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Friday, March 06, 2009

1. मगही साहित्य में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

1. मगही साहित्य में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
2. मगही उपन्यास "रमरतिया" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
3. मगही उपन्यास "चुटकी भर सेनुर" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

4. मगही उपन्यास "गोदना" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
5. मगही उपन्यास "बबुआनी अइँठन छोड़ऽ" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
6. मगही उपन्यास "फूल बहादुर" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

7. "मगही समसामयिक कहानी" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
8. मगही लघुकथा संग्रह "कथा-बतीसी" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
9. मगही ललितनिबन्ध संग्रह "अमृत आउ विष" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द
10.01-08 मगही उपन्यास "नरक सरग धरती" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

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1. मगही साहित्य में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

प्रिय पाठक गण !


मगही साहित्य में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द के प्रयोग सहित चयन लगी कुछ उदाहरण देल जा रहले ह । हम्मर ई प्रयास हइ कि साहित्य में से ठेठ प्रयुक्त मगही शब्द के प्रयोग सहित ऐसे दर्शावल जाय कि शब्द के अर्थ बिलकुल स्पष्ट हो जाय । शब्दकोश बनावे में एकरा से बहुत कुछ मदत मिलतइ । ई ठेठ मगही शब्द-संग्रह में ओइसन कोय शब्द नयँ लेल जइतइ जे "बृहत् हिन्दी कोश" (सम्पादक - कालिका प्रसाद, राजवल्लभ सहाय, मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव) में पावल जा हइ । अपने सब से निवेदन हइ कि ई फ़ॉर्मट के बारे अप्पन-अप्पन सुझाव देते जाथिन । धन्यवाद !

उदाहरण लगी रमरतिया उपन्यास के पहिला अनुच्छेद में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द प्रयोग सहित देल जा रहले ह ।
मगही उपन्यास "रमरतिया" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

रम॰ = "रमरतिया" (मगही उपन्यास) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 1968; नवमा संस्करण 2008; प्रकाशकः सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य - 101/- रुपये; कुल 144 पृष्ठ ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

चकचेहानाः
कुक्रूकू के अवाज सुनके रमरतिया चकचेहा के उठल, आउर अँगड़ाई लेइत अप्पन माय से कहलक - "माय, आज्झ भी सब महुआ कोय चुन लेलको होत न ?" (रम॰ 1:17.1)

सगरे, सगरोः
महुआ के पेड़ तर सगरे पीअर-पीअर मोती जइसन महुआ के दाना छितराइल हल । (रम॰ 1:17.11)

अनचकानाः
पाछे से रमरतिया के घठायल हात के कसल मुक्का पेड़ तर ताकइत आउ खड़ा अमदी पर धमाक् सन गिर पड़ल । उ अमदी अनचकाके मार से डेराइत-घबराइत पीछे ओर घुर ही रहल हल कि रमरतिया झट अप्पन दूनो खुलल हाथ जउरी-पगहा जइसन ओकर गिआरी में फेंक देलक (रम॰ 1:18.6)

जउरीः
पाछे से रमरतिया के घठायल हात के कसल मुक्का पेड़ तर ताकइत आउ खड़ा अमदी पर धमाक् सन गिर पड़ल । उ अमदी अनचकाके मार से डेराइत-घबराइत पीछे ओर घुर ही रहल हल कि रमरतिया झट अप्पन दूनो खुलल हाथ जउरी-पगहा जइसन ओकर गिआरी में फेंक देलक (रम॰ 1:18.8)
गिआरीः
पाछे से रमरतिया के घठायल हात के कसल मुक्का पेड़ तर ताकइत आउ खड़ा अमदी पर धमाक् सन गिर पड़ल । उ अमदी अनचकाके मार से डेराइत-घबराइत पीछे ओर घुर ही रहल हल कि रमरतिया झट अप्पन दूनो खुलल हाथ जउरी-पगहा जइसन ओकर गिआरी में फेंक देलक (रम॰ 1:18.8)
भोरहरिआः
- राधे ! तूँ ? आउर ... इहाँ ?
- हाँ, रामरती ! हम इस्कूल जाइत हली, हम्मर इस्कूल के दूरी इहाँ से तीन कोस पड़ऽ हे न ! इस्कूल भी भोरहरिआ हे । अ‍ेही गूने सकेरे चले पड़ऽ हे । (रम॰ 1:18.19)

गुने, गूनेः
- राधे ! तूँ ? आउर ... इहाँ ?
- हाँ, रामरती ! हम इस्कूल जाइत हली, हम्मर इस्कूल के दूरी इहाँ से तीन कोस पड़ऽ हे न ! इस्कूल भी भोरहरिआ हे । अ‍ेही गूने सकेरे चले पड़ऽ हे । (रम॰ 1:18.19)

सकेरेः
- राधे ! तूँ ? आउर ... इहाँ ?
- हाँ, रामरती ! हम इस्कूल जाइत हली, हम्मर इस्कूल के दूरी इहाँ से तीन कोस पड़ऽ हे न ! इस्कूल भी भोरहरिआ हे । अ‍ेही गूने सकेरे चले पड़ऽ हे । (रम॰ 1:18.19)

फिन, फिनु , फिनोः
- "रामरती ! हम्मर लिलार में पीड़ा होवइत हे, लगऽ हे जइसे कुछ गड़ गेल हे ... !" राधे के ई बात सुनके रमरतिया के धियान अप्पन चूड़ी भरल दूनो हाथ पर गेल । 'हाय राम, हम्मर दूगो चूड़िया टूट गेल ।" चिहुँकइत रमरतिया बोल उठल । फिन रमरतिया अप्पन दूनो हाथ से राधे के लिलार पकड़के निहारे लगल । (रम॰ 1:19.1)

सले, सले-सलेः
घबड़ाय के कोय बात न हे रामरती । गड़ल काँच सले-सले निकाल दऽ । (रम॰ 1:19.6)

अगे मइनीः
अगे मइनी !
लेहू भी बहइत हो ... ! अब का भेतो राधे ? गाँव चलऽ ...। (रम॰ 1:19.7)
लेलः
- "जे चीज धँस जाहे ओकरा निकाले आउर समावे में बढ़ जइवे करऽ हे ... । इ लेल तूँ मत घबड़ा ।" राधे के इ बात सुनके जरी सबूरी तो भेल मुदा ओकर करेजवा हउल-हउल करही रहल हल । (रम॰ 1:19.21)

सबूर, सबूरीः

- "जे चीज धँस जाहे ओकरा निकाले आउर समावे में बढ़ जइवे करऽ हे ... । इ लेल तूँ मत घबड़ा ।" राधे के इ बात सुनके जरी सबूरी तो भेल मुदा ओकर करेजवा हउल-हउल करही रहल हल । (रम॰ 1:19.22)

इड़ोतः
रमरतिया खड़ी होके अ‍ेक टक से टुकुर-टुकुर राधे के जाइत निहारे लगल । मुदा रादे अप्पन पीड़ा रमरतिया के दिल में देके मस्ती में झुमइत डगर पर जा रहल हल । हाँ, कभी-कभी घुर-घुर के ताकइत भी हल । इ फेरा तब-तक होयत रहल जब-तक अ‍ेक दूसर से इड़ोत न हो गेलन । (रम॰ 1:20.23)

2 comments:

Pratyaksha said...

पढ़कर बड़ा आनंद आया .. किताब कहाँ मिल सकती है ?

नारायण प्रसाद said...

एहे सन्देश में प्रकाशक के पूरा पता तो देइए देलिए ह न ! चाहऽ हथिन त बाबूलाल मधुकर जी से मोबाइल नं॰ 09334927794 पर बात कर सकऽलथिन हँ ।