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Saturday, December 19, 2020

प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 7

 प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 7 

रचताहर:    लालमणि विक्रान्त 

 

सातवां सर्ग: गौरव गान

 

सोनपरी कहलन हर घर के

अंदर भी हम करब सुधार।

घर के अंदर शांति रहत नञ

तब कइसन सुखमय संसार।

दिल में होबइ निम्मन विचार

निम्मन तब होतइ आचार।

दिल में जब विचार के सूरज

उगत त सुखी होत संसार।

 

 इसकुल में होबइ पढ़ाय त

एकर मिलइ हे का परिणाम?

संस्कार बचवन में आबइ

अइसन शिक्षा के हे काम।

शिक्षा जे सबके पढ़बइ

मद्य निषेध के निम्मन पाठ।

सरकारी फरमान भी हे ई

तभियो नञ सुधरल हइ चाल।

का करतइ सरकार इहाँ 

जब ग्राम सरकार नञ धरतइ ध्यान।

 

गाँव गली नाली सुधरइ से

गाँव के हाल सुधरतइ नञ।

जब तक सुधरत नञ विचार त

असली हाल सुधरतइ नञ।

सभे तरह से बात सोंच के

ओकरा के जमीन पर लाबो।

तभिए राम राज के सपना

सही-सही धरती पर पाबो।

 

अतनइ में अइली रामपरी

रोबइत -धोबइत कपसइत अइली।

कहे लगली कि हम्मर जिनगी

अब थोड़के दिन के रहलो।

जेकरा पाल पोस हम कइलूं

आस लगइलूं छांह बनत।

भर-पेट भोजन पर भी आफत

दिन-भर बात बोली के सालन।

कइसे कटत बुढ़ारी हम्मर

अब अन्हार सूझइत हो हमरा।

इहे कि एक्का ठो बेटा 

दोसर कउन सहारा देत।

इहो हर दिन तंग करइ हो।

कहइ हे बुढ़िया मर तू जो।

अप्पन हाथ गर मौत रहइ त

इहो बात से पगड़ी हान।

कइसे कटत अउर जिनगी अब

काम करइ नञ हम्मर दिमाग।

 

कहलन मुखिया जी तू ठहरो

हम्मर जिनगी में नञ हहरो।

एकरो अब हम करब उपाय।

माय-बाप के तंग करत जे

ओकरा देबइ सजा सुनाय।

गाँव के इज्जत के सबाल हे

कइसे कोय देखत रह जाय।

माय-बाप जे जलम देबइ हथ

उनकर इज्जत जे नञ करतइ।

अइसन लोगन के समाज में 

हुक्का -पानी बंद करइबइ।

माय-बाप देवी देवता हथ।

इनकर आशीर्वाद बिना कोय

जिनगी में कइसे इज्जत पाय।

 

हम सौंसे गाँव में देबइ

अइसन बात ला ढोल पिटबाय।

माय-बाप के जे नञ सेवा करतइ

ओकरा होतइ संकट भाय।

सरकारी सुविधा से वंचित

करइ के करबइ हमें उपाय।

अनतइ में आ गेलन सोनपरी 

कहलन चलो अभी बतियाम।

तोहर बेटा अउर पुतोहु के

चलो अभी चल के समझाम।

आदमीयत नञ हे तनिको-सन

आदमी त कउन काम के।

अइसन के समाज में इज्जत 

मिलइ हे त विधि हे वाम।

कहलन सोनपरी मंगरू से

बोलो मंगरू काहे अइसन

अप्पन माय-बाप के दिक्कत

देबइ में तू का पाबइ हा।

सौंसे गाँव में कान न देल जाय

अइसन कइला से कइसन

सुख पाबइ हा तू ही बोलो।

 

हमें कहइ ही कि जिनगी में 

प्रेम भाव के रस तू घोलो।

बकि नञ सुनबा बात हम्मर त

हमरो जे करइ के करिए देबो।

तोहर माय-बाप न केवल

सभे माय-बाप के संकट

अउर तखनो जब होय बुढ़ारी

देख के तू उनकर लाचारी

उनका संकट में डालइ हो।

तोहरो बेटा त देखइत हो

तोहरो अइतो जरूर बुढ़ारी।

संकट झेलइ के तोहरो त

आबइए वाला हो पारी।

 

बाप-माय अनुभव के खजाना

संकट में उपयोग करइ के

समझो हम्मर कहल बात के

नञ तू बनो बात के अढ़री

बोलो कि कुछ समझ में अइलो।

मंगरू त भावुक हो गेलइ।

अंखियन से ढरकइत आँसू

दुन्हू गाल पर ढरक रहइ हल।

 

जइसे ई अंसुवन के बून्द

नञ अइसन होत बात कहइ हल।

कहके चलली सोनपरी।

चेहरा उनकर तमतमाल हल।

अँखियन भी हो गेल लाल हल

रपरपाल घर जा रहली हल

मिल गेल राह में दीनू देवर।

कहलन भौजी का होलइ कि

गजब रूप हो गेल हे तोहर।

के का कहलन बोलो हमरा

कउन काम जे हम नञ करबइ।

भौजी के खातिर कुछ भी 

हम नञ केकरो से भी डरबइ।

कहलन सोनपरी देवर जी

मंगरू के घर से लौटइत ही

माय-बाप के तंग करइ हे।

ओकरे समझा लौटइत ही हम।

अउर न बात कुछ कि हम कहियो

चलो घरे सभे बात बतइबो।

 

तोहरो अब हम काम बतइबो

गाँव में अइसन जे भी करतन

 उनकर हमरा नाम बतइहा।

बूढ़ बुजुर्ग के कष्ट होबइ नञ

एकर तनी हिसाब तू रखिहा।

सभे रहथ गाँव में सुख से

इहे हो हम्मर कहनाम।

जे नञ सुनथुन बात तोहर त

 उनकर घर हम खुद से जाम।

बात होबइत घर पहुंच गेली।

डाकिया करइत हलन इन्तजार।

डाकिया चिट्ठी थमा देलन 

चललन अप्पन काम के राह।

चिट्ठी खोल पढ़इ लगलन

डी0 एम0 साहेब के चिट्ठी हल।

डी0 एम0 साहेब कहलन हल कि

मुखिया सुबोध के करब सम्मान 

जिला स्थापना दिवस के दिन।

अइसन मुखिया होबे त

जन गण ला हो जाय सुदिन।

 

स्थापना दिवस पर सजल-धजल हल

जिला मुख्यालय त पुरजोर।

होबइवला हे आज काजकरम 

सौंसे जिला में हल एकर शोर।

मुखिया सुबोध अउ सोनपरी 

दुन्नू पहुंचला समय से पहिले

घूम-घूम के देखइत हलन

तरह-तरह के हल इस्टाॅल।

बड़गो भीड़ जमल हल सगरो

अउर सजल हल बगल के माॅल।

समय से डी0एम0 साहेब अइलन

काजकरम शुरू हो गेल 

स्वागत गान शुरू हो गेलन

जइसे रहे कोकिल के तान।

सहे-सहे बढ़ल काजकरम

मुखिया सुबोध के होलन पुकार

सोनपरी भी बढ़ली सुबोध संग।

डी0एम0 साहेब कहला कि

सुबोध-सन हमरा मुखिया चाही।

होबत गाँव-गाँव में पसरल

सभे लोग के दूर तबाही।

पढ़-लिख के सुबोध जी

व्रत देलन कि बनबइ मुखिया।

अउर गाँव के लोग भी

मुखिया होबइ के मौका देलन।

मुखिया के पद पाके सुबोध

अप्पन जिला में रंग जमइलन।

अप्पन गाँव पंचायत के खातिर

अप्पन लूर अकिल अजमइलन।

 

'जिला श्रेष्ठ सम्मान ' देवइत ही

मुखिया सुबोध के हम आज।

अइसने मुखिया होबथ सभे त

सफल हो जइतन ग्राम स्वराज।

ग्राम स्वराज सफल होतइ त

अइतइ धरती पर फिन राम राज।

पढ़-लिख के भी लोग मूढ़ हथ

समझ -बूझ से रहइ न काम।

पढ़-लिख के सुबोध अपनइलन

रस्ता सुगम अउर अभिराम।

अइसने समझ होबइ सभे के

सुखमय होबइ हम्मर समाज।

अइसने लोग के सिर पर

होबइ के चाही सोना के ताज।

अइसने लोगन के गूंजत

धरती पर गौरव के गान।

अइसने लोगन के बल से

भारत फिन से बनत महान।

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