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Tuesday, March 10, 2009

1. कोनमा आम

कोनमा आम
कहानीकार - श्री रवीन्द्र कुमार (12 नवम्बर 1933 - 21 मई 2006)

["मगही कहानी में पहिला नाम आउ अगला स्थान रवीन्द्र कुमार के मानल जा हे । बिहारशरीफ के कागजी मुहल्ला में ६ जनवरी १९३६ (?) के दिन उनखर जलम भेल हल । हुआँ के नालन्दा कॉलेजिएट से ऊ मैट्रिक, नालन्दा कॉलेज से आई॰एस-सी॰ आउ पटना साइंस कॉलेज से बी॰एस-सी॰ कइलन । बिहारशरीफ आउ पटना से सुरू उनखर विज्ञान सिक्षक रूप पूर्णिया, हजारीबाग के बाद ई बखत गया जिला स्कूल में पदस्थापित हे । 'मगध संघ' के संस्थापक-उपमंत्री रवीन्द्र कुमार हिन्दी आउ मगही लेखन, आन्दोलन से बराबर जुड़ल रहलन हे । हिन्दी में कई गो कहानी छप्पल हे । मगही में १९५५ में 'मगही' के प्रकासन के बखत से लिखे लगलन आउ तब से जादे आउ अच्छा लिखलन । उनखर 'पित्तर के फुचकारी', 'टुरवा', 'सब्भे सोआहा', 'मन के पंछी', 'अजब रंग बोले' मगही कथा साहित्य के रूप गढ़े वला कहानी रहल हे । पत्रिका आउ आकाशवाणी से प्रकाश में आयल उनखर दरजन भर मगही कहानी के संग्रह 'अजब रंग बोले' मगध संघ से छपे जा रहल हे ।" - "मगही", १९८६, पृ॰ ३६]

... ... हाँ हजूर, एही ऊ कोनमा आम हे । ... ...

... ... तखनी असमान चौखुट्टा हल । दुनियाँ, अंगने भर के । भइया अंगना में लोहा के पहिया के गाड़ी चलावऽ हलन । रो-कान के जो गाड़ी उनखा से छिनियो ले हली तो गाड़ी गिरे के पहले थल-से अपने गिर पड़ऽ हली । केतनियो कोरसिस करे पर गाड़ी नञ बढ़ऽ हल एक्कर दोखी हम भइया के ठहरावऽ हली ।

... ... फिनूँ चन्ना मामू दरोजा के बाहरो दिखाय पड़े लगलन । चन्ना मामू बुल्लऽ हथ ! अंगनो में आउ बहरसी बैठकी दन्ने ।

नाना के अँगुरी पकड़ले रामधनी पाँड़े के घर तक जाके देख अइलियन । चन्ना मामू बुल्लऽ हथ ! गोड़ ने हाथ, ओघड़ायल बुल्लऽ हथ ! ... ...

... ... असमान चौखुट्टा से टेढ़-मेढ़ होवे लगल । असमान बहे लगल, दूध नियर ! ... ... बिलइया के नानी धात-धात कइलका आउ बाल्टी के दूध औघड़ा गेल । ओतने बड़ा बाल्टी के दूध टेढ़-मेढ़ होके ढेर दूर तक बह गेल । ... ... हम्मर से रमधानी पाँड़े के घर, फिन रमधानी पाँड़े के घर से रमजानी मियाँ के घर, फिन पातर गल्ली से घुम्मल-घुम्मल मिठकी कुइयाँ तक आउ फिन मिठकी कुइयाँ से बड़का ठो होके आम के बगइचा तक, असमान फइल गेल । बाप-रे-बाप ! आम के बगइचा से केत्तागो असमान जनाऽ हइ ! एत्ते धोखा ! नञ जाने केत्ते बड़गो होतय ई असमान ! ... ... बामन कोस के । ... ...

... ... नानी झुठे-झुठे कहके बिना चिनिए वाला दूध पिला देलक । अब नानी हीं माय साथे जो अइवो करऽ ही, तइयो ओक्कर बात नञ मानऽ ही । ... ... हेरे ! हेरे !! करते रहऽ हे आउ हम सेल-कबड्डी पार । पहुँच जा ही अप्पन गोल में । मेखना, कलिया, जमापतिया, रमजीआ आउ कत्ते ने लड़का बगइचा में भेंटा जा हे । अनखा के धूप नानिए के लगऽ हे । सोचे के बात हे । बगइचा में कहीं धूप आउ झरक लगऽ हे !

