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Wednesday, August 17, 2011

30. मगही शब्दचित्र "माटी के सिंगार" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

माकेसिं॰ = "माटी के सिंगार", लेखक - रामदास आर्य; प्रकाशकः श्यामसुन्दरी साहित्य-कला धाम, बेनीबिगहा, बिक्रम (पटना); पहिला संस्करण - 2002; मूल्य - 75 रुपये; 109+3 पृष्ठ ।

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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 1215

ई शब्दचित्र संग्रह में कुल 11 लेख हइ ।

क्रम सं॰
विषय-सूची 
पृष्ठ
0.
ई सिंगार पर एक नजर
iv-v
0.
'माटी के सिंगार' के बारे में
vi-ix
0.
अप्पन बात
x-xii



1.
नवरतनी फुआ
15-22
2.
तेतरी दीदी
23-29
3.
चानमामू
30-37



4.
बड़ाबाबू
38-46
5.
रामजतन चाचा
47-54
6.
चमोकन
55-62



7.
चनकी दाई
63-70
8.
धनेसर तांती
71-81
9.
भूलेटन
82-91



10.
रजिया अम्मा
92-99
11.
दद्दू भइया
100-109
ठेठ मगही शब्द  ('' से '' तक):

1    अँकवारी (कोई तेतरी दीदी के गोड़ छुअइत हे, कोई अँकवारी में समाइत हे, कोई ओकर लोर पोंछ रहल हे ।; खेते-खेते मलिकार बनिहार के अँचार पत्ता पर देइत जयतन आउ कटनिहार उनका दू मुट्ठी, चार मुट्ठी, एक अँकवारी, दू अँकवारी धान देइत जयतन । कटनिहार के मुँह में पानी भूलेटन के अँकवारी में ।)    (माकेसिं॰27.11; 82.18, 20)
2    अँखमुनौवल (सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी - दउड़ के पेड़ के फुतलुंगी पर चढ़े में, चिक्का-कबड्डी में दउड़े में फरहर, अँखमुनौवल में दउड़ के छुए में, डोल-पत्ता में डंडा फेंके में आ लावे में सेसर, बाघ-बकरी में सबके मात कर देवे, सबके कान काट लेवे ।)    (माकेसिं॰26.4)
3    अँचार (भूलेटन के अँचार आउ अमरूध उनकर जीविका के साधन हे ।; धान के कटनी शुरू भेल, भूलेटन अँचार आउ अमरूध लेके घूमे लगतन खेते-खेते । भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।)    (माकेसिं॰82.7, 11, 12, 13, 14, 15, 16)
4    अँवरा (भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।)    (माकेसिं॰82.14)
5    अंगुरी (तेतरी दीदी सीटी बजावे में गुनागर । मुँह से, अंगुरी से, पेड़ के पत्ता से, फोंफी से, आम के अमोला से, मकई-जिनोरा के पत्ता से तरह-तरह के बाजा, तरह-तरह के आवाज, रंग-बिरंग के गीत ।)    (माकेसिं॰26.10)
6    अइपन (= ऐपन; चावल का आटा और हल्दी का घोल जो यज्ञ, पूजा, उत्सव आदि के अवसर पर यज्ञ की वेदी, दीवार आदि पर छिड़कने और चिह्नित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है) (केकरो घरे मँड़वा गड़ा रहल हे । गाड़े ला बाँस, बान्हे ला मूंज के रस्सी, छावे ला झलासी, बाँह पूजे ला अइपन, सब सरजाम जुटल । गाँव घर के बाबा-भइया, दादी-चाची पहुँचल हथ बाकि नवरतनी फुआ के असरा जोहा रहल हे, सबके नजर डघ्घर पर । एतने में नवरतनी फुआ टुघुरइत टुघुरइत आ गेल ।)    (माकेसिं॰17.22)
7    अगराना (जउन घड़ी नवरतनी फुआ ससुरार में गोड़ धयलक हल, ओकर चढ़इत जवानी देख के सब कोई अगरा जा हल ।)    (माकेसिं॰20.32)
8    अगाते (उनका ला स्वतंत्रता दिवस आ गणतंत्र दिवस सबसे महान परब । दस दिन अगाते लइकन सबके लेके गली-कुची के गन्दगी साफ करवतन ।)    (माकेसिं॰35.4)
9    अगुअई (बलेसर तनि सोंचे लगलन - इयाद पड़ल । "चनेसर भाई, हम समझ गेली । भगवान चाम के मुँह बना देलन हे, लरखरा ही जाहे । चनेसर रोय ला लेखा मुँह बनाके कहलन - "कहूँ उहों लरबरयलऽ तब सोरहो आना पानी में । छोड़ऽ जे भाग्य में लिखल होतई तो बिआह होयबे करतई । तू अगुअई मत करऽ ।")    (माकेसिं॰59.8)
10    अच्छइत (= अछइत, छइते) (आखिर ओहे जगा हीरामन, करीमन, बंसरोपन, रामखेलावन बाबू के खेत-खरिहान में कउन बेमारी समा गेल हे कि चनकी दाई से जादे खेत के जोतदार अच्छइत सालो भर के खाना-बुतात चलाना पहाड़ बनल रहित हे ।)    (माकेसिं॰64.25)
11    अच्छत-भभूत (डाक्टर-बइद के देखावइत-देखावइत रुपइया के झिटकी बना देलन । ओझा-गुनी के अच्छत-भभूत खाइत-खाइत सब दाँत झर गेल ।)    (माकेसिं॰57.25)
12    अछइत (= छइते) (कोठा पर हमरा ले जाके देखावे लगलन आ कहे लगलन, कहाँ से दुश्मन चढ़ाई कर सकऽ हे आ हम कइसे ओकर थोथुना चूर-चूर कर देम जइसे बिखधर के मुँह अइसन चूर-चूर के खतम कर देल जाहे कि ऊ परान अछइत काट न सकत ।)    (माकेसिं॰47.13)
13    अछरंग (~ लगाना) (जवानी से आझ ले कतना अछरंग ओकरा ऊपर लगावल गेल बाकि चनकी दाई बाढ़ में टील्हा लेखा, आन्ही-तूफान में बाँस लेखा जस के तस बनल रहल ।)    (माकेसिं॰65.22)
14    अछोधार (~ लोर बहाना) (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।)    (माकेसिं॰28.4)
15    अजीज (= आजिज) (एही सोच के ऊ तेतरी के पढ़ावे ला स्कूल में नाँव लिखौवलन बाकि तेतरी ला स्कूल पंछी के पिंजरा जइसन ! ई फुदकेओला, कुदकेओला, चहकेओला, स्कूल में मन कहाँ से लगो, कौपी सिलेट कुईंया-तालाब में डाल देवे । खाली हाथ घर लवट के रोवे लगे, भुला गेल, कउन तो चोरा लेल । चनवा अजीज हो गेल, हाथ-पाँव फेंकल छोड़ देल । बिसेसर के मन के बात मने में रह गेल ।)    (माकेसिं॰25.15)
16    अड़ोस-पड़ोस (ई लोग घाट पर पहुँचे ला सोचइते हथ कि तेतरी दीदी घरे । माय चनवा देबी चिर चिर के मारे लगल । अड़ोस-पड़ोस धरहरिया ।; सबके मन अनुरागल, गाँव-घर, अड़ोस-पड़ोस सबके बेटी - तेतरी बेटी, दुलारी बेटी ।)    (माकेसिं॰24.10, 18)
17    अण्डा-मुरगी (ई जादे बात करतन एन्ने-ओन्ने के - स्टेशन पर कटहर कउन भाव बिका रहल हे, ... कउन साग-सब्जी कइसे बिक रहल हे, मांस-मछरी, अण्डा-मुरगी के भाव कतना तेज चल रहल हे ।)    (माकेसिं॰40.28)
18    अतना (ऊ पान अतना खा हथ कि मुँह खोलला पर रेल के इंजिन में जइसे कोइला लाल दहकइत रहऽ हे, ठीक ओइसहीं इनकर मुँह ।; रजिया अम्मा अतना थक गेल हे कि खाट पकड़ लेल । कंठ से अवाज न निकले । जे कहत से हाथ से समुझा के इया सिलेट-कागज पर लिख के ।)    (माकेसिं॰38.14; 97.4)
19    अतमा (= आत्मा) (जेठ के तपिश, बालू के भुंभुरी, आग के लफार, भट्ठा के लहक, रेल इंजिन के दहक का होवऽ हे - चनकी दाई के अतमा से जानल जा सकऽ हे - ओकर हिरदा में छिपल लोर, दिमाग में भरल बिछोह, बादर के भीतर छिपल ठनक, कड़क, गड़गड़ाहट आ बिजुरी के चउँध से जानल जा सकऽ हे ।)    (माकेसिं॰67.21)
20    अत्ती-पत्ती (तेतरी दीदी कहुँ न कहुँ से छकुनी लेले, रस्सी लेले पहुँच जायत आ जमे लगत लइकन के खेल - कभी डोल-पत्ता, कभी चिक्का-कबड्डी, कभी सेलचू, कभी ओका-बोका-तीन-तड़ोका, कनघीच्चो, बाघ-बकरी, अत्ती-पत्ती । सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी ।)    (माकेसिं॰26.2)
21    अदमी (परिवर्तन के जमाना हे, सब कुछ तरक्की कर रहल हे । मरदाना माय बन रहल हे, कम्पूटर मखाना उपजा रहल हे । विज्ञान के जुग में सब कुछ परिवर्तन - भेंड़ अदमी आ अदमी भेंड़ ।; अहंकार अदमी के सबसे बड़ा दुश्मन ।)    (माकेसिं॰17.15; 50.32)
22    अदहन (भीष्म पितामह तो छव महीना बेधल तीर पर जिअइत रहलन बाकि चनकी दाई पूरे नब्बे बरिस हँड़िया के अदहन लेखा खउलइत रहल, आँवा के आग लेखा दहकइत रहल बाकि बरइत रहल सुरूज लेखा, चमकइत रहल चान लेखा, झहरइत रहल झरना लेखा, चहचहाइत रहल पंछी लेखा, सावन-भादो लेखा झमरइत रहल ।)    (माकेसिं॰67.16)
23    अदौरी (= बेसन या उड़द के आटे की छोटी बरी) (नेनुआ आ झिंगुनी, सहिजन आ अदौरी ओकरा ला सोना के भण्डार । सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।)    (माकेसिं॰20.6)
24    अधकपारी (कोई कहे देवी मइया देह धयले हथीन - कोई कहे चनकी दाई बायमत पूजऽ हथीन - कोई कहे देह पर मियाँ-बीबी आवऽ हथीन । कोई कहे डाइन कोई पिचासिन । कोई कहे मन के सहकबउरी हे - कोई कहे अधकपारी हो गेलथीन हे - कोई कहे चनकी दाई सनकी हो गेलथीन ।)    (माकेसिं॰63.19)
25    अनकट्ठल (मुँह के बकार तो तू बुझवे करऽ हऽ । अनकट्ठल बात हमरा न सोहाय । तू पिस्तौल छोड़लऽ तब हम बनूक, तू पड़ाका छोड़लऽ त हम बम । तू एक बर, हम चार बर  ।)    (माकेसिं॰49.17)
26    अनमन (= बिलकुल) (चमोकन माय-बाप के एकलौता बेटा हथ । उनकर असली नाम चनेसर हल । चनेसर के रूप-रंग, चाल-ढाल अनमन चमोकने लेखा । उनकर रंग ईंटा लेखा लाल, चुक्का लेखा मुँह, बनबादुर लेखा आँख ।; हम्मर भइया के न देखलऽ भूलेटन के देखलऽ । अनमन ओइसने गोलभंटा लेखा मुँह, नरिअर के गुदा लेखा उज्जर-उज्जर आँख, महुआ के कोइन लेखा नाक, आम के फाँख लेखा पात्र-पात्र ओठ, अनार के दाना लेखा दाँत, टमाटर लेखा गाल - गाल आउ मुँह दून्नो लाल लाल - हमेशा पान खाये के आदत - हँसतन तब लगत पन्नी लगावल बौल बरइत हे ।)    (माकेसिं॰55.2; 82.1)
27    अनमुहान (होत अनमुहान धनेसर साहेब के डेरा पर । ओन्ने मुरगा बाँग देत एन्ने धनेसर घर के सिकरी बजावे लगत । लइकन सबके उठावत, आँख पर पानी के छिंटा देत आ पढ़े ला महटगिरी करे लगत ।)    (माकेसिं॰74.9)
28    अनेर (घना बगइचा, आम, महुआ, लीची, अमरूध के पेड़ । बगइचा के बीच में एगो झोपड़ी, झोपड़ी के चारो तरफ गुलमोहर आ सिमर के फूल सउँसे बगइचा के धधकइत आग लेखा उगइत सुरूज के छितिज लेखा अनेर कयले ।)    (माकेसिं॰15.7)
29    अन्हरिया (इहे बीच में तेतरी दीदी भर झोरी जामुन लेले, कुछ मुँह में, कुछ हाथ में, जीभ चटकारइत मल्लाह लोग के सामने भूत लेखा आके ठार हो गेल । केकरो बिसवासे न हो रहल हे कि तेतरी दीदी हे, कहाँ से कइसे उपट गेल । ... तेतरी दीदी सब के हाथ में जामुन देल । सब लोग के अन्हरिया इंजोरिया में बदल गेल ।; लइकन जब सुनथ कि तेतरी दीदी अब चल जायत, सब के आँख तर अन्हार छा जाय । इंजोरिया अन्हरिया में बदल जाय ।)    (माकेसिं॰24.1; 26.25)
30    अन्हार (= अन्धकार) (सब के परान सकदम । नाक से पसेना चूए लगल । आँख तर अन्हार । कहुँ तेतरी दीदी के थाह-पता न ।; लइकन जब सुनथ कि तेतरी दीदी अब चल जायत, सब के आँख तर अन्हार छा जाय । इंजोरिया अन्हरिया में बदल जाय ।)    (माकेसिं॰23.9; 26.25)
31    अन्हार-भुच (जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत । खिजाब लगा के उज्जर माथ के बाल करिया कयल अब लउकत - चारो तरफ अन्हार-भुच, अन्हरिया, कुच-कुच करिया दिनो में रात के तरेगने सूझ रहल हे ।)    (माकेसिं॰41.24)
32    अफराद (~ धन-दउलत) (हम जिन्दा ही तब अप्पन सवांग के चलते, बाल-बच्चा, बेटा-बेटी, पोता-पोती, नाती-नतिनी के चलते । सब पढ़ल-लिखल, गुनगर, अफराद, धन-दउलत - केकर मजाल हे जे हमरा आँख देखा देत ।)    (माकेसिं॰70.5)
33    अबाद (= आबाद) (नवरतनी फुआ के हाथ में एगो जस हे, गोरैया बाबा के असीरबाद मिलल हे ओकरा । जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।)    (माकेसिं॰18.11)
34    अमड़ा (भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।)    (माकेसिं॰82.13)
35    अमनख (हित-नाता लेखा आवऽ हऽ, आवऽ जा, एकरा ला हमरा कोई अमनख न हे । बाकि तू तो पढ़ल-लिखल होके आझ बूरबक लेखा काहे बोलइत हऽ ।; इहे बात के अमनख हम अप्पन मन में सोंगोरले एक दिन भूलेटन के बगइचा में गेली । संजोग से उनकर बेटा आ पुतोह दून्नो मिल गेलन । उनकर नाम लेवइते ऊ बेंग लेखा कूदे लगलन, कनगोजर लेखा रेंगे लगलन ।)    (माकेसिं॰57.14; 90.22)
36    अमरूध (= अमरूद) (घना बगइचा, आम, महुआ, लीची, अमरूध के पेड़ । बगइचा के बीच में एगो झोपड़ी, झोपड़ी के चारो तरफ गुलमोहर आ सिमर के फूल सउँसे बगइचा के धधकइत आग लेखा उगइत सुरूज के छितिज लेखा अनेर कयले ।; फूल-पत्ती से झोपड़ी के सजावल गेल, आम-अमरूध, केला, लीची सब तरह के फर-फरहरी जुटावल गेल ।)    (माकेसिं॰15.4, 13)
37    अमावट (आम के अमावट, कटहर के कोआ पर ऊ मधुमाखी लेखा टूट पड़तन ।)    (माकेसिं॰55.20)
38    अरघ (= अरग; अर्घ्य) (अइसहीं छठ में अरघ देवे ला औरत के मिल्लत मेहनत से छठी मइया के घाट बनवा देलन - दद्दू भइया के सगरे जय जयकार ।)    (माकेसिं॰104.7)
39    अरे-तरे (गैर मजरूआ जमीन आ हदबन्दी से फाजिल जमीन पर जहाँ-जहाँ दद्दू भइया झण्डा गड़वा देलन, उखाड़े के केकरो बउसात न हे । बात-बात में अरे-तरे, गाली-गलौज अब कोई न करत ।)    (माकेसिं॰108.16)
40    अलोत (~ करना) (तेतरी के माय-बाप गाँव के सबसे गरीब । घर के देवाल ढह गेल हे, आझ ले न उठल - ताड़ के खगड़ा से घेर के अलोत कर देवल गेल हे । फूस के पलानी एक तरफ से आन्ही-पानी में उड़िआयल हे से आझ ले आकाशे ओकर छावनी बनल हे ।)    (माकेसिं॰24.29)
41    अलोपित (= लुप्त, गायब) (ऑफिस में आवइते उनकर चेहरा बसन्त में बगइचा लेखा रूह-चुह हो जायत । मउरल मुखड़ा गुलाब लेखा खिल जायत । रोआँ-रोआँ हरिआ जायत । आँख के मोतियाबिन्द अलोपित हो जायत, चश्मा बेग में ।; आझ रामजतन चाचा रहितन तब उनकर गावल सुर, लय, ताल के गीत के कैसेट धूम मचा देइत । अफसोस ई बात के हे कि रामायण के हर प्रसंग के मोताबिक उनकर गीत अलोपित हो रहल हे ।)    (माकेसिं॰40.7; 53.24)
42    अवाज (= आवाज) (रजिया अम्मा अतना थक गेल हे कि खाट पकड़ लेल । कंठ से अवाज न निकले । जे कहत से हाथ से समुझा के इया सिलेट-कागज पर लिख के ।)    (माकेसिं॰97.5)
43    असमान (= आसमान) (कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।)    (माकेसिं॰109.4)
44    असरा (~ जोहना) (केकरो घरे मँड़वा गड़ा रहल हे । गाड़े ला बाँस, बान्हे ला मूंज के रस्सी, छावे ला झलासी, बाँह पूजे ला अइपन, सब सरजाम जुटल । गाँव घर के बाबा-भइया, दादी-चाची पहुँचल हथ बाकि नवरतनी फुआ के असरा जोहा रहल हे, सबके नजर डघ्घर पर । एतने में नवरतनी फुआ टुघुरइत टुघुरइत आ गेल ।)    (माकेसिं॰17.24)
45    असीरबाद (= आशीर्वाद) (ई झोपड़ी गजगज करे लगल । नवरतनी फुआ के नाम रामपेआरी रखल गेल । राम के असीरबाद से रामपेआरी बाग-बगइचा में चहकइत रहल, चान-सुरूज लेखा चमकइत रहल ।; नवरतनी फुआ के हाथ में एगो जस हे, गोरैया बाबा के असीरबाद मिलल हे ओकरा । जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।; केकरो बेटी बिना गोदी सूना हे, नवरतनी फुआ के असीरबाद से सुलछनी बेटी जलम ले लेत ।)    (माकेसिं॰16.2; 18.10, 17)
46    अहथिर (= स्थिर) (कोई कहे - बड़ाबाबू ई तोर दिवालापन देख के हमनी अफसोस करइत ही । चाह के भी तोर काम आगे न बढ़ रहल हे । साहेब अहथिर कहियो ऑफिस में बइठबे न करथ ।)    (माकेसिं॰45.5)
47    अहरा (छोटकी अहरा पांकड़ के पेड़ के पास पटक के लोग उनकर दुन्नो आँख निकालल चाहलन बाकि 'जाके राके साइयाँ मार सकै न कोय' ।)    (माकेसिं॰48.18)
48    अहुरी-बहुरी (गोदी बलकवा देखी रहलन लोभाई गे माई । छोड़ी देहूँ अहुरी मइया, छोड़ी देहुँ बहुरी ॥)    (माकेसिं॰89.9)
49    आ (= आउ; और) (रात भर मानर आ ढोल-झांझर बजइत रहल - अबीर गुलाल उड़इत रहल । होरी आ चइता से सउँसे बगइचा चहचहा उठल ।; रात भर हम आ हम्मर घरनी, पूरा बाल-बच्चा ऊ लोग के साथे नाच-गान में शामिल होके ऊ लोग के हिच्छा के मोताबिक उनकर भावना के आदर कइली ।)    (माकेसिं॰15.17; 79.29)
50    आँख (~ में ~) (आझ रामपेआरी के बिदाई हो रहल हे । सउँसे बगइचा सुन्न । पेड़-पउधा, चिरईं-चिरगुनी, गोरू-डांगर, फूल-पत्ती, धरती-अकास सब उदास । ... आँख में आँख एगो बेटी, ओहो छोड़ के जा रहल हे ।; आँख में आँख एगो बेटा, दुश्मन के हाथ लग जायत तब हम्मर बंसे उजड़ जायत ।)    (माकेसिं॰16.8; 48.9)
51    आँवा (आ मुखिया ? समुझऽ गारल गिरई । एन्ने समाज सेवा ओन्ने डपोरसंखी । सेवा से जादे खेवा कहइत-कहइत उनकर मुँह आँवा से निकलल बरतन लेखा लाल हो जायत ।)    (माकेसिं॰35.4)
52    आंगछ (= किसी व्यक्ति, पशु या वस्तु के आने, प्राप्ति या सम्पर्क का शुभ या अशुभ फल) (मातृकुल-पितृकुल के जोड़ेवाला बेटिए हे । बेटी जलमलक, समुझऽ घर जनकपुर धाम बन गेल । बेटी के आंगछ सौ सौ आगर ।)    (माकेसिं॰18.28)
53    आउ (= और) (जउन झील आउ नदी अप्पन छाती के दरपन में हमरा समा लेल हल ऊ बिरह के आग में झामर हो गेल हे ।)    (माकेसिं॰80.13)
54    आगर (= आगार; ढेर; भंडार; घर, मकान) (मातृकुल-पितृकुल के जोड़ेवाला बेटिए हे । बेटी जलमलक, समुझऽ घर जनकपुर धाम बन गेल । बेटी के आंगछ सौ सौ आगर ।)    (माकेसिं॰18.29)
55    आगु (= आगे) (दुश्मन दुश्मन हे, मित कभी होही न सकत । ई लेल सीधे छेवट दऽ दुश्मन के, न रहत बाँस न बजत बाँसुरी । आगु में कुँइया रहला पर गिरे के खतरा बनले रहत ।; समय बीतइत गेल । दद्दू भइया के जमाना करवट बदलइत गेल । राइफल आ बनूक के आगु उनकर लाठी के बउसात घटइत गेल ।)    (माकेसिं॰48.2; 106.4)
56    आझ (= आज) (आझ रामपेआरी के बिदाई हो रहल हे । सउँसे बगइचा सुन्न । पेड़-पउधा, चिरईं-चिरगुनी, गोरू-डांगर, फूल-पत्ती, धरती-अकास सब उदास ।)    (माकेसिं॰16.6)
57    आन-अरमान (ऊ चानमामू नहिए अयलन । सोना के कटोरी सपने बनल रह गेल । बाकि ई चानमामू सबके घरे अयलन । सबके सपना पूरा कयलन - सबके आन-अरमान के खेयाल रखलन ।)    (माकेसिं॰30.10)
58    आन्हर (आज हम्मर आदिवासी भाई लोग पढ़ल न हथ - ओकर फल देखऽ - आँख के सामने सब कुछ लुटा रहल हे, ट्रक के ट्रक सब कुछ ढोआ रहल हे बाकि हमनी आँख के आन्हर । हँड़िया मिले के चाही ।)    (माकेसिं॰74.18)
59    आन्ही (= आँधी) (~-तूफान) (दिन में तरेगन लउकइत, ऊँट लेखा आन्ही-तूफान आवे के पहिले बालू में मुँह छिपावे परइत । गीध लेखा सब टूट पड़ितन । 'अबरा के मउगी सबके भउजी' बन जाइत । कोल-भकोल में लुकाइत चलइत । ओकर सुन्दरता गुलाब के फूल में काँटा बन जाइत ।)    (माकेसिं॰21.4)
60    आन्ही-तूफान (जवानी से आझ ले कतना अछरंग ओकरा ऊपर लगावल गेल बाकि चनकी दाई बाढ़ में टील्हा लेखा, आन्ही-तूफान में बाँस लेखा जस के तस बनल रहल ।)    (माकेसिं॰65.23)
61    आन्ही-पानी (तेतरी के माय-बाप गाँव के सबसे गरीब । घर के देवाल ढह गेल हे, आझ ले न उठल - ताड़ के खगड़ा से घेर के अलोत कर देवल गेल हे । फूस के पलानी एक तरफ से आन्ही-पानी में उड़िआयल हे से आझ ले आकाशे ओकर छावनी बनल हे ।)    (माकेसिं॰24.30)
62    आन्ही-बतास (कतनो आन्ही बतास आवे - कतनो बरखा बेयार चले, चानमामू सटलन त सटले रह गेलन ।; जइसे आन्ही-बतास में झमाठ पेड़ ढह जाहे, सावन-भादो के झपास में भित्ती भरभरा के गिर जाहे, ऊ दिरिस आझ तीनो अउरत के आँख के सामने बुझा रहल हे ।)    (माकेसिं॰30.12; 46.26)
63    आपुस (= आपस) (जउन देखे करमजरू समझ के मुँह फेर लेवे । ऑफिस में पाँव पड़ल, टेबुल के बाबू लोग आपुस में कानाफुसी करे लगलन - 'आ गेलऊ दँतचिरहा ।' कोई मुँहचिहार, बनबिलार, अभागा कहके खिल्ली उड़ावे ।)    (माकेसिं॰45.2)
64    आरी-पगारी (साग ला ऊ फिफिहिया होयल चलत । आरी-पगारी, चँवर-ढिबरा, गली-कुची । नोनी के साग, गेन्हारी के साग, करमी के साग, आ खेत-खरिहान में गोबरछत्ता खोजइत चलत ।; जउन गाँव में बात-बात पर लाठी लठउल, एक बित्ता आरी-पगारी ला भाला-गड़ास, राई के तीसी आ तीसी के राई बनावेओला गाँव, होत साँझ-बिहान सातो पुरखन के नेओतहरी, छोट-छोट बात पर गिधवा-मसान - ऊ गाँव में चानमामू सब के मामू बन के रह गेलन ।)    (माकेसिं॰20.3; 31.19-20)
65    आरे-बारे (= अगल-बगल; तट-किनारा; बच्चों की आरती उतारना और बलैया लेना; बच्चों के बहलाने के लिए गाया जानेवाला गीत) (चान मामू आरे आवऽ बारे आवऽ, नदिया किनारे आवऽ, सोना के कटोरिया में दूध-भात लेले आवऽ, बउआ के मुहँवा में घुटुक !)    (माकेसिं॰30.2-3)
66    आवन-जावन (चनकी दाई बेचारी करो का ? एकरा से न कोई बोले न कोई हँसे । न कोई बात न कोई विचार, न कोई लेन न कोई देन । बयना-पेहानी, आवन-जावन, उठ-बइठ, चउल-मजाक एकरा ला गुलर के फूल ।)    (माकेसिं॰66.23)
67    आसरम (= आश्रम) (जन्ने जाय ओन्ने ओकरा लपक के लोग गोदी में बइठा लेवथ । कण्व रिसि के आसरम में जइसे शकुन्तला ओइसहीं रामपेआरी ।)    (माकेसिं॰16.5)
68    आहर-पोखर (तेतरी दीदी के पानी से जादे लगाव । नदी-नाला, झील, तालाब झरना, आहर-पोखर ओकरा चुम्बक लेखा खिंच के ले आवऽ हे ।)    (माकेसिं॰26.20)
69    इंजोरिया (इहे बीच में तेतरी दीदी भर झोरी जामुन लेले, कुछ मुँह में, कुछ हाथ में, जीभ चटकारइत मल्लाह लोग के सामने भूत लेखा आके ठार हो गेल । केकरो बिसवासे न हो रहल हे कि तेतरी दीदी हे, कहाँ से कइसे उपट गेल । ... तेतरी दीदी सब के हाथ में जामुन देल । सब लोग के अन्हरिया इंजोरिया में बदल गेल ।; लइकन जब सुनथ कि तेतरी दीदी अब चल जायत, सब के आँख तर अन्हार छा जाय । इंजोरिया अन्हरिया में बदल जाय ।)    (माकेसिं॰24.1; 26.25)
70    इगारह (= एगारऽ) (बेटी माथ के बोझ, पर घर के नारी इगारह बरिस के उमिर में ओकर मांग में सेन्नुर दरा गेल ।)    (माकेसिं॰27.5)
71    इनकर (मुँह में पान इया खइनी हमेशा कोंचले रहतन जइसे परसउती चिन्हा जाहे कि लइका होवे ला हे ओइसहीं इनकर पान इया खइनी ओठ के नीचे कोंचायल रहत ।; ऊ पान अतना खा हथ कि मुँह खोलला पर रेल के इंजिन में जइसे कोइला लाल दहकइत रहऽ हे, ठीक ओइसहीं इनकर मुँह ।)    (माकेसिं॰38.11, 15)
72    इनार (= इनारा, कुआँ) (चार कट्ठा में मकान, आठ-दस गो बड़का बड़का घर आ ओतने बड़हन अंगना । अंगना के एक कोना में पक्का इनार आ बहरसी दलान, दलान के बगल में गउशाला, गउशाला के कोन पर एगो छोटहन फुलवारी जेकरा में ओड़हुल, कनइल, हरसिंगार, गेन्दा, केला, अमरूध के फूल-फल ।)    (माकेसिं॰47.4)
73    इन्नर (~ के परी) (सपना में तेतरी दीदी इन्नर के परी लेखा देखाई दे रहल हे । पिअर बिअहुती साड़ी, भर हाथ चूड़ी, मांग में सेन्नुर, कान में झूमका, नाक में नथिया, आँख में काजर, पाँव में महावर, ओठ में लिपिस्टिक, बूटेदार चद्दर ओढ़ले सबके सामने ठार हे ।)    (माकेसिं॰28.24)
74    इला (= ई ला; इसलिए) (ओ घड़ी कोई बलौक में मवेशी अस्पताल रहित त इनका इनाम मिलइत । काहे ला ? इला कि गउशाला कइसन बनवे के चाही - एकर उदाहरन चानमामू ।)    (माकेसिं॰32.2)
75    ईंटा (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।)    (माकेसिं॰31.29, 31)
76    ईंटा-झिटका (चनकी दाई हाथ से अँचरा ओकर मुँह दने फहरा के असीरवाद देवे । गली के कंकड़-पत्थल, ईंटा-झिटका ओकर पैर छू छू के अप्पन भाग्य सराहे लगल । चिरईं-चुरुंगा चिं-चिं करके अप्पन हिरदा के हुलास बतावे लगल ।)    (माकेसिं॰63.13)
77    ईंटा-पत्थल (तेतरी दू बेटा के बाद जलम लेल एही से ओकर नाँव तेतरी पड़ल । 'तेतर बेटा भीख मँगावे, तेतर बेटी राज बिठावे' । कतना देवी-देवता, ईंटा-पत्थल पूजला पर चनवा देवी के कोख से बेटी जलम लेल ओहो तेतर ।)     (माकेसिं॰24.17)
78    उघारना (चानमामू हँकड़ के बोललन आ अप्पन पीठ उघार के देखा देलन - 'देखऽ अंगरेज के मारल कोड़ा के घाव के दाग ! चानमामू के ऐरू गैरू मत बुझीहऽ । हम कमर से झुक गेली हे बाकिर मन अभी टाँठे हे ।)    (माकेसिं॰36.1)
79    उचरना (ओकर हिरदा के हर धड़कन में वेद के मंत्र उचारण होवऽ हे, कुरान आउ बाइबिल के आयत बोलऽ हे, गुरुग्रन्थ साहेब के हरफ उचरऽ हे ।)    (माकेसिं॰96.22)
80    उचरुंग (= उचरुम) (चंचल; अस्थिर, उछलधक्का; उड़नेवाला एक छोटा फतिंगा) (सबके मन अनुरागल, गाँव-घर, अड़ोस-पड़ोस सबके बेटी - तेतरी बेटी, दुलारी बेटी । जतने दुलार मिलल ओतने उचरुंग निकलल । कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में ।)    (माकेसिं॰24.20)
81    उजबुजाना (ई गंगा जी के भक्त हथ । सुबह-शाम गंगा के गोड़ लागतन आ एके बर मांगतन - हे गंगा मइया, सबके अंचरा भर देलऽ, ... । बिन बेटा के तो हइए ही, हम्मर चारो मेहरारू के मिल्लत करा दऽ । हम्मर जिनगी अब तब होयल जाइत हे, परान उजबुजा रहल हे ।)    (माकेसिं॰42.6)
82    उजियाना (उनकर दुश्मन लोग उनका बड़ी तंग कयलन । बाकि उनकर कहनाम, केरा के गाछ केतना काटबऽ, ऊ फिन उजिया ही जायत ।)    (माकेसिं॰48.15)
83    उज्जर (= उजला) (नवरतनी फुआ लगबो करऽ हे फुआ लेखा । उज्जर उज्जर भुआ लेखा केस, मांग में सेन्नुर, आमछाप लुगा, नाक में छूंछी, कान में कनबाली, गोड़ में बिछिया, नोहरंगनी से रंगल गोड़, लिलार में टिकुली, भर बाँह चूड़ी ।; ई सब देखला पर चनकी दाई के ई खिलकट रूआ के फाह पर कोइला के ढेर लेखा बुझा हे । फह-फह उज्जर चद्दर पर एगो करिया दाग लेखा देखाई देवऽ हे । बाकि चनकी दाई लाचार हे ।)    (माकेसिं॰20.23; 65.13)
84    उड़ियाना (= उड़ जाना) (तेतरी के माय-बाप गाँव के सबसे गरीब । घर के देवाल ढह गेल हे, आझ ले न उठल - ताड़ के खगड़ा से घेर के अलोत कर देवल गेल हे । फूस के पलानी एक तरफ से आन्ही-पानी में उड़िआयल हे से आझ ले आकाशे ओकर छावनी बनल हे ।; हाथ-गोड़ अइसन लिच-लिच पातर कि पुरवइया हवा में नीम के सूखल पत्ता लेखा उड़िया जयतन ।)    (माकेसिं॰24.30; 55.7)
85    उदान (~ पड़ना) (धरती हम्मर सोना हम्मर, बाँस-बँड़ेरी छप्पर हम्मर । बाकि हम उदान पड़ल ही, भूखे पेट चिन्तन पड़ल ही । राम के मेहरी लंका में, सोना सिमटल बंका में । राम फिफिहिया बाँक रहल हथ, शबरी-केवट छाँक रहल हथ ।)    (माकेसिं॰74.4)
86    उदासना (= उदास होना) (फिन भरल मन, उदासल हिरदा आ सनेह पेयार आ खुशी के लोर से हमनी बिदा भेली ।)    (माकेसिं॰80.23)
87    उधार-पईंचा (केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।; गाँव में सबके हाथ खाली बाकि चमोकन के हाथ में बारहो मास लछमी सदा बिराजमान । ई केकरो उधार-पईंचा न दे सकथ । जब देतन तब सवाई सूद पर ।)    (माकेसिं॰33.18; 56.28)
88    उनकर (चानमामू होरी-चइता के खूब सवखीन । हर हप्ता उनकर दलान पर होरी-चइता के धूमगज्जर मचत ।)    (माकेसिं॰37.3)
89    उपटना (= नदी के कगार से ऊपर पानी का बहना; दबे रोग का उभड़ना; पाल खाई पशु का पुनः मैथुनेच्छु होना) (सब के सब बेसुध । इहे बीच में तेतरी दीदी भर झोरी जामुन लेले, कुछ मुँह में, कुछ हाथ में, जीभ चटकारइत मल्लाह लोग के सामने भूत लेखा आके ठार हो गेल । केकरो बिसवासे न हो रहल हे कि तेतरी दीदी हे, कहाँ से कइसे उपट गेल ।)    (माकेसिं॰23.24)
90    उपराना (= ऊपर आना, उतराना, ऊपर उठना) (तेतरी दीदी डूब गेल । नदी के घाट पर सब कोई आँख फाड़ के देख रहल हे ... बाकि तेतरी दीदी डूबकी मारलक त कहुँ न उपरायल ।)    (माकेसिं॰23.1)
91    उपलाना (बरसात के महीना, कोरे कोर उपलायल नदी । बड़का बड़का चकोह, खतरनाक खतरनाक जानलेवा भँवरी आ ओकरा में तेतरी दीदी चभाक से कूद गेल आ डूबकी मारलक त एके सुरूकिया में नदी के ऊ पार ।)    (माकेसिं॰23.4)
92    उबिआना (तेतरी दीदी कहाँ गेल हे, ससुरार का होवऽ हे, बिआह कउन चीज हे, काहे ला होवऽ हे ? हमनी ससुरार कहिया जायम ? कहिया बिआह होयत हमनी के ? तेतरी दीदी फिन कब आवत ? तरह-तरह के सवाल, सवाल पर सवाल । माय-बाप जबाब देइत-देइत उबिआयल हथ ।)    (माकेसिं॰28.20)
93    उमिर (= उम्र) (जउन घड़ी नवरतनी फुआ ससुरार में गोड़ धयलक हल, ओकर चढ़इत जवानी देख के सब कोई अगरा जा हल । आझ के दिन नवरतनी फुआ तेरह बरिस के उमिर में घर से पाँव न निकालइत । ओकर रूप-रंग देख के अपहरण हो जाइत, बलात्कार के शिकार बनके घवाहिल लेखा घर में छटपटाइत रहित हल ।; तेतरी दीदी के उमिर अब नौ पार करे लगल । माय-बाप के माथा के बोझ बुझाये लगल ।)    (माकेसिं॰21.1; 26.23)
94    उलार (ओ घड़ी दुल्हिन बाजार आझ लेखा बजार न हल । उलार सूरूज मठ में जाइत खानी लोग इशारा करके बतावऽ हलन - ओहे भूलेटन के घर आउ उनकर बगान हे ।; उलार जाइत खनी उनकर बगान से होके जाय के हिच्छा सबके बेबस कर देवऽ हल । कोई ऐनखाँव मेला इया दुलहिन बाजार गेल तो उनकर बगान आ अँचार के सोवाद लेवइत लवटऽ हल ।; ऐनखाँव मेला, दुलहिन बाजार आ उलार सूरूज भगवान के मन्दिल में पूजा करे के दिन कलेण्डर बनाके घर में टाँगले रहतन । कब के आवत, उनकर दिमाग पर नाम-नक्सा बइठल हे ।)    (माकेसिं॰84.6; 85.1, 16)
95    उसकी (= इशारा; हँसी-ठट्ठा, चुहल) (धनेसर जतने बोलत ओतने गुदगुदी बरत । ओन्ने ऊ फाइल लेके उचरइत कलक्टर के कोठी पर आ एन्ने ताश के बइठकी । कोई उसकी छोड़त कोई बिसकी । धनेसर मुँहबायर भले हे बाकि ऑफिस के सब काम समय पर निपटा देत - ओहो साहेब के मुँह देख के ।)    (माकेसिं॰72.18)
96    उसकी-बिसकी (धनेसर जतने बोलत ओतने गुदगुदी बरत । ओन्ने ऊ फाइल लेके उचरइत कलक्टर के कोठी पर आ एन्ने ताश के बइठकी । कोई उसकी छोड़त कोई बिसकी । धनेसर मुँहबायर भले हे बाकि ऑफिस के सब काम समय पर निपटा देत - ओहो साहेब के मुँह देख के ।)    (माकेसिं॰72.18)
97    एँड़ (एही बीच में चमोकन के मुँह लाल, आँख बिरबिरावे लगलन - "हटलऽ कि एक एँड़ देऊँ । बोले के पहिले सहूर हवऽ ।)    (माकेसिं॰58.16)
98    एक-दिसहाँ (चमोकन के देख के घासो छाती पीटे लगऽ हे । जन्ने से ई हाथ लगवतन ओनने से एक दिसहाँ साफ करइत जयतन फिन ओकरा पर एगो रेड़ो न उग सकऽ हे ।)    (माकेसिं॰57.2)
99    एकारसी (= एकादशी) (छठ, एतवार, तीज, चउथ, कीरतन, भजन, गंगास्नान, रक्षा बन्हन, दसहरा, दीवाली, होरी, बसन्त पंचमी, एकारसी, सत्यनारायन भगवान के कथा के महातम बतावे लगत तब हिन्दू लोग के मुँह बन्द हो जायत - कान अपने आप खुल जायत आ सबके माथा झुक जायत रजिया अम्मा के पैर पर ।)    (माकेसिं॰92.23)
100    एतवार (= रविवार का उपवास व्रत) (सुबह-शाम देवी मइया के चउरा लीपे, अँगना में तुलसी के पेड़ लगाके चउरा पर रोज जल ढारे, घीव के दीया जरावे, सुरूज भगवान के छठ बरत, एतवार, मंगर, जितिया बड़ा नेम धरम से करइत रहे ।; सत्यनारायण भगवान के कथा, रामायण के पूजा, छठ एतवार, बरत-तेयोहार में बाल्टी के बाल्टी दूध बाँटइत रहतन ।)    (माकेसिं॰43.12; 60.16-17)
101    एन्ने (= इधर) (ओन्ने ... एन्ने) (होत अनमुहान धनेसर साहेब के डेरा पर । ओन्ने मुरगा बाँग देत एन्ने धनेसर घर के सिकरी बजावे लगत । लइकन सबके उठावत, आँख पर पानी के छिंटा देत आ पढ़े ला महटगिरी करे लगत ।)    (माकेसिं॰74.11)
102    ऐरबी-पैरबी (घर के कलह तो ऊ सावन-भादो के झपास में ढहइत भित्ती लेखा सहइत गेलन बाकि पेन्शन ला आफिस के दउड़-धूप उनका ला हिमालय पहाड़ बन गेल । होत सबेरे कुछ नस्ता करके निकलथ - ऐरबी-पैरबी, खिदमत-खुशामद में जुट जाथ ।)    (माकेसिं॰44.8)
103    ऐरू-गैरू (चानमामू हँकड़ के बोललन आ अप्पन पीठ उघार के देखा देलन - 'देखऽ अंगरेज के मारल कोड़ा के घाव के दाग ! चानमामू के ऐरू गैरू मत बुझीहऽ । हम कमर से झुक गेली हे बाकिर मन अभी टाँठे हे ।)    (माकेसिं॰36.2)
104    ओ (= वह, उस) (~ घड़ी = उस घड़ी) (ओही लाली लेले नवरतनी फुआ जलम लेल । कलेसरी के मरद ओ घड़ी बधार में गेहुम काटइत हल ।; बिसेसर ला सब कुछ भाग्य आऊ भगवान । ऊ देत तब छप्पर फाड़ के देत आ न तब करम फूटल गेहुम के कि गेल घुनसारी । पुराना जमाना के सोच ।)    (माकेसिं॰15.8; 25.7)
105    ओकरा (रजमुनियाँ बेटा के सुख न भोगलक । गंगा मइया ओकरा अप्पन गोद में बइठा लेलन - सूरज के बचपन से माय के ममता छीन लेलन । ओ घड़ी सूरज छव महीना के हल । मंझली संझली के करेजा ठंढा गेल । मन के बिख उतर गेल ।)    (माकेसिं॰43.1)
106    ओकाई (~ बरना) (दूध के नदी बह रहल हे बाकि इनका मट्ठा-दूध देखइते छींक आवे लगत । घीव-दूध में बनावल पुआ-पकवान के नाम पर उनका ओकाई बरे लगत ।; मुरगा-मुरगी, मांस-मछरी के नाम पर ओकाई आवऽ हे दद्दू भइया के ।)    (माकेसिं॰55.12; 102.6)
107    ओका-बोका-तीन-तड़ोका (तेतरी दीदी कहुँ न कहुँ से छकुनी लेले, रस्सी लेले पहुँच जायत आ जमे लगत लइकन के खेल - कभी डोल-पत्ता, कभी चिक्का-कबड्डी, कभी सेलचू, कभी ओका-बोका-तीन-तड़ोका, कनघीच्चो, बाघ-बकरी, अत्ती-पत्ती । सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी ।)    (माकेसिं॰26.2)
108    ओझा-गुनी (ऊ सबके दुलारी धिया - ओझो गुनी के, डाइनो कवाइन के ।; आँख में आँख एगो बेटा । माय-बाप दवा-बीरो कराके, ओझा-गुनी से फुँकवा के थक गेलन ।; डाक्टर-बइद के देखावइत-देखावइत रुपइया के झिटकी बना देलन । ओझा-गुनी के अच्छत-भभूत खाइत-खाइत सब दाँत झर गेल ।)    (माकेसिं॰24.25; 55.13-14; 57.25)
109    ओड़हुल (= उड़हुल) (मुँह खोलावे ला हे त पान के बीड़ा चिबावे ला दऽ इया कोनो अइसन बात कहके उनका चिरका दऽ, फिन काऽ, देखऽ उनकर आँवा लेखा मुँह, पलास के फूल लेखा गलफर - ओड़हुल के लाल टूह टूह फूल लेखा जीभ ।)    (माकेसिं॰38.22)
110    ओतना (जेतना-~) (जेतने चुनचुन खुश ओतने रामधेयान मलिकार खुश । रामधेयान के जबसे होश भेल तब से चुनचुन के अप्पन बराहिल बना लेलन आ खेत-खरिहान, घर-दुआर, बाहर-भीतर, बाग-बगइचा सबके भार इनका सौंप देलन ।)    (माकेसिं॰15.18)
111    ओन्ने (= उधर) (जन्ने ... ओन्ने) (जन्ने जाय ओन्ने ओकरा लपक के लोग गोदी में बइठा लेवथ । कण्व रिसि के आसरम में जइसे शकुन्तला ओइसहीं रामपेआरी ।; जन्ने निकले ओन्ने महुआ टपके, जन्ने बहराय ओन्ने गुलमोहर खिल जाय । सब लोग रामपेआरी के पुतोह समझथ ।)    (माकेसिं॰16.4, 9)
112    ओह (= वो, ऊ; वह, उस) (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।)    (माकेसिं॰31.29)
113    औडर (= ऑर्डर) (मलकिनी के औडर भेल फटाफट गाड़ी बन गेल नवचेरी कनियाँ लेखा ।)    (माकेसिं॰81.20)
114    कँटइला (ढुनमुन के बंस में टुनमुन कँटइला जनमल ।)    (माकेसिं॰21.22)
115    कंकड़-पत्थल (चनकी दाई हाथ से अँचरा ओकर मुँह दने फहरा के असीरवाद देवे । गली के कंकड़-पत्थल, ईंटा-झिटका ओकर पैर छू छू के अप्पन भाग्य सराहे लगल । चिरईं-चुरुंगा चिं-चिं करके अप्पन हिरदा के हुलास बतावे लगल ।)    (माकेसिं॰63.13)
116    कंक-फकीर (बड़ाबाबू गंगा मइया के किनारे पर एगो मन्दिल बनवयलन - साधु-संत के कंक-फकीर के दान कयलन ।)    (माकेसिं॰42.23)
117    कंगही (कथी केरा कंगही भवानी मइया, कथी लागल हो साल । कथीए बइठले भवानी मइया, झारे लामी हो केस ॥ सोने के कंगही भवानी मइया, रूपे लागल हो साल । मचिया बइठल सातो बहिनी, झारे लामी हो केस ॥)    (माकेसिं॰87.13, 15)
118    कंसी (काँसा आदि का डोरी में बंधा एक जोड़ा प्यालानुमा बाजा, छोटे झांझ की तरह का एक बाजा) (ऊ गोरा रंग के, अंगरेज के मात करेवाला देह के चमड़ी । इहे चमड़ी के बल पर चार गो लड़की लोभा गेल - ऊ चार शादी कयलन - चारो चार लाख के । एगो सरंगी घोंटऽ हे त दूसरा कंसी, तीसरा मानर बजावऽ हे त चउथा पखाउज ।)    (माकेसिं॰39.3)
119    ककहरा (= 'क' से 'ह' तक के व्यंजन वर्ण; वर्णमाला) (बेटा बाग-बगइचा में नेह लगवले रहलन । ओ घड़ी पढ़े के चनसार कम हल । अपने मनोहर पोथी पढ़लन आ बेटो के ककहरा आऊ पहाड़ा पढ़ा के छोड़ देलन । सोचलन पढ़ के का करत ?; देवी मइया के सब गीत ऊ ककहरा लेखा इयाद कयले हलन ।)    (माकेसिं॰85.28; 87.7)
120    कखनी (= कब, किस क्षण) (जहाँ साँझ उहाँ बिहान, जहाँ हिच्छा उहाँ डेरा डण्डा, कखनी अप्पन घर पर अयतन केकरो पता न ।)    (माकेसिं॰105.8)
121    कच-कच (~ चिबाना) (जे जनता के सतवलक ओकरा ककड़ी-खीरा लेखा कच कच चिबावे ला सबसे अगुआन । सामंती रोब-दाब, जमीन्दारी शोषण-पीड़ा उनका ला आँख में रेंगनी के काँटा ।)    (माकेसिं॰106.4)
122    कचगर (सब दिन हर छन मुँह में सोंफ-इलाइची । जब हँसतन तब ओठ केराव के फारल छेमी लेखा दुनो ओठ तनि सा फाँट हो जायत आ दाँत कचगर मकई के छिलल बाल लेखा शोभे लगत ।)    (माकेसिं॰33.4)
123    कचड़कूट (~ करना) (तेतरी दीदी के कोई असर न । उठल आ हिरामन साव के दुकान पर जाके गरम गरम जिलेबी चाभे लगल । जे देखे से कहे - सुनली कि तेतरी दीदी डूब गेल आ ई इहाँ जिलेबी कचड़कूट कयले हे ।)    (माकेसिं॰24.14)
124    कचड़ा (= कचरा) (आज के सामाजिक, राजनीतिक कचड़ा देख के ऊ एक बार फिन गान्ही के अवतार ला बेयक्खर भेल रहतन ।)    (माकेसिं॰35.16)
125    कचरकूट (देखऽ तो धनेसर हम्मर हिच्छा के कतना खेयाल रखऽ हे । ताजा ताजा बड़का टेंगरा मछरी । अब हम समझ गेली ऊ हमरा छुए से काहे मना कर देल हल । खूब कचरकूट भेल । पास-पड़ोस भी जुड़ा गेल । धनेसर घरे गेल आ फोंफ काटे लगल । कह के गेल अब दू दिन हमरा से भेंट न होआयत ।)    (माकेसिं॰78.4)
126    कचवनियाँ (= कच्चे आटे में मेवा, घी, शक्कर आदि मिलाकर बनाया गया लड्डू, कसारा) (ठेकुआ, पुआ-पुड़ी, लड़ुआ, कचवनियाँ, तस्मई आ सेवई उनकर मीठगर पकवान ।)    (माकेसिं॰101.30)
127    कच्छ-मच्छ (= मांसाहार; सामिष भोजन) (आदिवासी परम्परा के मोताबिक स्वागत, विनती, आ तरह-तरह के गीत-नृत्य होवे लगल । एन्ने आम, लीची, अमरूध, केरा, कटहर, जामुन न जाने केतना किसिम किसिम के फल ओकरा ऊपर से दलपुड़ी, तसमई, पुआ-पुड़ी फिन चले लगल कच्छ-मच्छ ।)    (माकेसिं॰79.23)
128    कजरौटा (= काजल रखने की डिबिया) (जलमउती बेटा के काजर नवरतनिए फुआ पारत । कई तरह के सामग्री मिला के दीया जरा के कजरौटा में काजर पार देत ।)    (माकेसिं॰18.31)
129    कज्जल (~ पानी) (तलाब के किनारे घंटो ऊ बइठ के जल-जन्तु के क्रीड़ा देखइत रहत । तलाब में कोई नेहा न सकऽ हे, न कोई मछरी मार सकऽ हे, कज्जल पानी कज्जल जीव के कज्जल आत्मा कज्जल परमात्मा से मिलन होवऽ हे ई तलाब के पास ।)    (माकेसिं॰96.7)
130    कटकटाना (चनकी दाई आज फिन आँख में काजर, पाँव में महावर, लिलार में टिकुली, माँग में सेन्नुर आ लाल आम छाप साड़ी पेन्ह के नाचे लगल । कभी दाँत कटकटावे, कभी जीभ निकाले, कभी लार चुआवे, अँचरा उड़ा उड़ा के देवी मइया के गीत गावे ।)    (माकेसिं॰63.3)
131    कटनिहार (खेते-खेते मलिकार बनिहार के अँचार पत्ता पर देइत जयतन आउ कटनिहार उनका दू मुट्ठी, चार मुट्ठी, एक अँकवारी, दू अँकवारी धान देइत जयतन । कटनिहार के मुँह में पानी भूलेटन के अँकवारी में ।)    (माकेसिं॰82.18, 19)
132    कटनी (भूलेटन के अँचार आउ अमरूध उनकर जीविका के साधन हे ।; धान के कटनी शुरू भेल, भूलेटन अँचार आउ अमरूध लेके घूमे लगतन खेते-खेते ।)    (माकेसिं॰82.11)
133    कटहर (= कटहल) (लगऽ हे आझ के जवान के जवानी में घुन लग गेल हे । सब पेट भरे के चिन्ता में डूबल हथ । सब बालू पेर रहल हथ, तेल निकलो कहाँ से । बबूर तर आम भेंटा हे ? सब कटहर के कोआ बन गेल हथ ।; भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।)    (माकेसिं॰36.16; 82.15)
134    कटाह (= कटाहा; काटने वाला, काट खाने वाला) (कोई काम इनका से निकाले ला हे - चनेसर बाबू, चनेसर भइया, चनेसर बउआ, चनेसर काका कहके निकाल लऽ - कोई कोर-कसर न । जहाँ चमोकन कहलऽ कि समुझऽ बिढ़नी के खोता में हाथ डाल देलऽ, कटाह कुत्ता के ललकार देलऽ ।)    (माकेसिं॰56.21)
135    कट्ठा (इनकर खनदान में आझ ले कोई रजिस्टरी आफिस में पैर न धयलक । मन मसोस के बड़ाबाबू चार कट्ठा के एगो प्लौट रजिस्टरी आफिस में जाके रगड़ अयलन ।)    (माकेसिं॰44.26)
136    कठजामुन (रामचन्द्र सिंह पुरनका दिन के इयाद करइत करइत परान तेयाग देलन । अब बच गेलन हे के ? बटलोही, बरहगुना, सोठ, बतीसा, कठजामुन, चुटरी, कनगोजर, कुलबोरन आ चपोरन - सब मिलके बाँस के फोंफी लेखा बज रहल हथ ।)    (माकेसिं॰22.22)
137    कतना (कतना विश्वामित्र उनकर परिछा लेलन, सब कोई मुँह भरे गिरके हबकुरिए थोथुन रगड़े लगन ।; स्व अनुभूति, परा अनुभूति आ सहानुभूति में कतना अन्तर हे न कोई साहितकार, कलाकार बता सकऽ हे न ई समीक्षक समझ सकऽ हे ।)    (माकेसिं॰31.9; 67.30)
138    कथी (कथी केरा कंगही भवानी मइया, कथी लागल हो साल । कथीए बइठले भवानी मइया, झारे लामी हो केस ॥ सोने के कंगही भवानी मइया, रूपे लागल हो साल । मचिया बइठल सातो बहिनी, झारे लामी हो केस ॥)    (माकेसिं॰87.13, 14)
139    कनइठी (~ देना) (छठी मइया के बरत में कभी-कभी लइकन से भूल-चूक हो गेला पर कनइठी दे के गाल पर मारल जाहे ।; ई कनइठी रंगदार टुनमुन के एगो समझदार नवजवान बना देल ।)    (माकेसिं॰21.29; 22.1)
140    कनइल (चार कट्ठा में मकान, आठ-दस गो बड़का बड़का घर आ ओतने बड़हन अंगना । अंगना के एक कोना में पक्का इनार आ बहरसी दलान, दलान के बगल में गउशाला, गउशाला के कोन पर एगो छोटहन फुलवारी जेकरा में ओड़हुल, कनइल, हरसिंगार, गेन्दा, केला, अमरूध के फूल-फल ।)    (माकेसिं॰47.6)
141    कनगोजर (रामचन्द्र सिंह पुरनका दिन के इयाद करइत करइत परान तेयाग देलन । अब बच गेलन हे के ? बटलोही, बरहगुना, सोठ, बतीसा, कठजामुन, चुटरी, कनगोजर, कुलबोरन आ चपोरन - सब मिलके बाँस के फोंफी लेखा बज रहल हथ ।)    (माकेसिं॰22.23)
142    कनघीच्चो (तेतरी दीदी कहुँ न कहुँ से छकुनी लेले, रस्सी लेले पहुँच जायत आ जमे लगत लइकन के खेल - कभी डोल-पत्ता, कभी चिक्का-कबड्डी, कभी सेलचू, कभी ओका-बोका-तीन-तड़ोका, कनघीच्चो, बाघ-बकरी, अत्ती-पत्ती । सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी ।)    (माकेसिं॰26.2)
143    कनबाली (नवरतनी फुआ लगबो करऽ हे फुआ लेखा । उज्जर उज्जर भुआ लेखा केस, मांग में सेन्नुर, आमछाप लुगा, नाक में छूंछी, कान में कनबाली, गोड़ में बिछिया, नोहरंगनी से रंगल गोड़, लिलार में टिकुली, भर बाँह चूड़ी ।)    (माकेसिं॰20.25)
144    कनियाँ (= कन्या, दुलहन) (तेतरी दीदी ! हमनी तोरा जाय न देबऊ । आ जयबे तो हमनियो के साथे-साथे लेले चलिहें । हमनी तोर कहार बन के चलब, तू डोली में कनियाँ बन के चलिहें ।; मेम साहेब कहतन - 'एहे से तोर जीपवा नवचेरी कनियाँ लेखा शोभऽ हवऽ आउ सबके खटारा काहे होयल रहऽ हई ।')    (माकेसिं॰26.28; 75.18)
145    कनेया (= कन्या) (नवरतनी फुआ के कहनाम बेटी जलमला से बाप के जाँघ पवित्तर । जउन बाप कनेया दान न कयलक, ओकर पैठ नरक-सरग में कहुँ न । बेटी से बाप के पगड़ी ऊँचा हो जाहे । मातृकुल-पितृकुल के जोड़ेवाला बेटिए हे ।; गाँव भर के औरत मुँह देखाई देवे आवे लगलन । एगो बूढ़ी औरत बड़गिरी करइत चमोकन के कहे लगल - "बउआ चमोकन ! भगवान तोर भाग फार से लिखलथुन हे । जइसन बेटा ओइसन कनेया । इन्नर के परी उतारल ।")    (माकेसिं॰18.25; 59.29)
146    कन्हुआना (ई ठीक हे कि दद्दू भइया जनता के अतना जगा देलन हे कि अब कोई दलित के खटिया पर बइठल देख के कन्हुआयत न, ओकरा उलिट न देत, होरी के दिन होरी आ गोबर के नाम से माय-बहिन के गारी न दिआयत, ओकर घर में गोबर आ पखाना के हड़िया न फेंकायत, गनौरिया अब बन्हुआ मजदूर न बनत ।)    (माकेसिं॰108.9)
147    कपटी (उनकर मुँह माटी के पकावल कपटी लेखा लाल भीम ।)    (माकेसिं॰38.4)
148    कपरफोड़उअल (बड़ाबाबू रिटायर करके घरे अयलन । बिदाई में मिलल सौगात ला छीना-झपटी आ फिन कपरफोड़उअल । बड़ाबाबू बेचारे चुपचाप अप्पन कोठरी में भगवान से बिनती करे लगलन आ अप्पन भाग पर आँसू बहावे लगलन ।)    (माकेसिं॰44.2)
149    कपरबथी (= सिर-दर्द) (चनकी दाई के एगो बेटा, पोता-पोती, नाती-नतिनी - पूरा घर दिवाली के घेरौंदा लेखा भरल-पूरल, दीया लेखा चकमक, सिरिज बॉल लेखा जगमग जगमग । आझ ले न केकरो अंगुरी पिरायल, न पेटबथी होयल न कपरबथी ।)    (माकेसिं॰64.8)
150    कबरना (= उखड़ना) (सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल । जइसन नेत ओइसन बरक्कत ।)    (माकेसिं॰31.23)
151    कभी-कभार (कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । जीवन भर कमाके का कयलन ? सब दिन भीखे माँगइत रहलन । खेते-खेते छुछुआइत चललन । न घर-दुआर बनौलन न केकरो पढ़ौलन-लिखौलन ।)    (माकेसिं॰90.12)
152    कमाई-धमाई (ऊ उलिट-पुलिट के पढ़ लेतन आउ ओकरे मोताबिक मलिकार-बनिहार के खुश करके अँचार, बेल, बइर आउ अमरूध से अप्पन कमाई-धमाई के बात सोंचइत रहतन ।)    (माकेसिं॰83.29)
153    कमिनी (< फा॰ कमीन) (= कमाई; उपार्जित धन-दौलत) (बकरीद में रजिया अम्मा खस्सी-बकरी, मुरगा-कबूतर के बलि न देत । ऊ दिन ऊ सब तरह के अनाज, पुआ-पकवान, कपड़ा-लत्ता रख के दुआर पर बइठ जायत । साल भर के कमिनी के एगो बड़का अंश आझ ऊ दान करत । गरीब-गुरबा, फकीर-भिखार सबके कुछ न कुछ देत आ सबके असीरबाद लेत ।)    (माकेसिं॰94.7)
154    कम्पूटर (= कम्प्यूटर) (परिवर्तन के जमाना हे, सब कुछ तरक्की कर रहल हे । मरदाना माय बन रहल हे, कम्पूटर मखाना उपजा रहल हे । विज्ञान के जुग में सब कुछ परिवर्तन - भेंड़ अदमी आ अदमी भेंड़ ।)    (माकेसिं॰17.15)
155    करमजरू (जउन देखे करमजरू समझ के मुँह फेर लेवे । ऑफिस में पाँव पड़ल, टेबुल के बाबू लोग आपुस में कानाफुसी करे लगलन - 'आ गेलऊ दँतचिरहा ।' कोई मुँहचिहार, बनबिलार, अभागा कहके खिल्ली उड़ावे ।; जब रोड खराब मिल जायत तब ओकर आँख सुरूज लेखा बरे लगत । मुँह करिया झामर हो जायत । भर रहता कहइत जायत - 'ई रोडवो गिटिया ठीकदार साहेब लेले जयतन हल तब अच्छा हल । घर गेला पर बाल-बच्चन सब भकोसिए जयथिन हल । करमजरू ठीकदार ! जा तोर पेट कहियो न भरत ।')    (माकेसिं॰45.1; 76.8)
156    करमी (घीव-डलडा ओकरा ला परान के घाती । तेल में के छानल सामान ओकर जीव के गाहँक । ओकर रूच साग-पात, फर-फरहरी जादे । कुदरूम के साग, सरसो के साग, पोई के पत्ता, पालक, नोनी, करमी, ललका साग ओकरा ला तुलसी के पत्ता लेखा ।)    (माकेसिं॰20.1)
157    करिखा (= कारिख, कालिख, काला दाग) (पचपन बरिस के उमिर में उनकर घर में इंजोर भेल । ... गाँव भर के पैर चमोकन के घरे - सबके हिरदा में हुलास - आँख में माया-ममता के मोती छलक रहल हे । बाकि गोतिया-नइया के मुँह करिखा । चमोकन के धन हबेख अब न लगत । बाकि ऊपर से मुँह पुराइ - 'जीए, जागे, फरे-फुलाए, हे सुरुज भगवान, अइसने लाज सबके रखिहऽ ।')    (माकेसिं॰58.1)
158    करिखाही (~ हड़िया) (बड़ाबाबू अपने छव फीटा जवान आउ उनकर सब मेहरारू गोरखा रेजिमेन्ट में भरती होवे लाइक । सबके सब चौबीसो घंटा अपना के युद्ध के बोडरे पर बुझऽ हे । केकरो हात में फराठी, केकरो हाथ में बढ़नी, केकरो हाथ में पँहसुल त केकरो हाथ में करिखाही हड़िया ।)    (माकेसिं॰39.25)
159    करिया (ई सब देखला पर चनकी दाई के ई खिलकट रूआ के फाह पर कोइला के ढेर लेखा बुझा हे । फह-फह उज्जर चद्दर पर एगो करिया दाग लेखा देखाई देवऽ हे । बाकि चनकी दाई लाचार हे ।)    (माकेसिं॰65.13)
160    करुआ (~ तेल) (करुआ तेल उनकर जिनगी के सिंगार हे । नेहाये के पहिले सउँसे शरीर करुआ तेल चभोर लेतन ।)    (माकेसिं॰55.21, 22)
161    करूआ (~ तेल) (चीनी के जगह गुड़, साबुन के जगह करूआ तेल, टूथ ब्रश के जगह नीम के दतुअन आ नीमक तेल - बस, एहे सब उनकर शरीर के बनावट, दाँत के चमक, देह के दमक, रूप के दहक अइसन बना देल दद्दू भइया के कि इंजोरिया में परबत लेखा शोभऽ हथ, पूनिया के चान लेखा बरऽ हथ ।)    (माकेसिं॰102.7)
162    कलौंदा (भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।)    (माकेसिं॰82.14)
163    कल्ह (= कल) (कल्ह कउन मलिकार कउन अँचार पर नाक-भौं सिकोड़लन, कउन अमरूध पर छूट के बतिअयलन, कउन बेल-बइर पर आँख टिकौलन, बस उनका ला एही काफी हे - ऊ उनकर घर आउ घरनी के बात दिमाग में लिख लेतन ।)    (माकेसिं॰83.16)
164    कवाइन (= कमाइन) (डाइन-~) (ऊ सबके दुलारी धिया - ओझो गुनी के, डाइनो कवाइन के ।)    (माकेसिं॰24.25)
165    कसार (अंगना में अबले अन्हार हो, देखली हम न भोर के किरिनियाँ । बारली ढिबरिया बहल बेयरिया, भुक भुक बरइत लुटल दिअरिया । जिनगी बनल हे कसार हो, लगल नेटी फांस के रसरिया ।)    (माकेसिं॰76.20)
166    कहनाम (नवरतनी फुआ केकरो बेटी के सउरी में नून न चटौलक, नरेटी जाँत के न मुऔलक, बसना में ठूँस के डघ्घर पर न फेंकलक । ओकर कहनाम सब जीव भगवान के संतान - कोई बेटा होयल कोई बेटी । हम परहाप काहे लेवे जाउँ ।; नवरतनी फुआ के कहनाम बेटी जलमला से बाप के जाँघ पवित्तर । जउन बाप कनेया दान न कयलक, ओकर पैठ नरक-सरग में कहुँ न । बेटी से बाप के पगड़ी ऊँचा हो जाहे । मातृकुल-पितृकुल के जोड़ेवाला बेटिए हे ।; उनकर कहनाम हम जब आँख मुन लेम तब केकरो कान्ह पर चढ़म ।; ई लइका तो तोरे हे । तोरे कहनाम पर बनारस पढ़े ला भेजली । जा, कहइत हऽ त बिआह होतवऽ ।)    (माकेसिं॰18.22, 25; 34.4; 58.22)
167    कहर-टोली (ओझा पट्टी होवे इया अहीर पट्टी, कुम्हर टोली होवे इया मुसहर टोली, बभन टोली होवे इया कहर टोली - चानमामू सगरे देखाई देतन ।; चमरटोली होवे इया मुसहर-टोली, डोमटोली होवे इया कहरटोली, भूलेटन ला उलार सुरूज भगवान, बिहटा के बिटेश्वर नाथ ।)    (माकेसिं॰30.15; 86.7)
168    कहाउत (कोई नाव पर बइठ के लवटे ला निहोरा कर रहल हे बाकि तेतरी दीदी ला भईंस के आगे बिन बजावे ठाढ़े भईंस पघुराय ओला कहाउत । ऊ सब कुछ सुन के अनसुनी कर देल । ओकरा ला पत्थल पर पानी के बून्द ।)    (माकेसिं॰24.5)
169    कहार (तेतरी दीदी ! हमनी तोरा जाय न देबऊ । आ जयबे तो हमनियो के साथे-साथे लेले चलिहें । हमनी तोर कहार बन के चलब, तू डोली में कनियाँ बन के चलिहें ।; तू ही हम्मर जीवन के खेवैया हऽ, हम कुछ न । हम तो हैंडिल-पैडिल थाम्हेओला तोर कहार ही ।)     (माकेसिं॰26.28; 75.27)
170    कहिया (= किस दिन, कब) (लइकन अप्पन-अप्पन माय-बाप से पूछ रहल हथ - तेतरी दीदी कहाँ गेल हे, ससुरार का होवऽ हे, बिआह कउन चीज हे, काहे ला होवऽ हे ? हमनी ससुरार कहिया जायम ? कहिया बिआह होयत हमनी के ? तेतरी दीदी फिन कब आवत ?; तोरा सब के छोड़के हम अब कहियो ससुरार न जायम ।; चानमामू चानमामू हथ । पुराना जमाना के अदमी, पुराना जमाना के ठाठ-बाट बाकिर जमीन्दारी ठाट कहियो न देखौलन ।)    (माकेसिं॰28.18; 29.12; 31.12)
171    कहियो (= कभी भी) (लोग चनकी दाई के जे समुझथ बाकि उ अप्पन मुँह से कभी कोई बकार न निकाललक । न कहियो देवास लगौलक न केकरो अच्छत-भभूत देलक ।; रजिया अम्मा के कहियो बुझयबे न कयलक कि ऊ मुसलमान हे ।)    (माकेसिं॰64.4; 93.20)
172    कागज-पत्तर (कागज-पत्तर ठीक हे न ? डँटइया ओहे ला होवऽ हे । समय से तो हम पहुँचा ही देम ।)    (माकेसिं॰77.17-18)
173    काजर (~ पारना) (सब काम छूट जाय तो छूट जाय, चार गो काम ओकरा ला चारो धाम । जलमउती के नार काटना, काजर पारना, परसउतीन के बतीसा घाटना आ बिआह में ढोल बजाना - ई ओकर हिरदा के हुलसवाला काम ।)    (माकेसिं॰16.29)
174    कातिक (= कर्तिक) (भूलेटन कातिक-अगहन, फागुन-चइत खेत में बाकी महीना बगान में ।)    (माकेसिं॰84.10)
175    कादो (= कीचड़) (~ करना) (हरवाहा जब खेत में कादो करे लग तब ई खेत में लोंघड़निया मारे लगतन । जइसे खेत जोतला पर चउकी दिआ हे ओइसहीं ई सउँसे खेत में लोंघड़निया मारे लगतन ।)    (माकेसिं॰56.1)
176    कानू (= एक जाति विशेष जिसका मुख्य पेशा है अनाज भूँजना; भड़भूजा) (पाँच फुट पाँच ईंच के शरीर हे ओकर बिलकुल नापल जोखल । लामा हाथ नोहरंगनी से रंगल नोह के अंगुरी पकल लाल मिरचाई लेखा शोभऽ हे । ओकर मुँह कानू के घुनसारी लेखा दहकइत दप दप गोर ।; रजिया अम्मा सबके अम्मा - राजपूतो के, भूमिहारो के, तेलियो के, कानूओ के, कोइरियो के अम्मा, कुम्हारो के, ब्राह्मणो के, हरिजनो के - सब जात के अम्मा - रजिया अम्मा ।)    (माकेसिं॰66.7; 93.7)
177    कान्ह (= कन्धा) (चानमामू हमेशा हँस के बतिअयतन । उनकर चेहरा भी ओइसने चान लेखा - सुभग शरीर, लमपोर छव फीट के । उज्जर बग-बग धोती, देह में कुरता, माथ पर गान्ही टोपी, कान्ह से लटकइत झोला, गरदन में गमछा, हाथ में छाता इया एगो बकुली - बस, इहे उनकर पेहनावा हे ।; उनकर कहनाम हम जब आँख मुन लेम तब केकरो कान्ह पर चढ़म ।)    (माकेसिं॰32.28; 34.4)
178    कारज-परोज (पैरपूजी में पहिला पैरपूजी रजिया अम्मा के । कोनो कारज-परोज रजिया अम्मा के बिना छूँछ ।)    (माकेसिं॰92.17)
179    किंची (गोड़ में कुरूम के जूता अइसन पालिस मारल कि ऐनक में मुँह लउके । चानमामू पान, बीड़ी, सिगरेट, खैनी, तमाकू, गाँजा-भाँग, दारू-ताड़ी से सौ कोस दूर । जे एकर शिकार उ चानमामू के आँख के किंची ।)    (माकेसिं॰33.2)
180    किकुरना (= सिकुड़ना, सिमटना, मुड़ना; पौधों की पत्तियों या टूसे का अन्दर की ओर मुड़ना) (वास्तव में चनकी दाई के दरद मीरा के दरद लेखा कोई समझ न सकल । चनकी दाई भात लेखा सीझल कहानी हे । एगो औरत के मरदाना के चलती समाज में लंगटे ठार, ठकमुरकी मारले एगो किकुरल भिखारिन के मूरती हे चनकी दाई ।; लुह-फुह बंगुरल किकुरल लतरिया, महुआ लटाई गेलई आम के मोजरिया । चिरईं-चुरूंगा सनसार हो, बन्हल हँकड़े गइया रे बकरिया ।)    (माकेसिं॰70.12; 76.26)
181    किच-किच (कइसन हथिन चान मामू कइसन इंजोरिया, घेरले रहल सब दिन भादो के बदरिया । किच किच सगरे खभार हो, टूटल घर-बाँस के चचरिया ।)    (माकेसिं॰76.24)
182    कित्ता (= किता, कीता; चारों ओर बने घर और बीच में आँगन वाला मकान) (तीन-तीन कित्ता पक्का मकान बन गेल, टरेक्टर, थरेसर मशीन खरीदा रहल हे । खान-पान पेन्हावा-ओढ़ावा देख के सबके पिल्ही चमक जाइत हे ।)    (माकेसिं॰64.28)
183    किरपा (= कृपा) (बाल्टी के बाल्टी दूध पिअली हम, छाल्ही-मक्खन खइली हम । भगवान के किरपा से चार गो हरवाहा, एगो बराहिल, गाँव में पहिला मरद हम जेकर मकान पक्का के ।)    (माकेसिं॰49.21)
184    किरिन (= किरण) (उनकर मुँह के दाँत अनार के दाना लेखा लाल-लाल उगइत सूरूज के किरिन जइसे ओस के बून्द पर टहकऽ हे, ओइसहीं बड़ाबाबू के दाँत चूअइत लार के बीच में टहकऽ हे ।; कतना नोचबऽ, कतना उजाड़बऽ । कहइत कहइत उनकर मुँह आँवा लेखा दहके लगत, आँख से उगइत सुरूज लेखा किरिन फूट फूट के निकले लगत ।)    (माकेसिं॰38.24; 50.29)
185    कुँइया (= कुआँ) (दुश्मन दुश्मन हे, मित कभी होही न सकत । ई लेल सीधे छेवट दऽ दुश्मन के, न रहत बाँस न बजत बाँसुरी । आगु में कुँइया रहला पर गिरे के खतरा बनले रहत ।)    (माकेसिं॰48.2)
186    कुकुहारो (= कोलाहल; अनेक लोगों की मिली-जुली आवाज) (अन्त में बड़ाबाबू एक दिन आँख मून लेलन । अब सब कोई पछतावा कर रहल हे । ... सच बुझऽ त बड़ाबाबू के मारे में उनकर अउरत के हाथ जादे हे । बेचारे कुकुहारो से काँटा लेखा सीझइत गेलन आ गल गल के मोम लेखा पिघलइत गेलन । छिलइत गेलन बढ़ही के बँसुली से लकड़ी लेखा, साग के टूसा लेखा खोंटाइत गेलन । जिनगी भर सीज के काँटा पर सुतइत गेलन ।)    (माकेसिं॰45.29)
187    कुच-कुच (~ करिया) (जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत । खिजाब लगा के उज्जर माथ के बाल करिया कयल अब लउकत - चारो तरफ अन्हार-भुच, अन्हरिया, कुच-कुच करिया दिनो में रात के तरेगने सूझ रहल हे ।)    (माकेसिं॰41.25)
188    कुदकना (= कूदना) (एही सोच के ऊ तेतरी के पढ़ावे ला स्कूल में नाँव लिखौवलन बाकि तेतरी ला स्कूल पंछी के पिंजरा जइसन ! ई फुदकेओला, कुदकेओला, चहकेओला, स्कूल में मन कहाँ से लगो, कौपी सिलेट कुईंया-तालाब में डाल देवे ।)    (माकेसिं॰25.13)
189    कुदरूम (घीव-डलडा ओकरा ला परान के घाती । तेल में के छानल सामान ओकर जीव के गाहँक । ओकर रूच साग-पात, फर-फरहरी जादे । कुदरूम के साग, सरसो के साग, पोई के पत्ता, पालक, नोनी, करमी, ललका साग ओकरा ला तुलसी के पत्ता लेखा ।; आ कुदरूम कइसन ! जतने पटकल जाहे ओतने ओकर चमक बढ़इत जाहे । अतने न, ओकरा अईंठ-अईंठ के रस्सी आ गँरउटी बनावल जाहे । अपने तो साँप के केंचुल लेखा शोभवे करऽ हे, जनावर के गरदन के शोभा भी बढ़ावऽ हे ।)    (माकेसिं॰19.31; 48.25)
190    कुम्हइन (= कुम्हइनी; कुम्हार की स्त्री) (पाँच पवनियाँ पौ बारह - हजामिन, कुम्हइन, मालीन, तेलीन आ चमइन । हजामिन के नोहछुर, कुम्हइन के हाथी आ बरतन, मालीन के मौरी आ पटमौरी, तेलीन के तेल, आ चमइन के ढोल बिना बिआह-शादी के मजा किरकिरा ।)    (माकेसिं॰19.14, 15)
191    कुम्हर-टोली (ओझा पट्टी होवे इया अहीर पट्टी, कुम्हर टोली होवे इया मुसहर टोली, बभन टोली होवे इया कहर टोली - चानमामू सगरे देखाई देतन ।)    (माकेसिं॰30.14)
192    कुरूम (गोड़ में कुरूम के जूता अइसन पालिस मारल कि ऐनक में मुँह लउके । चानमामू पान, बीड़ी, सिगरेट, खैनी, तमाकू, गाँजा-भाँग, दारू-ताड़ी से सौ कोस दूर ।)    (माकेसिं॰32.30)
193    कुलबोरन (रामचन्द्र सिंह पुरनका दिन के इयाद करइत करइत परान तेयाग देलन । अब बच गेलन हे के ? बटलोही, बरहगुना, सोठ, बतीसा, कठजामुन, चुटरी, कनगोजर, कुलबोरन आ चपोरन - सब मिलके बाँस के फोंफी लेखा बज रहल हथ ।)    (माकेसिं॰22.23)
194    केकर (= किसका) (ई जादे बात करतन एन्ने-ओन्ने के - स्टेशन पर कटहर कउन भाव बिका रहल हे, ... बस में केकर कतना पाकेट कटायल ।)    (माकेसिं॰40.23)
195    केकरा (= किसको; केकरो = किसी को) (कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । जीवन भर कमाके का कयलन ? सब दिन भीखे माँगइत रहलन । खेते-खेते छुछुआइत चललन । न घर-दुआर बनौलन न केकरो पढ़ौलन-लिखौलन ।)    (माकेसिं॰90.15)
196    केरा (= केला; केकरा, किसे, किसको) (उनकर दुश्मन लोग उनका बड़ी तंग कयलन । बाकि उनकर कहनाम, केरा के गाछ केतना काटबऽ, ऊ फिन उजिया ही जायत ।)    (माकेसिं॰48.15)
197    केराव (= मटर) (सब दिन हर छन मुँह में सोंफ-इलाइची । जब हँसतन तब ओठ केराव के फारल छेमी लेखा दुनो ओठ तनि सा फाँट हो जायत आ दाँत कचगर मकई के छिलल बाल लेखा शोभे लगत ।)    (माकेसिं॰33.3)
198    केल्हुआड़ी (उनका का चाही - पानी डालल बासी भात आउ ललका मिरचाई के खटाई भरल अँचार । गेहुम के रोटी आउ केल्हुआड़ी के गुड़, मकई के दर्रा आउ खेसारी के दाल । मठजाउर आउ दलपिट्ठी पर ऊ जादे जोर मारतन ।)    (माकेसिं॰55.16)
199    केवाल (~ मट्टी) (करुआ तेल उनकर जिनगी के सिंगार हे । नेहाये के पहिले सउँसे शरीर करुआ तेल चभोर लेतन । ओकरा बाद चँवर से लावल केवाल मट्टी के फुला के खूब चिकना-चिकना के मलतन, स्नान करतन आ सूरज भगवान के जल ढारतन ।)    (माकेसिं॰55.23)
200    कोंचना (मुँह में पान इया खइनी हमेशा कोंचले रहतन जइसे परसउती चिन्हा जाहे कि लइका होवे ला हे ओइसहीं इनकर पान इया खइनी ओठ के नीचे कोंचायल रहत ।)    (माकेसिं॰38.10, 12)
201    कोंचाना (बाल-बच्चा साँप-छुछुन्दर लेखा ई बिल में से ऊ बिल में छुछुआइत चलइत हथ - सब ढनमनाइत हथ - दिनो में अउँघाइत हथ । हम करूँ का । कुछो कहली कि मुँह में मिरचाई कोंचा जायत । पढ़ऽ - एहे सोना-चानी हवऽ - एकरा कोई बाँट न सकतवऽ ।)    (माकेसिं॰74.21)
202    कोआ (= कोवा) (कटहर के ~ बन जाना) (लगऽ हे आझ के जवान के जवानी में घुन लग गेल हे । सब पेट भरे के चिन्ता में डूबल हथ । सब बालू पेर रहल हथ, तेल निकलो कहाँ से । बबूर तर आम भेंटा हे ? सब कटहर के कोआ बन गेल हथ ।; आम के अमावट, कटहर के कोआ पर ऊ मधुमाखी लेखा टूट पड़तन ।)    (माकेसिं॰36.16; 55.20)
203    कोइन (= महुए का फल, गुठली और उसकी गिरी) (हम्मर भइया के न देखलऽ भूलेटन के देखलऽ । अनमन ओइसने गोलभंटा लेखा मुँह, नरिअर के गुदा लेखा उज्जर-उज्जर आँख, महुआ के कोइन लेखा नाक, आम के फाँख लेखा पात्र-पात्र ओठ, अनार के दाना लेखा दाँत, टमाटर लेखा गाल - गाल आउ मुँह दून्नो लाल लाल - हमेशा पान खाये के आदत - हँसतन तब लगत पन्नी लगावल बौल बरइत हे ।)    (माकेसिं॰82.3)
204    कोइरी (रजिया अम्मा सबके अम्मा - राजपूतो के, भूमिहारो के, तेलियो के, कानूओ के, कोइरियो के अम्मा, कुम्हारो के, ब्राह्मणो के, हरिजनो के - सब जात के अम्मा - रजिया अम्मा ।)    (माकेसिं॰93.7)
205    कोठी (= अनाज रखने का बखार) (तेल लगवलन, पइसा फेंकलन, औरत के गहना-गुड़िया बेच देलन । कोठी में के अनाज बनिया के हाथ चल गेल । गाय-भईंस मेला में जाके ढाह अयलन । पास बुक में जमा पइसा चिरईं लेखा फुरदुंग होइत गेल तइयो कोई रिजल्ट न ।; एकर खरिहान देख के बरतुहार के आँख चमक जाहे । पोरा के टाल, नेवारी के गाँज, धान, गेहुम, बूट, मसूरी, खेसारी से भरल कोठी सबके सामने एगो सवाल खड़ा कर देवऽ हे ।)    (माकेसिं॰44.20; 64.22)
