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Monday, January 12, 2015

अपराध आउ दंड - भाग – 2 ; अध्याय – 2




अपराध आउ दंड

भाग – 2

अध्याय – 2

"आ अगर तलाशी हो चुकले होत, तब ? अगर ओकन्हीं ठीक अपने हियाँ मिल्ले, तब ?"

लेकिन अइकी ओकर कमरा हइ । कुछ नयँ आउ कोय नयँ; कोय नयँ हुलकले हल । नस्तास्या भी कोय चीज के हाथ नयँ लगइलके हल । लेकिन, हे भगमान ! कइसे ऊ कुछ समय पहिले ई सब चीज के ई भुड़वा में छोड़ सकले हल ?

ऊ भुड़वा तरफ लपकके गेलइ, देवाल के कागज के निच्चे हाथ घुसइलकइ आउ समान सब निकासे आउ ओकरा से धोकड़ियन भरे लगलइ । कुल मिलाके आठ गो हलइ - दू गो छोटगर-छोटगर डिबिया, जेकरा में कनबाली आउ अइसने तरह के चीज हलइ - ऊ ठीक से नयँ देखलकइ; बाद में चार गो छोटगर मराको चमड़ा के केस हलइ । एगो चेन अखबार के कागज में अइसीं लपटल हलइ । आउ कुछ अखबार के कागज में हलइ, शायद कोय मेडल ...

ऊ सब कुछ अलग-अलग धोकड़ी में रखलकइ, ओवरकोट में आउ पतलून के बाकी बच्चल दहिना धोकड़ी में, ई प्रयास करते कि लोग के नजर कम से कम पड़े । समान सब के साथ-साथ ऊ बटुआ भी रख लेलकइ । फेर कमरा से बाहर निकस गेलइ, अबकी ओकरा बिलकुल खुल्ला छोड़के भी ।

ऊ तेजी से आउ दृढ़तापूर्वक जा रहले हल, आउ हलाँकि ऊ खुद के बिलकुल टुट्टल महसूस कर रहले हल, लेकिन चेतना ओकर साथ हलइ । ओकरा पीछा कइल जाय के डर सता रहले हल, डर रहले हल, कि आधा घंटा में, पनरह मिनट में, शायद ओकरा पे नजर रक्खे खातिर औडर निकस जइतइ; मतलब, जइसे भी हो सके, समय के पहिले सब्भे सबूत छिपा देवे के चाही हल । सब कुछ निपटा लेवे के चाही हल, जब तक कुच्छो ताकत बच्चल हलइ आउ कइसूँ अकल काम कर रहले हल ... लेकिन जाय काहाँ ?

ई बहुत पहिलहीं तय कइल जा चुकले हल - "सब कुछ नहर में फेंक देवे के चाही, आउ सब्भे सबूत पानी में, आउ खिस्सा खतम ।" अइसन फैसला ऊ रतिये के कर चुकले हल, सरसाम (delirium) में, ऊ क्षण में, जब ओकरा ई आद पड़लइ, कइएक तुरी ऊ उठके चल पड़े के प्रयास कइलकइ - "जल्दी से, जेतना जल्दी हो सके, सब कुछ फेंक देवे के चाही ।" लेकिन फेंक देना बहुत मोसकिल साबित होलइ । ऊ आधा घंटा तक, आउ शायद कुछ जादहीं समय तक, एकतेरीनिन्स्की नहर के किनारे घूमते रहलइ, आउ कइएक तुरी नहर में जाय वला सीढ़ी तरफ नजर डललकइ, जाहाँ-जाहाँ ओकरा ई मिललइ । लेकिन ऊ अपन इरादा के पूरा करे के बात सोचियो नयँ सकऽ हलइ - या तो सिड़हिया के छोर पे बेड़ा खड़ी रहऽ हलइ आउ ओकरा पर धोबिनियन कपड़ा धोते रहऽ हलइ, नयँ तो नाव खड़ी रहऽ हलइ, आउ सगरो लोग के झुंड अइसीं मँड़रइते रहऽ हलइ, एकरा अलावे किनारा पर से कहीं से भी, सगरो बगल से, ओकरा देखल आउ ऊ नजर में आ सकऽ हलइ - ई बात आशंका पैदा कर सकऽ हलइ, कि एगो अदमी खास उद्देश्य से निच्चे उतरलइ, रुकलइ आउ कुछ तो पनियाँ में फेंकब करऽ हइ । आउ अगर डिबिया डुब्बे नयँ, बल्कि उपलाय लगे, तब? हाँ, बिलकुल एहे बात हइ । कोय भी देखतइ । आउ अइसूँ ओकरा तरफ सब कोय अइसीं देखब करऽ हइ, रस्ता में मिलला पर ओकरा तरफ एकटक  निहारऽ हइ, जइसे ओकन्हीं के खाली ओकरे से काम रहइ । "अइसन काहे हइ, आउ कि हमरा शायद अइसन लगऽ हइ ?", ऊ सोचलकइ ।

आखिरकार, ओकर दिमाग में अइलइ, कि की नेवा नद्दी पर कहीं जाना बेहतर नयँ होत ? हुआँ तो लोग कम होत, आउ देखवो नयँ करत, आउ प्रत्येक परिस्थिति में अधिक सुविधाजनक होत, आउ सबसे बड़गर बात - हियाँ के जगहियन के अपेक्षा अधिक दूर होत । आउ अचानक ओकरा अचरज होलइ - कइसे ऊ पूरे आधा घंटा चिंता-फिकिर में घूमते रहलइ, आउ ओहो खतरनाक जगह पे, आउ एकरा बारे पहिले सोचियो नयँ सकलइ ! आउ खाली-पीली पूरे आधा घंटा विवेकहीन काम में बरबाद कर देलकइ, आउ अइसन काम, जेकर निर्णय नीन में सरसाम (delirium) में कइल गेले हल! ऊ नितान्त अन्यमनस्क (absent-minded) आउ भुलक्कड़ होल जा रहले हल, आउ ऊ एकरा से वाकिफ हलइ । दृढ़संकल्प होके ओकरा जल्दी करे के चाही हल !

ऊ व॰ प्रोस्पेक्त (राजपथ, Avenue) होते नेवा नद्दी तरफ रवाना होलइ; लेकिन रस्ता में ओकर दिमाग में अचानक विचार अइलइ - "नेवा में काहे ? पानी में काहे ? की कहीं बहुत दूर जाना बेहतर नयँ होत, फेर चाहे टापू तरफ, आउ हुआँ कहीं एकान्त जगह में, जंगल में, कोय झाड़ी के निच्चे, सब कुछ गड़ देल जाय आउ पछान खातिर पेड़ में कोय निशान लगा देवल जाय ?" हलाँकि ऊ महसूस कर रहले हल, कि अभी तो ऊ सब कुछ साफ-साफ आउ सही ढंग से विचार करे के स्थिति में नयँ हइ, लेकिन ई विचार ओकरा त्रुटिहीन प्रतीत होलइ ।

लेकिन ओकरा किस्मत में टापू पर भी जायके नयँ बद्दल हलइ, आउ होलइ कुछ दोसरे - व॰ प्रोस्पेक्त से बाहर चौक पर अइला पर, ऊ अचानक बामा तरफ प्रवेशद्वार देखलकइ, जे सपाट देवार से घेरल अहाता में जा हलइ। दहिना तरफ, फाटक से लगले, चौमंजिला घर के बिन पोतल देवार अहाता में दूर तक चल गेले हल । बामा तरफ, फाटक से लगलहीं आउ सपाट देवार के समानान्तर, लकड़ी के एगो छरदेवारी कोय बीस कदम अहाता में जाके अचानक बामे मुड़ गेले हल । ई एगो घेरल-घारल सपाट जगह हलइ, जाहाँ कइएक तरह के समान पड़ल हलइ । दूर अहाता में, छरदेवारी के पीछू से, नीचगर छतवला, कारिख लगल पत्थल के शेड के कोना देखाय दे रहले हल, जे शायद कउनो प्रकार के मरम्मत के काम वला करखाना (वर्कशॉप) के हिस्सा हलइ । हियाँ पर शायद कोय गाड़ी बनावे वला, चाहे फिटर के दोकान हलइ, चाहे एहे प्रकार के आउ कोय चीज; सगरो, लगभग फाटक के शुरुए से, कोयला के बहुत सारा चूरा से कार-कार होल हलइ । "हिएँ कहीं फेंकके चल जायके चाही !" अचानक ओकर दिमाग में ई विचार अइलइ । अहाता के अन्दर केकरो नयँ देखके, ऊ फाटक से अन्दर घुसलइ आउ देखलकइ, कि फटकवा के बिलकुल नगीचे, छरदेवारी के बाद सटले नाली (गटर) हलइ (जइसन कि अकसर ओइसन घरवन में बनावल जा हइ, जाहाँ बहुत सारा फैक्टरी के मजदूर, सहकारी समिति के लोग, कोचवान लोग, वगैरह वगैरह रहऽ हइ), आउ नाली के उपरे, ओज्जी छरदेवारी पर, खल्ली से अइसन परिस्थिति में हमेशे के तरह लिक्खल हलइ - "हियाँ गाड़ी-छकड़ा खड़ी करे के सख्त मनाही हइ" । मतलब, ई तो आउ अच्छे बात हलइ, कि केकरो शक नयँ होतइ, कि अन्दर गेलइ आउ हुआँ अटक गेलइ । "हियाँ सब कुछ एक्के तुरी कहीं ढेर पे फेंकके निकस जाम !" एक तुरी आउ चारो तरफ नजर दौड़ाके, ऊ अपन हाथ जेभी में घुसा चुकले हल, कि अचानक, फाटक आउ नाली के बीच में, जेकर दूरी कोय एक अर्शीन (= 2 फुट 4 इंच) हलइ,  ठीक देवाल के बाहरी हिस्सा में  ओकर नजर एगो बड़का गो अनगढ़ पत्थल पर गेलइ, जेकर भार शायद कोय डेढ़ पूद (= 24.57 किलोग्राम) होतइ, आउ जे रोड के पत्थल के देवाल से सीधे सटले पड़ल हलइ । ई देवाल के पीछू में सड़क, फुटपाथ हलइ; राहगीर सब के, जे हमेशे अधिक संख्या में रहऽ हलइ, एद्धिर-ओद्धिर चले-फिरे के अवाज सुनाय दे रहले हल; लेकिन फाटक के पीछू में ओकरा कोय नयँ देख सकऽ हलइ, जब तक कि रोड से कहीं कोय अन्दर नयँ आ जाय, लेकिन जे होवे के बहुत-कुछ संभावना हलइ; ओहे से जल्दी करना जरूरी हलइ ।

ऊ पथलवा तरफ झुकलइ, ओकर उपरला हिस्सा के दुन्नु हाथ से कसके पकड़लकइ, पूरा जोर लगइलकइ आउ पथलवा के पलट देलकइ । पथलवा के निच्चे एगो छोटगर गड्ढा बन गेले हल; अपन जेभी में रक्खल सब्भे समान ऊ ओकरा में फेंके लगलइ । बटुआ सबसे उपरे पड़लइ, तइयो गढवा में आउ जगह बच्चल हलइ । बाद में ऊ फेर से पथलवा के पकड़लकइ, एक्के झटका में ओकरा उलटके पहिले जइसन हालत में कर देलकइ, आउ ऊ जब सीधा खड़ी होलइ, त ओकरा पथलवा थोड़े-सन उँचगर देखाय देलकइ । लेकिन ऊ जमीन के मट्टी खुरचके गोड़वा से ओकरा पथलवा के किनरवन में दाब देलकइ । अब कुछ नयँ देखाय दे हलइ । [1]

तब ऊ बाहर निकसलइ आउ चौक तरफ रवाना होलइ । फेर से क्षण भर में ओकरा पर बहुत गहरा, लगभग असहनीय प्रसन्नता हावी हो गेलइ, जइसन कि हाल में थाना में होले हल । "सारा सबूत दफन हो गेलइ ! आउ केक्कर, केक्कर दिमाग में ई पत्थल के निच्चे खोजे के विचार अइतइ ? ऊ हुआँ पर, शायद, जब से घर बनले ह, तब से पड़ल हकइ, आउ ओतने समय तक आउ पड़ल रहतइ । आउ अगर खोजियो लेल गेलइ, त हमरा बारे के सोचतइ ? सब खिस्सा खतम ! कोय सबूत नयँ !" आउ ऊ हँस पड़लइ । हाँ, ओकरा बाद में आद पड़लइ, कि ओकरा मने-मन, महीन-सन, बिन अवाज कइल, लमगर हँसी अइले हल, आउ लगातार हँसते रहले हल, लगातार हँसते रहले हल, जब ऊ चौक पार कर रहले हल । लेकिन जब ऊ के॰ बुलवार (वृक्षवीथि) में घुसलइ, जाहाँ परसुन ओकरा ऊ लड़की से भेंट होले हल, त ओकर हँस्सी अचानक चल गेलइ । दोसर विचार ओकर दिमाग में सरके लगलइ । अचानक ओकरा अइसनो लगलइ, कि ओकरा ऊ बेंच के सामने से गुजरते अब घिन बरतइ, जेकरा पर, ऊ लड़किया के चल गेला के बाद, तखनी बइठल सोच रहले हल, आउ  ऊ मोछैल से फेर भेंट करना भी बहुत भारी पड़तइ, जेकरा ऊ बखत बीस कोपेक देलके हल - "भाड़ में जाय ऊ !"

ऊ अन्यमनस्क स्थिति में आउ द्वेषपूर्वक चारो बगली नजर डालते जा रहले हल । ओकर सब विचार कउनो एक्के मुख्य बिन्दु पर चक्कर काट रहले हल - आउ ऊ खुद अनुभव कर रहले हल, कि ई वास्तव में ओइसन मुख्य बिन्दुए हइ, कि अब, ठीक अभिये, आमने-सामने ई एक्के मुख्य बिन्दु पर अटकल हइ - कि ई दू महिन्ना के बाद पहिलहीं तुरी के बात हइ।

"आ भाड़ में जाय ई सब !" ऊ अचानक अपार द्वेष के दौरा (fit) में सोचलकइ । "अच्छऽ, अगर शुरू हो गेलइ, त शुरू हो गेलइ - भाड़ में जाय ऊ, आउ नयका जिनगी ! हे भगमान, कइसन बेवकूफी हइ ई ! ... आउ केतना झूठ बोललूँ आउ नीच हरक्कत कइलूँ आझ ! कुछ समय पहिले कइसन घिनौनापन से तलवा चटलूँ आउ खोशामद कइलूँ ऊ बेहद कमीना इल्या पित्रोविच के ! जबकि ई सब बकवास हइ ! हम थुक्कऽ ही ओकन्हीं पर, सब्भे पर, आउ ई बात पर, कि हम तलवा चटलूँ आउ खोशामद कइलूँ ! बात बिलकुल ऊ नयँ ! बात बिलकुल ऊ नयँ !"

अचानक ऊ रुक गेलइ; एगो नाया, बिलकुल अप्रत्याशित आउ बेहद सीधा-सादा प्रश्न अचानक ओकरा एक झटका में पटक देलकइ आउ कड़वाहट भरल अचरज में पाड़ देलकइ -
"अगर वास्तव में ई सब कुछ सोच-विचारके कइल जइतो हल, न कि मूर्खतावश; अगर तोर वास्तव में कोय निश्चित आउ पक्का लक्ष्य होतो हल, त कइसे तूँ अभी तक बटुआ के जाँचो नयँ कइलँऽ आउ ई जानवो नयँ करँऽ हँ, कि तोरा की मिललउ, आउ काहे लगी सब तकलीफ उठइलँऽ आउ अइसन नीच, गन्दा, गर्हित काम जान-बूझके कइलँऽ ? आउ वस्तुतः तूँ अभी ओकरा पानी में फेंक देवे ल चाहऽ हलँऽ, ई बटुआ के साथ-साथ आउ सब्भे समान, जे सब के तूँ अभी तक देखवो नयँ कइलँऽ हँ ... अइसन काहे ?"

हाँ, एहे बात हलइ; सब कुछ अइसीं हलइ । ऊ तो बल्कि एकरा बारे पहिलहूँ जानऽ हलइ, आउ ओकरा लगी ई नाया बिलकुल नयँ हइ; आउ जब रात में सब कुछ के पानी में फेंक देवे के फैसला कइल गेलइ, त ई सब फैसला बिन कउनो संकोच आउ एतराज के कइल गेलइ, लेकिन अइसे, मानूँ अइसीं वास्तव में होतइ, मानूँ आउ दोसरा कोय तरह से होना असंभव हइ ... हाँ, ऊ ई सब कुछ जानऽ हलइ आउ ओकरा सब आद हलइ; वास्तव में करीब-करीब कल्हींएँ अइसन फैसला कइल गेले हल, ठीक ओहे क्षण, जब ऊ सन्दूक पे बइठल हलइ आउ ओकरा से केस (बक्सा) निकासब करऽ हलइ ... बिलकुल एहे बात हलइ ! ... "ई बात ई कारण हइ, कि हम बेमार हकूँ", आखिरकार ऊ उदास मन से फैसला कइलकइ । "हम खुद्दे अपना के तकलीफ देलूँ आउ सतइलूँ, आउ खुद नयँ जानऽ हूँ, कि की कर रहलूँ हँ ... कल्हे, आउ परसुन, आउ ई सब्भे समय खुद के सतइलूँ ... हम चंगा हो जाम आउ ... खुद के नयँ सताम ... लेकिन अगर हम बिलकुल ठीक नयँ होवूँ तब ? हे भगमान ! ई सब से हम केतना तंग हो चुकलूँ हँ ! ..." ऊ बिन रुके चलल जाब करऽ हलइ । ओकरा कइसूँ ध्यान हटावे के बहुत मन कर रहले हल, लेकिन ओकरा समझ में नयँ आ रहले हल, कि ऊ की करे, चाहे की काम के हाथ लगावे । एगो नाया, दुर्निवार संवेदना लगभग हरेक क्षण ओकरा जादे आउ जादे शिकंजा में कस रहले हल - ई (संवेदना) एक प्रकार से असीम, सामने आल आउ चारो तरफ से घिरल सब्भे से लगभग भौतिक अरुचि, जिद्दी, द्वेषी, घिनौना हलइ । जेकरा से भी भेंट होवऽ हलइ ऊ सब्भे ओकरा खराब लगऽ हलइ - ओकन्हीं के चेहरा, चाल-ढाल, हाव-भाव सब घिनौना लगऽ हलइ । शायद ऊ केकरो पर बस थूक देते हल, चाहे दाँती कट लेते हल, अगर ओकरा से कोय बोलते हल ...

ऊ अचानक रुक गेलइ, जब ऊ बाहर निकसके वसिल्येव्स्की टापू पर, पुल के नगीच, छोटकी नेवा (नद्दी) के किनारे अइलइ । "अइकी हियाँ ऊ रहऽ हइ, ई घरवा में", ऊ सोचलकइ । "अरे ई की, ई तो लगऽ हइ कि हम बिलकुल रज़ुमिख़िन के पास पहुँच गेलिअइ ! फेर से ओहे खिस्सा, जइसन कि तखने ... लेकिन तइयो बहुत दिलचस्प हइ - खुद हम हियाँ अइलिअइ, कि बस खाली हम चलते-चलते हियाँ पहुँच गेलिअइ ? खैर, बात एक्के हइ; हम कहलूँ हल ... परसुन ... कि बाद में हम दोसर दिन ओकरा हीं जाम; खैर, एकरा में की रक्खल हइ, जइबइ ! जइसे कि हम अभी जाइए नयँ सकऽ हिअइ ..."

ऊ उपरे चढ़के रज़ुमिख़िन के पास पचमा मंजिल पर गेलइ ।

ऊ घरवे पर हलइ, अपन दड़बा में, आउ अभी व्यस्त हलइ, लिख रहले हल, आउ खुद्दे दरवाजा खोललकइ । चार महिन्ना से ओकन्हीं के आपस में मिलना नयँ होले हल । रज़ुमिख़िन अपन चिथड़ा होल ड्रेसिंग गाउन में बइठल हलइ, नंगे पैर में चप्पल डालले, बाल बिखरल, बिन दाढ़ी बनइले, आउ बिन नहइले-धोले । ओकर चेहरा पर अचरज देखाय पड़ रहले हल ।

"अरे, तूँ !" ऊ चिल्लइलइ, अन्दर घुस्सल साथी के आपादमस्तक देखते; फेर थोड़े देर चुप रहलइ आउ सीटी बजइलकइ।
"की एक्के तुरी एतना खराब हालत हकउ ? अरे, भाय, तूँ तो हमरो मात दे देलँऽ", ऊ आगे बोललइ, रस्कोलनिकोव के चिथड़ा पोशाक देखते । "अरे, बइठ तो जो, थक्कल-माँदल होतँऽ !" आउ जब ऊ मोमजामा (oilcloth) मढ़ल तुर्की सोफा पर लुढ़क गेलइ, जे ओकर अप्पन वला से भी जादे खराब हलइ, रज़ुमिख़िन अचानक समझ गेलइ, कि ओकर अतिथि तो बेमार हइ ।

"अरे, तूँ तो गम्भीर रूप से बेमार हकँऽ, तूँ जानऽ हँ ?" ऊ ओकर नब्ज चेक करे लगलइ; रस्कोलनिकोव अपन हथवा घींच लेलकइ ।
"जरूरत नयँ", ऊ बोललइ, "हम अइलिअउ ... बात ई हइ - हमरा पास टीसनी के काम बिलकुल नयँ ... हमर इच्छा हलइ ... बल्कि ई कि हमरा कोय टीसनी के काम बिलकुल नयँ चाही ..."
"आ तूँ जानऽ हँ कि की बात हउ ? तोरा वास्तव में सरसाम हो गेलो ह !" ओकरा लगातार गौर से देख रहल रज़ुमिख़िन बोललइ ।
"नयँ, हमरा सरसाम नयँ हके ..."

रस्कोलनिकोव सोफा पर से उठ खड़ी होलइ । रज़ुमिख़िन के फ्लैट तरफ ज़ीना चढ़ते ऊ ई शायद नयँ सोचलके हल, कि ओकरा साथ आमना-सामनी हो जइतइ । अब तो, एक क्षण में, अपन अनुभव से ऊ अन्दाज लगा लेलकइ, कि अभी ऊ दुनियाँ भर में केकरो से, चाहे ऊ कोय रहे, आमने-सामने होवे के हालत में नयँ हइ । ओकर पित्त खौले लगलइ । ऊ जइसीं रज़ुमिख़िन के दहलीज पार कइलकइ, तखनिएँ से ओकरा गोस्सा से लगभग दम घुट्टे लगलइ ।

"अलविदा !" अचानक ऊ बोललइ आउ दरवाजा तरफ बढ़लइ ।
"अरे ठहर, ठहर, तूँ भी अजीब अदमी हकँऽ !"
"नयँ, जरूरत नयँ ! ..." अपन हाथ दोबारा छोड़इते ऊ दोहरइलकइ ।
"अरे, त तूँ अइलँऽ हल काहे लगी ! तोर माथा के पेंच ढीला तो नयँ हो गेलो ह ? अरे, देख, ई तो ... सरासर हमर अपमान हकउ । हम अइसे नयँ जाय देबउ ।"

"अच्छऽ, त सुन - हम तोरा भिर अइलिअउ, काहेकि, तोरा छोड़के आउ केकरो नयँ जानऽ हूँ, जे हमरा मदत कर सके ... शुरुआत करे में ... काहेकि, ऊ सब में सबसे अच्छा, मतलब बुद्धिमान हकहीं, आउ न्याय कर सकऽ हीं ... लेकिन अब जे हम देखऽ ही, त लगऽ हके कि हमरा कुच्छो नयँ चाही, सुनऽ हीं, बिलकुल कुछ नयँ ... न केकरो मदत आउ न हमदर्दी ... हम खुद ... अकेल्ले ... बस काफी हो गेलउ ! हमरा शांति से रहे दे !"

"अरे, एक मिनट तो ठहर, बाँगड़ू ! बिलकुल पगला गेलऽ हँ ! जइसन तोर मर्जी, हमरा की फरक पड़ऽ हउ । देखऽ हँ - हमरो तो टीसनी के काम नयँ हके, भाड़ में जाय टीसनी, लेकिन बजार में एगो पुस्तक-बिक्रेता हकइ, ख़ेरुविमोव, जे खुद अपने आप में टीसनी के जगह लेले हइ । ओकर बदले तो हम सेठो के घर में पाँच-पाँच टीसनी नयँ करूँ । ऊ अइसन बढ़ियाँ प्रकाशन के काम करऽ हइ, प्राकृतिक विज्ञान के छोटगर-छोटगर पुस्तक प्रकाशित करऽ हइ - आउ केतना बिक्कऽ हइ ऊ ! खाली शीर्षकवे से लगऽ हइ कि पइसा वसूल हो गेल !"
तूँ हमेशे कहते रहलँऽ हँ कि हम बेवकूफ हिअइ; लेकिन भगमान कसम, भाय, दुनियाँ में हमरो से जादे बेवकूफ हकइ ! अब ऊ प्रवृत्ति पर सरके लगले ह; खुद कुछ नयँ अनुभव करऽ हइ, लेकिन वास्तव में हम प्रेरणा दे हिअइ। अइकी हियाँ जर्मन पाठ के दू पन्ना आउ थोड़े सन अधिक हइ - हमर मत में एक प्रकार के मूर्खतम धोखेबाजी हइ - एक शब्द में, एकरा में ई बात के चर्चा कइल गेले ह कि औरत इंसान हइ, कि इंसान नयँ हइ । आउ वस्तुतः सोल्लास साबित कइल गेले ह, कि ऊ इंसान हइ । ख़ेरुविमोव ई नारी-समस्या के क्षेत्र में प्रकाशन के तैयारी कर रहले ह; हम एकर अनुवाद कर रहलिए ह; ई अढ़ाय पन्ना के पाठ के विस्तृत करके छो पन्ना बना देतइ, हमन्हीं आधा पृष्ठ के कोय बहुत शानदार आउ भारी-भरकम शीर्षक दे देबइ आउ आधा रूबल एकर कीमत रखबइ । एकरा से काम चल जइतइ ! अनुवाद खातिर हमरा हरेक पन्ना पर छो रूबल दे हइ, मतलब, कुल मिलाके पनरह रूबल मिलत, आउ छो रूबल हम पेशगी लेलिए हल । ई खतम होला पर, ह्वेल के बारे अनुवाद चालू करे वला हिअइ, बाद में रूसो के फ्रेंच पुस्तक "Les Confessions" (स्वीकारोक्ति) के द्वितीय भाग से कुछ बेहद नीरस गपशप के भी मार्क कर लेलिए ह, जेकर अनुवाद करते जइबइ; ख़ेरुविमोव के कोय तो बतइलके ह, कि रूसो अपन प्रकार के मानूँ रूस के रादिश्शेव हलइ [2] । वस्तुतः ओकर बात के खंडन नयँ करऽ हिअइ, भाड़ में जाय ऊ ! अच्छऽ, त "की औरत इंसान हइ ?" [3] के दोसरा पन्ना अनुवाद खातिर लेवे लगी चाहऽ हँ ? अगर चाहऽ हँ, त अभी पाठ ले ले, कलम ले ले, आउ कागज - ई सब कुछ हुएँ से मिल्लऽ हइ - आउ तीन रूबल लेते जो; चूँकि हम पूरे अनुवाद खातिर पेशगी लेलिए हल, पहिला पन्ना आउ दोसरा पन्ना लगी, मतलब, तीन रूबल सीधे तोर हिस्सा में पड़तउ । आउ जब पन्ना पूरा करमँऽ - त आउ तीन रूबल मिलतउ । हाँ, आउ एक बात, किरपा करके हमरा तरफ से ई बात के कोय एहसान नयँ समझ । एकर उलटा, जइसीं तूँ अन्दर घुसलँऽ, तभिए हम समझ गेलिअउ, कि तूँ हमर कइसे मदतगार होमँऽ । पहिला बात, हमर हिज्जे जरी कमजोर हके, आउ दोसर बात, जर्मन में कभी-कभी हमर दिमाग नयँ काम करऽ हके, आउ जादेतर हम अपने मन से गढ़के डाल दे ही आउ एहे बात से संतोष कर ले ही कि एकरा (मूल पाठ) से कुछ बेहतरे साबित होत । लेकिन के जानऽ हइ, हो सकऽ हइ, कि ऊ बेहतर नयँ, बल्कि आउ बत्तर निकसइ ... ई काम लेमँऽ कि नयँ ?
रस्कोलनिकोव जर्मन लेख के पन्ना ले लेलकइ, तीन रूबल लेलकइ, आउ बिन एक्को शब्द बोलले, बाहर निकस गेलइ । रज़ुमिख़िन अचरज से ओकरा जइते देखते रहलइ । लेकिन पहिलौका गली (lane) तक पहुँचला पर रस्कोलनिकोव अचानक वापस लौट गेलइ, फेर से रज़ुमिख़िन के फ्लैट जाय लगी ज़ीना पर चढ़े लगलइ, आउ जर्मन पाठ के पन्ना आउ तीन रूबल टेबुल पर धरके, फेनु मुँह से बिन कोय शब्द निकासले, बाहर चल पड़लइ ।
"अरे, तोरा कम्पोन्माद (delirium tremens) तो नयँ हो गेलो ह !" रज़ुमिख़िन आखिरकार ताव में आके चिल्लइलइ । "तूँ नाटक काहे ल कर रहलँऽ हँ ! तूँ हमरो पागल बना देलँऽ ... अरे, त फेर हमरा भिर अइवे काहे ल कइलँऽ हल, शैतान?"
"नयँ चाही ... अनुवाद के काम ...", ज़ीना पर उतरते रस्कोलनिकोव बड़बड़इलइ ।
"त, शैतान के बच्चे, तोरा आखिर की चाही ?", उपरे से रज़ुमिख़िन चिल्लइलइ । ऊ चुपचाप ज़ीना से उतरते रहलइ ।
"अरे, तूँ ! तूँ काहाँ रहँऽ हँ ?"