खेले देबे के मन नञ तो ... ... हेरे ! ... ... हेरे !! ... ... आउ ओहू में बड़का आम के तरे । एतबड़ मोट ओक्कर डाल डहुँली फइलल हे कि की मजाल एक्कर रत्ती भर धूप ओकरा तरे घुस आबे ।

ओक्का-बोक्का तीन तरोक्का-लइया लाठी-चन्दन-काठी

कौनो ने कौनो चोर होइए जा हे । चोरवा के दुन्नूँ हाथ फइलल । ओकरा में भर पंजरा धूरी । ओकरा में रोपल, खड़ा एगो गुल्ली । आउ चोरवा के दुन्नूँ आँख बंद कइले कौनो ने कौने छँउड़ा । हमनी सब पुछते जा रहली हे - कहाँ जाहँऽ ? चोरवा बोलऽ हे - नानी घर !

कोनमे आम के जड़ तरी सब गिरबा देली चोरवा से । बालुओ सब । आउ गुलियो । आँख बंद के बंद । देखता बाबू साहेब कइसे ? थोड़े दूर एन्ने-ओन्ने घुमा-फिरा के उनखा छोड़ देल गेल । अब खोजऽ बाबू साहेब ! नञ तो पँच-पँच चट्टी सब लेबो । ... खोजऽ ... आउ फिन खोज के छुअऽ केकरो । नञ तो चोर बनतो के ? ई आम से ऊ आम तर बौड़ा रहल हे । हमनी बगइचा के पुरवारी कोना दन्ने कनखी से ताकऽ ही, कोनमा आम दन्ने । हँस्सऽ ही । गमे तब ने । गुल्ली खोज के कोनमा आम के चार फेर लगावऽ । एन्ने हमनी सब नुक जइवो । खोजते रहऽ ।

माय के मन खराब रहे लगल । बाबू, माय के नानी हीआँ भेज देलन । साथे-साथे हमरो । जेन्ने-जेन्ने मइया, ओन्ने-ओन्ने बछवा ! बाबा हीं से नानी हीं अइली । एक दिनमा माय के मन बहुत्ते खराब हो गेल । नानी, मौसी आउ केत्ते ने मेहरारू माय के घेरले हलन । हम जो जाइयो चाही तो जाइए न मिले । एन्ने नाना ओझा-गुनी बोलवउलन । पानी पढ़े कहलन । भगत बोललन - लड़का होत । एही एक घड़ी में । आउ तब बात समझ में आल । मौसी हँसके कहलक - ले, तोर दुलार छिना जइतउ !

... ... एकबैग रोबा-कन्नी मच गेल । गीत-नाध सब रुक गेल । मौसी हमरा गोद में लेके रोबे लगल ! माय मर गेलो । हम माय भिरी जाय लगली । मौसी हमरा जाइए नञ दे । हम माय के मरे के सब मरम जानऽ हली । हम्मर माय कत्ते बार हमरा सामने मरल हल । आँख बंद करके खटिया पर ओघड़ा जा हल । नकल करके आँख मूँद ले हल । ... बड़ बदमासी करऽ हँ । ले हम मर जा ही । ... ... जीभ मुँह के बाहर निकाल दे हल । कत्ते चुट्टी काटे पर हँसके आँख खोल दे हल । ... ... हम माय के मरे के मरम जानऽ हली । माय भिरी जाय ला तड़फड़ा रहली हल । नाना कनन-मुँहा होके मौसी से बोललन - जाय देहीं ।

हम माय भिरी गेली । आँख अंगुरी से खोले लगली । खुले - बंद हो जाय ! खुले, बंद हो जाय !! ... चुट्टी काटली । माय आँख खोलबे नञ करे । घबड़ा के पुकारे लगली - माय ! ... ... माय !! ... ... माय बोले तब ने । नाना भोकार पाड़ के रोबे लगलन । हमरा भर अँकबार उठाके दलान दन्ने चल देलन ।
हम्मर गाम में रामजी के कथा होबऽ हल । सीता माय के पापी रावन उठाके जब ले गेल तब रामजी विलाप कर-करके सीताजी के पता गाछ-बिरिछ से पूछऽ हलन । ...

... ... माय के सब बगइचा दन्ने ले गेलन हल । फिन नदी दन्ने । हम सब बात जान गेली हल । एक दिन चुपचाप हम नदी एकेले चल गेली । माय कहीं नञ मिलल । लौट के कोनमा आम भिरी गेली । कोय नञ हल । हम रामजी नियर रो-रोके कोनमा आम से पूछे लगली - हम्मर माय केन्ने गेल ? ... ... माय गेऽऽ ... के हमरा कोनमा आम से छोड़ा के ले आल, नञ जानऽ ही ।

नानी मरल, नाता टूटल । ... मइयो के मरला जमाना बित गेल । नाता टूट जा हे ? नानी के सराध में नोम्मा जाय पड़ल । नोम्मा हम्मर नानी-घर ! नोम्मा हम्मर नानी के गाम ! टुट्टल नाता देख अइली हे । सच्चो टूट जा हे की ?

माँमू के माथा मूड़ल हल । डाढ़ी-मोछ साफ । नाना के चंदला माथा आउ चिक्कन भे गेल हे । नाना के मुँह उदास लगऽ हे ।

सब काज खतम भे गेल । हमनी बगइचा में बैठल ही । कोनमा आम तर खटोला पर नाना ओंठगल हथ । गाम के आठ-दस लोग ओहीं पर नाना के घेरले भुइएँ में बइठल हथ । किसिम-किसिम के गप खिस्सा चल रहल हे ।
आज चलती हे तऽ विलास जी के । गाम-के-गाम मारा से तबाह हे । कुइयाँ पताल चल गेल । पैन-पोखरा सुख के खट-खट हो गेल । मगर विलास जी अइसनो गिरानी में दस हाथ चकला कुइयाँ खनलन । मटर ओकरा में बइठउलन । की हड़-हड़ पानी टानऽ हे ! ... ... हाँ रे, विलास जी के बढ़ती हे । ...
एगो जुआन बिच्चे में टोक के कहलक - तोहनी विलास जी के बारे में जे कहलऽ ! ई बात दुनियाँ जानऽ हे कि मसोमतिया के खेत हड़प के ऊ अप्पन बढ़ती देखा रहलन हे ।
एगो बुढ़ा अमदी बिच्चे में टोक के बोललन - एगो बात कहिअउ ?
- कह ने बाबा !

... एक सों आम कम मंजरायल । कोनमा आम में एक्को मंजर नञ देखाय पड़इ । अंधड़ बतास सब झेल के मंजर अमौरी बनल आउ फिन अमौरी, आम । आम पकहूँ लगल । टपका-टोइया आम कौनो-कौनो गाछ में देखाय पड़े । कोनमा आम में एक्को नञ । मगर की अजगुत बात कि आम जो झड़ई तो सबसे जादे कोनमे आम से । ... ... बैजनाथ बाबू ई सों सबसे कम मंजरायल हथ । मगर अभियो जो देखल जाय तो इनका से जादे केकरा रब्बी होत ?

सब जन हँसे लगलन । नाना अप्पन बड़ाय सुनके मुसकी छोड़लन । संतोख से उनखर मुँह चिक्कन, फुलल देखाय पड़े लगल ... ...

- हाँ, हजूर एही ऊ कोनमा आम हे । ... ... टमटम रुकल हे । एक-दू वकील हमरा साथ हथ । ....
गाम के अमदी बगइचा भिरी जमा हथ ।

... ... हाँ, हजूर एही ऊ बगइचा हे जेकरा में खून होल । ... ...

गाम में जमीन के झंझट लेके खून होल हे । एही बात के तहकीकात करे मजिस्ट्रेट के हैसियत से हम अइली हे । हम एकबैक बोल पड़ली - अरे ! एही ऊ कोनमा आम वाला बगइचा हे ?
... ... हाँ, हजूर !

हम टमटम भिरी खड़ा हली । आधा बगइचा जोतल हल । गाछ- बिरीछ कब कट गेल, कहना मोसकिल हे । खाली एक्केगो बड़का आम के पेड़ कट्टल पड़ल हे ।
... ... एही ऊ कोनमा आम हे ?
- जी सरकार । एही पेड़ लागी तो अपने गोतिये में सब खून फसाद कइलन ।

... ... कोनमा आम काट देल गेल हे । .. कोनमा आम कट्टल पड़ल हे । ... ...एतने सच्चाय हमरा ला हे ।

ओकील, गाम के अमदी, दरोगा बतिया रहलन हे । सब बेलाँ माने लग रहल हे ।

हमरा ई पता हल कि बगइचा हम्मर मामुये राज में बिक गेल हल । के खरीदार हलन - नञ जानऽ हली । ... ... कोनमा आम लोग काट देलन । ... ... एही सच्चाय घुर-फिर के हमरा पर परगट होवऽ हे । खून-फसाद सब बेलाँ माने लगऽ हे ।

...कोनमा आम मर गेल !!! - हम्मर माय एक बार फिन मर गेल ।

एकबैक ओकिल साहेब दन्ने मुँह करके हम पूछली - अब की करे के हे ?

मगही के एगो हम्मर मुँह से निकसल बात लोग नञ समझ रहलन हे । अचरज से हम्मर मुँह ताक रहलन हे ।

["मगही", मगध संघ के तिमाही पत्रिका, बरीस १, अंक १, जनवरी-मार्च १९८६, पृ॰ ३६-४०;
आउ
"मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई कहानी पृ॰ ७३-७७ पे छपल हइ ।]

नोटः कहानी संग्रह 'अजब रंग बोले' सन् २००० में प्रकाशित होले ह ।

रवीन्द्र कुमार जी के ई पहिला कहानी, मासिक मगही पत्रिका 'मगही' के प्रवेशांक नवम्बर १९५५ में प्रकाशित होले हल । एक्कर पुनः प्रकाशन १९८३ में 'मागधी विधा विविधा' आउ १९८६ में तिमाही मगही पत्रिका 'मगही' में कैल गेलइ जेकर विवरण उपरे देल हइ ।

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