हलइ - ई चमक हलइ चिकना इस्पात के चमक नियन, चकाचौंध करे वला, लेकिन शीतल; ओकर दृष्टि - चंचल, लेकिन सूक्ष्मदर्शी आउ गंभीर, धृष्ट प्रश्न के अप्रिय छाप छोड़ऽ हलइ आउ ढीठ प्रतीत हो सकऽ हलइ, अगर ओतना भावशून्यतापूर्वक शांत नयँ होते हल । ई सब टिप्पणी हमर मस्तिष्क में अइलइ, शायद, ई कारण से, कि हम ओकर जिनगी के कुछ विवरण पहिलहीं से जानऽ हलिअइ, आउ शायद, ओकर आकृति दोसरा केकरो पर बिलकुल अलगहीं छाप छोड़ते हल; लेकिन चूँकि ओकरा बारे अपने हमरा छोड़के आउ दोसरा केकरो से नयँ सुन पइथिन, त चाहथिन चाहे नयँ चाहथिन, अपने के ई चित्रण पर संतुष्ट होहीं पड़तइ । उपसंहार के रूप में हम कहबइ, कि सामान्य तौर पर ऊ बहुत सुंदर हलइ आउ ओकरा पास ओइसन मौलिक चेहरा-मोहरा (physiognomy, facial features) में से एक हलइ, जे उच्च वर्ग के महिला सब के विशेष करके पसीन पड़ऽ हइ।
घोड़वन जोतल हलइ; दुगा [2] के निच्चे बीच-बीच में घंटी टनटना हलइ, आउ नौकर दू तुरी पिचोरिन के पास आके बता चुकले हल, कि सब कुछ तैयार हइ, लेकिन माक्सीम माक्सीमिच के अभियो पता नयँ हलइ । भाग्यवश, पिचोरिन विचारमग्न हलइ, काकेशिया (पर्वत) के नीला दँतगर शिखर पर दृष्टि कइले हलइ, आउ शायद, ऊ आगू के यात्रा पर निकस जाय के कोय जल्दी में नयँ हलइ । हम ओकरा भिर गेलिअइ । "अगर अपने कुछ देर इंतजार करे लगी चाहथिन", हम कहलिअइ, "त अपने के एगो पुरनका दोस्त से मिल्ले के खुशी प्राप्त होतइ ..."
"ओह, हाँ !" तेजी से ऊ जवाब देलकइ, "हमरा कल्हे बतावल गेले हल - लेकिन ऊ काहाँ हथिन ?" हम चौक दने नजर डललिअइ आउ देखलिअइ, कि माक्सीम माक्सीमिच अपन पूरा जोर लगाके दौड़ल आ रहला ह ... कुछ मिनट के बाद ऊ हमन्हीं भिर पहुँच गेला; ऊ मोसकिल से साँस ले रहला हल; उनकर चेहरा से पसेना चू रहले हल; उनकर उज्जर केश के गीलगर लट, जे टोपी के निच्चे से बाहर निकसल हलइ, उनकर निरार पर चिपकल हलइ; उनकर टेहुना थरथरा रहले हल ... ऊ अपन बाँह पिचोरिन के गला में डालहीं वला हला, लेकिन काफी भावशून्य होके, हलाँकि स्वागतपूर्ण मुसकान के साथ, उनका दने अपन हाथ बढ़इलकइ । स्टाफ-कप्तान तो पल भर लगी स्तंभित रह गेला, लेकिन फेर उत्सुकतापूर्वक दुन्नु हाथ से ओकर हाथ पकड़ लेलका - ऊ अभियो तक बोल नयँ पइलका ।
"हमरा केतना खुशी होलइ, प्रिय माक्सीम माक्सीमिच । अच्छऽ, अपने कइसन हथिन ?" पिचोरिन कहलकइ ।
"आउ ... तूँ ? ... आउ अपने ?" बुजुर्ग अपन आँख में लोर के साथ बड़बड़इला ... - "केतना साल ... केतना दिन ... लेकिन ई काहाँ के यात्रा ? ..."
"फारस जा रहलिए ह - आउ आगू ..."
"की वास्तव में अभिए ? ... लेकिन कुछ देर तो ठहर जाथिन, प्रिय ! ... की वास्तव में अभिए विदा हो जइते जइबइ ? ... केतना दिन से हमन्हीं के भेंट नयँ होलइ ..."
"हमरा समय हो गेलइ, माक्सीम माक्सीमिच", - जवाब हलइ ।
"हे भगमान, हे भगमान ! एतना जल्दी-जल्दी काहाँ जाब करऽ हथिन ? ... हमरा केतना सारा अपने से कहे के हइ ... केतना सारा पुच्छे के हइ ... की हाल-चाल हइ ? रिटायर हो गेलथिन की ? ... कइसन हथिन ? ... अब तक की कर रहलथिन हल ? ..."
"ऊब रहलूँ हल !" मुसकइते पिचोरिन जवाब देलकइ ।
"आउ किला में हमन्हीं के रहन-सहन के आद आवऽ हलइ ? शिकार लगी एगो केतना निम्मन देश हलइ ! ... अपने तो एगो शौकीन शिकारी के रूप में शूटिंग करऽ हलथिन ... आउ बेला ? ..."
पिचोरिन के चेहरा लगभग पीयर पड़ गेलइ आउ ऊ अपन मुँह मोड़ लेलकइ ...
"हाँ, आद हइ !" ऊ कहलकइ, आउ लगभग तुरतम्मे विवश होके उबासी लेलकइ ...
माक्सीम माक्सीमिच अपना साथ आउ लगभग दू घंटा रहे लगी ओकरा मनावे लगला ।
"हमन्हीं निम्मन से दुपहर के खाना खइते जइबइ", ऊ बोलला, "हमरा पास दूगो तीतर हइ; आउ हियाँ काख़ेतिन शराब उत्तम होवऽ हइ ... जाहिर हइ, ऊ नयँ, जे जॉर्जिया में होवऽ हइ, बल्कि आउ बेहतर किसिम के ... हमन्हीं कुछ देर बात करते जइबइ ... अपने हमरा अपन पितिरबुर्ग के जिनगी के बारे बतइथिन ... ठीक हइ न ?"
"असल में, हमरा कुच्छो नयँ बतावे लायक हइ, प्रिय माक्सीम माक्सीमिच ... लेकिन अलविदा, हमरा जाय के अब समय हो गेले ह ... हम जल्दी में हिअइ ... हमरा नयँ भुलइलथिन, एकरा लगी धन्यवाद ...", उनकर हाथ पकड़के ऊ आगू बोललइ ।
बुजुर्ग के त्योरी चढ़ गेलइ ... ऊ दुखी आउ क्रुद्ध हो गेला, हलाँकि ई भाव के ऊ छिपावे के प्रयास कइलका ।
"भूल गेलिअइ !" ऊ बड़बड़इला, "हम तो कुच्छो नयँ भुलइलिअइ ... खैर, खुदा हाफ़िज़ ! ... लेकिन हम तो अपने के साथ ई तरह से भेंटे के प्रत्याशा नयँ कइलिए हल ..."
"अच्छऽ, बस, बस !" पिचोरिन उनका दोस्ताना ढंग से गले लिपटके कहलकइ । "की वास्तव में ओहे नयँ हिअइ ? ... की कइल जाय ? ... हरेक के अपन रस्ता होवऽ हइ ... फेर मिल्ले के मौका मिलतइ कि नयँ - भगमाने जानऽ हका ! ...", एतना कहते, ऊ कल्यास्का में चढ़ चुकले हल, आउ कोचवान लगाम सम्हारे लगलइ ।
"ठहर, ठहर !" कल्यास्का के दरवाजा पकड़के अचानक माक्सीम माक्सीमिच चिल्लइला, "एक बात तो हम बिलकुल भुलिए गेलिअइ ... हमरा पास अपने के कागज-पत्तर रह गेले ह, ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच ... हम ऊ सब के अपन साथ ढोले बुलऽ हिअइ ... सोचऽ हलिअइ, कि अपने जॉर्जिया में मिलथिन, लेकिन अइकी काहाँ भगमान हमन्हीं के मिलइलथिन ... हम ऊ सब के की करिअइ ? ..."
"जइसन अपने के मर्जी !" पिचोरिन जवाब देलकइ । "अलविदा ! ..."
"त अपने फारस चललथिन ? ... लेकिन कब लौटथिन ? ...", माक्सीम माक्सीमिच पीछू से चिल्लइला ...
कल्यास्का दूर जा चुकले हल; लेकिन पिचोरिन हाथ से इशारा कइलकइ, जेकर मतलब कुछ अइसन निकासल जा सकऽ हलइ - "ई संभव नयँ ! लेकिन आखिर काहे लगी ? ..."

घंटी के अवाज आउ कंकड़ीला रस्ता पर से चक्का के खड़खड़ कब के सुनाय देना बन हो चुकले हल - लेकिन बेचारा बुजुर्ग (बुढ़उ) गहरा विचार में मग्न अभियो तक ओज्जे परी खड़ी हला । "हाँ", भावशून्य मुद्रा बनावे के प्रयास करते आखिरकार ऊ कहलका, हलाँकि झुंझलाहट के लोर उनकर पिपनी पर बीच-बीच में कौंधऽ हलइ, "वास्तव में, हमन्हीं मित्र हलिअइ - लेकिन वर्तमान शताब्दी में मित्र के की महत्त्व हइ ! ... हमरा से ओरा की मतलब हइ ? हम धनगर नयँ हिअइ, कोय रैंक (बड़गर ओहदा) वला नयँ हिअइ, आउ उमर के हिसाब से हमर ओकरा साथ कोय जोड़ी नयँ हइ ... देखऽ, जइसीं ऊ फेर से पितिरबुर्ग होके अइलइ, ऊ कइसन छैला बन चुकल ह ... कइसन कल्यास्का (घोड़ागाड़ी) हइ ! ... केतना लगेज (सर-समान) हइ ! ..." ई सब शब्द व्यंग्य भरल मुसकान से उनकर मुख से निकसले हल । "बताथिन", हमरा दने मुड़के ऊ बात जारी रखलका, "त अपने एकरा बारे की सोचऽ हथिन? ... अच्छऽ, कउन भूत ओकरा फारस लेले जाब करऽ हइ ? ... हास्यास्पद हइ, वास्तव में, हास्यास्पद हइ ! ... हाँ, हम हमेशे जानऽ हलिअइ, कि ऊ सिरफिरा अदमी हइ, जेकरा पर कभी विश्वास करे के नयँ ... आउ, सच में, खेद हइ, कि ओकर अंत बुरा होतइ ... हाँ, आउ कुच्छो दोसर तरह नयँ ! ... हम हमेशे बोलऽ हलिअइ, कि जे अपन पुरनका दोस्त लोग के भूल जा हइ, ओकर कभी भला नयँ होवऽ हइ ! ..." एतना बोलला के बाद अपन बेचैनी छिपावे खातिर ऊ मुड़ गेला, प्रांगण में अपन गाड़ी भिर चहलकदमी करे खातिर रवाना हो गेला, ई देखइते, मानूँ ऊ चक्का के जाँच कर रहला ह, तखने उनकर आँख में मिनट-मिनट लोर भर जा हलइ ।

"माक्सीम माक्सीमिच", उनका भिर जाके हम कहलिअइ, "पिचोरिन अपने के पास कइसन कागज छोड़लकइ ?"
"भगमाने जानऽ हथिन ! कइसनो नोट हइ ..."
"अपने एकरा की करथिन ?"
"की करबइ ? एकरा से कारतूस बनावे के औडर दे देबइ ।"
"त बेहतर होतइ कि ई सब हमरा दे देथिन ।"
ऊ हमरा दने अचरज से देखलका, कुछ तो अपन दाँत के बीच से बड़बड़इला आउ सूटकेस में कुछ तो टटोलके देखे लगला; अइकी ऊ एगो नोटबुक निकसलका आउ नफरत के साथ जमीन पर ओकरा फेंक देलका; बाद में दोसरा, तेसरा आउ दसमा के ओहे हाल होलइ - उनकर झुंझलाहट में कुछ तो बचकाना हलइ; हमरा ई हास्यास्पद आउ खेदजनक लगलइ ...
"अइकी एहे सब हकइ ऊ", ऊ बोलला, "अपने के ई सब मिल गेलइ, एकरा लगी बधाई ..."
"आउ एकरा, जे कुछ चाहिअइ, कर सकऽ हिअइ ?"
"चाहथिन त अखबार में प्रकाशित कर देथिन । हमरा एकरा से की मतलब ? ... की, वास्तव में, हम ओकर कोय दोस्त हिअइ ? ... कि कोय रिश्तेदार ? ई सच हइ, कि हमन्हीं लम्मा समय तक दुन्नु एक्के साथ रहलिअइ ... आउ की अइसन कमती लोग हइ जेकरा साथ हम रहलिअइ ? ..."

हम कागज धर लेलिअइ आउ तुरतम्मे हुआँ से हटा लेलिअइ, ई भय से, कि कहीं स्टाफ-कप्तान पछतावा नयँ करे लगथिन । जल्दीए हमन्हीं के बतावल गेलइ, कि एक घंटा के बाद ओकाज़िया रवाना हो जइतइ; हम घोड़ा के जोते लगी औडर दे देलिअइ । स्टाफ-कप्तान कमरा में ऊ बखत घुसलथिन, जब हम टोपी पहन चुकलिए हल; ऊ, शायद, यात्रा करे लगी तैयारी नयँ कइलथिन हल; उनकर चेहरा पर अस्वाभाविक शांत भाव हलइ ।
"आउ अपने, माक्सीम माक्सीमिच, वास्तव में नयँ आ रहलथिन हँ ?"
"जी नयँ ।"
"आउ काहे ?"
"हमरा अभियो कमांडेंट से मोलकात नयँ होलइ, आउ हमरा उनका कुछ सरकारी समान सौंपे के हइ ..."
"लेकिन अपने तो उनका हीं जाके अइलथिन न ?"
"निस्संदेह होके अइलिअइ", ऊ असमंजस में पड़ते बोललथिन, "लेकिन ऊ घर पर नयँ हलथिन ... आउ हम इंतजार नयँ कइलिअइ ।"

हम उनकर बात समझ गेलिअइ - बेचारे बुढ़उ, जनम से पहिले तुरी, शायद, अगर कार्यालयीन भाषा में कहल जाय त अपन व्यक्तिगत आवश्यकता  खातिर सरकारी सेवा के काम के छोड़ देलका हल - आउ उनका कइसन पारितोषिक मिलले हल !
"बहुत खराब लगऽ हइ", हम उनका कहलिअइ, "बहुत खराब लगऽ हइ, माक्सीम माक्सीमिच, कि हमन्हीं के एतना जल्दी अलगे होवे पड़ रहले ह ।"
"काहाँ हमन्हीं अशिक्षित बुढ़वन के अपने सब के पीछू दौड़े के चाही ! ... अपने सब नौजवान फैशनदार, अभिमानी लोग - जब तक हियाँ, चिर्केस गोली सनसना हइ, तब तक अपने सब एद्धिर-ओद्धिर होथिन ... लेकिन बाद में भेंट होतइ, त हमन्हीं लोग से हथवो मिलावे में शरमइथिन ।"
"हम तो अइसन झिड़की (ताना) खाय के लायक नयँ हिअइ, माक्सीम माक्सीमिच ।"
"ओह, हम तो बात के माने कह रहलिए ह - लेकिन हम अपने के हरेक तरह के खुशी आउ शुभ यात्रा के कामना करऽ हिअइ ।"

हमन्हीं के विदाई काफी शुष्क हलइ । उदार माक्सीम माक्सीमिच जिद्दी, झगड़ालू स्टाफ-कप्तान बन गेलथिन हल! आउ कउन कारण से ? ई कारण से, कि पिचोरिन अन्यमनस्कता चाहे आउ कोय कारण से उनका सामने अपन हाथ बढ़इलके हल, जबकि ऊ ओकरा गले से लगावे लगी चाहऽ हलथिन ! देखे में तब खराब लगऽ हइ, जब कोय युवक अपन बेहतर आशा आउ सपना खो दे हइ, जब ओकरा सामने गुलाबी नकाब झटाक से खुल्लऽ हइ, जेकरा से ऊ मानवीय कर्म आउ भावना के देखलके हल, हलाँकि ई आशा रहऽ हइ, कि ऊ अपन पुरनका भ्रांत धारणा के नवीन धारणा में बदल लेतइ, जे कइसूँ कम क्षणिक नयँ होवऽ हइ, लेकिन तइयो कम मधुर नयँ रहऽ हइ ... लेकिन माक्सीम माक्सीमिच के उमर के लोग कउची से अदला-बदली करता ? जाने-अनजाने हृदय कठोर हो जा हइ आउ आत्मा अपने आप के बन कर ले हइ ...
हम अकेल्ले प्रस्थान कर गेलिअइ ।


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Saturday, July 30, 2016

12. मगही में द्वित्व



मगही में द्वित्व [1]

लेखक - नारायण प्रसाद

जब कोय अतिथि के स्वागत कइल जा हइ, त उनका मेजबान घर में प्रवेश करे खातिर "आना" क्रिया के दू तुरी प्रयोग करके "आथिन, आथिन !" (हिन्दी में 'आइए, आइए !', तमिल में 'वांगऽ, वांगऽ !') जइसन द्वित्व शब्द के व्यवहार करऽ हइ । भारत के कउनो भाषा-भाषी अतिथि के स्वागत करते बखत "आथिन" जइसन एक्के शब्द के व्यवहार नञ् करऽ हइ ! स्वागत खातिर एक्के शब्द के प्रयोग कइल गेला पर हो सकऽ हइ कि अतिथि बुरा मान जाय कि हम्मर वास्तव में स्वागत नञ् कइल गेल (शंकरनारायणन् 2002) !

आंशिक या पूर्ण द्वित्व के प्रयोग पर प्राचीनतम उल्लेख पाणिनि के सुप्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण "अष्टाध्यायी" में पावल जा हइ (एकाचो द्वे प्रथमस्य ॥६.१.१॥; सर्वस्य द्वे ॥८.१.१॥) । वस्तुतः द्वित्व (Reduplication) एगो अखिल भारतीय तथ्य (pan-Indian phenomenon) हइ जेकर दक्षिण एशियाई भाषिक क्षेत्र (linguistic area) में सुसंगति (consistency) प्रदान करे वाला दर्जन भर वैशिष्ट्य में से एक ठो के रूप में उल्लेख कइल जा हइ (आन्नी मौँतो 2009) द्वित्व के बारे में बहुत सारा अध्ययन कैल गेले ह आउ ई विषय पर लेख-पर-लेख, थीसिस-पर-थीसिस आउ किताब-पर-किताब लिक्खल जा रहले ह (उदाहरणार्थ - बूलोगा रम्बै 2009, परिमलगंठम् 2008, बेर्नहार्ड हुर्श 2005, शंकरनारायणन् 2002, अन्विता ऐब्बी 1980, 1992) । जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान के प्रोफेसर अन्विता ऐब्बी दक्षिण एशिया के तेतीस आधुनिक भाषा के साथ-साथ कइएक प्राचीन भाषा के बारे में ई विषय पर अप्पन शोध-ग्रन्थ लिखलथिन ह (अन्विता ऐब्बी 1992)  राजेन्द्र सिंह (2005) पहले तुरी हिन्दी/ उर्दू में द्वित्व प्रक्रिया लगी स्पष्ट रूप से रूपात्मक (morphological) नियम के लगभग सर्वांगपूर्ण सेट तैयार करके रूपविधान (morphology) पर एगो विस्तृत सैद्धान्तिक विश्लेषण प्रस्तुत कइलथिन ह (आन्नी मौँतो 2009)

कउनो प्रकार के शब्द के द्वित्व कइल जा सकऽ हइ, खाली विभक्ति चिह्न (में, से आदि) आउ समुच्चय बोधक शब्द के छोड़के (केलॉग 1938:492-497) मगही भाषो में साधारणतः हिन्दी जइसने द्वित्व के प्रयोग कइल जा हइ, मगर मगही के प्रकृति के अनुसार शब्द के रूप में थोड़ा-बहुत फेर-फार करे के जरूरत पड़ऽ हइ । जैसे - हिन्दी में प्रयुक्त "बैठे-बैठे" के जगह पर मगही में "बइठल-बइठल" । ओहे से हिन्दी सम्बन्धी लेख में प्रस्तुत उदाहरण के संक्षेप में उल्लेख कइला के बाद मगही के एगो विशिष्ट प्रकार के द्वित्व के चर्चा कइल जइतइ जेकर प्रयोग हिन्दी में नञ् पावल जा हइ ।  

राजेन्द्र सिंह (2005) के लेख में अनुच्छेद के अनुसार चर्चा कइल उदाहरण -
(2) आंशिक द्वित्व
   नरेन्द्र-वरेन्द्र, भगवान-वगवान
(3) सम्पूर्ण द्वित्व
            (a) नगर-नगर, लाल-लाल, चलते-चलते, रो-रो कर, तीन-तीन
            (b) बड़ी-बड़ी, हरी-हरी
(c) क्या-क्या
(d) घूमते-घूमते, पीते-पीते 
(e) डूबते-डूबते
(f) जल्दी-जल्दी, नीचे-नीचे ... ऊपर-ऊपर
(4) द्वित्व के सीमा के विस्तार
            (a) तन-बदन, धन-दौलत, विवाह-शादी
            (b) कम-ज्यादा, ऊँचा-नीचा, अमीर-गरीब
            (c) फल-फूल, मेज-कुर्सी, चाय-पानी

आन्नी मौँतो (2009) के लेख में अनुच्छेदानुसार चर्चा कइल द्वित्व के उदाहरण
1. सम्पूर्ण द्वित्व
1.1. संज्ञा एवं संख्या
1.1.1. प्रातिनिधिक व्यष्टिवाचक अर्थ
एक-एक
1.1.2. परिगणनात्मक प्रभाव: एकवचन में संज्ञा या सर्वनाम
(a) कहाँ-कहाँ, क्या-क्या
(b) जो-जो
(c) रोम-रोम
(d) बच्चा-बच्चा
1.1.3. बहुवचन संज्ञा
            महिलाएँ-महिलाएँ
1.2. क्रिया के द्वित्व:  प्रक्रिया के पुनरावृत्ति या निरन्तरता
खाते-खाते, सोये-सोये, टहल-टहल कर, हँस-हँस कर, चलते-चलते, जाते-जाते, धुल-धुल कर (फट जाना), सुनते-सुनते (सुन-सुन कर), बैठे-बैठे, रोते-रोते, आ-आ कर, होते-होते, करते-करते, गिरते-गिरते
1.3. विशेषण के द्वित्व
1.3.1. तीव्रता आउ उच्च कोटि
काले-काले बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, ठंढा-ठंढा कोक, गरम-गरम चाय, हरी-हरी मुलायम घास, नीला-नीला आकाश
1.3.2. निम्न कोटि आउ क्षीणता
            नीला-नीला पानी, नीले-नीले पहाड़, पीले-पीले कागज, पीला-पीला रंग, पीला-पीला छिलका
2. अनुकरण संरचना
2.1-5. आदि व्यंजन के स्थान में 'व-', 'ओ-' के साथ द्वित्व
शादी-वादी, चाय-वाय, पढ़ना-वढ़ना, आत्मा-वात्मा, क्रान्ति-व्रान्ति, प्रेम-व्रेम, पकौड़ा-वकौड़ा, लड़की-वड़की, पेन-वेन, टाइम-वाइम, नोटिस-वोटिस, किस्मत-विस्मत, तलाक-वलाक, घोड़ा-ओड़ा; खाना-वाना, सजा-वजा कर, ताश-वाश, लेकिन-वेकिन, नया-वया प्लेट, लेखक-वेखक, पंडित-वंडित, रिसर्च-विसर्च, ठंढ-वंढ, पार्टी-वार्टी, सैंडविच-वैंडविच, मोड़-वोड़ लेना, पढ़-वढ़ लेना
2.6. अन्य अनुकरण या अनुप्रास के साथ रचना
देख-दाख कर, पूछ-पाछ कर, कभी-कभार, आस-पास, आर-पार, भीड़-भाड़, बेच-बाच कर,
अब मगही के एक ठो विशेष द्वित्व के चर्चा कइल जा रहले ह । ई द्वित्व के प्रकृति समझे लगी निम्नलिखित उदाहरण पर ध्यान देल जाय -
            कर-किताब, चर-चपरासी, जर-जमीन, दर-दोकान, बर-बेमारी, मर-मैदान, सर-समान
उपर्युक्त उदाहरण सब से ई स्पष्ट हइ कि द्वित्व के प्रथम अंश में दू अक्षर होवऽ हइ जेकरा में
(1) पहिला अक्षर मूल शब्द के आदि अक्षर रहऽ हइ जेकरा मूल वर्ण के रूप में अर्थात् अकारान्त लेल जा हइ ।
(2) दोसरा अक्षर हमेशा "र" होवऽ हइ ।
"किताब" के पहिला अक्षर "कि", अकारान्त कइला पर "क" । फिर एकरा में दोसरा अक्षर "र" जोड़े पर द्वित्व बनलइ - "कर-किताब" ।
 "दोकान"  के पहिला अक्षर "दो", अकारान्त कइला पर "द" । फिर  एकरा में दोसरा अक्षर "र" जोड़े पर द्वित्व बनलइ - "दर-दोकान" ।
एहे तरह से बाकी द्वित्व के रचना समझल जाय ।
एक चर्चा-समूह (http://groups.google.com/group/shabdcharcha) पर चर्चा के दौरान पता चललइ कि अइसन द्वित्व मगही के अतिरिक्त मैथिली आउ भोजपुरी में भी पावल जा हइ । एक मैथिलीभाषी ई बतइलथिन कि फणीश्वरनाथ रेणु जी "मैला आंचल" में कोशी किनारे बोले जाय वला मैथिली, जे कि मूल मैथिली से थोड़े भिन्न हकइ, में ई तरह के शब्द-युग्म के आम बोलचाल में प्रचलन पर पूरा एक पैराग्राफ लिखलथिन ह आउ दर्जनो उदाहरण भी गिनइलथिन ह । इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के सहायता से ई उद्धरण नीचे देल जा रहले ह
यह है कचहरी । यहीं कर-कचहरी में लोग मर-मुकदमा करने के लिए आते हैं । इसी तरह उपसर्ग लगाकर सब बोलते हैं - कर-कचहरी, खर-खजाना, गर-गरामित, घर-घरहट, चर-चुमौना, जर-जमीन, पर-पंचायत, फर-फौजदारी, बर-बरात, मर-मुकदमा या मर-महाजन ! (रेणु रचनावली 2:97.13-16)
मैथिली लेखक तारानन्द वियोगी के कथा "पन्द्रह अगस्त सन्तानबे" से मैथिली में अइसन द्वित्व के एक उदाहरण देखल जाय  
हीरा महतो कठघरा खोललनि । सर-समान बहार कएलनि । पानि भरि क' अनलनि, बरतन-बासन धोलथि-पोछलथि आ स्टोव जरा क' पानि चढ़ा देलखिन ।
अवधी भाषो में अइसन द्वित्व पावल जा हइ । उदाहरणस्वरूप -
फुलमती कै मरद रेलगाड़ी कइके जात रहे । छुट्टी मंजूर होइगै रही । आज सारा सर समान खरीद कै बक्सा तैयार करि कै धइ आइ रहिन । (अवधी ग्रन्थावली 5:115.10)
तमाम यात्रियन के साथे महादेवौ कै इंतकाल होइगै । महादेव कै साथी बिहारी ई बज्रपात कै खबरि अउर ओनकै सर समान लइके जब आय तौ फूलमती की दुनियाँ म अन्हियार होइगै । (अवधी ग्रन्थावली 5:115.16)
बिहारी क पता फूलमती के लगे रहा । बिहारी बगल के गाँव के होय, जौन महादेव के मरै क खबरि और सर समान लैके आय रहिन । (अवधी ग्रन्थावली 5:118.35)
बिलकुल अइसने तो नञ् बकि एकरा से मिलता-जुलता द्वित्व पंजाबियो में हइ । एक ठो पंजाबीभाषी बतइलथिन कि लगभग हर शब्द के अइसन द्वित्व शब्द बनावल जा सकऽ हइ ।  फर्क ई हइ कि मगही के "र" पंजाबी में "ड़" बन जा हइ आउ लिंग के हिसाब से "ड़ा" या "ड़ी" बनऽ हइ । जइसे - कड़ी-किताब, कड़ी-कचहरी, चड़ा-चपड़ासी, जड़ी-जमीन, दड़ी-दूकान, बड़ी-बीमारी, मड़ा-मैदान ।
वाक्य में प्रयोग आउ सम्पूर्ण उद्धरण सहित मगही कोश तइयार करते बखत हमरा कइएक मगही रचना में अइसन द्वित्व पर दृष्टि गेलइ । ई सब के कोश में पृथक् शब्द के रूप में प्रविष्टि कइल गेले ह । मगही साहित्य से संकलित नीचे द्वित्व के कुछ उदाहरण सन्दर्भ सहित देल जा रहले ह । प्रयुक्त संकेत भी अन्त में दे देवल गेले ह ।

अर-अपराध       (मपध॰01:2:7:2.27)
अर-असीरवाद    (मपध॰01:2:4:1.10)

कर-कचहरी       (अमा॰2:6:2.13)
कर-कानून          (नजिसु॰16.5)
कर-किताब        (नजिसु॰16.5; मपध॰01:1:5:1.23; धमके॰1:74.4, 77.16, 95.5, 96.17)
कर-कुटुम           (अमा॰66:18:1.17; बंगमा॰12:2:59.13)
कर-कुदार          (बंगमा॰12:2:54.17)
कर-केबाड़ी        (मपध॰02:4:24:3.32)

खर-खनदान       (अमा॰172:15:1.12, 2.3)
खर-खरिहान      (मपध॰02:5-6:4:1.18)

गर-गलबात       (मज॰107.24; मपध॰02:8-9:31:1.24; कसोमि॰41.22)
गर-गिरहस्थी     (जोमुसिं॰iv.8)
गर-गृहस्थी        (माकेम॰50.5-6)
गर-गोरखिया     (मपध॰02:7:37:3.3)
गर-गोसाला       (बंगमा॰12:2:42.31)

घर-घरनी          (माकेसिं॰83.12)

चर-चपरासी      (जोमुसिं॰19.18)

जर-जनावर       (धमके॰1:54.5)
जर-जमीन         (गो॰4:21.30; अमा॰14:12:1.19; 30:14:2.14; माकेसिं॰58.26; जोमुसिं॰9.26; 24.6; धमके॰3:46.2, 103.13, 117.5)
जर-जमीन्दारी    (मकस॰62:5)
जर-जलपान       (अमा॰173:6:1.28; मपध॰02:7:33:1.28)
जर-जिद्द            (बामदा॰8.30)
जर-जेवार          (माकेसिं॰37.14; 82.12; मपध॰02:7:33:2.21; 11:13:46:2.38; बंगमा॰11:1:36.25)
जर-जोगाड़        (मपध॰11:17:48:1.28)

झर-झमेला         (मपध॰02:8-9:19:2.25)
झर-झरना          (धमके॰3:80.4, 83.4)
झर-झलासी        (झारमा॰12:1:21.13)

टर-टूसन            (मपध॰11:14:25:1.8)
टर-ट्युशन          (बंगमा॰12:2:52.21)

तर-तइयारी       (नसध॰26:115.7; नजिसु॰12.24; फुसु॰15.3-4)

दर-दबाय          (मपध॰11:15:60:1.4)
दर-दरोगा         (फुसु॰15.2)
दर-दलान          (मपध॰02:5-6:4:1.18; बंगमा॰11:1:32.25)
दर-दलाल          (बंगमा॰11:1:36.25)
दर-दिहा            (मज॰19.16)
दर-दुनिया         (अमा॰173:19:1.26)
दर-दुस्मनी         (फुसु॰15.15)
दर-देहात           (मपध॰02:3:12:1.28)
दर-दोकान         (मपध॰02:5-6:4:1.18; झारमा॰12:1:49.19)

नर-नौकरी         (धमके॰3:14.14)

पर-परसाद        (मपध॰02:8-9:40:1.27)
पर-परसानी       (मपध॰02:8-9:22:3.9)
पर-परिवार       (मपध॰01:1:13:3.27; 02:5-6:43:3.2)
पर-परेम            (फुसु॰25.12; 26.21)
पर-पहाड़           (धमके॰1:68.1-2)
पर-पहुना           (गो॰3:17.30; माकेसिं॰49.23-24)
पर-पखाना         (मविक॰56.17, 88.4; बंगमा॰11:1:38.32)
पर-पाखाना       (माकेसिं॰20.13; 40.3)
पर-पैखाना         (अल॰29:90.24; माकेसिं॰69.28; कसोमि॰28.9; बंगमा॰11:1:39.20; झारमा॰12:1:50.19)

बर-बटइया        (अमा॰5:16:2.1)
बर-बद्धी            (मपध॰02:8-9:40:1.27)
बर-बाजार         (माकेसिं॰53.11; मपध॰11:15:23:3.26)
बर-बिछौना       (मसक॰64:5)
बर-बेमारी         (गो॰1:4.12; नसध॰27:121.9; मपध॰02:10-11:47:1.14; बंगमा॰11:1:36.32)
बर-बेहवार        (अमा॰17:9:2.27)

मर-मकान          (मपध॰02:7:37:3.5)
मर-मजूरी          (मसक॰138:20; फुसु॰15.7)
मर-मरदाना       (मपध॰12:19:44:2.16)
मर-मसाला        (मसक॰49:12; माकेसिं॰33.16; मविक॰69.11; कसोमि॰78.16)
मर-मिठाई         (सँशउ॰66.4)
मर-मैदान          (मसक॰101:15)
मर-मोकदमा      (गो॰4:21.5; कब॰47:24; रम॰5:46.22; अल॰43:140.13; बंगमा॰11:1:34.37)

सर-सनई           (गो॰1:9.28)
सर-सफाई          (अमा॰66:18:1.18)
सर-सबूत           (फुसु॰15.21)
सर-सब्जी          (जोमुसिं॰22.4)
सर-समाचार      (अमा॰166:15:1.9; कसोमि॰69.15; झारमा॰12:1:28.5)
सर-समाज         (मपध॰02:5-6:43:2.23)
सर-समान          (गो॰10:43.25; नसध॰30:132.11; अमा॰12:14:2.2; 66:18:1.21; 165:11:2.28; 166:8:1.15; मज॰37.7-8; मपध॰02:4:26:1.28; धमके॰1:91.23; 3:103.10)
सर-सरजाम       (मपध॰11:16:38:1.2, 5, 6, 8)
सर-सरबत         (मपध॰02:7:33:1.29)
सर-सादी           (धमके॰1:51.16-17)
सर-सामान         (अआवि॰51:11)
सर-सिकायत      (मपध॰02:3:4:1.24)

हर-हरमेसा        (धमके॰3:xviii.18)
हर-हुमाद          (मपध॰02:7:34:3.18)
हर-हेरान           (मपध॰11:15:26:3.14)

उपर्युक्त उद्धरण से स्पष्ट होवऽ हइ कि द्वित्व "सर-समान" के प्रयोग सबसे जादे मिल्लऽ हइ । एक्कर मगही साहित्य से वाक्य प्रयोग के कुछ उदाहरण नीचे देल जा रहले ह -

(1) आउ लपक के दानापुर ओली बस पर चढ़ गेल । सर-समान तो कुछ नहिएँ हल । (गो॰10:43.25)

(2) आज हम कसबा से जाके सर-समान ले अबवऽ आउ कल से अपन फूटल दोकान के भीतरे ऊ खेल सुरुम कर देबवऽ । (नसध॰30:132.11)

(3) ऊ बराती के खातिर में तनिक्को कमी न कयलन हल । अप्पन औकात से जादे सरो-समान देलन हल । (अमा॰12:14:2.2)

(4) सर-सफाई के सभे जिम्मेवारी ऊ अप्पन जोरू पर देवल चाहऽ हथ, काहे कि उनका तो बहरिये के काम-धंधा से छुट्टी न रहऽ हे । कहीं से थकल-माँदल अएतन त घर-दुआर थोड़े साफ करे लगतन, सर-समान थोड़े सरियावे लगतन, उनका तो अराम करे के चाही । (अमा॰66:18:1.21)

(5) तरेगनी - लऽ ! तनी झपटल जा कउनो सोनार भिजुन आउ गहना बेच के रुपइया ले आवऽ । तब तक हम आउ सब सर-समान जुटा के ओझाई के काम सुरू करावइत ही । (अमा॰165:11:2.28)

(6) मिसिर जी के खाँसी बढ़ल हल, से बोला पेठैलन । कहलन - 'गोपाल, माला के कुछ सर-समान खरीदे के हई, तनी साथे जइतहो हल ।' (अमा॰166:8:1.15)

(7) 6 जून के अन्हरुखे सर-समान लेले दुन्हू जीव बस पकड़ के रजधानी अयलूँ । (मज॰37.7-8)

(8) देखते-देखते सब कुछ बदल गेल । डकैत अपन घायल साथी के लेके भाग छुटल, सब सर-समान जहाँ के तहाँ फेंक के । (मपध॰02:4:26:1.28)

(9) रात भर रहे के बाद दोसर दिन नहा धोवा के राम आउ लक्ष्मण दूनो भाई सर-समान खरीदे बजार चल गेलन आउ एने माई जानकी उनकर इंतजारी फल्गु के किनारे कर रहलन हल । (धमके॰1:91.23)

(10) इ गिरि परिवार जे आसपास में राज परिवार नियन जानल जा हलन, में एक से बढ़कर एक वंशज होलन, जेकरा में शतानन्द गिरि, लाल गिरि, हरिहर गिरि, रघुवर गिरि, जयराम गिरि आदि के बनवावल सर-समान लोग आझो इयाद करऽ हथिन । (धमके॰3:103.10)

घर-घरनीके उदाहरण
कउन मलिकार के का सवाद हे, उनकर बनिहार के का मन के मुराद हे - अतने न, खेते में बइठल मलिकार के घर-घरनी के बात बेयोहार, सोभाव, सोवाद, दिल आ मन के बात समझ जा हलन । (माकेसिं॰83.12)

हियाँ ई तर्क कइल जा सकऽ हइ कि 'घर-घरनी' द्वित्व के नञ्, बल्कि द्वन्द्व समास के उदाहरण हइ, अर्थात् 'घर आउ घरनी' अर्थ में प्रयुक्त । अगर ई अर्थ में प्रयोग कइल गेले ह, त वस्तुतः 'घर-घरनी' द्वित्व के उदाहरण नञ् होतइ ।

हिन्दी के 'ही' आउ 'भी' के अर्थ में मगही में प्रयुक्त क्रमशः '-' आउ '-' प्रत्यय के प्रयोग उपर्युक्त द्वित्व के पहिला अंश में कइल जा हइ । जइसे

रघुवर महतो के तो दस-पाँच जरो-जमीन हे । (गो॰4:21.30)
ऊ बराती के खातिर में तनिक्को कमी न कयलन हल । अप्पन औकात से जादे सरो-समान देलन हल । (अमा॰12:14:2.2)
एकबैग अप्पन पीठ खजुआवे लगल । कबो पेट खजुआवे त कबौ पंजरा । पीठ के नोचनी से तऽ ऊ हरे-हरान हो गेल । (मपध॰11:15:26:3.14)

