अमा॰ = मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी"; सम्पादक - डॉ॰ अभिमन्यु मौर्य, पटना
ई सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ । उदाहरण -
जुलाई 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 1;
दिसम्बर 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 6;
दिसम्बर 1996 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + 12 = 18;
दिसम्बर 2007 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2007-1995) X 12 = 6 + 12 X 12 = 150;
दिसम्बर 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2009-1995) X 12 = 6 + 14 X 12 = 174;
जनवरी 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 1 = 6 + 13 X 12 + 1 = 163.
अप्रैल 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 4 = 6 + 13 X 12 + 4 = 166.
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1 अँटिऔनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
2 अँतड़ी-पचउनी (रात हो जतई आउ कोई न रहतई, त सियार-कुत्ता बेचारा के अँतड़ी-पचउनी निकाल देतई ।) (अमा॰181:14:1.21)
3 अंगना-ओसारा (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.16)
4 अइरखा (~ के = अनखा के) (धीरे-धीरे गछिया हो गेल तइयार, केकरो न अइसन उपजल बरियार । तोड़ के खा गेल बाबाजी के बाछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ? जाके चेतउली हम बाबाजी के, जानियो न हम कहऽ दादाजी के । अइरखा के बुनले हे मड़ुआ के गाछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ? ) (अमा॰185:15:2.12)
5 अईं (दुआरी के बहरी गनउरा लेले जाइत सँचइयावली सुनके झनके लगे । गली में से गुजरइत मेहरारू सब से अप्पन सफाई देवे लगे -'अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई ।') (अमा॰180:13:1.7)
6 अउंघी (खूब रोयलक । कँपसइत-कँपसइत ओकरा अउंघी आ गेल ।) (अमा॰177:13:2.20)
7 अकासवानी (= आकाशवाणी) (अमा॰175:7:2.24)
8 अकूत (~ भंडार) (झारखंड के भौगोलिक संरचना पठारी हे, जहाँ वनिज आउ खनिज सम्पदा के अकूत भंडार छिपल-पड़ल हे ।) (अमा॰175:7:1.4)
9 अकेलुआ (सोनपरी पर तो दुःख के पहाड़े टूट पड़ल । एक तो अकेलुआ औरत, दूसरे में बेटी रिंकी के बिआह के चिंता । जहाँ कोई लइका बतावे, उहाँ उदड़ पड़े, बाकि हतास होके लउट जाए ।) (अमा॰177:14:2.16)
10 अखनियों (= अभी भी) (हम तो जाइत ही, बाकि तूँ अखनियों से चेत जा ।) (अमा॰183:8:1.28)
11 अखनौं (= अखनियो; अभी भी) (घोड़-सिम्मर में छितरायल अनगिनत पाषाण के घोराही, मुदा मथानी के अखनौं देखल जा सकऽ हे ।) (अमा॰175:8:1.3)
12 अगलगाउन (गुन महान नयँ चमड़ी करिया, अगलगाउन हे गोरकी तिरिया ।) (अमा॰178:9:1.17)
13 अगाते (कण्व ऋषि के प्रयागराज से लउटे के दू दिन अगाते दशरथ जी विभांडक मुनि के आदरपूर्वक कुटिया में पहुँचा के वापस अयोध्या लउट अयलन ।) (अमा॰181:19:2.24)
14 अगिया-लगउनी (ई अगिया लगउनी बुनी तो छूटे के नामे न लेइत हई । बिहने कइसे हम खाए बनयबई ? चुल्हवा तर तो डोभ पानी लग जतई ।) (अमा॰182:13:1.11)
15 अछइत (= छइते; रहते) (सहल न जाहे बाबू भइया, हाथ में अछइत बेलना-लोढ़िया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.9)
16 अझुरा-पझुरा के (ऊ हमेशा बात के अझुरा-पझुरा के बोलत ।) (अमा॰180:10:1.2)
17 अटल-पटल (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।; केतनन तो अबहिओं सुअर के बथान जकत एक्के जगह रहे पर मजबूर हथ । हम्मर नइहर में गनउरिया हीं दुइयो गो कोठरी हई आउ तनि सा बरामदा । ओकरे में खाय-पानी, बैल-बकरी, कोठी-भाँडी, सब अटल-पटल हई ।) (अमा॰180:6:1.2, 14:1.26)
18 अठमी (= अष्टमी) (भादो पहिला पख अठमी के जनम कृष्णजी लेलन हल । राजा कंस के जान लेवे ला काल बन के अयलन हल॥) (अमा॰181:15:1.13, 18)
19 अदहन (एक दिन ले अयलो कनेमा भरल तसला पानी । अदहन चढ़ावे जा रहलो हल ।; तरकुल के छाँह भेल जिनगी । रेत भेल नदी के कहानी, खउलइत हे दिन जइसे अदहन के पानी, चूल्हा के धाँह भेल जिनगी ।) (अमा॰180:13:1.22; 184:1:2.6)
20 अधकनी (स्वामी के सेवा करला से हमरा खूब संतोष मिले, चैन मिले हे तखनी जाके मन हम्मर कुछ खुस दिखे, एतनो पर कीमत नयँ देहऽ, समझऽ ह खखरी अधकनी ।) (अमा॰177:20:1.22)
21 अधमरल (जइसहीं चोरवा गिरलई, ओइसहीं ओकरा पर लत्तम-जुत्तम एतना होलई कि ऊ अधमरल जइसन हो गेलई ।; तुरन्ते तीन-चार गो सिपाही सब अधमरल चोरवा के जीप में डाल के थाना में ले गेलन ।) (अमा॰179:11:1.12, 21)
22 अधार (= आधार) (ई गाय तो हम न देम, काहे कि एही गाय के दूध हम्मर बाल-बुतरू के जीवन के अधार हे ।) (अमा॰186:5:1.20)
23 अधोखरी (~ बात) (जोगन ! अइसन अधोखरी बात मत बोल । तूव हमरा से औरत के इलाज करावे ला सूद पर पइसा ले अयले हल । अइसन सफेद झूठ मत बोल ।) (अमा॰181:10:1.23)
24 अनगुती (अनगुती पहर जब कण्व ऋषि जंगल में टहल रहलन हल, त एगो जंगली भईंसा के कंकाल देखाई पड़ गेल ।) (अमा॰181:19:1.12)
25 अन्हार-पन्हार (ऊ अप्पन डिउटी पर तैनात होयल हल अन्हरिया में लोग-बाग के मदद करे लेल । खूब अन्हार-पन्हार हो गेल हल ।) (अमा॰186:6:1.7)
26 अमड़ा (छुट्टी भेला पर घरे आयल, त इहाँ फिर उहे खिचड़ी तिसिअउरी आउ एगो अमड़ा के झूँजल फाँक ।) (अमा॰182:14:1.20)
27 अमस्या (= अमावस्या) (परसों सावन के अमस्या हे । तहिने पंडित जी के जनार-खनार करा देहो आउ पहिलरोपा के सब समान ला देहो ।) (अमा॰186:6:2.25)
28 अरजल (~ खेत) (कातो एतना बढ़िया-बढ़िया खेत सड़क किनारे मकान बनावे वला, सब्जी उपजावे वला नरेसवा के बाबू जी नीलाम कर देलथिन । औने-पौने बेच देलथिन । बेटवा रहतई हल त बेच देतई हल बाप-दादा के अरजल खेत ? मंगनी में मिलल धन के केकरा मोह-माया रहऽ हे ?) (अमा॰180:13:2.19)
29 अराधना (= आराधना) (अमा॰175:5:2.20)
30 अलमारी (हमनी के कमरा में भगवान के मनभावन फोटो आउ धार्मिक पुस्तक से अलमारी भरल हल ।) (अमा॰184:11:1.17)
31 अल्मुनिया (= अलमुनिया) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.21)
32 असान (= आसान) (ई तो बहुत बढ़िया बात सोचले हें । बाकि ई एतना असान हइ का ?) (अमा॰176:10:2.20)
33 असानी (= आसानी) (बिदेसी पर्यटक ला थोड़ा बंदिस हे । बाकि राजन के चलते हमनी के असानी से टिकट आउ परवेस मिल गेल ।) (अमा॰184:13:2.10)
34 अस्थिर (= स्थिर) (फिन अस्थिर से बइठ गेली ।) (अमा॰176:7:2.26)
35 आज-बिहान (ऊ कमायल मजदूरी माँगइत-माँगइत हमनी दुन्नो परानी थक गेली हल । अपने आज-बिहान कह-कह के टरकावित-टरकावित चार-पाँच साल बिता देली ।) (अमा॰181:11:1.21)
36 आनी (= यानी, अर्थात्) ('केकरा गरिआवइत हहुँ ?' -'तोरे पहुना, आनी अप्पन पिलुअहवा भतार के ...।') (अमा॰177:10:1.11)
37 आयँ-बायँ-चकरायँ (= आईं-बाईं चकहाईं ; आयँ-बायँ-चकहायँ) (पइसा लेवइत घड़ी एक्को बार तूँ कमायल पइसा के चर्चा न कयले, लेकिन जब सूद के पइसा माँगे अइली हे, तब तूँ आयँ-बायँ-चकरायँ बतिआइत हें ।) (अमा॰181:10:2.15)
38 आरी-पगारी (फुलवा खिचड़ी खयलक आउ एगो चमकी ओढ़ के धान के आरी पकड़ के चल देलक इस्कूल में पढ़े । आरी-पगारी पर पिच्छुल भेल हल ।; अभियो फिसिर-फिसिर पानी पड़इते हल । आरी-पगारी, डग्घर होवित फुलवा देरी से इस्कूल पहुँचल हल ।) (अमा॰182:14:1.7, 10)
39 आल-औलाद (अब चिन्ता करे के कउनो बात न हे । अपने के आल-औलाद सब शान्ति से रहत ।; आल-औलाद सब बिना काम के व्यस्त रहऽ, व्यस्त रहऽ !) (अमा॰185:11:1.11; 186:11:2.16)
40 इँकसना (= इकसना, निकलना) (बिरजू के मुँह से 'रेडी' इँकसल हल कि सब्भे लरिकन लट्टू नचावे लगलन हल ।; ऊ दिन ऊ मुँहझप्पे इँकस गेल हल घर से नन्दू बाबू के साथे ।; जाड़ो के कँपकँपी में लरिकन मुँहझप्पे सुत-उठके घर से इँकस जाहे खेले ला ।; पढ़तऽ हल, तब तोहर दिल से सब नफरत इँकस जइतो हल ।) (अमा॰176:13:1.18, 2.1, 6, 14:2.6)
41 इंतकाल (मुकुन्दी जी के इंतकाल के पाँच बरिस हो गेल । अढ़ाई बरिस तो नन्दुओ बाबू के मरला हो गेल ।) (अमा॰176:15:1.24)
42 इंतिहान (= इम्तिहान, परीक्षा) (हम इहाँ इंतिहान देवे अइली हल बाबा ! इंतिहान के बाद स्टेशन पहुँचहीं वाला हली कि गाड़ी खुलल दिखाई देलक ।) (अमा॰181:14:1.30, 31)
43 इंदरा (= इनरा, इनारा, कुआँ) (अगर इहाँ इन्साफ न मिलत त दुन्नो बेकती इंदरा में कूद के मर जायम ।) (अमा॰184:7:1.22)
44 इजलास (जज के इजलास सजल हे । कुर्सी पर जज साहेब बइठल हथ । कठघरा में जोगन आउ बगल में उनकर वकील तारालाल खड़ा हथ ।) (अमा॰182:9:1.2)
45 इद्धिर (= एद्धिर, इधर) (देख रहल हें उद्धिर की तूँ, बोलइत हे ऊ इद्धिर ताकू । आज पँचटकिया नयँ देमे, त मारिये देबउ छूरी-चाकू॥) (अमा॰180:16:2.7)
46 इनकनी (= इनकन्हीं) (बर्नाट सा आउ न्यूटन के साथे मनोवैज्ञानिक फ्रेट भी अप्पन औरत से प्रताड़ित हलन । इनकनी सबके रासि-गनना न बइठल हल ।) (अमा॰178:11:2.27, 13:1.19)
47 उकटवाना (जवानी में तोरा से चौधरी टोला के कोई लड़की बचवो कैल हल ? तोरे डरे चौधरी लोग ताड़ी में जहर फेंटके बेटी के पिलावऽ हलन । पचास बरिस में भी कभी बगइचा में, त कभी पगार तक लइका-लइकी जौरे पकड़ा हलऽ । हमरा से आउ मत उकटवावऽ ।) (अमा॰178:17:1.33)
48 उगाही (टैक्स लगावल आसमान में उड़े ला हे मनाही । बाकि बाज बनल इंस्पेक्टर उगाही में न होवे कोताही ।) (अमा॰184:17:1.28)
49 उछाह (साथ भेल झाड़ आउ झाँखर, बिसर गेल अब कबीर के ढाई आखर, झुट्ठे उछाह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.19)
50 उदड़ना (सोनपरी पर तो दुःख के पहाड़े टूट पड़ल । एक तो अकेलुआ औरत, दूसरे में बेटी रिंकी के बिआह के चिंता । जहाँ कोई लइका बतावे, उहाँ उदड़ पड़े, बाकि हतास होके लउट जाए ।; सुबह समय से नस्ता लागी चूल्हा-चउका जोरऽ ही, रोटी-सब्जी भुंजा-फुटहा कुछ भी लेके उदड़ऽ ही ।; ई भी दउड़ल, ऊ भी दउड़ल, अगल-बगल के लोग भी उदड़लन ।) (अमा॰177:14:2.17; 177:20:1.14; 184:10:1.14)
51 उद्धिर (= ओद्धिर, उधर) (देख रहल हें उद्धिर की तूँ, बोलइत हे ऊ इद्धिर ताकू । आज पँचटकिया नयँ देमे, त मारिये देबउ छूरी-चाकू॥) (अमा॰180:16:2.7)
52 उधकाना (छोड़ के अप्पन संस्कृति के का हमनी अपनावइत ही ? ... फिलिम हिरोइन खोल के कपड़ा खोले जवानी के खिड़की, ई सब करके युवा पीड़ी के मनवाँ के उधकावइत ही ।) (अमा॰179:16:2.5)
53 उधार-पइंचा (बाकि अगला साल लगन चढ़इते रमरतिया के शादी उधार-पइंचा लेके हो गेल ।) (अमा॰179:9:2.33)
54 उनकनी (= ओकन्हीं) (कालिदास के कउन न जानऽ हे । 'उपमा कालिदासस्य' कहाउत प्रसिद्ध हे । इनका आगे सेक्सपियर भी छोट हथ । उनकनी तो रहते-सहते पिटयलन हे, बाकि कालिदास तो 'प्रथमग्रासे मक्षिका पाता' से दुःखित हलन । घरनी विद्योत्तमा उनका छत पर से पीछे गिरा देलन ।) (अमा॰178:13:1.32)
55 उन्हका (जमीन्दारी जीवन तो उन्हका जीना न हे, से सब कुछ ठीक-ठाक हे । कहियो घर में टन-टुन होते उन्हका हीं न देखलक कोई ।) (अमा॰178:16:2.31, 32)
56 उबिअहट (हमनी के प्राण संकट में फँस गेल हे । न छोड़ते बने, न पकड़ते बने । बड़ी उबिअहट हे । व्यर्थ में हमनी धन-सम्पत्ति लेके जंजाल में अझुरा गेली ।) (अमा॰180:13:1.30)
57 उल्टा-सीधा (~ बात करना) (हम तोर बेमारी सुन के पइसा देली आउ तोर मरद पइसा देवे के नाम पर उल्टा-सीधा बात कर रहलउ हे ।) (अमा॰181:11:1.13)
58 उल्लु-दुयू (= उल्लु-धुत्तु) (बुढ़िया के चारो पुतोह लड़ाकिन हथ । हर-हमेसे ऊ सब एकरा साथे टंटा पसारले रहऽ हलन । कउनो बेटन के धेआन नऽ हल एकरा पर । उल्टे ओखनी एकरे उल्लु-दुयू करइत रहऽ हलन, डाँट-फटकार सुनावइत रहऽ हलन । कहिनों भर-पेट खाय ला न मिलऽ हल बेचारी के ।) (अमा॰177:16:2.20)
59 ऊपर-झापर (सरकार ! हम्मर मतारी के हालत ठीक न हे । ... सरकार ! जल्दी करीं आउ चलके तनि ऊपर-झापर देख लीं ।) (अमा॰179:13:1.12)
60 एक-दिसहीं (~ से) (चुप ! एक-दिसहीं से सबके पीटे लगबउ । हम कहली हे तोरा सबके पढ़े ला आउ तूँ सब बदमासी करे ला सुरू कर देले ।) (अमा॰175:10:1.1)
61 एक-दिसहे (~ से) (हँसबे तूँ सब ! मार-मार के एक-दिसहे से ठीक कर देबउ ।) (अमा॰175:10:1.30)
62 एकन्हीं (एकन्हीं के हमहीं घर-घर जाके बोलइली हे, तोरा एतराज काहे हो एकरा पर ?; एकरे ला ने लेमोचूस खिला-खिला के परका रहले हें एकन्हीं के ?) (अमा॰176:14:1.29, 2.11)
63 एकबाल (= अकवाल, सौभाग्य) (कखनी केकरा फेरा लग जायत, से केकरो पता न हे । अभी शिवदानी बाबू के एकबाल चलल हे, तीन-तेरह असानी से कर रहलन हे ।) (अमा॰180:10:2.17)
64 एकबैक (= एकबैग) (सधारन परिवार के एकबैक एतना पइसा जुटावल असान काम न हे ।) (अमा॰185:12:1.18)
65 एकसुरे (दिवाकर के बाबू एकसुरे दउड़ल सचिवालय हॉल्ट जाके रेल पकड़लन ।) (अमा॰175:13:2.26)
66 एजा (= एज्जा, इस जगह पर) (देख रे मदना । एजा परी ढेर छउँक-बघारत मत कर । चुपचाप चल जो, न तो तोर हालत खराब कर देबउ ।) (अमा॰183:7:2.23)
67 एजुने (= यहीं, इसी जगह पर) (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
68 एती (~ घड़ी) (कउन बूढ़ा-बूढ़ी के एती घड़ी अराम हई ? सब तो करमे कुँटइत हथ । ई बेटी के घर हथ, एही से हमनी बदनाम ही ।) (अमा॰180:13:2.3)
69 एसलोक (= श्लोक) (संसकिरितो पढ़लऽ हे ? ओमे एगो एसलोक हे -'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ... ।' ) (अमा॰176:14:2.19)
70 एहिजा (= इस जगह) (अरे फुट ! फुट एहिजा से । अयले हें डागडर बने । जउन मजा दारू में हे, ऊ मजा गड़ी-छोहाड़ा आउ घीउ-दूध में कहाँ ?) (अमा॰183:8:1.15)
71 एहिजे (= इसी जगह पर, यहीं) (न-नऽ ! गाय के अंगना मे लावे के जरूरत न हे । ओकर काम एहिजे से हो जतई । एहिजे से ओकरा दान करा देवल जायत ।) (अमा॰186:11:2.23)
72 ऑडर (= औडर, order) (ऑडर ऑडर ! अब कोर्ट के कारवाई शुरू करल जाय ।) (अमा॰182:9:1.8)
73 ओकन्हीं (हमरा रिटायरो कइला पर ओकन्हीं के बेवहार में कोई फरक नैं आयल हे ।; नन्दू बाबू बोला के लइलन हल ओकन्हीं के ओकर टोला से ।; हाथ-पाँव ठिठुरइत रहे हे, पर ओकन्हीं सब लट्टू नचावे आउ गोली खेले ला बेचैन रहऽ हे ।) (अमा॰176:13:1.26, 2.3, 7)
74 ओज्जे (= उसी जगह, वहीं) (एक दिन मुखिया कमला देवी आमसभा से लउट रहलन हल, तखनिये धाँय-धाँय । लोघड़ गेलन ओज्जे ।) (अमा॰175:8:1.26)
75 ओझई (जे महीना में दू दिन स्नान करे, जेकरा पूजा-पाठ से कोई सरोकार न हे, ऊ चललन हे ओझई करे !) (अमा॰179:15:1.32)
76 ओझा-पंडित (हमरा पूरा बिसवास हे कि तोर मतारी के भूत दवा-दारू से जरूर भाग जाएत । लेकिन तोरा लोग के दिमाग में जे ओझा-पंडित के अंधविश्वास घर कएले हवऽ, ओकरा कउन दूर भगावत ?) (अमा॰179:15:2.11)
77 ओठंगना (एक तरफ बिटेसर आउ उनकर घरुआरी चबुतरा में ओठंग के बइठल हथन ।) (अमा॰184:7:1.4)
78 ओड़चन (तसला, कड़ाही, कठउती, कटोरा अगल-बगल बिछौना पर रक्खल हल, जेकरा में टप-टप पानी चुअइत हल । खटिया के ओड़चन एकदम भींग गेल हल ।) (अमा॰182:13:1.9)
79 ओड़िया (फुलवा अप्पन बाबा के साथे ओड़िया लेके पच्छिम पट्टी गोइँठा लावे चल गेल ।; सब गोइँठा ओड़िया में उठा के माथा पर रख लेलक आउ गते-गते चल देलक ।) (अमा॰182:13:2.7, 14)
80 ओढ़ना-बिछौना (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
81 ओलहन (फूलकुमारी तनी अप्पन सोभाव के अभिमानी हल । ऊ अइसन नञ चाहऽ हल कि हम दोसर के बैना खाऊँ आउ ओकरा नञ देऊँ । औरत जात के केकरो ओलहन सुने के नाम पर जादे गोस्सा हो जाहे ।; परसों सावन के अमस्या हे । तहिने पंडित जी के जनार-खनार करा देहो आउ पहिलरोपा के सब समान ला देहो । ... काहेकि हमहूँ तहिने सब गोतिया-नइया, पवनिया-पजहरिया के बैना-पेहानी दे देबइ । काहे लेल ई एगो शिकायत रह जायत । हम केकरो ओलहन बरदास्त करेवला न हिओ ।) (अमा॰186:6:2.18, 30)
82 ओसउनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.5)
83 औने-पौने (~ बेच देना) (कातो एतना बढ़िया-बढ़िया खेत सड़क किनारे मकान बनावे वला, सब्जी उपजावे वला नरेसवा के बाबू जी नीलाम कर देलथिन । औने-पौने बेच देलथिन । बेटवा रहतई हल त बेच देतई हल बाप-दादा के अरजल खेत ? मंगनी में मिलल धन के केकरा मोह-माया रहऽ हे ?) (अमा॰180:13:2.17)
84 कइसहियों (= कइसहूँ) (ऊ रमेसर बाबू के इहाँ चउका-बरतन करके कइसहियों अप्पन बेटा रामदेउआ के लालन-पालन करलक हल ।) (अमा॰177:9:1.18)
85 कउआ-हँकनी (फुलवा मइया के अँचरा में मुँह छिपावइत बोललक -'ए मइया ! कउआ-हँकनी ओला कथवा कह न ।') (अमा॰182:13:1.30)
86 ककोलत (बैसाखी-बिसुआ मगह में अंतिम परब गिनावऽ हे । ककोलत के कनकन पानी गरम देह ठिठुरावऽ हे॥) (अमा॰181:15:2.32)
87 कजै (= कज्जो, कहीं) (न केकरो कोय सुने न केकरो कोय ताके हे । सब अप्पन-अप्पन राग अलगे अलापे हे । कजै उठापटक हे, कजै गुत्थमगुत्थी हे । कजै कोय आग लगैलक कजै फेंकलक लुत्ती हे ।) (अमा॰185:16:1.13)
88 कटनी-बंधनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
89 कटहर-कोवा (नाग पाँचे के सुनऽ कहानी हरियर सावन मास में । आम पकल कटहर-कोवा के भाव रहे अकास में ॥) (अमा॰181:15:1.4)
90 कटास (काहे तूँ रूस गेलऽ बउआ जइसन, घामा तूँ कयलऽ कटास हो । केनहूँ न बादर देवे देखाई, नयना निहारइ अकास हो ।) (अमा॰182:16:1.10)
91 कट्ठा-कट्ठी ('ई जाके लिखलई, तबे न ऊ बेचलई ? न लिखतई हल, त कइसे बिकतई हल ?' -'ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई । बेटी बिआहे ला हे, त घर बनावे ला हे, त बड़ी बढ़िया धनहर खेत बिकइत हइ एक्के ठामा । उहाँ त कट्ठा-कट्ठी हवऽ, खेती-बारी ठीक ढंग से न होवो, कउन जयतो उहाँ रहे-सहे ?') (अमा॰180:13:2.26)
92 कठउती, कठौती (तसला, कड़ाही, कठउती, कटोरा अगल-बगल बिछौना पर रक्खल हल, जेकरा में टप-टप पानी चुअइत हल । खटिया के ओड़चन एकदम भींग गेल हल ।) (अमा॰182:13:1.7)
93 कठदलील (अनुज जब जादे बोले लगलन, तब उनकर ससुरजी नराज होके बोले लगलन -'जादे कठदलील न देथिन । अप्पन उमर सीमा के भीतर रहथिन ।') (अमा॰178:16:2.4)
94 कठपेन्सिल (सब लड़कन कठपेन्सिल से लिखऽ हथ आउ ई बगली में दू-दू गो कलम खोंसले रहऽ हे ।) (अमा॰175:9:2.1)
95 कतकी ( = कार्तिक मास का) (~ छठ) (सन् २००८ ई॰ के कतकी छठ हम्मर जिनगी में एगो अलगे स्फूर्ति लेके आयल हल ।) (अमा॰185:5:1.1)
96 कन (= के यहाँ, के पास) (आखिर एक दिन अइसन आयल कि रामदेउआ के लगन भेल । एगो रिस्ता आयल बगले के गउआँ के परमेसर बाबू कन से ।) (अमा॰177:9:1.30)
97 कनमनाना (रुष्ट या अप्रसन्न होना) (सोनपरीके भउजाई दू-चार दिन तो नीमन से बोललथिन, बाकि फिर कनमनाय लगलन ।) (अमा॰177:13:2.29)
98 कन्ने (= किधर) (कन्ने ह हो शंकर !) (अमा॰179:13:1.26)
99 कबहियों (= कभीयो) (कबहियों परब-उरब में छुट्टी मिले तब आवऽ हल, कबहियों केकरो से पइसा-कपड़ा भेज देवऽ हल ।) (अमा॰177:9:1.22, 23)
100 कमायल-धमायल (कमायल-धमायल आउ पाँच साल पहिले के बात छोड़ । पहिले तूँ सूद के बात कर, सूद के ।) (अमा॰181:10:1.31)
101 कमिया (ऊ आगे भी सोचइत गेल, नोकरी करे में गुलामी के बात तो समझ में आवऽ हे, बकि अप्पन कम करे में भी लोग कमिया के अजाद काहे न रहे दे हथ ।) (अमा॰175:12:2.10)
102 कमोबेस (चाहे जउन रूप में ई रहलन, बाकि कमोबेस साहित्य-जीवन में बराबर उपस्थित रहलन ।) (अमा॰178:14:1.5)
103 करखाही (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.24)
104 करगी (बड़का गो हौल, जेकर करगी-करगी फूल-पत्री साजल हल, आगू स्टेज बनल हल) (अमा॰176:7:2.18)
105 करवावल (= करवाना) (हिन्दी तेलगू उड़िया मराठी संस्कृत इहाँ के देव भाषा, छोड़ धरोहर ई सब कुछ के का करवावल चाहइत ही ।) (अमा॰179:16:2.8)
106 करिक्का (= करिया रंग वाला) (जी, सब समान तइयार करके रख देली हे । करिक्का गइया के बच्चा सहित धोवा देली हे ।) (अमा॰186:11:2.19)
107 कहावल (गाय दान करल आउ कथा कहावल, ई तो जरूरी हे ।) (अमा॰185:12:1.30)
108 काट-कपट (~ के) (सोनपरी इस्कूल के कमाई में से दस हजार रुपइया कइसहूँ काट-कपट के रखले हल ।) (अमा॰177:14:2.8)
109 कायथ (= कायस्थ) (हँ-हँ नन्दू ! तों कायथ हें न, एही गुने बोलऽ हें । कायथ तो आधा मुसलमान होबे करऽ हे । अब सादी-बिआह, मरनी-जीनी में एही चमरन के पूज, हमनी के पूज के की होतउ तोरा !) (अमा॰176:14:2.8)
110 कार (= काला) (कविता लिकलऽ कत्ते सुन्नर, देखे मेम तूँ कार ह । मगही कविता मंदिर के तूँ सजल सिंगार ह ।) (अमा॰181:5:2.24)
111 कारवाही (एकरा चलते कभी-कभी झंझट भी खड़ा हो जाहे आउ मामला कानूनी कारवाही तक पहुँच जाहे ।) (अमा॰182:7:1.31)
112 किउल (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.9)
113 किरिया-कलाप (= क्रिया-कलाप) (हाथ में पइसा आ गेला पर अदमी के अप्पन किरिया-कलाप में बदलाव आ जाहे ।) (अमा॰175:14:1.9)
114 कुच्छो (पइसा ला हम तोरा साथे कुच्छो कर सकऽ ही ।) (अमा॰177:10:1.17)
115 कुटम्मस (= कुटाई; मार-पीट) (सत्तर साल के बुढ़िया सुमित्रा अप्पन चश्मा ठीक करइत सोचे लगल कि जमाना केतना बदल गेल हे । पहिले कुटम्मस होयलो पर पति लागी तीज बरत करऽ हल औरत, ओही औरत आज विरोध करे लागी तइयार हे कमर कसके ।) (अमा॰177:10:2.12)
116 कुदुकना (= कुदकना) (बनरी सब अप्पन बचवन के छाती में साटले छरपा-छरपी करइत हल । परसादी चढ़ाके निकललऽ कि बस, बन्दर सब कुदुक-कुदुक के केला, सेव, नारियल लेके पार ।) (अमा॰183:13:2.24)
117 कुफुथ (देख के मुँह फेर ले हथ, मँगला पर कुफुथ दे हथ ।) (अमा॰176:16:2.7)
118 कोट (= coat, court) (कुछ घींच-तीर के वकीली पास करतन आउ करिया कोट चढ़ा के कोट में चिनिया बेदाम फोड़इत रहतन ।) (अमा॰175:11:2.25)
119 कोठी-भाँडी (केतनन तो अबहिओं सुअर के बथान जकत एक्के जगह रहे पर मजबूर हथ । हम्मर नइहर में गनउरिया हीं दुइयो गो कोठरी हई आउ तनि सा बरामदा । ओकरे में खाय-पानी, बैल-बकरी, कोठी-भाँडी, सब अटल-पटल हई ।) (अमा॰180:14:1.18)
120 कोठी-भाढ़ी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
121 कोढ़फुट्टा (हम्मर मरद कुत्ता निअर एकरा-ओकरा पीछे पोंछी हिलावइत फिरे हे । अब सुनऽ ही कि रूस जाइत हे कुतवा । जेन्ने जाय के मन हउ, जो ! मर कोढ़फुट्टा ! अइसन पति ला तीज करबई कि दिन-रात सरापिते रहबई ।) (अमा॰177:10:2.5)
122 कोढ़िया (करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया ।) (अमा॰180:16:2.1)
123 कोना-सान्ही (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.16)
124 खँढ़ी (= खाँढ़ी) (तीन बरिस के जब हल दिवाकर, तब ऊ ममहर से अप्पन बाबू के साथे गाँव अयलक हल आउ लख पर सबसे पहिले दादा के गोड़ लाग के एगो सीसम के गाछी कबाड़ लेलक हल आउ अप्पन गाँव में घर के सामने बनल खँढ़ी में रोप देलक हल ।) (अमा॰175:13:1.12)
125 खँस्सी (= खस्सी) (कलयुग में अदमी के मुर्गा अहार हे । खाए में खँस्सी के कइसन बहार हे॥) (अमा॰181:17:2.19)
126 खजूर (तार-~) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.20)
127 खड़ड़-खड़ड़ (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल । केंवाड़ी के बाहर के सिकड़ी झनझनाए लगल । खड़ड़-खड़ड़ खपड़ा बजे लगल ।) (अमा॰182:13:1.22)
128 खन (= क्षण; कभी) (पहिले भी एगो काम न करल चाहऽ हलई, अब भी न करल चाहऽ हई । दिन-रात कातो देह में दरद रहऽ हई । खन पेट दरद, त खन माथा दरद, त खन कमर में दरद उपटल रहऽ हई । कँहरइत रहतो, ठुनकइत चलतो ।) (अमा॰180:14:2.9, 10)
129 खनती, खन्ती, खंती (= खनित्र) (एतना कह के बड़का भाई देवाल पर धाँय-धाँय खंती चलावे लगलन ।) (अमा॰178:19:1.11, 19, 29)
130 खपरी (जात के खपरी दरक गेल धरम के, पाँव लटकल हे कबर में करम के) (अमा॰175:17:2.18)
131 खपाची (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.21)
132 खम्हा (= खंभा) (बढ़ रहल दाम रोज, मौन सरकार हे । अन्हरा के रोसनी से कउन दरकार हे ? बिजली के खम्हा में तीने गो तार हे । मंत्री जी सोचऽ तनी, न्यूट्रल बेकार हे ?) (अमा॰178:8:2.17)
133 खरकट्टल (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.24)
134 खरच-बरच (अप्पन समान खरच-बरच करे में उनखा जादे मोह लगऽ हल आउ दोसर के खाय में तो नामे धरा गेल हल ।) (अमा॰186:6:2.9)
135 खरहरा (मुन्ना खेलौना ला रोधना पसार रहल हे । ओकर मट्टी के घोड़ा के टांग टूट गेल हे । ... सउँसे देह के खरहरा करऽ हल, मुँह में चना के दाना सटावऽ हल आउ गियारी में रस्सी बाँध के घिसियावऽ हल ।) (अमा॰175:5:1.3)
136 खाँची (हम्मर दुन्नो बेटा बेरोजगार हे । फुटानी झाड़े में समय गँवा देहे, मगर मटखान से मट्टी लावे में ऊ बेइज्जती महसूस करऽ हे । हम तो खाँची में मट्टी माथा पर ढो के लावऽ हली, ऊ बोरा में मट्टी भर के साइकिल पर भी न लावऽ हे ।) (अमा॰175:8:2.9)
137 खाद-पानी ('देवाल पर के पौधा में तो गजब के फल लगलइ हे !' -'हँ बाबूजी ! बाकि ओकरा पोषण कहाँ से मिललइ ? हम तो चाह के भी ओकरा खाद-पानी न दे पइली ।) (अमा॰181:13:1.28)
138 खुरछाड़ना (जग-जननी के दुत्कारऽ, सींघ से जमीं के खुरछाड़ऽ, दुइए साल पर लताड़ऽ, आवऽ बैल हमरा मारऽ ।) (अमा॰184:16:2.12)
139 खेत-पथार (बरसात के मौसम आयल हल । पानी से खेत-पथार हरिआयल हल ।) (अमा॰186:6:1.1, 4)
140 खेतिहर, खेतीहर (नरेन्दर के दू गो बहिन हल आउ ऊ बढ़िया खेतीहर किसान हल ।) (अमा॰179:12:1.4)
141 खेती-गिरहस्थी (राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । उन्हकर राय के बिना खेती-गिरहस्थी के एक्को काम न होवे वला हे ।) (अमा॰178:16:1.27)
142 खेती-बारी (धनपत अप्पन बेटा हलखोरी के तीसरा-चौथा किलास तक पढ़ला के बाद पढ़ाई छोड़ा देलक । खेती-बारी तो कमे हल आउ गाँव-घर में मजूरियो मिले में दिक्कते हल ।) (अमा॰175:14:1.2)
143 खेयाति (= ख्याति) (एगो आदर्श शिक्षक के रूप में उनकर खेयाति दूर-दूर ले फैलल हल ।) (अमा॰186:10:1.24)
144 खेसारी (= खेसाड़ी) (चनवा मटरवा खेसारी फुलायत, देख के किसान के मन अगरायत ।) (अमा॰177:17:1.24)
145 खोंइछा (मगही माय के खोंइछा में रगन-रगन के फूल भरेवाली पुष्पा अर्याणी के जलम उनतीस मार्च उन्नीस सौ एकतीस ई॰ के पटना सिटी के मच्छरहट्टा गली में भेल हल ।) (अमा॰177:5:2.21)
146 खोंखी (सरदी-~) (कुछ दिन काम कैला के बाद ओकर तबियत खराब भे गेल । सरदी-खोंखी के साथे-साथे देह में कमजोरी बुझाय लगल । गते-गते आँख के रोसनी कम होवे लगल ।) (अमा॰175:14:1.14)
147 गंडी (खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।) (अमा॰178:17:1.2)
148 गइया (बरसात के पानी में घास पोरसा भर के भेल हल । भर ठेहुना पानी में फराक समेट के ऊ थोड़े देरी में घास काट के गइया भिर रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.30)
149 गट्ठल (~ देह) (बेटा के भविस देख परवतिया चिंतित रहे लगल । खिलल चेहरा, गट्ठल देह गले लगल ।) (अमा॰178:7:1.1)
150 गड़गटाइन (= गरगटाइन) (धुआँ नरेटी में गड़गटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल ।) (अमा॰182:13:2.25)
151 गड़ाँसा (= गँड़ासा) (कजै खेल-तमाशा हे, पिजा रहल गड़ाँसा हे । कजै लौटरी हे, कजै बिछ रहल पासा हे ।) (अमा॰185:16:1.25)
152 गड़ेरिया (दुनिया के बहुते देस के छात्र प्रसिद्द नालन्दा विश्वविद्यालय में पढ़ के ज्ञान पयलन हे । फाहियान, ह्वेनसांग, इत्सिङ, मेगास्थनीज आदि ज्ञान पयलन । गड़ेरिया के ईमानदारी-सच्चाई पर ऊ मोहित हलन आउ लिखलन कि भारत के सधारन अदमी भी ईमानदार हे ।) (अमा॰181:7:2.26)
153 गढ़ुआना (हमनी ई बूढ़ा-बूढ़ी के कउन दुख देली हे । तीनों टाइम खाए लागी मिलहीं जाइत हइन । इहे चलते गढ़ुआ गेलन हे दुन्नो ।) (अमा॰184:8:1.22
154 गदानना (अब तक तो भउजाई एगो डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के । पड़लो-हरलो पर मदद न करऽ हलई । तनिक्को न गदानऽ हलई । दुआरी पर चढ़े न दे हलई । अब बिलाई बनल सटकल रहतई डरे । कखनी हिस्सा बँटा लेत भाई जकत ।) (अमा॰180:14:1.14)
155 गनउरा (= गोबर और कूड़ा-करकट का सड़ा रूप, खादर; गोबर, कूड़ा आदि इकट्ठा करने का गढ़ा या ठेर, घूर) (दुआरी के बहरी गनउरा लेले जाइत सँचइयावली सुनके झनके लगे । गली में से गुजरइत मेहरारू सब से अप्पन सफाई देवे लगे -'अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई ।') (अमा॰180:13:1.5)
156 गरवइया (= गरवैया) (सभे चिरइयाँ के बीच गोरैया, गरवइया, गोरइया आदि के नाम से परसिद्ध ई पक्षी संसार के प्रायः सभे अइसन जगह पावल जाहे, जहाँ न जादे गरमी रहे, न जादे जाड़ा ।; बहेलिया लोग द्वारा गरवइया के बगेरी के टोकरी में लाके गाँहक के हाथ बेच के धन कमाए के कारन भी एकर जान पर खतरा बन गेल हे ।) (अमा॰185:18:1.22, 2.20)
157 गरान (= ग्लानि, लज्जा) (हम अप्पन करनी पर गरान महसूस कर रहली हे ।) (अमा॰177:12:2.28)
158 गलवाती-घराना (पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर ।) (अमा॰175:7:1.17,18)
159 गली-कुची (गाँव-देहात के हाट-बजार इया गली-कुची में बिके वला खेलौना में आजो ई भाव मौजूद हे ।) (अमा॰175:5:1.13)
