मगध संघ
लेखक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (जन्मः 1-10-1935)
मगध के साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक तथा मगध के लोकभासा, साहित्य, संस्कृति आउ कला के संरक्षण, संवर्द्धन, अनुशीलन आउ परकासन के उद्देश्य से हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, अंजनी कुमार वर्मा आउ उमेश कुमार सिन्हा २३ नवम्बर १९५० ई॰ में बिहारशरीफ में 'मगध संघ' के स्थापना कइलन हल । युवा लिखताहर के गोष्ठी से बढ़ के संघ धीरे-धीरे बिहार अनुमंडल के प्रतिनिधि साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था बनल आउ नालन्दा जिला के गतिशील मगही-मंच तथा सबसे पुरान मगही-सेवी संस्था के रूप में अपन पहिचान बना चुकल हे ।
संस्थापना के बाद पूज्यवर भदन्त भिक्षु जगदीश काश्यप जी से संघ के निर्देशक बने ला अनुरोध कइल गेल । निर्देशन में ऊ दैनंदिन बेवहार में मगही के परयोग आउ मगध के आउ सब केन्द्र में संगठन के परसार पर जोर देलन । संघ के प्रस्ताव पर पटना, राजगीर आउ नालन्दा में गठन कइल गेल, जेकरा में श्री सुरेन्द्र प्रसाद तरुण के परयास से १९५१ में स्थापित 'मगध सांस्कृतिक संघ', राजगीर बहुत्ते काम कर चुकल हे । टोकियो के दोसर विश्वबौद्ध सम्मेलन से वापसी पर २ नवम्बर १९५२ के दिन श्री बिहार हिन्दी पुस्तकालय, बिहारशरीफ में काश्यप जी के सम्मान में संघ के तरफ से बड़का आयोजन कइल गेल । ई अउसर पर संघ के तीसर अधिवेशन के अध्यक्ष पद से काश्यप जी मगही के अपनावे ला जनता से अहवान कइलन ।
१९५२ में पटना में 'बिहार मगही मंडल' के स्थापना के बाद डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ श्री ठाकुर रामबालक सिंह मंडल आउ संघ के बीच सहजोग आउ बिहार मगही मंडल के तत्त्वावधान में मगध संघ से मगही मासिक 'मगही' के परकासन के प्रस्ताव रखलन । संघ के परयास से काश्यप जी सम्पादन निर्देशक बने ला स्वीकृति देलन । नवम्बर १९५५ से १९५९ तक 'मगही' के परकासन से मगही के विकास में जे गतिशीलता आयल हल, अब ऊ इतिहास हे ।
संघ के सतमा अधिवेशन डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अध्यक्षता में २९ जनवरी १९५७ में होल । मगही लोक-साहित्य के संरक्षण आउ विकास, चिन्मय सम्पत्ति के रूप में मृण्मय सम्पत्ति से भी बढ़ के करे पर ऊ जोर देलन आउ कहलन कि लोक-साहित्य से अपन संस्कृति के समझे में सहायता मिलत आउ राष्ट्रभाषा के गउरव बढ़त ।
मंडल आउ संघ के सहजोग से डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री एकंगरसराय में ६ अक्टूबर १९५७ के अइतिहासिक पहिला मगही महासम्मेलन के आयोजन कइलन । शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा उद्घाटन आउ भिक्षु जगदीश काश्यप अध्यक्षता कइलन । मगध संघ के तरफ से 'मगही' नामक पुस्तिका के ई अवसर पर परकासन होल, लेखक प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री खुलल अधिवेशन में ओकर पाठ कइलन । मगही पर पहिला परकासित शोध-निबन्ध के रूप में मगही के सब इतिहास में ओकर उल्लेख हे । अधिवेशन में 'जनपद आन्दोलन' के रूप में मगही आन्दोलन के विकास आउ ई ला विभिन्न केन्द्र के संगठन के प्रतिनिधि ले के केन्द्रीय मगही संस्था के गठन के 'मगध संघ' के महामंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के प्रस्ताव, साहित्य मंत्री गिरीश रंजन के समर्थन के साथ सर्वसम्मति से स्वीकार कइल गेल । केन्द्रीय गठन ला संघ के तरफ से २७-२-१९६२ के बिहारशरीफ में प्रतिनिधियन के सभा बुलावल गेल जेकर अध्यक्षता डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री कइलन । परयास सफल न होल ।
