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Sunday, November 10, 2019

वेताल कथा (चान मामूँ) - 3. सेठ के बेटी रत्नवती द्वारा अनोखा वर चयन


वेताल कथा (चान मामूँ) - 3. सेठ के बेटी रत्नवती द्वारा अनोखा वर चयन
(चंदामामा- दिसम्बर 1955, पृ॰17-22; वेतालपञ्चविंशति, कथा सं॰14; बैताल पचीसी, कहानी सं॰13)
[बड़गो धनगर सेठ रत्नदत्त के अत्यन्त सुन्दर बेटी रत्नवती, जेकरा विवाह लगी एक्को वर पसीन नञ् पड़ऽ हलइ, आखिर चोरी के सजा के रूप में फाँसी पर चढ़ावल जा रहल एगो चोर पसीन पड़लइ, त ऊ चोरवा एक तुरी तो रो पड़लइ, लेकिन फेर हँस्से लगलइ, तब बैताल विक्रम के पुच्छऽ हइ कि चोरवा पहिले कनलइ काहे आउ फेर हँस्से काहे लगलइ?]
[17] विक्रम हार नञ् मनलकइ। जिद करके ऊ फेर से पेड़ बिजुन गेलइ। लाश के पेड़ पर से उतारके, कन्हा पर डालके जब ऊ चलल जाब करऽ हलइ, त लाश के अन्दर के बैताल कहलकइ, "राजा! तोहरा तो आउ लोग से काम करवावे के हक हको; तोरा रात में, ई तरह बोझा ढोते देखके हमरा अफसोस होवऽ हको। कहीं तूँ ढोते-ढोते थक नञ् जा, ओहे से ई अजीब कहानी सुनावऽ हियो, सुन्नऽ!"
ऊ अयोध्या नगरी, जेकरा पर कभी पुरुषोत्तम रामचन्द्र के राज्य हलइ, ऊ जमाना में वीरकेतु राजा के राजधानी हलइ। ऊ समय हर दिन अयोध्या में विचित्र-विचित्र चोरी होवऽ करऽ हलइ। चोरी से [18] तंग आके जनता राजा के सम्मुख निवेदन कइलकइ - "महाराज! हमन्हीं के जइसन-तइसन चोर के खतरा से बचाथिन। लाख प्रयास कइलो पर चोर के ठेकाना हमन्हीं के मालुम नञ् हो रहल ह। ओकन्हीं के पकड़ल जाय के तो बात अलगे, ओकन्हीं देखाइयो नञ् दे हइ, लेकिन दिन-दहाड़े चोरी करते रहऽ हइ!"
वीरकेतु जनता के आश्वासन देके भेज देलकइ आउ अपन कुछ सिपाही के भेस बदलके, नगर में रात के गश्ती लगावे लगी भेजलकइ। ओकर खबरदारी के बावजूद, चोरी पहिलहीं नियन होते रहलइ आउ एक्को चोर सिपाही लोग के हाथ नञ् लगलइ।
वीरकेतु जान गेलइ कि चोरी करे वलन बहुत अकलमन्द आउ चलाँक हइ आउ ओकन्हीं सिपहियन के हाथ नञ् अइतइ। खुद ऊ चोरवन के पकड़े खातिर निकस पड़लइ। जब भेस बदलके ऊ रात में कहीं चलल जाब करऽ हलइ त ओकरा एगो अदमी अजीब हरक्कत करते देखाय देलकइ।
 राजा ओकरा दने गेलइ। रजवा के पास अइते देखके पुछलकइ - "तूँ केऽ हँ?"
"चोर!" - राजा कहलकइ।
"त तूँ हमर साथी हँ न! आ, घर चलल जाय, तोर निम्मन से स्वागत करबउ।" ऊ अदमिया कहलकइ।
राजा ओकरा साथ ओकर घर गेलइ। ओकर घर जंगल में, जमीन के निच्चे हलइ। हुआँ जाय के रस्तो खुफिया हलइ। डाकू, राजा के एगो कमरा में बैठाके अन्दर चल गेलइ। तब एगो दासी आके राजा से कहलकइ - "तूँ केऽ हकऽ? अगर तोहरा ई चोर के पता-ठेकाना मालुम हो गेलो त जान लऽ कि तोहर जिनगी खतम हो गेलो। तुरन्त हियाँ से तूँ भाग जा ...!"