कोय जवाब नयँ अइलइ ।
"अरे, भाड़ में जो ! ..."

लेकिन रस्कोलनिकोव तो निकसके सड़क पर पहुँच चुकले हल । निकोलायेव्स्की पुल पर ओकरा साथ एगो बहुत अप्रिय घटना हो जाय के चलते ऊ एक तुरी आउ पूरा तरह से होश-हवास में आ गेलइ । एगो कल्यास्का (घोड़ा-गाड़ी) के कोचवान ओकर पीठिया पर कसके एक चाबुक जमइलकइ, ई बात लगी कि ऊ घोड़वा के गोड़वा तर दबते-दबते बचलइ, हलाँकि कोचवान तीन-चार तुरी ओकरा तरफ चिल्लाके सवधान कइलके हल । चाबुक के चोट पड़ला से ऊ एतना गोस्सा हो गेलइ, कि ऊ उछलके रेलिंग (जंगला) तरफ चल गेलइ (मालूम नयँ काहे ऊ पुल के बीचोबीच से जा रहले हल, जाहाँ गाड़ी आवऽ जा हइ, आ अदमी हुआँ से पैदल नयँ जा हइ), आउ गोस्सा से दाँत पिस्से लगलइ । जाहिर हइ, चारो तरफ से हँस्सी फूट पड़लइ ।

"ठीके होलइ !"
"दुष्ट कहीं के !"
"मालूम हइ, पीयल होवे के ढोंग करऽ हइ आउ जान-बूझके चक्का के निच्चे आ जा हइ; आउ तूँ एकर जवाब देते रहऽ ।"
"ई ओकन्हीं सब के धंधा हइ, श्रीमान, ई धंधा हइ ..."

लेकिन ओहे क्षण, जब ऊ रेलिंग भिर अपन पीठ सहलइते खड़ी हलइ आउ अभियो भौंचक्का होल, आउ गोस्सा से कल्यास्का (घोड़ागाड़ी) के दूर जइते देखब करऽ हलइ, कि अचानक ओकरा महसूस होलइ, कि कोय ओकर हथवा पर पइसा डालब करऽ हइ । ऊ देखलकइ - एगो वइसगर व्यापारी घराना के औरत हलइ, सिर पे रूमाल आउ बकड़ी के खाल के बश्माक (जुत्ती) पेन्हले, आउ ओकर साथे एगो लड़की, हैट लगइले आउ हरियर छतरी के साथ, शायद ओकर बेटी हलइ । "ले ले, बबुआ, भगमान के नाम पर ।" ऊ ले लेलकइ आउ ओकन्हीं आगे बढ़ गेलइ । ई बीस कोपेक के सिक्का हलइ । ओकर बस्तर आउ चेहरा से ओकन्हीं ओकरा शायद भिखारी समझ लेलके हल, जेकरा सड़क पर वस्तुतः आधा कोपेक के संग्राहक मानल जा हलइ, लेकिन ओकरा वास्तव में बीस कोपेक मिल गेलइ, जे ओकरा चाबुक के चोट सहे खातिर हलइ, जेकरा चलते ओकन्हीं के दया आ गेले हल ।

ऊ बीस कोपेक के सिक्का के हाथ में दाबले कोय दस कदम आगे बढ़लइ आउ अपन चेहरा नेवा नद्दी दने कर लेलकइ, राजमहल के दिशा में [4] । असमान में कुच्छो बादर नयँ हलइ, आउ पानी लगभग नीला हलइ, जे नेवा में बहुत विरले होवऽ हइ । प्रधान गिरजाघर (cathedral) के गुंबद, जे हियाँ से देखला पर जेतना सुहावन लगऽ हइ, ओतना आउ कउनो जगह से नयँ, पुल पर से, छोटका गिरजाघर (chapel) से कोय बीस कदम दूर, सूर्य के प्रकाश में चमक रहले हल, आउ स्वच्छ हवा से होके ओकर हरेक आभूषण भी स्पष्ट देखाय देब करऽ हलइ [5] । चाबुक के दरद दूर हो गेलइ, आउ रस्कोलनिकोव चोट के बारे भुलियो गेलइ; अब एगो बेचैन करे वला आउ बिलकुल अस्पष्ट विचार पूरा तरह से ओकर दिमाग में छाल हलइ । ऊ खड़ी-खड़ी क्षितिज तरफ देर तक एकटक देखते रहलइ; ई जगह ओकरा विशेष रूप से परिचित हलइ । जब ऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाय खातिर जा हलइ, त साधारणतः, विशेष रूप से घर वापिस आते बखत, ऊ खास एहे जग्गह पर रुक जा हलइ आउ एकटक ई मनोरम दृश्य के अवलोकन करते रहऽ हलइ (अइसन ओकरा साथ करीब सो तुरी होले होत), आउ हरेक तुरी मस्तिष्क में उत्पन्न अपन एगो अस्पष्ट आउ असमाधेय भावना पर अचरज करऽ हलइ । ई अद्भुत दृश्य से हमेशे ओकरा पर से एगो अव्याख्येय शीतल हावा बहऽ हलइ; ई शानदार तस्वीर ओकरा लगी बिलकुल गोंग आउ बहिर रूह लगऽ हलइ ... ऊ हर तुरी ई धुंधला आउ रहस्यमय छाप पर अचंभा में पड़ जा हलइ आउ खुद पर विश्वास नयँ करके, ई पहेली के समाधान के भविष्य लगी छोड़ दे हलइ ।  अब अचानक आकस्मिक रूप से ओकरा ई सब पहिलौका प्रश्न आउ घबराहट के बारे आद पड़ गेलइ, ओकरा लगलइ, कि अभी ओकरा ई सब के आद संयोगवश नयँ पड़लइ । खाली एहे बात ओकरा वहशी आउ अजीब लगलइ, कि ऊ ठीक ओहे जगह पर रुकलइ, जाहाँ पहिले रुक्कऽ हलइ, मानूँ ऊ वास्तव में कल्पना कइलकइ, कि अब ऊ ओहे बात के बारे सोच सकऽ हइ, जइसे कि पहिले, आउ ओहे सब पहिलौका विषय आउ चित्र में दिलचस्पी ले सकऽ हइ, जेकरा में ... कुच्छे समय पहिले दिलचस्पी ले हलइ । ओकरा हँसियो बरे नियन लगलइ, आउ तइयो साथे-साथ ओकर छाती में दरद अनुभव होवे एतना संकुचन (constriction) हलइ । अब ओकरा पहिलौका सब्भे अतीत, आउ पहिलौका विचार, आउ पहिलौका समस्या, आउ पहिलौका विषय-वस्तु, आउ पहिलौका स्मृति, आउ ई सब्भे मनोरम दृश्य, आउ ऊ खुद, आउ सब, सब कुछ एक प्रकार के गहराई में, निच्चे, मोसकिल से ओकरा गोड़ के निच्चे देखाय देवे लायक प्रतीत हो रहले हल ... ओकरा लग रहले हल, कि ऊ उपरे कहीं उड़ल जा रहले ह, आउ सब कुछ ओकर आँख के सामने से ओझल होल जा रहले ह ... अनजाने में हाथ घुमइला पर अचानक ओकरा मुट्ठी में दाबल बीस कोपेक के सिक्का के अनुभव होलइ ।  ऊ हाथ खोललकइ, पइसवा तरफ एकटक देखते रहलइ, फेर अपन बाँह के जोर से घुमाके पइसवा के पानी में फेंक देलकइ; तब मुड़लइ आउ घर तरफ रवाना हो गेलइ । ओकरा लगलइ, कि ऊ क्षण ऊ मानूँ कैंची से अपने आप के सब कोय आउ सब कुछ से काटके अलग कर लेलक ह।