206    कोन (हम्मर घर आउ रामजतन चाचा के घर अगल-बगल । ऊ दक्खिन कोन पर हम उत्तर कोन पर । चार कट्ठा में मकान, आठ-दस गो बड़का बड़का घर आ ओतने बड़हन अंगना ।)    (माकेसिं॰47.2)
207    कोना-सान्ही (गाँव के मेहरारू केंवाड़ बन्द कर देल । बाल-बच्चा के लेदरा तर घुसेर देल - खिड़की खोल के सब खिलकट देखे लगल । बिअहुती औरत के सास कोना-सान्ही से भी झाँके ला मना कर देल । माय बिन बिआहल लड़की के गोड़ में छान-पगहा डाल देल ।)    (माकेसिं॰63.9)
208    कोरसिस (= कोशिश) (दुश्मन उनका बेखद-बद के अतना तंग कयलन कि ताजिनगी सावधान रहे के कोरसिस कयलन ।)    (माकेसिं॰52.12)
209    कोल-भकोल (= तंग जगह) (दिन में तरेगन लउकइत, ऊँट लेखा आन्ही-तूफान आवे के पहिले बालू में मुँह छिपावे परइत । गीध लेखा सब टूट पड़ितन । 'अबरा के मउगी सबके भउजी' बन जाइत । कोल-भकोल में लुकाइत चलइत । ओकर सुन्दरता गुलाब के फूल में काँटा बन जाइत ।)    (माकेसिं॰21.6)
210    क्रिया-करम (= क्रिया-कर्म) (चुनचुन के बात-बेयोहार, क्रिया-करम से उनकर धन-दउलत बढ़इत गेल ।)    (माकेसिं॰15.21)
211    खँसी (= खस्सी, पठरू) (बबुआ के बधइया जोड़ा खँसी चढ़इबो ये नौलाखन देवी । रहे देह बंस के निसान ये नौलाखन देवी ॥)    (माकेसिं॰88.8)
212    खंखरी (= बिना अन्न भरा धान या डेंड़ी) (तड़वा-खजूर जइसन चुअलऽ झोपड़िया, देहिया ठेठइली तबो मिलल खंखरिया । करिया अच्छर ठेपामार हो, न बुझली हम मरम अछरिया ।)    (माकेसिं॰76.31)
213    खइनी (मुँह में पान इया खइनी हमेशा कोंचले रहतन जइसे परसउती चिन्हा जाहे कि लइका होवे ला हे ओइसहीं इनकर पान इया खइनी ओठ के नीचे कोंचायल रहत ।)    (माकेसिं॰38.10, 11)
214    खखन ("देखऽ बउआ चमोकन, तू ही हम्मर एकलौता बेटा के जिनगी बचा सकऽ हऽ ।" ऊ खखन में बोलइत हल आ एन्ने चमोकन बार-बार चमोकन कहला पर आग लेखा धधकइत हलन ।)    (माकेसिं॰60.31)
215    खखनना (ऊ चल गेल, छछनइत खखनइत रह गेल - कोई भर मुँह हमरा से बोलइत, कोई अंगना-दुआर पर बइठे ला आदर से पीढ़ा देवइत, शादी-बिआह, गवना तिलक, छठी-छीला में बोलावइत - राम-बिआह, शिव-बिआह के झूमर, सोहर गीत गवावइत, दुल्हा-दुल्हिन के परिछन करवावइत, चउका पर बइठल बर-कनेया के असीरबादी अच्छत छींटे ला कहइत ।)    (माकेसिं॰67.5)
216    खगड़ा (तेतरी के माय-बाप गाँव के सबसे गरीब । घर के देवाल ढह गेल हे, आझ ले न उठल - ताड़ के खगड़ा से घेर के अलोत कर देवल गेल हे । फूस के पलानी एक तरफ से आन्ही-पानी में उड़िआयल हे से आझ ले आकाशे ओकर छावनी बनल हे ।)    (माकेसिं॰24.29)
217    खटारा (उनकर पूरा घर पटना के सिटी बस जइसन खटारा - घर के एक छोर पर बाँस घाट त दूसरा छोर पर गाय घाट, तीसरा छोर पर महाबीर स्टेशन त चउथा छोर पर हथुआ मार्केट ।; मेम साहेब कहतन - 'एहे से तोर जीपवा नवचेरी कनियाँ लेखा शोभऽ हवऽ आउ सबके खटारा काहे होयल रहऽ हई ।')    (माकेसिं॰39.15; 75.19)
218    खनदान (= खानदान) (इनकर खनदान में आझ ले कोई रजिस्टरी आफिस में पैर न धयलक । मन मसोस के बड़ाबाबू चार कट्ठा के एगो प्लौट रजिस्टरी आफिस में जाके रगड़ अयलन ।)    (माकेसिं॰44.25)
219    खप्पर-छानी (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।)    (माकेसिं॰32.1-2)
220    खभार (= खभाड़; कुएँ को बाँधने के पूर्व खोदा गया गोलाकार ढाँचा, खांखर; सूअर बाँधने का स्थान, बखोर; घाव आदि का छेद या गढ़ा) (कइसन हथिन चान मामू कइसन इंजोरिया, घेरले रहल सब दिन भादो के बदरिया । किच किच सगरे खभार हो, टूटल घर-बाँस के चचरिया ।)    (माकेसिं॰76.24)
221    खरंजा (= खड़ंजा, खड़ैंजा; फर्श पर ईंटों की पलस्तर रहित खड़ी जोड़ाई) (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।; घर के बगल में कर्कट पर खपड़ा से छावल नीचे खरंजा लगावल गउशाला ।)    (माकेसिं॰31.31; 102.31)
222    खरमंडल (= गड़बड़ी; विघ्न-बाधा; गड़बड़; उलटा-पलटा) (पवनियाँ रूसल सब कुछ खरमंडल, पवनियाँ खुश सब कुछ मंगल ।)    (माकेसिं॰19.18)
223    खस्सी-बकरी (बकरीद में रजिया अम्मा खस्सी-बकरी, मुरगा-कबूतर के बलि न देत । ऊ दिन ऊ सब तरह के अनाज, पुआ-पकवान, कपड़ा-लत्ता रख के दुआर पर बइठ जायत । साल भर के कमिनी के एगो बड़का अंश आझ ऊ दान करत । गरीब-गुरबा, फकीर-भिखार सबके कुछ न कुछ देत आ सबके असीरबाद लेत ।)    (माकेसिं॰94.5)
224    खाजा (खाजा आ तिलकुट के सवखीन चानमामू साल में तीन चार बार सिलाव आउ गया जयतन ।)    (माकेसिं॰34.8)
225    खाना-बुतात (आखिर ओहे जगा हीरामन, करीमन, बंसरोपन, रामखेलावन बाबू के खेत-खरिहान में कउन बेमारी समा गेल हे कि चनकी दाई से जादे खेत के जोतदार अच्छइत सालो भर के खाना-बुतात चलाना पहाड़ बनल रहित हे ।; इहे कमाई से सालो भर उनकर खाना-बुतात, कपड़ा-लत्ता, नेवता-पेहानी, हित-नाता, आगत-अतिथि के भाव-भगत के काम पूरा करतन ।)    (माकेसिं॰64.25; 84.21)
226    खानी (= क्षण; समय) (बड़ाबाबू चलतन त लगत कि टरेक्टर चलइत हे । जइसे ओकर चक्का आ डाला ढकचइत चलत ओइसहीं बड़ाबाबू के चलइत खानी उनकर हाथ, पैर आ सिर डगमगाइत चलत ।; हम लइकाई में मेला में घूमे गेली । नाव पार करइत खानी नाव डूब गेल । हम्मर माय-बाप भी डूब गेलन । एगो मल्लाह हमरा छान लेलक ।)    (माकेसिं॰38.3; 68.19)
227    खिल (माय के स्तन से पहिला खिल गार के लइका के चटाना ऊ भगवान के चरनामरित समुझऽ हे ।)    (माकेसिं॰19.12)
228    खिलकट (= विचित्र खेल, कौतुक) (गाँव के मेहरारू केंवाड़ बन्द कर देल । बाल-बच्चा के लेदरा तर घुसेर देल - खिड़की खोल के सब खिलकट देखे लगल । बिअहुती औरत के सास कोना-सान्ही से भी झाँके ला मना कर देल । माय बिन बिआहल लड़की के गोड़ में छान-पगहा डाल देल ।; ई सब देखला पर चनकी दाई के ई खिलकट रूआ के फाह पर कोइला के ढेर लेखा बुझा हे । फह-फह उज्जर चद्दर पर एगो करिया दाग लेखा देखाई देवऽ हे । बाकि चनकी दाई लाचार हे ।; चनकी दाई के ई खिलकट जवानिए से हे । अब तो ऊ नब्बे बरिस के हो गेल । गाँव-घर ओकर ई खिलकट देखइत देखइत घठा गेलन ।)    (माकेसिं॰63.8; 65.12, 15, 17)
229    खिसिआह (= खिसिआहा; गुस्सैल) (चमोकन के खुरपी आ खोपड़ी गरम हो गेल । "कउन गाँव से आवइत हऽ ? के भेजलवऽ हे ? सियार-कुकुर लेखा मुँह पयलऽ हे । सोच-समझ के बोले के चाही ।" चारो बेचारा सिआह । "कोनो खिसिआह अधपगला अदमी से भेंट हो गेल ।")    (माकेसिं॰61.17)
230    खुरपी (घास छिल्ले लगतन तब ओकर हाड़ छील के रख देतन । जन्ने जयतन ओन्ने हाथ में खुरपी आ कान्ह पर गमछा लेले जयतन ।; बिहने बिदाई भेल । बराती घर लउटल । परिछन भेल । इहँऊ चमोकन के नाम लेके गीत गवाये त ऊ बिगड़ के फायर । ऊ एगो खुरपी लेलन आउ चल गेलन बगइचा में घास गढ़े ।)    (माकेसिं॰56.31; 59.26)
231    खेत-खरिहान (जेतने चुनचुन खुश ओतने रामधेयान मलिकार खुश । रामधेयान के जबसे होश भेल तब से चुनचुन के अप्पन बराहिल बना लेलन आ खेत-खरिहान, घर-दुआर, बाहर-भीतर, बाग-बगइचा सबके भार इनका सौंप देलन ।; आखिर ओहे जगा हीरामन, करीमन, बंसरोपन, रामखेलावन बाबू के खेत-खरिहान में कउन बेमारी समा गेल हे कि चनकी दाई से जादे खेत के जोतदार अच्छइत सालो भर के खाना-बुतात चलाना पहाड़ बनल रहित हे ।)    (माकेसिं॰15.19-20; 64.23)
232    खेत-बधार (आझ चमोकन न हथ बाकि उनकर खेत-बधार, बाग-बगइचा, कुइयाँ-तलाब, पेड़-बगान गली के झिटकी चमोकन के देखे ला आँख फाड़ले हे ।)    (माकेसिं॰62.8)
233    खेतिहर (रामजतन चाचा गावे-बजावे में गुनी हइए हलन, खेतिहर भी एक नम्बर । खेत-खरिहान आझ भी उनकर इयाद में हमेशा अरिअरी से भरल-पूरल रहऽ हे ।)    (माकेसिं॰53.4)
234    खेती-बारी (अइसन बात न हे कि उनका खाय-पीये के दुख हे । खूँटा पर दूगो लगहर भईंस, एगो गाय हमेसे रखतन । खेती-बारी ला घर में दूगो बैल भी ।)    (माकेसिं॰55.9)
235    खेवा-खरची (बिसेसर न अपने पढ़लन न कोनो बाल-बच्चा के पढ़ौलन । बेचारे करथ का । भगवान भरोसे घर के खेवा-खरची कइसहुँ चल रहल हे ।)    (माकेसिं॰25.1)
236    खेसारी (= खेसाड़ी) (सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।; सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल ।; उनका का चाही - पानी डालल बासी भात आउ ललका मिरचाई के खटाई भरल अँचार । गेहुम के रोटी आउ केल्हुआड़ी के गुड़, मकई के दर्रा आउ खेसारी के दाल । मठजाउर आउ दलपिट्ठी पर ऊ जादे जोर मारतन ।)    (माकेसिं॰20.7; 31.23; 55.16)
237    खैरा (जग डोले जगदम्बा डोले, खैरा पीपर कबहुँ न डोले ।)    (माकेसिं॰72.1)
238    खोंइछा (बिसउरी पूरल । नवरतनी फुआ के नया साड़ी-झूला, भर हाथ चूड़ी, माँग में सेन्नुर, खोंइछा में चाउर, सीधा अलग से ।; बड़की छठी मइया के मनता उतारलक । शीतला माय के मन्दिल में खोंइछा भरलक ।)    (माकेसिं॰18.13; 42.27)
239    खोंखी (बड़ाबाबू चूहा आ चारो मेहर बिलाई । ... रात बीतला दुबकल अयतन आ घुसुक जयतन चोर लेखा अप्पन चार हाथ के कोठरी में । खिड़की-केंवाड़ बन्द - हवा - पानी  हड़ताल - खोंखी-ढेकार गुम - खाना-बुतात होटल ।)    (माकेसिं॰40.1)
240    खोंटली (बिसउरी पूरल । नवरतनी फुआ के नया साड़ी-झूला, भर हाथ चूड़ी, माँग में सेन्नुर, खोंइछा में चाउर, सीधा अलग से । कोई अप्पन छूंछी उतार के दे रहल हे, कोई नकबेसर, कोई खोंटली, कोई गोड़ के बिछिया ।)    (माकेसिं॰18.15)
241    खोंटाना (बेचारे कुकुहारो से काँटा लेखा सीझइत गेलन आ गल गल के मोम लेखा पिघलइत गेलन । छिलइत गेलन बढ़ही के बँसुली से लकड़ी लेखा, साग के टूसा लेखा खोंटाइत गेलन । जिनगी भर सीज के काँटा पर सुतइत गेलन ।)    (माकेसिं॰46.1)
242    खोता (= खोंथा) (कोई काम इनका से निकाले ला हे - चनेसर बाबू, चनेसर भइया, चनेसर बउआ, चनेसर काका कहके निकाल लऽ - कोई कोर-कसर न । जहाँ चमोकन कहलऽ कि समुझऽ बिढ़नी के खोता में हाथ डाल देलऽ, कटाह कुत्ता के ललकार देलऽ ।)    (माकेसिं॰56.21)
243    खोदाँवदार (= सतह पर खुदे छोटे गढ़ेवाला) (हाथ में एगो लाठी जे नीचे से पतरा आ ऊपर जाइत जाइत मोटा हो गेल हे ... ओकर माथ गेहुँअन के फन लेखा जेकरा में खोदाँवदार पीतर चमकइत रहऽ हे ।)    (माकेसिं॰100.21)
244    गँरउटी (आ कुदरूम कइसन ! जतने पटकल जाहे ओतने ओकर चमक बढ़इत जाहे । अतने न, ओकरा अईंठ-अईंठ के रस्सी आ गँरउटी बनावल जाहे । अपने तो साँप के केंचुल लेखा शोभवे करऽ हे, जनावर के गरदन के शोभा भी बढ़ावऽ हे ।)    (माकेसिं॰48.27)
245    गंगा-जमुनी (चुनचुन के एको संतान न होयला से चुनचुन से जादे दुखी रामधेयान सिंह । आज रामधेयान चुनचुन बन गेलन आ कलेसरी परमेसरी मलिकाइन । दुन्नो घर गंगा-जमुनी लेखा ।; जे जिअते इनका बकलोल आ भकलोल समझइत गेल आझ ऊ उनकर औरत के सामने गंगा-जमुनी के झूठा लोर बहा-बहा के बड़ाई लूट रहल हे ।)    (माकेसिं॰15.24-25; 46.10)
246    गछिया (गाछ का ऊना॰) (छोटी-मुटी नीमिया गछिया भूइयाँ लोटे डाढ़ गे माई । ताही तर शीतली मइया, खेले जुगवा-सार गे माई ॥)    (माकेसिं॰88.1)
247    गजगज (~ करना) (ई झोपड़ी गजगज करे लगल । नवरतनी फुआ के नाम रामपेआरी रखल गेल । राम के असीरबाद से रामपेआरी बाग-बगइचा में चहकइत रहल, चान-सुरूज लेखा चमकइत रहल ।)    (माकेसिं॰16.1)
248    गड़ी (= नारियल) (बम बम करऽ हे उनकर दलान । रंग, अबीर, गड़ी, छुहेड़ा, काजू-किसमिस, भाँग-मजूम के धुरखेली समुझऽ ।)    (माकेसिं॰37.6)
249    गढ़ना (घास-पात ~) (तेतरी दीदी फिन ठाहका लगौलक आ सबके लेके डोल-पत्ता खेले लगल । कभी बकरी चरावे, कभी गोबर-गोइठा चुने, कभी घास-पात गढ़े, कभी लइकन के साथे तरह-तरह के खेल खेले ।)    (माकेसिं॰29.17)
