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Saturday, October 08, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-13



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-13

10 जून

अइकी अब तीन दिन हो चुकले ह, हमरा किस्लोवोद्स्क अइला । कुआँ के पास आउ घुम्मे-फिरे बखत हरेक रोज वेरा के हम देखऽ हिअइ । सुबहे जगला के बाद हम खिड़की के पास बैठ जा हिअइ आउ लॉर्नेत के ओकर बाल्कोनी दने निर्दिष्ट करऽ हिअइ । ऊ बहुत पहिलहीं पोशाक पेन्ह-उन्ह के तैयार होल पूर्वनिर्धारित इशारा के इंतजार करब करऽ हइ । हमन्हीं, मानूँ संयोगवश, बाग में मिल्लऽ हिअइ, जे हमन्हीं के घर भिर से कुआँ दने निच्चे उतरऽ हइ । चैतन्यदायी पर्वतीय हावा के कारण ओकर चेहरा के रंग आउ शक्ति वापिस आ गेले ह । नरज़ान [1] के व्यर्थे के "शूर-वीर के झरना" नयँ कहल जा हइ । हियाँ के निवासी लोग ई बात पर जोर देके कहऽ हइ, कि किस्लोवोद्स्क के हावा प्रेम के पोषक हइ, कि पर्वत माशूक के तलहटी में कभी शुरू होल सब्भे रोमांस के उपसंहार हिएँ होवऽ हइ। आउ वास्तव में, हियाँ सब कुछ एकांत के साँस ले हइ; हियाँ सब कुछ रहस्यमय हइ - जे धारा, कोलाहल आउ फेन के साथ एक शिला पर से दोसरा शिला पर गिरते, हरियाली भरल पर्वत के बीच से अपना लगी काटके रस्ता बनावऽ हइ, ओकर उपरे झुक्कल लिंडेन वृक्ष के घना छाया; आउ कुहरा आउ मौन से पूर्ण दर्रा, जेकर शाखा हियाँ से सगरो दने फैलऽ हइ; उँचगर-उँचगर दक्खिनी घास आउ उज्जर एकेसिया (acacia) के गंध से भरल, सुगंधित हावा के ताजगी; आउ अत्यंत शीतल नाला सब के मधुर आउ निद्राजनक अनवरत कोलाहल, जे घाटी के अंत में मिलके, मित्रतापूर्ण प्रतियोगिता के दौड़ में एक दोसरा से आगू बढ़े के प्रयास के साथ बहऽ हइ, आउ आखिरकार पोदकुमोक नदी में गिर जा हइ । ई तरफ दर्रा चौड़गर हइ आउ एगो हरियर तंग घाटी (dell) में बदल जा हइ । एकरा से होके धूरी से भरल एगो जलेबिया रोड हइ । हरेक तुरी, जब हम एकरा तरफ नजर डालऽ हिअइ, हमरा हमेशे लगऽ हइ, कि एगो करेता (घोड़ागाड़ी) आब करऽ हइ, आउ करेता के खिड़की से एगो गुलाबी चेहरा बहरसी हुलकऽ हइ । कइएक करेता ई रोड से गुजर चुकले ह, लेकिन ऊ अभी तक नयँ । किला के पीछू वला उपनगर (suburb) घना अबादी वला हो चुकले ह । हमर निवास स्थल से कुछ डेग पर, पहाड़ी पर बनावल रेस्तोराँ में, पोप्लर वृक्ष के दू कतार के बीच, शाम में रोशनी कौंधे लगऽ हइ । शोरगुल आउ गिलास के खनखनाहट देर रात तक सुनाय दे हइ ।
आउ कहूँ ओतना जादे कख़ेतिन शराब आउ खनिजयुक्त जल नयँ पीयल जा हइ, जेतना कि हियाँ ।
लेकिन ई दुन्नु धंधा के मिश्रित करे वला
हइ हजारो स्वयंसेवक - हम ओकन्हीं में से नयँ । [2]
ग्रुशनित्स्की अपन गिरोह के साथ कलाली में रोज दिन हंगामा करऽ हइ आउ हमरा साथ राम-सलाम लगभग नयँ होवऽ हइ ।
ऊ कल्हिंएँ अइले हल, आउ तीन वृद्ध जन से लड़ाय-झगड़ा कर चुकले ह, जेकन्हीं ओकरा अपेक्षा पहिेले स्नानगृह में बैठे लगी चाहऽ हलथिन - निश्चय ही विपत्ति ओकरा में लड़ाकू मनोदशा विकसित करऽ हइ ।


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