ऊ घर पर पहुँचलइ तब साँझ हो रहले हल, मतलब, ऊ कोय छो घंटा तक चलते रहले हल । ऊ काहाँ से आउ कइसे लौटके आल, ओकरा कुछ आद नयँ हलइ । कपड़ा उतारके आउ दौड़ा-दौड़ा के बेदम कइल घोड़ा के तरह काँपते ऊ सोफा पर पड़ गेलइ, ओवरकोट घींचके खुद पर डाल लेलकइ आउ तुरते ओकरा गहरा नीन आ गेलइ…

ऊ गोधूलिवेला के बखत एगो भयानक चीख से जग पड़लइ । हे भगमान, कइसन चीख हलइ ई ! अइसन अप्राकृतिक ध्वनि, अइसन करुण क्रन्दन, चीख, किरकिराहट, आँसू, लात-घुँस्सा आउ गारी ऊ कभियो नयँ सुनलके हल, आउ न देखलके हल । अइसन पाशविकता के, अइसन क्रोधावेश के ऊ कल्पनो नयँ कर सकऽ हलइ। भय से ऊ उठ गेलइ आउ अपन बिछौना पर बइठ गेलइ, हरेक पल ओकर दिल बइठल जा हलइ आउ पीड़ा महसूस कर रहले हल । लेकिन लड़ाय-झंझट, चीख, आउ गाली-गलौज के अवाज लगातार तेज होल जा हलइ । आउ तब ओकरा बेहद अचरज होलइ, जब ओकरा अचानक अपन मकान-मालकिन के अवाज सुनाय देलकइ । ऊ बिलख रहले हल, चिल्ला रहले हल आउ विलाप कर रहले हल, आउ तेजी से, जल्दी-जल्दी, मुँह से अइसे शब्द निकास रहले हल, जेकरा समझना असंभव हलइ, कोय बात के बारे निवेदन करते - शायद, ई बात खातिर कि ओकरा पिट्टल नयँ जाय, काहेकि ओकरा ज़ीना पर बेरहमी से पिट्टल जा रहले हल । पिटाई करे वला के अवाज द्वेष आउ गोस्सा से एतना भयानक हो गेले हल, कि ऊ खाली घरघरा रहले हल, लेकिन तइयो पिट्टे वला कुछ तो बोल रहले हल, आउ ओहो तेजी से, अस्पष्ट रूप से, जल्दी-जल्दी आउ बड़बड़इते । अचानक रस्कोलनिकोव पत्ता के तरह कँप्पे लगलइ - ऊ ई अवाज पछान गेलइ; ई अवाज इल्या पित्रोविच के हलइ । इल्या पित्रोविच हियाँ ! आउ मकान-मालकिन के पिट्टब करऽ हइ ! ऊ ओकरा लतिया रहले हल, ओकर मथवा के सिड़हिया पर पटक रहले हल - ई बात तो साफ हलइ, चीख आउ चोट के सुनाय दे रहल अवजवा से समझल जा सकऽ हलइ ! की बात हइ, दुनियाँ उलट-पुलट गेलइ की ? सब्भे मंजिल से, पूरे ज़ीना पर से लोग के भीड़ जमा होवे के अवाज सुनाय देब करऽ हलइ; लोग के बोले के, अचरज से चिल्लाय के, लोग के उपरे आवे के, दरवाजा खटखटावे के, जोर से बन करे के, आउ धौगे के अवाज सुनाय देब करऽ हलइ । "लेकिन आखिर काहे लगी, आखिर काहे लगी, आउ ई कइसे संभव हो सकऽ हइ !", ऊ कइएक तुरी दोहरइलकइ, गंभीरतापूर्वक सोचते, कि ऊ बिलकुल पागल हो गेले ह । लेकिन नयँ, ओकरा साफ-साफ सुनाय दे रहले ह ! ... लेकिन, एकर मतलब ई हइ, कि अब ओकरो पास ओकन्हीं अइते जइतइ, अगर ई बात हइ, "काहेकि ... पक्का बात हइ, ई सब कुछ ओकरे चलते ... कल के सिलसिले में ... हे भगमान !" ऊ दरवाजा के सिटकिनी लगावे ल चहलकइ, लेकिन ओकर हाथ उठ नयँ पइलइ ... आउ ई बेकारो हलइ! भय, बरफ नियन, ओकर दिल के चारो तरफ से जकड़ लेलके हल, ओकरा सता रहले हल, ओकरा ठिठुरा देलके हल ... लेकिन आखिर के, ई सब हल्ला-गुल्ला पूरे दस मिनट चलला के बाद धीरे-धीरे शांत पड़े लगलइ । मकान-मालकिन कराह रहले हल, आह-ओह कर रहले हल, इल्या पित्रोविच अभियो लगातार धमका आउ गरिया रहले हल ... लेकिन अइकी आखिर, लगऽ हइ, ऊ शांत पड़ गेलइ; अब ओकर कुछ अवाज नयँ सुनाय देब करऽ हलइ; "की, चल गेलइ ! हे भगमान !" हाँ, अइकी मकन-मलकिनियों  जाब करऽ हइ, अभियो लगातार कराहते आउ कनते ... आउ अइकी ओकर दरवाजा खटाक से बन हो गेलइ ... आउ अइकी भीड़ बिखर रहले ह, ज़ीना से सब कोय फ्लैट में जा रहले ह - 'ओह' कर रहले ह, वाद-विवाद कर रहले ह, एक दोसरा के पुकार रहले ह, कभी अपन बोली के उँचगर करके चिल्लाहट तक पहुँचा रहले ह, त कभी निच्चे करके फुसफुसाहट तक । लगऽ हइ, ओकन्हीं कइए गो हलइ; लगभग पूरा के पूरा घर दौड़के जामा हो गेले हल । "लेकिन, हे भगमान, की ई सब संभव हइ ! आउ काहे लगी, काहे लगी ऊ हियाँ अइले हल!"     

थकके चूर होल रस्कोलनिकोव सोफा पर गिर गेलइ, लेकिन ऊ अपन आँख नयँ बन कर पइलकइ; अइसन वेदना, असीम भय के अइसन असहनीय अनुभूति, जेकरा ऊ कभियो अनुभव नयँ कइलके हल, ऊ आधा घंटा तक पड़ल रहलइ। अचानक एगो तेज रोशनी ओकर कमरा के चमका देलकइ - नस्तास्या मोमबत्ती आउ शोरबा (सूप) के प्लेट लेके अन्दर घुसलइ । ओकरा तरफ ध्यान से देखके आउ ई जानके कि ऊ सुत्तल नयँ हइ, ऊ मोमबत्ती के टेबुल पर धइलकइ आउ लावल समान के सजावे लगलइ - रोटी, नीमक, प्लेट, चम्मच ।

"निश्चित रूप से तूँ कल से कुछ नयँ खइलऽ ह । दिन भर तो एने-ओने भटकते रहलऽ ह, आउ बोखार से पूरा देह कँप रहलो ह ।
"नस्तास्या ... मकान-मालकिन के काहे लगी पिट्टब करऽ हलइ ?"
ऊ एकटक ओकरा तरफ देखलकइ ।
"के मकान-मालकिन के पिट्टब करऽ हलइ ?"
"अभी ... आध घंटा पहिले, इल्या पित्रोविच, पुलिस चीफ के सहायक, ज़ीना पर ... काहे लगी ऊ एतना बेरहमी से ओकरा पिटलकइ ? आउ ... ऊ अइले हल काहे लगी ? ..."

नस्तास्या चुपचाप नाक-भौं सिकोड़ले ओकरा देखलकइ आउ देर तक देखते रहलइ । ओकरा अइसे देखला से बहुत खराब लगलइ, डरो लगलइ ।
"नस्तास्या, तूँ चुप काहे हकहीं ?", ऊ आखिरकार डरते-डरते ओकरा धीमे अवाज में पुछलकइ ।
"ई खून हइ", आखिरकार ऊ जवाब देलकइ, धीरे से आउ मानूँ अपने आप के कहते ।
"खून ! ... कइसन खून ? ...", देवाल तरफ पीछू हटते ऊ बड़बड़इलइ, ओकर चेहरा पीयर पड़ गेले हल ।
नस्तास्या चुपचाप ओकरा तरफ लगातार देखते रहलइ ।

"हम खुद सुनलिए हल ... हम सुत्तल नयँ हलिअइ ... हम बइठल हलिअइ", ऊ आउ जादे डरते-डरते जवाब देलकइ । "हम देर तक सुनते हलिअइ ... पुलिस चीफ के सहायक अइले हल ... ज़ीना पर सब कोय दौड़ते अइलइ, सब्भे फ्लैट से ..."
"हियाँ तो कोय नयँ अइले हल । तोरा में ई खून चिल्ला रहलो ह । जब एकरा लगी कोय निकास नयँ रहऽ हइ, आउ यकृत (लिवर) में जम्मे लगऽ हइ, त अइसीं लगे लगऽ हइ ... तूँ कुछ खइबऽ न ?"
ऊ कुछ जवाब नयँ देलकइ । नस्तास्या अभियो ओकरा भिर झुकके खड़ी रहलइ, ओकरा तरफ एकटक देखते रहलइ आउ बाहर जाय के नाम नयँ लेलकइ ।
"कुछ पीये ल दे दे ... नस्तस्यूश्का ।"

ऊ ज़ीना से उतरके निच्चे गेलइ आउ कोय दू मिनट के बाद उज्जर मट्टी के बरतन में पानी लेके अइलइ; लेकिन एकर आगे की होलइ, ओकरा कुछ आद नयँ रहलइ । ओकरा खाली एतने आद रहलइ, कि ठंढा पानी के एक घूँट पिलके हल आउ बरतन से कुछ पानी अपन सीना पर छलका देलके हल । ओकर बाद ऊ बेहोश हो गेले हल ।

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