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Sunday, March 15, 2009

10. स्मृति तर्पण

स्मृति तर्पण

[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]

लेखक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (जन्मः 1-10-1935)

मगही भासा आन्दोलन के पुरोधा डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के देन के आकलन मोसकिल काम हे । श्रीकान्त जी के बिना मगही के आउ मगही के बिना श्रीकान्त जी के अहसासो हमरा ला ओतने मोसकिल हे । हमरा जइसन हिन्दीवाला के मगही लेखन-आन्दोलन से जोड़े के अजगुत काम बस ओही कर सकलन हल, ओही कइलन ।

सन् 1955 के सितम्बर के कोई बरसाती दिन हल जब झमाझम बरसा में भींगत-भांगइत तीन मुरती हमर आशानगर (बिहारशरीफ) के घर में परगट होलन । मित्र रवीन्द्र कुमार बतउलन, एही डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री हथ आउ ऊ ठाकुर रामबालक सिंह । नालन्दा चले के हे । शास्त्री जी के कहनाम होल, मगही के दिशा-बोध आउ स्वर-बोध ला पटना से एगो मगही मासिक निकालम । समय के तकाजा हे । प्रधान सम्पादक बने ला भिक्षु जगदीश काश्यप जी के राजी करना हे । ऊ तोरा मानऽ हथू - मगही ला ई काम तोरा करे पड़तो । नालन्दा पहुँच के हम काश्यप जी से सबके मिला देली । बाकि शास्त्री जी के प्रस्ताव सुन के काश्यप जी नहकार देलन । "जवाहरलाल (भूतपूर्व प्रधान मंत्री) त्रिपिटक के छपावे के काम में लगा देलन हे । फुरसत न हे । सम्पादक छपल-छपाल अंक देखे, ई ठीक न हे । डॉ॰ शास्त्री निम्मन तरी से सम्पादन कर सकऽ हथ ।"

हमरा बोलना अब जरूरी पड़ गेल । कहली, अपने 'मगध संघ' के निर्देशक हथी । ई 'मगध संघ' के पत्रिका हे । एकरो निर्देशक अपने रहथी । निर्देशक के काम निर्देश देना भर हे, पालन करना तो हमनी के काम हे । मोहक मुसकान के साथ काश्यप जी 'मगही' ला पहला चन्दा शास्त्री जी के सौंप देलन । निर्देशक के रूप में भिक्षु जगदीश काश्यप के नाम ऊपर छपैत रहल ।

तय होल कि मासिक 'मगही' 'बिहार मगही मंडल' के तत्त्वावधान में 'मगध संघ' से प्रकाशित होत । एहू छपैत रहल । ठाकुर रामबालक सिंह हमरा से कहलन, सलाहकार मंडल में रवीन्द्र कुमार के नाम देवे ला चाहऽ ही । उनकर कहनाम हे, प्रियदर्शी के रक्खऽ । हम कहली - वाहे गुरु, जे एको लाइन मगही न लिखलक हे, ओकर नाम छापेवाला ई कइसन पत्रिका निकालबऽ । हमनी छात्र ही, हमरा छतरी न बनाबऽ । 'मगध संघ' के अध्यक्ष प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद के नाम छाप दऽ । शास्त्री जी बोललन, ऊ हिन्दीवाला हथ - मंजूर करतन ? हम बोलली - हमहूँ हिन्दीवाला ही । उनका तरफ से 'हाँ' कहे के हकदार मान के नाम छाप दऽ । एहू नाम बराबर छपैत रहल ।

मगही लेखन में निखार आउ साहित्यिक विधा के पहचान उकेरेवाला पत्र बन के 'मगही' महिन्ने-महिन्ने छपे लगल । प्रवेशांक में छपे लायक काफी मैटर (सामग्री) हम बटोर के देली (अप्पन कुछ नञ्) । प्रवेशांक के सम्पादकीय में शास्त्री जी हमरा बहुत अहसान जतयलन । मित्र रवीन्द्र कुमार आउ महेश्वर तिवारी के साथ मिल के हम नालन्दा कॉलेज आउ नालन्दा पालि प्रतिष्ठान, नालन्दा के बहुत्ते आचार्य आउ छात्र सब के ग्राहक बना लेली । हमरा हीं शास्त्री जी के आवा-जाही बढ़े लगल । हमरा कन्वर्ट करना जइसे उनकर जरूरत बन गेल । कहलन, छोड़े के बात कहाँ हे, हम तो जोड़े कहऽ ही । हिन्दी के दिमाग में रक्खऽ, मगही के दिल में रख लऽ । अधरतिया में उचटल नींद में कोय लोकधुन, मगही लोकगीत के कोय लाइन सुनाय में आवऽ हो त सब कविताई झूठा लगे लगऽ हो न ! मगही मन के ऊ गहराई में बसल हो, ओकरा झुठलावऽ नञ् ।

1957 में शास्त्री जी एकंगरसराय में पहिला मगही महासम्मेलन बोलइलन । बिहार के शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा उद्घाटन आउ भिक्षु जगदीश काश्यप ओकर अध्यक्षता कइलन । पूरा मगही समाज इकट्ठा हो गेल । मगही पर पहला शोध लेख के रूप में, जेकर उल्लेख सब जगह मिले हे, ऊ अवसर पर प्रकाशित भेल । लेखक प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री खुलल अधिवेशन में एकर पाठ कइलन । जनपद आन्दोलन के रूप में मगही के विकास ला सब मगही संस्था के दू-दू प्रतिनिधि ले के केन्द्र गठन के हम्मर प्रस्ताव खुला अधिवेशन में पास हो गेल । प्रस्ताव रख के जब हम बैठ रहली हल तो रुद्र-वाणी सुनाय पड़ल, 'हमनी सब जे जोड़ रहली हल, तूँ ओकरा ढाह के बैठ गेलऽ' । मतलब 'बिहार मगही मंडल' के केन्द्रीय संगठन न मान के हम केन्द्र गठन के नया प्रस्ताव रख देली हल ।

ई अधिवेशन के अवसर पर जब हम एकंगरसराय पहुँचली तो मित्र मंडली से हमरा फरका के शास्त्री जी मिठाई के दोकान में ले गेलन । नाश्ता-पानी करा के पुछलन, काम हो गेलई ? (हमर रचना के बारे में) हम अपन टटका गीत उठाके हाँथ में धर देली - 'कहमा पिया केर गाँव हे ?' पढ़ के खुश हो गेलन । रात कवि सम्मेलन में हम पहले पहल मगही गीत सुनउली जे 'मगही' के अधिवेशन अंक में छपल । हलाँकि छापे ला ऊ गीत हम उनका नञ् देली हल ।

मगही लेखन-आन्दोलन से हमरा जोड़े के कोरसिस शास्त्री जी लगातार करइत रहलन । एकंगरसराय उत्सव के हमर बड़गर उपलब्धि हल महमादाय रामनरेश पाठक से परिचय । उनकर आग्रह भी हमरा मगही दने खींचे लगल । ऊ दुनों के सलाह होल कि बिहारशरीफ में दोसर मगही महासम्मेलन हमरा बोलाना चाही । मगध संघ के चौदहवाँ अधिवेशन पर 5 अप्रैल 1964 के दिन दोसर मगही महासम्मेलन सम्पन्न होल । अधिवेशन के अध्यक्षता डॉ॰ बी॰पी॰ सिन्हा कइलन । पूरा मगही समाज जुटल । डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ, डॉ॰ राजाराम रस्तोगी, डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ श्यामनन्दन शास्त्री, रामगोपाल 'रुद्र', रामनरेश पाठक, गोवर्धन प्रसाद सदय, रामसिंहासन विद्यार्थी, गोपी बल्लभ सहाय, राम निरंजन, परिमलेन्दु, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', सत्यदेव शांतिप्रिय आदि के अलावे अतिथि साहित्तकार ब्रजकिशोर नारायण आउ आचार्य महेन्द्र शास्त्री भी भाग लेलन । मगही के डी॰लिट्॰ प्राप्ति पर मगही जगत के तरफ से डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी जी के सार्वजनिक सम्मान कइल गेल । मगही के विकास ला हमर पाँच सूत्री प्रस्ताव स्वीकार कइल गेल । प्रस्ताव हल -

1. मगही के अकादमिक संस्था 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना

2. मगही के पाठ्यक्रम आउ साहित्य अकादमी में स्थान

3. मगध क्षेत्र में स्थापित सब मगही संगठन के प्रतिनिधि ले के केन्द्रीय मगही संगठन के स्थापना

4. मगही में फिल्म निर्माण

5. आकाशवाणी से मगही में नियमित प्रसारण

डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के खुशी के ठेकाना नञ् हल । प्रस्ताव के कार्यान्वयन ला कमर कस के उतर गेलन ।

मगही में फिल्म निर्माण के प्रस्ताव के पूर्ति ला हम 1963 में पहल कइली । फिल्मकार गिरीश रंजन के साथ 'मगध फिल्म्स' के स्थापना कइली । ई यूनिट द्वारा 1964 से आर॰डी॰ बंसल प्रोडक्शन, कलकत्ता द्वारा मगही फिल्म 'मोरे मन मितवा' के निर्माण होल । मगही में दुइए फिल्म बन सकल हे । 'मोरे मन मितवा' के लेखक-निर्देशक गिरीश रंजन, गीतकार हम (हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी) आउ सहयोगी संगीतकार-गीतकार 'लल्लन' हलन । हमर लिखल, दत्ताराम द्वारा संगीतबद्ध तथा मुहम्मद रफी आउ आशा भोंसले द्वारा गायल 'कुसुम रंग लहँगा मँगा दे पियवा' मुकेश-सुमन कल्याणपुर के गावल 'मोरे मन मितवा, सुना दे ऊ गितवा' तथा मुबारक बेगम के गजल 'मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा' काफी लोकप्रिय होल ।

शास्त्री जी के प्रयास आउ शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा, डॉ॰ वी॰पी॰ सिन्हा, डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ के सहयोग से बुद्ध पूर्णिमा 1964 के दिन 'मगध शोध संस्थान' के उद्घाटन इतिहासवेत्ता डॉ॰ के॰के॰ दत्त कइलन । संस्था के विकास के गति अवरुद्ध देख के शास्त्री जी के बेचैनी आउ चहलकदमी बढ़े लगल । उनकर इच्छानुसार संस्थान के पुनर्गठन ला सिद्धेश्वर प्रसाद, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के नाम से एगो परिपत्र जारी होल । 1967 में संस्थान के पुनर्गठन ला नालन्दा में मगही के विद्वान सब के इकट्ठा कइल गेल । भिक्षु जगदीश काश्यप के अध्यक्षता में सम्पन्न समारोह में पुनर्गठन के प्रस्ताव साकार कइल गेल आउ संचालन समिति बनल । पदाधिकारी मंडल में अध्यक्ष भिक्षु जगदीश काश्यप, उपाध्यक्ष प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद आउ डॉ॰ वी॰पी॰ सिन्हा, मंत्री डॉ॰ सरयू प्रसाद, सहमंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी तथा निदेशक डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री बनलन ।

2-3 मार्च 1968 के दिन सुरेन्द्र प्रसाद तरुण के सौजन्य से राजगीर में संस्थान के पहला अधिवेशन समारोह सम्पन्न होल । मगही के नामचीन विद्वान सब उपस्थित हलन । अतिथि रूप में भुवनेश्वर मिश्र माधव आउ पं॰ रामदयाल पांडेय के आगमन होल । मगही के विकास यात्रा के पड़ाव पर गम्भीर शोधकार्य के उपयुक्त वातावरण बन गेल । संस्थान के मुख पत्रिका 'शोध' के प्रकाशन होल । सरकार के भाषा सर्वेक्षण के काम से आउ देश-विदेश के लोकभाषा विषयक सभे मंच से संस्थान जुड़ गेल । शास्त्री जी भर बउसाह जोर लगा के संस्थान के खड़ा कर देलन । बाकि उनकर ई उत्साह आउ ई ताकत बहुत दिन न चल सकऽ हल । संस्थान के पैड के जंपिंग पैड के रूप में उपयोग होवे लगल । शास्त्री जी के अन्त एगो हारल-टूटल अमदी के अन्त हल । एगो विपट स्वप्न के समाधि । ई प्रसंग जब-जब कौंधऽ हे, मन के कचोटे लगऽ हे ।

शास्त्री जी के अवसान 29 जुलाई 1973 के दिन होल । हमरा खबर देर से मिलल । नालन्दा जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन आउ साथ-साथ नालन्दा के पहिल जिलाधिकारी श्री विन्ध्यनाथ झा महोदय भी अप्पन शोक-श्रद्धांजलि अर्पित कइलन ।

डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ ठाकुर रामबालक सिंह द्वारा 1955-58 में सम्पादित प्रकाशित मासिक 'मगही' के सिलसिला आगे बढ़ावे के ठाकुर रामबालक सिंह के आग्रह से साहस पाके हम 1986 में मगध संघ के तिमाही पत्रिका 'मगही' के सम्पादन-प्रकाशन कइली । पहला अंक शास्त्री जी पर केन्द्रित कर के अप्पन अपराध-बोध कम करे के कोरसिस कइली । कवर पर शास्त्री जी के फोटो के तलाश उनकर अप्पन लोग से पूरा न होल त योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश' के पास दू बार विक्रम जाके फोटू मिलल । किन्तु डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री भक्ति आउ साहित्यकार के मूल्यांकन छापली, व्यक्ति के मूल्यांकन ठाकुर रामबालक सिंह के आउ साहित्यकार के योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश' के ।

बिहार मगही अकादमी, पटना द्वारा पाठ्यग्रन्थ 'इंटरमीडिएट मगही गद्य-पद्य संग्रह' (मातृभाषा) के सम्पादक नियुक्त हो के हम शास्त्री जी के याद करली कि हमरा मगही से जोड़े के उनकर आग्रह के साथ इन्साफ करे ला दोसर लोकभाषा के पाठ्यग्रन्थ के मुकाबले अच्छा ग्रन्थ निकालना जरूरी हे । परिणाम सामने हे । ई पाठ्यग्रन्थ में हम डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री जी के कृष्णदेव प्रसाद से भेंट छापली हे । मगही के ई दू महानायक के इकट्ठा करे वाला ई आलेख मगही इतिहास के बड़गो 'स्कूप' हे । हम एकरा स्कूप काहे कह रहली हे, एकरा समझे ला शास्त्री जी द्वारा एकंगरसराय से सम्पादित प्रकाशित पहिल पत्रिका 'मागधी' के अंक देखे के जरूरत हे । फिनु, मगही के विविध विधा के मानक रचना के अप्पन संकलन 'मागधी विधा विविधा' में कृष्णदेव प्रसाद के 'खर बात खरदूलह के' आउ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के 'बर, बुढ़वा वर' के एक साथ छाप के सन्तोष के अनुभव होल ।

'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास', जे पं॰ राहुल सांकृत्यायन के सम्पादन में निकलल, के लोकभाषा खंड में ऊ गीत के उद्धरण देल गेल हे जेकरा में हम हिन्दी के छे प्रतिष्ठ कवि, जे मगही के अगला पाँत के कवि हथ, के रूप में मउजूद ही ।

हम देखऽ ही आउ शास्त्री जी के याद करऽ ही । बाद में मगही में अब तक बनल दू फिल्म में से एक 'मोरे मन मितवा' लगी दिसम्बर 1964 में बम्बई में हम मुहम्मद रफी, मुकेश, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर आउ मन्ना डे से अपन मगही गीत के रेकार्डिंग करा रहली हल, फिनु जब सूर्या मैग्नेटिक्स, पटना से मगही के पहिला कैसेट जारी करैली, जेकर दसो गीत हम्मर हे त शास्त्री जी के याद करे बिन नञ् रह सकली, जिनकर प्रेरणा से हम मगही में अयली हल ।

हम गवाह ही कि मगही पर श्रीकान्त शास्त्री के अनुराग अथाह हल आउ ओकर विकास ला उनकर उद्योग अपार । विकास के नींव में उनकर पुण्य बल हे । उनकर अनुयायी आउ सहयोगी लोग के बल पर मगही आगे बढ़ल हे । मगही के कामे श्रीकान्त शास्त्री के प्रति सही श्रद्धांजलि हे ।

['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, पृ॰ 16-18; सम्पादकः धनंजय श्रोत्रिय]

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