लेखक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी (जन्मः 1-10-1935)
जादेतर बोले में काम आवेवाला मगही के अब बड़ा पैमाना पर लिखे में काम आवे पर ओकर बोली-भिन्नता के बीच एकरूपता के खोज आउ ओकर आधार निश्चित करे के जरूरत हे कि न हे ? अबहिये करे के हे कि बाद में ? छेत्र-विसेस के लेखक अइसन करे तऽ अपन बोली से दूर न जा पड़त ? न कइल जाय तऽ एक्के पुस्तक या पत्रिका में 'भाँत-भाँत के बोली' की ठीक हे ? खासकर अकादमी परकासन, पाठ्यपुस्तक आदि में एक वर्तनी के जरूरत मानल जाय कि नञ ? अबहिये वर्तनी ठीक न करे से छप्पल साहित्य के अम्बार आगे ओकर राह बन्द न कर देत ? अलग-अलग जगह बोलल जा रहल मगही में छेत्रीय भिन्नता रहवे करत तऽ लिखल रूप में एकरूपता लावे के जरूरत आउ औचित्य की हे ? एकरूपता लावल जाय तऽ पूरा कि केन्द्रीकरन के तरफ एगो झुकाव भर ? एकरूपता के आधार की होत ? छेत्र-विसेस के बोली, कि अलग-अलग परयोग में से चुनल विकसित शैली ? छेत्र-विसेस के बोली के मानक मगही मानल जाय तऽ कउन छेत्र के ? ओकरे मानल जाय तऽ काहे ? कोय अलगे शैली विकसित कइल जाय तऽ चुनाव के आधार की रहे ? हिन्दी के अभ्यस्त लिखताहर मगही लिखे में ओकर बोली वाला रूप से अलग जे हिन्दीनुमा मगही गढ़ रहल हे ओही की मगही के नियति हे ? ई नियति से बचे में मगही आधुनिकता-बोधे से तो कटल नञ रह जात ?
शहरी हिन्दी-साहित्यकार मगही लेखन में गाँव के छठ मगही मुहावरा तक पहुँचतन कि नया बोध के वाहक बने ला मगही बोली से अलगे एगो साहित्यिक मगही विकसित होत ?
मगही में संस्कृत के तत्सम सबद के कउन रूप में लेल जाय ? हिन्दी में चल रहल सबद जे मगही में न चल रहल हे ओकरा बदल-बिगाड़ के लेल जाय कि मूल रूप में ? मगही बोली में पहिले से न चल रहल संयुक्ताच्छर, जइसे प्र, श्र, क्ष आदि आउ अच्छर, जइसे श, ष आदि के अब अपना लेल जाय कि नञ अपनावल जाय ? मगही में बिगड़ल रूप में चल रहल सबद ओही रूप में लेल जाय कि सुधरल साहित्यिक रूप में, जइसे रात, रतवा, रतिया आदि ? संस्कृत-हिन्दी के अलावे भासा, जइसे उर्दू, फारसी, अंग्रेजी आदि सबद के कउन रूप लेल जाय, जइसे इस्टीसन, टीसन; इस्कूल, स्कूल आदि ? क्रिया के अलग-अलग रूप में एक्के रूप रक्खल जाय कि सभ्भे ? जइसे, गेलन, गेलथिन, गेलखिन, गेलखुन - ई सभ्भे रूप चले कि एक्के रूप ? एक, तऽ कउन रूप आउ काहे ? जा हे, जा हइ, जा हय; ला, लगी, लेल में से सभ्भे कि एक्के रूप रहे ? एक, तऽ कउन आउ काहे ? जे सबद के अन्त में जोर देल जा हे ओकरा ला भिखारी चिन्ह 'ऽ' देल जाय, कि अ जोड़ देल जाय, कि मूल सबदे छोड़ देल जाय ? जइसे, करऽ , करअ, कि कर ? मगही के अप्पन अलगे लिपि, कैथी इया महाजनी मानल जात कि नागरी लिपि सगरो मानल, सगरो परचलित रहत ?
["मगही", मगध संघ के तिमाही पत्रिका, सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, बरीस १, अंक १, जनवरी-मार्च १९८६; पृ॰ ७६-७७]
[सम्पादक महोदय "मंच" शीर्षक के अन्तर्गत लेखक आउ पाठक के सामने अप्पन-अप्पन विचार प्रस्तुत करे लगी तीन मुद्दा में से ई पहिला मुख्य मुद्दा उठइलका हल । अन्तरजाल पर के लेखक आउ पाठक सब से भी निवेदन हइ कि मगही के मानक रूप आउ वर्तनी सम्बन्धी ई सब सवाल पर अप्पन-अप्पन विचार प्रस्तुत करथिन । --- नारायण प्रसाद]
2 comments:
मगही के मानकी करण के सवाल तो सबसे बड़ा सवाल हई
लेकिन आज के इस दौर में एकरा पर एक वैज्ञानिक ढंग से शोध करके फिर सर्वसम्मत राय बनाना असंभव भी न लग अ . हई.
ई बात हम ई गुने कह अ ही की हर भाषा के कभी न कभी बोली से भाषा बने के - खास कर बोलचाल से लिखित रूप अख्तियार करे में - एही प्रक्रिया से गुजरे पड़अ हई. ई बात के पुष्टि न सिर्फ भारतीय भाषा के इतिहास कर अ हई बल्कि ई बात आधुनिक युरोपेँ भाषा के बारे में भी लागू होव अ हई. मूल रूप में खेतिहर और करीब करीब अनपढ़ समाज के बोली के भाषा , ख़ास कर प्रिंटिंग प्रेस के आ ईला के बाद में , बने में एक हीं स्टेज से जाय पडले होत.
जादे दूर न ,मैथिलि जेकरा में थोडा ज्यादा मानकी करण अब तक हो गेल हे ओकरा भी देखे के काम है.
मगही साहित्य अकादेमी ,पटना के अगर कांफिडेंस में लेकर ई काम कैल जाय तो बहुत कुछ सम्ब्हब हई.
ई भी हो सक अ हई की गर सही जगह पर प्रयास कईल जाय त अ सरकार और मगही अकेडमी के मादा भी मिल सकअ हई.
एक बात और की मगही शब्दकोष अगर हई और इन्टरनेट पर उपलब्ध हो सक अ हई त अ ई बहुत बड़ा काम होतई. हम बहुत प्रयास कर के ग्रिएर्सन साहब के peasant लाइफ इन बिहार नामक किताब हासिल कायली हे.ओकरा में लेट १९ वीं सदी के मगही शब्द खूब मात्रा में हई.समय मिलते ही ओकरा हम serialise करबई.
सादर
"लग अ हई", "कह अ ही" आदि में आजकल "अ" के बदले अवग्रह चिह्न "ऽ" के प्रयोग लगभग स्थापित होल हइ --- "लग़ऽ हइ", "कहऽ ही" आदि लिखल जाय ।
मगही शब्दकोष अगर हई
मगही शब्दकोष उपलबब्ध हकइ -
http://magahi-sahitya.blogspot.com/2008/01/blog-post_1550.html
हम बहुत प्रयास कर के ग्रिएर्सन साहब के peasant लाइफ इन बिहार नामक किताब हासिल कायली हे.
ई पुस्तक के थोड़ा विवरण देल जाय (प्रकाशक, प्रकाशन वर्ष, पुस्तक के पृष्ठ संख्या आदि) ।
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