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Thursday, January 02, 2020

पितिरबुर्ग से मास्को के यात्राः साम्राज्ञी एकातेरिना II के रादिषेव के पुस्तक "यात्रा" पर टिप्पणी


साम्राज्ञी एकातेरिना (कैथेरिन) II के रादिषेव के पुस्तक "यात्रा" (1790) पर टिप्पणी
26 जून से 7 जुलाई 1790 के दौरान लिक्खल

[ई टिप्पणी पहिले तुरी ओसिप माक्सिमोविच बोद्यान्स्की द्वारा प्रकाशित कइल गेले हल - च्तेनिया, LIV (1865), जुलाई-सितम्बर, पुस्तक III, अनुच्छेद V, पृ॰67—77, आउ बाद में बोरोज़्दिन, लापशिन आउ षिवोलेव द्वारा पुनर्मुद्रित कइल गेलइ - "रादिषेव के सम्पूर्ण रचनावली", 1909, खंड II, पृ॰300-308, (रूसी में) । एकर पुनःप्रकाशन कइल गेलइ - आ॰एस॰ बाबकिन (1952): "प्रोत्सेस आ॰एन॰ रादिषेवा", मास्को, पृ॰156-164. ई मगही अनुवाद में तारांकित संख्या रादिषेव के "यात्रा" (1790) के मूल रूसी पाठ के पृष्ठ संख्या निर्देशित करऽ हइ।]

[157] सं॰1

ई पुस्तक 1790 में प्रिंटिग प्रेस के बिन कोय उल्लेख के आउ शुरू में बिन कोय स्पष्ट अनुमति के; लेकिन अन्त में कहल गेले ह - "लोक शिष्टाचार विभाग के अनुमति से"। ई शायद झूठ हइ, चाहे भूल हइ। ई पुस्तक के इरादा हरेक पृष्ठ पर स्पष्ट हइ; एकर लेखक फ्रांसीसी भ्रान्ति से भरल आउ संक्रमित (infected) हइ, शासक आउ सत्ता के आदर कम करे लगी आउ लोग के प्रधान आउ प्राधिकारी के विरुद्ध भड़कावे लगी ऊ हर तरह से खोजऽ हइ आउ संभव सब प्रयास करऽ हइ।
ऊ लगभग मार्टिनवादी हइ; चाहे अइसने आउ कुछ, ओकरा काफी कुछ ज्ञान हइ, आउ कइएक पुस्तक पढ़लके ह। ऊ लगभग मार्टिनवादी हइ; चाहे अइसने आउ कुछ, एकरा काफी कुछ ज्ञान हइ, आउ कइएक पुस्तक पढ़लके ह। विषादग्रस्त स्वभाव के आउ सब कुछ उदासी के रूप में देखऽ हइ, ओहे से कार-पीयर चेहरा-मोहरा के हइ। अइसन नोट पृष्ठ *30 पर कइल हइ।
ओकरा पास यथेष्ट कल्पना हइ, आउ अपन लेखन कार्य में काफी साहसी हइ। पृष्ठ *36 पर के उद्धरण लेखक के मस्तिष्क के निर्दय विचार के प्रवृत्ति प्रमाणित करऽ हइ, il cite un fait atroce [(फ्रेंच) ऊ एगो नृशंस तथ्य के उद्धरण दे हइ)], जे हियाँ परी नञ् घट्टऽ हइ, अंग्रेज लोग कलकत्ता के दमघोंटू गरमी से मर गेते गेलइ, लेकिन मछुवाही नाव (fishing boat) के किराया पर लेल जा सकऽ हइ आउ कमांडर के कमांड के अपेक्षा ओकरा बिन पुछलहीं कहीं जल्दी, आउ एगो सुत्तल अदमी के दोषी नञ् मानल जा सकऽ हइ, काहेकि ओकरा लोग जगइलकइ नञ्।
लेखक के प्रवृत्ति दुर्भावना के तरफ हइ। पृष्ठ *60। ई आगू के पृष्ठ से विशेष रूप से स्पष्ट हइ। पृष्ठ *72, *73। ई (पृष्ठ) इरादा के प्रमाणित करऽ हइ कि काहे लगी ई पुस्तक लिक्खल गेलइ। लेखक के उपलब्धि पर बाजी लगावल जा सकऽ हइ कि ओकर एकरा लिक्खे के इरादा हलइ ई, कि ओकरा राजमहल के अंदर प्रवेश नञ् हइ; शायद पहिले कभी हलइ लेकिन अभी नञ् हइ - आउ अभी चूँकि नञ् हइ, त बुरा आउ ओहे से अकृतज्ञ हृदय वला, अब अपन कलम से संघर्ष कर रहले ह। पृष्ठ *75 पर। लेकिन कायरता देखइलकइ हमन्हीं के ई लबाड़िया (झूठ के पुतला)। अगर राजा के नगीच होते हल, त ऊ दोसरे राग गइते हल। हम सब अइसन कइएक लबाड़िया रस्कोलनिक (विधर्मी) के बीच देखलिए ह, आउ ओकन्हीं के हृदय जेतने अधिक कठोर रहऽ हइ, ओतने असानी से बाद में समय अइला पर बदल जा हइ।
हमरा मालुम नञ् कि दोसर शासक लोग के सत्ता के केतना बड़गो भूख रहऽ हइ, हमरा में तो बड़गो नञ् हइ।
पृष्ठ *76। चूजा सिखावऽ हइ माय के। दुर्भावना रहऽ हइ दुष्ट में, हमरा में तो ई नञ् हइ।
युद्ध के मतलब हत्या - ओकन्हीं कीऽ चाहऽ हइ, कि बिन सुरक्षा के तुर्क आउ तातार के कैदी बन जइअइ, चाहे स्वेड द्वारा जीत लेल जइअइ?
आदेश के पालन करे में विफलता के बारे आलोचना करके लोग खुद्दे पर दोषारोपण करते जा हइ।
पृष्ठ *77, *78, जे अपमानजनक उद्देश्य से लिक्खल गेले ह, जेकरा बारे बुराई के उन्मूलन खातिर सवधानी बरतल गेले ह, ओकर आलोचना कइल गेले ह
[158] पृष्ठ *79, कम से कम चिचागोव[1] के बारे तो बात नञ् करऽ हइ। पृष्ठ *80, ओकन्हीं सब बुद्धि खा चुकले , आउ खाली एगो सम्राट् बिन मतलब के हइ। एहे पृष्ठ पर दया के कार्य पर दोषारोपण कइल जा हइ।
पृष्ठ *81 पूरा गारी आउ द्वेषपूर्ण टिप्पणी से भरल हइ, ई दुराचरण आगामी पृष्ठ *82, *83, *84, आउ *85 तक लगातार जारी रहले ह। लेकिन एकर बावजूद ओकन्हीं ई सब उद्देश्य के बदनाम नञ् कर सकलइ, आउ एकरा पूरा करे तरफ बाध्य हो गेलइ, ओहे से समाज पर दोष लगावऽ हइ, आउ सम्राट् के निम्मन दिल चाहे उद्देश्य (इरादा) पर नञ्।
*86. खुद्दे बोलऽ हइ कि सपना देखलकइ।
पृष्ठ *88 जानकारी के उल्लेख करऽ हइ कि सौभाग्य से हमरा जाने के मोक्का मिलल। लगऽ हइ कि जानकारी लाइप्त्सिग (Leipzig) में प्राप्त होलइ, आउ जेकरा से शंका जा हइ श्रीमान रादिषेव आउ षेलिषेव पर, आउ जादे संभावना बात से हइ जबकि कहल जा हइ कि उनकन्हीं के घर पर प्रिंटिंग प्रेस स्थापित कइल हइ।
पृष्ठ *92, *93, *94, *95, *96, *97 मार्टिनवादी आउ अन्य ब्रह्मविद्यावादी (theosophists) के सिद्धान्त के उपदेश करऽ हइ।
पृष्ठ *98 अइसन (एतना अश्लील) हइ कि एकर उल्लेख भी नञ् कइल जा सकऽ हइ।
पृष्ठ *99, *100, *101. नोवगोरद, एकर स्वतंत्र सरकार आउ राजा इयोआन वसिल्येविच के क्रूरता के बारे बात करते बखत, दंड के कारण के बारे बात नञ् करऽ हइ, आउ कारण ई हलइ कि एकता (union) के स्वीकार करके, पॉलिश गणतंत्र (Polish Republic) के सामने आत्मसमर्पण कर देलके हल, ओहे से राजा धर्मत्यागी (apostates) आउ गद्दार लोग के दंड देलकइ, जेकरा में, सच कहल जाय तो, कोय कदम (कार्रवाई) नञ् खोजलकइ।
पृष्ठ *102. लेखक प्रश्न करऽ हइ - "लेकिन ओकर कीऽ अधिकार हलइ ओकन्हीं के विरुद्ध क्रूरता देखावे के, ओकर कीऽ अधिकार हलइ नोवगोरद पर कब्जा करे के?" उत्तर - नोवगोरद के प्राचीन प्रशासन (sovereignty) आउ कानून आउ समुच्चे रूस के आउ पूरे संसार के, जे सब विद्रोही आउ चर्च के धर्मत्यागी के दंडित करऽ हलइ। लेकिन हियाँ परी ई प्रश्न कइल जा हइ प्रशासन के अस्वीकार करे लगी, आउ ओहे से एकरा बिन उत्तर के छोड़ देल जाय के चाही।
पृष्ठ *103 पर। अइसन प्रश्न उठावल जा रहले ह, जेकरा चलते फ्रांस अभी तबाह हो रहले ह।

सं॰2

ऊ सब कुछ, जे संसार में अभी स्थापित आउ व्यवस्थित हइ, अनुभव पर आधारित हइ, जेकर माँग हलइ कि अइसन होवे के चाही, आउ कोय मनमाना इच्छा के मोताबिक नञ्, आउ अगर दोसर तरह से होतइ, त बत्तर होतइ, काहेकि बेहतर आझ के निम्मन के दुश्मन हइ, आउ बेहतर होतइ कि जे जानल-पछानल हइ ओकरे पर दृढ़ रहल जाय, न कि अइसन रस्ता के निर्माण कइल जाय, जे अनजान हइ।
पृष्ठ *108. ओकरा वाणिज्य छल के ज्ञान हइ, जे सीमाशुल्क कार्यालय (custom house) में देखल जा सकऽ हइ।
पृष्ठ *109. *110. *111. ओकरे बारे। अन्तिम पृष्ठ पर, शुरू होवऽ हइ वाणिज्य कानून पर गरमागरम बहस, आउ खुद लेखक नञ् जानऽ हइ कि ओकरा कीऽ चाही, आउ जेकरे साथ पृष्ठ *112 के समाप्त करऽ हइ।
[159] पृष्ठ *113, *114, *115, *116 प्रमाणित करऽ हइ कि लेखक पूरा देववादी (deist) हइ आउ प्राच्य सनातन चर्च (Eastern Orthodox Church) के सिद्धान्त (उपदेश) के नञ् मानऽ हइ। ई विचार पृष्ठ *118 पर समाप्त होवऽ हइ।
पृष्ठ *119 आउ अगला, लेखक के उद्देश्य (इरादा) के रचना दर्शावऽ हइ, अर्थात् वर्तमान सरकार के प्रकार के दोष आउ ओकर बुराई। हियाँ परी मुद्दा हइ आपराधिक कानून। एकरे से भरल हइ पृष्ठ *120, *121, *122, *123।
पृष्ठ *124 दृढ़ हइ ई बात के प्रमाणित करे लगी कि सरकारी सेवा में रैंक के निर्माण अनुचित हइ। ई पृष्ठ के अन्त में लेखक खुद के मत के खंडन करऽ हइ, काहेकि  व्यक्ति के निम्न हस्ती के प्रवृत्ति दर्शावऽ हइ तब, जबकि ओकर प्रणाली (वर्तमान फ्रांसीसी प्रणाली) के अनुसार, सब हस्ती व्यक्ति के नाम आउ ओकर तथाकथित अधिकार के अंतर्गत बराबर निश्चित कइल जा हइ।
पृष्ठ *125 पर। एगो आउ निम्न हस्ती के उल्लेख हइ, जेकरा से निष्कर्ष निकसऽ हइ कि मिस्टर लेखक अपन सिद्धान्त में अभियो तक बहुत दृढ़ नञ् हका। लेकिन ऊ दरबार (कोर्ट) आउ दरबारी लोग के विरुद्ध अपन रोष के वर्षा करऽ हका। ई मिथ्यापवाद (slanders) ऊ आंशिक रूप से पुस्तक से लेलका ह, जेकरा पर दरबारी लोग कभियो उत्तर नञ् देलके ह, लेकिन तइयो अइसन दोषारोपण के विरुद्ध यथेष्ट दलील खोजल जा सकऽ हइ।
पृष्ठ *126, *127, *128, *129, *130, *131, *132, *133 में एगो गढ़ल कहानी हइ जेकरा में एगो जमींदार के अपन कृषक लोग पर वहशी व्यवहार, आउ मालिक आउ ओकर तीन बेटा के हत्या के वर्णन हइ।
पृष्ठ *134, *135 में ऊ हत्या के सफाई देल गेले ह। पृष्ठ *136 पर एगो गैर-कानूनी चर्चा शुरू होवऽ हइ।
पृष्ठ *137 पर फ्रांसीसी जहर बहावल जा हइ आउ पृष्ठ *138 आउ *139 तक जारी रहऽ हइ। लेकिन ई पूरा तर्क के एगो सरल प्रश्न से असानी से काटल जा सकऽ हइ - अगर कोय बुराई करऽ हइ, त कीऽ ई दोसरा के आउ अधिक बुराई करे के अधिकार दे हइ? उत्तर - बिलकुल नञ्। कानून आत्म-रक्षा में घातक प्रहार करे के अनुमति दे हइ, लेकिन एकरा में प्रमाण के माँग करऽ हइ कि कोय आउ तरीका से मौत के निवारण नञ् कइल जा सकऽ हलइ। ओहे से लेखक के समुच्चा चर्चा अनुचित, गैर-कानूनी आउ खोखला चिन्तन हइ।
पृष्ठ 140. नमेस्त्निक (गवर्नर) पर घूसखोरी के इल्जाम लगावल जा हइ आउ दुर्भाग्यवश तइयो एकरा लगी एक्के वैध अर्थ प्रस्तुत कइल जा हइ। पृष्ठ *141 पर, ई पृष्ठ के अन्त में नमेस्त्निक के भेंट के निंदा कइल गेले ह, लेकिन जे आवश्यक हइ, अगर ओकरा जाने के हइ कि ओकरा केकरा साथ काम करे के हइ आउ केऽ ओकर अधीन काम करऽ हइ, आउ केकरा साथ ओकन्हीं के काम करे के हइ। कि जन-कल्याण ई माँग करऽ हइ कि लोग एक दोसरा के नञ् जानइ आउ एक दोसरा से नञ् मिल्लइ-जुल्लइ, आउ अइसे रहइ जइसे भेड़िया सब एक दोसरा से दूर रहऽ हइ, चाहे जंगल-जंगल घुम्मऽ हइ?
पृष्ठ *142 पर नमेस्तनिक के अहंकार पर धावा बोलल जा हइ। वस्तुतः ऊ एगो विशिष्ट आदरणीय व्यक्ति हइ, आउ ओकरा साथ कानूनी तौर पर बहस करना अनुचित हइ, आउ बुद्धिमान व्यक्ति भी हियाँ परी मूर्ख बन्नल रह जा हइ।
[160] पृष्ठ *143, *144, *145, *146 बाहर के प्रस्ताव रक्खऽ हइ, जे कानून लगी घातक हइ आउ बिलकुल ओहे हइ जेकरा से फ्रांस उलट-पलट हो गेले ह। कोय अचरज नञ् होते हल, अगर ई बकबक करे वला के गिरफ्तार भी कर लेते हल।
पृष्ठ *147 पर ऊ कृषक के दयनीय स्थिति पर विलाप करऽ हइ, हलाँकि एहो विवादास्पद नञ् हइ कि निम्मन जमींदार के हियाँ पूरे संसार में हमन्हीं के कृषक के हालत से बेहतर नञ् हइ।
पृष्ठ *154, *155, *156 पर भद्रलोक (noblemen) के सरकारी सेवा में प्रवेश के वर्णन हइ, जेकरा में बाकी सब्भे नियन ओइसने दुर्भावना प्रकट कइल गेले ह।
पृष्ठ *156, *157, *158 पर लेखक के आत्मा के अहंकार दृष्टिगोचर होवऽ हइ आउ प्रभावशाली लोग पर ओकर शोक आउ नाराजगी, जेकरा ऊ अपन पुस्तक से प्रचार करे के प्रयास करऽ हइ, जइसे कि मिथ्यापवाद पूर्ण रूप से स्थापित आउ स्वीकृत हइ। पृष्ठ *159 पर ई आउ अधिक स्पष्ट हइ।

सं॰3

पृष्ठ *160, *161, *162, *1б3, *164, *165, *166, *167 में माता-पिता आउ बुतरुअन के बीच के संबंध के विनाश के वर्णन हइ आउ भगमान के कानून, दस धर्मादेश (Ten Commandments), पवित्र धर्मग्रन्थ, यूनानी ईसाई धर्म आउ सिविल नियम के बिलकुल विरुद्ध हइ। आउ ई चमुच्चे पुस्तक में ई स्पष्ट हइ कि लेखक क्रिश्चियन उपदेश के लेशमात्र भी आदर नञ् करऽ हइ, आउ ई स्वेच्छाचारिता के स्थान पर ऊ एक प्रकार के दर्शन स्वीकार कइलके ह, जे क्रिश्चियन आउ सिविल नियम के अनुरूप नञ् हइ।
पृ॰ *167 के अन्त में आउ *168, *169, *170 पर शिक्षा के नियमावली हइ; ई *171, *172, *173 पर जारी रहऽ हइ; एकर अन्त में कहल गेले ह, कउन हेतु से बाल-बुतरू के अंग्रेजी आउ लैटिन भाषा के शिक्षा देलकइ।
पृ॰ *174, *175 यथेष्ट गंभीरतापूर्वक सोचल-समझल हइ; *176, *177 बाल-बुतरू के शिक्षा के चर्चा जारी रहऽ हइ, ओइसीं *178, *179, आउ *180 भी। ई पृष्ठ पर, समुच्चा पुस्तक नियन, बेलगाम हो जा हइ, आउ लेखक के मानसिकता (mindset) लगभग अइसीं हइ। लगऽ हइ कि अनियंत्रित महत्त्वाकांक्षा के साथ पैदा होले हल, आउ खुद के उच्च पदवी लगी तैयारी कइलकइ, लेकिन चूँकि अभियो तक नञ् प्राप्त कर पइलके ह, ओकर अधीरता के पित्त (चिड़चिड़ापन) सब कुछ स्थापित पर सगरो उमड़ पड़ले ह आउ ई विशेष दर्शन के रचना कइलके ह, लेकिन जे ई शताब्दी के विभिन्न अर्द्ध-विवेकी, जइसे रूसो, ऐब्बे रेनाल आउ अइसने रोग-भ्रमित (hypochondriacs) से लेल गेले ह; तत्वमीमांसा (metaphysics) के संबंध में ऊ मार्टिनवादी हइ।
पृष्ठ *181 अइसने अर्थ में विवाह के बात करऽ हइ।
पृष्ठ *182. सामाजिक जीवन के नियमावली चालू होवऽ हइ। लेखक कहऽ हइ - अपन हृदय से पुछहो; ई कल्याणकारी हको। जे ई कहऽ हको, ओहे करहो, लेकिन अपन बुद्धि के अनुसरण करे के औडर नञ् देहो। ई प्रस्ताव बहुत विश्वसनीय नञ् हो सकऽ हइ।
पृष्ठ *182 पर रिवाज, नियम, कानून आउ गुण के विरुद्ध बात कइल जा हइ।
[161] पृ॰*184 पर सुकरात के उदाहरण प्रस्तुत कइल हइ आउ सब कुछ के बदले गुण के चयन करे के नियम देल हइ, लेकिन गुण के निर्धारण कइसे कइल जाय, ई अज्ञात रह गेलइ।
पृ॰*185 पर एकर आउ गुण के अर्थ के पुष्टिकरण कइल गेले ह। ई व्यक्तिगत चाहे सामाजिक होवऽ हइ।
पृ॰*186 पर कुर्तिउस (Curtius) के उदाहरण हइ आउ जीवन में व्यवहार के कुछ नियम के उपदेश देल गेले ह। ई प्रमाणित करऽ हइ कि लेखक वास्तव में अहंकारी हइ आउ खुद के बारे जादे सोचऽ हइ, बनिस्पत आउ दोसरा केकरो बारे।
पृ॰*187 पर लेखक फेर से लपकल अपन प्रिय विषय पर अइले ह - विशिष्ट व्यक्ति के अनुपस्थिति (गैरहाजिरी); ऊ कहऽ हइ कि ई रिवाज घृणास्पद, अर्थहीन, जीहुजूरिया, आउ जेकर भेंट देल जा हइ ओकरा में अहंकार आउ दुर्बल विवेक के प्रमाण हइ।
पृ॰*188. ई लेकिन पुष्टि करऽ हइ वस्तुतः ऊ पद पर के कर्तव्य (ड्यूटी) के अपवाद के।
