विजेट आपके ब्लॉग पर

Sunday, February 11, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 1.2 बड़गाँव (नालंदा) में


पालकी में यात्रा करे में बहुत असुविधा हइ, हलाँकि थकाऊ नयँ हइ । गरमी में पालकी में दम घुट्टऽ हइ आउ धूली-धक्कड़ होवऽ हइ, तेजी से चल नयँ सकऽ हो, आउ एकरा अलावे आसपास के क्षेत्र के बहुत कम देख सकऽ हो; पालकी में पढ़ल जा सकऽ हइ, लेकिन बड़ी कठिनाई से ।
[*196] बिहार में कोय उपाय नयँ हलइ, आउ समय के फालतू बिन नष्ट कइले परिवेश के निरीक्षण खाली पालकी में हीं संभव हइ । आउ हम अइसहीं कइलिअइ । शहर से दक्षिण-पूरब छो मील दूर बड़गाँव नाम के एगो छोटगर गाँव हइ, जेकरा भिर कइएगो बड़गर कृत्रिम तालाब हइ आउ टीला के ताँता हइ, जे पहिले बौद्ध स्तूप हलइ । पुरातत्त्ववेत्ता लोग द्वारा उत्खनन शुरू करे के पहिले, आसपास के गाँव के लोग निर्दयतापूर्वक प्राचीन सामग्री आउ लुप्त पवित्र स्थान के खुद के काम लगी उपयोग करते गेलइ । अइँटा, बालुकाश्म (sandstone)से घर बनावल गेलइ, कभी-कभी तीन-तीन मंजिला; चारो दने के जमीन जोतल गेलइ, आउ साथ-साथ पावल गेल हर तरह के पुरावशेष, अगर कइसनो तरह से उपयोगी देखाय देलकइ, त काम में लगा देल गेलइ; लिंटल, कॉर्निस, स्तंभ घर में घसीटके ले जाल गेलइ, पुरनका मूर्ति  सब के नयका नाम देल गेलइ आउ पूजा के वस्तु हो गेलइ । पुरावशेष के अइसनका दोहन (exploitation) अभियो तक जारी हइ, लेकिन कनिंघम आउ ब्रोडली के उत्खनन के चलते बहुत कुछ बच गेलइ आउ बड़गाँव से बाहर ले जाल गेलइ, आउ सब्भे खंडहर के सूचीबद्ध करके शब्द में व्यक्त कर लेल गेले ह, बड़गाँव के प्राचीन नाम के पता लगा लेवल गेले ह ।
बड़गाँव में दू गो पवित्र प्रतिमा पावल गेले ह (देवी वागेश्वरी आउ अष्टशक्ति), आउ दुन्नु पर के अभिलेख (inscriptions) से प्रतीत होवऽ हइ कि दसमी शताब्दी में भी (आउ शायद बहुत बादो) ई जगह नालंदा के नाम से जानल जा हलइ । ई नाम से पश्चात् काल के बौद्ध विद्वत्ता के इतिहास जुड़ल हइ; वर्तमान ग्राम के स्थान पर एगो विशाल आउ प्रसिद्ध मठ अवस्थित हलइ, जे शायद ईसा के पचमी आउ सतमी शताब्दी के बीच अस्तित्व में अइले हल, हलाँकि जाहाँ तक ई जगह के संबंध हइ त एकरा बहुत पहिलहीं से पवित्र मानल जा हलइ, काहेकि हियाँ परी सारिपुत्र के जन्म आउ मृत्यु होले हल, जे गौतम के पहिला आउ प्रिय शिष्य लोग में से एक हलथिन; लेकिन फ़ाशियान, जे बड़गाँव या नालंदा में पचमी शताब्दी में भेंट देलके हल, ऊ बखत तक मठ के उल्लेख नयँ करऽ हइ, आउ खाली स्तूप के बारे बोलऽ हइ, जेकरा ठीक ओहे स्थान पर खड़ी कइल गेले हल जाहाँ परी सारिपुत्र के मृत्यु होले हल । दू सो से कुछ अधिक साल के बाद एगो दोसर चीनी यात्री हियाँ परी रहके अध्ययन कइलकइ [*197] - श्वानचांग नालंदा के पूरा चमक-दमक में पइलकइ । नालंदा ऊ काल में आउ लगातार कइएक शताब्दी बाद तक प्रार्थना स्थान आउ विद्वत्ता के केंद्र हलइ । ई स्थान पर हमन्हीं के विश्वविद्यालय नियन कोय तो संस्थान स्थापित कइल गेले हल; आठ सो मंदिर के पास में हियाँ परी ओतने विद्यालय हलइ, जेकर रख-रखाव के खरचा-बरचा लगी अनुदान राजा से आउ धनी लोग के तरफ से मिल्लऽ हलइ । तारानाथ एगो राजा के उल्लेख करऽ हइ, जे नालंदा के विद्यालय सब पर सो घड़ा सोना के दान देलथिन हल; दोसरा राजा हियाँ परी एगो पुस्तकालय स्थापित कइलथिन हल, जेकरा में विशाल संख्या में पांडुलिपि हलइ - कहल जा हइ, बत्तीस करोड़ अक्षर ऊ सब पर लिक्खल हलइ । नालंदा में लोग खाली अध्ययन लगी नयँ अइते जा हलइ, बल्कि बौद्ध लोग के धार्मिक सिद्धांत आउ दार्शनिक सिद्धांत के खंडन करे लगी विधर्मी (heretical)शिक्षक लोग भी प्रकट होवऽ हलइ । आर्यसंघ के अंतर्गत जब न तब विवाद होवऽ हलइ । नालंदा के विकास महायान के विकास के साथे-साथ प्रारंभ होलइ; ई काल हम सब से केतनो प्राचीन रहइ, लेकिन तत्कालीन शैक्षिक आउ मठ के जीवन के नियमावली में से कइएक आधुनिक भारत में भी जीवित हइ । बिहार लगी प्रस्थान करे के पहिले हमरा सोमनगर जाय के अवसर मिललइ । हियाँ परी गंगा नदी के किनारे, फ्रांसीसी शहर चंदरनगोर के दृष्टि में आउ सीधे दोसरा पटी, राजा टैगोर संख्या में सोल्लह तक मंदिर स्थापित कइलथिन आउ विद्यालय चालू कइलथिन, नालंदा विश्वविद्यालय के कोय छोटगर मठ के रूप में स्थापित कइलथिन । मंदिर, विद्यालय, प्रोफेसर, छात्र सब के खरच-बरच उनके खाता में जा हइ । अधिकांश मंदिर शिव के नाम समर्पित हइ, आउ खाली दू गो अपवाद हइ - एगो देवी काली के समर्पित हइ, आउ एकरा अलावे, भगवान कृष्ण के मंदिर हइ । स्वयं राजा टैगोर वैष्णव संप्रदाय से नयँ हथिन, हलाँकि कृष्ण भगवान के मंदिर स्थापित कइलथिन - उनकर विभिन्न चल संपत्ति के बीच पत्नी सहित कृष्ण के एगो बहुमूल्य मूर्ति प्राप्त होलइ आउ सोलहमा मंदिर के निर्माण के ई एगो आधार हलइ । सब्भे मंदिर गंगा के किनारे एक लाइन में हइ; ऊ सब के पीछू एक-एक भवन हइ, जाहाँ परी व्याख्यान होवऽ हइ आउ शिष्य लोग रहऽ हइ । विद्यालय में [*198] खाली ब्राह्मण ज्ञान के अध्ययन कइल जा हइ आउ सब्भे छात्र ब्राह्मण हइ । धर्म, दर्शन, व्याकरण के पुस्तक के अतिरिक्त हियाँ परी छंदशास्त्र के रचना के अध्ययन आउ टीका करते जा हइ; नालंदा में जइसन होवऽ हलइ ठीक ओइसीं पिता-संन्यासी लोग नयँ खाली निरर्थकता के बारे दार्शनिकता के रूप में प्रस्तुत कर सकऽ हलथिन, आत्मा के आह्वान कर सकऽ हलथिन, बल्कि मुखमुद्रा, नृत्य आउ संगीत के बारे विचार-विमर्श लिक्खऽ हलथिन। जे भवन में व्याख्यान देल जा हइ, ऊ बौद्ध मठ के संरचना के कइएक योजना के बारे आद देलावऽ हइ। भवन के बीचोबीच एगो विशाल सभागृह होवऽ हइ; दू बगल से एकरा से छोटगर-छोटगर सभागार (auditorium) जुड़ल रहऽ हइ, जेकरा में वस्तुतः व्याख्यान देल जा हइ । प्रोफेसर आउ शिष्य लोग फर्श पर बैठते जा हथिन, बिछावल चटाय पर; हरेक प्रोफेसर पर बहुत शिष्य नयँ होवऽ हइ, एहे पाँच-छो गो, आउ विद्यालय में कुल मिलाके पचास से अधिक नयँ । हमरा साथे कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र के एगो सुप्रसिद्ध प्रोफेसर साथ में हलथिन; अइसन विख्यात भेंटकर्ता आउ प्रोफेसर के सामने छात्र लोग भी बहुत स्वाभाविक रूप से प्रसिद्ध होवे लगी आउ खुद के अत्यंत दक्ष देखावे लगी चाहऽ हलइ; एक सभागार में न्याय के स्थानीय प्रोफेसर विवाद भी चालू कइलथिन - विश्लेषण कइल जा रहल एगो पुस्तक के एक स्थान पर के आधार पर ऊ ईश्वर (अर्थात् भगवान) के अस्तित्व सिद्ध करे लगलथिन; राजधानी के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बीच में दखल देलथिन, आउ दुर्भाग्यवश प्रादेशिक प्रोफेसर पराजित हो गेलथिन, लेकिन तइयो, बहुत लमगर अवधि के चर्चा के बाद, जे लगभग घंटा भर जारी रहलइ । रहे लगी छात्र सब के विशेष भवन देल जा हइ; हरेक के पास एगो शयन-कक्ष होवऽ हइ; सब्भे शयन-कक्ष स्वच्छ रहऽ हइ, आउ सबसे बढ़के कइसनो प्रकार के फर्नीचर के पूरा अभाव - एगो चटाय आउ एगो तकिया - बस एतने, जेकर स्थानीय छात्र के सुख-सुविधा लगी जरूरत होवऽ हइ। ओकन्हीं सब्भे छात्रवृत्तिधारी होवऽ हइ आउ ओकन्हीं के छात्रावास आउ पुस्तक के अतिरिक्त चार से पाँच रुपइया (अर्थात्, 8 से 10 शिलिंग) मासिक मिल्लऽ हइ । प्रोफेसर लोग के वेतन भी सीमित होवऽ हइ - अइसनो हथिन जिनका सोल्लह से बीस रुपइया मासिक मिल्लऽ हइ; पचास रुपइया खाली एक्के गो के मिल्लऽ हइ, [*199] खाली तर्कशास्त्र के प्रोफेसर के । ई वेतन बिलकुल कम नयँ प्रतीत होतइ, अगर ई बात पर ध्यान देल जाय कि एगो देसी व्यक्ति भारत में भोजन, वस्त्र आउ आवास पर केतना कम खरच करऽ हइ । एगो यूरोपियन के सब्भे आवश्यकता अस्तित्व में ओकरा लगी नयँ हइ; ऊ अप्पन तरह से रहऽ हइ आउ अत्यधिक कम खरच करऽ हइ । नालंदा में अइसने एगो संस्थान हलइ, जे अधिक विस्तृत पैमाना पर आउ ब्राह्मण संस्थान नयँ, बल्कि बौद्ध संस्थान हलइ । हुआँ परी बहुतायत में मंदिर के जइसने महाविद्यालय भी हलइ; लेकिन ओइसने तरीका से अध्ययन करते जा हलइ, जइसन कि आजकल के देसी विद्यालय में; ओइसीं वाद-विवाद करते जा हलइ, जइसे कि अभियो तक देसी द्वंद्ववादी लोग (dialecticians) बहस करते जा हइ ।
