विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, January 01, 2011

राम टहल दास

लेखक - राजेन्द्र ब्रह्मचारी

राम टहल दास जात के गोड़ायत हथ । हम्मर खानदानी मजदूर । मजदूर तो नाम हे, हथ ऊ घर के मालिके । उन्हकर राय के बिना खेती-गिरहस्थी के एक्को काम न होवे वला हे ।

कय गो बैल रहत, कउन बिकत, कइसन आउ कय गो खरीदायत, कइसन गाय रहत, कइसन भइँस, सब राम टहले के तय करते पइलूँ । उन्हकर बात बिल्कुल्ले नयँ टले । टलत कइसे, ऊ बिल्कुल तकले-तउलले रहऽ हे ।

कोई दाव-पेंच तो ऊ जानबे न करथ । परिवारो से बढ़के काम सम्हारे वला हथ । घर-परिवार से भरल-पुरल । बेकत भी नामे के गोड़यतिन हथ । बेवहार में केकरो कान काटे वाली । कहिओ उरेबी वचन उन्हकर मुँह से न निकले ।

पुतहुन के बेटियो से बढ़के माने वाली । बाल-बुतरुन ला जान देवे वाली - गंगा जइसन ।

राम टहल दास के जीवन सुखमय हे । खेती-बाड़ी कम रहला पर भी कमी कुच्छो के न हे । जमीन्दारी जीवन तो उन्हका जीना न हे, से सब कुछ ठीक-ठाक हे । कहियो घर में टन-टुन होते उन्हका हीं न देखलक कोई ।

बिड़ार कब जोतायत, कउन धान के मोरी कहाँ पड़त, मघाड़ खेत जोतायल कि न, ई सब तय करे वला राम टहले दास हथ ।

खेत में गंडी बंधायल कि न, फरनी लायक पानी हे कि न, मोरी ठीक से जमल कि न, ऊ कब उखाड़े लायक होवत, कब पहिरोपना आउ कहाँ से सुरु होयत, ई सब ओही जानथ ।

केतना में धान रोपायत, कहाँ मसुरी, बूँट आउ गेहूँ लगत, राई-सरसों केतना में आउ कहाँ लगत, केतारी ला कउन खेत रहत, ई सब राम टहले के जिम्मे रहऽ हे ।

सब चीज के बीज के बारे में घरे से पूछ लेथ । न रहला पर जोगाड़ करना भी उन्हके काम हे । कहीं न कहीं से ऊ जोगाड़ बइठाइए ले हथ ।

सब्जी के खेती पर उन्हकर बिसेस जोर आउ धेआनो रहऽ हे । उन्हकर कहना हे कि बिन सब्जी के गिरहस्थी कउन काम के । आलू, भिंडी, परोर, बैगन, टमाटर, मूली, साग आदि ला खास तरह के जमीन आउ ओकर तइयारी भी ।

कटनी-बंधनी, अँटिऔनी, बोझा-बिंडा, दिनौरा गुदारना, पिंज (पुंज) लगाना-लगवाना, पिटनी, ओसउनी आउ तउल-नाप के बोरा-बन्दी आदि सब काम राम टहले करऽ करवावऽ हथ ।

एकरा ला उन्हका खास खेत मिलल हे । जब जउन चीज के जरूरत होयल, ओकरा पूरा करल जाहे । जरुरते भर उन्हकर मांगो रहऽ हे । फिन अखरे के कोई बाते न रहे । राम टहल नाम के मजदूर हथ, असलिया में तो समांगे हथ ऊ ।

अइसने धरती के लाल से खेत में हरियाली आउ गाँव-घर के लाली बचल रह सकऽ हे ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-१६, अंक-४, अप्रैल २०१०, पृ॰१६-१७ से साभार]

No comments: