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Sunday, May 21, 2017

विश्वप्रसिद्ध रूसी नाटक "इंस्पेक्टर" ; अंक-3 ; दृश्य-9

दृश्य-9
(ओहे सब आउ मेयर)
मेयर - (दबे पाँव प्रवेश करते) श्श्श ! ... श्श्श ! ...
आन्ना अंद्रेयेव्ना - की बात हइ ?
मेयर - काश, हम एतना जादे नयँ पिलइतिए हल ! लेकिन एकरा से की, अगर बल्कि ऊ जे कुछ बोललइ ओकरा में आधो सच हइ ? (चिंतन मुद्रा में) आउ ई कइसे सच नयँ हो सकऽ हइ ? जब पीके अदमी धुत्त हो जा हइ, त सब कुछ बहरसी आ जा हइ - जे दिल में हइ, ओहे जीभ पर । वस्तुतः जरी-मनी बात बढ़ा-चढ़ाके बोललइ; लेकिन कइसनो बात बिन नमक-मिर्च लगइले बोललो तो नयँ जा हइ । मंत्री लोग के साथ ताश खेलऽ हइ आउ राजमहल अइते-जइते रहऽ हइ ... त अइकी, सचमुच, जेतने जादे सोचऽ हो ... शैताने ओकरा जानऽ हइ, तोरा मालुम नयँ पड़तो कि तोर दिमाग में की चल रहलो ह; बस मानूँ लगतो कि कइसनो घंटाघर के उपरे खड़ी हकऽ, चाहे लगतो कि तोरा फाँसी पर लटकावे लगी चाहते जा हको ।
आन्ना अंद्रेयेव्ना - लेकिन हमरा तो कइसनो भीरुता बिलकुल नयँ अनुभव होलइ; हमरा तो ओकरा में एगो शिक्षित, शिष्ट, उच्च चाल-चलन के व्यक्ति देखाय देलकइ, आउ ओकर पदवी के बारे हमरा कोय जरूरत नयँ ।
मेयर - अरे, तूँ सब - औरत ! बस हो गेलो, खाली ई एक्के शब्द काफी हको ! तोहन्हीं सब लगी खाली - साज-शृंगार ! अचानक कुछ ई नयँ तो ऊ बक देना । तोहरा पर कोड़ा बरसइतो, बस खिस्सा खतम, लेकिन पति बिन कोय अता-पता के गायब हो जइतो । तूँ तो, हमर प्रिये, ओकरा साथ एतना सहजता से बरताव कइलहो, मानूँ ऊ कोय दोबचिन्स्की होवे ।
आन्ना अंद्रेयेव्ना - एकरा बारे तो हम सुझाव दे हिअइ कि अपने बेफिकिर रहथिन । हमन्हीं कइसूँ सम्हार लेवे के तिकड़म जानऽ हिअइ ... (अपन बेटी दने देखऽ हका ।)
मेयर - (स्वगत) हूँ, तोरा से तो बाते करना फिजूल हइ ! ... वास्तव में ई कइसन अप्रत्याशित घटना हइ ! अभियो तक हमर मन से भय नयँ दूर हो पा रहल ह । (दरवाजा खोलऽ हका आउ ओकरा से होके बोलऽ हका।) मिश्का, दुन्नु सिपाही स्विस्तुनोव आउ देर्झिमोर्दा के बोलाके लाव - ओकन्हीं हिएँ नगीच में कहीं परी गेट के पीछू होतउ । (कुछ देर के चुप्पी के बाद) आझकल दुनियाँ में सब कुछ में विचित्र बदलाव हो चुकले ह - कइसूँ तो ई अदमी देखाय दे हलइ, लेकिन बिलकुल दुब्बर-पातर - कइसे पछानल जाय कि ऊ केऽ हइ ? मिलिट्री वरदी में कइसूँ पछान में आ जा हइ, लेकिन जइसीं फ्रॉक-कोट धारण कर ले हइ (अर्थात् सिविल ड्रेस में हो जा हइ) - त पक्का कतरल पंख वला एगो मक्खी नियन लगऽ हइ । लेकिन बहुत देर तक सराय में जम्मल रहलइ, अन्योक्ति अलंकार में आउ गोल-गोल बात कइलकइ, लगइ कि शताब्दी भर में भी ओकरा बारे कुछ पता नयँ लगा पइबइ । लेकिन अइकी आखिर समर्पण कर देलकइ । आउ बहुत कुछ जरूरत से जादहीं बोल गेलइ । ई बात साफ हइ, कि ई अदमी अभी नवयुवक हइ ।       

  
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