विजेट आपके ब्लॉग पर

Sunday, February 14, 2010

13. पहलमान जी के टील्हा

कहानीकार - वीर प्रकाश 'आनन्द', ग्राम-साहबेगपुर, पो॰-चिन्तामनचक, मोकामा, जिला- पटना-८०३ ३०२


गाँव के बीचोबीच जे परती जमीन हे ऊ 'पहलमान जी के टील्हा' नाम से परसिद्ध हे । जब भी हम टील्हा के पास से गुजरऽ ही, पहलमान जी के करतूत बरबस इयाद आ जाहे ।

आज से बीस बच्छर पहिले के बात हे, जब ऊ टील्हा पर पहलमान जी के पूरब मुँह के खपड़ैल मकान हल । घर के आगे गाय, भइंस आउ बैल के कतार कइसन सोभऽ हल । बथान के बगले में हल लमहर-चौड़गर अखाड़ा जेकरा में फरीच होवइते पहलमान जी दुन्नू भाय गाँव के लड़कन के कुश्ती लड़ावो हलन ।

कन्त का आउ कलेसर का दुन्नू अप्पन सहोदर भाय हलन । इलाका में दुन्नू भाय के पहलमानी के डंका बजऽ हल । अइसन कहल जाय कि दुन्नू भाइये एक-दोसर के जोड़ हलन पाँच-सात कोस तक । गाँव के बड़ी नाज हल उनका दुन्नू भाय पर । का मजाल कि दोसर गाँव के लोग ई गाँव के लोग से टेढ़ी बतियाय ।

गाँव के दक्खिन आम के गाछी में जब डंका बज जा हल, बड़ी दूर-दूर से पहलमान कुश्ती लड़े आवऽ हलन आउ दरसक तो मधुमक्खी के छत्ता नियन उड़ जा हल । चाह-पान, कचउड़ी-फुलउड़ी के दोकान सज जा हल । मेला जइसन हुजूम दिनों भर लगल रहो हल ।

कुश्ती लड़ेवला के दू दल बन जा हल - एक दल कन्त का के आउ दोसर कलेसर का के । दुन्नू बिचमान बन जा हलन । पहिले छोट-छोट नवसिखुआ लड़कन के कुश्ती सुरू होवऽ हल, तब बड़का के ।

अलबत्ता डंका बजावो हल रजाक मियाँ । डंका बजावे में ऊ अप्पन जोड़ अपने हल सउँसे इलाका में । ओकर डंका के चोट से नस फड़के लगो हल ।

आज फिन दंगल लगल हे । दिन भर कुश्ती चलइत रहल । कोय पटकऽ हल त कोय पटका हल । कोय-कोय जोड़ी बराबरे पर छूट जा हल । उमड़ल भीड़ 'वाह ! वाह !' के गोहार करो लगऽ हल । अइसे तऽ सब कुश्ती देखबे करऽ हल, मुदा जब तक कन्त का आउ कनेसर का के कुश्ती नञ जमऽ हल, दरसक के संतोख नञ होवऽ हल । जब साँझ होवे लगल तब दरसक निरास होके दुन्नू भाय के कुश्ती लड़े के उकसावे लगलन । मुदा दुन्नू भाय थिर होके मुसकाइत दोसरके दोसरके पहलमान के लड़ावइत रहलन ।

अब दीया-बत्ती के बेला होवे लगल । आखरी जोड़ी लड़े खातिर बाकी रहल । दरसक एकदम निरुत्साह हो गेलन कि अब दुन्नू भाय के कुश्ती देखे ले नञ मिलत । इहे बीच अन्तिम जोड़ी अखाड़ा में उतरल । दुन्नू उछलल-कूदल आउ अप्पन-हप्पन ओस्ताद के गोड़ छूलक । दुन्नू भाय अप्पन-अप्पन चेला के पीठ ठोक देलकन । बस ! दुन्नू पट्ठा जवान छुट्टा साँढ़ जइसन फुफकारो लगल, मुदा दुन्नू के पैतरा खाली पड़ जा हल ।

कन्त का आउ कनेसर का दुन्नू अप्पन-अप्पन चेला के साथे-साथे नाच रहला हे आउ दाँव-पेंच बता-बताको 'वाह बेटा ! वाह ! वाह ! चाबस ! चाबस !' चिल्ला रहला हे । मुदा दुन्नू जवान एक दोसर के चित्त नहिएँ कैलक ।

आखिर में कनेसर का से नञ रहल गेल । ऊ कन्त का के चेला के सहजे लंघी मार देलन । ऊ जवान धायँ से गिर गेल । दोसर जवान फौरन ओकरा धर दबोचलक आउ चित्त करे के कोसिस करे लगल । कनेसर का चिल्लैलन - 'वाह बेटा छटाँकी !'

मुदा कन्त का के आँख गोस्सा से लाल हो गेल । ऊ कनेसर का के लंघी मारते देख लेलका हल । ई बात ऊ कइसे बरदास्त करतन हल । सिंह नियर दहाड़को कनेसर का पर बिगड़ गेलन - 'सरासर बेईमानी ! तूँ हम्मर चेला के लंघी मार देलें ।'

एतना कह के ऊ भी छटाँकी के टेना पकड़ के अइसन दाँव मारलन कि छटाँकी चारो खाने चित्त आउ कन्त का के चेला छुट्टन ओकर छाती पर चढ़ बइठल । कन्त का चिंघाड़लन - 'चाबस बेटा ! चाबस !'

बस ! कनेसर का के पारा गरम भे गेल । लाल-लाल आँख करके बोललन - 'अइसनो बेईमानी !' ऊ कन्त का के ललकार के बोललन - 'अगर एतने तोरा अप्पन ताकत पर भरोसा हे तऽ एक हाथ हमरा से फरिया लऽ ।'

ललकार सुनके कन्त का भी गेहुँअन साँप जइसन फुफकार उठलन । ऊ अप्पन देह से धोती-कुर्ता उतार फेकलका आउ कच्छा कसके जाँघ पर ताल ठोक के बाँस भर उछल गेला । कनेसर का के भी जुम चढ़ गेल । ऊ भी कच्छा कसके ताल ठोकिए देलका । दुन्नू अप्पन-अप्पन पैतरा पर खड़ा हो गेलन । दरसक हरख के परफुल्लित हो गेलन आउ ताली बजा-बजा के बोले लगलन - 'अबकी असलिया कुश्ती देखे के मजा मिलत ।'

रजाक मियाँ के भी डंका बजावे के उमंग चढ़ गेल । डंका जोर-जोर से बोले लगल - 'भिर जा ... भिर जा ... भिर जा ...!' दुन्नू भाय भिर गेलन । एक दाँव मारे त दोसर झट से ओकरा काट दे । ई तरह से घंटों मल्ल-युद्ध होल, मुदा कुश्ती नहिएँ फरियाल । घाम-पसीना से तरबतर, जइसे दुन्नू गंगा नहा के अभी ऐलन हे । दुन्नू थक के चूर भे गेलन ।

अन्त में कन्त का अन्तिम दाँव काला जंग चलइलका । कनेसर का धम्म से धरती पर गिर गेला । दरसक उठ-उठ के चिल्लायल - 'अबकी कुश्ती फरिया गेल । कन्त का कनेसर का के पछाड़ देलन ।'

मुदा कनेसर का बिजुरी के फुर्ती से उठको ऐसन भितरौली दाँव मारलका कि कन्त का भी बेदाग फेंका गेलन । फिर दरसक 'वाह ! वाह !' करके चिल्लायल - 'आखिरी पेचदार हथिन कनेसर का भी । कइसे कन्त का के अलगण्ठ फेंक देलथिन ।'

दुन्नू में गुत्थम-गुत्थी होवे लगल । कभी कन्त का तर हो जाथ त कभी कनेसर का । भीड़ 'हो ! हो !' आउ 'वाह ! वाह !' करके एक-दोसर के सिर पर चढ़ो लगल आउ एक-दोसर के धकेला-धकेली करो लगल, ई देखे खातिर कि कइसे, केकरा, के चित्त करऽ हथ । पहिले हम देखूँ, त पहिले हम ।

