लघुकथा मगही साहित्य की एक अत्याधुनिक विधा है । इसका जन्म 20 वीं शती के सातवें दशक में समझना चाहिए जब डॉ० राम प्रसाद सिंह की पहली लघुकथा जमशेदपुर से निकलनेवाली 'भोर' पत्रिका में प्रकाशित हुई । यह लघुकथा - 'अमरत्व के भूख' 19 सितम्बर 1966 को लिखी गई थी और सम्भवतः 1969 में प्रकाशित हुई थी । ऐसे तो लघुकथाओं का उद्गम वैदिक साहित्य से खोजने का प्रयास किया जाता है और उसका बीज पंचतन्त्र और जातककथा में पाए जाने की सम्भावना व्यक्त की जाती है, परन्तु आधुनिक हिन्दी या मगही लघुकथाओं का उनसे कुछ लेना-देना नहीं है ।
डॉ० राम प्रसाद सिंह - 96 लघुकथाओं का लिखित संग्रह, 50 लघुकथाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित । 'मगह के आवाज' के दूसरे खंड में लघुकथा का संग्रह ।
डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य और डॉ० उमाशंकर सिंह (सं०) - लघुकथा संग्रह 'छतीसी' ।
संजीव कुमार तिवारी (सं०) - लघुकथा संग्रह 'धरोहर' (21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं का संग्रह) ।
केशव प्रसाद वर्मा - लघुकथा संग्रह 'हाथी के दाँत' ।
जनवरी 1998 में 'अलका मागधी' का लघुकथा विशेषांक प्रकाशित ।
अप्रैल 1998 में 'पाटलि' का लघुकथा विशेषांक प्रकाशित । इसमें 13 लघुकथाएँ और दो लघुकथा पर आधारित आलेख हैं । जिससे लघुकथा की पृष्ठभूमि एवं गतिविधि का भी संकेत मिलता है ।
मगही लघुकथा की प्रगति जिस तेजी से हो रही है उससे इस विधा के उज्ज्वल भविष्य की सहज कल्पना की जा सकती है । पुराने कथाकारों के साथ नित्य नए-नए कथाकार मगही लघुकथा लेखन के क्षेत्र में पदार्पण कर रहे हैं ।
डॉ० राम प्रसाद सिंह - 96 लघुकथाओं का लिखित संग्रह, 50 लघुकथाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित । 'मगह के आवाज' के दूसरे खंड में लघुकथा का संग्रह ।
डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य और डॉ० उमाशंकर सिंह (सं०) - लघुकथा संग्रह 'छतीसी' ।
संजीव कुमार तिवारी (सं०) - लघुकथा संग्रह 'धरोहर' (21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं का संग्रह) ।
केशव प्रसाद वर्मा - लघुकथा संग्रह 'हाथी के दाँत' ।
जनवरी 1998 में 'अलका मागधी' का लघुकथा विशेषांक प्रकाशित ।
अप्रैल 1998 में 'पाटलि' का लघुकथा विशेषांक प्रकाशित । इसमें 13 लघुकथाएँ और दो लघुकथा पर आधारित आलेख हैं । जिससे लघुकथा की पृष्ठभूमि एवं गतिविधि का भी संकेत मिलता है ।
मगही लघुकथा की प्रगति जिस तेजी से हो रही है उससे इस विधा के उज्ज्वल भविष्य की सहज कल्पना की जा सकती है । पुराने कथाकारों के साथ नित्य नए-नए कथाकार मगही लघुकथा लेखन के क्षेत्र में पदार्पण कर रहे हैं ।
मगही के प्रमुख लघुकथाकारों की सूची (वर्णक्रमानुसार)
1 अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, डॉ०
2 अम्बिका सिंह
3 अलखदेव प्रसाद 'अचल'
4 अवधेश प्रसाद सिंह
5 उमाशंकर सिंह, डॉ०
6 केशव प्रसाद वर्मा
7 चन्देश्वर सिंह, डॉ०
8 तृप्ति नारायण शर्मा, प्रो० - दर्जनों लघुकथाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
9 दलीप कुमार, प्रो०
10 नरेन्द्र प्रसाद सिंह
11 महेन्द्र प्रसाद 'देहाती'
12 राम पारिख
13 राम प्रसाद सिंह, डॉ०
14 राम विलास 'रजकण'
15 रामनरेश प्रसाद वर्मा, प्रो०
16 रामयतन प्रसाद यादव
17 ललन कुमार मिश्र
18 वीर विजय सिंह 'बेसुध', डॉ०
19 वीरेन्द्र सिंह आजाद
20 श्रवण कुमार 'मधुर'
21 संजीव कुमार तिवारी
22 सच्चिदानन्द प्रसाद
23 सुखित वर्मा
24 स्वर्ण किरण, डॉ०
1 अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, डॉ०
2 अम्बिका सिंह
3 अलखदेव प्रसाद 'अचल'
4 अवधेश प्रसाद सिंह
5 उमाशंकर सिंह, डॉ०
6 केशव प्रसाद वर्मा
7 चन्देश्वर सिंह, डॉ०
8 तृप्ति नारायण शर्मा, प्रो० - दर्जनों लघुकथाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
9 दलीप कुमार, प्रो०
10 नरेन्द्र प्रसाद सिंह
11 महेन्द्र प्रसाद 'देहाती'
12 राम पारिख
13 राम प्रसाद सिंह, डॉ०
14 राम विलास 'रजकण'
15 रामनरेश प्रसाद वर्मा, प्रो०
16 रामयतन प्रसाद यादव
17 ललन कुमार मिश्र
18 वीर विजय सिंह 'बेसुध', डॉ०
19 वीरेन्द्र सिंह आजाद
20 श्रवण कुमार 'मधुर'
21 संजीव कुमार तिवारी
22 सच्चिदानन्द प्रसाद
23 सुखित वर्मा
24 स्वर्ण किरण, डॉ०
लघुकथा के कुछ नमूने
1. औकात - डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य
बेटी के बिआह करेला दउड़इत-दउड़इत वर्मा जी चिन्ता में आधा हो गेलन । आज ऊ सतवाँ बार एगो लड़का के घरे जाइत हथ । तीन दफे ऊ लोग भी इनका घरे आके लड़की देखे के बहाने खूब मिठाई खा चुकलन हे । जब लड़की पसन्द आ गेल, तब ऊ लोग फाइनल बात करे ला आज बोलयलन हे ।
नश्ता-पानी के बाद वर्मा जी बातचीत के शुरुआत कैलन - "हरेक लड़की के बाप अप्पन औकात के मोताबिक अप्पन बेटी के देवे ला दहेज के रकम जमा कैले रहऽ हे । हमहुँ अप्पन औकात के हिसाब से तीन लाख दे देम ।
"अप्पन औकात काहेला बतावइत ही वर्मा जी ! ", लड़का के बाप बोललन - "तिलक-दहेज के निर्धारण लड़का के औकात के मोताबिक होवे के चाहीं । हम्मर लड़का के बिआह पाँच लाख से कम में न होयत । अपने से अगर एतना के इन्तजाम हो जायत, तबे बिआह होयत ।"
वर्मा जी के तो बोलती बंद हो गेल । ऊ समझ गेलन कि न नौ मन तेल होयत न राधा नाचत । जौरे आयल अप्पन साला मुन्ना जी से वापस चले के इशारा कैलन । मुन्ना जी उनकर इशारा समझ गेलन । बाकि उठे से पहिले ऊ एगो सवाल कैलन - "बाबू साहेब ! वर्मा जी के पास तीन लाख जमा हे, त कहल जा सकऽ हे कि उनकर तीन लाख के औकात हे । बाकि अपने के बारे में कइसे पता चलत कि अपने के पाँच लाख के औकात हे ? अपने अप्पन बैंक खाता में पाँच लाख जमा देखा देम, तब हमरा बिसवास हो जायत ।"
लड़का के चचा खिसिया के बोललन - "अदमी हर हमेशे एतना रुपइया जमा थोड़हीं रखऽ हे ।"
"आज न हे त कहियो के तारीख में देखा दीं कि ऊ दिन अपने के बैंक खाता में पाँच लाख जमा हल । अगर पहिले न हल कहियो, तब हमनी दुन्नो पाटी एक महीना के समय ले लीं । अपने जउन दिन देखा देम कि अपने के पास पाँच लाख जमा हो गेल, ओही दिन हमनी दहेज के पाँच लाख अपने के पास जमा कर देम ।" एतना कहके मुन्ना जी वर्मा जी के साथे बाहर निकल गेलन ।
[ अलका मागधी, लघुकथा विशेषांक, दिसम्बर २००५, अंक १२, पृष्ठ – १]
बेटी के बिआह करेला दउड़इत-दउड़इत वर्मा जी चिन्ता में आधा हो गेलन । आज ऊ सतवाँ बार एगो लड़का के घरे जाइत हथ । तीन दफे ऊ लोग भी इनका घरे आके लड़की देखे के बहाने खूब मिठाई खा चुकलन हे । जब लड़की पसन्द आ गेल, तब ऊ लोग फाइनल बात करे ला आज बोलयलन हे ।
नश्ता-पानी के बाद वर्मा जी बातचीत के शुरुआत कैलन - "हरेक लड़की के बाप अप्पन औकात के मोताबिक अप्पन बेटी के देवे ला दहेज के रकम जमा कैले रहऽ हे । हमहुँ अप्पन औकात के हिसाब से तीन लाख दे देम ।
"अप्पन औकात काहेला बतावइत ही वर्मा जी ! ", लड़का के बाप बोललन - "तिलक-दहेज के निर्धारण लड़का के औकात के मोताबिक होवे के चाहीं । हम्मर लड़का के बिआह पाँच लाख से कम में न होयत । अपने से अगर एतना के इन्तजाम हो जायत, तबे बिआह होयत ।"
वर्मा जी के तो बोलती बंद हो गेल । ऊ समझ गेलन कि न नौ मन तेल होयत न राधा नाचत । जौरे आयल अप्पन साला मुन्ना जी से वापस चले के इशारा कैलन । मुन्ना जी उनकर इशारा समझ गेलन । बाकि उठे से पहिले ऊ एगो सवाल कैलन - "बाबू साहेब ! वर्मा जी के पास तीन लाख जमा हे, त कहल जा सकऽ हे कि उनकर तीन लाख के औकात हे । बाकि अपने के बारे में कइसे पता चलत कि अपने के पाँच लाख के औकात हे ? अपने अप्पन बैंक खाता में पाँच लाख जमा देखा देम, तब हमरा बिसवास हो जायत ।"
लड़का के चचा खिसिया के बोललन - "अदमी हर हमेशे एतना रुपइया जमा थोड़हीं रखऽ हे ।"
"आज न हे त कहियो के तारीख में देखा दीं कि ऊ दिन अपने के बैंक खाता में पाँच लाख जमा हल । अगर पहिले न हल कहियो, तब हमनी दुन्नो पाटी एक महीना के समय ले लीं । अपने जउन दिन देखा देम कि अपने के पास पाँच लाख जमा हो गेल, ओही दिन हमनी दहेज के पाँच लाख अपने के पास जमा कर देम ।" एतना कहके मुन्ना जी वर्मा जी के साथे बाहर निकल गेलन ।
[ अलका मागधी, लघुकथा विशेषांक, दिसम्बर २००५, अंक १२, पृष्ठ – १]
2. पाकिटमार - नरेन्द्र प्रसाद सिंह
पटना गया फास्ट पसिंजर टरेन पटरी पर रेंग रहल हे । डिब्बा के नीचे-ऊपर, अखानों-पखानों हियाँ तक कि इंजन पर भी अदमी के ऊपर अदमी लदल हे । आरच्छन आउ सधारन बोगी में कउनो अंतर नैं, मुदा रावा-छोवा सब एक्के भाव ।
कुली के दसटकिया देवे से एगो सीट बड़ी मोसकिल से मिलल, सेहो गेट के सटले । बोगी तो कोंचायले हल, गोड़ मोड़े के भी जगह नैं हल । एतने में एगो बबुआन अदमी घड़ी-चश्मा लगयले, जेबी में फोटरपीन खोंसले हमरा भिजुन आके खाड़ हो गेलन । हुँनखर बबुआन चेहरा देख के हम तनि घसक गेलूँ । ऊ पट-दबर बइठ गेलन आउ धन्यवाद देलन ।
हमनी के बीच गढ़गर गलबात होवे लगल । पुछला पर अप्पन नाम कुमार कलाधर बतौलन, जे गया जी जाइत हलन । हमहूँ बिन पुछले अप्पन नाम मगही रचनाकार नरेन्दर बतइली आउ सोझे-सोझे कह देली - "हमरो तो हुएँ जाय के हे ।" ई बात दूध में जोरन लेखा दही बन गेल, मुदा दोस्ती जम गेल ।
हम्मर हाथ में पटना से छपेवला पत्रिका 'अलका मागधी' के एगो अंक हल । ओकरा में हम्मर लिखल कहानी छपल हल 'पाकिटमार' । कहानी पढ़के ऊ कहे लगलन -"ई तोहरे लिखल कहानी हो ? बड़ बेस मगही लिखइत ह । कहानी के प्लॉट भी निमने हो । हमरो साथ एक तुरी अइसने घटना घटल हल ।"
गाछ-बिरिछ, गाँव-शहर, जानवर-धुर सबके सब भागल जाइत हे । खाली टरेन अहथिर बुझाइत हे । कलाधर जी कहे लगलन - "नरेन्दर भइया ! पाकिटमार न जानी कउन इसकूल से पास करऽ हे । हम तो हुँनखर बुद्धि के लोहा मानऽ ही । का कहीं नरेन्दर भइया ! एक तुरी हमरा दिल्ली जाय के हल । राजधानी इस्परेस के बोगी में अदमियन जौरे सटपट के बइठल हली, जइसन कि आझ । टरेन तखनें मुगलसराय जंक्सन पर खाड़ हल । एगो हमरे-तोहरे जइसन बबुआन अदमी पाकिटमार के खिस्सा सुनावे लगलन । हम सोचली कि ऊ शरीफ अदमी हथ जे हमनीं के पाकिटमार से सचेत रहेला सिखा रहलन हे ।"
हम खुस होके कहली - "कलाधर जी ! तोहर घटना तो हम्मर कहानी से सोरहो आना मिलइत हे । कहते जा । रस्ता भी कटइत रहतो आउ मनवों परफुल्लित रहत ।"
टरेन बेलागंज टीसन पर खाड़ हे । गाड़ी हिएँ मेल करेवला हल । हम पुछली - "आगे की भेल ?"
कलाधर जी कहे लगलन - "ऊ आदमी जे हमनीं के कहानी सुना रहल हल, अप्पन हाथ हम्मर उपरका जेबी में डाल देलक ।"
कलाधर जी हम्मर पाकिट में हाथ डाल के कहलन - "अइसे करते ऊ पायदान पकड़ के दोसरका गाड़ी पर टप गेल, जे मेल करे लागी बगले के पटरी पर खाड़ हल ।"
हम नैं बुझली कि कलाधर जी हम्मर कहानी के सचकोलवा पात्र हथ । ऊ भी झट से उतरलन आउ पट से दुसरका टरेन में चढ़ गेलन । ओन्ने गाड़ी भी सीटी मार के पटरी पर घिसिआय लगल । हम तो हुँनखर असरा ढेर देरी तक देखइत रहली कि ऊ अब अइतन कि तब ।
एन्ने हम्मर टरेन भी तूफान बन के भागे लगल । हम अप्पन पाकिट में हाथ देही त देखऽ ही कि सब के सब रुपइया, टिकट, फोटरपीन सहित धोकड़ी भी गायब हे ।
हम्मर हाथ में 'अलका मागधी' के अंक अइसहीं धरल रह गेल । हम तो ठिसुआयल हाथ मलइत रह गेली । हँ, 'पाकिटमार' सिरनामा पर हम्मर दुन्नो आँख से लोर टप-टप टपके लगल ।
दोसर दिन 'हिन्दुस्तान' अखबार में ई समाचार पढ़के हैरान रह गेली, जेकरा में छपल हल - " 'पाकिटमार' कहानी के लेखक नरेन्दर जी के पाकिट मारल गेल पटना-गया फास्ट पसिंजर टरेन में ।"
[ अलका मागधी, लघुकथा विशेषांक, दिसम्बर 2005, अंक - 12, पृ.18-19 ]
पटना गया फास्ट पसिंजर टरेन पटरी पर रेंग रहल हे । डिब्बा के नीचे-ऊपर, अखानों-पखानों हियाँ तक कि इंजन पर भी अदमी के ऊपर अदमी लदल हे । आरच्छन आउ सधारन बोगी में कउनो अंतर नैं, मुदा रावा-छोवा सब एक्के भाव ।
