मगही के सशक्त कथाकार रवीन्द्र कुमार (12 नवम्बर 1933 - 21 मई 2006)
लेखक - अरुण कुमार सिन्हा (जन्मः 17-1-1935)
रवीन्द्र कुमार के हमरा से जान-पहचान इया रिश्ता ७ मई १९५२ से होयल हल, जब हम्मर बिआह उनकर मंझिला चचा कृष्ण सहाय सिन्हा के बड़ बेटी प्रेमलता के साथे ठीक हो चुकल हल आउ ऊ दिन ऊ तिलक के रस्म अदायगी करे ला हम्मर अप्पन साला ज्योतिन्द्र जी, पुरोहित जी आउ नउआ के संघे हमरा हीं अयलन हल । रवीन्द्र जी, ज्योतिन्द्र जी आउ हम तीनो हमउमरिये हली, एही से रिश्तेदारी के अलावे दोस्ती के सम्बन्ध भी हमनी के बीच गाढ़ा होइत गेल ।
बिहारशरीफ के भैंसासुर महल्ला के निवासी रवीन्द्र जी के बाबू जी चतुर्भुज सहाय मोख्तार हलथिन । उनकर पहिला बिआह ओंदा गाँव में होलइन हल । ओंदा वाली मेहरारू से उनका एगो बेटी बच्ची होलइन हल । कुच्छे साल बाद ओंदा वाली उनका छोड़के दुनिया से चल गेलन । उनका मरला के बाद चतुर्भुज सहाय दोसर बिआह नोम्मा गाँव में कैलन, जिनका से दूगो बेटा होलथिन । ओकरे में से एगो बेटा हलथिन मगही के सशक्त कथाकार रवीन्द्र कुमार आउ ओही नोम्मा गाँव हे उनकर ननिहाल, जेकरा बारे में ऊ अप्पन कहानी 'कोनमा आम' में जिकिर कैलन हे ।
कथाकार रवीन्द्र कुमार के जलम १२ नवम्बर १९३३ ई॰ के होयल हल । ऊ छोटगरे से जिनगी आउ मउअत के खेल बड़ी नजदीक से देखलन हल । ऊ छोटे गो हलन कि उनकर माय, भाई आउ बच्ची दीदी के मउअत हो गेल । बाबू कचहरी चल जा हलन, तब मंझला बाबू कृष्ण सहाय चम्मच से उनका गाय के दूध पिलावऽ हलथिन ।
जवान होला पर ऊ पटना के लोहानीपुर महल्ला में अप्पन मंझला बाबू जौरे रहऽ हलन । खाना-पीना तो सब के जौरहीं होवऽ हलइ, बाकि रवीन्द्र जी अप्पन पाकिट खरचा उनका से न मांग के दू-तीन जगह लइकन के टिउसन पढ़ावऽ हलन ।
रवीन्द्र जी के मंझला बाबू के टी॰के॰घोष एकेडेमी के हेडमास्टर से जान-पहचान हलइन । एही से उनका कहला पर आई॰एस-सी॰ कैला के बाद ओही इस्कूल में ऊ साइंस टीचर हो गेलन । बाद में ऊ अप्पन घरे बिहारशरीफ में आ गेलन आउ उहें पहाड़ीपर के इस्कूल में पढ़ावे लगलन । अइसे हलन तो ऊ साइंस के शिक्षक, बाकि इहें से उनका साहित्य जगत में आवे के रस्ता खुलल ।
पूर्णिया आउ गया में इस्कूल में मास्टरी करे के साथ-साथ रोज कइएक बैच में टिउसन पढ़ावऽ हलथिन । तइयो साइंस पढ़ावे के बावजूद उनका भासा आउ साहित्य से बहुत लगाव हलइन । भासा के बेवहार में सटीक शब्दन के चुनाव, हाजिर जवाबी आउ पसंदीदा दलील - ई उनकर भीतरी गुन हल । दोसरा में भी अगर ऊ कोई खास गुन पावऽ हलन त खुल के सराहऽ हलन ।
शुरू में रवीन्द्र जी हिन्दी कहानी आउ ऊ भी रूमानी-कथा लिखऽ हलन । सिनेमा के कुछ परभाव भी उनकर रचना पर हो जा हलइ । बाद में ऊ गुलशन नन्दा के उपन्यास पढ़ना छोड़ के अज्ञेय जी के उपन्यास 'शेखरः एक जीवनी' जइसन उपन्यास पढ़े लगलन । महान चिन्तक गुरुदत्त के उपन्यास से भी ऊ काफी परभावित होलन । सच तो ई हे कि रवीन्द्र जी धरती आउ जिनगी के सच से जुड़ गेलन हल ।