160 गाँव-घर (जब-जब बुढ़िया के तबियत खराब हो जाए, गाँव-घर के लोग रमरतिया के खबर कर दे हलन ।; गाँव-घर के लोग फुलवा के बेटा हीं भी खबर दे हलन कि तोर माय के तबियत खराब हउ ।) (अमा॰179:10:1.15, 20)
161 गाँहक (= ग्राहक) (खेलौना के दोकान में न तो सजावट, न सफाई, न मरकरी ट्यूब के चकाचौन्ध, न गाँहक के सोआगत ला मीठ बात के फुलझड़ी ।; बहेलिया लोग द्वारा गरवइया के बगेरी के टोकरी में लाके गाँहक के हाथ बेच के धन कमाए के कारन भी एकर जान पर खतरा बन गेल हे ।) (अमा॰175:5:2.5; 185:18:2.20)
162 गादा (मटर के गादा साथ भात में सब्जी में बहुत बनऽ हे । सबसे निखित अन्न हे मड़ुआ सेकरो जरूरत पड़ऽ हे॥) (अमा॰181:15:1.20)
163 गिंजन (कोई कहे -'सब दुख भगवान देवे, बाकि बेटी-दमाद घरे रहे वला दुख न देवे । बड़ी तौहीनी होवऽ हे ।' कउनो कहे -'कउची तौहीनी होवऽ हई गे ! बेटा-पुतोह भिर गिंजन न होवई ? कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ? ई दमदा घरे हई, सेई से ? बेटवा घरे रहतई हल, त पुतोहिया गोदी में खेलौतई हल ? बइठा के दूध-भात खिलौतई हल ?') (अमा॰180:13:2.10)
164 गिटिर-पिटिर (अइसन गिटिर-पिटिर संस्कृत तो कोई बोल सकऽ हे ।) (अमा॰186:12:1.23)
165 गिरफ्त (बाकि जउन एकर गिरफ्त में आ जा हथ, उनका एकर पकड़ से निकलना मोस्किल हो जाहे ।) (अमा॰185:3:2.23)
166 गुड़ के तिलकुट गया के दुन्नो पट्टी बने के नयका जगह के रूप में एक देन्ने 'डंगरा' त दोसर देन्ने 'टिकारी' के नाम आवऽ हे ।) (अमा॰180:18:1.11)
167 गेन्हाल (गेन्हाल चदरिया धुलतइ कब, कल आज बदलतइ जबतक नयँ ।) (अमा॰183:6:1.32)
168 गोड़थारी (बड़ेरी के फाँफर से बुनी के पानी चुअइत हल । गोड़थारी तर के आधा बिछौना भींग गेल हल ।) (अमा॰182:13:1.2)
169 गोड़पड़िया, गोड़परिआ (< गोड़+पड़ना) (= खुशामद, अनुनय-विनय) (जब ले टका न दीयइ ओकरा, हमहीं ओकर सबसे जिगरी। हाय दया दिल में आ जा हइ, पड़ल देख ओकर मुँह फेफरी॥ करवट लेइत रात गँवावइ, पौ फटते ही करइ गोड़पड़िया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.5)
170 गोड़यतिन (राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । .... बेकत भी नामे के गोड़यतिन हथ । बेवहार में केकरो कान काटे वाली । कहिओ उरेबी वचन उन्हकर मुँह से न निकले ।) (अमा॰178:16:2.25)
171 गोड़ापाही (अध्यक्ष जी गोड़ा-पाही करके बैंक में पइसो मंगा लेलन हे ।) (अमा॰185:17:2.13)
172 गोड़ायत (राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । उन्हकर राय के बिना खेती-गिरहस्थी के एक्को काम न होवे वला हे ।) (अमा॰178:16:1.25)
173 गोदाल (फिन गोदाल होयल कि एगो कविता आउ पढ़ल जाय, त हम जादे खुसामद न करइली आउ दोसर कविता 'गेल गुजरल' पढ़ली ।) (अमा॰176:8:2.9)
174 गोबर-गोइँठा (पुतोहिया मना करऽ हई -'काहे ला बर्तन मलऽ ह नानी ? झाड़ू-बहारू काहे ला करऽ ह नानी ? काहे ला गोबर-गोइँठा करऽ ह ? बनवऽ त तनि-मनी लइका-फइका धर ल आग जोरे तक ।'; अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ?; गोबर-गोइँठा करे के एकरा हूब हई ?) (अमा॰180:13:1.12, 15, 18)
175 गोल-गोल (~ बतिआना) (तोरा सबके विपत्ति के घड़ी मेंं काम चला देली । अब तोहनी सब आज गोल-गोल बतिआ रहले हें । मरद-मेहरारू दुन्नो के एक्के विचार हउ । पइसा देवे के तोरा सबके नीयत न हउ ।) (अमा॰181:11:1.30)
176 गोहना (जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
177 घचाक (सड़क के पार खेत के हरियरी में मन भुलायल रहल । अचानक एगो गहिरा में तांगा के पहिया घचाक से पड़ल आउ फचाक से कादो उड़ के हम्मर साड़ी पर पड़ गेल ।) (अमा॰183:11:2.13)
178 घरखनहा (पउआ लयलूँ पाटी लयलूँ आउ बनयलूँ खाटी, ओकरो पर मोटका बइठ गेल घरखनहा अटपाटी ।) (अमा॰183:10:1.17)
179 घर-गिरहस्थी (पढ़ाई-लिखाई के साथ घर-गिरहस्थी के ज्यान जरूरी हे ।) (अमा॰178:11:1.30)
180 घिसियाना (मुन्ना खेलौना ला रोधना पसार रहल हे । ओकर मट्टी के घोड़ा के टांग टूट गेल हे । ... सउँसे देह के खरहरा करऽ हल, मुँह में चना के दाना सटावऽ हल आउ गियारी में रस्सी बाँध के घिसियावऽ हल ।) (अमा॰175:5:1.4)
181 घुंघटा (ढेर दिन घुंघटा में रखलऽ, अब घूंघट नऽ ओढ़बो हम । मुरुख बनाके हमरा रखलऽ, तोर बात नऽ सुनबो हम ।) (अमा॰177:7:1.25)
182 घुरना (= लौटना) (कल्हे तो ऊ घरे से गेबे कयलन हल । हुनका दिवाकर गाड़ी पर चढ़ावित कहलक हल कि दू दिन बाद घुर के अइहऽ, त फिन हम तोरा साथे चलबुअ ।) (अमा॰175:13:2.13)
183 घुरल (~ चलना) (अरे तोरा नियन केतना अफसर हम्मर आगे-पीछे घुरल चलतन । रोज आके सुबह-साम सलामी बजैतन ।) (अमा॰175:12:1.3)
184 घूरा (घूरा तर बइठल बूढ़ा, सुख-दुख के राग सुनावे । रूसल दुलहिन के घर में, बड़का सब खूब मनावे॥) (अमा॰179:17:2.6)
185 घोंटियाना (उहाँ पंडित लोग बड़ी सालीनता से पूजा करयलन, कोई तरह के बकझक न । पहिले तो हम सोचऽ हली कि इहों के पंडा सब घोंटियावे वला होयतन, बाकि अइसन कोई तरह के झंझट न हल ।) (अमा॰183:14:1.22)
186 घोड़-सिम्मर (= घुड़सवार) ('घोड़-सिम्मर' के ऐतिहासिकता पर नजर गड़यला से ढेर मानी पुरनकन बात अइना जइसन लउके लगऽ हे ।; घुड़सवार ठाकुर अजीत सिंह दोआरा स्थापित स्थल के नाम 'घोड़-सेवार' मुदा अपभ्रंश में 'घोड़-सिम्मर' कहल जाहे, जे देखे जुकुर हे ।; चाहे कारन जे रहे, घोड़-सवार ठाकुर अजीत सिंह दोआरा स्थापित शिवलिंग स्थल के घोड़-सिम्मर मुदा घोड़-सवार कहना तनिक्को गलत नञ् हे ।) (अमा॰175:7:1.14, 2.14, 8:1.17)
187 घोरताहर (जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
188 घोरना (= घोलना) (पुष्पा अर्याणी के बातचीत के ढंग बड़ी रोचक हल । ऊ अप्पन संवाद के ठेठ मगही आउ कविता के चासनी में घोरले रहऽ हलन ।) (अमा॰177:6:1.27)
189 चइतावर (सुबह प्रभाती होली में होलियाल चइत चइतावर । जेठ आउ बइसाख मास में, घर-घर सजल महावर॥) (अमा॰179:17:2.4)
190 चकचेहाना ('नोकरी करऽ हल रेलवे में !' हम जरी चकचेहा के बोलली ।) (अमा॰177:16:1.32)
191 चनन (= चन्दन) (अमा॰183:6:1.18)
192 चनरमा (= चन्द्रमा) (पूरब दिसा में असमान पर से चनरमा हुलके लगलन । चनरमा के मुँह पर दूध के छाली जइसन उज्जर-उज्जर बादल के टुकड़ा उड़इत हल ।) (अमा॰183:12:1.9)
193 चमकी (= चिमकी, पोलिथिन; पोलिथिन से निर्मित बैग, घोंघी आदि) (फुलवा खिचड़ी खयलक आउ एगो चमकी ओढ़ के धान के आरी पकड़ के चल देलक इस्कूल में पढ़े । आरी-पगारी पर पिच्छुल भेल हल ।) (अमा॰182:14:1.5)
194 चमोकन (चिन्तक ही पर देस-धरम के तनिको चिन्ता न करऽ ही । चमोकन नियन सत्ता से सटके अप्पन काम बनावऽ ही ॥) (अमा॰182:20:1.12)
195 चरवाहा (सबसे सुन्दर तो तोर भविष्य हे कि बिना कोई डिग्री लेले, सतवाँ फेल कर के भइंस चरइहें आउ सब चरवाहा पर शासन करिहें, रोब जमइहें ।) (अमा॰175:11:2.30)
196 चल-चलाव (जे बेचारा हे सीधा-सादा, दुनिया के चल-चलाव से हे दूर, ऊ समझल जा हे बड़का बेलूर ।) (अमा॰184:15:1.10)
197 चलते (= कारण) (ई तो खाली तोरा चलते मंगा के पिलवा देली, काहे कि तोरा पर अभी बहुत भारी संकट आयल हे ।; एही चलते तो हम बाबा के पास दउड़ के अइली हे ।; बिछउती करिया आउ बच्चा देवेओला हलइ, ई चलते करिया जरोहगर गाय दान करल बहुत जरूरी हे ।) (अमा॰185:10:2.9, 29, 11:2.26)
198 चा (= चाचा) (मुँह सम्हार के बात करऽ गोपाल चा ! न तो ठीक न होतवऽ ।) (अमा॰184:8:2.14)
199 चिपरी (ओन्ने धनेसरी मसुरी के दाल आउ उसना चाउर के फेंट के धोलक आउ तसला में मट्टी के लेवन देके चुल्हा में आग जोड़ देलक । तनी-मानी गोइँठा के चिपरी पर मट्टी के तेल डाल के सलाई से धरा देलक, बाकि बार-बार आग बुता जाए ।) (अमा॰182:13:2.18)
200 चिरकउनियाँ (माहटर साहेब से कह दे । तोरा किलास में सब चिरकउनियाँ बनैले रहऽ हउ ।) (अमा॰175:9:2.25)
201 चीन्हल-जानल (इलाका के कउनो चीन्हल-जानल अदमी पर जब एकर नजर पड़ऽ हे, तब ई कटल चाहऽ हे ओखनी से ।) (अमा॰177:17:1.4)
202 चीन्हा-परिचय (हम तो सोचली कि रामबाबू के चीन्हा-परिचय के कोई हथन ।; चीन्हा-परिचय होला पर ऊ दिल खोल के हमनी के खातिरदारी करे लगल ।) (अमा॰184:12:1.1, 2.12)
203 चुड़ी (~ चढ़ाना) (पउआ लयलूँ पाटी लयलूँ आउ बनयलूँ खाटी, ओकरो पर मोटका बइठ गेल घरखनहा अटपाटी । .... जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
204 चुड़ैल (एगो ढकना में आग सुलगा के दू-चार बेर भाँवर देलन, फिर मने-मन कुछ बुदबुदा के बोलला के बाद जोर से) जय दुर्गा ! जय भवानी ! बोल रे चुड़ैल ! तूँ इहाँ से भागऽ हें कि न ?) (अमा॰179:13:2.18)
205 चूड़ा-तिलकुट (कभी पूस या कभी माघ में परब तिल-सकरात पड़े । दूध-दही चूड़ा-तिलकुट आउ आलूदम पर हाथ फिरे॥) (अमा॰181:15:2.5)
206 चोखा (धुकुर-धुकुर करइत कइसहुँ खिचड़ी आउ चोखा बना के धनेसरी तसला के राख मड़पसौना से झाड़ के रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.3)
207 चौखट-केंवाड़ी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
208 छँहुरा (= छहुँरा) (पेड़ के छँहुरा) (अमा॰175:5:2.9)
209 छड़बिंदा (= छरबिन्हा) (छड़बिंदा के झाड़ न जाने, करइत के विष उतारे चलल हे । अइसन से सब चेतल रहऽ, गँठजोड़ में गिरह पड़ल हे ।) (अमा॰185:13:1.23)
210 छत-छप्पर (नीम गाछ के डाँढ़-पात से छत-छप्पर घर शोभऽ हे । दूध-लावा से नाग बाबा के पूजा-पाहुर होवऽ हे ॥) (अमा॰181:15:1.5)
211 छप्पन (~ चौके पाँच सौ) (सैकड़ो अनपढ़ गरीब के छप्पन चौके पाँच सौ बता के गलत सूद जोड़-जोड़ के ई पइसा हड़पले हथ ।) (अमा॰180:10:1.32)
212 छरपा-छरपी (बनरी सब अप्पन बचवन के छाती में साटले छरपा-छरपी करइत हल ।) (अमा॰183:13:2.22)
213 छरबिंदा (= छरबिन्हा) (छरबिंदा के झार न जाने, करैत के जहर उतार रहल । अइसन से सब चेतल रहऽ, गँठजोड़ में हे गिरह पड़ल ।) (अमा॰183:15:2.23)
214 छुपुर छइयाँ (माँझी रे, माँझी रे, माँझी रे ! अभी सपना के मंजिल हो दूर । छुपुर छइयाँ, छुपुर छइयाँ, हाय हइयाँ, हाय हइयाँ । लंगर गिरा मत कर, माँझी रे लड़कइयाँ ।) (अमा॰180:15:1.3)
215 छुर-छुर (~ मुतना) (तितकी से मत खेल बुतरुअन जर जैतो तोर हाथ रे, जे तितकी से खेले ऊ तो छुर-छुर मुते रात रे ।) (अमा॰179:6:1.15; 184:5:1.10)
216 छोट-छोट (दसवाँ पास हल, ई से ऊ घर-घर जाके छोट-छोट बच्चा के पढ़ावे लगल ।) (अमा॰177:14:1.17)
217 छोह (चुप रह तूँ ! जादे छोह मत देखाव ! तूँ कइसन लड़का हें, से हम जानइत ही । सब तोरे बदमासी हउ ।) (अमा॰175:10:1.18)
218 जन-मजूर (चटोरन के एक दिन अइसन संयोग बनल कि रामधनी बाबू के साथे उनखरे जन-मजूर, हर-बैल से थोड़े खेत में रोपा हो गेल । ऊ अप्पन घर में खान-पान, देवता-देवी आउ बैना-पेहानी के झमेला नञ होवे देलक ।) (अमा॰186:6:2.21)
219 जनार-खनार (= ज्योनार आदि) (परसों सावन के अमस्या हे । तहिने पंडित जी के जनार-खनार करा देहो आउ पहिलरोपा के सब समान ला देहो ।) (अमा॰186:6:2.26)
220 जनी (= जन्नी, औरत, स्त्री) (अपना के समझऽ ह तूँ नमरि, हमरा बूझऽ ह अठन्नी-चवन्नी, काहे कि हम हियइ जात के जनी ।) (अमा॰177:20:1.2)
221 जबह (एगो कसाई ओही चबूतरा पर रोज बकरा-बकरी के जबह करऽ हल आउ ओकर गोस्त बेचऽ हल । जब सांझ होवे लगल, तब ऊ कसइया दोकान-दउरी बढ़यलक, फिन चबूतरा के धो-पोंछ के सुखयलक ।) (अमा॰186:1:1.3)
222 जमुई (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
223 जर-जनावर (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.18)
224 जरोहगर (बिछउती करिया आउ बच्चा देवेओला हलइ, ई चलते करिया जरोहगर गाय दान करल बहुत जरूरी हे ।; इनकर दरवाजा पर अभी जरोहगर गाय आउ भइंस दुन्नो हे ।) (अमा॰185:11:2.26)
225 जाँतना (ई सब विचार करके दूसरा दिन अप्पन बेटी के काँख तर जाँतलक आउ ट्रेन पकड़ के आ गेल पटना ।) (अमा॰177:14:1.14)
226 जाप-जुप (सगरे धुआँ उठ रहल हे, दुनिया में जहर फयलावऽ हे । जाप-जुप होम ई की हे, ढोंग-ढाँग अपनावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.20)
227 जितिया (आसिन पहिला पख अठमी में जितिया परब कहावऽ हे । बेटा जुग-जुग जीये जग मेम मन से माय मनावऽ हे॥; जितिया में खायल जाहे मड़ुआ के रोटी, नूनिया साग आउ कन्दा के टोटी ।) (अमा॰181:15:1.18; 185:15:2.2)
228 जी-हुजूरी (~ बजाना) (हरे तूँ कउन अइसन चीज बनमे कि तोरा अफसर लोग आगे-पीछे करतन आउ जी-हुजूरी बजैतन ।) (अमा॰175:12:1.7)
229 जुटावल (सधारन परिवार के एकबैक एतना पइसा जुटावल असान काम न हे ।) (अमा॰185:12:1.19)
230 जुट्ठा (कउनों-कउनों खाय के बाद बचल-खुचल जुट्ठा ओकरा देके आगे बढ़ जा हलन ।) (अमा॰177:16:1.8)
231 जुट्ठा-कुट्ठा (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.11)
232 जुलुम (मुगल काल में इस्लाम के नाम पर न जानि केतना जुलुम होयल हल ।) (अमा॰186:3:1.27)
233 जूठा-सखरी (अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.13)
234 जेजा (= जेज्जा, जिस जगह पर, जहाँ) (जेजा ... ओजा) (जेजा समझ में सबके नयँ आवे ओजा हिन्दी करके भी सुना देली ।) (अमा॰176:8:2.7)
235 जेजा (= जेज्जा; जिस जगह पर, जहाँ) (बहादुर घोड़सवार जेजा मारल गेलन हल, ऊ स्थान 'घोड़-सिम्मर' आझो अप्पन व्यथा कहे ला अकुला रहल हे ।) (अमा॰175:7:2.31)
236 झँमठगर (= झमठगर) (गाँ के बहरसी एगो पीपल के झँमठगर पेड़ हल जेकरा ओकर बाबूजी रोपलन हल ।) (अमा॰177:13:2.17)
237 झउराना (प्रीति जिनकर खून में बउरा रहल हे, गीत बन के खून में झउरा रहल हे ।) (अमा॰176:12:2.5)
238 झकास (रुसल धरती विधुकल अकास, उगल रउदा सगरो झकास ) (अमा॰180:1:2.2)
239 झटास (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल ।) (अमा॰182:13:1.20))
240 झनकना (दुआरी के बहरी गनउरा लेले जाइत सँचइयावली सुनके झनके लगे । गली में से गुजरइत मेहरारू सब से अप्पन सफाई देवे लगे -'अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई ।') (अमा॰180:13:1.6)
241 झमर-झमर (एकाएक गड़-गड़ कर के बादल गरजल आउ झमर-झमर बुनी पड़े लगल ।) (अमा॰182:13:1.6)
242 झमाझम (~ बरखा) (ऊ जीवन भर मट्टी में से सोना पैदा करे ला तपस्या करइत रहऽ हे । तपइत धूप, कनकन जाड़ा आउ झमाझम बरखा भी ओकर साधना के भंग न कर पावऽ हे ।) (अमा॰179:3:1.10)
243 झरबेरी (मन में रसल-बसल हे सबके, अप्पन-अप्पन गाँव । परदेसी के घर पहुँचे ला, तेज चल रहल पाँव ॥ झरबेरी जामुन के नीचे, बुतरू कयले शोर । बिन फैसन आभूषण के भी, लगे जुअनकी गोर॥) (अमा॰179:17:1.18)
244 झाँखर (साथ भेल झाड़ आउ झाँखर, बिसर गेल अब कबीर के ढाई आखर, झुट्ठे उछाह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.16)
245 झाझा (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
246 झाड़-फूँक (शंकर महरा ! तूँ जल्दी से झाड़-फूँक के समान अंगना में ले आवऽ । आउ हँ, एक लोटा पानी भी ले आके खटिया के पा रख दऽ !) (अमा॰179:13:2.2, 14:2.14)
247 झिंझरी (झिंझरी बजा-बजा थक गेलूव तइयो भी नयँ जागल । घोड़ा बेच के सुतल कइसन कउन नीन में पागल ?) (अमा॰178:8:1.1)
248 झिसी-झिसी (सुबह तक पानी न छूटल । झिसी-झिसी पानी पड़तहीं रहल ।) (अमा॰182:13:2.1)
249 झिहिर-झिहिर (झिहिर-झिहिर बहइत बेयार से पेड़ के पत्ता सब थरथराइत हल ।) (अमा॰184:12:2.5)
250 झींकना (गली में दुआरी पर बइठल सँचइयावली के मइया झींकइत रहऽ हे - हमरो एगो बेटा रहत हल, त काहे ला ई बेटी-दमाद के दुआरी अगोरती हल ? सब चीज ला परसमींदा होइती हल, कृपनी बनल रहती हल ?) (अमा॰180:13:1.2)
251 झीसी (हल्का-हल्का झीसी पड़े लगल आउ बरसाती बेयार बहे लगल ।) (अमा॰184:11:1.29)
252 झुमटा-झुमरिया (रंग अबीर-गुलाल में डूबल, सब गा रहल झुमटा-झुमरिया, मधुर बसंत के बहल बेयरिया ।) (अमा॰178:7:2.30)
253 झुलंगा (= झोलंगा) (करीब साठ साल के राघवानन्द पूरे लिलार पर तिरपुंड लगयले रहथ । नीचे पतलून पर ऊपर से झुलंगा बाघी रंग के कमीज पेन्हले रहथ । हाथ में एगो बकुली हरदम लेले रहथ ।) (अमा॰178:17:1.21)
254 झुल्फी (टमटमवाला सिनेमा के हीरो जइसन झुल्फी लहरा के गला में रुमाल बांध के किसिम-किसिम के स्टाइल में बतिआय लगल ।) (अमा॰183:10:2.6)
255 झूँजल (छुट्टी भेला पर घरे आयल, त इहाँ फिर उहे खिचड़ी तिसिअउरी आउ एगो अमड़ा के झूँजल फाँक ।) (अमा॰182:14:1.20)
256 टंगना (संज्ञा) (गोर रे बदन पर जे तोरा सोहइ गोदना । अँखियन तो टंग जाहे जइसे टंगइ टंगना ।) (अमा॰184:20:1.4)
257 टगना (हम फिरी में दारू पीये के बात कह देली, तब बुरा तो लगबे करतवऽ । घरे जाके देखऽ । एन्ने दारू पीके तूँ टग रहलऽ हे, ओन्ने तोहर बेटा-बेटी भुक्खे टग रहलो हे ।) (अमा॰183:8:1.7, 8)
258 टटाना (भुक्खे ~) (ई राजनीति तो ससुरा हम्मर घर तक घुस आयल हे । आज ई लावऽ, न तो खाना न बनतो, आज ऊ लावऽ, न तो भुक्खे टटा ।) (अमा॰178:5:1.18)
259 टन-टुन (जमीन्दारी जीवन तो उन्हका जीना न हे, से सब कुछ ठीक-ठाक हे । कहियो घर में टन-टुन होते उन्हका हीं न देखलक कोई ।) (अमा॰178:16:2.32)
260 टपर-टपर (~ लोर चूना) (अमा॰176:17:1.23)
261 टाट (दलित के लड़कन ऊँच जात के लड़कन के साथे बइठ न सकऽ हलन । पाठशाला में बइठे ला खुद अपने ऊ लोग के टाट ले जाय पड़ऽ हल ।) (अमा॰178:3:1.26)
262 टिकैत (पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर ।) (अमा॰175:7:1.18)
263 टिढ़ुआना (लइका लेले- लेले हम्मर कमर टिढ़ुआ गेल ।) (अमा॰182:13:2.32)
264 टिल्हा-टुकुर (दस साल पहिले गाँव में बाढ़ अलइ हल, तब सब घर-दुआर ढह के बाढ़ में बह गेलई हल । एन्ने-ओन्ने भाग-भाग के टिल्हा-टुकुर, चबूतरा पर बसेरा बनयलथिन हल सब ।) (अमा॰182:15:1.3)
265 टीक (= सर की शिखा या चोटी) (लोक लाज ताखा पर रख के, नारी बनल बिन परदा के । माथ के अँचरा कंधा पर गिरल, टीक घुमा रहल मरदा के ।) (अमा॰177:7:1.24)
266 टुटान (एगो छोटहन लकड़ी के टुटान चुल्हा में लगाके बाँस के पंखा से हउँके लगल आउ आँख मले लगल ।) (अमा॰182:13:2.23)
267 टुह-टुह (~ लाल; लाल ~) (एतने में टुह-टुह लाल साड़ी में साढ़े पाँच फीट के एगो भक-भक गोर नेपाली महिला परवेस कयलक ।) (अमा॰184:11:2.28)
268 टूटल-फूटल (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.22)
269 टोपरा (कातो फिर बेटिया-दमदा एगो टोपरवा बेचे ला कहित हई । नानी न कहित हई । मत बेच ऊ खेत, मेन सड़क पर हउ । उहाँ तक कुछ दिन में बजार आ जयतउ । लड़कन के रोजी-रोटी होतउ । बेटिया-दमदा मुँह फुलयले हई । भर-मुँह बोलई न, अइँठइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.21)
270 टोपरी (ओइसे फुफकारऽ हई धान ई टोपरिया में । पुरवा बयरिया में, धान के कियरिया में ।; ओइसहीं तो छिटकऽ हई धान ई टोपरिया में । पुरवा बयरिया में, धान के कियरिया में ।) (अमा॰182:17:1.28, 2.11)
271 ठटर (एकइसवीं सदी के आदमी, आदमी न कम्प्यूटर होयत, संवेदनहीन हाड़-मांस के बिना बनल ठटर होयत ।) (अमा॰180:17:2.26)
272 ठड़ी (उनकरे इयाद में ठड़ी हे ई इसकूल ।; मुचकुन के देख के बरहमदेव मुँह घुमा के ठड़ी हो गेल, लेकिन कान इधरे पारले रहल, ई जाने ला कि ड्राइवर से मुचकुन की बतिआ हे ।) (अमा॰176:13:1.5; 14:2.34)
273 ठामा (एक्के ~) ('ई जाके लिखलई, तबे न ऊ बेचलई ? न लिखतई हल, त कइसे बिकतई हल ?' -'ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई । बेटी बिआहे ला हे, त घर बनावे ला हे, त बड़ी बढ़िया धनहर खेत बिकइत हइ एक्के ठामा । उहाँ त कट्ठा-कट्ठी हवऽ, खेती-बारी ठीक ढंग से न होवो, कउन जयतो उहाँ रहे-सहे ?') (अमा॰180:13:2.26)
274 ठेंस (समय के फेरा देखऽ । एक दिन बुढ़िया के खाली ठेंस लगल, त ऊ जमीन पर गिर गेल आउ ओकर प्राण-पखेरू उड़ गेल ।) (अमा॰179:10:2.17)
275 ठोकाई (एक दिन सांझ के एगो ममूली बात पर बुढ़िया के बेस ठोकाई कैलन लोग ।) (अमा॰177:16:2.29)
276 ठोकाना (रात के खाय-पीये के बेवस्था होवे लगल । तरकारी तो बन गेल, फिर रोटी हाथे से ठोकाय लगल ।) (अमा॰185:6:1.4)
277 डग्घर (= डगर) (अभियो फिसिर-फिसिर पानी पड़इते हल । आरी-पगारी, डग्घर होवित फुलवा देरी से इस्कूल पहुँचल हल ।) (अमा॰182:14:1.10)
278 डरेस (= ड्रेस) (भोरे-भोरे जब बुतरुअन सभे कंधा में बस्ता टांग के आउ नीमन-नीमन डरेस पहिन के इसकूल जाइत रहऽ हलन, त ओही घड़ी सड़क के किनारे कुछ गरीब बुतरू हाथ में बोरा लेके कूड़ा में से कुछ चुनते रहऽ हलन ।) (अमा॰186:10:1.2)
279 डिरहार (घर घेरे लेल गउ-गोबर से चारो तरफ डिरहार शोभे ।) (अमा॰181:15:1.7)
280 डिलेवर (= डलैवर, ड्राइवर) ('की हो डिलेवर साहेब ! कउन साहेब अइलन हे ई गाड़ी में ?) (अमा॰176:14:2.32)
281 डेगाडेगी (समय के साथे-साथे लड़का सतरंगी दुनिया में डेगाडेगी देवे लगल ।) (अमा॰178:18:1.21)
282 डोभ (ई अगिया लगउनी बुनी तो छूटे के नामे न लेइत हई । बिहने कइसे हम खाए बनयबई ? चुल्हवा तर तो डोभ पानी लग जतई ।) (अमा॰182:13:1.13)
283 ढिलाही (= ढिलाई) (माली के काम में बहुते ढिलाही हे । बाग मुरझाइत हे, काहे लापरवाही हे ?) (अमा॰178:8:2.21)
284 ढेरमानी (= ढेर मानी) (एकरा अलावे ढेरमानी कविता, गाना, कहानी, नाटक आदि बनावल गेल हल, जे प्रकाशित होवे ला बाट जोह रहल हे ।) (अमा॰186:15:1.28)
285 ढेला-ढुकुर (टीसन के एकांत सुनसान जगह में एगो बुढ़िया बराबर देखाई पड़ऽ हल । ऊ अपने-आप कुछ बुदबुदाइत रहऽ हल । लइकन ओकरा पर बराबर ढेला-ढुकुर फेंकित रहऽ हलन ।) (अमा॰177:16:1.3)
286 ढोंग-ढाँग (सगरे धुआँ उठ रहल हे, दुनिया में जहर फयलावऽ हे । जाप-जुप होम ई की हे, ढोंग-ढाँग अपनावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.21)
287 तखनी ('वन टू थिरी' सुनइते सब्भे लट्टू नचावे लगलन हल । तखनी तो सब्भे बुतरू पहिले-दुसरा किलास में पढ़ऽ हल, फिर भी अंग्रेजी के दु-तीन गो सबद सिरिफ बोलवे नैं करऽ हल, ओकर अरथो समझऽ हल ।; तखनी तो एगो मुकुंदिये पाँड़े के पराती सुने ला मिलऽ हल ।; हमरा तो तखनी बिछुए काट गेल हल ।) (अमा॰176:13:2.20, 29, 14:1.24)
288 तखनौ (= तखनियो; उस समय भी) (अंग्रेज सिपाही हिनखा सकरी के घाटे पर मौत के घाट दतार देलक आउ नदी के पानी हिनखर खून से लाल रत-रत भे गेल । तखनौ हिनखर करेजा आधा मन के हल, जेकरा देख के अंग्रेज दाँत तर अंगुरी चाँप लेलन हल ।) (अमा॰175:7:2.28)
289 तनी-मानी (= तनि-मनि) (फुलवा के तनी-मानी सिहरावन लगे लगल, त ऊ आके मइया के बगल में घुस के बइठ गेल आउ मइया के अँचरा तान-तान के खींचे लगल ।; तनी-मानी गोइँठा के चिपरी पर मट्टी के तेल डाल के सलाई से धरा देलक, बाकि बार-बार आग बुता जाए ।; फुलवा ! ए फुलवा ! तनी-मानी गइया ला हरियरी काट के लेले आव तो ।; साँझ भेलइ, त तनी-मानी पानी छुटला के बाद फिर फिसफिसाए लगलई ।) (अमा॰182:13:1.22, 2.18, 14:1.22, 31)
290 तबराक, तबड़ाक (= अनु॰तड़ाक; चपत, थाप, थप्पड़) (देवाल के उ तरफ का हम्मर उहे बेटा नियर प्यारा भाई हे, जेकरा पर कल तक हम तबराक चला दे हली ...., हम तो ओकरा डेरावे लागि कहली, बाकि ऊ तो सच में ... कल मंझला भी एगो भित्ति उठा देत ?) (अमा॰178:19:1.3)
291 तरकुल (= ताड़ खजूर का छोटा नया पेड़) (तरकुल के छाँह भेल जिनगी । रेत भेल नदी के कहानी, खउलइत हे दिन जइसे अदहन के पानी, चूल्हा के धाँह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.1)
292 तरसीना (ई तो बड़ी अच्छा कानून बनलई हे । तब तो भउजाई एगो लुगवो ला तरसीना न बनौतई । अब तक तो भउजाई एगो डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के ।) (अमा॰180:14:1.12)
293 तसला (एक दिन ले अयलो कनेमा भरल तसला पानी ।; देखहूँ मइया ! बीचे तसला महादेजी के पीड़ी ! नानी मललथी हे । देखली त देखइत ही कि बीचे तसला में भात के लोंदा झलकइत हे ।; अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:13:1.22, 23, 24, 14:2.14)
294 तार (~-खजूर) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.20)
295 तितिर-बितिर (एकरा से हमरा समझ से, बाप-दादा के धन-सम्पत्ति तितिर-बितिर हो जयतई, एकदम से बंदरबाँट । पहिलहीं से सम्पत्ति एतना टुकड़ा-टुकड़ा हो गेलई हे कि सबके ऊँट के मुँह में जीरा लगऽ हई । अब तो आउ छितरा जयतई ।) (अमा॰180:14:1.18)
296 तिरोदसी (= त्रयोदशी तिथि) (फागुन माह के कृष्ण पक्ष में तिरोदसी जहिया होवे । महादेव शिवजी के शादी हरेक साल तहिया होवे॥) (अमा॰181:15:2.14)
297 तिलकुट (इहे टिकारी के गुड़ के तिलकुट भी खूबे परसिद्ध हे ।) (अमा॰180:18:1.7)
298 तिल-सकरात (कभी पूस या कभी माघ में परब तिल-सकरात पड़े । दूध-दही चूड़ा-तिलकुट आउ आलूदम पर हाथ फिरे॥) (अमा॰181:15:2.4)
299 तिसिअउरी (छुट्टी भेला पर घरे आयल, त इहाँ फिर उहे खिचड़ी तिसिअउरी आउ एगो अमड़ा के झूँजल फाँक ।) (अमा॰182:14:1.20)
300 तीज (हँ, कल हवऽ तीज परब । दिन भर निर्जला उपवास करऽ आउ परसों जाके पारन करिहऽ ।; पति के सुख ला तीज करे के चाही सब्भे औरत के ।; अइसन पति ला तीज करबई कि दिन-रात सरापिते रहबई ।; पति देवता रहे, तब जरूर करे के चाही तीज । मगर जब ऊ जनावर-राकस बन जाये, तब काहे ला कोई तीज करत ?; पहिले कुटम्मस होयलो पर पति लागी तीज बरत करऽ हल औरत, ओही औरत आज विरोध करे लागी तइयार हे कमर कसके ।) (अमा॰177:10:1.23, 26, 2.5, 8, 9, 12)
301 तीन-तेरह (~ बतिआना) (ई तो पक्का धोखेबाजी भेल । एकरा न धोखेबाजी कहम, त आउ केकरा कहम । मेहरारू के इलाज ला सूद पर पइसा माँग के लावे आउ सूद माँगला पर तीन-तेरह बतिआवे ।) (अमा॰181:11:1.10)
302 तीरना (= घींचना) (कुछ घींच-तीर के वकीली पास करतन आउ करिया कोट चढ़ा के कोट में चिनिया बेदाम फोड़इत रहतन ।) (अमा॰175:11:2.24)
303 तोपाना (लउटे घड़ी देखते-देखते हमनी के बस काठमांडू के पहाड़ी रस्ता पर आगे बढ़े लगल, त पता चलल कि आज चनरमा भी उदास हे, सहमल हे । ओकर आधा से कम चेहरा असमान के करिया ओढ़ना में तोपायल हे आउ शांत दृष्टि से ऊ हम्मर मुँह के निरेख रहल हे ।) (अमा॰184:14:2.21)
304 तौहीनी (कोई कहे -'सब दुख भगवान देवे, बाकि बेटी-दमाद घरे रहे वला दुख न देवे । बड़ी तौहीनी होवऽ हे ।' कउनो कहे -'कउची तौहीनी होवऽ हई गे ! बेटा-पुतोह भिर गिंजन न होवई ? कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ? ई दमदा घरे हई, सेई से ? बेटवा घरे रहतई हल, त पुतोहिया गोदी में खेलौतई हल ? बइठा के दूध-भात खिलौतई हल ?') (अमा॰180:13:2.8, 9)
305 थकनी (थकनी के मारे नींद में भी उनकर मुँह से तनि-तनि कराह निकल रहल हल ।) (अमा॰186:18:1.28)
306 थम्भ (= स्तम्भ) (चारो तरफ रंग-बिरंग के पेड़-पौधा लगावल हल । तुलसी के बिरवा, केला के थम्भ बड़ी मनभावन लग रहल हल ।) (अमा॰185:5:1.24)
307 दखिनाहा (= दखनाहा) (बूढ़ा बरगद तर बइठल सब, गाय करे हे पागुर । पुरवा पछिया दखिनाहा भी, हवा चले हे फुर-फुर॥) (अमा॰179:17:2.9)
308 दरवाना (दाल ~) (इनका जब हम्मर करेजा पर दाल दरवाहीं के सौख हलइन त पुरखन के काहे ला तारलन ?) (अमा॰178:6:1.5)
309 दरसनिया (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.9)
310 दारू-चिखना (इहाँ तोरा मुफत में दारू-चिखना मिल रहलउ हे, त हम्मर बात तो खराब लगबे करतउ ।) (अमा॰183:7:2.26)
311 दिक्कत-सिक्कत (बड़ी दिक्कत-सिक्कत से रामदेउआ मैटरिक पास करके दिल्ली में एगो फैक्टरी में काम करे लगल ।) (अमा॰177:9:1.20)
312 दिना-दिरिस (= दिन दहाड़े) (जेकरा देखइत हि ऊहे, महँगाई से हे पिटायल । पइसा फेंकू तमासा देखूँ तमासा देखूँ, दिना-दिरिस गरदन रेतूँ ।) (अमा॰176:16:2.5)
313 दिनौरा (~ गुदारना) (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
314 दियरी (जेन्ने-तेन्ने दउड़ऽ हई अप्पन नजरिया, दियरी के नीचे जाके रोवऽ हई अंधेरिया ।) (अमा॰186:17:1.23)
315 दिरखा-अलमारी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
316 दुःख-दलिद्दर (इहे असली पंचामृत हे । एकरा से सब दुःख-दलिद्दर भाग जतवऽ ।) (अमा॰186:12:1.3)
317 दुधगर (दूध-घीउ खाय लेल दस-बारह सेर दूध देवे वाली एगो लगहर गाय ऊ हरमेशा अप्पन गऊशाला में रक्खऽ हलथिन । उनकर दुधगर गाय पंडित दीन दयाल के आँख पर चढ़ गेल ।) (अमा॰186:5:1.9)
318 दुब्बर (= दुबला) (अमा॰180:17:2.10)
319 दुलरइतिन (~ बेटी) (अब तो दुलरइतिन बेटी भेलऽ ससुरइतिन, मानी लेहूँ मइया के बात बेटी हमरो ।) (अमा॰183:17:1.1)
320 दुलुम (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
321 दुसना (रमरतिया के टक्कर में दुल्हा तो न मिलल, बाकि ओकर दुल्हा के मड़वा में कोई दुसलक भी न ।; सगरो जेवार में फैल गेल ई बात, दुसे लगलन हमरा जात-परजात ।) (अमा॰179:10:1.1; 185:15:2.23)
322 दूध-लावा (नीम गाछ के डाँढ़-पात से छत-छप्पर घर शोभऽ हे । दूध-लावा से नाग बाबा के पूजा-पाहुर होवऽ हे ॥) (अमा॰181:15:1.6)
323 दूसर (= दोसर, दूसरा) (एगो कोना में तीन गो चउकी जोर के बिछावन, दूसर कोना में लड़कन सब के किताब आउ पढ़ेवला टेबुल, कम्प्युटर, कुरसी, तेसर कोना में गैस के चुल्हा, बरतन-बासन आउ चउथा कोना में बक्सा-पेटी आउ पूजा के मंडप ।) (अमा॰184:11:2.22)
324 देखताहर-सुनताहर (रजनी के मुँह से ई बात सुनते बूढ़ी के मुँह बन्द हो गेल आउ देखताहर-सुनताहर लोग भौंचक रह गेलन ।) (अमा॰179:19:2.13)
325 देखनगर (बुढ़िया उहईं रहऽ हल अलखे के साथे । ऊ घड़ी बड़ी देखनगर हल ई ।) (अमा॰177:16:2.2)
326 देवता-देवी (~ करना) (फूलकुमारी पुछलक -'अप्पन पहिलरोपा कहिया होयत ? अपनो जल्दी कर देतऽ हल, देवता-देवी कर देतूँ हल । सउँसे टोला से बैना-पेहानी चलऽ हई । एतना विधान आज नञ त कल तो करहीं पड़तई ।'; चटोरन के एक दिन अइसन संयोग बनल कि रामधनी बाबू के साथे उनखरे जन-मजूर, हर-बैल से थोड़े खेत में रोपा हो गेल । ऊ अप्पन घर में खान-पान, देवता-देवी आउ बैना-पेहानी के झमेला नञ होवे देलक ।) (अमा॰186:6:2.3, 22)
327 देवल (एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।; अब तक तो भउजाई डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के ।) (अमा॰180:14:1.5, 13)
328 दोकान-दउरी (एगो कसाई ओही चबूतरा पर रोज बकरा-बकरी के जबह करऽ हल आउ ओकर गोस्त बेचऽ हल । जब सांझ होवे लगल, तब ऊ कसइया दोकान-दउरी बढ़यलक, फिन चबूतरा के धो-पोंछ के सुखयलक ।) (अमा॰186:1:1.4)
329 दोहराना (दोहरा-तेहरा के) (गौतम जी के दू गो गीत में 'काहे कयलऽ अकाल' आउ 'चउहट' पढ़ली, पढ़े में एतना मन लगल कि दोहरा-तेहरा के पढ़इत रहली ।) (अमा॰186:4:1.25)
330 धंगचना (हम तो खाँची में मट्टी माथा पर ढो के लावऽ हली, ऊ बोरा में मट्टी भर के साइकिल पर भी न लावऽ हे । लात से धंगच-धंगच के कंकड़-पत्थल, झिटकी फुलावल मट्टी से निकालना तो दूर के बात हे ।) (अमा॰175:8:2.11)
331 धजा (= ध्वजा, झंडा, पताका) (धजा-पताका लहरे सगरो पवन-सुत से प्यार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे॥) (अमा॰181:15:2.28)
332 धनहर (~ खेत) ('ई जाके लिखलई, तबे न ऊ बेचलई ? न लिखतई हल, त कइसे बिकतई हल ?' -'ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई । बेटी बिआहे ला हे, त घर बनावे ला हे, त बड़ी बढ़िया धनहर खेत बिकइत हइ एक्के ठामा । उहाँ त कट्ठा-कट्ठी हवऽ, खेती-बारी ठीक ढंग से न होवो, कउन जयतो उहाँ रहे-सहे ?') (अमा॰180:13:2.26)
333 धनाड़ (रोज-रोज देखइत ही, दुःख भोगइत मरइत लोग, मरघट मसान-घाट जाइत, जरइत राख-मट्टी होइत लोग । तइयो न खुलइत हे, बन्द हे ज्ञान के किवाड़, अझुरायल भूल-भुलइया में, लोभ में बने के धनाड़ ।) (अमा॰179:17:2.19)
334 धप-धप (~ रउदा) (पुनिया के चांद नियन सोनवाँ के कंगना, धप-धप रउदा सन चनियाँ के गहना, लदल हे जे देहिया पर ओकरा की कहना । हो गेलो हे लोभ तोरा देख मोर गहना ।) (अमा॰184:20:1.6)
335 धरल के धरले (पहिले गइया दान करा लेवल जाय देवता जी ! न तो बाद में कुछ हो गेल त सब सपना धरल के धरले रह जायत ।) (अमा॰186:12:1.13)
336 धाँय-धाँय (~ खन्ती चलाना) (एतना कह के बड़का भाई देवाल पर धाँय-धाँय खंती चलावे लगलन ।) (अमा॰178:19:1.11)
337 धाँह (= धाह, दाह; आग की गरमी) (तरकुल के छाँह भेल जिनगी । रेत भेल नदी के कहानी, खउलइत हे दिन जइसे अदहन के पानी, चूल्हा के धाँह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.7)
338 धुकुर-धुकुर (धुकुर-धुकुर करइत कइसहुँ खिचड़ी आउ चोखा बना के धनेसरी तसला के राख मड़पसौना से झाड़ के रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.3)
339 धुरतइ (पंदरह दिन से हम्मर गाय तूँ अप्पन घरे बाँध के बाले-बच्चे ओकर दूध पीके गुलछर्रा उड़ावइत ह । अब तोर धुरतइ नयँ चलतो ।) (अमा॰186:5:2.25)
340 धूप-धूना (हँ हो शंकर ! गणना में तो कुछ गड़बड़ बुझाइत हे । तूँ आगे बढ़ऽ आउ दोकान से अगरबत्ती, धूप-धूना आउ लोहवान खरीद के रक्खऽ । घबराए के कोई बात न हे । हमरा उहाँ पहुँचइते सब ठीक हो जाएत ।) (अमा॰179:13:1.15)
341 धूप-हुमाद (सब मुरती के भोरे-भोरे नेहावल-धोआवल गेल, पूजा-पाठ, धूप-हुमाद भेल । सगरो हुमाद-अगरबत्ती के सुगंध पसरल हल ।) (अमा॰183:13:1.18)
342 नगीच (= नजदीक) (ब्रज प्रदेस के मथुरा क्षेत्र से मगध के राजगीर कोई नगीच थोड़िए हे । राह चलइत-चलइत तीनों के 14वाँ दिन हो गेल, तइयो एहनी मगध के सीमाना में न पहुँचलन ।) (अमा॰181:18:1.4)
343 नमरी (अपना के समझऽ ह तूँ नमरि, हमरा बूझऽ ह अठन्नी-चवन्नी, काहे कि हम हियइ जात के जनी ।) (अमा॰177:20:1.1)
344 नराज (= नाराज) (सरहज बोले से पीछे न रहलन -'पाहुन ! अपने बहुत दिन पर आवऽ हथिन की बात हे ? नराज हथिन का ?'; ससुर जी नराज होके बोले लगलन ...।) (अमा॰178:15:1.30, 16:2.4)
345 नरियर (= नारियर, नारियल) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.20)
346 नस्ता ( चाय-~) (उहाँ से एगो होटल में गेली, फ्रेस होके चाय-नस्ता कइली आउ अराम करे लगली ।) (अमा॰183:11:2.24)
347 नस्ता-पानी (बड़गाँव पहुँचला पर कुछ नस्ता-पानी करे के विचार से एगो ढाबा में रुकल गेल ।) (अमा॰185:5:1.13)
348 नाग पाँचे (= नागपंचमी) (नाग पाँचे के सुनऽ कहानी हरियर सावन मास में । आम पकल कटहर-कोवा के भाव रहे अकास में ॥) (अमा॰181:15:1.3)
349 निखित (= निषिद्ध ?) (मटर के गादा साथ भात में सब्जी में बहुत बनऽ हे । सबसे निखित अन्न हे मड़ुआ सेकरो जरूरत पड़ऽ हे॥) (अमा॰181:15:1.21)
350 निचलौका (पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर ।) (अमा॰175:7:1.19)
351 निछत्तर (= नछत्तर, नक्षत्र) (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।) (अमा॰175:9:1.8)
352 निमन-जमुन (जब तक शरीर में आत्मा हे, तब तक शरिर चल-फिर सकऽ हे, बोल-बतिआ सकऽ हे, इया कोई निमन-जमुन काम कर सकऽ हे ।) (अमा॰185:9:1.10)
353 नूनिया (जितिया में खायल जाहे मड़ुआ के रोटी, नूनिया साग आउ कन्दा के टोटी ।) (अमा॰185:15:2.3)
354 नेओता (= नेवता, न्योता) (हम्मर भाई आउ भउजाई के पलान बनल बड़गाँव जाके अप्पन बुतरुअन के मुंडन संस्कार करे ला । फुआ होवे के नाते हमनी तीनो बहिन के भी नेओता मिलल ।) (अमा॰185:5:1.5)
355 नेहाना (ई से ऊ राकस जइसन भयंकर दीखे लगलन । अब निचिंत होके कण्व ऋषि आश्रम के ऋषि-मुनि के साथे कुंभ नेहाय ला चल देलन ।) (अमा॰181:19:1.17)
356 नोचा-चोथी (केकरा से करम हम मुँह नोचा-चोथी ।) (अमा॰185:15:2.4)
357 पंडितई (हम्मर बस चलतइ हल, त हम गणेश पंडित के सब पंडितई निकाल देती हल ।) (अमा॰179:15:1.28)
358 पंडीजी (= पंडित जी) (अमा॰185:9:1.29, 2.11, 20, 24)
359 पउआ (पउआ लयलूँ पाटी लयलूँ आउ बनयलूँ खाटी, ओकरो पर मोटका बइठ गेल घरखनहा अटपाटी ।) (अमा॰183:10:1.16)
360 पउती (= ढक्कनदार गोल टोकरी, बाँस सींक आदि का बना बक्सा) (गुलाब के साइज एतवर लगे, जइसे कोई पउती हे ।) (अमा॰183:12:1.28)
361 पख (= पक्ष) (सावन पहिला पख पंचमी से परब के पसार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे ॥) (अमा॰181:15:1.1)
362 पखाना (जब ऊ बूढ़ी के बेडे पर पखाना हो गेल, तब ऊ लइकी तुरते परदा करके अप्पन माय के लुगा बदल देलक ।) (अमा॰186:20:1.14)
363 पगार (= ऊँची मेड़) (जवानी में तोरा से चौधरी टोला के कोई लड़की बचवो कैल हल ? तोरे डरे चौधरी लोग ताड़ी में जहर फेंटके बेटी के पिलावऽ हलन । पचास बरिस में भी कभी बगइचा में, त कभी पगार तक लइका-लइकी जौरे पकड़ा हलऽ । हमरा से आउ मत उकटवावऽ ।) (अमा॰178:17:1.32)
364 पचकल (जब कभी कोई बूढ़ा के बाल उड़ल देखे, मइल-कुचइल आधा फट्टल धोती पेन्हले, गोड़ में फट्टल बेवाय, अंगुरी में पानी लग के बजबजाइत गोड़, पचकल गाल, नस-नस हिगरायल हाथ से सतुआ सानइत देखे, त ओकर आँख मुंदा जाय ।) (अमा॰182:14:2.31)
365 पचमा (= पाँचवाँ) (माघ महीना पिछला पख के पचमा दिन जब आवऽ हे । रितु बसंत सब रितु के राजा ललक-धलक से धावऽ हे॥) (अमा॰181:15:2.9)
366 पचावल (= पचाना) (शिवदानी के पइसा पचावल कउनो असान काम न हे ।) (अमा॰181:11:2.22)
367 पजाना (= धार तेज करना) (रुखना लयलूँ बसुला पजयलूँ अकिलगर बढ़ई बोलयलूँ, खान-पान तो देवे कयलूँ कड़कड़ नोट गमयलूँ ।) (अमा॰183:10:1.19)
368 पज्जल (मर जयबऽ महंगी के पज्जल तलवार से । भाई-बहिन मिल-जुल के बदलऽ सरकार के ।) (अमा॰178:8:2.27)
369 पटउर (= पड़ा हुआ, बिखरा हुआ) (तिसरके दिन अंग्रेज अभियंता आउ ओकर चार सहयोगी काम करते-करते पटउर हो गेलन ।) (अमा॰176:18:2.6)
370 पटवन (= पटमन, सिंचाई) (खेत में पटवन करे ला नहर आउ नलकूप के निरमान करल जा रहल हे ।) (अमा॰179:3:2.23)
371 पटुआना (= शिथिल होना, सुस्त पड़ना; रोग आदि में उतार आना) (कइसे हिम्मत करूँ लड़े के, गजमस्तक ऊपर चढ़े के । कुंभकरन लेखा राणा, खरिहन्ने हे पटुआयल ।) (अमा॰176:16:2.12)
372 पट्टी (चारो ~) (एकाएकी सब लोग कविता पढ़ रहलन हल, विडियो कैमरा वला अप्पन काम कर रहल हल, कभी-कभी चारो पट्टी घुमा-घुमा के फोटो ले रहल हल ।) (अमा॰176:8:1.11)
373 पड़ल-हरल (ई तो बड़ी अच्छा कानून बनलई हे । तब तो भउजाई एगो लुगवो ला तरसीना न बनौतई । अब तक तो भउजाई एगो डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के । पड़लो-हरलो पर मदद न करऽ हलई ।) (अमा॰180:14:1.14)
374 पढ़निहार (हम जानइत ही कि तूँ पड़का पढ़निहार हें । माहटरे जब सुतल हे, तब लइकन का पढ़तइ ।) (अमा॰175:9:1.13)
375 पथल (= पत्थल) (एकाएक गड़-गड़ कर के बादल गरजल आउ झमर-झमर बुनी पड़े लगल । साथ में छोटा-छोटा पथलो पड़इत हल ।) (अमा॰182:13:1.6)
376 परकाना (हँ-हँ नन्दू ! तों कायथ हें न, एही गुने बोलऽ हें । कायथ तो आधा मुसलमान होबे करऽ हे । अब सादी-बिआह, मरनी-जीनी में एही चमरन के पूज, हमनी के पूज के की होतउ तोरा ! एकरे ला ने लेमोचूस खिला-खिला के परका रहले हें एकन्हीं के ?) (अमा॰176:14:2.11)
377 परकिरतिक (= प्राकृतिक) (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।) (अमा॰180:6:1.3)
378 परती (पानी बिना सूख रहल धरती, रोपा बिना खेत रहल परती ।) (अमा॰182:17:2.22)
379 परबइती (परबइती लोग अस्ताचलगामी सूरज के अरग देलन ।) (अमा॰185:5:2.30)
380 परब-त्योहार (हर राज्य में परब-त्योहार के परम्परा जिन्दा हे ।) (अमा॰175:6:1.18)
381 परयोजन (= प्रयोजन) (ई महिला आयोग के परयोजन हम नयँ समझलूँ ।) (अमा॰175:8:2.31)
382 परवान (~ चढ़ना) (जहाँ तक हमरा इयाद आवऽ हे सत्तर के दसक से जयराम बाबू के मगही-गीत के लोकप्रियता परवान चढ़े लगल हल ।) (अमा॰184:5:1.5)
383 परसमींदा (= पसमंदा, बेकार) (गली में दुआरी पर बइठल सँचइयावली के मइया झींकइत रहऽ हे - हमरो एगो बेटा रहत हल, त काहे ला ई बेटी-दमाद के दुआरी अगोरती हल ? सब चीज ला परसमींदा होइती हल, कृपनी बनल रहती हल ?) (अमा॰180:13:1.4)
384 परानी (ऊ कमायल मजदूरी माँगइत-माँगइत हमनी दुन्नो परानी थक गेली हल । अपने आज-बिहान कह-कह के टरकावित-टरकावित चार-पाँच साल बिता देली ।) (अमा॰181:11:1.20)
385 परिकरमा (= परिक्रमा) (धीरे-धीरे हमनी मंदिर के बगल वाला हाता में बढ़ली, जहाँ ढेरमानी शिवलिंग स्थापित हे । इहाँ बड़ी व्यवस्थित ढंग से परिकरमा आउ पूजा के नियम बनल हे ।) (अमा॰183:14:1.18)
386 परोर (उन्हकर कहना हे कि बिन सब्जी के गिरहस्थी कउन काम के । आलू, भिंडी, परोर, बैगन, टमाटर, मूली, साग आदि ला खास तरह के जमीन आउ ओकर तइयारी भी ।) (अमा॰178:17:2.2)
387 पहरुआ (गुप्तकाल में तो केतनन देवस्थल के पहरुआ के रूप में बाघ के नाम आवऽ हे, जे मगध के सीमा तर निवास करऽ हलन ।) (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।) (अमा॰180:6:2.8)
388 पहिरोपना (= पहिरोपा) (खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।) (अमा॰178:17:1.4)
389 पहिलरोपा (= पहिरोपा) (फूलकुमारी कहे लगल -'अप्पन टोला में आज चार किसान के हियाँ पहिलरोपा हल । बजरंगी बाबा, मनोहर चाचा, रमपुरवावाली आउ जिनखर ससुररिया मोहनपुर हको, उनखर नाम हम कइसे लियो, ऊ तो भैंसुर लगऽ हथिन ।') (अमा॰186:6:1.21, 2.2-3, 7, 13, 26)
390 पाप-पुन्न (अमा॰176:10:1.3)
391 पारन (हँ, कल हवऽ तीज परब । दिन भर निर्जला उपवास करऽ आउ परसों जाके पारन करिहऽ ।) (अमा॰177:10:1.23)
392 पिंज (= पुंज) (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.5)
393 पिच्छुल (गली में भर ठेहुना पानी भेल हल । ओरी के किनारे पिच्छुल भेल हल, से माथा पर गोइँठा के मउनी लेलहीं फुलवा गिर गेल ।; फुलवा खिचड़ी खयलक आउ एगो चमकी ओढ़ के धान के आरी पकड़ के चल देलक इस्कूल में पढ़े । आरी-पगारी पर पिच्छुल भेल हल ।) (अमा॰182:13:2.9, 14:2.7)
394 पिछलका (= पिछलौका) (मालिक ! अपने के पूरा इयाद होयत । दू साल पहिले अपने के खेत में लगातार पिछलका तीन साल भेड़-बकरी बइठइली हल ।) (अमा॰181:10:1.13)
395 पिछलगुआ (किलास में फस्ट होवे के कोसिस मत कर । तूँ रामटहल नियन पिछलगुआ बनल चल, बस ।; तूँ जान ले कि जे जिन्दगी भर पिछलगुआ रहऽ हे, ओही अदमी एक दिन सब के अगुआ बन जाहे ।) (अमा॰175:11:1.32, 2.5, 10)
396 पिछुला (= पिछुल्ला) (एसो बरसात झमाझम गोरी, चलिहऽ थम-थम गोरी, पिछुला हो गेलो अंगना ।) (अमा॰179:6:1.21)
397 पिजाना (= पजाना, धार तेज करना) (कजै खेल-तमाशा हे, पिजा रहल गड़ाँसा हे । कजै लौटरी हे, कजै बिछ रहल पासा हे ।) (अमा॰185:16:1.25)
398 पिटनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.5)
399 पिलुअहवा ('केकरा गरिआवइत हहुँ ?' -'तोरे पहुना, आनी अप्पन पिलुअहवा भतार के ...।') (अमा॰177:10:1.11)
400 पीड़ी (= पिंडी) (देखहूँ मइया ! बीचे तसला महादेजी के पीड़ी ! नानी मललथी हे । देखली त देखइत ही कि बीचे तसला में भात के लोंदा झलकइत हे ।) (अमा॰180:13:1.23)
401 पीढ़ा-पानी (भउजाई सोनपरी के देख के गोड़ लागलन आउ पीढ़ा-पानी देलन ।) (अमा॰177:13:2.27)
402 पुत्ती (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.25)
403 पूजा-पाहुर (नीम गाछ के डाँढ़-पात से छत-छप्पर घर शोभऽ हे । दूध-लावा से नाग बाबा के पूजा-पाहुर होवऽ हे ॥) (अमा॰181:15:1.6)
404 पूरनमासी (पूरनमासी के रतिया में दहन होलिका के होवे । बने फुलउड़ी बूँट के बजका पुआ-पूरी मन लोभे॥) (अमा॰181:15:2.21)
405 पेंघ (दुन्नो के बीच परेम पेंघ मारे लगल आउ ऊ आस्ट्रेलिआई सुन्दरी राजा गोपाल शरण के चरन में खुद के अरपित कर देलक ।) (अमा॰180:18:1.16)
406 पोख्ता (ऊ सब के खाय-पीये के पोख्ता इन्तजाम करम ।) (अमा॰176:10:2.13)
407 पोथी-पतरा (पंडितजी चउकी पर बइठ के पोथी-पतरा उलटइत हथ ।) (अमा॰179:13:1.2)
408 पोरसा (= पोरिस, पुरुष; खड़ी अवस्था में तलवा से लेकर उठे हाथ तक की ऊँचाई; कुआँ, नदी आदि की गहराई नापने की एक इकाई; साढ़े चार हाथ की ऊँचाई या गहराई) (बरसात के पानी में घास पोरसा भर के भेल हल ।) (अमा॰182:14:1.28)
409 फकड़ा (संसकिरितो पढ़लऽ हे ? ओमे एगो एसलोक हे -'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ... ।' बीचे में मुचकुन पाँड़े उखड़ गेलन हल -'रहे दे अप्पन फकड़ा । हम नैं सुने ला चाहऽ ही । माँस-मछरी खाय ओला आउ दारू पीये ओला भी अपना ला अइसन फकड़ा बनइते रहऽ हे । सतेआनास ! सतेआनास !' ) (अमा॰176:14:2.22, 23)
410 फक्कड़ (एन्ने जब डाकू लोग देखलन कि ई तो अइसन फक्कड़ हे कि मौत के मुँह में जाए घड़ी भी गाना-बजाना में लगल हे, तब ऊ सबन के मने बदल गेल ।) (अमा॰183:18:2.1)
411 फगुआ (पूरा फागुन फगुआ जइसन सरस गीत से गुंजल रहे । ढोलक झाल मंजीरा बाजे प्रेम राग में रंगल रहे॥) (अमा॰181:15:2.19)
412 फचाक (सड़क के पार खेत के हरियरी में मन भुलायल रहल । अचानक एगो गहिरा में तांगा के पहिया घचाक से पड़ल आउ फचाक से कादो उड़ के हम्मर साड़ी पर पड़ गेल ।) (अमा॰183:11:2.14)
413 फरका (= मिरगी, अपस्मार) (दस बरिस के उमर में दिवाकर के फरका आवे ला सुरू भेल । ओकर फरका के रोग खतम करे ला ओकर बाबू एँड़ी-चोटी एक कर देलन ।; दू दिन हमरा मोरियार आदि खेत में धान रोपे ला हे । तब हमहूँ घरे से निफिकिर हो जायम आउ फिर हमरा फरका के इलाज करइहऽ ।) (अमा॰175:13:1.19, 20, 2.16)
414 फरनी (खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।) (अमा॰178:17:1.2)
415 फाँफड़ (= फाँफर) (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल ।; सब जगह देखऽ घुमइत हे डाकू, खिड़की के फाँफड़ से दिखइत रहल ।) (अमा॰182:13:1.20; 183:17:1.25)
416 फाँफर (= फाँफड़) (बड़ेरी के फाँफर से बुनी के पानी चुअइत हल ।) (अमा॰182:13:1.1)
417 फाड़ा (छोटन -{फाड़ा में से सौ के नोट निकाल के श्याम के देहे} अरे सामो ! जाके एगो मुरगा लेले आव ।) (अमा॰183:7:1.3)
418 फिरी (= फ्री) (हम फिरी में दारू पीये के बात कह देली, तब बुरा तो लगबे करतवऽ । घरे जाके देखऽ । एन्ने दारू पीके तूँ टग रहलऽ हे, ओन्ने तोहर बेटा-बेटी भुक्खे टग रहलो हे ।) (अमा॰183:8:1.5)
419 फिसफिसाना (साँझ भेलइ, त तनी-मानी पानी छुटला के बाद फिर फिसफिसाए लगलई ।) (अमा॰182:14:1.32)
420 फुटना (= दूर होना) (अरे फुट ! फुट एहिजा से । अयले हें डागडर बने । जउन मजा दारू में हे, ऊ मजा गड़ी-छोहाड़ा आउ घीउ-दूध में कहाँ ?) (अमा॰183:8:1.15)
421 फुटानी (~ झाड़ना) (ऊ सिसक के कहलन -'हम्मर दुन्नो बेटा बेरोजगार हे । फुटानी झाड़े में समय गँवा देहे, मगर मटखान से मट्टी लावे में ऊ बेइज्जती महसूस करऽ हे ।') (अमा॰175:8:2.8)
422 फुसुर-फुसुर (~ बतिआना) (गलिया में खिड़की से दुबकल, फुसुर-फुसुर बतिआवऽ हऽ । सउँसे जग हे प्रेम के दुश्मन, काहे ला रोग लगावऽ हऽ ।) (अमा॰176:19:1.23)
423 फोटउआ (= फोटुआ, फोटो) ('केकर हई फोटउआ ?' -'ऊहे मुँहझौंसा के ।' -'केकरा गरिआवइत हहुँ ?') (अमा॰177:10:1.8)
424 बंदरबाँट (एकरा से हमरा समझ से, बाप-दादा के धन-सम्पत्ति तितिर-बितिर हो जयतई, एकदम से बंदरबाँट । पहिलहीं से सम्पत्ति एतना टुकड़ा-टुकड़ा हो गेलई हे कि सबके ऊँट के मुँह में जीरा लगऽ हई । अब तो आउ छितरा जयतई ।) (अमा॰180:14:1.18)
425 बइठारी (बेटा नवल बी॰ए॰ पास करके बइठारी के जिनगी जी रहल हे । अब तो ऊ काफी बाल-बच्चेदार हो गेल हे । तंगी के हाल में जी रहल हे ।) (अमा॰176:15:2.7)
426 बकर-बकर (~ करना) (चुप रह ! जादे बकर-बकर करबे त कुच्छो फल न मिलतउ ।) (अमा॰186:14:2.31)
427 बकिऔटा (= बकिअउटा) (ऊ पइसा तो हम्मर बकिऔटा हल, जे अप्पन औरत के इलाज के नाम पर अपने से निकाल के ले अइली हल ।; हम तो सूद के साथ अप्पन मेहनत के पइसा अपने से पा गेली । बहुत दिन के बाद हम्र बकिऔटा पइसा अपने हीं से निकलल । ओकरा अपने सूद के पइसा कहऽ ही ?) (अमा॰181:10:1.6, 2.6)
428 बकुली (करीब साठ साल के राघवानन्द पूरे लिलार पर तिरपुंड लगयले रहथ । नीचे पतलून पर ऊपर से झुलंगा बाघी रंग के कमीज पेन्हले रहथ । हाथ में एगो बकुली हरदम लेले रहथ ।) (अमा॰178:17:1.22)
429 बगेरी (बहेलिया लोग द्वारा गरवइया के बगेरी के टोकरी में लाके गाँहक के हाथ बेच के धन कमाए के कारन भी एकर जान पर खतरा बन गेल हे ।) (अमा॰185:18:2.19)
430 बजका (पूरनमासी के रतिया में दहन होलिका के होवे । बने फुलउड़ी बूँट के बजका पुआ-पूरी मन लोभे॥) (अमा॰181:15:2.22)
431 बजबजाना (जब कभी कोई बूढ़ा के बाल उड़ल देखे, मइल-कुचइल आधा फट्टल धोती पेन्हले, गोड़ में फट्टल बेवाय, अंगुरी में पानी लग के बजबजाइत गोड़, पचकल गाल, नस-नस हिगरायल हाथ से सतुआ सानइत देखे, त ओकर आँख मुंदा जाय ।) (अमा॰182:14:2.31)
432 बज्जड़ (= वज्र) (अब जेहु समय निकाल के हम चार लाइन लिखइत ही, त हिअउँ राजनीतिए के बज्जड़ पड़ जाइत हे ।) (अमा॰178:5:1.15)
433 बड़जात (अइसन अदमी तो चिरागो लेके ढुँढ़ला पर नैं मिलऽ हे । दोसर-दोसर बड़जतियन के देखऽ, हमन्हीं तो फुटलो आँख नैं सोहा ही । बाकि नन्दू बाबू के तो बाते जुदा हे । उनके चलते पढ़लऽ-लिखलऽ तों ।) (अमा॰176:13:1.20)
434 बड़ी मनी (मरदाना से मार खायल बड़ी मनी जनाना मिलऽ हथ, बाकि औरत से मार खायल मरदाना बड़ी मुस्किल से मिलऽ हथ ।) (अमा॰178:11:1.1)
435 बथा (देहिया के ~ छोड़ा देना) (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।) (अमा॰175:9:1.10)
436 बद्धी (= गले में पहनने का पवित्र धागा; धागा या डोरे की माला) (मंदिर पहुँच के फाटके पर पूजा के सामगरी कीनली, बाँस के डलिया में परसादी, फूल, बेलपत्तर, बद्धी, सेनुर, रोड़ी, अगरबत्ती, सलाई, सब कुछ ।) (अमा॰183:13:2.3)
437 बनाना-खाना (रात-दिन लिखहीं-पढ़हीं में परेसान रहऽ हथ । बनावहुँ-खाय के मौका कमे मिलऽ हे ।) (अमा॰185:17:1.9)
438 बनुआ (बाहर के ~) (तूँ बाहर के बनुआ ह, कखनी फिर तूँ घरे अयबऽ, भुखल-पियासल भोरे-भोरे घर से तूँ कइसे जयबऽ ।) (अमा॰177:20:1.14)
439 बन्हाना (अपनापन आउ प्रेम के चासनी में मन बन्हाय लगल ।) (अमा॰184:12:2.15)
440 बरखना (अगर समय पर बरखा न बरखे, तब ओकर सभे मेहनत बेकार हो जाहे ।) (अमा॰179:3:1.19)
441 बरनन (= वर्णन) (चाहे किसान के धनखेती सूखे के बात होवे, चाहे झमाझम बरसात के छवि के सुन्दर शृंगारिक बरनन, सभे छेत्र में इनकर गीत लोकप्रिय रहल हे ।) (अमा॰184:5:2.20)
442 बर-बजार (जब हम पहिले-पहिल एगो कवि-सम्मेलन में गेली हल तब डॉ॰ रामानुज तिवारी से हुअँइ परिचय होयल हल । ओकरा बाद से एक्के शहर में रहे के चलते बर-बजार, सड़क-चौराहा, कहीं न कहीं भेंट होइये जा हल ।) (अमा॰179:8:1.3)
443 बरिअरी (= जबर्दस्ती) (अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई । बरिअरी जा हे काम करे ।) (अमा॰180:13:1.9)
444 बसुला (= बसुल्ला) (रुखना लयलूँ बसुला पजयलूँ अकिलगर बढ़ई बोलयलूँ, खान-पान तो देवे कयलूँ कड़कड़ नोट गमयलूँ ।) (अमा॰183:10:1.19)
445 बहराना (= बढ़ाना; बाढ़ना का अकर्मक रूप; झाड़ू से कूड़ा साफ किया जाना या होना) (अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ? बर्तन मलतो त सखरी लगले रह जा हई, झाड़ू-बहारू करतो त एक कोना बहरा हई, एक कोना गंदे रह जा हई ।) (अमा॰180:13:1.17)
446 बहिनपुतवा (घरवा कातो नानी बहिनपुतवा के देवल चाहित हई । बाप-दादा के एतना निसानी तो रह जायत ।) (अमा॰180:14:2.19)
447 बहुत्ते (~ सन्) (ऊ दिन नन्दू बाबू के साथे ऊ दुरगा स्थान पहुँचल हल, त हुआँ बहुत्ते सन् बुतरू जुटल हल लट्टू खेले ला ।) (अमा॰176:13:2.15)
448 बाँठ (सुनके बात हमरा मार देलक काठ, अपना के तूहीं बनलऽ हे बाँठ । कइसन मेहररुआ के लगल हउ माछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ?) (अमा॰185:15:2.15)
449 बाछी (बाछा-~) (ऊ साँप, मगरमच्छ, कछुआ, हंस, बत्तख, बगुला, सुग्गा, मैना, कउआ, चील, बाज, बटेर, गरूड़ तो बनयबे करऽ हथ, बाघ, सिंह, सियार, भालू, हरिन, लोमड़ी, खरहा जइसन जानवर के रूप भी मट्टी से गढ़ऽ हथ । औरत-मरद, लइका-लइकी, बूढ़ा-जुआन, जोगी-संन्यासी के अलावे बैल, गाय, भइंस, बकरी आउ भाछा-बाछी के मुरति गढ़ना उनकर बायाँ हाथ के खेल हे ।) (अमा॰175:6:2.1)
450 बाप-दादा (एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।; सुनली हे कि अब कातो एगो आउ कानून बन गेलई हे, जेकरा में बेटा-बेटी दुन्नो के बाप-दादा के सम्पत्ति में बराबर हिस्सा होतई, भाई जकत ।) (अमा॰180:14:1.7, 9)
451 बाप-माय (जहाँ तक नइहर के सवाल हल बाप-माय मरहीं गेलन हल ।; कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ?) (अमा॰178:6:1.28; 180:13:2.11)
452 बाल-बच्चेदार (बेटा नवल बी॰ए॰ पास करके बइठारी के जिनगी जी रहल हे । अब तो ऊ काफी बाल-बच्चेदार हो गेल हे । तंगी के हाल में जी रहल हे ।; एकरा चार बेटा हथ । सभे मुस्तंड, कमाए धमाए ओलन । सादी-बिआहो हो गेल हे सभे के । सभे बाल-बच्चेदार हथ ।) (अमा॰176:15:2.8; 177:16:2.15)
453 बिकरी (= बिक्री) (हर राज्य में परब-त्योहार के परम्परा जिन्दा हे । ऊ अवसर पर मेला-ठेला में खेलौना के बिकरी खूब होवऽ हे ।) (अमा॰175:6:1.19)
454 बिखिआना (= बिखाना, क्रोधित होना) (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
455 बिछउत (= बिछउती, छिपकिली) (काटल बिछउत साइदे बचतन । देह छुआल संकट में पड़तन ।) (अमा॰185:10:1.12)
456 बिछउती (= छिपकिली) (जइसहीं खाना पर बइठे लगली, ओइसहीं कपार पर एगि बिछउती गिर गेल आउ कन्धा पर से उतर के नीचे कूद गेल ।; जानऽ हें, पिछला साल हम्मर चरवाहा के माय पर सुतले में बिछउती गिर गेल हल, त पहिले ओकर जवान हाथी मर गेल, फिर ओकर घोड़ा मरल, फिर बकरी मरल, सब मुर्गी के चोर ले भागल ।; बिछउती करिया आउ बच्चा देवेओला हलइ, ई चलते करिया जरोहगर गाय दान करल बहुत जरूरी हे ।) (अमा॰185:10:1.2, 2.17, 11:2.25)
457 बिड़ार (बिड़ार कब जोतायत, कउन धान के मोरी कहाँ पड़त, मघाड़ खेत जोतायल कि न, ई सब तय करे वला राम टहले दास हथ ।) (अमा॰178:16:2.33)
458 बिसुआ (सावन पहिला पख पंचमी से परब के पसार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे ॥) (अमा॰181:15:1.2)
459 बिसुआनी (हिआँ हरेक साल ओही इयाद में बिसुआनी मेला लगऽ हे, जहाँ दूर-दूर से लोग आवऽ हथिन।) (अमा॰178:18:2.11)
460 बिस्टी (सुख-सुविधा आउ आराम केकरा कहल जाहे, ई आजतक न जानलक । दू बित्ता के बिस्टी पेन्हले, कन्धा पर करिया कम्बल आउ हाथ में मोटा लाठी लेले भेंड़-बकरी के पीछे जंगले-जंगले दउड़ित चलल ।) (अमा॰182:10:1.20)
461 बुका (~ फाड़ के रोना) (बेटी के पेड़ तर सुता देलक आउ पेड़ के पकड़ के बुका फाड़ के रोवे लगल ।) (अमा॰177:13:2.19)
462 बुढ़ौती (बुढ़िया के बुढ़ौती देखऽ, पहिनले हवऽ लगनौती देखऽ ।) (अमा॰182:19:1.1)
463 बुताना (= बुझ जाना) (तनी-मानी गोइँठा के चिपरी पर मट्टी के तेल डाल के सलाई से धरा देलक, बाकि बार-बार आग बुता जाए ।) (अमा॰182:13:2.20)
464 बुदुर-बुदुर (तोहनी दुन्नो बुदुर-बुदुर का हम्मर सिकायत करइत हें ?) (अमा॰179:19:1.16)
465 बुनाना (धनवाँ न भेलइ गेहुमो पर आफत, भूख से मचलइ बवाल हो । सगरो बधरिया में मसुरी बुनायल, पीके लोग रहतन का दाल हो ?) (अमा॰182:16:1.15)
466 बुनी (बड़ेरी के फाँफर से बुनी के पानी चुअइत हल ।; एकाएक गड़-गड़ कर के बादल गरजल आउ झमर-झमर बुनी पड़े लगल ।; ई अगिया लगउनी बुनी तो छूटे के नामे न लेइत हई ।) (अमा॰182:13:1.1)
467 बूढ़ा (~-जुआन) (ऊ साँप, मगरमच्छ, कछुआ, हंस, बत्तख, बगुला, सुग्गा, मैना, कउआ, चील, बाज, बटेर, गरूड़ तो बनयबे करऽ हथ, बाघ, सिंह, सियार, भालू, हरिन, लोमड़ी, खरहा जइसन जानवर के रूप भी मट्टी से गढ़ऽ हथ । औरत-मरद, लइका-लइकी, बूढ़ा-जुआन, जोगी-संन्यासी के अलावे बैल, गाय, भइंस, बकरी आउ भाछा-बाछी के मुरति गढ़ना उनकर बायाँ हाथ के खेल हे ।) (अमा॰175:6:1.34)
468 बेउन्नुस (एक्के जगुन हे रहना हमरा, डर से भाग कहाँ हम जइयइ ? लाज-गरान सभे ई पी गेल, बेउन्नुस संग कइसे रहियइ ? दसटकिया ले धड़फड़ भागइ, ताकइ नयँ फिर घर के ओरिया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.16)
469 बेकत (= घरवाली) (बेकत भी नामे के गोड़यतिन हथ । बेवहार में केकरो कान काटे वाली । कहिओ उरेबी वचन उन्हकर मुँह से न निकले ।) (अमा॰178:16:1.34)
470 बेकत (= परानी; दुन्नो ~ = दम्पति) (न मालिक ! हमनी दुन्नो बेकत के नीयत भी केकरो पइसा पचावे के न हे । हमनी भी अप्पन मेहनत पर बिसवास करऽ ही । दोसर के पइसा मट्टी समझऽ ही ।) (अमा॰181:11:2.23)
471 बेकती (बड़ी जतन से दुन्नो बेकती के पत्थर पुजइत-पुजइत बुढ़ारी में एगो लड़का भेलइन हल ।; बेर-बेर दुन्नो बेकत ओकरा हाथ पर उठयले रहऽ हलन ।; अगर इहाँ इन्साफ न मिलत त दुन्नो बेकती इंदरा में कूद के मर जायम ।) (अमा॰178:18:1.15, 19; 184:7:1.22)
472 बेटा-पुतोह (अगर इहाँ इन्साफ न मिलत त दुन्नो बेकती इंदरा में कूद के मर जायम । फिन सब बाल-बच्चा के अराम हो जायत । हमनिए दुन्नो से सभे बेटा-पुतोह के बड़ी परेसानी होइत हे कातो ।) (अमा॰184:7:1.24)
473 बेटी-दमाद (कोई कहे -'सब दुख भगवान देवे, बाकि बेटी-दमाद घरे रहे वला दुख न देवे । बड़ी तौहीनी होवऽ हे ।'; बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई ।; एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।; कातो फिर बेटिया-दमदा एगो टोपरवा बेचे ला कहित हई । नानी न कहित हई । मत बेच ऊ खेत, मेन सड़क पर हउ । उहाँ तक कुछ दिन में बजार आ जयतउ । लड़कन के रोजी-रोटी होतउ । बेटिया-दमदा मुँह फुलयले हई । भर-मुँह बोलई न, अइँठइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:13:2.8, 23, 14:1.6, 2.21, 24)
474 बेयापना (= व्याप्त होना) (अधिकतर घर में आपस में तनाव बेयाप गेल हे ।) (अमा॰185:3:1.4)
475 बेलपत्तर (= बेलपत्र) (भाँग धतूरा बेलपत्तर आउ अच्छत चन्दन रोड़ी से । पूजा होवऽ हे मंदिर में शादी होवइ गौरी से॥) (अमा॰181:15:2.16)
476 बेलाना (= बुलाना) (जो, जल्दी से जाके रामदेउआ के हिआँ गउँए में बेला ले, काहे कि बगले के गाँव में ओकर नौकरी लग गेलउ हे ।) (अमा॰177:9:2.28)
477 बेलूर (जे बेचारा हे सीधा-सादा, दुनिया के चल-चलाव से हे दूर, ऊ समझल जा हे बड़का बेलूर ।) (अमा॰184:15:1.11)
478 बैसाखी-बिसुआ (बैसाखी-बिसुआ मगह में अंतिम परब गिनावऽ हे । ककोलत के कनकन पानी गरम देह ठिठुरावऽ हे॥) (अमा॰181:15:2.31)
479 बोखरायल (गोड़थारी तर के आधा बिछौना भींग गेल हल । बोखरायल लइका के सुता के धनेसरी चुपचाप टकटक्की लगयले हल ।) (अमा॰182:13:1.3)
480 बोझा-बिंडा (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
481 बोरा-बन्दी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.6)
482 बोलना-बतिआना (पत्रिका लिखे के लेल, कविता-रचना छापे-छपावे के लेल हम मगही में लिखम आउ बोले-बतिआवे के समय खड़ी हिन्दी, ई दुमुही नीति से मगही भासा के विकास असंभव हे ।; जब तक शरीर में आत्मा हे, तब तक शरिर चल-फिर सकऽ हे, बोल-बतिआ सकऽ हे, इया कोई निमन-जमुन काम कर सकऽ हे ।) (अमा॰179:5:2.23; 185:9:1.10)
483 बोलहटा (इस्कूल, कॉलेज, गाँव, शहर, सबके बोलहटा पर हाजिर होलन आउ अप्पन सुर में कविता गावे-सुनावे में ई कभी न चुकलन ।) (अमा॰183:5:1.28)
484 बौसाव (= बउसाव) (अप्पन बौसाव से ऊ मगही के मन्तर हरमेसा जपइत रहलन आउ पिछला सदी के दोसरका भाग में मगही के भारी परचारक अपना के सिद्ध कैलन ।) (अमा॰183:5:2.16)
485 भंडार (अकूत ~) (झारखंड के भौगोलिक संरचना पठारी हे, जहाँ वनिज आउ खनिज सम्पदा के अकूत भंडार छिपल-पड़ल हे ।) (अमा॰175:7:1.4)
486 भंसा (ढेर दिन तक चुल्हा फुंकवयलऽ, आन्हर बनली भंसा में । नौ बजे हम आफिस जायम, टिफिन बनइहऽ भंसा में ।) (अमा॰177:7:1.29, 30)
487 भइँसुर (= भैंसुर) (परवतिया कुछ बरिस पहिले होएल मियाँपुर-बाथे नरसंहार घड़ी दोंगहरिये आएल हल । सास-ससुर, गोतनी-भइँसुर, ननद-देवर, घर के लइकन, इहाँ तक कि मरदाना तक कटा गेलन हल ।) (अमा॰178:6:1.25)
488 भइंसचरवा (ई तोरा जइसन अनपढ़वा आउ भइंसचरवा के बस के बात न हउ ।) (अमा॰176:9:1.23)
489 भक-भक (~ गोर) (एतने में टुह-टुह लाल साड़ी में साढ़े पाँच फीट के एगो भक-भक गोर नेपाली महिला परवेस कयलक ।) (अमा॰184:11:2.29)
490 भनर-भनर (अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.15)
491 भरमजाल (फिर तूँ भरमजाल में पड़ गेले न । हम तोरा कुच्छो न कैलिअउ हे ।) (अमा॰175:9:1.21)
492 भाँवर (एगो ढकना में आग सुलगा के दू-चार बेर भाँवर देलन, फिर मने-मन कुछ बुदबुदा के बोलला के बाद जोर से) जय दुर्गा ! जय भवानी ! बोल रे चुड़ैल ! तूँ इहाँ से भागऽ हें कि न ?) (अमा॰179:13:2.16, 14:1.16)
493 भाई-भतीजा (एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।) (अमा॰180:14:1.6)
494 भुंजा-फुटहा (सुबह समय से नस्ता लागी चूल्हा-चउका जोरऽ ही, रोटी-सब्जी भुंजा-फुटहा कुछ भी लेके उदड़ऽ ही ।) (अमा॰177:20:1.14)
495 भुखल-पियासल (तूँ बाहर के बनुआ ह, कखनी फिर तूँ घरे अयबऽ, भुखल-पियासल भोरे-भोरे घर से तूँ कइसे जयबऽ ।) (अमा॰177:20:1.16)
496 भुरका-भुरकी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
497 भुरहा (= भ्रुणाहा) (ई जगह परकिरति सोई के नाम से कालान्तर में विख्यात हो गेल, जे गया जिला के गुरुआ से छव किलोमीटर के दूरी पर बसल भुरहा के नाम से जानल जाहे । भूर कहे के माने छेद से पानी हद-हद निकले से ई भुरहा कहलायल, जहाँ मध्य काल में कुछ देवालय भी बनावल गेल ।) (अमा॰178:18:2.4)
498 भूत-परेत (तोरा भूत-परेत पर बिसवास न हवऽ ?; केकरो मन में जब काफी भय बेयाप जाहे, तब ऊ अदमी भय से अनाप-शनाप बके लगऽ हे । ओकर हालत देख के हमनी मान लेही कि ओकरा कोई भूत-परेत पकड़ले हे ।) (अमा॰179:14:2.16, 21)
499 भोन्दा (वाह ! वाह ! एकर मतलब कि तूँ आज किलास के सबसे भोन्दा लड़का हें, त कल तूँ किलास के फस्ट लड़का बन जयमे ? अरे जिन्दगी भर तोरा ई किलास में पिछलगुआ भोन्दा लड़का रहे ला ही लिखल हउ ।) (अमा॰175:11:2.8, 10)
500 भोरे-भोरे (तूँ बाहर के बनुआ ह, कखनी फिर तूँ घरे अयबऽ, भुखल-पियासल भोरे-भोरे घर से तूँ कइसे जयबऽ ।) (अमा॰177:20:1.16)
501 मउगत (= मौत) (न जानी कब इनका मउगत मिलत । ई धरती के बोझ हथ बोझ ।) (अमा॰180:10:2.1)
502 मउनी (गली में भर ठेहुना पानी भेल हल । ओरी के किनारे पिच्छुल भेल हल, से माथा पर गोइँठा के मउनी लेलहीं फुलवा गिर गेल ।; खाँसते-खाँसते ऊ दउड़ के भागल आउ हाथ में हँसुआ आउ मउनी लेके घास काटे चल गेल ।) (अमा॰182:13:2.9, 14:1.27)
503 मघाड़ (बिड़ार कब जोतायत, कउन धान के मोरी कहाँ पड़त, मघाड़ खेत जोतायल कि न, ई सब तय करे वला राम टहले दास हथ ।) (अमा॰178:16:2.34)
504 मचान (जेकर गेयान गोबर भे गेल, उहे मचान चढ़ झाँकऽ हे । कम्बल ओढ़ मारऽ हे सटासट आउ कदाचार बढ़ावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.7)
505 मड़पसौना (धुकुर-धुकुर करइत कइसहुँ खिचड़ी आउ चोखा बना के धनेसरी तसला के राख मड़पसौना से झाड़ के रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.4)
506 मने-मन (मने-मन ऊ लड़का के प्रति हम्मर सनेह बढ़इत गेल ।) (अमा॰184:12:1.33)
507 ममहर (तीन बरिस के जब हल दिवाकर, तब ऊ ममहर से अप्पन बाबू के साथे गाँव अयलक हल आउ लख पर सबसे पहिले दादा के गोड़ लाग के एगो सीसम के गाछी कबाड़ लेलक हल आउ अप्पन गाँव में घर के सामने बनल खँढ़ी में रोप देलक हल ।) (अमा॰175:13:1.9)
508 मर (= धत् !) (~ बुरबक; ~ तोरी के) (मर बुरबक, तूँ कथा शुरू करबे कि नाटक करबे ?) (अमा॰186:14:1.12)
509 मरद-मेहरारू (तोरा सबके विपत्ति के घड़ी में काम चला देली । अब तोहनी सब आज गोल-गोल बतिआ रहले हें । मरद-मेहरारू दुन्नो के एक्के विचार हउ । पइसा देवे के तोरा सबके नीयत न हउ ।) (अमा॰181:11:1.31)
510 मलामत (कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ? ई दमदा घरे हई, सेई से ? बेटवा घरे रहतई हल, त पुतोहिया गोदी में खेलौतई हल ? बइठा के दूध-भात खिलौतई हल ? मलामत करतई हल, मलामत ।') (अमा॰180:13:2.14)
511 महंगी (= महँगाई) (बूँट खेंसारी मड़ुआ मकई, महंगी लेलक दुनिया से, कउची खयतन सब हे महंगी के मरिया, तूँ घरवा कइसे अयबऽ बालमा ।) (अमा॰184:16:1.12, 13)
512 महावर (सुबह प्रभाती होली में होलियाल चइत चइतावर । जेठ आउ बइसाख मास में, घर-घर सजल महावर॥) (अमा॰179:17:2.5)
513 माछी (सुनके बात हमरा मार देलक काठ, अपना के तूहीं बनलऽ हे बाँठ । कइसन मेहररुआ के लगल हउ माछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ?) (अमा॰185:15:2.16)
514 मातल (गंध से मातल रहे मन-प्राण हरदम, देह में गूंजल करे गुनगान हरदम ।) (अमा॰176:12:2.29)
515 मिरचाई (धुआँ नरेटी में गरगटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल ।; मिरचाई आउ नीमक के साथे दू-दू गो लिट्टी खा के सुत गेलथिन हल सब ।) (अमा॰182:13:2.25, 14:1.34)
516 मिरतु (= मृत्यु) (गाँव आउ ओकर आसपास चिकित्सा केन्द्र न होवे के चलते प्रसव के दौरान देह में पानी के कमी होवे से जच्चा-बच्चा दुनहूँ के मिरतु हो गेल ।) (अमा॰178:6:1.20)
517 मिलॉड (= My Lord !) (मिलॉड ! मुजरिम जोगन हम्मर मुअक्किल शिवदानी बाबू से अप्पन घरवाली के इलाज ला पच्चीस सौ रुपइया सूद पर उधार लेलन आउ महीने-महीने सलाना पाँच प्रतिशत सूद देवे के वादा भी कैलन ।) (अमा॰182:9:1.12, 2.20, 10:1.2, 6)
518 मुँह फेफरी (जब ले टका न दीयइ ओकरा, हमहीं ओकर सबसे जिगरी। हाय दया दिल में आ जा हइ, पड़ल देख ओकर मुँह फेफरी॥ करवट लेइत रात गँवावइ, पौ फटते ही करइ गोड़पड़िया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.4)
519 मुँहकोर (~ गिरना) (करिया विचार के नेता अफसर, जनतंत्र गिरल मुँहकोर ।) (अमा॰178:9:1.6)
520 मुँहझप्पे (ऊ दिन ऊ मुँहझप्पे इँकस गेल हल घर से नन्दू बाबू के साथे ।; जाड़ो के कँपकँपी में लरिकन मुँहझप्पे सुत-उठके घर से इँकस जाहे खेले ला ।) (अमा॰176:13:2.1, 6)
521 मुँहझौंसा ('केकर हई फोटउआ ?' -'ऊहे मुँहझौंसा के ।' -'केकरा गरिआवइत हहुँ ?') (अमा॰177:10:1.9)
522 मुँह-तकुआ (तुँ दोसर के मुँहतकुआ मत बनऽ । अपने पर भरोसा करऽ, काहे कि ई संसार करमभूमि हे । तोहर अधिकार खाली खाली करम पर हवऽ, फल देना ऊपरवाला के हाथ में हइ ।) (अमा॰181:13:2.31)
523 मुड़ी (फुलवा मुड़ी गाड़ले क्लास में बइठ गेल, बाकि आज ओकरा पढ़े में मन न लगइत हल । बार-बार ऊ घरहीं के बारे में सोचे ।) (अमा॰182:14:1.15)
524 मुतना, मूतना (छुर-छुर ~) (तितकी से मत खेल बुतरुअन जर जैतो तोर हाथ रे, जे तितकी से खेले ऊ तो छुर-छुर मुते रात रे ।; तितकी से मत खेल बुतरुअन जर जयतो तोर हाथ रे, जे तितकी से खेले ऊ तो छुर-छुर मूते रात रे ।) (अमा॰179:6:1.15; 184:5:1.10)
525 मुरुख (= मूर्ख) (फिर तूँ ओही मुरुख वला बात सुरू कर देले ।) (अमा॰175:11:1.7)
526 मुल्ला (= मूर्ख, नासमझ) (अइसने-अइसने मुल्ला बराबर भेजइत रहिहऽ भगवान ! आज अन्दर से हिरदा तिरपित हो गेल ।) (अमा॰186:13:2.2)
527 मुसलमान (हँ-हँ नन्दू ! तों कायथ हें न, एही गुने बोलऽ हें । कायथ तो आधा मुसलमान होबे करऽ हे । अब सादी-बिआह, मरनी-जीनी में एही चमरन के पूज, हमनी के पूज के की होतउ तोरा !) (अमा॰176:14:2.9)
528 मुस्तंड (एकरा चार बेटा हथ । सभे मुस्तंड, कमाए धमाए ओलन । सादी-बिआहो हो गेल हे सभे के । सभे बाल-बच्चेदार हथ ।) (अमा॰177:16:2.14)
529 मेला-ठेला (हर राज्य में परब-त्योहार के परम्परा जिन्दा हे । ऊ अवसर पर मेला-ठेला में खेलौना के बिकरी खूब होवऽ हे ।) (अमा॰175:6:1.19)
530 मेस्तरनी (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.12)
531 मेही (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
532 मोजराना (= मंजराना) (बाग-बगइचा में आम मोजरायल, देसवा में अब हे वसंत रितु आयल ।) (अमा॰177:17:1.20)
533 मोटका (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।; बात बदले में माहिर हे मोटका । का जानि बचपन से कउन बात बनावे ओला इसकूल में पढ़लक हे ।) (अमा॰175:9:1.6, 17)
534 मोटरी-गेठरी (बुढ़िया ओकरा देख के अप्पन मोटरी-गेठरी उठाके चले ला चाहलक ।) (अमा॰177:16:1.13)
535 मोरांजा (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
536 मोरियार (~ खेत) (दू दिन हमरा मोरियार आदि खेत में धान रोपे ला हे । तब हमहूँ घरे से निफिकिर हो जायम आउ फिर हमरा फरका के इलाज करइहऽ । अब हमरा का होयत ?) (अमा॰175:13:2.15)
537 मोसहरा (उनखरे दसखत से इनखर आउ मास्टर लोग के हाजरी जायज होवऽ हे । ई दसखत करऽ हथ, तब जाके मोसहरा के बिल बनऽ हे ।) (अमा॰185:17:2.24)
538 मौगमेहरा (आँख बन्द करके देखऽ जी, अन्दर दिल के चेहरा । करिया पत्नी के भतार, पर ह पूरा मौगमेहरा ।) (अमा॰178:9:2.1)
539 रगन (एतना ~ के; ~-~ के) (ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई ।) (अमा॰180:13:2.23)
540 रगन-रगन (जब हम लइकाइ के दिन इयाद करऽ ही, तब आँख के सामने तरह-तरह के खेलौना मन के मोह लेहे । पिपही बाजा, तोंद फूलल सेठ-सेठानी, कंधा पर हर लेले किसान, जाँता पिसइत औरत, लाठी टेकइत बूढ़ा, करिया हाथी, उज्जर बाघ, हरियर तोता, रगन-रगन के चिरईं ।; रगन-रगन के बात गली-महल्ला में पसर जाय - पक्ष में, विपक्ष में ।) (अमा॰175:5:1.28; 180:13:2.6)
541 रत-रत (लाल ~) (अंग्रेज सिपाही हिनखा सकरी के घाटे पर मौत के घाट दतार देलक आउ नदी के पानी हिनखर खून से लाल रत-रत भे गेल ।) (अमा॰175:7:2.28)
542 रसगर-मिठगर (फिर तो भाव विभोर होके एकरा में खुद कविजी अप्पन रसगर-मिठगर आउ हास्य-व्यंग्य से भरल कइएक रचना सुना के श्रोता लोग के ध्यान मगही के तरफ खींचलन ।) (अमा॰185:4:2.20)
543 रसिया (एक कटोरी में गुड़ आउ चाउर के बनल रसिया हल, एक कटोरी में दूध आउ बासमती चाउर के बनल उज्जर खीर भी हल ।; दस-बारह दिन सावन बीतइत करीब पनरह-बीस घर से पूड़ी-सब्जी, खीर-रसिया आउ भात-दाल-सब्जी, दही-चीनी, अँचार-पापड़, चोखा-चटनी, साग तक बैना आइए गेल हल ।) (अमा॰186:6:1.16, 2.13)
544 राई-सरसों (केतना में धान रोपायत, कहाँ मसुरी, बूँट आउ गेहूँ लगत, राई-सरसों केतना में आउ कहाँ लगत, केतारी ला कउन खेत रहत, ई सब राम टहले के जिम्मे रहऽ हे ।) (अमा॰178:17:1.7)
545 राख-मट्टी (रोज-रोज देखइत ही, दुःख भोगइत मरइत लोग, मरघट मसान-घाट जाइत, जरइत राख-मट्टी होइत लोग । तइयो न खुलइत हे, बन्द हे ज्ञान के किवाड़, अझुरायल भूल-भुलइया में, लोभ में बने के धनाड़ ।) (अमा॰179:17:2.17)
546 रुखना (= रुखानी) (रुखना लयलूँ बसुला पजयलूँ अकिलगर बढ़ई बोलयलूँ, खान-पान तो देवे कयलूँ कड़कड़ नोट गमयलूँ ।) (अमा॰183:10:1.19)
547 रूसल (घूरा तर बइठल बूढ़ा, सुख-दुख के राग सुनावे । रूसल दुलहिन के घर में, बड़का सब खूब मनावे॥) (अमा॰179:17:2.7)
548 रोधना (~ पसारना) (मुन्ना खेलौना ला रोधना पसार रहल हे । ओकर मट्टी के घोड़ा के टांग टूट गेल हे ।) (अमा॰175:5:1.1)
549 लंगटे-उघारे (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.25)
550 लंबरदार (भले आज के भोजपुरी गीत पहिले के फिल्म के तुलना में अपभ्रंश, शर्मनाक आउ भोजपुरी के संस्कृति पर प्रश्न खड़ा कर रहल हे जेकरा से समज में लोकप्रियता तो न, घृणा आउ दुःख पहुँच रहल हे । भोजपुरी भासा के प्रचारक लंबरदार के ई सब पर रोक लगावे के जरुरत हे ।) (अमा॰179:5:1.27)
551 लइका-फइका (पुतोहिया मना करऽ हई -'काहे ला बर्तन मलऽ ह नानी ? झाड़ू-बहारू काहे ला करऽ ह नानी ? काहे ला गोबर-गोइँठा करऽ ह ? बनवऽ त तनि-मनी लइका-फइका धर ल आग जोरे तक ।') (अमा॰180:13:1.12)
552 लक्खीसराय (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
553 लख (= अं॰ लॉक; सिंचाई नहर की नालियों में पानी छोड़ने तथा नाव-जहाज के परिवहन को नियंत्रित करने के लिए 5-6 मीलों पर बना विशेष ढाँचा; वह स्थान जहाँ इस प्रकार का ढाँचा बना हो, यथा: विक्रम लख) (तीन बरिस के जब हल दिवाकर, तब ऊ ममहर से अप्पन बाबू के साथे गाँव अयलक हल आउ लख पर सबसे पहिले दादा के गोड़ लाग के एगो सीसम के गाछी कबाड़ लेलक हल आउ अप्पन गाँव में घर के सामने बनल खँढ़ी में रोप देलक हल ।; रनिया तलाब लख पर पानी खोलवा के पूरा पानी बहावल गेल, बाकि दिवाकर के कउनो अता-पता न चलल ।) (अमा॰175:13:1.12, 2.8)
554 लगन-चुमावन (विद्या देवी माँ सरसती के पूजा-अर्चना करऽ ही । शिव-विवाह के लगन-चुमावन तहिने जाके धरऽ ही॥) (अमा॰181:15:2.12)
555 लगनौती (बुढ़िया के बुढ़ौती देखऽ, पहिनले हवऽ लगनौती देखऽ ।) (अमा॰182:19:1.2)
556 लगल-भिड़ल (~ रहना) (मगही के उत्थान ला ई तन-मन-धन से लगल-भिड़ल रहलन ।) (अमा॰186:15:1.21)
557 लजकोहड़ (= लज्जालु, शर्मीला, संकोची) (ऊ केतना लजकोहड़ लोग के सफल कलाकार बना देलन हल ।) (अमा॰177:5:2.11)
558 लट्ठमलट्ठी (कजै गिरहकट्टी हे, कजै लट्ठमलट्ठी हे । कजै बीच शहर में चल रहल भट्ठी हे ।) (अमा॰185:16:1.23)
559 लड़कइयाँ (माँझी रे, माँझी रे, माँझी रे ! अभी सपना के मंजिल हो दूर । छुपुर छइयाँ, छुपुर छइयाँ, हाय हइयाँ, हाय हइयाँ । लंगर गिरा मत कर, माँझी रे लड़कइयाँ ।) (अमा॰180:15:1.6)
560 लड़िकाई (समाज सेवा के तरफ इनकर रुचि बचपने से हलइन । एकरा अलावे लड़िकाइये से साहित्य निर्माण के तरफ झुकाव हलइन ।) (अमा॰183:3:2.11)
561 लताड़ना (जग-जननी के दुत्कारऽ, सींघ से जमीं के खुरछाड़ऽ, दुइए साल पर लताड़ऽ, आवऽ बैल हमरा मारऽ ।) (अमा॰184:16:2.13)
562 लत्तम-जुत्तम (जइसहीं चोरवा गिरलई, ओइसहीं ओकरा पर लत्तम-जुत्तम एतना होलई कि ऊ अधमरल जइसन हो गेलई ।) (अमा॰179:11:1.12)
563 लत्ता-कपड़ा (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
564 लम्बा-लम्बी (अरे, ई देवाल एतना बड़का हो गेल ? एतवर विशाल दैत्य ! तनि गो के हइये हल ई, जइसे बइठे के ओटा इया तीनों भाई के लम्बा-लम्बी सुते के भित्ति !) (अमा॰178:19:1.3)
565 ललका (धुआँ नरेटी में गड़गटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल ।) (अमा॰182:13:2.25)
566 ललुआना (देखिहऽ, आज हमनी तोर तीनो लइकन के भरल समाज में अइसन ललुआयम कि तोरा साथे ऊ सब इन्साफ करबे करतन ।) (अमा॰184:7:1.14)
567 लहकना (कर्मभूमि में दिन भर काम करइत किसान लहकइत धूप, बरसात इया शीतलहरी के परवाह न करे।) (अमा॰179:3:1.27)
568 लांगड़ (सोनपरी के बेटी रिंकी जब जानलक कि ओकर सादी लांगड़ लड़का से होवित हे, तब ऊ जार-बेजार होके रोवे लगल ।) (अमा॰177:14:2.28)
569 लाते-घूँसे (~ मारना) (काहे न गरिअयबई । माथा फोड़ के मारलक हे लाते-घूँसे बुन्नी ! कहलक हे कि एक लाख रुपइया बप्पा से माँग के न लयमें, त ई घर में गोड़ मत रखिहें ।) (अमा॰177:10:1.14)
570 लाव-लश्कर (एगो तेसर पीड़िता के केस आयोग में दर्ज होलइ । पति नोटिस पर लाव-लश्कर सहित आयोग अयलन ।) (अमा॰175:8:2.26)
571 लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थल (अरे, हम्मर देश के कर्णधारन के एहु पता हई कि आरक्षण कहाँ जरूरी हहे आउ कहाँ नऽ ? अब ई सोचे वला बात हइ कि जउन आइ॰ए॰एस॰ एँड़ी-चोटी के पसेना एक करके इहाँ तक बुद्धि-क्षमता के सहारे पहुँचल हथल, हुएँ लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थल नेतवन उनकर बाप बनके उनका हुकुम देवित हथन ।) (अमा॰178:5:1.29)
572 लिट्टी (माय, ए माय ! का सोचइत हें ? आओ नऽ, भूख लगल हे बड़ी जोर से । अरे तोहर दुलरी बनैले हउ लिट्टी ।) (अमा॰177:9:2.31)
573 लुंडी (जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
574 लेवन (ओन्ने धनेसरी मसुरी के दाल आउ उसना चाउर के फेंट के धोलक आउ तसला में मट्टी के लेवन देके चुल्हा में आग जोड़ देलक ।) (अमा॰182:13:2.17)
575 लैन (= लाइन) (उनकर भगिना अरुण तो मामुए नियन मास्टरी लैन में हे । ऊ मास्टरो के पढ़ावऽ हे ।) (अमा॰176:15:2.15)
576 लोंदा (देखहूँ मइया ! बीचे तसला महादेजी के पीड़ी ! नानी मललथी हे । देखली त देखइत ही कि बीचे तसला में भात के लोंदा झलकइत हे ।) (अमा॰180:13:1.25)
577 लोंहड़ (= लोहँड़, लोहँड़ा, लोहंडा < लौह + हंडा) (छठ व्रत के उपवास के पहले चौठ की संध्या को विशेष प्रकार का प्रसाद; लोहंडा करने का व्रत) (सन् २००८ ई॰ के कतकी छठ हम्मर जिनगी में एगो अलगे स्फूर्ति लेके आयल हल । ... बाकि हमनी लोंहड़ के दिन पहुँचली हल, एहि से मन में इच्छा रहलो पर ऊ दिन नालंदा के खंडहर न देख पइली ।) (अमा॰185:5:1.11)
578 लोग-बाग (ऊ अप्पन डिउटी पर तैनात होयल हल अन्हरिया में लोग-बाग के मदद करे लेल । खूब अन्हार-पन्हार हो गेल हल ।) (अमा॰186:6:1.7)
579 लोटा-छीपा (अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.14)
580 लोराना (= आँख में लोर आना) (हमनी तो ई दिरिस पहिला बार देखइत हली । मन पीड़ा से भर गेल । आँख लोरा गेल ।) (अमा॰183:14:1.8)
581 लोरे-झोरे (धुआँ नरेटी में गरगटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल । लगे जइसे दीदा फूट गेल । लोरे-झोरे हो गेल हल धनेसरी ।) (अमा॰182:13:2.26)
582 लोहवान (हँ हो शंकर ! गणना में तो कुछ गड़बड़ बुझाइत हे । तूँ आगे बढ़ऽ आउ दोकान से अगरबत्ती, धूप-धूना आउ लोहवान खरीद के रक्खऽ । घबराए के कोई बात न हे । हमरा उहाँ पहुँचइते सब ठीक हो जाएत ।) (अमा॰179:13:1.16)
583 विधुकल (रुसल धरती विधुकल अकास, उगल रउदा सगरो झकास ।) (अमा॰180:1:2.1)
584 संसकिरित (= संस्कृत) (संसकिरितो पढ़लऽ हे ? ओमे एगो एसलोक हे -'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ... ।' ) (अमा॰176:14:2.19)
585 सइंतना (खाड़ गाड़ी के इंजन हुड़-हुड़ कर रहल हल । एजेण्ट यात्री के बोरा जइसन सइंतले जाइत हल ।) (अमा॰181:18:1.24)
586 सकदम (अइसन अनाथ के जान बड़ी सकदम में फँसल रहऽ हे ।) (अमा॰180:14:1.1)
587 सकरी (नवादा जिला के छाती पर बहेवला 'सकरी' नदी झारखंड के घोरंजी गाँव से निकसल हे, जे देवरी प्रखंड में पड़ऽ हे ।) (अमा॰175:7:1.6)
588 सखरी (अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ? बर्तन मलतो त सखरी लगले रह जा हई, झाड़ू-बहारू करतो त एक कोना बहरा हई, एक कोना गंदे रह जा हई ।) (अमा॰180:13:1.16)
589 सटले (= से सटा हुआ) (घोड़-सिम्मर के सटले 'बेला' गाँव हे जहाँ बेल के बगइचा हलइ, जे ठाकुरे साहेब लगौलन हल ।) (अमा॰175:8:1.12)
590 सटासट (जेकर गेयान गोबर भे गेल, उहे मचान चढ़ झाँकऽ हे । कम्बल ओढ़ मारऽ हे सटासट आउ कदाचार बढ़ावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.8)
591 सतुआ-गुड़ (सावन पहिला पख पंचमी से परब के पसार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे ॥) (अमा॰181:15:1.2)
592 सतेआनास (= सत्यानाश) (मुचकुन पाँड़े तखनी नन्दुओ बाबू पर बोल उठलन हल -'सतेआनास ! सतेआनास ! तों एफ॰ए॰, बी॰ए॰ की कइलें नन्दू, कुल-खनदान नसा देलें ।') (अमा॰176:14:1.32)
593 सधल (सधल हाथ से बनल खेलौना सबहे के मन मोह ले हल ।) (अमा॰175:5:2.3)
594 सन् (= सन, -सा) (बहुत्ते ~) (ऊ दिन नन्दू बाबू के साथे ऊ दुरगा स्थान पहुँचल हल, त हुआँ बहुत्ते सन् बुतरू जुटल हल लट्टू खेले ला ।) (अमा॰176:13:2.15)
595 समांग (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.10)
596 सरकार (= पंडित, पुरोहित) ('दण्डवत सरकार !' - 'आनन्द रहऽ जजमान ।'; सरकार ! हम्मर मतारी के हालत ठीक न हे ।) (अमा॰179:13:1.4, 8)
597 सरपंच (एक दिन गाँव के सरपंच बुढ़िया के देखे ला पहुँचलन ।; सराध के बाद राम लाल आउ श्याम लाल सम्पत्ति के बँटवारा ला गाँव के पंच लोग के बोलयलन । सरपंच साहेब पुछलन -'कहऽ, कउन चीज के पंचइती करे ला हो ।') (अमा॰179:10:1.24, 2.24)
598 सरापना (= शाप देना) (हम्मर मरद कुत्ता निअर एकरा-ओकरा पीछे पोंछी हिलावइत फिरे हे । अब सुनऽ ही कि रूस जाइत हे कुतवा । जेन्ने जाय के मन हउ, जो ! मर कोढ़फुट्टा ! अइसन पति ला तीज करबई कि दिन-रात सरापिते रहबई ।) (अमा॰177:10:2.6)
599 सवारथी (= स्वार्थी) (रामटहल, तूँ पक्का सवारथी हें । तूँ हमेसा केवल अपने बारे में सोचऽ हें ।) (अमा॰175:10:2.32)
600 ससुरइतिन (अब तो दुलरइतिन बेटी भेलऽ ससुरइतिन, मानी लेहूँ मइया के बात बेटी हमरो ।) (अमा॰183:17:1.1)
601 सहमल (लउटे घड़ी देखते-देखते हमनी के बस काठमांडू के पहाड़ी रस्ता पर आगे बढ़े लगल, त पता चलल कि आज चनरमा भी उदास हे, सहमल हे । ओकर आधा से कम चेहरा असमान के करिया ओढ़ना में तोपायल हे आउ शांत दृष्टि से ऊ हम्मर मुँह के निरेख रहल हे ।) (अमा॰184:14:2.20)
602 सहेजना (भारत के किसान हमनी के पेट भरे ला अनाज तो देबे करऽ हथ, भारतीय संस्कृति आउ सभ्यता के भी ऊ लोग सहेज के रखले हथ ।) (अमा॰179:3:1.6)
603 सामर (= श्यामल, साँवला) (सुडौल शरीर, औसत कदकाठी, सामर रंग, सुघड़ बनावट, कुसल बेवहार आउ मिसरी घोरल बोली पुष्पाजी के व्यक्तित्व में चार चान लगा दे हल ।) (अमा॰177:6:1.14)
604 सिकड़ी (= सिकरी) (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल । केंवाड़ी के बाहर के सिकड़ी झनझनाए लगल ।) (अमा॰182:13:1.21))
605 सिखहर (मोटका बिलरवा कोठी चढ़के सिखहर पर नजर गड़यले हे ।) (अमा॰185:13:1.28)
606 सिन (= सन, -सा, से) (छप्पर से चू के पानी टप सिन ओकर आँख पर पड़ल ।; हाली सिन अप्पन बाउजी के हाथ में गाय के पोंछी पकड़वा के दान करवा द ।) (अमा॰182:13:1.15; 186:5:1.17)
607 सिलाई-फराई (लड़की पढ़ल-लिखल हल, बड़ी समझदार । ओकर समझदारी ाँव में बड़ी प्रसंसा के विषय हल । ऊ सिलाई-पराई भी करऽ हल ।) (अमा॰177:9:2.17)
608 सींघ (= सींग) (जग-जननी के दुत्कारऽ, सींघ से जमीं के खुरछाड़ऽ, दुइए साल पर लताड़ऽ, आवऽ बैल हमरा मारऽ ।) (अमा॰184:16:2.12)
609 सीमाना (= सीमा) (दूर देस तक अप्पन नाम, रूप, यश, कृति आउ सरोकर से परसिद्ध रहल मगध देस के राजा-रजवाड़ा में टिकारी के सुनाम हे, जे आझ गया जिला के सीमाना में हे ।; ब्रज प्रदेस के मथुरा क्षेत्र से मगध के राजगीर कोई नगीच थोड़िए हे । राह चलइत-चलइत तीनों के 14वाँ दिन हो गेल, तइयो एहनी मगध के सीमाना में न पहुँचलन ।) (अमा॰180:18:1.3; 181:18:1.5)
610 सूद-मूर (हम सूद-मूर सब छोड़े ला तइयार ही, बाकि थोड़ा सा अदमी नियन तूँ बोल दे । हमरा आउ कुच्छो न चाही ।) (अमा॰182:11:2.11)
611 सोई (= स्रोत, सोता; झरना) (ई जगह परकिरति सोई के नाम से कालान्तर में विख्यात हो गेल, जे गया जिला के गुरुआ से छव किलोमीटर के दूरी पर बसल भुरहा के नाम से जानल जाहे । भूर कहे के माने छेद से पानी हद-हद निकले से ई भुरहा कहलायल, जहाँ मध्य काल में कुछ देवालय भी बनावल गेल ।) (अमा॰178:18:2.4)
612 सोई-झरना (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।) (अमा॰180:6:1.1)
613 सोहनी (= निकौनी) (जब भी हम पौधा सबके सोहनी करऽ हली, चाहे पानी पटावऽ हली, तब मन होवे कि ओकरो कुछ सेवा कर दीं । बाकि अप्पन इच्छा के बावजूद ओकर सोहनी न कर पावऽ हली, काहे कि ओकर जड़ ईंटा के देवाल के बीच में हल ।) (अमा॰181:13:1.23)
614 हँड़िया-बरतन (आज तक हमनी खेत, घर-दुआर, हँड़िया-बरतन, सब चीज के बँटवारा करली हे । लेकिन पूरा समाज ला ई बड़ी शरम के बात हे कि आज हमनी के माय-बाप के बँटवारा करे ला इहाँ पर जमा होवे पड़ल हे ।) (अमा॰184:7:2.7)
615 हउँकना (= झलना) (एगो छोटहन लकड़ी के टुटान चुल्हा में लगाके बाँस के पंखा से हउँके लगल आउ आँख मले लगल ।) (अमा॰182:13:2.24)
616 हगना (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.12)
617 हग्गल (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.12)
618 हमन्हीं (अइसन अदमी तो चिरागो लेके ढुँढ़ला पर नैं मिलऽ हे । दोसर-दोसर बड़जतियन के देखऽ, हमन्हीं तो फुटलो आँख नैं सोहा ही । बाकि नन्दू बाबू के तो बाते जुदा हे । उनके चलते पढ़लऽ-लिखलऽ तों ।; दुन्हूँ चपरासी अभियो हमन्हीं के सलामी दागऽ हे ।; एही तो हल जे ऊ रोज हमन्हीं के फुलेसर, सुरेश, नरेश आउ रमासामी के संगे लट्टू नैं खेले देलक हल ।) (अमा॰176:13:1.21, 25, 14:1.19)
619 हरहोर (अठारह सौ अस्सी के एकतीस जुलाई रहे, लमही नगरिया भेल सोर मोरे भइया । मुंशी अजायब के घर अयलइ ललनवाँ से, गाँव-घर भेलई हरहोर मोरे भइया ।) (अमा॰181:20:1.2)
620 हरियरी (फुलवा ! ए फुलवा ! तनी-मानी गइया ला हरियरी काट के लेले आव तो ।; सड़क के पार खेत के हरियरी में मन भुलायल रहल ।) (अमा॰182:14:1.23; 183:11:2.12)
621 हाँहे-फाँहे (~ दउड़ल जाना) (जब-जब बुढ़िया के तबियत खराब हो जाए, गाँव-घर के लोग रमरतिया के खबर कर दे हलन । खबर सुनइते रमरतिया मइया के सेवा ला हाँहे-फाँहे दउड़ल चल आवऽ हल ।) (अमा॰179:10:1.17)
622 हाजरी (उनखरे दसखत से इनखर आउ मास्टर लोग के हाजरी जायज होवऽ हे । ई दसखत करऽ हथ, तब जाके मोसहरा के बिल बनऽ हे ।) (अमा॰185:17:2.23)
623 हिगरायल (जब कभी कोई बूढ़ा के बाल उड़ल देखे, मइल-कुचइल आधा फट्टल धोती पेन्हले, गोड़ में फट्टल बेवाय, अंगुरी में पानी लग के बजबजाइत गोड़, पचकल गाल, नस-नस हिगरायल हाथ से सतुआ सानइत देखे, त ओकर आँख मुंदा जाय ।) (अमा॰182:14:2.32)
624 हिनखा (= म॰ इनका, हि॰ इनको; ~ में = इनमें) (ठाकुर अजीत सिंह बड़ कुशल, वीर, बुद्धिमान, नीडर आउ धार्मिक प्रवृत्ति के मानुस हलन । हिनखा में सिंहत्व आउ देवत्व दुनहूँ गुन हल ।; शंकरजी हिनखा वरदान में एगो उड़न्त-घोड़ा आउ सरिता देलन हल, जेकर नाम तखने 'शंकरी' आउ अखने 'सकरी' हे ।) (अमा॰175:7:1.24, 27)
625 हिरिस (अइसने हिरिस तोहर मन में बनल रहे, दिलवा तो हमरा ला तोहर टंगल रहे, अयबऽ न फिन तूँ दोसरा के अंगना । हो गेलो हे लोभ तोरा देख मोर गहना ।) (अमा॰184:20:1.23)
626 हुअँइ (जब हम पहिले-पहिल एगो कवि-सम्मेलन में गेली हल तब डॉ॰ रामानुज तिवारी से हुअँइ परिचय होयल हल ।) (अमा॰179:8:1.2)
627 हुमाद-अगरबत्ती (सब मुरती के भोरे-भोरे नेहावल-धोआवल गेल, पूजा-पाठ, धूप-हुमाद भेल । सगरो हुमाद-अगरबत्ती के सुगंध पसरल हल ।) (अमा॰183:13:1.19)
628 हुरचुल्ली (= हुलचुल्ली) (~ सूझना) (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।) (अमा॰175:9:1.8)
629 हूब (अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ? ... गोबर-गोइँठा करे के एकरा हूब हई ?) (अमा॰180:13:1.18)
630 होड़ियाना (मन ~) (जनानी में ई रोग के लक्षण मरद से अलग होवऽ हे - गर्दन, बाँह में दरद, छाती में जकड़न, पसेना आवऽ हे इया मन होड़िया हे ।) (अमा॰179:7:2.8)
ई सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ । उदाहरण -
जुलाई 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 1;
दिसम्बर 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 6;
दिसम्बर 1996 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + 12 = 18;
दिसम्बर 2007 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2007-1995) X 12 = 6 + 12 X 12 = 150;
दिसम्बर 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2009-1995) X 12 = 6 + 14 X 12 = 174;
जनवरी 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 1 = 6 + 13 X 12 + 1 = 163.
अप्रैल 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 4 = 6 + 13 X 12 + 4 = 166.
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(अंक १ से ३० एवं अंक १६३ से १७४ में प्रयुक्त मगही शब्द के अतिरिक्त)
*****************************************************************************1 अँटिऔनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
2 अँतड़ी-पचउनी (रात हो जतई आउ कोई न रहतई, त सियार-कुत्ता बेचारा के अँतड़ी-पचउनी निकाल देतई ।) (अमा॰181:14:1.21)
3 अंगना-ओसारा (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.16)
4 अइरखा (~ के = अनखा के) (धीरे-धीरे गछिया हो गेल तइयार, केकरो न अइसन उपजल बरियार । तोड़ के खा गेल बाबाजी के बाछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ? जाके चेतउली हम बाबाजी के, जानियो न हम कहऽ दादाजी के । अइरखा के बुनले हे मड़ुआ के गाछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ? ) (अमा॰185:15:2.12)
5 अईं (दुआरी के बहरी गनउरा लेले जाइत सँचइयावली सुनके झनके लगे । गली में से गुजरइत मेहरारू सब से अप्पन सफाई देवे लगे -'अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई ।') (अमा॰180:13:1.7)
6 अउंघी (खूब रोयलक । कँपसइत-कँपसइत ओकरा अउंघी आ गेल ।) (अमा॰177:13:2.20)
7 अकासवानी (= आकाशवाणी) (अमा॰175:7:2.24)
8 अकूत (~ भंडार) (झारखंड के भौगोलिक संरचना पठारी हे, जहाँ वनिज आउ खनिज सम्पदा के अकूत भंडार छिपल-पड़ल हे ।) (अमा॰175:7:1.4)
9 अकेलुआ (सोनपरी पर तो दुःख के पहाड़े टूट पड़ल । एक तो अकेलुआ औरत, दूसरे में बेटी रिंकी के बिआह के चिंता । जहाँ कोई लइका बतावे, उहाँ उदड़ पड़े, बाकि हतास होके लउट जाए ।) (अमा॰177:14:2.16)
10 अखनियों (= अभी भी) (हम तो जाइत ही, बाकि तूँ अखनियों से चेत जा ।) (अमा॰183:8:1.28)
11 अखनौं (= अखनियो; अभी भी) (घोड़-सिम्मर में छितरायल अनगिनत पाषाण के घोराही, मुदा मथानी के अखनौं देखल जा सकऽ हे ।) (अमा॰175:8:1.3)
12 अगलगाउन (गुन महान नयँ चमड़ी करिया, अगलगाउन हे गोरकी तिरिया ।) (अमा॰178:9:1.17)
13 अगाते (कण्व ऋषि के प्रयागराज से लउटे के दू दिन अगाते दशरथ जी विभांडक मुनि के आदरपूर्वक कुटिया में पहुँचा के वापस अयोध्या लउट अयलन ।) (अमा॰181:19:2.24)
14 अगिया-लगउनी (ई अगिया लगउनी बुनी तो छूटे के नामे न लेइत हई । बिहने कइसे हम खाए बनयबई ? चुल्हवा तर तो डोभ पानी लग जतई ।) (अमा॰182:13:1.11)
15 अछइत (= छइते; रहते) (सहल न जाहे बाबू भइया, हाथ में अछइत बेलना-लोढ़िया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.9)
16 अझुरा-पझुरा के (ऊ हमेशा बात के अझुरा-पझुरा के बोलत ।) (अमा॰180:10:1.2)
17 अटल-पटल (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।; केतनन तो अबहिओं सुअर के बथान जकत एक्के जगह रहे पर मजबूर हथ । हम्मर नइहर में गनउरिया हीं दुइयो गो कोठरी हई आउ तनि सा बरामदा । ओकरे में खाय-पानी, बैल-बकरी, कोठी-भाँडी, सब अटल-पटल हई ।) (अमा॰180:6:1.2, 14:1.26)
18 अठमी (= अष्टमी) (भादो पहिला पख अठमी के जनम कृष्णजी लेलन हल । राजा कंस के जान लेवे ला काल बन के अयलन हल॥) (अमा॰181:15:1.13, 18)
19 अदहन (एक दिन ले अयलो कनेमा भरल तसला पानी । अदहन चढ़ावे जा रहलो हल ।; तरकुल के छाँह भेल जिनगी । रेत भेल नदी के कहानी, खउलइत हे दिन जइसे अदहन के पानी, चूल्हा के धाँह भेल जिनगी ।) (अमा॰180:13:1.22; 184:1:2.6)
20 अधकनी (स्वामी के सेवा करला से हमरा खूब संतोष मिले, चैन मिले हे तखनी जाके मन हम्मर कुछ खुस दिखे, एतनो पर कीमत नयँ देहऽ, समझऽ ह खखरी अधकनी ।) (अमा॰177:20:1.22)
21 अधमरल (जइसहीं चोरवा गिरलई, ओइसहीं ओकरा पर लत्तम-जुत्तम एतना होलई कि ऊ अधमरल जइसन हो गेलई ।; तुरन्ते तीन-चार गो सिपाही सब अधमरल चोरवा के जीप में डाल के थाना में ले गेलन ।) (अमा॰179:11:1.12, 21)
22 अधार (= आधार) (ई गाय तो हम न देम, काहे कि एही गाय के दूध हम्मर बाल-बुतरू के जीवन के अधार हे ।) (अमा॰186:5:1.20)
23 अधोखरी (~ बात) (जोगन ! अइसन अधोखरी बात मत बोल । तूव हमरा से औरत के इलाज करावे ला सूद पर पइसा ले अयले हल । अइसन सफेद झूठ मत बोल ।) (अमा॰181:10:1.23)
24 अनगुती (अनगुती पहर जब कण्व ऋषि जंगल में टहल रहलन हल, त एगो जंगली भईंसा के कंकाल देखाई पड़ गेल ।) (अमा॰181:19:1.12)
25 अन्हार-पन्हार (ऊ अप्पन डिउटी पर तैनात होयल हल अन्हरिया में लोग-बाग के मदद करे लेल । खूब अन्हार-पन्हार हो गेल हल ।) (अमा॰186:6:1.7)
26 अमड़ा (छुट्टी भेला पर घरे आयल, त इहाँ फिर उहे खिचड़ी तिसिअउरी आउ एगो अमड़ा के झूँजल फाँक ।) (अमा॰182:14:1.20)
27 अमस्या (= अमावस्या) (परसों सावन के अमस्या हे । तहिने पंडित जी के जनार-खनार करा देहो आउ पहिलरोपा के सब समान ला देहो ।) (अमा॰186:6:2.25)
28 अरजल (~ खेत) (कातो एतना बढ़िया-बढ़िया खेत सड़क किनारे मकान बनावे वला, सब्जी उपजावे वला नरेसवा के बाबू जी नीलाम कर देलथिन । औने-पौने बेच देलथिन । बेटवा रहतई हल त बेच देतई हल बाप-दादा के अरजल खेत ? मंगनी में मिलल धन के केकरा मोह-माया रहऽ हे ?) (अमा॰180:13:2.19)
29 अराधना (= आराधना) (अमा॰175:5:2.20)
30 अलमारी (हमनी के कमरा में भगवान के मनभावन फोटो आउ धार्मिक पुस्तक से अलमारी भरल हल ।) (अमा॰184:11:1.17)
31 अल्मुनिया (= अलमुनिया) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.21)
32 असान (= आसान) (ई तो बहुत बढ़िया बात सोचले हें । बाकि ई एतना असान हइ का ?) (अमा॰176:10:2.20)
33 असानी (= आसानी) (बिदेसी पर्यटक ला थोड़ा बंदिस हे । बाकि राजन के चलते हमनी के असानी से टिकट आउ परवेस मिल गेल ।) (अमा॰184:13:2.10)
34 अस्थिर (= स्थिर) (फिन अस्थिर से बइठ गेली ।) (अमा॰176:7:2.26)
35 आज-बिहान (ऊ कमायल मजदूरी माँगइत-माँगइत हमनी दुन्नो परानी थक गेली हल । अपने आज-बिहान कह-कह के टरकावित-टरकावित चार-पाँच साल बिता देली ।) (अमा॰181:11:1.21)
36 आनी (= यानी, अर्थात्) ('केकरा गरिआवइत हहुँ ?' -'तोरे पहुना, आनी अप्पन पिलुअहवा भतार के ...।') (अमा॰177:10:1.11)
37 आयँ-बायँ-चकरायँ (= आईं-बाईं चकहाईं ; आयँ-बायँ-चकहायँ) (पइसा लेवइत घड़ी एक्को बार तूँ कमायल पइसा के चर्चा न कयले, लेकिन जब सूद के पइसा माँगे अइली हे, तब तूँ आयँ-बायँ-चकरायँ बतिआइत हें ।) (अमा॰181:10:2.15)
38 आरी-पगारी (फुलवा खिचड़ी खयलक आउ एगो चमकी ओढ़ के धान के आरी पकड़ के चल देलक इस्कूल में पढ़े । आरी-पगारी पर पिच्छुल भेल हल ।; अभियो फिसिर-फिसिर पानी पड़इते हल । आरी-पगारी, डग्घर होवित फुलवा देरी से इस्कूल पहुँचल हल ।) (अमा॰182:14:1.7, 10)
39 आल-औलाद (अब चिन्ता करे के कउनो बात न हे । अपने के आल-औलाद सब शान्ति से रहत ।; आल-औलाद सब बिना काम के व्यस्त रहऽ, व्यस्त रहऽ !) (अमा॰185:11:1.11; 186:11:2.16)
40 इँकसना (= इकसना, निकलना) (बिरजू के मुँह से 'रेडी' इँकसल हल कि सब्भे लरिकन लट्टू नचावे लगलन हल ।; ऊ दिन ऊ मुँहझप्पे इँकस गेल हल घर से नन्दू बाबू के साथे ।; जाड़ो के कँपकँपी में लरिकन मुँहझप्पे सुत-उठके घर से इँकस जाहे खेले ला ।; पढ़तऽ हल, तब तोहर दिल से सब नफरत इँकस जइतो हल ।) (अमा॰176:13:1.18, 2.1, 6, 14:2.6)
41 इंतकाल (मुकुन्दी जी के इंतकाल के पाँच बरिस हो गेल । अढ़ाई बरिस तो नन्दुओ बाबू के मरला हो गेल ।) (अमा॰176:15:1.24)
42 इंतिहान (= इम्तिहान, परीक्षा) (हम इहाँ इंतिहान देवे अइली हल बाबा ! इंतिहान के बाद स्टेशन पहुँचहीं वाला हली कि गाड़ी खुलल दिखाई देलक ।) (अमा॰181:14:1.30, 31)
43 इंदरा (= इनरा, इनारा, कुआँ) (अगर इहाँ इन्साफ न मिलत त दुन्नो बेकती इंदरा में कूद के मर जायम ।) (अमा॰184:7:1.22)
44 इजलास (जज के इजलास सजल हे । कुर्सी पर जज साहेब बइठल हथ । कठघरा में जोगन आउ बगल में उनकर वकील तारालाल खड़ा हथ ।) (अमा॰182:9:1.2)
45 इद्धिर (= एद्धिर, इधर) (देख रहल हें उद्धिर की तूँ, बोलइत हे ऊ इद्धिर ताकू । आज पँचटकिया नयँ देमे, त मारिये देबउ छूरी-चाकू॥) (अमा॰180:16:2.7)
46 इनकनी (= इनकन्हीं) (बर्नाट सा आउ न्यूटन के साथे मनोवैज्ञानिक फ्रेट भी अप्पन औरत से प्रताड़ित हलन । इनकनी सबके रासि-गनना न बइठल हल ।) (अमा॰178:11:2.27, 13:1.19)
47 उकटवाना (जवानी में तोरा से चौधरी टोला के कोई लड़की बचवो कैल हल ? तोरे डरे चौधरी लोग ताड़ी में जहर फेंटके बेटी के पिलावऽ हलन । पचास बरिस में भी कभी बगइचा में, त कभी पगार तक लइका-लइकी जौरे पकड़ा हलऽ । हमरा से आउ मत उकटवावऽ ।) (अमा॰178:17:1.33)
48 उगाही (टैक्स लगावल आसमान में उड़े ला हे मनाही । बाकि बाज बनल इंस्पेक्टर उगाही में न होवे कोताही ।) (अमा॰184:17:1.28)
49 उछाह (साथ भेल झाड़ आउ झाँखर, बिसर गेल अब कबीर के ढाई आखर, झुट्ठे उछाह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.19)
50 उदड़ना (सोनपरी पर तो दुःख के पहाड़े टूट पड़ल । एक तो अकेलुआ औरत, दूसरे में बेटी रिंकी के बिआह के चिंता । जहाँ कोई लइका बतावे, उहाँ उदड़ पड़े, बाकि हतास होके लउट जाए ।; सुबह समय से नस्ता लागी चूल्हा-चउका जोरऽ ही, रोटी-सब्जी भुंजा-फुटहा कुछ भी लेके उदड़ऽ ही ।; ई भी दउड़ल, ऊ भी दउड़ल, अगल-बगल के लोग भी उदड़लन ।) (अमा॰177:14:2.17; 177:20:1.14; 184:10:1.14)
51 उद्धिर (= ओद्धिर, उधर) (देख रहल हें उद्धिर की तूँ, बोलइत हे ऊ इद्धिर ताकू । आज पँचटकिया नयँ देमे, त मारिये देबउ छूरी-चाकू॥) (अमा॰180:16:2.7)
52 उधकाना (छोड़ के अप्पन संस्कृति के का हमनी अपनावइत ही ? ... फिलिम हिरोइन खोल के कपड़ा खोले जवानी के खिड़की, ई सब करके युवा पीड़ी के मनवाँ के उधकावइत ही ।) (अमा॰179:16:2.5)
53 उधार-पइंचा (बाकि अगला साल लगन चढ़इते रमरतिया के शादी उधार-पइंचा लेके हो गेल ।) (अमा॰179:9:2.33)
54 उनकनी (= ओकन्हीं) (कालिदास के कउन न जानऽ हे । 'उपमा कालिदासस्य' कहाउत प्रसिद्ध हे । इनका आगे सेक्सपियर भी छोट हथ । उनकनी तो रहते-सहते पिटयलन हे, बाकि कालिदास तो 'प्रथमग्रासे मक्षिका पाता' से दुःखित हलन । घरनी विद्योत्तमा उनका छत पर से पीछे गिरा देलन ।) (अमा॰178:13:1.32)
55 उन्हका (जमीन्दारी जीवन तो उन्हका जीना न हे, से सब कुछ ठीक-ठाक हे । कहियो घर में टन-टुन होते उन्हका हीं न देखलक कोई ।) (अमा॰178:16:2.31, 32)
56 उबिअहट (हमनी के प्राण संकट में फँस गेल हे । न छोड़ते बने, न पकड़ते बने । बड़ी उबिअहट हे । व्यर्थ में हमनी धन-सम्पत्ति लेके जंजाल में अझुरा गेली ।) (अमा॰180:13:1.30)
57 उल्टा-सीधा (~ बात करना) (हम तोर बेमारी सुन के पइसा देली आउ तोर मरद पइसा देवे के नाम पर उल्टा-सीधा बात कर रहलउ हे ।) (अमा॰181:11:1.13)
58 उल्लु-दुयू (= उल्लु-धुत्तु) (बुढ़िया के चारो पुतोह लड़ाकिन हथ । हर-हमेसे ऊ सब एकरा साथे टंटा पसारले रहऽ हलन । कउनो बेटन के धेआन नऽ हल एकरा पर । उल्टे ओखनी एकरे उल्लु-दुयू करइत रहऽ हलन, डाँट-फटकार सुनावइत रहऽ हलन । कहिनों भर-पेट खाय ला न मिलऽ हल बेचारी के ।) (अमा॰177:16:2.20)
59 ऊपर-झापर (सरकार ! हम्मर मतारी के हालत ठीक न हे । ... सरकार ! जल्दी करीं आउ चलके तनि ऊपर-झापर देख लीं ।) (अमा॰179:13:1.12)
60 एक-दिसहीं (~ से) (चुप ! एक-दिसहीं से सबके पीटे लगबउ । हम कहली हे तोरा सबके पढ़े ला आउ तूँ सब बदमासी करे ला सुरू कर देले ।) (अमा॰175:10:1.1)
61 एक-दिसहे (~ से) (हँसबे तूँ सब ! मार-मार के एक-दिसहे से ठीक कर देबउ ।) (अमा॰175:10:1.30)
62 एकन्हीं (एकन्हीं के हमहीं घर-घर जाके बोलइली हे, तोरा एतराज काहे हो एकरा पर ?; एकरे ला ने लेमोचूस खिला-खिला के परका रहले हें एकन्हीं के ?) (अमा॰176:14:1.29, 2.11)
63 एकबाल (= अकवाल, सौभाग्य) (कखनी केकरा फेरा लग जायत, से केकरो पता न हे । अभी शिवदानी बाबू के एकबाल चलल हे, तीन-तेरह असानी से कर रहलन हे ।) (अमा॰180:10:2.17)
64 एकबैक (= एकबैग) (सधारन परिवार के एकबैक एतना पइसा जुटावल असान काम न हे ।) (अमा॰185:12:1.18)
65 एकसुरे (दिवाकर के बाबू एकसुरे दउड़ल सचिवालय हॉल्ट जाके रेल पकड़लन ।) (अमा॰175:13:2.26)
66 एजा (= एज्जा, इस जगह पर) (देख रे मदना । एजा परी ढेर छउँक-बघारत मत कर । चुपचाप चल जो, न तो तोर हालत खराब कर देबउ ।) (अमा॰183:7:2.23)
67 एजुने (= यहीं, इसी जगह पर) (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
68 एती (~ घड़ी) (कउन बूढ़ा-बूढ़ी के एती घड़ी अराम हई ? सब तो करमे कुँटइत हथ । ई बेटी के घर हथ, एही से हमनी बदनाम ही ।) (अमा॰180:13:2.3)
69 एसलोक (= श्लोक) (संसकिरितो पढ़लऽ हे ? ओमे एगो एसलोक हे -'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ... ।' ) (अमा॰176:14:2.19)
70 एहिजा (= इस जगह) (अरे फुट ! फुट एहिजा से । अयले हें डागडर बने । जउन मजा दारू में हे, ऊ मजा गड़ी-छोहाड़ा आउ घीउ-दूध में कहाँ ?) (अमा॰183:8:1.15)
71 एहिजे (= इसी जगह पर, यहीं) (न-नऽ ! गाय के अंगना मे लावे के जरूरत न हे । ओकर काम एहिजे से हो जतई । एहिजे से ओकरा दान करा देवल जायत ।) (अमा॰186:11:2.23)
72 ऑडर (= औडर, order) (ऑडर ऑडर ! अब कोर्ट के कारवाई शुरू करल जाय ।) (अमा॰182:9:1.8)
73 ओकन्हीं (हमरा रिटायरो कइला पर ओकन्हीं के बेवहार में कोई फरक नैं आयल हे ।; नन्दू बाबू बोला के लइलन हल ओकन्हीं के ओकर टोला से ।; हाथ-पाँव ठिठुरइत रहे हे, पर ओकन्हीं सब लट्टू नचावे आउ गोली खेले ला बेचैन रहऽ हे ।) (अमा॰176:13:1.26, 2.3, 7)
74 ओज्जे (= उसी जगह, वहीं) (एक दिन मुखिया कमला देवी आमसभा से लउट रहलन हल, तखनिये धाँय-धाँय । लोघड़ गेलन ओज्जे ।) (अमा॰175:8:1.26)
75 ओझई (जे महीना में दू दिन स्नान करे, जेकरा पूजा-पाठ से कोई सरोकार न हे, ऊ चललन हे ओझई करे !) (अमा॰179:15:1.32)
76 ओझा-पंडित (हमरा पूरा बिसवास हे कि तोर मतारी के भूत दवा-दारू से जरूर भाग जाएत । लेकिन तोरा लोग के दिमाग में जे ओझा-पंडित के अंधविश्वास घर कएले हवऽ, ओकरा कउन दूर भगावत ?) (अमा॰179:15:2.11)
77 ओठंगना (एक तरफ बिटेसर आउ उनकर घरुआरी चबुतरा में ओठंग के बइठल हथन ।) (अमा॰184:7:1.4)
78 ओड़चन (तसला, कड़ाही, कठउती, कटोरा अगल-बगल बिछौना पर रक्खल हल, जेकरा में टप-टप पानी चुअइत हल । खटिया के ओड़चन एकदम भींग गेल हल ।) (अमा॰182:13:1.9)
79 ओड़िया (फुलवा अप्पन बाबा के साथे ओड़िया लेके पच्छिम पट्टी गोइँठा लावे चल गेल ।; सब गोइँठा ओड़िया में उठा के माथा पर रख लेलक आउ गते-गते चल देलक ।) (अमा॰182:13:2.7, 14)
80 ओढ़ना-बिछौना (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
81 ओलहन (फूलकुमारी तनी अप्पन सोभाव के अभिमानी हल । ऊ अइसन नञ चाहऽ हल कि हम दोसर के बैना खाऊँ आउ ओकरा नञ देऊँ । औरत जात के केकरो ओलहन सुने के नाम पर जादे गोस्सा हो जाहे ।; परसों सावन के अमस्या हे । तहिने पंडित जी के जनार-खनार करा देहो आउ पहिलरोपा के सब समान ला देहो । ... काहेकि हमहूँ तहिने सब गोतिया-नइया, पवनिया-पजहरिया के बैना-पेहानी दे देबइ । काहे लेल ई एगो शिकायत रह जायत । हम केकरो ओलहन बरदास्त करेवला न हिओ ।) (अमा॰186:6:2.18, 30)
82 ओसउनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.5)
83 औने-पौने (~ बेच देना) (कातो एतना बढ़िया-बढ़िया खेत सड़क किनारे मकान बनावे वला, सब्जी उपजावे वला नरेसवा के बाबू जी नीलाम कर देलथिन । औने-पौने बेच देलथिन । बेटवा रहतई हल त बेच देतई हल बाप-दादा के अरजल खेत ? मंगनी में मिलल धन के केकरा मोह-माया रहऽ हे ?) (अमा॰180:13:2.17)
84 कइसहियों (= कइसहूँ) (ऊ रमेसर बाबू के इहाँ चउका-बरतन करके कइसहियों अप्पन बेटा रामदेउआ के लालन-पालन करलक हल ।) (अमा॰177:9:1.18)
85 कउआ-हँकनी (फुलवा मइया के अँचरा में मुँह छिपावइत बोललक -'ए मइया ! कउआ-हँकनी ओला कथवा कह न ।') (अमा॰182:13:1.30)
86 ककोलत (बैसाखी-बिसुआ मगह में अंतिम परब गिनावऽ हे । ककोलत के कनकन पानी गरम देह ठिठुरावऽ हे॥) (अमा॰181:15:2.32)
87 कजै (= कज्जो, कहीं) (न केकरो कोय सुने न केकरो कोय ताके हे । सब अप्पन-अप्पन राग अलगे अलापे हे । कजै उठापटक हे, कजै गुत्थमगुत्थी हे । कजै कोय आग लगैलक कजै फेंकलक लुत्ती हे ।) (अमा॰185:16:1.13)
88 कटनी-बंधनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
89 कटहर-कोवा (नाग पाँचे के सुनऽ कहानी हरियर सावन मास में । आम पकल कटहर-कोवा के भाव रहे अकास में ॥) (अमा॰181:15:1.4)
90 कटास (काहे तूँ रूस गेलऽ बउआ जइसन, घामा तूँ कयलऽ कटास हो । केनहूँ न बादर देवे देखाई, नयना निहारइ अकास हो ।) (अमा॰182:16:1.10)
91 कट्ठा-कट्ठी ('ई जाके लिखलई, तबे न ऊ बेचलई ? न लिखतई हल, त कइसे बिकतई हल ?' -'ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई । बेटी बिआहे ला हे, त घर बनावे ला हे, त बड़ी बढ़िया धनहर खेत बिकइत हइ एक्के ठामा । उहाँ त कट्ठा-कट्ठी हवऽ, खेती-बारी ठीक ढंग से न होवो, कउन जयतो उहाँ रहे-सहे ?') (अमा॰180:13:2.26)
92 कठउती, कठौती (तसला, कड़ाही, कठउती, कटोरा अगल-बगल बिछौना पर रक्खल हल, जेकरा में टप-टप पानी चुअइत हल । खटिया के ओड़चन एकदम भींग गेल हल ।) (अमा॰182:13:1.7)
93 कठदलील (अनुज जब जादे बोले लगलन, तब उनकर ससुरजी नराज होके बोले लगलन -'जादे कठदलील न देथिन । अप्पन उमर सीमा के भीतर रहथिन ।') (अमा॰178:16:2.4)
94 कठपेन्सिल (सब लड़कन कठपेन्सिल से लिखऽ हथ आउ ई बगली में दू-दू गो कलम खोंसले रहऽ हे ।) (अमा॰175:9:2.1)
95 कतकी ( = कार्तिक मास का) (~ छठ) (सन् २००८ ई॰ के कतकी छठ हम्मर जिनगी में एगो अलगे स्फूर्ति लेके आयल हल ।) (अमा॰185:5:1.1)
96 कन (= के यहाँ, के पास) (आखिर एक दिन अइसन आयल कि रामदेउआ के लगन भेल । एगो रिस्ता आयल बगले के गउआँ के परमेसर बाबू कन से ।) (अमा॰177:9:1.30)
97 कनमनाना (रुष्ट या अप्रसन्न होना) (सोनपरीके भउजाई दू-चार दिन तो नीमन से बोललथिन, बाकि फिर कनमनाय लगलन ।) (अमा॰177:13:2.29)
98 कन्ने (= किधर) (कन्ने ह हो शंकर !) (अमा॰179:13:1.26)
99 कबहियों (= कभीयो) (कबहियों परब-उरब में छुट्टी मिले तब आवऽ हल, कबहियों केकरो से पइसा-कपड़ा भेज देवऽ हल ।) (अमा॰177:9:1.22, 23)
100 कमायल-धमायल (कमायल-धमायल आउ पाँच साल पहिले के बात छोड़ । पहिले तूँ सूद के बात कर, सूद के ।) (अमा॰181:10:1.31)
101 कमिया (ऊ आगे भी सोचइत गेल, नोकरी करे में गुलामी के बात तो समझ में आवऽ हे, बकि अप्पन कम करे में भी लोग कमिया के अजाद काहे न रहे दे हथ ।) (अमा॰175:12:2.10)
102 कमोबेस (चाहे जउन रूप में ई रहलन, बाकि कमोबेस साहित्य-जीवन में बराबर उपस्थित रहलन ।) (अमा॰178:14:1.5)
103 करखाही (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.24)
104 करगी (बड़का गो हौल, जेकर करगी-करगी फूल-पत्री साजल हल, आगू स्टेज बनल हल) (अमा॰176:7:2.18)
105 करवावल (= करवाना) (हिन्दी तेलगू उड़िया मराठी संस्कृत इहाँ के देव भाषा, छोड़ धरोहर ई सब कुछ के का करवावल चाहइत ही ।) (अमा॰179:16:2.8)
106 करिक्का (= करिया रंग वाला) (जी, सब समान तइयार करके रख देली हे । करिक्का गइया के बच्चा सहित धोवा देली हे ।) (अमा॰186:11:2.19)
107 कहावल (गाय दान करल आउ कथा कहावल, ई तो जरूरी हे ।) (अमा॰185:12:1.30)
108 काट-कपट (~ के) (सोनपरी इस्कूल के कमाई में से दस हजार रुपइया कइसहूँ काट-कपट के रखले हल ।) (अमा॰177:14:2.8)
109 कायथ (= कायस्थ) (हँ-हँ नन्दू ! तों कायथ हें न, एही गुने बोलऽ हें । कायथ तो आधा मुसलमान होबे करऽ हे । अब सादी-बिआह, मरनी-जीनी में एही चमरन के पूज, हमनी के पूज के की होतउ तोरा !) (अमा॰176:14:2.8)
110 कार (= काला) (कविता लिकलऽ कत्ते सुन्नर, देखे मेम तूँ कार ह । मगही कविता मंदिर के तूँ सजल सिंगार ह ।) (अमा॰181:5:2.24)
111 कारवाही (एकरा चलते कभी-कभी झंझट भी खड़ा हो जाहे आउ मामला कानूनी कारवाही तक पहुँच जाहे ।) (अमा॰182:7:1.31)
112 किउल (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.9)
113 किरिया-कलाप (= क्रिया-कलाप) (हाथ में पइसा आ गेला पर अदमी के अप्पन किरिया-कलाप में बदलाव आ जाहे ।) (अमा॰175:14:1.9)
114 कुच्छो (पइसा ला हम तोरा साथे कुच्छो कर सकऽ ही ।) (अमा॰177:10:1.17)
115 कुटम्मस (= कुटाई; मार-पीट) (सत्तर साल के बुढ़िया सुमित्रा अप्पन चश्मा ठीक करइत सोचे लगल कि जमाना केतना बदल गेल हे । पहिले कुटम्मस होयलो पर पति लागी तीज बरत करऽ हल औरत, ओही औरत आज विरोध करे लागी तइयार हे कमर कसके ।) (अमा॰177:10:2.12)
116 कुदुकना (= कुदकना) (बनरी सब अप्पन बचवन के छाती में साटले छरपा-छरपी करइत हल । परसादी चढ़ाके निकललऽ कि बस, बन्दर सब कुदुक-कुदुक के केला, सेव, नारियल लेके पार ।) (अमा॰183:13:2.24)
117 कुफुथ (देख के मुँह फेर ले हथ, मँगला पर कुफुथ दे हथ ।) (अमा॰176:16:2.7)
118 कोट (= coat, court) (कुछ घींच-तीर के वकीली पास करतन आउ करिया कोट चढ़ा के कोट में चिनिया बेदाम फोड़इत रहतन ।) (अमा॰175:11:2.25)
119 कोठी-भाँडी (केतनन तो अबहिओं सुअर के बथान जकत एक्के जगह रहे पर मजबूर हथ । हम्मर नइहर में गनउरिया हीं दुइयो गो कोठरी हई आउ तनि सा बरामदा । ओकरे में खाय-पानी, बैल-बकरी, कोठी-भाँडी, सब अटल-पटल हई ।) (अमा॰180:14:1.18)
120 कोठी-भाढ़ी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
121 कोढ़फुट्टा (हम्मर मरद कुत्ता निअर एकरा-ओकरा पीछे पोंछी हिलावइत फिरे हे । अब सुनऽ ही कि रूस जाइत हे कुतवा । जेन्ने जाय के मन हउ, जो ! मर कोढ़फुट्टा ! अइसन पति ला तीज करबई कि दिन-रात सरापिते रहबई ।) (अमा॰177:10:2.5)
122 कोढ़िया (करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया ।) (अमा॰180:16:2.1)
123 कोना-सान्ही (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.16)
124 खँढ़ी (= खाँढ़ी) (तीन बरिस के जब हल दिवाकर, तब ऊ ममहर से अप्पन बाबू के साथे गाँव अयलक हल आउ लख पर सबसे पहिले दादा के गोड़ लाग के एगो सीसम के गाछी कबाड़ लेलक हल आउ अप्पन गाँव में घर के सामने बनल खँढ़ी में रोप देलक हल ।) (अमा॰175:13:1.12)
125 खँस्सी (= खस्सी) (कलयुग में अदमी के मुर्गा अहार हे । खाए में खँस्सी के कइसन बहार हे॥) (अमा॰181:17:2.19)
126 खजूर (तार-~) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.20)
127 खड़ड़-खड़ड़ (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल । केंवाड़ी के बाहर के सिकड़ी झनझनाए लगल । खड़ड़-खड़ड़ खपड़ा बजे लगल ।) (अमा॰182:13:1.22)
128 खन (= क्षण; कभी) (पहिले भी एगो काम न करल चाहऽ हलई, अब भी न करल चाहऽ हई । दिन-रात कातो देह में दरद रहऽ हई । खन पेट दरद, त खन माथा दरद, त खन कमर में दरद उपटल रहऽ हई । कँहरइत रहतो, ठुनकइत चलतो ।) (अमा॰180:14:2.9, 10)
129 खनती, खन्ती, खंती (= खनित्र) (एतना कह के बड़का भाई देवाल पर धाँय-धाँय खंती चलावे लगलन ।) (अमा॰178:19:1.11, 19, 29)
130 खपरी (जात के खपरी दरक गेल धरम के, पाँव लटकल हे कबर में करम के) (अमा॰175:17:2.18)
131 खपाची (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.21)
132 खम्हा (= खंभा) (बढ़ रहल दाम रोज, मौन सरकार हे । अन्हरा के रोसनी से कउन दरकार हे ? बिजली के खम्हा में तीने गो तार हे । मंत्री जी सोचऽ तनी, न्यूट्रल बेकार हे ?) (अमा॰178:8:2.17)
133 खरकट्टल (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.24)
134 खरच-बरच (अप्पन समान खरच-बरच करे में उनखा जादे मोह लगऽ हल आउ दोसर के खाय में तो नामे धरा गेल हल ।) (अमा॰186:6:2.9)
135 खरहरा (मुन्ना खेलौना ला रोधना पसार रहल हे । ओकर मट्टी के घोड़ा के टांग टूट गेल हे । ... सउँसे देह के खरहरा करऽ हल, मुँह में चना के दाना सटावऽ हल आउ गियारी में रस्सी बाँध के घिसियावऽ हल ।) (अमा॰175:5:1.3)
136 खाँची (हम्मर दुन्नो बेटा बेरोजगार हे । फुटानी झाड़े में समय गँवा देहे, मगर मटखान से मट्टी लावे में ऊ बेइज्जती महसूस करऽ हे । हम तो खाँची में मट्टी माथा पर ढो के लावऽ हली, ऊ बोरा में मट्टी भर के साइकिल पर भी न लावऽ हे ।) (अमा॰175:8:2.9)
137 खाद-पानी ('देवाल पर के पौधा में तो गजब के फल लगलइ हे !' -'हँ बाबूजी ! बाकि ओकरा पोषण कहाँ से मिललइ ? हम तो चाह के भी ओकरा खाद-पानी न दे पइली ।) (अमा॰181:13:1.28)
138 खुरछाड़ना (जग-जननी के दुत्कारऽ, सींघ से जमीं के खुरछाड़ऽ, दुइए साल पर लताड़ऽ, आवऽ बैल हमरा मारऽ ।) (अमा॰184:16:2.12)
139 खेत-पथार (बरसात के मौसम आयल हल । पानी से खेत-पथार हरिआयल हल ।) (अमा॰186:6:1.1, 4)
140 खेतिहर, खेतीहर (नरेन्दर के दू गो बहिन हल आउ ऊ बढ़िया खेतीहर किसान हल ।) (अमा॰179:12:1.4)
141 खेती-गिरहस्थी (राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । उन्हकर राय के बिना खेती-गिरहस्थी के एक्को काम न होवे वला हे ।) (अमा॰178:16:1.27)
142 खेती-बारी (धनपत अप्पन बेटा हलखोरी के तीसरा-चौथा किलास तक पढ़ला के बाद पढ़ाई छोड़ा देलक । खेती-बारी तो कमे हल आउ गाँव-घर में मजूरियो मिले में दिक्कते हल ।) (अमा॰175:14:1.2)
143 खेयाति (= ख्याति) (एगो आदर्श शिक्षक के रूप में उनकर खेयाति दूर-दूर ले फैलल हल ।) (अमा॰186:10:1.24)
144 खेसारी (= खेसाड़ी) (चनवा मटरवा खेसारी फुलायत, देख के किसान के मन अगरायत ।) (अमा॰177:17:1.24)
145 खोंइछा (मगही माय के खोंइछा में रगन-रगन के फूल भरेवाली पुष्पा अर्याणी के जलम उनतीस मार्च उन्नीस सौ एकतीस ई॰ के पटना सिटी के मच्छरहट्टा गली में भेल हल ।) (अमा॰177:5:2.21)
146 खोंखी (सरदी-~) (कुछ दिन काम कैला के बाद ओकर तबियत खराब भे गेल । सरदी-खोंखी के साथे-साथे देह में कमजोरी बुझाय लगल । गते-गते आँख के रोसनी कम होवे लगल ।) (अमा॰175:14:1.14)
147 गंडी (खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।) (अमा॰178:17:1.2)
148 गइया (बरसात के पानी में घास पोरसा भर के भेल हल । भर ठेहुना पानी में फराक समेट के ऊ थोड़े देरी में घास काट के गइया भिर रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.30)
149 गट्ठल (~ देह) (बेटा के भविस देख परवतिया चिंतित रहे लगल । खिलल चेहरा, गट्ठल देह गले लगल ।) (अमा॰178:7:1.1)
150 गड़गटाइन (= गरगटाइन) (धुआँ नरेटी में गड़गटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल ।) (अमा॰182:13:2.25)
151 गड़ाँसा (= गँड़ासा) (कजै खेल-तमाशा हे, पिजा रहल गड़ाँसा हे । कजै लौटरी हे, कजै बिछ रहल पासा हे ।) (अमा॰185:16:1.25)
152 गड़ेरिया (दुनिया के बहुते देस के छात्र प्रसिद्द नालन्दा विश्वविद्यालय में पढ़ के ज्ञान पयलन हे । फाहियान, ह्वेनसांग, इत्सिङ, मेगास्थनीज आदि ज्ञान पयलन । गड़ेरिया के ईमानदारी-सच्चाई पर ऊ मोहित हलन आउ लिखलन कि भारत के सधारन अदमी भी ईमानदार हे ।) (अमा॰181:7:2.26)
153 गढ़ुआना (हमनी ई बूढ़ा-बूढ़ी के कउन दुख देली हे । तीनों टाइम खाए लागी मिलहीं जाइत हइन । इहे चलते गढ़ुआ गेलन हे दुन्नो ।) (अमा॰184:8:1.22
154 गदानना (अब तक तो भउजाई एगो डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के । पड़लो-हरलो पर मदद न करऽ हलई । तनिक्को न गदानऽ हलई । दुआरी पर चढ़े न दे हलई । अब बिलाई बनल सटकल रहतई डरे । कखनी हिस्सा बँटा लेत भाई जकत ।) (अमा॰180:14:1.14)
155 गनउरा (= गोबर और कूड़ा-करकट का सड़ा रूप, खादर; गोबर, कूड़ा आदि इकट्ठा करने का गढ़ा या ठेर, घूर) (दुआरी के बहरी गनउरा लेले जाइत सँचइयावली सुनके झनके लगे । गली में से गुजरइत मेहरारू सब से अप्पन सफाई देवे लगे -'अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई ।') (अमा॰180:13:1.5)
156 गरवइया (= गरवैया) (सभे चिरइयाँ के बीच गोरैया, गरवइया, गोरइया आदि के नाम से परसिद्ध ई पक्षी संसार के प्रायः सभे अइसन जगह पावल जाहे, जहाँ न जादे गरमी रहे, न जादे जाड़ा ।; बहेलिया लोग द्वारा गरवइया के बगेरी के टोकरी में लाके गाँहक के हाथ बेच के धन कमाए के कारन भी एकर जान पर खतरा बन गेल हे ।) (अमा॰185:18:1.22, 2.20)
157 गरान (= ग्लानि, लज्जा) (हम अप्पन करनी पर गरान महसूस कर रहली हे ।) (अमा॰177:12:2.28)
158 गलवाती-घराना (पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर ।) (अमा॰175:7:1.17,18)
159 गली-कुची (गाँव-देहात के हाट-बजार इया गली-कुची में बिके वला खेलौना में आजो ई भाव मौजूद हे ।) (अमा॰175:5:1.13)
160 गाँव-घर (जब-जब बुढ़िया के तबियत खराब हो जाए, गाँव-घर के लोग रमरतिया के खबर कर दे हलन ।; गाँव-घर के लोग फुलवा के बेटा हीं भी खबर दे हलन कि तोर माय के तबियत खराब हउ ।) (अमा॰179:10:1.15, 20)
161 गाँहक (= ग्राहक) (खेलौना के दोकान में न तो सजावट, न सफाई, न मरकरी ट्यूब के चकाचौन्ध, न गाँहक के सोआगत ला मीठ बात के फुलझड़ी ।; बहेलिया लोग द्वारा गरवइया के बगेरी के टोकरी में लाके गाँहक के हाथ बेच के धन कमाए के कारन भी एकर जान पर खतरा बन गेल हे ।) (अमा॰175:5:2.5; 185:18:2.20)
162 गादा (मटर के गादा साथ भात में सब्जी में बहुत बनऽ हे । सबसे निखित अन्न हे मड़ुआ सेकरो जरूरत पड़ऽ हे॥) (अमा॰181:15:1.20)
