अमा॰ = मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी"; सम्पादक - डॉ॰ अभिमन्यु मौर्य, पटना
ई सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ । उदाहरण -
जुलाई 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 1;
दिसम्बर 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 6;
दिसम्बर 1996 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + 12 = 18;
दिसम्बर 2007 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2007-1995) X 12 = 6 + 12 X 12 = 150;
दिसम्बर 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2009-1995) X 12 = 6 + 14 X 12 = 174;
जनवरी 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 1 = 6 + 13 X 12 + 1 = 163.
अप्रैल 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 4 = 6 + 13 X 12 + 4 = 166.
(अंक १ से ४२ एवं अंक १६३ से १८६ में प्रयुक्त मगही शब्द के अतिरिक्त)
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1 अउडर (= ऑर्डर) (नस्ता-चाय के अउडर दे देलूँ । गरम-गरम जलेबी दू प्लेट आ गेल । टुँगर-टुँगर के जोगी बाबू कौर उठावे लगलन । मुदा बिना जल के घूँट के एक्को कोर जोगी बाबू के गला से नीचे नञ उतरऽ हल ।) (अमा॰43:11:1.27)
2 अउरतानी (मुदा हम उनकर बीतल जिनगी में खो गेलूँ - बड़ी हाँक-डाँक वला रेलवे टी॰सी॰ गेट पर खड़ा हे । केकर मजाल कि बिना टिकस देखयले गेट से बाहर निकस जात । बिना टिकस जात्री के रुपइया नञ रहला पर घड़ी भी खोलवा ले हलन जोगी बाबू । अनपढ़ गँवार गरीब-गुरवा से टिकस रहते अउरतानी टिकस बता के रुपइया ऐंठ ले हलथिन जोगी बाबू !) (अमा॰43:11:2.22)
3 अकबकाहट (ऊ बेचारा तो व्यंग्य बाण से घायल होइत हे, बाकि ओकर अकबकाहट देख-देख के बाकी तीनों ठहाका लगा रहलन हे ।) (अमा॰46:4:2.28)
4 अगरजान (हरमेशा साथ रहला के बाद भी तोरा हम आज तक पहचान न सकली आउ तूँ हमरा ला अगरजान के अगरजाने ह ।) (अमा॰45:2:2.30)
5 अगुअई-बरतुई (फागुन के महीना हे । सब बसन्त के बहार लूट रहलन हे । जिधर सुनऽ उधर अगुअई-बरतुई के बात सुनाई पड़ऽ हे ।) (अमा॰48:11:1.2)
6 अगुआनी (रजुआ सोचऽ हे ... 'अब अजलत होइत हे । घर में भुंजी भांग नञ आउ डेउढ़ी पर नाच आज हो रहल हे । अगुआनी के लोटा-थारी भी तो दरकल-चुरकल हे ।') (अमा॰52:12:1.23)
7 अचार (= आचार) ('भारद्वाज जी के भारद्वाजी मन 'अछूत' के छुतिहर अचार से घबरा गेल हे तो मानती जी 'दबंग' के लफंगई से आउ आरती जी के दिल 'प्रकृति के मार' से आर्त्तपुकार करे लगल हे ।) (अमा॰48:9:1.28)
8 अजलत (रजुआ सोचऽ हे ... 'अब अजलत होइत हे । घर में भुंजी भांग नञ आउ डेउढ़ी पर नाच आज हो रहल हे । अगुआनी के लोटा-थारी भी तो दरकल-चुरकल हे ।') (अमा॰52:12:1.21)
9 अझका (ऊ अझका परिवार, समाज आउ जमाना पर तर्क-वितर्क करइत आत्महत्या के बात मन में ठान लेलक ।) (अमा॰52:12:2.7)
10 अढ़ाना (= अर्हाना, कोई काम करने को कहना या आदेश देना) (आजकल के लइकन मस्ती में चूर हे । पढ़े में न मन लगे सिनेमा जरूर हे । काम जे अढ़एबऽ त कुरता हो जायत गंदा । खा हथन तीन बेर करऽ न हथ धंधा ।) (अमा॰46:15:1.23)
11 अतिकरमन (= अतिक्रमण) (कलजुग में चउराहा पर, सड़क के किनारे, खेत में, खलिहान में, आरी-किआरी पर जमीन दखलावे ला हम्मर मूरत बनाके ठाड़ कर देलऽ । आझ हमरा अतिकरमन के केस में अइसन उलझा देलऽ कि हम्मर सिर नीचा हो गेल ।) (अमा॰46:10:2.12)
12 अदमियत (धरम-करम हम का जानी, बस मात-पिता के पूजऽ ही । अदमी ही आउ अदमी से अदमियत के खोजऽ ही ।) (अमा॰48:15:2.2)
13 अधेर (= अधेड़) (दूगो अधेर उमिर के सिपाही ओकरा संघे हँसी-ठिठोली करइत आगे बढ़ल जाइत हलन ।) (अमा॰44:6:2.12)
14 अनकहल (कोई कहे 'ई तो अधर्मी हे, ऐसन लड़का के नौकरी कहाँ से मिलत ।' कोई कहे 'अरे भाई, ई बच्चे से अनकहल लड़का हल ।') (अमा॰53:12:1.4)
15 अनगिन (= अनगिनत) (रंभा-उर्वशी-मेनका-मधुबाली हे, ससुरार में ओइसहीं साली हे । हम भूषण भाग्य के आला ही, कारण अनगिन साली वाला ही ।) (अमा॰46:15:2.17)
16 अनगुत्ते ('अनगुत्ते आज इटहरी जाय के हे' - सोचइत बाढ़ो सिंह झटपट झाड़ा-झटकी कैलन ।) (अमा॰52:11:1.1)
17 अन्दरे-अन्दर (एन्ने-ओन्ने जिधरे देखऽ उधरे फइलल गन्ध, अन्दरे-अन्दर टुट्टे लगले मनवा के तटबन्ध ।) (अमा॰52:16:2.5)
18 अपसोस (= अफसोस) (हमरा अप्पन दुरभाग पर अपसोस भेल । जादे अपसोस तो ई ला भेल कि मरदाना से जनाना बनली तइयो न दूध पीलन गणेश !) (अमा॰46:11:2.24)
19 अरउआ (भुखलू हाथ जोड़ के विनती करे लगल, तइयो सिंह जी न मानलन आउ जबरदस्ती बैलन के उत्तर देन्ने हाँके लगलन । भुखलू अरउआ से पच्छिम हाँकथ आउ सिंह जी उत्तर । अचानक भुखलू के दिमाग में ई बात घूम गेल कि आज न त फिन कहियो नऽ मिलत मौका । इनकर बड़ाहिल भी कोई न हथ इहाँ । एतना सोचइते ओकर अरउआ बैल पर से घूम के सिंह जी के पीठ पर पड़े लगल । चार-पाँच अरउआ तड़ातड़ लगला पर सिंह जी उहाँ से भाग चललन ।) (अमा॰49:13:2.13, 17, 19)
20 अवनिहार (= आनेवाला) (जेतना भीड़ अवनिहार के हल ओतने भीड़ जानिहारो के हल ।) (अमा॰47:7:1.21)
21 अवलदार (= तैयार, राजी) (का कहियो सुकनी के माय ! जब विपत्ति आवऽ हे तब अप्पन अदमी भी पहचाने ला अवलदार न होवे ।) (अमा॰43:10:2.19)
22 अस्सो (~ के = ऐसे भी) (अस्सो के जब ई मरिस्तनवा के पास पहुँचऽ हथ त इनकर चिंतन के आग में चर्बी पड़ जाहे ।) (अमा॰43:13:2.1)
23 आगू-आगू (मन्त्री जी के परवेस । आगू-आगू मन्त्री जी आउ पीछू-पीछू जुवा नेता नारा लगावित हथ ।) (अमा॰45:13:2.25)
24 आड़ी-गाड़ी (निमोछिया छौंड़ा ओकर अइसे असरा खोजइत हल जइसे भूखल-पियासल अदमी खाना पानी खोजऽ हे । ऊ जवनकी रोज जंकशन के बाहर खड़ा रहऽ हे आउ कोई आड़ी-गाड़ी आवे के पहिले टीसन के पलेटफारम से बाहर निकलइत पसिन्जर में से गाँहक खोजऽ हे ।) (अमा॰44:6:2.4)
25 आय (सुबहे-सुबह छापामारी के दरम्यान पकड़ के लावल एगो बूढ़ा के सिपाही बेरहमी के साथ मार रहल हल । बूढ़ा जेतने आय मइया, आय बाबू करइत रोवे, थानेदार ओतने भद्दा-भद्दा गारी देके अन्य उग्रवादी के बारे में पूछे ।) (अमा॰44:5:2.3)
26 आय-माय (एक दिन दुन्नो भाई लड़ गेलन । आय-माय के भीड़ लग गेल । सब लोग छोटके के जादे दोष लगावे लगलन ।) (अमा॰44:5:1.7)
27 आव (= आउ, और) (आझ तो वंचित लोगन में हरिजन आव आदिवासी के संगे-संगे सब्भे जात के लड़कियनो के गिनती होवइत हे आउ एकन्हि के उत्थान के बातो संविधान के धारा 46 में करल गेल हे ।) (अमा॰45:7:1.7)
28 आसरय (= आश्रय) (उपन्यास में वरनित घटना आउ व्यापार के आसरय पात्र होवऽ हथ ।) (अमा॰50:10:1.1)
29 इड़ोत (कलवा जब दिन-दिन भर काम में भिड़ल रहऽ हल त सब ओकरा माथा पर चढ़ैले रहऽ हलन, अब ऊ रोगी बन गेला से सब के नजर में गिर गेल । लोग ओकरा से इड़ोते रहे ले चाहऽ हथ ।) (अमा॰52:14:1.25)
30 इरसा (= ईर्ष्या) (सोन पार वाली दुलहिन के सुन्दरता के बखान एक टोला से दूसर टोला फुदक-फुदक के करइत हल । जेतना मुँह ओतने बात, बाकि जादेतर अउरत डागडरनी के भाग से इरसा कर रहलन हल ।) (अमा॰54:16:2.3)
31 इसकुलिया (देखऽ इसकुलिया केतना बढ़िया कहावऽ हे । माहटर से लइकन न तनिको डेरा हथ । माहटर जे मारलन बंदूके भिरावऽ हथ ।) (अमा॰46:17:2.1)
32 इसकूली (मगह क्षेत्र के सम्पूर्ण इसकूली शिक्षा के माध्यम मगही होवे के चाही ।) (अमा॰44:1:1.6)
33 इहँय (= यहीं) (बाढ़ो सिंह भी ई बात से सहमत होके कलवा के इहँय बोला लावे के मसविरा कैलन ।) (अमा॰52:13:1.14)
34 ईसटार्ट (= स्टार्ट, शुरू) (अस्सो के जब ई मरिस्तनवा के पास पहुँचऽ हथ त इनकर चिंतन के आग में चर्बी पड़ जाहे । दुर्गंध से बचे ला नाक पर हाथ चल जाहे आउ दिमाग के मोटर ईसटार्ट - का जिनगी हे ई गाय भँइस के ?) (अमा॰43:13:2.4)
35 उघरल (चींथल-चिरायल दरकल दिल सबके जानल तू हाल, उघरल सीयल गुदरी दशईं दिल प्रेमी बन पेवन लगा दे ।) (अमा॰49:7:2.14)
36 उघार (हमनी दुन्नो के पहनावा-ओढ़ावा में भी काफी फरक हल । हम नीमन-नीमन कपड़ा-लत्ता पहिनले रहऽ हली, त ऊ पुरान-धुरान गंजी लंगोटी, जेकर जादेतर देह उघारहीं रहऽ हल । हाँ, हम्मर उतारल कपड़ा से कुछ दिन ला ओकर देह ढँका जा हल ।) (अमा॰49:11:1.9)
37 उझंक (नगर-डगर सगर उझंक लगऽ हइ । न जानि काहे सब बदरंग लगऽ हई ।) (अमा॰43:1:1.1)
38 उझंख (खंडहर बनल सब महल अटारी, बनल उझंख कियारी हे । कहिया केकर जान लेत के, दानव बनल बिहारी हे ॥) (अमा॰48:16:1.22)
39 उटंग (वेद-पुरान-कुरान-गीता आउ रमाइन, सन्त-फकीर-ओझा-डइया-डाइन, सब बसिआएल सब के अरथ-अनरथ जइसे कुरसी पर बैठल जनतंतर उटंग लगऽ हइ ।) (अमा॰43:1:1.12)
40 उटपटांग ('नरेश बाबू पगला गेलथिन का ?' कोई बोललक । धीरे-धीरे पूरा हॉल नरेस बाबू के उटपटांग प्रलाप पर फुसफुसाये लगल । ई सबसे बेपरवाह ऊ अप्पन रौ में बहित, ऊल जलूल बकइते रहलन ।) (अमा॰43:15:1.31)
41 उधनना-पधनना (तीन दफे हिचकी आल आउ कलवा के परान पखेरू उड़ गेल । केकरो आँख से लोर नञ टसकल, सब ओकर बिछौना-तकिया आउ पौती-पेटारी उधन-पधन के सिक्का ढूँढ़े लगलन । दू गो फटल कुरती आउ पेउन्द लगल अस्तर के अलावे कुछ हाथ नञ लगल ।) (अमा॰52:14:2.17-18)
42 उपठी ('चुप रहबे कि चुलहवा में झोंकिऔ' कहके गोतनी भी उपठी उसाहले ठाड़ हे ।) (अमा॰52:12:2.2)
43 उपहना (= अन्तर्धान होना, गायब होना) (एतना कहइत हनुमान जी उपह गेलन । मन्दिल ईंटा आ चूना सिमेंट से जोड़ल जस के तस ठाड़ रह गेल ।) (अमा॰46:10:2.27)
44 उसरी (चलऽ प्रीति के गाम जहाँ हे, सत्य-धर्म के नाम जहाँ हे, छोड़ऽ उसरी टाल, बधाई भेज रहलियो हे !) (अमा॰43:6:1.22)
45 उसाहना ('चुप रहबे कि चुलहवा में झोंकिऔ' कहके गोतनी भी उपठी उसाहले ठाड़ हे ।) (अमा॰52:12:2.2)
46 ऊल-जलूल ('नरेश बाबू पगला गेलथिन का ?' कोई बोललक । धीरे-धीरे पूरा हॉल नरेस बाबू के उटपटांग प्रलाप पर फुसफुसाये लगल । ई सबसे बेपरवाह ऊ अप्पन रौ में बहित, ऊल जलूल बकइते रहलन ।) (अमा॰43:15:1.33)
47 एकमान (= इक्कावान) (टमटम के एकमान आउ सवारी के इन्तजार में टमटम रोकले हल ।; टमटम के एकमान अब टमटम खोल देलक हल, 'चल गे बसन्ती ...।') (अमा॰47:17:1.3, 8)
48 एजउना (ई का भेल ? अइसन जीव ई गाँव का कि एजउना जिला-जेवार में भी कभी न निकलइत हल ! कउनो जानवर हे कि कोई देवी-देवता भेष बदल के ई गाँव में परघट भेलन हे !) (अमा॰46:12:1.26)
49 एहँय (= यहीं) (बड़का भाय कहलन - 'अब कलवा के एहँय ले आवऽ ! अब ओकर ससुराल में बचले का हे । घर में एगो कोठरी आउ एकाध बीघा जमीन हिस्सा बखरा में मिलत । ..') (अमा॰52:13:1.7)
50 ऐतरा-पैतरा (~ बाँधना) (सगरो से थक-हार के तऽ अन्तिम में मुखिया जी हीं भी गेली । ऊ पहिले तो खूब ऐतरा-पैतरा बाँधलन, फिन हमरा गोड़-हाथ परला पर ऊ पाँच सौ रुपइया तो गछलन हे, बाकि उनखर एगो शर्त हे ।) (अमा॰43:10:2.23)
51 ओंघड़ाना (= लोघड़ाना) (बाबूजी बेहोस होके चौकी से ओंघड़ा के फर्स पर गिर गेलन ।) (अमा॰50:9:2.7)
52 ओखरी (= ऊखरी, ऊखल) (शाम के समय रमेश बाबू सुखदेव के घरे गेलन आउ गरीब के अँगना में रखल ओखरी पर बइठ गेलन ।; जब रमजनिया के इयाद पड़ल कि रोज ओखरी में कुटा हे त खाय पकऽ हे, ओकर आँख में आँसू भर गेल ।) (अमा॰48:11:2.17, 13:1.28)
53 ओजउना (कोई के न भूख-पियास लगइत हे, न काम सूझइत हे आउ न समस्या सुलझइत हे । एक पहर एही सब में बीत गेल । लेकिन कोई के ओजउना से डोले के मन न करइत हल ।) (अमा॰46:12:2.21)
54 ओड़ना (घर में दू गोतनी आउ हलन । ऊ दुन्नो एही जानऽ हलन कि राजमनी बड़ी अमीर घर के बेटी हे । दुन्नो केवाड़ी के भीतर थोड़ा कान ओड़ के सुने लगल कि बाप बेटी में का बात होवऽ हे । जब रजमनिया चुप होयल तब परछाहीं से समझ गेल कि ओकर बात सुने ला ढुका लगैले हथ सब ।) (अमा॰48:13:1.14)
55 ओरहना (= ओलहन) (परिवार में जनम लेइते ओकरा माय-बाप के ओरहना सहे पड़ऽ हे ई ला कि ऊ लड़की हे ।) (अमा॰45:9:1.18)
56 ओहार (अन्त में डोली के ओहार उठा के दुलहिन बोलऽ हे -; डगरे में लइकन कनिआय देखे ले उताहुल हे बाकि चानो बाबू के भय से लाल ओहार उघारे के केकरो साहस नञ जुमइत हल ।) (अमा॰50:21:2.23; 52:11:2.30)
57 औखध (= औषध, दवा) (~-गुजारी) (तीन कोस पैदल आउ तीस कोस गाड़ी, तेरहो निनान भेल औखध-गुजारी, मौगत नैं छूटऽ हे, अमदी सरकारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.25)
58 कंगला ( (ई स्वार्थी संसार में केकर कउन हे ? आउ भाई-भौजाई ? सीधे भँसा देतन । कोई कान-लंगड़ा, बूढ़ा-दोआह से बाँध देतन । ई कंगला पीढ़ी के तो अप्पन पेट पहाड़ हे । ई का करत माय-बहिन ला ? अनुकम्पा पर नौकरी लेवे ला बाप के मार देवल जाहे आजकल ।) (अमा॰43:12:2.12)
59 कंटर (जब गाड़ी नदवाँ पहुँचल तब ताड़ी के गैलन खिड़की के छड़ में टंगाये लगल । दुधिवन के दूध भरल कंटर, भूसा-कुट्टी के बोरा आउ सब्जी के खँचिया से डिब्बा के दरवाजा जाम हो गेल ।) (अमा॰54:9:1.7)
60 कटास (= खटास, बनबिलाव, जंगली बिलार) (पइसलइ शरीरवा हिंसा के कैंसर, पोरे-पोर फूटलइ बनास । खूनवा छींटवा से भींगलइ अँचरवा पुनपुन आउ दरधा उदास । बारूद के गंधवा से गुमसल बधरवा, दिनवा में घूमई कटास । गँउआ-टोलवा में नफरत के खेतिया, गेंहुआ गोहमन निवास ।) (अमा॰49:2:1.10)
61 कट्टीस ('दूध' शीर्षक निबन्ध के कुछ पंक्ति एकर उदाहरन हे - मुन्नू के माय हम्मर प्रस्ताव के कट्टीस कर देलन आउ वक्रोक्ति अलंकार में बोललन - 'बकरी के दूध पीके गाँधी जी तो महात्मा बन गेलन । तोहर बेटा ओकर दूध पीके भीम अइसन पहलवान बन जात ।') (अमा॰50:13:1.16)
62 कठजीउ (बड़ कठजीउ हल, ठिठुरइत सूखइत भींजइत, जाड़ा गर्मी बरसात, सब सह गेल हे ।) (अमा॰52:15:3.23)
63 कठमुल्लापन (कठमुल्ला = कठमलिया; बनावटी साधु; पोंगापंथी) ('बोझा' {डा॰ स्वर्ण किरण} में एगो दरोगा के सोझा साबित कर के कर्मठ के कठमुल्लापन के उकेर भेल हे तो 'अदमियत {पंचानन} में आदमी के गुलाबी सुगन्ध भरल जिन्दगी के 'कैक्टस' के काँटेदार काया में ढलल बिडम्बना के ।) (अमा॰48:8:1.31)
64 कड़ी (~ गिनना) (बइठलो रहऽ हथ त कुछ न कुछ सोचइत रहऽ हथ, सुतलो रहऽ हथ त सोचइत रहऽ हथ, चउकी पर पड़ल रहऽ हथ आउ टुकुर-टुकुर कड़ी गिनते रहऽ हथ ।) (अमा॰43:13:1.25)
65 कनहुँ (= कहीं) (ए भाई, एन्ने कनहुँ दूल्हा बिकऽ हे ? हमरा दुल्हा खरीदे ला हे ।) (अमा॰45:13:1.1)
66 कनाई (= कनिआई; बहू) (नइकी कनाई) (अमा॰50:19:1.19)
67 कफन-काठी (कफन-काठी के बाद लहास उठावे के पहिले दू-चार बूढ़ी मिल के मरल चाची के आँख, कान, चेहरा, तरहत्थी, तरुआ में सैंकड़न सुई भोंक रहलन हल । मरलो पर ई गत । ई क्रूर परथा काहे हल से इनका आज तक समझ में न आयल ।) (अमा॰43:15:1.4-5)
68 करखाना (= कारखाना) (रूपा हटिया करखाना में अप्पन पिता के फोन पर ई वाकया के सूचना देलक ।; बाकि रस्ते में ओकरा करखाना के करमचारी आउ मजूर लोग घेर लेलन । गुंडा लोग के जमके पिटाई भेल ।) (अमा॰54:17:2.20, 27)
69 करमकाण्ड (= कर्मकाण्ड) (पुरुष पात्र में सबसे पहिले गोपाल दूबे से भेंट होबऽ हे । ऊ मनुवादी हिन्दू समाज-बेवस्था के पक्का समरथक हथ । करमकाण्ड आउ पुरोहिताई उनकर जीविका हे ।) (अमा॰50:11:1.7)
70 करमनिष्ठा (= कर्मनिष्ठा) (अमा॰50:7:2.23)
71 कलउआ (हम ही पढ़ाकू नम्बर वन ! भोरे आठ बजे पक्का खटिया पर से उठो ही । बासी-कुसी, बचल-खुचल दम भर पहिले ठूसो ही । सेर भर कलउआ लेके, चल देही बन-ठन ।) (अमा॰46:16:1.18)
72 कलेउआ (= कलौआ, कलेवा) ('कलेउआ बनलो कि नञ ?' छिप्पी में चार गो फुलकी आउ करमी के साग परोसल गेल ।) (अमा॰52:11:1.10)
73 कहँय (= कहीं) (बाप रे बाप ! ई जुलुम, अइसनो कहँय परिवार होवऽ हे ।) (अमा॰52:12:2.20)
74 कहनी (= कथन) ('कउनो दोसर धरम के विरोध में जेहाद के सिद्धान्त पर अमल करना अनुचित हे' - उनकर ई कहनी सब धरम समभाव उजागर करऽ हे ।; ऊ सामन्तसाही जीवन के असलियत बतावे के साथ-साथ आज के अफसरसाही के भी कोसऽ हे । ओकर कहनी हे कि आझो अमीर लोग गरीबे के खून चूस रहलन हे ।) (अमा॰50:11:2.24, 12:1.6)
75 कहारी (समय बीतइत गेल आ हमनी दुन्नो लड़कपन से दुआर पार करके जवानी के देहारी पर पाँव रखली । हम इसकूल पार करके कालेज में दाखिल भेली पीठ पर किताबन के बोझा लेके, आ सनिचरा कहारी में उतरल कन्धा पर डोली पालकी के बोझा लेके ।) (अमा॰49:11:2.17)
76 कहुँ (= कहूँ; कहीं) (आज तक हम्मर समाज में कहुँ कोई विधवा से बिआह कैलक हे कि तूँ चललऽ हे विधवा के बिआह कराबे ?) (अमा॰47:18:1.14)
77 कान (= काना) (ई स्वार्थी संसार में केकर कउन हे ? आउ भाई-भौजाई ? सीधे भँसा देतन । कोई कान-लंगड़ा, बूढ़ा-दोआह से बाँध देतन । ई कंगला पीढ़ी के तो अप्पन पेट पहाड़ हे । ई का करत माय-बहिन ला ? अनुकम्पा पर नौकरी लेवे ला बाप के मार देवल जाहे आजकल ।) (अमा॰43:12:2.11)
78 कान-लंगड़ा (ई स्वार्थी संसार में केकर कउन हे ? आउ भाई-भौजाई ? सीधे भँसा देतन । कोई कान-लंगड़ा, बूढ़ा-दोआह से बाँध देतन । ई कंगला पीढ़ी के तो अप्पन पेट पहाड़ हे । ई का करत माय-बहिन ला ? अनुकम्पा पर नौकरी लेवे ला बाप के मार देवल जाहे आजकल ।) (अमा॰43:12:2.11)
79 किरिश्चन (= क्रिश्चन) (फिन मद्रास के किरिश्चन कालेज से बी॰ए॰, एम॰ए॰ कइलका ।; अँगरेजी भासा के होवइत विकास के देखिए के ऊ अप्पन बेटा के किरिश्चन इसकूल कालिज में पढ़े ला भेजलका हल । राधाकृष्णन के हिन्दू होवे के कारन किरिश्चन छात्र से कुछ व्यंगो सुने के मिलऽ हल ।) (अमा॰51:5:1.25, 2.21, 22)
80 किसनियाँ (हम तो आज किसनियाँ बनली बनलन सइयाँ किसान । करवइली परिवार नियोजन होतई नया बिहान ॥) (अमा॰49:8:1.24)
81 कुकुरभूँक (घमंडी राम के सउँसे घमंड छू-मन्तर भे गेल हे 'सरहद पार' के उमड़इत-घुमड़इत गदहरेंग आउ कुकुरभूँक संगीत के अठवाँ-नवमा सुर के तान से ।) (अमा॰48:9:2.7)
82 कुण्डा (हम्मर मइया कहते रहऽ हलो कि खाये कुण्डा हो मुसंडा । देखऽ तो हम मुस्तंडा ही कि नईं ?) (अमा॰47:9:2.4)
83 के (= केऽ, कौन; को; का) (कालिदास के मेहरारू विद्योत्तमा आउ मंडन मिसिर के मेहरारू भारती के पांडित्य के के नञ जानइत हे ।) (अमा॰45:8:1.14)
84 केजो (= केज्जो, कहीं, किसी जगह) (एगो साधु केजो जा रहल हल कि थाना चौक पर प्रचारगाड़ी से अवाज आयल ... ।) (अमा॰46:14:1.1)
85 केल्हुआड़ी (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !! ... केल्हुआड़ी में गुड़ के घानी सब कोई मिल के पावऽ हल । दूध-घीउ खाँटी खाके, अखड़ा में देह बनावऽ हल ।) (अमा॰48:1:1.10)
86 केहुनाठना (लोग ताबड़-तोड़ डिब्बा में घुसे लगलन । चिचिआइत पसिन्जर बड़ी मुश्किल से उतरलन । डिब्बा के भीतर अदमी पर अदमी चढ़ल हल । कोई ओन्ने केहुनाठे तो कोई एन्ने धकिआवे । कपड़ा के दुरदशा देखे लाइक हल । कुरता मइसा के गोड़पोछना बन गेल हल ।) (अमा॰47:8:2.6)
87 कोंचना (अँटकल हे कनी याद के मन कोंच रहल हे, बेबात हे ऊ बात बिना बात के मौसम ।) (अमा॰49:1:1.11)
88 कोंचिआल (जउन गाड़ी देखुँ ऊ अदमी से खचकल रहे । लदनी नियर अदमी लटकल । बालकोनियो में तिल धरे के जगह नञ् । बोरा नियर एक के ऊपर दूसर अदमी कोंचिआल । बस कनहुँ न दिखाई पड़ल । बस के असरा बेकार हल ।) (अमा॰47:7:1.14)
89 कोटा (ई बेचारे गाँव के गऊ आदमी हथन । इनकर व्यवहार से जिला-जेवार वाकिफ हे । ई पुलिस जात के गाँव में कोई आउ आदमी न मिलल तो इनके पकड़ के कोटा पूरा करलक ।) (अमा॰44:5:2.16)
90 कोठी (= अनाज रखने का बखार; कोठिला) (झपटि-झपटि तू बोझवा ले अइहऽ, ढेरवा लगइहऽ तू खरिहान । बाल-बच्चा मिलि करबइ पिटनिआ, कोठिआ में भरतइ धान ।) (अमा॰54:6:2.16)
91 कोढ़ी (= आलसी) (धन लोभी बेटी के मिलल ससुरार, दमाद हे कोढ़ी या सुकवार, काम करे न एक, बाबू बन टहले बेकहल बाप के बेटा ।) (अमा॰45:2:1.21)
92 खँखोरना (= खखोरना) (जे रचनाकार एकरा में बिना अझुरयले निकल जाए आउ अप्पन सोझ आउ सुझरल संवेदना भरल संवेदना झाड़ के पाठक के हिरदा खँखोर दे, झोर दे, ऊहे सफल कलाकार हे ।; विस्तार से भँभोरल-खँखोरल इया चोभोरल-बोरल तो शुद्ध समीक्षक आउ समीक्षा के विषय-सीमा में हे ।; पीछे-पीछे चलऽ चुपचाप केउ गदहा के, परसिद्धि मिले हे नाला में बोरे से । कड़ाही में दूध के लेस न बलुक होए, का का न मिले हे ओकरा खँखोरे से ॥) (अमा॰48:8:1.16, 18; 54:14:2.12)
93 खंडा (= घरेलू तथा खेती-किसानी के औजार; घर-गृहस्थी में काम आने वाले साधन) (हम ही गरीब दोकनदारी भी हे मन्दा, घरवा चलावे ला जुटाऊँ केतना खंडा ।; ननद लोग दुलहिन के एक झलक देखे ला बेताब हल । दूसर दिन मुँह देखउनी के कार्यक्रम हल । एकावन खंडा जेवर चढ़ल हल ।) (अमा॰46:15:1.26; 54:16:1.20)
94 खखायल (चढ़ते अषाढ़ बरसात के पहिला पानी पड़ गेल । बरखा जे शुरू भेल त रात भर बरसल । पानी ला खखायल खेत के तरास मेटल आउ फटल दरारो मेट गेल ।) (अमा॰49:13:1.3)
95 खगड़ा (= ताड़ का डंठल सहित पत्ता) (दुल्हा के मउरी अटकल खगड़ा के पात में ।) (अमा॰45:17:1.18)
96 खचकल (जउन गाड़ी देखुँ ऊ अदमी से खचकल रहे । लदनी नियर अदमी लटकल । बालकोनियो में तिल धरे के जगह नञ् । बोरा नियर एक के ऊपर दूसर अदमी कोंचिआल । बस कनहुँ न दिखाई पड़ल । बस के असरा बेकार हल ।; सउँसे शहर अदमी से खचकल हल ।) (अमा॰47:7:1.12, 17)
97 खल्ली-चुन्नी (प्रोफेसर साहेब गहन चिंतन में चल जा हथ - लगहर में खल्ली-चुन्नी, बिसुखला में सुक्खल नेवारी । नस-नस दुहा जा हथ । बियाये के महीने भर पहिले छुटकारा मिलऽ हे दुहाये से । बियाल त हरदी गुड़ आउ बँझायल त कसाई घर ।) (अमा॰43:13:2.13)
98 खातिर-वातिर ('पानी लावऽ, खड़ाऊँ लावऽ, बिछावन लावऽ' के अवाज सुनके बाढ़ो सिंह मने-मन हुलसे लगलन आउ खुशी के मारे उनकर रग-रग में गरमी आ गेल । उचित तरीका से खातिर-वातिर भेल ।) (अमा॰52:11:2.7)
99 खुंडी-खुंडी (= खंड-खंड) (आजाद होलै भारत जब से, हो गेलो बेगाना आपस में । सब टूट गेला खुंडी-खुंडी गिर गेला नजर से आपस में ।) (अमा॰53:19:2.7)
100 खुट्टा (एक दिन ओकर बैल खुट्टा तोड़ के घर से भाग गेल । बाबू जी रमण से कहलथिन कि बैल लाके खुट्टा में बाँध द ।) (अमा॰53:11:2.15, 16)
101 खेत-बधारी (सिंचित कइलऽ खेत-बधारी, जुग-जुग जीयऽ हम्मर कुदारी ।) (अमा॰53:16:2.1)
102 खेल-उल (जमूरा: अरे कुछ खेल-उल देखयबऽ कि अइसहीं रमायन-पाठ करते जयबऽ ?) (अमा॰45:11:1.8)
103 खोनसना (पत्नी छनमन-छनमन करके आँखे गुरेरऽ हथ । जवान बेटा बतकुच्चन करके पपड़िआयल घाव खोनसइते रहऽ हे । त का करवऽ नरेस ? जिनगी में जे लिखल हवऽ से भोगऽ !) (अमा॰43:13:1.14)
104 खोवारी (लड़िकन सब निड्डर हे, बोले हे डटके, हमरा से बात करऽ चार डेग हटके, एक थाप मारबऽ त होतो खोवारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.20)
105 गँहकी (= ग्राहक) (आँख मटका-मटका के थियेटर के छउँड़ी गँहकी के ललचयले हल । परदा पर फोटू देख के नौटंकी देखे ला मन लुसफुसिआए लगल, बाकि टिकट के दाम पैंतालिस रुपइया सुन के हरिआयल पौधा मुरझा गेल ।) (अमा॰47:7:2.7)
106 गंजेड़ी-भंगेड़ी (सबसे जादे बदनाम गंजेड़ी-भंगेड़ी, डकइत-लुटेरा, भ्रष्टाचारी आ बलातकारी-बेभिचारी हम्मर पुजारी बन गेलन ।) (अमा॰46:10:2.14)
107 गउना (= गौना; रोसकद्दी) (बरिस बीतते कउन देरी लगऽ हे । गउना के दिन तय करे ला हजाम भेजल गेल लेकिन ओकरा टका सा जवाब मिलल ।) (अमा॰54:17:1.29)
108 गट्टा (= कलाई) (भीड़ में टिकस कउन कटावऽ हे ? पटना टीसन पर टिटिआई देख के लोग तेजी से खँसके लगलन, बाकि कुछ के गट्टा थम्हाहीं गेल । मेला घूमला पर भी जिनकर झोली में कुछ रकम बचल हल सेहु झड़ा गेल ।) (अमा॰47:8:2.11)
109 गठरी (गुरुजी के लोटा चोरावऽ हथ चेला, चेला के गठरी गुर घर गेल ।) (अमा॰47:5:2.23)
110 गत (= गति, हाल, स्थिति, दशा) (कफन-काठी के बाद लहास उठावे के पहिले दू-चार बूढ़ी मिल के मरल चाची के आँख, कान, चेहरा, तरहत्थी, तरुआ में सैंकड़न सुई भोंक रहलन हल । मरलो पर ई गत । ई क्रूर परथा काहे हल से इनका आज तक समझ में न आयल ।) (अमा॰43:15:1.7)
111 गतिआना (साँस रोक के जल्दी-जल्दी पैडिल मारे लगलन । दुर्गंध के रेंज से बाहर निकल के पाँव के गति कम कयलन, लेकिन इनकर दिमाग गतिआ गेल - एकरा मरिस्तान काहे कहऽ हथ लोग ? हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान ... । हिन्दु+स्थान = हिन्दुस्तान, मरी + स्थान = मरिस्तान । ओऽऽ त ई बात हे ? जहाँ मरल जानवर के खाल छीलल जाहे ऊ मरिस्तान ।) (अमा॰43:14:2.1)
112 गदहरेंग (घमंडी राम के सउँसे घमंड छू-मन्तर भे गेल हे 'सरहद पार' के उमड़इत-घुमड़इत गदहरेंग आउ कुकुरभूँक संगीत के अठवाँ-नवमा सुर के तान से ।) (अमा॰48:9:2.6)
113 गमकल (एतना कहना हल कि दरोगा जी के गोस्सा सतमा आसमान पर चढ़ गेल, 'तेरी माई के ...' एगो गमकल गारी दे के ओकर पीठ पर आउ कस के एक बेंत जमा देलन ।) (अमा॰44:6:1.12)
114 गमागम (सच्चा गुरु के संग से एक बच्चा फूल बनके दुनिया के बाग के अप्पन सौरभ से गमागम कर सके हे आउ सूरज बनके दुनिया के रोशनी दे सके हे ।) (अमा॰51:12:2.9)
115 गरमा (~ धान) (गरमा धान तनी पियरायल, पक्के लगलइ बाल, साँझ परे अरियन के बिल से झिंगुर देवे ताल ।) (अमा॰52:16:2.15)
116 गरीबहा (धन-दौलत के सजे सवारी, गरीबहा के बेटी कुँआरी ।) (अमा॰45:12:1.6)
117 गलसेंकी (डगरे में लइकन कनिआय देखे ले उताहुल हे बाकि चानो बाबू के भय से लाल ओहार उघारे के केकरो साहस नञ जुमइत हल । गीत नधा गेल, गलसेंकी भेल, वर-कनिया के दुअर छेंकाय भेल, गेठ जोड़ के कोहबर लिखायल आउ कौड़ी खेलावल गेल ।) (अमा॰52:12:1.1)
118 गल्ली-कुच्ची (एही चलते सनिचरी हमेसा मुख्य सड़क के अगल-बगल में ही कागज बीनऽ हल, गल्ली-कुच्ची में नऽ । कचरा मिले अथवा न मिले, ऊ सुनसान जगह पर जायल न चाहऽ हल ।) (अमा॰53:7:1.16)
119 गाँता (कोई के छप्पर या बड़ेरी चढ़ावे ला होय या बाँस बल्ली लावे ला होय तो गाँता में एक तरफ अकेले सनिचरा रहऽ हल, दूसर तरफ बाकी कई लोग ।) (अमा॰49:12:1.12)
120 गाढ़-गरुआ (लूरगर जि कहलन - 'हम रोवऽ ही ई ला कि हम आझ हली तब न अइसन गाढ़-गरुआ पड़ला पर तोहनी हमरा भूसा में से खोज के ले लैलऽ । सुतल हली से सुते भी न देलऽ । हम अगर मर जायम त हम्मर गाँव तो बिना लूर के हो जायत ।') (अमा॰46:13:1.29)
121 गान्ही (= गाँधी) (~ चौक) (केसवर पुजारी बजरंग बली के मन्दिल बनवा रहल हथ - ठीक गान्ही चौक के सामने ।) (अमा॰46:7:1.2)
122 गाय-गोरू (पहिले से जे कमिया हलई से काम छोड़ देलकई हे । उनकर गाय-गोरू करे ओला भी कोई न हई ।) (अमा॰43:11:1.3)
123 गारगी (= गार्गी) (पुराना जमाना में लड़का-लड़की में कोइयो भेद नञ करल जा हल । एही गुने गारगी, अदिति, शची, घोसा, अपाला, बिसवारा, सूरया, रोमशा नियन केत्ते पढ़ल-गुनल होसियार मेहरारू के नाँव हमन्हीं के पढ़े-सुने के मिलऽ हे ।) (अमा॰45:7:2.17)
124 गिराँव (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !! ... सरधा आउ सबूरी में, मुसका हल सकल गिराँव !!) (अमा॰48:1:1.12)
125 गिरो (= गिरवी) (तू खेत बेचे ला तइयार न हे तब दुलरिया के गिरो रख दे ।; दुलरिया कहऽ हे - 'तू हमरा गिरो रखे ला तइयार हें तब हमहुँ तोहर लउँड़ी बने ला तइयार ही । सरत ई हे कि जउन दिन तू हम्मर देह छू लेबऽ, हम तोहर मुड़ी छोप लेवो ।') (अमा॰44:13:1.15, 16)
126 गुड़ारना (आँख ~) (घर के सब लइकन बुतरू कलवा के घेरले रहऽ हल, कारन ऊ सबके दुलारऽ हल । आझ तलक केकरो पर आँख नञ गुड़ारलक हल ।) (अमा॰52:13:2.17)
127 गुथरल (सितिया के बून्द घास पर बिखरल हो देख लऽ । मोती नियन ई धान पर गुथरल हो देख लऽ ।) (अमा॰53:2:1.2)
128 गुमसना (= भींगे अन्न का धूप और हवा नहीं मिलने पर सड़ने सा हो जाना) (पइसलइ शरीरवा हिंसा के कैंसर, पोरे-पोर फूटलइ बनास । खूनवा छींटवा से भींगलइ अँचरवा पुनपुन आउ दरधा उदास । बारूद के गंधवा से गुमसल बधरवा, दिनवा में घूमई कटास । गँउआ-टोलवा में नफरत के खेतिया, गेंहुआ गोहमन निवास ।) (अमा॰49:2:1.9)
129 गुल्ली-डंटा (पढ़ाई से जादे समय गुल्ली डंटा आउ कबड्डी खेले में बीतऽ हल ।) (अमा॰50:7:1.9)
130 गेयान (= ज्ञान) (अमा॰50:8:2.2)
131 गैरमजरुआ (= गरमजरुआ) (गैरमजरुआ जमीन पर बुनल गोहूँ तोहनी सब काटे ला तइआर रहऽ ।) (अमा॰44:13:2.18)
132 गैलन (जब गाड़ी नदवाँ पहुँचल तब ताड़ी के गैलन खिड़की के छड़ में टंगाये लगल । दुधिवन के दूध भरल कंटर, भूसा-कुट्टी के बोरा आउ सब्जी के खँचिया से डिब्बा के दरवाजा जाम हो गेल ।) (अमा॰54:9:1.6)
133 गोड़धरिया (मनमाफिक दहेज मिले पर भी लड़का के बाप के केत्ते बार गोड़धरिया आउ हथजोड़ी करे पड़ऽ हे ।) (अमा॰50:9:2.16)
134 गोड़पोछना (लोग ताबड़-तोड़ डिब्बा में घुसे लगलन । चिचिआइत पसिन्जर बड़ी मुश्किल से उतरलन । डिब्बा के भीतर अदमी पर अदमी चढ़ल हल । कोई ओन्ने केहुनाठे तो कोई एन्ने धकिआवे । कपड़ा के दुरदशा देखे लाइक हल । कुरता मइसा के गोड़पोछना बन गेल हल ।) (अमा॰47:8:2.8)
135 गोड़-हाथ (~ परना) (सगरो से थक-हार के तऽ अन्तिम में मुखिया जी हीं भी गेली । ऊ पहिले तो खूब ऐतरा-पैतरा बाँधलन, फिन हमरा गोड़-हाथ परला पर ऊ पाँच सौ रुपइया तो गछलन हे, बाकि उनखर एगो शर्त हे ।) (अमा॰43:10:2.24)
136 गोतनी-नैनी (मगही के एगो गीत में लइका जलम के अवसर पर सास रुपइया लुटा रहलन हे, ननद पंडित जी के मोहर दान में दे रहलन हे आउ गोतनी-नैनी सब कुछ न कुछ बाँट रहलन हे ।) (अमा॰43:7:2.8)
137 गोतिनी (= गोतनी) (सास जे आवथिन गावइत, ननद बजावइत हे । ए ललना आवऽ हथिन विसमातल गोतिनिया, नोतिनी घर में सोहर हे ।) (अमा॰43:7:2.12)
138 गोरई (लड़की के गोरई लेके अदमी चाटत ? बरऽ हवऽ त अप्पन घरे में इंजोरा करऽ ! हियाँ तो गाँठ खोलऽ त बात करऽ, न तो रस्ता नापऽ !) (अमा॰54:15:2.28)
139 गोर-नार (= गोर-गार) (कुरता-धोती, कन्धा पर कीमती शाल, गोर-नार मोहक चेहरा देख के कउनो ई नऽ कह सकऽ हल कि झा जी के उमर पचास साल से जादे हे ।) (अमा॰44:8:1.17)
140 गोरमिन्ट (= government) (गोरमिन्ट दहेज रोके ओला कानून बनैलक हे । दहेज लेना आउ देना दुन्नो अपराध हे ।) (अमा॰45:13:1.23)
141 गोहाल (पहुँचते ही हमनी के सेवा-सत्कार होल, समुआना में नस्ता आउ शरबत के गोहाल होल ।) (अमा॰45:17:1.22)
142 गोहूँ (= गोहूम, गोधूम, गेहूँ) (गैरमजरुआ जमीन पर बुनल गोहूँ तोहनी सब काटे ला तइआर रहऽ ।; ऊ सुधाकर सिंह के हत्या के बदला किसुन राम के मड़ई आउ ओकर अगाड़ी में रखल गोहूँ के बोझा में आग लगा के लेहे ।) (अमा॰44:13:2.18, 29)
143 गौढ़ा (= गौंढ़ा; गाँव के नजदीक की उपजाऊ जमीन) (गउआँ के गौढ़ा में पकल सीता धान, भइया किसनवा हो काटे चलऽ धान ।) (अमा॰54:6:2.6)
144 घट्ठा (मकई के ~) (अमा॰47:9:1.7)
145 घरेओली (= घरवाली) ('का शर्त लगैलन हे मुखिया जी ?' - नरेश के घरेओली एकदमे भीरी में आके पूछलक ।) (अमा॰43:10:2.27)
146 घरे-घर (आज अइसन समय आ गेल हे जब डेगे-डेग शिक्षण-संस्थान खुलल हे, इहाँ तक कि माहटर लोग घरे-घर जाके भी लइकन के पढ़ावित हथ ।) (अमा॰51:4:1.15)
147 घसकट्टा ('बदलाव' {रजकण} में एगो चरकट्टा के घसकट्टा बनल मानसिकता के बदलाव के सुन्दर चित्र हे तो 'फर्ज' {हरीन्द्र विद्यार्थी} में आझ के फर्जी इन्सानियत के चोंगा में छिपल बलात्कारी हैवानियत के ।) (अमा॰48:8:2.24)
148 घाघ (~ अदमी) (मुखिया जी बड़ी घाघ अदमी हथ । उनखर जाल बड़ी लम्बा-चौड़ा होवऽ हइन । उनखर ई शर्त हमरा काट के खा जतउ आउ तोहनी के तबाह कर देतउ ।) (अमा॰43:11:1.10)
149 घिनायल (~ गारी) (भोरहीं डुगडुग्गी पिटा गेल कि आज जमीन्दार के खेत में 'हराई' जोताएत । महतो के मन चिड़चिड़ा गेल । मने-मन चार गो घिनायल गारी देलन । ई कहाँ के नेयाव हे कि पहिला पानी पड़ला पर जमीन्दार के खेत में एक दिन बिना मजदूरी के हर जोते पड़त ।) (अमा॰49:13:1.9)
150 घिरसिर (एक दिन घर में सनिचरा के माय पीढ़ा पर बइठ के खाइत हल, त घिरसिर पर के गगरी में से ढार के पीए ला पानी सनिचरा से माँगलक । पानी ढारे में घिरसिर पर से गगरी सनिचरा के हाथ से छूट गेल, आ टूट-फूट के छितरा गेल !) (अमा॰49:11:2.5,6)
151 घुघा (एतने में घुघा तानले एगो जवान लड़की ओही टमटमा पर आके बइठल ।) (अमा॰47:17:1.4)
152 घुचुर-मुचुर (बड़ घिघिऐला पर बड़की भौजाय ओकर बिछौना साफ कर देहे, कमरा धो-पोंछ देहे आउ खाय ले घुचुर-मुचुर आगू में परोस देहे ।) (अमा॰52:14:1.28)
153 घुज्ज (~ अन्हरिया) (मुरति अनावरन के दिन सुधाकर सिंह के गुनगान भोला के अच्छा न लगऽ हे । मौका पाके ऊ घुज्ज अन्हरिया रात में मुरति के तोड़ देहे ।) (अमा॰44:14:1.27)
154 घूमल-फिरल (~ चलना) (हर हमेसे अनैतिकता के ही अप्पन नरेटी में जयमाला अइसन लटका के घूमल-फिरल चलऽ ह आउ अप्पन नरेटी में अनैतिकता जइसन फाँसी के फंदा बना के ढोल पीटइत चलऽ ह कि हम स्वाधीन ही ।) (अमा॰54:12:2.22)
155 घोड़इयाँ (थाप के साथ डाँट भी पड़े कि सनिचरा के साथ खेल में तू एतना धूर-बालू भर लेलें ? हम साफ इनकार कर दे हली कि ओकरा साथ हम न खेलली हे, ऊ तो खाली हमरा घोड़इयाँ चढ़यले हल ।; ओकर पीठ पर घोड़इयाँ चढ़इत-चढ़इत हम ओकरा एतना बरियार बना देली हल, जेहि से पीढ़ा एगो से दूगो हे गेल हल ।) (अमा॰49:11:1.25, 2.11)
156 चकड़बम ('हाली दतौन लावऽ आउ चटपट दू गो फुलकी सेंकऽ । हम हाथ-मुँह साफ करके आउ नेहा के आवऽ ही' - बाढ़ो सिंह के ई अवाज सुन के ओकर मेहरारू मैनी चकड़बम हो गेल । ओकर माथा ठनके लगल - 'आज का बात हे जे अन्हारे-पन्हारे तइयारी होइत हे ?') (अमा॰52:11:1.6)
157 चकरी (बेरोजगारी अशिक्षा के जड़ से मेटावे ला, घर-घर में चरखा के चकरी चलावे ला । उनकर हल सपना जे आजो हे बाकी, पूरा न हो सकल सुन्दर ऊ झाँकी ।) (अमा॰52:7:1.22)
158 चटगर (पियाजे सब सब्जी के चटगर बनावऽ हई, पियाजे के धमक सबके मुँह में पानी लावऽ हई, जमाखोर भाव बढ़ा के लूटलक समाज के । घर में न नजर पड़य छिलको पियाज के ॥) (अमा॰44:15:1.26)
159 चनकना ('मुँहझौसा के कुछ रोजिए नञ हल त ऊ हमरा घर बिआह काहे ला कैलक हल ।' कहइत सास भी भनके लगल । 'अबकी आवे बुढ़वा त ओकरा हम बढ़िया से बतावऽ ही' - कहके ननद भी चनके लगल ।) (अमा॰52:12:1.29)
160 चनरहरा (= चनरहार; चन्द्रहार) (हवा अँचरा से करे चुहलबाजी अगर, कुच सिखर पर चनरहरा चमके मगर, कोई समझ ले महादे तो का कसूर हे ? भारी कसूर हे । अगर अइसन समझदारी आ जायत तो पत्थर के महादे झखते रह जइतन ।) (अमा॰50:18:1.5)
161 चन्नन (= चन्दन) (हम उनका खूब पहचानऽ ही जे भेष बना के घूमऽ हथ । टीका चन्नन खूब करऽ हथ, लील्हुआ पाप में वचोरऽ हथ ।) (अमा॰48:15:2.10)
162 चबेनी (पहिले तो हम ओकरा चबेनी में से आधा दे दे हली, जेकर एवज में ऊ अपन बरियार पीठ पर हमरा चढ़ा के घोड़ा नीयर कूदे-फाँदे लगऽ हल । ई तरह से हम ओकर पीठ पर घुड़सवारी करइत रहऽ हली, आ ओकरा अपन आधा से जादे चबेनी खिला दे हली । चबेनी कम देला पर दू एक बार ऊ पटकियो दे हल ।; हम तड़प के रह गेली, लड़िकाई में अप्पन चबेनी में ओकरा हम साथ रखऽ हली, आज ई ठंढई में ऊ हमरा बिलगा देलक ।) (अमा॰49:11:1.14, 18, 12;1.7)
163 चमर-असनी (रोजे एगो-दुगो कुत्ता मरल मिलऽ हे रस्ता में । ... बीच सड़क पर मरलन त चक्का चढ़ते-चढ़ते, माँस हड्डी बुकनी होके छिटक गेलन आउ घामा में सूख के रिसी मुनि के चमर-असनी बन गेलन ।) (अमा॰43:14:1.14)
164 चमरी (= चमड़ी) (का जिनगी हे ई गाय भँइस के ? जब तक जीलन दूध, बाछा-बाछी गोबर देते रहलन । मरलो पर न छोड़लन लोग । चमरी छिला गेल, माँस गीध-कुत्ता खा गेल आउ ठठरियो बिका गेल ।) (अमा॰43:13:2.6)
165 चम्बुक-चौबाती (हँसी आउ रुलाई के मेल हे ई जिनगी, साँप आउ सीढ़ी के खेल हे ई जिनगी । लहकऽ बन जेठ भलुक सावन बन बहकऽ, चम्बुक-चौबाती के तेल हे ई जिनगी ।) (अमा॰47:1:1.4)
166 चरकट्टा (= मवेशियों के लिए चारा काटकर लानेवाला) ('बदलाव' {रजकण} में एगो चरकट्टा के घसकट्टा बनल मानसिकता के बदलाव के सुन्दर चित्र हे तो 'फर्ज' {हरीन्द्र विद्यार्थी} में आझ के फर्जी इन्सानियत के चोंगा में छिपल बलात्कारी हैवानियत के ।) (अमा॰48:8:2.24)
167 चाउर-चूड़ा (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !! ... बर-बधार से खरिहानी तक मेहनत सुख उपजावऽ हल । बसमतिया के चाउर-चूड़ा, मड़ई तक महकावऽ हल ।) (अमा॰48:1:1.9)
168 चान-सुरुज (नगर-डगर सगर उझंक लगऽ हइ । न जानि काहे सब बदरंग लगऽ हई । चान-सुरुज तारा भी ओही, नदी-नाला खेत-पथार ओही, फिन भी मानुख-मानुख में काहे न अन्तरंग लगऽ हइ ?) (अमा॰43:1:1.3)
169 चिकरना-मोकरना (अखबारवाला, दूधवाला, मकान मालिक - सब घठा गेलन हे, चिकर-मोकर के, मान-अपमान करके सब थक गेलन - चलऽ ई समाज में प्रोफेसरो जइसन अपवादी जीव जीअइत हे । दोसर बात कि देर-सबेर सबके पाई-पाई मिल जाहे, एहि से जानो बचइत हे ।) (अमा॰43:13:1.3)
170 चिकोरी (~ काटन) (का जानि ऊ का सोचइत हलन कि जब उनकर नाम पुकारल गेल कृपाल बाबू के बारे में कुछ कहे ला त ऊ न सुनलन । बसावन बाबू चिकोरी काटलन आउ बतैलन तब उनकर धेयान टूटल ।) (अमा॰43:15:1.21)
171 चिजोर (सत-सिव-सुन्नर लेले अलग तोर दुनिया हे, जे में तीस दिन के रात में झकझक पुनियाँ हे ॥ पनिया से पन-पन तन के पोरे-पोर । खूबसूरती गजब हे चिजोर ॥ तोहर रूप के धूप बड़ी गोर ॥) (अमा॰53:1:1.11)
172 चींथल-चिरायल (चींथल-चिरायल दरकल दिल सबके जानल तू हाल, उघरल सीयल गुदरी दशईं दिल प्रेमी बन पेवन लगा दे ।) (अमा॰49:7:2.13)
173 चीना (हमरा हीं तो फिन आज मकई मड़ुआ जौ चीना के मिलावन के रोटी बन रहलो हे, निछक्का करुआ तेल में खेसाड़ी के साग बनल रखल हो, ओही तोरा खाय पड़तो ।) (अमा॰47:9:1.22)
174 चुनियाना (राजनीति के छोड़ऽ चक्कर, घर बैठल खैनी चुनियावऽ ।इधर-उधर शिकवा-शिकायत में सबके घर में आग लगावऽ ॥) (अमा॰46:16:2.2)
175 चूरा (= चूड़ा) (नया-नया धनवाँ के चूरा कुटाएम, गुड़ चूरा हमनिन सब मिल जुल खाएम ।) (अमा॰54:6:2.21, 22)
176 चोपी (आयी हे हम्मर परान के फोंफी, सट गेलऽ जइसे ह आम के चोपी ।) (अमा॰46:5:1.2)
177 छउँड़ी (आँख मटका-मटका के थियेटर के छउँड़ी गँहकी के ललचयले हल । परदा पर फोटू देख के नौटंकी देखे ला मन लुसफुसिआए लगल, बाकि टिकट के दाम पैंतालिस रुपइया सुन के हरिआयल पौधा मुरझा गेल ।) (अमा॰47:7:2.7)
178 छछनल (हम्मर माटी में गुन हे गोड़ में केकर नयँ लटक जाय । कहे दू-चार दिन रह जा अहो रह जा हम्मर भाय ॥ अभी नयँ देखलूँ जी भर के प्यासल छछनल हम ही ॥) (अमा॰43:18:2.5)
179 छनमन (पत्नी छनमन-छनमन करके आँखे गुरेरऽ हथ । जवान बेटा बतकुच्चन करके पपड़िआयल घाव खोनसइते रहऽ हे । त का करवऽ नरेस ? जिनगी में जे लिखल हवऽ से भोगऽ !) (अमा॰43:13:1.12-13)
180 छन-मन्तर (= क्षण-मात्र) (सब छन-मन्तर में उहाँ दउड़-दउड़ के जमा हो गेलन । ऊ भीड़ देख के अड़ोस-पड़ोस के गाँव के भी दस-बीस अदमी जमा हो गेलन ।) (अमा॰46:12:1.20)
181 छपित (= लुप्त, गायब) (एतने में ऊ जीव अप्पन अन्तिम झलक देखा के उछलइत-कूदइत आगे बढ़ल आउ बाग के तालाब में ढबाक से कूद पड़ल आउ छन भर में छपित हो गेल ।; लोग के आउ विश्वास हो गेल कि ई कोई न कोई देवते हलन जे परघट होलन अदर निछत्तर में आउ हमनी के खेती के कारज सुफल होवे के वरदान देके जहाँ से अयलन हल फिन छपित हो गेलन ।) (अमा॰46:13:2.17, 21)
182 छवारिक (सोन पार वाली दुलहिन के सुन्दरता के बखान एक टोला से दूसर टोला फुदक-फुदक के करइत हल । जेतना मुँह ओतने बात, बाकि जादेतर अउरत डागडरनी के भाग से इरसा कर रहलन हल । चान कहूँ उगे, ओकर इंजोरिया चारो दन्ने फैलहीं जाहे । गाँव के छवारिक लोग, दुलहिन के एक नजारा लेवे खातिर कोई न कोई बहाना बना के रंजन के अँगना में आ धमकथ ।) (अमा॰54:16:2.4)
183 छहुरा (= छाया) (ठीके-ठीक दुपहरिया हो गेल हे । कहार पसखाना के सामने एगो पेड़ के छहुरा में डोली रख देहे । पसखाना में नाक में बुलाकी पेन्हले एगो पासिन बइठल हे । कहार बोलऽ हे - तड़िया में पनिया मिलइहें न बुलकनी, तड़िया हो जइतई पनसोर ।) (अमा॰50:21:2.18)
184 छाँटी (~ दाल) (धन्ना सेठ महाजन बैठल, खूब जमैले आसन बैठल, रखले छाँटी दाल, बधाई भेज रहलियो हे !) (अमा॰43:6:1.7)
185 छिंटाना (त ऊ कोई संतरी-मंतरी, अफसर बेपारी हथ ? अरे तूँ ह गाय - दुहयलऽ, छिलयलऽ, पिसयलऽ आउ खाद बन के खेत में छिंटयलऽ !) (अमा॰43:13:2.22)
186 छिछोहर (छिछोहर नियन माँगला-चाँगला से हम सेठ नञ हो जैवै भइया ! हम तो तिलको नञ लेवे के कहऽ हली, बाकि हमर बस के बाते नञ हल ।) (अमा॰52:12:1.11)
187 छिप्पी (= छीपा का ऊनार्थक) ('कलेउआ बनलो कि नञ ?' छिप्पी में चार गो फुलकी आउ करमी के साग परोसल गेल ।) (अमा॰52:11:1.10)
188 छुतिहर ('भारद्वाज जी के भारद्वाजी मन 'अछूत' के छुतिहर अचार से घबरा गेल हे तो मानती जी 'दबंग' के लफंगई से आउ आरती जी के दिल 'प्रकृति के मार' से आर्त्तपुकार करे लगल हे ।) (अमा॰48:9:1.28)
189 छेत्तर (= क्षेत्र) (ऊ समय अउरत सब्भे छेत्तर में अप्पन नाँव कइले हल ।; मरद जब तक अउरत के दबयले रखलन, तब तक दबयले रखलन । अब ओखन्हि दबे ओली नञ हे । अब ऊ जिन्दगी के सब्भे छेत्तर में काम करे ला तइयार हे ।) (अमा॰45:7:2.20, 9:1.7)
190 छोपना (= पेड़, फसल, घास आदि के ऊपरी भाग को काटना) (दुलरिया कहऽ हे - 'तू हमरा गिरो रखे ला तइयार हें तब हमहुँ तोहर लउँड़ी बने ला तइयार ही । सरत ई हे कि जउन दिन तू हम्मर देह छू लेबऽ, हम तोहर मुड़ी छोप लेवो ।') (अमा॰44:13:1.19)
191 जखनी ... तखनीये (कइसे तू मारित-मारित फाड़ दे ह कुरता, लाते-मुक्के मार के बना दे ह भुरता । जखनी तू कहऽ ह, तखनीये हम सुतऽ ही, सुनके तोर बोली अधरतिये उठऽ ही ।) (अमा॰46:5:1.9)
192 जग-हँसाई (बात गाँव में तेजी से फइल गेल कि नइकी दुलहिन ससुरार से नाता तोड़ देलकई । सउँसे गाँव में डागडर साहेब के जग-हँसाई हो रहल हल ।) (अमा॰54:17:1.34)
193 जगीर (= जागीर) (पीपल के पेड़ बोलल - 'एकरा से का ? हम कोई के हक तो नञ मारलूँ हल - कोई के जगीर में न ही । ईश्वर के मर्जी के स्वीकार करऽ ही, बस !') (अमा॰49:14:2.4)
194 जट्टा (= जटा) (कहाउत हे कि जट्टा बिना जोगी का आउ पोथी बिना पंडित का ?) (अमा॰46:8:1.1)
195 जनतंतर (= जनतंत्र) (वेद-पुरान-कुरान-गीता आउ रमाइन, सन्त-फकीर-ओझा-डइया-डाइन, सब बसिआएल सब के अरथ-अनरथ जइसे कुरसी पर बैठल जनतंतर उटंग लगऽ हइ ।) (अमा॰43:1:1.12)
196 जमूरा (= करतब दिखाने वाले मदारी का सहायक) (मदारी: देख जमूरा, बिल्कुल्ले नया खेल देखावऽ ही ।) (अमा॰45:12:2.28)
197 जवनकी (निमोछिया छौंड़ा ओकर अइसे असरा खोजइत हल जइसे भूखल-पियासल अदमी खाना पानी खोजऽ हे । ऊ जवनकी रोज जंकशन के बाहर खड़ा रहऽ हे आउ कोई आड़ी-गाड़ी आवे के पहिले टीसन के पलेटफारम से बाहर निकलइत पसिन्जर में से गाँहक खोजऽ हे ।) (अमा॰44:6:2.3)
198 जाट-जटिन (लोक साहित्य में लोकनाट्यगीत 'बगुला-बगुली', 'जाट-जटिन' आउ 'सामा-चकेवा' पर थीसिस लिखा सकऽ हे । लोक गाथा में 'रेसमा चुहड़मल' आउ 'आल्हा-गीत' पर काम हो सकऽ हे ।) (अमा॰47:14:2.26)
199 जानवर-धूर (जानवर-धूर भी बहुत सुन्दर-सुन्दर होवऽ हल, काफी सुन्दर, मजबूत आउ दुधारू । इहे कारण हल कि इहाँ चीनी यात्री फाहियान अप्पन यात्रा डायरी में लिखलन कि भारत में दूध के नदी बहऽ हल ।) (अमा॰53:6:1.31)
200 जानिहार (= जानेवाला) (जेतना भीड़ अवनिहार के हल ओतने भीड़ जानिहारो के हल ।) (अमा॰47:7:1.21)
201 जिग्यासा (= जिज्ञासा) (अमा॰50:16:1.4)
202 जिग्यासु (= जिज्ञासु) ('गुरु-मन्त्र' तो जिनका मिल गेल ऊ ज्ञानी हो गेल, चाहे ऊ 'गायत्री मन्त्र' होवे या साँप-बिच्छा के जहर उतारे वला 'मन्तर' । ई ग्रहण करे वला जिग्यासु पर निर्भर हे कि ऊ केतना ग्रहण कैलक ।) (अमा॰50:8:2.2; 51:4:2.22)
203 जोम (~ आउ शान से जीना) (गाँव के सीवान के बर के पेड़ जड़ में दीमक लग गेला से भीतर से खोंखड़ हो गेल हल, बाकि जोम आउ शान से जीयऽ हल ।) (अमा॰49:14:1.2)
204 जोरू-जाँता (एकर कोई न अप्पन हे, न बाप न मइया, न बहिन न भइया, न जोरू न जाँता, न कउनो से नाता, हमनिये ही एकर संघाती ।) (अमा॰52:15:1.19)
205 झड़ाना (भीड़ में टिकस कउन कटावऽ हे ? पटना टीसन पर टिटिआई देख के लोग तेजी से खँसके लगलन, बाकि कुछ के गट्टा थम्हाहीं गेल । मेला घूमला पर भी जिनकर झोली में कुछ रकम बचल हल सेहु झड़ा गेल ।) (अमा॰47:8:2.12)
206 झमकउआ (रात में आकाशवाणी पटना के चौपाल मंडली के कार्यक्रम हल । मुफुत के मनोरंजन भला कउन चूके । एक से एक झमकउआ गीत-नाच हो रहल हल ।) (अमा॰47:7:2.26)
207 झर-झर (~ गिरना) (छप्पर से धन झर-झर गिरतो, रामधुनि गोहार मचावऽ ।) (अमा॰46:16:2.9)
208 झाड़ा (~-झटकी) ('अनगुत्ते आज इटहरी जाय के हे' - सोचइत बाढ़ो सिंह झटपट झाड़ा-झटकी कैलन ।) (अमा॰52:11:1.2)
209 झाड़ा-झटकी ('अनगुत्ते आज इटहरी जाय के हे' - सोचइत बाढ़ो सिंह झटपट झाड़ा-झटकी कैलन ।) (अमा॰52:11:1.2)
210 झिल्ली (लड्डू लड़ा-लड़ाके ऊ तो झिल्ली झाड़े रोजे । राजघाट पर जा जा करके गाँधी जी के खोजे ॥) (अमा॰53:19:1.5)
211 झुनझुन्ना (साली अइसन झुनझुन्ना हे जेकरा बिना ससुरार सूना-सूना हे ।) (अमा॰46:15:2.3)
212 झोंकरना (सावधान ! कोई भी भूखल के दुक्खल-दुरछल बेटी के छेड़े के जतन कबहियों करत तो 'उग्रवाद' {सी॰रा॰ प्रसाद} के प्रचण्ड चंडी के द्वारा दुनिया झोंकरबे-झुलसब करत ।) (अमा॰48:9:2.24)
213 झोप-झोपारी (झोप-झोपारी त फटऽ हे सोपारी, तरे नरियरवा के बारी । कंचन सेज डँसावऽ हथ कउन देई, कोई न आवे न कोई जाए । नीचे रजाई त ऊपरे दोलाई ।) (अमा॰43:7:2.25)
214 झोल-फोल ('बेस' कहइत बाढ़ो सिंह बहरा गेलन । झोल-फोल हो गेल हल । हँकरइत-डकरइत लेरू गाय आउ धुर धौगल-धौगल अप्पन-अप्पन बथान बहोरइत हल, धूरी आउ गरदा से राह आउ असमान एक हो गेल, कहँय टुन-टुन घंटी बजावइत गेल सँझउती बारइत हथ, कहँय लोग आग जोरइत हथ ।) (अमा॰52:11:1.17)
215 टकधीम (ई सब सोचला के बाद उनकर गुस्सा के वोल्टेज वन टेन से जीरो हो जाहे । जीवन के फिलामेंट जलऽ हे । बाकि अंधेरा मिटऽ न हे । हँ, कुछ-कुछ जलइत रहऽ हे खाली । आस पर साँस चलऽ हे । आगे के सफर जारी - टकधीम, टकधीम !!) (अमा॰43:13:1.20)
216 टघार (= पतली धारा) (लोग से सच्चे दूध पियइत हलन ई बात तो हम न कह सकऽ ही बाकि एतना जरूर कह सकऽ ही कि गणेश जी हमरा से तनिको दूध न पीलन । सब के सब उगलइत गेलन । सब टघार लगइत उनकर नरेटी से पेट होवइत नीचे टप-टप गिरे लगल ।) (अमा॰46:11:1.13)
217 टसकना (तीन दफे हिचकी आल आउ कलवा के परान पखेरू उड़ गेल । केकरो आँख से लोर नञ टसकल, सब ओकर बिछौना-तकिया आउ पौती-पेटारी उधन-पधन के सिक्का ढूँढ़े लगलन । दू गो फटल कुरती आउ पेउन्द लगल अस्तर के अलावे कुछ हाथ नञ लगल ।) (अमा॰52:14:2.16)
218 टाटफूस (अमा॰47:1:1.5)
219 टान (= किसी वस्तु की कमी; उपयोग की वस्तुओं का अभाव) (अदमी के बढ़ली से अन्न के होयत जाहो टान । अपने घरवा में देख के काहे न करऽ अनुमान ॥) (अमा॰49:8:1.18)
220 टिउसन (= ट्यूशन; टिसनी) (महाविद्यालय में पढ़ाई जारी रखे ला आउ आरथिक जरूरत पूरा करे ला रजकण जी के टिउसन भी पढ़ावे पड़ऽ हल ।) (अमा॰50:7:2.10)
221 टिकस (= टिकट) (मुदा हम उनकर बीतल जिनगी में खो गेलूँ - बड़ी हाँक-डाँक वला रेलवे टी॰सी॰ गेट पर खड़ा हे । केकर मजाल कि बिना टिकस देखयले गेट से बाहर निकस जात । बिना टिकस जात्री के रुपइया नञ रहला पर घड़ी भी खोलवा ले हलन जोगी बाबू । अनपढ़ गँवार गरीब-गुरवा से टिकस रहते अउरतानी टिकस बता के रुपइया ऐंठ ले हलथिन जोगी बाबू !) (अमा॰43:11:2.19, 20, 22)
222 टिकिया (~ उड़ान) (सुनइते साधु भागला टिकिया उड़ान । शैतान ठठा के हँसल ।) (अमा॰46:14:2.17)
223 टिपिक-टोइयाँ (जादे पढ़ल-लिखल औरत नञ होके भी कलवा टिपिक-टोइयाँ चिट्ठी-चपाती पढ़े में मसगूल रहऽ हल ।) (अमा॰52:13:2.11)
224 टुँगरना (नस्ता-चाय के अउडर दे देलूँ । गरम-गरम जलेबी दू प्लेट आ गेल । टुँगर-टुँगर के जोगी बाबू कौर उठावे लगलन । मुदा बिना जल के घूँट के एक्को कोर जोगी बाबू के गला से नीचे नञ उतरऽ हल ।) (अमा॰43:11:1.28)
225 टुहकना (= टुभकना) (खैनी मलइत सिब्बू बोलल - 'धन्न हे ई गान्ही जी के धरती ! कलजुग के अइसन जोर ?' - 'कइसे हो सिब्बू भाई !' रामू टुहकल ।) (अमा॰52:7:1.3)
226 टूसा (रमजनिया केतना सुन्दर हे, गरीब घर में एगो गुलाब खिलल हे । ओकर पातर गुलाबी ओठ, पतला भौ के नीचे कजरायल खंजन अइसन आँख, नारंगी रंग के गाल, टूसा अइसन नाक ।; लाल टूसा सन रत-रत ठोर । अधरतियो लगे भेल भोर ॥ तोहर रूप के धूप बड़ी गोर ॥) (अमा॰48:11:1.17; 53:1:1.5)
227 टौआना (भारी भुखमरी आउ बेकारी, पढ़ल-गुनल के ई लाचारी, चले रोज टौआल, बधाई भेज रहलियो हे !) (अमा॰43:6:1.13)
228 ठंढई (हम्मर कल के घोड़ा आज हम्मर पालकी में जुतल हल, आ एक से एक बोल निकालइत उड़ल जा रहल हल । दुपहरिया में एक जगह बर के पेड़ के नीचे ऊ घोड़ा ठहर गेल, जेकरा पर से हमहूँ उतर गेली । पासे में पसिखाना हल, ओकरा तरफ देखके सनिचरा हम्मर मुँह तरफ नजर उठयलक - 'मालिक, जरा ठंढई कर लेती हल ।'; हम तड़प के रह गेली, लड़िकाई में अप्पन चबेनी में ओकरा हम साथ रखऽ हली, आज ई ठंढई में ऊ हमरा बिलगा देलक ।; कोई के छप्पर या बड़ेरी चढ़ावे ला होय या बाँस बलली लावे ला होय तो गाँता में एक तरफ अकेले सनिचरा रहऽ हल, दूसर तरफ बाकी कई लोग । हाँ, ई एवज में सनिचरा के थोड़ा ठंढ़ई पिला पिला देवल जा हल या कभी कभी एकाध बोतल देसी ठर्रा, बस ।) (अमा॰49:11:2.26, 12:1.7, 14)
229 ठंढाना (ओकर इशारा समझ के एगो पंचटकिया दे देली, जेकरा लेके ऊ बढ़ गेल, आ उधर से फेन उफनाइत एगो भरल घइला माथ पर लेले आ गेल । एक हाथ में ताड़ के पत्ता के बनल एगो दोना भी हल । देखते-देखते ऊ आधा घइला अकेले गटक गेल, आधा में बाकी तीन जना ठंढायल ।) (अमा॰49:12:1.6)
230 ठठरिआना (जन्ने ताकऽ ओन्ने लाशे-लाश, पागलपन के दौरा, ठठरिआयल काया, भरम में डाल के जेकरा, जिलवइत हे तोहर माया ।) (अमा॰43:5:1.6)
231 ठमा (= ठामा) ('तनि हम एक ठमा जाइत ही । देखऽ कलवा अब जुआन ... ।' बाढ़ो सिंह के भक्का सुनइते मैनी समदे लगल - 'घर-वर बेस रहे के चाही । दू पइसा ऊँचे में सौदा पटे त कोय हरज नञ हे ।') (अमा॰52:11:1.12)
232 ठाँव-छीपा (ठाँव = ठाँओं; लीपने-पोतने की क्रिया; रसोई बनाने का स्थान, चौका) (रमजनिया सुन्दरता के ही एगो नमूना न हे । घर-गृहस्थी में तो ऊ निपुन हे । सुखदेव आउ धनपतिया रमेश बाबू के खेत से कटनी काट के लउटऽ भी न हथन कि पूरा घर के बर्तन बासन, ठाँव-छीपा करके घर आँगन मट्टी से लीप के सुघर बना देहे आउ अप्पन मइया-बाबू के गरम खाना खिला देहे ।) (अमा॰48:11:1.25)
233 ठेठाना (जे पत्नी सुख के साधन हे उनका मार ठेठावऽ ह । कुछ बोलला पर अटपट कह के तीनो कुल डुबावऽ ह ।; मुखिया जी घुस लेलन, पंच खएलन पूआ, फेरा में पड़ गेल मुद्दई रकटूआ । रकटू के जोरू ठेठावऽ हे छाती, पंचन के काहे ईमान बिक गेल ?) (अमा॰43:17:2.14; 47:5:1.28)
234 ठोकना-ठेठाना (कलवा के जिनगी भर दुखे-दुख हे । एते ठोक-ठेठा के कुटुम कैली बाकि परिवार ठीक नञ मिलल ।) (अमा॰52:12:2.32)
235 ठोना (बहुत दान-दहेज देके बिआहो होहे त उनकर बहुत मान न बढ़े हे । लोग बात-बात में उनकर शिक्षा के ठोना देके उनकर करेजा छेद दे हथ ।) (अमा॰45:16:2.11)
236 डइया (वेद-पुरान-कुरान-गीता आउ रमाइन, सन्त-फकीर-ओझा-डइया-डाइन, सब बसिआएल सब के अरथ-अनरथ जइसे कुरसी पर बैठल जनतंतर उटंग लगऽ हइ ।) (अमा॰43:1:1.10)
237 डराइवर (= डलेवर, डलैवर; ड्राइवर) (हम कार लेके डराइवर के भेज देवो । तोहनी सब सहिए साँझ तैयार हो जइहँ ।) (अमा॰44:9:1.24, 2.16)
238 डाक (= नीलामी में बोली गई राशि) (रुपइया तू केतना देबऽ, बोलऽ त पानी लावो ही, हम्मर डाक अढ़ाई लाख हे, ई पपहिले हम कह देही । भले नास्ता-पानी करके कुछ नञ करऽ बोलचाल, बाप रे ! अइसन हो गेल, ई युग में दहेज के हाल ॥) (अमा॰45:18:1.10)
239 डेंगाना (भूख लगे तो पेट डेंगावऽ, नंगे रह के भाग के कोसऽ । एकरे से सब कुछ मिल जैतो, पूर्वज सब के नाम के घोसऽ ॥) (अमा॰46:16:2.5)
240 डेगे-डेग ('मगही लोकगीत में सिंगार भावना' भी रजकण जी के आलोचनात्मक निबन्ध हे जेकरा में डेगे-डेग सरसता आउ भावुकता झरना के पानी अइसन झर-झर के तरासल पढ़ताहर के पियास मेटा देहे ।; आज अइसन समय आ गेल हे जब डेगे-डेग शिक्षण-संस्थान खुलल हे, इहाँ तक कि माहटर लोग घरे-घर जाके भी लइकन के पढ़ावित हथ ।) (अमा॰50:14:2.12; 51:4:1.14)
241 डेरावन (= डेरामन; डरावना) (अइसे डेरावन आउ भय के माहौल में गाँधी के अहिंसा हमनी के भीतर शक्ति के संचार करऽ हे ।) (अमा॰52:5:2.22)
242 ढँकाना (हमनी दुन्नो के पहनावा-ओढ़ावा में भी काफी फरक हल । हम नीमन-नीमन कपड़ा-लत्ता पहिनले रहऽ हली, त ऊ पुरान-धुरान गंजी लंगोटी, जेकर जादेतर देह उघारहीं रहऽ हल । हाँ, हम्मर उतारल कपड़ा से कुछ दिन ला ओकर देह ढँका जा हल ।) (अमा॰49:11:1.10)
243 ढबाक (एतने में ऊ जीव अप्पन अन्तिम झलक देखा के उछलइत-कूदइत आगे बढ़ल आउ बाग के तालाब में ढबाक से कूद पड़ल आउ छन भर में छपित हो गेल ।) (अमा॰46:13:2.16)
244 ढीढा (= ढींढा, पेट) (सबके माय-बाप अप्पन बेटी के बिआह में खरचा करे ला अप्पन शक्ति भर बाज न आवे । तइयो लइका वाला के ढीढा न भरे ।) (अमा॰45:9:1.22)
245 ढुका (= ढुक्का, धुक्का; छिपकर दूसरे की बात सुनने अथवा देखने की क्रिया या भाव) (घर में दू गोतनी आउ हलन । ऊ दुन्नो एही जानऽ हलन कि राजमनी बड़ी अमीर घर के बेटी हे । दुन्नो केवाड़ी के भीतर थोड़ा कान ओड़ के सुने लगल कि बाप बेटी में का बात होवऽ हे । जब रजमनिया चुप होयल तब परछाहीं से समझ गेल कि ओकर बात सुने ला ढुका लगैले हथ सब ।) (अमा॰48:13:1.17)
246 ढुलुवा (मेला में एक से एल ढुलुवा चक्कर मारित हल ।) (अमा॰47:7:1.25)
247 ढोलना (= विवाह के अवसर पर वधू को पहनाने का एक प्रकार का मंगलसूत्र, तांग पाट) (ई तो मुसलमानी राज होल कि लोग अप्पन लड़की आउ मेहरारू के तुरुक के नजर से बचावे ला परदा में रखे लगलन । ओही से ऊ अउरत के आजादी खतम हो गेल आउ ऊ मरदाना के गुलाम हो गेलन । हुनखा चूड़ी, सिंदूर, ढोलना पिन्हा देवल गेल । तभिये तो कहल गेल हे - 'सिंदूर चूड़ी ढोलना नथ आउ गिरवर हार । कल्ह तक बंधन जे बनल आज बनल सिंगार ॥) (अमा॰45:8:1.22, 24)
248 तरबन्ना (ऊ सुधाकर सिंह के देह के भूख तो मेटयबे करऽ हे, सी॰ओ॰ साहेब के काम वासना सान्त करे ला तरबन्ना में जाय ला भी मजबूर हो जाहे ।) (अमा॰44:12:2.30)
249 तरहत्थी (कफन-काठी के बाद लहास उठावे के पहिले दू-चार बूढ़ी मिल के मरल चाची के आँख, कान, चेहरा, तरहत्थी, तरुआ में सैंकड़न सुई भोंक रहलन हल । मरलो पर ई गत । ई क्रूर परथा काहे हल से इनका आज तक समझ में न आयल ।) (अमा॰43:15:1.6)
250 तरुआ (= तलवा) (कफन-काठी के बाद लहास उठावे के पहिले दू-चार बूढ़ी मिल के मरल चाची के आँख, कान, चेहरा, तरहत्थी, तरुआ में सैंकड़न सुई भोंक रहलन हल । मरलो पर ई गत । ई क्रूर परथा काहे हल से इनका आज तक समझ में न आयल ।) (अमा॰43:15:1.6)
251 तसबीह (पूजा-पाठ, नमाज, तसबीहे तक ही हुनखर पढ़ाय के सील कर देवल गेल ।) (अमा॰45:8:1.30)
252 तिकड़मबाजी (जनेसर यादव गाँव के दबंग आदमी हथ । कौमनिस्ट होके भी ऊ सोवारथी आउ नियतखाम हथ । किसुन से करजा वसूल करे में ऊ जउन तिकड़मबाजी आउ बदनियती देखावऽ हथ, सरवथा निन्दनीए हे ।) (अमा॰50:11:2.29)
253 तीरा-घींची (पहिलका जुवक जबरदस्ती पकड़ के रूपा के कार में ले आयल । तीरा-घींची में रूपा कार के चाभी सड़क पर दूर फेंक देलक ।) (अमा॰54:17:2.16)
254 थरभसाना (चार दिन बाद भइंसुर टोकऽ हथ - 'का रे रजुआ ? ससुरा सिकड़ी गछलकौ हल त काहे न देलकौ ?' -'हमरा भागे में नञ बदल हइ भइया ! जे उनखा औकात हल ऊ माफिक देलथिन हे' - थरभसाइत-लड़खड़ाइत धीमे अवाज में रजुआ बोलल ।) (अमा॰52:12:1.7)
255 दतौन (= दतमन) ('हाली दतौन लावऽ आउ चटपट दू गो फुलकी सेंकऽ । हम हाथ-मुँह साफ करके आउ नेहा के आवऽ ही' - बाढ़ो सिंह के ई अवाज सुन के ओकर मेहरारू मैनी चकड़बम हो गेल । ओकर माथा ठनके लगल - 'आज का बात हे जे अन्हारे-पन्हारे तइयारी होइत हे ?') (अमा॰52:11:1.3)
256 दरकल-चुरकल (रजुआ सोचऽ हे ... 'अब अजलत होइत हे । घर में भुंजी भांग नञ आउ डेउढ़ी पर नाच आज हो रहल हे । अगुआनी के लोटा-थारी भी तो दरकल-चुरकल हे ।') (अमा॰52:12:1.23)
257 दियारा (= दीयर) (चार बहिन के बियाह मग्गह आउ मनेर के इलाका में होलइन । चूँकि दू-तीन फसल अराम से हो जा हलइन, से चारो बहिनिन के जिनगी खुसहाल हलइन। लेकिन बड़की के शादी गंगा-पार दियारा के इलाका में होलइन हल । दियारा के फसल गंगा के बाढ़ में डूब जा हलइन, से ले-दे के मुश्किल से मकई के फसल होवऽ हलइन ।) (अमा॰54:15:1.13, 14)
258 दिरिस्टिकोन (= दृष्टिकोण) (धरम के जे व्याख्या आउ विस्लेसन ऊ परस्तुत कैलन हे मानवता दिरिस्टिकोन से बड़ा उचित आउ संगत हे ।) (अमा॰50:11:2.22)
259 दीयर (= दीअर; दिआरा; नदी के धार बदलने या हटने से निकली नदी किनारे की जमीन; नदी का कछार) (~ में धँसाना) (एगो चरवाहा भइँस पर चढ़के अलाप रहल हल - 'सबके बियाहलऽ बाबूजी मगह-मनेरवा, हमरा के दीयर में धँसवलऽ हो बाबूजी !') (अमा॰54:15:1.4)
260 दुअर-छेंकाय (डगरे में लइकन कनिआय देखे ले उताहुल हे बाकि चानो बाबू के भय से लाल ओहार उघारे के केकरो साहस नञ जुमइत हल । गीत नधा गेल, गलसेंकी भेल, वर-कनिया के दुअर छेंकाय भेल, गेठ जोड़ के कोहबर लिखायल आउ कौड़ी खेलावल गेल ।) (अमा॰52:12:1.1)
261 दुक्खल-दुरछल (सावधान ! कोई भी भूखल के दुक्खल-दुरछल बेटी के छेड़े के जतन कबहियों करत तो 'उग्रवाद' {सी॰रा॰ प्रसाद} के प्रचण्ड चंडी के द्वारा दुनिया झोंकरबे-झुलसब करत ।) (अमा॰48:9:2.22)
262 दुखछल (बसन्त के बिदाई अब दर्द दे रहल हे । पलाश के पात सब टप-टप चूअइत हे । दुखछल कोइलिया के राग-तार टूटइत हे । कउआ के तीत बोली न कनवा में रूचइत हे ।) (अमा॰47:8:1.16)
263 दुरजोग (= दुर्योग) (गाँव में ईंट से ईंट बजावे के दुरजोग ऊ ढूँढ़इत रहऽ हथ ।) (अमा॰50:11:2.17)
264 दुरदुराना (परिवार में सब कोई कलवा के दुरदुरावऽ आउ लुलुआवऽ हे, मुदा काल तो बोलावे से नयँ आवऽ हे, बेमारी से भी ओकर सीधा सम्पर्क नञ हे । एतने नञ, लमहर रोगी हाली नञ मरऽ हे ।) (अमा॰52:14:2.1)
265 दुरभाग (= दुर्भाग्य) (हमरा अप्पन दुरभाग पर अपसोस भेल । जादे अपसोस तो ई ला भेल कि मरदाना से जनाना बनली तइयो न दूध पीलन गणेश !) (अमा॰46:11:2.23)
266 दुलरूआ (वाद-विवाद आउ साहित्यिक गोष्ठी में दिलचस्पी रखे के चकते ऊ अनेक प्राध्यापक के दुलरूआ बन गेलन ।) (अमा॰50:7:2.12)
267 दुहाना (= दुहा जाना) (त ऊ कोई संतरी-मंतरी, अफसर बेपारी हथ ? अरे तूँ ह गाय - दुहयलऽ, छिलयलऽ, पिसयलऽ आउ खाद बन के खेत में छिंटयलऽ !) (अमा॰43:13:2.21)
268 देर-सबेर (अखबारवाला, दूधवाला, मकान मालिक - सब घठा गेलन हे, चिकर-मोकर के, मान-अपमान करके सब थक गेलन - चलऽ ई समाज में प्रोफेसरो जइसन अपवादी जीव जीअइत हे । दोसर बात कि देर-सबेर सबके पाई-पाई मिल जाहे, एहि से जानो बचइत हे ।) (अमा॰43:13:1.5-6)
269 देहारी (समय बीतइत गेल आ हमनी दुन्नो लड़कपन से दुआर पार करके जवानी के देहारी पर पाँव रखली । हम इसकूल पार करके कालेज में दाखिल भेली पीठ पर किताबन के बोझा लेके, आ सनिचरा कहारी में उतरल कन्धा पर डोली पालकी के बोझा लेके ।) (अमा॰49:11:2.15)
270 दोआह (= दोवाहा) (ई स्वार्थी संसार में केकर कउन हे ? आउ भाई-भौजाई ? सीधे भँसा देतन । कोई कान-लंगड़ा, बूढ़ा-दोआह से बाँध देतन । ई कंगला पीढ़ी के तो अप्पन पेट पहाड़ हे । ई का करत माय-बहिन ला ? अनुकम्पा पर नौकरी लेवे ला बाप के मार देवल जाहे आजकल ।) (अमा॰43:12:2.11)
271 दोपस्ता (बचपन के ऊ भयानक दृश्य कउँध गेल - उनकर चाची दोपस्ता {प्रसव काल में} मर गेलन हल ।) (अमा॰43:14:2.29)
272 दोलाई (झोप-झोपारी त फटऽ हे सोपारी, तरे नरियरवा के बारी । कंचन सेज डँसावऽ हथ कउन देई, कोई न आवे न कोई जाए । नीचे रजाई त ऊपरे दोलाई ।) (अमा॰43:7:2.29)
273 धत (धत ! का कहऽ ह भाई !) (अमा॰43:13:2.27)
274 धधकाना (बेकती-बेकती बीच आज फएलल काहे घिरना के दाग, के धधकैलक शान्त-पवित्तर पोखर के पानी में आग ?) (अमा॰48:1:1.16)
275 धनवाद (= धन्यवाद) (भाई अभिमन्यु जी के हे बहुत बहुत धनवाद । आज मिलल जुलाई अंक तीन महीना बाद ॥) (अमा॰52:17:2.1)
276 धन्न (= धन्य) (खैनी मलइत सिब्बू बोलल - 'धन्न हे ई गान्ही जी के धरती ! कलजुग के अइसन जोर ?') (अमा॰52:7:1.1)
277 धमक (= महँक) (पियाजे सब सब्जी के चटगर बनावऽ हई, पियाजे के धमक सबके मुँह में पानी लावऽ हई, जमाखोर भाव बढ़ा के लूटलक समाज के । घर में न नजर पड़य छिलको पियाज के ॥) (अमा॰44:15:1.27)
278 धरमशास्तर (= धर्मशास्त्र) (इहाँ के धरमशास्तर में भी अहिंसा पर काफी बल देवल गेल हे ।) (अमा॰52:5:1.3)
279 धाध (= प्रदर रोग) (कलवा अब थक गेल, घर-गृहस्थी के काज में अब ऊ ढेर देरी ठठ नञ पावऽ हे । धाध, परदर, बवासीर आउ फरका आदि रोग से ऊ तंग-तंग हो गेल ।) (अमा॰52:13:2.31)
280 धार-पधार (~ आउ लघार) (बुझावन भाई आउ मधुकर जी जब पंचतंत्र आउ हितोपदेश के महिमा आझो स्वीकारऽ हथ तो लघुकथा के लम्बा धार-पधार आउ लघार के अन्दाजा होय के चाही ।) (अमा॰48:7:1.9)
281 धिकाना (= गरम करना) (ई धरती न फटत नरेस ! तूँ बार-बार फटवऽ, बार-बार सीवऽ, तब जीवऽ । सोचइत-सोचइत तोर दिमाग भुरकुस हो जायत । तोरे जलमावल तोरे कान में लोहा धिका के ठूँसत । बैंक के नौकरी छोड़ के बनलऽ हल प्रोफेसर कि समाज में इज्जत होयत । अब इज्जत लेके चाटऽ । समाज के तो छोड़ऽ, औलादे हथौड़ा मारऽ हवऽ ।) (अमा॰43:12:2.24)
282 धूपा (मालिक ! बात अइसन हे कि ऊँचगर होवे के चलते हम्मर खेत में पानी न टिके । कड़कड़ा के धूपा उगल हे से देखतहीं ही अपने । दिन भर में सूख गेला पर फरहरी न जोतायत । एही से सोचली कि हम अप्पन खेत आज जोत लीं ।) (अमा॰49:13:1.24)
283 धूरतई (धरम के नाम पर ऊ सउँसे गाँव के हिन्दू लोग के अप्पन मुट्ठी में रखे के कोरसिस करऽ हथ । अप्पन धूरतई से महादे जी के चबूतरा गाँव में बनवावे में ऊ सफल हो जा हथ । मुसलमान के विधरमी बताके ऊ हिन्दू के बरगलावऽ भी हथ ।) (अमा॰50:11:1.12)
284 धौगना (= धउगना, दौड़ना) ('बेस' कहइत बाढ़ो सिंह बहरा गेलन । झोल-फोल हो गेल हल । हँकरइत-डकरइत लेरू गाय आउ धुर धौगल-धौगल अप्पन-अप्पन बथान बहोरइत हल, धूरी आउ गरदा से राह आउ असमान एक हो गेल, कहँय टुन-टुन घंटी बजावइत गेल सँझउती बारइत हथ, कहँय लोग आग जोरइत हथ ।) (अमा॰52:11:1.18)
285 नकफाड़ (~ दुर्गंध) (ई नकफाड़ दुर्गंध कहाँ से आयल भाई । एकदम मरिस्तान जइसन ?) (अमा॰43:14:2.12)
286 नद्दी (= नदी) (बरसात में जवान हो जाहे 'पंचाने' तब चरवाहा भी नद्दी पार करे में हिचकिचा हे ।; पुनपुन नद्दी में फल लदल नाव डगमग डोल रहल हे ।) (अमा॰54:15:1.2, 16:1.14)
287 नाँव (= नाम) (ई दुन्हूँ के नाँव पर दिन के नाँव पड़ गेल हे - बिहस्पतिवार आउ शुक्रवार ।) (अमा॰51:5:1.7)
288 निखालिस (= बिना मिलावट का, शुद्ध) (सबसे सिफत के बात तो ई हे कि जे भाव से ई रचना कइलन हे - ऊ भाव पढ़निहार के पास पहुँचे में तनिक्को न दिक्कत करऽ हे । खाँटी मगही शब्दन के बेवहार इनकर कविता के निखालिस रूप देवे के समरथ दरसावे हे ।) (अमा॰52:10:2.22)
289 निठाहे (सरसती मइया सुनऽ हमरो बेयान हे ।... निठाहे हम बुरबक हमरा द गेयान हे ।) (अमा॰43:2:2.13)
290 निठेहरी (बड़ घिघिऐला पर बड़की भौजाय ओकर बिछौना साफ कर देहे, कमरा धो-पोंछ देहे आउ खाय ले घुचुर-मुचुर आगू में परोस देहे । बाकि बड़की भौजाय भी ओलहन देहे - 'मरवो न करै ई निठेहरी, ई राँड़ी सउँसे घर के रूँधले हे, सब एकर नौकर हइ जे लटकल चलतै ।') (अमा॰52:14:1.29)
291 निड्डर (= निडर, निर्भय) (लड़िकन सब निड्डर हे, बोले हे डटके, हमरा से बात करऽ चार डेग हटके, एक थाप मारबऽ त होतो खोवारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.18)
292 निनान (= नाश; नष्ट, समाप्त) (तीन कोस पैदल आउ तीस कोस गाड़ी, तेरहो निनान भेल औखध-गुजारी, मौगत नैं छूटऽ हे, अमदी सरकारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.25)
293 निमोछिया (निमोछिया छौंड़ा ओकर अइसे असरा खोजइत हल जइसे भूखल-पियासल अदमी खाना पानी खोजऽ हे । ऊ जवनकी रोज जंकशन के बाहर खड़ा रहऽ हे आउ कोई आड़ी-गाड़ी आवे के पहिले टीसन के पलेटफारम से बाहर निकलइत पसिन्जर में से गाँहक खोजऽ हे ।) (अमा॰44:6:2.1)
294 नियतखाम (जनेसर यादव गाँव के दबंग आदमी हथ । कौमनिस्ट होके भी ऊ सोवारथी आउ नियतखाम हथ ।) (अमा॰50:11:2.28)
295 निरउठ (= निरइठ; निरैठा; जो जूठा न हो; पवित्र) (पहिले से निरउठ बनल सनिचरी 'गरीब के मसीहा' के दर्शन करके जूठा कूड़ा-कचरा के ढेर में एगो आउ जूठा-कचरा के संख्या बढ़ा देलक ।) (अमा॰53:8:2.7)
296 निहत्था (बरियार के सामने निहत्था अदमी जब अहिंसा के उपदेस दे हे तब लगऽ हे कि ऊ कायरता के कविता बाँच रहल हे ।) (अमा॰50:14:1.5)
297 निहुरना (= झुकना) (निहुरि-निहुरि तू काटिहऽ धनवा, सोझ-सोझ लगइहऽ परुइया । झूम-झूम के अँटिया बाँधत गोरिया ।) (अमा॰54:6:2.8)
298 नीमन-जबुन (इनसानियत के मानऽ ही, ढेला पत्थर के का जानी । पाप-पुन्न हम नऽ जानी, नीमन-जबुन पहचानऽ ही ।) (अमा॰48:15:2.4)
299 नुकचोरिया (= लुका-छिपी) (चंदवा खेले नुकचोरिया बदरिया संग ना ।) (अमा॰50:16:1.10)
300 नून-तेल (घर के सबहे पूँजी प्रेस में लगा देलन हे । ओकरा से नून-तेल के भी खरचा न निकल रहल हे ।) (अमा॰44:8:2.29)
301 नेयाव (भोरहीं डुगडुग्गी पिटा गेल कि आज जमीन्दार के खेत में 'हराई' जोताएत । महतो के मन चिड़चिड़ा गेल । मने-मन चार गो घिनायल गारी देलन । ई कहाँ के नेयाव हे कि पहिला पानी पड़ला पर जमीन्दार के खेत में एक दिन बिना मजदूरी के हर जोते पड़त ।; ईमान-धरम आउ लोकनीति के साथ-साथ ऊ नेयाव के पछधर हथ ।) (अमा॰49:13:1.10; 50:11:1.21)
302 नोन (= नमक) (न हवऽ नोन, न हवऽ लकड़ी, कइसे तइआर करूँ भात रोटी पपड़ी ?; उहाँ ओकर परवरिस के करत ? 'राड़ी-बाँझी' कह के सब ओकर जरल देह पर नोन छिड़कत ।) (अमा॰49:9:1.6; 52:13:1.12)
303 नौकरी-चाकरी (अब तोहरा पढ़ावे के औकात हमरा न हे । तों अब नौकरी-चाकरी देखऽ !) (अमा॰53:11:2.10)
304 पंचटकिया (ओकर इशारा समझ के एगो पंचटकिया दे देली, जेकरा लेके ऊ बढ़ गेल, आ उधर से फेन उफनाइत एगो भरल घइला माथ पर लेले आ गेल ।) (अमा॰49:12:1.1)
305 पंचाने (बरसात में जवान हो जाहे 'पंचाने' तब चरवाहा भी नद्दी पार करे में हिचकिचा हे ।; आज ऊ पंचाने के किनारे टहले निकसलन हल ।; पाँच बहिन हलथिन पंचाने ।) (अमा॰54:15:1.1, 7, 9)
306 पइचा (सास लुटावथिन रुपइया, त ननद मोहरवा हे । ए ललना गोतिनी लुटावथिन बनउखा, गोतिनिया फेरिहें पइचा हे ।) (अमा॰43:7:2.16)
307 पईचा (= पइचा, पइंचा) (गोतनी के लुटावल पईचा मानल जाहे जेकर साफ चित्रण ई गीत में हे ।) (अमा॰43:7:2.9)
308 पछधर (ईमान-धरम आउ लोकनीति के साथ-साथ ऊ नेयाव के पछधर हथ ।) (अमा॰50:11:1.21)
309 पछान (= पहचान) (जरी ललकार के बरदा हाँकऽ मोरा सइयाँ अहो किसान । गहरा-गहरा चास करऽ आउ जोतऽ बाने-बान ॥ फिर ऊपर से हेंगा देके डालऽ बिआ पछान । तऽ देखिहऽ तूँ अन्न उपज के भर जैतो खलिहान ॥) (अमा॰49:8:1.16)
310 पटका-पटकी (रघुआ के मूर्खता के चरमोत्कर्ष तो तब मानल जा सकऽ हे, जब पटका-पटकी के बाद जाइत पंडित जी से रघुआ पूछऽ हे - 'पूजा हो गेल बाबा ?') (अमा॰47:15:2.10)
311 पढ़ाकू (हम ही पढ़ाकू नम्बर वन ! भोरे आठ बजे पक्का खटिया पर से उठो ही । बासी-कुसी, बचल-खुचल दम भर पहिले ठूसो ही । सेर भर कलउआ लेके, चल देही बन-ठन ।) (अमा॰46:16:1.13, 15)
312 पथ (= पथ्य) (बेचारा महीनो से बेराम हल, दवाई आउ पथ के बिना टटा के रह गेल हे हिस्सा बाँटे ला ।) (अमा॰52:15:3.16)
313 पनकोंहड़ (गार्जियन चेक करे हमरे रजिस्टर, गरज-गरज बात करे बनके मिनिस्टर, पनकोंहड़ भेल प्राण, केतना लाचारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.23)
314 पन-छो (= पाँच-छह) (पन-छो अदमी गोली-बारूद के शिकार होके वीर गति प्राप्त कर चुकलन हल ।) (अमा॰47:7:2.18)
315 पनछोछर (जे होटल के कउनो न पूछऽ हल आउ दिन भर बइठ के झँख मारित रहऽ हल, ओकरो में ठेलम-ठल । पनछोछर दाल आउ सड़ल आलू के चलती होल हल ।) (अमा॰47:7:2.22)
316 पन-पन (सत-सिव-सुन्नर लेले अलग तोर दुनिया हे, जे में तीस दिन के रात में झकझक पुनियाँ हे ॥ पनिया से पन-पन तन के पोरे-पोर । खूबसूरती गजब हे चिजोर ॥ तोहर रूप के धूप बड़ी गोर ॥) (अमा॰53:1:1.10)
317 पनसोर (ठीके-ठीक दुपहरिया हो गेल हे । कहार पसखाना के सामने एगो पेड़ के छहुरा में डोली रख देहे । पसखाना में नाक में बुलाकी पेन्हले एगो पासिन बइठल हे । कहार बोलऽ हे - तड़िया में पनिया मिलइहें न बुलकनी, तड़िया हो जइतई पनसोर ।) (अमा॰50:21:2.22)
318 पपड़ी (न हवऽ नोन, न हवऽ लकड़ी, कइसे तइआर करूँ भात रोटी पपड़ी ?) (अमा॰49:9:1.7)
319 परकासित (= प्रकाशित) (हाई इसकूल, नैली में छात्र रहइते रजकण जी मध्य विद्यालय, खिजरसराय के मैदान में 1954 ई॰ में संत विनोबा भावे के परवाचन सुनलन । उनकर विचार से परभावित होके रजकण जी एगो कविता लिखलन - 'नई क्रांति' । ऊ कविता बनारस से परकासित एगो मासिक पतरिका 'कुशवाहा क्षत्रिय बन्धु' में छप गेल ।) (अमा॰50:7:2.5)
320 परकिरति (= प्रकृति) (पात्रन के चरित्र-चित्रन में संसारिक अनुभव आउ मानवीय परकिरति के विस्लेसन बहुत जरूरी होवऽ हे ।) (अमा॰50:10:1.14-15)
321 परकिरतीया (= प्राकृतिक) (रजकण जी के मन खास करके सुथरई पर जादे रमऽ हे, चाहे ऊ सुथरई परकिरतीया हो, चाहे मानवी ।) (अमा॰50:16:1.7)
322 परघट (= प्रकट) (गंगापुर गाँव में बाढ़ खतम होवे के बाद मस्जिद के पाँच गज उत्तर बलराज महतो के खेत में महादे जी परघट हो जा हथ ।) (अमा॰44:12:1.1)
323 परछाहीं (घर में दू गोतनी आउ हलन । ऊ दुन्नो एही जानऽ हलन कि राजमनी बड़ी अमीर घर के बेटी हे । दुन्नो केवाड़ी के भीतर थोड़ा कान ओड़ के सुने लगल कि बाप बेटी में का बात होवऽ हे । जब रजमनिया चुप होयल तब परछाहीं से समझ गेल कि ओकर बात सुने ला ढुका लगैले हथ सब ।) (अमा॰48:13:1.16)
324 परजातन्त्र (जहाव के जनता मरे भूख से न्याय जहाँ बेचल जाहे । आज ओइसने शासन के परजातन्त्र कहल जाहे ॥) (अमा॰46:1:2.2)
325 परतिरोध (= प्रतिरोध) (कमली एगो अइसन नारी पात्र हे जे समाजिक सोसन आउ अत्याचार के धुआँ में धुआँइत रहऽ हे, मुदा ओकर परतिरोध न कर पावऽ हे ।) (अमा॰50:10:2.21)
326 परदर (= प्रदर रोग) (कलवा अब थक गेल, घर-गृहस्थी के काज में अब ऊ ढेर देरी ठठ नञ पावऽ हे । धाध, परदर, बवासीर आउ फरका आदि रोग से ऊ तंग-तंग हो गेल ।) (अमा॰52:13:2.31)
327 परदरसन (= प्रदर्शन) (हमनी सभे पति लोग अगला एतवार के परदरसन करम, हड़ताल करम, काहे कि आज हर कोई अप्पन बात मनवावे ला, सुख सुविधा बढ़ावे ला, हड़ताल करऽ हे, परदरसन करऽ हे ।) (अमा॰46:18:1.6, 12)
328 परदाफास (= पर्दाफाश) (धूमैल परिवेस में जी रहल मनुसता कउन कदर मटियामेट हो रहल हे, एकर परदाफास रजकण जी पात्रन के माध्यम से कयलन हे ।) (अमा॰50:10:1.12)
329 परना (गोड़-हाथ ~) (सगरो से थक-हार के तऽ अन्तिम में मुखिया जी हीं भी गेली । ऊ पहिले तो खूब ऐतरा-पैतरा बाँधलन, फिन हमरा गोड़-हाथ परला पर ऊ पाँच सौ रुपइया तो गछलन हे, बाकि उनखर एगो शर्त हे ।) (अमा॰43:10:2.24)
330 परवचन (= प्रवचन) (हाई इसकूल, नैली में छात्र रहइते रजकण जी मध्य विद्यालय, खिजरसराय के मैदान में 1954 ई॰ में संत विनोबा भावे के परवाचन सुनलन । उनकर विचार से परभावित होके रजकण जी एगो कविता लिखलन - 'नई क्रांति' । ऊ कविता बनारस से परकासित एगो मासिक पतरिका 'कुशवाहा क्षत्रिय बन्धु' में छप गेल ।) (अमा॰50:7:2.3)
331 परवाहित (= प्रवाहित) (रजकण जी के निबन्ध में भाव आउ विचार के आवेग नदी के धारा अइसन परवाहित होते रहऽ हे ।) (अमा॰50:13:2.6)
332 परसंग (= प्रसंग) (जनेसर यादव करजा वसूल करे के परसंग में जब ओकरा गिरवी रख लेवे के बात करऽ हथ तो ऊ तपाक् से बोल पड़ऽ हे - 'हमहूँ तोर लउँड़ी बने ला तइयार ही । सरत ई हे कि जउन दिन तूँ हम्मर देह छू लेबऽ, हम तोर मुड़ी छोप लेबो ।') (अमा॰50:10:2.14)
333 परसारित (= प्रसारित) ('पटना दूरदर्शन केन्द्र' से कउनो मैथिली भासा के कवि के कविता परसारित कइल गेल हल ।; अपने मैथिली भासा के कविता तो दूरदर्शन केन्द्र से परसारित करऽ ही, मगर मगही भासा के रचनाकार के उपेक्षा कर देही ।) (अमा॰50:6:1.9, 12)
334 परस्ताव (= प्रस्ताव) (भारतीय दंड संहिता में भी सुधार के परस्ताव हमरा पास आयल हे । हम देखम कि हरिजन-गिरिजन आउ अल्पसंख्यक के नाम पर जे भी औरत कउनो कारनवस अब तक लाभ न उठा सकलन, उनका विकास करे के पूरा मौका मिले ।) (अमा॰45:14:2.1)
335 परस्तुत (धरम के जे व्याख्या आउ विस्लेसन ऊ परस्तुत कैलन हे मानवता दिरिस्टिकोन से बड़ा उचित आउ संगत हे ।) (अमा॰50:11:2.21)
336 पसखाना (< पासी + खाना) (ठीके-ठीक दुपहरिया हो गेल हे । कहार पसखाना के सामने एगो पेड़ के छहुरा में डोली रख देहे । पसखाना में नाक में बुलाकी पेन्हले एगो पासिन बइठल हे । कहार बोलऽ हे - तड़िया में पनिया मिलइहें न बुलकनी, तड़िया हो जइतई पनसोर ।) (अमा॰50:21:2.18, 19)
337 पसिखाना (= पसखाना) (हम्मर कल के घोड़ा आज हम्मर पालकी में जुतल हल, आ एक से एक बोल निकालइत उड़ल जा रहल हल । दुपहरिया में एक जगह बर के पेड़ के नीचे ऊ घोड़ा ठहर गेल, जेकरा पर से हमहूँ उतर गेली । पासे में पसिखाना हल, ओकरा तरफ देखके सनिचरा हम्मर मुँह तरफ नजर उठयलक - 'मालिक, जरा ठंढई कर लेती हल ।') (अमा॰49:11:2.24)
338 पसिन्जर(= पैसेन्जर, यात्री) (निमोछिया छौंड़ा ओकर अइसे असरा खोजइत हल जइसे भूखल-पियासल अदमी खाना पानी खोजऽ हे । ऊ जवनकी रोज जंकशन के बाहर खड़ा रहऽ हे आउ कोई आड़ी-गाड़ी आवे के पहिले टीसन के पलेटफारम से बाहर निकलइत पसिन्जर में से गाँहक खोजऽ हे ।) (अमा॰44:6:2.5)
339 पाछू (= पीछे) (घर भर में सबसे पाछू सुते ओली आउ सबसे पहिले जगे ओली कलवा मेहनती आउ उत्साही औरत हल ।) (अमा॰52:13:2.18)
340 पासिन (ठीके-ठीक दुपहरिया हो गेल हे । कहार पसखाना के सामने एगो पेड़ के छहुरा में डोली रख देहे । पसखाना में नाक में बुलाकी पेन्हले एगो पासिन बइठल हे । कहार बोलऽ हे - तड़िया में पनिया मिलइहें न बुलकनी, तड़िया हो जइतई पनसोर ।) (अमा॰50:21:2.19)
341 पिसाना (= पिसना) (त ऊ कोई संतरी-मंतरी, अफसर बेपारी हथ ? अरे तूँ ह गाय - दुहयलऽ, छिलयलऽ, पिसयलऽ आउ खाद बन के खेत में छिंटयलऽ !) (अमा॰43:13:2.21)
342 पीछू-पीछू (मन्त्री जी के परवेस । आगू-आगू मन्त्री जी आउ पीछू-पीछू जुवा नेता नारा लगावित हथ ।) (अमा॰45:13:2.26)
343 पुनमासी (हल तो पुनमासी के रात, मगर अकास में घटाटोप बादर छायल हल आ झमाझम बरखा पड़ रहल हल ।) (अमा॰49:12:2.8)
344 पुरविला (पता नञ पुरविला में ओकरा से का चूक भेल हे जे ई दण्ड के भागी कलवा के बने पड़ल ।) (अमा॰52:13:1.4)
345 पुरान-धुरान (हमनी दुन्नो के पहनावा-ओढ़ावा में भी काफी फरक हल । हम नीमन-नीमन कपड़ा-लत्ता पहिनले रहऽ हली, त ऊ पुरान-धुरान गंजी लंगोटी, जेकर जादेतर देह उघारहीं रहऽ हल । हाँ, हम्मर उतारल कपड़ा से कुछ दिन ला ओकर देह ढँका जा हल ।) (अमा॰49:11:1.8)
346 पुरोहिताई (पुरुष पात्र में सबसे पहिले गोपाल दूबे से भेंट होबऽ हे । ऊ मनुवादी हिन्दू समाज-बेवस्था के पक्का समरथक हथ । करमकाण्ड आउ पुरोहिताई उनकर जीविका हे ।) (अमा॰50:11:1.7)
347 पेउन्द (तीन दफे हिचकी आल आउ कलवा के परान पखेरू उड़ गेल । केकरो आँख से लोर नञ टसकल, सब ओकर बिछौना-तकिया आउ पौती-पेटारी उधन-पधन के सिक्का ढूँढ़े लगलन । दू गो फटल कुरती आउ पेउन्द लगल अस्तर के अलावे कुछ हाथ नञ लगल ।) (अमा॰52:14:2.19)
348 पेयाज (= पियाज, प्याज) (डॉ॰ रजकण ई उपन्यास में गाँव के मौजूदा सामाजिक बेवस्था के शल्य चिकित्सा कैलन हे जेकरा में आदमियत के अंदरूनी परत आउ ओकर मुखौटा पेयाज के छिलका के तरह उतार के बाहर फेंक देल गेल हे ।) (अमा॰44:14:2.22)
349 पेराना (भूख गरीबी आउ अशिक्षा के भार से, जनता पेराइत हे महँगाई के भार से ।) (अमा॰52:7:2.14)
350 पैडिल (= पेडल) (साँस रोक के जल्दी-जल्दी पैडिल मारे लगलन । दुर्गंध के रेंज से बाहर निकल के पाँव के गति कम कयलन, लेकिन इनकर दिमाग गतिआ गेल - एकरा मरिस्तान काहे कहऽ हथ लोग ? हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान ... । हिन्दु+स्थान = हिन्दुस्तान, मरी + स्थान = मरिस्तान । ओऽऽ त ई बात हे ? जहाँ मरल जानवर के खाल छीलल जाहे ऊ मरिस्तान ।) (अमा॰43:14:1.29)
351 पोठिया (जल बिना तड़पे जइसे पोठिया मछलिया, अन्न बिना तड़पऽ हई बुतरू किसान के ।) (अमा॰50:16:1.30)
352 पोदीना (= पुदीना) (गरमी महीना मगही सतुआ मंगा द मोर पिया हो, पोदीना चटनी आम के अँचार ।) (अमा॰47:6:1.2)
353 पोसपूत (के माय के लाल हे, केकर मजाल हे, गरीबी मेटा देतई, भ्रष्टाचार भगा देतई ? ई दुन्नो अँगरेजवे के पोसपूत हे, दुन्नो विदेशी हे, एगो अमेरिकन, दोसरका फ्रान्सीसी हे ।) (अमा॰47:10:1.6)
354 पौती-पेटारी (तीन दफे हिचकी आल आउ कलवा के परान पखेरू उड़ गेल । केकरो आँख से लोर नञ टसकल, सब ओकर बिछौना-तकिया आउ पौती-पेटारी उधन-पधन के सिक्का ढूँढ़े लगलन । दू गो फटल कुरती आउ पेउन्द लगल अस्तर के अलावे कुछ हाथ नञ लगल ।) (अमा॰52:14:2.16)
355 प्रोफेसरी (बैंक के नौकरी छोड़ के बनलऽ हल प्रोफेसर कि समाज में इज्जत होयत । अब इज्जत लेके चाटऽ । समाज के तो छोड़ऽ, औलादे हथौड़ा मारऽ हवऽ । ई प्रोफेसरी में वेतन छन से उड़ जाहे ।) (अमा॰43:13:1.1)
356 फँसरी (पटने में सड़इत-सड़इत एम॰ए॰ कइली । घूस देवे ला पइसा हइये न हे, बिजनेस करे ला पइसा हइये न हे । त का करीं ? पटरी पर सुत जाईं ? कि फँसरी लगा लीं ?; बेटा से बतकुच्चन होहे त लगऽ हे कि फँसरी लगा लीं ।) (अमा॰43:12:1.24, 2.7)
357 फटेहाली (इहाँ फटेहाली में लिपटायल भारतीय जुवती के रूपांकन लेल जे उपमा ढूँढ़ल गेल हे, ओकरा दाद देवे पड़त । इहाँ शिवपूजन सहाय के भगजोगनी के इयाद आ जाहे ।) (अमा॰50:10:1.26)
358 फरका (= मिरगी, अपस्मार) (कलवा अब थक गेल, घर-गृहस्थी के काज में अब ऊ ढेर देरी ठठ नञ पावऽ हे । धाध, परदर, बवासीर आउ फरका आदि रोग से ऊ तंग-तंग हो गेल ।) (अमा॰52:14:1.1)
359 फर-फलदान ('... लइका पढ़इते हे, औकात माफिक कुटुम ठीके हथ ।' - 'त अगिला दफे फर-फलदान भी कर देवे के चाही, हाथ पर हाथ रख के बइठला से गुजर नञ होवत' - बाढ़ो सिंह कहलन ।) (अमा॰52:11:2.19)
360 फरहरी (बरखा जे शुरू भेल त रात भर बरसल । पानी ला खखायल खेत के तरास मेटल आउ फटल दरारो मेट गेल । भुखलू महतो दिन में दू दफे खेत में घूम के देखलन । बिहान खेत में फरहरी जोते ला मनसूबा बना के साँझ के दुन्नो बैलन के मन से खिअयलन ।; मालिक ! बात अइसन हे कि ऊँचगर होवे के चलते हम्मर खेत में पानी न टिके । कड़कड़ा के धूपा उगल हे से देखतहीं ही अपने । दिन भर में सूख गेला पर फरहरी न जोतायत । एही से सोचली कि हम अप्पन खेत आज जोत लीं ।) (अमा॰49:13:1.5, 2.1)
361 फलीहत (जउन समाज में जात-पात आउउ छुआछूत के भेद-भाव आसमान में पहुँच गेल हे ओकर फलीहत कहिनो न होवत ।) (अमा॰50:12:1.27)
362 फाकामस्ती (कोई के छप्पर या बड़ेरी चढ़ावे ला होय या बाँस बलली लावे ला होय तो गाँता में एक तरफ अकेले सनिचरा रहऽ हल, दूसर तरफ बाकी कई लोग । हाँ, ई एवज में सनिचरा के थोड़ा ठंढ़ई पिला पिला देवल जा हल या कभी कभी एकाध बोतल देसी ठर्रा, बस । सनिचरा दिन भर मस्त । ओकर ई मस्ती 'कफन' के घीसू आ माधो के फाकामस्ती न हल जे दिन भर कामचोरी आ रात में आलू चोरी करऽ हला ।) (अमा॰49:12:1.17)
363 फार (हमहीं घर में हँसुआ खुरपी आरी फार कुदारी ही । हम्मर दरद बूझे न मरद, काहे कि हम नारी ही ॥) (अमा॰45:17:2.12)
364 फिलीम (= फिलिम; फिल्म) (विनय बाबू कभी-कभी उनकर भी॰सी॰आर॰ ले आके फिलीम देखऽ हलन ।) (अमा॰48:10:1.31, 2.4, 5, 6, 7, 9)
365 फुरेरी (= फुहार) (प्रेमी-प्रेमिका के चुहलबाजी 'गोरी तोहर जवानी में' वाली कविता पढ़ के केकर मन में फुरेरी न उठ जायत ?) (अमा॰52:10:2.11)
366 फुलकी (= तवे पर सेंककर फुलाई रोटी) ('हाली दतौन लावऽ आउ चटपट दू गो फुलकी सेंकऽ । हम हाथ-मुँह साफ करके आउ नेहा के आवऽ ही' - बाढ़ो सिंह के ई अवाज सुन के ओकर मेहरारू मैनी चकड़बम हो गेल । ओकर माथा ठनके लगल - 'आज का बात हे जे अन्हारे-पन्हारे तइयारी होइत हे ?'; छिप्पी में चार गो फुलकी आउ करमी के साग परोसल गेल ।) (अमा॰52:11:1.3, 10)
367 फेफरी (= सूखे ओंठ पर का चमड़ा; गर्मी, बुखार, उपवास आदि के कारण सूखी पपड़ी, फेफड़ी) (मुँह में ~ पड़ना) (हनुमान जी तमक के बोललन - '... हम्मर दुरगति के कारन तूहीं ह ।' पुजारी काँपे लगलन, रोंगटा खड़ा हो गेल, मुँह में फेफरी पड़ गेल ।) (अमा॰46:7:2.2)
368 फोंफ (~ काट के सुतना) (हम्मर देह बसलवऽ तोरा, नहियें हाथ लगयलऽ तू । भरो रात कँहरित रहली, फोंफ काट के सुतलऽ तू ।) (अमा॰48:14:1.12)
369 फोंफी (आयी हे हम्मर परान के फोंफी, सट गेलऽ जइसे ह आम के चोपी ।) (अमा॰46:5:1.1)
370 बँझाना (= बाँझ होना; बिसुखना) (प्रोफेसर साहेब गहन चिंतन में चल जा हथ - लगहर में खल्ली-चुन्नी, बिसुखला में सुक्खल नेवारी । नस-नस दुहा जा हथ । बियाये के महीने भर पहिले छुटकारा मिलऽ हे दुहाये से । बियाल त हरदी गुड़ आउ बँझायल त कसाई घर ।) (अमा॰43:13:2.16)
371 बँसखेंखड़ी (बगल में पान के गुमटियावाला टेप बजावइत हल - 'एन्ने-ओन्ने घूमइत हे एगो बँसखेंखड़ी, खोजइत हे मरद मलेटरी ...।') (अमा॰44:6:2.7)
372 बँसवारी (एक दिन साँझ के बखत जब फुलेसरी नदी किनारे गेल, त उहें से ऊ हल्ला कयलक - 'दउड़िहें भइया सनीचर, इहाँ बँसवारी में बिजना बइठल हे ।') (अमा॰49:12:1.27)
373 बइद (= वैद्य) (अब सुखिया अप्पन पुतोह के लेले चारो तरफ घूमे लगल - बइद, साधु, सन्त, महात्मा । आज ओकर पुतोह के साथ भी ओकरे खिस्सा दोहरावल जाय लगल । किसिम-किसिम के मनीता फरियावे लगल - बाबाधाम जाय ला, कभी अयोध्या-वृन्दावन त कभी काशी-प्रयाग जाय ला ।) (अमा॰47:16:2.15)
374 बकलोला (= बकलोल, मूर्ख) (तोर नजर रहऽ हे पूरा बजार पर, मिठाई के दोकान निमकी अचार पर । आगे हिरोइन पीछे हम लेले झोला, पुनिया के चान तू ह हम बकलोला ।) (अमा॰46:5:1.26)
375 बगुला-बगुली (लोक साहित्य में लोकनाट्यगीत 'बगुला-बगुली', 'जाट-जटिन' आउ 'सामा-चकेवा' पर थीसिस लिखा सकऽ हे । लोक गाथा में 'रेसमा चुहड़मल' आउ 'आल्हा-गीत' पर काम हो सकऽ हे ।) (अमा॰47:14:2.25)
376 बचकस (एकरा के भगा देतई ? जखने ई बचकस हलई, तखने तो कोय भगैवे नयँ कयलक । अखने तो ई पच्चास साल के उम्र दराज हो गेलइ ।) (अमा॰47:10:2.6)
377 बच-बचाना (ड्राइवर तो अमदी के परवाहे न करऽ हे, तोर का करत ? अब तो कौलेज के अहातो में हिसाब से चले पड़ऽ हे - विद्यार्थी के झुण्ड से बच-बचा के । धक्का मार के 'सॉरी सर' कहे ला भी भूल गेलन ई लोग ।) (अमा॰43:14:1.22)
378 बजबज (अमा॰47:9:1.8)
379 बजाड़ना (= पटकना) (बस, ओकर माय के माथ पर भूत सवार हो गेल, ऊ ओही पीढ़ा उठाके सनिचरा के पीठ पर बजाड़ देलक । सनिचरा के तो कुछ न भेल, पर पीढ़ा एगो से दूगो हो गेल ।) (अमा॰49:11:2.9)
380 बदरंग (नगर-डगर सगर उझंक लगऽ हइ । न जानि काहे सब बदरंग लगऽ हई ।) (अमा॰43:1:1.2)
381 बनउखा (सास लुटावथिन रुपइया, त ननद मोहरवा हे । ए ललना गोतिनी लुटावथिन बनउखा, गोतिनिया फेरिहें पइचा हे ।) (अमा॰43:7:2.16)
382 बनास (= गर्मी आदि के कारण नाक से खून बहने का रोग; नाक की हड्डी; नाक के छिद्रों का मिलने का स्थान) (~ फूटना) (पइसलइ शरीरवा हिंसा के कैंसर, पोरे-पोर फूटलइ बनास । खूनवा छींटवा से भींगलइ अँचरवा पुनपुन आउ दरधा उदास । बारूद के गंधवा से गुमसल बधरवा, दिनवा में घूमई कटास । गँउआ-टोलवा में नफरत के खेतिया, गेंहुआ गोहमन निवास ।) (अमा॰49:2:1.6)
383 बनियौटी (= बनिया का सा व्यवहार या आचरण; हर काम में नफा-नुकसान पर विचार) (मतलब पइसा लेके गिआन देना बनियौटी हे ।) (अमा॰51:9:1.23)
384 बर (= बरगद, वटवृक्ष) (हम्मर कल के घोड़ा आज हम्मर पालकी में जुतल हल, आ एक से एक बोल निकालइत उड़ल जा रहल हल । दुपहरिया में एक जगह बर के पेड़ के नीचे ऊ घोड़ा ठहर गेल, जेकरा पर से हमहूँ उतर गेली । पासे में पसिखाना हल, ओकरा तरफ देखके सनिचरा हम्मर मुँह तरफ नजर उठयलक - 'मालिक, जरा ठंढई कर लेती हल ।'; गाँव के सीवान के बर के पेड़ जड़ में दीमक लग गेला से भीतर से खोंखड़ हो गेल हल, बाकि जोम आउ शान से जीयऽ हल ।) (अमा॰49:11:2.23, 14.1, 11)
385 बरगलाना (= भटकाना, भ्रम में डालना) (धरम के नाम पर ऊ सउँसे गाँव के हिन्दू लोग के अप्पन मुट्ठी में रखे के कोरसिस करऽ हथ । अप्पन धूरतई से महादे जी के चबूतरा गाँव में बनवावे में ऊ सफल हो जा हथ । मुसलमान के विधरमी बताके ऊ हिन्दू के बरगलावऽ भी हथ ।) (अमा॰50:11:1.14)
386 बरदास (= बरदाश्त, सहन) (उनका में तकलीफ बरदास करे के अद्भुत क्षमता हे ।; कलवा के ई समय में कुतवो से भी बदतर जिनगी काटे पड़इत हे । तकलीफ, अपमान आउ हुँरकुच्चा के बरदास करइत-करइत ऊ घुटन के जिनगी पार करइत हे ।; बरदास के भी सीमा होवऽ हे । एक रात रंजन जहर खा लेलक ।) (अमा॰45:14:1.24; 52:14:2.6; 54:17:1.1)
387 बर-बधार (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !! ... बर-बधार से खरिहानी तक मेहनत सुख उपजावऽ हल । बसमतिया के चाउर-चूड़ा, मड़ई तक महकावऽ हल ।) (अमा॰48:1:1.8)
388 बरहा (उनका खाली समय में गाय-भैंस चरावे पड़ऽ हल । जब-तब कुइयाँ से लाठा चला के खेत पटावे के भी नौबत आ जा हल । ई तकलीफ के चरचा ऊ एगो तुकबन्दी में कइलन हे - निरधन घर में जलम भेल, हाथ में मिलल बरहा । हुकुर-हुकुर जान करऽ हे, बिसूख गेलई करहा ॥) (अमा॰50:7:1.18)
389 बरहामनवादी (= ब्राह्मणवादी) (कुन्ती देवी गोपाल दूबे के मेहरारू हथ । बरहामनवादी बेवस्था में ऊ अप्पन आस्था जतावऽ हथ बाकि जमाना के अनुसार छुआछूत के भूत से भयभीत न होवऽ हथ ।) (अमा॰50:10:2.25-26)
390 बरियाती (= बारात) (परानपुर बस्ती में आज गहमागहमी हे । आज सिलाव से बरियाती लउटे वाला हे ।) (अमा॰54:16:1.13)
391 बलत्कार (= बलात्कार) (अखबार के पन्ना चोरी, डकैती, लूट, हत्या, रहजनी, अत्याचार आउ बलत्कार के समाचार से भरल रहऽ हे ।) (अमा॰45:13:2.13, 14:2.12; 48:5:2.1)
392 बसिआना (वेद-पुरान-कुरान-गीता आउ रमाइन, सन्त-फकीर-ओझा-डइया-डाइन, सब बसिआएल सब के अरथ-अनरथ जइसे कुरसी पर बैठल जनतंतर उटंग लगऽ हइ ।) (अमा॰43:1:1.11)
393 बाँट-चोट (~ के) (चोर-सिपाही भेलै दोस्त, जनता के उड़ गेलै होस । दुन्नो मिल के लूटऽ हखिन, बाँट-चोट के भोगऽ हखिन ।) (अमा॰47:10:1.28)
394 बाँस-बल्ली (कोई के छप्पर या बड़ेरी चढ़ावे ला होय या बाँस बल्ली लावे ला होय तो गाँता में एक तरफ अकेले सनिचरा रहऽ हल, दूसर तरफ बाकी कई लोग ।) (अमा॰49:12:1.12)
395 बाघा गोटी (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !!) (अमा॰48:1:1.2)
396 बाध (= फसल के खेतों का फैलाव, खेत-बधार) (गाँव के गली आउ बाध दने धुआँ लौकइत हे, तखने बाढ़ो सिंह इटहरी गाँव के सिमाना में गोड़ रखलन ।) (अमा॰52:11:1.21)
397 बान (जरी ललकार के बरदा हाँकऽ मोरा सइयाँ अहो किसान । गहरा-गहरा चास करऽ आउ जोतऽ बाने-बान ॥) (अमा॰49:8:1.15)
398 बामा (= बायाँ) (एक दिन ट्रक के धक्का से ओकर मोटर साइकिल सड़क से दस फीट नीचे पानी भरल गहिड़ा में लुढ़क गेल । धनराज के जान तो बच गेल मगर बामा गोङ के हड्डी चकनाचूर हो गेल ।) (अमा॰44:7:1.15)
399 बासी-कुसी (हम ही पढ़ाकू नम्बर वन ! भोरे आठ बजे पक्का खटिया पर से उठो ही । बासी-कुसी, बचल-खुचल दम भर पहिले ठूसो ही । सेर भर कलउआ लेके, चल देही बन-ठन ।) (अमा॰46:16:1.17)
400 बिखधर (= विषधर) (बोली-बानी से तो पंडित पर सोभाव के बन्दर हथ, सज्जन के संगत में बइठल चंदन-वन के बिखधर हथ ।) (अमा॰54:1:1.4)
401 बिखायल ('मुँहझौसा के कुछ रोजिए नञ हल त ऊ हमरा घर बिआह काहे ला कैलक हल ।' कहइत सास भी भनके लगल । 'अबकी आवे बुढ़वा त ओकरा हम बढ़िया से बतावऽ ही' - कहके ननद भी चनके लगल । घर के हर परिवार के बिखायल आउ रोस भरल बात सुनके कलवा फफक-फफक के कँपसे लगल ।) (अमा॰52:12:1.30)
402 बिगड़ल-झउँसल (कुल मिला के ई 'छतीसी' आझ के बिगड़ल-झउँसल परिवेश के एगो अनूठा एलबम हे आउ लघुकथा के प्रासंगिकता में चार चान लगा रहल हे ।) (अमा॰48:9:2.27)
403 बिज्झा (~ लग जाना) (आँख में पट्टी बाँधले रहिया, खोलला पर गर्दा पड़ जैतो । बुद्धि के रखिहा पेटी में, बाहर में बिज्झा लग जैतो ॥) (अमा॰46:16:2.26)
404 बियाना (प्रोफेसर साहेब गहन चिंतन में चल जा हथ - लगहर में खल्ली-चुन्नी, बिसुखला में सुक्खल नेवारी । नस-नस दुहा जा हथ । बियाये के महीने भर पहिले छुटकारा मिलऽ हे दुहाये से । बियाल त हरदी गुड़ आउ बँझायल त कसाई घर ।) (अमा॰43:13:2.14, 15)
405 बिलगाना (= अलग करना; दूर करना) (हम तड़प के रह गेली, लड़िकाई में अप्पन चबेनी में ओकरा हम साथ रखऽ हली, आज ई ठंढई में ऊ हमरा बिलगा देलक ।) (अमा॰49:12:1.8)
406 बिसेस (= विशेष) (एहि लेल पात्र-विन्यास आउ ओकर चरित्र-चित्रन पर उपन्यासकार के बिसेस धेयान देवे पड़ऽ हे ।) (अमा॰50:10:1.6)
407 बुलकनी (ठीके-ठीक दुपहरिया हो गेल हे । कहार पसखाना के सामने एगो पेड़ के छहुरा में डोली रख देहे । पसखाना में नाक में बुलाकी पेन्हले एगो पासिन बइठल हे । कहार बोलऽ हे - तड़िया में पनिया मिलइहें न बुलकनी, तड़िया हो जइतई पनसोर ।) (अमा॰50:21:2.21)
408 बुलाकी (ठीके-ठीक दुपहरिया हो गेल हे । कहार पसखाना के सामने एगो पेड़ के छहुरा में डोली रख देहे । पसखाना में नाक में बुलाकी पेन्हले एगो पासिन बइठल हे । कहार बोलऽ हे - तड़िया में पनिया मिलइहें न बुलकनी, तड़िया हो जइतई पनसोर ।) (अमा॰50:21:2.19)
409 बूढ़ा-दोआह (ई स्वार्थी संसार में केकर कउन हे ? आउ भाई-भौजाई ? सीधे भँसा देतन । कोई कान-लंगड़ा, बूढ़ा-दोआह से बाँध देतन । ई कंगला पीढ़ी के तो अप्पन पेट पहाड़ हे । ई का करत माय-बहिन ला ? अनुकम्पा पर नौकरी लेवे ला बाप के मार देवल जाहे आजकल ।) (अमा॰43:12:2.11)
410 बेतीत (= व्यतीत) (ई लेल परिवार के कम करऽ, सुख से जिनगी बेतीत करऽ ।) (अमा॰49:9:1.13)
411 बेभिचारी (बलातकारी-~) (सबसे जादे बदनाम गंजेड़ी-भंगेड़ी, डकइत-लुटेरा, भ्रष्टाचारी आ बलातकारी-बेभिचारी हम्मर पुजारी बन गेलन ।) (अमा॰46:10:2.15)
412 बेसवा (= वेश्या) (खेत-खलिहान में भी औरत-मरद मिल-जुल के काम करऽ हथ । एकर मतलब ई न हे कि सबहे औरत बेसवा बन जाहे आउ सबहे मरद भड़ुआ रहऽ हे ।) (अमा॰44:10:1.5)
413 बोदा (= बोद्दा, भोंदू) (हो गेल परीच्छा भी गड़बड़ के सौदा, पूँजी से पास आज हो जा हथ बोदा ।) (अमा॰47:5:1.23)
414 बोरना (पीछे-पीछे चलऽ चुपचाप केउ गदहा के, परसिद्धि मिले हे नाला में बोरे से । कड़ाही में दूध के लेस न बलुक होए, का का न मिले हे ओकरा खँखोरे से ॥) (अमा॰54:14:2.10)
415 बौसाह (जलम आउ मिरतु तो भगवान के लीला हे, ई अप्पन बौसाह के बात नञ हे ।) (अमा॰52:13:1.26)
416 भंटा (खायला बनइहऽ गोरी सत्तु भरल लिटिया, अपने भी खइहऽ, खिलइहऽ बेटा-बेटिया । भंटा के चोखा बनाइ के दीहऽ, आउ दीहऽ लेमुआ के अँचार ।) (अमा॰49:9:2.10)
417 भइंसुर (= भैंसुर) (चार दिन बाद भइंसुर टोकऽ हथ - 'का रे रजुआ ? ससुरा सिकड़ी गछलकौ हल त काहे न देलकौ ?') (अमा॰52:12:1.4)
418 भकठना (= काम, यंत्र आदि का बिगड़ना; नाराज होना) (पुतोहिया के बसइत जब चार बरिस हो गेल तब ऊ एक दिन सुखिया से कहलक - 'हमरा अब बुतरू खेलावे के मन करइत हे । न जानि काहे भगवान हम्मर गोदी सुन्ना कैले हथ । माय ! हमरा कहुँ देखा दऽ ।' सुखिया भकठ गेल - 'भक् भकचोंधरी ! अभी चारे साल होइत हउ आउ बेदम हो गेलें ! अभी खो-खेल ! जल्दी कउची हउ ?') (अमा॰47:16:2.3)
419 भक-भुक ('हँ सर ! हॉल में चलल जाय । शोक-सभा होयत । कृपाल बाबू मर गेलन ।' - 'का ? नरेस बाबू भौंचक । लाल-पीयर बत्ती के तरह दिमाग में प्रश्न भक-भुक करे लगल ।) (अमा॰43:14:2.22)
420 भकुरा (मरे आउ मारे अनका के, बुड़बक भी अब चतुरा । वर्गवाद के जाल में पड़के तड़प रहल हे भकुरा ॥) (अमा॰53:19:1.24)
421 भक्का ('तनि हम एक ठमा जाइत ही । देखऽ कलवा अब जुआन ... ।' बाढ़ो सिंह के भक्का सुनइते मैनी समदे लगल - 'घर-वर बेस रहे के चाही । दू पइसा ऊँचे में सौदा पटे त कोय हरज नञ हे ।') (अमा॰52:11:1.13)
422 भटजुग (= भठजुग; कलियुग) (सतजुग से लेके भटजुग तक) (अमा॰50:16:2.20)
423 भठजुग (पर ऊ ई सोच समझ के चुप रह गेलन कि एक तो गाँव में हिनसतई होइए गेल कि हम्मर बेटा के सनिचरा मारलक । अब कोट कचहरी में जाके आउ हिनसतई कराउँ कि बाभन के बेटा के मारलक कहार ? कइसन भठजुग आ गेल हे ?) (अमा॰49:12:2.6)
424 भड़ाक (~ से) (अजय पाँव पटकते उठल आउ भड़ाक से दरवाजा खोल के बाहर हो गेल ।) (अमा॰43:12:1.25)
425 भड़ुआ (खेत-खलिहान में भी औरत-मरद मिल-जुल के काम करऽ हथ । एकर मतलब ई न हे कि सबहे औरत बेसवा बन जाहे आउ सबहे मरद भड़ुआ रहऽ हे ।) (अमा॰44:10:1.6)
426 भनकना ('मुँहझौसा के कुछ रोजिए नञ हल त ऊ हमरा घर बिआह काहे ला कैलक हल ।' कहइत सास भी भनके लगल ।) (अमा॰52:12:1.27)
427 भासन (= भाषण) (अमा॰50:7:2.13)
428 भिसिल (= whistle) (गरम कुण्ड के पानी के आनन्द छोड़े के मन न करे, बाकि पुलिस के डंडा आउ भिसिल के सामने एक न चलल । ब्रह्मकुण्ड में से निकसे पड़ल ।) (अमा॰47:8:1.6)
429 भुनकना (गंगा पार ओली बोलल - 'नइहरे में भतार रखले होतइ !' 'तिरिया-चरित्र देवो न जाने !' - सहुआइन भुनकल ।) (अमा॰54:17:1.14)
430 भुरकुस (ई धरती न फटत नरेस ! तूँ बार-बार फटवऽ, बार-बार सीवऽ, तब जीवऽ । सोचइत-सोचइत तोर दिमाग भुरकुस हो जायत । तोरे जलमावल तोरे कान में लोहा धिका के ठूँसत ।) (अमा॰43:12:2.23)
431 भुरता (= भरता) (कइसे तू मारित-मारित फाड़ दे ह कुरता, लाते-मुक्के मार के बना दे ह भुरता । जखनी तू कहऽ ह, तखनीये हम सुतऽ ही, सुनके तोर बोली अधरतिये उठऽ ही ।) (अमा॰46:5:1.8)
432 भूखल-पियासल (निमोछिया छौंड़ा ओकर अइसे असरा खोजइत हल जइसे भूखल-पियासल अदमी खाना पानी खोजऽ हे । ऊ जवनकी रोज जंकशन के बाहर खड़ा रहऽ हे आउ कोई आड़ी-गाड़ी आवे के पहिले टीसन के पलेटफारम से बाहर निकलइत पसिन्जर में से गाँहक खोजऽ हे ।) (अमा॰44:6:2.2)
433 भैकुअम (= भैकम, vacuum) (हम एही सोचइते हली कि जहानाबाद से खुलतहीं गाड़ी रुक गेक । जब खिड़की से बाहर झाँक के पता कइली तब जानली कि कोई भाई जी गाड़ी के भैकुअम पाइप काट देलन जेकरा चलते गाड़ी रुक गेल ।; पता कैला पर मालूम होयल कि भैकुअम पाइप काट के कोई भाई जी अप्पन घरे ले गेलन हे ।) (अमा॰54:8:1.28, 2.6)
434 भोकर-भोकर (~ के रोना) (बेंत के पिटाई से ऊ भोकर-भोकर के रोवे लगल आउ हाथ जोड़ के कहे लगल - 'माय-बाप, अब हमरा छोड़ दऽ ... अब हम कहियो चोरी-चमारी न करम ... अब हम एकदम्मे सुधर जाम ।') (अमा॰44:6:1.7)
435 भोपट(छीः सार ! एहो भोयटवा {? भोपटवा} पुरस्कृत भेल ? हमरा साथे शुरूए से पढ़ल हल बाकि कभी एक तुरी में बढ़िया से पास न कैलक । जब भी पास कैलक तो सिन्हा साहेब के करणे से । आज भी अप्पन मन से लिखे त हरेके लाइन में एगो गलती आसानी से मिल जायत । ई पुरस्कार तो सिर्फ टी॰ए॰ झा के लटकन्त के परिणाम हे, बस !) (अमा॰52:2:2.22)
436 मँड़गिलवा (< माँड़ + गीला) (~ भात) (फूँकऽ ही चुल्हा हम राते-अधराते, एक कोर मँड़गिलवा खैलूँ हल भाते, छूटे विरोग आउ अँखिया से झारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.16)
437 मंगटीका (= मनटिक्का, माँग की टीका) (मुँह पर इस्नो पाउडर आउ आँख में बरेली के सुरमा, कान में कनबाली आउ गला में सिकड़ी, नाक में नथुनी आउ ओठ में लिपिष्टिक, हाथ में चूड़ी आउ गोड़ में पायल, माँग में मंगटीका आउ चोटी में गुलाब के फूल लगइली ।) (अमा॰46:11:2.9)
438 मंदिल (= मन्दिल, मन्दिर) (मठ-मंदिल-मसजिद में घंटी आउ अजान, कादो कन-कन में जन-जन में हथिन रसल-बसल भगमान, फिन भी अमदी काहे कीट-पतंग लगऽ हइ ?) (अमा॰43:1:1.6)
439 मउरी (दुल्हा के मउरी अटकल खगड़ा के पात में ।) (अमा॰45:17:1.17)
440 मखना (प्रो॰ दिलीप जी के 'लमरी न भंज सकल' आउ हाथ से बहकियो गेल । जादे चलाक लोग तीन जगह मखऽ हथ ।) (अमा॰48:9:1.12)
441 मगह-मनेर (एगो चरवाहा भइँस पर चढ़के अलाप रहल हल - 'सबके बियाहलऽ बाबूजी मगह-मनेरवा, हमरा के दीयर में धँसवलऽ हो बाबूजी !') (अमा॰54:15:1.4)
442 मचोरना (अप्पन पसेना बहा के अरजल दौलत से सुख के जिनगी बीतत । केकरो मुड़ी मचोरे के न चाही ।) (अमा॰52:12:1.16)
443 मजदूरा (= मजदूर) (खून-पसीना करके हम खेती में धान उगावऽ ही । बेटा के अछते एकरा मजदूरा से कटवावऽ ही ॥) (अमा॰48:17:1.4)
444 मटिआना (बिना नीन्स खाली मटिअयले रहलन दुन्नो सुतल, केतनो लोग केवाड़ी पीटलन तइयो कोई न उठल ।) (अमा॰43:6:2.15)
445 मतायल (तूँ रचनाकार के कल्पना के सबसे बढ़िया रचना हऽ जेकरा पर ऊ अपनहीं मोहित होके अचरज में डूबल मतायल हे ।) (अमा॰45:2:2.14)
446 मनबढ़ुआ (बेटा के मनबढ़ुआ बाप पर 'वज्रपात' कयल तनिको अच्छा नञ हे कुन्ती जी ।) (अमा॰48:9:2.16)
447 मनमोटाव (छल-कपट आउ दाव-पेंच से दूर रहे के चलते केतना लोग उनकर सीधई के नजाइज लाभ उठैलन जेकरा से उनकर पूँजी पानी में डूब गेल आउ रिस्तेदार लोग से मनमोटाव बढ़ गेल ।) (अमा॰50:8:2.13)
448 मनुसता (धूमैल परिवेस में जी रहल मनुसता कउन कदर मटियामेट हो रहल हे, एकर परदाफास रजकण जी पात्रन के माध्यम से कयलन हे ।) (अमा॰50:10:1.11)
449 मन्तर (= मन्त्र) (बूढ़ा के कनिया के साथ परवेश आउ पंडी जी के मन्तर उच्चारन ।) (अमा॰45:12:1.10)
450 मन्दिल (= मंदिल, मन्दिर) (केसवर पुजारी बजरंग बली के मन्दिल बनवा रहल हथ - ठीक गान्ही चौक के सामने ।) (अमा॰46:7:1.1)
451 मरदे (तूहूँ तो ओइसने ह नरेश बाबू ! आँख फोड़ के पढ़लऽ, नस कूट के पढ़यलऽ, वेतन ला टकटकी, बेटा डाँटे त घिग्घी । मरदे तूहूँ तो गाइये ह । चले लगल अन्तरद्वन्द्व ।) (अमा॰43:13:2.25)
452 मर-मइदान (मुँहझपुए उठके बाढ़ो सिंह मर-मइदान, कुल्ला-कलाला से छुट्टी पा गेलन ।) (अमा॰52:11:2.13)
453 मरियल (हम्मर केतना फैलाव हे । तूँ तो ठूँठ आउ मरियल जैसन लगऽ हें ।) (अमा॰49:14:2.2)
454 मरिस्तान (अस्सो के जब ई मरिस्तनवा के पास पहुँचऽ हथ त इनकर चिंतन के आग में चर्बी पड़ जाहे । दुर्गंध से बचे ला नाक पर हाथ चल जाहे आउ दिमाग के मोटर ईसटार्ट - का जिनगी हे ई गाय भँइस के ?; प्रोफेसर साहेब पहुँचलन मरिस्तान के पास । एगो ताजा छीलल गाय चारो टाँग असमान के तरफ कइले हल । कुत्ता, कउआ, गीध भिड़ल हलन ।; साँस रोक के जल्दी-जल्दी पैडिल मारे लगलन । दुर्गंध के रेंज से बाहर निकल के पाँव के गति कम कयलन, लेकिन इनकर दिमाग गतिआ गेल - एकरा मरिस्तान काहे कहऽ हथ लोग ? हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान ... । हिन्दु+स्थान = हिन्दुस्तान, मरी + स्थान = मरिस्तान । ओऽऽ त ई बात हे ? जहाँ मरल जानवर के खाल छीलल जाहे ऊ मरिस्तान ।; ई नकफाड़ दुर्गंध कहाँ से आयल भाई । एकदम मरिस्तान जइसन ?) (अमा॰43:13:2.1, 14:1.26, 2.2, 4, 5, 12)
455 मलपुआ (= मालपूआ) (एक दिन पंडित के मन कयलक खाय के मलपुआ, तब पंडिताइन जल्दी से बनयलन पाँच मलपुआ । के खाए दू मलपुआ आउ तीन गो खाई, एही बात के लेके दुन्नो में छिड़ गेल लड़ाई ।) (अमा॰43:6:2.5)
456 मसोमात (= मोसमात, विधवा) (कलवा मसोमात होके अगरचे देहचोर रहत हल त नइहर में ओकर गुजर नञ होवत हल ।) (अमा॰52:13:2.22)
457 मातदिल (= शांत प्रकृति का) (बाबूजी अप्पन इलाका में मानिन्द, मातदिल आउ लोकप्रिय अध्यापक हथ ।) (अमा॰50:8:1.26)
458 मान-मरजादा (= मान-मर्यादा) (तोरा भी अप्पन मान-मरजादा के खेयाल रखे के चाही ।; अब तो समूचे परिवार के मान-मरजादा तोरे हाथ में हे ।) (अमा॰44:8:2.23, 10:1.16-17)
459 मानिन्द (बाबूजी अप्पन इलाका में मानिन्द, मातदिल आउ लोकप्रिय अध्यापक हथ ।) (अमा॰50:8:1.26)
460 मिलावन (= मिलामन) (~ के रोटी) (हमरा हीं तो फिन आज मकई मड़ुआ जौ चीना के मिलावन के रोटी बन रहलो हे, निछक्का करुआ तेल में खेसाड़ी के साग बनल रखल हो, ओही तोरा खाय पड़तो ।) (अमा॰47:9:1.23)
461 मुँहझउँसा (हाय, हम्मर सब कुछ लुटा गेल । कउन मुँहझउँसा ई दंगा भड़कउलक ?) (अमा॰45:11:2.26)
462 मुँहझपुए (= मुँहझप्पे) (मुँहझपुए उठके बाढ़ो सिंह मर-मइदान, कुल्ला-कलाला से छुट्टी पा गेलन ।) (अमा॰52:11:2.13)
463 मुँहझौसा ('मुँहझौसा के कुछ रोजिए नञ हल त ऊ हमरा घर बिआह काहे ला कैलक हल ।' कहइत सास भी भनके लगल ।) (अमा॰52:12:1.25)
464 मुँह-देखउनी (ननद लोग दुलहिन के एक झलक देखे ला बेताब हल । दूसर दिन मुँह देखउनी के कार्यक्रम हल । एकावन खंडा जेवर चढ़ल हल ।) (अमा॰54:16:1.19-20)
465 मुफुत (= मुफ्त) (रात में आकाशवाणी पटना के चौपाल मंडली के कार्यक्रम हल । मुफुत के मनोरंजन भला कउन चूके । एक से एक झमकउआ गीत-नाच हो रहल हल ।) (अमा॰47:7:2.25)
466 मुरकना (भागे में कोई के गोड़ मुरकल आ गिरे में कोई के ठेहुना फूटल तो कोई के केहुनी फूटल ।) (अमा॰46:12:2.15)
467 मुसंडा (हम्मर मइया कहते रहऽ हलो कि खाये कुण्डा हो मुसंडा । देखऽ तो हम मुस्तंडा ही कि नईं ?) (अमा॰47:9:2.4)
468 मुसमात (= मोसमात) (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !! ... पंडी जी के दुअरा तक पर, भोथा गदहा बान्हऽ हल । मुसमतिया काकी के मड़ई, मिल के सब कोई छाजऽ हल ।) (अमा॰48:1:1.6)
469 मुस्तंडा (हम्मर मइया कहते रहऽ हलो कि खाये कुण्डा हो मुसंडा । देखऽ तो हम मुस्तंडा ही कि नईं ?) (अमा॰47:9:2.6)
470 मेमियाहट (अप्पन मरदाना के मेमियाहट सुन के ऊ कुछ न बोललक । लगल कि ओकरा ठकमुरकी मार देलक इया छुछुन्दर छू देलक ।) (अमा॰43:11:1.5)
471 मोटल्ली (गोल ~ औरत) (एही बीचे एकबैक ऊ गोल मोटल्ली गदरायल गोरकी औरतिया आँख पर सुनहला चश्मा लगयले देखाई पड़ल, कान्हा में चमड़ा के बेग लटकयले ... मुँहफट ... ।) (अमा॰44:6:2.9)
472 मौगत (= मउअत, मौत) (तीन कोस पैदल आउ तीस कोस गाड़ी, तेरहो निनान भेल औखध-गुजारी, मौगत नैं छूटऽ हे, अमदी सरकारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.26)
473 रमाइन (वेद-पुरान-कुरान-गीता आउ रमाइन, सन्त-फकीर-ओझा-डइया-डाइन, सब बसिआएल सब के अरथ-अनरथ जइसे कुरसी पर बैठल जनतंतर उटंग लगऽ हइ ।) (अमा॰43:1:1.9)
474 रमायन-पाठ (जमूरा: अरे कुछ खेल-उल देखयबऽ कि अइसहीं रमायन-पाठ करते जयबऽ ?) (अमा॰45:11:1.9)
475 रहजनी (= राहजनी; रास्ते में बलपूर्वक की गई लूट) (अखबार के पन्ना चोरी, डकैती, लूट, हत्या, रहजनी, अत्याचार आउ बलत्कार के समाचार से भरल रहऽ हे ।) (अमा॰48:5:1.14)
476 रहवर (जेतना ऐलखुन रहवर अब तक, सब दूध के धोवल हथुन तोहरे खुनवा के चूस-चूस तोहरे माथा पर चढ़ल हथुन ।) (अमा॰53:19:2.17)
477 राड़ी-बाँझी (उहाँ ओकर परवरिस के करत ? 'राड़ी-बाँझी' कह के सब ओकर जरल देह पर नोन छिड़कत ।) (अमा॰52:13:1.11-12)
478 राते-अधराते (फूँकऽ ही चुल्हा हम राते-अधराते, एक कोर मँड़गिलवा खैलूँ हल भाते, छूटे विरोग आउ अँखिया से झारी ! छूट गेल घर-दुआर, छूटल महतारी ।) (अमा॰51:18:2.15)
479 रूखड़ (= रूखड़ा) (छोटकन किसान के मिले वाला सरकारी सुविधा बड़कन किसान हड़प जा हथ । करमचारी आउ जनसेवक भी चिकने के चिकनावऽ हथ, रूखड़ के पूछवो न करऽ हथ ।) (अमा॰50:12:1.9)
480 रेंगन-चेंगन (= बाल-बच्चे) (गाँव के रेंगन-चेंगन {गाँव जीवन पर आधारित बाल-काव्य}) (अमा॰49:6:1.7)
481 रेशमी-पितम्बरी ( गुरुजी के अंगना में रेशमी-पितम्बरी हे, पेन्हे लागी छछने परान, गुरु उपदेश बतावऽ !) (अमा॰51:1:2.9)
482 रेसमा-चुहड़मल (लोक साहित्य में लोकनाट्यगीत 'बगुला-बगुली', 'जाट-जटिन' आउ 'सामा-चकेवा' पर थीसिस लिखा सकऽ हे । लोक गाथा में 'रेसमा चुहड़मल' आउ 'आल्हा-गीत' पर काम हो सकऽ हे ।) (अमा॰47:14:2.27)
483 रौ ('नरेश बाबू पगला गेलथिन का ?' कोई बोललक । धीरे-धीरे पूरा हॉल नरेस बाबू के उटपटांग प्रलाप पर फुसफुसाये लगल । ई सबसे बेपरवाह ऊ अप्पन रौ में बहित, ऊल जलूल बकइते रहलन ।) (अमा॰43:15:1.32)
484 लंगई-लुच्चई (देश दुनिया में बेहाली आउ अदमी के लंगई लुच्चई दरसावे वाला भावगीत के भी एकरा में स्थान मिल गेल हे ।) (अमा॰52:10:2.6-7)
485 लंगा (= नंगा, अत्यन्त दरिद्र) ('हम्मर घर तो पचढ़ा हे बाबू, इहे गउवां में चानो बाबू के घरे जाय ला हे' - कहइत बाढ़ो सिंह अप्पन डेग फानइते हलन कि अधवैस अदमी फिनो टुभक देलक - 'ऊ लंगवा के घरे काहे ला जा ह ? ओकरा का रोजी हे ?') (अमा॰52:11:2.1)
486 लउटना (कुच्छे दिन में लउट लाट के फिर घरहीं पर आ गेलन । डिगरी ई का करत हमर, मन ही मन ऊ खिसिअयलन ॥) (अमा॰48:17:1.17)
487 लघार (धार-पधार आउ ~) (बुझावन भाई आउ मधुकर जी जब पंचतंत्र आउ हितोपदेश के महिमा आझो स्वीकारऽ हथ तो लघुकथा के लम्बा धार-पधार आउ लघार के अन्दाजा होय के चाही ।) (अमा॰48:7:1.9)
488 लछनमान (= लक्षणमान्) (मगह महान लछनमान, न ई माटी कहीं ॥) (अमा॰43:18:2.17)
489 लटकन्त (छीः सार ! एहो भोयटवा {? भोपटवा} पुरस्कृत भेल ? हमरा साथे शुरूए से पढ़ल हल बाकि कभी एक तुरी में बढ़िया से पास न कैलक । जब भी पास कैलक तो सिन्हा साहेब के करणे से । आज भी अप्पन मन से लिखे त हरेके लाइन में एगो गलती आसानी से मिल जायत । ई पुरस्कार तो सिर्फ टी॰ए॰ झा के लटकन्त के परिणाम हे, बस !) (अमा॰52:2:2.27)
490 लटक-फटक (~ के) (जउन गाड़ी देखुँ ऊ अदमी से खचकल रहे । लदनी नियर अदमी लटकल । … लटक-फटक के राजगीर पहुँचलुँ । सउँसे शहर अदमी से खचकल हल ।) (अमा॰47:7:1.16)
491 लठा (= लट्ठा) (एही खाके आठ घड़ी हर जोतऽ ही, लठा चलावऽ ही, बोझा ढोवऽ ही औ खेत के अगोरी करऽ ही ।) (अमा॰47:9:2.9)
492 लड़िकई (बेचारी के बाप लड़िकइए में छोड़ के ई दुनिया से चल देलन हल ।) (अमा॰47:17:1.23)
493 लदनी (जउन गाड़ी देखुँ ऊ अदमी से खचकल रहे । लदनी नियर अदमी लटकल । बालकोनियो में तिल धरे के जगह नञ् । बोरा नियर एक के ऊपर दूसर अदमी कोंचिआल । बस कनहुँ न दिखाई पड़ल । बस के असरा बेकार हल ।) (अमा॰47:7:1.12)
494 लमछड़ (= लम्बा) (जुआनी के दुआरी से झांकइत एगो गोर नार लमछड़ छोकड़ी नर-कंकाल के झूठा कर रहल हल । तार के सूखल आँठी अइसन उभरल छाती के बीच से ओकर हड्डी आसानी से गिनल जा सकऽ हल ।) (अमा॰50:10:1.21)
495 लहकल (~ इंगोरा) (इंगोरा जइसन सीतिया के बूँद लगल, चुन-चुन के जब भी पियासल ठोर सजइली हम । काहे रूसलऽ चाँदनी तूँ छिपल ह बदरी में, तोहरे आस में तो ई जिनगी बितइली हम ।) (अमा॰44:16:2.7)
496 लाठा (= लट्ठा) (उनका खाली समय में गाय-भैंस चरावे पड़ऽ हल । जब-तब कुइयाँ से लाठा चला के खेत पटावे के भी नौबत आ जा हल । ई तकलीफ के चरचा ऊ एगो तुकबन्दी में कइलन हे - निरधन घर में जलम भेल, हाथ में मिलल बरहा । हुकुर-हुकुर जान करऽ हे, बिसूख गेलई करहा ॥) (अमा॰50:7:1.15)
497 लाते-मुक्के (कइसे तू मारित-मारित फाड़ दे ह कुरता, लाते-मुक्के मार के बना दे ह भुरता । जखनी तू कहऽ ह, तखनीये हम सुतऽ ही, सुनके तोर बोली अधरतिये उठऽ ही ।) (अमा॰46:5:1.8)
498 लील्हुआ (= लिल्हुआ, लुल्हुआ; कलाई; गट्टा; पहुँचा) (हम उनका खूब पहचानऽ ही जे भेष बना के घूमऽ हथ । टीका चन्नन खूब करऽ हथ, लील्हुआ पाप में वचोरऽ हथ ।) (अमा॰48:15:2.10)