पृ॰*189. छैलापन के बारे बात करऽ हइ, आउ लेखक ई पृष्ठ पर प्रमाणित करऽ हइ कि ऊ धनलोलुप नञ् हइ।
पृ॰*190, *191, *192, *193, *194 प्रमाणित करऽ हइ कि लेखक यथेष्ट कल्पनाशील हइ आउ रोगभ्रमी (hypochondriac) आउ विषादजनक विचार (gloomy thoughts) के प्रचार करना ओकरा पसीन पड़ऽ हइ, आउ हिएँ परी फेर से माता-पिता के अपन बाल-बुतरू पर नियंत्रण के निरर्थकता के उल्लेख कइल जा हइ, जे क्रिश्चियन आउ सिविल नियम के विरुद्ध हइ।
पृ॰*195. ई अवैध आउ वास्तविक दुराचारी अर्थ फैलावऽ हइ, जेकरे से पृ॰196 के समाप्त करऽ हइ; आउ हियाँ परी दैवी आउ सिविल नियम के प्रति कोय आदर नञ् देखाय दे हइ, बल्कि एकर बदले अनियंत्रित, अर्द्ध-विवेकी बकवास हइ।
पृ॰*197, *198, *199, *200, *201 में एगो खराब रोग के वर्णन हइ, जेकरा से लेखक ग्रसित हलइ। पृ॰*202 पर एकर दोष सरकार के देल जा हइ, आउ पृ॰*203 पर ओकरा बुरा-भला कहल जा हइ आउ गरियावल जा हइ, जे हमेशे शांति आउ नीरवता के उपदेश दे हइ।
पृ॰*204, *205, *206, *207, *208, *209 में कहानी हइ वलदाई आउ ऊ मठवासी (monk) के, जे झील के पैरके पार कइलके हल, आउ कुछ विशेष नञ् हइ।
पृ॰*210, *211, *212, *213, *214, *215, *216 में एद्रोवो के लड़की के कहानी हइ, हियाँ परी सगरो प्रहार कइल जा हइ कुलीन लोग (noblemen) पर आउ ओकन्हीं के कृषक लोग पर दुर्व्यवहार आउ उपद्रव पर।
पृ॰*217 पर सबसे जोरदार लेखांश (passage) हइ।
पृ॰*218. शायद ई अलिक्सान्द्र वसील्येविच सोल्तिकोव के कहानी होतइ। हियाँ परी न्याय पर हमला हइ; ई पृष्ठ के अन्त में शब्द हइ - "नञ्, नञ्, ऊ जीवित हइ, ऊ जीवित रहतइ, अगर ऊ चाहतइ!" ई टिप्पणी ध्यान देवे लायक आउ वास्तव में अपमानजनक हइ।
पृ॰*219, *220, *221, *222 पर अन्युतिना के कहानी जारी रहऽ हइ।
पृ॰*223 पर राजधानी, कुलीन लोग आदि के आचार-व्यवहार पर भड़ास निकासल जा हइ।
पृ॰*224 पर ओहे बात जारी रहऽ हइ, ओइसीं *225 पर भी।
पृ॰*226 गाम के माय सब के तुलना शहरी माय लोग से करऽ हइ; एहे तुलना पृ॰*227 पर जारी रहऽ हइ।
[162] पृ॰*228, *229. एद्रोवो के अन्युता के बारे लेखक के विभिन्न विचार।
पृ॰*230. गाम के दस साल के लड़कन के जवान लड़कियन से शादी के हानिकारक प्रथा के वर्णन करऽ हइ। लेखक के नञ् मालुम हइ कि अइसन शादी गैर-कानूनी हइ, चाहे जाने लगी नञ् चाहऽ हइ, काहेकि ओकर कहना हइ - "कानून के एकर मनाही करे के चाही हल।" हियाँ परी शादी के चर्चा प्राच्य ईसाई धर्म (Orthodoxy) के विरुद्ध हइ, काहेकि शादी एगो संस्कार (sacrament) हइ। पृष्ठ *231के अन्त में फेर से कुलीनता (gentry) पर प्रहार हइ - एगो पचास साल के अदमी के काहे लगी एगो पनरह साल के लड़की से शादी करे के चाही? हमन्हीं हीं एगो कहावत हइ - खाली एक अबाबील पक्षी (swallow) से ग्रीष्म ऋतु नञ् बन्नऽ हइ।
पृ॰*232, *233, *234, आउ *235 ई कहानी के उपसंहार हइ।

सं॰4

पृ॰*236, *237, *238 पर व्यंग्यात्मक रूप से परमानंद के बात कइल जा हइ आउ अनुभव करावल जा हइ कि अइसन कोय चीज नञ् हइ। ई ओकर भूमिका हइ, जे, लेखक के कृषक लोग आउ ओकन्हीं के दासता के बारे कहे के इरादा हइ आउ सेना के बारे, जे संरचना आउ अनुशासन के आधार पर गुलामी में हइ। एहे सब हइ पृ॰*239, *240, *241, *242, *243, *244, *245, *24б, *247, *248, *249, *250, *251, *252 पर, आउ जमींदार लोग के विरुद्ध कृषक लोग के भड़कावे के प्रवृत्ति हइ, आउ सेना के प्राधिकारी के विरुद्ध। लेखक के "शांति" आउ "अमन-चैन" शब्द पसीन नञ् हइ।
पृ॰*253 से विजय पर प्रहार शुरू होवऽ हइ। पृ॰*254 आउ *255 विजय, उपलब्धि आउ उपनिवेश (settlements) के विरुद्ध झिड़की से भरल हइ। ई पृष्ठ के अन्त में ऊ कृषक लोग के विषय पर लौटऽ हइ। पृ॰*256 आउ *257 कृषक लोग के दशा के वर्णन करऽ हइ, जेकरा अपन खुद के खेती करे लायक जमीन नञ् हइ। पृ॰*258 पर वर्णन हइ कि कइसे लोग काम से थकके चूर हो जा हइ।
पृ॰*259 के अनुसार दास लोग अपन बेड़ी पसी करऽ हइ। ई सब अधिकतर ऐब्बे रेनाल के पुस्तक से लेल गेले ह।
पृ॰*260. फेर से अइसन शब्द निकसऽ हइ, जेकर प्रवृत्ति विद्रोह भड़कावे के हइ।
पृ॰*261. एहो ध्यान देवे लायक हइ।
पृ॰*262. जमींदार लोग के कृषक सब के स्वतंत्र करे लगी समझावे के प्रयास करऽ हइ, लेकिन कोय नञ् सुन्नऽ हइ।
पृ॰*263. एहे बात के जारी रक्खल जा हइ।
पृ॰*264. हियाँ परी बतावल जा हइ कि उपर्युक्त सब कुछ एगो कागज पर लिक्खल ओकरा रोड पर मिललइ।
पृ॰*265 पर रूस में कृषक लोग के मुक्ति के योजना हइ; ई योजना पृ॰*266 आउ *267 छेकऽ हइ।
पृ॰*268, *269, *270, *271, *272, *273, *274, *275, *276, *277 लिक्खल गेले ह ऊ सब जमींदार के प्रति घृणा पैदा करे लगी, जे कृषक लोग से खेती करे लायक जमीन के हथियाऽ ले हइ - लेखक ऊ सब के दंडित करऽ हइ, आउ एहे सरकार लगी भी बद्दल हइ।
[163] पृ॰*278, *279, *280, *281, *282, *283, *284, *285, *286, *287, *288 कोर्ट (दरबार) के रैंक के उन्मूलन से संबंधित हइ। हियाँ परी राजा के हिस्सा में सबसे अधिक पड़ऽ हइ, आउ ई शब्द के साथ अन्त होवऽ हइ - "कइसे पारस्परिक लाभ हेतु सत्ता स्वतंत्रता के साथ जोड़ल जाय के चाही"। ई सब से सोचल जा सकऽ हइ कि फ्रांस के आझकल के दुराचारी उदाहरण पर ओकर लक्ष्य हइ। ई आउ अधिक संभावित प्रतीत होवऽ हइ, काहेकि लेखक सगरो राजा आउ सत्ता पर प्रहार करे के अवसर खोजऽ हइ। अब मामला ओकरे से संबंधित हइ।
पृ॰*289, *290, *291, *292, *293, *294, *295, *296, *297, *298, *299, *300, *301, *302, *303, *304, *305 में पुस्तक के सेंसर के बदनाम करे के प्रयास हइ, आउ हियाँ परी साहसपूर्वक आउ अपमानपूर्वक प्राधिकारी आउ सरकार के बारे बोलऽ हइ, जेकरा, जइसन कि स्पष्ट हइ, लेखक घृणा करऽ हइ।
पृ॰ *306, *307, *308, *309, *310, *311, *312, *313, *314, *315, *316, *З17, *318, *З19, *320, *321, *322, *323, *324, *325, *326, *327, *328, *329, *330, *331, *332, *333, *334, *335, *336, *337, *338, *339, *340 पर भी ओहे सेंसर के चर्चा हइ। सबसे दमदार स्थल के पेंसिल से निर्दिष्ट कइल हइ। अन्तिम पृष्ठ पर ई शब्द लिक्खल हइ - "ऊ सम्राट् हलइ। बताहो तो, अगर सम्राट् के सिर में नञ्, त केक्कर सिर में जादे असंगति (inconsistencies) हो सकऽ हइ?" लेखक के राजा लोग पसीन नञ्, आउ जाहाँ कहीं ओकरा प्रति प्रेम आउ आदर के कम कर सकइ, हुआँ असाधारण साहस के साथ बहुत उत्साह से चिपक जा हइ।
पृ॰*341 पर शुरू होवऽ हइ, अपन मालिक के करजा के कारण हथौड़ा के चोट के अधीन एगो परिवार के दयनीय निलामी के कहानी, आउ ई पृ॰*342, *343, *344, *345, *246, *347, *348 तक जारी रहऽ हइ। पृ॰*349 पर ई शब्द से एकर अन्त होवऽ हइ - "ओकन्हीं (जमींदार लोग) के सम्मति से कोय स्वतंत्रता के आशा नञ् करे के चाही, बल्कि दासता के भारी-भरकम बोझ से हीं।" मतलब, आशा अटकल हइ कृषक लोग के विद्रोह पर।
पृ॰*350 से *369 तक छंदशास्त्र के चर्चा के वेष में एगो संबोध-गीत (ode) हइ, जे बिलकुल स्पष्टतया क्रान्तिकारी हइ, जेकरा में राजा लोग के टिकठी (scaffold) के धमकी देल गेले ह। क्रॉमवेल (Cromwell) के उदाहरण प्रशंसा के साथ प्रस्तुत कइल गेले ह। ई सब पृष्ठ आपराधिक इरादा वला हइ, बिलकुल क्रान्तिकारी। ई संबोध-गीत के बारे लेखक के पुच्छल जाय के चाही कि कउन अर्थ में आउ केक्कर ई रचना कइल हइ।
पृ॰*370 आउ आगू, *394 तक, कहानी हइ रंगरूट के चयन आउ उत्पीड़ित कृषक आउ अइसने लोग के बारे, जेकर लक्ष्य हइ स्वतंत्रता के प्रचार आउ जमींदार के उन्मूलन।
पृ॰*395 से *400. फेर से विशिष्ट व्यक्ति आउ दरबारी लोग पर प्रहार।
पृ॰*401 से *409 तक एगो आन्हर के कहानी हइ।
पृ॰*410 से *416 तक फेर से कृषक लोग के दयनीय जीवन के बारे।

सं॰5

लेखक के बता देथिन कि हम ओकर पुस्तक के कवर से कवर तक पढ़ लेलिए ह, आउ पढ़ते बखत हमरा सन्देह होलइ कि कहीं हम ओकरा नराज तो [164] नञ् कर देलिअइ। काहेकि हम ओकरा बारे कोय निर्णय करे लगी नञ् चाहऽ हिअइ जब तक कि ओकर सफाई नञ् सुन लिअइ, हलाँकि ऊ राजा लोग के बारे निर्णय करऽ हइ, बिन ओकन्हीं के अपन सफाई सुनले।
पृ॰*401 से *409 तक कहानी हइ एगो आन्हर के बारे, जेकरा ऊ अपन शाल भेंट कइलकइ।
पृ॰*410, *411, *412, *413, *414, *415, *416 कृषक लोग के दयनीय दशा के वर्णन जारी रक्खऽ हइ।
पृ॰*418 पर लोमोनोसोव के गुणगान शुरू होवऽ हइ आउ पुस्तक के आखिर तक चल्लऽ हइ। हियाँ परी मिराबो (Mirabeau) के प्रशंसा हइ, जे एक तुरी नञ् बल्कि कइएक तुरी फाँसी पर लटकाऽ देवल जाय के लायक हइ। हियाँ परी सा[म्राज्ञी] [लिज़ावेता] पि[त्रोव्ना] के अपमान दर्शावल गेले ह। हियाँ स्पष्ट हइ कि लेखक वास्तविक क्रिश्चियन नञ् हइ। आउ ई संभव प्रतीत होवऽ हइ कि ऊ खुद के नेता नियुक्त कर लेलके ह कि पुस्तक के माध्यम से चाहे आउ कोय तरीका से राजा लोग के हाथ से राजदण्ड (scepter)  छीन लेइ, लेकिन चूँकि अकेल्ले एकरा नञ् कर सकते हल, पहिलहीं से कुछ सुराग लगऽ हइ कि ओकरा पास कइएक सह-अपराधी (accomplices) हलइ; त ओकरा से पूछताछ कइल जाय के चाही, ई मामले में आउ ओकर वास्तविक इरादा के बारे। आउ चूँकि ओकर खुद कहना हइ कि ओकरा सत्य से प्रेम हइ, त ओकरा खुद लिक्खे लगी कहल जाय कि मामला कीऽ हइ। अगर ऊ सत्य नञ् लिखतइ, त हम प्रमाण खोजे लगी बाध्य हो जइबइ आउ मामला ओकरा लगी पहिले के अपेक्षा आउ जादे खराब हो जइतइ।
पृ॰*453 पर लेखक अपन वापसी यात्रा में ई पुस्तक के जारी रक्खे के वचन दे हइ। ई रचना काहाँ हइ? कीऽ एकर शुरुआत कइल गेले ह आउ काहाँ हइ? आऊ ई पंक्ति "लोक शिष्टाचार विभाग के अनुमति से" के बारे कहबइ कि एक तुरी (सेंसर से) अनुमति देवे वला के हस्ताक्षर हो गेला पर पुस्तक में कुच्छो जोड़ना धोखेबाजी आउ निंदनीय कार्य हइ। ई मालुम करे के प्रयास करे के चाही कि केतना प्रति प्रकाशित कइल गेलइ आउ ऊ सब काहाँ हइ।

[सं॰6]

ई टिप्पणी "तोबोल्स्क निवासी मित्र के नाम पत्र"[2] पर हइ।
एहो रचना मिस्टर रादिषेव के हइ आउ रेखांकित कइल स्थल सब से स्पष्ट हइ कि अपनावल रस्ता के बारे बहुत पहिलहीं से विचार कइल जा रहले हल, आउ फ्रांसीसी क्रान्ति ओकरा रूस में पहिला नेता नियुक्त करे के खुद निश्चय कइलकइ। हमरा लगऽ हइ कि षेलिषेव (चेलिषेव) लगभग दोसरा हइ; बाकी लोग तक पहुँचना जरूरी हइ, फ्रांस से जल्दीए आउ विग (wig) भेजल जइतइ।



[1] चिचागोव वसिली याकोवलेविच (1726-1809) - नौ-सेनाध्यक्ष (ऐडमिरल), जे 1788-1790 के स्वेडिश-रूसी युद्ध में बाल्टिक समुद्र में रूसी नौसेना (बेड़ा) के कमांड कइलके हल।
[2] "तोबोल्स्क निवासी मित्र के नाम पत्र" - ई बेनामी रचना रादिषेव द्वारा सन् 1790 के शुरुआत में घर के प्रिंटिंग प्रेस से प्रकाशित एगो छोट्टे गो रचना हइ।

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