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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 4


- 4 -

ऊ दिन छो बजे के समय नीला अम्बासडर कार में बइठल हल अविनाश । कार के आगे-पीछे के नम्बर प्लेट पर FOR REGISTRATION अइसन लिक्खल चीट लगल हलइ ।

साँझ के सूरज आगे जाय के दुविधा के जानके गोस्सा में लाल हो गेला हल । कल कोर्ट में गवाही देवे ल कहीं आवे नयँ पड़े, ई डर से फुरती-फुरती छिप छिप जाय के तैयारी कर रहला हल ।
कुछ मिनट बाद तीन पीस मिडी पोशाक पहनके ऑटोरिक्शा से उतरके नन्दिनी मारुति कार के खोजलक ।
अप्पन कार से अविनाश हाथ देके ओरा बोलइलक । नन्दिनी आल ।

“हे ! नाया कार की ? बतइवे नयँ कइलऽ ?”
“बइठ जो । जइते-जइते बतइवउ ।”
ओक्कर बगले में बइठल नन्दिनी आँख पर के धूप चश्मा उतारके बैग में धैलक ।
“कब खरीदलऽ , अविनाश ?” - ऊ ओक्कर बाहँ पर हाथ रखके पूछलक ।
“ई हम्मर दोस्त के कार हइ, नन्दिनी । हम्मर कार मरम्मत लगि देल हइ ।” - अविनाश एतना कहके कार चालू कइलक ।

भारतीनगर में के लाल मिट्टी वला कच्चा रोड से आगे बढ़के कार चन्द्रु के घर के सामने आके खड़ा होला पर अन्धकार छा गेल हल । पूरब तरफ थोड़े रोशनी देखाय दे रहल हल ।

कार से उतरके नन्दिनी सीटी बजइलक ।
“अच्छा जगह पकड़लऽ ह । घर अनाथ हो गेल ह ।”
“हमरा कोय तकलीफ नयँ होत नन्दिनी ।”
अप्पन खुद के घर जइसे चाभी निकालके अविनाश घर के ताला खोललक । अन्दर गेल । दरवाजा बन्द कर लेलक ।
बेडरूम में दीपक जललइलक । एक ठो विमान बहुत नीचे से उड़के गेल जेक्कर शब्द से बँगला ही हिल्ले के भ्रम होल ।

“नन्दिनी, आज तोर जीवन के अन्तिम दिन अगर कहल जाय त तोर अन्तिम इच्छा की होतउ ?”- अविनाश पूछलक ।
“तोहर सिर के कोय नट ढीला तो नयँ हो गेलो ह ? एक्के रट लगइले खाली काल्पनिक प्रश्न ही कर रहलऽ ह ?”
“उत्तर दे नन्दिनी ।”
“वेल ... हम मरते बखत भी तोरे आलिंगन कइले रहूँ ।”
“तोर अन्तिम इच्छा भी एतना सधारण ? एकरा पूरा कर देम “ - कहके अविनाश नज़र डालते अप्पन शर्ट उतारलक । ज़ीरो वाट के बल्ब जलाके बाकी के बुझा देलक । ओकरा आलिंगन कइलक ।
दूनहूँ पेन्हल पोशाक उतारके मन्द रोशनी के बस्तर जइसे इस्तेमाल करके गरम उच्छ्वास छोड़लका ।
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ऊ ऑटो धीमा गति से आगे बढ़ते आ रहल हल । ड्राइवर बीड़ी पीते गाड़ी चला रहल हल । ऑटो में ऊ तरुणी बइठल हल । मेनका । कॉटन साड़ी पेन्हले हल । एक ठो लमगर चोटी कइले । ई कन्धा पर नाच रहल हल । बाँह में एक ठो बैग । हाथ में एक ठो पता लिक्खल पत्र । ऊ पता हल -
श्रीमती भवानी चन्द्रु
16/7, भारतीनगर एक्सटेंशन
मीनाम्बक्कम् , मद्रास - 600 027

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पीठ पसीना से तर हो गेल हल ओइसहीं शर्ट पेन्ह लेवे पर पीठ से चिपक गेल
की उठके छोड़ देलऽ थोड़े देर दुनिया के भुला देल जाय अविनाश” - नन्दिनी बोलल
दुनिया के भुला देवे के चाही, एतने ? कपड़ा पेन्ह ले इन्तज़ाम कर दे हिअउ

पैंट में शर्ट के अन्दर कइलक अविनाश फिर बेल्ट लगा लेलक
नन्दिनी कपड़ा पेन्ह लेलक दीप जलावे बखत अप्पन स्टिकर कुमकुम के बिछौना पर खोजके निरार पर लगा लेलक

अविनाश, गलत हइ ?”
गलत तो हइ बड़गर गलती हइ मर्द के समाज कइएक सहूलियत देलक लेकिन गैर शादीशुदा औरत लगि महापाप हइ
चलऽ तूँ बहुत बोर करऽ ... शादी कब ?”
दस दिन में
सच ?”
हाँ नन्दिनी” - अविनाश कहलक

पैंट के जेभी में हाथ डालके बाहर निकाललक चार फुट लम्बा नायलन के रस्सी !
की जी ? रस्सी काहे लइलऽ ?”
तोर हत्या करे !”
तोर बात सुनके तो हमरा हँसी नयँ आवऽ हको, भई
झट से ओक्कर गर्दन के चारो तरफ रस्सी लपेट देलक

बुतरू के खेल मत करऽ अविनाश बाद में नयँ मालूम की से की हो जात !” - मूर्ख लड़की बोलल अभीयो ओकरा पर विश्वास कर रहल हल

हम तो खेल नयँ खेल रहलियो वास्तव में मरे के पहिले कारण नयँ मालूम रहला पर मर गेला से किच्चिन बनके भटके परतउ एगो उद्योगपति के बेटी के साथ हम्मर शादी के तैयारी हो गेल तूँ खुद्दे दूर हो जो, अइसन कहला पर तूँ सुन्ने वाली  नयँ ओहे से तोरा हीआँ बोलाके लाके तोर अन्तिम इच्छा के पूरा करके तोर आउ एक इच्छा ... दुनिया के हमेशा लगि भूल जाय जइसन अब कर दे हिअउ

नन्दिनी के अब परिस्थिति समझ में गेल छुटकारा पावे प्रयास कइलक ... सामने हीं नायलन रस्सी के छोर पकड़ले ओक्कर हाथ के एद्धिर-ओद्धिर खींच्चे बीचवे में पकड़ले अप्पन गर्दन के रस्सी ढीला करे लगल ।
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मीनाम्बक्कम् के सीमा पर पहुँचके भारतीनगर के तरफ जाय निकलल ऑटोरिक्शा अचानक हिलके रुक गेल ड्राइवर के केतनो भी कोशिश कइला पर भी आगे बढ़ल नयँ

गाड़ी खराब हो गेलो, मैडम मीटर के हिसाब से भाड़ा देके उतर जा ” - चालक बोलल
औरत मेनका आतंकित होके बोलल
की भई, बिच्चे रस्ता मेंउतर जाकहे से कइसे चलतो ? हीआँ आउ दोसर कोय ऑटो तो मिल्लत नयँ, अइसन लगऽ  हके
हम की कर सकऽ हकियो बहन जी ? ... ... हुआँ झुक्की नियन घर में रोशनी देखाय दे रहलो !”
हाँ
मतलब भारतीनगर एहे हको तोहर बतावल एक्सटेंसन एकरा पार करके गेला पर मिलतो फुरती फुरती चलके गेला पर आधा घंटा में हुआँ पहुँच जा सकऽ

नकिअइते ही पइसा देके साड़ी के छोर के बीच में पकड़ले मेन रोड से फुट्टल रस्ता में अन्हार में पैदल चल पड़ल घड़ी देखलक साढ़े आठ
बहुत मन्द चाँदनी में शायद कोय बग्गी-उग्गी रहल होत, देखलक ...
गोबर ! छी ... बगल में एक साइट के कोना में एक ठो पत्थर जड़ल हल पत्थर पर चप्पल डालके रगड़के ... ठीक करके आगे चलल आउ सोचे लगल

भवानी हका ? ... हम्मर पत्र उनका मिल्लल होत ...
हथुन पक्का हथुन ... एतना देर से नयँ आवे के चाही हल आगे-पीछे बिना देखल जगह में अकेल्ले आवे के नयँ चाही हल लेकिन दिन में समय काहाँ हलइ ?

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