रूसी
उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
3.
पिचोरिन के डायरी – 1. तमान ; अध्याय-1
तमान
[1] - रूस के सब समुद्री तट पर स्थित शहर में से एगो सबसे घटिया छोटगर शहर हइ । हम
हुआँ भूख से मरते-मरते बाल-बाल बचलूँ, ओकरो पर आउ ई बात कि लोग हमरा पानी में डुबाके
मारे लगी चाहलक । हम एक डाक स्टेशन से दोसरा डाक स्टेशन में घोड़ा बदलाय वला घोड़ागाड़ी
से देर रात के पहुँचलूँ । कोचवान थक्कल-माँदल त्रोयका के पत्थल से बन्नल एकमात्र घर
के गेट पर रोकलकइ, जे शहर के प्रवेश भिर हलइ । संतरी, जे काला सागर के कज़ाक हलइ, घंटी
के अवाज सुनके, निनारू अवस्था में रूखाई के स्वर में चिल्लइलइ - "केऽ जा रहलऽ
ह ?" चौकीदार आउ हवलदार बहरसी अइलइ । हम ओकन्हीं के बतइलिअइ, कि हम एगो अफसर हिअइ,
सरकारी काम से सक्रिय/तैनात टुकड़ी (active detachment) में योगदान देवे खातिर जा रहलिए
ह, आउ सरकारी क्वाटर के माँग कइलिअइ । हवलदार हमन्हीं के शहर में घुमइलकइ । चाहे कउनो
इज़्बा (लकड़ी के बन्नल झोपड़ी) में जइअइ - कमरा खाली नयँ । बहुत ठंढा हलइ, हम तीन रात
सुत नयँ पइलूँ हल, बिलकुल थकके चूर हलूँ आउ गोस्सा करे लगलूँ । "कहीं तो हमरा
ले चल, बदमाश ! बल्कि शैतान के पास, खाली ठहरे के जगह रहे के चाही !" हम चिल्लइलिअइ
। "एगो आउ डेरा हइ", सिर खुजलइते हवलदार जवाब देलकइ, "लेकिन महामहिम
के पसीन नयँ पड़तइ; हुआँ कुछ गोलमाल (monkey business) चल्लऽ हइ !" अंतिम शब्द
"गोलमाल" के मतलब नयँ समझ में आल, तइयो हम ओकरा आगू बढ़ते रहे लगी औडर देलिअइ
आउ लमगर गंदा छोटकन गलियन से, जाहाँ परी दुन्नु बगली हमरा खाली जर्जर छरदेवारी देखाय
देलकइ, गेला के बाद हमन्हीं समुद्र के बिलकुल किनारे में एगो छोटगर कच्चा मकान भिर
पहुँचलिअइ । हमर नयका निवास स्थान के सरपत वला छप्पर आउ उजरका देवाल सब पर पुनियाँ
के चाँद चमक रहले हल; प्रांगण में, बगल में
पनपत्थर (rubble-stone) के छरदेवाली से घेरल, एगो दोसर झोपड़ी हलइ, जे पहिलौका से छोटगर
आउ जादे पुराना हलइ । लगभग एकर देवाल से सटलहीं कगार ससरके सीधे समुद्र में चल गेले
हल, आउ निच्चे गहरा नीला लहर लगातार समुद्री तट पर टकराके गूँज रहले हल । चान शांति
से बेचैन, लेकिन अपना सामने विनम्र, प्रकृति के लीला देख रहले हल, आउ हम ओकर रोशनी
में, तट से दूर, दूगो जहाज पछान लेलिअइ, जेकर मकड़ी के जाला नियन करिया साज-समान
(rigging), क्षितिज के फीका रेखा पर गतिहीन पार्श्व छायाचित्र (motionless
silhouette) बना रहले हल । "जहाज बंदरगाह में हइ", हम सोचलिअइ, "कल हम गेलेन्जिक
[2] लगी रवाना हो जाम ।"
हमर
कमांड में सैनिक अर्दली के रूप में ड्यूटी निभावे वला सीमा पर तैनात एगो कज़ाक हलइ ।
ओकरा सूटकेस उतारे आउ कोचवान के मुक्त करे लगी औडर देला के बाद, हम घर के मालिक के
पुकारे लगलिअइ - लेकिन चुप; हम दस्तक दे हिअइ - लेकिन चुप ... ई की बात हइ ? आखिरकार
ड्योढ़ी (बाहरी प्रवेश कमरा) से एगो करीब चौदह साल के लड़का बहरसी अइलइ ।
"मकान
मालिक काहाँ ?"
"नयँ
।" (लड़कावा यूक्रेनियन उपभाषा में जवाब देलकइ ।)
"की
? बिलकुल नयँ ?"
"बिलकुल
नयँ ।"
"आउ
मकान मालकिन ?"
"बस्ती
भाग गेला ।"
"त
दरवाजा हमरा लगी केऽ खोलतइ ?" हम ओकरा पर गोड़ से धक्का देते कहलिअइ ।
दरवाजा
खुद्दे खुल गेलइ; झोपड़ी से नमी भरल हावा के गन्ह अइलइ । हम गंधक के माचिस जलइलिअइ आउ
ओकरा लड़कावा के नकिया भिर लइलिअइ - ई दूगो उज्जर आँख के प्रकाशित कइलकइ । ऊ आन्हर हलइ,
जनम से बिलकुल आन्हर । ऊ हमरा सामने बिलकुल बिन हिलले-डुलले खड़ी हलइ, आउ हम ओकर चेहरा-मोहरा
के ध्यान से देखे लगलिअइ । हम स्वीकार करऽ हिअइ, कि हम सब आन्हर, कान, बहिर, गोंग,
बिन गोड़ वला, बिन हाथ वला, कुबड़ा आदि के विरुद्ध पूर्वाग्रही हिअइ । हम नोटिस कइलिए
ह, कि अदमी के बाहरी रूप आउ ओकर आत्मा के बीच हमेशे कुछ तो विचत्र संबंध रहऽ हइ - मानूँ
एगो अंग खो देवे से आत्मा कइसनो भावना के भी खो दे हइ ।
आउ
ई तरह, हम अन्हरा के चेहरा के पढ़े लगलिअइ; लेकिन ऊ चेहरा पर की पढ़ल जा सकऽ हइ, जेकरा
अँखिए नयँ हइ ? हम देर तक ओकरा दने कुछ सहानुभूति के साथ तकलिअइ, कि अचानक मोसकिल से
दृष्टिगोचर होवे वला मुसकान ओकर पतरका होंठ पर दौड़ गेलइ, आउ नयँ मालूम काहे, ऊ हमर
मस्तिष्क पर बहुत अप्रिय छाप छोड़लकइ । हमर दिमाग में शक्का पैदा होलइ, कि ई आन्हर ओतना
आन्हर नयँ हइ, जेतना देखे में लगऽ हइ; व्यर्थ में हम खुद के समझावे के कोशिश करे लगलिअइ,
कि नकली आँख बनाना असंभव हइ, आउ काहे लगी कोय अइसे करतइ ? लेकिन की कइल जाय ? हम अकसर
पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जा हिअइ ...
"तूँ
मकान मालिक के बेटा हकहीं ?" हम आखिरकार ओकरा पुछलिअइ ।
"नयँ
।"
"त
तूँ केऽ हीं ?"
"एगो
अनाथ, विकलांग ।"
"आउ
मकान मालकिन के कोय बाल-बच्चा हइ ?"
"नयँ;
एगो बेटी हलइ, लेकिन एगो तातार के साथ समुद्र के पार भाग गेलइ ।"
"कउन
तातार के साथ ?"
"शैताने
ओकरा जानऽ हइ ! क्रिमिया के कोय तातार, केर्च के कोय मल्लाह ।"
हम
झोपड़ी के अंदर हेललिअइ - दूगो बेंच आउ एगो टेबुल, आउ चूल्हा बिजुन एगो बड़का गो संदूक
- एहे एतना सब फर्नीचर हलइ । देवाल पर (भगमान के) एक्को गो प्रतिमा नयँ हलइ - एगो खराब
संकेत ! खिड़की के टुट्टल काच से समुद्री हावा के झोंका आ रहले हल । हम सूटकेस से अधूरा
जल्लल एगो मोमबत्ती निकसलिअइ, आउ एकरा जलाके, समान सब रक्खे लगलिअइ, तलवार आउ बंदूक
एगो कोना में रखलिअइ, पिस्तौल सब के टेबुल पर रखलिअइ, नमदा के चोगा (felt cloak) बेंच
पर पसार देलिअइ, कज़ाक अप्पन चोगा दोसरका बेंच पर पसरलकइ; दस मिनट के बाद ऊ खर्राटा
मारे लगलइ, लेकिन हमरा नीन नयँ आ रहल हल - हमरा सामने अन्हरवा में हमेशे उज्जर आँख
वला लड़कावा घूमते रहलइ ।
अइसीं
लगभग एक घंटा गुजर गेलइ । चान के रोशनी खिड़की से आ रहले हल, आउ ओकर किरण झोपड़ी के मट्टी
के फर्श पर खेलवाड़ कर रहले हल । अचानक फर्श के आर-पार चाँदनी के चमकीला पट्टी से होके
एगो छाया गुजरलइ। हम जरी सुन उठके खिड़की से तकलिअइ - कोय तो दोसरा तुरी एकरा से होके
भागके गेलइ आउ भगमान जाने काहाँ गुम हो गेलइ । हम सोच नयँ सकलिअइ, कि ई जीव खड़ी ढलान
से दौड़के समुद्र के किनारा पर चल गेले होत; लेकिन ओकरा आउ कहीं जाय के जगह नयँ हलइ
। हम उठ खड़ी होलिअइ, बिश्मेत देह पर डललिअइ, खंजर के बेल्ट लपटलिअइ आउ चुपचाप झोपड़ी
से निकस गेलिअइ; अन्हरा लड़कावा हमरा दने आ रहले हल । हम छरदेवाली भिर नुक गेलिअइ, आउ
ऊ विश्वासपूर्वक, लेकिन सवधानी के साथ डेग भरते हमरा सामने से गुजर गेलइ । अपन कँखिया
से दाबले ऊ कइसनो बंडल लेले हलइ, आउ घाट दने मुड़के, सकेत आउ ढालू पगडंडी से उतरे लगलइ
। "ऊ दिन गोंग लोग चिल्लइतइ आउ अन्हरन देखतइ [3]", हम सोचलिअइ, आउ ओकर पीछू-पीछू
एतना अंतर रखते गेलिअइ कि ऊ हमर आँख से ओझल नयँ होबइ ।
एहे
दौरान चान बादर से ढँकाय लगलइ आउ समुद्र पर कुहरा छाय लगलइ; मोसकिल से ओकरा से होके
नगीच के जहाज के दुंबाल (stern) पर के बत्ती के रोशनी देखाय दे हलइ; समुद्र तट भिर
गोलाश्म (boulders) पर लहर के फेन चमक रहले हल, आउ पल-पल ओकरा (अर्थात् तट के) डुबावे
के धमकी दे रहले हल । मोसकिल से हम निच्चे उतरते, सीधा खड़ी ढलान पर चुपके-चोरी रस्ता
धइले गेलिअइ, आउ अइकी देखऽ हिअइ - अन्हरा जरी रुक गेलइ, फेनु निच्चे दहिना दने मुड़लइ;
ऊ पानी के एतना नगीच जा रहले हल, कि लगलइ, अभिए लहर ओकरा पकड़ लेतइ आउ दूर समुद्र में
ले जइतइ, लेकिन जेतना आत्मविश्वास से ऊ एक पत्थर से दोसरा पत्थर पर अपन कदम रख रहले
हल आउ गड्ढा से खुद के बचाव कर रहले हल, ई बात साफ हलइ, कि ई ओकर पहिले तुरी के यात्रा
नयँ हलइ । आखिरकार ऊ रुक गेलइ, जइसे कि ऊ कोय चीज के अकान रहले हल, जमीन पर बैठ गेलइ
आउ बंडल के अपन बगल में रख लेलकइ । तट पर के एगो आगू मुँहें निकसल (protruding) चट्टान
के पीछू नुकके हम ओकर हलचल पर नजर रखले हलिअइ । कुछ मिनट के बाद सामने वला तरफ से एगो
उज्जर आकृति दृष्टिगोचर होलइ; ऊ अन्हरा भिर अइलइ आउ ओकरा बिजुन बैठ गेलइ । बीच-बीच
में हावा ओकन्हीं के बातचीत के हमरा दने लइलकइ ।
"की,
सूरदास ?" एगो औरतानी अवाज कहलकइ, "आँधी जोरदार हउ । यान्को नयँ अइतउ ।"
"यान्को
आँधी से नयँ डरऽ हइ", ऊ जवाब देलकइ ।
"कुहरा
गहराल जा हइ", उदास भाव से फेर से औरतानी अवाज एतराज कइलकइ ।
"कुहरा
में तो आउ असानी से गश्ती जहाज के सामने से बचके निकसल जा सकऽ हइ", जवाब हलइ ।
"आउ
अगर ऊ डूब जाय तो ?"
"त
एकरा से की होलइ ? एतवार के तोरा चर्च (गिरजाघर) बिन नावा रिबन के जाय पड़तउ ।"
एकर
बाद सन्नाटा पसर गेलइ; हमरा लेकिन एक बात के अचंभा होलइ - अन्हरा हमरा साथ यूक्रेनियन
उपभाषा में बात कइलके हल, लेकिन अभी अपन बात शुद्ध रूसी में कर रहले हल ।
"देखऽ
हीं, हम सही हकिअउ", हथेली पर प्रहार करते अन्हरा फेर कहलकइ, "यान्को न तो
समुद्र से डरऽ हइ, न हावा से, न कुहरा से, न तट प्रहरी से; ई पानी नयँ छपाका मार रहले
ह - ई ओकर लमका चप्पू (oars) हइ ।"
औरतिया
उछलके खड़ी हो गेलइ आउ बेचैनी के साथ दूर में एकटक देखे लगलइ ।
"तूँ
बड़बड़ा रहलँऽ हँ, सूरदास", ऊ कहलकइ, "हमरा तो कोय नयँ देखाय देब करऽ हके ।"
हम
स्वीकार करऽ हिअइ, कि दूर समुद्र में हम एगो नाव से मिलता-जुलता कुच्छो देखे के केतनो
प्रयास कइलिअइ, लेकिन हम सफल नयँ होलिअइ । अइसीं दस मिनट गुजर गेलइ; आउ अइकी लहर के
पहाड़ के बीच एगो करिया बिन्दु नजर में अइलइ; ऊ कभी बड़गर हो जाय, त कभी छोटगर । धीरे-धीरे
लहर के शीर्ष पर उठते, आउ तेजी से ओकरा से निच्चे उतरते, एगो नाय तट के नगीच आ रहले
हल । ई पैराक (नाविक) साहसी हलइ, जे अइसन रात में बीस विर्स्ता लम्मा जलडमरूमध्य
(strait) के पार करे के फैसला कइलके हल, आउ ऊ कारण भी महत्त्वपूर्ण होवे के चाही, जे
ओकरा अइसन काम करे लगी प्रेरित कइलके हल ! अइसे सोचते, अनिच्छापूर्वक धड़धड़इते दिल के
साथ हम ऊ अभागल नाय दने तक रहलिए हल; लेकिन ऊ, बत्तख नियन, डूबकी मारइ आउ फेर, चप्पू
से तेजी से, मानूँ डैना नियन, फड़फड़इते, फेन के छपाका के बीच से गर्त्त (trough,
abyss) में से उपरे उछल जाय; आउ अइकी, हम सोचलिअइ, कि ऊ नाय तट पर धड़ाम से पटकइतइ आउ
चकनाचूर हो जइतइ; लेकिन ऊ कुशलतापूर्वक बगल में मुड़ गेलइ आउ उछलके एगो छोटकुन्ना खाड़ी
(creek) में सुरक्षित पहुँच गेलइ । ओकरा में से भेड़ के खाल के तातार टोपी में एगो मध्यम
कद के अदमी निकसलइ; ऊ हाथ लहरइलकइ, आउ ओकन्हीं तीनों मिलके नइया से कुछ तो उतारे लगलइ;
माल ओकरा में एतना जादे हलइ, कि हमरा अभियो तक नयँ समझ में आवऽ हइ, कि ऊ नइया कइसे
नयँ डुबलइ । हरेक कोय कन्हा पर एक-एक बंडल लेके, ओकन्हीं तट के किनारे-किनारे चल गेलइ,
आउ जल्दीए हमर आँख से ओझल हो गेते गेलइ । घर लौटना जरूरी हलइ; लेकिन हम स्वीकार करऽ
हिअइ, कि ई सब विचित्रता से हम चिंतित हो गेलिअइ, आउ कइसूँ सुबह के इंतजार कइलिअइ ।
हमर
कज़ाक बहुत अचंभित होलइ, जब जगला पर हमरा बिलकुल सज-धज के तैयार देखलकइ; लेकिन हम ओकरा
कारण नयँ बतइलिअइ । कुछ देर तक खिड़की से खुशी से देखते रहलिअइ - बिखरल छिटपुट बादर
वला नीला आकाश के, दूर के क्रिमिया के समुद्री तट के, जे बैंगनी रंग के धारी नियन पसरल
हइ आउ जे एगो खड़ी चट्टान में अंत होवऽ हइ, जेकर चोटी पर प्रकाश-स्तंभ
(light-house) के उज्जर मीनार हइ, आउ फेर कमांडेंट से गेलेन्जिक जाय खातिर रवाना होवे
के समय पुच्छे लगी, फ़नागोरिया किला जाय लगी रवाना हो गेलिअइ ।
लेकिन,
अफसोस; कमांडेंट हमरा कुच्छो निश्चयपूर्वक नयँ बता पइलका । बंदरगाह में खड़ी सब्भे जहाज,
या तो तट के गश्ती लगावे वला, चाहे व्यापारी जहाज हलइ, जेकरा में अभियो तक माल लादे
के काम शुरू नयँ कइल गेले हल । "शायद तीन-चार दिन में डाक-जहाज अइतइ", कमांडेंट
बतइलका, "आउ तब हमन्हीं देखबइ ।" हम उदास आउ गोसाल घर वापिस अइलिअइ । दरवजवा
भिर भयभीत चेहरा के साथ हमर कज़ाक हमरा से मिललइ।
"हियाँ
के माहौल खराब हइ, महामहिम !" ऊ हमरा से कहलकइ ।
"हाँ,
भाय, भगमाने जाने कब हमन्हीं हियाँ से निकस पइबइ !" अब तो ऊ आउ चिंतित देखाय देलकइ,
आउ हमरा दने झुकके, फुसफुसाहट के साथ बोललइ - "हियाँ के माहौल गंदा हइ ! आझ हम
काला समुद्र वला हवलदार से मिललिए हल, ऊ हमर परिचित हइ - परसाल हमन्हीं के पलटन में
हलइ, जइसीं हम कहलिअइ, हमन्हीं काहाँ ठहरलिए ह, कि ऊ हमरा बतइलकइ – ‘भाय, हियाँ के
माहौल खराब हको, लोग निम्मन नयँ हको ! ...’ आउ वास्तव में, ई कइसन आन्हर हइ ! सगरो
अकेल्ले जा हइ, बजार, पावरोटी लावे लगी, आउ पानी लावे लगी ... ई साफ हइ, कि हियाँ परी
ई सब चीज के लोग के अभ्यास हो गेले ह ।"
"त
एकरा से की होलइ ? कम से कम मकान मालकिन अइले हल ?"
"आझ
जब अपने नयँ हलथिन, त बुढ़िया अपन बेटिया के साथ अइले हल ।"
"कइसन
बेटी ? ओकरा तो कोय बेटी नयँ हइ ।"
"भगमान
जाने, कि ऊ केऽ हइ, अगर ऊ ओकर बेटी नयँ हइ; अइकी ऊ बुढ़िया अभी अपन झोपड़ी में बैठल हइ
।"
हम
झोपड़ी के अंदर गेलिअइ । चूल्हा जलाके पूरा गरम कइल हलइ, आउ ओकरा में दुपहर के भोजन
बन रहले हल, जे गरीब लोग खातिर काफी शानदार हलइ । बुढ़िया हमर सब्भे सवाल के एक्के जवाब
देलकइ, कि ऊ बहिर हइ, ओकरा सुनाय नयँ दे हइ । ओकरा साथ की कइल जा सकऽ हलइ ? हम अन्हरा
दने मुड़लिअइ, जे चूल्हा भिर बैठल हलइ आउ अगिया में सुक्खल टहनी के आँच देब करऽ हलइ
। "त आन्हर शैतान", ओकर कान पकड़के हम कहलिअइ, "बोल, बंडल लेके तूँ रात
में काहाँ घुम रहलहीं हल, ऐं ?" अचानक हमर अन्हरा कन्ने लगलइ, चिल्लाय लगलइ, आह-ओह
करे लगलइ - "हम काहाँ गेलिए हल ? ... कहूँ नयँ गेलिए हल ... बंडल के साथ ? कइसन
बंडल?" बुढ़िया अबरी सुन लेलकइ आउ बड़बड़ाय लगलइ - "अइकी कइसन-कइसन बात सोचते
जा हका, आउ ओहो एगो अपंग पर ! काहे लगी ओकरा अपने परेशान कर रहलथिन हँ ? ऊ अपने के
की कइलके ह ?" ई बात से हमर जी उकता गेल, आउ ई पहेली के कुंजी ढूँढ़े लगी दृढ़ निश्चय
करके हम बाहर निकस गेलूँ ।
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