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Friday, November 20, 2015

रूसी उपन्यास "कालापानी" - भाग-1 ; (लेखक के) भूमिका



कालापानी
(साइबेरिया में जेल के जिनगी)

मूल रूसी - फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की (1821-1881)       मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

भूमिका

स्टेप (घास के विस्तृत मैदान), पहाड़ या बीहड़ जंगल के बीच में साइबेरिया के एकान्त क्षेत्र में कहीं-कहीं एक हजार, आउ अधिकतर दू हजार निवासी वला छोटगर-छोटगर शहर देखाय दे हइ, लकड़ी के बन्नल, बिलकुल साधारण, दूगो गिरजाघर (चर्च) के साथ - एगो तो शहर के बीच में आउ दोसरा कब्रिस्तान में, अइसन शहर जे शहर के अपेक्षा मास्को के उपनगरीय क्षेत्र के कोय अच्छा-खासा गाँव से जादे मेल खा हइ । सामान्यतः ई सब शहर में जरूरत से कुछ जादहीं पुलिस अफसर, अभिनिर्णायक (जूरी) आउ बाकी सब अधीनस्थ (मातहत) कर्मचारी जुटावल रहऽ हइ । साइबेरिया में ठंढी रहलो पर हियाँ नौकरी करना साधारणतः बहुत जादे गरमाहट से भरल रहऽ हइ (अर्थात् वेतन आउ अन्य सुविधा बहुत जादे देल जा हइ) हियाँ के निवासी सीधा-सादा, उच्च विचार से अप्रभावित लोग हका । उनकर रीति-रिवाज पुराना, कठोर, सदियन (बहुत लम्बे समय) से प्रतिष्ठित हकइ । जे अफसर औचित्य के आधार पर साइबेरिया के कुलीन वर्ग के कर्तव्य के निर्वाह करऽ हका, ऊ या तो साइबेरिया के पक्का मूल निवासी हका, चाहे रूस से आवल । रूस से आवल में अधिकतर लोग रजधानी के हका, जे खाली उँचगर वेतन के दर से आकृष्ट होके नयँ, बल्कि भविष्य में दुगुना फयदा आउ प्रलोभनकारी आशा में आवऽ हका । जिनगी के पहेली के सुलझावे में समर्थ लोग लगभग हमेशे साइबेरिये में रह जा हका आउ ओकरा में खुशी के साथ जड़ पकड़ ले हका । एकर बदले ओकन्हीं के बड़गर आउ मीठगर फल मिल्लऽ हइ ।

लेकिन दोसर लोग, जे अविवेकी आउ जिनगी के पहेली सुलझावे में अक्षम हका, ऊ सब जल्दीए साइबेरिया से ऊब जा हका, खेदपूर्वक अपने आप के पुच्छऽ हका - काहे लगी हियाँ परी आ गेलूँ ? अधीरतापूर्वक ऊ सब अपन सेवा के कानूनन तीन साल के अवधि काटऽ हका, आउ जइसीं ई अवधि पूरा होवऽ हइ, तइसीं अपन तबादला के निवेदन करे लगऽ हका आउ अपन घर वापस आ जा हका, साइबेरिया के बारे बुरा-भला बकते आउ एकर खिल्ली उड़इते । ई सबके विचार गलत हइ - काहे कि साइबेरिया में खुशहाली के साथ रहल जा सकऽ हकइ, खाली सेवा के मामले में नयँ, बल्कि आउ कइएक दोसर विचार से भी ।

जलवायु अत्युत्तम हइ; बहुत्ते अद्वितीय धनी आउ मेहमाननवाज व्यापारी हका; रूस से बाहर के लोग बहुतायत में हका । रईसजादी गुलाब नियर आउ उत्तम कोटि के सदाचारी हका । शिकार तो गलियो में उड़ल चलऽ हइ आउ खुद्दे शिकारी से टकरा जा हइ । शैम्पेन तो बहुत मात्रा में पीयल जा हइ । कवियार [1] तो आश्चर्यजनक रूप से निम्मन होवऽ हइ । फसल कहीं-कहीं (जेतना बीज लगावल जा हइ ओक्कर) पनरह गुना होवऽ हइ । कुल मिलाके कहल जाय त ई भूमि सौभाग्यशाली हइ । खाली एकरा उपयोग करे वला चाही । साइबेरिया में एकर उपयोग कइल भी जा हइ ।

अइसने खुशहाल आउ सन्तुष्ट शहरवन में से एगो बहुत प्यारा अबादी वला शहर में, जेकर आद के अमिट छाप हमर दिल में रहत, हमरा निर्वासित अलिक्सान्द्र पित्रोविच गोर्यानचिकोव से भेंट होल, जेकर जन्म रूस में एगो कुलीन वर्ग के जमींदार परिवार में होल हल । बाद में अपन घरवली के हत्या के अपराध में कानूनन दस बरस के दूसरा दरजा के कठिन परिश्रम के सजा भुगतलक हल, फेर शान्ति से आउ चुपचाप अपन बाकी के जिनगी एगो छोटगर शहर के॰ में बस करके गुजारलक हल । ओकरा वास्तव में शहर के पास के एगो वोलस्त [2] में बसे लगी भेजल गेले हल, लेकिन ऊ शहरे में रहब करऽ हलइ, जाहाँ बुतरुअन के पढ़ावे वला काम से ओकरा कोय तरह से जीविका के उतजोग हो गेलइ । साइबेरिया के शहरवन में अकसर निर्वासित लोग में से शिक्षक सब से भेंट होवऽ हइ । एकन्हीं के घृणा के दृष्टि से नयँ देखल जा हइ । ओकन्हीं सब मुख्य रूप से फ्रेंच भाषा पढ़ावऽ हका, जे जिनगी गुजारे लगी केतना जरूरी हकइ, जेकरा बारे में बिना ओकन्हीं के साइबेरिया के अइसन सुदूर क्षेत्र में संकल्पना भी नयँ कइल जा सकऽ हइ ।

पहिले तुरी अलिक्सान्द्र पित्रोविच से हमर भेंट एगो सत्कारशील (मेहमाननवाज) वृद्ध अफसर इवान इवानिच ग्वोज़दिकोव के घर पे होल हल, जिनका भिन्न-भिन्न उमर के पाँच बेटी हलइ, जेकन्हीं से बड़गो आशा हलइ । अलिक्सान्द्र पित्रोविच ओकन्हीं के सप्ताह में चार तुरी टिसनी पढ़ावऽ हलइ, एक पाठ लगी चानी के तीस कोपेक के हिसाब से । ओकर रूप-रंग में हमरा रुचि होल । ऊ बहुत्ते पीयर आउ दुब्बर अदमी हलइ, अभियो जवान, एहे कोय पैंतीस बरस के, छोटगर आउ कमजोर । यूरोपीय शैली में हमेशे बहुत साफ-सुथरा पोशाक पेन्हले ।

अगर ओकरा से बात करबहो, त ऊ तोहरा एकटक बहुत ध्यान से देखतो, तोहर एक-एक शब्द के पूरा नम्रता के साथ सुनते, मानूँ ओकरा पर विचार कर रहले ह, मानूँ तूँ अपन प्रश्न से ओकरा सामने कोय समस्या प्रस्तुत कर देलहो ह, चाहे तूँ ओकरा से कोय गुप्त बात मालूम करे के प्रयास कर रहलहो ह । आउ अन्त में संक्षिप्त रूप में साफ-साफ बात करतो, लेकिन अपन जवाब के एक-एक शब्द के तौलके, जेकरा चलते एक प्रकार से व्याकुल अनुभव करबऽ आउ अपनहीं आखिर में बातचीत समाप्त होला पर खुशी महसूस करबऽ । हम तभिए ओकरा बारे इवान इवानिच के पुछलिअइ त मालूम होलइ कि गोर्यानचिकोव के आचरण नैतिक रूप से साफ-सुथरा हकइ, नयँ तो इवान इवानिच अपन बेटियन के पढ़ाय-लिखाय खातिर ओकरा नयँ बोलइते हल; लेकिन ऊ मिलनसार बिलकुल नयँ हकइ, सबसे छिपछाप के रहऽ हइ, बहुत विद्वान हइ, बहुत पढ़ऽ हइ, लेकिन बहुत कम बोलऽ हइ, आउ ओकरा से बातचीत करना बहुत मोसकिल हइ । कुछ लोग बोललइ कि ऊ पागल हइ, हलाँकि ओकन्हीं के ई पता चललइ, कि ई कोय गम्भीर दोष नयँ हइ, कि शहर के कइएक आदरणीय जन अलिक्सान्द्र पित्रोविच के सब तरह से प्यार से आउ मित्रतापूर्ण व्यवहार करऽ हलथिन, कि ऊ काम के अदमी भी हो सकऽ हलइ, जइसे याचिका (petition), निवेदन पत्र आदि लिक्खे में । लोग के ई विश्वास हलइ कि ओकरा रूस में कइएक रिश्तेदार हकइ, शायद ओकन्हीं में से कुछ लोग उच्च पद पे हकइ । लेकिन ई पता हलइ कि जब से निर्वासित हो गेलइ तब से ओकन्हीं सब से अपन सब सम्बन्ध तोड़ लेलके हल । एक शब्द में, ऊ खुद के तकलीफ दे रहले ह । एकर अलावे, सब कोय के ओकर कहानी मालूम हलइ, ई जानऽ हलइ कि ऊ अपन शादी के पहिलहीं साल के अन्दर अपन बीवी के हत्या कर देलके हल, हत्या ईर्ष्या के कारण कइलके हल आउ खुद्दे कानून के हवाले कर देलके हल (जेकरा चलते ओकर सजा के कठोरता में बहुत कमी हो गेलइ) । अइसनका अपराध के हमेशे दुर्भाग्य समझल जा हइ आउ लोग एकरा बारे अफसोस जतावऽ हका । तइयो ई विचित्र अदमी सब कोय से बिलकुल अलगे रहऽ हलइ आउ खाली टिसनी पढ़ावे के समय लोग से मुखातिब होवऽ हलइ ।