250    गदका (~ भाँजना) (तजिया निकलत तब सब हिन्दू गदका भाँजतन, एक से एक करामात देखौतन हिन्दू नवही । गदका भाँजे ला पचासी बरिस के तपेसर मिसिर आ रामलखन चौधरी भीड़ में मुरेठा बान्ह के कूद जयतन ।)    (माकेसिं॰93.25, 26)
251    गन्ह (= गन्ध) (टेम्पो-बस में उनका उल्टी होय लगत, डिजल-पेट्रोल के गन्ह लगल कि इनकर माथ चकराये लगत । फेफड़ा के धड़कन बढ़ जायत । बैलगाड़ी के सवारी उनका ला बक्सर के सोनपापड़ी आ मनेर के लड्डू ।)    (माकेसिं॰34.5)
252    गमछा (चानमामू हमेशा हँस के बतिअयतन । उनकर चेहरा भी ओइसने चान लेखा - सुभग शरीर, लमपोर छव फीट के । उज्जर बग-बग धोती, देह में कुरता, माथ पर गान्ही टोपी, कान्ह से लटकइत झोला, गरदन में गमछा, हाथ में छाता इया एगो बकुली - बस, इहे उनकर पेहनावा हे ।)    (माकेसिं॰32.29)
253    गमछी (देखली कि एगो बोरा में कुछ बान्हल हे आ गमछी में कुछ छटपट करइत हे । हम छुअल चाहली बाकि ऊ मना कर देल । 'ई में सबके तीर-धनुष हे, घोंपा जायत तब हमरा दोस न देब ।')    (माकेसिं॰77.28)
254    गम-फिकिर (बाँस के फोंफी से, नाक से जब ऊ बीन बजावे लगत तब सब लइकन नाग बन के नाचे लगतन । एक दिन तो सचमुच एगो टिल्हा तर नाग निकल के नाचे लगल । तेतरी दी के कोई गम-फिकिर न बाकि सब लइकन के देह काँपे लगल, परान सूख गेल । तेतरी दीदी ला सबके चिन्ता । बाकि तेतरी दीदी फिन अइसन आवाज निकाले लगल कि नाग बिल में ।)    (माकेसिं॰26.15)
255    गरई (जिते ~ निगलना) (पंचाइत के चुनाव में ऊ मुखिया में ठार होयतन हल तब जीत जयतन हल बाकिर उनकर कहनाम कि जनता के कुरसी पर बइठ के जिते गरई के निगले जाव ।; बड़ाबाबू कंजूस के पुड़िया आ एने चारो गुड़िया घर में बिलाई बन के चूहा पकड़े ला दुबकल हे । बड़ाबाबू चूहा आ चारो मेहर बिलाई । बड़ाबाबू अइसन गाड़ल गरई कि पकड़यबो करला पर हाथ से छटक के भाग जयतन ।)    (माकेसिं॰34.26; 39.28)
256    गरिआना (चनकी दाई के पास कोई न बइठे । जउन राह धर के जायत, लोग ऊ राह छोड़ देतन - कउन ठीक चनकी दाई निहुँछ के केकरो थोप देत । चनकि दाई चलत तब बुदबुदाइत चलत - लगत केकरो से बतिया रहल हे, केकरो गरिआ रहल हे, केकरो घिना रहल हे ।)    (माकेसिं॰65.19)
257    गरीब-गुरबा (बकरीद में रजिया अम्मा खस्सी-बकरी, मुरगा-कबूतर के बलि न देत । ऊ दिन ऊ सब तरह के अनाज, पुआ-पकवान, कपड़ा-लत्ता रख के दुआर पर बइठ जायत । साल भर के कमिनी के एगो बड़का अंश आझ ऊ दान करत । गरीब-गुरबा, फकीर-भिखार सबके कुछ न कुछ देत आ सबके असीरबाद लेत ।)    (माकेसिं॰94.8)
258    गलती-सलती (" ... हम तोरा से का मजाक करब । चाम के मुँह, लरखरा गेल तब का करूँ ।" - "हँ, तब आगे कहऽ, छोड़ऽ छोड़ऽ गलती-सलती के बात । ...")    (माकेसिं॰58.21)
259    गलफर (मुँह खोलावे ला हे त पान के बीड़ा चिबावे ला दऽ इया कोनो अइसन बात कहके उनका चिरका दऽ, फिन काऽ, देखऽ उनकर आँवा लेखा मुँह, पलास के फूल लेखा गलफर - ओड़हुल के लाल टूह टूह फूल लेखा जीभ ।; कटहर लेखा माथ, रीठल नादा लेखा गाल, करिया गाजर लेखा नाक, हाथी के सूँढ़ लेखा बाँह, टील्हा लेखा छाती, लोढ़ा लेखा लिलार, कनगोजर लेखा भौं, जामुन लेखा आँख, ललगुदिया अमरूध के फाँक लेखा ओठ, घुनसारी लेखा दहकइत मुँह के गलफर, अनार के दाना लेखा दाँत, माथ पर करिया बादर लेखा केस, छव फीटा जवान दद्दू भइया के देखला पर सबके मुँह से एके बकार - 'भगवान बड़ा सोच-समझ के दद्दू भइया के अप्पन हाथ से गढ़लन हे ।')    (माकेसिं॰38.22; 100.5)
260    गली-कुची (साग ला ऊ फिफिहिया होयल चलत । आरी-पगारी, चँवर-ढिबरा, गली-कुची । नोनी के साग, गेन्हारी के साग, करमी के साग, आ खेत-खरिहान में गोबरछत्ता खोजइत चलत ।; जने चले ओन्ने गली-कुची हिलावइत चले, राहे बाटे हड़हड़ाइत चले ।)    (माकेसिं॰20.4; 25.25)
261    गवइया (= गवैया) (दखिनवारी पट्टी के गवइया आ बजवइया रामजतन चाचा के शिव लेखा गंगा के धारण कयले हथ ।)    (माकेसिं॰52.19)
262    गवईं (= गवँई; छोटा गाँव; टोला) (गाँव में एक से एक गवैया बजवैया महुआ के लाठा बन के जी रहल हथ । ऊ लोग के सुर, ताल, लय, गाँव गवईं के संस्कार गीत गा गा के कतना लोग पद्मश्री आ पद्मभूषण से सम्मानित हो गेलन, बाकि रामजतन चाचा के गीत गाँव में रह गेल ।)    (माकेसिं॰53.31)
263    गवनई (जब ऊ सेनगुप्ता धोती आ सिल्कन-मटका के कुरता झार के हित-नाता, बर-बाजार, बाहर-भीतर इया गवनई के समय निकलऽ हलन तब लगऽ हल कोई राजकुमार जा रहल हे, कोई दुल्हा बराती जाय ला सक के बइठल हे ।)    (माकेसिं॰53.11)
264    गवनिहार (बीच में झलासी आ खपड़ा से छावल ... सौ फीट लमा आउ पच्चीस फीट चौड़ा एगो चउपाल जेकरा में दद्दू भइया होरी, चइता, आल्हा, कुँवर विजयी, चुहड़मल, रानी सुरुंगा के गीत सुननिहार लागी, ओहे में एगो मंच जेकरा पर दद्दू भइया के बइठका आ गवनिहार के आसन लगऽ हे ।)    (माकेसिं॰102.24)
265    गहना-गुड़िया (तेल लगवलन, पइसा फेंकलन, औरत के गहना-गुड़िया बेच देलन । कोठी में के अनाज बनिया के हाथ चल गेल । गाय-भईंस मेला में जाके ढाह अयलन । पास बुक में जमा पइसा चिरईं लेखा फुरदुंग होइत गेल तइयो कोई रिजल्ट न ।)    (माकेसिं॰44.19)
266    गाँज (= पूँज) (एकर खरिहान देख के बरतुहार के आँख चमक जाहे । पोरा के टाल, नेवारी के गाँज, धान, गेहुम, बूट, मसूरी, खेसारी से भरल कोठी सबके सामने एगो सवाल खड़ा कर देवऽ हे ।)    (माकेसिं॰64.21)
267    गाँव-गवईं (गाँव में एक से एक गवैया बजवैया महुआ के लाठा बन के जी रहल हथ । ऊ लोग के सुर, ताल, लय, गाँव गवईं के संस्कार गीत गा गा के कतना लोग पद्मश्री आ पद्मभूषण से सम्मानित हो गेलन, बाकि रामजतन चाचा के गीत गाँव में रह गेल ।)    (माकेसिं॰53.31)
268    गाँव-जेवार (गाँव-जेवार में सब कोई छक्का-पंजा खेललन, नहला पर दहला चलवलन बाकिर चानमामू केकरो चुटियो न काटलन ।; रात-बिरात गाँव-जेवार में कोई बेमार पड़ल, चानमामू ओकरा लेके डागटर रामसागर ठाकुर के पास दउड़ जयतन, देखला देतन आ शर्मा जी के दोकान से दवा भी उधार ।)    (माकेसिं॰31.3; 33.14)
269    गाछ (कभी गुलर के पेड़ पर, कभी जामुन के डँउघी पर, कभी पीपर के पात पर, कभी अमरूध के गाछ पर । तेतरी दीदी बानर लेखा ई डाल से ऊ डाल, ई गाछ से ऊ गाछ ।)    (माकेसिं॰25.27, 28)
270    गाछ-बिरिछ (गाड़ी हन हन करइत सरपट दउड़इत गेल । सड़क के दुन्नो ओर तरह-तरह के गाछ-बिरिछ एक दूसरा के छाती से लगा के आपुस में गप्प-सप्प कर रहल हलन । झार-झुरकुट एक दूसरा के माथ झुका झुका के सलाम करइत हल ।; तरह तरह के गाछ-बिरिछ, फूल-पत्ती, झील-झरना देख के मन सरग के परिकरमा करे लगल ।)    (माकेसिं॰78.23; 79.7)
271    गाटर (= लोहे की बीम, शहतीर) (ऊ लाठी के एक पटकन जेकर मकज पर पड़ गेल - समुझ लऽ सीधे सुरधाम, कहुँ हाथ-गोड़ पर पड़ गेल - समुझऽ हाथ-पैर से लुल्ह, पीठ इया कमर पर पड़ गेल समुझऽ रीढ़ इया कमर के हड्डी लोहा के गाटर से कोई तोड़ देल हे ।)    (माकेसिं॰101.3)
272    गान-बजान (गान-बजान के ऊ अतना सवखीन हलन कि जेवार से गावे ला उनका बोलहटा आवऽ हल ।)    (माकेसिं॰53.14)
273    गान्ही (= गाँधी) (~ टोपी) (चानमामू हमेशा हँस के बतिअयतन । उनकर चेहरा भी ओइसने चान लेखा - सुभग शरीर, लमपोर छव फीट के । उज्जर बग-बग धोती, देह में कुरता, माथ पर गान्ही टोपी, कान्ह से लटकइत झोला, गरदन में गमछा, हाथ में छाता इया एगो बकुली - बस, इहे उनकर पेहनावा हे ।)    (माकेसिं॰32.28)
274    गारल (~ गिरई) (आ मुखिया ? समुझऽ गारल गिरई । एन्ने समाज सेवा ओन्ने डपोरसंखी । सेवा से जादे खेवा कहइत-कहइत उनकर मुँह आँवा से निकलल बरतन लेखा लाल हो जायत ।)    (माकेसिं॰35.2)
275    गिट्टी (जब रोड खराब मिल जायत तब ओकर आँख सुरूज लेखा बरे लगत । मुँह करिया झामर हो जायत । भर रहता कहइत जायत - 'ई रोडवो गिटिया ठीकदार साहेब लेले जयतन हल तब अच्छा हल । घर गेला पर बाल-बच्चन सब भकोसिए जयथिन हल । करमजरू ठीकदार ! जा तोर पेट कहियो न भरत ।')    (माकेसिं॰76.6)
276    गिधवा-मसान (जउन गाँव में बात-बात पर लाठी लठउल, एक बित्ता आरी-पगारी ला भाला-गड़ास, राई के तीसी आ तीसी के राई बनावेओला गाँव, होत साँझ-बिहान सातो पुरखन के नेओतहरी, छोट-छोट बात पर गिधवा-मसान - ऊ गाँव में चानमामू सब के मामू बन के रह गेलन ।)    (माकेसिं॰31.22)
277    गिरई (आ मुखिया ? समुझऽ गारल गिरई । एन्ने समाज सेवा ओन्ने डपोरसंखी । सेवा से जादे खेवा कहइत-कहइत उनकर मुँह आँवा से निकलल बरतन लेखा लाल हो जायत ।)    (माकेसिं॰35.3)
278    गिरह (= गाँठ; जोड़) (हाथ में एगो लाठी जे नीचे से पतरा आ ऊपर जाइत जाइत मोटा हो गेल हे ... ओकर माथ गेहुँअन के फन लेखा जेकरा में खोदाँवदार पीतर चमकइत रहऽ हे । गिरह-गिरह पर नक्काशीदार पीतर के पानी चढ़ावल आ लाठी के भीतर में लोहा आउ शीसा पिआवल हे ।)    (माकेसिं॰100.22)
279    गिरहदार (~ लाठी) (खादी के चुस्त पायजामा, खद्दर के कुरता, कान्ह पर लाल गमछा, आँख पर उज्जर चश्मा आ हाथ में एगो लाठी जे नीचे से पतरा आ ऊपर जाइत जाइत मोटा हो गेल हे, गिरहदार आ धूप में इया आग में तेल लगा-लगा के लाल भीम कर देवल गेल हे ।)    (माकेसिं॰100.19)
280    गीत-गवनई (पहलवान बाबा से लोग जइसे बेनीबिगहा के अखाड़ा के जानऽ हलन ओइसहीं रामजतन चाचा के गीत-गवनई से लोग बेनीबिगहा के जानऽ हल ।; गीत-गवनई, नृत्य-नाटक के कतना सरकारी, गैर सरकारी संस्था आउ विभाग हे जे गाँव के ओर से आँख मुनले हे ।)    (माकेसिं॰53.20; 54.7)
281    गुड़पीट्ठी (गाय के दूध, रोटी, दलपीट्टी, गुड़पीट्ठी, ढकनेसर, दारा, सतुआ उनकर रूचगर भोजन ।)    (माकेसिं॰101.26)
282    गुदा (= गुद्दा; गूदा) (गीत गावइत गावइत ऊ मस्त हो जायत । ... आँख-मुँह लाल हो जायत । लगत जइसे कोई तरबूजा के गुदा निकाल के रख देल । अतने में 'भड़ाम' आवाज भेल ।)    (माकेसिं॰77.9)
283    गुनगर (= गुणवान) (छवो के बाल बच्चा लोढ़ा-सिलउट लेखा बज्जर, पढ़ल-लिखल, गुनगर, सोभवगर ।; हम जिन्दा ही तब अप्पन सवांग के चलते, बाल-बच्चा, बेटा-बेटी, पोता-पोती, नाती-नतिनी के चलते । सब पढ़ल-लिखल, गुनगर, अफराद, धन-दउलत - केकर मजाल हे जे हमरा आँख देखा देत ।)    (माकेसिं॰65.11; 70.5)
284    गुनागर (तेतरी दीदी सीटी बजावे में गुनागर । मुँह से, अंगुरी से, पेड़ के पत्ता से, फोंफी से, आम के अमोला से, मकई-जिनोरा के पत्ता से तरह-तरह के बाजा, तरह-तरह के आवाज, रंग-बिरंग के गीत ।)    (माकेसिं॰26.10)
285    गुनी (= गुणी; गुने, गुण के कारण) (ओझा-~) (ऊ सबके दुलारी धिया - ओझो गुनी के, डाइनो कवाइन के ।; आँख में आँख एगो बेटा । माय-बाप दवा-बीरो कराके, ओझा-गुनी से फुँकवा के थक गेलन ।)    (माकेसिं॰24.25; 55.14)
286    गुम्मी (~ साधना) (अब होवे लगत बतकही । सब कोई अप्पन अप्पन औरत के बात निकालत बाकिर ई गुम्मी साधले रहतन ।)    (माकेसिं॰40.15)
287    गुलर (= गुल्लड़; गूलर) (चनकी दाई बेचारी करो का ? एकरा से न कोई बोले न कोई हँसे । न कोई बात न कोई विचार, न कोई लेन न कोई देन । बयना-पेहानी, आवन-जावन, उठ-बइठ, चउल-मजाक एकरा ला गुलर के फूल ।)    (माकेसिं॰66.23)
288    गुहना (टुनमुन के औरत अप्पन घरे बोला के नवरतनी फुआ के केस गुहलक, चोटी बान्हलक, मांग में सेन्नुर, हाथ में भर बाँह चूड़ी, गोड़ रंग के देबी मान के गोड़ लागलक ।)    (माकेसिं॰21.27)
289    गेंड़ांव (गोड़ में गेंड़ांव, हाथ में पहुँची, गरदन में हैकल, कान में झूमका, नाक में छूंछी, महुआ लेखा गोड़ के दसो अंगुरी, अंगुरी में चानी के बिछिया, सलो भर नोह रंगले - देख के कोई भी चनकी दाई के हिरदा से सराहऽ हे ।)    (माकेसिं॰66.8)
290    गेन्हारी (~ के साग) (साग ला ऊ फिफिहिया होयल चलत । आरी-पगारी, चँवर-ढिबरा, गली-कुची । नोनी के साग, गेन्हारी के साग, करमी के साग, आ खेत-खरिहान में गोबरछत्ता खोजइत चलत ।)    (माकेसिं॰20.4)
