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Thursday, April 05, 2018

मगही के चाही मगहिये के व्याकरण


मगही के चाही मगहिये के व्याकरण
लेखक - नारायण प्रसाद, पुणे

सारांश
मगही आउ मैथिली में दुनिया के सब्भे भाषा के अपेक्षा सबसे जटिल क्रियारूप पावल जा हइ। हिन्दी के एक-एक क्रियारूप लगी मगही (आउ मैथिली) में कइएक रूप होवऽ हइ। जैसे, हिन्दी के है लगी बिहारशरीफ (नालन्दा) के मगही में नौ-नौ रूप के प्रयोग देखल जा हइ। अब तक के जेतना भी मगही व्याकरण लिक्खल गेले ह ऊ सब या तो अंगरेज़ी के आधार पर लिक्खल गेले ह चाहे हिन्दी के आधार पर, मगही के आधार पर बिलकुल नञ्। एहे कारण हइ कि अब तक के कउनो मगही व्याकरण में मगही के क्रियारूप के क्लिष्टता के कोय स्पष्ट विवेचन नञ् मिलऽ हइ। ई आलेख में मैथिली व्याकरण मिथिला-भाषा-विद्योतन के माध्यम से मगही क्रियारूप के क्लिष्टता के व्याख्या कइल गेले ह आउ मगही के आधार पर मगही व्याकरण के रचना के आवश्यकता पर बल देल गेले ह।

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आचार्य किशोरीदास वाजपेयी राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण के पंचम अध्याय क़्रियाप्रकरणमें क्रिया-विवेचना के उलझन के कारण स्पष्ट करते लिखलका हल (1949:81-82/ 2007:243-244) –

किसी भी भाषा में क्रिया-प्रकरण सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। क्रिया-पद ही अन्य भाषा-भाषियों के लिए उलझन के रूप में सामने आते हैं; क्योंकि यही प्रत्येक भाषा विशेषता रखती है। यह विशेषता ही अन्य भाषा-भाषियों को उलझन के रूप में तंग करती है। ... हिन्दी व्याकरणदेखो, तो उसमें लिखा है कि सकर्मक क्रियाएँ हिन्दी में भाववाच्य होती नहीं हैं ! तब, व्याकरण की आज्ञा मानकर यदि लिखते हैं -
हमने तुम देखे
तुमने हम देखे

तो, हिन्दीवाले गलत बतलाते हैं ! कहते हैं -
हमने तुम को देखा
तुमने हम को देखा

यों शुद्ध-सही लिखो ! परन्तु ये प्रयोग (हमने तुम को देखाऔर तुमने हम को देखा’) भाववाच्य हैं, सकर्मक क्रिया के। क्रिया देखाएकवचन है, जबकि कर्ता और कर्म बहुवचन हैं ! व्याकरण के अनुसार लिखो, तो हिन्दीवाले गलत बताते हैं और गलती ठीक करने के लिए व्याकरणदेखो, तो वहाँ वही सब है ! हम करें, तो क्या करें ! राष्ट्रभाषा की यह बड़ी उलझन है !

निःसन्देह हमारे बन्धुओं का उपालम्भ अर्थ रखता है।

अवश्य ही हिन्दी-क्रियाओं की उलझन उनके सामने है, जिसे व्याकरण-ग्रन्थों ने और भी उलझा दिया है ! कारण, कोई व्याकरण अंग्रेजी के आधार पर लिखा गया है और कोई संस्कृत के आधार पर। हिन्दी के आधार पर हिन्दी का व्याकरण बना ही नहीं। तब उलझन तो होगी ही।

डॉ॰ डी॰एन॰ शंकर भट कन्नडक्कॆ बेकु कन्नडद्दे व्याकरण (कन्नड के चाही कन्नडे के व्याकरण) में अनुच्छेद 1.3 के अन्तर्गत कन्नडवल्लद कन्नड व्याकरणगळु (कन्नड से असम्बन्धित कन्नड व्याकरण) प्रकरण में लिखलका ह (2001:15.5-14) –

कन्नड पर लिक्खल व्याकरण सब में संस्कृत, लैटिन चाहे इंग्लिश भाषा के व्याकरण के नियम सब अइसहीं कन्नड में ग्रहण करे के प्रयत्न के सिवा कन्नडे के व्याकरण के नियम सोच-विचार के अपनावे के प्रयत्न नञ् हइ। संस्कृत चाहे इंग्लिश भाषा के व्याकरण के नियम कन्नड में अपनाना बिलकुल सम्भव नञ् रहले पर कन्नड में एकरे व्याकरण के नियम कुच्छो हइ कि नञ् ई देख के अपनावे के ई व्याकरण सब के प्रयत्न रहऽ हइ। ओहे से अधिकतर प्रसंग में ई सब व्याकरण कन्नड भाषा के रचना के विवरण देवे में बिलकुल असमर्थ देखाय दे हइ।

मगही आउ मैथिली में दुनिया के सब्भे भाषा के अपेक्षा सबसे जटिल क्रियारूप पावल जा हइ। हिन्दी के एक-एक क्रियारूप लगी मगही (आउ मैथिली) में कइएक रूप होवऽ हइ। जैसे, हिन्दी के है लगी बिहारशरीफ (नालन्दा) के मगही में नौ-नौ रूप के प्रयोग देखल जा हइ। दोसर-दोसर भाषा सबके धातु में साधारणतः एक या दू ठो प्रत्यय एक साथ लगऽ हइ, लेकिन ई दूनू भाषा में एक पर एक तीन-चार ठो प्रत्यय लगावल जा सकऽ हइ। जैसे - मैथिली में देख धातु से "देखलकइक" - एकरा में "देख-ल-क-इ-क"; "देखलिअइन्ह" - एकरा में "देख-ल-इअ-इ-न्ह"। मगही में संगत (corresponding) क्रियारूप क्रमशः  "देखलकइ" - एकरा में "देख-ल-क-इ"; "देखलिअइन" - एकरा में "देख-ल-इअ-इ-न"। क्रियारूप में सब्भे प्रत्यय के अप्पन-अप्पन अर्थ आउ भाव हकइ (झा 2011:1) ई रीति के क्रियापद-व्यवस्था विश्व के बहुत विरले भाषा में पावल जा हइ। ई प्रसंग में मगही आउ मैथिली के तुलना तुर्की भाषा से कइल जा सकऽ हइ। ई भाषा के वर्णन करते डॉ॰ सेयेस के उक्ति देखल जाय (सेयेस 1880:199-200):

तुर्की क्रिया, फ़िनिक के जइसन, रूप में अत्यन्त धनी हइ; प्रत्यय के ऊपर प्रत्यय जोड़ल जा सकऽ हइ ताकि सूक्ष्म से सूक्ष्म आउ रंग-बिरंग के अर्थ में भेद के चित्रित कइल जा सकइ। फिर भी धातु आउ प्रत्यय - दूनहुँ स्पष्ट आउ चिह्नित रहऽ हइ। ओहे से एकरा में हइ पारदर्शिता जे क्रिया रूपावली के विशेषता बतावऽ हइ आउ एकरा तार्किक विचार खातिर एतना परिपूर्ण साधन बनावऽ हइ।

ग्रियर्सन ऊ पहिला भाषाशास्त्री हला जे मैथिली के क्रियारूप पर सूक्ष्म अध्ययन कइलका हल। लेकिन ऊ क्रिया रूपावली के जटिलता के व्याख्या नयँ कर पइलका आउ न तो ई भाषा के क्रिया के श्रेणीबद्ध प्रत्यय सब के विश्लेषण करे के कोय प्रयास कइलका (झा 2001:159) ऊ अपनहीं स्वीकार कइलका  (ग्रियर्सन 1881:50) -
मैथिली क्रियारूप के बाहुल्य में आनन्द के अनुभव करऽ हइ। आंशिक रूप से विकसित सब्भे भाषा जइसन एकरा में बहुत कम्मे भाग हइ जेक्कर दू या तीन वैकल्पिक रूप नयँ होवे। ई वैकल्पिक रूप क्षेत्रीय विशेषता नयँ हइ, बल्कि ऊ सब्भे के प्रयोग एक्के वक्ता अप्पन कल्पना (fancy) या वाक्य में लय के जरूरत के मुताबिक प्रयोग करऽ हइ। हमरा नयँ लगऽ हइ कि उ सब में अर्थ सम्बन्धी कोय भेद हकइ।
ग्रियर्सन मैथिली व्याकरण के अगला पूर्णतः संशोधित संस्करण में उपर्युक्त उद्धृत वक्तव्य में से खाली पहिला वाक्य के बदल के लिखलका (ग्रियर्सन 1909:108) -
क्रिया के रूपावली मैथिली व्याकरण के सबसे जटिल अंश हकइ। आंशिक रूप से विकसित सब्भे भाषा जइसन एकरा में बहुत कम्मे भाग हइ जेक्कर दू या तीन वैकल्पिक रूप नयँ होवे। ….. हमरा नयँ लगऽ हइ कि उ सब में अर्थ सम्बन्धी कोय भेद हकइ ।
आगे अपन बिहारी भाषा के बोली आउ उपबोली के सात व्याकरण (ग्रियर्सन 1883:I:27) में लिखलका -
एक तरह से क्रिया के रूप बहुत असान हइ। कोई विशेष काल के क्रिया के मूल रूप देल रहला पर असानी से सब्भे क्रियारूप बनावल जा सकऽ हइ, काहे कि सब्भे काल के पुरुष प्रत्यय लगभग समान होवऽ हइ।  लेकिन बिहारी भाषा के क्रिया में एक कठिनाई हइ, जे हिन्दी भाषा के छात्र सब लगी अनजान हइ - ई हइ प्रत्येक पुरुष लगी पुरुष प्रत्यय के विविधता। कभी-कभी तो एक्के पुरुष में छो-छो प्रत्यय तक होवऽ हइ, जेकरा में से विकल्प के रूप में केकरो प्रयोग कइल जा सकऽ हइ

महावैयाकरण पं॰ दीनबन्धु झा ऊ पहिला विद्वान् हला जे मैथिली के जटिल क्रियारूप के सम्पूर्ण व्याख्या कइलका आउ सिद्ध कइलका कि मैथिली क्रिया रूपावली बिलकुल क्रमबद्ध (systematic) हइ, जेकरा से ऊ ग्रियर्सन जइसन कते भाषाशास्त्री के भ्रान्ति तोड़े में सफल होला।

अभी तक मगही के जे कुछ व्याकरण निकलले ह, ऊ सब या तो अंग्रेज़ी व्याकरण या हिन्दी व्याकरण के आधार पर रचल गेले ह। मगही-व्याकरण के क्षेत्र में डॉ॰सम्पत्ति अर्याणी के योगदान में प्रो॰ रामनाथ शर्मा लिखलथिन ह (2001:11) -  

यौधेय जी के मगही भासा के बेआकरन, पहिला भाग प्रकाशित तो ३० अगस्त १९५६ के भेल, बाकि ओकरा हम ग्रियर्सन साहेब के ढंग पर लिखल मानऽ ही। ५६ पेज के रचना में १९१ नियम आयल हे। ईमानदार लेखक के सराहना ई लेल करे लाइक हे कि ऊ निवेदन में स्पष्ट कर देलन हे - हम डाक्टर ग्रियर्सन साहेब के रिनी ही। उनकर बेआकरन के केतना बात हम लेली हे। नियम २२, २४, २५, २६, ३३, ३९, ४०, ६८, ६९, ८१, ८८, ९२ से ९७ तक आउ १२९ से १३८ तक में देल विचार करीब-करीब बिल्कुले उनकरे गिरामर के विचार हे।

डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के बारे में ऊ लिखलथिन ह (2001:18) -
इनकर व्याकरण मगही के सब व्याकरण के अपेक्षा जादे सर्वांगपूर्ण, व्यापक, प्रामाणिक आउ शुद्ध हे।

