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Sunday, July 28, 2019

पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा ; अध्याय 10. ज़ाय्त्सोवो - भाग 3

जल्दीए नमेस्त्निक[1] के ई मामला में हमर विचार मालुम पड़लइ कि हम अपन सहकर्मी लोग के अपन विचार के अनुयायी बनाब करऽ हिअइ, आउ ओकन्हीं अपन निर्णय में दुविधा में पड़े लगले ह, लेकिन अइसन प्रभाव हमर तर्क के दृढ़ता आउ विश्वसनीयता के नञ् हलइ, बल्कि असेसर के पत्नी के पैसा। कृषक वर्ग पर निर्विवाद प्रभुत्व के सिद्धान्त पर खुद पल्लल-बढ़ल ऊ हमर विचार से सहमत नञ् हो सकलइ, आउ ई देखके ऊ क्रोधित हो गेलइ कि ई केस के  निर्णय में ओकन्हीं अधिक प्रबल होवे लगलइ, हलाँकि कइएक कारण के आधार पर। ऊ हमर सहकर्मी लोग के बोला भेजऽ हइ, ओकन्हीं के समझावऽ हइ, अइसन विचार के मूर्खता बतइलकइ, [*141] कि ई सब (विचार) कुलीन समाज लगी अपमानजनक हइ, कि सर्वोच्च सत्ता लगी अपमानजनक हइ, जे एकर नियम-कानून के नष्ट कर दे हइ; कानून के पालन करे वला के पुरस्कार देवे के वचन दे हइ, आउ अइसन नञ् करे वला के दंडित करे के धमकी दे हइ; आउ जल्दीए ई सब कमजोर जज के, जेकन्हीं के निर्णय खातिर न कोय सिद्धान्त हलइ आउ न आत्मिक दृढ़ता, ओकन्हीं के पहिलौका विचार में प्रवृत्त कर दे हइ। ओकन्हीं में परिवर्तन देखके हमरा कोय अचरज नञ् होलइ, काहेकि ओकन्हीं में पहिलहूँ परिवर्तन होला पर हमरा कोय अचरज नञ् होले हल। शासक के धमकी से काँप जाना आउ ओकर अनुग्रह से खुश होना कमजोर, डरपोक आउ नीच आत्मा के स्वभाव होवऽ हइ।
हमन्हीं के नमेस्त्निक हमर सहकर्मी लोग के विचार परिवर्तित करके इरादा कइलकइ आउ खुद के शायद ई बात के आशा से बहला रहले हल कि हमरो विचार के परिवर्तित कर देतइ। अइसन इरादा से ऊ हमरा अपन पास बोलइलकइ, सुबह में जबकि ऊ बखत संयोगवश छुट्टी हलइ। ऊ हमरा बोलावे लगी लचार हलइ, काहेकि हम कभियो अइसन विवेकहीन आदर के अभिव्यक्ति खातिर नञ् झुकलिए हल, जेकरा अहंकार [*142] अधीनस्थ लोग में एगो कर्तव्य मानऽ हइ, चाटुकारी के आवश्यक समझऽ हइ, लेकिन विवेकी लोग जेकरा घृणास्पद आउ मानवता लगी अपमानजनक मानऽ हइ। ऊ जान-बूझके उत्सव के दिन चुनलकइ, जब ओकरा हीं कइएक लोग एकत्र हलइ; जान-बूझके अपन संबोधन लगी सार्वजनिक सभा चुनलकइ, ई आशा के साथ, कि अइसे ऊ हमरा अधिक विस्मयकारी ढंग से आशएवस्त कर पइतइ। ऊ आशा कइलके हल कि हमरा में आत्मा के भय, चाहे विचार के मामले में कमजोर पइतइ। ऊ अपन शब्द के दुन्नु दने संबोधित कइलकइ। लेकिन हम ई जरूरी नञ् समझऽ हियो कि तोरा ऊ सब कुछ बतइयो जेकरा से अहंकार, शक्ति के अहसास आउ कुशाग्र बुद्धि आउ विद्वत्ता के अपन पूर्वधारणा ओकर वक्तृत्व के प्रेरित करऽ हलइ। ओकर अहंकार के जवाब हम विरक्ति (equanimity) आउ शांति से, ओकर शक्ति प्रदर्शन के हम अपन दृढ़ता से, ओकर तर्क के अपन तर्क से दे हलिअइ आउ देर तक हम शांतचित्त होके बोलऽ हलिअइ। लेकिन आखिर हमर फट्टल हृदय से शब्दातिरेक फूट पड़लइ। सामने खड़ी लोग दने जेतने जादे हम देखऽ हलिअइ, ओतने जादे जोशीला होल जा हलइ हमर [*143] भाषा। दृढ़ आउ स्पष्ट स्वर में आखिर हम ई तरह बोल उठलिअइ।
“मानव ई दुनियाँ में जन्म ले हइ बाकी सबके बराबर। हम सब के शारीरिक अंग एक नियन हइ, हम सब के बुद्धि आउ इच्छा हइ। ओहे से, समाज के संबंध के बेगर मानव अइसन जीव हइ जे अपन क्रिया-कलाप में केकरो पर निर्भर नञ् हइ। लेकिन ऊ अपन क्रिया-कलाप में स्वतंत्रता पर रोक लगावऽ हइ, हरेक बात पर अपन इच्छा के अनुसार नञ् चल्ले लगी सहमत होवऽ हइ, अपन बराबर के लोग के बात के मानऽ हइ, एक शब्द में, ऊ नागरिक हो जा हइ। कउन कारण से ऊ अपन इच्छा पर रोक लगावऽ हइ? काहे लगी खुद के ऊपर शासक स्थापित करऽ हइ? जबकि ओकरा अपन इच्छा के पूर्ति में कोय रोक नञ् हइ, त काहे लगी आज्ञापालन के सीमा से सीमित करऽ हइ? अपन लाभ खातिर तर्क बता देतइ; अपन लाभ खातिर आंतरिक भावना बता देतइ; अपन लाभ खातिर चतुर कानून बता देतइ। परिणामस्वरूप, जाहाँ परी ओकरा नागरिक बन्ने से फयदा नञ् हइ, हुआँ ऊ [*144] नागरिक भी नञ् हइ। ओहे से ऊ, जे नागरिकता के लाभ से ओकरा वंचित करे लगी चाहतइ, ओकर दुश्मन हइ। अपन दुश्मन के विरुद्ध कानून में ऊ रक्षा आउ बदला खोजऽ हइ। अगर कानून ओकर रक्षा करे में समर्थ नञ् हइ, चाहे अइसन नञ् चाहऽ हइ, चाहे शासक वर्तमान विपत्ति में तुरन्त मदत नञ् कर सकऽ हइ, त नागरिक आत्म-रक्षा, आत्म-संरक्षण आउ कल्याण के अपन नैसर्गिक अधिकार के सहारा ले हइ। काहेकि नागरिक नागरिक रहते मानव बन्नल रहे लगी समाप्त नञ् कर दे हइ, जेकर अंतर्निहित प्रकृति के कारण ओकर पहिला कर्तव्य हइ आत्म-संरक्षण, सुरक्षा, कल्याण। कृषक लोग द्वारा हत्या कइल गेल असेसर अपन वहशी क्रूरता से ओकन्हीं के नागरिकता के अधिकार समाप्त कर चुकले हल। ऊ क्षण में, जब ऊ अपन बेटवन के बलात्कार करे लगी छूट दे देलकइ, जब दम्पती के हार्दिक कष्ट में ऊ आउ अपमान जोड़ देलकइ, जब अपन नारकीय शासन के विरोध देखके ऊ ओकन्हीं के दंडित करे लगी आगू बढ़लइ, [*145] त नागरिक के रक्षा करे वला कानून दूर चल गेलइ आउ एकर शक्ति बेअसर हो गेलइ; त नैसर्गिक