रूसी
उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
2.
राजकुमारी मेरी - अध्याय-4
21
मई
लगभग
एक सप्ताह गुजर चुकले ह, लेकिन लिगोव्स्काया से हमर परिचय नयँ हो पइले ह । उचित अवसर
के प्रतीक्षा कर रहलिए ह । ग्रुशनित्सकी, छाया नियन, सगरो छोटकी राजकुमारी के पीछा
करऽ हइ । उनकन्हीं के बातचीत अंतहीन हइ - कब ऊ उनका बोर करतइ ? ... माय एकरा पर ध्यान
नयँ दे हथिन, काहेकि ऊ (अर्थात् ग्रुशनित्स्की) मंगेतर नयँ हइ । त ई हइ माय लोग के
तर्क ! हम दु-तीन कोमल दृष्टि (tender glances) के नोटिस कइलिअइ - एकरा समाप्त करहीं
के चाही ।
कल्हे
कुआँ बिजुन पहिले तुरी वेरा अइलइ ... गुफा में भेंट होला के समय से ऊ घर से बाहर नयँ
होवऽ हलइ । हमन्हीं दुन्नु एक्के समय गिलास निच्चे कइलिअइ, आउ ऊ झुकके हमरा फुसफुसइलइ
-
"तूँ
लिगोव्स्काया से परिचित होवे लगी नयँ चाहऽ हो ? ... हमन्हीं खाली हुएँ एक दोसरा के
देख सकते जा हिअइ..."
ताना
! बोरिंग ! लेकिन एकरे लायक हलिअइ ...
संयोगवश,
बिहान रेस्तोराँ के हॉल में सशुल्क बॉल नृत्य हइ, आउ हम छोटकी राजकुमारी के साथ माज़ुर्का
नृत्य करबइ ।
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