दोषी कउन ?
कथाकार - प्रमोद बिहारी मिश्र उर्फ परमोद बजरपरुआ
(जन्मः ? - निधनः 22 सितम्बर 2008 10:00)
नौरतरा में पाठ करे ओला पंडीजी के फलाहार करावइत ओकील साहेब पुछलन - 'ऐं पंडीजी, अपने से पूजा-पाठ कराके हम दछिना नऽ दीहीं, त ओकर दोष-पाप केकरा लगत ?'
पंडीजी तड़ाक से बोललन - 'जी ! अपने के !'
ओकील साहेब जिज्ञासा कयलन - 'हम पूरा दछिना दीहीं आउ अपने बढ़िया से पूजे-पाठ न करीं, त ओकर दोष-पाप ?'
'जी ! अपने के !' - तुरते पंडी जी उवाचलन ।
'अच्छा पंडीजी ! अपने खिसियाएम नऽ त एगो आउ बात पूछीं ?'
'पूछीं जजमान ! खिसियाएम काहे ? हमनी के बोलिए आउ झोलिए पर तो नाज हे ।'
ओकील साहेब बड़ी गंभीर होके अप्पन सवाल दागलन -'पंडीजी ! अपने से दुर्गा सप्तशती के समुल्लह परायन के करार हल आउ अपने एही वास्ते संकल्पो लेली हल, त रोज बीसे मिनट में शंख बजाके पाठ कइसे खतम कर देवऽ ही अपने ? बताईं तो, एकर दोष-पाप केकरा होएत ?'
पंडीजी कलेवा करइत परम शांत स्वर में बोललन -'जी ! अपने के होएत आउ केकरा ?'
ओकील साहेब भीतरे-भीतर धिकइत हलन, एकाएक खदबदएलन - 'ऐं जी ! सब्भे में दोष-पाप हमरे ?'
पंडीजी धड़ाक से बोललन - 'तब आउ केकर ? अपनहीं बताईं । ई सब रहस्य के बात हे, सुनीं - अपने केकरो मोकदमा लड़इत हीं, मोवक्किल अपने के सब फीस-फास पहिलहीं सिरिस्ता में सबके सामने फरिया देलक हे । मान लीं कि कोई कारन से अपने से नागा-खाता हो गेल आउ अपने ओकर मोकदमा हार गेलीं, तो जज साहेब, अपने के बीसबरसा में बान्धिहन कि मोवक्किल बन्धायत ?' एतना कहइत आचमन करके पंडीजी अगिला दिन आवे के भरोसा देइत दोसरा हीं ला विदा हो गेलन ।
एने ओकील साहेब के अपन सर्टिफिकेट पर संदेह होए लगल । सोचे लगलन कि असल में ओकील हम ही कि पंडीजी ?
["अलका मागधी", जुलाई 2009, बरिस-15, अंक-7, पृ॰19 से साभार]
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