सन् १९५५ ई॰ के उत्तरार्द्ध में रवीन्द्र जी जब भिक्खु जगदीश काश्यप आउ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के अनुरोध पर हिन्दी से मगही जगत में प्रवेश कैलन, त उनकर लिखल कहानी देखके राहुल सांकृत्यायन कहलन हल - 'रवीन्द्र जी मगही के प्रेमचन्द हथ ।'
रवीन्द्र जी 'बिहार मगही मंडल' के प्रकाशन में सम्पादक मंडल से जुड़ल रहलन आउ 'मगध संघ' के संस्थापक सचिव आउ बाद में आजीवन उपाध्यक्ष रहलन । उनकर कहानी मगही के विभिन्न पत्रिका 'मगही', 'मगही पत्रिका', 'निरंजना' आउ 'अलका मागधी' में छपते रहल । आकाशवाणी, पटना के 'मागधी' कार्यक्रम में उनकर कइएक कहानी के प्रसारण होयल । 'इंटरमीडियट गद्य-पद्य संग्रह' (मातृभासा)' आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी द्वारा सम्पादित संग्रह 'मागधी विधा-विविधा' में भी रवीन्द्र जी के रचना देखल जा सकऽ हे । एकरा अलावे अब तो इनकर मगही कहानी संकलन 'अजब रंग बोले' सन् २००० ई॰ में प्रकाशित हो गेल हे । एकरा में १६ गो स्तरीय कहानी संकलित हे, जे मगही भासा के गौरव बढ़ावऽ हे ।
कवि राम नरेश पाठक के ऊ बड़ भाई मानऽ हलन आउ उनकर लिखल दूगो गीत 'कारी-कारी चुनरिया पसर गेलइ राम' आउ 'उतरल अगहन के भोर इ भइया' के हरमेशा गुनगुनयते रहऽ हलन । केकरो गुन के तारीफ करे के माद्दा उनका में हल । राम नरेश पाठक आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के नजर में रवीन्द्र जी एगो महान कहानीकार हलन ।
एगो छायावादी कवि कह गेलन हे -
वियोगी होगा पहल कवि, आह से उपजा होगा गान ।
उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान ।।
रवीन्द्र जी कवि तो न हलन, बाकि जीवन भर अपार दुख झेलइत उनकर गिरे वला आँसू के परभाव उनकर कहानी पर भी गहरा असर छोड़लक हे । दरअसल ऊ शुरुए से भावुक हिरदय के बेकती हलन ।
उर्दू में एगो शेर हे -
इशरते कतरा है दरिया में फना हो जाना ।
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना ।।
रवीन्द्र जी अप्पन जिनगी में जेतना दर्द आउ पीड़ा सहलन हल, से उनकर बातचीत आउ रचना में साफ नजर आवऽ हे । अकसर ऊ तलत महमूद के गावल एगो पुरान गीत गुनगुनइते रहऽ हलन -
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया,
ढूँढ़ ले अब कोई घर नया ।
गया के अभिशप्त मकान खरीदला के बाद उनकर तेज-तर्रार डगडरी पढ़इत छोटका बेटा संजय एगो दुर्घटना में इनका छोड़ देलक । फिर इंजीनियर बनल मंझिला बेटा अजय अप्पन सउँसे परिवार के भार इनके पर छोड़ के कैंसर के शिकार हो गेल । ई दुन्नो मौत रवीन्द्र जी के जिनगी के झकझोर के रख देलक ।
आखिर में १९५७ ई॰ से ही जीवन भर साथ देवे ओली संगिनी सरोज (कमल) देवी रवीन्द्र (सुरुज) के रहते चल बसल । एतना दुख इनकर दिल बरदास्त न कर सकल । परिणाम भेल 'दिल के रोग' आउ जिनगी के खोखला करे वला 'डायबिटीज' । बीतल दुख के भुलावे ला ऊ सिगरेट पीये लगलन आउ 'चेन स्मोकर' हो गेलन । मर्ज बढ़ते गेल आउ २१ मई २००६ ई॰ के ऊ हरमेशा ला आँख मूँद लेलन । अपना पीछे रवीन्द्र जी बड़ बेटा प्रो॰ विजय के अलावे बड़हन परिवार छोड़ गेलन हे ।
जइसन कि हम शुरुए में बता चुकली हे कि रवीन्द्र जी के हमरा से बड़ी लगाव हलइन । हम्मर एगो कविता ऊ एकंगरसराय के अधिवेशन में ठुमरी में गा के तहलका मचा देलन हल । फिर पटना में हम्मर कविता संग्रह 'बाँसुरी बजते रहल' के लोकार्पण के अवसर पर संग्रह के कविता 'गुजरइत नैं रात जहाँ बूझऽ गुजरात हे' पढ़ के सुनैलन हल ।
आज कथाकार रवीन्द्र कुमार हमनी के बीच नैं हथ, तइयो उनका साथे गुजारल पल रह-रह के इयाद आवऽ हे । ऊ एगो हिन्दी फिल्मी गीत आउ ओकरा अंगरेजी में अनुवाद करके सुनावऽ हलन, त बड़ी अच्छा लगऽ हल -
एक दिल के टुकड़े हजार हुए,
कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा ।
अंगरेजी अनुवाद -
वन हर्ट्स् सेवरल पिसेज़ बिकेम,
सम हिदर फ़ॉलेन सम दिदर फ़ॉलेन ।
['अलका मागधी', बरिस-१२, अंक-११, नवम्बर २००६, पृ॰ १३-१४, से साभार]
लेखक - अरुण कुमार सिन्हा (जन्मः 17-1-1935)
रवीन्द्र कुमार के हमरा से जान-पहचान इया रिश्ता ७ मई १९५२ से होयल हल, जब हम्मर बिआह उनकर मंझिला चचा कृष्ण सहाय सिन्हा के बड़ बेटी प्रेमलता के साथे ठीक हो चुकल हल आउ ऊ दिन ऊ तिलक के रस्म अदायगी करे ला हम्मर अप्पन साला ज्योतिन्द्र जी, पुरोहित जी आउ नउआ के संघे हमरा हीं अयलन हल । रवीन्द्र जी, ज्योतिन्द्र जी आउ हम तीनो हमउमरिये हली, एही से रिश्तेदारी के अलावे दोस्ती के सम्बन्ध भी हमनी के बीच गाढ़ा होइत गेल ।
बिहारशरीफ के भैंसासुर महल्ला के निवासी रवीन्द्र जी के बाबू जी चतुर्भुज सहाय मोख्तार हलथिन । उनकर पहिला बिआह ओंदा गाँव में होलइन हल । ओंदा वाली मेहरारू से उनका एगो बेटी बच्ची होलइन हल । कुच्छे साल बाद ओंदा वाली उनका छोड़के दुनिया से चल गेलन । उनका मरला के बाद चतुर्भुज सहाय दोसर बिआह नोम्मा गाँव में कैलन, जिनका से दूगो बेटा होलथिन । ओकरे में से एगो बेटा हलथिन मगही के सशक्त कथाकार रवीन्द्र कुमार आउ ओही नोम्मा गाँव हे उनकर ननिहाल, जेकरा बारे में ऊ अप्पन कहानी 'कोनमा आम' में जिकिर कैलन हे ।
कथाकार रवीन्द्र कुमार के जलम १२ नवम्बर १९३३ ई॰ के होयल हल । ऊ छोटगरे से जिनगी आउ मउअत के खेल बड़ी नजदीक से देखलन हल । ऊ छोटे गो हलन कि उनकर माय, भाई आउ बच्ची दीदी के मउअत हो गेल । बाबू कचहरी चल जा हलन, तब मंझला बाबू कृष्ण सहाय चम्मच से उनका गाय के दूध पिलावऽ हलथिन ।
जवान होला पर ऊ पटना के लोहानीपुर महल्ला में अप्पन मंझला बाबू जौरे रहऽ हलन । खाना-पीना तो सब के जौरहीं होवऽ हलइ, बाकि रवीन्द्र जी अप्पन पाकिट खरचा उनका से न मांग के दू-तीन जगह लइकन के टिउसन पढ़ावऽ हलन ।
रवीन्द्र जी के मंझला बाबू के टी॰के॰घोष एकेडेमी के हेडमास्टर से जान-पहचान हलइन । एही से उनका कहला पर आई॰एस-सी॰ कैला के बाद ओही इस्कूल में ऊ साइंस टीचर हो गेलन । बाद में ऊ अप्पन घरे बिहारशरीफ में आ गेलन आउ उहें पहाड़ीपर के इस्कूल में पढ़ावे लगलन । अइसे हलन तो ऊ साइंस के शिक्षक, बाकि इहें से उनका साहित्य जगत में आवे के रस्ता खुलल ।
पूर्णिया आउ गया में इस्कूल में मास्टरी करे के साथ-साथ रोज कइएक बैच में टिउसन पढ़ावऽ हलथिन । तइयो साइंस पढ़ावे के बावजूद उनका भासा आउ साहित्य से बहुत लगाव हलइन । भासा के बेवहार में सटीक शब्दन के चुनाव, हाजिर जवाबी आउ पसंदीदा दलील - ई उनकर भीतरी गुन हल । दोसरा में भी अगर ऊ कोई खास गुन पावऽ हलन त खुल के सराहऽ हलन ।
शुरू में रवीन्द्र जी हिन्दी कहानी आउ ऊ भी रूमानी-कथा लिखऽ हलन । सिनेमा के कुछ परभाव भी उनकर रचना पर हो जा हलइ । बाद में ऊ गुलशन नन्दा के उपन्यास पढ़ना छोड़ के अज्ञेय जी के उपन्यास 'शेखरः एक जीवनी' जइसन उपन्यास पढ़े लगलन । महान चिन्तक गुरुदत्त के उपन्यास से भी ऊ काफी परभावित होलन । सच तो ई हे कि रवीन्द्र जी धरती आउ जिनगी के सच से जुड़ गेलन हल ।
सन् १९५५ ई॰ के उत्तरार्द्ध में रवीन्द्र जी जब भिक्खु जगदीश काश्यप आउ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के अनुरोध पर हिन्दी से मगही जगत में प्रवेश कैलन, त उनकर लिखल कहानी देखके राहुल सांकृत्यायन कहलन हल - 'रवीन्द्र जी मगही के प्रेमचन्द हथ ।'
रवीन्द्र जी 'बिहार मगही मंडल' के प्रकाशन में सम्पादक मंडल से जुड़ल रहलन आउ 'मगध संघ' के संस्थापक सचिव आउ बाद में आजीवन उपाध्यक्ष रहलन । उनकर कहानी मगही के विभिन्न पत्रिका 'मगही', 'मगही पत्रिका', 'निरंजना' आउ 'अलका मागधी' में छपते रहल । आकाशवाणी, पटना के 'मागधी' कार्यक्रम में उनकर कइएक कहानी के प्रसारण होयल । 'इंटरमीडियट गद्य-पद्य संग्रह' (मातृभासा)' आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी द्वारा सम्पादित संग्रह 'मागधी विधा-विविधा' में भी रवीन्द्र जी के रचना देखल जा सकऽ हे । एकरा अलावे अब तो इनकर मगही कहानी संकलन 'अजब रंग बोले' सन् २००० ई॰ में प्रकाशित हो गेल हे । एकरा में १६ गो स्तरीय कहानी संकलित हे, जे मगही भासा के गौरव बढ़ावऽ हे ।
कवि राम नरेश पाठक के ऊ बड़ भाई मानऽ हलन आउ उनकर लिखल दूगो गीत 'कारी-कारी चुनरिया पसर गेलइ राम' आउ 'उतरल अगहन के भोर इ भइया' के हरमेशा गुनगुनयते रहऽ हलन । केकरो गुन के तारीफ करे के माद्दा उनका में हल । राम नरेश पाठक आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के नजर में रवीन्द्र जी एगो महान कहानीकार हलन ।
एगो छायावादी कवि कह गेलन हे -
वियोगी होगा पहल कवि, आह से उपजा होगा गान ।
उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान ।।
रवीन्द्र जी कवि तो न हलन, बाकि जीवन भर अपार दुख झेलइत उनकर गिरे वला आँसू के परभाव उनकर कहानी पर भी गहरा असर छोड़लक हे । दरअसल ऊ शुरुए से भावुक हिरदय के बेकती हलन ।
उर्दू में एगो शेर हे -
इशरते कतरा है दरिया में फना हो जाना ।
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना ।।
रवीन्द्र जी अप्पन जिनगी में जेतना दर्द आउ पीड़ा सहलन हल, से उनकर बातचीत आउ रचना में साफ नजर आवऽ हे । अकसर ऊ तलत महमूद के गावल एगो पुरान गीत गुनगुनइते रहऽ हलन -
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया,
ढूँढ़ ले अब कोई घर नया ।
गया के अभिशप्त मकान खरीदला के बाद उनकर तेज-तर्रार डगडरी पढ़इत छोटका बेटा संजय एगो दुर्घटना में इनका छोड़ देलक । फिर इंजीनियर बनल मंझिला बेटा अजय अप्पन सउँसे परिवार के भार इनके पर छोड़ के कैंसर के शिकार हो गेल । ई दुन्नो मौत रवीन्द्र जी के जिनगी के झकझोर के रख देलक ।
आखिर में १९५७ ई॰ से ही जीवन भर साथ देवे ओली संगिनी सरोज (कमल) देवी रवीन्द्र (सुरुज) के रहते चल बसल । एतना दुख इनकर दिल बरदास्त न कर सकल । परिणाम भेल 'दिल के रोग' आउ जिनगी के खोखला करे वला 'डायबिटीज' । बीतल दुख के भुलावे ला ऊ सिगरेट पीये लगलन आउ 'चेन स्मोकर' हो गेलन । मर्ज बढ़ते गेल आउ २१ मई २००६ ई॰ के ऊ हरमेशा ला आँख मूँद लेलन । अपना पीछे रवीन्द्र जी बड़ बेटा प्रो॰ विजय के अलावे बड़हन परिवार छोड़ गेलन हे ।
जइसन कि हम शुरुए में बता चुकली हे कि रवीन्द्र जी के हमरा से बड़ी लगाव हलइन । हम्मर एगो कविता ऊ एकंगरसराय के अधिवेशन में ठुमरी में गा के तहलका मचा देलन हल । फिर पटना में हम्मर कविता संग्रह 'बाँसुरी बजते रहल' के लोकार्पण के अवसर पर संग्रह के कविता 'गुजरइत नैं रात जहाँ बूझऽ गुजरात हे' पढ़ के सुनैलन हल ।
आज कथाकार रवीन्द्र कुमार हमनी के बीच नैं हथ, तइयो उनका साथे गुजारल पल रह-रह के इयाद आवऽ हे । ऊ एगो हिन्दी फिल्मी गीत आउ ओकरा अंगरेजी में अनुवाद करके सुनावऽ हलन, त बड़ी अच्छा लगऽ हल -
एक दिल के टुकड़े हजार हुए,
कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा ।
अंगरेजी अनुवाद -
वन हर्ट्स् सेवरल पिसेज़ बिकेम,
सम हिदर फ़ॉलेन सम दिदर फ़ॉलेन ।
['अलका मागधी', बरिस-१२, अंक-११, नवम्बर २००६, पृ॰ १३-१४, से साभार]
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