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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 10


- 10 -

दूसरे दिन ।
सुबह-सुबह दयाल फ्रेश होके स्टेशन अइला । इन्सपेक्टर राजाराम दोसर शहर चल गेला हल । ऑटोचालक के पता लगावे के प्रयत्न करवावे ल कहके गेला हल, ई दयाल के मालूम होल ।
दस बजे बालाजी अइला ।

“अपने जे काम बतइलथिन ऊ एक्के अदमी के वश में नयँ । हम दूगो दोस्त के साथ बोला लेलिअइ । मद्रास के कोना-कोना अलगे-अलगे घूम लेलिअइ । एक्सिबिशन में के मशीन अभी नयँ खुलले हल । कुछ होटल में भी हइ सर । कम बेस बीस हो गेलइ । लेथिन ।”

बालाजी जेभी से सब कार्ड निकालके मेज पर रखलका ।
कार्ड के किनारे में 67049, 47618 ई सीरियल नम्बर अंकित हलइ । कुछ कार्ड में नम्बर नयँ हलइ । जेरा में नम्बर नयँ हलइ ओरा दूर कर देलका । अब बाकी बच्चल चौदऽ । कपाट के दरवाजा खोलके मेनका के हैंडबैग से वज़न लेल कार्ड के निकाल के मेज पर रखलका । एरा में नम्बर हलइ - 71945 ।

“बालाजी, ई सीरियल नम्बर से मिलता-जुलता कार्ड हीआँ हइ कि नयँ, देखऽ ।”
“हीआँ हइ न, 72113” - बालाजी एतना कहके कार्ड देखलका । बाकी सबके पहिला अंक 4, 5, 6, 8, 9 से शुरू होवऽ हलइ । खाली एहे कार्ड ई कार्ड के नम्बर से मिल्लऽ-जुल्लऽ हलइ ।
“अन्तर केतना हइ ?  घटाके देखऽ ।”
“168 सर ।”

“ऊ औरत के अंगुरी के निशान ले लेलिये हल । ई वज़न लेल कार्ड ओकरा से मिल्लऽ हइ । एक्कर मतलब ई कार्ड में ऊ लड़की के अंगुरी के निशान पड़ल होत । मतलब ई कार्ड वास्तव में ई लड़की अप्पन वज़न लेलक होत । ऊ अप्पन वज़न काहाँ लेलक, ई मालूम करे ल ई काम करऽ, अइसन कहलियो हल । ओक्कर वज़न लेला के बाद 168 लोग वज़न लेलका ह । ई मशीन काहाँ हइ ?”
“ई मशीन ?” - बोलके बालाजी कार्ड के उलटके देखलका आउ बोलला - “एगमोर रेल्वे स्टेशन में हइ सर । एकरा हमहीं लेलिये ह ।”

“बालाजी, हत्या कइल गेल ह परसूँ रात, मतलब 14 तारीख के रात में । हम्मर अनुमान की कह रहल ह, मालूम ? ऊ लड़की के ‘प्रमिला’ के नाम से ही अभी बात कइल जाय । ओक्कर असली नाम मालूम होवे तक ई मान लेल जाय कि ऊ लड़की ई शहर के नयँ हइ काहे कि ई दू दिन में एगो लड़की देखाय नयँ दे हइ, अइसन शिकायत नयँ आल । ओहे से ऊ आउ कोय गाँव के हइ । ई बारे ओक्कर हैंडबैग में के एक ठो साड़ी, एक ठो ब्लाउज़ सबूत हइ । प्रमिला 14 तारीख के दोसर गाँव से आके एगमोर स्टेशन में उतरल । बाहर उतरतहीं कुतूहल से अप्पन वज़न देखलक .... !  हम्मर अनुमान सही लगऽ हको ?”

“हाँ, लगऽ हइ सर ! लेकिन ......”
“लेकिन ?”
“एगमोर स्टेशन में एक दिन में केतना रेल आवऽ हइ ? ओकरा में ई केऽ हइ, ई पता लगइथिन ?”
“सम्भव हइ बालाजी .... कुछ भी नयँ बन्नल, ई निष्कर्ष पर मत आवऽ । अगर ऊ रिज़र्व्ड कम्पार्टमेंट में आल होत त हम्मर काम आसान हो जात ।”

मेनका के टिकट जेभी में रखके दयाल हुआँ से निकलला । अप्पन साथ में बालाजी के भी जबरदस्ती ले जाय ल ऊ उनकर पीठ पकड़लका ।
दक्षिण रेल्वे प्रशासन कार्यालय के जेनरल मैनेजर से अगला आधे घंटा में मिलके दयाल अप्पन परिचय देलका ।

“14 तारीख के एगमोर आवल यात्री से जमा कइल सब टिकट के जरूरत हइ सर । दू घंटा में ओकरा में से एक्को कम नयँ पड़े एक्कर ध्यान रखके अपने के वापस कर देबइ । एक ठो हत्या के केस में ऊ उपयोगी हो सकऽ हइ । प्लीज़ ...”

जेनरल मैनेजर एक आउ अधिकारी के बोलवाके दयाल के कइल निवेदन में सहायता करे ल आज्ञा देलका ।
ऊ अधिकारी के साथ में एगमोर आल दयाल 14 तारीख के दिन यात्रीसे संग्रह कइल टिकट के बण्डल एक पेपर शीट पर लिखके रख लेलका ।
दयाल एक घंटा के बाद फ़ोरेन्सिक डिपार्टमेंट (अदालती विभाग) अइला । हुआँ के टेकनिशियन मुरली दयाल के मित्र हल ।

“मुरली, तोरा हम एक ठो काम दे हकियो । ‘नयँ हो सकत’ अइसन मत बोलऽ ... कम्प्यूटर आ गेला से ई काम दे रहलियो ह ।”
“कीऽ करे के हइ, बतावऽ” - मुरली बोलल ।
“ऊ प्रमिला हत्या केस में ओक्कर अंगुरी के निशान लेल गेल हल न । ऊ ई सब रेल्वे टिकट में से केक्कर साथ मेल खा हइ, ई पता लगावे के हइ !”

एगमोर रेल्वे स्टेशन से लावल टिकट के ढेर देखके मुरली अप्पन होश नयँ खोलक ! ... एतने ।
“हीआँ कोय काम नयँ होवे से मक्खी मार रहलिये ह, अइसन तो नयँ समझ रहलऽ ह, भई !”
“किरपा करके एक काम करऽ भई । एगो हमरा कम्प्यूटर दे द । हम एक-एक करके टिकट के फीड करके देखऽ ही ।”

मुरली एक ठो कम्प्यूटर के इन्तज़ाम कर देलक । एकरा में प्रमिला के अंगुरी के निशान मेमोरी में डालके एक्कर सेन्सर प्लेट में कुल पचास टिकट जोड़लका ।
“ई ढेर में के टिकट में से केकरो में मेमोरी में के अंगुरी के निशान से मेल खा गेल त लाल बत्ती जल जात ।”
फेर ऊ पचास टिकट के एक-एक करके जाँचल गेल ।

ऊ क्रम में बालाजी के मदद से 50-50 करके टिकट के जोड़के रखके टी.वी. स्क्रीन पर मेल देखते रहला । 2000 टिकट के जाँचके समाप्त कइला पर ...
पचास टिकट के ढेर में सिग्नल आल ... ऊ पचास टिकट के एक-एक करके फीड कइला पर एक टिकट पर सिग्नल मिलल ।

“एहे टिकट हको भई । ई टिकट पर प्रमिला के अंगुरी के निशान हको ।” - मुरली बोलल ।
कुतूहल से ऊ टिकट उठाके दयाल देखलका ।

मायावरम् से एळुम्बूर के रिज़र्व कइल गेल हल बर्थ टिकट ई !!

मुरली के आलिंगन करके दयाल ओक्कर गाल पर चुम्मा ले लेलका ।
“कम्प्यूटर पर खोजके निकाले वला के तूँ चुम्मा दे भई !” - मुरली बोलल ।
मुरली के कृतज्ञता प्रकट करके एगमोर रेल्वे स्टेशन से लावल सब टिकट के सावधानी से अधिकारी के सौंपके ज़ोनल ऑफ़िस (मण्डलीय कार्यालय) में सहयोग देवे वला अधिकारी से दयाल भेंट कइलका ।
“अपने के काम हो गेलइ ?” - ऊ अधिकारी पूछलका ।
“जेतना जरूरत हलइ ऊ हो गेलइ सर ! अपने एक आउ उपकार करथिन ?”
“कीऽ करे के चाही, बताथिन ।”
“ई मायावरम् में रिज़र्व कइल टिकट हइ । मायावरम् जंक्शन सम्पर्क करके हुआँ रिज़र्व कइले यात्री सब के घर के पता पुच्छे के चाही सर ।”
“करके दे हिअइ ।”

बालाजी के साथ बाहर आके दयाल हुआँ सिगरेट जलाके बरामदा में एद्धिर-ओद्धिर शतपथ (चहलकदमी) करते गुजरलका ।
आधा घंटा में ऊ अधिकारी मायावरम् रेल्वे स्टेशन सम्पर्क कइलका आउ बतावल पता के एक ठो कागज पर लिखके दयाल के हाथ में देलका । दयाल ऊ कागज के देखलका । एकरा में ई पता हल -

“एम. मेनका, w/o आर. माधव, 102 चिन्ननायक रोड, मयिलाडुदुरे”

“सर, फ़ोरेन्सिक डिपार्टमेंट में अप्पन दोस्त के जइसे चुम्मा देलथिन ओइसहीं हमरो देवे के चाही, अइसन लगऽ हके ।” - बालाजी बोलला ।
“थोड़े स ठहरऽ । अभीये तो पता मिलल ह । अभीयो बहुत काम बाकी हइ ।” - दयाल बोलला ।

दयाल के हिसाब के मोताबिक ऊ लड़की के नाम प्रमिला नयँ, ऊ व्यभिचार के धन्धा वली नयँ ! आउ कोय गाँव से मद्रास में आवे वली हइ, ई निष्कर्ष पक्का करे में रेल्वे टिकट अत्युत्तम सिद्ध होल आउ ओकर माध्यम से मायावरम् के पता मिल्ले से दयाल खुशी के मारे कुप्पा हो गेला । 120 जर्दा पान लाके डालके एक सिगरेट जलइलका दयाल आउ मायावरम् के पुलिस स्टेशन के फोन कइलका ।

सम्पर्क मिलतहीं -
“मद्रास के अडयार से सब-इन्सपेक्टर दयाल बात कर रहलिये ह । एक ठो घर के पता बता रहलिये ह । एरा नोट कर लेथिन। - कहके ऊ पता बतइलका ।
“मेनका नाम के ई महिला मायावरम् से प्रस्थान करके मद्रास 14 तारीख के सुबह अइला हल … ई पता वला उनकर घर पर जाके पूछथिन । ई महिला के पति माधव के अडयार पुलिस से सम्पर्क करे ल कहथिन । बात बहुत मुख्य हइ .......... ई मेनका नाम के लड़की गायब हइ, अइसन कुछ शिकायत मिलले ह कीऽ ? जरी जाँचके बताथिन ।”
“नयँ, अइसन कोय शिकायत नयँ अइले ह । हम माधव के सम्पर्क करके हुआँ जाय ल बतावऽ हिअइ । बाद में अपने के भी सूचित करऽ हिअइ ।”
“बहुत बहुत धन्यवाद !”

रिसीवर रखके दयाल बइठला हल कि त्यागु आउ ओक्कर माय अइला ।

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