शुरू में तो हम ओकरा पर कोय ध्यान नयँ देलिअइ, लेकिन हमरा खुद नयँ मालूम काहे, हमरा ओकरा में धीरे-धीरे रुचि होवे लगलइ । ओकरा में कुछ तो पहेली हलइ । ओकरा से बात करना बिलकुल असम्भव हलइ । वस्तुतः ऊ हमर प्रश्न के हमेशे उत्तर दे हलइ आउ अइसन रूप में जइसे ई ओकर सबसे पहिला कर्तव्य होवे; लेकिन ओकर उत्तर के बाद हमरा ओकरा आउ आगे कुछ पुच्छे में कइसन तो लगऽ हलइ; ओकर चेहरवा पर अइसन बातचीत के बाद हमेशे कुछ तकलीफ आउ थकावट देखाय दे हलइ ।

हमरा आद पड़ऽ हके कि गरमी के समय एक सुन्दर शाम के इवान इवानविच के हियाँ से ओकरा साथ जा रहलिए हल । अचानक हमरा लगल कि हम ओकरा कुछ समय खातिर अपना हीं आमंत्रित करूँ सिगरेट पीये लगी । हम ई वर्णन नयँ कर सकऽ ही कि ओकर चेहरा पर कइसन भय देखाय देलकइ; ऊ बिलकुल भ्रमित हो गेलइ, कुछ तो असंगत शब्द बड़बड़ाय लगलइ, आउ अचानक हमरा तरफ गोस्सा नियर देखते, उलटा दिशा तरफ भाग गेलइ । हमरो अचरज होल । तहिना से हमरा से मिलला पर ऊ हमरा तरफ अइसे देखऽ हलइ मानूँ ओकरा हमरा से डर लगऽ हइ । लेकिन हम साहस नयँ खोलूँ; कुछ तो ओकरा में अइसन बात हलइ जे हमरा ओकरा तरफ आकर्षित करऽ हलइ ।

एक महिन्ना के बाद अइसहीं गोर्यानचिकोव से भेंट करे ल चल गेलिअइ । वास्तव में हमर ई व्यवहार में मूर्खता आउ लापरवाही हलइ । ऊ शहर के बिलकुल किनारे छोर पर रहऽ हलइ, एगो निम्न मध्यवर्गीय बुढ़िया के घर में, जेकरा तपेदिक से ग्रसित एगो बेटी हलइ, आ एक्कर एगो अवैध रूप से जनम लेल बेटी हलइ, कोय दस साल के बुतरू, एगो सुन्दर आउ हँसमुख लड़की । जखने हम अन्दर गेलिअइ तखने अलिक्सान्द्र पित्रोविच ओकरा साथ बइठल हलइ आउ ओकरा पढ़े ल सिखा रहले हल । हमरा देखके ऊ अइसन भ्रमित हो गेलइ जइसे हम ओकरा कोय अपराध करते पकड़ लेलिए ह । ऊ बिलकुल किंकर्तव्यविमूढ़ हो गेलइ, कुरसिया पर से उठके खड़ी हो गेलइ आउ हमरा तरफ डर आउ अचरज भरल दृष्टि से देखे लगलइ । आखिर हम दुन्हूँ बइठलिअइ । ऊ हमर हरेक नजर पर पूरा ध्यान रखले रहलइ, मानूँ हरेक में कोय तरह के गुप्त अर्थ छिप्पल होवे । हम अन्दाज लगइलिअइ कि ऊ पागलपन के हद तक शंकालु हलइ । ऊ घृणा से हमरा तरफ देख रहले हल, आउ मानूँ पुछहीं जा रहल होवे - "तूँ जल्दीए हियाँ से जा रहलँऽ हँ न ?"

