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Monday, December 03, 2012

79. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2011: नवांक-1; पूर्णांक-13) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
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2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
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मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-12 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 197

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अइँठ-जेंइठ (= अइंठ-जोंठ) (~ करना)     (जे तनी अइँठ-जेंइठ करे तो ओकरा पर हाथ-गोड़ तुड़के पड़ जइहें ।)    (मपध॰11:13:46:2.27)
2    अझुरायल (= ओझराल; उलझा हुआ)     (मदारीवाला तमाशा देखावे लगल । सामने खड़ा लड़की एक-एक चेहरा में कुछ खोजइत हल । अप्पन अझुरायल लटकल केस के समेटइत हल जइसे उ अझुरायल-पझुरायल जिनगी के समेटे के कोशिश करइत हल ।)    (मपध॰11:13:22:3.8)
3    अझुरायल-पझुरायल (= ओझराल-पोझराल; उलझा-पुलझा हुआ)     (मदारीवाला तमाशा देखावे लगल । सामने खड़ा लड़की एक-एक चेहरा में कुछ खोजइत हल । अप्पन अझुरायल लटकल केस के समेटइत हल जइसे उ अझुरायल-पझुरायल जिनगी के समेटे के कोशिश करइत हल ।)    (मपध॰11:13:22:3.9)
4    अर (= एक निरर्थक शब्द)     (सरवन लोर पोछित सिहर गेल - 'कानपुर फोन कइलिअइ हे, हो । छोटुआ आ जइतइ हल तब्ब ने ?' - 'तों अर तइयार हो हो ने । ऊ घाटे पर चल अइतो ।" सरवन घर दन्ने चल गेल ।)    (मपध॰11:13:24:2.6)
5    अलझी-पलझी     (मांझो केतना टेढ़-लांगड़ बात सुनके ससुर के सेवा करते रहल - दुधारू गाय के लतारी नियन गोतनी के अलझी-पलझी के भी हँस के बरदास कइलकी ।; बात बढ़ गेल । ढेर दिन के बनल गुबार आझ मौका पाके एकबारगी निकसे लगल । उकटा-पईंचा होवे लगल । मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल ।)    (मपध॰11:13:23:1.31, 24:1.14)
6    अलोप     (आझे चउथा रोज हो रहलइ हे. बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।)    (मपध॰11:13:23:1.12)
7    असुलवाना (= वसूल करवाना)     (हमर लाल ! चाहबे तो नजर फेर के बिगहा-बारी पर दारू भी चुलवा सकऽ हें । दारू चुवावे ओलन से पइसा भी असुलवा सकऽ हें ।)    (मपध॰11:13:46:2.7)
8    आवाजाही     (गंगा के कोप बढ़के खतम गेल । जीवराखन टोला के नाकेबंदी हो गेल । नगर से आवाजाही रुक गेल । रात भर पानी घर-दलान घुस गेल ।)    (मपध॰11:13:42:3.22)
9    आहर-पोखर     (तालाब अदमी के लाश से गेन्हाय लगल । नदी-नाला लाल सिंदूर से रंगा गेल । गली-गली में कुत्ता के पहरा । पीपर के डाल घटका से लबर गेल । आहर-पोखर रेत बन गेल ।)    (मपध॰11:13:10:3.6)
10    इगिर-दिगिर (~ करना)     (तोहर नीचे ओलन भी हलोर-हलोर के तोरा भिजुन पहुँचइतन । अब तोर अंडर में रहे ला हे तो ऊ बच्चू इगिर-दिगिर करके कहाँ जइतन ?)    (मपध॰11:13:46:1.28)
11    इसटाट (= स्टार्ट; शुरू, चालू)     (रोज शिव चरचा होतो । कौन दो पिंटू भाय आवो हथिन । परवचन दे हथिन । तखने लगतो कि अब गाम के सुधार होके रहतइ । बाकि ... 'बाभन गेला घर, जने-तन्ने हर' खाँटी कउआ मिटिंग । तुरते चुगली-चाथन इसटाट । इहे दुनिया हइ, चाची ।)    (मपध॰11:13:25:1.24)
12    उकटा-पईंचा     (बात बढ़ गेल । ढेर दिन के बनल गुबार आझ मौका पाके एकबारगी निकसे लगल । उकटा-पईंचा होवे लगल । मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल ।)    (मपध॰11:13:24:1.12)
13    उड़ाना-पुड़ाना     ('हिंसबा के बाते अब नञ् हइ, अब तो कुल करजवो हमरे तोड़े परतइ । बात एकरो नञ् हइ हो । केतना कमइलूँ - आउ उड़ा-पुड़ा देलूँ, बाकि दुख ई बात के हे कि धुरवा बना देलक । केतना बउखलूँ हल ओकरा खोजे में ।)    (मपध॰11:13:25:3.18)
14    उपरउका (= ऊपर वाला)     (अतिथि वाला तल्ल के उपरउका चार तल्ला पर अंबानी के परिवार के छो  लोग रहते जइतन जहाँ से अरब सागर के विहंगम दृश्य देखाई पड़त ।)    (मपध॰11:13:17:1.18)
15    उपरझज्झ     ('आझे चउथा रोज हो रहलइ हे. बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।' - बोलते-बोलते सरबन के घेघा में लगल धासन गिर गेल हे, जेकर पानी छलक के पिपनी पर उपरझज्झ हो गेल ।)    (मपध॰11:13:23:1.16)
16    एतनइ (= एतनइँ, एतनहीं; इतना ही)     (एतनइ में सुरजा आके कहलकइ - 'छोटु का आ गेलखिन हें । मइया कहलको हे ...' - 'चुप्प ... मइया के बेटा ।' डाँट देलक सरबन ।)    (मपध॰11:13:24:3.40)
17    ऐं     ("केतना बउखलूँ हल ओकरा खोजे में । वाह रे भाय ! इहे भइवा ने दहिनबाँही होवो हइ, संतोष । 'मिलहिं न जगत सहोदर भ्राता ।' अइसने सहोदर भ्राता ! ऐं संतोष, ई पइसवा खूनो के नाता से भी महरग में हइ ?")    (मपध॰11:13:25:3.25)
18    ओतनइ (= ओतने; उतना ही) (जेतनइ ... ~)     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:1.40)
19    ओहईं (= हुएँ; वहीं)     ('दिल्ली में तो ओकर एगो सारा रहो हइ, सर ।' - 'ऊ साला सबको चरा रहा है । बरबीघा बैंक से पइसा निकास के दिल्ली चला गया है । ओहईं दोकान खोलेगा । तुमको ठेंगा देखा दिया ।')    (मपध॰11:13:25:2.31)
20    कंजर     (बड़ी बेकार गाँव हइ । कंजर हथिन सब उहाँ के । मरल मन हइ सब के ।)    (मपध॰11:13:21:1.14)
21    कउआ-मिटिंग     (रोज शिव चरचा होतो । कौन दो पिंटू भाय आवो हथिन । परवचन दे हथिन । तखने लगतो कि अब गाम के सुधार होके रहतइ । बाकि ... 'बाभन गेला घर, जने-तन्ने हर' खाँटी कउआ मिटिंग । तुरते चुगली-चाथन इसटाट । इहे दुनिया हइ, चाची ।)    (मपध॰11:13:25:1.23-24)
22    कखनउ (= कखनो; कभी)     (फरमा लेके अशोकवा जे बरबीघा गेलइ हे, से गेलइ हइ । आझ चार दिन से सरबनमा बेचारा फिंफही हो गेलइ हे । कखनउ ई थाना, कखनउ ऊ थाना । कुटुम-नाता, चिन्हल-जानल, इयार-दोस सभे के फोन कर देलक सरबन ।)    (मपध॰11:13:25:2.12)
