नुनु रंगदार हो गेल
कवि - दशरथ
तनिये गो नुनु रंगदार हो गेल ।
बाप से सहुलियत मिलल पइसा लेलक,
कीने ला पिस्तौल तइयार हो गेल,
तनिये गो नुनु रंगदार हो गेल ।
खाय लगल गुटका, फूँके लगल सिगरेट,
बोले लगल अलबल, खेले लगल जुआ,
गाँजा पीके समझदार हो गेल,
दारू पीके धारदार हो गेल ।
माय के मारलक, बाप के लतिअयलक,
इसकुल गेल त मास्टर के डेंगयलक,
गारी बक के महान हो गेल,
नुनु हमर भगवान हो गेल ।
टी॰वी॰ में सट के, बुलु फिलिम देख के,
बउआ विद्वान होल अश्लील पोथी पढ़ के,
लड़की के छेड़ के सेयान हो गेल,
तनिये गो नुनु जुआन हो गेल ।
बाबूजी सोचऽ आगे आउ की होयत,
नुनु से छोटका नुनु के की होयत,
कुल नुनु अइसने उजड़ा हो जायत,
दुनिया के बचवे ला आगू के आयत ?
नुनु के बचवो बेमार हो गेल,
नुनु हम्मर रंगदार हो गेल ।
साले-दुसाल तक नुनु तो चमकल,
गोली-पिस्तौल के बल आगू निकसल,
एक दिन बउआ के मुठभेड़ हो गेल,
मारल गेल बउआ पार हो गेल,
नुनु हम्मर सुरधाम चल गेल,
बंश हम्मर ऊकान हो गेल ।
['अलका मागधी', बरिस-१२, अंक-६, मई २००६, पृ॰ १५, से साभार]
Thursday, March 12, 2009
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1 comment:
तनिये गो नुनु रंगदार हो गेल ।
.....
नुनु हम्मर सुरधाम चल गेल,
बंश हम्मर ऊकान हो गेल ।
अच्छा लिखा है..
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