संघ के चउदहवाँ अधिवेशन पर ५ अप्रैल १९६४ के दिन बिहारशरीफ में संघ के तरफ से दोसर मगही महासम्मेलन के भव्य आयोजन होल । डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद अधिवेशन के आउ डॉ॰ बी॰पी॰ सिन्हा मगही सम्मेलन के अध्यक्षता कइलन । पूरा मगही समाज जुड़ल । डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ, डॉ॰ राजाराम रस्तोगी, डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, प्रो॰ श्यामनन्दम शास्त्री, रामगोपाल 'रुद्र', रामनरेश पाठक, सदस्य शांतिप्रिय, परिमलेन्दु, गोपी बल्लभ, विद्यार्थी, 'करुणेश' आदि के अतिरिक्त अतिथि रूप में श्री ब्रजकिशोर 'नारायण' आउ आचार्य महेन्द्र शास्त्री भी उपस्थित हलन । मगही में डी॰लिट्॰ प्राप्ति पर डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के सम्मान कइल गेल । विशेष प्रस्ताव में 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना के निश्चय होल । प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के आहवान पर, ई प्रस्ताव के कार्यान्वयन २९ जनवरी १९६७ के दिन होल । नवनालन्दा महाविहार में भिक्षु जगदीश काश्यप के अध्यक्षता में संस्थान के स्थापना होल ।
संघ द्वारा एकर केवल मगही भाषा के उद्भव, विकास आउ स्वरूप पर दू गो विचार गोष्ठी बिहारशरीफ में १९ नवम्बर १९६३ आउ सितम्बर १९६६ में आयोजित कइल गेल जेकर अध्यक्षता क्रमशः डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ भिक्षु जगदीश काश्यप कइलन ।
केन्द्रीय मगही मंच के गठन ला एगो आउ प्रयास ८ अप्रैल १९७९ के दिन कइल गेल । संघ के आहवान पर डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के राजेन्द्र नगर, पटना स्थित निवास-स्थान पर उनकर अध्यक्षता में सम्पन्न बैठकी में श्री रामनरेश पाठक, श्री सतीश कुमार मिश्र (पटना); डॉ॰ रामप्रसाद सिंह, श्री रासबिहारी पांडेय, श्री रामदेव मेहता 'मुकुल' (गया); श्री ठाकुर रामबालक सिंह (राँची); श्री जनकनन्दन सिंह 'जनक' (शेरघाटी); श्री रामविलास 'रजकण' (अतरी); डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (बिहारशरीफ) उपस्थित होलन । मगही संस्था सब के दू-दू प्रतिनिधि ले के 'केन्द्रीय मगही मंच' के गठन करे के सामान्य नीति आउ कार्यक्रम-समन्वय ओकर जिम्मे रक्खे के तथा ओकर स्थायी मुख्यालय पटना में रक्खे के हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के प्रस्ताव स्वीकार कइल गेल । प्रस्ताव के कार्यान्वयन ला संस्था सब के सहमति लगी 'मगध संघ' के प्रयास चल रहल हे ।
आकाशवाणी से मगही के अलग प्रसारण, सरकारी मगही अकादमी के स्थापना, विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में मगही के स्थान आउ केन्द्रीय साहित्य अकादमी में मगही के मान्यता के आन्दोलन में संघ के महत्त्वपूर्ण भूमिका रहल हे । अकादमी के गठन-संचालन में मगही लेखन-आन्दोलन से जुड़ल साहित्यकार-कलाकार के प्रधानता देवे लगी मगध संघ के स्मार-पत्र अध्यक्ष डॉ॰ इसरी बिहार सरकार के देलन । कार्यान्वयन के प्रतीक्षा हे ।
कला के क्षेत्र में कलकत्ता 'यूथ क्वायर' के तरफ से कलकत्ता में १९६९ में आयोजित भारतीय लोक संगीत समारोह में कला-मंत्री 'लल्लन' के अगुअइ में मगध संघ के कलाकार दल के मगही कार्यक्रम कलकत्ता के सब्भे अखबार द्वारा सबसे जादे सराहल गेल । मगही में फिल्म-निर्माण ला संघ के प्रयास से १९६३ में निर्माण-संस्था 'मगध-फिल्म्स्' के स्थापना आउ निबन्धन पटना में होल । ई यूनिट द्वारा १९६४ में आर॰डी॰ बंसल प्रोडक्शन, कलकत्ता के मगही फिल्म 'मोरे मन मितवा' के निर्माण होल, जेकर प्रदर्शन १९६५ में होल । संघ के साहित्य-मंत्री गिरीश रंजन ओकर लेखक-निर्देशक तथा मंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी आउ कला-मंत्री 'लल्लन' ओकर गीतकार हलन ।
लेखक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (जन्मः 1-10-1935)
मगध के साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक तथा मगध के लोकभासा, साहित्य, संस्कृति आउ कला के संरक्षण, संवर्द्धन, अनुशीलन आउ परकासन के उद्देश्य से हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, अंजनी कुमार वर्मा आउ उमेश कुमार सिन्हा २३ नवम्बर १९५० ई॰ में बिहारशरीफ में 'मगध संघ' के स्थापना कइलन हल । युवा लिखताहर के गोष्ठी से बढ़ के संघ धीरे-धीरे बिहार अनुमंडल के प्रतिनिधि साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था बनल आउ नालन्दा जिला के गतिशील मगही-मंच तथा सबसे पुरान मगही-सेवी संस्था के रूप में अपन पहिचान बना चुकल हे ।
संस्थापना के बाद पूज्यवर भदन्त भिक्षु जगदीश काश्यप जी से संघ के निर्देशक बने ला अनुरोध कइल गेल । निर्देशन में ऊ दैनंदिन बेवहार में मगही के परयोग आउ मगध के आउ सब केन्द्र में संगठन के परसार पर जोर देलन । संघ के प्रस्ताव पर पटना, राजगीर आउ नालन्दा में गठन कइल गेल, जेकरा में श्री सुरेन्द्र प्रसाद तरुण के परयास से १९५१ में स्थापित 'मगध सांस्कृतिक संघ', राजगीर बहुत्ते काम कर चुकल हे । टोकियो के दोसर विश्वबौद्ध सम्मेलन से वापसी पर २ नवम्बर १९५२ के दिन श्री बिहार हिन्दी पुस्तकालय, बिहारशरीफ में काश्यप जी के सम्मान में संघ के तरफ से बड़का आयोजन कइल गेल । ई अउसर पर संघ के तीसर अधिवेशन के अध्यक्ष पद से काश्यप जी मगही के अपनावे ला जनता से अहवान कइलन ।
१९५२ में पटना में 'बिहार मगही मंडल' के स्थापना के बाद डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ श्री ठाकुर रामबालक सिंह मंडल आउ संघ के बीच सहजोग आउ बिहार मगही मंडल के तत्त्वावधान में मगध संघ से मगही मासिक 'मगही' के परकासन के प्रस्ताव रखलन । संघ के परयास से काश्यप जी सम्पादन निर्देशक बने ला स्वीकृति देलन । नवम्बर १९५५ से १९५९ तक 'मगही' के परकासन से मगही के विकास में जे गतिशीलता आयल हल, अब ऊ इतिहास हे ।
संघ के सतमा अधिवेशन डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अध्यक्षता में २९ जनवरी १९५७ में होल । मगही लोक-साहित्य के संरक्षण आउ विकास, चिन्मय सम्पत्ति के रूप में मृण्मय सम्पत्ति से भी बढ़ के करे पर ऊ जोर देलन आउ कहलन कि लोक-साहित्य से अपन संस्कृति के समझे में सहायता मिलत आउ राष्ट्रभाषा के गउरव बढ़त ।
मंडल आउ संघ के सहजोग से डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री एकंगरसराय में ६ अक्टूबर १९५७ के अइतिहासिक पहिला मगही महासम्मेलन के आयोजन कइलन । शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा उद्घाटन आउ भिक्षु जगदीश काश्यप अध्यक्षता कइलन । मगध संघ के तरफ से 'मगही' नामक पुस्तिका के ई अवसर पर परकासन होल, लेखक प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री खुलल अधिवेशन में ओकर पाठ कइलन । मगही पर पहिला परकासित शोध-निबन्ध के रूप में मगही के सब इतिहास में ओकर उल्लेख हे । अधिवेशन में 'जनपद आन्दोलन' के रूप में मगही आन्दोलन के विकास आउ ई ला विभिन्न केन्द्र के संगठन के प्रतिनिधि ले के केन्द्रीय मगही संस्था के गठन के 'मगध संघ' के महामंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के प्रस्ताव, साहित्य मंत्री गिरीश रंजन के समर्थन के साथ सर्वसम्मति से स्वीकार कइल गेल । केन्द्रीय गठन ला संघ के तरफ से २७-२-१९६२ के बिहारशरीफ में प्रतिनिधियन के सभा बुलावल गेल जेकर अध्यक्षता डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री कइलन । परयास सफल न होल ।
संघ के चउदहवाँ अधिवेशन पर ५ अप्रैल १९६४ के दिन बिहारशरीफ में संघ के तरफ से दोसर मगही महासम्मेलन के भव्य आयोजन होल । डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद अधिवेशन के आउ डॉ॰ बी॰पी॰ सिन्हा मगही सम्मेलन के अध्यक्षता कइलन । पूरा मगही समाज जुड़ल । डॉ॰ के॰पी॰ अम्बष्ठ, डॉ॰ राजाराम रस्तोगी, डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, प्रो॰ श्यामनन्दम शास्त्री, रामगोपाल 'रुद्र', रामनरेश पाठक, सदस्य शांतिप्रिय, परिमलेन्दु, गोपी बल्लभ, विद्यार्थी, 'करुणेश' आदि के अतिरिक्त अतिथि रूप में श्री ब्रजकिशोर 'नारायण' आउ आचार्य महेन्द्र शास्त्री भी उपस्थित हलन । मगही में डी॰लिट्॰ प्राप्ति पर डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के सम्मान कइल गेल । विशेष प्रस्ताव में 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना के निश्चय होल । प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद, डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री, डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के आहवान पर, ई प्रस्ताव के कार्यान्वयन २९ जनवरी १९६७ के दिन होल । नवनालन्दा महाविहार में भिक्षु जगदीश काश्यप के अध्यक्षता में संस्थान के स्थापना होल ।
संघ द्वारा एकर केवल मगही भाषा के उद्भव, विकास आउ स्वरूप पर दू गो विचार गोष्ठी बिहारशरीफ में १९ नवम्बर १९६३ आउ सितम्बर १९६६ में आयोजित कइल गेल जेकर अध्यक्षता क्रमशः डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ भिक्षु जगदीश काश्यप कइलन ।
केन्द्रीय मगही मंच के गठन ला एगो आउ प्रयास ८ अप्रैल १९७९ के दिन कइल गेल । संघ के आहवान पर डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी के राजेन्द्र नगर, पटना स्थित निवास-स्थान पर उनकर अध्यक्षता में सम्पन्न बैठकी में श्री रामनरेश पाठक, श्री सतीश कुमार मिश्र (पटना); डॉ॰ रामप्रसाद सिंह, श्री रासबिहारी पांडेय, श्री रामदेव मेहता 'मुकुल' (गया); श्री ठाकुर रामबालक सिंह (राँची); श्री जनकनन्दन सिंह 'जनक' (शेरघाटी); श्री रामविलास 'रजकण' (अतरी); डॉ॰ सरयू प्रसाद आउ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (बिहारशरीफ) उपस्थित होलन । मगही संस्था सब के दू-दू प्रतिनिधि ले के 'केन्द्रीय मगही मंच' के गठन करे के सामान्य नीति आउ कार्यक्रम-समन्वय ओकर जिम्मे रक्खे के तथा ओकर स्थायी मुख्यालय पटना में रक्खे के हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के प्रस्ताव स्वीकार कइल गेल । प्रस्ताव के कार्यान्वयन ला संस्था सब के सहमति लगी 'मगध संघ' के प्रयास चल रहल हे ।
आकाशवाणी से मगही के अलग प्रसारण, सरकारी मगही अकादमी के स्थापना, विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में मगही के स्थान आउ केन्द्रीय साहित्य अकादमी में मगही के मान्यता के आन्दोलन में संघ के महत्त्वपूर्ण भूमिका रहल हे । अकादमी के गठन-संचालन में मगही लेखन-आन्दोलन से जुड़ल साहित्यकार-कलाकार के प्रधानता देवे लगी मगध संघ के स्मार-पत्र अध्यक्ष डॉ॰ इसरी बिहार सरकार के देलन । कार्यान्वयन के प्रतीक्षा हे ।
कला के क्षेत्र में कलकत्ता 'यूथ क्वायर' के तरफ से कलकत्ता में १९६९ में आयोजित भारतीय लोक संगीत समारोह में कला-मंत्री 'लल्लन' के अगुअइ में मगध संघ के कलाकार दल के मगही कार्यक्रम कलकत्ता के सब्भे अखबार द्वारा सबसे जादे सराहल गेल । मगही में फिल्म-निर्माण ला संघ के प्रयास से १९६३ में निर्माण-संस्था 'मगध-फिल्म्स्' के स्थापना आउ निबन्धन पटना में होल । ई यूनिट द्वारा १९६४ में आर॰डी॰ बंसल प्रोडक्शन, कलकत्ता के मगही फिल्म 'मोरे मन मितवा' के निर्माण होल, जेकर प्रदर्शन १९६५ में होल । संघ के साहित्य-मंत्री गिरीश रंजन ओकर लेखक-निर्देशक तथा मंत्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी आउ कला-मंत्री 'लल्लन' ओकर गीतकार हलन ।
बिहार के पहाड़ी, किला आदि सांस्कृतिक स्मारक के रक्षा ला संघ के प्रतिनिधि-मंडल १९६३ में बिहार धार्मिक-न्यास मंत्री आउ पटना के आयुक्त से मिल के आश्वासन लेलक आउ सभा, अखबार, आकाशवाणी तक से आन्दोलन चलइलक । चीनी आक्रमण पर प्रतिरोध-भावना के विचार के आधार देवे ला संघ श्रम-कल्याण केन्द्र, बिहारशरीफ में १८ नवम्बर १९६२ के दिन अपने ढंग पर देश में शायद पहिला बुद्धिजीवी-सम्मेलन के आयोजन कइलक । आपातकाल के समय नागार्जुन आदि बागी साहित्यकार के अभिनन्दन ला नालन्दा कॉलेज प्रेक्षागार में मगध संघ के आयोजन यादगार हे ।
मगध संघ मूलतः मगही-सेवी संस्था हे, बाकि नालन्दा जिला-गठन तक ऊ अपन क्षेत्र के सम्पूर्ण साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधि के प्रतिनिधि मंच के भूमिका निभइलक । पैंतीस साल में साढ़े तीन सौ आयोजन के एकर रेकार्ड हे । रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी विवेकानन्द, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द, रामचन्द्र शुक्ल आदि के शताब्दी-उत्सव, मानस चतुश्शती, सूर-पंचशती आउ हर साल हिन्दी दिवस, सरहपा जयन्ती, तुलसी जयन्ती, भारतेन्दु जयन्ती, केशवराम भट्ट जयन्ती आदि के आयोजन होल हे । मगही विद्वान सब के आउ नालन्दा क्षेत्र के हिन्दी विद्वान के भी पी-एच्॰डी॰ प्राप्ति पर सम्मान, उनकर पुस्तक के विमोचन, आउ ओकरा पर परिचर्चा बराबर होवऽ हे । मगही आउ हिन्दी के, दोसर भारतीय आउ विदेसी भाषा के भी साहित्यकार के निधन पर शोक-सभा के आयोजन होते रहल हे ।
सरकारी कामकाज में हिन्दी लागू करे के आन्दोलन में संघ सेठ गोविन्द दास, डॉ॰ लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु', पं॰ रामदयाल पांडेय, प्रो॰ केसरी कुमार आउ प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद के मार्ग-दर्शन में केन्द्र आउ हिन्दीभाषी राज्य सरकार सब से बराबर सम्पर्क में रहल । एकमात्र राजभाषा के रूप में बिहार में हिन्दी के उचित स्थान ला मगध संघ निरन्तर संघर्ष-रत रहल ।
मगध संघ के मासिक 'मूल्यांकन' गोष्ठी १९६१ से प्रारम्भ होल । कोय साहित्यिक या सामयिक विषय पर निबन्ध-परिचर्चा के विचार-गोष्ठी; प्रकाशित पुस्तक पर लिखित-मौखिक परिचर्चा के समीक्षा गोष्ठी अथवा पठित रचना पर संघ-प्रतिक्रिया के रचना-गोष्ठी हर महीना बैठऽ हे । जिला के रचनाधर्मी सरजक लोग के साहित्यिक अभिव्यक्ति के जाँच-परख लगातार चल रहल हे । 'मूल्यांकन' के मूल्यवत्ता निर्विवाद हे ।
नालन्दा जिला-गठन के समय, ३ नवम्बर १९८६ के, श्रम कल्याण-केन्द्र, बिहारशरीफ में मगध संघ द्वारा आयोजित जिला के साहित्यकारन के सभा में नालन्दा जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के स्थापना होल । हिन्दी-मंच के भूमिका सम्मेलन के सौंप के संघ मगही-मंच के अपन मूल स्वरूप में आ गेल । संघ के मासिक 'मूल्यांकन' गोष्ठी तब से सम्मेलन के साहित्य-गोष्ठी के रूप में चल रहल हे । संघ सम्मेलन से सम्बद्ध हे । 'मगध संघ प्रकाशन' के पुस्तक सम्मेलन ग्रन्थशाला में निकलऽ हे । मगही के अलावा संघ हिन्दी पुस्तक के प्रकाशन भी करऽ हे । संघ मगही आउ हिन्दी में दुराव नऽ मानऽ हे, अपनत्व मानऽ हे । एकर साहित्य-गोष्ठी में मगही आउ हिन्दी के अलावे दूसर-दूसर लोकभाभाषा तथा उर्दू, बंगला आउ अंग्रेजी रचना के भी पाठ आउ ओकरा पर परिचर्चा होते रहल हे ।
मगही में 'मगध संघ प्रकाशन' प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री के चर्चित शोध-निबन्ध के अलावे हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के शोध-निबन्ध 'मगहीः विकास के आन्दोलात्मक स्वरूप' तथा सम्पादित मगही गद्य साहित्य संकलन 'मागधी विधा विविधा' : खण्ड-१ (मगही गद्य साहित्य) के प्रकाशन कर चुकल हे । १९८६ में 'मागधी विधा विविधा' : खण्ड-२ (मगही काव्य साहित्य); प्रियदर्शी के मगही कविता-संग्रह 'रेत पर हस्ताक्षर' आउ श्री रवीन्द्र कुमार के मगही कहानी संग्रह 'अजब रंग बोले' के प्रकाशन जल्दीये होवे के हे । मगध संघ के मगही तिमाही पत्रिका 'मगही' के प्रवेशांक (जनवरी-मार्च १९८६) निकल रहल हे । संघ १९५५ में मासिक 'मगही' के प्रकाशन से जुड़ल हल । तिमाही 'मगही' ओही सिलसिला के अगला कड़ी मानल जा सकऽ हे । सहजोग के सब से अपेक्षा हे ।
हिन्दी में हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के काव्य-संग्रह 'प्रियदर्शिनी', 'सोनजुही की छाया', 'एक युग प्रतिबद्ध', आउ 'मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा' तथा गद्य में 'नवादा जिला-परिचय', 'नालन्दाः इतिहास और संस्कृति'; आउ 'पुस्तकालयः आन्दोलन का इतिहास और निर्देशिका'; डॉ॰ आर॰ इसरी 'अरशद' के काव्य-संग्रह 'जानेमन' आउ कथा-संग्रह 'बाल ईसप' तथा श्री रामचन्द्र अदीप के कहानी-संग्रह 'तीसरी नजर' के प्रकाशन संघ कइलक हे आउ प्रो॰ वीरेन्द्र कुमार वर्मा के कहानी-संग्रह 'वृत्त की भटकती त्रिज्याएँ'; हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के सम्पादन में नालन्दा के आधुनिक हिन्दी-काव्य के संकलन 'स्वर विसंवादी' तथा हिन्दी कहानी के प्रतिनिधि संकलन प्रकाशनाधीन हे ।
पिछला पैंतीस बरस में मगध संघ नालन्दा अंचल में बौद्धिक-साहित्यिक वातावरण आउ सरजनशीलता ला लगातार प्रयासशील रहल हे । जिला में जबकि शायदे कोय साहित्यकार हथ, संघ जिनका मंच, मान्यता आउ मान नऽ देलक हे, रवीन्द्र कुमार, गिरीश रंजन, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' आउ रामचन्द्र अदीप अइसन साहित्यकार भी हथ, अपना के एकर वातावरण के उपज माने में जिनका कहियो सकुचाहट न रहल हे ।
मगध संघ के वार्षिकोत्सव में विख्यात साहित्यकार भाग लेते रहलन हे । एकर पदाधिकारी आउ कार्यकर्ता के रूप में जिला के सरजनशील साहित्यकार संघ से जुड़ल रहलन हे आउ जुड़ल हथ । सब नाम के उल्लेख संभवे न हे । कुछ नाम के उल्लेख वार्षिकोत्सव, स्थायी परिषद आउ कार्यसमिति के सूची में हे । ऊ साथ छप रहल विवरण में देखल जा सकऽ हे ।
पैंतीस साल में जिनकर सहजोग-पराक्रम से संघ के गतिशीलता आउ सफलता मिलल हे, इहाँ नामोल्लेख के बिना ऊ सब के आभार स्वीकारऽ ही । मगही भाषा-साहित्य ला, चाहे नालन्दा के सरजनशीलता ला, मगध संघ से कुछ बन पड़ल हे, तो एकर सारा श्रेय उनखरे हे । मगही के साहित्यकार के सनेह हमरा पर बनल रहल हे । सब के आगे मत्था टेकऽ ही ।
["मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई रपट पृ॰ ७९-८४ पे छप्पल हकइ]
मगध संघ मूलतः मगही-सेवी संस्था हे, बाकि नालन्दा जिला-गठन तक ऊ अपन क्षेत्र के सम्पूर्ण साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधि के प्रतिनिधि मंच के भूमिका निभइलक । पैंतीस साल में साढ़े तीन सौ आयोजन के एकर रेकार्ड हे । रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी विवेकानन्द, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द, रामचन्द्र शुक्ल आदि के शताब्दी-उत्सव, मानस चतुश्शती, सूर-पंचशती आउ हर साल हिन्दी दिवस, सरहपा जयन्ती, तुलसी जयन्ती, भारतेन्दु जयन्ती, केशवराम भट्ट जयन्ती आदि के आयोजन होल हे । मगही विद्वान सब के आउ नालन्दा क्षेत्र के हिन्दी विद्वान के भी पी-एच्॰डी॰ प्राप्ति पर सम्मान, उनकर पुस्तक के विमोचन, आउ ओकरा पर परिचर्चा बराबर होवऽ हे । मगही आउ हिन्दी के, दोसर भारतीय आउ विदेसी भाषा के भी साहित्यकार के निधन पर शोक-सभा के आयोजन होते रहल हे ।
सरकारी कामकाज में हिन्दी लागू करे के आन्दोलन में संघ सेठ गोविन्द दास, डॉ॰ लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु', पं॰ रामदयाल पांडेय, प्रो॰ केसरी कुमार आउ प्रो॰ सिद्धेश्वर प्रसाद के मार्ग-दर्शन में केन्द्र आउ हिन्दीभाषी राज्य सरकार सब से बराबर सम्पर्क में रहल । एकमात्र राजभाषा के रूप में बिहार में हिन्दी के उचित स्थान ला मगध संघ निरन्तर संघर्ष-रत रहल ।
मगध संघ के मासिक 'मूल्यांकन' गोष्ठी १९६१ से प्रारम्भ होल । कोय साहित्यिक या सामयिक विषय पर निबन्ध-परिचर्चा के विचार-गोष्ठी; प्रकाशित पुस्तक पर लिखित-मौखिक परिचर्चा के समीक्षा गोष्ठी अथवा पठित रचना पर संघ-प्रतिक्रिया के रचना-गोष्ठी हर महीना बैठऽ हे । जिला के रचनाधर्मी सरजक लोग के साहित्यिक अभिव्यक्ति के जाँच-परख लगातार चल रहल हे । 'मूल्यांकन' के मूल्यवत्ता निर्विवाद हे ।
नालन्दा जिला-गठन के समय, ३ नवम्बर १९८६ के, श्रम कल्याण-केन्द्र, बिहारशरीफ में मगध संघ द्वारा आयोजित जिला के साहित्यकारन के सभा में नालन्दा जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के स्थापना होल । हिन्दी-मंच के भूमिका सम्मेलन के सौंप के संघ मगही-मंच के अपन मूल स्वरूप में आ गेल । संघ के मासिक 'मूल्यांकन' गोष्ठी तब से सम्मेलन के साहित्य-गोष्ठी के रूप में चल रहल हे । संघ सम्मेलन से सम्बद्ध हे । 'मगध संघ प्रकाशन' के पुस्तक सम्मेलन ग्रन्थशाला में निकलऽ हे । मगही के अलावा संघ हिन्दी पुस्तक के प्रकाशन भी करऽ हे । संघ मगही आउ हिन्दी में दुराव नऽ मानऽ हे, अपनत्व मानऽ हे । एकर साहित्य-गोष्ठी में मगही आउ हिन्दी के अलावे दूसर-दूसर लोकभाभाषा तथा उर्दू, बंगला आउ अंग्रेजी रचना के भी पाठ आउ ओकरा पर परिचर्चा होते रहल हे ।
मगही में 'मगध संघ प्रकाशन' प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री के चर्चित शोध-निबन्ध के अलावे हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के शोध-निबन्ध 'मगहीः विकास के आन्दोलात्मक स्वरूप' तथा सम्पादित मगही गद्य साहित्य संकलन 'मागधी विधा विविधा' : खण्ड-१ (मगही गद्य साहित्य) के प्रकाशन कर चुकल हे । १९८६ में 'मागधी विधा विविधा' : खण्ड-२ (मगही काव्य साहित्य); प्रियदर्शी के मगही कविता-संग्रह 'रेत पर हस्ताक्षर' आउ श्री रवीन्द्र कुमार के मगही कहानी संग्रह 'अजब रंग बोले' के प्रकाशन जल्दीये होवे के हे । मगध संघ के मगही तिमाही पत्रिका 'मगही' के प्रवेशांक (जनवरी-मार्च १९८६) निकल रहल हे । संघ १९५५ में मासिक 'मगही' के प्रकाशन से जुड़ल हल । तिमाही 'मगही' ओही सिलसिला के अगला कड़ी मानल जा सकऽ हे । सहजोग के सब से अपेक्षा हे ।
हिन्दी में हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के काव्य-संग्रह 'प्रियदर्शिनी', 'सोनजुही की छाया', 'एक युग प्रतिबद्ध', आउ 'मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा' तथा गद्य में 'नवादा जिला-परिचय', 'नालन्दाः इतिहास और संस्कृति'; आउ 'पुस्तकालयः आन्दोलन का इतिहास और निर्देशिका'; डॉ॰ आर॰ इसरी 'अरशद' के काव्य-संग्रह 'जानेमन' आउ कथा-संग्रह 'बाल ईसप' तथा श्री रामचन्द्र अदीप के कहानी-संग्रह 'तीसरी नजर' के प्रकाशन संघ कइलक हे आउ प्रो॰ वीरेन्द्र कुमार वर्मा के कहानी-संग्रह 'वृत्त की भटकती त्रिज्याएँ'; हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के सम्पादन में नालन्दा के आधुनिक हिन्दी-काव्य के संकलन 'स्वर विसंवादी' तथा हिन्दी कहानी के प्रतिनिधि संकलन प्रकाशनाधीन हे ।
पिछला पैंतीस बरस में मगध संघ नालन्दा अंचल में बौद्धिक-साहित्यिक वातावरण आउ सरजनशीलता ला लगातार प्रयासशील रहल हे । जिला में जबकि शायदे कोय साहित्यकार हथ, संघ जिनका मंच, मान्यता आउ मान नऽ देलक हे, रवीन्द्र कुमार, गिरीश रंजन, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' आउ रामचन्द्र अदीप अइसन साहित्यकार भी हथ, अपना के एकर वातावरण के उपज माने में जिनका कहियो सकुचाहट न रहल हे ।
मगध संघ के वार्षिकोत्सव में विख्यात साहित्यकार भाग लेते रहलन हे । एकर पदाधिकारी आउ कार्यकर्ता के रूप में जिला के सरजनशील साहित्यकार संघ से जुड़ल रहलन हे आउ जुड़ल हथ । सब नाम के उल्लेख संभवे न हे । कुछ नाम के उल्लेख वार्षिकोत्सव, स्थायी परिषद आउ कार्यसमिति के सूची में हे । ऊ साथ छप रहल विवरण में देखल जा सकऽ हे ।
पैंतीस साल में जिनकर सहजोग-पराक्रम से संघ के गतिशीलता आउ सफलता मिलल हे, इहाँ नामोल्लेख के बिना ऊ सब के आभार स्वीकारऽ ही । मगही भाषा-साहित्य ला, चाहे नालन्दा के सरजनशीलता ला, मगध संघ से कुछ बन पड़ल हे, तो एकर सारा श्रेय उनखरे हे । मगही के साहित्यकार के सनेह हमरा पर बनल रहल हे । सब के आगे मत्था टेकऽ ही ।
["मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई रपट पृ॰ ७९-८४ पे छप्पल हकइ]
No comments:
Post a Comment