हमन्हीं से ऊ दूरस्थ काल में हमन्हीं लगी आधुनिक अइसन संस्थान के अपेक्षा नालंदा में, निस्संदेह, बहुत अधिक भौतिक संसाधन हलइ । एकरा अलावे, शिक्षक लोग के बीच बहुत अधिक सृजनात्मक शक्ति हलइ । केकरो संदेह नयँ हो सकऽ हइ कि हिएँ परी आखिरकार ऊ धार्मिक प्रणाली के निर्माण होले हल, जे अभी तक नेपाल, तिब्बत, चीन आउ मंगोलिया में दृढ़तापूर्वक टिक्कल हइ । लमगर अवधि तक नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय बौद्ध विद्वत्ता के केंद्र हलइ, आउ अभियो तक ओकर अंतिम नाश के कोय विश्वसनीय समाचार नयँ हइ; एतने ज्ञात हइ कि नालंदा कइएक तुरी नष्ट होलइ आउ फेर से एकर पुनरुद्धार होलइ; दुश्मन सब न तो एकर बाह्य चमक-दमक के छोड़लकइ, न तो वैज्ञानिक संसाधन के; मंदिर आउ दोसर-दोसर भवन के नष्ट कर देलकइ, पुस्तकालय सब के जराऽ देलकइ, वैज्ञानिक संन्यासी लोग के भगा देलकइ । नालंदा के नाश खाली मगध पर के विधर्मी आक्रमणकारी राजा के सेना ही नयँ कइलकइ - द्वेषी संप्रदाय के शिक्षक लोग नालंदा विश्वविद्यालय के आग लगा देते गेलइ । आउ एकर कइएक शताब्दी के अस्तित्व के दौरान ई एक तुरी नयँ दोहरावल गेलइ । हमन्हीं के ई मालुम हइ, उदाहरणस्वरूप, कि निजी दान के सहायता से खड़ी कइल नालंदा में एगो नयका मंदिर के अभिषेक हो रहले हल । लोग बहुत संख्या में एकत्र होलइ, आउ भिक्खु सब अतिथि लोग के स्वागत कर रहलथिन हल; अतिथि के बीच दू गो भिखारी हलइ, [*200] जे बौद्ध नयँ हलइ; श्रामणेर, अर्थात्, नयका शिष्य उनकन्हीं पर मजाक करे के सोचते गेलइ - ओकन्हीं अतिथि लोग पर कीचड़ उछललकइ, ओकन्हीं के दरवजवा में अँटका देलकइ आउ ओकन्हीं पर कुतवन के उसकाऽ देलकइ; क्रोधित भिखारी खुद लगी बदला लेलकइ; ओकन्हीं मठ में आग लगा देलकइ; मंदिर, विद्यालय, मूर्ति सब जर गेलइ; पुस्तक भंडार भी जर गेलइ । लेकिन मठ के ई अंतिम विध्वंस नयँ हलइ; एकर बाद ऊ फेर से जीवित हो उठलइ, आउ इतिहास जानऽ हइ कि ओकरा पर आक्रमण एक तुरी नयँ होलइ - ओहे से, कोय अचरज के बात नयँ हइ कि वर्तमान काल में बड़गाँव में, पूर्व नालंदा विश्वविद्यालय के स्थान पर, पहिलौका गौरव के जादे कुछ नयँ बच गेले ह; पुरावशेष के विध्वंस पर खाली काल के काम नयँ हइ, बल्कि लोग के भी, काहेकि अपन राष्ट्रीय विशेषता के रूढ़िवाद (conservatism of their national character) के बावजूद भारतीय लोग के नयँ मालुम कि पुरावशेष के कदर कइसे कइल जा हइ ।
नालंदा के खंडहर बड़गाँव ग्राम से दक्षिण-पूरब में पड़ऽ हइ; जब गाँव के नगीच पहुँचे लगबहो, उत्तर-पूरब से, त खंडहर नजर में नयँ अइतो - एतना ऊ तुच्छ हइ - आउ ओकर आसपास के कृत्रिम झील । पहिला झील, जाहाँ से हम खंडहर के निरीक्षण शुरू कइलिअइ, दीर्घ-पोखर के नाम से जानल जा हइ; ई गाँव से उत्तर-पूरब में हइ; पूरब से पश्चिम ई कम से कम एक मील फैलल हइ, आउ उत्तर से दक्षिण एक चौथाई मील; एकर चारो दने आम के पेड़ के सुंदर कुंज हइ । थोड़े सुनी दक्खिन में, खंडहर से पूरब तरफ एगो दोसर झील हइ पनसोखर-पोखर, लगभग ओतने बड़गर, जइसन कि अभी उल्लेख कइल गेलइ । खंडहर से दक्खिन तेसर बड़गो झील हइ इन्द्र-पोखर । खंडहर के चारो दने विभिन्न दिशा में कइएक छोटगर-छोटगर झील देखाय दे हइ, ई सब्भे झील कृत्रिम हइ, आउ ई सब के बारे पहिलहीं श्वानचांग बात करऽ हइ (ईसा के 7मी शताब्दी); ओकर काल में ऊ सब कमल से भरल हलइ, आउ छायादार बाग ऊ सब जगह तक फैलल हलइ, जाहाँ परी अभी उत्तर से दक्खिन तरफ चावल के समतल मैदान के बीच टीला सब के शृंखला देखाय दे हइ । [*201] पानी आउ छाया के प्रचुरता दुपहर के जलवायु में नयँ खाली विलासिता के बात हइ; दुन्नु खाली सौंदर्य लगी स्थापित नयँ हइ, बल्कि प्रथम आवश्यकता के वस्तु के रूप में भी; दक्खिन के लोग एकरा पूरा तरह से समझते जा हइ आउ पूरा तरह से छाया आउ पानी के सौंदर्य के कदर करे में जादे बुद्धिमानी देखावऽ हइ । हियाँ परी पानी आउ छायादार ठंढक के प्रचुरता में उँचगर-उँचगर मीनार, सुसज्जित मंडप बिखरल हइ, जेकरा में वाद-विवाद कइल जा हलइ आउ प्रवचन सुनाय दे हलइ; अइसन उँचगर-उँचगर भवन आउ मंदिर हलइ, जेकरा बारे श्वानचांग उत्साह से बात करऽ हइ कि "ओकर गुंबद आकाश छूअ हलइ, आउ मंदिर सब के खिड़कियन से हावा आउ बादर के प्रजनित होवे के स्थान देखाय दे हलइ; चांद आउ सूरज ओकर उँचगर छत के तल (level)  पर प्रकट होवऽ हलइ" ।
दीर्घ-पोखर झील से दक्षिण-पश्चिम दने चलते-चलते, एकर पहिले कि भूतकालीन स्तूप के शृंखला तक पहुँचल जाय, रस्ता में बौद्ध धर्म के कइएक अवशेष मिल्लऽ हइ, जेकरा बारे वर्तमान काल में लोग के बिलकुल नयँ आद आवऽ हइ आउ न किंवदन्ती के रूप में मालुम हइ । बुद्ध के मूर्ति के पास से गुजरऽ हो - उनका आसीन मुद्रा में प्रस्तुत कइल हइ, मानूँ ध्यान में मग्न हथिन; उनकर चारो दने शिष्य लोग हइ, आउ ओकन्हीं में से हरेक के सिर पर अभिलेख हइ, जेकरा से प्रतीत होवऽ हइ कि चार मूर्ति के चित्रित कइल हइ - (1) सारिपुत्र  (2) मौद्गलायन (3) मैत्रेयाणीपुत्र (4) वसुमित्र । मुख्य मूर्ति के नाक कट्टल हइ, आउ निरार पर गेरू के लेप *) कइल हइ । मूर्ति अभियो तेलिया भंडार आउ भैरवी के नाम से आस-पड़ोस के गाँव के निवासी लोग द्वारा पुज्जल जा हइ । मूर्ति के गेरू से लेप यज्ञ के दौरान कइल जा हइ । ई पक्का चिह्न हइ ई बात के, कि ई मूर्ति के पवित्र मानल जा हइ आउ अभियो तक पुज्जल जा हइ । हियाँ से थोड़हीं दूर पर धर्मवृक्ष हइ; वृक्ष एगो छोटगर चबूतरा से घेरल हइ, जेकरा पर बुद्ध के कइएक प्रतिमा क्रमबद्ध रूप से रक्खल हइ; ऊ सब्भे पर गेरू के लेप लगावल हइ, आउ लगऽ हइ, अभियो तक हिंदू लोग द्वारा ई चाहे ऊ नाम से पुज्जल जा हइ । ई पवित्र वृक्ष के पास में अइँटा के नयका देवाल से छरदेवाली करके एगो छोटगर अहाता बना देवल गेले ह; [*202] बुद्ध के कइएक प्रतिमा के एकरा में एक शृंखला में रख देवल गेले ह, आउ ऊ सब में से एगो बहुत बड़गो साइज के हइ, जे आठ फुट से कम उँचगर नयँ हइ । बुद्ध के ध्यानमग्न मुद्रा में चित्रित कइल हइ, गेरू से लेप कइल हइ आउ वर्तमान काल में तेलियाभंडार के नाम से प्रसिद्ध हइ । चारो बगली कइएक जगह में खुल्लल असमान में प्राचीन मूर्ति सब खड़ी चाहे पड़ल हइ; ओहे सब के बीच में ब्राह्मण (हिंदू) देवता सब के, उदाहरणार्थ, देवी दुर्गा के प्रतिमा, सिर के चारो तरफ बौद्ध धर्म के आस्था के चिह्न सहित (ये धर्म हेतु आदि) आउ सिर में केश सहित ध्यानमग्न बुद्ध के प्रतिमा हइ । हियाँ से थोड़हीं दूर पर स्तूप के ऊ शृंखला शुरू होवऽ हइ, जेकर उपरे हम उल्लेख कइलिए ह; ओकरा में से छो गो उत्तर से दक्खिन एक लाइन में एक के बाद दोसरा उपरे उट्ठऽ हइ । ई सब टीला के उत्खनन कइल गेलइ आउ बड़गो संख्या में मूर्ति मिललइ; ई सब मूर्ति में से कुछ अभी बिहार में हइ; कइएक अभियो स्थल पर ही देखाय दे हइ, आउ मालुम नयँ, ओकरा में से केतना गायब आउ नष्ट हो गेलइ । टीला सब में से सबसे रोचक हइ बीच वला अर्थात् उत्तरी छोर से चौठा; एकरा एतना साफ कइल जा चुकले ह कि अचूक रूप से ई निश्चित करे के अवसर दे हइ  कि हियाँ परी एगो मंदिर हलइ जेकर निचला अंश अभियो सुरक्षित हइ; ई शायद, जइसन कि सुरक्षित अंश के आधार पर निर्णय कइल जा सकऽ हइ, बुद्ध-गया के मंदिर के शैली में बनावल गेले हल आउ एकर काल दसमी शताब्दी चाहे कुछ आउ पहिले के हइ; एकरा बारे निष्कर्ष निकासल जा सकऽ हइ ऊ शिलालेख से, जे मंदिर के दरवाजा बिजुन प्राप्त होले ह । दरवाजा पूरब दिशा में हइ । न तो शिलालेख ही, न स्तंभ आउ न सजावट ही, जेकरा बारे उत्खनन करावे वला ब्रोडली बोलऽ हइ, वर्तमान समय में स्थल पर हकइ। ई मानल जा सकऽ हइ कि कुछ समय के बाद मंदिर के देवाल भी ढहाय लगइतइ, आउ बड़गाँव के खंडहर के स्मृति खाली पुरातात्त्विक निबंध में हीं रह जइतइ । जाहाँ तक मंदिर के संबंध हइ त एकरा बारे चर्चा हम नयँ करबइ, काहेकि संरचना के ई शैली के वर्णन हम बुद्ध-गया में करबइ । [*203] भौगोलिक स्थिति आउ शिलालेख ई बात के आश्वस्त करऽ हइ कि बड़गाँव के स्थल पर वस्तुतः नालंदा मठ हलइ, लेकिन उत्खनित आउ लूट-पाट कर लेल गेल टीला के बीच से 7मी शताब्दी में उल्लिखित ऊ सब भवन के चिह्न (traces) खोजे लगी कपोल-कल्पना (fantasy) के बहुत कल्पित प्रयास आवश्यक हइ । अइसन पहचान (identification) में बचकाना ढंग से विश्वास करे लगी ऊ जे कुछ जरी सुन नालंदा के इतिहास से हमन्हीं के ज्ञात हइ, ओकरा भूल जाय के चाही । तहिया से झील तो सुरक्षित रह गेले ह; अइसन संरचना के मिटाना कठिन हइ, आउ एकरा में कुछ नयँ हइ; दक्षिण में विशेष करके पानी तो हरेक कोय लगी  बहुमूल्य हइ । एकरा अलावे स्थानीय तालाब में से सूरज-तलाव, अर्थात् सूर्य के तालाब, के अभियो तक पवित्र मानल जा हइ । छठ पर्व के अवसर पर हर साल हियाँ परी स्नान खातिर दस हजार तक औरतानी सब एकत्र होवऽ हथिन ।


No comments: