रूसी
उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
2.
राजकुमारी मेरी - अध्याय-11
6
जून
आझ
सुबहे वेरा अपन पति के साथ किस्लोवोद्स्क चल गेलइ । हमरा उनकन्हीं के करेता देखाय देलकइ,
जब हम राजकुमारी लिगोव्स्काया हीं (पैदल) जा रहलिए हल । ऊ (वेरा) हमरा देखके सिर हिलइलकइ
- ओकर निगाह में उलाहना हलइ ।
केऽ
दोषी हइ ? काहे ऊ हमरा अपना से एकांत में भेंट करे लगी अवसर देवे ल नयँ चाहऽ हइ ? प्रेम,
अग्नि नियन, बिन ईंधन के बुत जा हइ । शायद डाह ऊ कर देतइ, जे हमर मिन्नत नयँ कर पइलकइ
।
हम
बड़की राजकुमारी भिर पक्का एक घंटा बैठलिअइ । राजकुमारी मेरी बहरसी नयँ होलथिन - बेमार
हथिन । शाम के ऊ बुलवार में नयँ हलथिन । नयका निर्मित गिरोह, लॉर्नेत से सज्जित, वास्तव
में एगो भयंकर रूप धारण कर लेलके ह । हमरा ई बात के खुशी हइ, कि छोटकी राजकुमारी बेमार
हथिन । ओकन्हीं उनका पर कुछ तो ढिठाई कर बैठते हल । ग्रुशनित्स्की के बाल ओझराल हलइ
आउ चेहरा उदास हलइ । ऊ, लगऽ हइ, वास्तव में व्यथित हइ, विशेष करके ओकर स्वाभिमान के
ठेस पहुँचले ह । लेकिन अइसन लोग हकइ, जेकरा में निराशा भी हास्यास्पद होवऽ हइ !
...
घर
वापिस अइला पर, हम नोटिस कइलिअइ, कि कुछ तो कमी हइ । हम उनका नयँ देख पइलिअइ ! ऊ बेमार
हथिन ! कहीं हम वास्तव में उनकर प्रेम में तो नयँ पड़ गेलिअइ ? ... धत्, कइसन बकवास
हइ !
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