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Monday, May 23, 2016

मगही दूरा-दलान - फरवरी 2016 में प्रकाशित लेख



मगही
[21] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
देश में स्मार्ट सिटी बनावे के जब बात चलल हल तऽ हमनी मगहिया भाई-बहिन के मन में अइसन लगल कि इ बेर अप्पन गयाजी के बेड़ा पार हो जाएत । बिहार में स्मार्ट सिटी जउन एगो से दूगो शहर बनत, तऽ उ दूगो में अप्पन राज्य के राजधानी पटना के बाद अप्पन गयाजी के नाम जरूर से रहत, जेकरा ब्रह्मा जी भी नऽ काट सकलन हे । बाकि अइसन होएल कहां ? मन के सोंचल सपना बालू के भीत्ती लेखा भरभरा के रह गेल । बिहार से स्मार्ट सिटी बनें खातीर दूगो शहर के नाम गेल-उ हल भागलपुर आउ बिहारशरीफ । एतनो पर मन के संतोख होएल कि चलऽ गयाजी न सही कम से कम एगो मगहिया शहर बिहारशरीफ तो स्मार्ट सिटी बनत ? अब जब स्मार्ट सिटी बनावे के सुरसार शुरू भेल तऽ हाय राम! बिहार, उत्तरप्रदेश आउ पं० बंगाल के एक्को शहर के स्मार्ट सिटी में नामें नऽ हे । मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली सहीत दोसर कम बेसी सभे राज्य के शहर स्मार्ट सिटी बनत, अप्पन बिहार कहूं एहू में नऽ पछूआ जाए । अब केन्द्र सरकार के मन में का हे, इ बात कहल बड़ मोस्किल हे । हम तो बिना पार्टी पालटिक्स वाला साहित्य के अदमी हिअ । इ लेल अप्पन बात साहित्य के चहारदिवारी से बाहरे निकल के कहे में डर लगऽ हे । हिन्दी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल के नामी-गिरामी कवि बिहारीलाल हलन, जउन बिहारी सतसई में कुलम सात सौ दोहा लिखके हिन्दी साहित्य के बड़कन कवियन में अप्पन गिनती करवैलन । उ राजदरबारी कवि हलन आउ कहल जाहे कि उनकर एक दोहा पर राजा खुश होके सातगो अशरफी दान देवऽ हलन । बिहारीलाल के लिखल एगो दोहा हम अपने सभे के बीच रखल चाहऽ ही-अपने अंग के जानिकै, जोवन-नृपति प्रवीन । स्तन, मन, नैन, नितंब कौ, बड़ इजाफा कीन ॥ मदकल छंद में लिखल इ सिंगार के रचना हे, जेकरा में कवि कहऽ हथन कि यौवन के राजा अप्पन अंग जान के नायिका के स्तन, मन, नैन आउ नितंब में बेसी इजाफा करलन, दोसर अंग के नऽ, काहे से कि देह के दोसर अंग से यौवन नृप के का लेना देना । स्मार्ट सिटी बनावे में भी यौवन राजा नियन केन्द्र सरकार भी भेदभाव कर रहल हे, तऽ इमें बेसी हरज के बात नऽ हे । अब वसंत के ऐला पर सरसो फूलाएत नऽ, आम बउराएत नऽ, बूट-मटर-खेंसाड़ी गदराएत नऽ, गेहूंम खेत में झूमत नऽ, हावा इतराएत नऽ, तऽ इ तो परकीरति के विरूध हो जाएत । इ लेल हम अप्पन मन के इहे बात समझावऽ ही-रह रे जीउ खईंहे घीउ, बाकि समय पर । आज न कल स्मार्ट सिटी अप्पन प्रदेश के भी शहर बनत । अइसे इ बात पर हमरा गुमान हे कि नेम धरम के हिसाब से अप्पन गयाजी देश के दोसर शहर से बेसी स्मार्ट हे, जहां कमोबेस सालोभर देश-दुनिया से घुमताहर आवऽ हथन आउ कपार टेक के सुख-शान्ति के मन में कामना कर हथन । हम्मर गयाजी स्मार्ट सिटी बनें नऽ बनें । अपने कभीओ इहां आथिन, दावा करऽ ही अपने के मन के उ संतोख भेंटाएत, जउन दोसर स्मार्ट सिटी घुमला से नऽ भेंटाएत । निहोरा हे-एक बेर गयाजी आवे के..... ।
प्रकाशित प्रभात खबर-02-02-2016

मगही
[22] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
आखिर अप्पन समय पर रितुअन के राजा वसंत आ हीं गेलन । मारे डेरा के जाड़ा-पाला अप्पन बोरिया-बिस्तरा समेट लेल । बाग-बगइचा, खेत-बधार जन्ने नजर घुमा के देखऽ वसंत के नजारा साफ लौक जाएत । मोंजर से लदल आम के बगइचा होवे कि पीअर फूल से भरल सरसों के खेत, बूट-मटर-खेंसाड़ी-तीसी के खेत में फूलाएल रगन-विरगन के फूल इया हावा के झोंका के साथे झुमइत अरहर आउ गेहूंम के खेत सभे वसंत के रंग में रंगा गेलन हे । न बेसी जाड़ा आउ न बेसी गरमी के इ वासंती मौसम में अदमी-जन के साथे गोरू-जनावर, चिड़ईं-चुरगुन भी खुशमिजाज हो गेलन हे । अप्पन देश भारत के दुनिया भर के दोसर देश से एगो अलगे पहचान हे । इ पहचान रंग-रूप, पेन्हावा-ओढ़ावा, खान-पीअन, रहन-सहन से लेके आउ कैकन रूप में भेंटा हे । इहे में एगो रूप हे-अप्पन देश परब-त्योहार के देश हे, जहां हर मौसम में मनावे जाएवाला अलगे-अलगे परब-त्योहार हे । वसंत में भी इहां केतने परब मनावल जाहे । बाकि एकर शुरूआत होवऽ हे वसंती पंचमी माने सरस्वती पूजा से । माता सरस्वती विद्या के देवी हथन, जिनकर पूजा खास करके पढ़ाई-लिखाई करेवालन लइका-लइकी धूमधाम से करऽ हथन । कमोबेस सभे शिक्षण संस्थान में सरसवती पूजा मनावल जाहे । एकर अलावे एन्ने कुछ बच्छर से गांव-शहर के हर गल्ली-मुहल्ला में सरस्वती पूजा मनावे के प्रचलन हो गेलक हे । पूजा के नाम पर महीना दिन पहिले से चंदा वसुली के धंधा में न पढ़े-लिखे वाला लइकन लग जा हलन आउ टोला-मोहल्ला के अलावे गाड़ी-छक्कड़ा वालन के चंदा वसुली के नाम पर नाक में दम करके रखले रहऽ हलन । महंगाई के दुहाई देके पांच-दस न सौ-पच्चास तक के रसीद थम्हा दे हलन । न देला पर लाठी-डंटा लेके तैयार । केतने गाड़ी के शीशा फूटऽ हल, तऽ केतने ड्राइवर-खलासी बेमतलब के लाठी-डंटा खा हलन । आउ पूजा के दिन से लेके मूर्ति डूबावे तक खाली काने बहिर नऽ करले रहऽ हलन, परिवार के साथे बाहरे निकलना दूभर कर दे हलन । पूजा विद्या के देवी माता सरस्वती के आउ गाना अइसन जेकरा सुन के मारे शरम के मुड़ी नीचे झुक जा हल । मूर्ति डूबावे के नाम पर डीजे बजा के, भांग-धथूरा खाके, अबीर-गुलाल उड़ावइत एकदम से बिगड़ल लइकन सभे बउराएल कुछो करे पर उतारू हो जा हलन । इ बेर इ बात के मन में खुशी हे कि सरस्वती पूजा से पहिले प्रशासन के तरफ से नकेल कसल जा रहल हे । सरस्वती पूजा मनावे लेल प्रशासन के सहमति जरूरी हे । अइसन न करेवालन पर प्रशासन कारवाई लेल कमर कसले हे । कुछ लोग प्रशासन के इ काड़ा रूख से भीतरे-भीतरे कुंभला रहलन हे, बाकि बेसी करके आदमी-जन के मन में इ बात के खुशी हे कि इ बेर सरस्वती पूजा के नाम पर अश्लीलता न परोसल जाएत । लोग भक्तिभाव से सरस्वती जी के पूजा करतन आउ आम के मोंजर, गुड़, अरवा चाउर से बनल असली प्रसादी ग्रहण करतन । झूठ के देखावा से नेजात भेंटाएत । वसंत पंचमी में सरस्वती पूजा सभे कोई भक्तिभाव से मानाथिन आउ मन के अज्ञानता के दूर करेके वरदान मईया से मांगथिन । वसंत पंचमी में रंग-गुलाल उड़ावऽ, बाकि प्रेम आउ सौहाद्र के......अभी एतने बात ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-09 फरवरी 16

मगही
[23] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
प्यार आउ मनुहार के मौसम बसंत के आगमन का भेल सभे कुछ अपने आप बदल गेल । नरम सूरूज गरम हो गेलन, जेकरा से जाड़ा डेराएल अप्पन राह धर लेलक । खेत-बधार में लहलहाइत रबी फसल गेहूँम, जौ, बूट, मटर, सरसो, तीसी, अरहर फरे-फूलाय लगल । आम के बगइचा एकदम से बउराएल महमहाय लगल ।हावा तक बदल गेल । विद्या के देवी माता सरस्वती के परब बसंत पंचमी निके सुखे पार लग गेल । बसंत पंचमी में बैर भाव भूला के का लइका, का बूढ़ आउ का जवान मरद-मेहरारू सभे एक दोसरा के अबीर-गुलाल लगा के एक दोसरा लगे प्यार के इजहार कैलन । इ सिलसिला वैलेंटाइन डे नियल सप्ताह भर नऽ चलत । पूरा माघ, भर फागुन आउ पूरा चैत महीना मस्ती में बीतत । गीत-गौनई, खान-पीअन, आचार-व्यवहार सभे में प्यार के झलक भेंटाएत । प्यार आउ मनुहार के मौसम जउन बसंत पंचमी से शुरू होएल, फागुन में एकदम से जवान हो जाएत, मौका अइसनो आवत, जब भर फागुन बुढवा देवर लागे के गीत गुंजत आउ इ मदमातल चइत महीना तक टनाएत । पच्छिम से आएल परब वैलेंनटाइन डे जउन एकदम से बजारू हे-सप्तार भर में दम तोड़ देवऽ हे । तइयो ढेर शहरी युवा इ परब के पाछे पगलाएल रहऽ हथ । देख-सुन के मन में हंसी आवऽ हे । वैलेंटाइन बाबा के गढल इ प्यार के परब बजारू कइसे हे, एकरा बिना माथा के अदमी भी समझ सकऽ हथन । प्यार के इ परब सप्ताह भर रोजे अप्पन रंग बदलऽ हे । पहिला दिन रोज डे, दोसरा दिन प्रपोज डे, फिन हग डे, चाकलेट डे, टेडिवियार डे, प्रॉमिस डे आउ फिन वैलेंटाइन डे । अब इ सातो दिन में दू-तीन दिन छोड़ के बाकि  के दिन प्यार के नऽ बजार के दिन हे, जेकरा में बिना पोकिट ढिला करले प्यार के इजहार करले नऽ जा सकऽ हे । वैलेंटाइन डे आवे से पहिले बजार सज-धज के तैयार रहऽ हे, तइयो ओतना कहां जेतना बसंत आवे पर प्रकृति सज-धज के तैयार रहऽ हे । अब वैलेंटाइन सप्ताह में इ महंगी के जमाना में गुलाब, चाकलेट, टेडिवियर, वैलेंटाइन डे कार्ड खरीदे में प्रेमी जोड़ी के पसेना छूट जाहे । बजार के खरीदल समान ले-दे के प्यार के गाड़ी केतना दूर खिंचायत इ बात अपने समझे के हे, समझावे के नऽ हे । तइयो युवा सभे के इ बात उनकर भेजा में कउन भरे कि प्यार खरीद-बिक्री करे के चीज नऽ हे । इ प्रकृति के अनमोल उपहार हे । अब उ प्यार चाहे माय-बाबूजी के होवे, चाहे भाई-बहिन के, चाहे पत्नी-पति के, चाहे प्रेमी-प्रेमिका के । प्यार तो पवित्र बंधन के नाम हे, जेकार खरीद-बिक्री बजारू समान ले दे के नऽ करल जा सकऽ हे । बसंत में कोई बनावटीपन नऽ हे । बसंत के आहट पाते प्रकृति अप्पन मादक रंग-रूप बदल लेवऽ हे आउ प्यार के गगरी छलके लगऽ हे । बसंत अभी चढ़ल हे, जेकर असर प्रकृति के कण-कण में होवे लगल हे । बोलता से लेके अनबोलता तक बसंत के वासंती रंग में रंगाएल हथ । रूख-बिरिच्छ पर पुरान पत्ता के जगह कोमल नया पत्ता उग रहलक हे, चिड़ई-चुरगुन मस्ती के गीत गावे में मसगुल हथ, खेत-बधार में लगल फसिल पर जवानी अंगड़ाई ले रहलक हे, अइसन में अदमी, अदमी के बीच प्यार के बीआ नऽ बुनाय, भला इ कइसे हो सकऽ हे । प्यार आउ मनुहार के मौसम बसंत में गिला-शिकवा, बैर-भाव भूला के आवऽ एक-दोसरा से प्यार करऽ । जइसे-जइसे बसंत आगे बढ़त प्यार आउ गहराएत, मन में इहे आशा आउ विश्वास के साथे युवा सभे से हाथ जोड़ के निहोरा एतने कर रहली हे कि बसंत हेऽ प्यार आउ मनुहार के असली मौसम, वैलेंटाइन एकर आगू बजारू आउ झूठ के देखावा हे । चलते-चलते कबीर बाबा के कहल बात-घर की वस्तु धरी नहीं सूझै, बाहर खोजन जासि । पानी बीच मीन प्यासी, मोहि सुनि-सुनि आवत हांसी ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-16 फरवरी 2016  

