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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 6


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पीये थोड़े पानी देथिन ?”
अविनाश पानी लावे रसोई घर में गेल घर के सहज इच्छा से बइठल जगह से उठके मेनका टी.वी. के पास जाके एक्कर ऊपर धैल फूलदानी के देखके बड़ी खुश होल बगले में बेडरूम (सुत्ते के भित्तर)
एक्कर दरवाजा खुल्लल हइ कि नयँ संशय में हैंडिल पकड़के अन्दर तरफ ढकेललक ...
जमीन पर लाश नियर फेंकल औरत के देखके जोर से चीख पड़ल हाथ में एक लोटा पानी लेले आल अविनाश घटना देखके काँपे लगल
... की हइ सर ?” - मेनका अप्पन सुक्खल गला से पूछलक

कीऽ  जवाब देल जाय सूझिये नयँ रहल हल अविनाश के संकट में पड़ गेल हल
  ......हत्या हइ कीऽ ?”
नयँ ... ... आउ... ...आउ” - जीभ जइसे कुछ कहे ढूँढ़ रहल हल
कहथिन सर अपने केऽ ? केऽ ? एकरा कीऽ कइलथिन हँ ?”

हाथ पर के पानी के लोटा तिपाय पर रखलक अविनाश ओक्कर दूनहूँ हाथ पैंट के जेभी में घुसके थोड़हीं देर पहिले कर चुकल आउ विश्राम कर रहल नायलन रस्सी के सहला के देखलक
ई औरत के आउ कोय भी तरह से वश में करे ल सम्भव नयँ ।  दस लाश होला पर भी ऊ कुआँ में डालल जा सकऽ हइ ... हमरा आउ कोय चारा ही नयँ ... एक्कर भी समाधि बनइले बिना आउ कोय रस्ता नयँ ।
मुँह में कोय प्रकार के भावना प्रकट कइले बिना धीरे-धीरे ओकरा तरफ बढ़ल ।

“हम पूछते जा रहलूँ हँ । एक्कर जवाब देले बिना ... ?”
अविनाश के जेभी से रस्सी निकाल के ओक्कर गर्दन में डाले के प्रयत्न करे बखत ऊ अप्पन ऊपर आक्रमण पर नज़र डाललहीं मेनका फट से ओरा से पीछे सरकके जोर से चिक्खे लगल ।
“आवऽ ! दौड़के आवऽ !  हत्या ! बचावऽ !”
“तोर चीख केकरो कान में पड़े वला नयँ हउ, समझलँ मूरख लड़की !”

ऊ उछलके बगल में हो गेल । ऊ दौड़के भागल दरवाजा तरफ । ऊ अगर बचके निकल भागल त हम्मर सब काम मट्टी में मिल जात, ई सोचके ओकरा पीछा कइलक ...

एतने में मेनका सिटकिनी खोलके बाहर निकलके भागे लगल । घर में अभी तक अहाता बन्नल नयँ हल । तब तक के लिए पत्थर के थुम्भा नियर खड़ा करके कँटीला तार के एरा चारो तरफ लगाके काठ के दरवाजा बना देवल गेल हल । दरवाजा के सिटकिनी खोलके कच्चा रस्ता पर गिरे-पड़े पर बिना ध्यान देले दौड़ पड़ल । ऊ जल्दी में गेट से ऊ पार बढ़ते बखत हवा के गति में फटाफट भागे लगल ।

शिकारी कुत्ता जइसे राक्षस गति से ओक्कर अविनाश पीछा कइलक । दूर में देखाय दे रहल हल भारतीनगर । मेनका भारतीनगर तरफ दौड़के भागल । “हत्या, हत्या” चिल्लइते भागला पर भी ...

अविनाश के पैर लगातार ओक्कर आ रहल हल । आगे दुइये मिनट में ओक्कर पास पहुँच गेल । अगलहीं पल में हाथ फैलके ओक्कर लम्बा जुरवे पकड़ लेलक । अचानक थम गेल जइसे मेनका हाँफते-हाँफते ओकरा से छुटकारा पावे ल संघर्ष करे लगल ।
लेकिन ऊ नायलन के रस्सी ओक्कर गर्दन में फँसाके बेवकूफी से कस देलक आउ पागल नियन काम में लग गेल । अप्पन दाँत कटकटइते रस्सी के एद्धिर-ओद्धिर खिंच्चे लगल ।

हम काहे ल ई बिन काम के काम में दखल देउँ, ई तरह सोचके चन्द्रमा आकाश में छाल बादल के एक टुकड़ा के पीछे छिप गेल ।
मेनका मौत के आलिंगन कर रहल हल ।

जेतना दूर तक नज़र जा हल, दूर-दूर तक घुप्प अन्हेरा हल । ठंढा हावा सायँ-सायँ करके बह रहल हल ... दू-तीन पल तक लाश के पड़ल रहला पर झट कुछ निश्चय कइलक अविनाश ।
मेनका के देह के पीठ आउ पैर के बीच उठाके तेजी से चन्द्रु के घर तरफ बढ़ल । ड्योढ़ी में खड़ी अम्बासडर कार के पिछला सीट पर डाल देलक । ओक्कर कन्धा पर झूल रहल बैग उठाके घर में आल ।
“छी, एक हत्या के छिपावे लगि आउ एक ठो हत्या करे पड़ल न !  ई अभागिन देखके सब कुछ बर्बाद कर देलक न । .... अगर ऊ नन्दिनी के नयँ देखत हल त ... ओरा ओक्कर मौसी के घर पर छोड़ देवे ल कहलूँ हल न ... एक्कर लाश के कुआँ में डालना ठीक नयँ होत । ई घर में नन्दिनी के होवे के बात केकरो मालूम नयँ । लेकिन ई लड़की अप्पन मौसी के अप्पन भेंट करे वला के पूरा पता नयँ भी बतइलक होत तइयो भवानी के मिल्ले ल हम जा रहलियो ह, ई बात आउ केकरो बतइलक होत । मायावरम् में अप्पन पति के मद्रास में अप्पन सहेली भवानी से भेंट करे के हइ, ई बताके आल होत । ओहे से ई लाश के दोसर तरह से खपावे के चाही ... बहुत चलाकी से ई काम कइसे कइल जाय ? कइसे ?”

अविनाश अप्पन वकीली दिमाग के इस्तेमाल करके पाँचे मिनट में एक ठो योजना के रूप देलक ।

एकरा कार्य रूप देवे के पहिले थोड़े बड़गर सन मेनका के बैग के जाँचके देखलक । ओकरा अन्दर एक ठो साड़ी, एक जैकेट हलइ । छोट्टे स मेकअप सेट । छोट्टे गो बटुआ (मनी पर्स) । ओरा में दू सो रुपय्या खुदड़ा । वजन देखल छोट्टे गो टिकट । एक्कर साथ-साथ अप्पन मायावरम् के पता एक ठो छोट्टे गो कागज में लिखके रखले हल । एक ठो पेन, जेनरल नॉलेज के एक ठो पुस्तक । एरा में ‘मेनका’ अइसन हस्ताक्षर । रूमाल पर ‘एम’ ई कढ़ाई कइल अक्षर । बस एतने ।

पता लिक्खल कागज के अविनाश उठा लेलक । रूमाल, पुस्तक - ई तीनो चीज मेनका के पहचान के सबूत ।
अप्पन शर्ट के जेभी से एक ठो कागज निकाललक । ओरा से अप्पन लिखावट बदलके एक ठो पता लिखलक - ‘एल. प्रमिला, c/o श्रीमती अहल्या, 184 कृष्णपिल्ले रोड, सैदापेट, मद्रास’ ।

लिक्खल चीट के बैग में डालके ज़िप के लगाते समय साड़ी-ब्लाउज में धोबी के कोय निशान तो नयँ हके एक्कर जाँच कर लेलक । अइसन कुछ नयँ मिलल त ज़िप लगा देलक ।
घर के चाभी के झब्बा के उठाके सामने के पोस्ट बॉक्स के ताला खोललक । ओकरा अन्दर एक ठो अन्तर्देशीय पत्र हल । एरा उठाके आके खोलके देखलक । ई मेनका के नाम लिक्खल पत्र ...

आगे के काम के रूप में नन्दिनी के लाश के उठाके जाके पीछे के कुआँ में डाल देलक । मेनका के चिट्ठी, पुस्तक, अन्तर्देशीय पत्र, नायलन रस्सी आदि के एक-एक करके सिगरेट लाइटर के लौ में जलाके बानी के कुआँ में डाल देलक । नन्दिनी के बैग के जाँच कइलक । ओकरा में नन्दिनी के पहचान सूचित करे वला चिन्हा अथवा चीज नयँ हल ।

ओक्कर बैग के भी कुआँ में फेंक देलक । नन्दिनी अप्पन पसन्द के जे हील्स चप्पल पहन के आल ओकरो कुआँ में डालके चपड़ा से बालू उठा-उठाके कुआँ में डाललक । ई तरह से कुआँ के अन्दर फेंकल वस्तु के ऊपर बालू डालला के बाद टॉर्च जलाके देखके मट्टी के ढेर के सरिया देलक ।

चपड़ा के अच्छा से पानी में धोलक । एकरा जहाँ से लेलक हल ओहे कपबोर्ड में रख देलक । सुत्ते वला भित्तर देखलक । नन्दिनी चाहे मेनका के नाम निशान मेट गेल ह, एक्कर सन्तोष होल । बिछावन के ऊपर के बेडशीट के सिकुड़न वगैरह सुधारके सरिया देलक । आगे आधा घंटा तक परीक्षा के तौर पर दृष्टि डालके फेर बत्ती बुझाके दरवाज़ा में ताला लगाके निकल गेल । अप्पन कार में बइठके एक तुरी पीछे के सीट तरफ नज़र दौड़ाके कार स्टार्ट कइलक अविनाश । तब समय हो रहल हल एगारऽ पैंतालीस ।

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