23    कज्जा (= कहाँ)     (पंडीजी आ गेला हल । दमगर सवाल हल कि टाटी कज्जा बंधात ? बड़ी सोच विचार के सीढ़ी के चउतल के नीचे टाटी बंधाल । टंटू जी साँझे के गरुड़ पुराण पढ़ो लगला । सुनताहर में ओनमावली, केसौरीवली, गगरीवली, समसावली नियन ढेरमनी औरतन के भीड़ हल ।)    (मपध॰11:13:25:1.2)
24    कयगर (= कइगर; काई लगी हुई)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.1)
25    कयफट्टा     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:1.39)
26    करजा-गोमाम     ('की बात हउ, कोय दिक्कत हउ की ?' - 'जिमा में पइसवा नञ् हइ । दू तारीख के बादे न निकसतइ ।' - 'केकरो से करजा-गोमाम करम्हीं, आउ की ?' - 'हमरा के देतइ करजावा ?')    (मपध॰11:13:24:2.32)
27    कलाली     (दुनहूँ कलाली में हेल गेला । संतोष बोतल लावे ला चल गेल आउ सरवन के लगल - माथा हौला हो रहल हे, बाप के रिन उतर रहल हे - रसे-रसे ।)    (मपध॰11:13:25:3.31)
28    कसईंधा (= कसैला)     (रोज ऊ सबके तमाशा देखावऽ हल । आज ऊ खुद तमाशा देखइत हल । बाकि ओकर तमाशा झूठ हल । आउ आज जउन तमाशा देखइत हल ऊ जिनगी के कसईंधा सच हल ।)    (मपध॰11:13:22:3.23)
29    कुटुम-नाता     (फरमा लेके अशोकवा जे बरबीघा गेलइ हे, से गेलइ हइ । आझ चार दिन से सरबनमा बेचारा फिंफही हो गेलइ हे । कखनउ ई थाना, कखनउ ऊ थाना । कुटुम-नाता, चिन्हल-जानल, इयार-दोस सभे के फोन कर देलक सरबन ।)    (मपध॰11:13:25:2.13)
30    कोचराह (~ धुइयाँ)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.1)
31    कोदवा     (केतना बरदास कइलिअइ हे, बउआ ? दोसर कोय रहतइ हल, तउ कुइयाँ पइस जइतइ हल । सुरजा के कोदवा हो गेलखुन हल, दूगो खोभिया लाय खातिर रिकट गेलियो । ई बुढ़वा नञ् देलको हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.5)
32    कौआ-बगेरी     (देखऽ योगेश जी लिखलन हे कि - 'कौआ-बगेरी पर शोध कैल जाहे, सूर-तुलसी पड़ल गेन्हा हे ।')    (मपध॰11:13:44:2.7)
33    खपरी     (पावावली खपरी के लावा बनके भभक गेली - 'बुढ़वा भरस्ट हो गेलइ हे । चूड़ी भरल हाथ से पंखा के हावा खोजऽ हे ।')    (मपध॰11:13:23:3.12)
34    खाता-पीता (~ अदमी)     (गाड़ी घाट पर पहुँच गेल । अब समसिया हल कि आग के देतइ ? छोटुआ अभी तक आ नञ् सकल हल । अशोक मांझिल हइ । सरबन अड़ गेलइ - 'हमरा से ई काम नञ् होतउ । हम खाता-पीता अदमी ही । हमरा से पारे नञ् लगतउ ।')    (मपध॰11:13:24:3.3)
35    खेत-बधार     (ओकर बेमारी से रजन तंग तबाह होवे लगलन । न उनखा खाए के ठेकान न पीए के । धीरे-धीरे रजन के खेत-बधार बिके लगल ।)    (मपध॰11:13:57:3.34)
36    खोभिया (= खोभी {एक प्रकार का घास}से बना हुआ) (~ लाय)     (केतना बरदास कइलिअइ हे, बउआ ? दोसर कोय रहतइ हल, तउ कुइयाँ पइस जइतइ हल । सुरजा के कोदवा हो गेलखुन हल, दूगो खोभिया लाय खातिर रिकट गेलियो । ई बुढ़वा नञ् देलको हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.6)
37    गछना (= स्वीकार करना, मान लेना, तैयार हो जाना)     (देखऽ गरीबन, तोहर बेटी के बिआह एतना खेतवाला एहाँ एतना आसानी से न होतो हल । बस हमरे किरपा समझऽ तूँ गछलऽ हे से हमरा दे दिहऽ । आउ हाँ, ई बात कोई जाने न !)    (मपध॰11:13:57:1.28)
38    गद-पिरोड़ा     (एकबारगी लगल कि सरवन के कान में कोय गद पिरोड़ा के रस डाल देलक हे ... सन्न ... ओकर आँख बड़ा बाउ के मोंछ पर ठहर गेल ।)    (मपध॰11:13:25:2.35)
39    गाँज     (दुखी साव के बेटी के बरिआत आयल हल । दरवाजा लगित हल । छुरछुरी-पड़ाका छूट रहल हल । एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल ।)    (मपध॰11:13:10:1.31, 32)
40    गाम-गिराम (= गाँव-गिराँव)     (जहिया से गाम-गिराम में मील खुल गेल हे, औरतन ला मनोरंजन के एगो इहो साधन हो गेल हे ।)    (मपध॰11:13:24:1.18)
41    गिलफिलाना     (का स्साले, पुलिस के बाप समझऽ हें जे तोरा लैलन पर आँख मारे के जन्मसिद्ध अधिकार हउ ? फिर देखिहें, तोरा सामने कइसे गिलफिलाय लगतउ, पइसा लेके छोड़ देवे ला बतियाय लगतउ ।)    (मपध॰11:13:47:1.13)
42    गुनगर     (गाँव में घुसइत मेहरारू सब ओकरा गुड़ में चींटी लेखा घेर लेवऽ हलन । जतने ओकर बोल मिठगर ओतने स्वभाव गुनगर । देखते-देखते ओकर टोकरी चूड़ी से खाली हो जा हल ।)    (मपध॰11:13:9:1.25)
43    गुरमुढ़ियाना (= घुड़मुड़ियाना)     ("डर लगतउ, गुरमुढ़िया के सुत जो" भइया बड़ा गंभीर होके कहलन । - "डर ! डर काहे, हमरा डर न लगे, सुनावऽ, बिना सुनले हमरा नीन न आवत" हम निडर होके कहली ।)    (मपध॰11:13:9:2.38)
44    गुलगुलइनी     (कजरिया एगो गुलगुलइनी हल । ओकर बाप के नाम सुक्खु आउ भाई के नाम जिराखन हल ।; नहर के दक्खिनी छोर चौड़ा आउ लमहर चाढ़ से जुड़ल हे । ओहे ठाँव पर गुलगुलइनी सब आके बस गेलन ।; 'केकर आरती उतारल जइतइ ?' हम पूछली - 'अरे गुलगुलइनिया के बेटी कजरिया के !')    (मपध॰11:13:9:1.1, 2.19, 11:2.16)
45    गेन्हाना (= दुर्गंध निकलना)     (जहाँ गाँव में पेड़-बगान हल उहाँ मरघट के चील्ह-कउआ मँड़राय लगल । जहाँ होरी आउ चइता के झाँझ-मानर हल उहाँ रोआ-रोहट के चीत्कार सुनाई पड़े लगल । पनघट पर सियार-हुँड़ार फेकारे लगल । तालाब अदमी के लाश से गेन्हाय लगल ।; देखऽ योगेश जी लिखलन हे कि - 'कौआ-बगेरी पर शोध कैल जाहे, सूर-तुलसी पड़ल गेन्हा हे ।')    (मपध॰11:13:10:3.3, 44:2.8)
46    गोतिया-नइया     (गोतिया-नइया के खूब समझइला-बुझइला पर सरबन तइयार होल बाकि एगो शर्त रखलक - 'हम अगिया दे दे हियो बाकि तेरहो दिन हमरा से पार नञ् लगतो । छोटुआ के अइला पर ... ।')    (मपध॰11:13:24:3.5)
47    घटका (= श्राद्धकर्म के अवसर पर शवदाह के बाद पीपल के पेड़ में लटकाया जानेवाला घड़ा जिसमें दस दिनों तक विधिवत् जल डालते हैं)     (तालाब अदमी के लाश से गेन्हाय लगल । नदी-नाला लाल सिंदूर से रंगा गेल । गली-गली में कुत्ता के पहरा । पीपर के डाल घटका से लबर गेल । आहर-पोखर रेत बन गेल ।)    (मपध॰11:13:10:3.5)
48    घरघराना     ("देखऽ, इ लइकन के मन निहसावे के न चाही । हम सुना दे हिअइ, तू एकरा मन में भय मत समाये दहु । .." एतना भइया के समझौलन कि ऊ घरघराये लगलन आउ करीमन काका आगे के खिस्सा सुनावे लगलन ।)    (मपध॰11:13:9:3.20)
49    घर-दलान     (गंगा के कोप बढ़के खतम गेल । जीवराखन टोला के नाकेबंदी हो गेल । नगर से आवाजाही रुक गेल । रात भर पानी घर-दलान घुस गेल ।)    (मपध॰11:13:42:3.23)
50    घानी     ('हौले-हौले बोलऽ', 'सले-सले बतियावऽ', 'गते-गते पढ़ऽ', 'हौले-हौले ममोरे अउ कमर धर पछोरे', 'जल्दी के काम शैतान के', 'हबर-दबर के घानी आधा तेल आधा पानी' जइसन ढेर मुहावरा अउ कहाउत हम्मर लोकजीवन में प्रचलित हे ।)    (मपध॰11:13:44:1.12)
51    घारा (~ में = घरा में; घर में)     (आझे चउथा रोज हो रहलइ हे. बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।)    (मपध॰11:13:23:1.12)
52    घिकुरी (= घिकुड़ी, घुकड़ी)     (कहाँ गेल कजरिया के ऊ चुहल । कहाँ अलोपित हो गेल नवचेरी के चूड़ी के खनक । कहाँ बिलट गेल पास-पड़ोसिन के बैना-पेहानी । सूरजभान सिंह कंबल ओढ़ के घिकुरी मारले हथ । जितवाहन गली के झिटकी चुन रहल हथ ।)    (मपध॰11:13:11:1.7)
53    घुनसारी (= भड़भूजे की भट्ठी, अनाज भूँजने का स्थान)     (कजरिया अप्पन हिरदा के दहकित शोला से दुश्मन के जरावे लगल । गाँव के गाँव घुनसारी बन गेलन । इनसान पतई लेखा ओकरा में झोंकाय लगल । शरीफ बालू के भुंजाय लगलन ।)    (मपध॰11:13:10:2.11)
54    घूघा (= घुग्घा)     (रजन दुलहा बनल चऊँका पर बइठल हलन । उनकर बगल में सोलह बरीस के दुलहिन रधिया घूघा तानले बइठल हल ।)    (मपध॰11:13:57:2.10)
55    घूरा     (घूरा के आग जोर से चिरचिराएल । चिंगारी उठल आ भड़ाक से कोनो लकड़ी भड़क गेल । नेहा हड़बड़ा के आगी ओरी तकलक आ अपन बेटी के सम्हार के गोदी में कस लेलक ।)    (मपध॰11:13:15:2.38)
56    घेघा     ('आझे चउथा रोज हो रहलइ हे. बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।' - बोलते-बोलते सरबन के घेघा में लगल धासन गिर गेल हे, जेकर पानी छलक के पिपनी पर उपझज्झ हो गेल ।)    (मपध॰11:13:23:1.14)
57    चकइठ     ('हम काहे ला बान्ह के रखतूँ हल ? हमरा भतार नञ् हल की ? तोरे नियन हम सबद्दा नञ् खोजले चलऽ हूँ ।' - 'हम काहे ले सबद्दा खोजम ? हमरा तो अपने चकइठ नियन मरदाना हे । दोसरा नियन हम बुतरूओ से रभसते रहऽ ही की ... ?')    (मपध॰11:13:24:1.8)
58    चकोह (= पानी का भँवर)     (केतना गाय, भईंस नदी के गर्भ में समा गेल । भीखन काका के नाती पानि के चकोह में लापता हो गेल ।)    (मपध॰11:13:42:3.19)
59    चट्टे (= झट, तुरन्त)     (दहेज माँगल जाहे त माय-बाप भिर चट्टे लोर ढरकावे लगऽ ही ।)    (मपध॰11:13:5:1.15)
60    चलित्तर (= चरित्र)     (मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल । जब दुनहूँ के पेट बेटा-भतार के खइला से भर गेल, तउ चलित्तर के साटिकफिटिक बँटो लगल । टोला-टाटी के जनिआनी मेला लग गेल ।)    (मपध॰11:13:24:1.16)
61    चवनियाँ (~ मुस्कान)     (एतना कह के ऊ मंद-मंद मुस्कुराय लगलन । उनखर चवनियाँ मुस्कान में आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री घुल-मिल के ... 'राधा मंद-मंद मुस्कायी' गावे लगलन ।)    (मपध॰11:13:44:3.40)
62    चिन्हल-जानल     (फरमा लेके अशोकवा जे बरबीघा गेलइ हे, से गेलइ हइ । आझ चार दिन से सरबनमा बेचारा फिंफही हो गेलइ हे । कखनउ ई थाना, कखनउ ऊ थाना । कुटुम-नाता, चिन्हल-जानल, इयार-दोस सभे के फोन कर देलक सरबन ।)    (मपध॰11:13:25:2.13)
63    चुगली-चाथन     (रोज शिव चरचा होतो । कौन दो पिंटू भाय आवो हथिन । परवचन दे हथिन । तखने लगतो कि अब गाम के सुधार होके रहतइ । बाकि ... 'बाभन गेला घर, जने-तन्ने हर' खाँटी कउआ मिटिंग । तुरते चुगली-चाथन इसटाट । इहे दुनिया हइ, चाची ।)    (मपध॰11:13:25:1.24)
64    छँइटी (= छइँटी; टोकरी) (~ में अँटना)     (मउनी लेली, चल गेली महुआ बीने । ... का बीनम ! लोर भी बीना हे !! ओहो पसरल लोर, छँइटी में अँटत !!! चुपचाप घरे अइली ।)    (मपध॰11:13:11:1.28)
65    छड़-फड़ (= धड़-फड़; हबर-दबर)     (मुरगा बोलल । छड़-फड़ उठली । मउनी लेली, चल गेली महुआ बीने ।)    (मपध॰11:13:11:1.23)
66    छनर-मनर     (पावावली के बात - देखऽ हो, केतना निठुर-निठुर हइ । लगवे नञ् करो हइ कि एकर मरदाना लापता हइ । उहे सिंगार - उहे पटार - उहे छनर-मनर ।)    (मपध॰11:13:25:3.2)
67    छनाक     (ऊपर दुमहला पर भीतर में छनाक से कुछ गिरल, लगल कुछो जरूर टूट के छिरिया गेल हे ।)    (मपध॰11:13:23:2.8)
68    छवारिक     (आ न जानऽ हें नेहा दीदी ! डेरा में जादे तइयार होके न जाए के चाही । मरकीलगौना छवारिक सब अइसन तकतवऽ न कि मन करतवऽ कि आँखे फोड़ दी ।)    (मपध॰11:13:14:1.9)
69    छाँय-छाँय (~ जरना)     (जेठ के लह-लह दुपहरिया में धरती लहकइत हलइ । ताकला पर एगो चिरई के पुतो न देखाइ पड़ित हलइ । लूक हह-हह चलित हलइ । खाली गोड़े, बिना चप्पल-जूता के झुमरी आ मदारीवाला चलइत हल । छाँय-छाँय जरीत हलइ ।)    (मपध॰11:13:21:1.5)
70    छिछिअइली     (ओकर मुसकी देख के बड़की पावावली के तरवा के धूर कपार पर चढ़ जा हल - 'दुर जो छिछिअइली । रंडिया रभसते रहतउ ।')    (मपध॰11:13:23:1.34)
71    छिरियाना     (ऊपर दुमहला पर भीतर में छनाक से कुछ गिरल, लगल कुछो जरूर टूट के छिरिया गेल हे ।)    (मपध॰11:13:23:2.9)
72    छी-छूँ     (हम्मर भारतीय अर्थ-व्यवस्ता तनी-मनी जुकाम इया छी-छूँ के बाद लगभग तंदुरूस्त हे अउ मंदिअन से ग्रस्त मुलुकवन दने निहारइत 'मंद-मंद' मुसुकइत हे ।)    (मपध॰11:13:43:1.15)
73    छुरछुरी-पड़ाका     (दुखी साव के बेटी के बरिआत आयल हल । दरवाजा लगित हल । छुरछुरी-पड़ाका छूट रहल हल । एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल ।)    (मपध॰11:13:10:1.30)
74    जग्गह (= जगह, स्थान)     (अशोकवा उनखा हाथ पकड़ के अस्पतलवा दन्ने ले गेलइ - 'हलऽ लऽ, जाके पी लिहऽ इयरवा के नामे ।' आदित बाबू गदगद । लोर पोछ के कहलखिन - 'जा इयार, हमरो ले जग्गह फरछा के रखिहऽ । आझ तोरे खातिर पीबो ।')    (मपध॰11:13:24:2.20)
