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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 12


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माम्बल में ऊ फ्लैट के कॉल बेल दबाके दयाल इन्तज़ार में खाड़ा हला । मोटगर लुंगी आउ गंजी पेन्हले सुब्रह्मण्य दरवाज़ा खोललका । पुलिस के देखके अकचका गेला ।
“अपनहीं सुब्रह्मण्य हथिन ?”
“जी हाँ ।”
“हम्मर नाम दयाल, सब-इन्सपेक्टर । थोड़े स बात करे के हलइ ।”

अन्दर बइठला । रसोई घर से बाहर निकलल सुब्रह्मण्य के पत्नी अचरज से हुआँ अइला ।
“श्रीमती मेनका मायावरम् से मद्रास कब अइला हल ?”
“परसूँ सुबह । कब्बन एक्सप्रेस में आल हल । अच्छा से सोके माम्बल में बिना उतरले एगमोर में उतरके हुआँ से ऑटो करके आल हल ...... काहे ल पूछ रहलथिन हँ ?”
“बतावऽ हिअइ । साँझ के ऊ काहाँ गेला हल ?”
“बैंक के परीक्षा देके आल हल । खाना खइलक । बात करते रहल । सात बजे निकलके गेल । ‘मीनाम्बक्कम्’ में अप्पन सहेली से मिलके रात में उनके घर पर ठहरके सुबह मायावरम् चल जाम’ - अइसन बतइलक हल । हीआँ से जाय घड़ी एक ठो ऑटो में गेल ।”

“ओक्कर साथ में आउ कोय नयँ गेल ?”
“ ‘जरूरत नयँ, हम चल जाम’ - अइसे बोलल हल । बहुत साहसी लड़की हइ ।”
“ऑटो स्टैंड में जाके चढ़ला हल कीऽ ?”
“मालूम नयँ सर । कौन ऑटो चढ़ल, ई हमरा मालूम नयँ ।”
“आइ सी ....  मीनाम्बक्कम् में सहेली मतलब केऽ ?”
“ई भी मालूम नयँ सर । ‘सहेली’ एतना कहलक हल । हमहूँ पूछलिअइ नयँ । कल भी एहे बात कर रहलिये हल । ‘जमाना खराब हइ । मेनका के साथ जायके चाही हल’ - ई बात । अखबार में प्रमिला नाम के वेश्या के आभूषण के चलते हत्या हो गेल, ई खबर आल हल न । एकरा देखके एहे बात कहलिये हल ।”

“ई प्रमिला नयँ हइ, सर, बल्कि अपने के लड़की मेनका । .... ई फोटो देखथिन ।”
समुद्र तट पर पड़ल लाश के मुख पर क्लोज़-अप लेल फोटो अप्पन पैंट के जेभी से निकालके देखइलका ।
“अगे मायँ ।” - चिल्लइते सुब्रह्मण्य उठके खड़ा हो गेला, “ई तो हम्मर मेनका ही हइ, सर !  ई कीऽ हइ ? आँख अइसे .... “
“हत्या हो गेले ह !” - धीरे से दयाल बोलला ।
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“बइठके बतिआव अविनाश । अप्पन गोड़ में चक्का लगाके अइसे भागते रहे से कइसे काम चलतउ ?” - माय पूछलका ।
बाहर निकलहीं वला हल अविनाश । माय के पास बइठ गेल ।
“ले, बइठ गेलिअउ । बात कीऽ हउ, बता ।”
“तोर सस्सुर तीन मुहूर्त्त के दिन देखलथुन हँ । फोन पर बतइलथुन हँ । तोरा ओकरा में से कौन दिन अनुकूल होतउ, ई पूछलथुन हँ । तोरा कौन दिन पसन्द हउ, बता दे ।”

ओक्कर माय कागज पर नोट कइल दिन के तारीख देखइलका ।
जुलाई 27; अगस्त 14; अगस्त 25 ।

“ई सब कीऽ हइ माय ? आज 16 जुलाई । आज से एगारहे दिन में दिन देखलका ह । एतने में उनकर वश में हो जइतइ ? शादी मतलब केतना सारा काम होवऽ हइ, ई कीऽ खिस्सा हइ !”
“ऊ सब विचार तोरा काहे ल ? ‘चारे दिन में करऽ’ अइसन बतइलो पर लोग मदद करे वला हका उनका । धन बल हइ । तोरा 27 तारीख चल सकऽ हउ, त बोल । उनका हम सूचित कर दे हिअइ ।”

अविनाश सोचे लगल ।
“कइल दू-दू हत्या से पार पा गेलूँ हँ । ओकरा में पकड़ाय के चान्स नयँ । ... फिर भी शेषगिरि जी के दमाद बन्ने ल जेतना जल्दी सम्भव होवे, ओतने हमरा ल अच्छा । उनका ल बहुत गौरव के बात हइ । शादी होला के बाद ई सब भूत के अइला पर भी दमाद के छुटकारा नयँ मिल्ले वला केस के रफा-दफा कर देता ।”
“ठीक हउ माय, जुलाई 27 ..... हमरा मान्य हउ ।” - अविनाश बोलल ।

मेनका के मौसी के फ्लैट से उतरके दयाल ऊ रस्ता में खड़ा होके आसपास देखलका । थोड़हीं दूर पर एक ठो ऑटो स्टैंड हलइ । दस-पनरऽ ऑटो खड़ी हलइ । चालक सब एक जौर होके गप-शप में डुब्बल हला । एक अदमी राजकीय पत्रिका लेके जोर से पढ़ रहल हल ।

दयाल ऊ समूह के पास गेला । ऊ सब इनका देखलका ।  ऊपर उठइले लुंगी के कुछ लोग नीचे उतार लेलका ।
“हुआँ फ्लैट सब देखऽ हो ? हुआँ से परसूँ रात के एगो लड़की ऑटो में गेल हल । क्रीम कलर के साड़ी पेन्हले हलइ । एक्के ठो जूड़ा बाँधले । हाथ में करिया रंग के हैंडबैग । शादीशुदा लड़की । तोहन्हीं में से कोय ऊ लड़की के लेके गेलऽ हल ? अच्छा से सोचके उत्तर द । ऊ लड़की मीनाम्बक्कम् गेल हल । मतलब एयरपोर्ट हइ न, हुआँ से एक ठो घर तरफ ।” - दयाल एक तुरी गला ठीक करके पूछलका ।
चालक सब एक दोसरा के मुँह देखे लगला आउ सोचे लगला ।
“कहीं नटराज तो लड़की के लेके नयँ गेल हल ? ‘आधे रस्ता में ऑटो खराब हो गेल हल । ऊ लड़की के बहुत दूर तक पैदल जाय पड़लइ; बेचारी ...’ - अइसन बता रहल हल न !”
“हो सकऽ हइ सर । कौन फ्लैट से ऊ लड़की आल, ई तो हम सबके मालूम नयँ । अपने के बतावल जइसन साड़ी पेन्हके एगो लड़की अइले हल । लगऽ हइ, हाथ में बैग भी हलइ । हम्मर नटराज ओरा लेके गेले हल । ओकरा पूछला पर ठीक-ठीक बतइतइ ।”
“ऊ काहाँ हका ?”
“ग्राहक लेके गेले ह । अभी केतना समय होले ह ?”
“चार बजले ह ।”
“उनकर खाना के डब्बा हीएँ हइ । ऊ अभीयो खाना नयँ खइलका ह । ओहे से ऊ जरूर अइता ।”
अप्पन बाइक के खड़ा करके दयाल एरा से ओठंग के खड़ा-खड़ा सिगरेट पीते नटराज के इन्तज़ार करे लगला ।

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