499 लुगा-साड़ी (तोरा नेहएला पर लुगा-साड़ी फींचऽ ही, देहिया में तेल लगा अँगुरी भी घींचऽ ही । लोग कहीं जा हथ देखावऽ हथ पतरा, हमरा तो तोरे देख के बन जाहे जतरा ।) (अमा॰46:5:1.15)
500 लुड़ेठना (= लुरेठना) (दरवाजा के बगल में खड़ा बन्दूकधारी जबरदस्ती ओकर हाथ में लुड़ेठल सौ के कुछ नोट धरा के घर के पिछुत्ती पहुँचा देलक ।; देरी तक बन्द मुट्ठी के खोल के फटल आँख से लुड़ेठल नोट के धेयान से देखइत रहलक ।) (अमा॰53:8:2.3, 10)
501 लुलुआना (सभा समाज में बोलहूँ न आवऽ हे । कहीं कुछ बोलऽ ही त सब लुलुआवऽ हे ॥; परिवार में सब कोई कलवा के दुरदुरावऽ आउ लुलुआवऽ हे, मुदा काल तो बोलावे से नयँ आवऽ हे, बेमारी से भी ओकर सीधा सम्पर्क नञ हे । एतने नञ, लमहर रोगी हाली नञ मरऽ हे ।) (अमा॰43:2:2.9; 52:14:2.2)
502 लुसफुसिआना (मन ~) (आँख मटका-मटका के थियेटर के छउँड़ी गँहकी के ललचयले हल । परदा पर फोटू देख के नौटंकी देखे ला मन लुसफुसिआए लगल, बाकि टिकट के दाम पैंतालिस रुपइया सुन के हरिआयल पौधा मुरझा गेल ।) (अमा॰47:7:2.8)
503 लूरगर (= लुरगर; बुद्धिमान) (कोई गाँव में एगो लूरगर हल । ओकरा एतना लूर हो गेल हल कि लूरे से पेट भरल रहऽ हल ।) (अमा॰46:12:1.1)
504 लूरगरहा (लूरगरहा कहे कि ए मइया ! हमरा एतना लूर हो गेलउ हे, एतना लूर हो गेलउ हे कि लूरे से पेट भरल रहऽ हउ, एहि से तनिको भूखे न लगउ ।) (अमा॰46:12:1.6)
505 लेंढ़ा (देखइत अइली हे हम ई ओरे से, बुझलो आग सुलगे हे खोरे से । आम आ अनार के फेरा में पड़ऽ मत, तिरपित मन होवे हे लेंढ़ा के भँभोरे से ॥) (अमा॰54:14:2.4)
506 लेवताहर (= लेताहर) (आठ-दस दिन बीत गेला के बाद लड़की के लेवताहर लोग आ धमकलन । अब बिदाई करे के अलावा चारा ही का हल ?) (अमा॰54:17:1.25)
507 लोछियाना (= चुभाना, चुभाकर पीड़ित करना; मर्माहत करना) (लेखक गम्भीर से गम्भीर बात ई ढंग से कह देलन हे जेकरा में विषय प्रतिपादन तो होवे कैलक हे, हास्य-विनोद मन के गुदगुदइलक भी हे आउ व्यंग्य लोछिया देलक हे ।) (अमा॰50:13:1.14)
508 वचोरना (हम उनका खूब पहचानऽ ही जे भेष बना के घूमऽ हथ । टीका चन्नन खूब करऽ हथ, लील्हुआ पाप में वचोरऽ हथ ।) (अमा॰48:15:2.10)
509 वजूद (= विद्यमानता, मौजूदगी, अस्तित्व) (कोइयो राजनैतिक वजूद नै रहला के बावजूद राधाकृष्णन के अप्पन शख्सियत, सोभाव आउ अप्पन भितरी गुण ही उनका शिक्षक से रूस में भारत के राजदूत बना देलन ।) (अमा॰51:6:1.27)
510 वरनित (= वर्णित) (उपन्यास में वरनित घटना आउ व्यापार के आसरय पात्र होवऽ हथ ।) (अमा॰50:10:1.1)
511 विसमातल (सास जे आवथिन गावइत, ननद बजावइत हे । ए ललना आवऽ हथिन विसमातल गोतिनिया, नोतिनी घर में सोहर हे ।) (अमा॰43:7:2.12)
512 विस्लेसन (= विश्लेषण) (पात्रन के चरित्र-चित्रन में संसारिक अनुभव आउ मानवीय परकिरति के विस्लेसन बहुत जरूरी होवऽ हे ।) (अमा॰50:10:1.15)
513 व्यवहारिक (व्यवहारिक रूप से आनन्द के ही रस कहल जाहे ।) (अमा॰43:7:1.3)
514 सँझउती (= संझउती) ('बेस' कहइत बाढ़ो सिंह बहरा गेलन । झोल-फोल हो गेल हल । हँकरइत-डकरइत लेरू गाय आउ धुर धौगल-धौगल अप्पन-अप्पन बथान बहोरइत हल, धूरी आउ गरदा से राह आउ असमान एक हो गेल, कहँय टुन-टुन घंटी बजावइत गेल सँझउती बारइत हथ, कहँय लोग आग जोरइत हथ ।) (अमा॰52:11:1.20)
515 संघाती (= संघत) (एकर कोई न अप्पन हे, न बाप न मइया, न बहिन न भइया, न जोरू न जाँता, न कउनो से नाता, हमनिये ही एकर संघाती ।) (अमा॰52:15:1.21)
516 संसकिरति (= संस्कृति) (ईमान-धरम आउ लोकनीति के साथ-साथ ऊ नेयाव के पछधर हथ । एतने नऽ, समाज आउ संसकिरति के विकास लेल ऊ तन मन धन से तत्पर रहऽ हथ ।) (अमा॰50:11:1.22)
517 संसारिक (= सांसारिक) (पात्रन के चरित्र-चित्रन में संसारिक अनुभव आउ मानवीय परकिरति के विस्लेसन बहुत जरूरी होवऽ हे ।) (अमा॰50:10:1.14)
518 सकपकाना (' ... हरेक लड़की के बाप गरीब होवऽ हे । जे दोसरा के सतावऽ हे ओकरा भगवान सतावऽ हथ ।' - 'चल हट ! बड़ फुटानी छाँट रहले हें' - बड़ भाय के अवाज सुनके रजुआ सकपका गेल ।) (अमा॰52:12:1.20)
519 सचबयानी ('बाल मजूर के मुक्ति' {शिव प्रसाद लोहानी} में मुकक्ति के खोखलापन आउ पाखंडी मानसिकता के चित्र हे तो 'भाखन के भूख' {डा॰ राम प्रसाद सिंह} में एगो नेता के दोहरा चरित्र के सचबयानी तो लगभग असंभवे हे नेता लोग में, बाकि एहिजा सचबयानी के एगो झलको हे जरूर । नीतिशास्त्र में राजनीति के वेश्या कहल गेल हे जेकर 'हँ' के अर्थ होयत 'न' आउ 'न' के अर्थ होयत 'हँ' ।) (अमा॰48:8:1.25)
520 सतघरवा (बराबर पहाड़ी के नीचे दक्खिन आउ पूरब के कोण पर सतघरवा नाम के गुफा हे जे पुरातात्त्विक विचार से महत्त्वपूर्ण मानल जाहे । प्रसिद्ध लोमश ऋषि के गुफा भी यहीं पर हे । सतघरवा के पूरा घेरा ५०० फीट लम्बा, १२० फीट चौड़ा आउ ३५ फीट ऊँचा हे ।; एकर निर्माण सम्राट् अशोक २५७ ई॰ पू॰ में अप्पन राज्य के बारहवाँ बरस में संत महात्मा के ठहरे ला करैलन हल । एही कारण हे कि एकरा 'संत घर' कहल जाहे । आजकल अपभ्रंश के रूप में लोग एकरा सतघरवा कहऽ हथ ।) (अमा॰54:13:2.11, 13, 22)
521 सबूरी (साथी, कहाँ गेल ऊ गाँव ? जहाँ जमऽ हल बाघा गोटी, अमरइया के छाँव !! ... सरधा आउ सबूरी में, मुसका हल सकल गिराँव !!) (अमा॰48:1:1.12)
522 समदना ('तनि हम एक ठमा जाइत ही । देखऽ कलवा अब जुआन ... ।' बाढ़ो सिंह के भक्का सुनइते मैनी समदे लगल - 'घर-वर बेस रहे के चाही । दू पइसा ऊँचे में सौदा पटे त कोय हरज नञ हे ।') (अमा॰52:11:1.13)
523 समरथक (= समर्थक) (पुरुष पात्र में सबसे पहिले गोपाल दूबे से भेंट होबऽ हे । ऊ मनुवादी हिन्दू समाज-बेवस्था के पक्का समरथक हथ ।) (अमा॰50:11:1.6)
524 समाँग (= समांग) (लोहा के बनल कल-पुरजा जब घिस-पिट जाहे त आदमी के का ठिकाना रहत ! देह के समाँग गलइते देर नञ लगऽ हे ।; जब तक समाँग चलइत हे कमासुत अदमी पर केकरो दाल नञ गलऽ हे, मुदा समाँग थकइते सब नजर फेर ले हथ ।) (अमा॰52:13:2.29, 14:2.11, 12)
525 समाना (= घुसना) (समान उतारे ला कुली के बोलइली । डिब्बा में कुली के समाय से पहिले हम्मर दिमाग में ई बात समा के घुड़मुड़ाय लगल ।) (अमा॰54:9:2.22)
526 समुआना (= शामियाना) (पहुँचते ही हमनी के सेवा-सत्कार होल, समुआना में नस्ता आउ शरबत के गोहाल होल ।) (अमा॰45:17:1.21)
527 सम्परक (= सम्पर्क) (टुअर अनाथ भोला हाई इस्कूल के भंसा में काम तो करबे करऽ हे, ऊ किसान सुरच्छा मंच के अध्यक्ष के सम्परक में भी आ गेल हे ।) (अमा॰50:12:1.21)
528 सरग (= स्वर्ग) (एगो नौजवान गोल घेरा में मोटर साइकिल हरहरयले हल । लोग कहलन कि ओकर कई गो भाई एही काम करे में सरग सिधार गेल । अब खाली एही जिन्दा बचित हल । भूख आउ रोटी जे न करावे ।) (अमा॰47:7:2.4)
529 सरदारिन ('धूमैल धोती' में सबसे पहिले जउन पात्र के दरसन होवऽ हे ऊ 'विमली' हे । ई हरिजन टोली के सरदारिन दुलरिया के बेटी हे ।) (अमा॰50:10:1.19)
530 सरसती (= सरस्वती) (अमा॰45:7:1.18)
531 सरेजाम (कलवा हाथ में चानी के कंगन आउ बग-बग उज्जर साड़ी पेन्हले हे । कलवा ले एगो अलगे भीतर में रहे के सरेजाम पूरा कैल गेल ।) (अमा॰52:13:2.2)
532 सवाद-उवाद (ए भूख ! हम सवाद-उवाद नईं जानऽ हियो, भोंदू भेद न जाने कोई, खाली पेट भरे से काम ।) (अमा॰47:9:1.30)
533 ससतरारथ (= शास्त्रार्थ) (महाभारत में एगो बूढ़ी के जिकिर आल हे जे अष्टावक्र से ससतरारथ कइलक हल ।) (अमा॰45:8:1.8)
534 सहिए साँझ (हम कार लेके डराइवर के भेज देवो । तोहनी सब सहिए साँझ तैयार हो जइहँ ।) (अमा॰44:9:1.24)
535 सहुआइन (गंगा पार ओली बोलल - 'नइहरे में भतार रखले होतइ !' 'तिरिया-चरित्र देवो न जाने !' - सहुआइन भुनकल ।) (अमा॰54:17:1.13)
536 सान-सौकत (सुधाकर सिंह पंचायत के मुखिया हथ । ऊ बड़गो किसान भी हथ । सान-सौकत से जिनगी जिए में ऊ हर तरह के हथकण्डा अपनावऽ हथ । ऊ हिटलरी अन्दाज में हुकूमत चला के गाँव के दलित बहुजन पर अप्पन रोब गाँठऽ हथ ।) (अमा॰50:11:2.4)
537 सामा-चकेवा (लोक साहित्य में लोकनाट्यगीत 'बगुला-बगुली', 'जाट-जटिन' आउ 'सामा-चकेवा' पर थीसिस लिखा सकऽ हे । लोक गाथा में 'रेसमा चुहड़मल' आउ 'आल्हा-गीत' पर काम हो सकऽ हे ।) (अमा॰47:14:2.26)
538 सास्तर (= शास्त्र) (सास्तर में लिखल हे कि देवी-देवता भेस बदले में माहिर होवऽ हथ ।) (अमा॰47:7:2.12)
539 सिखउनी (महात्मा बुद्ध, गाँधी जइसन देश के बड़हन लोग पर रचल इनकर कइएक रचना ई संग्रह में हे । उपदेश आउ सिखउनी वाला गीत भी ई में जगह पा सकल हे ।) (अमा॰52:10:1.10)
540 सिफत (= विशेषता, गुण, लक्षण) (सबसे सिफत के बात तो ई हे कि जे भाव से ई रचना कइलन हे - ऊ भाव पढ़निहार के पास पहुँचे में तनिक्को न दिक्कत करऽ हे । खाँटी मगही शब्दन के बेवहार इनकर कविता के निखालिस रूप देवे के समरथ दरसावे हे ।) (अमा॰52:10:2.18)
541 सिमाना (गाँव के गली आउ बाध दने धुआँ लौकइत हे, तखने बाढ़ो सिंह इटहरी गाँव के सिमाना में गोड़ रखलन ।; गाँव के सिमाना में हेलइते ऊ भोंकार पार के रोवे लगल ।) (अमा॰52:11:1.21, 13.19)
542 सिरन्टी (~ चाउर) (कुछ देर ठहरबऽ तो आज सिरन्टी चाउर के मोट मोट लाल भात, ओकरे माँड़ में गुड़ल लाल मिचाई के बुकनी, नून मिलल दाल नीयर चीज मिलतो ।) (अमा॰47:9:3.19)
543 सिहकल (एतनो पर बात बिगड़ जाहे तब क्रोध उनकर आँकऽ ही । सिहकल-सिहकल घर में जाही खिड़की से बाहर झाँकऽ ही ।) (अमा॰46:5:2.27)
544 सीयल (चींथल-चिरायल दरकल दिल सबके जानल तू हाल, उघरल सीयल गुदरी दशईं दिल प्रेमी बन पेवन लगा दे ।) (अमा॰49:7:2.14)
545 सीवान (= सीमाना) (गाँव के सीवान के बर के पेड़ जड़ में दीमक लग गेला से भीतर से खोंखड़ हो गेल हल, बाकि जोम आउ शान से जीयऽ हल ।) (अमा॰49:14:1.1)
546 सुआगत (= स्वागत) (हमरा तोर सुआगत में कहे ला एही हे कि आज सब कोई अपना के देखे सोचे कि ऊ कहाँ तक सही हे ।) (अमा॰43:5:2.25)
547 सुझरना (जे रचनाकार एकरा में बिना अझुरयले निकल जाए आउ अप्पन सोझ आउ सुझरल संवेदना भरल संवेदना झाड़ के पाठक के हिरदा खँखोर दे, झोर दे, ऊहे सफल कलाकार हे ।) (अमा॰48:8:1.15)
548 सुथरई (= सौन्दर्य) (रजकण जी के मन खास करके सुथरई पर जादे रमऽ हे, चाहे ऊ सुथरई परकिरतीया हो, चाहे मानवी ।) (अमा॰50:16:1.6, 7, 9)
549 सुरुज-चान (फिन भी मन में आसा आउ बिसवास पलऽ हइ, पूरब-पच्छिम जइसे सुरु-चान चलऽ हइ, तन-मन होतइ कंचन, कदाचार के होतइ भंजन । फुटतइ न जब तक पाप के घइला तब तक ही अछरंग लगऽ हइ ।) (अमा॰43:1:1.14)
550 सूध (= सूद, ब्याज) (बाबाजी के लइका ऊ दिन से बइसाखी के सहारे चले लगल आउ ओकर उत्तराधिकारी एक करोड़ रुपइया के सूध से बिना मेहनत कयले खाय-पीये लगल ।) (अमा॰49:8:2.26)
551 सेखटोली (मस्जिद के बगल में महादे जी के चबूतरा बने से सेखटोली के कुछ मुसलमान के भारी आपत्ति होवऽ हे ।) (अमा॰44:12:1.4)
552 सोंधा (= सोन्हा) (ताजा-सोंधा सतुआ) (अमा॰47:6:1.4)
553 सोवारथ (= स्वार्थ) (किसुन समाज में एतना दबल-कुचलल गेल हे कि ओकरा ई बुझा हे कि भगवान भी जागरुक समाज के उपज हथ जेकरा अप्पन सोवारथ सिद्ध करे ला गढ़ल गेल हे ।) (अमा॰50:12:1.3)
554 सोवारथी (= स्वार्थी) (जनेसर यादव गाँव के दबंग आदमी हथ । कौमनिस्ट होके भी ऊ सोवारथी आउ नियतखाम हथ ।) (अमा॰50:11:2.28)
555 सोसन (= शोषण) (कमली एगो अइसन नारी पात्र हे जे समाजिक सोसन आउ अत्याचार के धुआँ में धुआँइत रहऽ हे, मुदा ओकर परतिरोध न कर पावऽ हे ।; इनकर चरित्र के द्वारा उपन्यासकार सामन्तवादी सोसन आउ बदनियती के दुस्परिनाम देखैलन हे ।) (अमा॰50:10:2.20, 11; 2.12)
556 स्वास्थ (= स्वास्थ्य) (कुछ दिन तलक कलवा के स्वास्थ ले सब फिकिर करऽ हलन मुदा अब ओकर ढलइत उमिर आउ बेमारी देख के सब मुँह मोड़ लेलन ।) (अमा॰52:14:1.14)
557 हड्ढा-बिढ़नी (सास्तर में लिखल हे कि देवी-देवता भेस बदले में माहिर होवऽ हथ । अब हमरा समझे में देर न लगल । जरूर ई हड्ढा-बिढ़नी बन के मिठाई के रस ले रहलन हे ।) (अमा॰47:7:2.14)
558 हथजोड़ी (मनमाफिक दहेज मिले पर भी लड़का के बाप के केत्ते बार गोड़धरिया आउ हथजोड़ी करे पड़ऽ हे ।) (अमा॰50:9:2.17)
559 हथियाबोर (ई पहाड़ी आउ ओकरा पर बनल सिद्धनाथ मन्दिर पुराना पटना-गया रेलखण्ड के मखदुमपुर आउ बेला के बीच से पूरब दिशा में लगभग 4 माइल के दूरी पर हे । उहाँ हथियाबोर बावनसीढ़ी आउ पतालगंगा के रस्ता से लोग ऊपर जा हथ ।) (अमा॰54:13:2.3)
560 हरहराना (एगो नौजवान गोल घेरा में मोटर साइकिल हरहरयले हल ।) (अमा॰47:7:2.2)
561 हराई (भोरहीं डुगडुग्गी पिटा गेल कि आज जमीन्दार के खेत में 'हराई' जोताएत । महतो के मन चिड़चिड़ा गेल । मने-मन चार गो घिनायल गारी देलन । ई कहाँ के नेयाव हे कि पहिला पानी पड़ला पर जमीन्दार के खेत में एक दिन बिना मजदूरी के हर जोते पड़त ।; जमीन्दार सोचलन कि बात तो ई ठीके कहइत हे बाकि आज एगो ई 'हराई' न देत, त देखा-देखी बिहान दोसर किसान भी कोई न कोई बहाना बनैतन ।; अजादी के पहिले के ई घटना के पात्र लोग आज जीवित न हथ, तइयो 'हराई' से मुक्ति दिलावेवला भुखलू महतो के नाम आजो ले हथ लोग ।) (अमा॰49:13:1.8, 2.7, 22)
562 हरिजन-गिरिजन (भारतीय दंड संहिता में भी सुधार के परस्ताव हमरा पास आयल हे । हम देखम कि हरिजन-गिरिजन आउ अल्पसंख्यक के नाम पर जे भी औरत कउनो कारनवस अब तक लाभ न उठा सकलन, उनका विकास करे के पूरा मौका मिले ।) (अमा॰45:14:2.2)
563 हल्फा (= तरंग, लहर) (उपन्यास के कथा के विकास में कुछ सहायक आउ प्रासंगिक कथा भी हे जे नदी के धारा में हल्फा अइसन उठऽ हे आउ मुख्य कथा के कगार से टकरइते रहऽ हे ।) (अमा॰44:11:2.19; 50:13:2.11)
564 हहास (रह-रह बिजुरिया में चमकल इंजोरिया चूए मड़इया हहास, सोनमा परनमा के कन्ने ले जाउँ जब फूटलो कउड़िया न पास ।) (अमा॰52:9:1.22)
565 हाँक-डाँक (मुदा हम उनकर बीतल जिनगी में खो गेलूँ - बड़ी हाँक-डाँक वला रेलवे टी॰सी॰ गेट पर खड़ा हे । केकर मजाल कि बिना टिकस देखयले गेट से बाहर निकस जात । बिना टिकस जात्री के रुपइया नञ रहला पर घड़ी भी खोलवा ले हलन जोगी बाबू । अनपढ़ गँवार गरीब-गुरवा से टिकस रहते अउरतानी टिकस बता के रुपइया ऐंठ ले हलथिन जोगी बाबू !) (अमा॰43:11:2.18)
566 हिटलरी (सुधाकर सिंह पंचायत के मुखिया हथ । ऊ बड़गो किसान भी हथ । सान-सौकत से जिनगी जिए में ऊ हर तरह के हथकण्डा अपनावऽ हथ । ऊ हिटलरी अन्दाज में हुकूमत चला के गाँव के दलित बहुजन पर अप्पन रोब गाँठऽ हथ ।) (अमा॰50:11:2.5)
567 हियाव (= साहस, हौसला) (कउनो नौजवान विमली के देह छूए के हियाव न कइलक हल ।) (अमा॰50:10:2.5)
568 हुँरकुच्चा (कलवा के ई समय में कुतवो से भी बदतर जिनगी काटे पड़इत हे । तकलीफ, अपमान आउ हुँरकुच्चा के बरदास करइत-करइत ऊ घुटन के जिनगी पार करइत हे ।) (अमा॰52:14:2.6)
569 हेट (= हेठ) (जब कंडक्टर सोलह रुपइया के बदले में भाड़ा बाइस रुपइया मांगलक त मिजाज हेट हो गेल ।) (अमा॰47:7:1.10)
570 हेहरी (= हेहर का स्त्री॰, उच्छृंखल, अनुशासनहीन) (कनियाँ-कनियाँ रटित रहली, नहियें सास समझलऽ तू । जहिया घर में लात धयलऽ, तहिये उधम मचयलऽ तू । हेहरी बन के घरे-घरे दिन भर दउड़ल चललऽ तू ।) (अमा॰48:14:1.5)
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