लेकिन ई व्याकरण के सर्वांगपूर्ण व्याकरण नञ् मानल जा सकऽ हइ, काहे कि मैथिली के जइसने मगहियो के जे क्रियारूप में क्लिष्टता हकइ ओकरा बारे में कुच्छो विवेचन नञ् मिलऽ हइ - केलॉग (1938) के हिन्दी व्याकरण (जेकरा में अन्य भाषा के अलावे मगही आउ मैथिली के भी कुछ चर्चा कइल गेले ह) जइसन ही  पुरुष आउ काल के अन्तर्गत क्रिया के विविध रूप के खाली सूची देके काम चला लेवल गेले ह। केक्कर काहाँ प्रयोग कइल जा हइ, एकरा बारे कुच्छो उल्लेख नञ् हइ। मगही के जउन व्याकरण में मगही क्रियारूप के क्लिष्टता के पूर्ण व्याख्या नञ् मिले ओकरा वास्तव में मगही व्याकरण कहले नञ् जा सकऽ हइ, काहे कि क्रियारूप के क्लिष्टता ही मगही (आउ मैथिली) के विशेषता हइ जे संसार के आउ कउनो भाषा में नञ् पावल जा हइ। भोजपुरी में भी क्रियारूप के क्लिष्टता नञ् हइ - "भोजपुरी क्रियाओं के रूप में मैथिली तथा मगही क्रियाओं के रूप की जटिलता का सापेक्षिक अभाव है।" (तिवारी 1936:3)

अब पं॰ दीनबन्धु झा के मैथिली व्याकरण मिथिला-भाषा-विद्योतन (1946; पुनर्मुद्रण 1993) के पं॰ गोविन्द झा के अंग्रेज़ी भूमिका से मैथिली क्रियारूप के विविधता के कुछ अन्दाज प्रस्तुत कइल जा रहले ह जेकरा में अर्थ के सूक्ष्म अन्तर भी देखावल गेले ह (1993:xvi-xvii) -

सामान्य भूतकाल में हिन्दी क्रिया के चारे रूप होवऽ हइ (देखा, देखे, देखी, देखीं), जबकि मैथिली में कम से कम उनइस रूप। प्रत्येक रूप के अपन-अपन पृथक् अर्थ होवऽ हइ। प्रत्येक अर्थ लगी पृथक् प्रत्यय होवऽ हइ, आउ कइएक संयुक्त अर्थ लगी कइएक प्रत्यय के जोड़ल जा सकऽ हइ। ई तरह, प्रसंग के अनुसार, अंग्रेज़ी के सरल वाक्य “he went” के अनुवाद मैथिली में निम्नलिखित आठ तरह से कइल जा सकऽ हइ

(1) ओ गेल he (of lower grade) went (for himself).
(2) ओ गेलैक – he (of lower grade) went (for a third person of lower grade).
(3) ओ गेलहु – he (of lower grade) went (for you, i.e. for a second person of higher grade).
(4) ओ गेलौक – he (of lower grade) went (for you, i.e. for a second person of lower grade).
(5) ओ गेलैन्हि – he (of lower grade) went (for a third person of higher grade).
(6) ओ गेलाह – he (of higher grade) went (for himself).
(7) ओ गेलथीन्ह – he (of higher grade) went (for a third person of either of higher or of lower grade).
(8) ओ गेलथून्ह – he (of higher grade) went (for you, i.e. for a second person either of higher or of lower grade).

दिनांक 15 सितम्बर 2011 के पं॰ गोविन्द झा जी से होल फोन पर बातचीत से ई पता चलल कि मैथिली में उपर्युक्त वाक्य सब के क्रियारूप में के उच्चारण बहुत लघु अर्थात् पाणिनि के तकनीकी शब्द के अनुसार लघु प्रयत्नतरहोवऽ हइ, विशेष करके वक्ता जब धारा प्रवाह बोलऽ हई तब तो एकर ध्वनि लगभग अश्रव्य (inaudible) होवऽ हइ। ई बात भी ध्यातव्य हइ कि मैथिली ’ ‘के उच्चारण मगहिये नियन अइ’, ‘अउकइल जा हइ। ई तरह गेलहु’, ‘गेलैन्हि’, ‘गेलाह’, ‘गेलथीन्ह’, ‘गेलथून्ह’  के उच्चारण लगभग गेलउ’, ‘गेलइनि’, ‘गेला’, ‘गेलथीन’, ‘गेलथूनहोवऽ हइ। गेलइनिके उच्चारण कुछ लोग गेलनया गेलइनभी करऽ हथिन।

अतः मैथिली के उपर्युक्त आठ वाक्य के मगही में समानान्तर वाक्य के क्रमशः ई तरह लिक्खल जा सकऽ हइ – “ऊ गेल / गेलइ / गेलो / गेलउ / गेलन / गेला / गेलथिन / गेलथुन

एतने नञ्, मगही में एक रूप आउ होवऽ हइ - ऊ गेलथन”, जेकर समानान्तर रूप लगऽ हइ कि मैथिली में नञ् पावल जा हइ। "गेलथन, गेलथिन, गेलथुन" के स्थान पर क्रमशः "गेलखन, गेलखिन, गेलखुन" के प्रयोग भी होवऽ हइ। "गेलथिन, गेलथुन"  के स्थान पर नकार के लोप के साथ आउ अन्तिम स्वर के दीर्घ रूप होके "गेलथी, गेलथू"  के भी प्रयोग पावल जा हइ। ओहे तरह से "गेलखी, गेलखू" के भी। ई सब क्रियारूप सामान्यतः नालन्दा जिला के मुख्यालय बिहारशरीफ (250 11' 55" उ॰, 850 31' 8" पू॰) के क्षेत्र में आउ विशेष कर के प्रकृत लेखक के गाँव, डिहरा (250 16' 47" उ॰, 850 32' 45" पू॰) में प्रयुक्त मगही के देल गेले ह। ई गाँव, बिहारशरीफ से आठ कि॰मी॰ उत्तर स्थित रहुई रोड रेल्वे स्टेशन से दो कि॰मी॰ पूरब आउ रहुई से करीब डेढ़ कि॰मी॰ पच्छिम पड़ऽ हइ।

मगही आउ मैथिली क्रियारूप के तुलनात्मक अध्ययन (प्रसाद 2011) नामक आलेख में पं॰ दीनबन्धु झा लिखित मिथिलाभाषा-विद्योतन’ (1946) के आधार पर भूत, वर्तमान आउ भविष्य काल में कुछ धातु के मगही के प्रत्येक क्रियारूप के मैथिली क्रियारूप से तुलना करके सैद्धान्तिक रूप से अलग-अलग सन्दर्भ में उचित प्रयोग दर्शावे के प्रयास कइल गेले ह। मगही व्याकरण विशेषज्ञ के मैथिली के विविध क्रियारूप के सूक्ष्म अन्तर के परिशीलन करके मगही में अइसन सूक्ष्म अन्तर हो सकऽ हइ कि नञ् एकर निर्धारण करके मगही व्याकरण में नियम निश्चित करे के चाही।

मगही महोत्सव, राजगीर (17-18 जुलाई 2011) के दौरान एक विद्वान पेट में आउ पेटवा में - ई दूनू रूप के प्रयोग में की सूक्ष्म अन्तर हइ एकर समस्या रखलथिन। आउ केकरो कोय जवाब देते नञ् देखलिअइ त हम डॉ॰ शीला वर्मा (2003:506) के विचार सामने प्रस्तुत कइलिअइ आउ बतइलिअइ कि ई -आ (पूर्व में अकार या वकार आगम सहित) प्रत्ययान्त शब्द अंग्रेज़ी के दी (the) आदि अर्थ अर्थात् निश्चितता प्रकट करऽ हइ जबकि बिना एकरा के अनिश्चितता के। जइसे

(1)       ‘मोटरी में – in a bundle; लेकिन मोटरिया में in the bundle.

(2)        ई काम तो एगो लड़का भी कर सकऽ हइ – Even a boy can do this work.
            ई काम तो एगो लड़को कर सकऽ हइ – Even a boy can do this work.
ऊ लड़कावा के पूछहो न –  (Please) ask that boy.

(3)       अहो, लगऽ हइ कि रसीदिया के एगो किताब में रख देलिये हल, हमरा मिलिये नञ् रहल ह।
बाउ जी, ई कितब्बा में खोजलहो ह ?