75    जनिआनी (= औरत या जन्नी का या उससे संबंधित)     (मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल । जब दुनहूँ के पेट बेटा-भतार के खइला से भर गेल, तउ चलित्तर के साटिकफिटिक बँटो लगल । टोला-टाटी के जनिआनी मेला लग गेल ।)    (मपध॰11:13:24:1.18)
76    जहराना (= जहर बनना, जहर में परिवर्तित होना)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.2)
77    जहराल (= जहराया हुआ; जहर बना हुआ)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:2.10)
78    जारना-खोरना     (गोतिया-नइया के खूब समझइला-बुझइला पर सरबन तइयार होल बाकि एगो शर्त रखलक - 'हम अगिया दे दे हियो बाकि तेरहो दिन हमरा से पार नञ् लगतो । छोटुआ के अइला पर ... ।' जार-खोर के सभे घर लौटलन ।)    (मपध॰11:13:24:3.11)
79    जिआन (~ जिनगी)     (गीता चमच से दवाई पिया रहल हल आ राधा अपन अँचरा से उनखर आँख से ढरकल लोर पोछ रहल हल । उनखर जिआन जिनगी देख के सुगिया के आँख में लोर डबडबाएल हल ।)    (मपध॰11:13:58:2.11)
80    जिमा     ('की बात हउ, कोय दिक्कत हउ की ?' - 'जिमा में पइसवा नञ् हइ । दू तारीख के बादे न निकसतइ ।' - 'केकरो से करजा-गोमाम करम्हीं, आउ की ?' - 'हमरा के देतइ करजावा ?')    (मपध॰11:13:24:2.30)
81    जुल्फी (= झुल्फी)     (जहाँ कहीं मेला-बाजार, चौक-चौराहा, सिनेमा घर के सामने मनचला मजनुअन के आँख-मुँह मारइत देखिहें, जुल्फी पकड़ लिहें आउ गाल पर तड़ातड़ दिहें ।)    (मपध॰11:13:47:1.6)
82    जेतनइ (= जेतने; जितना ही) (~ ... ओतनइ)     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:1.40)
83    झँपकी     (खरिहान में पोरा के टाल पर गाँव के लोग सुतल । हम बड़का भइया के साथ । अचानक ऊ चुप हो गेलन । हम सोचली काम से थकल-फेदायल उनका झँपकी आ गेल ।)    (मपध॰11:13:9:2.32)
84    झिट-झट     (भले ही तोर वेतन कम होतउ, बाकि ऊपरी आमदनी हरदम होतउ । काहे कि तू जहाँ भी रहबे, जनता से झिट-झट करइत रहबे । कोई भी न कहतक कि सिपाही जी हमरा से घूँस लेलन बलुक ऊ सलामी के रूप में गिनल जायत ।)    (मपध॰11:13:46:3.19)
85    झिटना     (कहीं जेल के गेट पर ड्यूटी मिल गेलउ तो समझिहें तोरा पूर्व जन्म के फल मिल गेलउ । मुलाकाती में बिना रिक्स के दनादन जेब में नोट भरइत जइहें । जेतना झिटल पार लगे, ऊ करइत जइहें ।)    (मपध॰11:13:47:1.40)
86    झूठ-फूस     (टंटू जी साँझे के गरुड़ पुराण पढ़ो लगला । सुनताहर में ओनमावली, केसौरीवली, गगरीवली, समसावली नियन ढेरमनी औरतन के भीड़ हल । कथा खतम होला पर - "सुनलहो ने चाची । नरक लोक कइसन होवो हइ । चार दिन के मेला हे ई दुनिया । एकरे ले एतना सरेजाम ... झूठ-फूस, अगड़म-बगड़म, लंदर-फंदर ... ।")    (मपध॰11:13:25:1.10)
87    टगना     (सरवन घर दन्ने चल गेल । ओन्ने से आदित बाबू टगते-टगते आ गेला - 'ऐं हो, हम्मर इयरवा चल गेलइ ।' उनखर मोलैत आँख में लोर डबडबा गेल ।)    (मपध॰11:13:24:2.8)
88    टाटी     (जार-खोर के सभे घर लौटलन । ... पंडीजी आ गेला हल । दमगर सवाल हल कि टाटी कज्जा बंधात ? बड़ी सोच विचार के सीढ़ी के चउतल के नीचे टाटी बंधाल । टंटू जी साँझे के गरुड़ पुराण पढ़ो लगला । सुनताहर में ओनमावली, केसौरीवली, गगरीवली, समसावली नियन ढेरमनी औरतन के भीड़ हल ।)    (मपध॰11:13:25:1.2, 3)
89    टाल (= ढेर, पुंज; फसल के बोझों का अंबार)     (खरिहान में पोरा के टाल पर गाँव के लोग सुतल । हम बड़का भइया के साथ । अचानक ऊ चुप हो गेलन । हम सोचली काम से थकल-फेदायल उनका झँपकी आ गेल ।; दुखी साव के बेटी के बरिआत आयल हल । दरवाजा लगित हल । छुरछुरी-पड़ाका छूट रहल हल । एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल ।)    (मपध॰11:13:9:2.29, 10:1.32)
90    टेढ़-लांगड़     (मांझो केतना टेढ़-लांगड़ बात सुनके ससुर के सेवा करते रहल - दुधारू गाय के लतारी नियन गोतनी के अलझी-पलझी के भी हँस के बरदास कइलकी ।)    (मपध॰11:13:23:1.29)
91    ठरमुरकी (= ठरमुड़की, ठकमुरकी)     (तोर इज्जत के हमरो खेयाल हे । बाकि ई इज्जत हम्मर शान हे । चाहे कुछ भी होवे अब हम हाथ न छोड़म । झुमरी के ठरमुरकी लगल हल । गाँव में गोहार हो गेल ।)    (मपध॰11:13:22:2.19)
92    डाँढ़     (कजरिया जतने लमपोर ओतने सुंदर । आवा से निकालल बरतन लेखा भक-भक गोर । ... ओकर लचकइत कमर लवंगिया डाँढ़ के मात कर देवऽ हल । कोआ लेखा आँख चंचल हिरनी लेखा फुदकऽ हल ।)    (मपध॰11:13:9:1.20)
93    ढेरियाना (= ढेर लगाना)     (मंदी के अर्थ हे कि जनता सयानी हो गेल हे । सही मायने में बड़-बड़ मुलुकवन के नामी-गिरामी कंपनियन बड़गो बैंकवन से हठुआ मनी कर्जा लेके उत्पाद बनौलन अउ बड़गो बाजारन में ओकरा ढेरिया देलन । फिन बड़ चैनलवन अउ अखबरियन में विज्ञापन देल गेल ताकि जनता के बड़ा वर्ग में अप्पन उत्पाद जादे मुनाफा में बेचल जा सके । मुदा लोग सयान ठहरलन । ... एही ओजह से करजा न फिरल त नामी-नामी बैंक डूब गेल ।)    (मपध॰11:13:44:3.13)
94    तरबगर     (हम्मर ई 'मंदी-विवेचन' के अगरचे अपने पर अबहियों कोय प्रभाव नञ् पड़ल हे तऽ आवऽ 'मंदी' के तरबगर विवेचन खातिर अपने के एगो अप्पन गोइयाँ हीं ले चलो ही ।)    (मपध॰11:13:44:2.36)
95    तरियानी     (जीवराखन टोला पहिले दानापुर रेजिमेंटल सेंटर से नौ किलोमीटर पच्छिम आउर मनेर गढ़ से लगभग पाँच किलोमीटर पूरब गंगा नदी के तरियानी में बसल हल ।)    (मपध॰11:13:42:1.9)
96    तेरहा (= तेरही; श्राद्ध कर्म के अंतिम दिन अर्थात् तेरहवें दिन मृतात्मा की शांति के लिए की जाने वाली क्रिया)     (आझे चउथा रोज हो रहलइ हे, बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।; उतरिया उतार देला से बाप के करजा उतर जाहे की ? एतना औसान हे बाप के करजा से उरिन होना ?  हमरो सुरजा आउ चनरा अइसहीं उतरिया अमरूधवा पर टाँग के उरिन हो जइतइ ? नऽ, ई उतरिया अब नञ् उतरतइ । अब तेरहा के बादे ... ।)    (मपध॰11:13:23:1.11, 24:3.38)
97    तेल-कूँड़ (~ करना)     (एक दिन लोहनावली कहलथिन - 'ऐं पावावली, सुनलियो ससुरा के मन दब हो, लुग्गे-फट्टे हो रहलो हे, तनी तेल-कूँड़ कर देतहो हल ।')    (मपध॰11:13:23:2.2)
98    थकल-फेदायल (= थका-मांदा)     (खरिहान में पोरा के टाल पर गाँव के लोग सुतल । हम बड़का भइया के साथ । अचानक ऊ चुप हो गेलन । हम सोचली काम से थकल-फेदायल उनका झँपकी आ गेल ।)    (मपध॰11:13:9:2.31)
99    थकुचाना     ('लोककला', 'लोकसंगीत', 'लोकउद्योग' में भी मंदी छायल हे । 'लोकनाट्य', 'लोकरंग' में एते मंदी हे कि अब सूच्चा कहें नय लौकइत हे । 'लोक लिवास', 'लोक-आवास' तऽ एकदम 'मंदी' के मार से थकुचा गेल हे ।)    (मपध॰11:13:44:2.32)
100    दंद (= दन; चिंता)     (लोग-बाग के ऊ दुनहूँ के समस्या से जादे उनखर बकचोथरी में रस मिलो लगल । आउ अइसने सुनते-सुनते एक दिन बिरजू राम खाय घड़ी सरक गेला । आउ इहे बहाने ऊ ई दुनिया से ही सरक गेला । ने पेंशन के दंद, ने मांझो के फिकिर ।)    (मपध॰11:13:24:1.33)
101    दरमाहा (= मासिक वेतन)     (दूगो खोभिया लाय खातिर रिकट गेलियो । ई बुढ़वा नञ् देलको हल । बाकि मांझो पर ... बूढ़ा ढरल रहऽ हथ । उनखर दरमाहा मांझो के हाथ में । ... मांझो के पलंग, बिजली, पंखा, ओकर छोटका टुटुआ ला तनी गो साइकिल ।)    (मपध॰11:13:23:3.9)
102    दसखत (= दस्तखत, सही, हस्ताक्षर)     (पगड़बंधा के बाद कहलकइ - "ददा, जा हियो । बैंकवा से पइसवा निकास ले हियो । तीनो भइवा ई फरमा पर दसखत कर देहो ।" फरमा लेके अशोकवा जे बरबीघा गेलइ हे, से गेलइ हइ ।)    (मपध॰11:13:25:2.9)
103    दहिनबाँही     ('केतना बउखलूँ हल ओकरा खोजे में । वाह रे भाय ! इहे भइवा ने दहिनबाँही होवो हइ, संतोष । मिलहिं न जगत सहोदर भ्राता ।')    (मपध॰11:13:25:3.23)
104    दुअछिया (~ चुल्हा)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:2.12)
105    दुर     (ओकर मुसकी देख के बड़की पावावली के तरवा के धूर कपार पर चढ़ जा हल - 'दुर जो छिछिअइली । रंडिया रभसते रहतउ ।')    (मपध॰11:13:23:1.34)
106    धराँव-धराँव     (सुनली असपुरा लख पर मेला लग रहल हे । मंतरी-संतरी के जमवड़ा होवेवाला हे । सब कोई धराँव-धराँव कपड़ा निकाल के धूप में  पसार रहल हथ ।)    (मपध॰11:13:11:1.34)
107    धासन     ('आझे चउथा रोज हो रहलइ हे. बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।' - बोलते-बोलते सरबन के घेघा में लगल धासन गिर गेल हे, जेकर पानी छलक के पिपनी पर उपझज्झ हो गेल ।)    (मपध॰11:13:23:1.15)
108    धुआँना (= धुआँ निकलना)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.1)
109    धुइयाँ (= धुआँ) (कोचराह ~)     (लोहानवली सक्क-दम्म । बड़की के जहराल बोली केकरो लहरा देवे ला काफी हल । बड़की के अंतरात्मा में इरखा के जे दुअछिया चुल्हा कयगर लकड़ी से धुआँ रहल हल, ओकरे कोचराह धुइयाँ से ओकर बोली जहरा गेल हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.2)
110    नवही     ( नवही ब्रह्मचर्य धारण कर कर ढेर योगी-तपस्वी बन गेलन । सबके एके लक्ष्य कुश्ती में पटखनिया देना ।; कजरिया के सुंदरता केतना नवही के घवाहिल कर देल । ऊ चूड़ी बेचे जाइत हल । शंकर बिगहा के कुछ मनशोख नवजवान ओकरा घसीट के गाँव के बँसवारी में ले गेलन ।; दुखी साव के बेटी के बरिआत आयल हल । दरवाजा लगित हल । छुरछुरी-पड़ाका छूट रहल हल । एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल । गाँव के मनशोख नवही भाला, गँड़ास के साथे जुट गेल ।)    (मपध॰11:13:9:2.7, 3.30, 10:1.34)
111    नहाना-सोनाना     (रंथी बन्हा के तइयार हो गेल । बिरजू जी के नहा-सोना के हरदी लगावल गेल, नया धोती पेन्हावल गेल । लगे जइसे बिरजू जी बिआह करे ला सज रहला हे ।)    (मपध॰11:13:24:1.40)
112    निनान (एक ~ नञ् छोड़ना)     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:1.41)
113    निहसाना (= शर्मिंदा या लज्जित करना; किसी को त्रुटि या ऐब अथवा उसके प्रति किए गए उपकार को याद कराना)     (देखऽ, इ लइकन के मन निहसावे के न चाही । हम सुना दे हिअइ, तू एकरा मन में भय मत समाये दहु ।)    (मपध॰11:13:9:3.15)
114    नेमान     (गोतिया अ नइया के बइना घुमइलक कितने कइलक चुड़वा नेमान । ठुनकऽ ठुनकऽ रोवइ बाबू सब के बुतरू कि ताकइ हकइ सभे असमान ॥)    (मपध॰11:13:40:3.34)
115    पगड़बंधा     (आझे चउथा रोज हो रहलइ हे. बाउजी के तेरहा करके पीपर में पानी देके, पगड़बंधा करके जे गेलइ हे - अलोप गेलइ हे । घारा में कहके गेलइ हे कि पइसा निकासे ले बरबीघा जाही ।; रछ-रछ के पीपर में पानी पड़ गेल । पगड़बंधा हो गेलइ । सरबन के दुनहूँ आँख सकरी-टाटी हो गेल हल । बजड़ रहल हल छोटुआ बाकि अशोकवा के आँख में लोर नञ् ।)    (मपध॰11:13:23:1.11, 25:2.2)
116    पछोरना     ('हौले-हौले बोलऽ', 'सले-सले बतियावऽ', 'गते-गते पढ़ऽ', 'हौले-हौले ममोरे अउ कमर धर पछोरे', 'जल्दी के काम शैतान के', 'हबर-दबर के घानी आधा तेल आधा पानी' जइसन ढेर मुहावरा अउ कहाउत हम्मर लोकजीवन में प्रचलित हे ।)    (मपध॰11:13:44:1.11)
117    पटखनिया     (नवही ब्रह्मचर्य धारण कर कर ढेर योगी-तपस्वी बन गेलन । सबके एके लक्ष्य कुश्ती में पटखनिया देना ।)    (मपध॰11:13:9:2.7)
118    पड़ाका (= फटाका)     (दुखी साव के बेटी के बरिआत आयल हल । दरवाजा लगित हल । छुरछुरी-पड़ाका छूट रहल हल । एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल ।)    (मपध॰11:13:10:1.30)
119    पतई (= पतइन, पतईं; पत्ता, सूखा झड़ा पत्ता; झड़े पत्तों का ढेर; ईख का पत्ता जिससे छप्पर आदि छाते हैं; खर-पतवार; ईख, बाँस आदि का हरा पत्ता जिसे मवेशी खाते हैं)     (कजरिया अप्पन हिरदा के दहकित शोला से दुश्मन के जरावे लगल । गाँव के गाँव घुनसारी बन गेलन । इनसान पतई लेखा ओकरा में झोंकाय लगल । शरीफ बालू के भुंजाय लगलन ।)    (मपध॰11:13:10:2.12)
120    पसउर (मार-मार के ~ करना)     (एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल । गाँव के मनशोख नवही भाला, गँड़ास के साथे जुट गेल । बरिअतिआ के मार-मार के पसउर कर देलन ।)    (मपध॰11:13:10:1.35)
121    पानी (~ पढ़के पिलाना)     (पावावली खपरी के लावा बनके भभक गेली - 'बुढ़वा भरस्ट हो गेलइ हे । चूड़ी भरल हाथ से पंखा के हावा खोजऽ हे ।' - 'हाँ, हाँ, हम तऽ बुढ़वा के पानी पिला देलिअइ हे । तों तो पहिलहीं ने अइलऽ हल ई घर में, बान्ह के रखतऽ हल ।' लहक के कहलकी मांझो ।)    (मपध॰11:13:23:3.14)
122    पिच्छुल     (मगही कोकिल जयराम त 'चलिहें थम्ह-थम्ह गोरी पिच्छुल हो गेलो अंगना' गावइत अप्पन नायिका के हौले-हौले चले के सलाहो देइत हथ ।)    (मपध॰11:13:44:1.19)
123    पिछलौका     (मध्यवर्ग के ताकत बिना लोकतंत्र के नाव के पतवार विपरीत धारा के न काट सकऽ हे । मध्यवर्ग के माने हे ऊ तैराक जे अप्पन पीठ पर से पिछलौका मोटरी फेंक दे अउ जे मूल्यवान हे खाली ओकरे रखे ।)    (मपध॰11:13:52:3.9)
124    पिल्की (= पिरकी)     (करीमन काका चुप हो गेलन । दम साध लेलन । खइनी के पिल्की घोंटाऽ गेल । उनका हिचकी आवे लगल ।; "गोड़ दबा दिबऽ का ?" - "न न । एकर जरूरत न हे । पिल्की घोंटा जाय से मन अशांत हो गेल ।")    (मपध॰11:13:10:1.5, 16)
125    पेटकुनिये     (लोगन के गंभीर अउ व्यापक चिंतन करे के चाही - पेटकुनिये पड़े से काम न चलत ।)    (मपध॰11:13:52:2.13)
126    पेन्हाना (= पहनाना)     (रंथी बन्हा के तइयार हो गेल । बिरजू जी के नहा-सोना के हरदी लगावल गेल, नया धोती पेन्हावल गेल । लगे जइसे बिरजू जी बिआह करे ला सज रहला हे ।)    (मपध॰11:13:24:1.41)
127    पैरपूजी     (कजरिया के भाई जिराखन कुस्ती में सबके धूर चटा देवऽ हल । पाँच किलो दूध एके सुरूकिया में गटक जा हल । ... गाँव-गाँव में अखाड़ा गाँव-गाँव में जिराखन के पैरपूजी ।)    (मपध॰11:13:9:2.7)
128    फरछाना (= साफ करना)     (अशोकवा उनखा हाथ पकड़ के अस्पतलवा दन्ने ले गेलइ - 'हलऽ लऽ, जाके पी लिहऽ इयरवा के नामे ।' आदित बाबू गदगद । लोर पोछ के कहलखिन - 'जा इयार, हमरो ले जग्गह फरछा के रखिहऽ । आझ तोरे खातिर पीबो ।')    (मपध॰11:13:24:2.20)
129    फराक     (मदारीवाला अप्पन झोला में सब समान बटोरित हल आ झुमरी अप्पन लाज । ओकर फटल फराक से देह झाँकइत हल ।)    (मपध॰11:13:22:1.10)
130    फिंफही     (फरमा लेके अशोकवा जे बरबीघा गेलइ हे, से गेलइ हइ । आझ चार दिन से सरबनमा बेचारा फिंफही हो गेलइ हे । कखनउ ई थाना, कखनउ ऊ थाना । कुटुम-नाता, चिन्हल-जानल, इयार-दोस सभे के फोन कर देलक सरबन ।)    (मपध॰11:13:25:2.11)
131    फिरंट     (जानलहीं संतोष, अशोकवा पइसा निकास के दिल्ली फिरंट हो गेलउ । हुअईं दोकान खोलतइ ।)    (मपध॰11:13:25:3.14)
132    फेंहा     ('कि हो सरबन ? कोय पता लगलउ ?' - 'नऽ, कहाँ कोय थाह लगलइ । चार दिन से तो फेंहा हो रहलियो हे ।')    (मपध॰11:13:23:1.3)
133    फेकारना     (जहाँ गाँव में पेड़-बगान हल उहाँ मरघट के चील्ह-कउआ मँड़राय लगल । जहाँ होरी आउ चइता के झाँझ-मानर हल उहाँ रोआ-रोहट के चीत्कार सुनाई पड़े लगल । पनघट पर सियार-हुँड़ार फेकारे लगल ।)    (मपध॰11:13:10:3.2)
134    फोंफ (~ काटना)     (करीमन काका फोंफ काटित हलन । बड़ी जोर खखरलन । साँस के आवे-जावे में थूक सरक गेल । खांसित-खांसित उनकर नीन उचट गेल ।)    (मपध॰11:13:9:3.3)
135    फोन-फान (= फोन-उन, फोन-वोन)     ('कि हो सरबन ? कोय पता लगलउ ?' - 'नऽ, कहाँ कोय थाह लगलइ । चार दिन से तो फेंहा हो रहलियो हे ।' ... - 'बाकि घरवा में फोन-फान करबे न कइलकइ होत हो ।')    (मपध॰11:13:23:1.8)
136    बउखाना (= बौखाना)     (तुम्हारा भाय तो भारी लंद-फंदिया है । साला अपने दिल्ली भाग गया है, आउ तुमलोग को बउखा रहा है ।)    (मपध॰11:13:25:2.26)
137    बकचोथरी     (एक से एक कहावत आउ मोहावरा से सजल-धजल गड़ल-गड़ल गलबात अश्लीलता के चासनी में डुबा-डुबा के टोला-पड़ोस के परोसल जाय लगल । लोग-बाग के ऊ दुनहूँ के समस्या से जादे उनखर बकचोथरी में रस मिलो लगल ।)    (मपध॰11:13:24:1.28)
138    बकुली     (लाल दारीवाला चेक के कमीज, करिया फुलपैंट, उज्जर जैकेट । माथा पर धूरी में लेटायल टोपी आउ हाथ में बकुली लेके कुरसी पर बइठ गेल ।)    (मपध॰11:13:21:2.4)
139    बखोइनी (= बखुअइनी, बखो की स्त्री)     (ठीके में रेखा सोनारिन के चरित्तर सोना अइसन हे, छिछियात बखोइनियाँ सब पीतर के नकबेसर पर लहार मारेवाली न हे ।)    (मपध॰11:13:15:1.31)
140    बबरी     (ऊ दिन शनिचर हलइ । रमेश जइसहीं कपड़ा पेन्ह के बबरी जारइत हल कि ओकर कान में डुग-डुग डमरू के समान खड़ा होके खाली टुक-टुक ताके । मदारीवाला अप्पन झोला में सब समान बटोरित हल आ झुमरी अप्पन लाज । ओकर फटल फराक से देह झाँकइत हल ।)    (मपध॰11:13:22:1.5)
141    बाभन     (रोज शिव चरचा होतो । कौन दो पिंटू भाय आवो हथिन । परवचन दे हथिन । तखने लगतो कि अब गाम के सुधार होके रहतइ । बाकि ... 'बाभन गेला घर, जने-तन्ने हर' खाँटी कउआ मिटिंग । तुरते चुगली-चाथन इसटाट । इहे दुनिया हइ, चाची ।)    (मपध॰11:13:25:1.23)
142    बिगहा-बारी     (हमर लाल ! चाहबे तो नजर फेर के बिगहा-बारी पर दारू भी चुलवा सकऽ हें । दारू चुवावे ओलन से पइसा भी असुलवा सकऽ हें ।)    (मपध॰11:13:46:2.6)
143    बिजुन (= भिजुन; पास)     (एतने नञ्, हमरा बिजुन 'मंद-मंद' खातिर हठुआ मनी पर्यायवाची शब्द हे । एहमें धीरे-धीरे, हौले-हौले, सले-सले, रसे-रसे, गते-गते, आहिस्ते-आहिस्ते, रफ्ता-रफ्ता जादे प्रचलित हे ।)    (मपध॰11:13:43:1.45)
144    बुतरु-बानर     (अपने के किचन से निकाल के कोई बुतरु बानर बिना छन्नल पानी नञ् पीयत ।)    (मपध॰11:13:5:1.27)
145    बेअखरा     (रमेश के लगल जइसे कुछ भुलायल चीज मिल गेल । जेकर एतना दिन से बाट जोहित हल, जेकरा देखे ला बेअखरा होल हल, आज ऊ झुमरी ओकरा सामने हल ।)    (मपध॰11:13:22:2.6)
146    बेटा-भतार     (मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल । जब दुनहूँ के पेट बेटा-भतार के खइला से भर गेल, तउ चलित्तर के साटिकफिटिक बँटो लगल । टोला-टाटी के जनिआनी मेला लग गेल ।)    (मपध॰11:13:24:1.16)
147    बेमार-हेमार     (बेटी तो पराया धन हे लखन भाई । ऊ तो चल जात अपन घर, तब हमर बुढ़ारी के सहारा कउन बनत । बेमार-हेमार पर गेला पर दवा-दारू कउन करत ।)    (मपध॰11:13:57:1.10)
148    बैना-पेहानी     (कहाँ गेल कजरिया के ऊ चुहल । कहाँ अलोपित हो गेल नवचेरी के चूड़ी के खनक । कहाँ बिलट गेल पास-पड़ोसिन के बैना-पेहानी ।)    (मपध॰11:13:11:1.6)
149    भंगलहवा     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:1.39)
150    भरस्ट (= भ्रष्ट)     (पावावली खपरी के लावा बनके भभक गेली - 'बुढ़वा भरस्ट हो गेलइ हे । चूड़ी भरल हाथ से पंखा के हावा खोजऽ हे ।')    (मपध॰11:13:23:3.14)
151    भुंजाना     (कजरिया अप्पन हिरदा के दहकित शोला से दुश्मन के जरावे लगल । गाँव के गाँव घुनसारी बन गेलन । इनसान पतई लेखा ओकरा में झोंकाय लगल । शरीफ बालू के भुंजाय लगलन ।)    (मपध॰11:13:10:2.13)
152    भुंजी-भांग     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:2.1)
153    भुसउल     (भाला-बरछी चलल तो बाकि पहाड़ से टकरायल कि भुसउल घर में लुकायल । शर्म से सबके माथा झुकल ।)    (मपध॰11:13:11:1.11)
154    मँड़वा     (एगो पड़ाका खरिहान के गाँज पर जाके गिर गेल । देखते-देखते खरिहान के गाँज, टाल होलिका दहन लेखा धू-धू जले लगल । गाँव के मनशोख नवही भाला, गँड़ास के साथे जुट गेल । बरिअतिआ के मार-मार के पसउर कर देलन । दुखी साव के मँड़वा उखाड़ देवल गेल ।)    (मपध॰11:13:10:1.36)
155    मउनी     (मुरगा बोलल । छड़-फड़ उठली । मउनी लेली, चल गेली महुआ बीने ।)    (मपध॰11:13:11:1.23)
156    मटिहानी     (जीवराखन टोला पहिले दानापुर रेजिमेंटल सेंटर से नौ किलोमीटर पच्छिम आउर मनेर गढ़ से लगभग पाँच किलोमीटर पूरब गंगा नदी के तरियानी में बसल हल । दियरा के मटिहानी उत्तर में गंगा अउर दक्खिन में सोन नदी हल ।)    (मपध॰11:13:42:1.10)
157    मरकीलगौना     (आ न जानऽ हें नेहा दीदी ! डेरा में जादे तइयार होके न जाए के चाही । मरकीलगौना छवारिक सब अइसन तकतवऽ न कि मन करतवऽ कि आँखे फोड़ दी ।)    (मपध॰11:13:14:1.9)
158    मर-मुकदमा     (बंदूक-राइफल, भाला-बरछी के कारखाना खुले लगल । जालसाजी मार-मुकदमा के धंधा शुरू हो गेल । दबल-कुचलल जेल जाय लगलन ।)    (मपध॰11:13:10:2.5)
159    महरग (= जिसका मूल्य साधारण, औसत या उचित से अधिक हो; महँगा)     ("केतना बउखलूँ हल ओकरा खोजे में । वाह रे भाय ! इहे भइवा ने दहिनबाँही होवो हइ, संतोष । 'मिलहिं न जगत सहोदर भ्राता ।' अइसने सहोदर भ्राता ! ऐं संतोष, ई पइसवा खूनो के नाता से भी महरग में हइ ?")    (मपध॰11:13:25:3.26)
160    माँग-कोख     (बात बढ़ गेल । ढेर दिन के बनल गुबार आझ मौका पाके एकबारगी निकसे लगल । उकटा-पईंचा होवे लगल । मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल ।)    (मपध॰11:13:24:1.15)
161    मांझिल (= मंझला)     (गाड़ी घाट पर पहुँच गेल । अब समसिया हल कि आग के देतइ ? छोटुआ अभी तक आ नञ् सकल हल । अशोक मांझिल हइ । सरबन अड़ गेलइ - 'हमरा से ई काम नञ् होतउ । हम खाता-पीता अदमी ही । हमरा से पारे नञ् लगतउ ।')    (मपध॰11:13:24:3.1)
162    मारकिन     (जमुआमा में उठो हलथिन दुरगा जी । एक कन्हा पर सरवन आउ दोसर पर अशोकवा के बइठा के बिरजू पइदले चल जा हलथिन जमुआमा । तखने दुनहूँ उनखा भारी नञ् लगो हल बाकि आझे ... । ई दू हाथ के मारकिन ... एतना भारी कि गाछ पर टाँगो परतइ ?)    (मपध॰11:13:24:3.27)
163    मुँहठोकवा     (हमर जानकारी में जे भी नाम जा रहल हे, पत्रिका परिवार में ओकरा में कोय मुँहठोकवा नञ् हथ । क्रेडिट पैनल में से जे सदस्य निष्क्रिय रहतन उनकर नाम ड्रॉप करे में हम जरियो देर नञ् करम ।)    (मपध॰11:13:4:1.21)
164    मोहावरा (= मुहावरा)     (एक से एक कहावत आउ मोहावरा से सजल-धजल गड़ल-गड़ल गलबात अश्लीलता के चासनी में डुबा-डुबा के टोला-पड़ोस के परोसल जाय लगल । लोग-बाग के ऊ दुनहूँ के समस्या से जादे उनखर बकचोथरी में रस मिलो लगल ।)    (मपध॰11:13:24:1.24)
165    रंडिया (= 'रंडी' + 'आ' प्रत्यय)     (ओकर मुसकी देख के बड़की पावावली के तरवा के धूर कपार पर चढ़ जा हल - 'दुर जो छिछिअइली । रंडिया रभसते रहतउ ।')    (मपध॰11:13:23:1.35)
166    रछ-रछ के     (रछ-रछ के पीपर में पानी पड़ गेल । पगड़बंधा हो गेलइ । सरबन के दुनहूँ आँख सकरी-टाटी हो गेल हल । बजड़ रहल हल छोटुआ बाकि अशोकवा के आँख में लोर नञ् ।)    (मपध॰11:13:25:2.2)
167    राहड़ (= अरहर)     (पढ़े के लेल साँढ़-भइँसा नियन राहड़े-राहड़े भागल चलऽ हलें । एने-से-ओने बिना खइले-पीले भागल चलऽ हलें ।)    (मपध॰11:13:46:3.8)
168    रिकटना (= रेकटना)     (केतना बरदास कइलिअइ हे, बउआ ? दोसर कोय रहतइ हल, तउ कुइयाँ पइस जइतइ हल । सुरजा के कोदवा हो गेलखुन हल, दूगो खोभिया लाय खातिर रिकट गेलियो । ई बुढ़वा नञ् देलको हल ।)    (मपध॰11:13:23:3.6)
169    रोआ-रोहट     (जहाँ गाँव में पेड़-बगान हल उहाँ मरघट के चील्ह-कउआ मँड़राय लगल । जहाँ होरी आउ चइता के झाँझ-मानर हल उहाँ रोआ-रोहट के चीत्कार सुनाई पड़े लगल । पनघट पर सियार-हुँड़ार फेकारे लगल ।)    (मपध॰11:13:10:3.1)
170    लंद-फंदिया     (तुम्हारा भाय तो भारी लंद-फंदिया है । साला अपने दिल्ली भाग गया है, आउ तुमलोग को बउखा रहा है ।)    (मपध॰11:13:25:2.24)
171    लंदर-फंदर (= लंद-फंद)     (टंटू जी साँझे के गरुड़ पुराण पढ़ो लगला । सुनताहर में ओनमावली, केसौरीवली, गगरीवली, समसावली नियन ढेरमनी औरतन के भीड़ हल । कथा खतम होला पर - "सुनलहो ने चाची । नरक लोक कइसन होवो हइ । चार दिन के मेला हे ई दुनिया । एकरे ले एतना सरेजाम ... झूठ-फूस, अगड़म-बगड़म, लंदर-फंदर ... ।")    (मपध॰11:13:25:1.11)
172    लतारी (= लताड़ी, लेताड़ी; लात की मार)     (मांझो केतना टेढ़-लांगड़ बात सुनके ससुर के सेवा करते रहल - दुधारू गाय के लतारी नियन गोतनी के अलझी-पलझी के भी हँस के बरदास कइलकी ।)    (मपध॰11:13:23:1.31)