इहे फेर में मार-पीट होवे लगल । भगदड़ मच गेल । अप्पन-अप्पन जान लेके सभे भागे लगलन । कन्त का आउ कनेसर का कुश्ती छोड़ के लाठी ले-ले के भाँजे लगलन । उनकर लाठी भाँजना तब थमल जब ऊ देखलन कि एक्को दरसक मैदान में नञ बचलन हे । आखिर में दुन्नू घरे चल अइलका ।

कन्त का आउ कनेसर का आजनम ब्रहमचारिये रहला । एकर पीछे भी एगो मजेदार कहानी हे । बात तब के हे जब उनका दुन्नू के अभी मोंछ के रेघे आल हल । एक दिन दुन्नू भाय पर बरतुहार ऐलन । दुन्नू गंगाजी में जाके ललकी मट्टी लगा-लगा के खूब देह चमकैलका आउ करुआ तेल अप्पन-अप्पन देह में चभोर लेलका । मलमल के कुर्ता-धोती सीट करके आउ आँख में सुरमा लगा के सुन्नर-सकलगर बन गेलन ।

दुन्नू के दूध पीये ले अलगे-अलगे भइंस हल । केकर भइंस जादे दूध करऽ हे ई खातिर आपा-आपी में दुन्नू भइंस के खूब खिलावऽ हलन । भइंस खिलावे के कम्पटिसन में भी एक दोसर के आगे रहइ ले नञ दे हलन । भइंस खिलावे के बेला हल । बरतुहार रहते अपने कइसे भइंस खिलैता हल । ई लेल सोमरा कहार के कह देलका कि दुन्नू भइंस के अच्छा से खिलैहा ।

लड़का के बरतुहार भिर बोलावल गेल । देखते के साथ बरतुहार रीझ गेलन । एतना घूमला पर भी ऐसन सोटल-साटल लड़का मिलना दुरलभ हे । ई सोच के ऊ दुन्नू भाय से नाम-गाम पूछे लगलन । दुन्नू लजाले-लजाल जवाब देते जाथिन ।

मुदा उनकर धियान भइंसे तरफ हल कि सोमरा बढ़िया से खिला रहल हे कि नञ ! कनेसर का के बुझाल कि सोमरा हम्मर भइंस के कम अनाज देलक हे । कन्त का के अन्देशा होल कि ऊ हम्मर भइंस के खल्ली कम देलक हे । बस की हल । कनेसर का सोमरा पर बिगड़ उठला आउ कन्त का के भइंस के नादी से सानी उठा-उठाके अप्पन भइंस के नादी में देवो लगलन ।

कन्त का के ई कइसे बरदास्त होइत हल । ऊ भी आँख लाल-पीयर कैले दउड़लन आउ कनेसर का के हाथ मचोड़े लगलन । बस की हल । दुन्नू में उठा-पटक होवे लगल । मजमा जुट गेल । मल्ल-युद्ध करते-करते दुन्नू के कुर्ता-धोती चिथनी-चिथनी भे गेलन आउ दुन्नू भाय हो गेलन एकदम नंगा ।

बरतुहार ई तमाशा देख के उठको चल देलक । गाँव के लोग पूछलक - 'आय । अपने जा रहली हे । लड़का पसन्द नञ पड़ल की ?'

बरतुहार जवाब देलखिन - 'हम बाली-सुग्रीव के बिआह के की करम ? ई तो बाते-बात में लड़कियो के मार देता ।'

ई बात के चरचा सउँसे इलाका में फैल गेल । तहिया से कोय बरतुहार उनकर दूरा पर नञ फटकल आउ दुन्नू भाय कुँआरे रह गेलन । वंश-वृक्ष सूख गेल । उनका दुन्नू के मरला पर घर ढह-ढनमना गेल । बचल-खुचल टील्हे उनकर इयाद दिलावे हे ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-२, अंक-१०, अक्टूबर १९९६, पृ॰११-१३ से साभार]

2 comments:

कुमार राधारमण said...

सुंदर कहानी। इस प्रकार के प्रयास का आगे भी इंतजार रहेगा।

नारायण प्रसाद said...

आपको यह कहानी पसन्द आई, यह जानकर खुशी हुई । आगे भी मेरा प्रयास रहेगा कि चुनिन्दा मगही रचनाएँ इस ब्लॉग पर उपलब्ध हों ।