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Wednesday, March 04, 2009

5. मगही मगध के लोकभासा

मगही मगध के लोकभासा

(पहिला मगही महासम्मेलन, एकंगरसराय, 1957, के अध्यक्षीय भाषण से उद्धृत)

- भिक्खु जगदीश कश्यप (1908, राँची - 28 जनवरी 1976, बुधवार, 3 PM, राजगीर)

मगही हम्मर अप्पन लोकभासा हे । जे आदमी अप्पन भासा बोले में लजा हे, इया ओकरा भूल जा हे ऊ तो अप्पन माय के दूध भूल जा सकऽ हे । कोई देश इया जाति के तबहिए बुरा दिन आवऽ हे जब ऊ अप्पन भासा के भुला जा हे । हम्मर ओही दसा हे ।

कहल जा हे, हिन्दुस्तान के आधा इतिहास तो मगध के हे । ई बात ठीक हे । बाकी उहँई के लोग अप्पन भासा भूल गेलन हे । हमन्हीं अप्पन बोली बोले में लजा ही । एगो कलकतिया अदमी से पुछली कि कहाँ से आवऽ ह ? ऊ जवाब देलक, हम फलाना नम्बर के गोमटी में काम करता रहा । जब हम ई कहली कि हमरा नियर देहाती अदमी से का सहरू बोली बोलऽ हऽ, तब ऊ लजायल ।

इतिहास के ढेर सुनहला दिन बीत गेल । अब फिन अप्पन विकास के खातिर ई जरूरी हे कि अप्पन भासा के विकास कइल जाय । अइसे तो लोग 'हइए था साहेब' बोलवे करऽ हथ । खिचड़िया हिन्दी बोले के कारन ई हे कि हमन्हीं मगहिया मगही बोले में लजा ही । ऊ सुभाव से निकस न पावऽ हे । जब हिन्दी बोले लगऽ ही तो ऊ हिन्दिए के राहे निकल जा हे, जेकरा से खिचड़िया हिन्दी बोला जा हे ।

बाकी एकर मतलब ई न हे कि हम राष्ट्रभासा हिन्दी के अनादर इया उपेक्षा करी । बहुत पहले वैदिक युग हल । ऋग्वेद के भासा सबसे पुराना मानल जा हे । एकर भासा संस्कृत न हे । वेद में सब भासा के संग्रह हे । एकरा से एकर व्याकरण कठिन भे गेल । जाय लागी, जाय खातिर जे निमित्तार्थक क्रिया हे ऊ वेद में पावल जा हे । 'गन्तुम्' के १३ रूप वेद में मिलऽ हे । ऊ समय अप्पन-अप्पन राज्य के भासा परचलित हल ।

हमन्हीं राष्ट्रीय एकता लागी हिन्दी के उन्नति करी बाकी मगही अप्पन बोली के न भूली । हम चीन-जापान गेली हल तो हमरा लोग बड़ी आदर से देखऽ हलन । एकर कारन ई हल कि हम मगध के हली । दुनियाँ में आझो मगध के बड़ा नाम हे । ओकरा लागी लोग के दिल में बड़का गो जगह हे । मगधे में एगो राजा हलन जे अप्पन बेटा के अप्पन भासा के परचार ला देश-विदेश में भेजलन । हमन्हीं सब के चाही कि अप्पन भासा के उद्धार करे ला कमर कस के तइयार हो जाइ । मगही के बिना हमन्हीं के उद्धार न हो सके ।

["मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई अध्यक्षीय भाषण पृ॰३ पे छपले ह ।]

नोटः ई पुस्तक में पृ॰१२८ पर कश्यप जी के "जन्मः रौनिया, नवादा, कार्तिक १९०९" लिक्खल हइ । लेकिन इनकर भतीजा डॉ॰ ए॰ के॰ नारायण लिखलथिन हँ - "Bhikkhu Jagdish Kashyap was born as Jagdish Narain in 1908 at Ranchi in the state of Bihar in India. But his ancestral home was in the village of Raunia in the district of Gaya. Raunia village is not far from the Barabar Hills in one direction and Rajgir and Nalanda in another." - p.xv in "Bhikkhu Jagdish Kashyap (A Biography)", pp.xv-xxxi in the book "STUDIES IN PALI AND BUDDHISM - A Memorial Volume in Honour of Bhikkhu Jagdish Kashyap", Editor: A. K. Narain; IInd Edition 2006; 1st Published 1979; Publisher: B.R. Publishing Corporation [A Division of BRPC (India) Ltd.], 425, Nimri Colony, Ashok Vihar, Phase-IV, Delhi-110052; Cost: Rs. 750/-.

2 comments:

विनीत कुमार said...

नारायणजी
मैं पिछले छ साल से दिल्ली में हूं। लेकिन मेरा बचपन बिहार शरीफ में गुजरा है। एक-दो बार मगही कवि सम्मेलनों में जाना हुआ है। आप अपना नंबर दें तो कभी बात हो सकेगी। विनीत, मो- 9811853307
ब्लॉग-htttp://taanabaana.blogspot.com

नारायण प्रसाद said...

विनीत जी,
ई जालस्थल पर भेंट आउ परिचय लगी धन्यवाद । हम अप्पन सम्पर्क नं॰ SMS से भेज रहऽलिये ह ।