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Wednesday, March 30, 2016

रूसी उपन्यास "कालापानी" ; भाग-2; अध्याय-2: अस्पताल (2)



कालापानी
(साइबेरिया में जेल के जिनगी)

भाग-2; अध्याय-2: अस्पताल (2)

डाक्टर लोग वार्ड के फेरी (राउंड) सुबह में लगइते जा हलइ; दस आउ एगारह के बीच ओकन्हीं सब साथे हमन्हीं हीं अइते जा हलइ, मुख्य डाक्टर के साथ में, आउ ओकन्हीं से पहिले, डेढ़ घंटा पहिले, हमन्हीं के वार्ड में फेरी लगी आवऽ हलइ निवासी डाक्टर (resident doctor, intern)। ऊ बखत हमन्हीं हीं निवासी डाक्टर एगो नवयुवक डाक्टर हलइ, अपन काम के निम्मन जानकार, स्नेहमय, मिलनसार, जेकरा कैदी लोग बहुत मानऽ हलइ आउ ओकरा में खाली एक्के कमी पइते गेलइ - "बहुत जादे सीधा" । वास्तव में, ऊ कइसूँ अल्पभाषी हलइ, मानूँ हमन्हीं साथ सकपका जा हलइ, ओकर चेहरा लगभग लाल हो जा हलइ, रोगी लोग के पहिले निवेदन पर खुराक बदल दे हलइ आउ, लगऽ हइ, कि ओकन्हीं के निवेदन पर दवाय के नुसखा भी लिक्खे लगी तैयार हलइ । लेकिन, ऊ एगो निम्मन नवयुवक व्यक्ति हलइ । ई बात स्वीकार कइल चाही, कि रूस में कइएक डाक्टर के सामान्य जनता के प्रेम आउ आदर मिल्लऽ हइ, आउ ई, जेतना कि हम नोटिस कइलिअइ, बिलकुल सच हइ । हम जानऽ हिअइ, कि हमर शब्द विरोधाभास लगतइ, खास करके रूसी सामान्य जनता के चिकित्साशास्त्र आउ विदेशी औषधि के मामले में सार्वत्रिक अविश्वास (universal mistrust) पर विचार कइला पर । वास्तव में, एगो साधारण अदमी, कइएक साल से कोय बहुत गंभीर बेमारी से ग्रस्त, कोय ओझा औरत से चाहे अपन घरेलू स्वदेशी दवाय (जेकर मजाक बिलकुल नयँ उड़ावल जा सकऽ हइ) से इलाज करइतइ, बनिस्बत डाक्टर भिर जाय के चाहे अस्पताल में भरती होवे के । लेकिन, एकरा सिवाय, हियाँ एगो अत्यंत महत्त्वपूर्ण परिस्थिति हइ, जेकर चिकित्साशास्त्र से कोय बिलकुल संबंध नयँ हइ, अर्थात्, सब सामान्य जनता के हरेक के प्रति सार्वत्रिक अविश्वास, जेकरा पर प्रशासनिक मुहर हइ; एकरा सिवाय, लोग भयभीत आउ पूर्वाग्रही (prejudiced) रहऽ हइ अस्पताल के विरुद्ध कइएक तरह के भय से, कहानी से, जे अकसर असंगत होवऽ हइ, लेकिन कभी-कभी ओकर अपन आधार होवऽ हइ (अर्थात् वास्तविकता पर आधारित रहऽ हइ) । लेकिन, मुख्य बात ई हइ, कि ओकरा भयभीत करऽ हइ - अस्पताल के जर्मन नियम [1], बेमारी के पूरे अवधि के दौरान चारो तरफ अनजान लोग, पथ्य के मामले में सख्ती, फ़ेल्डशर आउ डाक्टर के आग्रहपूर्ण कठोरता (persistent severity) के कहानी, लाश के चीर-फाड़ करना आउ अँतड़ी निकासना आदि आदि । एकरा अलावे, लोग तर्क करऽ हइ, कि कुलीन लोग इलाज करतइ, काहेकि डाक्टर तो आखिर कुलीन लोग ही होवऽ हइ । लेकिन डाक्टर के साथ नगीची परिचय हो गेला पर (हलाँकि बिन कोय अपवाद के नयँ, लेकिन अधिकतर हालत में) ई सब भय बहुत जल्दीए गायब हो जा हइ, जे, हमर विचार से, सीधे हमन्हीं के डाक्टर के आदर से संबंधित हइ, मुख्य रूप से नवयुवक लोग के । ओकन्हीं में से अधिकतर लोग आदर अर्जित करे में सफल हो जा हइ आउ सामान्य जनता के प्रेम भी । हम कम से कम ऊ बारे लिख रहलिए ह, जे हम खुद देखलिए आउ अनुभव कइलिए ह आउ कइएक जगह, आउ ई बात सोचे के कोय आधार नयँ हइ, कि दोसरकन जगहवन में बहुत अकसर भिन्न बात देखे में अइतइ । वस्तुतः, कुछ कोना में डाक्टर लोग घूस ले हइ, अपन अस्पताल से बहुत अधिक लाभ उठावऽ हइ, रोगी लोग के लगभग उपेक्षा कर दे हइ, हियाँ तक कि चिकित्साशास्त्र के ज्ञान बिलकुल भुला दे हइ । ई बात अभियो हइ; लेकिन हम बात कर रहलिए ह बहुसंख्यक (डाक्टर) के बारे, चाहे बेहतर कहल जाय, ऊ मनोबल के बारे, ऊ प्रवृत्ति के बारे, जे अभी, हमन्हीं के काल में, चिकित्साशास्त्र में कार्यान्वित कइल जा हइ । ओहे, कर्तव्य के त्यागी, भेड़ के समूह में भेड़िया, अपन स्पष्टीकरण में चाहे जे प्रस्तुत करइ, चाहे जइसे स्पष्टीकरण देइ, मसलन, बल्कि वातावरण के चलते, जेकर ओकन्हीं अपन तरफ से खुद्दे शिकार होवऽ हइ, हमेशे गलत होतइ, खास करके अगर एकर साथ-साथ ओकन्हीं मानवप्रेम भी खो देइ । आउ रोगी के प्रति मानवप्रेम, दया, भ्रातृ सहानुभूति कभी-कभी ओकरा लगी सब्भे दवाय के अपेक्षा अधिक आवश्यक होवऽ हइ । अब समय आ गेले ह कि वातावरण के मामले में हमन्हीं के भावशून्य शिकायत (apathetic complaints) रोक देवे के चाही, कि एकर हमन्हीं शिकार होलिअइ । ई बात मानऽ हिअइ, कि ई हमन्हीं के बहुत कुछ शिकार बनावऽ हइ, लेकिन पूरा नयँ, आउ अकसर कोय धूर्त आउ अपन काम के जानकार चतुराई से ई वातावरण के प्रभाव से नयँ खाली अपन कमजोरी छिपावऽ हइ, बल्कि अकसर अपन नीचता के भी, खास करके अगर ऊ निम्मन से बोल चाहे लिख सकऽ हइ । लेकिन, हम फेर से विषय से विचलित हो गेलिअइ; हम खाली कहे लगी चाहऽ हलिअइ, कि सामान्य जनता चिकित्सा प्रशासन के प्रति अधिक अविश्वासी आउ द्वेषी होवऽ हइ, नयँ कि डाक्टर के प्रति । ओकन्हीं वास्तव में कइसन हइ, ई जान लेला पर, ऊ तेजी से अपन बहुत कुछ पूर्वाग्रह भूल जा हइ । अभियो तक हमन्हीं के अस्पताल के दोसरे परिस्थिति अधिकतर मामले में सामान्य जनता के दिल के मोताबिक नयँ हइ, अभियो तक अपन नियम से हमन्हीं के सरलहृदय जनता के आदत के द्वेषी हइ आउ जनता के पूरा विश्वास आउ आदर प्राप्त करे के स्थिति में नयँ हइ । अइसन कम से कम हमरा कुछ अपन खुद के विचार (impressions) से लगऽ हइ ।

हमन्हीं के निवासी डाक्टर (वार्ड डाक्टर) साधारणतः हरेक रोगी के सामने रुक जा हलइ, गंभीरतापूर्वक आउ अत्यंत ध्यानपूर्वक ओकरा जाँचऽ हलइ आउ पूछताछ करऽ हलइ, दवाय के नुसखा आउ खुराक निर्धारित करऽ हलइ । कभी-कभी ऊ खुद नोटिस करऽ हलइ, कि रोगी कइसनो रोग से ग्रस्त नयँ हइ; लेकिन चूँकि कैदी काम से सुस्ताय लगी अइले ह, चाहे  खाली पटरा के बिछौना के स्थान पर, गद्दा पर सुत्ते लगी अइले ह, आउ आखिरकार, तइयो गरम कमरा में, आउ सरद कोर-द-गार्द (गार्ड-हाउस) में नयँ, जाहाँ परी पीयर आउ क्षीण अभियुक्त सब के ठूँस-ठूँसके रक्खल जा हइ (हमन्हीं हीं अभियुक्त लोग लगभग हमेशे, समुच्चे रूस में, पीयर आउ क्षीण रहऽ हइ - जे ई बात के लक्षण हइ, कि ओकन्हीं के दशा आउ आंतरिक स्थिति लगभग हमेशे, दंड सुनावल लोग के अपेक्षा अधिक कष्टकारी होवऽ हइ), त हमन्हीं के निवासी डाक्टर अराम से ओकन्हीं लगी कइसनो febris catarhalis [फ़ेब्रिस कातारालिस (लैटिन) - सरदी वला बोखार] लिख दे हलइ आउ कभी-कभी सप्ताहो भर हुआँ ठहरे लगी दे दे हलइ । हमन्हीं हीं सब कोय ई febris catarhalis पर हँस्सऽ हलइ । सब कोय निम्मन से जानऽ हलइ, कि ई हमन्हीं हीं मानल बात हइ, डाक्टर आउ रोगी के बीच कइसनो परस्पर सहमति के अनुसार, स्वांग कइल रोग के द्योतित करे लगी एगो फरमूला; "शूल" (पेचिश), जइसन कि खुद कैदी लोग febris catarhalis के अनुवाद करऽ हलइ । कभी-कभी रोगी सरलहृदयता के नजायज फयदा उठावऽ हलइ आउ तब तक पड़ल रह जा हलइ, जब तक कि ओकरा बलजबरी निकासके भगा नयँ देवल जा हलइ । तखने हमन्हीं के निवासी डाक्टर के देखे लायक रहऽ हलइ -  मानूँ भीरू बन जा हलइ, मानूँ रोगी के सीधे कहे में शरमाऽ हलइ, कि ऊ जल्दी से चंगा हो जाय आउ अस्पताल से छुट्टी लगी खुद कहइ, हलाँकि ओकरा पूरा अधिकार हलइ, बिन कइसनो बातचीत आउ मक्खनबाजी के, सीधे आउ बिन कोय तकल्लुफ के, ओकरा अस्पताल से छुट्टी दे देवे के, ओकर चार्ट पर लिखके - "sanat est" [सानात एस्त (लैटिन) - स्वस्थ हइ] । ऊ शुरू-शुरू ओकरा इशारा करइ, बाद में मानूँ समझावइ - "की अब समय नयँ हो गेलो ह ? तूँ तो अभी लगभग भला-चंगा हकऽ, वार्ड में भीड़-भाड़ हको", आदि आदि, तब तक, जब तक कि खुद रोगी के शरम नयँ आ जाय आउ ऊ खुद आखिरकार अस्पताल से छुट्टी लगी नयँ कहइ । प्रधान डाक्टर हलाँकि मानवप्रेमी आउ ईमानदार व्यक्ति हलइ (ओकरो रोगी लोग बहुत मानऽ हलइ), लेकिन निवासी डाक्टर के अपेक्षा कहीं अधिक कठोर आउ दृढ़संकल्प हलइ, हियाँ तक कि कोय मौका पर दृढ़ कठोरता बरतऽ हलइ, आउ एकरा लगी ओकरा हमन्हीं हीं कइसूँ विशेष रूप से आदर कइल जा हलइ । ऊ निवासी डाक्टर के बाद सब्भे अस्पताल के डाक्टर के साथ-साथ आवऽ हलइ, ओहो हरेक रोगी के एक-एक करके देखऽ हलइ, विशेष करके गंभीर रोगी भिर कुछ अधिक देर रुक्कऽ हलइ, हमेशे ओकन्हीं के मधुर, प्रेरणात्मक शब्द में बात करऽ हलइ, अकसर हार्दिक शब्द भी, आउ साधारणतः रोगी लोग के दिमाग पे निम्मन छाप छोड़ऽ हलइ । "शूल" रोग के शिकायत के साथ आवल रोगी के ऊ कभियो इनकार नयँ करऽ हलइ आउ न वापिस भेजऽ हलइ; लेकिन अगर रोगी खुद हठ बान्ह लेइ, त सीधे ओकरा अस्पताल से छुट्टी दे देइ - "अच्छऽ, भाय, हियाँ काफी ठहर गेलऽ, अराम कर लेलऽ, चलऽ, जाय के समय आ गेलो" । जे हठ करके रहे लगी चाहऽ हलइ ऊ साधारणतः या तो कामचोर रहऽ हलइ, खास करके गरमी के समय जब दिन लमगर करऽ हलइ, चाहे अभियुक्त लोग में से, जे अपना लगी दंड के प्रतीक्षा में रहऽ हलइ । आद पड़ऽ हइ, अइसनकन में से एगो लगी विशेष कठोरता बरतल गेले हल, निर्दयता भी, ताकि ऊ अस्पताल से छुट्टी ले लेइ । अइले हल ऊ आँख के रोगी के रूप में - आँख लाल, आँख में जोरदार चुभे वला दरद के शिकायत करऽ हइ। ओकर इलाज करे लगी चालू कइल गेलइ स्पेनी मक्खी से (Spanish flies), जोंक से, आँख में कोय क्षारक द्रव (caustic liquid) के छींटा से, आदि आदि, लेकिन रोग तइयो नहिंएँ भागलइ, आँख साफ नयँ होलइ । धीरे-धीरे डाक्टर सब अंदाज लगइलकइ, कि ई रोग देखावटी हइ - हलका सनी सूजन बरकरार रहइ, बत्तर नयँ होवइ, आउ ठीक नयँ होवइ, हमेशे एक्के स्थिति में रहइ, दशा संदेहजनक लगऽ हलइ । कैदी लोग बहुत पहिलहीं से जानऽ हलइ, कि ऊ ढोंग करऽ हइ आउ लोग के धोखा दे हइ, हलाँकि ऊ खुद ई बात के कबूल नयँ करऽ हलइ । ई एगो नवयुवक हलइ, सुंदर भी, लेकिन हमन्हीं सब पर एक प्रकार के अप्रिय छाप छोड़े वला - गोपनशील (secretive), संदेहास्पद, नाक-भौं सिकोड़े वला (frowning), केकरो से नयँ बोलऽ हइ, भौं चढ़ाके देखऽ हइ, सब्भे से अलगे रहऽ हइ, मानूँ सब के शक्का के नजर से देखऽ हइ । हमरा आद पड़ऽ हइ - कुछ लोग के दिमाग में अइलइ, कि कहीं ऊ कुछ कर नयँ बइठइ । ऊ सैनिक हलइ, बड़गर चोरी करते पकड़इले हल, दोष सिद्ध हो गेले हल, ओकरा एक हजार फटका आउ कैदी कंपनी के दंड सुनावल गेले हल । दंड के पल स्थगित करे खातिर, जइसन कि हम पहिलहीं उल्लेख कर चुकलिए ह, अभियुक्त कभी-कभी भयंकर युक्ति के आश्रय ले हइ - दंड के पूर्वसंध्या पर प्रशासनिक अधिकारी में से केकरो, चाहे अपन कउनो साथी कैदी के छूरी घोंप देतइ, त ओकरा फेर से नावा तरह से मोकदमा चलतइ, आउ दंड आउ करीब दू महिन्ना आगू बढ़ जइतइ, आउ ओकर उद्देश्य प्राप्त हो जइतइ । ओकरा ई बात से कोय मतलब नयँ हइ, कि ओकरा दू महिन्ना के बाद दोगना, तेगना कठोरतापूर्वक दंड देल जइतइ; कम से कम अभी तो ऊ भयंकर क्षण बल्कि कुच्छे दिन लगी स्थगित हो जइतइ, आउ बाद में बल्कि जे होबइ - एतना हद तक ई मामला में कभी-कभी ई अभागल लोग हतोत्साह हो जा हइ । हमन्हीं हीं कुछ लोग आपस में फुसफुसाय लग चुकले हल, कि ओकरा से बचके रहे के चाही - शायद, केकरो रतिया के गला रेत देइ । लेकिन, अइसे खाली बोलऽ हलइ, आउ कोय विशेष सवधानी ओकन्हिंयों सब नयँ बरतऽ हलइ, जेकर बिछौना ओकर बिलकुल पास में पड़ऽ हलइ । लेकिन, देखऽ हलइ, कि ऊ रतिया के अपन अँखिया देवाल के प्लास्टर के चूना से आउ दोसरा कुछ चीज से रगड़ऽ हलइ, जेकरा से सुबह में फेर से ऊ लाल रहऽ हलइ । आखिरकार प्रधान डाक्टर ओकरा लगी बत्ती (seton) के प्रयोग के धमकी देलकइ । लमगर अवधि तक जारी रहे वला आँख के दुःसाध्य रोग में, आउ जब सब तरह के दवाय के संसाधन अजमा चुकल होवऽ हइ, त दृष्टि के बचावे खातिर, डाक्टर लोग प्रबल आउ कष्टदायक माध्यम के आश्रय लेते जा हइ - रोगी पर बत्ती के प्रयोग कइल जा हइ, जइसे कि घोड़ा के साथ । लेकिन बेचारा एकरो से चंगा होवे लगी तैयार नयँ होलइ । ई चरित्र या तो जिद्दी हलइ, चाहे बहुत कायर - बत्ती के प्रयोग ओतना दर्दनाक नयँ हलइ, जेतना डंडा के फटका, लेकिन तइयो बहुत कष्टकारी होवऽ हइ । (एकर प्रयोग के विधि ई प्रकार हइ -) रोगी के पीछू मुँहें गरदन पर जेतना चमड़ी एक हाथ से पकड़ल जा सकऽ हइ, ओतना पकड़ लेल जा हइ, पूरा पकड़ल भाग में छूरी भोंक देल जा हइ, जेकरा से गरदन के समुच्चे गुद्दी (nape) पर चौड़गर आउ लमगर घाव बन जा हइ, आउ ई घाव से होके एगो सूती फीता घुसा देवल जा हइ, अच्छा चौड़गर, लगभग एक अँगुरी भर; बाद में रोज दिन, एक निश्चित समय पर, घाव में से घींच लेवल जा हइ, ओहे से मानूँ एकरा फेर से काटल नियन हो जा हइ, ताकि घाव लगातार पीप से भरल रहऽ हइ आउ घाव भरऽ हइ नयँ । तइयो बेचारा ई भयंकर यातना आउ कष्ट कइएक दिन तक दृढ़तापूर्वक सहन कइलकइ आउ तब कहीं जाके आखिरकार अस्पताल से छुट्टी लेवे लगी सहमत होलइ। ओकर आँख एक्के दिन में बिलकुल स्वस्थ हो गेलइ, आउ जइसीं ओकर गरदन के घाव भर गेलइ, ऊ गार्ड-हाउस लगी रवाना हो गेलइ, दोसरे दिन जाके फेर से हजार फटका (डंडा के मार) खाय लगी ।

वस्तुतः दंड के पहिले के पल भयानक होवऽ हइ, भयानक एतना हद तक, कि शायद, हम ई भय के अशक्तहृदयता आउ कायरता पुकारके पाप करऽ हिअइ । मतलब, भयानक हइ, जब दोगना, तेगना दंड मिलतइ, खाली तुरतम्मे अभिए नयँ देल जाय । लेकिन, हम उल्लेख कइलिअइ, अइसनो लोग के बारे, जे खुद पहिलौका फटका से घायल पीठ के घाव भराय के पहिलहीं जल्दीए अस्पताल से छुट्टी के निवेदन कइलके हल, ताकि बाकी फटका खाय आउ आखिरकार दंड से मुक्ति मिल जाय; गार्ड-हाउस में दंड खातिर नजरबंद रक्खल जाना, वस्तुतः, समुच्चे कातोर्गा (कठिर सश्रम कारावास) के अवधि से कहीं बत्तर हइ । लेकिन, स्वभाव में अंतर के अतिरिक्त, प्रहार आउ दंड के पक्का आदत कुछ लोग के दृढ़संकल्प आउ निर्भयता में बड़गो भूमिका अदा करऽ हइ। कइएक तुरी फटका खइला पर कइसूँ अदमी के उत्साह आउ पीठ के मजबूत कर दे हइ आउ ऊ आखिरकार दंड के शंकालु दृष्टि से देखऽ हइ, लगभग एगो छोटगर असुविधा नियन, आउ ओकरा से डर नयँ लगऽ हइ । सामान्य रूप से कहल जाय, त ई सच हइ । विशेष विभाग से हमन्हीं के एगो कैदी, बपतिस्माप्राप्त कल्मीक [2] अलिक्सांद्र या अलिक्सांद्रा, जइसे कि हमन्हीं हीं ओकरा पुकारऽ हलइ, जे एगो विचित्र व्यक्ति, धूर्त, निडर आउ साथे-साथ बहुत दयालु हलइ, हमरा बतइलकइ, कि कइसे ऊ चार हजार फटका खइलकइ, हँसते आउ मजाक करते कहलकइ, लेकिन हिएँ परी ऊ अत्यंत गंभीर मुद्रा में कसम खइलकइ, कि अगर बचपने से, बिलकुल सुकुमारे से, अपन पहिलौके बचपन से, ऊ कोड़ा के अधीन नयँ पलते-बढ़ते हल, जेकरा से शाब्दिक रूप से ओकर सारी जिनगी अपन गिरोह में पीठ पर के घाव के निशान नयँ मेटलइ, त ऊ कइसहूँ ई चार हजार फटका के सहन नयँ कर पइते हल । अइसे बतइलकइ, जइसे कोड़ा के अधीन ई पालन-पोषण के ऊ अपन सौभाग्य समझऽ हलइ । "हमरा हरेक बात पर पिट्टल जा हलइ, अलिक्सांद्र पित्रोविच", ऊ एक तुरी हमरा से बोललइ, हमर बिछौना पर बइठते, साँझ के, दीया-बत्ती जल्ले के पहिले, "सब कुछ लगी, सब कुछ के बारे, चाहे