291    गेरा (= गला, कंठ) (दान-पुन करइत-करइत जिनगी दाव पर रखा गेल । चिरईं-चिरगुनी के चाउर खिआवइत-खिआवइत, चूँटी के चीनी देवइत-देवइत चानी के केस पक गेल । तबीज पेन्हइत-पेन्हइत सउँसे गेरा घुँघरू बन गेल । जोग-टोटरम करइत-करइत जवानी जुआ गेल ।)    (माकेसिं॰57.28)
292    गेहुम (= गोहूम, गोधूम, गेहूँ) (ओही लाली लेले नवरतनी फुआ जलम लेल । कलेसरी के मरद ओ घड़ी बधार में गेहुम काटइत हल ।; उनका का चाही - पानी डालल बासी भात आउ ललका मिरचाई के खटाई भरल अँचार । गेहुम के रोटी आउ केल्हुआड़ी के गुड़, मकई के दर्रा आउ खेसारी के दाल ।)    (माकेसिं॰15.8; 55.15)
293    गैरमजरूआ (= गरमजरूआ) (गैर मजरूआ जमीन आ हदबन्दी से फाजिल जमीन पर जहाँ-जहाँ दद्दू भइया झण्डा गड़वा देलन, उखाड़े के केकरो बउसात न हे ।)    (माकेसिं॰108.14)
294    गोटा (= संख्या, गिनती; दुन्नो गोटा = दोनो व्यक्ति) (खइली, हाथ धोइली आ बस्ता उठा के दुन्नो गोटा चल देली । साथे जाना साथे आना - सहोदर भाई लेखा हमनी पढ़इत रहली ।)    (माकेसिं॰48.12)
295    गोड़ (गोड़ में कुरूम के जूता अइसन पालिस मारल कि ऐनक में मुँह लउके । चानमामू पान, बीड़ी, सिगरेट, खैनी, तमाकू, गाँजा-भाँग, दारू-ताड़ी से सौ कोस दूर ।; ई गंगा जी के भक्त हथ । सुबह-शाम गंगा के गोड़ लागतन आ एके बर मांगतन - …बिन बेटा के तो हइए ही, हम्मर चारो मेहरारू के मिल्लत करा दऽ ।)    (माकेसिं॰32.30; 42.2)
296    गोड़ी (= गोड़, पैर; ~ कबारना = भागना) (एक बार ढुनमुन के बेटा टुनमुन अप्पन रंगदारी के रंग एकरो ऊपर डालल चाहलन । ... सउँसे चमरटोली टूट पड़ल ढुनमुन के घर पर । चारो ओर से धधकइत आग देख के ढुनमुन चेहा गेलन । टुनमुन तो गाँव से गोड़ी कबार देलन ।; बड़ाबाबू के सपना टूटल त मालूम भेल कि बिहान हो गेल । उनकर जिनगी के अन्हार गोड़ी कबार देल । उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से ।; सब ओर से इनका ऊपर धायँ-धायँ गोली बरसे लगल - दद्दू भइया पीपर के पेड़ लेखा पछाड़ खाके गिरलन तब गिरले रह गेलन । तब तक पुलिस आ गेल । नरसंहार करेवाला गोड़ी कबार देलन बाकि सउँसे बिगहा झलासी के आग में झोंकर गेल । उग्रवादी जेकरा पकड़थ ओकरा झलासी के आग में फेंकइत गेलन ।)    (माकेसिं॰21.15; 42.13; 107.19)
297    गोतना (=  पानी या तरल पदार्थ में मिलाना, डुबाना, तर करना; पशुओं के चारा, दाना आदि को पानी में मिलाना; झुकाना) (सान्ही-पानी ~; मूड़ी ~) (सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।; चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।; चानमामू जनावर के बड़ा प्रेमी । जब ले ऊ अप्पन हाथ से सान्ही-पानी न गोततन तब ले उनका मच्छर काटइत रहत आ जनावर भोंकड़इत रहत ।)    (माकेसिं॰20.8; 31.31; 32.6)
298    गोतिया-नइया (बड़ाबाबू गंगा मइया के किनारे पर एगो मन्दिल बनवयलन - साधु-संत के कंक-फकीर के दान कयलन । पंडित के जेवनार करयलन - गोतिया-नइया के भोज-भात देलन ।; पचपन बरिस के उमिर में उनकर घर में इंजोर भेल । ... गाँव भर के पैर चमोकन के घरे - सबके हिरदा में हुलास - आँख में माया-ममता के मोती छलक रहल हे । बाकि गोतिया-नइया के मुँह करिखा । चमोकन के धन हबेख अब न लगत । बाकि ऊपर से मुँह पुराइ - जीए, जागे, फरे-फुलाए, हे सुरुज भगवान, अइसने लाज सबके रखिहऽ ।')    (माकेसिं॰42.24; 58.1)
299    गोदी (= गोद) (बहिन के भाई लुट गेल, पत्नी के पति हेरा गेल, माय के गोदी सुन्ना हो गेल ।)    (माकेसिं॰98.4)
300    गोबर-गोइठा (तेतरी दीदी फिन ठाहका लगौलक आ सबके लेके डोल-पत्ता खेले लगल । कभी बकरी चरावे, कभी गोबर-गोइठा चुने, कभी घास-पात गढ़े, कभी लइकन के साथे तरह-तरह के खेल खेले ।)    (माकेसिं॰29.16-17)
301    गोबरछत्ता (साग ला ऊ फिफिहिया होयल चलत । आरी-पगारी, चँवर-ढिबरा, गली-कुची । नोनी के साग, गेन्हारी के साग, करमी के साग, आ खेत-खरिहान में गोबरछत्ता खोजइत चलत ।)    (माकेसिं॰20.5)
302    गोरू-डांगर (आझ रामपेआरी के बिदाई हो रहल हे । सउँसे बगइचा सुन्न । पेड़-पउधा, चिरईं-चिरगुनी, गोरू-डांगर, फूल-पत्ती, धरती-अकास सब उदास ।; सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल ।)    (माकेसिं॰16.7; 31.25)
303    गोरैया (~ बाबा) (नवरतनी फुआ के हाथ में एगो जस हे, गोरैया बाबा के असीरबाद मिलल हे ओकरा । जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।; सालो भर गोरैया बाबा के दूध ढारत । ओकर देव-पितर सब कुछ गोरैया बाबा ।)    (माकेसिं॰18.10; 20.15, 16)
304    गोहराना (ऊ जेकरा जेकरा सिखवलन, आज भी उनका गुरु के रूप में ध्यान धरऽ हथ । चरनदेव सिंह रामायण गावे के पहिले रामजतन चाचा के धेयान लगवतन, तिरजुगी शर्मा हरमुनियाँ खोले के पहिले रामजतन चाचा के गोहरवतन, सिद्धनाथ पण्डित आ रवीन्द्र शर्मा ढोलक पकड़तन तब उनकर धेयान में रामजतन चाचा के चेहरा सामने आ जायत ।)    (माकेसिं॰52.17)
305    घइला (= घड़ा) (इनकर घर के सम्पत्ति भरल-पूरल घइला लेखा चुअइत गेल । सदमा पर सदमा लगइत गेल ।)    (माकेसिं॰44.28)
306    घटन (= दुर्दशा; क्लेश; कष्ट) (जदि हम कमजोर जात में रहती त दिन-दहाड़े गाँव के लोग हमरा जिन्दा जरा देइतन । घाठी दे देइतन । माथा के केस मुड़वा के चूना के टीका लगवा के गली-गली घूमइतन । पर-पैखाना हड़िया में घोर के पिअइतन । मुँह में मिरचाई ठूँसल जाइत, नाली के कीड़ा-मकोड़ा घोंटावल जाइत । लंगटे करके नचावल जाइत । गाँव भर के पंच के सामने लंगटे ठार करके किरासन तेल छिड़िक के जरावल जाइत । सौ घटन । हम्मर सवांग आ बाल-बच्चा कमजोर रहित त ओकरो लोग लुलुआवइत रहितन । बाकि केकर माय शेर बिअयलक हे जे हमरा सामने हम्मर इज्जत पर अंगुरी उठा सकऽ हे ।)    (माकेसिं॰70.1)
307    घठाना (चनकी दाई के ई खिलकट जवानिए से हे । अब तो ऊ नब्बे बरिस के हो गेल । गाँव-घर ओकर ई खिलकट देखइत देखइत घठा गेलन ।)    (माकेसिं॰65.17)
308    घर-घरनी (~ के बात-बेयोहार) (कउन मलिकार के का सवाद हे, उनकर बनिहार के का मन के मुराद हे - अतने न, खेते में बइठल मलिकार के घर-घरनी के बात बेयोहार, सोभाव, सोवाद, दिल आ मन के बात समझ जा हलन ।)    (माकेसिं॰83.12)
309    घर-दुआर (जेतने चुनचुन खुश ओतने रामधेयान मलिकार खुश । रामधेयान के जबसे होश भेल तब से चुनचुन के अप्पन बराहिल बना लेलन आ खेत-खरिहान, घर-दुआर, बाहर-भीतर, बाग-बगइचा सबके भार इनका सौंप देलन ।; "का तिलक-दहेज लेबहुँ ?" चमोकन से ऊ डेराइते बोललन । - "तोर लइका हवऽ, तू ही बूझऽ । एक बेटा पर जेतना जर-जमीन पइसा-कउड़ी घर-दुआर हे, देखइते हऽ ।")    (माकेसिं॰15.20; 58.26)
310    घरनी (इनकर तीनो घरनी चारो खाने चित्त । अब आटा-दाल के भाव बुझा रहल हे । सच बुझऽ त बड़ाबाबू के मारे में उनकर अउरत के हाथ जादे हे ।; रात भर हम आ हम्मर घरनी, पूरा बाल-बच्चा ऊ लोग के साथे नाच-गान में शामिल होके ऊ लोग के हिच्छा के मोताबिक उनकर भावना के आदर कइली ।)    (माकेसिं॰45.27; 79.30)
311    घरे-बने (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, ...।)    (माकेसिं॰64.11)
312    घवाहिल (= घायल) (जउन घड़ी नवरतनी फुआ ससुरार में गोड़ धयलक हल, ओकर चढ़इत जवानी देख के सब कोई अगरा जा हल । आझ के दिन नवरतनी फुआ तेरह बरिस के उमिर में घर से पाँव न निकालइत । ओकर रूप-रंग देख के अपहरण हो जाइत, बलात्कार के शिकार बनके घवाहिल लेखा घर में छटपटाइत रहित हल ।)    (माकेसिं॰21.3)
313    घाँटना (बतीसा ~) (परिवर्तन के जमाना हे, सब कुछ तरक्की कर रहल हे । मरदाना माय बन रहल हे, कम्पूटर मखाना उपजा रहल हे । विज्ञान के जुग में सब कुछ परिवर्तन - भेंड़ अदमी आ अदमी भेंड़ । तइयो नवरतनी फुआ के ओहे चलती । आझो ऊ नार काट रहल हे, काजर पार रहल हे, बतीसा घाँट रहल हे, ढोल बजा रहल हे ।)    (माकेसिं॰17.19)
314    घाँस (चार दिन के बाद उनकर समधियाना से पूछार आयल चार गो आदमी । चँवर में ई घाँस छिलइत हलन । एगो पूछ बइठल - "ए बाबू साहेब ! चमोकन बाबू के घर जाय ला हे, कन्ने से रहता हे ?)    (माकेसिं॰61.12)
315    घाटना (बतीसा ~) (सब काम छूट जाय तो छूट जाय, चार गो काम ओकरा ला चारो धाम । जलमउती के नार काटना, काजर पारना, परसउतीन के बतीसा घाटना आ बिआह में ढोल बजाना - ई ओकर हिरदा के हुलसवाला काम ।)    (माकेसिं॰16.29)
316    घाठी (= गोला-लाठी; गर्दन के नीचे ऊपर दो लाठियों के बीच दबा कर हत्या करने का तरीका) (जदि लोग जान जाइत कि हम्मर एक बार बिआह हो गेल हे तब ऊँच कुल खनदान के बेटी के का दुरगति होयत हल । ई दरद हम पानी में कीचड़ लेखा गाड़ले ही आझ ले । ... लोग जान जयतन तब अबहियो छोड़ देतन इया घाठी दे देतन ।; बउआ हो, जदि हम कमजोर जात में रहती त दिन-दहाड़े गाँव के लोग हमरा जिन्दा जरा देइतन । घाठी दे देइतन । माथा के केस मुड़वा के चूना के टीका लगवा के गली-गली घूमइतन । पर-पैखाना हड़िया में घोर के पिअइतन ।)    (माकेसिं॰69.10, 27)
317    घिकुरी (= घिकुड़ी; कम कपड़ा रहने पर ठंढक आदि के कारण शरीर को सिकोड़ने की क्रिया; घुटने को पेट में सटाकर बैठने या लेटने की क्रिया) (~ मारना) (चमोकन नाम धयल इनकर माये-बाप के हे । जखनी ई सुततन तखनी दुन्नो पैर आउ मुड़ी हाथ से मिलाके अइसन घिकुरी मारतन कि लगत कि घोंघा सटल हे ।)    (माकेसिं॰56.12)
318    घिनाना (गाँव-जेवार में सब कोई छक्का-पंजा खेललन, नहला पर दहला चलवलन बाकिर चानमामू केकरो चुटियो न काटलन । न केकरो घिनयलन न केकरो फटकारलन ।; चनकी दाई के पास कोई न बइठे । जउन राह धर के जायत, लोग ऊ राह छोड़ देतन - कउन ठीक चनकी दाई निहुँछ के केकरो थोप देत । चनकि दाई चलत तब बुदबुदाइत चलत - लगत केकरो से बतिया रहल हे, केकरो गरिआ रहल हे, केकरो घिना रहल हे ।; चनकी दाई तेल-साबुन से घिना हे । सालो भर रेह से लुग्गा साफ करत ।)    (माकेसिं॰31.5; 65.21; 66.12)
319    घिरनी (हमरा कोनो सवख हे कि जने चलूँ, पास में पिस्तौल लेके चलूँ । रात भर कभी हम, कभी हम्मर औरत, कभी बेटा, कभी पुतोह, मलेटरी के सिपाही लेखा बोर्डर पर घिरनी लेखा नाचइत रहऽ ही ।)    (माकेसिं॰51.22)
320    घिरसिर (= घिरसिरी; पानी से भरा घड़ा रखने का ओटा या चबूतरा) (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।)    (माकेसिं॰31.29)
321    घुचुर-घुचुर (जन्ने चलथ ओन्ने मुँह चुनिअवले आउ घुचुर-घुचुर आँख - देखला पर चमोकन लेखा, जइसे केकरो देह में सटलन त छोड़ाना मोसकिल ।)    (माकेसिं॰55.4)
322    घुटुक (सब कहतन - चानमामू सचमुच चानमामू हथ । सोना के कटोरी में दूध लेले चलऽ हथ आ बुतरूअन के मुँह में घुटुक देइत जा हथ ।)    (माकेसिं॰32.22)
323    घुनसारी (= घुनसार; भड़भूजे की भट्ठी; अनाज भूँजने का स्थान) (बिसेसर ला सब कुछ भाग्य आऊ भगवान । ऊ देत तब छप्पर फाड़ के देत आ न तब करम फूटल गेहुम के कि गेल घुनसारी । पुराना जमाना के सोच ।; पाँच फुट पाँच ईंच के शरीर हे ओकर बिलकुल नापल जोखल । लामा हाथ नोहरंगनी से रंगल नोह के अंगुरी पकल लाल मिरचाई लेखा शोभऽ हे । ओकर मुँह कानू के घुनसारी लेखा दहकइत दप दप गोर ।)    (माकेसिं॰25.7; 66.7)
324    घुरची (~ मार के बइठना) (कछुआ जइसे शरीर के सब अंग के समेट लेवऽ हे, बड़ाबाबू ओइसहीं सब तरह से अपना के समेट के बानर लेखा घुरची मार के बइठ जयतन ।)    (माकेसिं॰40.13)
325    घोड़हवा (आझ न पहलवान बाबा हथ न रामजतन चाचा, न घोड़हवा पंडित जी हथ न टिटकारी मारे ओला रामप्रसाद सिंह ।)    (माकेसिं॰22.17)
326    घोरना (= घोलना) (होवे दे बिहान नीमियाँ, जरी से कटायब गे माई । तोहरे डहुँगिये नीमियाँ घोरबो घोरान गे माई ॥)    (माकेसिं॰88.4)
327    घोरान (होवे दे बिहान नीमियाँ, जरी से कटायब गे माई । तोहरे डहुँगिये नीमियाँ घोरबो घोरान गे माई ॥)    (माकेसिं॰88.4)


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