हम ओकरा से अपन छोटका शहर के बारे बात कइलिअइ, वर्तमान समाचार सब बतइलिअइ, लेकिन ऊ चुप रहलइ आउ दुर्भावपूर्वक मुसकइलइ । लगलइ, जइसे कि ऊ शहर में हो रहल मुख्य घटना से नयँ खाली अनभिज्ञ हलइ, बल्कि ओकरा ई सब जानहूँ में कोय रुचि नयँ हलइ । बाद में हम ओकरा अपन क्षेत्र के बारे बतइलिअइ, आउ हुआँ के जरूरत के बारे । ऊ चुपचाप हमर बात सुनते रहलइ, आउ हमरा तरफ अइसन विचित्र ढंग से देख रहले हल कि आखिर हमरा ई बातचीत करे पर शरम लगे लगल । तइयो हमर नयका पुस्तक आउ पत्रिका से ओकरा में उत्साह उत्पन्न होते देखाय देलकइ, जे अभी-अभी डाक से हमर हथवा में पहुँचले हल । हम एकर कवर बिना खोललहीं ओकरा भेंट कइलिअइ । ऊ ओकरा पर लालच भरल निगाह डललकइ, लेकिन तुरते अपन मन बदल लेलकइ आउ हमर भेंट के ठुकरा देलकइ, ई कहके कि हमरा पढ़े के फुरसत नयँ । आखिर हम ओकरा अलविदा कहलूँ, आउ ओकरा हीं से बाहर होते बखत हमरा लगल कि हमर दिल से एगो कोय असहनीय भार हट गेल । हमरा शरम महसूस होल आउ लगल कि अइसन व्यक्ति के खामखाह हम परेशान कइलिअइ, जे अपन जीवन के मुख्य उद्देश्य बनइले हकइ - कइसे समुच्चे दुनियाँ से अपने आप के दूर से दूर छिपइले रक्खल जाय । लेकिन गलती तो हो चुकले हल । हमरा आद हइ कि किताब ओकरा पास लगभग बिलकुल नयँ देखलिअइ, आउ शायद लोग के ओकरा बारे ई कहना कि ऊ बहुत पढ़ऽ हइ, झूठ बात हलइ । तइयो देर रात के दू तुरी गाड़ी से ओकर खिड़की के पास से गुजरते बखत अन्दर में रोशनी देखलिअइ । ऊ की कर रहले हल, भोर होवे तक बइठके ? की ऊ कुछ लिख रहले हल ? अगर ई बात हइ, त की लिख रहले होत ?

परिस्थितिवश हमरा करीब तीन महिन्ना तक हमरा अपन शहर से दूर रहे परल । जाड़ा में जब वापस अइलूँ त मालूम होल कि अलिक्सान्द्र पित्रोविच शरत्काल में मर गेलइ । ऊ इकान्ते में मर गेल आउ डाक्टर के एक्को तुरी नयँ बोलइलक हल । शहर के लोग ओकरा बारे लगभग भूल गेलइ । ओकर कोठरी खाली पड़ल हलइ ।  हम मृतात्मा के मकानदारिन (landlady) से परिचय कइलइ, ई आशा कइले कि ओकरा से मालूम करूँ कि ओकर किरायेदार वास्तव में की काम करऽ हलइ आउ ऊ कुछ लिक्खऽ तो नयँ हलइ ? बीस कोपेक देला पर ऊ कागज के पुलिंदा के पूरा डलिया ले अइलअइ, जेकरा ऊ मृतात्मा के बाद सँभालले हलइ । बुढ़िया ई बात बतइलक कि दू नोटबुक त बरबाद कर चुकल हल । ऊ बुढ़िया उदास आउ अल्पभाषी औरत हलइ, जेकरा से कुच्छो उपयोगी चीज निकलवाना कठिन हलइ । अपन किरायेदार के बारे ऊ हमरा कुच्छो खास नया चीज नयँ बता पइलक । ओकर कथनानुसार ऊ लगभग कभियो कुच्छो नयँ करऽ हलइ आउ ऊ महिन्नो कोय किताब नयँ खोलऽ हलइ, न कोय कलम हाथ में ले हलइ; जबकि ऊ सारी रात कोठरी में शतपथ करते रहऽ हलइ आउ हमेशे कुछ तो सोचते रहऽ हलइ, आ कभी-कभी खुदहीं से बात करते रहऽ हलइ; ओकरा हमर जरीकनी नतिनियाँ, कात्या, के साथ लगाव हो गेलइ आउ ओकरा दुलार करे लगलइ, खास करके तब से जब ओरा मालूम पड़लइ कि एकर नाम कात्या (कैथेरिन) हकइ; आउ ई बात कि सेंट कैथेरिन दिवस के अवसर पर ऊ हर तुरी केकरो आत्मा के शान्ति लगी अनुष्ठान करावे गिरजाघर (चर्च) जा हलइ । कोय अतिथि के आना ओकरा सहन नयँ होवऽ हलइ; अपन घर से बाहर खाली बुतरुअन के पाठ पढ़ावे खातिर जा हलइ; हियाँ तक कि ऊ अपन मकानदारिन बुढ़ियो से नजर मिलाना पसीन नयँ करऽ हलइ, जब ऊ सप्ताह में एक दिन ओकर कोठरिया के साफ करे ल थोड़े देरी लगी आवऽ हलइ; आउ पूरे तीन बरस तक ओकरा से एक्को शब्द मुँह से नयँ बोललइ । हम कात्या के पुछलिअइ - "तोरा अपन शिक्षक के आद आवऽ हउ ?" त ऊ हमरा तरफ चुपचाप देखलकइ, फेर देवलिया तरफ मुड़के कन्ने लगलइ । मतलब ई अदमी केकरो तो अपना के प्यार करे ल मजबूर कइलक हल !

हम ओकर कागज-पत्र लेके चल गेलिअइ आउ दिन भर ओकर जाँच कइलिअइ । एकर तीन-चौथाई निरर्थक हलइ, बेकार के रद्दी या छात्र सब के अभ्यास के नमूना के साथ । लेकिन हिएँ पर एगो मोटगर नोटबुक हलइ, जेकर पन्ना में छोटगर अक्षर में लिक्खल लेकिन अधूरा, शायद लेखक द्वारा फेंकल आउ भुला देल गेल । ई अलिक्सान्द्र पित्रोविच द्वारा दंड के रूप में दस बरस के कठोर परिश्रम के बितावल जिनगी के विस्तृत वर्णन हलइ । ई वृत्तान्त जाहाँ-ताहाँ कोय आउ उपाख्यान के साथ टूट जा हलइ, कोय विचित्र भयानक स्मृति के साथ, जे अनियमित रूप से घुसेड़ देवल गेले हल, मानूँ कोय लचारी में लिखल गेल होवे । हम ई कुछ खंडित आख्यान के कइएक तुरी पढ़ गेलिअइ आउ तब हमरा लगभग विश्वास हो गेलइ कि ई सब पागलपन के हालत में लिखल गेल ह । लेकिन जेल के ई संस्मरण - "मृत गृह के झाँकी" - जइसन कि ऊ अपन पांडुलिपि में ही कहीं पर एकर  नाम दे हइ, हमरा बिलकुल अरुचिकर नयँ लगलइ । बिलकुल नयका संसार, अब तक बिलकुल अनजाना, भिन्न-भिन्न तथ्य के विचित्रता, मृत लोग के बारे कुछ विशिष्ट टिप्पणी - ई सब हमरा आकृष्ट कइलक, आउ हम एक प्रकार के उत्सुकता के साथ पूरा पढ़ गेलूँ । हो सकऽ हइ कि हमरा कोय गलतफहमी होवे, लेकिन परीक्षण के तौर पर पहिले हम ई वृत्तान्त के दू-तीन अध्याय चुनके प्रस्तुत करम, जनता एकरा बारे निर्णय करत ...



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