जे कुछ पाला पड़ जाय, पनरह साल तक लगातार पिट्टल गेलइ, ठीक ओहे दिन से, जब से हम होश सँभललिअइ, रोज दिन कइएक तुरी; केऽ नयँ पिटलकइ, केऽ नयँ पिट्टे लगी चहलकइ; ओहे से आखिरकार हम एकर बिलकुल अभ्यस्त हो गेलिअइ ।" ऊ सैनिक कइसे बन गेलइ, हमरा मालूम नयँ; आद नयँ पड़ऽ हइ; लेकिन, हो सकऽ हइ, ओहे बतइलकइ; ऊ हमेशे के भगोड़ा आउ अवारा हलइ । हमरा खाली ओकर कहानी के बारे एतने आद पड़ऽ हइ, कि ऊ केतना भयभीत हो गेले हल, जब ओकरा एगो अफसर के हत्या लगी चार हजार फटका के सजा सुनावल गेले हल । "हम जानऽ हलिअइ, कि हमरा सख्ती से सजा देल जइतइ, आउ शायद डंडा के फटका से हम जीवित नयँ बच पइबइ, आउ हलाँकि हम कोड़ा के अभ्यस्त होल हलिअइ, लेकिन चार हजार फटका - मजाक नयँ हलइ ! आउ ओकरो पर पूरा अफसर लोग हमरा पर गोसाल ! हम जानऽ हलिअइ, पक्का जानऽ हलिअइ, कि असानी से ई सब नयँ गुजरतइ, हमरा से सहन करना पार नयँ लगतइ; डंडा से हम बच नयँ पइबइ । हम शुरू में खुद के बपतिस्मा करावे के प्रयास कइलिअइ, सोचऽ हिअइ, शायद हमरा माफ कर देल जइतइ, आउ हलाँकि हमरा खुद के लोग कहते गेलइ, कि एकरा से कुछ फयदा नयँ होतइ, माफी नयँ मिलतइ, लेकिन सोचऽ हिअइ - तइयो प्रयास करऽ हिअइ, तइयो ओकन्हीं के बपतिस्मा कइल (क्रिश्चियन) पर तो तरस अइतइ । आउ हमरा वास्तव में बपतिस्मा देल गेलइ आउ पवित्र बपतिस्मा-संस्कार के दौरान हमरा अलिक्सांद्र नाम देल गेलइ; हूँ, लेकिन फटका के संख्या ओहे रहलइ; बल्कि एक्को फटका तो माफ कइल जइते हल; हमरा तो बुरा भी लगलइ । आउ हम खुद के बारे सोचऽ हिअइ - ठहर जरी, हम तोहन्हीं के निम्मन से उल्लू बनावऽ हिअउ । आउ वस्तुतः अपने की सोचऽ हथिन, अलिक्सांद्र पित्रोविच, उल्लू बनइलिअइ ! हम भयंकर रूप से मरे के ढोंग निम्मन से कर ले हलिअइ, मतलब बिलकुल मर जाय के नयँ, बल्कि लगइ कि अइकी-अइकी अब देह से आत्मा निकस जइतइ । हमरा (दंड लगी) ले जाल गेलइ; हमरा एक हजार फटका देल जा हइ - जल्लऽ हइ, हम चिल्ला हिअइ; दोसरका (हजार फटका) लगी ले जाल जा हइ, हूँ, सोचऽ हिअइ, हमर अंत आल हइ, हमर सब बुद्धि-विवेक ठोक-ठाकके बिलकुल निकास लेवल गेलइ, हमर गोड़ जवाब दे दे हइ, हम जमीन पर धड़ाम - हमर आँख मर गेलइ, चेहरा नीला, साँस नयँ, मुँह में फेन । डाक्टर अइलइ - बोलऽ हइ, अभी मर जइतइ । हमरा अस्पताल लावल गेलइ, आउ हम तुरतम्मे पुनर्जीवित हो उठलिअइ । अइसीं हमरा बाद में आउ दू तुरी बाहर ले जाल गेलइ, आउ ओकन्हीं गोसाल हलइ, हमरा पर बहुत गोसाल हलइ, आउ हम दू तुरी आउ उल्लू बनइलिअइ; तेसरे हजार फटका खाली हमरा लग रहले हल, कि मरे के ढोंग कइलिअइ, आउ जब चौठा शुरू होलइ, त हरेक फटका मानूँ हमर दिल में छुरी घोंपाल नियन लगऽ हलइ,  हरेक फटका हमरा तीन नियन बुझा हलइ, एतना दर्दनाक तरह से पिट्टल जा रहले हल ! हमरा पर ओकन्हीं क्रोधावेश में हलइ । ई अभिशप्त अंतिम हजार (लगऽ हइ एकरा ... !) पहिला तीनों हजार के बराबर दर्दनाक हलइ, आउ अगर हम नयँ मरतूँ हल ई बिलकुल अंतिम के पहिले (खाली दू सो फटका बाकी रह गेल हल), त ओकन्हीं हमरा पीट-पीटके जाने से मार देत हल, लेकिन हम हार नयँ मनलिअइ - फेर से उल्लू बनइलिअइ आउ फेर से मरे के ढोंग कइलिअइ; फेर से विश्वास कर लेते गेलइ, आउ कइसे विश्वास नयँ करते हल, डाक्टर विश्वास कर ले हइ, ओहे से अंतिम दू सो पर, हलाँकि पूरा गोस्सा से बाद में हमरा पिट्टल गेलइ, अइसे पिट्टल गेलइ, कि (ई दू सो फटका) दू हजार से जादे दर्दनाक हलइ, लेकिन नयँ, अपन श्रेष्ठता नयँ देखा पइलकइ, हमरा खतम नयँ कर पइलकइ, आउ काहे नयँ खतम कर पइलकइ ? आउ ई सब भी ई कारण से, कि बचपन से हम कोड़ा के अधीन पललिअइ-बढ़लिअइ । ओकरे चलते हम आझ जिन्दा हिअइ । ओह, हमरा पिट्टल तो गेलइ, हमरा अपन जिनगी भर लगी पिट्टल गेलइ !" ऊ अपन कहानी के अंत में जइसे उदास चिंतन में बोललइ, जइसे ऊ आद करे के आउ गिनती करे के प्रयास कर रहले हल, कि ओकरा केतना तुरी पिट्टल गेले हल । "लेकिन नयँ", ऊ आगू  बोललइ, एक मिनट चुप रहला के बाद, "आउ गिनती कइल नयँ जा सकऽ हइ, कि केतना तुरी पिट्टल गेलइ; आउ गिनती कइसे कइल जइते हल ! ओतना काफी संख्या नयँ हइ ।" ऊ हमरा दने तकलकइ आउ हँस पड़लइ, लेकिन अइसन सु-स्वाभाविक रूप से, कि हम खुद ओकर जवाब में मुसकइले बेगर नयँ रह पइलिअइ । "जानऽ हथिन, अलिक्सांद्र पित्रोविच, हम वस्तुतः अभियो, अगर रात में सपना देखऽ हिअइ, त हमेशे ई, कि हमरा पिट्टल जा रहले ह - आउ दोसर तरह के सपना नयँ आवऽ हइ ।" ऊ वास्तव में अकसर रतिया के चिल्ला हलइ आउ गला फाड़के चिल्ला हलइ, एतना कि ओकरा तुरतम्मे कैदी लोग झकझोरके उठावऽ हलइ - "अरे, शैतान, काहे लगी चिल्ला हीं !" ऊ एगो स्वस्थ व्यक्ति हलइ, मध्यम कद, चुलबुला आउ हँसमुख, उमर लगभग पैंतालीस साल, सबके साथ हिल-मिलके रहऽ हलइ, आउ हलाँकि चोरी करना बहुत पसीन करऽ हलइ आउ बहुत अकसर एकरा लगी हमन्हीं हीं पिटइवो कइले हल, लेकिन वस्तुतः हमन्हीं हीं केऽ नयँ चोरी करऽ हलइ आउ केऽ नयँ हमन्हीं हीं पिटइले हल ?