कुली के दसटकिया देवे से एगो सीट बड़ी मोसकिल से मिलल, सेहो गेट के सटले । बोगी तो कोंचायले हल, गोड़ मोड़े के भी जगह नैं हल । एतने में एगो बबुआन अदमी घड़ी-चश्मा लगयले, जेबी में फोटरपीन खोंसले हमरा भिजुन आके खाड़ हो गेलन । हुँनखर बबुआन चेहरा देख के हम तनि घसक गेलूँ । ऊ पट-दबर बइठ गेलन आउ धन्यवाद देलन ।
हमनी के बीच गढ़गर गलबात होवे लगल । पुछला पर अप्पन नाम कुमार कलाधर बतौलन, जे गया जी जाइत हलन । हमहूँ बिन पुछले अप्पन नाम मगही रचनाकार नरेन्दर बतइली आउ सोझे-सोझे कह देली - "हमरो तो हुएँ जाय के हे ।" ई बात दूध में जोरन लेखा दही बन गेल, मुदा दोस्ती जम गेल ।
हम्मर हाथ में पटना से छपेवला पत्रिका 'अलका मागधी' के एगो अंक हल । ओकरा में हम्मर लिखल कहानी छपल हल 'पाकिटमार' । कहानी पढ़के ऊ कहे लगलन -"ई तोहरे लिखल कहानी हो ? बड़ बेस मगही लिखइत ह । कहानी के प्लॉट भी निमने हो । हमरो साथ एक तुरी अइसने घटना घटल हल ।"
गाछ-बिरिछ, गाँव-शहर, जानवर-धुर सबके सब भागल जाइत हे । खाली टरेन अहथिर बुझाइत हे । कलाधर जी कहे लगलन - "नरेन्दर भइया ! पाकिटमार न जानी कउन इसकूल से पास करऽ हे । हम तो हुँनखर बुद्धि के लोहा मानऽ ही । का कहीं नरेन्दर भइया ! एक तुरी हमरा दिल्ली जाय के हल । राजधानी इस्परेस के बोगी में अदमियन जौरे सटपट के बइठल हली, जइसन कि आझ । टरेन तखनें मुगलसराय जंक्सन पर खाड़ हल । एगो हमरे-तोहरे जइसन बबुआन अदमी पाकिटमार के खिस्सा सुनावे लगलन । हम सोचली कि ऊ शरीफ अदमी हथ जे हमनीं के पाकिटमार से सचेत रहेला सिखा रहलन हे ।"
हम खुस होके कहली - "कलाधर जी ! तोहर घटना तो हम्मर कहानी से सोरहो आना मिलइत हे । कहते जा । रस्ता भी कटइत रहतो आउ मनवों परफुल्लित रहत ।"
टरेन बेलागंज टीसन पर खाड़ हे । गाड़ी हिएँ मेल करेवला हल । हम पुछली - "आगे की भेल ?"
कलाधर जी कहे लगलन - "ऊ आदमी जे हमनीं के कहानी सुना रहल हल, अप्पन हाथ हम्मर उपरका जेबी में डाल देलक ।"
कलाधर जी हम्मर पाकिट में हाथ डाल के कहलन - "अइसे करते ऊ पायदान पकड़ के दोसरका गाड़ी पर टप गेल, जे मेल करे लागी बगले के पटरी पर खाड़ हल ।"
हम नैं बुझली कि कलाधर जी हम्मर कहानी के सचकोलवा पात्र हथ । ऊ भी झट से उतरलन आउ पट से दुसरका टरेन में चढ़ गेलन । ओन्ने गाड़ी भी सीटी मार के पटरी पर घिसिआय लगल । हम तो हुँनखर असरा ढेर देरी तक देखइत रहली कि ऊ अब अइतन कि तब ।
एन्ने हम्मर टरेन भी तूफान बन के भागे लगल । हम अप्पन पाकिट में हाथ देही त देखऽ ही कि सब के सब रुपइया, टिकट, फोटरपीन सहित धोकड़ी भी गायब हे ।
हम्मर हाथ में 'अलका मागधी' के अंक अइसहीं धरल रह गेल । हम तो ठिसुआयल हाथ मलइत रह गेली । हँ, 'पाकिटमार' सिरनामा पर हम्मर दुन्नो आँख से लोर टप-टप टपके लगल ।
दोसर दिन 'हिन्दुस्तान' अखबार में ई समाचार पढ़के हैरान रह गेली, जेकरा में छपल हल - " 'पाकिटमार' कहानी के लेखक नरेन्दर जी के पाकिट मारल गेल पटना-गया फास्ट पसिंजर टरेन में ।"
[ अलका मागधी, लघुकथा विशेषांक, दिसम्बर 2005, अंक - 12, पृ.18-19 ]
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