मगही
[24] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
हम खाली अपना हिआं के बात नऽ कर रहली हे, समूले दुनिया में बेमौसम बदलाव हो रहल हे, जे सभे लेल खतरा के घंटी हेऽ । समय रहते एकरा पर समूले दुनिया के एकजूट होवे के जरूरत हे । इ बेमौसम के बदलाव आवेवाला दिन में समूले धरती के लील सकऽ हे । कहूं बाढ, तऽ कहूं सूखाड़ । कहूं बरफबारी तऽ कहूं देह जरावे वाला गरमी, आज आम हो गेलक हे । अप्पन देश के मौसम, दोसर देश के मौसम से अलगे शुरूमे से रहल हे । अपना हिआं जाड़ा-गरमी-बरसात तीनों फेर फार आवइत रहऽ हे । अभी जउन मौसम हिआं चल रहल हे, इ जाड़ा आउ गरमी के बीच वाला हे, जेकरा में न बेसी ठंढा आउ न बेसी गरमी के एहसास होवऽ हे । एकरा रितुअन के राजा बसंत भी कहल गेल हे । बाकि मौसम में बदलाव के असर बसंत पर भी पड़ल हे । दिन में रउदा उगला पर पसेना छोड़ावे वाला गरमी आउ रात के कम्बल-नेहाली ओढ़े वाला जाड़ा, इ निमन नऽ हे । इ भी बेमौसम बदलाव के असर हे । समूले दुनिया के इ बात के चिन्ता तो हेऽ, बाकि एकरा लेल कोई ठोस उपाय नऽ करल जा रहल हे, उल्टे परकीरति के दिन-रात दोहन हो रहल हे । परकीरति के देल अनमोल उपहार के तहस-नहस करल जा रहल हे । अप्पन स्वार्थ में जंगल-पहाड़ काटल जा रहल हे, नदी के बालू राते-दिने ढोवा रहल हे, पेड़-पौधा कटा रहल हे, अपना के ताकतवर देखावे लेल परमाणु परीक्षण करल जा रहल हे, गाड़ी-छक्कड़ा आठो पहर जहर उगिल रहल हे, धरती के माट्टी में रासायनिक खाद आउ कीटनाशी दवाई देके ओकर ताकत छिनल जा रहल हे, जंगली जीव-जन्तु के बेबजह मारल जा रहल हे आउ का-का । एकरे असर हेऽ कि मौसम दगा दे रहल हे । अदमी इ बात के जान भी रहलन हे, तइयो अप्पन स्वार्थ में इ सब काम कर रहलन हे । नियम-कानून बनऽ हे, बाकि ओकर पालन सख्ती से हो कहां पावऽ हे ? जेकर भोगना आज सभे भोग रहलन हे । एगो बानगी दे रहली हे । अब रोड-पुल-मकान बनावे लेल पहाड़ न टूटत तऽ गट्टी-छर्री आवत कहां से ? बिना बालू के काम चलत कइसे ? बात सही हे, बाकि दोसरा दन्ने इहो बात सोंचे के जरूरत हे कि पहाड़ के काट-काट के खतम करला के बाद पहाड़ बनत कइसे, नदी के बालू ढो-ढो के खत्म कर देला पर नदी में बालू आवत कहां से ? एकर जबाब केकरो भीर नऽ हे । फिन परकीरति कोई नऽ कोई उपाय तो करवे करत । बेमौसम बदलाव ओकरे असर हे । आजकल दुनिया के सबला जब्बड़ देश अमेरिका बरफबारी से हरान-परेशान हे । सड़क-बिजुली-पानी सब पर आफत । नाक में दम करले हे-बरफबारी । जब जब्बड़ के इ हाल हेऽ तऽ अब्बर-दुब्बर के हाल का होएत, इ सोंच के देह के रोआं खाड़ हो जाहे । इ बच्छर निमन बरसात न होवे से दोसरा जगह के साथे-साथे समूले अप्पन मगहिया क्षेत्र में पीए के पानी पर आफत आ सकऽ हे, जेकरा लेल अभीए से उपाय-पतर न करल गेल तऽ मोसिबत खाड़ हो सकऽ हे । बेमौसम बदलाव खतरा के घंटी न बनें, एकरा लेल आवऽ सभे मिलजुल के सोंचऽ-विचारऽ आउ ठोस उपाय करऽ । अभी एतने!
प्रकाशित, प्रभात खबर-23 फरवरी 2016

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