एकरा में हम एक बात आउ जोड़ऽ हिअइ - हम हमेशे ऊ असाधारण सुस्वभाव, द्वेषहीनता से अचंभित होवऽ हलिअइ, जेकरा से सब लोग ई पिटाय वला बतइते जा हलइ कि कइसे ओकन्हीं पिटइलइ, आउ ऊ सब के बारे जे ओकन्हीं के पिटलकइ । अकसर अइसन कहानी में क्रोध चाहे द्वेष के लेशमात्र भी नयँ सुनाय दे हलइ, जेकरा से कभी-कभी हमर दिल उत्तेजित हो जा हलइ आउ एकरा जोर से आउ तेजी से धड़कावे लगऽ हलइ । आउ ओकन्हीं सुनावइ आउ बुतरू नियन हँस जाय । अइकी एम-त्स्की, मसलन, हमरा अपन दंड के बारे बतइलकइ; ऊ कुलीन नयँ हलइ आउ पाँच सो फटका झेललके हल । हम ई बात दोसरा लोग से जनलिए हल आउ खुद ओकरा से पुछलिए हल - की ई बात सच हइ आउ ई सब कइसे होलइ ? ऊ कइसूँ संक्षेप में उत्तर देलकइ, मानूँ कइसनो आंतरिक वेदना से, हमरा से नजर बचावे के प्रयास करते, आउ ओकर चेहरा लाल हो गेलइ; आधा मिनट के बाद ऊ हमरा दने देखलकइ, आउ ओकर आँख में द्वेष के आग कौंधे लगलइ, आउ होंठ क्रोध से कँप्पे लगलइ । हम अनुभव कइलिअइ, कि ऊ अपन अतीत के ई पन्ना के कभियो नयँ भूल सकलइ । लेकिन हमन्हीं के कैदी लोग, लगभग सब्भे (गारंटी नयँ दे सकऽ हिअइ, कि कोय अपवाद नयँ हलइ), ई बात के बिलकुल दोसरहीं ढंग से देखऽ हलइ । ई नयँ हो सकऽ हइ, हम कभी सोचऽ हलिअइ, कि ओकन्हीं खुद के बिलकुल दोषी आउ दंड के योग्य मानऽ हलइ, खास करके जब ओकन्हीं अपन खुद के वर्ग के विरुद्ध कुछ अपराध नयँ कइलके हल, बल्कि प्राधिकारी के विरुद्ध । ओकन्हीं में से अधिकतर खुद के दोषी बिलकुल नयँ समझऽ हलइ । हम पहिलहीं कह चुकलिए ह, कि हम कोय पश्चात्ताप नयँ नोटिस कइलिअइ, ओइसनो परिस्थिति में, जब अपराध अपनहूँ समाज के विरुद्ध रहऽ हलइ । प्राधिकारी के विरुद्ध अपराध के बारे तो कुछ बोले के हइए नयँ हइ । हमरा कभी-कभी लगऽ हलइ, कि ई अंतिम परिस्थिति में ओकन्हीं के खुद के विशेष, ई कहल जाय, कइसनो व्यावहारिक चाहे, बेहतर कहल जाय, बात के तथ्यात्मक दृष्टि रहऽ हलइ । भाग्य, तथ्य के अनिवार्यता के ध्यान में रक्खल जा हलइ, आउ ई बात के नयँ कि जे कइसूँ सोचल-समझल रहऽ हलइ, बल्कि अचेतन रूप से, एक प्रकार के विश्वास के रूप में । कैदी के, मसलन, हलाँकि हमेशे हीं प्राधिकारी के विरुद्ध अपराध के मामले में खुद के सही अनुभव करे के प्रवृत्ति रहऽ हइ, ओहे से ओकरा लगी एकरा बारे सवाले अकल्पनीय हइ, लेकिन तइयो ऊ व्यावहारिक रूप से समझऽ हलइ, कि प्राधिकारी ओकर अपराध के बिलकुल दोसरे दृष्टि से देखऽ हइ, मतलब, ओकरा दंड मिलहीं के चाही, आउ बस हिसाब-किताब बराबर । हियाँ परी संघर्ष परस्पर हलइ । साथे-साथ अपराधी जानऽ हइ आउ कोय संदेह नयँ करऽ हइ, कि ऊ अपन वर्ग के, अपनहीं सामान्य जनता के न्यायालय में, न्यायसंगत हइ, जे कभी-कभी (आउ एकरो बारे ऊ जानऽ हइ) ओकरा आखिरकार दोषी नयँ ठहरइतइ, बल्कि अधिकतर हालत में बिलकुल सही ठहरइतइ, अगर खाली ओकर अपराध ओकर अपन वर्ग के विरुद्ध, अपन भाय-बंधु के विरुद्ध, अपन खुद्दे के सामान्य जनता के विरुद्ध, नयँ रहइ । ओकर अंतःकरण शांत हइ, आउ अंतःकरण से ऊ बलवान हइ आउ नैतिक रूप से संकोच में नयँ पड़ऽ हइ, आउ ई मुख्य बात हइ । ऊ मानूँ अनुभव करऽ हइ, कि कुछ तो ओकर सहारा हइ, आउ ओहे से घृणा नयँ करऽ हइ, आउ अपन साथ होल घटना के अनिवार्य तथ्य के रूप में स्वीकार कर ले हइ, जे ओकरा से शुरू नयँ होलइ, आउ न ओकरा से अंत होतइ, आउ एक तुरी स्थापित, निष्क्रिय (passive), लेकिन चिरस्थायी संघर्ष के बीच दीर्घ, दीर्घ समय तक जारी रहतइ । कउन सैनिक व्यक्तिगत रूप से कोय तुर्क से घृणा करऽ हइ, जब ओकरा साथ युद्ध करऽ हइ; आउ तइयो तुर्क ओकर गला रेत दे हइ, छूरा मार दे हइ, ओकरा गोली मार दे हइ । लेकिन सब्भे कहानी बिलकुल शांतप्रकृति आउ भावनाशून्य नयँ हलइ । लेफ्टेनेंट झेरेब्यातनिकोव के बारे, मसलन, कुछ क्रोध के रंगत (shade) के साथ भी कहल गेलइ, हलाँकि ओतना बहुत प्रबल (क्रोध के रंगत के साथ) नयँ । ई लेफ्टेनेंट झेरेब्यातनिकोव के साथ परिचित हम अस्पताल में भरती होवे के शुरुआते समय में हो गेलिए हल, जाहिर हइ, कैदी लोग के कहानी से । बाद में कइसूँ हम ओकरा वास्तव में अपन आँख से देखलिअइ, जब ऊ हमन्हीं हीं ड्यूटी पर हलइ । ई एगो करीब तीस साल के व्यक्ति हलइ, उँचगर कद, मोटगर,  स्थूल, लाल फुल्लल गाल, उज्जर दाँत, नोज़्द्र्योव (Nozdryov) के जोरदार हँसी नियन ओकर हँसी [2] । ओकर चेहरा से स्पष्ट हलइ, कि ई एगो संसार के सबसे बेफिकिर व्यक्ति हइ । ऊ खास करके कोड़ा मारना आउ डंडा से दंड देना पसीन करऽ हलइ, जब कभी ओकरा कार्यवाहक (executor) नियुक्त कइल जा हलइ । हम ई बतावे लगी शीघ्रता करऽ हिअइ, कि लेफ्टेनेंट झेरेब्यातनिकोव के हम तखने अपन तरह के एगो राक्षस समझऽ हलिअइ, आउ ओइसीं खुद कैदी लोग भी समझते जा हलइ । ओकरा अलावे भी कार्यवाहक लोग हलइ, वस्तुतः पुरनका जमाना में, ऊ हाल के पुरनका जमाना में, जेकरा बारे "किंवदंती ताजा हइ, लेकिन जेकरा पर विश्वास करना कठिन हइ" [4], जे अपन काम के उत्साहपूर्वक आउ परिश्रमपूर्वक दिल लगाके निष्पादित करना पसीन करऽ हलइ । लेकिन अधिकतर भाग अनाड़ी नियन आउ बिन कोय खास उत्साह के कइल जा हलइ । लेकिन लेफ्टेनेंट तो कार्य निष्पादन के मामले में एक प्रकार के अत्यधिक परिष्कृत चटोर (gourmet) हलइ । ऊ प्रेम करऽ हलइ, ऊ जोश-खरोश के साथ निष्पादन (execution) कला से प्रेम करऽ हलइ, आउ खाली कला खातिर प्रेम करऽ हलइ । एकरा से ओकरा खुशी मिल्लऽ हलइ, आउ रोम साम्राज्य कालीन कुलीन नियन आनंद के अतिसेवन (overindulgence) से क्लांत होल, खुद लगी विभिन्न तरह के परिष्कार (subtleties), भिन्न-भिन्न तरह के विकृति (perversions) के आविष्कार करते रहऽ हलइ, ताकि कुछ तो अपन फुल्लल चरबी वला आत्मा के उत्तेजित आउ सुखपूर्वक रोमांचित कर सकइ । अइकी कैदी के दंड लगी ले जाल जा रहले ह; झेरेब्यातनिकोव कार्यवाहक हइ; मोटगर डंडा लेले लमगर कतार में खड़ी लोग के तरफ एक नजर ओकरा पहिलहीं से प्रोत्साहित कर रहले ह । ऊ आत्मसंतुष्ट होल कतार के चक्कर लगावऽ हइ आउ जोर देके पुष्टि करऽ हइ, कि हरेक कोय अपन काम के निष्पादन उत्साहपूर्वक आउ ईमानदारी से करइ, नयँ तो ... लेकिन सैनिक लोग के मालूम हलइ, कि ई "नयँ तो ..." के की मतलब होवऽ हइ । लेकिन अइकी खुद अपराधी के ले जाल जा रहले ह, आउ अगर ऊ अभियो तक झेरेब्यातनिकोव से परिचित नयँ हइ, अगर ऊ ओकरा बारे सब गुप्त पहलू नयँ सुनलके ह, त अइकी, मसलन, अइसन करतूत ऊ ओकरा साथ चल सकऽ हइ । (जाहिर हइ, सैकड़ों करतूत में से ई एक हइ; लेफ्टेनेंट के आविष्कार अपार हलइ ।) हरेक कैदी ऊ पल में, जब ओकरा निर्वस्त्र कइल जा हइ, आउ दुन्नु हाथ के राइफल के कुंदा (butt) से बान्ह देल जा हइ, जेकरा से सर्जेंट लोग ओकरा बाद में  (हाथ में डंडा लेले सैनिक लोग के कतार के सामने से अर्थात्) समुच्चे हरियरका गल्ली (green street) से होके घींचके ले जा हइ - त हरेक कैदी, सामान्य रिवाज के अनुसार, हमेशे ई पल में आँसू भरल, करुणाजनक गला से कार्यवाहक (executor) से प्रार्थना करे लगऽ हइ, कि जरी हलके दंड देल जाय आउ एकरा अतिरिक्त कठोरता के साथ अधिक कष्टकारी नयँ बनावल जाय - "महामहिम", अभागल चिल्ला हइ, "दया करथिन, हमर पिता बनथिन, अपना खातिर जिनगी भर प्रार्थना करे लगी हमरा विवश कर देथिन, हमरा बरबाद नयँ करथिन, दया करथिन !" झेरेब्यातनिकोव शायद खाली एहे बात के इंतजार करऽ हइ; तुरतम्मे (डंडा से पिटम्मस करे के) कार्रवाई रोक दे हइ आउ भावनात्मक मुद्रा में कैदी के साथ बातचीत शुरू कर दे हइ -

"दोस्त हमर", ऊ बोलऽ हइ, "त हम तोरा साथ की करियो ? हम तो दंड नयँ दे रहलियो ह, बल्कि कानून !"
"महामहिम, सब कुछ तो अपने के हाथ में हइ, दया करथिन !"
"त तूँ की सोचऽ हकहो, हमरा तोरा पर तरस नयँ आवऽ हइ ? तूँ सोचऽ हो, कि हमरा खुशी होतइ ई देखके, कि तोहरा कइसे पिटाय कइल जइतइ ? वस्तुतः हमहूँ तो अदमी हिअइ ! अदमी हिअइ कि नयँ, तोहर विचार से ?"
"निश्चित रूप से, महामहिम, ई तो जानल बात हइ; अपने पिता हथिन, हमन्हीं बुतरू हिअइ । सगा पिता होथिन !" कैदी चिल्ला हइ, जरी आशान्वित होते ।
"लेकिन, दोस्त तूँ हमर, खुद्दे फैसला करहो; तोरा वास्तव में बुद्धि तो हको, कि फैसला कर सकबहो - वस्तुतः हम खुद्दे जानऽ हिअइ, कि मानवता के आधार पर पापी रहलो पर तोहरा तरफ हमरा रियायती ढंग से आउ दयापूर्वक देखे के चाही ।"
"बिलकुल सच बोले के कृपा कर रहलथिन हँ, महामहिम !"
"हाँ, दयापूर्वक देखे के चाही, चाहे तूँ कइसनो पापी रहहो । लेकिन हियाँ हम नयँ, बल्कि कानून हइ ! सोचहो ! वस्तुतः हम भगमान के सेवा करऽ हिअइ आउ पितृभूमि के; हम तो वस्तुतः बड़गो पाप खुद पर लेबइ, अगर हम कानून के ढीला करऽ हिअइ, एकरा बारे जरी सोचहो !"
"महामहिम !"
"अच्छऽ, ठीक हइ ! अइसीं होवइ, तोहरा लगी ! जानऽ हिअइ, कि हम पाप करऽ हिअइ, लेकिन अइसीं होवइ ... ई तुरी हम तोहरा पर कृपा करऽ हियो, हलका दंड देबो । अच्छऽ, लेकिन अगर एकरे साथ तोरा लगी कुछ हानि होवइ ? हम तोरा लगी अइकी अभी दया करऽ हिअइ, हलका दंड दे हिअइ, आउ तूँ आशा करबहो, कि दोसरो तुरी अइसीं होतइ, आउ फेर से अपराध करबहो, त तखने की होतइ ? त वस्तुतः हमरे अंतःकरण में ..."

"महामहिम ! दोस्त होवइ चाहे दुश्मन, ओकर कसम खइबइ ! अइकी मानूँ आसमान में भगमान के सिंहासन के सामने ..."
"अच्छऽ, ठीक हको, ठीक हको ! लेकिन हमरा भिर कसम खा हो, कि आगू से निम्मन से आचरण करबहो ?"
"हाँ, भगमान हमरा काट द, आउ हमरा ऊ संसार में ..."
"कसम मत खा, ई पाप हइ । हम तोहर वचन पर भी विश्वास करबो, वचन दे हो ?"
"महामहिम !!!"
"अच्छऽ, त सुनऽ, हम खाली तोहर अनाथ के आँसू के कारण दया करऽ हियो; तूँ अनाथ हकऽ न ?"
"अनाथ, महामहिम, बिलकुल अकेल्ले, न बाप, न माय ..."
"अच्छऽ, तोहर अनाथ के आँसू खातिर; लेकिन देखऽ, ई अंतिम तुरी ... ले जाल जाय इनका", ऊ एतना मृदु हार्दिक स्वर में आगू बोलऽ हइ, कि कैदी के ई समझ में नयँ आवऽ हइ, कि भगमान के कइसन प्रार्थना अइसन दयालु खातिर कइल जाय । लेकिन अइकी भयंकर जलूस शुरू होलइ, ओकरा ले जाल गेलइ; ढोल गरज उठलइ, पहिलौका डंडा लहरावल गेलइ ...
"जोर लगाके हैयाँ !" अपन पूरा गला फाड़के झेरेब्यातनिकोव चिल्ला हइ । "जला दे ओकरा ! डेंगाऽ दे, डेंगाऽ दे ! झुलस दे ! आउ लगा, आउ लगा ! जोर से अनाथ के, जोर से ई बदमाश के ! चढ़ा दे तवा पे, चढ़ा दे !" आउ सैनिक लोग पूरा जोर लगाके अंधाधुंध पिट्टे लगऽ हइ, बेचारा के आँख से चिनगारी निकसे लगऽ हइ, ऊ चिल्लाय लगऽ हइ, आउ झेरेब्यातनिकोव ओकर पीछू-पीछू व्यूह होके दौड़ऽ हइ आउ खुखुआ-खुखुआके हँस्सऽ हइ, हँसते-हँसते बेदम हो जा हइ, हँसी से अपन बगल के सहारा दे हइ, लेकिन सीधा नयँ हो पावऽ हइ, हियाँ तक कि अंत में ओकरा लगी कोय नेकदिल के तरस भी आवऽ हइ । आउ ऊ खुश तो हइ, आउ ओकरा हँसी तो आवऽ हइ, आउ खाली वस्तुतः कभी-कभार ओकर जोरदार, स्वस्थ, प्रतिध्वनित हँसी, थम जा हइ, आउ फेर से सुनाय दे हइ - "डेंगाऽ ओकरा, डेंगाऽ ! झुलस दे ओकरा, ई बदमाश के, झुलस दे ई अनाथ के ! ..."

आउ अइकी आउ दोसर तरह के परिवर्तन के आविष्कार करऽ हलइ - दंड लगी बाहर ले जाल जा हइ; कैदी फेर से प्रार्थना शुरू कर दे हइ । झेरेब्यातनिकोव अबरी छमकऽ हइ नयँ, नुँह नयँ बनवऽ हइ, आउ खुल्लल तौर पे बात करऽ हइ -
"देखऽ, प्यारे", ऊ बोलऽ हइ, "तोहरा तो हम जइसे चाही ओइसीं दंड देबो, काहेकि एकरे योग्य हकहो । लेकिन अइकी हम तोरा लागी, शायद, कर सकऽ हियो -  हम तोरा राइफल के कुंदा से नयँ बान्हबो । अकेल्ले चलिहऽ, लेकिन खाली नावा तरह से - यथाशक्ति व्यूह से होके भागऽ ! हियों बल्कि हरेक डंडा तोरा पर लगतो, लेकिन मार तो जरी हलका होतो, की सोचऽ हकहो ?  अजमावे लगी चाहऽ हो ?"

कैदी भौंचक होल सुन्नऽ हइ, अविश्वास से आउ सोचे लगऽ हइ ।
"काहे नयँ", ऊ अपने आप सोचऽ हइ, "हो सकऽ हइ, ई वास्तव में जरी असान होतइ; जेतना हो सकतइ ओतना दौड़बइ, आउ यातना पाँच गुना कम होतइ, आउ हो सकऽ हइ, कि हरेक डंडा हमरा पर नयँ पड़इ ।"
"ठीक हइ, महामहिम, सहमत हिअइ ।"
"अच्छऽ, हमहूँ सहमत हकियो, त काम शुरू ! ध्यान देते जाना, जँभाई नयँ लेना !" ऊ सैनिक लोग के चिल्लइते बोलऽ हइ, लेकिन पहिलहीं से ई जनते, कि एक्को डंडा दोषी के पीठ पर नयँ चूकतइ; डंडा उसाहे वला सैनिक के भी निम्मन से मालूम हइ, कि चूकला पर की होतइ । कैदी जेतना ताकत लगाके हो सकइ ओतना ताकत से "हरियरका गल्ली" से दौड़े लगऽ हइ, लेकिन, जाहिर हइ, कि ऊ कतार के पनरहमो सैनिक तक नयँ दौड़ पावऽ हइ; ढोल के ढमढम नियन, डंडा बिजली नियन एक्के तुरी अचानक ओकर पीठ पर बरसे लगऽ हइ, आउ बेचारा चिल्लइते पड़ जा हइ, जइसे ओकरा काटके गिरा देल गेलइ, जइसे ओकरा गोली मार देल गेलइ । "नयँ, महामहिम, बेहतर कानूने के मोताबिक रहे देथिन", ऊ बोलऽ हइ, धीरे-धीरे जमीन पर से उठते, पीयर होल आउ भयभीत, आउ झेरेब्यातनिकोव, जे पहिलहीं से ई सब दाँव-पेंच जानऽ हलइ आउ एकरा से की परिणाम निकसतइ, ठठाके हँस्सऽ हइ । लेकिन ओकर सब्भे मनोविनोद के वर्णन नयँ कइल जा सकऽ हइ आउ ऊ सब कुछ ओकरा बारे, जे हमन्हीं हीं लोग बतइते गेलइ !

थोड़े सन दोसरा तरह से, दोसरा तान (टोन) आउ भाव में, हमन्हीं हीं कहते जा हलइ एगो लेफ्टेनेंट स्मेकालोव के बारे, जे हमन्हीं के जेल के कमांडर के ड्यूटी करऽ हलइ, ई काम लगी हमन्हीं के मेजर के नियुक्ति होवे के पहिले । झेरेब्यातनिकोव के बारे हलाँकि काफी भावशून्यता के साथ बतइते जा हलइ, बिन कोय विशेष द्वेष के, लेकिन तइयो ओकर उपलब्धि के प्रशंसा नयँ करऽ हलइ, ओकर गुणगान नयँ करऽ हलइ, बल्कि स्पष्टतः ओकर मजाक उड़ावऽ हलइ । ओकरा कइसूँ घमंडपूर्वक घृणा भी करऽ हलइ । लेकिन स्मेकालोव के बारे हमन्हीं हीं खुशी आउ आनंद से आद करते जा हलइ । बात ई हलइ, कि ऊ कोड़ा लगावे वला बिलकुल कोय विशेष शौकीन नयँ हलइ; ओकरा में शुद्ध झेरेब्यातनिकोव वला तत्त्व बिलकुल नयँ हलइ । लेकिन तइयो ऊ कोड़ा लगावे के बिलकुल विरोध नयँ करऽ हलइ; एहे तो बात हइ, कि खुद ओकर कोड़ा के दंड हमन्हीं हीं एक प्रकार के मधुर प्रेम के रूप में आद कइल जा हलइ - त एतना ई व्यक्ति कैदी लोग के खुश करे में सक्षम हलइ ! लेकिन कइसे ? ऊ अइसन लोकप्रियता कइसे अर्जित कइलकइ ? ई बात सच हइ, कि हमन्हीं के जनता, शायद, पूरे रूसी जनता के समान, एगो प्यार भरल शब्द पर पूरा यातना के भूल जाय लगी तैयार रहऽ हइ; हम एकरा बारे एगो तथ्य के रूप में बता रहलिए ह, अबरी, ई चाहे ऊ पक्ष से बिन विश्लेषण कइले । ई लोग के खुश करना आउ ओकन्हीं बीच लोकप्रियता प्राप्त करना मोसकिल नयँ हलइ । लेकिन लेफ्टेनेंट स्मेकालोव विशेष लोकप्रियता प्राप्त कर लेलके हल - हियाँ तक कि ऊ कइसे कोड़ा लगावऽ हलइ, एकरो लगभग हृदयस्पर्शी आवेश के रूप में आद कइल जा हलइ । "पिता के भी आवश्यकता नयँ", कैदी लोग बोलइ आउ उच्छ्वास भी लेइ, अपन पहिलौका तात्कालिक प्राधिकारी स्मेकालोव के आदगारी से वर्तमान मेजर के साथ तुलना करते । "दिलदार अदमी !" ऊ सीधा-सादा व्यक्ति हलइ, शायद, अपन तरह के दयालु । लेकिन ई हो सकऽ हइ, खाली दयालु ही नयँ, बल्कि प्राधिकारी लोग के बीच एगो महान आत्मा भी होवइ; आउ फेर ? ओकरा कोय नयँ पसीन करऽ हइ, आउ कभी-कभी, देखबहो, कि ओकन्हीं ओकरा पर खाली हँसवो करऽ हइ । बात ई हइ, कि स्मेकालोव कइसूँ अइसे कर सकऽ हलइ, कि हमन्हीं हीं ओकरा अपन अदमी समझल जा हलइ, आउ ई एगो बड़गो निपुणता हइ, चाहे आउ अधिक परिशुद्धता से कहल जाय, जन्मजात क्षमता हइ, जेकरा पर ओकर स्वामित्व वला भी नयँ सोचऽ हइ । विचित्र बात हइ, कि ओकन्हीं में से कुछ लोग बिलकुल दयालु नयँ होवऽ हइ, आउ तइयो कभी-कभी बड़गो लोकप्रियता प्राप्त कर ले हइ । ओकन्हीं तुनकमिजाज नयँ होवऽ हइ, अपन अधीनस्थ लोग के प्रति घृणा नयँ करऽ हइ - त अइकी हिएँ परी, हमरा लगऽ हइ, कि कारण हइ ! ओकन्हीं में कुलीन होवे के लक्षण नयँ देखाय दे हइ, अभिजात वर्ग के भावना नयँ होवऽ हइ, बल्कि ओकन्हीं में एक प्रकार के विशेष सामान्य जनता के गन्ह होवऽ हइ, जे ओकन्हीं लगी जन्मजात होवऽ हइ, आउ हे भगमान, सामान्य जनता ई गन्ह के प्रति केतना संवेदनशील होवऽ हइ! आउ ओकरा लगी ऊ (जनता) कइसन बलिदान देवे लगी तैयार नयँ हो जइतइ ! सबसे दयालु अदमी के स्थान पर भी सबसे सख्त अदमी के चुन्ने लगी तैयार हो जा हइ, अगर ई अदमी में ओकन्हीं वला खुद के सामान्य गन्ह निकसऽ हइ । आउ ओइसन हालत में की, अगर ई अदमी ओकन्हीं के गन्ह छोड़े वला होवे के साथ-साथ वास्तव में दयालु भी रहइ, बल्कि अपनहीं तरह से ? तब तो ऊ अनमोल होतइ ! लेफ्टेनेंट स्मेकालोव, जइसन कि हम पहिलहीं बता चुकलिए ह, कभी-कभी दर्दनाक रूप से दंड दे हलइ, लेकिन ऊ कइसूँ ई तरह कर पावऽ हलइ, कि ओकरा पर नयँ खाली क्रोध नयँ करते जा हलइ, बल्कि एकर विपरीत अभियो हमन्हीं के काल में, जबकि सब कुछ बहुत पहिलहीं गुजर चुकले ह, कोड़ा से दंड देते बखत के ओकर दाँव-पेंच (tricks) के हँसी आउ आनंद के साथ आद करते जा हलइ । वस्तुतः ओकरा पास कुल्लम एक्के दाँव हलइ, बस इक्के गो, जेकरा से ऊ लगभग पूरे साल काम चलइलकइ; लेकिन, शायद, ई प्यारा ई बात से हलइ, कि ई एकमात्र हलइ । एकरा में बहुत अनाड़ीपन हलइ । मसलन, दोषी कैदी के ले जाल जा हइ । स्मेकालोव खुद दंड के बखत आवऽ हइ, मुसकइते आवऽ हइ, मजाक के साथ, दोषी के कोय चीज के बारे पूछताछ करऽ हइ, कोय असंगत बात के बारे, ओकर निजी, घरेलू, कैदी जीवन के बारे, आउ कउनो उद्देश्य से बिलकुल नयँ, कोय खेल के साथ नयँ, बल्कि अइसीं - काहेकि ओकरा वास्तव में ई सब मामले में जाने के मन करऽ हइ । बेंत के डंडा लावल जा हइ, आउ स्मेकालोव खातिर कुरसी; ऊ ओकरा पर बइठ जा हइ, पाइप भी जला ले हइ । ओकर पाइप बहुत लमगर हलइ। कैदी प्रार्थना करे लगऽ हइ ... "नयँ, भाय, लेट (पड़) जा, कुछ फयदा नयँ ..." - स्मेकालोव बोलऽ हइ; कैदी उच्छ्वास ले हइ आउ लेट जा हइ । "अच्छऽ, प्यारे, अइकी तोरा मुजबानी प्रार्थना तो मालूम हको न ?"
"कइसे नयँ जानबइ, महामहिम, हम तो क्रिश्चियन हिअइ, बचपने से सिखलिअए ह ।"
"अच्छऽ, त सुनावऽ ।"

आउ कैदी के मालूम हइ, कि कउची सुनावे के हइ, आउ पहिलहीं से जानऽ हइ, कि सुनइला से की होतइ, काहेकि एहे दाँव पहिले दोसर लोग के साथ तीस तुरी दोहरावल जा चुकले ह । आउ स्मेकालोव भी जानऽ हइ, कि कैदी के ई बात मालूम हइ; जानऽ हइ, कि सैनिक लोग भी, जे शिकार के उपरे डंडा उठइले खड़ी रहऽ हइ, ठीक एहे दाँव के बहुत पहिलहीं सुन चुकले ह, आउ तइयो ऊ एकरा दोहरावऽ हइ - ई ओकरा एक्के तुरी हमेशे लगी पसीन पड़लइ, शायद ठीक ई कारण से, कि ऊ साहित्यिक आत्मसम्मान खातिर खुद एकर रचना कइलकइ । कैदी सुनावे लगऽ हइ, लोग डंडा के साथ इंतजार करऽ हइ, आउ स्मेकालोव अपन जगह से आगू तरफ झुक जा हइ, हाथ उपरे करऽ हइ, पाइप पीना बन कर दे हइ, आउ परिचित शब्द लगी प्रतीक्षा करऽ हइ । प्रार्थना के पहिलौका पंक्ति के बाद कैदी आखिरकार "ना निबिसी" (आसमान में) शब्द पर पहुँचऽ हइ । बस एहे शब्द के जरूरत हइ । "ठहर !" - प्रेरित लेफ्टेनेंट चिल्ला हइ आउ तुरते प्रेरित इशारा से डंडा उठइले अदमी (सैनिक) के संबोधित करते चिल्ला हइ - "आउ तूँ ओकरा देहीं !" ।  

आउ ऊ ठठाके हँस पड़ऽ हइ । चारो दने खड़ी सैनिक लोग भी मुसका हइ - डंडा चलावे वला मुसका हइ, डंडा खाय वला भी लगभग मुसका हइ, ई बात के बावजूद कि "देहीं ओकरा" औडर मिलला पर डंडा हावा में सीटी दे चुकले ह, आउ एक पल के बाद दोषी के देह पर अस्तुरा नियर काटे लगतइ । आउ स्मेकालोव भी खुश हो रहले ह, ठीक ई बात लगी खुश हो रहले ह, कि ऊ निम्मन से सोच-विचार कइलके हल आउ खुद्दे रचलके हल "ना निबिसी" (आसमान में) आउ "पदनिसी" (देहीं) - आउ संयोगवश एकरा में तुक भी मिल्लऽ हइ। आउ स्मेकालोव दंड के बाद अपने आप में बिलकुल संतुष्ट होके चल जा हइ, आउ दंडित भी लगभग अपने आप में आउ स्मेकालोव के साथ संतुष्ट होके चल जा हइ । आउ, देखहो, आध घंटा के बाद जेल में ऊ बताहूँ लगऽ हइ, कि कइसे अभी एकतीसमा तुरी, पहिलहीं तीस तुरी दोहरावल दाँव के दोहरावल गेलइ । "एक शब्द, दिलदार अदमी ! जोकर !" यदा-कदा ई सबसे अधिक दयालु लेफ्टेनेंट के बारे संस्मरण एक प्रकार से मानिलोव [5] के भावुकता के आभास दे हलइ । "शायद, कहीं जा रहलऽ ह, भाय", कोय कैदी बोलऽ हइ, आउ ओकर पूरा चेहरा संस्मरण से मुसकुरा उट्ठऽ हइ, "जा रहलऽ ह, आउ ऊ खिड़की बिजुन ड्रेसिंग-गाउन में बइठल चाय पी रहला होत, पाइप पी रहला होत । अपन टोपी उतार लेबहो ।  'अक्स्योनोव, काहाँ जा रहलऽ ह ?' "
"काम पर तो, मिख़ाइल वसिल्यिच, सीधे पहिले कारखाना जाय के चाही", आउ ऊ अपने आप पर हँस पड़ऽ हइ ... मतलब दिलदार अदमी ! एक्के शब्द दिलदार !
"आउ ओइसन अदमी पाना मोसकिल हइ !", श्रोतागण में से कोय बात आगू बढ़ावऽ हइ ।
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