163 गिंजन (कोई कहे -'सब दुख भगवान देवे, बाकि बेटी-दमाद घरे रहे वला दुख न देवे । बड़ी तौहीनी होवऽ हे ।' कउनो कहे -'कउची तौहीनी होवऽ हई गे ! बेटा-पुतोह भिर गिंजन न होवई ? कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ? ई दमदा घरे हई, सेई से ? बेटवा घरे रहतई हल, त पुतोहिया गोदी में खेलौतई हल ? बइठा के दूध-भात खिलौतई हल ?') (अमा॰180:13:2.10)
164 गिटिर-पिटिर (अइसन गिटिर-पिटिर संस्कृत तो कोई बोल सकऽ हे ।) (अमा॰186:12:1.23)
165 गिरफ्त (बाकि जउन एकर गिरफ्त में आ जा हथ, उनका एकर पकड़ से निकलना मोस्किल हो जाहे ।) (अमा॰185:3:2.23)
166 गुड़ के तिलकुट गया के दुन्नो पट्टी बने के नयका जगह के रूप में एक देन्ने 'डंगरा' त दोसर देन्ने 'टिकारी' के नाम आवऽ हे ।) (अमा॰180:18:1.11)
167 गेन्हाल (गेन्हाल चदरिया धुलतइ कब, कल आज बदलतइ जबतक नयँ ।) (अमा॰183:6:1.32)
168 गोड़थारी (बड़ेरी के फाँफर से बुनी के पानी चुअइत हल । गोड़थारी तर के आधा बिछौना भींग गेल हल ।) (अमा॰182:13:1.2)
169 गोड़पड़िया, गोड़परिआ (< गोड़+पड़ना) (= खुशामद, अनुनय-विनय) (जब ले टका न दीयइ ओकरा, हमहीं ओकर सबसे जिगरी। हाय दया दिल में आ जा हइ, पड़ल देख ओकर मुँह फेफरी॥ करवट लेइत रात गँवावइ, पौ फटते ही करइ गोड़पड़िया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.5)
170 गोड़यतिन (राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । .... बेकत भी नामे के गोड़यतिन हथ । बेवहार में केकरो कान काटे वाली । कहिओ उरेबी वचन उन्हकर मुँह से न निकले ।) (अमा॰178:16:2.25)
171 गोड़ापाही (अध्यक्ष जी गोड़ा-पाही करके बैंक में पइसो मंगा लेलन हे ।) (अमा॰185:17:2.13)
172 गोड़ायत (राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । उन्हकर राय के बिना खेती-गिरहस्थी के एक्को काम न होवे वला हे ।) (अमा॰178:16:1.25)
173 गोदाल (फिन गोदाल होयल कि एगो कविता आउ पढ़ल जाय, त हम जादे खुसामद न करइली आउ दोसर कविता 'गेल गुजरल' पढ़ली ।) (अमा॰176:8:2.9)
174 गोबर-गोइँठा (पुतोहिया मना करऽ हई -'काहे ला बर्तन मलऽ ह नानी ? झाड़ू-बहारू काहे ला करऽ ह नानी ? काहे ला गोबर-गोइँठा करऽ ह ? बनवऽ त तनि-मनी लइका-फइका धर ल आग जोरे तक ।'; अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ?; गोबर-गोइँठा करे के एकरा हूब हई ?) (अमा॰180:13:1.12, 15, 18)
175 गोल-गोल (~ बतिआना) (तोरा सबके विपत्ति के घड़ी मेंं काम चला देली । अब तोहनी सब आज गोल-गोल बतिआ रहले हें । मरद-मेहरारू दुन्नो के एक्के विचार हउ । पइसा देवे के तोरा सबके नीयत न हउ ।) (अमा॰181:11:1.30)
176 गोहना (जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
177 घचाक (सड़क के पार खेत के हरियरी में मन भुलायल रहल । अचानक एगो गहिरा में तांगा के पहिया घचाक से पड़ल आउ फचाक से कादो उड़ के हम्मर साड़ी पर पड़ गेल ।) (अमा॰183:11:2.13)
178 घरखनहा (पउआ लयलूँ पाटी लयलूँ आउ बनयलूँ खाटी, ओकरो पर मोटका बइठ गेल घरखनहा अटपाटी ।) (अमा॰183:10:1.17)
179 घर-गिरहस्थी (पढ़ाई-लिखाई के साथ घर-गिरहस्थी के ज्यान जरूरी हे ।) (अमा॰178:11:1.30)
180 घिसियाना (मुन्ना खेलौना ला रोधना पसार रहल हे । ओकर मट्टी के घोड़ा के टांग टूट गेल हे । ... सउँसे देह के खरहरा करऽ हल, मुँह में चना के दाना सटावऽ हल आउ गियारी में रस्सी बाँध के घिसियावऽ हल ।) (अमा॰175:5:1.4)
181 घुंघटा (ढेर दिन घुंघटा में रखलऽ, अब घूंघट नऽ ओढ़बो हम । मुरुख बनाके हमरा रखलऽ, तोर बात नऽ सुनबो हम ।) (अमा॰177:7:1.25)
182 घुरना (= लौटना) (कल्हे तो ऊ घरे से गेबे कयलन हल । हुनका दिवाकर गाड़ी पर चढ़ावित कहलक हल कि दू दिन बाद घुर के अइहऽ, त फिन हम तोरा साथे चलबुअ ।) (अमा॰175:13:2.13)
183 घुरल (~ चलना) (अरे तोरा नियन केतना अफसर हम्मर आगे-पीछे घुरल चलतन । रोज आके सुबह-साम सलामी बजैतन ।) (अमा॰175:12:1.3)
184 घूरा (घूरा तर बइठल बूढ़ा, सुख-दुख के राग सुनावे । रूसल दुलहिन के घर में, बड़का सब खूब मनावे॥) (अमा॰179:17:2.6)
185 घोंटियाना (उहाँ पंडित लोग बड़ी सालीनता से पूजा करयलन, कोई तरह के बकझक न । पहिले तो हम सोचऽ हली कि इहों के पंडा सब घोंटियावे वला होयतन, बाकि अइसन कोई तरह के झंझट न हल ।) (अमा॰183:14:1.22)
186 घोड़-सिम्मर (= घुड़सवार) ('घोड़-सिम्मर' के ऐतिहासिकता पर नजर गड़यला से ढेर मानी पुरनकन बात अइना जइसन लउके लगऽ हे ।; घुड़सवार ठाकुर अजीत सिंह दोआरा स्थापित स्थल के नाम 'घोड़-सेवार' मुदा अपभ्रंश में 'घोड़-सिम्मर' कहल जाहे, जे देखे जुकुर हे ।; चाहे कारन जे रहे, घोड़-सवार ठाकुर अजीत सिंह दोआरा स्थापित शिवलिंग स्थल के घोड़-सिम्मर मुदा घोड़-सवार कहना तनिक्को गलत नञ् हे ।) (अमा॰175:7:1.14, 2.14, 8:1.17)
187 घोरताहर (जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
188 घोरना (= घोलना) (पुष्पा अर्याणी के बातचीत के ढंग बड़ी रोचक हल । ऊ अप्पन संवाद के ठेठ मगही आउ कविता के चासनी में घोरले रहऽ हलन ।) (अमा॰177:6:1.27)
189 चइतावर (सुबह प्रभाती होली में होलियाल चइत चइतावर । जेठ आउ बइसाख मास में, घर-घर सजल महावर॥) (अमा॰179:17:2.4)
190 चकचेहाना ('नोकरी करऽ हल रेलवे में !' हम जरी चकचेहा के बोलली ।) (अमा॰177:16:1.32)
191 चनन (= चन्दन) (अमा॰183:6:1.18)
192 चनरमा (= चन्द्रमा) (पूरब दिसा में असमान पर से चनरमा हुलके लगलन । चनरमा के मुँह पर दूध के छाली जइसन उज्जर-उज्जर बादल के टुकड़ा उड़इत हल ।) (अमा॰183:12:1.9)
193 चमकी (= चिमकी, पोलिथिन; पोलिथिन से निर्मित बैग, घोंघी आदि) (फुलवा खिचड़ी खयलक आउ एगो चमकी ओढ़ के धान के आरी पकड़ के चल देलक इस्कूल में पढ़े । आरी-पगारी पर पिच्छुल भेल हल ।) (अमा॰182:14:1.5)
194 चमोकन (चिन्तक ही पर देस-धरम के तनिको चिन्ता न करऽ ही । चमोकन नियन सत्ता से सटके अप्पन काम बनावऽ ही ॥) (अमा॰182:20:1.12)
195 चरवाहा (सबसे सुन्दर तो तोर भविष्य हे कि बिना कोई डिग्री लेले, सतवाँ फेल कर के भइंस चरइहें आउ सब चरवाहा पर शासन करिहें, रोब जमइहें ।) (अमा॰175:11:2.30)
196 चल-चलाव (जे बेचारा हे सीधा-सादा, दुनिया के चल-चलाव से हे दूर, ऊ समझल जा हे बड़का बेलूर ।) (अमा॰184:15:1.10)
197 चलते (= कारण) (ई तो खाली तोरा चलते मंगा के पिलवा देली, काहे कि तोरा पर अभी बहुत भारी संकट आयल हे ।; एही चलते तो हम बाबा के पास दउड़ के अइली हे ।; बिछउती करिया आउ बच्चा देवेओला हलइ, ई चलते करिया जरोहगर गाय दान करल बहुत जरूरी हे ।) (अमा॰185:10:2.9, 29, 11:2.26)
198 चा (= चाचा) (मुँह सम्हार के बात करऽ गोपाल चा ! न तो ठीक न होतवऽ ।) (अमा॰184:8:2.14)
199 चिपरी (ओन्ने धनेसरी मसुरी के दाल आउ उसना चाउर के फेंट के धोलक आउ तसला में मट्टी के लेवन देके चुल्हा में आग जोड़ देलक । तनी-मानी गोइँठा के चिपरी पर मट्टी के तेल डाल के सलाई से धरा देलक, बाकि बार-बार आग बुता जाए ।) (अमा॰182:13:2.18)
200 चिरकउनियाँ (माहटर साहेब से कह दे । तोरा किलास में सब चिरकउनियाँ बनैले रहऽ हउ ।) (अमा॰175:9:2.25)
201 चीन्हल-जानल (इलाका के कउनो चीन्हल-जानल अदमी पर जब एकर नजर पड़ऽ हे, तब ई कटल चाहऽ हे ओखनी से ।) (अमा॰177:17:1.4)
202 चीन्हा-परिचय (हम तो सोचली कि रामबाबू के चीन्हा-परिचय के कोई हथन ।; चीन्हा-परिचय होला पर ऊ दिल खोल के हमनी के खातिरदारी करे लगल ।) (अमा॰184:12:1.1, 2.12)
203 चुड़ी (~ चढ़ाना) (पउआ लयलूँ पाटी लयलूँ आउ बनयलूँ खाटी, ओकरो पर मोटका बइठ गेल घरखनहा अटपाटी । .... जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
204 चुड़ैल (एगो ढकना में आग सुलगा के दू-चार बेर भाँवर देलन, फिर मने-मन कुछ बुदबुदा के बोलला के बाद जोर से) जय दुर्गा ! जय भवानी ! बोल रे चुड़ैल ! तूँ इहाँ से भागऽ हें कि न ?) (अमा॰179:13:2.18)
205 चूड़ा-तिलकुट (कभी पूस या कभी माघ में परब तिल-सकरात पड़े । दूध-दही चूड़ा-तिलकुट आउ आलूदम पर हाथ फिरे॥) (अमा॰181:15:2.5)
206 चोखा (धुकुर-धुकुर करइत कइसहुँ खिचड़ी आउ चोखा बना के धनेसरी तसला के राख मड़पसौना से झाड़ के रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.3)
207 चौखट-केंवाड़ी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
208 छँहुरा (= छहुँरा) (पेड़ के छँहुरा) (अमा॰175:5:2.9)
209 छड़बिंदा (= छरबिन्हा) (छड़बिंदा के झाड़ न जाने, करइत के विष उतारे चलल हे । अइसन से सब चेतल रहऽ, गँठजोड़ में गिरह पड़ल हे ।) (अमा॰185:13:1.23)
210 छत-छप्पर (नीम गाछ के डाँढ़-पात से छत-छप्पर घर शोभऽ हे । दूध-लावा से नाग बाबा के पूजा-पाहुर होवऽ हे ॥) (अमा॰181:15:1.5)
211 छप्पन (~ चौके पाँच सौ) (सैकड़ो अनपढ़ गरीब के छप्पन चौके पाँच सौ बता के गलत सूद जोड़-जोड़ के ई पइसा हड़पले हथ ।) (अमा॰180:10:1.32)
212 छरपा-छरपी (बनरी सब अप्पन बचवन के छाती में साटले छरपा-छरपी करइत हल ।) (अमा॰183:13:2.22)
213 छरबिंदा (= छरबिन्हा) (छरबिंदा के झार न जाने, करैत के जहर उतार रहल । अइसन से सब चेतल रहऽ, गँठजोड़ में हे गिरह पड़ल ।) (अमा॰183:15:2.23)
214 छुपुर छइयाँ (माँझी रे, माँझी रे, माँझी रे ! अभी सपना के मंजिल हो दूर । छुपुर छइयाँ, छुपुर छइयाँ, हाय हइयाँ, हाय हइयाँ । लंगर गिरा मत कर, माँझी रे लड़कइयाँ ।) (अमा॰180:15:1.3)
215 छुर-छुर (~ मुतना) (तितकी से मत खेल बुतरुअन जर जैतो तोर हाथ रे, जे तितकी से खेले ऊ तो छुर-छुर मुते रात रे ।) (अमा॰179:6:1.15; 184:5:1.10)
216 छोट-छोट (दसवाँ पास हल, ई से ऊ घर-घर जाके छोट-छोट बच्चा के पढ़ावे लगल ।) (अमा॰177:14:1.17)
217 छोह (चुप रह तूँ ! जादे छोह मत देखाव ! तूँ कइसन लड़का हें, से हम जानइत ही । सब तोरे बदमासी हउ ।) (अमा॰175:10:1.18)
218 जन-मजूर (चटोरन के एक दिन अइसन संयोग बनल कि रामधनी बाबू के साथे उनखरे जन-मजूर, हर-बैल से थोड़े खेत में रोपा हो गेल । ऊ अप्पन घर में खान-पान, देवता-देवी आउ बैना-पेहानी के झमेला नञ होवे देलक ।) (अमा॰186:6:2.21)
219 जनार-खनार (= ज्योनार आदि) (परसों सावन के अमस्या हे । तहिने पंडित जी के जनार-खनार करा देहो आउ पहिलरोपा के सब समान ला देहो ।) (अमा॰186:6:2.26)
220 जनी (= जन्नी, औरत, स्त्री) (अपना के समझऽ ह तूँ नमरि, हमरा बूझऽ ह अठन्नी-चवन्नी, काहे कि हम हियइ जात के जनी ।) (अमा॰177:20:1.2)
221 जबह (एगो कसाई ओही चबूतरा पर रोज बकरा-बकरी के जबह करऽ हल आउ ओकर गोस्त बेचऽ हल । जब सांझ होवे लगल, तब ऊ कसइया दोकान-दउरी बढ़यलक, फिन चबूतरा के धो-पोंछ के सुखयलक ।) (अमा॰186:1:1.3)
222 जमुई (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
223 जर-जनावर (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.18)
224 जरोहगर (बिछउती करिया आउ बच्चा देवेओला हलइ, ई चलते करिया जरोहगर गाय दान करल बहुत जरूरी हे ।; इनकर दरवाजा पर अभी जरोहगर गाय आउ भइंस दुन्नो हे ।) (अमा॰185:11:2.26)
225 जाँतना (ई सब विचार करके दूसरा दिन अप्पन बेटी के काँख तर जाँतलक आउ ट्रेन पकड़ के आ गेल पटना ।) (अमा॰177:14:1.14)
226 जाप-जुप (सगरे धुआँ उठ रहल हे, दुनिया में जहर फयलावऽ हे । जाप-जुप होम ई की हे, ढोंग-ढाँग अपनावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.20)
227 जितिया (आसिन पहिला पख अठमी में जितिया परब कहावऽ हे । बेटा जुग-जुग जीये जग मेम मन से माय मनावऽ हे॥; जितिया में खायल जाहे मड़ुआ के रोटी, नूनिया साग आउ कन्दा के टोटी ।) (अमा॰181:15:1.18; 185:15:2.2)
228 जी-हुजूरी (~ बजाना) (हरे तूँ कउन अइसन चीज बनमे कि तोरा अफसर लोग आगे-पीछे करतन आउ जी-हुजूरी बजैतन ।) (अमा॰175:12:1.7)
229 जुटावल (सधारन परिवार के एकबैक एतना पइसा जुटावल असान काम न हे ।) (अमा॰185:12:1.19)
230 जुट्ठा (कउनों-कउनों खाय के बाद बचल-खुचल जुट्ठा ओकरा देके आगे बढ़ जा हलन ।) (अमा॰177:16:1.8)
231 जुट्ठा-कुट्ठा (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.11)
232 जुलुम (मुगल काल में इस्लाम के नाम पर न जानि केतना जुलुम होयल हल ।) (अमा॰186:3:1.27)
233 जूठा-सखरी (अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.13)
234 जेजा (= जेज्जा, जिस जगह पर, जहाँ) (जेजा ... ओजा) (जेजा समझ में सबके नयँ आवे ओजा हिन्दी करके भी सुना देली ।) (अमा॰176:8:2.7)
235 जेजा (= जेज्जा; जिस जगह पर, जहाँ) (बहादुर घोड़सवार जेजा मारल गेलन हल, ऊ स्थान 'घोड़-सिम्मर' आझो अप्पन व्यथा कहे ला अकुला रहल हे ।) (अमा॰175:7:2.31)
236 झँमठगर (= झमठगर) (गाँ के बहरसी एगो पीपल के झँमठगर पेड़ हल जेकरा ओकर बाबूजी रोपलन हल ।) (अमा॰177:13:2.17)
237 झउराना (प्रीति जिनकर खून में बउरा रहल हे, गीत बन के खून में झउरा रहल हे ।) (अमा॰176:12:2.5)
238 झकास (रुसल धरती विधुकल अकास, उगल रउदा सगरो झकास ) (अमा॰180:1:2.2)
239 झटास (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल ।) (अमा॰182:13:1.20))
240 झनकना (दुआरी के बहरी गनउरा लेले जाइत सँचइयावली सुनके झनके लगे । गली में से गुजरइत मेहरारू सब से अप्पन सफाई देवे लगे -'अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई ।') (अमा॰180:13:1.6)
241 झमर-झमर (एकाएक गड़-गड़ कर के बादल गरजल आउ झमर-झमर बुनी पड़े लगल ।) (अमा॰182:13:1.6)
242 झमाझम (~ बरखा) (ऊ जीवन भर मट्टी में से सोना पैदा करे ला तपस्या करइत रहऽ हे । तपइत धूप, कनकन जाड़ा आउ झमाझम बरखा भी ओकर साधना के भंग न कर पावऽ हे ।) (अमा॰179:3:1.10)
243 झरबेरी (मन में रसल-बसल हे सबके, अप्पन-अप्पन गाँव । परदेसी के घर पहुँचे ला, तेज चल रहल पाँव ॥ झरबेरी जामुन के नीचे, बुतरू कयले शोर । बिन फैसन आभूषण के भी, लगे जुअनकी गोर॥) (अमा॰179:17:1.18)
244 झाँखर (साथ भेल झाड़ आउ झाँखर, बिसर गेल अब कबीर के ढाई आखर, झुट्ठे उछाह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.16)
245 झाझा (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
246 झाड़-फूँक (शंकर महरा ! तूँ जल्दी से झाड़-फूँक के समान अंगना में ले आवऽ । आउ हँ, एक लोटा पानी भी ले आके खटिया के पा रख दऽ !) (अमा॰179:13:2.2, 14:2.14)
247 झिंझरी (झिंझरी बजा-बजा थक गेलूव तइयो भी नयँ जागल । घोड़ा बेच के सुतल कइसन कउन नीन में पागल ?) (अमा॰178:8:1.1)
248 झिसी-झिसी (सुबह तक पानी न छूटल । झिसी-झिसी पानी पड़तहीं रहल ।) (अमा॰182:13:2.1)
249 झिहिर-झिहिर (झिहिर-झिहिर बहइत बेयार से पेड़ के पत्ता सब थरथराइत हल ।) (अमा॰184:12:2.5)
250 झींकना (गली में दुआरी पर बइठल सँचइयावली के मइया झींकइत रहऽ हे - हमरो एगो बेटा रहत हल, त काहे ला ई बेटी-दमाद के दुआरी अगोरती हल ? सब चीज ला परसमींदा होइती हल, कृपनी बनल रहती हल ?) (अमा॰180:13:1.2)
251 झीसी (हल्का-हल्का झीसी पड़े लगल आउ बरसाती बेयार बहे लगल ।) (अमा॰184:11:1.29)
252 झुमटा-झुमरिया (रंग अबीर-गुलाल में डूबल, सब गा रहल झुमटा-झुमरिया, मधुर बसंत के बहल बेयरिया ।) (अमा॰178:7:2.30)
253 झुलंगा (= झोलंगा) (करीब साठ साल के राघवानन्द पूरे लिलार पर तिरपुंड लगयले रहथ । नीचे पतलून पर ऊपर से झुलंगा बाघी रंग के कमीज पेन्हले रहथ । हाथ में एगो बकुली हरदम लेले रहथ ।) (अमा॰178:17:1.21)
254 झुल्फी (टमटमवाला सिनेमा के हीरो जइसन झुल्फी लहरा के गला में रुमाल बांध के किसिम-किसिम के स्टाइल में बतिआय लगल ।) (अमा॰183:10:2.6)
255 झूँजल (छुट्टी भेला पर घरे आयल, त इहाँ फिर उहे खिचड़ी तिसिअउरी आउ एगो अमड़ा के झूँजल फाँक ।) (अमा॰182:14:1.20)
256 टंगना (संज्ञा) (गोर रे बदन पर जे तोरा सोहइ गोदना । अँखियन तो टंग जाहे जइसे टंगइ टंगना ।) (अमा॰184:20:1.4)
257 टगना (हम फिरी में दारू पीये के बात कह देली, तब बुरा तो लगबे करतवऽ । घरे जाके देखऽ । एन्ने दारू पीके तूँ टग रहलऽ हे, ओन्ने तोहर बेटा-बेटी भुक्खे टग रहलो हे ।) (अमा॰183:8:1.7, 8)
258 टटाना (भुक्खे ~) (ई राजनीति तो ससुरा हम्मर घर तक घुस आयल हे । आज ई लावऽ, न तो खाना न बनतो, आज ऊ लावऽ, न तो भुक्खे टटा ।) (अमा॰178:5:1.18)
259 टन-टुन (जमीन्दारी जीवन तो उन्हका जीना न हे, से सब कुछ ठीक-ठाक हे । कहियो घर में टन-टुन होते उन्हका हीं न देखलक कोई ।) (अमा॰178:16:2.32)
260 टपर-टपर (~ लोर चूना) (अमा॰176:17:1.23)
261 टाट (दलित के लड़कन ऊँच जात के लड़कन के साथे बइठ न सकऽ हलन । पाठशाला में बइठे ला खुद अपने ऊ लोग के टाट ले जाय पड़ऽ हल ।) (अमा॰178:3:1.26)
262 टिकैत (पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर ।) (अमा॰175:7:1.18)
263 टिढ़ुआना (लइका लेले- लेले हम्मर कमर टिढ़ुआ गेल ।) (अमा॰182:13:2.32)
264 टिल्हा-टुकुर (दस साल पहिले गाँव में बाढ़ अलइ हल, तब सब घर-दुआर ढह के बाढ़ में बह गेलई हल । एन्ने-ओन्ने भाग-भाग के टिल्हा-टुकुर, चबूतरा पर बसेरा बनयलथिन हल सब ।) (अमा॰182:15:1.3)
265 टीक (= सर की शिखा या चोटी) (लोक लाज ताखा पर रख के, नारी बनल बिन परदा के । माथ के अँचरा कंधा पर गिरल, टीक घुमा रहल मरदा के ।) (अमा॰177:7:1.24)
266 टुटान (एगो छोटहन लकड़ी के टुटान चुल्हा में लगाके बाँस के पंखा से हउँके लगल आउ आँख मले लगल ।) (अमा॰182:13:2.23)
267 टुह-टुह (~ लाल; लाल ~) (एतने में टुह-टुह लाल साड़ी में साढ़े पाँच फीट के एगो भक-भक गोर नेपाली महिला परवेस कयलक ।) (अमा॰184:11:2.28)
268 टूटल-फूटल (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.22)
269 टोपरा (कातो फिर बेटिया-दमदा एगो टोपरवा बेचे ला कहित हई । नानी न कहित हई । मत बेच ऊ खेत, मेन सड़क पर हउ । उहाँ तक कुछ दिन में बजार आ जयतउ । लड़कन के रोजी-रोटी होतउ । बेटिया-दमदा मुँह फुलयले हई । भर-मुँह बोलई न, अइँठइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.21)
270 टोपरी (ओइसे फुफकारऽ हई धान ई टोपरिया में । पुरवा बयरिया में, धान के कियरिया में ।; ओइसहीं तो छिटकऽ हई धान ई टोपरिया में । पुरवा बयरिया में, धान के कियरिया में ।) (अमा॰182:17:1.28, 2.11)
271 ठटर (एकइसवीं सदी के आदमी, आदमी न कम्प्यूटर होयत, संवेदनहीन हाड़-मांस के बिना बनल ठटर होयत ।) (अमा॰180:17:2.26)
272 ठड़ी (उनकरे इयाद में ठड़ी हे ई इसकूल ।; मुचकुन के देख के बरहमदेव मुँह घुमा के ठड़ी हो गेल, लेकिन कान इधरे पारले रहल, ई जाने ला कि ड्राइवर से मुचकुन की बतिआ हे ।) (अमा॰176:13:1.5; 14:2.34)
273 ठामा (एक्के ~) ('ई जाके लिखलई, तबे न ऊ बेचलई ? न लिखतई हल, त कइसे बिकतई हल ?' -'ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई । बेटी बिआहे ला हे, त घर बनावे ला हे, त बड़ी बढ़िया धनहर खेत बिकइत हइ एक्के ठामा । उहाँ त कट्ठा-कट्ठी हवऽ, खेती-बारी ठीक ढंग से न होवो, कउन जयतो उहाँ रहे-सहे ?') (अमा॰180:13:2.26)
274 ठेंस (समय के फेरा देखऽ । एक दिन बुढ़िया के खाली ठेंस लगल, त ऊ जमीन पर गिर गेल आउ ओकर प्राण-पखेरू उड़ गेल ।) (अमा॰179:10:2.17)
275 ठोकाई (एक दिन सांझ के एगो ममूली बात पर बुढ़िया के बेस ठोकाई कैलन लोग ।) (अमा॰177:16:2.29)
276 ठोकाना (रात के खाय-पीये के बेवस्था होवे लगल । तरकारी तो बन गेल, फिर रोटी हाथे से ठोकाय लगल ।) (अमा॰185:6:1.4)
277 डग्घर (= डगर) (अभियो फिसिर-फिसिर पानी पड़इते हल । आरी-पगारी, डग्घर होवित फुलवा देरी से इस्कूल पहुँचल हल ।) (अमा॰182:14:1.10)
278 डरेस (= ड्रेस) (भोरे-भोरे जब बुतरुअन सभे कंधा में बस्ता टांग के आउ नीमन-नीमन डरेस पहिन के इसकूल जाइत रहऽ हलन, त ओही घड़ी सड़क के किनारे कुछ गरीब बुतरू हाथ में बोरा लेके कूड़ा में से कुछ चुनते रहऽ हलन ।) (अमा॰186:10:1.2)
279 डिरहार (घर घेरे लेल गउ-गोबर से चारो तरफ डिरहार शोभे ।) (अमा॰181:15:1.7)
280 डिलेवर (= डलैवर, ड्राइवर) ('की हो डिलेवर साहेब ! कउन साहेब अइलन हे ई गाड़ी में ?) (अमा॰176:14:2.32)
281 डेगाडेगी (समय के साथे-साथे लड़का सतरंगी दुनिया में डेगाडेगी देवे लगल ।) (अमा॰178:18:1.21)
282 डोभ (ई अगिया लगउनी बुनी तो छूटे के नामे न लेइत हई । बिहने कइसे हम खाए बनयबई ? चुल्हवा तर तो डोभ पानी लग जतई ।) (अमा॰182:13:1.13)
283 ढिलाही (= ढिलाई) (माली के काम में बहुते ढिलाही हे । बाग मुरझाइत हे, काहे लापरवाही हे ?) (अमा॰178:8:2.21)
284 ढेरमानी (= ढेर मानी) (एकरा अलावे ढेरमानी कविता, गाना, कहानी, नाटक आदि बनावल गेल हल, जे प्रकाशित होवे ला बाट जोह रहल हे ।) (अमा॰186:15:1.28)
285 ढेला-ढुकुर (टीसन के एकांत सुनसान जगह में एगो बुढ़िया बराबर देखाई पड़ऽ हल । ऊ अपने-आप कुछ बुदबुदाइत रहऽ हल । लइकन ओकरा पर बराबर ढेला-ढुकुर फेंकित रहऽ हलन ।) (अमा॰177:16:1.3)
286 ढोंग-ढाँग (सगरे धुआँ उठ रहल हे, दुनिया में जहर फयलावऽ हे । जाप-जुप होम ई की हे, ढोंग-ढाँग अपनावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.21)
287 तखनी ('वन टू थिरी' सुनइते सब्भे लट्टू नचावे लगलन हल । तखनी तो सब्भे बुतरू पहिले-दुसरा किलास में पढ़ऽ हल, फिर भी अंग्रेजी के दु-तीन गो सबद सिरिफ बोलवे नैं करऽ हल, ओकर अरथो समझऽ हल ।; तखनी तो एगो मुकुंदिये पाँड़े के पराती सुने ला मिलऽ हल ।; हमरा तो तखनी बिछुए काट गेल हल ।) (अमा॰176:13:2.20, 29, 14:1.24)
288 तखनौ (= तखनियो; उस समय भी) (अंग्रेज सिपाही हिनखा सकरी के घाटे पर मौत के घाट दतार देलक आउ नदी के पानी हिनखर खून से लाल रत-रत भे गेल । तखनौ हिनखर करेजा आधा मन के हल, जेकरा देख के अंग्रेज दाँत तर अंगुरी चाँप लेलन हल ।) (अमा॰175:7:2.28)
289 तनी-मानी (= तनि-मनि) (फुलवा के तनी-मानी सिहरावन लगे लगल, त ऊ आके मइया के बगल में घुस के बइठ गेल आउ मइया के अँचरा तान-तान के खींचे लगल ।; तनी-मानी गोइँठा के चिपरी पर मट्टी के तेल डाल के सलाई से धरा देलक, बाकि बार-बार आग बुता जाए ।; फुलवा ! ए फुलवा ! तनी-मानी गइया ला हरियरी काट के लेले आव तो ।; साँझ भेलइ, त तनी-मानी पानी छुटला के बाद फिर फिसफिसाए लगलई ।) (अमा॰182:13:1.22, 2.18, 14:1.22, 31)
290 तबराक, तबड़ाक (= अनु॰तड़ाक; चपत, थाप, थप्पड़) (देवाल के उ तरफ का हम्मर उहे बेटा नियर प्यारा भाई हे, जेकरा पर कल तक हम तबराक चला दे हली ...., हम तो ओकरा डेरावे लागि कहली, बाकि ऊ तो सच में ... कल मंझला भी एगो भित्ति उठा देत ?) (अमा॰178:19:1.3)
291 तरकुल (= ताड़ खजूर का छोटा नया पेड़) (तरकुल के छाँह भेल जिनगी । रेत भेल नदी के कहानी, खउलइत हे दिन जइसे अदहन के पानी, चूल्हा के धाँह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.1)
292 तरसीना (ई तो बड़ी अच्छा कानून बनलई हे । तब तो भउजाई एगो लुगवो ला तरसीना न बनौतई । अब तक तो भउजाई एगो डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के ।) (अमा॰180:14:1.12)
293 तसला (एक दिन ले अयलो कनेमा भरल तसला पानी ।; देखहूँ मइया ! बीचे तसला महादेजी के पीड़ी ! नानी मललथी हे । देखली त देखइत ही कि बीचे तसला में भात के लोंदा झलकइत हे ।; अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:13:1.22, 23, 24, 14:2.14)
294 तार (~-खजूर) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.20)
295 तितिर-बितिर (एकरा से हमरा समझ से, बाप-दादा के धन-सम्पत्ति तितिर-बितिर हो जयतई, एकदम से बंदरबाँट । पहिलहीं से सम्पत्ति एतना टुकड़ा-टुकड़ा हो गेलई हे कि सबके ऊँट के मुँह में जीरा लगऽ हई । अब तो आउ छितरा जयतई ।) (अमा॰180:14:1.18)
296 तिरोदसी (= त्रयोदशी तिथि) (फागुन माह के कृष्ण पक्ष में तिरोदसी जहिया होवे । महादेव शिवजी के शादी हरेक साल तहिया होवे॥) (अमा॰181:15:2.14)
297 तिलकुट (इहे टिकारी के गुड़ के तिलकुट भी खूबे परसिद्ध हे ।) (अमा॰180:18:1.7)
298 तिल-सकरात (कभी पूस या कभी माघ में परब तिल-सकरात पड़े । दूध-दही चूड़ा-तिलकुट आउ आलूदम पर हाथ फिरे॥) (अमा॰181:15:2.4)
299 तिसिअउरी (छुट्टी भेला पर घरे आयल, त इहाँ फिर उहे खिचड़ी तिसिअउरी आउ एगो अमड़ा के झूँजल फाँक ।) (अमा॰182:14:1.20)
300 तीज (हँ, कल हवऽ तीज परब । दिन भर निर्जला उपवास करऽ आउ परसों जाके पारन करिहऽ ।; पति के सुख ला तीज करे के चाही सब्भे औरत के ।; अइसन पति ला तीज करबई कि दिन-रात सरापिते रहबई ।; पति देवता रहे, तब जरूर करे के चाही तीज । मगर जब ऊ जनावर-राकस बन जाये, तब काहे ला कोई तीज करत ?; पहिले कुटम्मस होयलो पर पति लागी तीज बरत करऽ हल औरत, ओही औरत आज विरोध करे लागी तइयार हे कमर कसके ।) (अमा॰177:10:1.23, 26, 2.5, 8, 9, 12)
301 तीन-तेरह (~ बतिआना) (ई तो पक्का धोखेबाजी भेल । एकरा न धोखेबाजी कहम, त आउ केकरा कहम । मेहरारू के इलाज ला सूद पर पइसा माँग के लावे आउ सूद माँगला पर तीन-तेरह बतिआवे ।) (अमा॰181:11:1.10)
302 तीरना (= घींचना) (कुछ घींच-तीर के वकीली पास करतन आउ करिया कोट चढ़ा के कोट में चिनिया बेदाम फोड़इत रहतन ।) (अमा॰175:11:2.24)
303 तोपाना (लउटे घड़ी देखते-देखते हमनी के बस काठमांडू के पहाड़ी रस्ता पर आगे बढ़े लगल, त पता चलल कि आज चनरमा भी उदास हे, सहमल हे । ओकर आधा से कम चेहरा असमान के करिया ओढ़ना में तोपायल हे आउ शांत दृष्टि से ऊ हम्मर मुँह के निरेख रहल हे ।) (अमा॰184:14:2.21)
304 तौहीनी (कोई कहे -'सब दुख भगवान देवे, बाकि बेटी-दमाद घरे रहे वला दुख न देवे । बड़ी तौहीनी होवऽ हे ।' कउनो कहे -'कउची तौहीनी होवऽ हई गे ! बेटा-पुतोह भिर गिंजन न होवई ? कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ? ई दमदा घरे हई, सेई से ? बेटवा घरे रहतई हल, त पुतोहिया गोदी में खेलौतई हल ? बइठा के दूध-भात खिलौतई हल ?') (अमा॰180:13:2.8, 9)
305 थकनी (थकनी के मारे नींद में भी उनकर मुँह से तनि-तनि कराह निकल रहल हल ।) (अमा॰186:18:1.28)
306 थम्भ (= स्तम्भ) (चारो तरफ रंग-बिरंग के पेड़-पौधा लगावल हल । तुलसी के बिरवा, केला के थम्भ बड़ी मनभावन लग रहल हल ।) (अमा॰185:5:1.24)
307 दखिनाहा (= दखनाहा) (बूढ़ा बरगद तर बइठल सब, गाय करे हे पागुर । पुरवा पछिया दखिनाहा भी, हवा चले हे फुर-फुर॥) (अमा॰179:17:2.9)
308 दरवाना (दाल ~) (इनका जब हम्मर करेजा पर दाल दरवाहीं के सौख हलइन त पुरखन के काहे ला तारलन ?) (अमा॰178:6:1.5)
309 दरसनिया (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.9)
310 दारू-चिखना (इहाँ तोरा मुफत में दारू-चिखना मिल रहलउ हे, त हम्मर बात तो खराब लगबे करतउ ।) (अमा॰183:7:2.26)
311 दिक्कत-सिक्कत (बड़ी दिक्कत-सिक्कत से रामदेउआ मैटरिक पास करके दिल्ली में एगो फैक्टरी में काम करे लगल ।) (अमा॰177:9:1.20)
312 दिना-दिरिस (= दिन दहाड़े) (जेकरा देखइत हि ऊहे, महँगाई से हे पिटायल । पइसा फेंकू तमासा देखूँ तमासा देखूँ, दिना-दिरिस गरदन रेतूँ ।) (अमा॰176:16:2.5)
313 दिनौरा (~ गुदारना) (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
314 दियरी (जेन्ने-तेन्ने दउड़ऽ हई अप्पन नजरिया, दियरी के नीचे जाके रोवऽ हई अंधेरिया ।) (अमा॰186:17:1.23)
315 दिरखा-अलमारी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
316 दुःख-दलिद्दर (इहे असली पंचामृत हे । एकरा से सब दुःख-दलिद्दर भाग जतवऽ ।) (अमा॰186:12:1.3)
317 दुधगर (दूध-घीउ खाय लेल दस-बारह सेर दूध देवे वाली एगो लगहर गाय ऊ हरमेशा अप्पन गऊशाला में रक्खऽ हलथिन । उनकर दुधगर गाय पंडित दीन दयाल के आँख पर चढ़ गेल ।) (अमा॰186:5:1.9)
318 दुब्बर (= दुबला) (अमा॰180:17:2.10)
319 दुलरइतिन (~ बेटी) (अब तो दुलरइतिन बेटी भेलऽ ससुरइतिन, मानी लेहूँ मइया के बात बेटी हमरो ।) (अमा॰183:17:1.1)
320 दुलुम (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
321 दुसना (रमरतिया के टक्कर में दुल्हा तो न मिलल, बाकि ओकर दुल्हा के मड़वा में कोई दुसलक भी न ।; सगरो जेवार में फैल गेल ई बात, दुसे लगलन हमरा जात-परजात ।) (अमा॰179:10:1.1; 185:15:2.23)
322 दूध-लावा (नीम गाछ के डाँढ़-पात से छत-छप्पर घर शोभऽ हे । दूध-लावा से नाग बाबा के पूजा-पाहुर होवऽ हे ॥) (अमा॰181:15:1.6)
323 दूसर (= दोसर, दूसरा) (एगो कोना में तीन गो चउकी जोर के बिछावन, दूसर कोना में लड़कन सब के किताब आउ पढ़ेवला टेबुल, कम्प्युटर, कुरसी, तेसर कोना में गैस के चुल्हा, बरतन-बासन आउ चउथा कोना में बक्सा-पेटी आउ पूजा के मंडप ।) (अमा॰184:11:2.22)
324 देखताहर-सुनताहर (रजनी के मुँह से ई बात सुनते बूढ़ी के मुँह बन्द हो गेल आउ देखताहर-सुनताहर लोग भौंचक रह गेलन ।) (अमा॰179:19:2.13)
325 देखनगर (बुढ़िया उहईं रहऽ हल अलखे के साथे । ऊ घड़ी बड़ी देखनगर हल ई ।) (अमा॰177:16:2.2)
326 देवता-देवी (~ करना) (फूलकुमारी पुछलक -'अप्पन पहिलरोपा कहिया होयत ? अपनो जल्दी कर देतऽ हल, देवता-देवी कर देतूँ हल । सउँसे टोला से बैना-पेहानी चलऽ हई । एतना विधान आज नञ त कल तो करहीं पड़तई ।'; चटोरन के एक दिन अइसन संयोग बनल कि रामधनी बाबू के साथे उनखरे जन-मजूर, हर-बैल से थोड़े खेत में रोपा हो गेल । ऊ अप्पन घर में खान-पान, देवता-देवी आउ बैना-पेहानी के झमेला नञ होवे देलक ।) (अमा॰186:6:2.3, 22)
327 देवल (एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।; अब तक तो भउजाई डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के ।) (अमा॰180:14:1.5, 13)
328 दोकान-दउरी (एगो कसाई ओही चबूतरा पर रोज बकरा-बकरी के जबह करऽ हल आउ ओकर गोस्त बेचऽ हल । जब सांझ होवे लगल, तब ऊ कसइया दोकान-दउरी बढ़यलक, फिन चबूतरा के धो-पोंछ के सुखयलक ।) (अमा॰186:1:1.4)
329 दोहराना (दोहरा-तेहरा के) (गौतम जी के दू गो गीत में 'काहे कयलऽ अकाल' आउ 'चउहट' पढ़ली, पढ़े में एतना मन लगल कि दोहरा-तेहरा के पढ़इत रहली ।) (अमा॰186:4:1.25)
330 धंगचना (हम तो खाँची में मट्टी माथा पर ढो के लावऽ हली, ऊ बोरा में मट्टी भर के साइकिल पर भी न लावऽ हे । लात से धंगच-धंगच के कंकड़-पत्थल, झिटकी फुलावल मट्टी से निकालना तो दूर के बात हे ।) (अमा॰175:8:2.11)
331 धजा (= ध्वजा, झंडा, पताका) (धजा-पताका लहरे सगरो पवन-सुत से प्यार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे॥) (अमा॰181:15:2.28)
332 धनहर (~ खेत) ('ई जाके लिखलई, तबे न ऊ बेचलई ? न लिखतई हल, त कइसे बिकतई हल ?' -'ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई । बेटी बिआहे ला हे, त घर बनावे ला हे, त बड़ी बढ़िया धनहर खेत बिकइत हइ एक्के ठामा । उहाँ त कट्ठा-कट्ठी हवऽ, खेती-बारी ठीक ढंग से न होवो, कउन जयतो उहाँ रहे-सहे ?') (अमा॰180:13:2.26)
333 धनाड़ (रोज-रोज देखइत ही, दुःख भोगइत मरइत लोग, मरघट मसान-घाट जाइत, जरइत राख-मट्टी होइत लोग । तइयो न खुलइत हे, बन्द हे ज्ञान के किवाड़, अझुरायल भूल-भुलइया में, लोभ में बने के धनाड़ ।) (अमा॰179:17:2.19)
334 धप-धप (~ रउदा) (पुनिया के चांद नियन सोनवाँ के कंगना, धप-धप रउदा सन चनियाँ के गहना, लदल हे जे देहिया पर ओकरा की कहना । हो गेलो हे लोभ तोरा देख मोर गहना ।) (अमा॰184:20:1.6)
335 धरल के धरले (पहिले गइया दान करा लेवल जाय देवता जी ! न तो बाद में कुछ हो गेल त सब सपना धरल के धरले रह जायत ।) (अमा॰186:12:1.13)
336 धाँय-धाँय (~ खन्ती चलाना) (एतना कह के बड़का भाई देवाल पर धाँय-धाँय खंती चलावे लगलन ।) (अमा॰178:19:1.11)
337 धाँह (= धाह, दाह; आग की गरमी) (तरकुल के छाँह भेल जिनगी । रेत भेल नदी के कहानी, खउलइत हे दिन जइसे अदहन के पानी, चूल्हा के धाँह भेल जिनगी ।) (अमा॰184:1:2.7)
338 धुकुर-धुकुर (धुकुर-धुकुर करइत कइसहुँ खिचड़ी आउ चोखा बना के धनेसरी तसला के राख मड़पसौना से झाड़ के रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.3)
339 धुरतइ (पंदरह दिन से हम्मर गाय तूँ अप्पन घरे बाँध के बाले-बच्चे ओकर दूध पीके गुलछर्रा उड़ावइत ह । अब तोर धुरतइ नयँ चलतो ।) (अमा॰186:5:2.25)
340 धूप-धूना (हँ हो शंकर ! गणना में तो कुछ गड़बड़ बुझाइत हे । तूँ आगे बढ़ऽ आउ दोकान से अगरबत्ती, धूप-धूना आउ लोहवान खरीद के रक्खऽ । घबराए के कोई बात न हे । हमरा उहाँ पहुँचइते सब ठीक हो जाएत ।) (अमा॰179:13:1.15)
341 धूप-हुमाद (सब मुरती के भोरे-भोरे नेहावल-धोआवल गेल, पूजा-पाठ, धूप-हुमाद भेल । सगरो हुमाद-अगरबत्ती के सुगंध पसरल हल ।) (अमा॰183:13:1.18)
342 नगीच (= नजदीक) (ब्रज प्रदेस के मथुरा क्षेत्र से मगध के राजगीर कोई नगीच थोड़िए हे । राह चलइत-चलइत तीनों के 14वाँ दिन हो गेल, तइयो एहनी मगध के सीमाना में न पहुँचलन ।) (अमा॰181:18:1.4)
343 नमरी (अपना के समझऽ ह तूँ नमरि, हमरा बूझऽ ह अठन्नी-चवन्नी, काहे कि हम हियइ जात के जनी ।) (अमा॰177:20:1.1)
344 नराज (= नाराज) (सरहज बोले से पीछे न रहलन -'पाहुन ! अपने बहुत दिन पर आवऽ हथिन की बात हे ? नराज हथिन का ?'; ससुर जी नराज होके बोले लगलन ...।) (अमा॰178:15:1.30, 16:2.4)
345 नरियर (= नारियर, नारियल) (मट्टी, घास-फूस, तार-खजूर, नरियर के पत्ता, बाँस के खपाची, कपड़ा के टुकड़ा, कागज, अल्मुनिया इया लोहा के तार से बनल खेलौना लोक-परम्परा के जिन्दा रखे में उल्लेखनीय भूमिका निबाह रहल हे ।) (अमा॰175:6:1.20)
346 नस्ता ( चाय-~) (उहाँ से एगो होटल में गेली, फ्रेस होके चाय-नस्ता कइली आउ अराम करे लगली ।) (अमा॰183:11:2.24)
347 नस्ता-पानी (बड़गाँव पहुँचला पर कुछ नस्ता-पानी करे के विचार से एगो ढाबा में रुकल गेल ।) (अमा॰185:5:1.13)
348 नाग पाँचे (= नागपंचमी) (नाग पाँचे के सुनऽ कहानी हरियर सावन मास में । आम पकल कटहर-कोवा के भाव रहे अकास में ॥) (अमा॰181:15:1.3)
349 निखित (= निषिद्ध ?) (मटर के गादा साथ भात में सब्जी में बहुत बनऽ हे । सबसे निखित अन्न हे मड़ुआ सेकरो जरूरत पड़ऽ हे॥) (अमा॰181:15:1.21)
350 निचलौका (पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर ।) (अमा॰175:7:1.19)
351 निछत्तर (= नछत्तर, नक्षत्र) (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।) (अमा॰175:9:1.8)
352 निमन-जमुन (जब तक शरीर में आत्मा हे, तब तक शरिर चल-फिर सकऽ हे, बोल-बतिआ सकऽ हे, इया कोई निमन-जमुन काम कर सकऽ हे ।) (अमा॰185:9:1.10)
353 नूनिया (जितिया में खायल जाहे मड़ुआ के रोटी, नूनिया साग आउ कन्दा के टोटी ।) (अमा॰185:15:2.3)
354 नेओता (= नेवता, न्योता) (हम्मर भाई आउ भउजाई के पलान बनल बड़गाँव जाके अप्पन बुतरुअन के मुंडन संस्कार करे ला । फुआ होवे के नाते हमनी तीनो बहिन के भी नेओता मिलल ।) (अमा॰185:5:1.5)
355 नेहाना (ई से ऊ राकस जइसन भयंकर दीखे लगलन । अब निचिंत होके कण्व ऋषि आश्रम के ऋषि-मुनि के साथे कुंभ नेहाय ला चल देलन ।) (अमा॰181:19:1.17)
356 नोचा-चोथी (केकरा से करम हम मुँह नोचा-चोथी ।) (अमा॰185:15:2.4)
357 पंडितई (हम्मर बस चलतइ हल, त हम गणेश पंडित के सब पंडितई निकाल देती हल ।) (अमा॰179:15:1.28)
358 पंडीजी (= पंडित जी) (अमा॰185:9:1.29, 2.11, 20, 24)
359 पउआ (पउआ लयलूँ पाटी लयलूँ आउ बनयलूँ खाटी, ओकरो पर मोटका बइठ गेल घरखनहा अटपाटी ।) (अमा॰183:10:1.16)
360 पउती (= ढक्कनदार गोल टोकरी, बाँस सींक आदि का बना बक्सा) (गुलाब के साइज एतवर लगे, जइसे कोई पउती हे ।) (अमा॰183:12:1.28)
361 पख (= पक्ष) (सावन पहिला पख पंचमी से परब के पसार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे ॥) (अमा॰181:15:1.1)
362 पखाना (जब ऊ बूढ़ी के बेडे पर पखाना हो गेल, तब ऊ लइकी तुरते परदा करके अप्पन माय के लुगा बदल देलक ।) (अमा॰186:20:1.14)
363 पगार (= ऊँची मेड़) (जवानी में तोरा से चौधरी टोला के कोई लड़की बचवो कैल हल ? तोरे डरे चौधरी लोग ताड़ी में जहर फेंटके बेटी के पिलावऽ हलन । पचास बरिस में भी कभी बगइचा में, त कभी पगार तक लइका-लइकी जौरे पकड़ा हलऽ । हमरा से आउ मत उकटवावऽ ।) (अमा॰178:17:1.32)
364 पचकल (जब कभी कोई बूढ़ा के बाल उड़ल देखे, मइल-कुचइल आधा फट्टल धोती पेन्हले, गोड़ में फट्टल बेवाय, अंगुरी में पानी लग के बजबजाइत गोड़, पचकल गाल, नस-नस हिगरायल हाथ से सतुआ सानइत देखे, त ओकर आँख मुंदा जाय ।) (अमा॰182:14:2.31)
365 पचमा (= पाँचवाँ) (माघ महीना पिछला पख के पचमा दिन जब आवऽ हे । रितु बसंत सब रितु के राजा ललक-धलक से धावऽ हे॥) (अमा॰181:15:2.9)
366 पचावल (= पचाना) (शिवदानी के पइसा पचावल कउनो असान काम न हे ।) (अमा॰181:11:2.22)
367 पजाना (= धार तेज करना) (रुखना लयलूँ बसुला पजयलूँ अकिलगर बढ़ई बोलयलूँ, खान-पान तो देवे कयलूँ कड़कड़ नोट गमयलूँ ।) (अमा॰183:10:1.19)
368 पज्जल (मर जयबऽ महंगी के पज्जल तलवार से । भाई-बहिन मिल-जुल के बदलऽ सरकार के ।) (अमा॰178:8:2.27)
369 पटउर (= पड़ा हुआ, बिखरा हुआ) (तिसरके दिन अंग्रेज अभियंता आउ ओकर चार सहयोगी काम करते-करते पटउर हो गेलन ।) (अमा॰176:18:2.6)
370 पटवन (= पटमन, सिंचाई) (खेत में पटवन करे ला नहर आउ नलकूप के निरमान करल जा रहल हे ।) (अमा॰179:3:2.23)
371 पटुआना (= शिथिल होना, सुस्त पड़ना; रोग आदि में उतार आना) (कइसे हिम्मत करूँ लड़े के, गजमस्तक ऊपर चढ़े के । कुंभकरन लेखा राणा, खरिहन्ने हे पटुआयल ।) (अमा॰176:16:2.12)
372 पट्टी (चारो ~) (एकाएकी सब लोग कविता पढ़ रहलन हल, विडियो कैमरा वला अप्पन काम कर रहल हल, कभी-कभी चारो पट्टी घुमा-घुमा के फोटो ले रहल हल ।) (अमा॰176:8:1.11)
373 पड़ल-हरल (ई तो बड़ी अच्छा कानून बनलई हे । तब तो भउजाई एगो लुगवो ला तरसीना न बनौतई । अब तक तो भउजाई एगो डोरवो न देवल चाहऽ हलई ननद के । पड़लो-हरलो पर मदद न करऽ हलई ।) (अमा॰180:14:1.14)
374 पढ़निहार (हम जानइत ही कि तूँ पड़का पढ़निहार हें । माहटरे जब सुतल हे, तब लइकन का पढ़तइ ।) (अमा॰175:9:1.13)
375 पथल (= पत्थल) (एकाएक गड़-गड़ कर के बादल गरजल आउ झमर-झमर बुनी पड़े लगल । साथ में छोटा-छोटा पथलो पड़इत हल ।) (अमा॰182:13:1.6)
376 परकाना (हँ-हँ नन्दू ! तों कायथ हें न, एही गुने बोलऽ हें । कायथ तो आधा मुसलमान होबे करऽ हे । अब सादी-बिआह, मरनी-जीनी में एही चमरन के पूज, हमनी के पूज के की होतउ तोरा ! एकरे ला ने लेमोचूस खिला-खिला के परका रहले हें एकन्हीं के ?) (अमा॰176:14:2.11)
377 परकिरतिक (= प्राकृतिक) (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।) (अमा॰180:6:1.3)
378 परती (पानी बिना सूख रहल धरती, रोपा बिना खेत रहल परती ।) (अमा॰182:17:2.22)
379 परबइती (परबइती लोग अस्ताचलगामी सूरज के अरग देलन ।) (अमा॰185:5:2.30)
380 परब-त्योहार (हर राज्य में परब-त्योहार के परम्परा जिन्दा हे ।) (अमा॰175:6:1.18)
381 परयोजन (= प्रयोजन) (ई महिला आयोग के परयोजन हम नयँ समझलूँ ।) (अमा॰175:8:2.31)
382 परवान (~ चढ़ना) (जहाँ तक हमरा इयाद आवऽ हे सत्तर के दसक से जयराम बाबू के मगही-गीत के लोकप्रियता परवान चढ़े लगल हल ।) (अमा॰184:5:1.5)
383 परसमींदा (= पसमंदा, बेकार) (गली में दुआरी पर बइठल सँचइयावली के मइया झींकइत रहऽ हे - हमरो एगो बेटा रहत हल, त काहे ला ई बेटी-दमाद के दुआरी अगोरती हल ? सब चीज ला परसमींदा होइती हल, कृपनी बनल रहती हल ?) (अमा॰180:13:1.4)
384 परानी (ऊ कमायल मजदूरी माँगइत-माँगइत हमनी दुन्नो परानी थक गेली हल । अपने आज-बिहान कह-कह के टरकावित-टरकावित चार-पाँच साल बिता देली ।) (अमा॰181:11:1.20)
385 परिकरमा (= परिक्रमा) (धीरे-धीरे हमनी मंदिर के बगल वाला हाता में बढ़ली, जहाँ ढेरमानी शिवलिंग स्थापित हे । इहाँ बड़ी व्यवस्थित ढंग से परिकरमा आउ पूजा के नियम बनल हे ।) (अमा॰183:14:1.18)
386 परोर (उन्हकर कहना हे कि बिन सब्जी के गिरहस्थी कउन काम के । आलू, भिंडी, परोर, बैगन, टमाटर, मूली, साग आदि ला खास तरह के जमीन आउ ओकर तइयारी भी ।) (अमा॰178:17:2.2)
387 पहरुआ (गुप्तकाल में तो केतनन देवस्थल के पहरुआ के रूप में बाघ के नाम आवऽ हे, जे मगध के सीमा तर निवास करऽ हलन ।) (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।) (अमा॰180:6:2.8)
388 पहिरोपना (= पहिरोपा) (खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।) (अमा॰178:17:1.4)
389 पहिलरोपा (= पहिरोपा) (फूलकुमारी कहे लगल -'अप्पन टोला में आज चार किसान के हियाँ पहिलरोपा हल । बजरंगी बाबा, मनोहर चाचा, रमपुरवावाली आउ जिनखर ससुररिया मोहनपुर हको, उनखर नाम हम कइसे लियो, ऊ तो भैंसुर लगऽ हथिन ।') (अमा॰186:6:1.21, 2.2-3, 7, 13, 26)
390 पाप-पुन्न (अमा॰176:10:1.3)
391 पारन (हँ, कल हवऽ तीज परब । दिन भर निर्जला उपवास करऽ आउ परसों जाके पारन करिहऽ ।) (अमा॰177:10:1.23)
392 पिंज (= पुंज) (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.5)
393 पिच्छुल (गली में भर ठेहुना पानी भेल हल । ओरी के किनारे पिच्छुल भेल हल, से माथा पर गोइँठा के मउनी लेलहीं फुलवा गिर गेल ।; फुलवा खिचड़ी खयलक आउ एगो चमकी ओढ़ के धान के आरी पकड़ के चल देलक इस्कूल में पढ़े । आरी-पगारी पर पिच्छुल भेल हल ।) (अमा॰182:13:2.9, 14:2.7)
394 पिछलका (= पिछलौका) (मालिक ! अपने के पूरा इयाद होयत । दू साल पहिले अपने के खेत में लगातार पिछलका तीन साल भेड़-बकरी बइठइली हल ।) (अमा॰181:10:1.13)
395 पिछलगुआ (किलास में फस्ट होवे के कोसिस मत कर । तूँ रामटहल नियन पिछलगुआ बनल चल, बस ।; तूँ जान ले कि जे जिन्दगी भर पिछलगुआ रहऽ हे, ओही अदमी एक दिन सब के अगुआ बन जाहे ।) (अमा॰175:11:1.32, 2.5, 10)
396 पिछुला (= पिछुल्ला) (एसो बरसात झमाझम गोरी, चलिहऽ थम-थम गोरी, पिछुला हो गेलो अंगना ।) (अमा॰179:6:1.21)
397 पिजाना (= पजाना, धार तेज करना) (कजै खेल-तमाशा हे, पिजा रहल गड़ाँसा हे । कजै लौटरी हे, कजै बिछ रहल पासा हे ।) (अमा॰185:16:1.25)
398 पिटनी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.5)
399 पिलुअहवा ('केकरा गरिआवइत हहुँ ?' -'तोरे पहुना, आनी अप्पन पिलुअहवा भतार के ...।') (अमा॰177:10:1.11)
400 पीड़ी (= पिंडी) (देखहूँ मइया ! बीचे तसला महादेजी के पीड़ी ! नानी मललथी हे । देखली त देखइत ही कि बीचे तसला में भात के लोंदा झलकइत हे ।) (अमा॰180:13:1.23)
401 पीढ़ा-पानी (भउजाई सोनपरी के देख के गोड़ लागलन आउ पीढ़ा-पानी देलन ।) (अमा॰177:13:2.27)
402 पुत्ती (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.25)
403 पूजा-पाहुर (नीम गाछ के डाँढ़-पात से छत-छप्पर घर शोभऽ हे । दूध-लावा से नाग बाबा के पूजा-पाहुर होवऽ हे ॥) (अमा॰181:15:1.6)
404 पूरनमासी (पूरनमासी के रतिया में दहन होलिका के होवे । बने फुलउड़ी बूँट के बजका पुआ-पूरी मन लोभे॥) (अमा॰181:15:2.21)
405 पेंघ (दुन्नो के बीच परेम पेंघ मारे लगल आउ ऊ आस्ट्रेलिआई सुन्दरी राजा गोपाल शरण के चरन में खुद के अरपित कर देलक ।) (अमा॰180:18:1.16)
406 पोख्ता (ऊ सब के खाय-पीये के पोख्ता इन्तजाम करम ।) (अमा॰176:10:2.13)
407 पोथी-पतरा (पंडितजी चउकी पर बइठ के पोथी-पतरा उलटइत हथ ।) (अमा॰179:13:1.2)
408 पोरसा (= पोरिस, पुरुष; खड़ी अवस्था में तलवा से लेकर उठे हाथ तक की ऊँचाई; कुआँ, नदी आदि की गहराई नापने की एक इकाई; साढ़े चार हाथ की ऊँचाई या गहराई) (बरसात के पानी में घास पोरसा भर के भेल हल ।) (अमा॰182:14:1.28)
409 फकड़ा (संसकिरितो पढ़लऽ हे ? ओमे एगो एसलोक हे -'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ... ।' बीचे में मुचकुन पाँड़े उखड़ गेलन हल -'रहे दे अप्पन फकड़ा । हम नैं सुने ला चाहऽ ही । माँस-मछरी खाय ओला आउ दारू पीये ओला भी अपना ला अइसन फकड़ा बनइते रहऽ हे । सतेआनास ! सतेआनास !' ) (अमा॰176:14:2.22, 23)
410 फक्कड़ (एन्ने जब डाकू लोग देखलन कि ई तो अइसन फक्कड़ हे कि मौत के मुँह में जाए घड़ी भी गाना-बजाना में लगल हे, तब ऊ सबन के मने बदल गेल ।) (अमा॰183:18:2.1)
411 फगुआ (पूरा फागुन फगुआ जइसन सरस गीत से गुंजल रहे । ढोलक झाल मंजीरा बाजे प्रेम राग में रंगल रहे॥) (अमा॰181:15:2.19)
412 फचाक (सड़क के पार खेत के हरियरी में मन भुलायल रहल । अचानक एगो गहिरा में तांगा के पहिया घचाक से पड़ल आउ फचाक से कादो उड़ के हम्मर साड़ी पर पड़ गेल ।) (अमा॰183:11:2.14)
413 फरका (= मिरगी, अपस्मार) (दस बरिस के उमर में दिवाकर के फरका आवे ला सुरू भेल । ओकर फरका के रोग खतम करे ला ओकर बाबू एँड़ी-चोटी एक कर देलन ।; दू दिन हमरा मोरियार आदि खेत में धान रोपे ला हे । तब हमहूँ घरे से निफिकिर हो जायम आउ फिर हमरा फरका के इलाज करइहऽ ।) (अमा॰175:13:1.19, 20, 2.16)
414 फरनी (खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।) (अमा॰178:17:1.2)
415 फाँफड़ (= फाँफर) (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल ।; सब जगह देखऽ घुमइत हे डाकू, खिड़की के फाँफड़ से दिखइत रहल ।) (अमा॰182:13:1.20; 183:17:1.25)
416 फाँफर (= फाँफड़) (बड़ेरी के फाँफर से बुनी के पानी चुअइत हल ।) (अमा॰182:13:1.1)
417 फाड़ा (छोटन -{फाड़ा में से सौ के नोट निकाल के श्याम के देहे} अरे सामो ! जाके एगो मुरगा लेले आव ।) (अमा॰183:7:1.3)
418 फिरी (= फ्री) (हम फिरी में दारू पीये के बात कह देली, तब बुरा तो लगबे करतवऽ । घरे जाके देखऽ । एन्ने दारू पीके तूँ टग रहलऽ हे, ओन्ने तोहर बेटा-बेटी भुक्खे टग रहलो हे ।) (अमा॰183:8:1.5)
419 फिसफिसाना (साँझ भेलइ, त तनी-मानी पानी छुटला के बाद फिर फिसफिसाए लगलई ।) (अमा॰182:14:1.32)
420 फुटना (= दूर होना) (अरे फुट ! फुट एहिजा से । अयले हें डागडर बने । जउन मजा दारू में हे, ऊ मजा गड़ी-छोहाड़ा आउ घीउ-दूध में कहाँ ?) (अमा॰183:8:1.15)
421 फुटानी (~ झाड़ना) (ऊ सिसक के कहलन -'हम्मर दुन्नो बेटा बेरोजगार हे । फुटानी झाड़े में समय गँवा देहे, मगर मटखान से मट्टी लावे में ऊ बेइज्जती महसूस करऽ हे ।') (अमा॰175:8:2.8)
422 फुसुर-फुसुर (~ बतिआना) (गलिया में खिड़की से दुबकल, फुसुर-फुसुर बतिआवऽ हऽ । सउँसे जग हे प्रेम के दुश्मन, काहे ला रोग लगावऽ हऽ ।) (अमा॰176:19:1.23)
423 फोटउआ (= फोटुआ, फोटो) ('केकर हई फोटउआ ?' -'ऊहे मुँहझौंसा के ।' -'केकरा गरिआवइत हहुँ ?') (अमा॰177:10:1.8)
424 बंदरबाँट (एकरा से हमरा समझ से, बाप-दादा के धन-सम्पत्ति तितिर-बितिर हो जयतई, एकदम से बंदरबाँट । पहिलहीं से सम्पत्ति एतना टुकड़ा-टुकड़ा हो गेलई हे कि सबके ऊँट के मुँह में जीरा लगऽ हई । अब तो आउ छितरा जयतई ।) (अमा॰180:14:1.18)
425 बइठारी (बेटा नवल बी॰ए॰ पास करके बइठारी के जिनगी जी रहल हे । अब तो ऊ काफी बाल-बच्चेदार हो गेल हे । तंगी के हाल में जी रहल हे ।) (अमा॰176:15:2.7)
426 बकर-बकर (~ करना) (चुप रह ! जादे बकर-बकर करबे त कुच्छो फल न मिलतउ ।) (अमा॰186:14:2.31)
427 बकिऔटा (= बकिअउटा) (ऊ पइसा तो हम्मर बकिऔटा हल, जे अप्पन औरत के इलाज के नाम पर अपने से निकाल के ले अइली हल ।; हम तो सूद के साथ अप्पन मेहनत के पइसा अपने से पा गेली । बहुत दिन के बाद हम्र बकिऔटा पइसा अपने हीं से निकलल । ओकरा अपने सूद के पइसा कहऽ ही ?) (अमा॰181:10:1.6, 2.6)
428 बकुली (करीब साठ साल के राघवानन्द पूरे लिलार पर तिरपुंड लगयले रहथ । नीचे पतलून पर ऊपर से झुलंगा बाघी रंग के कमीज पेन्हले रहथ । हाथ में एगो बकुली हरदम लेले रहथ ।) (अमा॰178:17:1.22)
429 बगेरी (बहेलिया लोग द्वारा गरवइया के बगेरी के टोकरी में लाके गाँहक के हाथ बेच के धन कमाए के कारन भी एकर जान पर खतरा बन गेल हे ।) (अमा॰185:18:2.19)
430 बजका (पूरनमासी के रतिया में दहन होलिका के होवे । बने फुलउड़ी बूँट के बजका पुआ-पूरी मन लोभे॥) (अमा॰181:15:2.22)
431 बजबजाना (जब कभी कोई बूढ़ा के बाल उड़ल देखे, मइल-कुचइल आधा फट्टल धोती पेन्हले, गोड़ में फट्टल बेवाय, अंगुरी में पानी लग के बजबजाइत गोड़, पचकल गाल, नस-नस हिगरायल हाथ से सतुआ सानइत देखे, त ओकर आँख मुंदा जाय ।) (अमा॰182:14:2.31)
432 बज्जड़ (= वज्र) (अब जेहु समय निकाल के हम चार लाइन लिखइत ही, त हिअउँ राजनीतिए के बज्जड़ पड़ जाइत हे ।) (अमा॰178:5:1.15)
433 बड़जात (अइसन अदमी तो चिरागो लेके ढुँढ़ला पर नैं मिलऽ हे । दोसर-दोसर बड़जतियन के देखऽ, हमन्हीं तो फुटलो आँख नैं सोहा ही । बाकि नन्दू बाबू के तो बाते जुदा हे । उनके चलते पढ़लऽ-लिखलऽ तों ।) (अमा॰176:13:1.20)
434 बड़ी मनी (मरदाना से मार खायल बड़ी मनी जनाना मिलऽ हथ, बाकि औरत से मार खायल मरदाना बड़ी मुस्किल से मिलऽ हथ ।) (अमा॰178:11:1.1)
435 बथा (देहिया के ~ छोड़ा देना) (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।) (अमा॰175:9:1.10)
436 बद्धी (= गले में पहनने का पवित्र धागा; धागा या डोरे की माला) (मंदिर पहुँच के फाटके पर पूजा के सामगरी कीनली, बाँस के डलिया में परसादी, फूल, बेलपत्तर, बद्धी, सेनुर, रोड़ी, अगरबत्ती, सलाई, सब कुछ ।) (अमा॰183:13:2.3)
437 बनाना-खाना (रात-दिन लिखहीं-पढ़हीं में परेसान रहऽ हथ । बनावहुँ-खाय के मौका कमे मिलऽ हे ।) (अमा॰185:17:1.9)
438 बनुआ (बाहर के ~) (तूँ बाहर के बनुआ ह, कखनी फिर तूँ घरे अयबऽ, भुखल-पियासल भोरे-भोरे घर से तूँ कइसे जयबऽ ।) (अमा॰177:20:1.14)
439 बन्हाना (अपनापन आउ प्रेम के चासनी में मन बन्हाय लगल ।) (अमा॰184:12:2.15)
440 बरखना (अगर समय पर बरखा न बरखे, तब ओकर सभे मेहनत बेकार हो जाहे ।) (अमा॰179:3:1.19)
441 बरनन (= वर्णन) (चाहे किसान के धनखेती सूखे के बात होवे, चाहे झमाझम बरसात के छवि के सुन्दर शृंगारिक बरनन, सभे छेत्र में इनकर गीत लोकप्रिय रहल हे ।) (अमा॰184:5:2.20)
442 बर-बजार (जब हम पहिले-पहिल एगो कवि-सम्मेलन में गेली हल तब डॉ॰ रामानुज तिवारी से हुअँइ परिचय होयल हल । ओकरा बाद से एक्के शहर में रहे के चलते बर-बजार, सड़क-चौराहा, कहीं न कहीं भेंट होइये जा हल ।) (अमा॰179:8:1.3)
443 बरिअरी (= जबर्दस्ती) (अईं बहिन ! एकरा कउन दुख हई । हम कहऽ हिअई एकरा काम करे ला ? चुपचाप बइठल रहे, त एकरा मने न लगई । बरिअरी जा हे काम करे ।) (अमा॰180:13:1.9)
444 बसुला (= बसुल्ला) (रुखना लयलूँ बसुला पजयलूँ अकिलगर बढ़ई बोलयलूँ, खान-पान तो देवे कयलूँ कड़कड़ नोट गमयलूँ ।) (अमा॰183:10:1.19)
445 बहराना (= बढ़ाना; बाढ़ना का अकर्मक रूप; झाड़ू से कूड़ा साफ किया जाना या होना) (अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ? बर्तन मलतो त सखरी लगले रह जा हई, झाड़ू-बहारू करतो त एक कोना बहरा हई, एक कोना गंदे रह जा हई ।) (अमा॰180:13:1.17)
446 बहिनपुतवा (घरवा कातो नानी बहिनपुतवा के देवल चाहित हई । बाप-दादा के एतना निसानी तो रह जायत ।) (अमा॰180:14:2.19)
447 बहुत्ते (~ सन्) (ऊ दिन नन्दू बाबू के साथे ऊ दुरगा स्थान पहुँचल हल, त हुआँ बहुत्ते सन् बुतरू जुटल हल लट्टू खेले ला ।) (अमा॰176:13:2.15)
448 बाँठ (सुनके बात हमरा मार देलक काठ, अपना के तूहीं बनलऽ हे बाँठ । कइसन मेहररुआ के लगल हउ माछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ?) (अमा॰185:15:2.15)
449 बाछी (बाछा-~) (ऊ साँप, मगरमच्छ, कछुआ, हंस, बत्तख, बगुला, सुग्गा, मैना, कउआ, चील, बाज, बटेर, गरूड़ तो बनयबे करऽ हथ, बाघ, सिंह, सियार, भालू, हरिन, लोमड़ी, खरहा जइसन जानवर के रूप भी मट्टी से गढ़ऽ हथ । औरत-मरद, लइका-लइकी, बूढ़ा-जुआन, जोगी-संन्यासी के अलावे बैल, गाय, भइंस, बकरी आउ भाछा-बाछी के मुरति गढ़ना उनकर बायाँ हाथ के खेल हे ।) (अमा॰175:6:2.1)
450 बाप-दादा (एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।; सुनली हे कि अब कातो एगो आउ कानून बन गेलई हे, जेकरा में बेटा-बेटी दुन्नो के बाप-दादा के सम्पत्ति में बराबर हिस्सा होतई, भाई जकत ।) (अमा॰180:14:1.7, 9)
451 बाप-माय (जहाँ तक नइहर के सवाल हल बाप-माय मरहीं गेलन हल ।; कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ?) (अमा॰178:6:1.28; 180:13:2.11)
452 बाल-बच्चेदार (बेटा नवल बी॰ए॰ पास करके बइठारी के जिनगी जी रहल हे । अब तो ऊ काफी बाल-बच्चेदार हो गेल हे । तंगी के हाल में जी रहल हे ।; एकरा चार बेटा हथ । सभे मुस्तंड, कमाए धमाए ओलन । सादी-बिआहो हो गेल हे सभे के । सभे बाल-बच्चेदार हथ ।) (अमा॰176:15:2.8; 177:16:2.15)
453 बिकरी (= बिक्री) (हर राज्य में परब-त्योहार के परम्परा जिन्दा हे । ऊ अवसर पर मेला-ठेला में खेलौना के बिकरी खूब होवऽ हे ।) (अमा॰175:6:1.19)
454 बिखिआना (= बिखाना, क्रोधित होना) (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
455 बिछउत (= बिछउती, छिपकिली) (काटल बिछउत साइदे बचतन । देह छुआल संकट में पड़तन ।) (अमा॰185:10:1.12)
456 बिछउती (= छिपकिली) (जइसहीं खाना पर बइठे लगली, ओइसहीं कपार पर एगि बिछउती गिर गेल आउ कन्धा पर से उतर के नीचे कूद गेल ।; जानऽ हें, पिछला साल हम्मर चरवाहा के माय पर सुतले में बिछउती गिर गेल हल, त पहिले ओकर जवान हाथी मर गेल, फिर ओकर घोड़ा मरल, फिर बकरी मरल, सब मुर्गी के चोर ले भागल ।; बिछउती करिया आउ बच्चा देवेओला हलइ, ई चलते करिया जरोहगर गाय दान करल बहुत जरूरी हे ।) (अमा॰185:10:1.2, 2.17, 11:2.25)
457 बिड़ार (बिड़ार कब जोतायत, कउन धान के मोरी कहाँ पड़त, मघाड़ खेत जोतायल कि न, ई सब तय करे वला राम टहले दास हथ ।) (अमा॰178:16:2.33)
458 बिसुआ (सावन पहिला पख पंचमी से परब के पसार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे ॥) (अमा॰181:15:1.2)
459 बिसुआनी (हिआँ हरेक साल ओही इयाद में बिसुआनी मेला लगऽ हे, जहाँ दूर-दूर से लोग आवऽ हथिन।) (अमा॰178:18:2.11)
460 बिस्टी (सुख-सुविधा आउ आराम केकरा कहल जाहे, ई आजतक न जानलक । दू बित्ता के बिस्टी पेन्हले, कन्धा पर करिया कम्बल आउ हाथ में मोटा लाठी लेले भेंड़-बकरी के पीछे जंगले-जंगले दउड़ित चलल ।) (अमा॰182:10:1.20)
461 बुका (~ फाड़ के रोना) (बेटी के पेड़ तर सुता देलक आउ पेड़ के पकड़ के बुका फाड़ के रोवे लगल ।) (अमा॰177:13:2.19)
462 बुढ़ौती (बुढ़िया के बुढ़ौती देखऽ, पहिनले हवऽ लगनौती देखऽ ।) (अमा॰182:19:1.1)
463 बुताना (= बुझ जाना) (तनी-मानी गोइँठा के चिपरी पर मट्टी के तेल डाल के सलाई से धरा देलक, बाकि बार-बार आग बुता जाए ।) (अमा॰182:13:2.20)
464 बुदुर-बुदुर (तोहनी दुन्नो बुदुर-बुदुर का हम्मर सिकायत करइत हें ?) (अमा॰179:19:1.16)
465 बुनाना (धनवाँ न भेलइ गेहुमो पर आफत, भूख से मचलइ बवाल हो । सगरो बधरिया में मसुरी बुनायल, पीके लोग रहतन का दाल हो ?) (अमा॰182:16:1.15)
466 बुनी (बड़ेरी के फाँफर से बुनी के पानी चुअइत हल ।; एकाएक गड़-गड़ कर के बादल गरजल आउ झमर-झमर बुनी पड़े लगल ।; ई अगिया लगउनी बुनी तो छूटे के नामे न लेइत हई ।) (अमा॰182:13:1.1)
467 बूढ़ा (~-जुआन) (ऊ साँप, मगरमच्छ, कछुआ, हंस, बत्तख, बगुला, सुग्गा, मैना, कउआ, चील, बाज, बटेर, गरूड़ तो बनयबे करऽ हथ, बाघ, सिंह, सियार, भालू, हरिन, लोमड़ी, खरहा जइसन जानवर के रूप भी मट्टी से गढ़ऽ हथ । औरत-मरद, लइका-लइकी, बूढ़ा-जुआन, जोगी-संन्यासी के अलावे बैल, गाय, भइंस, बकरी आउ भाछा-बाछी के मुरति गढ़ना उनकर बायाँ हाथ के खेल हे ।) (अमा॰175:6:1.34)
468 बेउन्नुस (एक्के जगुन हे रहना हमरा, डर से भाग कहाँ हम जइयइ ? लाज-गरान सभे ई पी गेल, बेउन्नुस संग कइसे रहियइ ? दसटकिया ले धड़फड़ भागइ, ताकइ नयँ फिर घर के ओरिया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.16)
469 बेकत (= घरवाली) (बेकत भी नामे के गोड़यतिन हथ । बेवहार में केकरो कान काटे वाली । कहिओ उरेबी वचन उन्हकर मुँह से न निकले ।) (अमा॰178:16:1.34)
470 बेकत (= परानी; दुन्नो ~ = दम्पति) (न मालिक ! हमनी दुन्नो बेकत के नीयत भी केकरो पइसा पचावे के न हे । हमनी भी अप्पन मेहनत पर बिसवास करऽ ही । दोसर के पइसा मट्टी समझऽ ही ।) (अमा॰181:11:2.23)
471 बेकती (बड़ी जतन से दुन्नो बेकती के पत्थर पुजइत-पुजइत बुढ़ारी में एगो लड़का भेलइन हल ।; बेर-बेर दुन्नो बेकत ओकरा हाथ पर उठयले रहऽ हलन ।; अगर इहाँ इन्साफ न मिलत त दुन्नो बेकती इंदरा में कूद के मर जायम ।) (अमा॰178:18:1.15, 19; 184:7:1.22)
472 बेटा-पुतोह (अगर इहाँ इन्साफ न मिलत त दुन्नो बेकती इंदरा में कूद के मर जायम । फिन सब बाल-बच्चा के अराम हो जायत । हमनिए दुन्नो से सभे बेटा-पुतोह के बड़ी परेसानी होइत हे कातो ।) (अमा॰184:7:1.24)
473 बेटी-दमाद (कोई कहे -'सब दुख भगवान देवे, बाकि बेटी-दमाद घरे रहे वला दुख न देवे । बड़ी तौहीनी होवऽ हे ।'; बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई ।; एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।; कातो फिर बेटिया-दमदा एगो टोपरवा बेचे ला कहित हई । नानी न कहित हई । मत बेच ऊ खेत, मेन सड़क पर हउ । उहाँ तक कुछ दिन में बजार आ जयतउ । लड़कन के रोजी-रोटी होतउ । बेटिया-दमदा मुँह फुलयले हई । भर-मुँह बोलई न, अइँठइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:13:2.8, 23, 14:1.6, 2.21, 24)
474 बेयापना (= व्याप्त होना) (अधिकतर घर में आपस में तनाव बेयाप गेल हे ।) (अमा॰185:3:1.4)
475 बेलपत्तर (= बेलपत्र) (भाँग धतूरा बेलपत्तर आउ अच्छत चन्दन रोड़ी से । पूजा होवऽ हे मंदिर में शादी होवइ गौरी से॥) (अमा॰181:15:2.16)
476 बेलाना (= बुलाना) (जो, जल्दी से जाके रामदेउआ के हिआँ गउँए में बेला ले, काहे कि बगले के गाँव में ओकर नौकरी लग गेलउ हे ।) (अमा॰177:9:2.28)
477 बेलूर (जे बेचारा हे सीधा-सादा, दुनिया के चल-चलाव से हे दूर, ऊ समझल जा हे बड़का बेलूर ।) (अमा॰184:15:1.11)
478 बैसाखी-बिसुआ (बैसाखी-बिसुआ मगह में अंतिम परब गिनावऽ हे । ककोलत के कनकन पानी गरम देह ठिठुरावऽ हे॥) (अमा॰181:15:2.31)
479 बोखरायल (गोड़थारी तर के आधा बिछौना भींग गेल हल । बोखरायल लइका के सुता के धनेसरी चुपचाप टकटक्की लगयले हल ।) (अमा॰182:13:1.3)
480 बोझा-बिंडा (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.4)
481 बोरा-बन्दी (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.6)
482 बोलना-बतिआना (पत्रिका लिखे के लेल, कविता-रचना छापे-छपावे के लेल हम मगही में लिखम आउ बोले-बतिआवे के समय खड़ी हिन्दी, ई दुमुही नीति से मगही भासा के विकास असंभव हे ।; जब तक शरीर में आत्मा हे, तब तक शरिर चल-फिर सकऽ हे, बोल-बतिआ सकऽ हे, इया कोई निमन-जमुन काम कर सकऽ हे ।) (अमा॰179:5:2.23; 185:9:1.10)
483 बोलहटा (इस्कूल, कॉलेज, गाँव, शहर, सबके बोलहटा पर हाजिर होलन आउ अप्पन सुर में कविता गावे-सुनावे में ई कभी न चुकलन ।) (अमा॰183:5:1.28)
484 बौसाव (= बउसाव) (अप्पन बौसाव से ऊ मगही के मन्तर हरमेसा जपइत रहलन आउ पिछला सदी के दोसरका भाग में मगही के भारी परचारक अपना के सिद्ध कैलन ।) (अमा॰183:5:2.16)
485 भंडार (अकूत ~) (झारखंड के भौगोलिक संरचना पठारी हे, जहाँ वनिज आउ खनिज सम्पदा के अकूत भंडार छिपल-पड़ल हे ।) (अमा॰175:7:1.4)
486 भंसा (ढेर दिन तक चुल्हा फुंकवयलऽ, आन्हर बनली भंसा में । नौ बजे हम आफिस जायम, टिफिन बनइहऽ भंसा में ।) (अमा॰177:7:1.29, 30)
487 भइँसुर (= भैंसुर) (परवतिया कुछ बरिस पहिले होएल मियाँपुर-बाथे नरसंहार घड़ी दोंगहरिये आएल हल । सास-ससुर, गोतनी-भइँसुर, ननद-देवर, घर के लइकन, इहाँ तक कि मरदाना तक कटा गेलन हल ।) (अमा॰178:6:1.25)
488 भइंसचरवा (ई तोरा जइसन अनपढ़वा आउ भइंसचरवा के बस के बात न हउ ।) (अमा॰176:9:1.23)
489 भक-भक (~ गोर) (एतने में टुह-टुह लाल साड़ी में साढ़े पाँच फीट के एगो भक-भक गोर नेपाली महिला परवेस कयलक ।) (अमा॰184:11:2.29)
490 भनर-भनर (अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.15)
491 भरमजाल (फिर तूँ भरमजाल में पड़ गेले न । हम तोरा कुच्छो न कैलिअउ हे ।) (अमा॰175:9:1.21)
492 भाँवर (एगो ढकना में आग सुलगा के दू-चार बेर भाँवर देलन, फिर मने-मन कुछ बुदबुदा के बोलला के बाद जोर से) जय दुर्गा ! जय भवानी ! बोल रे चुड़ैल ! तूँ इहाँ से भागऽ हें कि न ?) (अमा॰179:13:2.16, 14:1.16)
493 भाई-भतीजा (एही से पहिले लोग बेटी के धन न देवल चाहऽ हल । भाई-भतीजा के दे देवऽ हलन । बेटी-दमाद बेच देतउ बाप-दादा के नाम-निसान ।) (अमा॰180:14:1.6)
494 भुंजा-फुटहा (सुबह समय से नस्ता लागी चूल्हा-चउका जोरऽ ही, रोटी-सब्जी भुंजा-फुटहा कुछ भी लेके उदड़ऽ ही ।) (अमा॰177:20:1.14)
495 भुखल-पियासल (तूँ बाहर के बनुआ ह, कखनी फिर तूँ घरे अयबऽ, भुखल-पियासल भोरे-भोरे घर से तूँ कइसे जयबऽ ।) (अमा॰177:20:1.16)
496 भुरका-भुरकी (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
497 भुरहा (= भ्रुणाहा) (ई जगह परकिरति सोई के नाम से कालान्तर में विख्यात हो गेल, जे गया जिला के गुरुआ से छव किलोमीटर के दूरी पर बसल भुरहा के नाम से जानल जाहे । भूर कहे के माने छेद से पानी हद-हद निकले से ई भुरहा कहलायल, जहाँ मध्य काल में कुछ देवालय भी बनावल गेल ।) (अमा॰178:18:2.4)
498 भूत-परेत (तोरा भूत-परेत पर बिसवास न हवऽ ?; केकरो मन में जब काफी भय बेयाप जाहे, तब ऊ अदमी भय से अनाप-शनाप बके लगऽ हे । ओकर हालत देख के हमनी मान लेही कि ओकरा कोई भूत-परेत पकड़ले हे ।) (अमा॰179:14:2.16, 21)
499 भोन्दा (वाह ! वाह ! एकर मतलब कि तूँ आज किलास के सबसे भोन्दा लड़का हें, त कल तूँ किलास के फस्ट लड़का बन जयमे ? अरे जिन्दगी भर तोरा ई किलास में पिछलगुआ भोन्दा लड़का रहे ला ही लिखल हउ ।) (अमा॰175:11:2.8, 10)
500 भोरे-भोरे (तूँ बाहर के बनुआ ह, कखनी फिर तूँ घरे अयबऽ, भुखल-पियासल भोरे-भोरे घर से तूँ कइसे जयबऽ ।) (अमा॰177:20:1.16)
501 मउगत (= मौत) (न जानी कब इनका मउगत मिलत । ई धरती के बोझ हथ बोझ ।) (अमा॰180:10:2.1)
502 मउनी (गली में भर ठेहुना पानी भेल हल । ओरी के किनारे पिच्छुल भेल हल, से माथा पर गोइँठा के मउनी लेलहीं फुलवा गिर गेल ।; खाँसते-खाँसते ऊ दउड़ के भागल आउ हाथ में हँसुआ आउ मउनी लेके घास काटे चल गेल ।) (अमा॰182:13:2.9, 14:1.27)
503 मघाड़ (बिड़ार कब जोतायत, कउन धान के मोरी कहाँ पड़त, मघाड़ खेत जोतायल कि न, ई सब तय करे वला राम टहले दास हथ ।) (अमा॰178:16:2.34)
504 मचान (जेकर गेयान गोबर भे गेल, उहे मचान चढ़ झाँकऽ हे । कम्बल ओढ़ मारऽ हे सटासट आउ कदाचार बढ़ावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.7)
505 मड़पसौना (धुकुर-धुकुर करइत कइसहुँ खिचड़ी आउ चोखा बना के धनेसरी तसला के राख मड़पसौना से झाड़ के रख देलक ।) (अमा॰182:14:1.4)
506 मने-मन (मने-मन ऊ लड़का के प्रति हम्मर सनेह बढ़इत गेल ।) (अमा॰184:12:1.33)
507 ममहर (तीन बरिस के जब हल दिवाकर, तब ऊ ममहर से अप्पन बाबू के साथे गाँव अयलक हल आउ लख पर सबसे पहिले दादा के गोड़ लाग के एगो सीसम के गाछी कबाड़ लेलक हल आउ अप्पन गाँव में घर के सामने बनल खँढ़ी में रोप देलक हल ।) (अमा॰175:13:1.9)
508 मर (= धत् !) (~ बुरबक; ~ तोरी के) (मर बुरबक, तूँ कथा शुरू करबे कि नाटक करबे ?) (अमा॰186:14:1.12)
509 मरद-मेहरारू (तोरा सबके विपत्ति के घड़ी में काम चला देली । अब तोहनी सब आज गोल-गोल बतिआ रहले हें । मरद-मेहरारू दुन्नो के एक्के विचार हउ । पइसा देवे के तोरा सबके नीयत न हउ ।) (अमा॰181:11:1.31)
510 मलामत (कउन बेटा अब दूध के धोवल हई आउ बाप-माय के सरताज बनौले हइ ? ई दमदा घरे हई, सेई से ? बेटवा घरे रहतई हल, त पुतोहिया गोदी में खेलौतई हल ? बइठा के दूध-भात खिलौतई हल ? मलामत करतई हल, मलामत ।') (अमा॰180:13:2.14)
511 महंगी (= महँगाई) (बूँट खेंसारी मड़ुआ मकई, महंगी लेलक दुनिया से, कउची खयतन सब हे महंगी के मरिया, तूँ घरवा कइसे अयबऽ बालमा ।) (अमा॰184:16:1.12, 13)
512 महावर (सुबह प्रभाती होली में होलियाल चइत चइतावर । जेठ आउ बइसाख मास में, घर-घर सजल महावर॥) (अमा॰179:17:2.5)
513 माछी (सुनके बात हमरा मार देलक काठ, अपना के तूहीं बनलऽ हे बाँठ । कइसन मेहररुआ के लगल हउ माछी । काहे ला बुनली हल मड़ुआ के गाछी ?) (अमा॰185:15:2.16)
514 मातल (गंध से मातल रहे मन-प्राण हरदम, देह में गूंजल करे गुनगान हरदम ।) (अमा॰176:12:2.29)
515 मिरचाई (धुआँ नरेटी में गरगटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल ।; मिरचाई आउ नीमक के साथे दू-दू गो लिट्टी खा के सुत गेलथिन हल सब ।) (अमा॰182:13:2.25, 14:1.34)
516 मिरतु (= मृत्यु) (गाँव आउ ओकर आसपास चिकित्सा केन्द्र न होवे के चलते प्रसव के दौरान देह में पानी के कमी होवे से जच्चा-बच्चा दुनहूँ के मिरतु हो गेल ।) (अमा॰178:6:1.20)
517 मिलॉड (= My Lord !) (मिलॉड ! मुजरिम जोगन हम्मर मुअक्किल शिवदानी बाबू से अप्पन घरवाली के इलाज ला पच्चीस सौ रुपइया सूद पर उधार लेलन आउ महीने-महीने सलाना पाँच प्रतिशत सूद देवे के वादा भी कैलन ।) (अमा॰182:9:1.12, 2.20, 10:1.2, 6)
518 मुँह फेफरी (जब ले टका न दीयइ ओकरा, हमहीं ओकर सबसे जिगरी। हाय दया दिल में आ जा हइ, पड़ल देख ओकर मुँह फेफरी॥ करवट लेइत रात गँवावइ, पौ फटते ही करइ गोड़पड़िया । करना-धरना कुछ नयँ दिन भर, साँझ के आवइ पी के कोढ़िया॥) (अमा॰180:16:2.4)
519 मुँहकोर (~ गिरना) (करिया विचार के नेता अफसर, जनतंत्र गिरल मुँहकोर ।) (अमा॰178:9:1.6)
520 मुँहझप्पे (ऊ दिन ऊ मुँहझप्पे इँकस गेल हल घर से नन्दू बाबू के साथे ।; जाड़ो के कँपकँपी में लरिकन मुँहझप्पे सुत-उठके घर से इँकस जाहे खेले ला ।) (अमा॰176:13:2.1, 6)
521 मुँहझौंसा ('केकर हई फोटउआ ?' -'ऊहे मुँहझौंसा के ।' -'केकरा गरिआवइत हहुँ ?') (अमा॰177:10:1.9)
522 मुँह-तकुआ (तुँ दोसर के मुँहतकुआ मत बनऽ । अपने पर भरोसा करऽ, काहे कि ई संसार करमभूमि हे । तोहर अधिकार खाली खाली करम पर हवऽ, फल देना ऊपरवाला के हाथ में हइ ।) (अमा॰181:13:2.31)
523 मुड़ी (फुलवा मुड़ी गाड़ले क्लास में बइठ गेल, बाकि आज ओकरा पढ़े में मन न लगइत हल । बार-बार ऊ घरहीं के बारे में सोचे ।) (अमा॰182:14:1.15)
524 मुतना, मूतना (छुर-छुर ~) (तितकी से मत खेल बुतरुअन जर जैतो तोर हाथ रे, जे तितकी से खेले ऊ तो छुर-छुर मुते रात रे ।; तितकी से मत खेल बुतरुअन जर जयतो तोर हाथ रे, जे तितकी से खेले ऊ तो छुर-छुर मूते रात रे ।) (अमा॰179:6:1.15; 184:5:1.10)
525 मुरुख (= मूर्ख) (फिर तूँ ओही मुरुख वला बात सुरू कर देले ।) (अमा॰175:11:1.7)
526 मुल्ला (= मूर्ख, नासमझ) (अइसने-अइसने मुल्ला बराबर भेजइत रहिहऽ भगवान ! आज अन्दर से हिरदा तिरपित हो गेल ।) (अमा॰186:13:2.2)
527 मुसलमान (हँ-हँ नन्दू ! तों कायथ हें न, एही गुने बोलऽ हें । कायथ तो आधा मुसलमान होबे करऽ हे । अब सादी-बिआह, मरनी-जीनी में एही चमरन के पूज, हमनी के पूज के की होतउ तोरा !) (अमा॰176:14:2.9)
528 मुस्तंड (एकरा चार बेटा हथ । सभे मुस्तंड, कमाए धमाए ओलन । सादी-बिआहो हो गेल हे सभे के । सभे बाल-बच्चेदार हथ ।) (अमा॰177:16:2.14)
529 मेला-ठेला (हर राज्य में परब-त्योहार के परम्परा जिन्दा हे । ऊ अवसर पर मेला-ठेला में खेलौना के बिकरी खूब होवऽ हे ।) (अमा॰175:6:1.19)
530 मेस्तरनी (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.12)
531 मेही (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
532 मोजराना (= मंजराना) (बाग-बगइचा में आम मोजरायल, देसवा में अब हे वसंत रितु आयल ।) (अमा॰177:17:1.20)
533 मोटका (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।; बात बदले में माहिर हे मोटका । का जानि बचपन से कउन बात बनावे ओला इसकूल में पढ़लक हे ।) (अमा॰175:9:1.6, 17)
534 मोटरी-गेठरी (बुढ़िया ओकरा देख के अप्पन मोटरी-गेठरी उठाके चले ला चाहलक ।) (अमा॰177:16:1.13)
535 मोरांजा (कहाँ जाऊँ अब का करूँ, कउची से अब पेट भरूँ । मोरांजा अब दुलुम हो गेल, मेही हे बिखिआयल ।) (अमा॰176:16:2.16)
536 मोरियार (~ खेत) (दू दिन हमरा मोरियार आदि खेत में धान रोपे ला हे । तब हमहूँ घरे से निफिकिर हो जायम आउ फिर हमरा फरका के इलाज करइहऽ । अब हमरा का होयत ?) (अमा॰175:13:2.15)
537 मोसहरा (उनखरे दसखत से इनखर आउ मास्टर लोग के हाजरी जायज होवऽ हे । ई दसखत करऽ हथ, तब जाके मोसहरा के बिल बनऽ हे ।) (अमा॰185:17:2.24)
538 मौगमेहरा (आँख बन्द करके देखऽ जी, अन्दर दिल के चेहरा । करिया पत्नी के भतार, पर ह पूरा मौगमेहरा ।) (अमा॰178:9:2.1)
539 रगन (एतना ~ के; ~-~ के) (ई का करे बेचारी ! बेटी-दमाद एतना रगन के बात बनौलकई कि बेचारी के राजी होवे पड़लई ।) (अमा॰180:13:2.23)
540 रगन-रगन (जब हम लइकाइ के दिन इयाद करऽ ही, तब आँख के सामने तरह-तरह के खेलौना मन के मोह लेहे । पिपही बाजा, तोंद फूलल सेठ-सेठानी, कंधा पर हर लेले किसान, जाँता पिसइत औरत, लाठी टेकइत बूढ़ा, करिया हाथी, उज्जर बाघ, हरियर तोता, रगन-रगन के चिरईं ।; रगन-रगन के बात गली-महल्ला में पसर जाय - पक्ष में, विपक्ष में ।) (अमा॰175:5:1.28; 180:13:2.6)
541 रत-रत (लाल ~) (अंग्रेज सिपाही हिनखा सकरी के घाटे पर मौत के घाट दतार देलक आउ नदी के पानी हिनखर खून से लाल रत-रत भे गेल ।) (अमा॰175:7:2.28)
542 रसगर-मिठगर (फिर तो भाव विभोर होके एकरा में खुद कविजी अप्पन रसगर-मिठगर आउ हास्य-व्यंग्य से भरल कइएक रचना सुना के श्रोता लोग के ध्यान मगही के तरफ खींचलन ।) (अमा॰185:4:2.20)
543 रसिया (एक कटोरी में गुड़ आउ चाउर के बनल रसिया हल, एक कटोरी में दूध आउ बासमती चाउर के बनल उज्जर खीर भी हल ।; दस-बारह दिन सावन बीतइत करीब पनरह-बीस घर से पूड़ी-सब्जी, खीर-रसिया आउ भात-दाल-सब्जी, दही-चीनी, अँचार-पापड़, चोखा-चटनी, साग तक बैना आइए गेल हल ।) (अमा॰186:6:1.16, 2.13)
544 राई-सरसों (केतना में धान रोपायत, कहाँ मसुरी, बूँट आउ गेहूँ लगत, राई-सरसों केतना में आउ कहाँ लगत, केतारी ला कउन खेत रहत, ई सब राम टहले के जिम्मे रहऽ हे ।) (अमा॰178:17:1.7)
545 राख-मट्टी (रोज-रोज देखइत ही, दुःख भोगइत मरइत लोग, मरघट मसान-घाट जाइत, जरइत राख-मट्टी होइत लोग । तइयो न खुलइत हे, बन्द हे ज्ञान के किवाड़, अझुरायल भूल-भुलइया में, लोभ में बने के धनाड़ ।) (अमा॰179:17:2.17)
546 रुखना (= रुखानी) (रुखना लयलूँ बसुला पजयलूँ अकिलगर बढ़ई बोलयलूँ, खान-पान तो देवे कयलूँ कड़कड़ नोट गमयलूँ ।) (अमा॰183:10:1.19)
547 रूसल (घूरा तर बइठल बूढ़ा, सुख-दुख के राग सुनावे । रूसल दुलहिन के घर में, बड़का सब खूब मनावे॥) (अमा॰179:17:2.7)
548 रोधना (~ पसारना) (मुन्ना खेलौना ला रोधना पसार रहल हे । ओकर मट्टी के घोड़ा के टांग टूट गेल हे ।) (अमा॰175:5:1.1)
549 लंगटे-उघारे (मट्टी के टूटल-फूटल घर, काम करइत मजूर, फट्टल पेवन साटल साड़ी झोपड़ी के अगल-बगल करखाही खरकट्टल बरतन-बासन, चुल्हा के ढहल पुत्ती, लंगटे-उघारे लइकन के झुंड जब देखे, तब ओकर मन भारी हो जाय ।) (अमा॰182:14:2.25)
550 लंबरदार (भले आज के भोजपुरी गीत पहिले के फिल्म के तुलना में अपभ्रंश, शर्मनाक आउ भोजपुरी के संस्कृति पर प्रश्न खड़ा कर रहल हे जेकरा से समज में लोकप्रियता तो न, घृणा आउ दुःख पहुँच रहल हे । भोजपुरी भासा के प्रचारक लंबरदार के ई सब पर रोक लगावे के जरुरत हे ।) (अमा॰179:5:1.27)
551 लइका-फइका (पुतोहिया मना करऽ हई -'काहे ला बर्तन मलऽ ह नानी ? झाड़ू-बहारू काहे ला करऽ ह नानी ? काहे ला गोबर-गोइँठा करऽ ह ? बनवऽ त तनि-मनी लइका-फइका धर ल आग जोरे तक ।') (अमा॰180:13:1.12)
552 लक्खीसराय (देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उदगम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे ।) (अमा॰175:7:1.10)
553 लख (= अं॰ लॉक; सिंचाई नहर की नालियों में पानी छोड़ने तथा नाव-जहाज के परिवहन को नियंत्रित करने के लिए 5-6 मीलों पर बना विशेष ढाँचा; वह स्थान जहाँ इस प्रकार का ढाँचा बना हो, यथा: विक्रम लख) (तीन बरिस के जब हल दिवाकर, तब ऊ ममहर से अप्पन बाबू के साथे गाँव अयलक हल आउ लख पर सबसे पहिले दादा के गोड़ लाग के एगो सीसम के गाछी कबाड़ लेलक हल आउ अप्पन गाँव में घर के सामने बनल खँढ़ी में रोप देलक हल ।; रनिया तलाब लख पर पानी खोलवा के पूरा पानी बहावल गेल, बाकि दिवाकर के कउनो अता-पता न चलल ।) (अमा॰175:13:1.12, 2.8)
554 लगन-चुमावन (विद्या देवी माँ सरसती के पूजा-अर्चना करऽ ही । शिव-विवाह के लगन-चुमावन तहिने जाके धरऽ ही॥) (अमा॰181:15:2.12)
555 लगनौती (बुढ़िया के बुढ़ौती देखऽ, पहिनले हवऽ लगनौती देखऽ ।) (अमा॰182:19:1.2)
556 लगल-भिड़ल (~ रहना) (मगही के उत्थान ला ई तन-मन-धन से लगल-भिड़ल रहलन ।) (अमा॰186:15:1.21)
557 लजकोहड़ (= लज्जालु, शर्मीला, संकोची) (ऊ केतना लजकोहड़ लोग के सफल कलाकार बना देलन हल ।) (अमा॰177:5:2.11)
558 लट्ठमलट्ठी (कजै गिरहकट्टी हे, कजै लट्ठमलट्ठी हे । कजै बीच शहर में चल रहल भट्ठी हे ।) (अमा॰185:16:1.23)
559 लड़कइयाँ (माँझी रे, माँझी रे, माँझी रे ! अभी सपना के मंजिल हो दूर । छुपुर छइयाँ, छुपुर छइयाँ, हाय हइयाँ, हाय हइयाँ । लंगर गिरा मत कर, माँझी रे लड़कइयाँ ।) (अमा॰180:15:1.6)
560 लड़िकाई (समाज सेवा के तरफ इनकर रुचि बचपने से हलइन । एकरा अलावे लड़िकाइये से साहित्य निर्माण के तरफ झुकाव हलइन ।) (अमा॰183:3:2.11)
561 लताड़ना (जग-जननी के दुत्कारऽ, सींघ से जमीं के खुरछाड़ऽ, दुइए साल पर लताड़ऽ, आवऽ बैल हमरा मारऽ ।) (अमा॰184:16:2.13)
562 लत्तम-जुत्तम (जइसहीं चोरवा गिरलई, ओइसहीं ओकरा पर लत्तम-जुत्तम एतना होलई कि ऊ अधमरल जइसन हो गेलई ।) (अमा॰179:11:1.12)
563 लत्ता-कपड़ा (जी सरकार ! घर-गोसाला, अंगना-ओसारा, कोना-सान्ही, कोठी-भाढ़ी, चौखट-केंवाड़ी, दिरखा-अलमारी, भुरका-भुरकी, लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौना, जर-जनावर, सब पर जल छिड़क देली ।) (अमा॰186:12:2.17)
564 लम्बा-लम्बी (अरे, ई देवाल एतना बड़का हो गेल ? एतवर विशाल दैत्य ! तनि गो के हइये हल ई, जइसे बइठे के ओटा इया तीनों भाई के लम्बा-लम्बी सुते के भित्ति !) (अमा॰178:19:1.3)
565 ललका (धुआँ नरेटी में गड़गटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल ।) (अमा॰182:13:2.25)
566 ललुआना (देखिहऽ, आज हमनी तोर तीनो लइकन के भरल समाज में अइसन ललुआयम कि तोरा साथे ऊ सब इन्साफ करबे करतन ।) (अमा॰184:7:1.14)
567 लहकना (कर्मभूमि में दिन भर काम करइत किसान लहकइत धूप, बरसात इया शीतलहरी के परवाह न करे।) (अमा॰179:3:1.27)
568 लांगड़ (सोनपरी के बेटी रिंकी जब जानलक कि ओकर सादी लांगड़ लड़का से होवित हे, तब ऊ जार-बेजार होके रोवे लगल ।) (अमा॰177:14:2.28)
569 लाते-घूँसे (~ मारना) (काहे न गरिअयबई । माथा फोड़ के मारलक हे लाते-घूँसे बुन्नी ! कहलक हे कि एक लाख रुपइया बप्पा से माँग के न लयमें, त ई घर में गोड़ मत रखिहें ।) (अमा॰177:10:1.14)
570 लाव-लश्कर (एगो तेसर पीड़िता के केस आयोग में दर्ज होलइ । पति नोटिस पर लाव-लश्कर सहित आयोग अयलन ।) (अमा॰175:8:2.26)
571 लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थल (अरे, हम्मर देश के कर्णधारन के एहु पता हई कि आरक्षण कहाँ जरूरी हहे आउ कहाँ नऽ ? अब ई सोचे वला बात हइ कि जउन आइ॰ए॰एस॰ एँड़ी-चोटी के पसेना एक करके इहाँ तक बुद्धि-क्षमता के सहारे पहुँचल हथल, हुएँ लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थल नेतवन उनकर बाप बनके उनका हुकुम देवित हथन ।) (अमा॰178:5:1.29)
572 लिट्टी (माय, ए माय ! का सोचइत हें ? आओ नऽ, भूख लगल हे बड़ी जोर से । अरे तोहर दुलरी बनैले हउ लिट्टी ।) (अमा॰177:9:2.31)
573 लुंडी (जोर जोहलूँ घोरताहर गोहलूँ लुंडी पर लुंडी बनयलूँ, ठोक-ठाक के ठीख-ठाक से चारो चुड़ी चढ़यलूँ ।) (अमा॰183:10:1.22)
574 लेवन (ओन्ने धनेसरी मसुरी के दाल आउ उसना चाउर के फेंट के धोलक आउ तसला में मट्टी के लेवन देके चुल्हा में आग जोड़ देलक ।) (अमा॰182:13:2.17)
575 लैन (= लाइन) (उनकर भगिना अरुण तो मामुए नियन मास्टरी लैन में हे । ऊ मास्टरो के पढ़ावऽ हे ।) (अमा॰176:15:2.15)
576 लोंदा (देखहूँ मइया ! बीचे तसला महादेजी के पीड़ी ! नानी मललथी हे । देखली त देखइत ही कि बीचे तसला में भात के लोंदा झलकइत हे ।) (अमा॰180:13:1.25)
577 लोंहड़ (= लोहँड़, लोहँड़ा, लोहंडा < लौह + हंडा) (छठ व्रत के उपवास के पहले चौठ की संध्या को विशेष प्रकार का प्रसाद; लोहंडा करने का व्रत) (सन् २००८ ई॰ के कतकी छठ हम्मर जिनगी में एगो अलगे स्फूर्ति लेके आयल हल । ... बाकि हमनी लोंहड़ के दिन पहुँचली हल, एहि से मन में इच्छा रहलो पर ऊ दिन नालंदा के खंडहर न देख पइली ।) (अमा॰185:5:1.11)
578 लोग-बाग (ऊ अप्पन डिउटी पर तैनात होयल हल अन्हरिया में लोग-बाग के मदद करे लेल । खूब अन्हार-पन्हार हो गेल हल ।) (अमा॰186:6:1.7)
579 लोटा-छीपा (अब पुतोहिया ढुकलई हे, त ओकरो लड़का से फुरसते न हई । घर आँगन में कूड़ा-कर्कट, जूठा-सखरी बिखरल रहऽ हई । चापाकल पर सब खा-खा के लोटा-छीपा, गिलास, कढ़ाई, तसला के ढेरी लगा देतो । मक्खी सगरो भनर-भनर करइत रहऽ हई ।) (अमा॰180:14:2.14)
580 लोराना (= आँख में लोर आना) (हमनी तो ई दिरिस पहिला बार देखइत हली । मन पीड़ा से भर गेल । आँख लोरा गेल ।) (अमा॰183:14:1.8)
581 लोरे-झोरे (धुआँ नरेटी में गरगटाइन आउ आँख में ललका मिरचाई जइसन लगइत हल । लगे जइसे दीदा फूट गेल । लोरे-झोरे हो गेल हल धनेसरी ।) (अमा॰182:13:2.26)
582 लोहवान (हँ हो शंकर ! गणना में तो कुछ गड़बड़ बुझाइत हे । तूँ आगे बढ़ऽ आउ दोकान से अगरबत्ती, धूप-धूना आउ लोहवान खरीद के रक्खऽ । घबराए के कोई बात न हे । हमरा उहाँ पहुँचइते सब ठीक हो जाएत ।) (अमा॰179:13:1.16)
583 विधुकल (रुसल धरती विधुकल अकास, उगल रउदा सगरो झकास ।) (अमा॰180:1:2.1)
584 संसकिरित (= संस्कृत) (संसकिरितो पढ़लऽ हे ? ओमे एगो एसलोक हे -'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ... ।' ) (अमा॰176:14:2.19)
585 सइंतना (खाड़ गाड़ी के इंजन हुड़-हुड़ कर रहल हल । एजेण्ट यात्री के बोरा जइसन सइंतले जाइत हल ।) (अमा॰181:18:1.24)
586 सकदम (अइसन अनाथ के जान बड़ी सकदम में फँसल रहऽ हे ।) (अमा॰180:14:1.1)
587 सकरी (नवादा जिला के छाती पर बहेवला 'सकरी' नदी झारखंड के घोरंजी गाँव से निकसल हे, जे देवरी प्रखंड में पड़ऽ हे ।) (अमा॰175:7:1.6)
588 सखरी (अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ? बर्तन मलतो त सखरी लगले रह जा हई, झाड़ू-बहारू करतो त एक कोना बहरा हई, एक कोना गंदे रह जा हई ।) (अमा॰180:13:1.16)
589 सटले (= से सटा हुआ) (घोड़-सिम्मर के सटले 'बेला' गाँव हे जहाँ बेल के बगइचा हलइ, जे ठाकुरे साहेब लगौलन हल ।) (अमा॰175:8:1.12)
590 सटासट (जेकर गेयान गोबर भे गेल, उहे मचान चढ़ झाँकऽ हे । कम्बल ओढ़ मारऽ हे सटासट आउ कदाचार बढ़ावऽ हे ।) (अमा॰178:9:2.8)
591 सतुआ-गुड़ (सावन पहिला पख पंचमी से परब के पसार होवे । सतुआ-गुड़ खाके बिसुआ बैसाखी बिसार होवे ॥) (अमा॰181:15:1.2)
592 सतेआनास (= सत्यानाश) (मुचकुन पाँड़े तखनी नन्दुओ बाबू पर बोल उठलन हल -'सतेआनास ! सतेआनास ! तों एफ॰ए॰, बी॰ए॰ की कइलें नन्दू, कुल-खनदान नसा देलें ।') (अमा॰176:14:1.32)
593 सधल (सधल हाथ से बनल खेलौना सबहे के मन मोह ले हल ।) (अमा॰175:5:2.3)
594 सन् (= सन, -सा) (बहुत्ते ~) (ऊ दिन नन्दू बाबू के साथे ऊ दुरगा स्थान पहुँचल हल, त हुआँ बहुत्ते सन् बुतरू जुटल हल लट्टू खेले ला ।) (अमा॰176:13:2.15)
595 समांग (कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।) (अमा॰178:17:2.10)
596 सरकार (= पंडित, पुरोहित) ('दण्डवत सरकार !' - 'आनन्द रहऽ जजमान ।'; सरकार ! हम्मर मतारी के हालत ठीक न हे ।) (अमा॰179:13:1.4, 8)
597 सरपंच (एक दिन गाँव के सरपंच बुढ़िया के देखे ला पहुँचलन ।; सराध के बाद राम लाल आउ श्याम लाल सम्पत्ति के बँटवारा ला गाँव के पंच लोग के बोलयलन । सरपंच साहेब पुछलन -'कहऽ, कउन चीज के पंचइती करे ला हो ।') (अमा॰179:10:1.24, 2.24)
598 सरापना (= शाप देना) (हम्मर मरद कुत्ता निअर एकरा-ओकरा पीछे पोंछी हिलावइत फिरे हे । अब सुनऽ ही कि रूस जाइत हे कुतवा । जेन्ने जाय के मन हउ, जो ! मर कोढ़फुट्टा ! अइसन पति ला तीज करबई कि दिन-रात सरापिते रहबई ।) (अमा॰177:10:2.6)
599 सवारथी (= स्वार्थी) (रामटहल, तूँ पक्का सवारथी हें । तूँ हमेसा केवल अपने बारे में सोचऽ हें ।) (अमा॰175:10:2.32)
600 ससुरइतिन (अब तो दुलरइतिन बेटी भेलऽ ससुरइतिन, मानी लेहूँ मइया के बात बेटी हमरो ।) (अमा॰183:17:1.1)
601 सहमल (लउटे घड़ी देखते-देखते हमनी के बस काठमांडू के पहाड़ी रस्ता पर आगे बढ़े लगल, त पता चलल कि आज चनरमा भी उदास हे, सहमल हे । ओकर आधा से कम चेहरा असमान के करिया ओढ़ना में तोपायल हे आउ शांत दृष्टि से ऊ हम्मर मुँह के निरेख रहल हे ।) (अमा॰184:14:2.20)
602 सहेजना (भारत के किसान हमनी के पेट भरे ला अनाज तो देबे करऽ हथ, भारतीय संस्कृति आउ सभ्यता के भी ऊ लोग सहेज के रखले हथ ।) (अमा॰179:3:1.6)
603 सामर (= श्यामल, साँवला) (सुडौल शरीर, औसत कदकाठी, सामर रंग, सुघड़ बनावट, कुसल बेवहार आउ मिसरी घोरल बोली पुष्पाजी के व्यक्तित्व में चार चान लगा दे हल ।) (अमा॰177:6:1.14)
604 सिकड़ी (= सिकरी) (धनेसरी उठ के एगो कटोरा उठा के जइसहीं देलक कि केंवाड़ी के फाँफड़ से झटास आवे लगल । केंवाड़ी फट-फट बजे लगल । केंवाड़ी के बाहर के सिकड़ी झनझनाए लगल ।) (अमा॰182:13:1.21))
605 सिखहर (मोटका बिलरवा कोठी चढ़के सिखहर पर नजर गड़यले हे ।) (अमा॰185:13:1.28)
606 सिन (= सन, -सा, से) (छप्पर से चू के पानी टप सिन ओकर आँख पर पड़ल ।; हाली सिन अप्पन बाउजी के हाथ में गाय के पोंछी पकड़वा के दान करवा द ।) (अमा॰182:13:1.15; 186:5:1.17)
607 सिलाई-फराई (लड़की पढ़ल-लिखल हल, बड़ी समझदार । ओकर समझदारी ाँव में बड़ी प्रसंसा के विषय हल । ऊ सिलाई-पराई भी करऽ हल ।) (अमा॰177:9:2.17)
608 सींघ (= सींग) (जग-जननी के दुत्कारऽ, सींघ से जमीं के खुरछाड़ऽ, दुइए साल पर लताड़ऽ, आवऽ बैल हमरा मारऽ ।) (अमा॰184:16:2.12)
609 सीमाना (= सीमा) (दूर देस तक अप्पन नाम, रूप, यश, कृति आउ सरोकर से परसिद्ध रहल मगध देस के राजा-रजवाड़ा में टिकारी के सुनाम हे, जे आझ गया जिला के सीमाना में हे ।; ब्रज प्रदेस के मथुरा क्षेत्र से मगध के राजगीर कोई नगीच थोड़िए हे । राह चलइत-चलइत तीनों के 14वाँ दिन हो गेल, तइयो एहनी मगध के सीमाना में न पहुँचलन ।) (अमा॰180:18:1.3; 181:18:1.5)
610 सूद-मूर (हम सूद-मूर सब छोड़े ला तइयार ही, बाकि थोड़ा सा अदमी नियन तूँ बोल दे । हमरा आउ कुच्छो न चाही ।) (अमा॰182:11:2.11)
611 सोई (= स्रोत, सोता; झरना) (ई जगह परकिरति सोई के नाम से कालान्तर में विख्यात हो गेल, जे गया जिला के गुरुआ से छव किलोमीटर के दूरी पर बसल भुरहा के नाम से जानल जाहे । भूर कहे के माने छेद से पानी हद-हद निकले से ई भुरहा कहलायल, जहाँ मध्य काल में कुछ देवालय भी बनावल गेल ।) (अमा॰178:18:2.4)
612 सोई-झरना (पहाड़-पठार, जंगल-झाड़, नदी-नाला, सोई-झरना आदि से अटल-पटल मगध के भूमि युग-युगान्तर से जीव-जन्तु के परकिरतिक बसेरा हे जेकरा में बाघ के स्थान सबले ऊपर हे ।) (अमा॰180:6:1.1)
613 सोहनी (= निकौनी) (जब भी हम पौधा सबके सोहनी करऽ हली, चाहे पानी पटावऽ हली, तब मन होवे कि ओकरो कुछ सेवा कर दीं । बाकि अप्पन इच्छा के बावजूद ओकर सोहनी न कर पावऽ हली, काहे कि ओकर जड़ ईंटा के देवाल के बीच में हल ।) (अमा॰181:13:1.23)
614 हँड़िया-बरतन (आज तक हमनी खेत, घर-दुआर, हँड़िया-बरतन, सब चीज के बँटवारा करली हे । लेकिन पूरा समाज ला ई बड़ी शरम के बात हे कि आज हमनी के माय-बाप के बँटवारा करे ला इहाँ पर जमा होवे पड़ल हे ।) (अमा॰184:7:2.7)
615 हउँकना (= झलना) (एगो छोटहन लकड़ी के टुटान चुल्हा में लगाके बाँस के पंखा से हउँके लगल आउ आँख मले लगल ।) (अमा॰182:13:2.24)
616 हगना (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.12)
617 हग्गल (गोबर गोइंठा गउशाला गउ सब पर हम्मर ध्यान लगल, रात के जुट्ठा-कुट्ठा बरतन धोयला पर कुछ काम सधल, बुतरुन के हग्गल धोवे लेल हमहीं हियो असली मेस्तरनी ।) (अमा॰177:20:1.12)
618 हमन्हीं (अइसन अदमी तो चिरागो लेके ढुँढ़ला पर नैं मिलऽ हे । दोसर-दोसर बड़जतियन के देखऽ, हमन्हीं तो फुटलो आँख नैं सोहा ही । बाकि नन्दू बाबू के तो बाते जुदा हे । उनके चलते पढ़लऽ-लिखलऽ तों ।; दुन्हूँ चपरासी अभियो हमन्हीं के सलामी दागऽ हे ।; एही तो हल जे ऊ रोज हमन्हीं के फुलेसर, सुरेश, नरेश आउ रमासामी के संगे लट्टू नैं खेले देलक हल ।) (अमा॰176:13:1.21, 25, 14:1.19)
619 हरहोर (अठारह सौ अस्सी के एकतीस जुलाई रहे, लमही नगरिया भेल सोर मोरे भइया । मुंशी अजायब के घर अयलइ ललनवाँ से, गाँव-घर भेलई हरहोर मोरे भइया ।) (अमा॰181:20:1.2)
620 हरियरी (फुलवा ! ए फुलवा ! तनी-मानी गइया ला हरियरी काट के लेले आव तो ।; सड़क के पार खेत के हरियरी में मन भुलायल रहल ।) (अमा॰182:14:1.23; 183:11:2.12)
621 हाँहे-फाँहे (~ दउड़ल जाना) (जब-जब बुढ़िया के तबियत खराब हो जाए, गाँव-घर के लोग रमरतिया के खबर कर दे हलन । खबर सुनइते रमरतिया मइया के सेवा ला हाँहे-फाँहे दउड़ल चल आवऽ हल ।) (अमा॰179:10:1.17)
622 हाजरी (उनखरे दसखत से इनखर आउ मास्टर लोग के हाजरी जायज होवऽ हे । ई दसखत करऽ हथ, तब जाके मोसहरा के बिल बनऽ हे ।) (अमा॰185:17:2.23)
623 हिगरायल (जब कभी कोई बूढ़ा के बाल उड़ल देखे, मइल-कुचइल आधा फट्टल धोती पेन्हले, गोड़ में फट्टल बेवाय, अंगुरी में पानी लग के बजबजाइत गोड़, पचकल गाल, नस-नस हिगरायल हाथ से सतुआ सानइत देखे, त ओकर आँख मुंदा जाय ।) (अमा॰182:14:2.32)
624 हिनखा (= म॰ इनका, हि॰ इनको; ~ में = इनमें) (ठाकुर अजीत सिंह बड़ कुशल, वीर, बुद्धिमान, नीडर आउ धार्मिक प्रवृत्ति के मानुस हलन । हिनखा में सिंहत्व आउ देवत्व दुनहूँ गुन हल ।; शंकरजी हिनखा वरदान में एगो उड़न्त-घोड़ा आउ सरिता देलन हल, जेकर नाम तखने 'शंकरी' आउ अखने 'सकरी' हे ।) (अमा॰175:7:1.24, 27)
625 हिरिस (अइसने हिरिस तोहर मन में बनल रहे, दिलवा तो हमरा ला तोहर टंगल रहे, अयबऽ न फिन तूँ दोसरा के अंगना । हो गेलो हे लोभ तोरा देख मोर गहना ।) (अमा॰184:20:1.23)
626 हुअँइ (जब हम पहिले-पहिल एगो कवि-सम्मेलन में गेली हल तब डॉ॰ रामानुज तिवारी से हुअँइ परिचय होयल हल ।) (अमा॰179:8:1.2)
627 हुमाद-अगरबत्ती (सब मुरती के भोरे-भोरे नेहावल-धोआवल गेल, पूजा-पाठ, धूप-हुमाद भेल । सगरो हुमाद-अगरबत्ती के सुगंध पसरल हल ।) (अमा॰183:13:1.19)
628 हुरचुल्ली (= हुलचुल्ली) (~ सूझना) (ई मोटका न अपने पढ़त, न दुसरा के पढ़े देत । खाली दिन भर एकरा हुरचुल्ली सूझऽ हे । का जानी कइसन निछत्तर में एकर जनम होलइ हल । माहटर साहेब से कह देबउ त देहिया के बथा छोड़ा देतथुन ।) (अमा॰175:9:1.8)
629 हूब (अब एकरा से झाड़ू-बहारू होतई, बर्तन मला जतई, गोबर-गोइँठा होतई ? ... गोबर-गोइँठा करे के एकरा हूब हई ?) (अमा॰180:13:1.18)
630 होड़ियाना (मन ~) (जनानी में ई रोग के लक्षण मरद से अलग होवऽ हे - गर्दन, बाँह में दरद, छाती में जकड़न, पसेना आवऽ हे इया मन होड़िया हे ।) (अमा॰179:7:2.8)
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