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Monday, December 30, 2013

105. कहानी संग्रह "बिखरइत गुलपासा" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



बिगुल॰ = "बिखरइत गुलपासा" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - रामचन्द्र 'अदीप'; प्रकाशक - मागधी माँजर मंच, बिहारशरीफ (नालन्दा); संस्करण 1985 ई॰; 60 पृष्ठ । मूल्य – 9 रुपइया ।

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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 527

ई कहानी संग्रह में कुल 16 कहानी हइ ।

क्रम सं॰
विषय-सूची 
लेखक
पृष्ठ
0.
कबूलऽ ही
रामचन्द्र 'अदीप'
i
0.
--------
डॉ॰ ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
vi
0.
नजरिया अदीप पर
डॉ॰ लक्ष्मण प्रसाद चन्द
vii
0.
सूची
----
vvi




1.
एगो आउ टावर

1-4
2.
मनसूबा

5-8
3.
डराफ

9-12
4.
छँहुरी के छाँव में

13-15




5.
नावा दिन

16-18
6.
देस-देसाबर

19-22
7.
किस्त में बँटल जिनगी

23-25
8.
टँगल अतीत

26-28




9.
बउँखल बिंडोबा

29-31
10.
टूटइत पुल

32-35
11.
दसरथ के अँगना में

36-39
12.
उधार पसेना के तहियाल नोट

40-43




13.
सूखइत सोर

44-47
14.
सहेजल सपना

48-51
15.
बिखरइत गुलपासा

52-55
16.
राँगल रउद

56-60


ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):
1    अंगना-ओसरा (बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल । सामने कोय बोले या नञ् मुदा जेकरा जे मन में आवऽ हल करवे करऽ हल । ऊ देख रहलन हल कि उनकर हुमाद आउ लोहमान पर विदेशी इत्र के महक तेज हो रहल हल । बाल धोवे ले 'हेलो' सम्पू, लक्मे आउ अफगान असनो के डिब्बा अंगना-ओसरा में ढनमनाय लगल ।)    (बिगुल॰31.18-19)
2    अंगा-पैंट (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल ।)    (बिगुल॰52.4)
3    अंधड़ (पुस्तइनी घर आउ बड़हल-बगान के अब की जरूरत हे ? बहू आउ अजय के आउफिस जाय के बाद तो कोवाटर खालिये रहऽ हे । दरदगर बात तो ई लगल कि घर के देखे भाले ले एगो अप्पन आदमी चाही ।/ अजय के बात तो भोला बाबू के अंधड़ जइसन लगल । जोम में अब विजय के घर पहुँच गेलन ।; उनका लगऽ हल कि तनिकना घर के उमस से अलगे खड़ा हो जाय, मुदा आँख मूँदला से कहीं अन्धड़ रुक गेल हे ?)    (बिगुल॰8.13; 39.10)
4    अइसनका (= इस प्रकार का) (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।; कुच्छे समय में धुरन्धरी आउ पइसा के प्रभाव के जोड़-तोड़ से गियान से जादे सटिफिकेटे सरिया देलन । पसरल सटिफिकेट के देख-देख के राधिका के गियान से ओकरा तौलते मन ही मन कुछ सोचे लगऽ हलन । उनका लगऽ हल कि अइसनका सटिफिकेट से संस्था सब के की कलियान होत ?)    (बिगुल॰26.8; 42.12)
5    अउघट (= अवघट; कठिन, दुर्गम) (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही ।)    (बिगुल॰vi.17)
6    अउनपथारी (एतना दिन में बेटी-दमाद दिल्ली, बम्बई आउ मद्रास होते कलकत्ता में आके टिक गेलन हल । ई जान के, माय कालीघाट आउ बाबूजी गंगासागर के बात मन में पोसे लगलन हल । सोचऽ हलन कि एही बहाने घर के दशा पर भी उनकर धियान देलावल जात । माय त अउनपथारी होके ओझा-फकीर एक कर देलकी हल । लिफाफा में भभूत आउ परसाद के पुड़िया ठूँस दे हली ।; राधे बाबू के लगऽ हल कि राधिका के कामकाजू होते उनकर पसेना पउडर आउ लमेंडर के लेप में लोप हो जात । मुदा फिनु राधिका के सटिफिकेटिया गियान के भंजावे ले अउनपथारी हो जा हलन ।)    (बिगुल॰34.18; 43.16)
7    अकेलुआ (बँटवरे घड़ी ऊ ढेरो-ढेर परिवार के विदेस जाय से रोकलन हल । मुदा सोंचे लगलन कि देखते-देखते उनकरे सउँसे देसी ताना-बाना विदेसी बटखारा के हवाले हो गेल । अब दुन्नू परानी एकदमे अकेलुआ महसूसे लगलन ।; जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल ।; कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल । तीनो गोतनी में अबोला त ढेरोढेर दिन तक चलऽ हल, जेकर हवा से भाय लोग भी नञ् बचऽ हलन । फिन चुप्पी टूटे के झगड़े-तकरार त अकेलुआ रास्ता रह गेल हल ।)    (बिगुल॰11.32; 33.2-3; 38.8)
8    अखढ़िया (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल । अखढ़ियन के अखर गेल । एकर सरगना होनइ के कबूले ले तइयारे नञ् ।)    (बिगुल॰51.1)
9    अखाढ़ा (= अखाड़ा) (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।; पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल ।)    (बिगुल॰38.6; 45.3)
10    अजगुत (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल । देस के अनेको राज आउ धरम के एगो अजगुत पड़ाव पनपऽ हल ।)    (बिगुल॰52.6)
11    अजुका (= आज का, वर्तमान) (मनुस मसीन हो गेल हे । घड़ी के सुइये पर अदमी नाच रहल हे । घर के परिभाषो बदलल हे । लड़का-लड़की सब कमासुत । सब कामकाजू । कोय केकरो पर बोझ नञ् । अपन चारो दने दूगो हाथ आउ दस गो मुँह के दसा देख रहलन हल । अजुका सिच्छा ले नवा-नवा नक्सा नापे लगलन हल ।)    (बिगुल॰10.6)
12    अजुकी (नया मकान तो इनका सस्ते किराया में भेट गेल हल । हल तो शहर आउ औफिसो से दूर, मुदा सोचलन हल कि किराये के कोताही पर अजुकी कमी - टी॰भी॰, फ्रिज आउ सोफा कीनल जात । बुतरु-बानर के मनलग्गी आउ शहर-सिनेमा से एकदमे फुरसत ।)    (बिगुल॰13.5)
13    अनंद (= आनंद) (बचपन में ऊ तीनो भाय-बहिन खुब्बे मिल-जुल के रहऽ हल । सावन के सगुनल घड़ी लेल छोटकी राखी बान्हे या भेजे लेल त महिनो-महिना से तैयारी करऽ हल । तीनों के मेल-जोल या झगड़ा में भोला बाबू आउ उनकर मेहरारू के अजबे अनंद मिलऽ हल ।)    (बिगुल॰5.14)
14    अनकर (अनकर घर के मेहरारू के लिवास, सुन्नरता आउ भोजन के साथ तीअन-तासन के तारीफ त उनकर ठोरे पर रहऽ हल । दोसर घर के बइठकी ले मौका तलासते रहऽ हलन ।; ई सब बात-विचार में अपन राधिका के कामकाजू बनावइ के चरचा जरूरे करऽ हलन । तब भी उनका अनकरे घर के जनवादी विचार अच्छा लगऽ हल, अपन राधिका पर से सामंती तेउरी कहियो नञ् उतारऽ हलन ।; कमाल के परिवार हल त बस गुप्ता साहेब के, अनकर घर के मौज-मस्ती में केतनो भिंज जाय, मगर अपन घर के ओदा करे के कसम शायदे तोड़ऽ हलन । उनका जिनगी के ई सब तामझाम में एकदमे विश्वास नञ् हल । खरचा-पानी के पनगर विचार के एकदमे ठोस बनाके सजइलन हल ।)    (बिगुल॰43.5, 10; 53.6)
15    अनजानल (रह-रह के बनारसी बाबू घड़ी देखऽ हलन आउ मने-मन परिवार के पहुँचे के समय तय करऽ हलन । अपन परिवार के जीप से आगुए भेज देलन हल । जगह अनजानल हल पर एगो दोस्त के पता साथे हल आउ चिट्ठी पहिलहीं पठा देलन हल ।)    (बिगुल॰52.22)
16    अनबेरा (अजीम, सलीम आउ शबनम के विदेस बस जाय से कलीम साहब बउधा, बकरी, तोता-मैना आउ सँझउकी चाय से एकदम्मे घुल-मिल गेलन हल । कलीम साहब आउ उनकर बेगम के अनबेरा ले अदमिये नञ् भेंटऽ हल ।)    (बिगुल॰11.16)
17    अपनउती (पहिले ऊ चर्च के गाड़ी चलावऽ हल । डाकटर साहेब के भी बाल-बुतरुन इसाई-स्कूल में पढ़ऽ हल । जब भीड़ नञ् रहऽ हे त डाकटर साहेब ओकरा से खूब अपनउती-सन बतिया हथ - "साइमन ! अब तुम ठीक हो रहे हो ।")    (बिगुल॰18.2)
18    अबोला (कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल । तीनो गोतनी में अबोला त ढेरोढेर दिन तक चलऽ हल, जेकर हवा से भाय लोग भी नञ् बचऽ हलन ।)    (बिगुल॰38.6)
19    अरघ (= अरग; अर्घ्य) (समय सँसर रहल हल आउ चनेसर एकदम थहुआल । एक दिन हवा के झोंका आल आउ चनेसर बगले के शहर के नावा कॉलेज में पहुँच गेल । दस हजार के डोनेसन के डलिया लेके अरघ देलक तब कहीं पेटकट्टू नौकरी पइलक ।)    (बिगुल॰50.17)
20    अलगउँझा (रोजगार से राजा बनइ के राज त नइहरे से जानऽ हली, जेकरा ससुरार में देउर सब के बीच बखानते रहऽ हली । शुरू में उनका एगो सुकून मिलऽ हल । अलगउँझा के आग कहियो धधाय नञ् दे हली ।)    (बिगुल॰38.29)
21    अलोपना (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल ।; ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।)    (बिगुल॰13.23; 31.25)
22    अल्लग (= अलग) (कहानी के सम्बन्ध में हम की कहूँ ? ई सब कहानी के दीया हमर हाजिरे-नाजिर में नेसाल हे, तब भी कह सकऽ हूँ कि ओहे कहानी कहानी कहलाय के दावा करऽ हे, जे अपने अपने रब्बऽ हे, लिखवइया आउ कहवइया से एकदम अल्लग, आलोचक के नजर के ठुनका लगला पर !)    (बिगुल॰vii.18)
23    असरगर (परिवार लेल जीवन में एक से एक जोखिम उठइलन हल । परिवार के ओदगर आउ गुदगर बनावे लेल लड़कन के पढ़ाय से असरगर ओहदा तक ठेले में कतना गंजन उठइलन हल !)    (बिगुल॰52.27)
24    आगू (= आगे) (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।)    (बिगुल॰2.24)
25    आजिब (= वाजिब, उपयुक्त) (जीवन बाबू उत्सव आउ समारोह में करीगर आउ मिसतरी के आजिब इज्जत आउ मेहनताना दे हलन ।)    (बिगुल॰30.28)
26    आल-गेल (बेटन लोग के समाचार आल-गेल लोग से भेट जा हल । मिसरी आउ मिठुआ से मिले ले अब मन तड़पे लगल हल ।; कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।; उनकर घरवली के छोट शहर के सिनेमा, होटल तनिको अच्छा नञ् लगऽ हल आउ जादे लोग से मुँह-लगउअल भी नञ् करऽ हली । कुछ दूर-दराज से आल-गेल लोग से उनकर घर भरले रहऽ हल । महीना में दू-चार दिन त बड़गो शहर के सैर-सपाटा करिये ले हली ।)    (बिगुल॰22.15; 37.9; 53.21)
27    आल-जाल (~ करना) (एक से एक नेता आउ देशप्रेमी के भाषण । खुब्बे ताली लगऽ हल । मुदा ऊ तो लड़कपने से कलकत्ता आल-जाल करऽ हल । ओकर की दोष हल ? बने या बिगड़े ले पहिला आदमी कलकत्ते भागऽ हल ।)    (बिगुल॰22.9-10)
28    आसनी (पूरब आउ पच्छिम के जोड़-घटाव में ई समाज के असलिये हिसाब डगमगा गेल हे । आदमी पीढ़ा आउ आसनी छोड़के डायनिंग टेबुल पर आ जा हे मुदा भोजन के पहिले थरिया के चारो बगल पानी ढारवे करऽ हे ।)    (बिगुल॰30.13)
29    इंजोर (चमक त घरो से जादे अपन बेटा-बेटी में लइलन हल । बेटी ले त लड़का खरीदिये लेलन हल । बियाह में उनकर पइसा बारूद के काम कइलक हल । बरात के चमक से इलाका इंजोर हो गेल हल । मुदा बेटन के बियाह में कुले कोर-कसर निकाल लेलन हल ।)    (बिगुल॰27.19)
30    इंटरभिउ (= interview) (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल । ओकरा लगल कि धरती फटे आउ ऊ समाय । एतनइँ कह सकल कि एत्तेक जगह तो दरखास आउ इंटरभिउ देलूँ ।)    (बिगुल॰50.3)
31    इड़ोत (भोला बाबू के कामयाब सोहरत से छोटकी के शादी तो छूमंतर में तय हो गेल हल । लेन-देन आउ सब समान के फिरिस्त सावधानी से तैयार करके बस में बइठ गेलन हल । घर से निकले घड़ी छोटकी के माय दही के टीका आउ छोटकी केवाड़ के इड़ोत से परनाम कइलक हल ।; साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।; महीना के पहिला पख हल । अपन बटुआ से सिनेमा के तीन गो टिकट अलगे करइत राधे बाबू के हाथ में नोट थम्हइते, झटके के साथ नजर से इड़ोत हो गेली ।)    (बिगुल॰7.28; 37.31; 43.30)
32    इद्धिर-उद्धिर (= एद्धिर-ओद्धिर) (सही जिनगी के केतना थोक आउ खुदरा तो अब यादो नञ् पड़ऽ हे । महाजन केतना तपाक से छोटका तराजू पर ओकर बड़का कंगना के जल्दी-जल्दी तौलके ठंढा हाथ में फर-फर नोट धर देलक हल । ई रुपइया कभी ओकर देह में फगुनी सिहरन दे हल । ई महाजन के बेटवा एकदमे पइसा के जलमल हे, एक्को पइसा इद्धिर-उद्धिर नञ् ।)    (बिगुल॰16.5)
33    इनल-गिनल (राधे बाबू हियावऽ हलन कि अपन छोटगर शहर में भी कामकाजू जन्नी के जमात भारी हो रहल हे । पहिले तो बस, बुढ़िया मेम आउ इनल-गिनल बालिका स्कूल के मास्टरनिये शहर के कामकाजू जन्नी के नाम पर टिकल हल । अब त डाकडर, परोफेसर, वकील आउ ढेरो आफिस के कामकाजू जन्नी के भीड़ में मास्टरनी आउ नर्स के चरचे उठ गेल हे ।)    (बिगुल॰41.15-16)
34    उँचगर (चनेसर के लाख मनाहट पर भी माय के बात आउ भोजाय सब के ठिठोलिये के ठहाका गूँज गेल आउ लगले फागुन में बियाह हो गेल । एगो नौकरियाहा बाप के पढ़ल-लिखल बेटी घर में दुल्हन बन के आ गेल । चनेसर धिरजा बान्हलक कि ससुर उँचगर ओहदा पर हथ, कउनो जुगाड़ से नौकरी देला देता ।)    (बिगुल॰49.4)
35    उकटापइँची (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।)    (बिगुल॰36.2)
36    उक्खी-बिक्खी (आज दिनो भर पागल आउ गँवार जइसन बउँख के चूर-चूर हो गेल हल । उदास, ओंटघल हल कलकत्ता जइसन शहर के सड़क पर । ओकरा अब तनिको मन नञ् लग रहल हल । समय त काँटा जइसन शरीर से सटल हल । मन में उक्खी-बिक्खी समा गेल हल ।)    (बिगुल॰32.4)
37    उघरना (ऊ बूझे लगलन हल कि ई नावा रंगरूट के सामने देश, समाज आउ धार्मिक बात करनइ फजूल हे । अपन सामने ही उनकर बात-विचार के बखिया उघर गेल । ऊ जलसा से समटाल दरी-बिछौना जइसन समटा गेलन ।)    (बिगुल॰31.9)
38    उजलत (एगो घिसल चेहरा वाला नौकर आके ओकरा सिर से गोड़ तक बड़ी देरी तक देखलक हल । ओकरे से मालूम होल हल कि मेहमान आउ रीता कउनो नेउता में गेल हका । इंतजार करइत चन्दू के नजर के सामने अपन घर के गीत-नाध, गहमागहमी, आपाधापी आउ सउँसे तैयारी के नक्सा नाच गेल । ओकरा लग रहल हल कि माय-बाबू जी के उजलत, अप्पन धपड़ाही सब ठंढा गेल ।)    (बिगुल॰35.22)
39    उटंग (ई सब कथा-कहानी आउ तूल-तेवर से केसो के मन असमान छूए लगल । चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । नोनी लगल धोखड़ल देवाल, उटंग केवाड़ी, खपड़ा के छप्पर केसो के आँख में गड़े लगल । उनके सामने किसुन आउ कैलास के घर देखते-देखते आँख में गड़े लगल ।)    (बिगुल॰48.8)
40    उटपुटांग (डाकटर साहेब त बस, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा ! कभी-कभी गोस्सा वला अवाज ! डाकटर साहेब भी की करतन ? कभी-कभी उटपुटांग मरीजो रहऽ हे । एक्के बात के दस बेर !)    (बिगुल॰17.22)
41    उधार-पुधार (अइसनो भीड़ में दिनेश बाबू अप्पन गाँहक के नाम दिमाग में टांकतहीं रहऽ हलन आउ उधार-पुधार वलन के नाम अँगुरिये पर हिगरा ले हलन ।)    (बिगुल॰58.10)
42    उपरउकी (भगवान दास दुन्नू के अपन उपरउकी कोठरी में ले गेल । फिनु गाँव-घर के समाचार पूछे लगल । पहलवान जी पूरा जोर लगाके सब हाल सुना रहलन हल । कउन खन्हा में नहर बनल, बिजली लगल । केकर बेटा की करऽ हे ? मुदा चाची तो एकदम मनझान हो रहली हल ।)    (बिगुल॰46.27)
43    उपरकी (नहा करके रामबाबू नया-नया कपड़ा बदललन आउ एकदमे ताजा महसूसे लगलन हल । टावर के सीढ़ी पर बइठल ताजा अखबार देखे लगलन । उपरकिये पन्ना पर फोटू के साथ एगो बड़गो परिवार के घटना हल । दहेज में फ्रीज बाकी रह जाय गुनी बहू के किरासन तेल से जला देवल गेल हल ।; डाकटर साहेब त बस, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा ! कभी-कभी गोस्सा वला अवाज ! डाकटर साहेब भी की करतन ? कभी-कभी उटपुटांग मरीजो रहऽ हे । एक्के बात के दस बेर ! जइसे-जइसे समय बीतऽ हे, डाकटर साहेब के उपरकी धोकड़ी गदरा के गब्भिन हो जाहे, तब उनकर चेहरा के रंग आउ खिल जाहे ।)    (बिगुल॰4.27; 17.24)
44    उबजना (= उपजना) (रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले । खाय भर गल्ला तो उबजिये जाहे, कुछ बाहरी से आवत त घर सम्हर जात मुदा एहो तो घरे के आँटा गील करे लगल ।)    (बिगुल॰49.21)
45    उमकना (टैक्सी में बइठते ही डेरा के ठौर-ठेकाना धियान से देखलक हल । उमंग मे एतना मनेमन उमक रहल हल कि जतरा के थकउनी थाहियो नञ् सकल ।)    (बिगुल॰35.15)
46    उमड़ल (सच में, महल्ला की हल ! दिन भर गाय-बैल, बकरी, गदहा-गदही आउ मरियल कुत्ता-कुत्ती सउँसे महल्ला के धाँगते रहऽ हल । दूर-दराज से आवल कुत्ता 'झाँव-झाँव' करते रहऽ हल । ई सबन के झगड़ा में कखनउँ-कखनउँ आदमी के घंटो-घंटा टिक जाय पड़ऽ हल । सउँसे टोला में, बस एगो अधेड़ उमर के उमड़ल जन्नी जानवर आउ आदमी के पुचकारते-फटकारते रहऽ हल ।)    (बिगुल॰13.21)
47    उसकाना (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल ।)    (बिगुल॰36.6)
48    एकदम्मे (= एकदम ही) (सहाय जी तो पढ़ल-लिखल गुनी लड़की के बाप हलन । पैसा-कौड़ी के कउनो कमी नञ् हल, मुदा दहेज के तय-तमन्ना में पढ़लो-लिखल परिवार में जे हिचक पैदा होल तो सहाय जी लूडो के दान जीतइवाली गोटी जइसन आगे बढ़के फिर अप्पन घरे लौट अइलन आउ तब सहाय जी एकदम्मे बेसहाय हो गेलन हल ।)    (बिगुल॰3.27)
49    एकल्ले (रीता के बियाह के बाद घरे में एगो आँटा-चक्की के छोटगर मील खड़ा कइलन हल । आँटा के जरती से घर के चूल्हा जरे लगल हल । खेत पर कामे की रह गेल हल ! खेत लेल एकल्ले चन्दू ढेर हल ।; दू डैना के पंखा हियइते-हियइते पुष्पा के झपकी आ गेल । फिन जगला पर देखलक कि एकल्ले दाइये गाड़ी लेके ओकरा ले जाय ले आल हे आउ मालूम होल कि दमयंती आज केकरो से नञ् मिल रहली हे ।)    (बिगुल॰34.8; 60.29)
50    एक्के (= एक ही) (डॉक्टर साहब बड़गो आदमी हलन । लड़की सुन्दर आउ सुशिक्षित । बियाह के सब बन्दोबस्त डॉक्टर साहब आउ उनकर कनिआय नाप-तौल के अपन औकात के मोताबिक कइलन हल । मुदा बराती के भीड़ आउ तकरार से एक्के झटका में अइसन छितरइलन हल कि अठवारा तक उनकर अपने गला के आवाज गायब हो गेल हल ।)    (बिगुल॰3.16)
51    एतनइँ (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल । ओकरा लगल कि धरती फटे आउ ऊ समाय । एतनइँ कह सकल कि एत्तेक जगह तो दरखास आउ इंटरभिउ देलूँ ।; दौड़-धूप आउ पैरवी के पाया जब घसक गेल, कत्तेक जगह घूस के देलो पइसा नञ् लौटल त मंझला भइया एतनइँ तो कहलका - कर लेलऽ नौकरी ! तनी घरवली के मुँह सम्हारे ले कहऽ !)    (बिगुल॰50.2, 5)
52    ओंटघल (आज दिनो भर पागल आउ गँवार जइसन बउँख के चूर-चूर हो गेल हल । उदास, ओंटघल हल कलकत्ता जइसन शहर के सड़क पर । ओकरा अब तनिको मन नञ् लग रहल हल ।)    (बिगुल॰32.2)
53    ओजन (= वजन) (ओकर तो लम्मा इलाज हे । लाल-पियर दवाय आउ फोटू लेके ओकरा दू-चार दिन पर जाय पड़ऽ हे । कम्पोटर त ओजन आउ बुखार लेके छोड़ दे हे, पर डाकटर साहेब से बात करे ले दू पहर तक ठहरे पड़ऽ हे ।)    (बिगुल॰17.26)
54    ओझराना (= उलझना; उलझाना) (साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰37.30)
55    ओदगर (अनेकन बार तीज-त्योहार आउ साड़ी-कपड़ा लेल झगड़ा होवऽ हल मुदा उनकर घरवाली के साड़ी निछावर हो जा हल आउ राम बाबू अपन फुलपैंट रफूघर में घर के डाकघर के बचत योजना के सटिफिकेट लेके सथा जा हलन । राम बाबू के जब भी अइसन मोट रकम से हाथ ओदगर होवऽ हल, डाकघर या बैंक के चक्कर मारिये के सन्तोष के साँस ले हलन ।; छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन । उनकर घरनी भी परिवार के नावा नक्सा ले ओदगर हाथ सुखइते रहऽ हली । बड़गो शहर के झमेटगर घराना से अइली हल ।; परिवार लेल जीवन में एक से एक जोखिम उठइलन हल । परिवार के ओदगर आउ गुदगर बनावे लेल लड़कन के पढ़ाय से असरगर ओहदा तक ठेले में कतना गंजन उठइलन हल !)    (बिगुल॰2.5; 37.27; 52.27)
56    ओदमाइन (खुब्बे गुना-भाग करके बाबूजी रीता के बियाह बड़गो घर में कइलन हल । ऊ बूझलन हल कि बेचके भी कुछ निमने चीज कीनलन हे । जोत-जमीन के बड़गो हिस्सा बिक जाय पर भी उनकर दिमाग में नक्सा नाचऽ हल कि बुढ़ारी में बेटी-दमाद उनकर चरपाइ के ओदमाइन ढीला नञ् होवे देत ।)    (बिगुल॰33.30)
57    ओदा (महीना दू महीना से जब दिन आगू बढ़ल आउ पइसा मिले के कोय चाल-चपट नञ् भेल त चनेसर सहमे लगल । कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात ।; कमाल के परिवार हल त बस गुप्ता साहेब के, अनकर घर के मौज-मस्ती में केतनो भिंज जाय, मगर अपन घर के ओदा करे के कसम शायदे तोड़ऽ हलन । उनका जिनगी के ई सब तामझाम में एकदमे विश्वास नञ् हल । खरचा-पानी के पनगर विचार के एकदमे ठोस बनाके सजइलन हल ।)    (बिगुल॰50.24; 53.7)
58    ओरियाना (देस के बँटवारे के समय उनकर ढेरो-ढेर रिश्तेदार अपन देसे के विदेस बनावे में शरीक हो गेलन हल । मुदा कलीम साहब के समझ में, अपन देस के दिगर देस बूझे के बात नञ् ओरिया हल ।; बनारसी बाबू अपन छोट बेटन ले ओतना परेशान नञ् हलन जेतना बेटी ले । अब ऊ महसूस रहलन हल कि राजधानी में पढ़ाय-लिखाय, सुख-सुविधा के नाम पर बड़गो मकान नाधे से कइसन ओरिया गेलन हल, हाथ एकदम पातर हो गेल हल ।)    (बिगुल॰9.7; 54.19)
59    ओलहन-पटोतर (छोट-मोट बात पर भी किरिया-कसम आउ ओलहन-पटोतर से अँगना आसमान छूअ हल । तब भी रघुबंस वली बउसाव करते रहऽ हली ।)    (बिगुल॰38.26)
60    ओलहाना (तब भी मिल्लत से बनल मिलकीयत के नक्सा उनकर दिमाग से नञ् उतरऽ हल । फिन करिये की सकऽ हलन ? ने उगलते बनऽ हल ने निगलते ओलहा हल ।)    (बिगुल॰38.17)
61    ओसरा (= ओसारा) (रसे-रसे ओसरा भी भित्तर में बदले लगल आउ रघुबंस के लाख कोरसिस के छइते भित्तर से जादे भनसे हो गेल । ठोनावादी से अँगना गरम रहे लगल ।)    (बिगुल॰38.1)
62    कंधा-घोड़की (माइये के मुँह से मगही के पहिल शब्द कान से टकराल होत आउ फिनु कंधा-घोड़की चढ़इते बाबुओ जी मारे या दुलारे में मगहिये मुहावरा से काम चलइलन होत ।)    (बिगुल॰i.2)
63    कइँचिया (पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल ।)    (बिगुल॰45.4)
64    कइल (= किया हुआ) (किरन जी कभी-कभी अपन स्व॰ पिता विदेसी बाबू के साथ कइल बेहवार में भुला जा हलन । भोरे उठके अपन हाथ से चाह बनाके पहिला गिलास बाबुये के दे हलन । रात के भोजन भी एक्के साथ करऽ हलन । तीज-तेहवार में किस्ते पर, मगर घर में सबसे पहिले कपड़ा-लत्ता बाबुये आउ माय लेल कीनऽ हलन ।)    (बिगुल॰25.23)
65    कचकच (बनारसी बाबू नाता-गोता आउ दूर-दराज के परिवार से हटके पूरा धियान अप्पन उम्दा परिवार पर टिकइले रहलन हल । उनकर सब जोड़-घटाव के माने हल - बेटा-बेटी आउ मेहरारू मुदा उनकर ऊ मनसूबा पर सुमन एगो काँटा रोप देलक हल, हरदम कचकच करके गड़ऽ हल ।)    (बिगुल॰55.7)
66    कतरब्योंत (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।)    (बिगुल॰49.32)
67    कनफुसकी (दुआर पर गोतनी के केतना परेम से चुमावऽ हली । तखने गीत गइते-गइते उनकर त गियारी बइठ जा हल । गोझनउटा से घुघ्घा तक के राज हँस-हँस के सिखइलकी हल । मुदा टोला-टाटी के हवा-पानी से गोतनी के ताजा होते देर नञ् लगल । कनफुसकी ठोनावादी में बदलके ओसरा से अँगना में आइये गेल ।)    (बिगुल॰39.2)
68    कनिआय (डॉक्टर साहब बड़गो आदमी हलन । लड़की सुन्दर आउ सुशिक्षित । बियाह के सब बन्दोबस्त डॉक्टर साहब आउ उनकर कनिआय नाप-तौल के अपन औकात के मोताबिक कइलन हल । मुदा बराती के भीड़ आउ तकरार से एक्के झटका में अइसन छितरइलन हल कि अठवारा तक उनकर अपने गला के आवाज गायब हो गेल हल ।; रघुबंस सोचऽ हलन कि कनिआय देखे बाबूजी के साथे हइये हलूँ । खुब्बे गम-बूझ के भाय लोग कनिआय चुनलन हल । जाँच-पड़ताल में कउनो कोर-कसर बाकी नञ् रखलन हल ।)    (बिगुल॰3.14; 38.9, 10)
69    कमासुत (मनुस मसीन हो गेल हे । घड़ी के सुइये पर अदमी नाच रहल हे । घर के परिभाषो बदलल हे । लड़का-लड़की सब कमासुत । सब कामकाजू । कोय केकरो पर बोझ नञ् ।)    (बिगुल॰10.4-5)
70    कम्पोटर (ई डाकटर कामो के दोकान में भी अब खुब्बे भीड़ होवे लगल हे । भीड़ बढ़े से की, दोकनियें त छोट हे । खचाखच भीड़ में कम्पोटर भर मुँह बातो नञ् करऽ हे ।; ओकर तो लम्मा इलाज हे । लाल-पियर दवाय आउ फोटू लेके ओकरा दू-चार दिन पर जाय पड़ऽ हे । कम्पोटर त ओजन आउ बुखार लेके छोड़ दे हे, पर डाकटर साहेब से बात करे ले दू पहर तक ठहरे पड़ऽ हे । ई भीड़ में एगो दाढ़ीवला लंगड़ा आदमी के रोज अइते देखऽ हे । कम्पोटर से मालूम होल हे कि बस टकराय से ओकर गोड़ कट गेल हे ।)    (बिगुल॰17.19, 27, 29)
71    कर-किताब (अंगरेजी चमक में भी ऊ हिन्दुस्तानिये संस्कार लेल ललायित रहऽ हलन । ऊ आज के बदलल हवा-पानी से घबड़ा हलन । अपन सब कटौती करके भी कर-किताब, कपड़ा-लत्ता आउ फीस जुटइते गेलन हल ।; मुदा राधिका हली त एकदम बनिकपुत्तरी । उनका घर वलन के कर-किताब आउ स्कूलो के खरचा बचावे में एगो अलगे संतोख होवऽ हल । लड़कन-बुतरुन होला पर भी उनकर धियान कंगने-कनउसी पर हल ।; पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल ।; मन में आल कि उँचगर दोकान खोले ताकि ओकर तंगो नञ् तउलाय । फिनु ओकरा सामने कभी कॉलेज आउ कभी बजार में दोकान के स्टूल खड़ा हो जाय । आखिर धोकड़ी के धच्चर कर-किताब आउ अखबार के दोकान खोला देलक ।)    (बिगुल॰25.15; 41.4; 45.5; 51.20)
72    करजा-गोमाम (मेहनत में सूझ-बूझ फेंटफाट के एगो नावा मिसाल उरेहे ले हरदमे सोचते रहऽ हलन । अपन पसेना के पइसा आउ यार लोग के करजा-गोमाम से घर-बाहर चमकावे में पिल गेलन हल ।)    (बिगुल॰37.23)
73    करमी (ई घड़ी समाज में जइसन परविरति, कदाचार, इरसा, मनमुटाव, नीच करतूती, फइलल करमी के लत्तर जइसन छितरायल हे, लिखताहर ओकरा झलमल भासा में उरेह देलक हे ।)    (बिगुल॰vi.10)
74    करीगर (= कारीगर) (जीवन बाबू उत्सव आउ समारोह में करीगर आउ मिसतरी के आजिब इज्जत आउ मेहनताना दे हलन ।)    (बिगुल॰30.27)
75    करुआ (~ तेल) (माय त सोहर गा-गा के एक-एक समान बड़ी हिफाजत से तैयार करवा रहली हल । बतीसा-छउनी, काफर-जाफर आउ पेड़ावल सरसो के तेल । बुतरू के करुआ तेल बेर-बेर लगे के चाही ।)    (बिगुल॰35.4)
76    करे-करे (हर बेर बदली के हवा उड़तहीं कुछ आपाधापी आउ कुछ चेहरा करे-करे एकदम इड़ोत होवे लगऽ हल । अब तलुक बनारसी बाबू ई सब हवापानी से एकदम्मे घसपिस गेलन हल ।)    (बिगुल॰54.6)
77    काजपरोज (हियाँ तो हार-फूल, ठंढा-गरम के गहमागहमी से चन्दू के लग रहल हल कि सउँसे लटफारम कउनो काजपरोज या उत्सव के जगह हे । डिब्बा के खिड़की-दुआरी में सहेर के सहेर औरत-मरद दूर से टंगल लग रहल हल ।)    (बिगुल॰33.7)
78    काना-फुसकी (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल । ठामे-ठाम चिल्ला-चिल्ली, काना-फुसकी आउ बहकल बात से राह चलइत आदमी तो भीतरे से सिहर जा हल ।)    (बिगुल॰13.25)
79    काफर-जाफर (माय त सोहर गा-गा के एक-एक समान बड़ी हिफाजत से तैयार करवा रहली हल । बतीसा-छउनी, काफर-जाफर आउ पेड़ावल सरसो के तेल । बुतरू के करुआ तेल बेर-बेर लगे के चाही ।)    (बिगुल॰35.3)
80    कार-करनामा (पइसा से खाली आधुनिक सर-सरजाम, बनावटी सुविधा, विदेशी बेहवार आउ ऊँच उठइत आलीशान मकान में नीचे एकदम्मे नीचे गिरइत आदमी पावल जा सकऽ हे । बड़ शहर के बड़गो लोग के कार-करनामा के हाल पढ़के जीवन बाबू के होश-हवास उड़ जा हल ।)    (बिगुल॰30.1)
81    किरपा (= कृपा) (सरसत्ती के किरपा से महिला कॉलेज में हिन्दी पद पर नौकरी के जुगुत-जोगाड़ बइठ गेल । नौकरी भेटतहीं पुष्पा के जिनगी से फूल जइसन महक धीरे-धीरे फइले लगल ।)    (बिगुल॰57.6)
82    किरिया-कसम (छोट-मोट बात पर भी किरिया-कसम आउ ओलहन-पटोतर से अँगना आसमान छूअ हल । तब भी रघुबंस वली बउसाव करते रहऽ हली ।)    (बिगुल॰38.25)
83    कुनी (ढेर ~) (रामईश्वर बाबू सालो-साल से नीमन वर ले बउँखिये रहलन हे । उनकर ढेर कुनी खरचा तो वरे ढूँढ़े में हो गेल हे ।)    (बिगुल॰3.21)
84    केतारी (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।)    (बिगुल॰46.1)
85    कोरसिस (= कोशिश, प्रयत्न) (रसे-रसे ओसरा भी भित्तर में बदले लगल आउ रघुबंस के लाख कोरसिस के छइते भित्तर से जादे भनसे हो गेल । ठोनावादी से अँगना गरम रहे लगल ।)    (बिगुल॰38.2)
86    कोवाटर (दे॰ क्वाटर) (अजय आउ विजय के पद पर चढ़ते-चढ़ते जात के बड़गो लोग रस्ते में लोक लेलन हल । आधुनिक बहू के साथ आवल नवा-नवा समान से उनकर टूटल-फूटल घर जगमगा गेल हल । एतना दिन के नौकरी में ई सब समान एक्के साथ कउनो-कउनो साहब लोग के कोवाटर में कभी-कभी देखलन हल ।; कुच्छेक दिन के बाद ई सब समान एक-एक करके शहर के कोवाटर में जाय लगल । समान सब शहर की जाय लगल, भोला बाबू के सेहत आउ मनसूबा के बँधल पुड़िया खुले लगल ।)    (बिगुल॰6.31; 7.8)
87    कौलेजिया (बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले । खाय भर गल्ला तो उबजिये जाहे, कुछ बाहरी से आवत त घर सम्हर जात मुदा एहो तो घरे के आँटा गील करे लगल । ओन्ने नौकरियाहा बाप के कौलेजिया मेहरारू के ताव अलगे, साड़ी-सटुअन के शिकायत अलगे । गोतनिन के तनिक बोलला पर नाके पर पियाज कटाय लगल ।)    (बिगुल॰49.23)
88    खद्धड़ (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन । चमक-दमक वलन कपड़ा गाँठ के गाँठ बेचके भी अपने लेल खाली खद्धड़े से काम चलावऽ हलन ।)    (बिगुल॰58.2)
89    खन्हा (= खन्धा, खंधा) (भगवान दास दुन्नू के अपन उपरउकी कोठरी में ले गेल । फिनु गाँव-घर के समाचार पूछे लगल । पहलवान जी पूरा जोर लगाके सब हाल सुना रहलन हल । कउन खन्हा में नहर बनल, बिजली लगल । केकर बेटा की करऽ हे ? मुदा चाची तो एकदम मनझान हो रहली हल ।)    (बिगुल॰46.29)
90    खभेड़ (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।)    (बिगुल॰vii.2)
91    खरचा-पानी (कमाल के परिवार हल त बस गुप्ता साहेब के, अनकर घर के मौज-मस्ती में केतनो भिंज जाय, मगर अपन घर के ओदा करे के कसम शायदे तोड़ऽ हलन । उनका जिनगी के ई सब तामझाम में एकदमे विश्वास नञ् हल । खरचा-पानी के पनगर विचार के एकदमे ठोस बनाके सजइलन हल ।)    (बिगुल॰53.9)
92    खरसलाह (रीता से उमर में तनिके उनइस हल । ई लेल शुरुये से ठोनावादी होते रहऽ हल । मुदा अब ऊ देख रहल हल कि बहिन तो रुक-रुक के गाँव-घर के खरसलाह पूछ रहल हे । जवाब में चन्दू ढेरोढेर बात बोलते जा रहल हल - केकर बियाह होल, केकर गौना ।)    (बिगुल॰32.9)
93    खाँड़ (महीना ~) (चनेसर धिरजा बान्हलक कि ससुर उँचगर ओहदा पर हथ, कउनो जुगाड़ से नौकरी देला देता । ई लेल ओकर धियान घर से जादे ससुरारे पर लग गेल । महीना खाँड़ में हुलक-बुलक आवे ।; साल खाँड़ तक चनेसर ससुरार के चौकठ लाँघते रहल, तेकर अंजाम में ऊ बाप भी बन गेल, मुदा नौकरियाहा नञ् बन सकल ।)    (बिगुल॰49.6, 9)
94    खान-पियन (बनारसी बाबू ई सब मामला में खूब नीमन जोड़-घटाव रखऽ हलन । भोज-भात, खान-पियन के नेउता-पेहानी से महीना के शायदे दिन बचऽ हल ।)    (बिगुल॰53.5)
95    खाय (= खाइक, भोजन; खत्ता, गर्त्त) (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।)    (बिगुल॰21.5)
96    खिंड़ना (नाम ~) (कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात । ई बीच चनेसर के नाम सउँसे सहर में खिंड़ गेल । उम्दा पढ़ाय आउ सोभवगर विचार से जे मिले ओकरे हो जाय ।)    (बिगुल॰50.25)
97    खिड़की-दुआरी (हियाँ तो हार-फूल, ठंढा-गरम के गहमागहमी से चन्दू के लग रहल हल कि सउँसे लटफारम कउनो काजपरोज या उत्सव के जगह हे । डिब्बा के खिड़की-दुआरी में सहेर के सहेर औरत-मरद दूर से टंगल लग रहल हल ।)    (बिगुल॰33.8)
98    खिस्सा-गलबात (महिला मुक्ति आन्दोलन, नारी जागरन आउ क्लब में तो ऊ आउरो चहके लगली हल । अब घरो में खुब्बे भोज-भात होवे लगल हल । रात-रात तलुक विदेसी वातावरन में देश के नारी-जागरन, समाज सुधार के खिस्सा-गलबात होतहीं रहऽ हल ।)    (बिगुल॰58.28)
99    खुंडी (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।)    (बिगुल॰50.9)
100    खुदरा-खुदरी (लगन-पाती के दिन अइतहीं तनिकना के बियाह के बात घरवलन के मुँह पर खुदरा-खुदरी रहऽ हल मुदा कउनो आगू बढ़इ के हिम्मत नञ् करऽ हलन । रघुबंस त भाय सब के कनिआय चुनते-चुनते ठेहिया गेलन हल । अपन भभू सब के चुनाव से अपने लजा रहलन हल ।)    (बिगुल॰39.15)
101    खुब्बे (= खूब ही) (बचपन में ऊ तीनो भाय-बहिन खुब्बे मिल-जुल के रहऽ हल । सावन के सगुनल घड़ी लेल छोटकी राखी बान्हे या भेजे लेल त महिनो-महिना से तैयारी करऽ हल । तीनों के मेल-जोल या झगड़ा में भोला बाबू आउ उनकर मेहरारू के अजबे अनंद मिलऽ हल ।; भोला बाबू के सोहरत, इज्जत खुब्बे मिले लगल हल । छोटको ई सब समान भोजाइ लोग के साथ खुब्बे अल्हड़ आउ खूबसूरत लगे लगल हल । टी॰भी॰, फ्रिज, टू इन वन आउ किसिम-किसिम के समान देखके भोला बाबू के भी बिना बैद जी के दवाइये से सेहत एकदमे ठीक रहे लगल हल ।)    (बिगुल॰5.11; 7.1, 2)
102    खेत-पथार (रीता के बियाह त घर के चुल्हो के आँच मद्धिम कर देलक हल । आधा खेत-पथार त इंजीनियर दमाद पावे में रजिसटरी आफिस में धर अइलन हल । घर के दशा में तहिये से दखल पड़े लगल हल ।)    (बिगुल॰33.23)
103    खेर (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।)    (बिगुल॰50.8)
104    गंजन (रस्ता भर गंजन, कभी ई डिब्बा तो कभी ऊ डिब्बा आउ की-कभी तो गाड़ियो से उतरके दोसर गाड़ी पर चढ़े पड़ऽ हल । अब समझे लगल कि ऊ सब चक्कर से टिकसे कटा के जाय में बेस हे ।; परकास बाबू के दुन्नू लड़कन के सफल होवे पर भी ई उमर में दुइये काम ले घर से निकलऽ हलन, चाहे कउनो डाक्टर या टिसनी पढ़ावे ले । स्कूल में कहियो टिसनी नञ् पढ़इलका हल मुदा रिटायर होवे पर ई गंजन ! नौकरी मिलते ही लड़कन अपन-अपन हाकिम के आउ लगले बियाह होते ही मेहरारू के अधीन हो गेल हल । बच गेलन परकास बाबू, जिनकर बचल जिनगी टिसनी के अधीन हो गेल हल ।; परिवार लेल जीवन में एक से एक जोखिम उठइलन हल । परिवार के ओदगर आउ गुदगर बनावे लेल लड़कन के पढ़ाय से असरगर ओहदा तक ठेले में कतना गंजन उठइलन हल !)    (बिगुल॰19.11; 25.20; 52.28)
105    गउर-गट्ठा (जब मिसरी आउ मिठुआ नावा-नावा मकान के बुनियाद में अइँटा-गारा देवे लगल तब दुन्नू परानी गउर-गट्ठा कइलक कि हवा-पानी बदले ले भी देस जरूरे चलल जाय । मिसरी, मिठुआ आउ ढेरो-ढेर यार ओकरा गाड़ी चढ़ावे आल हल ।)    (बिगुल॰21.28)
106    गजगजाना (सतनारायन सामी के पूजा से तहिया सउँसे घर गजगजा गेल हल । चुरुआ भर-भर परसाद बँटल हल ।)    (बिगुल॰48.1)
107    गड़ना (= चुभना) (बनारसी बाबू नाता-गोता आउ दूर-दराज के परिवार से हटके पूरा धियान अप्पन उम्दा परिवार पर टिकइले रहलन हल । उनकर सब जोड़-घटाव के माने हल - बेटा-बेटी आउ मेहरारू मुदा उनकर ऊ मनसूबा पर सुमन एगो काँटा रोप देलक हल, हरदम कचकच करके गड़ऽ हल ।)    (बिगुल॰55.8)
108    गढ़गर (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰57.30)
109    गब्भिन (= गाभिन) (डाकटर साहेब त बस, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा ! कभी-कभी गोस्सा वला अवाज ! डाकटर साहेब भी की करतन ? कभी-कभी उटपुटांग मरीजो रहऽ हे । एक्के बात के दस बेर ! जइसे-जइसे समय बीतऽ हे, डाकटर साहेब के उपरकी धोकड़ी गदरा के गब्भिन हो जाहे, तब उनकर चेहरा के रंग आउ खिल जाहे ।)    (बिगुल॰17.24)
110    गमना (तहिया रात भर बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला हिलल हल । तनी सा खिड़की खोलके कखनउँ हारो बाबू बाहर के हाल गमऽ हलन त कखनउँ शांति ।)    (बिगुल॰15.24)
111    गमना-बूझना (रघुबंस सोचऽ हलन कि कनिआय देखे बाबूजी के साथे हइये हलूँ । खुब्बे गम-बूझ के भाय लोग कनिआय चुनलन हल । जाँच-पड़ताल में कउनो कोर-कसर बाकी नञ् रखलन हल ।)    (बिगुल॰38.10)
112    गमल-बूझल (पुष्पा दोसर दफे अस्पताल के गमल-बूझल जगह पर अइली हल । बस, खाली डगडरनीये बदलल हली । चर-चपरासी, नर्स-दाय, कुरसी-टेबुल के साथ कमरा के चटकल रंग आउ टूटल सीसा वलन खिड़की त ऊ तखनियों देखवे कइलकी हल ।)    (बिगुल॰56.1)
113    गरजा-गरजी (उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ?)    (बिगुल॰39.22)
114    गरजियन (= गारजियन, guardian) (लड़कन के सही विकास ले जान लगा दे हलन । ढेरो लड़कन के साहित्यकार, इंजीनियर आउ अफसर बनइलन हल । नामी-गिरामी परिवार के ढेरो लड़कन के मंसूरी, शिमला आउ देहरादून भेजाके गौरव महसूस कइलन हल । कभी-कभी किरन जी के भी गरजियन के साथ मंसूरी, शिमला, मद्रास आउ दिल्ली जाय के मौका मिल जा हल । अपन शहर के लड़कन के अंगरेजी लिबास आउ बातचीत के अंगरेजी धार देखके मन ही मन संतोख के साँस ले हलन । गरजियन सब के चेहरा भी अपन लड़कन में ई परिवर्तन देखके सूरजमुखी जइसे पसर जा हल ।)    (बिगुल॰25.2, 5)
115    गरमाना (= गरम होना; गरम करना) (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल । गोतनिन के मुँहफुलौअल तो साधारन हल, कभी-कभी सउँसे घर गरमा जा हल जेकर धाह से गोतिया के गेनरा सूखे लगल ।)    (बिगुल॰50.11)
116    गाँहक (= ग्राहक) (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन ।)    (बिगुल॰57.29)
117    गियारी (उनकर चेहरा ई हद उड़ल हल कि घर में केकरो कुछ पूछे के हिम्मत नञ् हो रहल हल । ई बात उनकर गियारिये में फँसल हल कि सुमन के संगे-साथे देखल-सुनल लड़का से दिन-तारीख तय करे ले निकललन हल ओकरे से सुमन अप्पन बेटी के छेका-सगुन चुप्पे-चाप कर चुकल हल ।)    (बिगुल॰55.26)
118    गिरमी-गट्ठा (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰57.30)
119    गिरहस्ती (किस्त पर टिकल जिनगी के बोझ हल्का करे ले कभी-कभी हँसके अपन यार-दोस्त के बतावऽ हलन कि किस्ते में उनकर जिनगी के गिरहस्ती शुरु होल हल । बियाह तो उनकर लड़कपने में हो गेल हल, मुदा गउना लेल बछरो-बच्छर इंतजार करते-करते गीत-गजल के ढेर लगा देलन हल ।)    (बिगुल॰24.4)
120    गुदगर (परिवार लेल जीवन में एक से एक जोखिम उठइलन हल । परिवार के ओदगर आउ गुदगर बनावे लेल लड़कन के पढ़ाय से असरगर ओहदा तक ठेले में कतना गंजन उठइलन हल !)    (बिगुल॰52.27)
121    गुदारना (मजूरी ~) (अइसन भयचारा तो अपन देसो में नञ् मिलऽ हे । सब मेहनत के माला में गुंथाल रहऽ हल । लछमी मुनिरका मुंसी के रसोय बनावऽ हल । हाजरी तो रोज बनिये जा हल । सेठ जी सनिचर के सनिचर आके मजूरी गुदारऽ हलन ।)    (बिगुल॰20.7)
122    गुना-भाग (तब भी बाबूजी के अपन नाम के विस्तार पर संतोख हल । गाँव वाला, ई जानके कि इनकर बेटी के बियाह बड़गो घर में होल हे, धँउसल रहऽ हल । खुब्बे गुना-भाग करके बाबूजी रीता के बियाह बड़गो घर में कइलन हल । ऊ बूझलन हल कि बेचके भी कुछ निमने चीज कीनलन हे ।; केतना जोड़-घटाव आउ गुना-भाग करके बाबूजी रघुबंस में राम के आदर्श भरऽ हलन । साझी-परिवार के सरगना बनइ के बात सिखावऽ हलन ।)    (बिगुल॰33.26; 38.21)
123    गुनी (= के कारण) (नहा करके रामबाबू नया-नया कपड़ा बदललन आउ एकदमे ताजा महसूसे लगलन हल । टावर के सीढ़ी पर बइठल ताजा अखबार देखे लगलन । उपरकिये पन्ना पर फोटू के साथ एगो बड़गो परिवार के घटना हल । दहेज में फ्रीज बाकी रह जाय गुनी बहू के किरासन तेल से जला देवल गेल हल । लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल ।; आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन । बाबूजी के घर से कउनो वास्ता नञ् रह गेल हल, जे गुनी दरोजा पर दम साधले रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰4.28; 36.5)
124    गुरुपिंडा (पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल ।)    (बिगुल॰45.5)
125    गुलफुलाना (छुट्टी के दिन हल । बेटा-बहू के सूरत सुबह के अखबार के ओट से छिपल हल । दुन्नू के देखतहीं भोला बाबू के मन गुलफुला गेल । बहू तो बस तुरतहीं शहरी जलपान आउ चाह लइलकी ।)    (बिगुल॰8.2)
126    गूँड़ (= गुड़) (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।)    (बिगुल॰21.7)
127    गेनरा (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल । गोतनिन के मुँहफुलौअल तो साधारन हल, कभी-कभी सउँसे घर गरमा जा हल जेकर धाह से गोतिया के गेनरा सूखे लगल ।)    (बिगुल॰50.11)
128    गोझनउटा (अलगउँझा के आग कहियो धधाय नञ् दे हली । दुआर पर गोतनी के केतना परेम से चुमावऽ हली । तखने गीत गइते-गइते उनकर त गियारी बइठ जा हल । गोझनउटा से घुघ्घा तक के राज हँस-हँस के सिखइलकी हल ।)    (बिगुल॰38.31)
129    गोड़ाटाही (रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।)    (बिगुल॰49.19)
130    गोतना (मूड़ी ~) (लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल । अब उनकर सउँसे शरीर से पसीना के धार बहे लगल । दूर-दूर तक पहाड़-आकाश देखते-देखते मूड़ी गोत लेलन । आँख मुना गेल आउ उनका लगे लगल कि हरकीपौड़ी के टावर के बगले एगो अउरो टावर हे ।; बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल । छगुनइत अपन नजर उठइलन । उनकर आँख घरनी के खिलल चेहरा पर चल गेल । बस ! तुरत मूड़ी गोत लेलन ।; बड़गो शहर के, परदेसी जी भर नजर देखलन हे मुदा अपन शहर में मूड़ी गोतिये के जिनगी गुजार रहलन हे ।)    (बिगुल॰4.32; 39.31; 41.32)
131    गोतनी (कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल । तीनो गोतनी में अबोला त ढेरोढेर दिन तक चलऽ हल, जेकर हवा से भाय लोग भी नञ् बचऽ हलन ।)    (बिगुल॰38.6)
132    गोल-गाल (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।)    (बिगुल॰34.22)
133    गोवाही (= गवाही) (गाँव वलन के मुँह पर तो बस एक्के बात बस गेल हल कि केसो के दिन बहुर गेल । तीन बेटन में एगो चनेसरे दिन निमाहत । तखनइँ दोसर आदमी बात लोक ले हल - भला मेहनत कहियो दगा दे हइ ? अहो, लूर-लच्छन तो पहिले से ही गोवाही दे हलइ ।)    (बिगुल॰48.5)
134    घमना (पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल । ई सब देख-सुनके पहलवान जी के भी मन घमल । उनकर आँख तर हवेली के 'बाबू साहेब' के चेहरा नाच गेल ।)    (बिगुल॰45.6)
135    घर-गिरहस्ती (बियाह तो उनकर लड़कपने में हो गेल हल, मुदा गउना लेल बछरो-बच्छर इंतजार करते-करते गीत-गजल के ढेर लगा देलन हल । मेहरारू के अइते, अपन घर-गिरहस्ती के शोहरत जइसन सजावे लेल सोचे लगलन हल ।)    (बिगुल॰24.7)
136    घसपिस (~ जाना) (हर बेर बदली के हवा उड़तहीं कुछ आपाधापी आउ कुछ चेहरा करे-करे एकदम इड़ोत होवे लगऽ हल । अब तलुक बनारसी बाबू ई सब हवापानी से एकदम्मे घसपिस गेलन हल ।)    (बिगुल॰54.7)
137    घुघ्घा (= घूघा) (अलगउँझा के आग कहियो धधाय नञ् दे हली । दुआर पर गोतनी के केतना परेम से चुमावऽ हली । तखने गीत गइते-गइते उनकर त गियारी बइठ जा हल । गोझनउटा से घुघ्घा तक के राज हँस-हँस के सिखइलकी हल ।)    (बिगुल॰38.31)
138    घुड़मुड़ियाना (कभी-कभी माथा पर जोड़ देके सोचऽ हलन कि ई बदलइत सवाद के जड़ उनकर उमरे तो नञ् हे या सचमुच जमाने बदल रहल हे ? उनका कुछ भी समझ में नञ् आवऽ हल । अब एकदम घुड़मुड़िया गेलन हल ।)    (बिगुल॰31.22)
139    घुरना (= लौटना) (भीड़ एतना कि आदमी आदमी के खाली चेहरे देख रहल हल । ई धकमपेल में कुसलछेम पूछे के भी आसार नञ् । अकबका के घर घुर अइलन मुदा घर में बेटन के भीतर से रेडियो आउ टेपरिकाडर पर फिल्मी गीत आउ डिस्को धुन के भारी आवाज से उनकर मगज के संतुलन बिगड़ गेल ।; कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन ।)    (बिगुल॰31.27; 57.29)
140    घेरना-मेरना (चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । ... घर में परसाद-पवित्तरी अभी बँटिये रहल हल, बाबू जी के पगड़ी बँधाइये रहल हल कि पाँच गो भाय-गोतिया घेर-मेर के चनेसर के विवाह तय कर देलन ।)    (बिगुल॰48.13)
141    घेराल (~ रहना) (जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।; चन्दू के बुझाय लगल कि घर के सब गहमागहमी ओकरा धकियावे लगल हे । दूर बहुत दूर मद्धिम बत्ती तर मच्छरदानी से घेराल एगो फोहबा देख रहल हल ।)    (बिगुल॰30.21; 35.25)
142    घेराल-मेराल (नौकरी में एक से एक उपयोगी ओहदा पर रह चुकलन हे । भीड़ त समझऽ गोहारे से घेराल-मेराल रहऽ हलन । एक से एक चापलूस चेहरा ।)    (बिगुल॰53.31)
143    घोंजराना (= घुँजड़ाना) (हारो बाबू तो शांति के सुन्दरते पर रिझलन हल । जिनगी के ई सब मुहाना पर ऊ सुन्दरता का सुझाव देत ? ऊ तो खाली नौकर, सस्ता मकान आउ अइसने अनर्गल बहस में हारो बाबू के घोंजरा दे हली ।; दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन । जउर-पगहा वेवस्था साथे घोंजरा जा हल त दमयंतीये सोझरावऽ हली ।)    (बिगुल॰14.32; 57.25)
144    घोरल (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।)    (बिगुल॰vii.3)
145    चनकल (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल ।)    (बिगुल॰52.4)
146    चर-चपरासी (पुष्पा दोसर दफे अस्पताल के गमल-बूझल जगह पर अइली हल । बस, खाली डगडरनीये बदलल हली । चर-चपरासी, नर्स-दाय, कुरसी-टेबुल के साथ कमरा के चटकल रंग आउ टूटल सीसा वलन खिड़की त ऊ तखनियों देखवे कइलकी हल ।)    (बिगुल॰56.2)
147    चाह-दोकान (भीड़ छटे तक ऊ दुन्नू सामने वला चाह-दोकान पर बइठल रहऽ हल । ऊ दुन्नू के लमहर इलाज हल ।)    (बिगुल॰18.3)
148    चिजोर (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।)    (बिगुल॰34.22)
149    चित्त-भुद (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।)    (बिगुल॰60.18)
150    चिनियाँबेदाम (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।)    (बिगुल॰46.1)
151    चिन्ह-जान (कम्पोटर त ओजन आउ बुखार लेके छोड़ दे हे, पर डाकटर साहेब से बात करे ले दू पहर तक ठहरे पड़ऽ हे । ई भीड़ में एगो दाढ़ीवला लंगड़ा आदमी के रोज अइते देखऽ हे । कम्पोटर से मालूम होल हे कि बस टकराय से ओकर गोड़ कट गेल हे । बस के मालिक त ओकरा तुरते छोड़ देलक । डाकटर कामो से ओकरा पुरान चिन्ह-जान हे । पहिले ऊ चर्च के गाड़ी चलावऽ हल ।)    (बिगुल॰17.31)
152    चिन्ह-पहचान (बदलल लिवास में उनकर सउँसे हुलिये बदल जा हल । भारी भीड़ में लोग-बाग के उनकर चिन्ह-पहचान में दिक्कत होवऽ हल, हियाँ तलुक कि दमयंतीये के नाम लेके उनका अप्पन परिचय करावे पड़ऽ हल ।)    (बिगुल॰58.6)
153    चिरइँ-चिरगुन (दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल ।; बेगम अब चार सवार पर सवार हो गेली । कलीम साहब पागल जइसन "तोहफा ... डराफ ... तोहफा ... डराफ ... पइसा ... पइसा" करके गदाल करइत, पिंजरा के चिरइँ-चिरगुन के अजाद करे लगलन । तखनिये दरोजा पर डाकपीन के अवाज सुनके दउगे में झमा के गिर गेलन ।)    (बिगुल॰10.30; 12.29)
154    चिल्ला-चिल्ली (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल । ठामे-ठाम चिल्ला-चिल्ली, काना-फुसकी आउ बहकल बात से राह चलइत आदमी तो भीतरे से सिहर जा हल ।)    (बिगुल॰13.25)
155    चुनना-चानना (नौकरी में बनारसी बाबू के कभी भाड़ा के मकान त कभी कोलनियो में रहे पड़ल हल । भाड़ा-किराया वला मकान के जिनगी तो पास-पड़ोस से चुनचान के कटिये जा हल ।)    (बिगुल॰52.31)
156    चुनना-बिछना (ई सेंगरन आकाशवाणी, पटना आउ पत्र-पत्रिका में छितराल अदीप के कहानी सब के चुन-बिछ के सहेजलक हे ।)    (बिगुल॰vii.13)
157    चुना-चुनी (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल ।; मंसूरी गेला पर जैकसन के बगल के दोकान से अपने खातिर चश्मा लेवे लेल नञ् भूलऽ हली । चश्मा के चुना-चुनी में दोकान वला भी खुब्बे उत्साह देखावऽ हल आउ कउनो फिल्मी कलाकार से दमयंती के तुलना करइत चश्मा थमा दे हल ।)    (बिगुल॰39.30; 59.18)
158    चोटाना (संजोग से 'राजकुमारी नर्सिंग होम' में राधिका के बिन पैरविये नौकरी मिल गेल । ... राधिका के भेस-भूसा एकदम बदल गेल आउ हाथ में अब बेग घुमावे लगली । ... रसोय घर के चुल्हा से अब राधिका के आँख झमझमाय लगल हल । बिहनउकी रोटी के जगह पर बिस्कुट आवे लगल । देर-अबेर होवे पर चाह के कप-पियाला से राधे बाबू के हाथ चोटाय लगल हल ।)    (बिगुल॰43.23)
159    छँहुरी (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।)    (बिगुल॰36.9)
160    छइते (साइमन के हाल पर अब ओकरा तरस आवे लगल हल । बाप रे बाप ! बाल-बुतरुन के छइते ई दुख ! चाह के दोकान में बइठते-बइठते अब दुन्नू में सलाय-बीड़ी के अदला-बदली होवे लगल हल ।; ऊ अपन बचल-खुचल बाल के मुट्ठी में मचोड़ते बोलऽ हल - "ससु ! बस तेज चल रहल हल । हम तो तहियो लाँगड़े हलूँ । हाथ-गोड़ आउ तागत छइते हम सब नियन आदमी लाँगड़े हे, सब हाँफ रहल हे ।"; रसे-रसे ओसरा भी भित्तर में बदले लगल आउ रघुबंस के लाख कोरसिस के छइते भित्तर से जादे भनसे हो गेल । ठोनावादी से अँगना गरम रहे लगल ।; बनारसी बाबू अपन बेटी के बियाह ले सड़क-डगर एक कर देलन हल । सोचलन हल कि ई ओहदा पर छइते बियाह होवे में हर किसिम के सहयोग मिलत ।)    (बिगुल॰18.13, 25; 38.2; 54.9)
161    छगुनना (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल । छगुनइत अपन नजर उठइलन । उनकर आँख घरनी के खिलल चेहरा पर चल गेल । बस ! तुरत मूड़ी गोत लेलन ।)    (बिगुल॰39.30)
162    छारल (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।)    (बिगुल॰36.9)
163    छितराल (ई सेंगरन आकाशवाणी, पटना आउ पत्र-पत्रिका में छितराल अदीप के कहानी सब के चुन-बिछ के सहेजलक हे ।)    (बिगुल॰vii.12)
164    छेका-सगुन (उनकर चेहरा ई हद उड़ल हल कि घर में केकरो कुछ पूछे के हिम्मत नञ् हो रहल हल । ई बात उनकर गियारिये में फँसल हल कि सुमन के संगे-साथे देखल-सुनल लड़का से दिन-तारीख तय करे ले निकललन हल ओकरे से सुमन अप्पन बेटी के छेका-सगुन चुप्पे-चाप कर चुकल हल ।)    (बिगुल॰55.28)
165    छो (= छह) (माय-बाबू जी चिट्ठी के छो-छो मरतबे पढ़-सुन के छोम्मा दिन निकाललन हल । समय अब एकदम्मे नजकिया गेल हल । चन्दू के एक गोड़ घर त एक गोड़ बजार !)    (बिगुल॰34.27)
166    छोटकना (एन्ने दुन्नू परानी में लड़कन के चलते खुब्बे बहस होवऽ हल । शांति लड़कन ले एक्को बात जमीन पर नञ् गिरे दे हली । शांति के शिकायत हल त खाली छोटकना नौकर से । नौकर के शिकायत से हारो बाबू के ठंढाल रोटी में भी गरमी आ जा हल ।)    (बिगुल॰14.24)
167    छोटका (रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।)    (बिगुल॰49.21)
168    छोटकी (छोटकी के एतना पढ़े-लिखे पर भी, घर-परिवार आउ महल्ला वलन 'छोटकीये' के नाम से पुकारऽ हलन । घर लेल त छोटकी कहियो बड़की नञ् भेल । 'सुनीता' इस्कूल आउ कौलेज के रजिस्टरे में लटपटा के रह गेल ।; भोला बाबू के मन के गुठली में एगो बड़गो आम के पेड़ लगल हल । अजय आउ विजय के साहब बनावे के फेरा में अपन छोटकी के बड़की हो जाय के कुदरती भेद भी भूल गेलन हल ।)    (बिगुल॰5.8, 9; 6.21)
169    छोटगर (बड़गो शहर के घटना तो देस-परसिद्ध साप्ताहिक आउ मासिक पत्रिका में विस्तार से छपवे करऽ हल । राम बाबू ले देस के उन्नति-परगति से बड़गो समाचार दहेज के खबर लगऽ हल । मुदा छोटगर शहर आउ गाँव के घटना सब इलाके में कुम्हला के दम तोड़ दे हे ।; घर में बेटा-बेटी के बदलल रंग के सामने समझौता से काम चलावे लगलन । घरनी भी उनकर बात के काटे लगली । जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल ।; उनकर ओहदा के जेवारवाला शुरू में छोटगर बूझलक हल मुदा नौकरी के तनिके दिन बाद सिया बाबू गाँव के जमीन के जरसम्मन जाने ले जागरूक हो गेलन हल । आमदनी के असर घर आउ ससुरार पर तेजी से पड़ल हल ।; रीता के बियाह के बाद घरे में एगो आँटा-चक्की के छोटगर मील खड़ा कइलन हल ।)    (बिगुल॰1.5; 31.15; 34.1, 7)
170    छोट-बड़ (उनका कंजूस नञ् कहल जा सकऽ हल । हवेली के बनल सँझउकी चाय पीये ले आदमी के तलासवे करऽ हलन । चाय पीये घड़ी देस-विदेस आउ अपन शहरो के छोट-बड़ घटना से तरोताजा होवऽ हलन ।)    (बिगुल॰10.20)
171    छोट-मोट ( धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।; ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।)    (बिगुल॰33.15; 34.22)
172    छो-पाँच (ई सब छो-पाँच करिये रहल हल कि लछमी दरद से छटपटाय लगल । ओकरा तुरते 'मातृसदन' अस्पताल ले गेल हल । फोहवा एकदम्मे मिसरी नियन दप-दप हल । मुंसी जी ओकरा मिसरिये कहके पुकारऽ हलन । धीरे-धीरे मिसरी अइँटा से छड़ पकड़के धउगे लगल हल ।)    (बिगुल॰20.30)
173    छोम्मा (= छठा) (माय-बाबू जी चिट्ठी के छो-छो मरतबे पढ़-सुन के छोम्मा दिन निकाललन हल । समय अब एकदम्मे नजकिया गेल हल । चन्दू के एक गोड़ घर त एक गोड़ बजार !)    (बिगुल॰34.27)
174    जंगाल (= जंग लगा हुआ) (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल ।)    (बिगुल॰50.32)
175    जउर-पगहा (दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन । जउर-पगहा वेवस्था साथे घोंजरा जा हल त दमयंतीये सोझरावऽ हली ।)    (बिगुल॰57.25)
176    जउरी (= रज्जु, रस्सी) (छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन ।; साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰37.26, 30)
177    जउरे (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल ।)    (बिगुल॰39.27)
178    जउरे-साथ (चमक-दमक वलन कपड़ा गाँठ के गाँठ बेचके भी अपने लेल खाली खद्धड़े से काम चलावऽ हलन । तीजे-तेहवार में उनकर पहनावा बदलऽ हल । जउरे-साथ जाय वलन सभा लेल दमयंतीये उनकर कपड़ा के चुनाव करऽ हली ।)    (बिगुल॰58.3)
179    जतरा (= यात्रा) (रुपिया-पइसा जोड़-जोड़ के दहेज के चूल्हा में झोंकते जा रहलन हल । ई छटपटाहट में भी दुन्नू एगो कसम रखलन हल कि बरतुहारी ले निकले घड़ी हरिद्वार जरूरे हो अइतन । जरूरत भर कपड़ा-लत्ता, पइसा-कउड़ी लेके पूरा परिवार रेल में बइठ गेलन हल । बेटियन के चेहरा रेल, हवा आउ जतरा के उत्साह से एकदमे खिल गेल हल । उनकर घरोवली के अपन बाप के साथ घूमल जतरा के याद ताजा होवे लगल आउ रामबाबू आँख मूँदले अपन स्कूल-कॉलेज के जतरा के याद में हेरा गेलन ।)    (बिगुल॰4.14, 15, 17)
180    जनानी-मरदानी (पुष्पा दोसर दफे अस्पताल के गमल-बूझल जगह पर अइली हल । बस, खाली डगडरनीये बदलल हली । चर-चपरासी, नर्स-दाय, कुरसी-टेबुल के साथ कमरा के चटकल रंग आउ टूटल सीसा वलन खिड़की त ऊ तखनियों देखवे कइलकी हल । आदमी के आपाधापी, धउगा-धउगी, कानाफुसकी त अस्पताल के जनानी-मरदानी घेरा के दिन-रात तोड़तहीं रहऽ हे ।)    (बिगुल॰56.5)
181    जन्नी (रात-विरात में भी हारो बाबू ऊ अधेड़ उमर के जन्नी के एकदम सहज होके घूमते देखऽ हलन । हारो बाबू के दिनउकी झगड़ा आउ जानवर से कुच्छो डर नञ् लगऽ हल मुदा रात में तो आदमी के आँख से देखियो नञ् पावऽ हलन । ऊ मने-मन सोचऽ हलन कि ई जनिये टोला के वाजिब बसिंदा हे । कखनउँ-कखनउँ दिन में जब शांति के साथ हाट-बजार ले निकलऽ हलन तो ऊ जन्नी उनका मुसकइते देखऽ हल ।; भोरउकी गली के चहल-पहल आउ भारी गोहार से लोग-बाग अपन दुआरी खोललक । मालूम होल कि रात भर के बम-फटाका से गली में खाली ऊ जनिये के जान गेल हे ।; पुलिस ऊ रहस्यमय जन्नी के मौत के कारन जाने ले हारो बाबू के हीं घर आल हल ।)    (बिगुल॰14.1, 3, 5; 15.27, 33)
182    जपत (= जप्त) (मनेजर रात-विरात अपन काम लेल सुभाने के गुलाम बुझाय लगल । मनेजर बेर-बेर ठेला के दाम माँगे लगल आउ एक दिन बस ओकर ठेला जपत हो गेल । ठेला हाथ से निकलतहीं सुभान के मुँहताजी बढ़े लगल ।)    (बिगुल॰17.10)
183    जरती (आँटा के ~) (रीता के बियाह के बाद घरे में एगो आँटा-चक्की के छोटगर मील खड़ा कइलन हल । आँटा के जरती से घर के चूल्हा जरे लगल हल । खेत पर कामे की रह गेल हल ! खेत लेल एकल्ले चन्दू ढेर हल ।)    (बिगुल॰34.7)
184    जरसम्मन (ऊ देख रहलन हल हेमन्तचक के सिया बाबू के ओहदा आउ आमदनी । उनकर ओहदा के जेवारवाला शुरू में छोटगर बूझलक हल मुदा नौकरी के तनिके दिन बाद सिया बाबू गाँव के जमीन के जरसम्मन जाने ले जागरूक हो गेलन हल । आमदनी के असर घर आउ ससुरार पर तेजी से पड़ल हल ।)    (बिगुल॰34.2)
185    जलम (= जन्म) (ऊ मन ही मन सास के भाव ताड़ रहली हल आउ अपन मरद के शांत चेहरा पर छितराल अजबे बेचैनी देख रहली हल । प्रकृति के ई खेल त अपरम्पार हे मुदा जलम से मउगत तक सब खेल अदमीये के खेले पड़ऽ हे ।)    (बिगुल॰60.21)
186    जहमत (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।)    (बिगुल॰36.7)
187    जिआन (जमाना गेल कि नगरपालिका आउ जिला परिषद के स्कूल होते कउनो आफिस के कुरसी तर पहुँचिये जा हल । अब त एक से एक डिगरी लेके आदमी जुआनी भर जिआन होते रहऽ हे आउ नौकरी के सपना पालते-पालते बाल-बुतरुन के पाले लगऽ हे ।)    (बिगुल॰40.7)
188    जिनगी-जुआनी (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम ।)    (बिगुल॰36.7)
189    जिला-जेवार (साहित्तिक किस्त के जब जानदार सिलसिला शुरु होल त लगले लहर महानगर के एक पत्रिका के सम्पादक हो गेलन । अपन जिला-जेवार के नामी-गिरामी परिवार के लड़कन-लड़की के गीत, कहानी फोटो के साथ खुब्बे छापऽ हलन ।; एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।)    (बिगुल॰23.13; 43.5)
190    जुआनी (राम बाबू के लगऽ हल कि आम आदमी ले दहेज से कड़ा जहर धरती पर कुछो नञ् हे, जेकर आग में जुआनी से बुढ़ापा तक पहिले माय-बाप झुलस जा हे ।; जमाना गेल कि नगरपालिका आउ जिला परिषद के स्कूल होते कउनो आफिस के कुरसी तर पहुँचिये जा हल । अब त एक से एक डिगरी लेके आदमी जुआनी भर जिआन होते रहऽ हे आउ नौकरी के सपना पालते-पालते बाल-बुतरुन के पाले लगऽ हे ।)    (बिगुल॰3.4; 40.7)
191    जेवर-जाटी (दयानन्द के मेहनत आउ दमयंती के सूझ-बूझ से कपड़ा के दोकनदारी के साथे-साथ सोना-चानी के रोजगारो में चमक-दमक आवे लगल । जेवर-जाटी के खरीदारी लेल दमयंती अपनहीं सफर करे लगली ।)    (बिगुल॰58.19)
192    जोड़ (= जोर) (कभी-कभी माथा पर जोड़ देके सोचऽ हलन कि ई बदलइत सवाद के जड़ उनकर उमरे तो नञ् हे या सचमुच जमाने बदल रहल हे ? उनका कुछ भी समझ में नञ् आवऽ हल । अब एकदम घुड़मुड़िया गेलन हल ।)    (बिगुल॰31.20)
193    जोड़-घटाव (केतना जोड़-घटाव आउ गुना-भाग करके बाबूजी रघुबंस में राम के आदर्श भरऽ हलन । साझी-परिवार के सरगना बनइ के बात सिखावऽ हलन ।)    (बिगुल॰38.21)
194    जोड़-जमा (शहर के मकान में उनकर सब जोड़-जमा लग गेल हल आउ बच गेल हल बेटी के बरइत समसिया, जे अब नञ् केकरो भगनी हल, नञ् केकरो भतीजी हल आउ नञ् अब केकरो बहिने रह गेल हल, हल त बस कुसुम - बनारसी बाबू के बेटी ।)    (बिगुल॰55.12)
195    जोत-जमीन (अजय आउ विजय के डाकडर आउ इंजीनियर बनते-बनते भोला बाबू अपन पुश्तइनी जोत-जमीन से सरकते-सरकते घर के सीमा में सिमट गेलन हल ।; खुब्बे गुना-भाग करके बाबूजी रीता के बियाह बड़गो घर में कइलन हल । ऊ बूझलन हल कि बेचके भी कुछ निमने चीज कीनलन हे । जोत-जमीन के बड़गो हिस्सा बिक जाय पर भी उनकर दिमाग में नक्सा नाचऽ हल कि बुढ़ारी में बेटी-दमाद उनकर चरपाइ के ओदमाइन ढीला नञ् होवे देत ।)    (बिगुल॰6.26; 33.28)
196    जोम (= जोश, उत्साह, अभिमान, दंभ) (पुस्तइनी घर आउ बड़हल-बगान के अब की जरूरत हे ? बहू आउ अजय के आउफिस जाय के बाद तो कोवाटर खालिये रहऽ हे । दरदगर बात तो ई लगल कि घर के देखे भाले ले एगो अप्पन आदमी चाही ।/ अजय के बात तो भोला बाबू के अंधड़ जइसन लगल । जोम में अब विजय के घर पहुँच गेलन ।; जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल ।)    (बिगुल॰8.13; 33.2)
197    जोहियाना (अपन घर से जब-जब कलकत्ता जाय के रहऽ हल त ओकरा बुलकन से कहे पड़ऽ हल । मुदा बुलकन जब तक तीस-चलीस आदमी नञ् जोहिया ले हल, जतरा के तारीख बोलवे नञ् करऽ हल । बुलकन सउँसे जेवार से आदमी जोहिया के कलकत्ता कमाय ले ले जा हल ।)    (बिगुल॰19.8, 9)
198    झंगरी (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।)    (बिगुल॰46.1)
199    झमझमाना (संजोग से 'राजकुमारी नर्सिंग होम' में राधिका के बिन पैरविये नौकरी मिल गेल । ... राधिका के भेस-भूसा एकदम बदल गेल आउ हाथ में अब बेग घुमावे लगली । ... रसोय घर के चुल्हा से अब राधिका के आँख झमझमाय लगल हल । बिहनउकी रोटी के जगह पर बिस्कुट आवे लगल । देर-अबेर होवे पर चाह के कप-पियाला से राधे बाबू के हाथ चोटाय लगल हल ।)    (बिगुल॰43.22)
200    झमाना (बेगम अब चार सवार पर सवार हो गेली । कलीम साहब पागल जइसन "तोहफा ... डराफ ... तोहफा ... डराफ ... पइसा ... पइसा" करके गदाल करइत, पिंजरा के चिरइँ-चिरगुन के अजाद करे लगलन । तखनिये दरोजा पर डाकपीन के अवाज सुनके दउगे में झमा के गिर गेलन ।)    (बिगुल॰12.30)
201    झमेटगर (अपन जवानी में किरन जी लड़कन के जब भूगोल पढ़ावऽ हलन तो कलकत्ता, बम्बई के बात कहते-कहते अपन इतिहास में फँस जा हलन । प्रतिभा के पेड़ खूब झमेटगर हल ।; छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन । उनकर घरनी भी परिवार के नावा नक्सा ले ओदगर हाथ सुखइते रहऽ हली । बड़गो शहर के झमेटगर घराना से अइली हल ।)    (बिगुल॰23.9; 37.28)
202    झरझराना (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल । ओकरा लगल कि धरती फटे आउ ऊ समाय । एतनइँ कह सकल कि एत्तेक जगह तो दरखास आउ इंटरभिउ देलूँ ।)    (बिगुल॰50.1)
203    टनटनाना (बेटी के बियाह के बाद नाथ साहब टनटना के सड़क पर आ गेलन हल । रामबाबू डॉक्टर साहब के भी दुर्दशा देखलन हल ।)    (बिगुल॰3.11)
204    टिकस (= टिकट) (रस्ता भर गंजन, कभी ई डिब्बा तो कभी ऊ डिब्बा आउ की-कभी तो गाड़ियो से उतरके दोसर गाड़ी पर चढ़े पड़ऽ हल । अब समझे लगल कि ऊ सब चक्कर से टिकसे कटा के जाय में बेस हे ।; किरन जी जेब से सिगरेट निकाले लगलन तो चिट्ठी में लपेटल रेल के टिकसो निकल गेल । चिट्ठी के टिकस अलग कइलन कि उनकर अपन जिनगी के इतिहास के पन्ना दिमाग में फड़फड़ाय लगल ।)    (बिगुल॰19.13; 23.4)
205    टिटकोरना (अबकी बेर जब पु्ष्पा के दोसर महीना चल रहल हल, तखनिये ओकर बाँह में ताबीज बाँधल गेल त ऊ एकदम चउँक गेली हल । भूत-भभूत से नउवो महीना होते-हवाते सर-सगुन के रस्ता से अस्पताल के पेइंग वाड में पहुँचली हल । पुष्पा अस्पताल में लोघड़ल नारी मुक्ति आन्दोलन, बरोबरी के अधिकार आउ नारी जागरन के नारा के नबज टिटकोरइत अपन सास के नेतागिरी पर मन हीं मन मुसक जा हली ।)    (बिगुल॰60.3)
206    टिसन (दे॰ टीसन) (कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।)    (बिगुल॰37.9)
207    टिसनिया (= ट्यूशन पढ़ानेवाला) (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल ।)    (बिगुल॰50.31)
208    टिसनिया-मास्टर (लड़कन के बारे में सोचके आउरो काँप जा हलन । महल्ला के प्रभाव से लड़कन के कइसे बचावल जाय - ओकरे उपाय सोचते रहऽ हलन । कखनउँ सोचऽ हलन कि टिसनी पढ़ावे में लगा देल जाय । लड़कन बझल भी रहत आउ कुछ पइसो आ जात । मुदा फेन सोचऽ हलन कि लड़कन सब एही उमर से मास्टर साहेब हो जात । सब टिसनिया-मास्टर बूझे लगतन ।)    (बिगुल॰15.10)
209    टिसनी (= ट्यूशन) (लड़कन के बारे में सोचके आउरो काँप जा हलन । महल्ला के प्रभाव से लड़कन के कइसे बचावल जाय - ओकरे उपाय सोचते रहऽ हलन । कखनउँ सोचऽ हलन कि टिसनी पढ़ावे में लगा देल जाय । लड़कन बझल भी रहत आउ कुछ पइसो आ जात ।; पढ़हीं घड़ी घर के लाचारी आउ अपनो जेब-खरच ले कुछ टिसनी करऽ हलन, जे आज तक अपन कसबा में उनका सब माटरे साहेब कहके पुकारे हे ।; परकास बाबू के दुन्नू लड़कन के सफल होवे पर भी ई उमर में दुइये काम ले घर से निकलऽ हलन, चाहे कउनो डाक्टर या टिसनी पढ़ावे ले । स्कूल में कहियो टिसनी नञ् पढ़इलका हल मुदा रिटायर होवे पर ई गंजन ! नौकरी मिलते ही लड़कन अपन-अपन हाकिम के आउ लगले बियाह होते ही मेहरारू के अधीन हो गेल हल । बच गेलन परकास बाबू, जिनकर बचल जिनगी टिसनी के अधीन हो गेल हल ।)    (बिगुल॰15.8, 12; 25.19, 22)
210    टीसन (= स्टेशन) (जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल । अपन टीसन त ई टीसन के मिलान में एकदम्मे टीसनी हे । गाड़ी-घोड़ा सब लटफरेमे पर चल जा हे ।)    (बिगुल॰33.3)
211    टीसनी (= छोटा स्टेशन) (जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल । अपन टीसन त ई टीसन के मिलान में एकदम्मे टीसनी हे । गाड़ी-घोड़ा सब लटफरेमे पर चल जा हे ।)    (बिगुल॰33.3)
212    टुनमुनाना (ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।)    (बिगुल॰31.23)
213    टूटल (बनारसी बाबू नीम के गाछ के नीचे टूटल खटिया पर लोघड़ल आँख मुँदले सोच रहलन हल कि टरक-लाइन में जिनगी के ढेरोढेर अनमोल रात बस टरक चलतहीं बीत जा हे आउ ई सब होटल त सही माने में इनका लोग ले रैन-बसेरा हे ।)    (बिगुल॰52.14)
214    टेपरिकाडर (भीड़ एतना कि आदमी आदमी के खाली चेहरे देख रहल हल । ई धकमपेल में कुसलछेम पूछे के भी आसार नञ् । अकबका के घर घुर अइलन मुदा घर में बेटन के भीतर से रेडियो आउ टेपरिकाडर पर फिल्मी गीत आउ डिस्को धुन के भारी आवाज से उनकर मगज के संतुलन बिगड़ गेल ।)    (बिगुल॰31.28)
215    टेहरी (ओकरा याद हे कि बक्सा में रखल मेहमान आउ भगिना के सब समान बेर-बेर देखलक हल । मगही घी के टेहरी के हिफाजत में रस्ता भर ओकरा केतना आदमी से झड़पा-झड़पी हो गेल हल । लटफरेम पर गाड़ी लगते-लगते साँझ से रात हो गेल हल ।)    (बिगुल॰35.10)
216    टोला-टाटी (दुआर पर गोतनी के केतना परेम से चुमावऽ हली । तखने गीत गइते-गइते उनकर त गियारी बइठ जा हल । गोझनउटा से घुघ्घा तक के राज हँस-हँस के सिखइलकी हल । मुदा टोला-टाटी के हवा-पानी से गोतनी के ताजा होते देर नञ् लगल । कनफुसकी ठोनावादी में बदलके ओसरा से अँगना में आइये गेल ।; साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।)    (बिगुल॰39.1; 50.9)
217    ठंढाना (= ठंढा पड़ना; ठंढा करना) (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन । अपन आदर्श के आग के कहियो ठंढाय नञ् दे हल ।)    (बिगुल॰29.26)
218    ठंढाल (एन्ने दुन्नू परानी में लड़कन के चलते खुब्बे बहस होवऽ हल । शांति लड़कन ले एक्को बात जमीन पर नञ् गिरे दे हली । शांति के शिकायत हल त खाली छोटकना नौकर से । नौकर के शिकायत से हारो बाबू के ठंढाल रोटी में भी गरमी आ जा हल ।)    (बिगुल॰14.24)
219    ठकमकाल (एगो पहचानल अवाज आल - फिल्मी दुनिया आउ जासूसी उपन्यास सर ! चनेसर मूड़ी उठाके नजर फेंकलक । अपन कॉलेज के लड़का हल । चनेसर के ठकमकाल देखके ऊ समझ गेल कि इनका यहाँ ई सब नञ् हे ।)    (बिगुल॰51.29)
220    ठकुआना (ऊ अब तक चिट्ठिये से चाचा-चाची के जानऽ हली । भगवान दास के पुकारे पर अइली । परिचय भेल । चाची त उनका छूए लेल लिलकले हली । एही घड़ी हल कि ऊ अपन हँसुली मुँहदेखाय में दे सकऽ हली । मुदा कनिआय अपन जगह से टस से मस नञ् होली । चाची तो ई सब देखके ठकुआ गेली ।)    (बिगुल॰46.25)
221    ठमकल (एक दिन काम बन्द हल । काम के हल्ला-गुल्ला, भीड़-भाड़, आपा-धापी सब ठमकल हल ।)    (बिगुल॰20.14)
222    ठेहियाना (लगन-पाती के दिन अइतहीं तनिकना के बियाह के बात घरवलन के मुँह पर खुदरा-खुदरी रहऽ हल मुदा कउनो आगू बढ़इ के हिम्मत नञ् करऽ हलन । रघुबंस त भाय सब के कनिआय चुनते-चुनते ठेहिया गेलन हल । अपन भभू सब के चुनाव से अपने लजा रहलन हल ।)    (बिगुल॰39.16)
223    ठोनावादी (उनका खूब याद हे, जब अस्पताल में एगो मद्रासी नर्स आल हल त उनकर मन में तमिल सीखे के इच्छा जागल हल । बात-विचार त अंगरेजी में करऽ हलन मुदा मेहरारू के लगऽ हल कि ई तमिल नञ् सीखके ओकरे हिन्दी सिखाके दम लेतन आउ तब जोरू-मरद में लगातारे मगही में ठोनावादी होवऽ हल ।; सँझउकी घर पहुँचल हल । विचारलक कि बहिन-बहिनोइ से जउरे विदा लेत । ई की, साँझ से रात हो गेल मुदा अनील अभियो नञ् अइलन हल । रीता से उमर में तनिके उनइस हल । ई लेल शुरुये से ठोनावादी होते रहऽ हल ।; रसे-रसे ओसरा भी भित्तर में बदले लगल आउ रघुबंस के लाख कोरसिस के छइते भित्तर से जादे भनसे हो गेल । ठोनावादी से अँगना गरम रहे लगल ।; गोझनउटा से घुघ्घा तक के राज हँस-हँस के सिखइलकी हल । मुदा टोला-टाटी के हवा-पानी से गोतनी के ताजा होते देर नञ् लगल । कनफुसकी ठोनावादी में बदलके ओसरा से अँगना में आइये गेल ।)    (बिगुल॰26.14; 32.7; 38.2; 39.2)
224    ठोर (= होंठ, ओष्ठ) (गीत, गजल, कहानी, कविता कत्तेक भाषा में एक्के साथ लिखऽ हलन । बड़गो-बड़गो साहित्यकार के नाम त उनकर ठोरे पर रहऽ हल ।)    (बिगुल॰23.11)
225    डंघुरी (= डहुड़ी; डाली) (हवा के तेज झोंका चल रहल हल । नीम के पेड़ से एगो डंघुरी टूट के बनारसी बाबू के देह पर गिरल आउ ऊ उठके बइठ गेलन ।)    (बिगुल॰55.29)
226    डगडरनी (पुष्पा दोसर दफे अस्पताल के गमल-बूझल जगह पर अइली हल । बस, खाली डगडरनीये बदलल हली । चर-चपरासी, नर्स-दाय, कुरसी-टेबुल के साथ कमरा के चटकल रंग आउ टूटल सीसा वलन खिड़की त ऊ तखनियों देखवे कइलकी हल ।)    (बिगुल॰56.2)
227    डगरिन (कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।)    (बिगुल॰37.7)
228    डराफ (= ड्राफ्ट) (मोटगर रकम के डराफ त सभे दने से लगातारे आ रहल हल । तरह-तरहके कपड़ा आउ अम्मा ले किसिम-किसिम के साड़ी-गहना ! मुदा अब ई सिलसिला के आग में मियाँ-बीबी सीझे लगलन हल । डराफ आउ सौगात से अब उनकर मन घबड़ाय लगल ।; कलीम साहब पिंजरा के तोता-मैना, खूँटा के बँधल जानवर, दरबा के कबूतर आउ मुरगी से भी जादे बेपनाह हो गेलन हल । ई सब ले तो बउधे काफी हे । मुदा उनकर बुढ़ारी की खाली डराफ आउ सौगाते ले लिलकल हे ? ई सोच-सोच के कलीम साहब आउ उनकर बेगम के सेहत एकदमे ढह गेल । डराफ आउ तोहफा अब बउधे ढोवे लगल।; बेगम अब चार सवार पर सवार हो गेली । कलीम साहब पागल जइसन "तोहफा ... डराफ ... तोहफा ... डराफ ... पइसा ... पइसा" करके गदाल करइत, पिंजरा के चिरइँ-चिरगुन के अजाद करे लगलन । तखनिये दरोजा पर डाकपीन के अवाज सुनके दउगे में झमा के गिर गेलन ।)    (बिगुल॰11.23, 25; 12.3, 4, 28)
229    डरेवर (= ड्राइवर) (बड़ी धकमपेल से पहलवान जी दिल्ली में उतरलन । कुली एक-एक समान सहित टैक्सी में बइठा देलक । ऊ डेरा के पता वला चिट्ठी डरेवर के थम्हइते संतोख के साँस लेलन ।)    (बिगुल॰46.9)
230    डलेवर (= ड्राइवर) (टरक से हटके उनकर धियान डलेवर आउ खलासी दने रह-रह के चलिये जा हल । इतमीनान से सूतल सुसता रहल हल । एगो मेहरारू ओही सब साथ बइठल दनादन सिगरेट पी रहल हल ।)    (बिगुल॰52.11)
231    डाकबाबा (पूरब आउ पच्छिम के जोड़-घटाव में ई समाज के असलिये हिसाब डगमगा गेल हे । आदमी पीढ़ा आउ आसनी छोड़के डायनिंग टेबुल पर आ जा हे मुदा भोजन के पहिले थरिया के चारो बगल पानी ढारवे करऽ हे । एक दने डाकटरी इलाज करावऽ हे आउ दोसर दने डाकबाबा पर पठरू कबूलवे करऽ हे ।; ओकरा जे पइसा मूरति बनावे में मिलऽ हल ओकरा डाकबाबा पर कबूतर आउ पठरू चढ़इवे करऽ हल ।)    (बिगुल॰30.16, 25)
232    ढँकल (बनारसी बाबू के ई सब से मतलबे की हल ? टरक रुकतहीं अपन लदल समान के चारो दने घूर के देख ले हलन । टरक पर लदल समान उनकर सउँसे नौकरी के उतार-चढ़ाव के नक्सा पेश करऽ हल । नौकरी के बुरा-भला दिन तिरपाल से एकदमे ढँकल हल ।)    (बिगुल॰52.10)
233    ढनमनाना (बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल । सामने कोय बोले या नञ् मुदा जेकरा जे मन में आवऽ हल करवे करऽ हल । ऊ देख रहलन हल कि उनकर हुमाद आउ लोहमान पर विदेशी इत्र के महक तेज हो रहल हल । बाल धोवे ले 'हेलो' सम्पू, लक्मे आउ अफगान असनो के डिब्बा अंगना-ओसरा में ढनमनाय लगल । जीवन बाबू के विचार के पेड़ त घर ही में ठूठ होवे लगल ।)    (बिगुल॰31.19)
234    ढेरकुन (मुझप्पे एक दिन साइमन सिर पर नावा-नावा टोपा आउ ढेरकुन फल-फूल लेके ससु के घर आ बड़ी अधिकार से बाहर चले ले कहलक । ओकरा तैयार होवे में की देर, की सबेर !)    (बिगुल॰18.25)
235    ढेरकुनी (= ढेरकुन, ढेर सा, बहुत सा) (पढ़हीं घड़ी ढेरकुनी तिलक लेके उनकर माय-बाप एगो लड़की के मेहरारू बनाके ले अइलन हल । तहियो लाल बाबू के विरोध बियाह में बदल गेल हल । औरत-मरद के जिनगी शुरू होल आउ उनका एहसास होवे लगल कि समय में समझौता के अजीबे ताकत हे ।)    (बिगुल॰26.20)
236    ढेरोढेर (रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल ।; ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।)    (बिगुल॰31.3, 23)
237    तखनइँ (गाँव वलन के मुँह पर तो बस एक्के बात बस गेल हल कि केसो के दिन बहुर गेल । तीन बेटन में एगो चनेसरे दिन निमाहत । तखनइँ दोसर आदमी बात लोक ले हल - भला मेहनत कहियो दगा दे हइ ? अहो, लूर-लच्छन तो पहिले से ही गोवाही दे हलइ ।)    (बिगुल॰48.4)
238    तखनयँ (आज फिनु बइठका के महफिल में गजल जागल हल । चार गो चुनल औरत-मरद जुमल हल । तखनयँ राधिका अइली ।)    (बिगुल॰43.27)
239    तनिकना (चारो दने के बतसल देवाल से आँख घुमाके रघुबंस तनिकना भाय पर नजर टिका देलन हल । पियार में तनिक के तनिकना नाम बड़का होवे पर भी नञ् बदलल हल । रघुबंस के मनसूबा हल कि तनिकने उनकर बड़गो विचार के पचावत ।; उनका लगऽ हल कि तनिकना घर के उमस से अलगे खड़ा हो जाय, मुदा आँख मूँदला से कहीं अन्धड़ रुक गेल हे ?)    (बिगुल॰39.4, 5, 6, 9)
240    तनीमनी (शहरी जिनगी हल, ई लेल ठाट-बाट त गाड़ी, रिक्सा से पटल आउ सर-सिनेमा से बिखरल देखतहीं रहऽ हलन, मुदा की मजाल कि कोय सटे दे ! रघुबंस त खेल-कूद आउ गीत-संगीत वला रस्ता धइलन । अब भाय-भतीजा होके तनीमनी तड़क-भड़क के राज बूझे लगलन । उनकर मिलनसार विचार आउ सेवा-धरम के चलते ढेरोढेर चाचा-चाची, भाय-बहिन त बाहरो में भेटे लगलन हल ।)    (बिगुल॰37.4)
241    तनी-मानी (दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल ।)    (बिगुल॰10.29)
242    तफड़का (दे॰ तफरका) (रेल त रफ्तार पकड़िये लेलक हल मुदा चन्दू के अब लग रहल हल कि लटफरेम आउ शहर के जोड़े वाला कउनो पुल आँधी में ओकरा खातिर सदा ले टूट गेल । ई पार आउ ऊ पार के तफड़का से काँप रहल हल । गाड़ी त तेज भाग रहल हल, ओकरो से तेज चल रहल हल चन्दू ।; पोती के हरिद्वार, केदारनाथ आउ बदरीनाथ ले जाय वली बात टारके छोटकन छुट्टी त दिल्ली आउ शिमले में काटके स्कूल पहुँचा दे हली । ऊ अपन वेहवारी से साबित करऽ हली कि लड़का-लड़की में अब कउनो तफड़का नञ् हे ।; सही शिक्षा आउ ठोस संस्कार में सम्हरल लड़का-लड़की में कउनो तफड़का नञ् हे, मुदा सब खतरा ई अधकचरन से हे । लिवास के देखावा, गहना-जेवर के चमक-दमक आउ चिबा-चिबा बोले से कउनो काम सधे वला नञ् हे ।)    (बिगुल॰33.12; 59.22; 60.9)
243    तफरका (= अन्तर, भेद) (बनारसी बाबू ले कुसुम आउ कुमुद में तनिको तफरका नय् बुझा हल - बेटी-पोती में फरके की ?)    (बिगुल॰54.15)
244    तय-तमन्ना (सहाय जी तो पढ़ल-लिखल गुनी लड़की के बाप हलन । पैसा-कौड़ी के कउनो कमी नञ् हल, मुदा दहेज के तय-तमन्ना में पढ़लो-लिखल परिवार में जे हिचक पैदा होल तो सहाय जी लूडो के दान जीतइवाली गोटी जइसन आगे बढ़के फिर अप्पन घरे लौट अइलन आउ तब सहाय जी एकदम्मे बेसहाय हो गेलन हल ।)    (बिगुल॰3.24)
245    तराउपरी (महीना दू महीना से जब दिन आगू बढ़ल आउ पइसा मिले के कोय चाल-चपट नञ् भेल त चनेसर सहमे लगल । कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी ।)    (बिगुल॰50.23)
246    तलुक (= तलक, तक) (दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰57.24)
247    तिनकी (कुछ तस्वीर विद्यार्थी जीवन के हल, जे उनकर शरीर में आज भी एगो अजबे सिहरन समा दे हे, पर उनकर मेहरारू ले त तिनकी बूझऽ ।)    (बिगुल॰26.15)
248    तिनटेक (सुमन ही तो कहलक हल कि शहर से परिवार के संस्कार बदलऽ हे । गाँव के खेत के उपज तो बटइदारे तीन-तेरह कर दे हे, बकरी आउ तिनटेक काटे हे ।)    (बिगुल॰54.23)
249    तीज-तेहवार (अपन महल्ला के ताकत, एकता आउ उत्साह तीजे-तेहवार में देखऽ हलन । एक से एक मूर्ति ! पंडाल के सजधज आउ लउडिसपीकरे से रात-रात भर गाना-बजाना !; किरन जी कभी-कभी अपन स्व॰ पिता विदेसी बाबू के साथ कइल बेहवार में भुला जा हलन । भोरे उठके अपन हाथ से चाह बनाके पहिला गिलास बाबुये के दे हलन । रात के भोजन भी एक्के साथ करऽ हलन । तीज-तेहवार में किस्ते पर, मगर घर में सबसे पहिले कपड़ा-लत्ता बाबुये आउ माय लेल कीनऽ हलन ।)    (बिगुल॰15.15; 25.25-26)
250    तीत (उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल । सउँसे देह खटिया पर आउ माथा नीम के जड़िये पर टिकइले हलन । नीम के तो निमकउड़ियो मीठ होवऽ हे मुदा जिनगी के मीठो फल के तीत सवाद से उनकर रोम-रोम काँप जा हल ।)    (बिगुल॰53.28)
251    तेहवार (= त्योहार) (अपन महल्ला के ताकत, एकता आउ उत्साह तीजे-तेहवार में देखऽ हलन । एक से एक मूर्ति ! पंडाल के सजधज आउ लउडिसपीकरे से रात-रात भर गाना-बजाना ! सउँसे शहर के आदमी पंडाल आउ मूर्ति के सजावट देखे आवऽ हल । तेहवार के बाद फेन ओहे सन्नाटा !; रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल ।)    (बिगुल॰15.18; 31.3)
252    थकउनी (टैक्सी में बइठते ही डेरा के ठौर-ठेकाना धियान से देखलक हल । उमंग मे एतना मनेमन उमक रहल हल कि जतरा के थकउनी थाहियो नञ् सकल ।)    (बिगुल॰35.15)
253    थकल-फिदाल (रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।)    (बिगुल॰49.19)
254    थम्हनगर (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।)    (बिगुल॰vii.5)
255    थम्हाना (महीना के पहिला पख हल । अपन बटुआ से सिनेमा के तीन गो टिकट अलगे करइत राधे बाबू के हाथ में नोट थम्हइते, झटके के साथ नजर से इड़ोत हो गेली ।; बड़ी धकमपेल से पहलवान जी दिल्ली में उतरलन । कुली एक-एक समान सहित टैक्सी में बइठा देलक । ऊ डेरा के पता वला चिट्ठी डरेवर के थम्हइते संतोख के साँस लेलन ।)    (बिगुल॰43.30; 46.10)
256    थरथराल (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल ।)    (बिगुल॰13.24)
257    थहुआल (समय सँसर रहल हल आउ चनेसर एकदम थहुआल । एक दिन हवा के झोंका आल आउ चनेसर बगले के शहर के नावा कॉलेज में पहुँच गेल । दस हजार के डोनेसन के डलिया लेके अरघ देलक तब कहीं पेटकट्टू नौकरी पइलक ।)    (बिगुल॰50.15)
258    थाहना (टैक्सी में बइठते ही डेरा के ठौर-ठेकाना धियान से देखलक हल । उमंग मे एतना मनेमन उमक रहल हल कि जतरा के थकउनी थाहियो नञ् सकल ।)    (बिगुल॰35.15)
259    थिरथम्हन (हरिद्वार के हरकीपौड़ी आनन्द के जगह हइ । गंगा धरती पर ! तेज धारा ! साफ जल ! चारो दने मंदिरे-मंदिर ! धूप-अगरबत्ती के सुगंध ! मन एकदमे थिरथम्हन हो जा हे । जे माँग से मिले !)    (बिगुल॰4.21)
260    दउगना (बेगम अब चार सवार पर सवार हो गेली । कलीम साहब पागल जइसन "तोहफा ... डराफ ... तोहफा ... डराफ ... पइसा ... पइसा" करके गदाल करइत, पिंजरा के चिरइँ-चिरगुन के अजाद करे लगलन । तखनिये दरोजा पर डाकपीन के अवाज सुनके दउगे में झमा के गिर गेलन ।)    (बिगुल॰12.30)
261    दप-दप (ई सब छो-पाँच करिये रहल हल कि लछमी दरद से छटपटाय लगल । ओकरा तुरते 'मातृसदन' अस्पताल ले गेल हल । फोहवा एकदम्मे मिसरी नियन दप-दप हल । मुंसी जी ओकरा मिसरिये कहके पुकारऽ हलन । धीरे-धीरे मिसरी अइँटा से छड़ पकड़के धउगे लगल हल ।)    (बिगुल॰20.32)
262    दमाद (रामबाबू आउ उनकर घरवाली बार-बार गंगा में स्नान करऽ हलन । मन एकदमे शांत हो गेल हल । दुन्नो परानी हाथ जोड़-जोड़ के नीमन दमाद के मनउती माँग रहलन हल ।; रीता के बियाह त घर के चुल्हो के आँच मद्धिम कर देलक हल । आधा खेत-पथार त इंजीनियर दमाद पावे में रजिसटरी आफिस में धर अइलन हल । घर के दशा में तहिये से दखल पड़े लगल हल ।)    (बिगुल॰4.24; 33.22)
263    दरखास (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल । ओकरा लगल कि धरती फटे आउ ऊ समाय । एतनइँ कह सकल कि एत्तेक जगह तो दरखास आउ इंटरभिउ देलूँ ।)    (बिगुल॰50.2)
264    दर-दरखास्त (ऊ तो जिनगी अइसन गंभीर विषय से धियान हटा-हटा के मन के बस, पढ़ाइये में टिका देलकी हल । ओकरा ले परम्परा आउ संस्कार वली सड़क से कउनो अलग रास्ता नञ् हल । नौकरी लेल दर-दरखास्त भेजते कहियो थकवे नञ् करऽ हली ।)    (बिगुल॰57.4)
265    दरोजा (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन । बाबूजी के घर से कउनो वास्ता नञ् रह गेल हल, जे गुनी दरोजा पर दम साधले रहऽ हलन ।)    (बिगुल॰36.4, 5)
266    दान-पुन्न (हकीम साहब अनकर जगह के हवा-पानी से ताजा होवऽ हलन आउ फिनू अखाढ़े में । कलीम साहब आउ उनकर बेगम के साँझे-बिहने हवाखोरी के सुझाव सुझइलन, साथे-साथ ई उमर में दान-पुन्न के बात दोहरइलन ।)    (बिगुल॰12.13)
267    दिनउकी (रात-विरात में भी हारो बाबू ऊ अधेड़ उमर के जन्नी के एकदम सहज होके घूमते देखऽ हलन । हारो बाबू के दिनउकी झगड़ा आउ जानवर से कुच्छो डर नञ् लगऽ हल मुदा रात में तो आदमी के आँख से देखियो नञ् पावऽ हलन । ऊ मने-मन सोचऽ हलन कि ई जनिये टोला के वाजिब बसिंदा हे । कखनउँ-कखनउँ दिन में जब शांति के साथ हाट-बजार ले निकलऽ हलन तो ऊ जन्नी उनका मुसकइते देखऽ हल ।)    (बिगुल॰14.1)
268    दिरइँची (= दराँची, दरार) (अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।; साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।)    (बिगुल॰42.19; 50.9)
269    दुआरी (अपन महल्ला के ताकत, एकता आउ उत्साह तीजे-तेहवार में देखऽ हलन । एक से एक मूर्ति ! पंडाल के सजधज आउ लउडिसपीकरे से रात-रात भर गाना-बजाना ! सउँसे शहर के आदमी पंडाल आउ मूर्ति के सजावट देखे आवऽ हल । तेहवार के बाद फेन ओहे सन्नाटा ! बस, बमे-पटाका से चुप्पी टूटऽ हल । कभी-कभी उनको दुआरी पर बम फटऽ हल ।; भोरउकी गली के चहल-पहल आउ भारी गोहार से लोग-बाग अपन दुआरी खोललक । मालूम होल कि रात भर के बम-फटाका से गली में खाली ऊ जनिये के जान गेल हे ।)    (बिगुल॰15.19, 26)
270    देखल-सुनल (उनकर चेहरा ई हद उड़ल हल कि घर में केकरो कुछ पूछे के हिम्मत नञ् हो रहल हल । ई बात उनकर गियारिये में फँसल हल कि सुमन के संगे-साथे देखल-सुनल लड़का से दिन-तारीख तय करे ले निकललन हल ओकरे से सुमन अप्पन बेटी के छेका-सगुन चुप्पे-चाप कर चुकल हल ।)    (बिगुल॰55.27)
271    देखावा (= दिखावा) (सही शिक्षा आउ ठोस संस्कार में सम्हरल लड़का-लड़की में कउनो तफड़का नञ् हे, मुदा सब खतरा ई अधकचरन से हे । लिवास के देखावा, गहना-जेवर के चमक-दमक आउ चिबा-चिबा बोले से कउनो काम सधे वला नञ् हे ।)    (बिगुल॰60.10)
272    देवाल (जब भी लाल बाबू के सुविधा के संजोग बइठऽ हल, घर के छत या देवाल उठाइये के दम साधऽ हलन । आफिस से जादे व्यस्त अपन घर के हुलिया चमकावे में रहऽ हलन ।; चारो दने के बतसल देवाल से आँख घुमाके रघुबंस तनिकना भाय पर नजर टिका देलन हल । पियार में तनिक के तनिकना नाम बड़का होवे पर भी नञ् बदलल हल ।; ई सब कथा-कहानी आउ तूल-तेवर से केसो के मन असमान छूए लगल । चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । नोनी लगल धोखड़ल देवाल, उटंग केवाड़ी, खपड़ा के छप्पर केसो के आँख में गड़े लगल । उनके सामने किसुन आउ कैलास के घर देखते-देखते आँख में गड़े लगल ।)    (बिगुल॰27.15; 39.4; 48.7)
273    दोकनदार (स्कूल के नाम-पता जानहीं से की - नाम लिखावे लेल ढेरो पापड़ बेले पड़ल हल । अब त मंसूरी अपन शहरे जइसन हो गेल हल । पहुँचतहीं कुली, होटल वला आउ लड़कन के लिवास बेचे वलन दोकनदार उत्साह से स्वागत करऽ हल ।)    (बिगुल॰59.10)
274    दोकनदारी (दयानन्द के मेहनत आउ दमयंती के सूझ-बूझ से कपड़ा के दोकनदारी के साथे-साथ सोना-चानी के रोजगारो में चमक-दमक आवे लगल ।)    (बिगुल॰58.18)
275    दोकान (= दुकान) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।; मन में आल कि उँचगर दोकान खोले ताकि ओकर तंगो नञ् तउलाय । फिनु ओकरा सामने कभी कॉलेज आउ कभी बजार में दोकान के स्टूल खड़ा हो जाय । आखिर धोकड़ी के धच्चर कर-किताब आउ अखबार के दोकान खोला देलक ।; मंसूरी गेला पर जैकसन के बगल के दोकान से अपने खातिर चश्मा लेवे लेल नञ् भूलऽ हली । चश्मा के चुना-चुनी में दोकान वला भी खुब्बे उत्साह देखावऽ हल आउ कउनो फिल्मी कलाकार से दमयंती के तुलना करइत चश्मा थमा दे हल ।)    (बिगुल॰33.18; 51.20; 59.18)
276    दोकानदारी (दे॰ दोकनदारी) (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन ।)    (बिगुल॰57.28)
 

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