173    लबरना     (तालाब अदमी के लाश से गेन्हाय लगल । नदी-नाला लाल सिंदूर से रंगा गेल । गली-गली में कुत्ता के पहरा । पीपर के डाल घटका से लबर गेल । आहर-पोखर रेत बन गेल ।)    (मपध॰11:13:10:3.5)
174    लमपोर     (कजरिया जतने लमपोर ओतने सुंदर । आवा से निकालल बरतन लेखा भक-भक गोर ।)    (मपध॰11:13:9:1.12)
175    लहठी (चूड़ी ~)     (पेड़ के डार पत्त काट के जिराखन जानवर के बुतात जुटावे आउ कजरिया चूड़ी लहठी बेच के परिवार के भरण-पोषण करे ।)    (मपध॰11:13:9:2.25)
176    लहार (~ मारना)     (ठीके में रेखा सोनारिन के चरित्तर सोना अइसन हे, छिछियात बखोइनियाँ सब पीतर के नकबेसर पर लहार मारेवाली न हे ।)    (मपध॰11:13:15:1.32)
177    लुग्गे-फट्टे     (एक दिन लोहनावली कहलथिन - 'ऐं पावावली, सुनलियो ससुरा के मन दब हो, लुग्गे-फट्टे हो रहलो हे, तनी तेल-कूँड़ कर देतहो हल ।')    (मपध॰11:13:23:2.2)
178    लोघड़-पघड़     (एही ओजह हे कि हम्मर टरेनवन भी 'मंद-मंद' गति से चलइत-चलइत रहियन में सब्भे टंगल बोर्ड पढ़इत एत्ते लेट हो जाहे कि सबरियन के पलेटफारम पर लोघड़-पघड़ करके टरेन के इंतजार करे पड़े हे ।)    (मपध॰11:13:44:1.5)
179    सक्क-दम्म (= सकदम)     (ऊपर दुमहला पर भीतर में छनाक से कुछ गिरल, लगल कुछो जरूर टूट के छिरिया गेल हे । लोहानवली सक्क-दम्म ।)    (मपध॰11:13:23:2.10)
180    सखी-सलेहर     (कजरिया के गाँव-गाँव में जनानी सब सखी-सलेहर बन गेलन हल ।)    (मपध॰11:13:9:3.41)
181    सबद्दा (= 'स्वाद' का तद्भव रूप 'सबाद' + 'आ' प्रत्यय)     ('हम काहे ला बान्ह के रखतूँ हल ? हमरा भतार नञ् हल की ? तोरे नियन हम सबद्दा नञ् खोजले चलऽ हूँ ।' - 'हम काहे ले सबद्दा खोजम ? हमरा तो अपने चकइठ नियन मरदाना हे । दोसरा नियन हम बुतरूओ से रभसते रहऽ ही की ... ?')    (मपध॰11:13:24:1.5, 7)
182    समसिया (= समस्या)     (गाड़ी घाट पर पहुँच गेल । अब समसिया हल कि आग के देतइ ? छोटुआ अभी तक आ नञ् सकल हल । अशोक मांझिल हइ । सरबन अड़ गेलइ - 'हमरा से ई काम नञ् होतउ । हम खाता-पीता अदमी ही । हमरा से पारे नञ् लगतउ ।')    (मपध॰11:13:24:2.41)
183    सहजाना     ('आवे देहीं, कयफट्टा-भंगलहवा के । हम जेतनइ मना करो हिअइ, ओतनइ सहजा रहल हे । आझे एक निनान नञ् छोड़बइ । घर में भुंजी-भांग नञ्, ड्योढ़ी पर नाच ।')    (मपध॰11:13:25:1.41)
184    साटिकफिटिक (= सर्टिफिकेट)     (मांझो भी पकिया ससुर के पकिया पुतहु । अलझी-पलझी मारे से शुरू भेल आउ माँग-कोख पर अँटक गेल । जब दुनहूँ के पेट बेटा-भतार के खइला से भर गेल, तउ चलित्तर के साटिकफिटिक बँटो लगल । टोला-टाटी के जनिआनी मेला लग गेल ।)    (मपध॰11:13:24:1.17)
185    सारा (= साला)     ('तुम्हारा भाय तो भारी लंद-फंदिया है । साला अपने दिल्ली भाग गया है, आउ तुमलोग को बउखा रहा है ।' - 'दिल्ली में तो ओकर एगो सारा रहो हइ, सर ।')    (मपध॰11:13:25:2.27)
186    सिंगार-पटार     (पावावली के बात - देखऽ हो, केतना निठुर-निठुर हइ । लगवे नञ् करो हइ कि एकर मरदाना लापता हइ । उहे सिंगार - उहे पटार - उहे छनर-मनर ।)    (मपध॰11:13:25:3.1-2)
187    सुरूकिया     (कजरिया के भाई जिराखन कुस्ती में सबके धूर चटा देवऽ हल । पाँच किलो दूध एके सुरूकिया में गटक जा हल ।)    (मपध॰11:13:9:2.2)
188    सूच्चा     ('लोककला', 'लोकसंगीत', 'लोकउद्योग' में भी मंदी छायल हे । 'लोकनाट्य', 'लोकरंग' में एते मंदी हे कि अब सूच्चा कहें नय लौकइत हे । 'लोक लिवास', 'लोक-आवास' तऽ एकदम 'मंदी' के मार से थकुचा गेल हे ।)    (मपध॰11:13:44:2.30)
189    हठुआ (~ मनी = ढेर मनी)     (एतने नञ्, हमरा बिजुन 'मंद-मंद' खातिर हठुआ मनी पर्यायवाची शब्द हे । एहमें धीरे-धीरे, हौले-हौले, सले-सले, रसे-रसे, गते-गते, आहिस्ते-आहिस्ते, रफ्ता-रफ्ता जादे प्रचलित हे ।)    (मपध॰11:13:43:1.46)
190    हबर-दबर (= जल्दी में)     ('हौले-हौले बोलऽ', 'सले-सले बतियावऽ', 'गते-गते पढ़ऽ', 'हौले-हौले ममोरे अउ कमर धर पछोरे', 'जल्दी के काम शैतान के', 'हबर-दबर के घानी आधा तेल आधा पानी' जइसन ढेर मुहावरा अउ कहाउत हम्मर लोकजीवन में प्रचलित हे ।)    (मपध॰11:13:44:1.11)
191    हबर-हबर (= जल्दी-जल्दी)     (जार-खोर के सभे घर लौटलन । लोहा-पानी छूए से पहिलहीं पावावली फायर - 'खाय-भोगे घरी ऊ, आउ उतरिया हमर मरदनमा के । हम केतना समद के भेजलिअइ हल कि हबर-हबर मत करहें । बाकि ... । उतरिया उतार के टाँग देहीं अमरूधवा पर ।' गोड़ छुआवित सरवन के लोर ढलक के कराही के पानी में गिर गेल । ई उतरिया केतना भारी हो गेलइ हे जेकरा गाछे पर टाँगो परतइ ?)    (मपध॰11:13:24:3.15)
192    हर-कुदार     (सब गुड़ गोबर । हर-कुदार बंद । फसल-परूई सपना ।)    (मपध॰11:13:11:1.1)
193    हल (= आज्ञार्थक/ हेतुहेतुमद्भूत क्रियारूपों के साथ प्रयुक्त शब्द जिसका हिन्दी में अनुवाद नहीं किया जा सकता; इसके स्थान पर कभी-कभी 'खल' शब्द भी प्रयुक्त; जैसे - कहतो हल {= कहता}, देखहीं हल {= देखना}, देखहो हल {= देखिएगा}, जइहो खल {= जाइएगा})     (एक दिन लोहनावली कहलथिन - 'ऐं पावावली, सुनलियो ससुरा के मन दब हो, लुग्गे-फट्टे हो रहलो हे, तनी तेल-कूँड़ कर देतहो हल ।')    (मपध॰11:13:23:2.3)
194    हल्लुक (= हलका)     (गारजियन लेखा घमंडी राम जी, मित्र कृष्ण कुमार भट्टा जी आउ मनोज जी के कइसे भूल सकली हे, जिनकर आर्थिक सहजोग हमर माथा के वजन हल्लुक कइलक हे ।)    (मपध॰11:13:4:1.30)
195    हार-दार (~ के)     (इहाँ तक कहानी कहते-कहते करीमन काका सुत गेलन । हार-दार के हमहुँ सुत गेली ।)    (मपध॰11:13:11:1.14)
196    हिंस्सा (= हिस्सा)     ('हिंसबा के बाते अब नञ् हइ, अब तो कुल करजवो हमरे तोड़े परतइ । बात एकरो नञ् हइ हो । केतना कमइलूँ - आउ उड़ा-पुड़ा देलूँ, बाकि दुख ई बात के हे कि धुरवा बना देलक । केतना बउखलूँ हल ओकरा खोजे में ।)    (मपध॰11:13:25:3.18)
197    हुअईं (= ओहईं, हुएँ; वहीं)     (जानलहीं संतोष, अशोकवा पइसा निकास के दिल्ली फिरंट हो गेलउ । हुअईं दोकान खोलतइ ।)    (मपध॰11:13:25:3.14)
 

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