कानून पुनर्जीवित हो गेलइ, आउ अपमानित नागरिक के शासन, जे ओकर अपमान के दशा में सकारात्मक कानून के अनुसार ओकर अभिन्न भाग हो जा हइ, क्रियाशील हो गेलइ; आउ असेसर के हत्यारा कृषक लोग कानूनन दोषी नञ् हइ। विवेक के तर्क के आधार पर हमर हृदय ओकन्हीं के समर्थन करऽ हइ, आउ असेसर के हत्या हिंसात्मक रहलो पर उचित हइ। आउ राजनीति के समझदारी में, चाहे सार्वजनिक शांति कायम रक्खे में, कोय ऊ असेसर के हत्यारा लोग के दोषी ठहरावे के आधार खोजे के प्रयास नञ् करे, जे घृणा में मर गेलइ। नागरिक, चाहे ओकरा कइसनो हालत में पैदा होवे के भाग्य में बद्दल रहइ, मानव हकइ आउ हमेशे रहतइ; आउ जब तक ऊ मानव हइ, नैसर्गिक नियम, अच्छाई के प्रचुर स्रोत के रूप में, ओकरा में कभी नञ् सुखतइ; आउ ऊ, जे ओकरा नैसर्गिक आउ अलंघनीय (inviolable) अधिकार में आघात पहुँचावे के साहस करऽ हइ, [*146] अपराधी हइ। ऊ शोकग्रस्त होवे अगर सिविल कानून ओकरा दंडित नञ् करऽ हइ। ऊ अपन सह-नागरिक सब के बीच घृणा के पात्र ठहरावल जइतइ, आउ जे कोय यथेष्ट शक्तिशाली होवे, ऊ ओकर कइल बुराई के बदला ले। हम चुप हो गेलिअइ। नमेस्त्निक हमरा से एक शब्द नञ् बोललइ; कभी-कभी हमरा दने नजर निच्चे कइले देखलकइ, जेकरा में विवशता के क्रोध आउ प्रतिशोध के दुर्भावना राज करऽ हलइ। सब कोय चुप्पी साधले हलइ, ई इंतजार में कि सब कानून के अनादर करे वला हमरा गिरफ्तार कर लेल जइतइ। कभी-कभार चाटुकारी के होंठ से रोष के फुसफुसाहट सुनाय दे हलइ। सब कोय हमरा तरफ से नजर फेर लेलकइ। लगऽ हलइ कि हमरा भिर खड़ी लोग के मन में भय व्याप्त हो गेले हल। अगोचर रूप से ओकन्हीं दूर हो गेलइ, जइसे कोय मारक प्लेग से ग्रस्त व्यक्ति भिर से लोग बचके निकस जइते जा हइ। अहंकार आउ निम्नतम नीचता के मिश्रण के अइसन दृश्य से ऊबके हम चापलूस लोग के ई सभा से प्रस्थान कर गेलिअइ।”
[*147] “हमर हृदय में जेकन्हीं लगी समर्थन हलइ, अइसन निर्दोष हत्यारा लोग के बचावे के कोय उपाय नञ् देखके हम ओकन्हीं के दंडित होवे में सहकर्मी चाहे एकरो से बत्तर ओकन्हीं के दंडित होवे के गवाह बन्ने लगी नञ् चाहऽ हलूँ; हम सेवा-निवृत्ति के आवेदन दे देलूँ आउ मिल गेला पर अब हम कृषक वर्ग के करुण भाग्य पर विलाप करे खातिर अपन राह पर जा रहलूँ हँ आउ अपन ऊबाहट से राहत खातिर अपन दोस्त लोग के साथ समय गुजारे लगी चाहऽ हूँ।एतना कहके हमरा से विदा हो गेला आउ हमन्हीं दुन्नु अपन-अपन राह पर चल पड़लूँ।




[1] दे॰ स्पास्कयऽ पोलेस्त, नोट 2.

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