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Saturday, October 29, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 3. भाग्यवादी - अध्याय-1



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
3. भाग्यवादी - अध्याय-1

हमरा एक तुरी कइसूँ दू सप्ताह एगो कज़ाक गाँव के बामा बगल में रहे के अवसर मिललइ । हिएँ परी पैदल सेना के एगो बटालियन के मुकाम हलइ । अफसर लोग बारी-बारी एक दोसरा के हियाँ एकत्र होते जा हलथिन, आउ शाम के ताश खेलते जा हलथिन । एक तुरी, बोस्टन (ताश के एगो खेल) से ऊबके आउ ताश के गड्डी टेबुल के निच्चे फेंकके, हमन्हीं मेजर एस॰ के हियाँ बहुत देर तक बैठल रहलिअइ । बातचीत,  हमेशे के अपेक्षा, रोचक हलइ । चर्चा के विषय हलइ, कि मुसलमान लोग के ई विश्वास, कि मनुष्य के भाग्य स्वर्ग में लिक्खल जा हइ, हमन्हीं क्रिश्चियन में भी  कइएक श्रद्धालु के बीच पावल जा हइ । हरेक कोय, ई विश्वास के पक्ष आउ विपक्ष में, तरह-तरह के असाधारण घटना के वर्णन कइलकइ ।
"ई सब कुछ, भद्रजन (gentlemen), कुछ नयँ साबित करऽ हइ", वृद्ध मेजर कहलथिन, "वस्तुतः अपने सब में से कोय भी ऊ सब विचित्र घटना के साक्षी नयँ हलथिन, जेकर आधार पर अपन विचार के समर्थन करते जा हथिन..."
"वास्तव में, कोय नयँ", कइएक लोग कहते गेलथिन, "लेकिन हमन्हीं विश्वसनीय लोग से सुनलिए ह ..."
"ई सब कुछ बकवास हइ !" कोय तो कहलकइ, "काहाँ परी ई विश्वसनीय लोग हइ, जे ऊ सूची (लिस्ट) देखलके ह, जेकरा में हमन्हीं के मौत के घड़ी निश्चित कइल हइ ? ... आउ अगर ठीक-ठीक पूर्वनिर्धारण (predestination) हइ, त काहे लगी हमन्हीं के इच्छाशक्ति आउ विवेक देल गेले ह ? काहे लगी हमन्हीं के अपन-अपन कृत्य के उत्तरदायी होवे के चाही ?"

ओहे बखत एक अफसर, जे कमरा के एगो कोना में बैठल हलइ, उठलइ आउ धीरे-धीरे टेबुल भिर आके, सबके तरफ शांत नजर डललकइ । ऊ जन्म से एगो सर्बियन हलइ, जइसन कि ओकर नाम से स्पष्ट हलइ ।

लेफ्टेनेंट वुलिच के बाह्याकृति ओकर स्वभाव के पूरा-पूरा दर्शावऽ हलइ । उँचगर कद आउ चेहरा के सामर रंग, कार केश, कार सूक्ष्मदर्शी आँख, बड़गर लेकिन सीधगर नाक, जे ओकर राष्ट्रीयता के वैशिष्ट्य हलइ, उदासीन आउ भावशून्य मुसकान, जे ओकर ठोर पर हमेशे पसरल रहऽ हलइ - ई सब कुछ मानूँ ओकरा एगो विशिष्ट प्रकार के व्यक्ति बना देलके हल, जेकरा चलते ऊ अपन विचार आउ भावना के, भाग्य द्वारा देल अपन साथी सब से, साझा नयँ कर सकऽ हलइ ।

ऊ बहादुर हलइ, कम बोलऽ हलइ, लेकिन तीक्ष्णतापूर्वक; अपन मन के आउ परिवार के रहस्य के बारे केकरो पर विश्वास नयँ करऽ हलइ; शराब लगभग बिलकुल नयँ पीयऽ हलइ, कज़ाक लड़कियन पर कभी लाइन नयँ मारऽ हलइ, जेकर सौंदर्य के ओइसन लोग के कल्पनो करना मोसकिल हइ, जे ओकन्हीं के कभी नयँ देखलके ह । तइयो कहल जा हलइ, कि कर्नल के घरवली ओकर अभिव्यंजक (expressive) आँख के प्रति विरक्त नयँ हलइ; लेकिन ऊ गंभीरतापूर्वक क्रोधित हो जा हलइ, जब एकरा बारे इशारा कइल जा हलइ ।

ओकरा एक्के व्यसन हलइ, जेकरा ऊ नयँ छिपावऽ हलइ - जूआ के व्यसन । एक तुरी ऊ हरा टेबुल भिर बैठ गेलइ कि ऊ सब कुछ भूल जा हलइ, आउ सामान्यतया हार जा हलइ; लेकिन लगातार विफलता खाली ओकर हठ के जागृत करऽ हलइ । कहते जा हलइ, कि एक तुरी, अभियान के दौरान, रात में, ऊ बैंक [1] अपन तकिया पर रखलके हल, आउ ओकरा भाग्य भयंकर रूप से साथ देलकइ । अचानक गोलीबारी के अवाज सुनाय देलकइ, अलार्म बजावल गेलइ, सब कोय उछल पड़लइ आउ हथियार दने दौड़ पड़ते गेलइ । "अपन पूरा बैंक दाँव पर लगावऽ !" बिन उठले, वुलिच अत्यंत जोशीला जुआड़ी में से एगो तरफ चिल्लइलइ । "सत्ता पर लगावऽ", दौड़ते-दौड़ते युद्ध पर जइतहीं ऊ जवाब देलकइ । सर्वसामान्य भगदड़ के बावजूद, वुलिच ताश के पत्ता अकेलहीं चलते रहलइ, आउ सत्ता अइलइ ।

जब ऊ सीमा पर अइलइ, त हुआँ परी जोरदार गोलीबारी हो रहले हल । वुलिच चेचेन लोग के न तो गोली के फिकिर कइलकइ, न तो तलवार के - ऊ अपन भाग्यशाली जुआड़ी के खोजब करऽ हलइ । "सत्ता तोर पक्ष में अइलो !" ऊ चिल्लइलइ, आखिरकार ओकरा सीमा पर गोलीबारी करे वला लोग के बीच देखके, जे दुश्मन के जंगल से बाहर खदेड़े लगी शुरू कर देलके हल, आउ नगीच जाके, अपन सिक्का के बटुआ आउ कागजी नोट के बटुआ निकसलकइ आउ ऊ भाग्यशाली के सौंप देलकइ, ओकर एतराज के बावजूद कि ई भुगतान के उचित जगह नयँ हइ । ई अप्रिय कर्तव्य के पूरा करके, ऊ फुरती से आगू गेलइ, सैनिक लोग के साथ लेलकइ आउ अंतिम बखत तक चेचेन के साथ अत्यंत शांतिपूर्वक गोलीबारी करते रहलइ । जब लेफ्टेनेंट वुलिच टेबुल भिर अइलइ, त सब कोय चुप हो गेलइ, ओकरा तरफ से कइसनो मौलिक हरक्कत के प्रत्याशा करते ।

"भद्रजन !" ऊ कहलकइ (ओकर स्वर शांत हलइ, हलाँकि तान (टोन) सामान्य से निच्चे हलइ), "भद्रजन ! खोखला वाद-विवाद काहे लगी ? अपने सब के सबूत चाही - हम अपने सब के खुद पर अजमावे के प्रस्ताव रक्खऽ हिअइ, कि की अदमी अपन इच्छा से अपन जिनगी के खतम कर सकऽ हइ, कि हमन्हीं में से हरेक लगी पहिलहीं से निर्णायक क्षण निश्चित कइल हइ ... किनका चाही ?"
"हमरा नयँ, हमरा नयँ !" सगरो तरफ से अवाज अइलइ, "कइसन विचित्र व्यक्ति हइ ! कइसन विचार दिमाग में घुस्सऽ हइ ! ..."
"हम बाजी लगावऽ हिअइ !" हम मजाक में बोललिअइ ।
"कइसन ?"
"हम दृढ़तापूर्वक कहऽ हिअइ, कि पूर्वनिर्धारण जइसन कुछ नयँ होवऽ हइ", हम कहलिअइ, सोना के बीस सिक्का टेबुल पर बिखेरते - ऊ सब, जे हमर जेभी में हलइ ।
"हमरा स्वीकार हइ", वुलिच तानरहित स्वरूप में उत्तर देलकइ ।
"मेजर, अपने जज होथिन; अइकी सोना के पनरह सिक्का हइ, बाकी पाँच अपने हमरा देथिन, आउ एकरा में ऊ जोड़के अनुग्रह करथिन ।"
"ठीक हइ", मेजर कहलथिन, "खाली हमरा ई समझ में नयँ आवऽ हइ, वास्तव में बात की हइ आउ कइसे अपने सब विवाद के निर्णय करथिन ? ..."

वुलिच चुपचाप मेजर के शयनकक्ष में चल गेलइ; हमन्हीं ओकर पीछू-पीछू गेते गेलिअइ । ऊ देवाल भिर गेलइ, जेकरा पर हथियार टँगल हलइ, आउ कइएक तरह के पिस्तौल में से बिन कोय विशेष के चुनाव कइले अइसीं एगो के खूँटी पर से उतार लेलकइ । हमन्हीं अभियो ओकरा समझ नयँ पइलिअइ । लेकिन जब ऊ एकर घोड़ा चढ़इलकइ आउ बारूद भरलकइ, त कइएक लोग, जाने-अनजाने चीख पड़लइ, आउ ओकर हाथ पकड़ लेते गेलइ ।
"तूँ की करे लगी चाहऽ हो ? सुन्नऽ, ई पागलपन हको !" लोग ओकरा पर चिल्लइलइ ।
"भद्रजन !" ऊ अपन हाथ छोड़इते धीरे-धीरे बोललइ, "केऽ हमरा लगी बीस स्वर्णमुद्रा चुकावे लगी तैयार हकऽ ?"

सब कोय चुप हो गेलइ आउ दूर हट गेलइ । वुलिच बाहर निकसके दोसर कमरा में चल गेलइ आउ टेबुल भिर बैठ गेलइ । सब कोय ओकर पीछू-पीछू गेलइ । ऊ इशारा से अपन चारो तरफ हमन्हीं के बैठे कहलकइ । चुपचाप ओकर बात मान लेते गेलिअइ । ई क्षण ऊ हमन्हीं पर रहस्यमय प्रभाव प्राप्त कर लेलके हल । हम ओकरा एकटक ओकर आँख में आँख डालके देख रहलिए हल, लेकिन ऊ शांत आउ अविचल दृष्टि से हमर खोजी दृष्टि के प्रत्युत्तर देलकइ, आउ ओकर पीयर ठोर मुसका रहले हल । लेकिन ओकर शांत मुद्रा के बावजूद, हमरा लगलइ, हम ओकर पीयर चेहरा पर मौत के छाप भाँप गेलिअइ । हम नोटिस कइलिए हल, आउ कइएक बुजुर्ग योद्धा हमर प्रेक्षण (observations) के पुष्टि कइलका हल, कि अकसर ऊ अदमी के चेहरा पर, जे कुच्छे घंटा में में मरे वला रहऽ हइ, दुर्निवार भाग्य के एगो विचित्र छाप होवऽ हइ, अइसन कि कोय अभ्यस्त आँख ओकरा पछाने में विरले विफल हो सकऽ हइ ।
"अपने आझ मर जइथिन !" हम ओकरा कहलिअइ ।
ऊ तेजी से हमरा दने मुड़लइ, लेकिन जवाब धीरे-धीरे आउ शांति से देलकइ - "शायद, हाँ, शायद, नयँ ..."
फेर, मेजर के संबोधित करते, पुछलकइ - "की पिस्तौल में गोली बोजल हइ ?"
मेजर भ्रांति (confusion) में ठीक से आद नयँ कर पइलका ।
"ओह बहुत हो गेलो, वुलिच", कोय तो चिल्लइलइ, "ई पक्का बोजल हइ, अगर बिछौना के सिरहाना दने लटकल हलइ । मजाक काहे लगी ! ..."
"भद्दा मजाक हइ !" एगो दोसर व्यक्ति बोललइ ।
हम पाँच के विरुद्ध पचास रूबल के दाँव लगावऽ हियो, कि ई पिस्तौल लोड कइल नयँ हइ !" एगो तेसर व्यक्ति चिखलइ ।
नयका बाजी लगावल गेलइ । हम ई लमगर रस्म से ऊब गेलूँ ।
"सुनथिन", हम कहलिअइ, "या तो खुद के शूट कर लेथिन, चाहे पिस्तौल के पहिलौका जगह पर रख देथिन, आउ सुत्ते लगी चलल जाय ।"
"सही बात हइ", कइएक लोग चिल्लइलइ, "सुत्ते लगी चल्लल जाय ।"
"भद्रजन, हम अपने सब से जगह से नयँ हिल्ले के निवेदन करऽ हिअइ !" पिस्तौल के नली अपन निरार पर रखते वुलिच बोललइ ।
सब कोय स्तब्ध रह गेलइ ।
"मिस्टर पिचोरिन", ऊ आगू बोललइ, "एक कार्ड लेथिन आउ उपरे उछलाथिन ।"

हम टेबुल पर से, जइसन कि हमरा अभी आद पड़ऽ हइ, लाल के एक्का उठइलिअइ आउ उपरे दने फेंकलिअइ । सब कोय दम साध लेलकइ; सब आँख, भय आउ एक प्रकार के अनिश्चित उत्सुकता के मुद्रा में, पिस्तौल से निर्णायक एक्का पर फिर रहले हल, जे हावा में लहरइते, धीरे-धीरे निच्चे आब करऽ हलइ । जइसीं ऊ टेबुल के स्पर्श कइलकइ, वुलिच घोड़ा दबा देलकइ ... गोली नयँ चललइ (मिसफायर) !
"भगमान के किरपा !" कइएक लोग चिल्लइलइ, "पिस्तौल लोड कइल नयँ हलइ ..."
"तइयो देख तो लेल जाय", वुलिच कहलकइ ।
ऊ फेर से घोड़ा चढ़इलकइ, आउ खिड़की पर के टँगल एगो टोपी पर निशाना लगइलकइ; गोली चल्ले के अवाज सुनाय देलकइ - धुआँ कमरा में भर गेलइ । जब ई छँट गेलइ, टोपी निच्चे कइल गेलइ - एकर ठीक बीचो-बीच से होके गोली गुजरले हल आउ देवाल में बहुत अंदर तक घुस गेले हल ।

तीन मिनट तक कोय एक्को शब्द नयँ बोललइ । वुलिच अत्यंत शांत मुद्रा में हमर स्वर्णमुद्रा के अपन बटुआ में डललकइ ।
ई बात पर बहस चले लगलइ, कि पहिले तुरी पिस्तौल से गोली काहे नयँ चललइ । कुछ लोग दावा कइलकइ, कि पिस्तौल के पेट (चैंबर) गंदगी से अवरुद्ध हो गेले होत; दोसर लोग कानाफूसी करते गेलइ, कि पहिले बारूद गीला हलइ आउ बाद में वुलिच ताजा बारूद भरलकइ; लेकिन हम ई बात पर दृढ़ हलिअइ, कि दोसरका अनुमान गलत हलइ, काहेकि हम पूरे समय तक अपन नजर पिस्तौल से नयँ हटइलिए हल ।
"जूआ के मामले में अपने भाग्यशाली हथिन", हम वुलिच के कहलिअइ ...
"अपन जन्म से पहिले तुरी", ऊ आत्मसंतुष्टि के साथ मुसकइते उत्तर देलकइ, "ई बैंक आउ श्तोस [1] से बेहतर हइ।"
"लेकिन ई जरी जादे खतरनाक हइ ।"
"एकरा से की ? की अपने पूर्वनिर्धारण पर विश्वास करे लगलथिन ?"
"विश्वास हइ; खाली हमरा अभी ई समझ में नयँ आवऽ हइ, कि हमरा काहे अइसन लगलइ, कि जइसे अपने आझ पक्का मरे वला हथिन ..."
एहे व्यक्ति, जे कुच्छे देर पहिले अपन निरार पर अत्यंत शांत मुद्रा में निशाना लगइलके हल, अब अचानक लाल हो गेलइ आउ घबराल देखाय देलकइ ।
"खैर, अब काफी हो गेलइ !" उठते ऊ कहलकइ, "हमन्हीं के बाजी खतम हो गेलइ, आउ अब अपने के टिप्पणी, हमरा लगऽ हइ, अनुचित हइ ..."
ऊ अपन टोपी उठइलकइ आउ चल गेलइ । ई हमरा विचित्र लगलइ - आउ अकारण नयँ ! ...

जल्दीए सब लोग अपन-अपन घर चल गेते गेलइ, भिन्न-भिन्न तरह से वुलिच के सनक के बारे बतिअइते, आउ शायद, एक स्वर में हमरा अहंकारी कहते, काहेकि हम ऊ अदमी के विरुद्ध बाजी लगइलिए हल, जे खुद पर गोली चलावे लगी चाहऽ हलइ, मानूँ ओकरा, हमरा बेगर अनुकूल अवसर नयँ मिलते हल ! ...


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