‘- प्रत्यान्त व्यक्तिवाचक संज्ञा के प्रयोग अनादरार्थ सूचित करऽ हइ। जइसे -

(1)       कमेसर जी के पूछहो न। (आदरार्थ)
कमेसरा के पूछहो न। (अनादरार्थ)

सन्दर्भः
  1. आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (1949): “राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण”, जनवाणी प्रकाशन, कलकत्ता; पुनर्मुद्रण - विष्णुदत्त राकेश द्वारा सम्पादित आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ग्रन्थावली, भाग-1 (ब्रजभाषा व्याकरण, राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण, साहित्यिकों के पत्र)”, वाणी प्रकाशन, 2-, दरियागंज, नयी दिल्ली; 2008 ई॰; कुल - 399 पृष्ठ;  राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण”, पृ॰181-324।

  1. डॉ॰ डी॰एन॰ शंकर भट (2001): “कन्नडक्कॆ बेकु कन्नडद्दे व्याकरण (कन्नड के चाही कन्नडे के व्याकरण), द्वितीय परिष्कृत संस्करण, भाषा प्रकाशन, मैसूरु; वितरक - अत्रि बुक सेंटर, 4, अरावति कट्टड, बल्मठ, मंगळूरु-575001; कुल - 202 पृष्ठ। (कन्नड में)

  1. प्रो॰ रामनाथ शर्मा (2001): मगही-व्याकरण के क्षेत्र में डॉ॰सम्पत्ति अर्याणी के योगदान”, अलका मागधी, दिसम्बर, पृ॰11-12, 18.

  1. डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी (1993): “मगही व्याकरण प्रबोध”, प्रथम खण्डः व्याकरण-प्रभाग (कुल 16 अध्याय), द्वितीय खण्डः काव्यांग-विवेचन (कुल 6 अध्याय), तृतीय खण्डः मगही भाषा के कुछ समस्या (कुल 4 अध्याय); संदीप प्रकाशन, टेकारी रोड, पटना, 288+64+32+3 पृष्ठ।

  1. डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी (1992): “मगही व्याकरण आउर रचना”, संदीप प्रकाशन, टेकारी रोड, पटना; 263 पृष्ठ।

  1. Rev. S.H. Kellogg (1938): “A Grammar of the Hindi Language” (in which are treated the High Hindi, Braj, and the Eastern Hindi of the रामायण of तुलसीदास, Also the Colloquial Dialects of राजपुताना, कुमाऊँ, अवध, रीवा, भोजपुर, मगध, मिथिला etc.), Third Edition, London, Kelgan Paul, Trench, Trubner and Co. Limited; xxxiv+584 pp.
  2. Grierson, George A. (1881): “An Introduction to the Maithili Language of North Bihar”, Part I – Grammar. Calcutta: The Asiatic Society. Second Edition – 1909; Calcutta: The Asiatic Society, 57, Park Street.
  3. Grierson, George A. (1883): “Seven Grammars of the Dialects and Subdialects of the Bihari Language”, Part I. INTRODUCTORY. Calcutta: Bengal Secretariat Press. Reprint: Varanasi/ Delhi: Bhartiya Publishing House, 1980.
  4. Sheela Verma (2003): “Magahi” in: The Indo-Aryan Languages (Cardona, George and Jain, Dhanesh, Eds.; London and New York: Routledge.). Ch.13, pp.498-514.
  5. दीनबन्धु झा (1946): “मिथिला-भाषा-विद्योतन”, दरभंगा: मैथिली साहित्य परिषद्पुनर्मुद्रण 1993; प्रकाशक - गोविन्द झा, पटेलनगर, पटना; xxvii+270+vi पृष्ठ।
  6. नारायण प्रसाद (2011): “मगही आउ मैथिली क्रियारूप के तुलनात्मक अध्ययन”, अलका मागधी, फरवरी, पृ॰5-10.
  7. Sayce, Archibald Henry (1880): “Introduction to the Science of Language”, Vol.II;  C.K. Paul & Co.,  London.  vi+ 421 pp.+ list of books published by C.K. Paul & Co. (36 pp.).
  8.  पं॰ गोविन्द झा (2011): "मैथिलीक क्रियापद-रूपावली" (व्यक्तिगत ई-मेल से प्राप्त लेख, दिनांक 25 सितम्बर)।
  9. डॉ॰ उदयनारायण तिवारी (1936): “भोजपुरी भाषा और साहित्य”, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना
[प्रकाशितः मगही पत्रिका, मार्च-अप्रैल 2012, पृ॰21-24]