विजेट आपके ब्लॉग पर

Friday, October 25, 2019

मार्को पोलो के साहसिक विश्व-यात्रा - भाग 1


मार्को पोलो के साहसिक विश्व-यात्रा - भाग 1
[From Chandamama (Hindi), May 1960, pp.49-52]


[49] तेरहमी शताब्दी में वेनिस शहर में दूगो भाय रहऽ हलइ। बड़का के नाम निकोलो पोलो (लगभग 1230 – लग॰1294) आउ छोटका के नाम माफियो पोलो  (लगभग 1230 – लग॰1309) हलइ। ओकन्हीं व्यापार करते-करते कइएक देश हो अइले हल। ओकन्हीं 1260 में कंस्तनतुनिया (Constantinpole) तक गेलइ। आउ हुआँ से एक साल तक सफर करके चीन देश के तातार सम्राट् कुबिलाय ख़ान के पास जाय के अवसर मिललइ। ऊ जमाना में यूरोप से पूरब के देश में ई तरह से जाय वला कोय नञ् हलइ। तातार मंगोलिया देश के एगो जाति हलइ। ऊ सब असभ्य हलइ। सन् 1206 में ओकन्हीं अपन पुण्य-स्थल कारकोरम में एकट्ठा होलइ। ओकन्हीं तब चंगेज़ ख़ान के अपन नेता चुनलकइ। चंगेज़ ख़ान अपन बारह साल के शासन के अन्दरे चीन के उत्तर के स्वतंत्र देश काते के जीतके वश में कर लेलकइ। फेर ऊ सिवाय इन्डोचीन, भारत, अरब, यूरोप, पश्चिम यूरोप के, बाकी आउ एशिया के भी जीत लेलकइ। ऊ दू पुश्त में एतना विस्तृत साम्राज्य स्थापित कइलकइ कि न ओकरा से पहिले न ओकर बादे एतना विस्तृत साम्राज्य स्थापित कइल गेलइ। चंगेज़ ख़ान के वारिस लोग के "बड़े ख़ान" के उपाधि भी मिललइ। काते ओकर निचहीं हलइ। बाकी साम्राज्य तीन ख़ान के निच्चे हलइ। ओकन्हीं बड़े ख़ान के अधीन हलइ।
काते पर शासन करे वला बड़े ख़ान लोग में से कुबिलाय ख़ान पचमा हलइ। ऊ चंगेज़ ख़ान के पोता हलइ। ऊ दुन्नु पोलो भाय के [50] आदर कइलकइ। ओकन्हीं से ऊ संसार के अनेक देश के बारे जनकारी प्राप्त कइलकइ। ऊ ओकन्हीं के रोम में रहे वला पोप के पास दूत बनाके भेजे लगी चहलकइ। पोलो बन्धु एकरा लगी मान गेते गेलइ। लेकिन जब ओकन्हीं जाय लगी तैयार होलइ त मालुम पड़लइ कि पोप मर गेले हल आउ नयका पोप के नियुक्ति नञ् होले हल। ओहे से ओकन्हीं वेनिस शहर वापिस चल गेते गेलइ। हुआँ कुछ दिन रहला के बाद ओकन्हीं के भय होलइ कि बड़ा ख़ान ओकन्हीं के इंतजार कर रहले होत, ओहे से ओकन्हीं फेर से काते लगी रवाना हो गेलइ।
अबरी ओकन्हीं साथ मार्को पोलो (1254-1324) भी अइलइ। पोलो बन्धु में से बड़का भाय निकोलो के ई लड़का हलइ। एहे मार्को पोलो हलइ, जे पनरह साल बड़े ख़ान के दरबार में नौकरी करके अपन घर पहुँचके संसार के भ्रमण के विषय में अपन अनुभव लिखलके हल।
   *    *    *   *    *   *    *   *    *    *   *    *   *    *   * 
जौर्जिया के राजा सब के नाम डैविड मालिक होवऽ हलइ। ई राजा तातार लोग के सामन्त हलइ। जौर्जिया के लोग खूब सुन्दर आउ निम्मन योद्धा हलइ। सिकन्दर जब पश्चिमी देश सब पर आक्रमण करे लगी निकसलइ, त ऊ जौर्जिया में से होके नञ् जा सकले हल, काहेकि जे रस्ता पर ओकरा जाय के हलइ, ओकर एक दने तो समुद्र हलइ आउ दोसरा दने बड़गर-बड़गर पहाड़। अइसन-अइसन जंगल हलइ, जेकरा में घुड़सवार घुस नञ् सकऽ हलइ। समुद्र आउ पहाड़ के बीच वला 14 मील लम्बा तंग रस्ता पर चाहे केतनो आवइ, कुछ सैनिक हीं ओकन्हीं के रोक सकऽ हलइ। ओहे से सिकन्दर ऊ रस्ता से नञ् जा सकलइ। कहीं जौर्जिया के लोग आके आक्रमण नञ् कर दे, ओहे से ऊ [51] हुआँ परी एगो बुर्ज आउ किला बनवइलकइ। ओकरा फौलादी फाटक भी कहल जा हइ।
जौर्जिया के उत्तर में काला सागर आउ पूरब में बाकू समुद्र हइ। ई बाकू (कैस्पियन) समुद्र सचमुच में समुद्र नञ् हइ। ई एगो बड़गो झील हइ। एकर परिधि 2800 मील हइ। एकरा में कइएगो द्वीप हइ, जेकरा में लोग रह सकऽ हइ। शहर हइ। तातार लोग जब फारस पर हमला कइलकइ, त आश्रयार्थी भागके ई सब द्वीप में आउ जौर्जिया के पहाड़ आउ जंगल में रहे लगलइ।
बगदाद में अइसन कारीगर लोग हलइ, जे मोती में छेद करते जा हलइ। भारत से हियाँ मोती आवऽ हलइ, आउ हियाँ से ईसाई देश जइते रहऽ हलइ। हियाँ सोना आउ चानी के मूँगा से कपड़ा बनावल जा हलइ। ऊ इलाका में ओकरा से बड़गो कोय शहर नञ् हलइ। हियाँ इस्लाम धर्म हीं नञ्, जादू आउ अन्य शास्त्र सिक्खे के सुविधा हलइ।
खलीफा के पास एतना धन-सम्पत्ति हलइ, जे ऊ समय केकरो पास नञ् हलइ। सन् 1258 में एगो घटना घटलइ। हुलुग ख़ान नाम के एगो बड़गर तातार अपन सेना के साथ बगदाद पर हमला कइलकइ। ई मोंग ख़ान के छोटका भाय हलइ। ओकन्हीं चार भाय हलइ। काते के जितला के बाद ओकन्हीं समुच्चा विश्व जित्ते लगी ठान लेते गेलइ। चारो भाय चारो दिशा में निकस पड़लइ। हुलुग दक्खिन तरफ गेलइ। ऊ दिग्विजय करते-करते बगदाद तक अइलइ। बगदाद के सेना के बल से जीतना कठिन समझके ओकरा चलाकी से जित्ते के निश्चय कइलकइ। ओकरा साथ हजारों सिपाही तो हइए हलइ, बीस हजार घुड़सवारो हलइ। लेकिन ऊ खलीफा के मन में ई खियाल पैदा कइलकइ कि ओकरा पास कम [52] सेना हइ। बगदाद पहुँचे से पहिले ऊ अपन अधिकांश सैनिक के सड़क के दुन्नु तरफ के पेड़ पर छिपाके बगदाद के फाटक पर हमला कइलकइ।
ई समझके कि ख़ान के साथ काफी सेना नञ् हइ, खलीफा लापरवाही के साथ अपन सेना लेके ओकर मोकाबला करे निकसलइ। ई देखके हुलुग ई देखइलकइ जइसे ऊ ओकरा देखके भागल जाब करऽ हइ। ओकन्हीं शत्रु के पीछा कइलकइ आउ फँस गेते गेलइ। हुलुग ख़ान के सेना ओकन्हीं के घेर लेलकइ आउ बन्दी बना लेलकइ। बगदाद शहर के साथ खलीफा भी तातार के वश में आ गेलइ।
एक बुर्ज में सोना भरल देखके हुलुग के बड़ी अचरज होलइ। बन्दी खलीफा के अपना भिर बोलाके पुछलकइ - "खलीफा, ई सब सोना तूँ काहे लगी ई तरह से जामा कर रखलऽ ह? तूँ एकरा से कीऽ करे के निश्चय कइलऽ ह? कीऽ तूँ नञ् जानऽ हलऽ कि हम तोरा लुट्टे लगी सेना के साथ आ रहलियो ह? ई सब अपन सैनिक आउ योद्धा के देके काहे नञ् ओकन्हीं के शहर के रक्षा करे लगी कहलहो?"
कीऽ उत्तर देल जाय, खलीफा के नञ् सुझलइ।
"काहेकि तोरा धन से एतना प्रेम हको, ओहे से तूँ धन हीं खा।" एतना कहके हुलुग, खलीफा के बुर्ज में बन्द कर देलकइ। एहो हुकुम देलकइ कि ओकरा खाय लगी कुछ नञ् देल जाय। चार दिन खलीफा ऊ बुर्ज में कैद रहलइ। फेर ऊ मर गेलइ। ओकर बाद कोय खलीफा नञ् होलइ।
(क्रमशः)

 

भाग-1                                                                                                            भाग-3

No comments: