2.
5 मार्च के हम पुरनका शहर राजगृह के छोड़
देलिअइ आउ गया के रस्ता में हमरा दू जगह के निरीक्षण करे के इरादा हलइ - गिरियक आउ
पावापुरी ।
गिरियक
राजगृह से पूरब में अवस्थित हइ, कुछ मील के दूरी पर । लगभग आठ बजे सुबह में हम हुआँ
पहुँच चुकलिए हल, आउ ओहे दिन पावापुरी भी जाय के इच्छा करते तुरतम्मे पुरावशेष के निरीक्षण
में लग गेलिअइ। हियाँ परी दू गो पुरातात्त्विक दर्शनीय स्थल हइ - पहिला - जरासंध के
बैठक, आउ दोसरा - गुफा गीध-द्वार । सीधे हमर पालकी के जरासंध के सिंहासन भिर लावल गेलइ,
लेकिन हम पहिले गुफा के निरीक्षण करे लगी चाहऽ हलिअइ [*212] आउ देर तक एकर निरीक्षण करते रहलिअइ; एकर पता लगाना लेकिन बहुत असान हइ - वाहक
लोग के खाली खुशामद करे के जरूरत नयँ, जेकन्हीं के हलाँकि गुफा के बारे जनकारी रहऽ
हइ, लेकिन कइसूँ ओकन्हीं के समझ में नयँ आवऽ हइ कि कइसे अइसन बेकार के चीज केकरो लगी
रोचक हो सकऽ हइ, खास करके सा'ब के, आउ ई आधार पर ओकन्हीं अज्ञान से इनकार करऽ हइ, ई
मानते कि सा'ब कुछ तो अधिक काम के चीज खोजब करऽ हथिन । गिरियक गाँव पनचाने नदी के किनारे
बस्सल हइ; सामने के पश्चिमी किनारा से दू चोटी वला खड़ा चट्टान उट्ठऽ हइ, जेकरा से पहाड़ी
के दू गो समानांतर शृंखला जुड़ऽ हइ, जे गया से उत्तरी-पश्चिमी दिशा में 36 मील तक फैलल
हइ । दुन्नु चोटी एगो कृत्रिम चबूतरा से जुड़ल हइ, आउ दुन्नु तरफ खंडहर हइ । हियाँ से
दक्षिण-पश्चिम मुड़ला पर आउ लगभग एक मील चलते रहला पर, एगो सकेत घाटी मिलतो, जेकरा में
घुमघुमौवा नदी बाणगंगा बहऽ हइ; हियाँ परी उत्तरी शृंखला के दक्षिणी ढलान पर 250 फुट
के ऊँचाई पर, एगो गोल छेद दृष्टिगोचर होवऽ हइ; निच्चे से चट्टान में ई एगो छोट्टे गो
दरार नियन देखाय दे हइ, लेकिन जब उपरे चढ़के जइबहो, त पइबहो कि एगो बड़गो प्रवेश गुफा
में खुल्लऽ हइ, जे 10 फुट चौला आउ 17 फुट उँच्चा हइ । खुद गुफा काफी लंबा हइ । कनिंघम एकर
नाप लंबाई में 98 फुट बतावऽ हइ; एकर ऊँछाई अंतिम तरफ कमती होल जा हइ, आउ मेहराब धीरे-धीरे
फर्श तक झुक जा हइ । उँचगर तापक्रम, विकर्षक दुर्गन्ध, अंधकार आउ हजारो उड़ते चमगादड़
गुफा में जादे देर तक रहना असंभव कर दे हइ । उपरे से दृश्य बहुत विलक्षण लगऽ हइ आउ
कइसूँ वहशी रूप से शानदार; चारो दने अनावृत्त ग्रैनाइट चट्टान उपरे उट्ठऽ हइ, निच्चे
हरियाली भी विरले हइ; शांति खाली चील के चीख से भंग होवऽ हइ - हियाँ परी ऊ बहुतायत
में हइ, आउ गुफा के नम्मो (नाम भी) एकरे तरफ इशारा करऽ हइ (गीध-द्वार, अर्थात् गीध
के द्वार) । वापिस उतरके घाटी में अइला पर, जेकरा में पत्थल के टुकड़ा बिखरल हलइ, हम
वापिस जरासंध के सिंहासन दने रवाना हो गेलिअइ । ई स्थान में, जइसन कि हम पहिलहीं बता
चुकलिए ह, दू गो चोटी हइ - पश्चिमी चोटी पर जाय लगी कभी सीढ़ी हलइ; [*213] कहीं-कहीं
अभियो सोपान (steps) देखल जा सकऽ हइ; हियाँ परी, बहुत संभावना हइ, कोय मठ चाहे मंदिर
हलइ - अभी तक देवाल के अवशेष देखाय दे हइ आउ कहीं-कहीं ग्रैनाइट के स्तंभ, आउ पूरा
आयताकार चबूतरा पर पत्थल बैठावल (paved) हइ
। चौड़गर रस्ता, दुन्नु चोटी के जोड़े वला चबूतरा के प्रकार, पूरबी चोटी पर ले जा हइ,
जाहाँ परी बेलनाकार एगो स्तूप हइ, जेकरा लोग "जरासंध के सिंहासन" कहऽ हइ
। ई बेलन (cylinder)14 फुट उँचगर एगो वर्गाकार आधार (pedestal) पर से उपरे जा हइ, स्तूप
के बेलन के व्यास 28 फुट हइ, आउ ऊँचाई 21 फुट । हमरा लगी ई अज्ञात मठ के खंडहर के आउ
अधिक ध्यान से निरीक्षण करे के चाही हल; लेकिन समय के कमी के कारण हमरा जल्दीए निच्चे
उतरे पड़लइ । हियाँ के मठ आउ उपर्युक्त गुफा ऊ जमाना में शायद एक दोसरा से जुड़ल हलइ;
हियाँ चोटी पर मंदिर आउ कोठरी हलइ - हियाँ परी भिक्खु लोग रहऽ हलइ, जे दैनिक बौद्ध
पूजा आउ अनुष्ठान करते जा हलइ; आउ हुआँ शांत एकांत गुफा में ओकन्हीं में से ऊ सब जइते
जा हलइ, जे ध्यान करऽ हलइ, चाहे आउ बाद में, तंत्र के विकास के दौरान, आत्मा, देवता आउ बौद्धिष्टव लोग
के आह्वान करते जा हलइ । ई मामले में कि गिरियक के सूनसान गुफा जइसन स्थान में बस्सल
केतना आश्चर्यजनक हद तक संन्यासी लोग के कल्पना काम करऽ हलइ, ई हम सब पास विरासत में
प्राप्त ढेर सारा बौद्ध किंवदन्ती से जानऽ हिअइ; ई सब किंवदन्ती आउ तांत्रिक अभिचार
(witchcraft) विकसित हो सकलइ आउ अइसन वीरान, उदास आउ वहशी, हर तरह के सांसारिक हो-हल्ला
से दूर बसेरा बनइलकइ । पावापुरी, जे किंवदन्ती के अनुसार अधिक प्राचीन हइ, गिरियक से
उत्तर-पश्चिम में अवस्थित हइ; कइएक नयका जैन मंदिर के अलावे हियाँ परी कुच्छो अद्भुत
चाहे प्राचीन नयँ हइ । मंदिर सब में ठाट-बाट के अनुसार सबसे दिलचस्प हइ ऊ, जे एगो टापू
पर बन्नल हइ, एगो बड़गो झील के बीच, जे मछली से भरल हइ - झील पर से होके मंदिर तक बन्नल
एगो सँकरा पुल (150 फुट लंबा) हइ; मंदिर में प्रवेश सब्भे यूरोपियन लगी [*214] निषेध हइ, लेकिन मंदिर के पुरोहित (पुजारी) - जैन नयँ हइ, बल्कि एगो हिन्दू आउ ब्राह्मण जात
के हइ । सब्भे मंदिर धनाढ्यता आउ आंतरिक ठाट-बाट में विख्यात हइ, लेकिन सौंदर्य में
नयँ । एक मंदिर के प्रवेशद्वार भिर हम लाल रंग के दू गो लिंगम् (शिवलिंग) देखलिअइ ।
ई शैव देवता हियाँ परी जैन आउ हिन्दू के बीच समझौता के निशानी हलइ । पावापुरी के मंदिर
सब में उत्साहपूर्वक दुन्नु धर्म के लोग भेंट देते जा हइ । तीर्थयात्री लोग खातिर गृह-परिसर
(premises), जे एक मंदिर के चारो दने बन्नल हइ, प्रतीयमानतः (apparently) ओकन्हीं के
संख्या के ध्यान में रखके बनावल गेले ह । पावापुरी के निरीक्षण के साथ ई दिन (5 मार्च)
के हम समाप्त करबइ । मिस्टर व॰ के हियाँ नवादा में रात गुजारके दोसरा दिन तड़के सुबह
गया लगी प्रस्थान कर गेलिअइ ।
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