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Thursday, February 04, 2016

रूसी उपन्यास "कालापानी", भाग-1; अध्याय-10: क्रिस्मस के छुट्टी



कालापानी
(साइबेरिया में जेल के जिनगी)

भाग-1; अध्याय-10: क्रिस्मस के छुट्टी

आखिरकार छुट्टी आ गेलइ । क्रिस्मस के पूर्वसंध्या पर भी कैदी लोग काम लगी लगभग नयँ निकसते गेलइ । कुछ लोग सिलाई के दोकान पर, कुछ वर्कशॉप में गेते गेलइ; बाकी लोग खाली भिन्न-भिन्न तरह के काम खातिर भेजल गेलइ, आउ हलाँकि कहीं निश्चित काम में लगावल गेलइ, लेकिन लगभग सब्भे, एक-एक करके चाहे दल में, तुरतम्मे जेल में वापिस आ गेते गेलइ, आउ दुपहर के भोजन के बाद कोय जेल से बाहर नयँ गेलइ । आउ सुबहो में अधिकतर कैदी लोग अपन-अपन काम से बाहर गेले हल, आउ सरकारी (जेल के) काम से नयँ - कुछ लोग दारू के तस्करी के मामले में दौड़धूप करे आउ कुछ अधिक औडर करे लगी; त कुछ लोग अपन परिचित दोस्त (औरत आउ मरद) से मिल्ले लगी, चाहे उत्सव लगी पहिले ओकन्हीं खातिर कइल काम के पइसा के उगाही लगी; बकलूशिन आउ नाटक मंचन में भाग लेवे वलन कुछ परिचित लोग से भेंट करे लगी, खास करके अफसर लोग के नौकर सब से, आउ आवश्यक वरदी लावे खातिर । कुछ लोग चिंताशील आउ बेचैन मुद्रा में गेते गेलइ, खाली ई कारण से, कि दोसरो लोग बेचैन आउ चिंताशील हलइ, आउ हलाँकि कुछ लोग के, मसलन, कहूँ से पइसा मिल्ले के कोय आधार नयँ हलइ, लेकिन ओकन्हीं अइसे देखाय दे रहले हल, मानूँ ओकन्हिंयों के केकरो हीं से पइसा मिलतइ; एक शब्द में, सब कोय के मानूँ प्रत्याशा हलइ कि बिहान कुछ तो परिवर्तन आउ कुछ तो असाधारण होतइ । साँझ तक अपंग लोग, जेकन्हीं के कैदी सब बजार भेजलके हल, अपन साथ कइएक तरह के खाद्य पदार्थ लेके अइते गेलइ - बीफ़, दुधपिलुआ सूअर (sucking-pigs), हंस भी । कैदी लोग में से कइएक, आउ अइसनो जे बहुत मितव्ययी हलइ आउ खरचा करे में सवधानी बरतऽ हलइ, सालो भर अपन कोपेक बचइलके हल, ओकन्हिंयों अइसन दिन लगी अपन गेंठी खोलना आउ उचित ढंग से उपवास तोड़े के उत्सव मनाना फर्ज समझलकइ [1] । दोसरा दिन कैदी लोग के असली, अविच्छेद्य उत्सव हलइ, जे कानून द्वारा औपचारिक रूप से अनुमोदित हलइ । ई दिन के कैदी लोग के काम पर बाहर नयँ भेजल जा सकऽ हलइ, आउ अइसन दिन साल में कुल्लम तीन गो हलइ ।

आउ आखिरकार, केऽ जानऽ हइ, अइसनका दिन अइला पर केतना आदगार ई सब समाजच्युत लोग के दिल में हिल्ले लगले होत ! बड़गो उत्सव के दिन सामान्य लोग के मानस पर तीव्र छाप छोड़ऽ हइ, बचपने से शुरू करके। अइसन दिन ओकन्हीं के कठोर श्रम से आराम के दिन होवऽ हइ, परिवार के लोग के साथ-साथ एकत्र बितावे के दिन । जेल में ओकन्हीं के कष्ट आउ उदासी के साथहीं आद कइल जा सकऽ हलइ । उत्सवपूर्ण दिन के प्रति आदर एक तरह से औपचारिक अनुष्ठान में बदल गेले हल; कइएक लोग दारू पी-पाके रंगरेली मना रहले हल; सब्भे कोय गंभीर हलइ आउ मानूँ कोय काम में व्यस्त हलइ, हलाँकि कइएक लोग के पास लगभग कुछ काम नयँ हलइ। लेकिन निकम्मा आउ रंगरेली मनावे वलन खुद में एक तरह के अहमियत के बरकरार रक्खे के प्रयास कर रहले हल ... हँसी पर मानूँ मनाही हलइ । सामान्य मनोदशा (मूड) एक प्रकार के अत्यौपचारिकता आउ अतिसंवेदनशील असहनशीलता के सीमा तक पहुँच जा हलइ, आउ कोय ई सामान्य मनोदशा के भंग करऽ हलइ, बल्कि ई अनजानहूँ में काहे नयँ होवइ, त ओकरा पर चिल्लाहट आउ गारी-गल्लम के साथ लगाम लगा देते जा हलइ आउ ओकरा पर अइसे गोस्सा करऽ हलइ, मानूँ एकरा ठीक उत्सव के ही अनादर समझते जा हलइ । कैदी सब के ई मनोदशा विलक्षण हलइ, भावस्पर्शी भी । ई महान दिवस लगी जन्मजात श्रद्धा के अतिरिक्त, कैदी अचेतन रूप से अनुभव करऽ हलइ, कि ऊ ई उत्सव के मनावे से मानूँ पूरे संसार के साथ संपर्क में हइ, कि ऊ बिलकुल, शायद, समाजच्युत नयँ हइ, नष्ट होल नयँ हइ, समाज से बिलकुल कट्टल अकेल्ले नयँ हइ, कि जेलवो में ओइसने हइ, जइसन कि बाकी लोग के साथ । ओकन्हीं ई बात के अनुभव करऽ हलइ; ई दृष्टिगोचर हलइ आउ समझ में आवऽ हलइ ।

अकीम अकीमिच भी उत्सव लगी बहुत तैयारी कर रहले हल । ओकरा लगी कोय पारिवारिक आदगारी नयँ हलइ, काहेकि ऊ एगो अनजान घर में अनाथ के रूप में पलले-बढ़ले हल आउ लगभग पनरह साल के उमर से कठोर श्रम करते आ रहले हल; ओकर जिनगी में कोय विशेष खुशी भी नयँ हलइ, काहेकि अपन सारी जिनगी नियमित रूप से, एक्के तरह से गुजरलके हल, अपन प्रदिष्ट (prescribed) कर्तव्य से बाल भर भी विचलित नयँ होवे के भय से । ऊ विशेष धार्मिक भी नयँ हलइ, काहेकि शिष्टाचारिता, शायद, ओकरा में बाकी सब ओकर मानवीय प्रतिभा आउ गुण, सब्भे भाव आउ कामना, खराब आउ अच्छा, के निगल गेले हल । ई सब के फलस्वरूप ऊ उत्सव के दिन मनावे के तैयारी कर रहले हल, बिन कोय भाग-दौड़ के, बिन कोय चिंता-फिकिर के, दुखदायी आउ बिलकुल अनुपयोगी आदगारी से बिन विचलित होले, आउ शांत, नियमित शिष्टाचारिता के साथ, जे ठीक ओतने हलइ, जेतना कर्तव्य आउ एक्के तुरी हमेशे लगी प्रदिष्ट अनुष्ठान (prescribed ritual) के पूरा करे लगी आवश्यक हलइ । आउ ऊ जादे सोच-विचार करना पसीन नयँ करऽ हलइ । तथ्य के अर्थ, लगऽ हलइ, कभियो ओकर दिमाग में नयँ घुस्सऽ हलइ, लेकिन एक तुरी नियम-कानून ओकरा निर्दिष्ट कर देल गेलइ, कि ऊ एकरा धार्मिक परिशुद्धता (sacred precision) तक पूरा करऽ हलइ । अगर ओकरा दोसरे दिन बिलकुल विपरीत करे लगी आज्ञा देल जइते हल, त ऊ एकरा ओतने आज्ञाकारिता आउ सावधानी से करते हल, जइसे कि ऊ ठीक उलटा एक दिन पहिले कइलके हल । एक तुरी, जिनगी में खाली एक्के तुरी ऊ अपन दिमाग के अनुसार जीए के प्रयास कइलके हल - आउ जेल में पड़ गेले हल । ई सबक ओकरा लगी बेकार नयँ गेलइ । आउ हलाँकि ओकर भाग्य में ई बद्दल नयँ हलइ कि ऊ बल्कि कभियो समझ पावइ, कि ओकर की दोष हलइ, लेकिन तइयो ई अपन घटना से ऊ एगो उद्धारक (हितकारी) नियम के निष्कर्ष पर पहुँचलइ - कभियो आउ कउनो परिस्थिति में अपन मस्तिष्क से तर्क-वितर्क करे के नयँ, काहेकि तर्क करना "ओकर मस्तिष्क के काम नयँ हइ", जइसन कि कैदी लोग आपस में अभिव्यक्त करते जा हलइ । अनुष्ठान के प्रति आँख मूनके निष्ठावान, ऊ उत्सव लगी अपन दुधपिलुआ सूअर पर भी, जेकरा काशा (दलिया, लपसी) से भरऽ हलइ आउ ओकरा झौंसऽ हलइ (अपन हाथ से, काहेकि ऊ झौंसे लगी जानऽ हलइ), एक प्रकार से पूर्वाभासी श्रद्धा (anticipatory reverence) से देखऽ हलइ, जइसे ई कोय सामान्य दुधपिलुआ सूअर नयँ हलइ, जेकरा खरदल आउ झौंसल जा सकऽ हलइ, बल्कि एक प्रकार के विशेष उत्सव वला हलइ । शायद, ऊ बचपने से ई दिन पर टेबुल पर दुधपिलुआ सूअर के देखे के आदी हो गेले हल आउ एकरा से ऊ निष्कर्ष पर अइले हल, कि अइसन दिन पर दुधपिलुआ सूअर आवश्यक हइ, आउ हमरा पक्का विश्वास हइ, कि अगर ऊ ई दिन पर एक्को तुरी दुधपिलुआ सूअर के मांस के स्वाद नयँ लेते हल, त ओकर अंतःकरण में जिनगी भर कोय प्रकार के अपन कर्तव्य नयँ निबाहे के मलाल रहते हल । उत्सव के पहिले-पहिले तक ऊ अपन पुरनका जैकेट आउ पतलून में एन्ने-ओन्ने जा हलइ, हलाँकि निम्मन से रफू कइल (पेउँद लगावल), लेकिन तइयो बिलकुल जीर्ण-शीर्ण रहऽ हलइ । अब मालूम पड़लइ, कि पोशाक के नयका सूट, जे ओकरा चार महिन्ना पहिलहीं देल गेले हल, ऊ सवधानी से अपन संदूकड़ी में संजोगले हलइ आउ ओकरा छूवो नयँ करऽ हलइ - ई मुसकान भरल विचार से कि ऊ ओकरा उत्सव के अवसर पर खुशी-खुशी पहिले तुरी पेन्हतइ । आउ ओइसीं ऊ कइलकइ । सँझिए से ऊ अपन नयका सूट बाहर निकसलकइ, एकर तह खोललकइ (unfolded), निरीक्षण कइलकइ, ब्रश करके साफ कइलकइ, फूँक मारके धूरी-गर्दा हटइलकइ आउ ई सब कुछ ठीक-ठाक करके, एकरा पेन्हके पहिले जाँच कइलकइ । लगलइ, कि सूट बिलकुल फिट होवऽ हइ; सब कुछ बहुत संतोषजनक हलइ, उपरे तक बोताम लगइला पर देह में बिलकुल टाइट बइठऽ हलइ, कालर गत्ता (कार्डबोर्ड) नियन ठुड्डी के उपरे टेकले हलइ;  कमर में भी कइसनो वरदी नियन टाइट हलइ, आउ अकीम अकीमिच खुशी से मुसकइलइ आउ बिन बाँकापन के ऊ एगो छोटकुन्ना दर्पण बिजुन नयँ मुड़लइ, जेकरा अपन हाथ से फुरसत के समय में किनारा में सोना के कलई चिपकइलके हल । खाली एक हुक जैकेट के कालर में मानूँ ठीक जगह नयँ प्रतीत होलइ । एकरा नोटिस कइला पर, अकीम अकीमिच हुक के बदले के फैसला कइलकइ; बदल देलकइ, फेर से पेन्हके जाँच कइलकइ, आउ अब बिलकुल ठीक लगलइ । तब ऊ सब कुछ पहिलहीं नियन तह कर देलकइ आउ चैन के साँस लेके संदूकड़ी में कल तक लगी रख देलकइ । ओकर सिर संतोषजनक रूप से मूँड़ल हलइ; लेकिन, खुद के ध्यानपूर्वक दर्पण में देखला पर ऊ नोटिस कइलकइ, कि ओकर सिर बिलकुल चिकना नयँ हलइ; मोसकिल से देखाय देवे वला कुछ केश रह गेले हल, आउ ऊ तुरतम्मे "मेजर" हियाँ गेलइ ताकि बिलकुल ठीक-ठाक से आउ नियम के अनुसार सिर मुँड़वा सकइ । आउ हलाँकि अकीम अकीमिच के बिहान कोय निरीक्षण नयँ करते हल, लेकिन खाली अपन अंतःकरण के शांति लगी अपन सिर मुँड़वइलकइ, ताकि ऊ अइसन दिन लगी अपन कर्तव्य के पूरा कर सकइ । बटन, स्कंधिका (epaulette) आउ कालर पट्टी के प्रति ओकर श्रद्धा बचपने से एगो अशंकनीय कर्तव्य के रूप में ओकर मस्तिष्क में अमिट छाप अंकित हो गेले हल, आउ हृदय में - सौंदर्य के एगो उच्चतम श्रेणी के प्रतिमा के रूप में, जे एगो सदाचारी व्यक्ति प्राप्त कर सकऽ हइ । सब कुछ ठीक-ठाक करके, जेल के एगो वरिष्ठ कैदी के हैसियत से, ऊ पुआल के अंदर लावे के औडर देलकइ आउ फर्श पर एकरा बिछावल गेल बखत ध्यान से निगरानी कइलकइ । एहे बात दोसरो बैरक में हलइ । मालूम नयँ कि काहे लगी, लेकिन क्रिस्मस में हमेशे हमन्हीं के बैरक में पुआल बिछावल जा हलइ [2] । बाद में, अपन सब परिश्रम के समाप्त करके अकीम अकीमिच भगमान के प्रार्थना कइलकइ, अपन बिछौना पर पड़ गेलइ आउ तुरतम्मे बुतरू नियन गहरा नीन में सुत गेलइ, ताकि सबेरे यथासंभव जल्दी उठ सकइ । लेकिन बाकी सब कैदी भी ओइसीं कइलकइ । सब्भे बैरक में सामान्य दिन के अपेक्षा बहुत पहिलहीं सुत्ते चल गेलइ । साँझ के सामान्य काम सब छोड़ देल गेलइ;  मयदान के कोय चर्चा नयँ हलइ । सब कोय के कल्हे के सुबह के इंतजार हलइ ।

आखिरकार ई आ गेलइ । भोरगरहीं, दिन के उजाला फैले के पहिलहीं, जइसीं ढोल बजलइ, बैरक सब खुल गेलइ, आउ कैदी लोग के गिनती करे खातिर अंदर आल ड्यूटी पर के सर्जेंट सब कोय के उत्सव के बधाई देलकइ। ओकन्हिंयों ओकरा ओइसीं जवाब देते गेलइ, मित्रभाव आउ सहृदयता से उत्तर देते गेलइ । जल्दी-जल्दी प्रार्थना करके, अकीम अकीमिच आउ दोसर कइएक लोग, जेकर अपन-अपन हंस आउ दुधपिलुआ सूअर भनसाघर में हलइ, तेजी से देखे लगी रवाना हो गेते गेलइ, कि ओकरा साथ की कइल जा रहले ह, कइसे ओकरा झौंसल जा रहले ह, काहाँ पर कउची हइ, इत्यादि । हमन्हीं के बैरक के, हिम आउ बरफ चिपकल छोटकुन्ना खिड़की से, अन्हेरा से होके, सुबह के उजेला होवे के पहिलहीं जला देवल गेल, दुन्नु भनसाघर में के सब्भे छो चूल्हा में आग दहक रहले हल । प्रांगण से होके, अन्हेरे में, कैदी लोग अपन अधकटिया फ़रकोट, पेन्हले चाहे कन्हा पे डालले, दौड़धूप कर रहले हल; ई सब्भे भनसाघर तरफ जाब करऽ हलइ । लेकिन कुछ, हलाँकि बहुत कम लोग, (दारू खातिर) भठियारा हीं भी हो अइले हल । ई लोग बहुत अधीर हलइ । सामान्य रूप से सब कोय नम्रतापूर्वक, शांति से आउ कइसूँ असामान्य शिष्टाचार से, व्यवहार कइलकइ । अकसर नियन न कोय गारी-गल्लम सुनाय दे हलइ, आउ न लड़ाय-झगड़ा । सब कोय समझऽ हलइ, कि ई दिन बड़गो आउ उत्सव महान हइ। अइसनो हलइ, जे दोसरो बैरक में भेंट देते गेलइ, अपन कउनो दोस-मोहिम के । कुछ तो दोस्ती के माहौल लग रहले हल । प्रसंगवश हम उल्लेख करऽ हिअइ, कि कैदी लोग के बीच दोस्ती लगभग बिलकुल नयँ देखे में आवऽ हलइ, हम सामान्य रूप के बात नयँ कर रहलिए ह - ई मानल बात हइ - बल्कि विशेष रूप से, जब एगो कोय कैदी दोसरा से दोस्ती कर लेलकइ । अइसन हमन्हीं हीं बिलकुल नयँ हलइ, आउ ई एगो महत्त्वपूर्ण बात हइ - अइसन स्वतंत्र संसार में नयँ होवऽ हइ । हमन्हीं हीं साधारणतः सब कोय एक दोसरा के साथ, बहुत विरले अपवाद के साथ, निर्मम आउ शुष्क व्यवहार करते जा हलइ, आउ ई एक प्रकार के औपचारिक मनोवृत्ति एक्के तुरी हमेशे लगी स्वीकृत आउ स्थापित होल हलइ । हमहूँ बैरक से बाहर निकसलिअइ; लगभग उजेला होवे लगले हल; तरिंगन धुंधला हो रहले हल; एगो पतरा तुषारीय भाफ उपरे उठ रहले हल । भनसाघर के चिमनी से धूम्र स्तंभ निकस रहले हल । हमरा सामने भेंट हो गेल कुछ कैदी खुद्दे अपन मन से आउ प्रेम से हमरा उत्सव के अभिनंदन कइलकइ । हम धन्यवाद कइलिअइ आउ ओइसीं जवाब देलिअइ । ओकन्हीं में से अइसनो हलइ, जे अभी तक ई पूरे महिन्ने हमरा साथ एक्को शब्द नयँ बोलले हल ।

ठीक भनसाघर बिजुन मिलिट्री विभाग के एगो कैदी हमरा भिर आ पहुँचलइ, जे अपन कन्हा पर भेड़ के खाल के कोट डालले हलइ । ऊ आधा प्रांगण से हीं हमरा देख लेलके हल आउ चिल्लाके हमरा से बोललइ - "अलिक्सांद्र पित्रोविच ! अलिक्सांद्र पित्रोविच !" ऊ जल्दीबाजी में दौड़ल भनसाघर दने अइलइ । हम रुक गेलिअइ आउ ओकरा लगी इंतजार करे लगलिअइ । ई एगो नौजवान छोकरा हलइ, गोल चेहरा, आँख में शांत मुद्रा, सबके साथ बहुत अल्पभाषी, आउ जे हमरा साथ जेल आवे के समय से एक्को शब्द तक नयँ बोलले हल आउ हमरा पर कउनो ध्यान नयँ देलके हल; हमरा एहो नयँ मालूम हलइ कि ओकर की नाम हइ । ऊ हमरा भिर हँफते अइलइ आउ ठीक हमरा सामने आके रुक गेलइ, हमरा तरफ एक प्रकार के मूक, लेकिन साथे-साथ परमानंदित मुसकान के साथ देखते ।
"अपने के की चाही ?" बिन कोय अचरज के ओकरा हम पुछलिअइ, ई देखके, कि ऊ हमरा सामने खड़ी हइ, मुसका रहले ह, आँख फाड़के हमरा तरफ देख रहले ह, लेकिन कोय बात नयँ शुरू करब करऽ हइ ।
"की चाही, उत्सव हइ ...", ऊ बड़बड़इलइ, आउ खुद अंदाज लगाके, कि ओकरा कुछ बोले के नयँ हइ, हमरा छोड़ देलकइ आउ लपकके भनसाघर में चल गेलइ ।

प्रसंगवश हम हियाँ उल्लेख करऽ हिअइ, कि एकर बादो हमन्हीं बीच कभियो कुछ लेना-देना नयँ रहलइ आउ हमर जेल छोड़े तक भी हमन्हीं बीच एक दोसरा से लगभग एक्को शब्द आदान-प्रदान नयँ होलइ ।  

भनसाघर में धधकइत चूल्हा के नगीच भाग-दौड़ आउ धक्कम-धुक्की चल रहले हल, पूरा भीड़-भाड़ । हरेक कोय अपन सर-समान पर नजर रखले हलइ; स्त्र्यापकी [3] जेल के भोजन तैयार करे लगले हल, काहेकि ई दिन के खाना जल्दी शुरू होवऽ हलइ । लेकिन अभी खाय लगी चालू नयँ कइलके हल, हलाँकि कुछ लोग चाहते हल, लेकिन दोसर लोग के सामने मर्यादा बनइले हलइ । पुरोहित के इंतजार हलइ, आउ ओकर भेंट के बादे उपवास तोड़े के आशा कइल जा सकऽ हलइ । ई दौरान, अभियो उजेला नयँ हो पइले हल, कि जेल के गेट के पीछू रसोइया के पुकारे के कार्पोरल के चीख सुनाय पड़लइ - "पोवरोव !" [4] । ई चीख लगभग हरेक मिनट पर सुनाय दे हलइ आउ लगभग दू घंटा तक जारी रहलइ । भनसाघर से रसोइया लोग के बोलावल जा हलइ, कि शहर के सब्भे कोना से लावल गेल उपहार स्वीकार करइ । ई असाधारण मात्रा में लावल जा हलइ - कलाची, रोटी, पनीर केक, चरबीदार केक, मालपूआ (पैनकेक) आउ अइसने-अइसने दोसर पकवान । हमरा विश्वास हइ, कि पूरे शहर के व्यापारी (मध्यम चाहे निम्न वर्गीय) के घर के एक्को गृहिणी नयँ होतइ, जे "अभागल" आउ कैदी लोग के ई महान उत्सव के बधाई देवे लगी अपन पावरोटी नयँ भेजवइलके हल । उपहार शानदार हलइ - शुद्धतम आटा के फैंसी पावरोटी, बड़गो मात्रा में भेजल । बहुत साधारण उपहार भी हलइ - कोय तरह के बहुत सस्ता छोटकुन्ना कलाच आउ दूगो कइसनो कार चरबीदार केक, लगभग खट्टा क्रीम से चपोतल - ई अंतिम बचत से एगो गरीब के भेजल गरीब कैदी लगी उपहार हलइ । सब कुछ समान कृतज्ञता से स्वीकार कइल जा हलइ, उपहार आउ उपहारकर्ता में बिन कोय अंतर कइले । स्वीकार करे वला कैदी लोग अपन-अपन टोपी उतार लेते जा हलइ, आदरपूर्वक झुक जा हलइ, उत्सव के बधाई दे हलइ आउ उपहार के भनसाघर में लेके चल जा हलइ । उपहार में प्राप्त पावरोटी के जब अंभार लग जा हलइ, त हरेक बैरक के वरिष्ठ कैदी के बोलावल जा हलइ, आउ ओकन्हीं सब कुछ के बैरक के अनुसार बराबर-बराबर हिस्सा में बाँट दे हलइ । कोय वाद-विवाद नयँ हलइ, नयँ कोय गारी-गल्लम; काम ईमानदारी से कइल जा हलइ, बराबर-बराबर । जे कुछ हमन्हीं के बैरक में अइलइ, ऊ हमन्हीं बीच बाँट देवल गेलइ; बाँटे के काम अकीम अकीमिच आउ एगो आउ दोसर कैदी कइलकइ; अपन हाथ से बँटलकइ आउ अपना हाथ से हरेक के देलकइ । जरिक्को सनी एतराज नयँ हलइ, केकरो से लेश भर द्वेष नयँ; सब कोय संतुष्ट हलइ; कोय शक्को नयँ हो सकऽ हलइ, कि उपहार के छिपा लेल, चाहे बराबर-बराबर नयँ बाँटल गेले होत । भनसाघर के सब काम के निपटाके, अकीम अकीमिच अपन नयका पोशाक से सज्जित होवे में लगलइ, पूरा सजावट आउ ठाट-बाट के साथ पेन्हलकइ, एक-एक करके सब्भे बोताम लगइलकइ, आउ पोशाक से सज्जित होके तुरतम्मे अपन वास्तविक प्रार्थना चालू कइलकइ । ऊ काफी देर तक प्रार्थना कइलकइ । कइएक कैदी, अधिकतर वइसगर लोग, पहिलहीं से खड़ी-खड़ी प्रार्थना कर रहले हल । कमती उमर के (लड़कन लोग) जादे देरी प्रार्थना नयँ करऽ हलइ - जादे से जादे उठते बखत, उत्सव के दौरान भी, क्रॉस कर लेते जा हलइ । प्रार्थना कर लेला के बाद, अकीम अकीमिच हमरा भिर अइलइ आउ कुछ भव्यता से हमरा लगी उत्सव के शुभेच्छा प्रकट कइलकइ । हम तुरते ओकरा चाय पर आमंत्रित कइलिअइ, आउ ऊ हमरा अपन दुधपिलुआ सूअर के मांस खाय लगी । थोड़हीं देर बाद हमरा भिर पित्रोव दौड़ल अइलइ शुभेच्छा देवे लगी । ऊ, शायद, पी लेलके हल आउ हलाँकि दौड़ते-दौड़ते हँफे लगले हल, लेकिन जादे कुछ नयँ बोललइ, बल्कि खाली हमरा सामने थोड़े देरी खड़ी रहलइ - कुछ तो प्रत्याशा करते आउ जल्दीए हमरा भिर से भनसाघर चल गेलइ । ई दौरान मिलिट्री बैरक में पादरी के स्वागत के तैयारी चल रहले हल । ई बैरक ओइसे नयँ सजावल गेले हल, जइसे कि बाकी सब - ओकरा में पटरा के बिछौना देवाल से सटले रक्खल गेले हल, नयँ कि कमरा के बिच्चे में, जइसन कि दोसर सब्भे बैरक में, ओहे से जेल में ई एकमात्र कमरा हलइ, जेकरा में बीच वला हिस्सा खाली हलइ । शायद ई अइसे सजावल हलइ, ताकि ओकरा में जरूरत के बखत कैदी लोग के जामा कइल जा सकइ । कमरा के बीच में एगो छोटगर टेबुल रक्खल हलइ, जेकरा एगो साफ-सुथरा तौलिया से ढँक देल गेले हल, ओकरा पर एगो प्रतिमा रक्खल हलइ आउ एगो लैंप जलावल हलइ । आखिरकार पादरी क्रॉस आउ पवित्र जल के साथ अइलइ । प्रतिमा के पास कुछ देर प्रार्थना करके आउ गायन करके, ऊ कैदी लोग बिजुन खड़ी हो गेलइ, आउ सब्भे क्रॉस भिर आके सच्चा आदर के साथ चुंबन करे लगलइ । फेर पादरी सब्भे बैरक के चक्कर लगइलकइ आउ ओकरा में पवित्र जल छिड़कलकइ । भनसाघर में ऊ हमन्हीं के जेल के पावरोटी के प्रशंसा कइलकइ, जे अपन स्वाद लगी पूरे शहर में मशहूर हलइ, आउ कैदी लोग तुरतम्मे ओकरा लगी दूगो ताजा आउ अभी-अभी सेंकल पावरोटी भेजे लगी चहलकइ; आउ ओकरा पहुँचावे लगी एगो अपंग के तुरतम्मे इस्तेमाल कइल गेलइ । क्रॉस के जेतना श्रद्धा से स्वागत कइल गेले हल, ओतने श्रद्धा से बाहर ले जाल जाय घड़ी भी साथ-साथ गेते गेलइ, आउ तब लगभग तुरतम्मे मेजर आउ कमांडर पहुँचते गेलइ । हमन्हीं हीं कमांडर के पसीन कइल जा हलइ आउ आदर भी देल जा हलइ । ऊ मेजर के साथ सब्भे बैरक के चक्कर लगइलकइ, सब कोय के उत्सव के शुभेच्छा देलकइ, भनसाघर में भेंट देलकइ आउ जेल के बंदागोभी के शोरबा के स्वाद लेलकइ । शोरबा उत्तम हलइ; ई शुभ दिन पर हरेक कैदी के लगभग एक पौंड बीफ़ देल गेलइ । एकरा अलावे, बाजरा के दलिया (मोटा दर्रल आउ पकावल) हलइ, जेकरा में मक्खन उदारतापूर्वक डालल गेले हल । कमांडर के बिदा करके मेजर खाना शुरू करे के आदेश देलकइ । कैदी लोग प्रयास कर रहले हल कि ओकर नजर से दूर रहइ । हमन्हीं हीं ओकर चश्मा के अंदर से द्वेषपूर्ण दृष्टि के पसीन नयँ कर रहते जा हलइ, जेकरा से ऊ अभी दहिने-बामे देखब करऽ हलइ, कि कहीं कोय अराजकता मिल जाय, कउनो दोषी से पाला पड़ जाय ।

खाना चालू हो गेलइ । अकीम अकीमिच के दुधपिलुआ सूअर बहुत निम्मन से झौंसल हलइ । आउ अइकी हम समझा नयँ सकऽ हिअइ, कि कइसे ई होलइ - मेजर के गेला के तुरते बाद, एहे कोय पाँच मिनट बाद, पता लगलइ कि असाधारण रूप से कइएक लोग दारू पीके तर्र हइ, जबकि पाँचे मिनट पहिले, सब कोय लगभग बिलकुल नीसा में नयँ हलइ । कइएक चेहरा लाल होते आउ चमकते देखाय देलकइ, बलालायका दृष्टिगोचर होलइ । नटघुरना पोलिस्तानी वायलिन के साथ कोय रंगरेली मनावे वला के पीछू-पीछू जा रहले हल, जेकरा एक दिन लगी भाड़ा पर लेल गेले हल, आउ ओकरा लगी मनोहारी नृत्य के धुन छेड़ रहले हल । बातचीत आउ अधिकाधिक मादक आउ कोलाहलपूर्ण होते जा रहले हल । लेकिन खाना-पीना बिन कोय हंगामा के समाप्त हो गेलइ । सब कोय रज-गज के खइलकइ । कइएक बुढ़वन आउ वइसगर (अधेड़ उमर वलन) लोग तुरतम्मे सुत्ते लगी रवाना हो गेलइ, ओहे अकीम अकीमिच भी कइलकइ, जेकर शायद मान्यता हलइ, कि कोय बड़गर उत्सव के बखत दुपहर के भोजन के बाद सुत्ते के चाही । स्तारोदुब्ये प्राचीन आस्था वला (Old-Believer) बुजुर्ग, थोड़े सनी झपकी ले लेला के बाद, स्टोव पर चढ़ गेलइ, अपन किताब खोललकइ आउ बहुत देर रात तक प्रार्थना करते रहलइ, प्रार्थना में लगभग बिन कोय रुकावट के । ओकरा "लज्जा" दने देखना कष्टकारी हलइ, जइसन कि ऊ सामान्यतः कैदी लोग के रंगरेली के बारे बोलऽ हलइ । सब्भे चेर्केश (Circassians) ड्योढ़ी पर बइठल हलइ आउ कौतूहल से, आउ साथे-साथ कुछ घृणा से, पीके धुत्त लोग दने देखब करऽ हलइ । हमरा नुर्रा से भेंट हो गेलइ - "यामान, यामान !" ऊ हमरा से कहलकइ, पावन क्रोध के साथ सिर हिलइते - "ओह, यामान ! अल्ला क्रोधित होतइ !" इसाय फ़ोमिच हठपूर्वक आउ अभिमान से अपन कोना में मोमबत्ती जललइलकइ आउ अपन काम करे लगलइ, स्पष्टतः ई देखइते, कि ओकरा लगी ई उत्सव के कोय मतलब नयँ हइ । कोय-कोय कोनमन में मयदान शुरू कर देते गेलइ । ओकन्हीं के अपंग लोग से भय नयँ हलइ, लेकिन कइसनो हालत में सर्जेंट के तरफ से, जे खुद्दे ई सब बात के अनदेखी करे के प्रयास कर रहले हल, सवधानी के रूप में पहरेदार रख लेते गेले हल । ड्यूटी पर के अफसर कोय तीन तुरी ई पूरे दिन में हुलकी मालके हल । लेकिन पियक्कड़ लोग नुक जा हलइ, ओकरा आवे घड़ी मयदान के दूर कर लेल जा हलइ, आउ ऊ खुद्दे, लगऽ हलइ, कि छोटगर-छोटकर अव्यवस्था (disorder) पर ध्यान नयँ देवे के निश्चय कर लेलके हल । ई दिन के पियक्कड़ अदमी के छोटगर अव्यवस्था मानल जा हलइ । धीरे-धीरे लोग ढीला होवे लगलइ । लड़ाय-झगड़ा भी चालू हो गेलइ । तइयो बहुत अधिक भाग अभी पीयल नयँ हलइ, आउ नीसा में धुत्त होल अदमी के देखभाल करे वला बहुत हलइ । लेकिन रंगरेली मनावे वला बेहिसाब पी रहले हल । गाज़िन जीत रहले हल । ऊ आत्म-संतुष्टि के मुद्रा में अपन पटरा के बिछौना के पास इतरइते एन्ने-ओन्ने घुम रहले हल, जेकर निच्चे निडर होके  दारू स्थानांतरित कर लेलके हल, जेकरा ऊ समय से पहिलहीं बैरक के पिछुआनी में गुप्त जगह में ऊ बरफ तरे संजोगके रखले हलइ, आउ गाहक सब के अपना तरफ अइते देखके धूर्ततापूर्वक मंद-मंद मुसका रहले हल । ऊ खुद नीसा में नयँ हलइ आउ एक्को बून नयँ पिलके हल । ओकर मंशा उत्सव के बाद रंगरेली मनावे के हलइ, आउ पहिले ओकरा कैदी लोग के जेभी से सब्भे पइसा खाली करवा लेवे के हलइ । बैरक में गीत सुनाय पड़ रहले हल । लेकिन नीसा अब भावशून्यता के हद तक स्तंभित हो चुकले हल, आउ गीत से आँसू तक जादे दूरी नयँ हलइ । कइएक कैदी अपन-अपन बलालाइका के साथ, आउ भेड़ के खाल के कोट कन्हा पर डालले, एन्ने-ओन्ने घुम-फिर रहले हल, आउ भव्य मुद्रा में (बलालाइका  आउ गिटार के) तार छेड़ रहले हल ।  विशेष विभाग में आठ लोग के समूहगान (कोरस ) चालू होलइ । ओकन्हीं बलालाइका आउ गिटार के धुन के साथ निम्मन से गा रहले हल । कुछ हीं लोग शुद्ध लोकगीत गाब करऽ हलइ । हमरा एक्के गो आद पड़ऽ हइ, जे शानदार ढंग से गावल गेले हल –
कल साँझ के हम नवयुवती
भोज में गेलूँ हल ।
आउ हियाँ हम ई गीत के एगो नयका रूपांतर सुनलिअइ, जेकरा से हमरा पहिले पाला नयँ पड़ल हल ।  गीत के अंत में कुछ पंक्ति जोड़ देवल गेले हल -
हमर, नवयुवती के,
घर साफ कइल गेलइ ।
चम्मच धोलिअइ,
बंदागोभी के शोरबा उँड़ेल देलिअइ;
दरवाजा के चौखट धोलिअइ,
पकौड़ी तललिअइ ।
ओकन्हीं अधिकतर हमन्हीं हीं के (अर्थात् रूस के) तथाकथित "कैदी" गीत गावऽ हलइ, लेकिन सब्भे मशहूर । ऊ सब में एगो - "एक तुरी के बात हइ ..." - हास्यजनक हलइ, जेकरा में ई बात के वर्णन हलइ, कि कइसे पहिले एगो अदमी मौज में हलइ आउ अजादी से मालिक के समान जी रहले हल, लेकिन अभी ऊ जेल में पड़ गेलइ । वर्णन हलइ, कि कइसे ऊ "ब्लाँमाँज के शैम्पेन के साथ" [blancmange - (फ्रेंच) एगो मिठगर डेज़र्ट] स्वादिष्ट बनावऽ हलइ, लेकिन अभी –
दे हइ बंदागोभी हमरा पानी के साथ
आउ हम खा हिअइ, कि हमर कान तड़तड़ा हइ ।
एगो बहुत मशहूर (गीत) भी प्रचलन में हलइ -
बचपन में हम रहऽ हलिअइ बिलकुल मनमौजी
आउ हलइ हमर अपन कपिताल (पइसा) ।
कपिताल तो हम बचपने में खो देलिअइ
आउ अनिच्छा से जीए लगी पड़ गेलिअइ पाला में ।
इत्यादि । खाली हमन्हीं हीं "कपिताल" नयँ उच्चारण करऽ हलइ, बल्कि "कोपिताल", कपिताल के "कोपित्" (बचत करना) से व्युत्पन्न मानके; गमगीन गीत भी गइते जा हलइ । एगो तो बिलकुल शुद्ध कारागार के गीत, जेहो, लगऽ हइ, कि मशहूर हलइ –
आकाश में प्रभात के किरण चमके लगऽ हइ,
त ढोल सुबह के बज्जऽ हइ,
वृद्ध जन गेट खोलऽ हइ,
मुंशी हाजिरी लेवे लगी आवऽ हइ ।
हमन्हीं देवाल के पीछू देखाय नयँ दे हिअइ,
कि कइसे हमन्हीं हियाँ जीयऽ हिअइ;
भगमान, आकाशीय सृष्टिकर्ता, हमन्हीं साथ हइ,
हमन्हीं हियों नयँ नष्ट होबइ ।
इत्यादि । दोसरका आउ अधिक विषादजनक गीत हलइ, हलाँकि उत्तम लय के हलइ, जे शायद कोय निर्वासित द्वारा रचल गेले हल, मधुर आउ यथेष्ट अशुद्ध शब्द के साथ । ओकरा में से कुछ पंक्ति हमरा अभी आद हइ –
नयँ जइतइ नजर हमर ऊ देश पर कभी,
जाहाँ हमर जनम होलइ;
बिन दोष के कष्ट झेले के,
हमेशे लगी दंड के भागी होलिअइ ।
छत पर गरुड़ उल्लू घुघुअइतइ,
जंगल तक अवाज गुँजतइ,
दिल कराहे लगतइ, उदास हो जइतइ,
लेकिन हम हुआँ नयँ जा पइबइ ।
ई गीत हमन्हीं हीं अकसर गावल जा हलइ, लेकिन समूह गायन (chorus) के रूप में नयँ, बल्कि एकल गायन (solo) में । कोय, अपन फुरसत के बखत, बैरक के ड्योढ़ी पर चल जाय, बइठ जाय, सोचइ, अपन गाल के हाथ के सहारे टिका देइ आउ एकरा उच्च कृत्रिम स्वर (high falsetto) में गावे लगइ । सुनबहो, आउ कइसूँ तोर हृदय विदीर्ण हो जइतो । हमन्हीं बीच कुछ लोग के गला बहुत सुंदर हलइ ।  

एहे दौरान गोधूलिवेला शुरू होवे लगलइ। नशाखोरी आउ रंगरेली के बीच उदासी, विषाद आउ मदहोशी दर्दनाक रूप से दृष्टिगोचर हो रहले हल । एक घंटा पहिले जे हँस रहले हल, ऊ सीमा के बाहर पी लेला के बाद अब कहीं तो सुबकब करऽ हलइ । दोसर कुछ लोग दू तुरी झगड़ियो चुकले हल । तेसर कुछ लोग, पीयर आउ मोसकिल से अपन गोड़ पर खड़ी होवे लायक, बैरक-बैरक टगते-टुगते घुमते लड़े-झगड़े लगले हल । अइसनकन लोग, जेकन्हीं पीयल हालत में आवेशपूर्ण व्यवहार नयँ करऽ हलइ, व्यर्थ के दोस्त लोग के खोज रहले हल, ताकि ओकन्हीं के सामने दिल खोलके बात कर सकइ आउ अपन पीयल हालत के दुख रो-रोके उँड़ेल के रख देइ । ई सब गरीब लोग खुशी मनावे लगी चाहऽ हलइ, महान उत्सव के समय खुशी-खुशी गुजारे लगी - आउ, हे भगमान ! केतना कष्टकारी आउ उदासी भरल ई लगभग हरेक कोय लगी दिन हलइ । हरेक कोय एकरा अइसे गुजार देलकइ, जइसे कोय प्रत्याशा में ठगा गेल होवे । पित्रोव दू तुरी हमरा भिर दौड़ल अइलइ । ऊ दिन भर बहुत कम्मे-कम्मे पिलकइ आउ लगभग बिलकुल नयँ नीसा में हलइ । लेकिन ऊ सबसे अंतिम घड़ी तक कुछ के तो इंतजार कर रहले हल, कि पक्का ऊ होतइ, कुछ तो असाधारण, उत्सवपूर्ण, खुशी भरल । हलाँकि ओहो एकरा बारे कुछ नयँ बोललइ, लेकिन ओकर आँख में ई बात दृष्टिगोचर हो रहले हल । ऊ बिन कोय थकावट के एक बैरक से दोसरा बैरक के चक्कर लगाब करऽ हलइ । लेकिन अइसन कुछ विशेष नयँ होलइ आउ ओकरा कुछ नयँ देखे में अइलइ, सिवाय नीसाखोरी, नीसा के अर्थहीन अपशब्द आउ नीसा के चलते दिमाग के भावशून्यता । सिरोत्किन भी नयका लाल कमीज में बैरक से बैरक भटक रहले हल, सुंदर, नहाल-धोवल, आउ शांत आउ बुतरू नियन मानूँ कुछ तो प्रत्याशा कर रहले हल । धीरे-धीरे बैरक में स्थिति असह्य आउ घृणास्पद हो रहले हल । वास्तव में, बहुत कुछ हास्यजनक हलइ, लेकिन हम कइसूँ उदास अनुभव कर रहलिए हल आउ ओकन्हीं सब्भे पर हमरा तरस आ रहले हल, ओकन्हीं बीच हमरा तकलीफदेह आउ दमघोंटू लग रहले हल । आउ अइकी दू गो कैदी आपस में विवाद कर रहले ह, कि कउन केकरा  अपन खरचा से खिलइतइ-पिलइतइ । स्पष्टतः ओकन्हीं बहुत देरे से विवाद करब करऽ हइ आउ एकरा पहिले दुन्नु लड़बो कइलके हल । एगो के खास करके दोसरा के विरुद्ध कोय तो लम्मा समय के गुर्रह (grudge) हइ । ओकर शिकायत हइ, हकलइते बोलऽ हइ, आउ ई साबित करे के प्रयास करऽ हइ, कि ऊ ओकरा साथ बेईमानी कइलकइ - भेड़ के खाल के कोय अधकटिया कोट बेच देल गेले हल, कभी तो कोय तो पइसा नुका लेवल गेले हल, पिछले साल पिशितोत्सव (carnival) के दौरान । एकरा अलावे, कुछ दोसरो बात हलइ ... दोषारोपण करे वला - उँचगर आउ हट्ठा-कट्ठा छोकरा हइ, समझदार, शांत, लेकिन जब नीसा में रहऽ हइ - त दोस्ती करे आउ अपन शोक ओकरा सामने उँड़ेल देवे के प्रयास करऽ हइ । ऊ बुरा-भला सुनावऽ हइ आउ अपन दावा पेश करऽ हइ, मानूँ अपन प्रतिद्वंद्वी से बाद में आउ अधिक दृढ़ शांति के इच्छा हइ । दोसरा - मोटगर, गठीला, नटगर, गोल चेहरा वला, धूर्त आउ चालबाज हइ । ऊ शायद अपन साथी के अपेक्षा जादे पी लेलके हल, लेकिन नीसा में थोड़हीं सनी हलइ । ऊ चरित्रवान हइ आउ धनवान के रूप में मशहूर हइ, लेकिन ओकरा कोय कारणवश अभी अपन जोशीला दोस्त के गोस्सा नयँ देलाना लाभदायक हइ, आउ ऊ ओकरा कलाली वला (taverner) हीं लेके जा हइ; दोस्त ई बात पर जोर दे हइ, कि ओकरा अपन पइसा से अपन साथी के पिलावे के चाही आउ ई ओकर फर्ज हइ, "अगर तूँ ईमानदार अदमी हकहीं" । कलाली वला खरीदार लगी कुछ आदर के साथ आउ जोशीला दोस्त के जरी नफरत के साथ, काहेकि ऊ अपन पइसा के नयँ पीये वला हइ, बल्कि ओकरा पिलावल जाय वला हइ, दारू लावऽ हइ आउ गिलास में ढारऽ हइ ।

"नयँ, स्तेपका, ई तोरा करे के चाही", जोशीला दोस्त बोलऽ हइ, ई देखते कि ऊ जीत गेले ह, "काहेकि ई तोर फर्ज हउ ।"
"हम तो तोरा लगी अपन जीभ में घट्ठा नयँ डाले वला हिअउ !" स्तेपका जवाब दे हइ ।
"नयँ, स्तेपका, ई वकवास हउ", पहिलौका जोर दे हइ, कलाली वला हीं से गिलास लेते, "काहेकि तूँ हमर पइसा धारऽ हीं; तोरा लाज-गरान नयँ हउ आउ तोरा हीं आँख तो तोर नयँ हउ, बल्कि उधार लेल हउ ! नीच, स्तेपका, एहे तूँ हकँऽ; एक्के शब्द नीच !"
"काहे लगी पिनपिनाब करऽ हीं, दारू छलका देलहीं ! तोर स्वागत कइल जा रहलो ह आउ देल जा रहलो ह, त पी !" कलाली वला जोशीला दोस्त पर चिल्ला हइ, "तोरा लगी हम बिहान तक खड़ी नयँ रहबउ !"
"हम पी लेबउ, चिल्ला हीं काहे लगी ! क्रिस्मस उत्सव के शुभेच्छा, स्तेपान दोरोफ़ेयिच !" गिलास अपन हाथ में सँभालले ऊ आदरपूर्वक आउ जरी झुकके स्तेपका के संबोधित कइलकइ, जेकरा आधे मिनट पहिले नीच कहलके हल । "सो साल तक स्वस्थ रह, आउ जे बीत गेलउ, ओकर गिनती मत कर !" ऊ पिलकइ, गला साफ कइलकइ आउ अपन मुँह पोंछ लेलकइ । "पहिले भाय लोग, हम बहुत दारू चढ़ा ले हलिअइ", ऊ गंभीर अकड़ के साथ टिप्पणी कइलकइ, मानूँ सबके संबोधित करते आउ कोय विशेष व्यक्ति के नयँ, "लेकिन अभी तो, जानऽ हो, हमर उमर हो चलले ह । धन्यवाद, स्तेपान दोरोफ़ेयिच ।"
"धन्यवाद के जरूरत नयँ ।"
"तइयो हम तोरा से कहबउ, स्तेपका; आउ एकरा अलावे, कि तूँ हमरा सामने बड़गो नीच नियन हरक्कत करऽ हीं, हम तोरा से कहबउ ..."
"आउ हम तोरा अइकी, ए पियक्कड़, कहबउ", सहनशक्ति खोवल स्तेपका बीच में बोललइ, "सुन आउ हमर सब शब्द पर विचार कर - त अइकी पूरे संसार के आधा-आधा कर देल जाव; आधा संसार तोर आउ हमरा लगी आधा संसार । जो आउ फेर हमरा अपन चेहरा मत दिखाव । हम ऊब गेलियो ह तोरा से !"
"त पइसवा हमरा वापिस नयँ देम्हीं ?"
"अभी तोरा कइसन पइसा चाही, पियक्कड़ अदमी ?"
"ए, ऊ संसार में खुद देवे लगी अइम्हीं - लेकिन हम नयँ लेबउ ! हमन्हीं के पइसा मेहनत के कमाय हइ, पसेना के कमाय के, आउ हाथ-गोड़ में घट्ठा पड़ गेल कमाय के । तोरा ऊ संसार में तूँ हमर पाँच कोपेक लगी तकलीफ झेले पड़तउ ।
"ओह, शैतान हीं जो ।"
"अरे जाय लगी टिटकारी की पारऽ हीं; अभी तक गाड़ी में जोतल नयँ हउ ।"
"अरे चल, चल !"
"नीच कहीं के !"
"बदमाश कहीं के !"
आउ फेर से गारी-गल्लम चालू हो गेलइ, पीए के पहिले के अपेक्षा आउ जादहीं ।

आउ अइकी पटरा के बिछौना पर अलगे-अलगे दूगो दोस्त बइठल हइ - एगो उँचगर, मोटगर, मांसल, वास्तविक कसाई; चेहरा ओकर लाल हइ । ऊ लगभग कन रहले ह, काहेकि ऊ बहुत मर्माविष्ट हइ । दोसरा - कमजोर, दुब्बर-पातर, छरहरा, लमगर नाक वला, जेकरा से मानूँ कुछ तो बून-बून टपकऽ हइ, आउ छोटगर-छोटगर सूअर नियन आँख, जमीन तरफ एकटक स्थिर हइ । ई अदमी राजनीतिक आउ शिक्षित हइ; कभी किरानी हलइ आउ अपन दोस्त के साथ जरी घमंड से व्यवहार करऽ हइ, जे ओकरा गुप्त रूप से बहुत अप्रिय लगऽ हइ । ओकन्हीं दुन्नु दिन भर साथे दारू पिलकइ ।

"ऊ हमरा साथ अइसन साहस कइलकइ !" मांसल दोस्त चिल्ला हइ, किरानी के सिर के अपन बामा बाँह से जोर से हिलइते, जेकरा से ऊ एकरा पकड़ले हलइ । "साहस कइलकइ" - मतलब प्रहार कइलकइ । मांसल दोस्त, जे खुद एगो सर्जेंट रहले हल, गुप्त रूप से अपन दुबराल दोस्त से ईर्ष्या करऽ हलइ, आउ ओहे से ओकन्हीं दुन्नु, एक दोसरा के सामने, भाषा सौष्ठव के प्रयोग के प्रदर्शन करऽ हइ ।
"आउ हम तोरा कहऽ हिअउ, कि तूहूँ सही नयँ हकहीं ...", हठधर्मी से किरानी शुरू करऽ हइ, दृढ़तापूर्वक ओकरा दने अपन आँख नयँ उठइते आउ शान से जमीन दने एकटक देखते ।
"ऊ हमरा साथ अइसन साहस कइलकइ, सुन्नऽ हीं तूँ !" दोस्त बात काटते बोलऽ हइ, अपन प्रिय दोस्त के आउ जादे खींचते । "तूँहीं एगो अकेल्ले अब हमरा लगी ई पूरे दुनियाँ में रह गेलहीं हँ, सुन्नऽ हीं तूँ ? ओहे से हम खाली एगो तोरे बोलऽ हिअउ - ऊ हमरा साथ अइसन साहस कइलकइ ! ..."
"आउ हम तोरा फेर से कहऽ हिअउ - अइसन तुच्छ दलील, प्यारे दोस्त, तोर दिमाग लगी खाली लज्जा के बात होतउ !" क्षीण आउ नम्र स्वर में किरानी एतराज करऽ हइ, "आउ बेहतर ई बात स्वीकार करहीं, प्यारे दोस्त, ई पूरा नीसाखोरी तोरे अप्पन अस्थिरता के चलते हकउ ..."
मांसल दोस्त, थोड़े सन झटका से पीछू तरफ हटते, जड़भाव से अपन पीयल आँख से आत्मसंतुष्ट नटघुरन किरानी दने एकटक देखऽ हइ, आउ अचानक, बिलकुल अप्रत्याशित ढंग से, पूरा जोर लगाके अपन बड़गर मुक्का से किरानी के छोटका चेहरा पर प्रहार करऽ हइ । आउ एकरे साथ दिन भर के दोस्ती के अंत हो जा हइ । प्यारा दोस्त बेहोश होके पटरा के निच्चे लुढ़क जा हइ ।

आउ अइकी प्रवेश करऽ हइ हमन्हीं के बैरक में, विशेष विभाग के एगो हमर परिचित, एगो असीम भलमानुस आउ हँसमुख व्यक्ति, समझदार, बिन कोय हानि पहुँचावे वला मजाकिया आउ देखे में असाधारण रूप से सीधा-सादा । ई ओहे हइ, जे हमर जेल में पहिलौका दिन, भनसाघर में दुपहर के भोजन के बखत, पूछ रहले हल, कि धनसेठ किसान काहाँ परी रहऽ हइ, विश्वास देलइलकइ, कि ऊ "महत्त्वाकांक्षी" हइ, आउ हमरा साथ चाह पिलके हल । ऊ कोय चालीस बरिस के हइ, ओकर निचला होंठ असाधारण रूप से मोटगर आउ नाक जादे मांसल, आउ कटहा से भरल हइ । ओकर हाथ में बलालाइका हइ, जेकर ऊ बेपरवाही से तार छेड़ रहले ह । ओकर पीछू-पीछू आ रहले हल, मानूँ ओकर अनुचर, असाधारण रूप से छोटगर कैदी, बड़गर माथा वला, जेकरा बारे अभी तक हम बहुत कम जानऽ हलइ । लेकिन दोसरो कोय ओकरा पर कोय ध्यान नयँ दे रहले हल । ऊ एक प्रकार के विचित्र, अविश्वासी, हमेशे चुपचाप आउ गंभीर अदमी हलइ; दर्जी के दोकान में काम करऽ हलइ, आउ स्पष्टतः अपन पृथक् जिनगी गुजारे आउ केकरो से कुछ संबंध नयँ रक्खे के प्रयास करऽ हलइ । अभिए, नीसा में धुत्त, ऊ वर्लामोव के साथ छाया नियन चिपकल हलइ । ऊ भयंकर उत्तेजना में ओकरा पिछुआऽ रहले हल, हाथ लहरा रहले हल; देवाल आउ पटरा के बिछौनमन पर मुक्का मार रहले हल आउ लगभग कन रहले हल । वर्लामोव, लगऽ हलइ, ओकरा पर कोय ध्यान नयँ देब करऽ हलइ, मानूँ ऊ ओकर बगली में नयँ हलइ । ई ध्यान देवे लायक बात हइ, कि पहिले ई दुन्नु अदमी के एक दोसरा से कोय संबंध नयँ हलइ; ओकन्हीं बीच काम आउ चाल-चलन में कुच्छो समानता नयँ हलइ । आउ ओकन्हीं दुन्नु अलग-अलग विभाग के हलइ आउ अलग-अलग बैरक में रहऽ हलइ । छोटका कैदी के नाम हलइ - बुलकिन ।

वर्लामोव हमरा देखके मंद-मंद मुसकइलइ । हम स्टोव बिजुन अपन पटरा के बिछौना पर बइठल हलिअइ । ऊ हमरा भिर से थोड़े सन दूर खड़ी हलइ, कुछ तो सोचलकइ, थोड़े डगमगइलइ, आउ अनियमित कदम के साथ हमरा भिर अइलइ, कइसूँ पूरे शरीर के अकड़के झुकइते आउ जरी सुन तार छेड़ते, आउ बूट से हलके-हलके फर्श के थपथपइते, संगीतात्मक धुन में बोललइ -
गोल चेहरा वली, गोर चेहरा वली,
गावऽ हइ, बुलबुल नियन,
प्रेयसी हम्मर;
ऊ चिक्कन गम्मन (गाउन) में,
उत्तम सेट में,
बहुत सुंदर लगऽ हइ ।
ई गीत, लगलइ, बुलकिन के बहुत उत्तेजित कर देलकइ; ऊ अपन हाथ लहरइलकइ, आउ सबके संबोधित करते चिल्लाय लगलइ –
"ई सब कुछ, भाय लोग, बिलकुल झूठ बोल रहले ह ! एक्को शब्द ऊ सच नयँ बोलतो, सब कुछ झूठ बोलऽ हको !"
"बुजुर्ग अलिक्सांद्र पित्रोविच के !" धूर्त हँसी के साथ हमर आँख में आँख डालके वर्लामोव बोललइ, आउ लगभग हमरा चुंबन लेवे लगी बढ़लइ । ऊ जरी पीयल हलइ । अभिव्यक्ति "बुजुर्ग फलना के ...", मतलब, "फलना के हमर आदर", पूरे साइबेरिया में सामान्य जनता द्वारा प्रयोग कइल जा हइ, बल्कि एकर संबंध बीस साल के व्यक्ति लगी काहे नयँ होवइ । "बुजुर्ग" शब्द कुछ तो आदरसूचक हइ, सम्मानसूचक, चापलूसी सूचक भी ।
"की वर्लामोव, की हाल-चाल हको ?"
"कइसूँ दिन कट रहले ह । आउ जे कोय उत्सव के नाम पर खुश होवऽ हइ, ऊ सुबहीं से पीके धुत्त हो जा हइ; अपने हमरा माफ करथिन !" कुछ संगीतमय वाणी में वर्लामोव बोललइ ।
"बिलकुल झूठ बोलऽ हइ, फेर से ऊ बिलकुल झूठ बोलऽ हइ !" बुकलिन चिल्लइलइ, कोय प्रकार के उदासी में ऊ बिछौना पर मुक्का मारते । लेकिन ऊ मानूँ ठान लेलके हल कि ओकरा पर जरिक्को ध्यान नयँ देतइ, आउ एकरा में असाधारण रूप से बहुत हास्योत्पादकता हलइ, काहेकि बुलकिन वर्लामोव से बिलकुल बिन कोय कारण सुबहे से चिपकल हलइ, ई बात लगी कि वर्लामोव "हमेशे झूठ बोलऽ हइ", जइसन कि ओकरा कोय कारणवश प्रतीत होवऽ हलइ । ऊ ओकर पीछू-पीछू भटक रहले हल, छाया नियन, ओकर हरेक शब्द से चिपक रहले हल, अपन हाथ घायल कर रहले हल, देवाल आउ बिछौना पर प्रहार कइला के चलते ओकरा से लगभग खून निकसे लगले हल, आउ कष्ट अनुभव करऽ हलइ, स्पष्टतः ई धारणा से कष्ट अनुभव करऽ हलइ, कि वर्लामोव "हमेशे झूठ बोलऽ हइ !" अगर ओकर सिर में केश होते हल, त ऊ ओकरा शायद गम के मारे उखाड़ लेते हल । जइसे ऊ वर्लामोव के व्यवहार के जवाब देवे के खुद पर जिमेवारी उठा लेलके हल, जइसे वर्लामोव के सब्भे खामी ओकर अंतःकरण के भार हलइ । लेकिन एहे तो बात हलइ, कि ऊ (वर्लामोव) ओकरा तरफ देखवो नयँ करऽ हलइ ।     

"हमेशे झूठ बोलऽ हइ, हमेशे झूठ बोलऽ हइ, हमेशे झूठ बोलऽ हइ ! ओकर एक्को शब्द के कोय मतलब नयँ रहऽ हइ !" बुलकिन चिल्ला हलइ ।
"लेकिन एकरा से तोरा की मतलब हउ ?" कैदी लोग हँसते जवाब देलकइ ।
"हम अपने के, अलिक्सांद्र पित्रोविच, बतावऽ हिअइ, कि हम बहुत सुंदर हलिअइ आउ लड़कियन हमरा पर बहुत फिदा हलइ ...", बिन कोय कारण के अचानक वर्लामोव शुरू कइलकइ ।
"झूठ बोलऽ हइ ! फेर झूठ बोलऽ हइ !" एक प्रकार के चीख के साथ बुलकिन बीच में टोकऽ हइ ।
कैदी लोग ठहाका मारऽ हइ ।
"आउ हम ओकन्हीं के सामने इतरइअइ - हमरा पास लाल कमीज रहइ, आउ मखमली शरोवारी (ढीला-ढाला पैजामा); हम काउंट बुतिलकिन जइसन पड़ल रहिअइ, मतलब श्वेद (Swede) जइसन पीयल, एक शब्द में - जे कुछ पसीन करिअइ !"
"झूठ बोलऽ हइ !" बुलकिन दृढ़तापूर्वक पुष्टि करऽ हइ ।
"आउ ऊ जमाना में हमरा हीं बाऊ जी के दुमंजिला पत्थल के मकान हलइ । हूँ, दुइए साल में हम दू मंजिल के उड़ा देलिअइ, आउ हमरा पास खाली बिन खंभा के दरवाजा रह गेलइ । पइसा की हइ - कबूतर - उड़के अंदर आवऽ हइ आउ फेर से उड़के चल जा हइ ।"
"झूठ !" आउ अधिक दृढ़तापूर्वक बुलकिन पुष्टि करऽ हइ ।
"त अइकी हम होश में आके हियाँ से अपन रिश्तेदार लोग के अश्रुपूर्ण पत्र भेजलिअइ; ई सोचके कि हमरा कुछ पइसा भेजते जइता । काहेकि, लोग के कहना हलइ, कि हम अपन माता-पिता के विरुद्ध गेलिए हल । अनादर कइलिअइ ! अइकी पत्र भेजला अब सतमा साल बीत रहले ह ।"
"आउ अभी तक कोय उत्तर नयँ मिललो ?" हँसते-हँसते हम पुछलिअइ ।
"हाँ, नयँ", अचानक खुद हँसते आउ लगातार अपन नाक हमर चेहरा के नगीच लइते ऊ उत्तर देलकइ । "आउ हमर, अलिक्सांद्र पित्रोविच, हियाँ परी एगो प्रेमिका हइ ..."
"तोहर ? प्रेमिका ?"
"ओनुफ़्रियेव हाले में हमरा से बोललइ - हमर तो चेचक के दाग भरल चेहरा वली हइ, निम्मन नयँ हइ, तइयो ओकरा पास बहुत सारा पोशाक हइ; लेकिन तोर तो सुत्थर हउ, लेकिन कंगाल, बोरिया लेले घुम्मऽ हउ ।"
"त की वास्तव में ई सही हको ?"
"वास्तव में ऊ कंगाल हइ !" ऊ उत्तर देलकइ आउ अश्रव्य हँसी में हँस पड़लइ; बैरक में भी लोग हँस पड़लइ । वस्तुतः सब कोय जानऽ हलइ, कि कोय तो कंगाल औरत के साथ ओकर संबंध हलइ आउ आधा साल में ओकरा कुल्लम दस कोपेक देलके हल ।
"हूँ, त एकरा से की होलइ ?" हम पुछलिअइ, कइसूँ ओकरा से आखिर छुटकारा पावे लगी ।
ऊ चुप रहलइ, मधुर दृष्टि से हमरा दने देखलकइ आउ कोमल स्वर में बोललइ –
"त एहे कारण से की अपने आधा बोतल के अनुग्रह नयँ करथिन ? हम तो वस्तुतः, अलिक्सांद्र पित्रोविच, आझ खाली चाय पीके गुजरलिए ह", पइसा स्वीकार करते ऊ कोमल भाव से बात आगू बढ़इलकइ, "आउ हम एतना चाय गटक गेलिए ह, कि हमरा साँसो लेवे में दिक्कत होवऽ हइ, आउ हमर पेटवा में अइसे छलक रहले ह, जइसे बोतलवा में ..."

जब ऊ पइसा ले रहले हल, त एहे दौरान बुलकिन के नैतिक व्याकुलता, लगऽ हलइ, अंतिम सीमा तक पहुँच गेले हल । ऊ हताश अदमी नियन अंगविक्षेप कर रहले हल, आउ लगभग कन्ने-कन्ने के हालत में पहुँच गेले हल ।
"सज्जन लोग !" ऊ क्रोधावेश में पूरे बैरक के संबोधित करते चिल्लइलइ, "देखते जाहो ओकरा तरफ ! हमेशे झूठ बोलऽ हइ ! ऊ चाहे जे कुछ बोलइ, सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ खाली झूठ बोलऽ हइ !"
"लेकिन एकरा से तोरा की मतलब हउ ?" ओकर क्रोध पर अचंभित होके सब कैदी ओकरा तरफ चिल्ला हइ, "बेवकूफ अदमी !"
"हम ओकरा झूठ नयँ बोले देबइ !" अपन आँख चमकइते आउ पटरा के बिछौना पर पूरा जोर लगाके प्रहार करते बुलकिन चिल्ला हइ, "हम ई नयँ चाहऽ हिअइ, कि ऊ झूठ बोलइ !"
सब कोय ठठाके हँस्सऽ हइ । वर्लामोव पइसा ले हइ, आदर से हमरा दने झुक्कऽ हइ, आउ मुँह बनइते बैरक से लपकल रवाना हो जा हइ, जाहिर हइ, कलाली दने । आउ हियाँ परी, लगऽ हइ, ऊ पहिले तुरी बुलकिन दने ध्यान दे हइ ।
"अच्छऽ, चल, चल !" चौखट भिर रुकते ऊ ओकरा से बोलऽ हइ, जइसे ऊ ओकरा लगी कोय बात के वास्तव में जरूरत हलइ । "ए छड़ी के मूठ !" ऊ घृणापूर्वक ओकरा से बोलऽ हइ, व्यथित बुलकिन के आगू जाय दे हइ आउ फेर से बलालाइका के तार छेड़े लगऽ हइ ...

लेकिन ई घालमेल के वर्णन काहे लगी कइल जाय ! आखिरकार ई दमघोंटू दिन समाप्त हो जा हइ । कैदी लोग पटरा के बिछौना पर गहरा नीन में सुत जइते जा हइ । नीन में ओकन्हीं आउ जादहीं बोलऽ आउ बड़बड़ा हइ, बनिस्बत आउ दोसर रात के । कहीं-कहीं लोग मयदान पर बइठल हइ । लम्मा समय से प्रतीक्षित उत्सव गुजर गेलइ । बिहान फेर से दैनिक जिनगी, फेर से काम पर जाना ...

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