[19] राजा तुरन्त हुआँ से चल पड़लइ। जल्दी-जल्दी राजधानी में जाके हथीयारबन्द सिपहियन के लेके हुआँ परी पहुँच गेलइ।
डाकू आउ सिपहियन के बीच घमासान युद्ध होलइ। हलाँकि डाकू अकेल्ले हलइ, तइयो ऊ सिपहियन से काफी देर तक बहादुरी से लड़ते रहलइ, ऊ कइएक सिपाही के ढेर भी कर देलकइ। आखिर ओकरा राजा के सामने हार माने पड़लइ। ऊ पकड़ल गेलइ।
वीरकेतु, डाकू के हाथ-गोड़ बन्हवाके ले गेलइ। ओकरा पर मोकदमा चलावल गेलइ। ई साबित होलइ कि एहे डाकू बहुत दिन से अयोध्या में डकैती कर रहले हल। चोरी कइल गेल मालो बरामद होलइ। राजा, डाकू के सजा देलकइ।
जब डाकू के राज-सैनिक दण्ड देवे खातिर नगर से बाहर ले जाब करऽ हलइ, त अयोध्या के सबसे बड़गो सेठ, रत्नदत्त के लड़की रत्नवती डाकू के देखके अपन पिता के बोलाके कहलकइ - "पिताजी! हमरा ऊ डाकू से विवाह कर दऽ!" रत्नदत्त ई सुनके मूर्छित नियन हो गेलइ।
रत्नवती ओकर एकलौती लड़की हलइ आउ बहुत दिन के बाद पैदा होले हल। ओकरा बड़ी लाड़-प्यार से पललके-पोसलके हल। रत्नवती के सौन्दर्य देखके, कइएक करोड़पति सेठ के पुत्र ओकरा से विवाह करे लगी अइते गेले हल। लेकिन रत्नवती ओकन्हीं से विवाह नञ् कइलकइ। ऊ विवाह करे लगी नञ् चाहऽ हलइ।
"काहे बेटी! तूँ तो बड़गर-बड़गर करोड़पति से शादी करे से इनकार कर देलहीं हल! अब काहे ई दुष्ट धूर्त डकू से विवाह करे लगी चाहऽ हीं?" रत्नदत्त पुछलकइ।
रत्नवती पिता के एक्को बात नञ् सुनलकइ। जब कइएक राजकुमार, रईस, उमराव ओकरा से विवाह करे लगी अइते गेले हल, त पिता [20] ओकरा शादी करे के सलाह देलके हल। लेकिन तइयो ऊ अपन पिता के सलाह नञ् मनलके हल। ऊ अपन बात के पक्की हलइ।
"चाहे ऊ चोर रहे, चाहे ओकरा सजा मिल रहल होवे, हम ओकरे से शादी करम। हम ओकरे अपन पति चुनलूँ हँ। अगर तूँ चाहऽ ह कि हमर विवाह होवे, त हमरा ओकरे से विवाह कर दऽ। अगर तूँ ई नञ् कर सकऽ ह, त हमहूँ ओकरे साथ मर जाम!" रत्नवती बोललइ।
ई सुनके रत्नदत्त बड़ी दुखी होलइ। ओकरा मालुम हलइ कि ओकर लड़की अपन निश्चय के कउनो हालत में बदले वली नञ् हइ। ऊ महाराज वीरकेतु के पास जाके कहलकइ - "महाराज! डाकू के हमरा सौंप देथिन। हम अपने के समुच्चा धन दे देबइ।" लेकिन राजा नञ् मनलकइ। ऊ हरगिज नञ् चाहऽ हलइ कि खामखाह ऊ डाकू के छोड़ देइ, जे लोग के नाक में दम करके रखलके हल। हताश होके रत्नदत्त घर वापिस आ गेलइ। ओकर लड़की साज-शृंगार करके दुलहिन बन्नल बैठल हलइ।
"बेटी! हम कामयाब नञ् हो सकलिअउ। डाकू के छोड़े लगी राजा नञ् मनलथुन। हम [21] एहो कहलिअइ कि हम अपन सर्वस्व दे देबइ; लेकिन ऊ नञ् मनलथिन। तोर ई शादी नामुमकिन हउ!" - रत्नदत्त अपन लड़की से कहलकइ।
"विवाह नहिंयों होलइ तइयो हम सती हो जाम!" - रत्नवती कहलकइ।
रत्नवती पालकी में चढ़के सजा के स्थान पर गेलइ। ओकरा साथ रोते-धोते ओकर मइयो-बाप गेलइ। ओकन्हीं के पहुँचते-पहुँचते जल्लाद लोग डाकू के फाँसी पर लटका चुकले हल। ऊ मरते-जीते कराह रहले हल।
रत्नदत्त अपन लड़की के डाकू बिजुन ले जाके कहलकइ - "देख बेटा! हमर लड़की तोरे से शादी करे के जिद कइले बैठल हको।" ई सुनके रत्नवती दने देखते-देखते डाकू के आँख में आँसू छलक अइलइ। फेर ऊ एक पल मुसकइलइ आउ बाद में ओकर प्राण-पखेरू उड़ गेलइ।
रत्नवती, अपन "पति" के शरीर लेके श्मशान गेलइ, हुआँ चिता बनाके ओकरा साथ खुद भी बैठ गेलइ।
केवल मन में पति स्वीकार करे के कारण रत्नवती के सती होते देख, कालभैरव खुद प्रत्यक्ष होके कहलथिन - "बेटी! तोर पति-भक्ति असाधारण हको। तूँ जे वर चाहऽ, माँग लऽ!"
[22] "देव! हम अपन माय-बाप के एकलौती लड़की हकूँ। बड़ी लाड़-प्यार से पाल-पोसके हमरा बड़गो कइलथन हँ, ओहे से हमरा चल गेला पर उनकन्हीं फूट-फूटके रोथिन। अपने उनकन्हीं के सन्तान देवे के अनुग्रह करथिन। सन्तान के पाके ऊ हमरा भूल जइथिन!" - रत्नवती कहलकइ।
कालभैरव हँसके कहलथिन - "तोर इच्छा पूरा कर देबो। लेकिन कीऽ तूँ अपना लगी कुच्छो नञ् चाहऽ हऽ?"
"हमरा सिवाय अपन पति के साथ रहे के आउ कुछ नञ् चाही! ओहे हमरा लगी सब कुछ हका।" - रत्नवती कहलकइ।
"हम तोर एहो इच्छा के पूरा कर देबो।" कहते-कहते कालभैरव मरलका डाकू के जिन्दा कर देलथिन आउ स्वयं अन्तर्धान हो गेलथिन।
ओकर दोसरे पल ऊ डाकू उठ बैठलइ। रत्नदत्त डाकू के घर ले जाके, ओकरा साथ अपन लड़की के विवाह बड़ी धूमधाम के साथ कर देलकइ।
बेताल ई कहानी सुनाके पुछलकइ - "राजन्! फाँसी पर लटकल डाकू, ई जानके कि रत्नवती ओकरा साथ विवाह करे लगी चाहऽ हइ, काहे कनलइ आउ फेर काहे लगी हँसलइ?" अगर जानलो पर एकर उत्तर नञ् देबऽ त तोर सिर टुकड़ा-टुकड़ा हो जइतो!"
"ई अकारण बन्धु लोग के ऋण चुकइले बेगर चलल जाब करऽ हूँ" - ई सोचके डाकू पहिले तो कनलइ, लेकिन ई लड़की के, जे बड़गर-बड़गर अदमी से विवाह करे से इनकार कर देलके हल, ओकरा पति चुनते देखके हँसी आ गेलइ!" - विक्रम उत्तर देलकइ।
ई तरह राजा के मौनभंग होतहीं वेताल लाश के साथ उड़के ओहे पेड़ पर जाके फेर से लटक गेलइ।

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