ई विषय पर विस्तृत विवेचन लगी देखल जाय प्रकृत लेखक के आलेख - "मगही में हिन्दी के 'ही' आउ 'भी' के प्रयोग पर विवेचन" ।

सन्दर्भ हेतु प्रयुक्त संख्या के विवरण:

'अलका मागधी' के सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

'मगही पत्रिका' के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर संख्या संचित (पूर्णांक) अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

'बंग मागधी' के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।
'झारखंड मागधी' के सन्दर्भ में --- 'बंग मागधी' जइसन ।

पुस्तक के सन्दर्भ में खंड (volume), अध्याय (chapter) या अनुच्छेद (section) रहला पर पहिले एक्कर संख्या, फेर पृष्ठ संख्या आउ बिन्दु के बाद में पंक्ति संख्या ।

प्रयुक्त संकेत:

संकेत                 पूर्ण रूप                                     लेखक / सम्पादक
-----                  --------                                      ------------------
अआवि॰            अमृत आउ विष                          पं॰ हरिदास ज्वाल
अमा॰                अलका मागधी                            डॉ॰ अभिमन्यु मौर्य
अल॰                 अलगंठवा                                  बाबूलाल मधुकर

कब॰                 कथा-बतीसी                               घमण्डी राम उर्फ रामदास आर्य
कसोमि॰                        कनकन सोरा                              मिथिलेश
गो॰                   गोदना                                       डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री ( डॉ॰ रामनन्दन)

जोमुसिं॰            जोरन                                        मुद्रिका सिंह
झारमा॰             झारखंड मागधी                          धनंजय श्रोत्रिय
धमके॰               धरोहर मगध के                          डॉ॰ राकेश कुमार सिन्हा 'रवि'

नसध॰               नरक सरग धरती                        डॉ॰ राम प्रसाद सिंह
फूसु॰                 फूलवा                                       सुमंत
बंगमा॰              बंग मागधी                                धनंजय श्रोत्रिय

बामदा॰             बाबा मटोखर दास                      परमेश्वरी
मज॰                 मगही जतरा                              डॉ॰ भरत सिंह एवं डॉ॰ चंचला कुमारी
मपध॰               मगही पत्रिका                             धनंजय श्रोत्रिय

मविक॰              मगही विरंज                              मनोज कुमार 'कमल'
मसक॰               मगही समसामयिक कहानी          डॉ॰ अभिमन्यु प्रसाद मौर्य
माकेम॰             माटी के मरम                             घमण्डी राम उर्फ रामदास आर्य

माकेसिं॰            माटी के सिंगार                           घमण्डी राम उर्फ रामदास आर्य
रम॰                  रमरतिया                                  बाबूलाल मधुकर
सँशउ॰               सँवली                                       शशिभूषण उपाध्याय 'मधुकर'

सन्दर्भः

Annie Montaut (2009): Reduplication and ‘echo words’ in Hindi/ Urdu. In Annual Review of South Asian Languages and Linguistics, Singh Rajendra (Ed.), pp.21-91.
(http://halshs.archives-ouvertes.fr/docs/00/44/96/91/PDF/redupl_annualSALL09.pdf)
(http://halshs.archives-ouvertes.fr/halshs-00449691/en/)

A. Boologa Rambai (2009): Noun Reduplication in Tamil and Kannada

(http://www.languageinindia.com/oct2009/rambainounduplication.html)

 

A. Parimalagantham (2008): A STUDY OF STRUCTURAL REDUPLICATION IN TAMIL AND TELUGU, Ph.D. Thesis, P S Telegu Univ, Hyderabad, December.

(http://www.languageinindia.com/aug2009/parimalathesis.pdf)

 

Bernhard Hurch (Ed.) (2005). Studies on reduplication. Walter de Gruyter. 652 pages.

 

Rajendra Singh (2005): Reduplication in Modern Hindi and the theory of reduplication; pp.263-282, in Bernhard Hurch (Ed.). Studies on reduplication. Walter de Gruyter.

 

G. Sankaranarayanan (2002): REPETITIVE FORMS IN INDIAN LANGUAGES.

(http://www.languageinindia.com/jan2002/gsank3.html)


Anvita Abbi (1992): Reduplication in South Asian Languages: An Areal, Typological and Historical Study. Delhi: Allied Publishers.

            - 1980 Semantic Grammar of Hindi: A Study in Reduplication. Delhi: Bahri Publications.

Rev. S.H. Kellogg (1938): A Grammar of the Hindi Language. Third Edition. London: Kegan Paul, Trench Trubner and Co., Ltd. Reprint 1989. New Delhi: Asian Educational Services; xxxiv+584 pp.

नारायण प्रसाद (2011) "मगही में हिन्दी के 'ही' आउ 'भी' के प्रयोग पर विवेचन", अलका मागधी, मार्च, पृ॰ 5-10 (सन्दर्भ रहित); पाटलि, वर्ष 23, नवम्बर, पृ॰ 6-16 (सन्दर्भ सहित) ।

भारत यायावर (सं॰) (2007): "रेणु रचनावली", खंड-2, मैला आँचल, प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन प्रा॰लि॰, नई दिल्ली, तृतीय संस्करण मूल्यः 200 रुपये । कुल पाँच खंड (सेट) के मूल्यः 1000 रुपये ।
जगदीश पीयूष (सं॰) (2008): “अवधी ग्रन्थावली”, भाग-5, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली । कुल पाँच खंड (सेट) के मूल्यः 5000 रुपये ।
तारानन्द वियोगी (2010): "पन्द्रह अगस्त सन्तानबे" (मैथिली कथा) 
(http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_6142.html)



[1] "द्वित्व" पर विस्तृत सूचना खातिर भेंट कैल जाय -  http://en.wikipedia.org/wiki/Reduplication